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 आलोकधन्वा/ दुनिया रोज़ बनती है/ब्रूनो की बेटियाँ(v)-मैटिनी शो
 

 

चल रहे हैं


रानियाँ मिट गयीं

ज़ंग लगे टिन जितनी क़ीमत भी नहीं
रह गयी उनकी याद की


रानियाँ मिट गयीं
लेकिन क्षितिज तक फ़सल काट रही
औरतें
फ़सल काट रही हैं।

(1989)
 

 

 

 

 

 

 

 

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ज्यार्दानो फ़िलिप्‍पो ब्रूनो सोलहवीं सदी के महान इतालवी वैज्ञानिक-दार्शनिक थे। उन्होंने चर्च के वर्चस्व और धार्मिक रूढियों को चुनौती देते हुए कोपरनिकस की इस स्थापना का समर्थन किया कि ब्रह्मांड के केंद्र में सूर्य है और हमारी पृथ्वी के अलावा और भी पृथ्वियाँ हैं। सन् 1600 में ईसाई धर्म न्यायालय के आदेश पर उन्हें ज़िंदा जला दिया गया। बाद में महान वैज्ञानिक गैलीलियो ने इसी वैज्ञानिक चेतना का विकास किया।
 

 
मैटिनी शो


प्यार
पुराने टूटे ट्रकों के पीछे मैंने किया प्यार
कई बार तो उनमें घुसकर
लतरों से भरे कबाड़ में जगह निकालते
शाम को अपना परदा बनाते हुए
अक्सर ही बिना झूठ
और बिना चाँद के


दूर था अवध का शहर लखनऊ
और रेख़ते से भीगी
उसकी दिलकश ज़बान फ़िलहाल कोई एक देश नहीं
गोधूलि में पहले तारे के सिवा
पीठ के पीछे जो शहर था
वह शहर था भी और नहीं भी था
बनते-बनते उसे
अभी बनना था


औरतों और बच्चों से ताज़ादम बस्तियों
की गलियाँ ही गलियाँ
इनसे बाहर निकलते
छिपते-छिपाते    
(...जारी)
 

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