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 आलोकधन्वा/ दुनिया रोज़ बनती है/कपड़े के जूते(ii)
 

और निवि‍ड़ता एक ऐसी चीज़ है-
जहाँ नींद के बीज सुरक्षित हैं
जूतों की दुनिया जहाँ से शुरू हुई होगी
जानवर वहाँ तक जरूर आये होंगे।

जूते-जो प्राचीन हैं
जिस तरह नावें प्राचीन हैं
चाहे उन्हेंप कल ही क्योंग न बनाया गया हो
जैसे फल-
जो जूतों और नावों से भी अधिक प्राचीन हैं
चाहे वे आज की रात ही क्यों न फले हों
जैसे पाल-
जो हमारे कपड़ों से बहुत अधिक प्राचीन दिखते हैं
लेकिन हमारे कपड़े-
जो पालों से बहुत अधिक प्राचीन हैं।
और प्राचीनता एक ऐसी चीज़ है-
जिसे अपने घुटनों में जगह दो
ताकि ये घुटने किसी तानाशाह के आगे न झुक सकें
क्योंकि भय भी एक प्राचीन चीज़ है-
लेकिन हथियार भी उतने ही प्राचीन हैं

और ज़मीन-
जो फल से अधिक प्राचीन है
बीज की तरह प्राचीन-
और ज़मीन पर चलना-
जो इतना आसान काम है
फिर भी ज़मीन पर चल रहे आदमी को देखना
एक प्राचीन दृश्य को देखना है-
ज़मीन पर चलना एक इतना आसान काम है
 

 

फिर भी
ज़मीन पर चलने की स्मृति गहन है

रेल की चमकती हुई पटरियों के किनारे
वे अब सिर्फ़ कपड़े के पुराने जूते ही नहीं हैं
बल्कि वे अब
ऐसे धुँधले और ख़तरनाक रास्ते भी हो चुके हैं-
जिन पर जासूस भी चलने में असमर्थ हैं
लेकिन जब तारे छिटकने लगते हैं
और शाम की टहनियाँ उन पुराने जूतों में भर जाती हैं
तो उन्हीं धुँधले और ख़तरनाक रास्तों पर स्वप्न के
सुदूर चक्के तेज़ घूमते हुए आते हैं और
आदमी की नींद में रोशनी और जड़ें फेंकते हुए
कहाँ-कहाँ फेंक दी गयीं ओर छोड़ दी गयीं और
बेकार पड़ी चीज़ो को एक
हरियाली की तरह बटोर लाते हैं !

जानवर प्रकृति से आये। और दिन भी।
लेकिन जूते प्रकृति से नहीं आये
जूतों को आदमियों ने बनाया-
जिस तरह बाग़ीचों को आदमियों ने बनाया
इस तरह साथ-साथ चलने के लिए
आदमी ने महान चीज़ें बनायीं
और उन महान चीज़ों में जूते आदमी
के सबसे निकट हैं-
जहाज़ से भी अधिक
सड़कों, रेलों और सीढ़ियों से भी अधिक
कोशिशों और धुनों की तरह
निरंतर प्रवेश चाहते हुए
 

(...जारी)
 

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