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आलोकधन्वा/
दुनिया रोज़ बनती है/ भागी
हुई लड़कियाँ(iv)-जिलाधीश
अपनी हैसियत, अपनी ताक़त से ?
तुम नहीं रोये पृथ्वी पर एक बार भी
सिर्फ़ आज की रात रूक जाओ
सिर्फ़ आज की रात रुक जाओ
ज़िलाधीश
तुम एक ऐसे विरोध की भाषा में बोलते हो
तुम क्या सोचते हो
यह जो आदमी
यह ज़िलाधीश है
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