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लोग ही चुनेंगे रंग-  ‘लाल्टू’


 

अश्लील


मैंने अभी अभी एक नाम पढ़ा
नाम बतला नहीं सकता
आप पहचान जाएँगे
वह नाम है
जिसका एक टुकड़ा मुसलमान और एक हिन्दू

इतना बदतमीज़ हूँ
यह सोचा कि वह नाम
जिस औरत का है
इसका शरीर एक कलाकृति हो सकता है

मसलन उसकी आँखों में मैं घुस सकता हूँ
अपने समन्दर की तलाश में
उसकी साँस बन नाक के जरिए
अन्दरूनी सभी गलियों में चक्कर लगा
गा सकता हूँ
हाल के फ़िल्मी गाने
यहाँ तक कि निकल सकता हूँ
जाँघों के बीच से
ठीक ऐसे वक्त
जब कोई ढूँढ रहा हो
उसकी औरताना महक

हे भगवान
इतना सब सोचकर
याद आया
उसके नाम के दो टुकड़े हैं और
दो हैं किस्में नंगी भीड़ की

उसका शरीर बिखरा अनन्त टुकड़ों में
बिखरी वह आसमान में
जहाँ रो रही बुढ़िया मुर्झाए चाँद पर.

(पश्यन्ती - 1997)
 

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