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आलोकधन्वा/
दुनिया रोज़ बनती है
नदियाँ
इछामती और मेघना
उनसे उतनी ही मुलाकात होती है
और उस समय भी दिमाग़
(1996)
बकरियाँ
अगर अनंत में झाड़ियाँ
होतीं
(1955)
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