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 आलोकधन्वा/ दुनिया रोज़ बनती है
 

 

पहली फ़िल्म की रोशनी

 


जिस रात बाँध टूटा
और शहर में पानी घुसा


तुमने ख़बर तक नहीं ली


जैसे तुम इतनी बड़ी हुई
बग़ैर इस शहर के
जहाँ तुम्हारी पहली रेल थी
पहली फ़िल्म की रोशनी।

(1997)
 

क़ीमत

 


अब तो भूलने की भी बड़ी क़ीमत मिलती है


अब तो यही करते हैं
लालची ज़लील लोग।

(1997)
 

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