हिंदी का रचना संसार | ||||||||||||||||||||||||||
मुखपृष्ठ | उपन्यास | कहानी | कविता | नाटक | आलोचना | विविध | भक्ति काल | हिंदुस्तानी की परंपरा | विभाजन की कहानियाँ | अनुवाद | ई-पुस्तकें | छवि संग्रह | हमारे रचनाकार | हिंदी अभिलेख | खोज | संपर्क |
|
||||||||||||||||||||||||||
आलोकधन्वा/
दुनिया रोज़ बनती है
भूखा बच्चा
उस
बच्चे की आत्मा गिर रही है ओस की तरह जिस
तरह बाँस के अँखुवे बंजर में तड़कते हुए ऊपर उठ रहे हैं
लेकिन उस बच्चे के रक्त़संचार में उस
बच्चे के रक्तसंचार में
(1973)
शंख के बाहर
शंख से बाहर पिता झुकते जा रहे हैं
|
मुखपृष्ठ | उपन्यास | कहानी | कविता | नाटक | आलोचना | विविध | भक्ति काल | हिंदुस्तानी की परंपरा | विभाजन की कहानियाँ | अनुवाद | ई-पुस्तकें | छवि संग्रह | हमारे रचनाकार | हिंदी अभिलेख | खोज | संपर्क |
Copyright 2009 Mahatma Gandhi Antarrashtriya Hindi Vishwavidyalaya, Wardha. All Rights Reserved. |