अपने अंदर से बाहर
आ जाओ
हर चीज यहाँ किसी न किसी के अंदर है
हर भीतर जैसे बाहर के अंदर है
फैल कर भी सारा का सारा बाहर
ब्रह्मांड के अंदर है
बाहर सुंदर है क्योंकि वह किसी के अंदर है
मैं सारे अंदर बाहर का एक छोटा सा मॉडल हूँ
दिखते-अदिखते प्रतिबिंबों से बना
अबिंबित जिसमें
किसी नए बिंब की संभावना-सा ज्यादा सुंदर है
भीतर से यादा बाहर सुंदर है
क्योंकि वह ब्रह्मांड के अंदर है
भविष्य के भीतर हूँ मैं जिसका प्रसार बाहर है
बाहर देखने की मेरी इच्छा की यह बड़ी इच्छा है
कि जो भी बाहर है वह किसी के अंदर है
तभी वह सँभला हुआ तभी वह सुंदर है
तुम अपने बाहर को अंदर जान कर
अपने अंदर से बाहर आ जाओ ।
बी.ए.पास रिक्शावाले की कविता
उस जगह को याद रखे हुए जिसे छोड़ आया हूँ
पहाड़ की चोटी पर
श्रम और पूँजी और विनिमय के बीच में
गमछे भर आधी करवट लेटने की जगह ढूँढ़ता हूँ मैं
शहर के कूड़े से बने रपटे में
सैकड़ों दिन की कड़ी मेहनत कठिन बचत से
उलझे हुए अपार जगत व्यापार में क्या-क्या पा सकता हूँ मैं
एक तो तिरछा ढाल जिस पर से मेढ़क भी गिर पड़े
चिड़िया भी रपट जाए
मैंने एक बिछौने भर समतल काट कर उभारा
कि एक दिन यह कोठरी भर बड़ा हो जाएगा
इतनी भर जगह मैंने ग्लोब पर हथिया ली
ग्लोब पर रपटा और रपटे पर छोटा सा-समतल
रपटे पर घनी घास उग आई
यहाँ घास जैसे पैर चाहिए जमने के लिए
पता नहीं सँभालता है कौन बोता कौन है
धतूरा और अरंड सहित बहुत सारी चीजों का घर हो गया
जहाँ अभी मेरा घर होना दूर है अंड-बंड पौधों के बीच
अब मैं सोचता हूँ गमछे भर जगह जब घर भर बढ़ी होगी
जिसमें अगर लेटूँ तो किधर होगा सिरहाना
उधर जिधर एक गुमड़ा-सा है
जहाँ बरसाती पानी ने चीरा लगाकर
मिट्टी के पथरीले दिल को चमका दिया है
ऐसा अंधेर तो नहीं होगा कि कोई आएगा
और इस जगह को मेरी नहीं बताएगा
तो ढाल पर काट कर निकाली गई गमछे भर जगह
राष्ट्रीय धरती पर बिछौने भर घर-द्वार
सब भूल जाएँगे पूँजी के बाजार में पूरी मेहनत से
मेरा भाड़ झोंकना
एक चूल्हा हासिल करने के लिए
बिछौने तक आने की जीवन यात्रा में
मेरा रोज एक जलूस निकलना है
मुझे सारा शहर ढोना है इस खुशी में
कि रपटे पर यह कोना मेरा है
छत की जगह फैलानी है मुझे एक रंगीन पॉलीथीन।
पेड़
नदियाँ कहीं भी नागरिक नहीं होतीं
और पानी से यादा कठोर और काटनेवाला
कोई दूसरा औजार नहीं होता
फिर भी जो इस भयंकर बाढ़ में अपनी बगलों तक डूब कर खड़ा रहा
वह अतीत के जबड़े से छीन कर अपने टूटे हाथों को फिर से उगा रहा है
इस सपाट जगह के बाद उस कोने पर
जहाँ ढाल करीब-करीब बाईं ओर के अँधेरे में पड़ गया है
मुझे कुर्सी से उठ कर उससे मिलना चाहिए
अब पडोसियों के कार्यक्रम से समय का पता लगना मुश्किल हो गया है
क्योंकि मेरे आने का वक्त चला गया और मेरे जाने के कई वक्त मौजूद हैं
मुझे उससे जरूर मिल लेना चाहिए
वह जहाँ पर जमा। वहीं पर उगा
वहीं पर लपक कर फैला। उसने वहीं पर पकड़ी रोशनी
और हवा को दूर- दूर तक प्रभावित किया
- वह कहीं भी अपने खिलाफ नहीं है
शाम को अपना चेहरा बाजार से यों का त्यों वापस न लाने के बाद
आराम करने के लिए या पाने के लिए
उसके पूर्वजों के मरोड़े हुए हिस्सों पर आ कर बैठना
किसी ऐसे छिले हुए आदमी पर बैठना है जो मरते वक्त उकडूँ बैठा हुआ था
कुर्सी के हत्थों पर कोहनियाँ टेकते हुए मुझे लगता है
कि कारीगर के घुटनों पर जोर पड़ रहा है अब मुझे उठ ही जाना चाहिए
सोचते हुए अपने मरण और शील को दबोचते हुए
मैं उसके लिए निहत्था उठता हूँ
लेकिन मृतकों की संख्या पर छाया छोड़ती हुई चीजें
मुझे अपने ऊनी कोट की रक्षा के लिए प्रेरित करती हैं
क्योंकि मेरे कंधे पैड के बिना अधूरे हैं
जो पत्थरों के दिमाग को अपने लिए उपजाऊ बना रहा है
जो अपनी खाल को कोट की तरह पहने हुए है
मुझे उससे मिलते हुए यह नहीं भूलना चाहिए
कि आधा तो मैं अपने ही कमरे की खूँटियों पर टँगा हुआ हूँ
मेरे और धरती के बीच हमेशा एक चमड़े का टुकड़ा है
जबकि वह पूरा का पूरा उसी में खड़ा है
अपनी दवा के लिए अपने ही शरीर में बार-बार
पानी उबालते रहने से अच्छा मैं आज उससे पहचान कर लूँ
जिसमें कहीं न कहीं से समय जंगल की तरह घुस गया है
मुझे उससे मिलते हुए यह भी नहीं भूलना चाहिए
कि यह सारा नगर उसके पूर्वजों का आधा सहयोग है
और अपने आदर्शों को जाने बिना वह जमीन को अकेले पटा रहा है
उसकी जड़ों के साथ। भीतर
दो चार और जड़ें आकर फँस गई हैं
मुझे जाना चाहिए कि वह अब किस तरह हिल रहा है
ऊपर के सार्वजनिक अंधकार में उसके तजुर्बे कितने हरे हैं
बंजर इलाके को अँधेरे में खाते हुए
समूचे ढाल को टूटने से बचाते हुए
ऋतु के खिलाफ । पडोस के व्यवहार को तने पर झेल कर
करुणा को खुरदुरी खाल के नीचे दौड़ाते हुए
वह अपनी रुचि के लिए युद्ध और इंतजार में नंगा खड़ा है
अपने सारे शरीर को कारखाने की तरह सँभाले हुए
टहनियों को बंदूकों की तरह ताने हुए
उसने अपनी जड़ों को । फौजी कतारों की तरह बट कर
मिट्टी की तबियत पर मोर्चा बाँध दिया है
अपने अंधकार से अपनी ऊँचाई का निर्णय करते हुए
उसके पत्ते उपदेश नहीं हैं। वे जीवित शब्द हैं
जिन्हें वह भीतर के अंधकार से बाहर लाया है
(उनकी शक्ल समाचारों की शक्ल नहीं है)
एक भ्रमण की जर्जरता से पहले वह बरफ में नहाएगा
उसने अपने अपना व्यक्तिगत जन्म लिया है
वह केवल प्रतीक के रूप में नहीं उगा
अगली लड़ाई के लिए मौसम की जासूसी में
वह अपने गेरिल्ला संसार को तहखाने में तैयार कर रहा है
विषाद और अनुभव के शब्दग्रस्त पत्तों को गिराते हुए
उसकी आँखों में अनेक इच्छाओं के कोमल सिर हैं
जिन्हें जब वह निकालेगा तो बचपन की मस्ती में
हवा, रोशनी और सारे आकाश को दूध की तरह पी जाएगा।
वह कोशिश कर रहा है कि एक ही हफ्ते में
जिंदगी को तहलके की तरह मचा दे
आओ, और मुझे सिर ऊँचा किए हुए उससे यादा जूझता हुआ
उससे यादा आत्मनिर्भर कोई आदमी बताओ
जो अपनी जड़ें फैला कर मिट्टी को खराब होने से बचा रहा है
अंतर्देशीय
इस पत्र के भीतर कुछ न रखिए
न अपने विचार। न अपनी यादें
इस पत्र के भीतर कुछ न रखिए
न अपने संबंधों की छाप
न दुख, न शिकायतें
न अगली मुलाकात का वादा
न सक्रांमक बीमारियाँ
न पारिवारिक प्रलाप
न अपने हस्ताक्षर
वरना यह पत्र पकड़ा जा सकता है
इस पत्र के भीतर कुछ न रखिए
क्योंकि जिनका 'ठिकाना' नहीं
वे असहाय सबसे ज्यादा संदिग्ध हैं
बाहर एक ओर किसी पानेवाले का नाम और पता
दूसरी ओर किसी भेजनेवाले का हस्ताक्षर जरूर हो
समाचार खुद हिफाजत चाहते हैं
इस पत्र के भीतर कुछ न रखिए
भेजनेवाला जानता है
क्या नहीं लिखा गया
क्यों नहीं लिखा गया पढ़नेवाला जानता है
कोरा, वह भी बाँच लेगा
एक भी आखर जिसके हिस्से आया
इस पत्र के भीतर कुछ न रखिए
न कोई विस्फोटक शब्द
न बच्चा पैदा होने की खबर
न कोई आकस्मिक मृत्यु
न बम
न कोई वाजिब तर्क
न नए साल की बधाई
न तलाक का इरादा
इस पत्र के भीतर कुछ न रखिए
सारा मुद्दा, सारा पत्र
पोस्टमैन का रक्तहीन चेहरा है
जो रोज गाँजा जा रहा है
और जिसे शाम को वह जमा भी नहीं कर सकता।
चिड़िया का प्रसव
माँ उस पुरानी घटना का नाम है
अपने पेट में अंडे ले कर
ण चिड़िया बाजार में गई
लाला के आगे से सुतली
घोड़े के आगे से घास
बूचड़ के आगे से बकरी के बाल
बच्चे के आगे से कागज ला कर
उसने घोंसला बनाया
जिसका विरोध नहीं किया जा सकता
प्रसव से पहले चिड़िया ने
घोंसला बना लिया था
चिड़िया का विरोध आजादी का विरोध है
उस दरवाजे से बाहर। उस आकाश में
जो आईने के अंदर फँसा हुआ है
नई चिड़िया
उस चिड़िया के साथ रहना चाहती है
आईने के भीतर से जो चोंच लड़ाती है
आईना धोखा है
या चिड़िया खुद को नहीं पहचानती
मगर जितनी जिस रंग की आ जाएँ
उतनी उस रंग की वो दिखा देता है
चिड़िया उस परत को कमजोर बनाना चाहती है
जिसके पार दूसरी चिड़िया फँसी है
तो भी उसका विरोध नहीं किया जा सकता
क्योंकि आईना भी एक दीवार है
चोंच चाहे बड़ी हो चाहे छोटी
भूख का जलजला एक है
चींटी जिसे ले गई
हाथी वो कण नहीं उठा सका
पानी जितना चिड़िया ने पिया
नदी कभी समुद्र तक नहीं पहुँचा सकी
एक चिड़िया की भूख
एक चींटी की भूख
एक हाथी की भूख;
भूख चाहे किसी की हो
- मार एक है
शांति में, खामोशी में, सन्नाटे में
तसल्ली के बाद जो पैदा होती है
माँ उस इच्छा का नाम है।
दृश्य
एक आदमी अभी मेरा एक शब्द ले कर
मुझे टोह गया
उसके मुँह में वह शब्द अब भी गरम होगा
ऐसा उस समय हुआ
जब काँच की किरचवाली दीवार पर
एक बिल्ली मुँह में चूहा ले कर जा रही थी
झाड़ी में बिल्ली ने चूहे को छोड़ दिया;
गरम। कोमल फड़कता हुआ चूहा
चला,
चलने के बाद दौड़ने लगा
दौड़ते ही फिर दबोचा बिल्ली ने
पकड़ कर फिर दूसरी झाड़ी में ले गई
झाड़ी के ऊपर मँडराती रहीं केंकती हुई चिड़ियाँ
चूहे से छूट चुकी थी चूहे भर जमीन
बिल्ली के नीचे दबी हुई थी बिल्ली भर जमीन
लेकिन उसकी परछाई
और बड़ी होकर बाघ की तरह पसरी हुई थी
दुबारा वह आदमी मेरी ओर आ रहा है
और मुझे दूसरे शब्द की तरह देख रहा है
अ-मृत
हमेशा नहीं रहते पहाड़ों के छोए
पर हमेशा रहेंगे वे दिन
जो तुमने और मैंने एक साथ खोए।
भेद
जो पुलिस था उस आदमी ने सपना देख कि वह पुलिस नहीं है
टाफियाँ माँगते माँगते बच्चे आए। सपने के
खेल ही खेल में उसे रस्सी से बाँधने लगे
सामने से एक लड़की आई
और पास आते-आते औरत हो गई
मगर पुलिसवाला खुद को रस्सी से नहीं छुड़ा सका।
फिर वही औरत आई
और बच्चों को खदेड़ कर ले गई जैसे उसी के हों
जब पुलिसवाला पुलिस लाइन में यह सपना बखान कर रहा था
तब उसके पुलिस दोस्तों ने कहा
अरे! वे बच्चे हम रहे होंगे
और वह औरत
हमें बड़ा बनाने के लिए कहीं ले गई होगी
जो पुलिस नहीं रह गया था सपने में उसने कहा
थोड़ी देर बाद वह औरत फिर आई
मैंने खूब पहचाना कि वह मेरी औरत है
और वे बच्चे मेरे बच्चे हैं
तब क्या मैं तुम्हारा बाप था?
सारे के सारे वे बड़े जोर से हँसे
उस समय मैं एक होटल जैसे में चाय पी रहा था
होटल का जो एक लड़का था
डरा हुआ आया और कहने लगा
पुलिस लाइन में आज क्या हो गया
पुलिस लाइन में पुलिस पर पुलिस हँस रही है
पुलिस लाइन में आज क्या हो गया
'पुलिस हँस रही है! पुलिस हँस रही है!'
कहता हुआ वह लड़का वहीं पर ढेर हो गया
मेरी बगल से एक चाय पीते
नमकीन खाते आदमी ने गोली चला दी थी
'साले, भेद खोलते हो'
अब मैं सोच रहा हूँ कि क्या सुबह हो गई है
क्या मैं सपने से बाहर हो गया हूँ
क्या मेरा यह सोचना ठीक है
कि अपना यह सपना
किसी के आगे बखानूँ या न बखानूँ ?
आषाढ़
यह आषाढ़ जो तुमने मां के साथ रोपा था
हमारे खेतों में
घुटनों तक उठ गया है
अगले इतवार तक फूल फूलेंगे
कार्तिक पकेगा
हमारा हँसिया झुकने से पहले
हर पौधा तुम्हारी तरह झुका हुआ होगा
उसी तरह जिस तरह झुक कर
तुमने आषाढ़ रोपा था
लड़ाई
दुनिया की सबसे बड़ी लड़ाई आज भी एक बच्चा लड़ता है
पेट के बल, कोहनियों के बल और घुटनों के बल
लेकिन जो लोग उस लड़ाई की मार्फत बड़े हो चुके
मैदान के बीचों-बीच उनसे पूछता हूं
कि घरों को भी खंदकों में क्यों बदल रहे हो?
जानते हो यह उस बच्चे के खेल का मैदान है
जो आज भी दुनिया की सबसे बड़ी लड़ाई लड़ता है
ये सब सोचने की जिन्हें फुर्सत नहीं
उनसे मेरा कहना है कि जिन्हें मरने की भी फुर्सत नहीं थी
उन्हें भी मैंने मरा हुआ देखा है
पर उस तरह नहीं जिस तरह एक बच्चा मरता है
जिसकी न कहीं कोई कब्र होती है न कोई चिता जलती है
बच्चों के लिए गङ्ढे खोदे जाते हैं
ठीक जैसे हम पेड़ लगाने के लिए खोदते हैं
उन्हें भी मैं जानता हूँ जो बूट पहनते हैं
पर एक बार भी मरे हुए जानवरों को याद नहीं करते
जबकि बंदूक को वे एक बार भी नहीं भूल पाते
उनमें से कुछ तो दुनिया के सायरनों के मालिक हैं
जो तीन-चार शहरों को नहीं
बल्कि पाँच-छह मुल्कों को हर साल खंदकों में उतार देते हैं
उनका एलान है कि घर एक आदिम खंदक है
और जमीन एक बहुत बड़ी कब्र का नाम है
इसलिए लोगो!
मेरी कविता हर उस इनसान का बयान है
जो बंदूकों के गोदाम से अनाज की ख्वाहिश रखता है
मेरी कविता हर उस आँख की दरख्वास्त है
जिसमें आँसू हैं
ये जो हरी घास के टीले हैं
ये जो दरवाजों से सटे हुए हवा के झोंके हैं
ये अब थोड़े दिनों की दास्तान हैं
यहाँ कोई बच्चा
चाहे वह पूरा आदमी ही क्यों न बन जाए
अपने पैरों पर खड़ा नहीं हो सकेगा
पेट के बल नहीं चल सकेगा
कोहनियों और घुटनों के बल भी नहीं
क्योंकि पहली लड़ाईवाले बच्चे
दुनिया की सबसे आखिरी लड़ाई लड़ने वाले हैं
पहाड़ पर रास्ते
एक बार एक आदमी के पीछे चलता यह रास्ता एक दिन
पहाड़ के सिर पर पहुँच गया
और उसी के पीछे-पीछे दूसरी ओर उतर गया यह रास्ता
उसके बाद लोग नई नई घटनाओं के साथ
उसी रास्ते से चढ़े और उसी के लगाए हुए रास्ते से
दूसरी ओर उतर गए
आसमान में सर्पाकार पेड़ की तरह चढ़े हुए
इस रास्ते के दोनों ओर कई और रास्ते फूटे हैं
ये रास्ते कैसे फूटे?
कई बार तो ये तब फूटे जब कोई इस रास्ते से बचना जाता था
और कुछ तब फूटे जब कोई इस रासते से भटक जाता था
कुछ नए रास्ते उन नए भटके हुओं ने भी बनाए
जो फिर इसी रास्ते पर चले आए
कुछ लोग तो कहीं के कहीं पहुँच गए
कुछ बीच में ही खत्म हो गए
कुछ भटकने के बाद भी पहाड़ लाँघ गए
कुछ ऐसे भी रहे जो इस रास्ते के फेर से बचना चाहते थे
वे पहुँचे और उन्होंने जाना कि उधर भी घर
बनाए जा सकते हैं
क्योंकि उधर भी झरने हैं, समतल टुकड़े हैं
ढाल हैं ताल हैं
रास्ते छूटते चले गए। बनते चले गए
रास्ते निकलते चले गए। बदलते चले गए
इन रास्तों के बीज आदमी के दिमाग से पैरों तक फैले हुए हैं
ढालानों को समतल बनाया हवा ने, पानी ने
और अंत में आदमियों ने
जो हवा पानी और जंगली जानवरों से लड़े
उन्होंने ये मेड़ें बाँधी हैं
नाखूनों से गूलें खोदी और पानी की उँगली-भर मोटी धार
घरों तक ले आए
सारे रास्ते घरों तक आ गए
आदमी पैर धोकर घर के अंदर जाने लगा
तब क्या घर पहुँचते ही रास्तों का अंत हो गया?
नहीं, बल्कि हर कोई हर बार एक नए रास्ते की
तलाश में सोता-जागता था
तब कुछ रास्ते पैर के बजाय हाथ से निकलने लगे
कुछ रास्ते चलने के बजाए रुकने से निकलने लगे
कुछ रास्ते अँधेरे से भागने के कारण निकले
कुछ उजाले से भागने के कारण निकलने लगे
तब से हालत ये है कि करवट बदलते ही आदमी
किसी नए रास्ते पर पहुँच जाता है
जो पचास और रास्तों से जुड़ जाता है
अब अलग से चलने के लिए यहाँ कोई जगह नहीं है
बस एक ही रास्ता नया हो सकता है
इन सब रास्तों को जान कर उस रास्ते को जानना
जो यादा दूर तक जाता हो
जो विध्नों से निपटने के साधन देता हो
जिनमें मेरा साहस भी एक है
कम से कम एक पड़ाव और आगे मैं उसे ले जाना चाहता हूँ
यहीं तक यह रास्ता मेरे आगे-आगे चलेगा
जहाँ तक यह पहले कभी किसी के पीछे-पीछे चला था
शेष रास्ता मुझे बनाना है
जो सिंर्फ विपत्ति में ही दिखाई देगा
आँधी
रात वह हवा चली जिसे आँधी कहते हैं
उसने कुछ दरवाजे भड़भड़ाए
कुछ खिड़कियाँ झकझोरीं, कुछ पेड़ गिराए
कुछ जानवरों और पक्षियों को आकुल-व्याकुल किया
रात जानवरों ने बहुतसे जानवर खो दिए
पक्षियों ने बहुत-से पक्षी
जब कोई आदमी नहीं मिले
तब उसने खेतों में खड़े बिजूके गिरा दिए
काँटेदार तारों पर टँगे मिले हैं सारे बिजूके
आदमियो! सावधान
कल घरों के भीतर से उठनेवाली है कोई आँधी
एक खबर
अकसर
आतंकवादी सड़कों के किनारे गन्ने के खेतों में छिप जाते हैं
इसलिए गन्ना जलवाया जा रहा है
रामदीन कुछ गहरे डूब कर बोला...
गन्ना महँगा गुड़ बन जाए, महँगी चीनी बन जाए
गन्ने को कीड़ा लग जाए
इसी तरह का रोग है कि गन्ने में आतंकवादी छिप जाए
सुलहदीन बोला..
अचरज नहीं कि पीपलवाले भूत से यादा
गन्ने से डर लग जाए
मातादीन बोला..गन्ने से उगता है उद्यम
और हर उद्यम में जा छिपता है आतंकवादी
रामदीन भी पलट कर बोला..
पर अगर आलू के बराबर हो गए आतंकी
गोली-बारूद आलुओं में से चलने लगे
मान लीजिए वे अरहर में छिप जाएँ
धान में छिप जाएँ
सारे अन्न-क्षेत्र में आतंकी ही आतंकी हों
वे अड़ जाएँ और इतने बढ़ जाएँ
कि साग भाजियों में भी कीड़ों की तरह पड़ जाएँ
तब भाई मातादीन हम अपना क्या-क्या जलाएंगे ?
गरीब वेश्या की मौत
कल-पुर्जों की तरह थकी टाँगें, थके हाथ
उसके साथ
जब जीवित थी
लग्गियों की तरह लंबी टाँगें
जूतों की तरह घिसे पैर
लटके होठों के आस-पास
टट्टुओं की तरह दिखती थी उदास
तलवों में कीलों की तरह ठुके सारे दुख
जैसे जोड़-जोड़ को टूटने से बचा रहे हों
उखड़े दाँतों के बिना ठुकी पोपली हँसी
ठक-ठकाया एक-एक तंतु
जंतु के सिर पर जैसे
बिन बाए झौव्वा भर बाल
दूसरे का काम बनाने के काम में
जितनी बार भी गिरी
खड़ी हो जा पड़ी किसी दूसरे के लिए
अपना आराम कभी नहीं किया अपने शरीर में
दाम भी जो आया कई हिस्सों में बँटा
बहुतों को वह दूर से
दुर्भाग्य की तरह मजबूत दिखती थी
खुशी कोई दूर-दूर तक नहीं थी
सौभाग्य की तरह
कोई कुछ कहे, सब कर दे
कोई कुछ दे-दे, बस ले-ले
चेहरे किसी के उसे याद न थे
दीवार पर सोती थी
बारिश में खड़े खच्चर की तरह
ऐसी थकी पगली औरत की भी कमाई
ठग-जवाँई ले जाते थे
धूपबत्तियों से घिरे
चबूतरेवाले भगवान को देख कर
किसी मुर्दे की याद आती थी
सदी बदल रही थी
सड़क किनारे उसे लिटा दिया गया था
अकड़ी पड़ी थी
जैसे लेटे में भी खड़ी हो
उस पर कुछ रुपए फिंके हुए थे अंत में
कुछ जवान वेश्याओं ने चढ़ाए थे
कुछ कोठा चढ़ते-उतरते लोगों ने
एक बूढ़ा कहीं से आ कर
उसे अपनी बीवी की लाश बता रहा था
एक लावारिस की मौत से
दूसरा कुछ कमाना चाहता था
मेहनत की मौत की तरह
एक स्त्री मरी पड़ी थी
कल-पुर्जों की तरह
थकी टाँगें, थके हाथ
उसके साथ अब भी दिखते थे
बीच ट्रैफिक
भावुकता का धंधा करनेवाला
अथक पुरुष विलाप जीवित था
लगता है दो दिन लाश यहाँ से हटेगी नहीं।
प्रार्थना
फलो !
जब महँगे बेचे जाओ
तो तुरंत सड़ जाया करो
छूते ही या देखते ही ।
मेरा ईश्वर
मेरा ईश्वर मुझसे नाराज है
मैंने दुखी न रहने की ठान ली
मेरे देवता नाराज़ हैं
क्योंकि जो जरूरी नहीं है
मैंने त्यागने की कसम खा ली है
न दुखी रहने का कारोबार करना है
न सुखी रहने का व्यसन
मेरी परेशानियाँ और मेरे दुख ही
ईश्वर का आधार क्यों हों ?
पर सुख भी तो कोई नहीं है मेरे पास
सिवा इसके कि दुखी न रहने की ठान ली है ।
एक बुढ़िया का इच्छा-गीत
मैं लगभग बच्ची थी
हवा कितनी अच्छी थी
घर से जब बाहर को आई
लोहार ने मुझे दराँती दी
उससे मैंने घास काटी
गाय ने कहा दूध पी
दूध से मैंने, घी निकाला
उससे मैंने दिया जलाया
दीये पर एक पतंगा आया
उससे मैंने जलना सीखा
जलने में जो दर्द हुआ तो
उससे मेरे आँसू आए
आँसू का कुछ नहीं गढ़ाया
गहने की परवाह नहीं थी
घास-पात पर जुगनू चमके
मन में मेरे भट्ठी थी
मैं जब घर के भीतर आई
जुगन-जुगनू लुभा रहा था
इतनी रात इकट्ठी थी
तो
जब उसने कहा
कि अब सोना नहीं मिलेगा
तो मुझे कोई फर्क नहीं पड़ा
पर अगर वह कहता
कि अब नमक नहीं मिलेगा
तो शायद मैं रो पड़ता
चट्टान पर चीड़
पानी पीटता रहा, हवा तराशती रही चट्टान को
दरारों के भीतर गूँजती हवा कुछ धूल छोड़ आती रही हर बार
कुछ धूप कुछ नमी कुछ घास बन कर उग आती रही धूल
धूल में उड़ते हैं पृथ्वी के बीज
छेद में पड़े बीज ने भी सपना देखा
मातृभूमि में एक दरार ही उसके काम आई
चट्टान को माँ के स्तन की तरह चूसते हुए बाहर की पृथ्वी को झाँका
हठी और जिद्दी वह आखिर चीड़ का पेड़ निकला
जो अकेला ही चट्टान पर जंगल की तरह छा गया
उस चीड़ और चट्टान को हिलोरने
चला आ रही है नटों की तरह नाचती हवा
कारीगरों की तरह पसीना बहाती धूप
चट्टान और पेड़ को भिगोने
आँधी में दौड़ती आ रही है बारिश ।
सीढ़ी
मैं हर सीढ़ी पर हाँफ रहा था
मुश्किल से चढ़ पा रहा था
बावजूद इस सब के यह आखिरी सीढ़ी थी
यह सीढ़ी वह पेड़ तो नहीं थी
जिस पर कभी मैं किशोर लपक कर चढ़ता था आकाश में
डाँट पड़ती थी तो खिसक कर उतर आता था जमीन पर
गिरकर हाथ- पाँव तुड़वाने के मुकाबले
एक बार पेड़ से नहीं पिटाई से घायल हुआ था मैं
मेरी पौत्री अनन्या कह रही है
आप बहुत अच्छे दादा हैं
आपने सारी सीढ़ियाँ चढ़ ली हैं
मैं उसे समझाना चाहता हूँ
कोई भी सीढ़ी अंतिम नहीं होती
ऊँचाई में चढ़ रहे हों तब तो और भी नहीं
कुछ लोग ऊँचाई पा लेने के बाद सीढ़ियाँ हटा देते हैं
ताकि लोग इस भ्रम में रहें कि वे खुद यहाँ तक पहुँचे हैं
बहुत-सी सीढ़ियों में से बचपन भी जीवन की महत्वपूर्ण सीढ़ी है
तुम एक-एक कर सारी सीढ़ियों को याद रखना अपनी आदत की सीढ़ी सहित
मेरे बारे में 'नाटक जारी है' की वह पंक्ति भी याद रखना
जिसमें कह पाया था '' रोज सीढ़ियाँ उतरता हूँ
मगर नरक खत्म नहीं होता। ''
सुबकना
सुखद-दुखद या मनहूस जितने भी अर्थ होते हैं
जीवन में हँसने-रोने के
सबसे ज्यादा विचलन पैदा करता है - सुबकना
सुबकना, निजी दुख को रोना-गाना नहीं बनने देता
विलाप का कोई आरोह-अवरोह भी नहीं
जो उसे प्रलाप बनाता हो
दुख को वजन और नमी सहित
धीमे भूकंप की तरह हिला रहा होता है - सुबकना
वैसे देखा जाए तो, सुबकना
रोनेवाले की असीम एकसरता और पथराने को
कुछ कम करता दिखता है
जैसे भीतरी उमड़न भी खुद कोई उपाय सोच रही हो
चंगा होने का
किसी भारी मलबे के नीचे फफकता सुबकना
ढाल पर से मिट्टी-सा खिसकता
जैसे दूर फैले दुख के दल-दल को सुखा देगा
और धीरज घाव पर खुरंट की तरह जम आएगा
सुबकना यह भी बता रहा होता है
कि जिसे अभी बहुत दिन साथ लगे रहना है सगे की तरह
उस अपने ही दुख को तुरंत बाहर कैसे किया जाए
गहरे कहीं दबा-डूबा वह सुबकना
जगत तक भर आए सूखे कुएँ-सी
आंखों में
कोई रास्ता तलाश रहा है विसर्जित होने का।
आज का दिन
क्या यकीन किया जा सकता है
कि आज का दिन भी ऐतिहासिक होगा
अगर आज भी किसी डाक्टर ने भ्रूण का लिंग बताने
से इनकार किया है
अगर आज कहीं नहीं हुई कन्या-भ्रूण-हत्या
तो आज का दिन ऐतिहासिक हो सकता है
आज का दिन इसलिए भी ऐतिहासिक हो सकता है
क्योंकि पूरे दाँत खो लकर हँसती हुई ग्यारह वर्ष
की लड़की
अकेले साइकिल सीखने निकली है
अनजान शहर में अकेली औरत ने
आफिस जाती किसी अकेली औरत से
ऐसे पुरुष का पता पूछा
जिसे पूछनेवाली के सिवा कोई नहीं जानता
सोचने की बात यह है कि आज के दिन
अकेली औरत अगर सुरक्षित है
तो आज के दिन को ऐतिहासिक होने से कोई
रोक ही नहीं सकता
विश्वसनीय सूत्रों से थोड़ी आश्चर्यजनक
ख़बर से भी
मैं आज के दिन को ऐतिहासिक मानता हूँ
कि छह महीने की जिस बच्ची ने बिस्तर पर
आधी पल्टी ली थी और चोट खाई थी
आज उसी सात महीने की बच्ची ने
पहली बार पूरी पल्टी ली और चोट नहीं खाई
आज का दिन ऐतिहासिक ही नहीं अद्भुत भी है
पल्टी खाने के बाद सुना कि वह खुद हँस भी दी
आज एक और घटना भी हुई है
जिसका मैं खुद गवाह हूँ
कि साइकिल सीखनेवाली ग्यारह वर्ष की
अकेली लड़की
चोट खा कर भी मुस्कुराती हुई लौटी है
अपने को हर जगह से झाड़ती हुई
यकीन मानिए
आज का दिन कहीं सचमुच ऐतिहासिक न हो!
सिल्ला और चिल्ला गाँव
हम सिल्ला और चिल्ला गाँव के रहनेवाले हैं
कुछ काम हम करते हैं कुछ करते हैं पहाड़
उत्तर और दक्षिण के पहाड़ हमें बाहर देखने नहीं देते
वह चील हमसे ज्यादा जानकार है जो इन पहाड़ों के पार से
हमारी घाटी में आती है
पूरब का पहाड़ सूरज को उगने नहीं देता
पश्चिम का पहाड़ तीन बजे ही शाम कर देता है
दोपहर को सूर्योदय होता है सिल्ला गाँव में
सिल्ला गाँव में थोड़ा-थोड़ा सब कुछ होता है
बहुत ज्यादा कुछ नहीं होता
सिल्ला गाँव की बेटियाँ चिल्ला गाँव ब्याही हैं
चिल्ला गाँव के भी बहुतों की ससुराल है
सिल्ला गाँव में
पूरब पहाड़ के पश्चिम ढलान पर बसा है सिल्ला गाँव
इस ठंडे ठिठुरे गाँव में भी होते हैं रगड़े-झगड़े
होती है गरमा-गरमी
झगड़ा होता था एक दिन दो भाइयों में
बड़े ने कहा छोटे से कि कल सबेरे मुझे दिखना मत
(सबेरे सबेरे याने दोपहर बारह बजे कल सुबह)
किसी एक को एक दूसरे को उनमें से दिखना नहीं है
सिल्ला गाँव में
वरना बाकी का झगड़ा कल दोपहर में होगा सुबह-सुबह
सामने एक दूसरा गाँव है चिल्ला गाँव
यह पश्चिम पहाड़ के पूरब ढाल पर बसा है
चिल्ला गाँव में आता है सबसे पहले धाम
सबसे पहले वहाँ लोग उठ कर सिल्ला गाँववालों को
गाली देते हैं अभी तक सोए हुए होने के लिए
आवाज देते हैं कि सूरज चार पगाह चढ़ चुका है
सिल्ला गाँव के कुंभकरणों जाग जाओ
पहाड़ की छाया के अँधेरे में
सिल्ला की औरतें सुनती हैं चिल्लावालों की गुनगुनाहट
लगभग बारह बजे आ पाता है
सिल्ला गाँव चिल्ला गाँव के बराबर
तब सिल्ला से एक बहन आवाज देती है
चिल्लावाली बहन को कि तू मायके कब आएगी
चिल्ला गाँव का सूरज तीन बजे डूब जाता है
सिल्ला गाँव में पाँच-छह बजे तक धूप रहती है
चिल्ला में लोग तीन बजे से घरों में घुसना शुरू कर देते हैं
चूल्हे जलाना शुरू कर देते हैं शाम के
चिल्ला और चिल्ला गाँव आमने-सामने हैं
जब सिल्ला गाँव में रात पड़नी शुरू होती है तब चिल्ला के लोग
खाना खा चुके होते हैं
जब सिल्लावाले रात का खाना खाते हैं
तब चिल्लावाले सो चुके होते हैं
लेकिन पहाड़ों को और सूरज को वे
अलग-अलग तरह से देखते हैं
सिल्ला गाँव की सुबह और चिल्ला गाँव की शाम
दो भाइयों की तरह लड़ती हैं आपस में
दो बहनों की तरह दूर से देखती हैं एक-दूसरे को
वैतरणी पर पुल
इससे अधिक कष्ट की बात क्या हो सकती है
कि मृतकों को वहाँ भी संसार जैसे ही कष्ट बताए गए हैं
जीते जी की तरह मरने के बाद भी डरो
यहाँ से भी बीहड़ बताए गए हैं वहाँ के रास्ते
वहाँ भी बिल्कुल यहाँ जैसी दुष्टताएँ हैं
कोई मृतक किसी मृतक को सहारा नहीं देता
बिलकुल यहीं जैसा पिछड़ापन कहीं कोई सवारी नहीं
मृतक को चलना बहुत पड़ता है
लंबी दूरियोंवाले पड़ाव भी बहुत और खतरनाक हैं
आश्चर्य तो यह कि मृतक को
मरने के बाद भी भूख का मुकाबला करना पड़ता है
धाँधली यह कि किसी का पिंडदान कोई और खा जाता है
यहीं जैसा लुच्चापन वहाँ भी
जीते जी जैसे कामों से मरने के बाद भी छुटकारा नहीं
कैदियों की तरह मृतक की भी जमानत करवानी पड़ती है
(वकीलों के नहीं पुरोहितों के माध्यम से)
गोदान किए मृतक वैतरणी पार के लिए बारी का इंतजार कर रहे हैं
गाय के सहारे नदी पार करने की तकनीक
पिछड़ेपन को वहाँ भी छिपने नहीं देती
अफसोस कि मन्वंतरों के बाद भी वैतरणी पर पुल नहीं बन सका
क्या यमलोक में डेरी और सेतु निर्माण
एक ही मंत्रालय के अधीन हैं ?
इधर बछिया से वैतरणी पर पुल का काम लिया
उधर गाय बनते ही उसे दुहने लगे
यहाँ दान की गाय अगर वहाँ उपस्थित रहती है
तो हित चाहनेवाला पुरोहित वहाँ अनुपस्थित क्यों ?
जब वह वहाँ साथ नहीं दे सकता तो दुधारू गाय
पुरोहित का घर और अपनी देह छोड़े बिना मृतक का साथ कैसे दे सकती है?
दान की गाय के बदले शायद यमलोक की गाय मिलती हो
जिसे वैतरणी पार करते ही जमा कराना पड़ता होगा...
पूँछ पकड़ कर नदी पार करना अविश्वसनीय भी लगता है
और सोचने को भी मजबूर करता है
अगर एक स्वचालित नाव दान की जाए तो कैसा रहेगा?
(पर पुरोहित अभी इतने टेक्निकल नहीं हुए हैं)
फिर भी यमराज से वैसी ही प्रार्थना है
जैसे मुख्यमंत्री या किसी भी मंत्री से मरणशील जनता करती है
कि वैतरणी पर जल्दी पुल बनाया जाए
और यह भी निवेदन है कि बिना दिहाड़ी मजदूरों का काम
पुरोहितों से लिया जाए
(पुरोहितों की वजह से ही सारे ब्राह्मण गाली खा रहे हैं)
क्योंकि शहरी विकास प्राधिकरणों में वसूले गए टैक्स की तरह
पुरोहितों को बहुत गो धन दान किया जा चुका है
पुरोहित अब इतना हित और करें कि शरीर त्यागते ही
वैतरणी पर पुल बनाने के लिए बिना दक्षिणा श्रमदान करें
और वहाँ मृतक को गरुड़ पुराण वैतरणी का पुल पार करते समय सुनाएँ
घास के पूले
अचरज हुआ घास के पूलों को चलता देख कर
पूले पर पूले
छह फुट से भी ऊँचे थे पुलिंदों के सिर
मजाल कि कोई उन्हें छू ले
इस तरह ऊँचे पुलिंदों की कतारें जा रही थीं
गाँवों की ओर
जैसे घास की मीनारें खुद चल कर जा रही हों
जानवरों की नाँद तक
औरतों के दो पैर लेकर चल रहे हैं घास के धड़
घास के सिर
न कमर। न गर्दन। न पिछवाड़ा
इतने थिर - सिर छह फुट्टे गट्ठरों के
पार कर रहे हैं पहाड़ की धार
कभी उन दो पैरोंवाली पीठों पर
लकड़ी के बोझ आ जाते कभी पराल के भारे
कभी घराट ले जाए जाते गेहूँ के बोरे
घिसे हुए तलवों और घिसी हुई मैली एड़ियों सहित
दो पैर स्त्री के दिख जाते हैं बार-बार
पुराने जूतों जैसे घिसे इन पैरों के सिर पर
जेठ की दोपहरियों में
कभी पानी भरे पीतल के बंट्टे चढ़ जाते हैं
घास के भारे । लकड़ी के गट्ठर
सिर पर बंट्टा और जिंदगी का बंट्टाढार
बासठ वर्षों से लगातार
बची हुई पृथ्वी पर
आज का दिन इस घाटी में मेरा दूसरा दिन है
और एक-एक कण की रणगाथा से भरी समुद्र-सहित तैरती यह पृथ्वी
आती-जाती रोशनी का तट है
जमीन की भाषा में जमीन को। पानी की भाषा में पानी को
कुछ कहना कितना मुश्किल है
अपनी भाषा में अपने को कुछ भी कह सकूँ और यहाँ रह भी सकूँ
कितना मुश्किल है
फिर भी हरे टुकड़ों के बीच। एक जगह एक घर होता
स्वाद से भरा। रोग से बचा। तो सुंदर कितनी अच्छी थी यह नदी
'गूँगे खामोश हैं' ऐसा एकदम नहीं कहा जा सकता
क्योंकि कई गाँवों को मजबूत किलों में बदलनेवाले पत्थर
यहाँ इंतजार कर रहे हैं
और आकाश की जीभ बन कर ताकतवर सन्नाटा
जंगल चखने के बाद इन्हें चाट रहा है
काई, इन पर उस समय की यादगार है
जो न काई था, न पत्थर, न जंगल, न नदी
जब कि किस मुल्क के ईश्वर का समय
मौत का समय नहीं है
सूर्योदय के आस-पास यह नदी है
और नदी के आस-पास यह सूर्योदय नए हैं
क्योंकि पृथ्वी पुरानी है
जिस पर एक दिन की लकड़ियाँ कई दूसरे दिनों का ईंधन है
तंबू के पीछे एक दूसरे दिन का धुआँ उठ रहा है
सन्नाटे के हाथ पर जैसे चिलम आ गई हो
जो चीजें, जो बातें जिन लोगों में अभी नहीं हैं
वे उनके लिए नई होंगी अगले साल
अगले साल के पीछे नहीं दिखाई दे रहा है
जो एक और अगला साल
उससे कहीं यादा साफ दिखाई दे रहा है
कई वर्ष पुरानी इस जगह पर मेरा यह दूसरा दिन
अगले क्षण इस दिन की चाय कहीं नहीं होगी
तीसरे दिन के सामान में से चौथा दिन बचाना है
धंधे का भविष्य
बच्चों को पोलियो ड्रॉप पिलाते आतंकी से
आतंकी दोस्त ने कहा - 'अपना अंत बेहद करीब समझो
तुम अपने धर्म से भटक गए हो'
बच्चों को पोलियो ड्रॉप पिलाते आतंकी ने कहा -