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दुनिया रोज़ बनती है (काव्य संग्रह): आलोकधन्वा

अनुक्रम

 

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कविता-संग्रह
दुनिया रोज़ बनती है
नई कविताएँ
चेन्नई में कोयल
ओस
फूलों से भरी डाल
बारिश
सवाल ज़्यादा है
रात
उड़ानें
श्रृंगार
रेशमा
भूल
पाने की लड़ाई
मुलाक़ातें
आम के बाग़
गाय और बछड़ा
नन्ही बुलबुल के तराने

 

नाम

: आलोकधन्वा

जन्म

:  2 जुलाई,1948

शिक्षा

: स्वाध्याय

प्रकाशित कृतियाँ

: दुनिया रोज़ बनती है

पुरस्कार/सम्मान

: पहल सम्मान, नागार्जुन सम्मान, फ़िराक़ गोरखपुरी सम्मान, गिरिजा कुमार माथुर सम्मान-नई दिल्ली, प्रकाश जैन स्मृति सम्मान

संप्रति

: राइटर इन रेजीडेंस, महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा (महाराष्ट्र)

टेलीफोन

: 09931611041

ई-मेल

:

1. आम का पेड़
2. नदियाँ
3. बकरियाँ

4. पतंग
5. कपड़े के जूते
6. नींद
7. शरीर
8. एक ज़माने की कविता

9. गोली दागो पोस्टर
10. जनता का आदमी
11. भूखा बच्चा
12. शंख के बाहर

13. भागी हुई लड़कियाँ
14. जिलाधीश
15. फ़र्क़
16. छतों पर लड़कियाँ
17. चौक
18. पानी
19. ब्रूनो की बेटियाँ
20. मैटिनी शो
21. पहली फ़िल्म की रोशनी

 

 

22. क़ीमत
23. आसमान जैसी हवाएँ
24. रेल

25. जंक्शन
26. शरद की रातें

27. रास्ते
28. सूर्यास्त के आसमान

29. विस्मय तरबूज़ की तरह
30. थियेटर

31. पक्षी और तारे
32. रंगरेज़

33. सात सौ साल पुराना छन्द
34. समुद्र और चाँद

35. पगडंडी
36. मीर
37. हसरत

38. किने बचाया मेरी आत्मा को
39. कारवाँ
40. अपनी बात
41. सफ़ेद रात

 

 

                           >आलोकधन्वा की नई कविताएँ<                                  

 

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