हिंदी का रचना संसार

मुखपृष्ठ | उपन्यास | कहानी | कविता | नाटक | आलोचना | विविध | भक्ति काल | हिंदुस्तानी की परंपरा | विभाजन की कहानियाँ | अनुवाद | ई-पुस्तकें | छवि संग्रह | हमारे रचनाकार | हिंदी अभिलेख | खोज | संपर्क

 


तोमास त्रांसत्रोमर की कविताएँ


तोमास त्रांसत्रोमर

हिंदीसमयडॉटकॉम पर उपलब्ध

कविताएँ
चुनी हुई कविताएँ

जन्म

:

15 अप्रैल 1931, स्टॉकहोम

भाषा : स्वीडिश
विधाएँ : कविता, संस्मरण
प्रमुख कृतियाँ : कविता : Klanger och spår (खिड़कियाँ और पत्थर), Sanningsbarriären (सचाई का अवरोधक), Stigar (रास्ते), Den halvfärdiga himlen (अधबना स्वर्ग), Den stora gåtan (बड़ी पहेली) आदि 12 कविता संग्रह
संस्मरण : Minnena Ser Mig (स्मृतियाँ मुझे ताकती हैं)
अनुवाद   तोमास त्रांसत्रोमर की कविताओं का अनुवाद हिंदी सहित साठ से अधिक भाषाओं में हो चुका है। अंग्रेजी में अनूदित इनकी कविताओं के पंद्रह संकलन प्रकाशित हैं।

सम्मान

: नॉर्डिक पुरस्कार (स्वीडिश एकाडेमी), साहित्य के लिए न्यूस्टैड अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार (संयुक्त राज्य अमेरिका), कविता के लिए हॉर्स्ट बीनेक पुरस्कार (जर्मनी), ग्रिफिन कविता पुरस्कार (कनाडा), नोबेल पुरस्कार (साहित्य) आदि

वेबसाइट

: tomastranstromer.net

अनुक्रम

अप्रैल और मौन
सूर्य और लैंडस्केप
मध्य-शीत
एक मौत के बाद
राष्ट्रीय असुरक्षा
अधबना स्‍वर्ग
स्मृतियाँ मुझ पर निगाह रखती हैं
शंघाई की सड़कें
शुबेर्तियाना
अक्टूबर में रेखाचित्र
बिखरी हुई सभा
जोड़ा
पेड़ और बारिश


अप्रैल और मौन

वसंत परित्यक्त पड़ा है
वेलवेट-सी काली खाई
बिना किसी सोच-विचार के मेरे नजदीक रेंग रही है
चमकते दिख रहे हैं तो
सिर्फ पीले फूल
ले जाया जा रहा हूँ मैं अपनी परछाईं में
जैसे काले डिब्बे में वॉयलिन
जो मैं कहना चाहता हूँ सिर्फ वह बात
झलक रही है पहुँच से दूर
जैसे चमकती है चाँदी
सूदखोर की दुकान में

 

सूर्य और लैंडस्केप

सूरज घर के पीछे से निकलता है
सड़क के बीचोबीच खड़ा हो जाता है
और हमसे कानाफूसी करता है
अपनी तप्त हवाओं के जरिए
इंसब्रुक मुझे जाना ही होगा
लेकिन कल
वहाँ एक ललछौंह दीप्ति से युक्त सूरज होगा
धूसर, अधमरे वन में
जहाँ हम कर्मरत होंगे और रह रहे होंगे

 

मध्य-शीत

एक नीली रोशनी
मेरे वस्त्रों से नमूदार हो रही है
मध्य-शीत
बर्फ की डफली खड़खड़ा रहा है
मैं अपनी आँखें बंद कर लेता हूँ
वहाँ एक मूक दुनिया है
वहाँ एक दरार है
जहाँ से मृतक
चोरी-छुपे सीमा-पार भेजे जा रहे हैं

 

एक मौत के बाद

पहले वहाँ एक सदमा था
जिसने पीछे छोड़ दी थी एक लंबी, झिलमिलाती पूँछ पुच्छलतारे की
यह हमें रखती है ‍अंतर्मुखी, बना देती है टीवी की तस्वीरों को बर्फ की तरह सर्द
यह जम जाती है टेलीफोन के तारों की ठंडी बूँदों में
शीत के धूप में अब भी की जा सकती है स्की धीरे-धीरे
ब्रश के माध्यम से जहाँ कुछ पत्तियाँ लटकी हैं
वे लगती हैं जैसे पुरानी टेलीफोन निर्देशिकाओं के फटे पन्ने
नाम जिन्हें ठंड ने निगल लिया है
दिल की धड़कन सुनना अब भी कितना सुंदर है
पर अकसर परछाईं शरीर की तुलना में अधिक सच लगती है
समुराई पिद्दी-सा लग रहा है
काले अजगर जैसे शल्कवाले अपने कवच के बगल में ।

 

राष्ट्रीय असुरक्षा

अवर सचिव आगे झुकता है और 'एक्स' बनाता है
झूल रही हैं उसके कान की दवा की बूँदें डेमोक्लीज की तलवारों की तरह

चूँकि एक चित्तीदार तितली मैदान में अदृश्य हो गई है
इसलिए खुले समाचारपत्र के साथ अंतर्ध्यान हो गया है राक्षस

एक परित्यक्त हेलमेट ने सत्ता अपने हाथ में ले ली है
माँ-कछुआ पानी के नीचे उड़ान भर कर बच निकलती है

(अनुवाद : प्रियंकर पालीवाल)

 

अधबना स्‍वर्ग

हताशा और वेदना स्थगित कर देती हैं
अपने-अपने काम
गिद्ध स्थगित कर देते हैं
अपनी उड़ान

अधीर और उत्सुक रोशनी बह आती है बाहर
यहाँ तक कि प्रेत भी अपना काम छोड़
लेते हैं एक-एक जाम

हमारी बनाई तस्वीरें -
हिमयुगीन कार्यशालाओं के हमारे वे लाल बनैले पशु
देखते हैं
दिन के उजास को

यों हर चीज अपने आसपास देखना शुरू कर देती है
धूप में हम चलते हैं सैकड़ों बार

यहाँ हर आदमी एक अधखुला दरवाजा है
उसे
हरेक आदमी के लिए बने
हरेक कमरे तक ले जाता हुआ

हमारे नीचे है एक अंतहीन मैदान
और पानी चमकता हुआ
पेड़ों के बीच से -

वह झील मानो एक खिड़की है
पृथ्वी के भीतर
देखने के वास्ते।

 


स्मृतियाँ मुझ पर निगाह रखती हैं

जून की एक सुबह
यह बहुत जल्दी है जागने के लिए और दुबारा सो जाने के
बहुत देर हो चुकी है
मुझे जाना ही होगा
हरियाली के बीच जो पूरी तरह भरी हुई है स्मृतियों से
स्मृतियाँ -
जो निगाहों से मेरा पीछा करती हैं
वे दिखाई नहीं
घुलमिल जाती हैं अपने पसमंजर में
गिरगिट की तरह

वे मेरे इतने पास हैं
कि चिड़ियों की बहरा कर देनेवाली चहचहाहट के बावजूद
मैं सुन सकता हूँ
उनकी साँसों की आवाज।

 


शंघाई की सड़कें

एक

पार्क में
कई लोग ध्यान से देख रहे हैं
सफेद तितलियों को
मुझे वह तितली बहुत पसंद है
जो खुद ही जैसे सत्य का फड़फड़ाता हुआ
कोना है कोई

सूरज के उगते ही
दौड़ती-भागती भीड़ हमारे इस खामोश ग्रह को
गतिमान बना देती है
और तब पार्क भर जाता है
लोगों से

हर आदमी के पास आठ-आठ चेहरे होते हैं
नगों-से चमचमाते
गलतियों से बचने के वास्ते
हर आदमी पास एक अदृश्य चेहरा भी होता है
जो जताता है -
'कुछ है जिसके बारे में आप बात नहीं करते!'

कुछ जो थकान के क्षणों में प्रकट होता है
और इतना तीखा है
जैसे किसी जानदार शराब का एक घूँट
उसके बाद में महसूस होने वाले
स्वाद की तरह

तालाब में हमेशा हिलती-डुलती रहती हैं मछलियाँ
सोते में भी तैरतीं वे
आस्थावान होने के लिए एक मिसाल हैं - हमेशा गतिवान


दो

अब यह दोपहर है
सलेटी समुद्री हवा धुलते हुए कपड़ों-सी
फड़फड़ाती है
उन साइकिल सवारों के ऊपर
जो चले आते हैं
एक दूसरे से चिपके हुए
एक समूह में
किनारे की खाइयों से बेखबर

मैं घिरा हुआ हूँ किताबी चरित्रों से
लेकिन
उन्हें अभिव्यक्त नहीं कर सकता
निरा अनपढ़ हूँ मैं

और
जैसी कि उम्मीद की गई मुझसे
मैंने कीमतें चुकाई हैं
और मेरे पास हर चीज की रसीद है
जमा हो चुकी हैं
पढ़ी न जा सकने वाली ऐसी कई रसीदें
- अब मैं एक पुराना पेड़ हूँ इन्हीं मुरझाई पत्तियों वाला
जो बस लटकती रहती हैं
मेरे शरीर से
धरती पर गिर नहीं पातीं

समुद्री हवाओं के तेज झोंके
इनमें सीटियाँ बजाते हैं।


तीन

सूरज के डूबते ही
दौड़ती-भागती भीड़ हमारे इस खामोश ग्रह को
गतिमान बना देती है

हम सब
सड़क के इस मंच पर खड़े हुए
कलाकार हैं जैसे

यह भरी हुई है लोगों से
किसी छोटी नाव के
डेक की तरह
हम कहाँ जा रहे हैं?
क्या वहाँ चाय के इतने कप हैं?
हम खुद को सौभाग्यशाली मान सकते हैं
कि हम समय पर पहुँच गए हैं
इस सड़क पर

क्लास्ट्रोफोबिया की पैदाइश को तो अभी
हजार साल बाकी है !

यहाँ
हर चलते हुए आदमी के पीछे
एक सलीब मँडराती है
जो हमें पकड़ना चाहती है
हमारे बीच से गुजरना
हमारे साथ आना चाहती है

कोई बदनीयत चीज
जो हमारे पीछे से हम पर झपटना
और कहना चाहती है - बूझो तो कौन?

हम लोग
ज्यादातर खुश ही दिखाई देते हैं
बाहर की धूप में
जबकि हम अपने घावों से रिसते खून के कारण
मर जाने वाले हैं

हम इस बारे में
कुछ भी नहीं जानते!

 


शुबेर्तियाना

एक

न्यू यार्क से बाहर एक ऊँची जगह पर
जहाँ से एक ही निगाह में आप पहुँच जाते हैं
उन घरों के भीतर
जहाँ रहते हैं अस्सी लाख लोग

विशाल शहर के पार तक
वहाँ एक लंबा चमकीला बहाव है -
दिखाई देती है
एक छल्लेदार आकाशगंगा
जिसके भीतर
मेजों पर खिसकाए जा रहे हैं काफी के मग
दुकानों की खिड़कियों की गुहार
और बेनिशान जूतों का गुजर
ऊपर को चढ़ती लपकती भागती आग
स्वचालित सीढ़ियों के खामोश द्वार
तीन तालों वाले दरवाजों के पीछे उमड़ता
आवाजों का हुजूम

एक दूसरे से जुड़ी कब्रों-से भूमिगत रेल के डिब्बों में
एक दूसरे पर लदे
ऊँघते बदन

मैं जानता हूँ इस जगह की यह सांख्यिकी भी
कि इस एक पल
वहाँ कहीं किसी कमरे में
बजाया जा रहा है शुबेर्त संगीत
और वह जो बजा रहा है इसे
उसके लिए तो बाकी की हरेक चीज के बरअक्स
कहीं अधिक वास्तविक हैं
उसके सुर


दो

दूर तक फैले वृक्षविहीन मैदानों-से मानवमस्तिष्क
इतनी बार मोड़े और तहाए जा चुके हैं
कि समा जाएँ एक मुट्ठी में भी

अप्रैल में एक अबाबील लौटती है
अपने पिछले बरस के घोंसले की तरफ
ठीक उसी छत के तले
ठीक उसी दाने-पानी तक
ठीक उसी कस्बे में

सुदूर दक्षिण अफ्रीका से वह उड़ती है
दो महाद्वीपों को पार करती
छह हफ्तों में
पहुँचने को
भूदृश्य में खोते हुए ठीक इसी बिंदु तक

और आदमी जो इकट्ठा करता है
जीवन भर से आए संकेतों को पंचतारवाद्य साजिंदों के
मामूली तारों में

वह जिसे मिल गई है एक नदी सुई की आँख में से गुजार पाने को
औरों से घिरा बैठा एक नौजवान आदमी है
उसके दोस्त पुकारते थे उसे `मशरूम` कहकर
जो चश्मा पहने ही सो जाता था
और हर सुबह नियम से खड़ा दिखाई देता था
अपनी लिखने की ऊँची मेज पर
जब उसने यह किया
कि अद्भुत अष्टपाद रेंगने लगे पन्ने पर


तीन

पाँच साज बजते हैं
गर्म लकड़ियों के बीच से मैं घर लौटता हूँ
जहाँ मेरे पाँवों के नीचे पृथ्वी किसी स्प्रिंग-सी महसूस होती है
गुड़ीमुड़ी किसी अजन्मे बच्चे-सी
नींद में
निर्भार लुढ़कती भविष्य की ओर
अचानक मैं जान जाता हूँ
कि पेड़-पौधे भी कुछ सोचते हैं


चार

जिए हुए हर पल में हम कितना विश्वास रखें!
कि गिरें नहीं धरती से

चट्टानों से उल्टी लटकती बर्फ पर विश्वास रखें
विश्वास रखें अनकहे वादों पर
और समझौते की मुस्कानों पर
विश्वास रखें कि टेलीग्राम जो आया है उसका हमसे कोई संबंध नहीं
और यह भी कि हमारे अंदर
कुल्हाड़ी के प्रहार-सा औंचक
कोई आघात नहीं लगा
गाड़ी के उस घूमनेवाले लोहे पर विश्वास रखें
जिस पर सवार हो
हम सफर करते हैं लोहे की तीन सौ गुना बड़ी मधुमिक्खयों के
झुंड के बीच
लेकिन यह सब उतना कीमती नहीं
जितना कि वह विश्वास जो हमारे पास है

पाँच तारों वाले साज कहते हैं
हम किसी और चीज को विश्वास में ले सकते हैं
और वे हमारे साथ सड़क पर घूमते हैं
और जब बिजली का बल्ब सीढ़ियों पर जाता है
और हाथ उसका अनुसरण करते हैं उस पर विश्वास करते हुए
रेल की पटरियों पर दौड़ती हाथगाड़ी की तरह
जो अँधेरे में अपनी राह तलाश लेती है


पाँच

हम सब पियानो के स्टूल के गिर्द इकट्ठे हैं और बजा रहे है उसे
चार हाथों से आइने में देखकर
एक ही गाड़ी को चलाते दो ड्राइवरों की तरह
यह थोड़ा बेहूदा दीखता है
यह ऐसा दीखता है जैसे हमारे हाथ आवाज से बने भार को
एक दूसरे के बीच अदल-बदल रहे हों
इस तरह जैसे असली वजन को साधा जाता है
किसी बड़े तराजू का संतुलन बनाने को
हर्ष और विषाद का भार बिल्कुल एक-सा है
एनी ने कहा - 'यह संगीत एक शानदार गाथा है'
वह सही कहती है

लेकिन वे जो इसे बजाते हुए आदमी को देखते हैं
ईर्ष्या के साथ
और खुद की प्रशंसा करते हैं हत्यारा न बनने के लिए,
नहीं खोज पाते खुद को इस संगीत में
वे जो खरीदोफरोख्त करते हैं दूसरों की
और मानते हैं कि हर किसी को खरीदा जा सकता है धरती पर
खुद को यहाँ नहीं पाते

यह उनका संगीत नहीं
वह लंबी सुरीली धुन जो बच जाती है इसके सभी रूपाकारों के बीच
कभी चमकती तो कभी सौम्य
कभी रूखी और ताकतवर
घोंघे के चलने पर पीछे छूटी लकीर और लोहे के तार-सी

यह बेकाबू सी गुनगुनाहट सुनाई देती है
यह क्षण
जो हमारे साथ है
ऊपर को उठता किसी गहराई में।



शुबेर्तियाना - फ्रैंज शुबेर्त (1797-1828) द्वारा अविष्कृत संगीत। शुबेर्त एक आस्ट्रियन संगीतकार थे। सिर्फ 31 साल की उम्र में उनका देहांत हो गया, लेकिन उनके 600 के लगभग गीतों ने उन्हें अपने वक्त के महान संगीतकारों में शुमार करा दिया। उपर्युक्त कविता उन्हीं की संगीतरचनाओं पर एक रहस्यात्मक लेकिन ऐंद्रिक काव्यात्मक प्रतिक्रिया है।


(अनुवाद : शिरीष कुमार मौर्य)


अक्टूबर में रेखाचित्र

जंग के कारण चकत्ते पड़ गए हैं नाव में यह क्या कर रही है यहाँ
समुद्र से इतनी दूर जमीन पर ?
और यह ठंडक में बुझा हुआ एक भारी लैंप है
मगर पेड़ों पर हैं चटकीले रंग : दूसरे किनारे के लिए संकेतों की तरह
मानो लोग आना चाहते हों इस किनारे पर

घर आते हुए मैं देखता हूँ
पूरे लान में मशरूम उगे हुए
वे सहायता के लिए फैली हुई उँगलियाँ हैं किसी ऐसे इंसान की
जो वहाँ नीचे के अँधेरे में
जाने कब से सिसकता रहा है अपने आप में ही
हम पृथ्वी के रहने वाले हैं

 

बिखरी हुई सभा

एक

हम तैयार हुए और अपना घर दिखाया
आगंतुक ने सोचा : तुम शान से रहते हो
झोपड़पट्टी जरूर तुम्हारे भीतर होगी


दो

चर्च के भीतर, खंभे और मेहराब
प्लास्टर की तरह सफेद, जैसे श्रद्धा की
टूटी बाँह पर चढ़ा हुआ पलस्तर


तीन

चर्च के भीतर है एक भिक्षा-पात्र
जो धीरे-धीरे उठता है फर्श से
और तैरने लगता है भक्तों के बीच


चार

मगर भूमिगत हो गईं हैं चर्च की घंटियाँ
वे लटक रही हैं नाली के पाइपों में
जब भी हम बढ़ाते हैं कदम, वे बजती हैं


पाँच

नींद में चलने वाला निकोडमस चल पड़ा है
गंतव्य की ओर पता किसके पास है ?
नहीं मालुम मगर हम वहीं जा रहे हैं

 

जोड़ा

वे बत्ती बंद कर देते हैं और उसकी सफेद परछाईं
टिमटिमाती है एक पल के लिए विलीन होने के पहले
जैसे अँधेरे के गिलास में कोई टिकिया और फिर समाप्त
होटल की दीवारें उठते हुए जा पहुँची हैं काले आकाश के भीतर
स्थिर हो चुकी हैं प्रेम की गतिविधियाँ, और वे सो गए हैं
मगर उनके सबसे गोपनीय विचार मिलते हैं
जैसे मिलते हैं दो रंग बहकर एक-दूसरे में
किसी स्कूली बच्चे की पेंटिंग के गीले कागज पर
यहाँ अँधेरा है और चुप्पी मगर शहर नजदीक आ गया है
आज की रात समीप आ गए हैं अँधेरी खिड़कियों वाले मकान
वे भीड़ लगाए खड़े हैं प्रतीक्षा करते हुए
एक ऎसी भीड़ जिसके चेहरों पर कोई भाव नहीं

 

पेड़ और बारिश

एक पेड़ चहलकदमी करता हुआ बारिश में
धूसर बारिश में भागता है हमारे बगल से
एक काम है उसके पास वह जीवन एकत्र करता है
बारिश में से जैसे बाग में कोई श्यामा चिड़िया

पेड़ भी रुक जाता है बारिश रुकने पर
शांत खड़ा रहता है बिना बारिश वाली रातों में
और प्रतीक्षा करता रहता है जैसे हम करते रहते हैं
प्रतीक्षा, उस पल की
जब हिमकण खिलेंगे आकाश में


(अनुवाद : मनोज पटेल)

 



 

 

मुखपृष्ठ | उपन्यास | कहानी | कविता | नाटक | आलोचना | विविध | भक्ति काल | हिंदुस्तानी की परंपरा | विभाजन की कहानियाँ | अनुवाद | ई-पुस्तकें | छवि संग्रह | हमारे रचनाकार | हिंदी अभिलेख | खोज | संपर्क

Copyright 2009 Mahatma Gandhi Antarrashtriya Hindi Vishwavidyalaya, Wardha. All Rights Reserved.