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आलोकधन्वा/
दुनिया रोज़ बनती है/फ़र्क़(ii)-छतों
पर लड़कियाँ
हत्याएँ और आत्महत्याएँ एक जैसी रख दी गयी हैं
छतों पर लड़कियाँ
गो कि लड़कियाँ आयी हैं उन लड़कों के लिए
(1992)
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