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लोग ही चुनेंगे रंग-  ‘लाल्टू’

 

अभी समय है


अभी समय है
कि बादलों को शिकायत सुनाएँ
धरती के रूखे कोनों की
मुट्ठियाँ भर पीड़ गज़ल कोई गाएँ

अभी समय है
आषाढ़ के रोमांच का मिथक
यह रिमझिम भ्रमजाल हटाएँ
सहज दिखता पर सच नहीं जो
सब झूठ है सब झूठ है चिल्लाएँ

अभी समय है
बिजली को दर्ज़ यह कराएँ
बिकती सड़कों पर सौदामिनी
उसकी गीली रात भूखी है
सिहरती बच्ची के बदन पर
शब्द कुछ सही बिछाएँ

अभी समय है
कुछ नहीं मिलता कविता बेचकर
कविता में कुछ कहना पाखण्ड है
फिर भी करें एक कोशिश और
दुनिया को ज़रा और बेहतर बनाएँ.

(दैनिक भास्कर – 2000)

 

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