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 आलोकधन्वा/ दुनिया रोज़ बनती है
 

 

मीर

 


मीर पर बातें करो
तो वे बातें भी उतनी ही अच्छी लगती हैं
जितने मीर


और तुम्हारा वह कहना सब
दीवानगी की सादगी में
दिल-दिल करना
दुहराना दिल के बारे में
ज़ोर देकर कहना अपने दिल के बारे में कि
जनाब यह वही दिल है
जो मीर की गली से हो आया है।


(1996)
 

 

 

 

हसरत



जहाँ नदियाँ समुद्र से मिलती हैं
वहाँ मेरा क्या है
मैं नहीं जानता
लेकिन एक दिन जाना है उधर


उस ओर किसी को जाते हुए देखते
कैसी हसरत भड़कती है !


 (1996)
 

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