21अगस्त 1910
आज पहली बार नैनी जेल एलन से मिलने जाना था। कल रात मैं सो नहीं
सका। क्या यह सिर्फ एक ऐसे हत्यारे से मिलने की उत्तेजना थी जिसे कुछ
ही दिनों में फाँसी पर चढना है? या फिर मेरे मन की वह जुगुप्सा जो उस
घृणित इंसान से मिलने की संभावना से उत्पन्न हुयी थी जिसने थोडे से
पैसों की लालच में एक ऐसे भले और खुशमिजाज इंसान को मार डाला जो उसका
दोस्त भी था।
इतवार की प्रार्थना सभा खत्म करके मैंने हल्का नाश्ता किया। इक्का
मेरा इंतजार कर रहा था। यमुना पार नैनी जेल तक पहुँचने में डेढ घंटा
लगा। हर बार की तरह मेरा इक्का सीधे सुपरिटेन्डेन्ट के बंगले पर
पहुँचकर रूका। आगस्टीन शायद मेरा ही इंतजार कर रहा था। इक्का रूकने
की आवाज सुनते ही बाहर निकल आया। मेरे अभिवादन का जवाब देने के साथ
ही उसने मेरा हाथ थामा और मुझे अपने लान की तरफ ले गया।
लगभग आधे एकड में फैली उसकी लान में दस बारह कैदी काम कर रहे थे।
उनके पैरों में इस तरह बेडियां पडीं थीं कि वे मुश्किल से उकडूं
बैठकर काम कर पा रहे थे। उनके इर्द गिर्द तीन चार संतरी अपने बल्लम
लिये खडे थे। कैदियों की मेहनत का ही फल था कि सुपरिटन्डेन्ट के
बंगले की लान चमचमा रही थी। चारों तरफ फूलों की क्यारियां थीं जिनमें
मौसमी फूल खिलखिला रहे थे। लान के बगल में कई एकड क़ा रकबा था जिसमें
धान और सब्जियाँ लगी हुयीं थीं। उनमें भी कैदी काम करते हुये दिख रहे
थे।
अगस्त की दोपहरी लान में बैठने लायक नहीं थी। आगस्टीन मुझे हाथ
पकडे हुये एक बडे से पाकड क़े पेड क़े नीचे ले गया जहाँ कुर्सियाँ पडीं
हुयीं थीं और सफेद कपडों में लैस एक बेयरा हाथ बाँधे हमारा इंतजार कर
रहा था। कुर्सियों पर हमारे बैठते ही बेयरा अंदर चला गया और हमारे
लिये पानी लेकर आया। हम औपचारिक कुशल क्षेम से लेकर मौसमी फूलों तक
की बातें करते रहे और बेयरा हमारे लिये खाने पीने का सामान लगाता
रहा।
आगस्टीन मेरे स्वर में छिपा अनमनापन भाँप गया था। मेरी आवाज में
उस तरह की गर्मजोशी नहीं थी जो उससे बातचीत में रहा करती थी। । चाय
का प्याला मेरे हाथ में थमाते हुये उसने कहा-
''फादर मैंने एलन की फाइल मंगा रखी है। आप उससे मिलने के बाद पढना
चाहेंगे या अभी ?''
मेरी चोरी पकडी ग़यी थी । मैं रास्ते भर एलन के बारे में ही सोचता
रहा था। आगस्टीन के उस खूबसूरत लान में चहचहाते मौसमी फूलों के बीच
में बैठे होने के बावजूद मेरा मन उसी में अटका हुआ था। कुछ भी खाते
पीते मैं उस के बारे में ही सोच रहा था। आगस्टीन ने जब यह सवाल पूछा
तो मैं झेंप गया। मैंने झिझकते हुये कहा- ''मैं एलन की फाइल जेल में
जाने के पहले देखना चाहूंगा। अगर संभव हो तो अभी। ''
'क्यों नहीं?'' आगस्टीन ने हाथ से इशारा किया । हमारी चाय लगाकर
थोडी दूर एक दूसरे पेड क़ी छाया तले खडा बेयरा भागता हुआ हमारे पास आ
गया।
''अन्दर डाइनिंग टेबल पर एक फाइल रखी है। उसे ले आओ। ''
बेयरा तेज कदमों से अन्दर गया और थोडी ही देर में लाल फीते से
बंधी एक मोटी फाइल लेकर हमारे पास आ गया।
आगस्टीन ने फाइल के ऊपर बंधा लाल फीता खोलते हुये फाइल मुझे थमा
दी।
''ऊपर इसकी सर्विस बुक लगी हुयी है । उससे आप रेजिमैण्ट में इसके
आचरण और प्रदर्शन के बारे में जान सकेंगे। उसकी पारिवारिक पृष्ठभूमि
भी इसमें है। अंदर एक जजमेण्ट है जो जज ने मुकदमें की सुनवाई के बाद
दिया था। जजमेण्ट से आपको हत्या के बारे में जानकारी हो सकेगी। ''
फाइल को हाथ में लेकर मैं उसे यूँ ही उलटता पलटता रहा। आगस्टीन
मेरी दुविधा ताड ग़या-
''फादर आप अकेले पढना चाहेंगे? यहीं बैठकर पढेंग़े या गर्मी लग रही
हो तो अन्दर बैठ जाएें। ''
मैं एकान्त चाहता था।
''मैं अन्दर पढना चाहूंगा। ''
मैं फाइल लिये उठ खडा हुआ।
आगस्टीन अंदर मुझे अपने शयनकक्ष में ले गया। बडे से कमरे में कपडे
क़ा काफी विशाल पंखा लटका हुआ था और बाहर बरामदे तक उसकी रस्सी गयी
हुयी थी। वहाँ पहले से इंतजार कर रहे और फर्श पर पालथी मार कर बैठे
एक कैदी ने हमारे कमरे में घुसते ही अपने हाथों से पंखा खींचना शुरू
कर दिया ।
''फादर आपको किसी चीज की जरूरत हो तो आवाज दे दीजियेगा। दरवाजे के
बाहर एक बेयरा खडा है। मैं भी बगल के कमरे में हूं। ''
''बहुत बहुत धन्यवाद आगस्टीन । मैं आराम से हूं। ''
आगस्टीन बाहर निकल गया और मैंने उतावले हाथों से फाइल खोल दी।
सबसे पहले मैंने उसकी सर्विस बुक उलटनी शुरू की। पहले पन्ने पर
उसकी भर्ती का विवरण था।
जन्म-27 सितम्बर 1880। अट्ठारह साल पाँच महीने की उम्र में भारत
के लिये खडी क़ी गयी 14 वीं लाइट कैवेलरी में भर्ती हो गया। भर्ती के
समय पिता की मृत्यु हो चुकी थी इसलिये उस कालम में लिखा था- स्व। ए।
डब्ल्यू हीयरसे। 14 वीं लाइट कैवेलरी का एक संक्षिप्त इतिहास सर्विस
बुक में दर्ज था। पलटन जब से खडी हुयी थी ज्यादातर बम्बई
प्रेसीडेन्सी में तैनात रही थी। 1856-57 फारस की लडाई में इसने भाग
लिया था और 1857 के सिपाही विद्रोह के दौरान इसे वापस बुला लिया गया
था। हालांकि इसके लौटते लौटते विद्रोह कुचल दिया गया था लेकिन तबसे
बार बार इसकी तैनाती पंजाब और अफगानिस्तान सरहद पर होती रही, जब एलन
पलटन में आया तो पलटन सतारा में थी। बीच में इसके अच्छे रिकार्ड के
कारण लोकल प्रमोशन देकर उसे तीसरी गोरखा राइफल्स में ढाई साल के लिये
सार्जेंन्ट मेजर बनाकर भेजा गया। 1905 की गर्मियों में पलटन को सरहदी
सूबे की तरफ कूच करने का हुक्म मिला। वहाँ की कई लडाइयों का जिक्र था
और सबमें एलन की बहादुरी का बयान था। साल दर साल कम्पनी कमाण्डरों और
कमाण्डिंग अफसरों ने एलन को अच्छे रिमार्कस् दिये थे। कमाण्डिंग
अफसरों के कई प्रशस्ति पत्र थे जो उसके सर्विस बुक में लगे हुये थे।
वहीं मार्च 1907 में एलन बुरी तरह जख्मी हुआ। कुछ दिनों तक बटालियन
अस्पताल में ही उसका इलाज हुआ। बाद में उसे क्वेटा के बेस अस्पताल
में भेज दिया गया। अगस्त में वह यात्रा लायक हो गया तो बेस अस्पताल
से उसे लैण्डोर आराम और पूर्ण स्वास्थ्य लाभ के लिये रवाना कर दिया
गया। अक्तूबर 1907 की शुरूआत में वह लैण्डोर पहुँच गया और अगर हत्या
के इस दुःश्चक्र में न फँसा होता तो इस समय उसकी पलटन में वापसी की
यात्रा शुरू हो गयी होती। लैण्डोर कनवालसॅेस डिपो में एलन डेढ साल से
अधिक रहा था और सर्विस बुक में दर्ज मंतव्यों के मुताबिक वह एक
खुशमिजाज और मस्तमौला फौजी था। अपने सहभागियों और कमाण्डरों के बीच
समान रूप से लेोकप्रिय । कुछ मेडिकल रिपोर्ट सर्विस बुक में नत्थी
थी। वे सभी उसके दृढ निश्चय और जिस्मानी सहनशीलता का प्रमाण थीं।
जैसे घाव उसे लगे थे उनके बावजूद जिंदा बच निकलना किसी चमत्कार की ही
तरह था।
एलन के बारे में पढते समय मैं लगातार सोच रहा था कि 31 अगस्त 1909
को ऐसा क्या हुआ था कि सबकी प्रशंसा का पात्र यह प्रसन्नचित्त
खिलंदडा इन्सान हत्यारा बन गया और इसने अपने करीबी दोस्त का जघन्यतम
तरीके से खून कर दिया।
एलन से पहली मुलाकात में ही इतनी बेचैनी क्यों महसूस हुयी ? उसकी
कोठरी में घुसने और जेल के वार्डरों द्वारा बाहर से ताला फिर से बन्द
करने के बाद जिस चीज से मैं सबसे ज्यादा चकित हुआ वह थी इस छ फुट से
कुछ लम्बे नौजवान के चेहरे पर लगातार खेलने वाली मुस्कान । उभरी
हड्डियों वाले गाल पर कई दिनों की बढी हुयी दाढी के बावजूद उसकी
मुस्कान अजीब सम्मोहन और इनफेक्शन से भरी हुयी थी । मौत के 10 दिन
पहले कोई इस तरह मुस्करा सकता है ? गौर से देखने से साफ लगता था कि
पिछला एक वर्ष उसके लिये यातना और दुख से भरा रहा होगा । उसके सीने
और बाजुओं की चौडी हड्डियों पर बहुत कम माँस चिपका था । जेल के
पाजामे में छिपी टांगें भी इतने बडे शरीर पर अस्वाभाविक रूप से पतली
लग रहीं थीं । इन सबके बीच उसकी मुस्कान बेचैन करने वाली थी ।
मेरे पिछले अनुभवों के विपरीत मुझे देखकर उसने एक बार भी घबराहट
या दुख के लक्षण नहीं दिखाये, मेरे सामने घुटनों पर बैठकर मेरे चोंगे
में मुँह छिपाकर नहीं रोया और न ही मुझे यह समझाने की कोशिश की कि वह
निर्दोष है । मेरे रस्मी सवालों का आराम से जवाब देता रहा । कमरे में
मेरे लिये जेल के कर्मचारी एक कुर्सी रखकर चले गये थे । मैं उस पर
बैठ कर बातें कर रहा था और वह खडे होकर जवाब दे रहा था। मैं काफी कुछ
उसके बारे में पढ कर आया था । सवाल तो सिर्फ उसको सहज बनाने के लिये
पूछे जा रहे थे ।
मैंने उसे इशारे से उसके सोने के तख्त पर बैठने के लिये कहा और
उसके सामने पवित्र बाइबिल का पाठ करने लगा । खास तौर से वे अंश पढे
जहाँ कंफेशन का महत्व समझाया गया है वह पूरी श्रद्धा और ध्यान से
सुनता रहा । मुझे खुशी हुयी कि एक सच्चे इसाई के सामने प्रभु यीशू की
महिमा बखानने का मौका मुझे मिल रहा था । गलती किससे नहीं होती ?
उnतीस साल के इस नौजवान से भी हुयी है और अगले कुछ दिनों में तो उसे
इसका दंड भी मिल जाएेगा पर एक बार प्रभु के समक्ष कंफेस करते ही वे
इसे अपनी शरण में ले लेंगें और नर्क से इसे मुक्ति मिल जाएेगी ।
मैंने पाठ करते करते उसके चेहरे पर नजरें दौडाई । मुझे फिर वही
बेचैनी हुयी जो उसके कमरे में घुसते समय हुयी थी । उसके चेहरे पर जो
मुस्कान थी वही मुझे बेचैन कर रही थी । जिसे सिर्फ 15 दिन बाद मरना
हो और जो इसे जानता भी हो कैसे ऐसे मुस्करा सकता है ? क्या था इस
मुस्कान में ? बचपना , खिलन्द्डापन या चुनौती ? समझना मुश्किल था ।
जब मैं उठा तो यह मुस्कान मुझे चुनौती जैसी लगी । मैंने पाठ
समाप्त कर शांत स्वर में उसे कंफेस करने के लिये कहा तो उसने इसी
मुस्कान के साथ, आवाज में बिना किसी उतार चढाव के कहा -
"मैंने कुछ किया ही नहीं फादर , मैं कंफेस क्या करूँ ?"
मैं अन्दर से हिल गया । अभी दो मौके और मिलने थे । मैं आश्वस्त था
कि इसे समझा सकूँगा और यह प्रभु की शरण में जाने लायक बन सकेगा ।
28 अगस्त
रात भर जम कर बारिश हुयी थी । सुबह थोडी देर आसमान खुला जरूर पर
जल्द ही घने बादल आकाश में छा गये । छाता लेकर चर्च तक गया । मास में
उपस्थिति काफी कम थी । घर लौटा तो बारिश और तेज हो गयी थी । गेट के
बाहर सडक के किनारे इमली के छतनार दरख्त के नीचे खडा हुआ इक्का मुझे
आते ही दिख गया । घने पेड की पत्तियों से छन छन कर बूँदें नीचे खडे
घोडे को भिगो जरूर रहीं थीं पर इतनी भी नहीं कि वह बहुत बेचैनी
दिखाता । वह पानी से ज्यादा शरीर पर मंडराती मक्खियों से परेशान था
जिन्हें वह लगातार अपनी भीगी दुम से उडा रहा था । और सामने पडे घास
के ढेर में मुँह घुसाये हुआ था । इक्के वाला बारिश से बचने के लिये
किसी आड में चला गया लगता था ।
"हुजूर आज जेल की विजिट रहनें दें । इतनी बारिश में नाहक जी हलकान
करेंगें । "
मेरा छाता पकड कर राम अजोर ने कहा ।
मेरा फैसला भी कुछ डगमगाया । हाँलाकि सुबह जब मैं उठा तब भी झडी
लगी हुयी थी लेकिन मुझे फैसला करने में एक मिनट भी नहीं लगा था ।
दरअसल फैसला करने के लिये कुछ था भी नहीं । पिछले शनिवार की तरह आज
की रात भी मैं सो नहीं सका था । पूरी रात आधा सोने और आधा जागने में
एलन का चेहरा आँखों के सामने घूमता रहा था । उसकी वह निश्छल बच्चों
जैसी हँसी बार बार हांट करती रही जिससे वह पहली मुलाकात में मेरे हर
प्रश्न पर मुझे ही निरुत्तर कर देता था । प्रभु की आज्ञा मैंने कितनी
बार कितनी तरह से दोहरायी पर जैसे ही उसे कंफेस करने के लिये कहता
उसके ओठों पर एक निष्पाप हँसी फैल जाती और एक ही वाक्य से वह मेरे
सारे प्रयत्नों पर पानी फेर देता-
"मैंने हत्या की ही नहीं फादर , मैं कंफेस क्या करुँ ?"
राम अजोर के इसरार ने मेरा निश्चय कुछ कमजोर जरूर किया किंतु कोई
दुर्निवार आकर्षण था जो मुझे एलन की तरफ खींच रहा था । कौन सी चीज है
जो एक हत्यारे में इस कदर दिलचस्पी पैदा कर रही है ? क्या उसकी यह
क्षमता कि पूरी तरह ह्त्यारा साबित होने के बाद भी बिना किसी
पश्चाताप या हिचकिचाहट के वह बच्चों जैसी हँसी के साथ अपने को
निर्दोष घोषित कर सकता है ? या फिर यह कि उसके पास समय कम है और मैं
उसे एक चुनौती के रूप में पा रहा हूँ ? मुझे उससे लम्बी बहसें कर उसे
परास्त करना होगा और उसके इस छद्म आवरण को जो उसने झूठे आत्मविश्वास
से ओढ रखा है तार तार कर देना होगा। तभी जाकर वह कंफेस करेगा ।
मैं कह नहीं सकता कि क्या था जिसने मेरे मुँह से कहलवा लिया-
"नहीं, मैं जाऊँगा। इक्केवान से कहो तैयार रहे । बारिश रुकते ही
हम चल पडेंगे । "
नैनी जेल जाने की उत्सुकता मुझे कितनी थी इसका अन्दाजा सिर्फ इस
बात से लगाया जा सकता था कि मैं लंच लेकर बाहर बरामदे में ही बैठ गया
। मेरा मन किसी चीज में नहीं लग रहा था । आराम कुर्सी पर अधलेटा
पवित्र बाइबिल के पृष्ठ उलटता रहा और बारिश रुकने का इंतजार करता रहा
।
बारिश पूरी तरह से रुकी तो नहीं थी पर इतनी हल्की जरूर पड गयी थी
कि आप उसे झींसा पडना कह सकतें हैं और मैंने राम अजोर को इक्का
लगवाने का हुक्म दिया । मैं और इंतजार नहीं कर सकता था ।
इक्का मेरे पोर्टिको में आकर खडा हुआ । भीगा घोडा बेचैन लग रहा था
। वह लगातार अपनी दुम अपनी पीठ पर मार रहा था । दुबले मरियल इक्केवान
को उसे संभालने में अपना पूरा जोर लगाना पड रहा था । मुझे बाहर
निकलते देखकर बांयें हाथ से घोडे की लगाम कसकर थामे साइस ने लगभग
दोहरा होते हुये झुककर मुझे दाहिने हाथ से सलाम किया । उसके सलाम का
जवाब सिर हिलाकर मैंने दिया और अपना चोंगा सँभालते हुये इक्के पर बैठ
गया । इक्केवान ने इक्के के अगले हिस्से पर एक बोरी उल्टी कर के रख
रखी थी । इक्के पर बैठने के पहले उसने बोरी को इस तरह से सिर पर डाल
लिया कि वह उसके लिये बरसाती बन गयी । बोरे की बरसाती सिर पर डाले जब
वह इक्के पर बैठा और उसने घोडा हाँका तो स्थिति यह थी कि हल्की हल्की
बूँदों से वह काफी हद तक सुरक्षित था ।
रास्ते भर बारिश रुक थम कर होती रही । जब पानी तेज होता हम आम,
इमली या बरगद के किसी बडे पेड की शरण ले लेते और जैसे ही पानी हलका
होता हमारी यात्रा शुरू हो जाती ।
जेलर के बंगले के सामने इक्का रुका तो मुझे अहसास हुआ कि आज
आगस्टीन ने मेरे आने की उम्मीद छोड रखी थी । बारिशों की वजह से आम
तौर से उसके बडे बँगले के अहाते में काम करने वाले कैदियों की फौज
नदारद थी । घर का मुख्य दरवाजा बन्द था और बरामदे भी सूने पडे थे ।
मुझे भीगने से बचाने के लिये इक्केवान ने घोडे की लगाम खींचते हुये
और खुद पैदल चलते हुये उसे ऐसे स्थान पर लाकर खडा किया कि मैं कूदकर
सीधे बरामदे में उतर गया ।
इक्के की खटपट और मेरे कूदने की आवाज ने अन्दर कुछ हलचल पैदा की
और घर का बडा सा प्रवेश द्वार खोलते हुये पहले एक नौकर और उसके पीछे
आगस्टीन बाहर निकल आया ।
"फादर आप !" आवाज से स्पष्ट था कि आगस्टीन मेरी इस विजिट के लिये
तैयार नहीं था ।
"इलाहाबाद में बारिश रुक गयी थी । यमुना के इस तरफ ज्यादा है । "
मैंने अपनी झेंप मिटाते हुये कहा। मैं एलन में अपनी उत्सुकता का
जिक्र नहीं करना चाहता था ।
"कोई बात नहीं । अच्छा हुआ आप आ गये फादर । आपके साथ खूब गप्प
लडेगी । बारिश ने तो घर में कैद कर रखा है ।
मैं उसको साथ अन्दर बैठक में चला गया । मेरा गाउन भीग गया था ।
उसे एक नौकर अन्दर के बरामदे में सुखाने के लिये ले गया । दूसरा नौकर
तौलिया ले आया जिससे रगड रगड कर मैंने अपना सर और चेहरा सुखा डाला ।
हम एक गोलमेज के इर्द गिर्द बैठ गये । नौकर चाय बनाकर ले आया था और
आगस्टीन ने एक प्याले में ढाल कर चाय मेरे आगे बढाई ।
"क्या हाल है तुम्हारे उस कैदी का ?"
"किसका फादर , आप किस कैदी की बारे में पूछ रहें हैं ?"
"उसी अँग्रेज का------- जिसे फाँसी की सजा हुयी है । "
"अच्छा आप एलन की बात कर रहें हैं । माफ कीजियेगा फादर मैं आपके
जाने के बाद उसके पास जा नहीं पाया । फाँसी की बैरक की तरफ गया तो पर
एलन की कोठरी तक नहीं गया । फाँसी के दो और कैदी दाखिल हैं , उनकी
कोठरियाँ तो चेक की मैंने , एलन की कोई शिकायत नहीं थी इसलिये वहाँ
नहीं गया । "
आगस्टीन की आवाज में कुछ झिझक थी जैसे वह मुझे सफाई दे रहा हो ।
"नहीं नहीं मैं तो ऐसे ही पूछ रहा हूँ । इतने कैदियों का भार है
तुम पर ------ सबसे कैसे मिल सकते हो हर हफ्ते ? मैं तो उसी के लिये
आया था । " मैंने उसे आश्वस्त किया ।
मुझे जल्दी जल्दी चाय खत्म करते देख आगस्टीन ने टोका-
"जल्दी क्या है फादर । आराम से जेल हो आइयेगा । तब तक मेरे
खानसामे की बनाई पकौडियाँ खाइये। बरसात में अच्छी लगेंगी । "
मैं एलन से मिलने के लिये इतना उत्सुक था कि सामान्य शिष्टाचार और
औपचारिकताओं की उपेक्षा करता हुआ उठ खडा हुआ ।
"जेल से लौट कर आराम से बैठेंगे । आज तो बारिश जल्द जाने नहीं
देगी तुम्हारे साथ ही गप्प लडेगी। "
जेल का एक सिपाही मुझे जेलर के घर से जेल के फाटक तक ले गया ।
वहाँ तैनात संतरी मुझे पहचानते ही थे इसलिये जरूरी औपचारिकतायें पूरी
करता हुआ मैं चन्द मिनटों में ही तनहाई बैरक के सामने था ।
तनहाई बैरक में तीन फांसी के कैदी थे । दाहिने ओर सबसे कोने वाली
बैरक में कैद था एलन । हेड वार्डर और एक सिपाही मुझे वहाँ लेकर गये ।
हमारे कदमों की आहट से ही एलन जान गया कि मैं आया हूँ । जब तक हम
उसकी कोठरी के सीखचों वाले दरवाजे के सामने पहुँचते वह खुद ही सामने
आ गया । वार्डर ने अपनी पेटी से बंधी चाभियों के गुच्छे की एक चाभी
से ताला खोला और मैं धीरे से अन्दर चला गया । उन्होंने दरवाजा फिर से
बन्द कर दिया और सामने से हट गये ।
"फादर शुक्र है आप आ गये । कोठरी के अन्दर रात से ही बरसात की
आवाज आ रही है । मैं तो निराश हो गया था कि आप आज नहीं आयेंगे । "
मेरे अन्दर घंटियाँ बजीं । मेरी प्रतीक्षा कर रहा था एलन ! पाप एक
सच्चे इसाई को अन्दर से झकझोरता जरूर है ! लेकिन जल्दी ही मुझे निराश
होना पडा । मैंने पवित्र बाइबिल का अपना सबसे प्रिय अंश डूब कर पढना
शुरू किया---
धन्य है वह मनुष्य , जिसका अपराध क्षमा किया गया, और जिसका पाप
ढाँपा गया ।
धन्य है वह मनुष्य जिस पर प्रभु अधर्म का अभियोग नहीं लगाता, और
जिसके मन में कोई कपट नहीं है । जब तक मैंने अपना पाप प्रकट नहीं
किया, मेरी देह दिन भर की कराह से कमजोर हो गई ।
मैंने तेरे सम्मुख अपना पाप स्वीकार किया, और अपने अधर्म को
छिपाया नहीं;
मैंने कहा," मैं प्रभु के समक्ष अपने अपराध स्वीकार करूँगा । "
और तूने मेरे पाप और अधर्म को क्षमा कर दिया ----।
पढते पढते मैंने एलन की तरफ देखा । उसके चेहरे की मुस्कान ने मुझे
भ्रमित कर दिया । शुरु में तो पिछली मुलाकात की तरह यह किसी बच्चे सी
निश्छल हंसी लगी लेकिन आज न जाने क्यों इसमें उपहास और चुनौती जैसी
छवियाँ ज्यादा दिखीं । क्या प्रभु यीशू मेरा इम्तहान ले रहें हैं ?
हे भगवान कितना सधा हुआ कठोर अपराधी है यह ? मैं जब भी उसे कंफेस
करने के लिये कहता हूँ तब उसका एक ही जवाब मिलता है -
"मैंने हत्या नहीं की है तो मैं क्या कंफेस करूँ ?"
मैंने अपने पूरे जीवन में अपने को इतना असहाय कभी महसूस नहीं किया
था ।
ऐसा क्या है जो मुझे उसकी आँखों में आँखें डालकर सीधे देखने से
रोकता है ? क्यों हर बार मैं ही अपनी निगाहें झुका लेता हूँ जैसे कि
अपराधी मैं ही हूँ ? क्या है उसकी नजरों में कि हर बार मैं कमजोर पड
जाता हूँ उसे अपराधी मानते मानते खुद को लगने लगता है कहीं कुछ छूट
रहा है ?
झुंझलाकर मैं पादरी से कोतवाल बन जाता हूँ । पूरी तफ्तीश पर उतारू
हो जाता हूँ । हाँलाकि इसका कोई मतलब नहीं है । एक अँग्रेज सिपाही के
खिलाफ झूठा मुकदमा चले और कोई अँग्रेज जज उसे फाँसी की सजा दे दे
इसकी तो मैं कल्पना भी नहीं कर सकता पर उसके आत्मविश्वास को देखते
हुये मैं इस तफ्तीश में उलझता हूँ पर किसी नतीजे पर नहीं पहुँच पाता
। पिछली मुलाकात में उसने पूरा वाकया सुनाया था । मैं ने जेल में
अदालत से आयी उसकी फाइल पढी थी दोनो विवरण पूरी तरह मिलते थे । ऐसा
कैसे था कि एक ही जैसे विवरण के आधार पर अदालत ने उसे दोषी करार दिया
और वह स्वयं को निर्दोष मान रहा है ? पिछली मुलाकात में एक पेंच रह
गया था । मैं आज उसे पूरी तरह सुलझा लेना चाहता हूँ । एलन पुलिस और
अदालत के सामने बयान में 31 अगस्त 1909 को अपने एक एक पल की
गतिविधियों की जानकारी देता है । सिर्फ रात साढे सात बजे से लेकर आधी
रात तक का विवरण नहीं देता । पुलिस के सामने तो एक बार उसके मुँह से
निकल भी गया कि वह इस बीच किसी लडकी के साथ था पर अदालत में तो उसने
इस बारे में पूरी चुप्पी साधे रखी । पुलिस को भी उसने लडकी का नाम
नहीं बताया था ।
मैंने भी एलन से 31 अगस्त 1909 के बारे में पूछना आरम्भ किया ।
पहले तो एलन ने सहयोग करने से ही इंकार कर दिया पर शायद मेरे
चेहरे पर उभर आये खिसियाहट और खीझ के भाव ने उसे पिघला दिया । तरस
खाने वाले अन्दाज में मुस्कराते हुये उसने जवाब देना शुरू किया । पर
बात वहीं आकर अटक गयी । 31 अगस्त को अंधेरा होने से थोडा पहले वह
जेम्स की दूकान पर पहुँचा। जेम्स को पता था कि वह छुट्टी जा रहा है ।
वह बेसब्री से उसका इंतजार कर रहा था । दोनों के स्वभाव में कुछ ऐसी
समानतायें थीं कि पूरे कैंन्टोनमेंट में उन्हें अच्छा दोस्त माना
जाता था । जेम्स ने उसके आते ही दूकान बढाई और उसे लेकर अन्दर के
कमरे में चला गया । शाम को ही मिसेज सैमुअल ने जेम्स को वेतन दिया था
जो सावरेन की शक्ल में उसके बिस्तर पर पडे थे । उन्हें एक तरफ करके
जेम्स बिस्तर पर बैठ गया और सामने पडी आराम कुर्सी पर एलन बैठा था ।
कमरा छोटा ही था और जेम्स की रिहायश के काम आता था । थोडी दूर पर एक
छोटी सी सराय थी जहाँ से जेम्स के लिये खाना आता था। खाना आ चुका था
और बिस्तर तथा आराम कुर्सी के बीच पडी मेज पर रखा था । वे दोनो देर
तक दुनियां जहान की बातें करतें रहे । एलन घर जाने की कल्पना से
रोमांचित था । दोनों के घर दूरी पर थे पर जेम्स ने एलन से अनुरोध
किया कि यदि समय मिले तो वह उसकी माँ से जरूर मिलता आये । एलन ने
वादा भी किया । जेम्स ने शाम को ही एक पहाडी से छाँग मँगा कर रखी थी
। इरादा था कि एलन के साथ छक कर पियेगा । लेकिन एलन ने मना कर दिया ।
उसने साथ देने के लिये एक छोटा पेग पिया । जेम्स को आश्चर्य भी हुआ
पर एलन की यह बात कि उसे अभी छावनी वापस जाना है और फिर वहाँ से
सामान लेकर रात में ही पहाडी रास्तों से उतरकर राजपुर पहुँचना है
उसकी समझ में आ गयी।
लगभग घंटे भर का समय बिताकर एलन जेम्स की दूकान से निकल गया ।
बाहर सन्नाटा था और सर्द हवाओं के बीच एकांत गलियों से निकलते समय
एलन ने पाया कि आस पास कोई नहीं था ।
पर इसके बाद एलन कहाँ गया ? अगर सचमुच वह किसी लडकी के पास गया तो
कौन थी वह ?
मेरे लाख पूछने पर एलन ने कुछ नहीं बताया । मेरे सवालों के उत्तर
में कभी वह शून्य में ताकने लगता, कभी शर्मीली सी मुस्कान उसके चेहरे
पर तैरती और कभी ऐसा गुमसुम बैठ जाता कि जैसे मेरी बात उसने सुनी ही
न हो । सिर्फ एक बार जब मैने बडी सख्ती से अपनी आवाज से उसे लगभग
झकझोरते हुये पूछा तो वह हौले से बुदबुदाया--
"आप जिसे प्यार करतें हैं उसे रुसवा कर सकतें हैं क्या ?"
मुझे पूरा यकीन हो गया था कि एलन एक नम्बर का मक्कार है । सिर्फ
अपने को निर्दोष साबित करने के लिये उसने यह कहानी गढी है । वह किसी
लडकी के पास नहीं गया । कोई लडकी थी भी नहीं उसकी जिन्दगी में । वह
एक खिलन्दडा और दोस्तबाज आदमी था । अगर सचमुच की कोई प्रेमिका होती
तो उसके दोस्तों को पता न हो - ऐसा हो नहीं सकता । इस लडकी का जिक्र
उसने सिर्फ खुद को फांसी के फन्दे से बचाने के लिये किया था पर उसके
दुर्भाग्य से उसकी यह तिकडम उसके काम नहीं आयी ।
4 सितम्बर , 1910
एक साल पहले मसूरी में जो नाटक शुरू हुआ था कल सुबह चार बजे उसका
पटाक्षेप हो जाएेगा। अब हत्यारे से मेरी मुलाकात नहीं हो सकेगी। पता
नहीं उसे हत्यारा कहना उचित भी है या नहीं? अदालत ने उसे फांसी की
सजा दी है तो उसे हत्यारा मानने में मुझे दिक्कत क्यों होनी चाहिये?
अगर पिछले दो रविवार मैंने एलन के साथ नहीं बिताये होते तो मैं पूरे
विश्वास के साथ कह सकता था कि वह हत्यारा है। जितनी बार मैं उससे
मिला हूं उतनी ही बार मेरा विश्वास डगमगाया है । क्या मैं कह सकता
हूं वह हत्यारा नहीं है ? या मैं पूरे यकीन से कह सकता हूं कि वह
हत्यारा है ? प्रभु यीशू मेरी मदद करें।
फांसी चढने वाले कैदियों की दोष मुक्ति से मुझे हमेशा आंतरिक
शान्ति मिलती है। प्रभु बहुत दयावान है। कनफेशन करने वाले सारे
पापियों को क्षमा कर देता है। मैं भाग्यशाली हूं कि उसने मुझे
निमित्त बनाया है। इसे भी क्षमा कर देगा। मेरा अनुभव है कि फांसी
पाये कैदी पहली मुलाकात में ही कनफेशन के लिये आतुर रहतें हैं। वे
मिलते ही फूट फूट कर रोने लगतें हैं और अपना पाप कबूल करने के लिये
तैयार दिखतें हैं। उनके और प्रभु के बीच में मेरे सिवाय कोई नहीं
होता, इसलिये मेरे सामने वो सब बता डालतें हैं जो उन्होंने अदालत के
सामने भी नहीं बताया होता है। सिर्फ एक बार ऐसा भी हुआ कि फांसी की
बैरक से निराश मैं सिर झुकाये लौट रहा था कि कैदी ने दौडक़र मुझे
रोकने का प्रयास किया। मैं उसकी कोठरी से बाहर निकल आया था और संतरी
उसकी कोठरी में ताला लगा रहा था। यह मृत्युदण्ड की सजा पायी हुयी एक
औरत थी और पिछले कई हफ्तों से मेरे सामने गुम-सुम बैठी रहती थी । मैं
उसकी अंतरात्मा को झकझोरने की कोशिश करता और वह ठण्डी सर्द निगाहों
से सिर्फ मुझे घूरती रहती। कई बार झुंझलाकर मैंने तय किया कि अब उसके
पास नहीं आऊंगा लेकिन हर रविवार चर्च से अनायास मेरे कदम जेल की तरफ
उठ जाते। जब कभी जेल में कोई ऐसा कैदी होता जिसे प्रभु यीशू की शरण
में शांति मिल सकती हो तो रविवार को मेरा कार्यक्रम काफी हद तक तय
शुदा रहता है। चर्च से मैं आगस्टीन के साथ सीधे जेल आ जाता हूं। पहले
वह मुझे जेलर की बडी सरकारी कोठी में ले जाता है। सर्दियां होतीं तो
हम बाहर उसकी खूबसूरत लान में बैठकर चाय पीतें हैं। कैदियों की
मशक्कत से चहकते हुये अपने एक पौधे के बारे में वह विस्तार से बताता।
गर्व से अपने गुलाबों की किस्में गिनाता। गुलदाउदी और डहेलिया के
पौधों के साथ अपने प्रयोंगों की जानकारी देता। मैं
पिटूनियां,नैस्टर्शियम, डाग फ्लावर , स्वीट पी ,गेदों और इनकी तरह के
तमाम खिले हुये फूलों की क्यारियों के बीच बैठकर आगस्टीन से गप्पें
लडाता हूं। अगर गर्मियों का मौसम होता है तो हम उसके बीस फीट से
भीऊंची दीवारों वाले ड्राइंगरूम में बैठतें हैं जहां बाहर बरामदे में
बैठकर दो कैदी मोटे कपडों वाले छत से लटके दो पंखों को रस्सी के
सहारे डुलाते रहतें हैं। अगस्टीन से चाय के प्याले पर गप्पे लडाकर
मैं जेल की तरफ बढता हूं। आगस्टीन मुझे जेल के फाटक तक छोडक़र वापस
लौट आता है। जेल का संतरी सलाम करके मेरे लिये जेल के विशाल लौह कपाट
का छोटा विकेड गेट खोल देता है और मैं अभिशप्त प्राणियों की उस
अंधेरी दुनियां में प्रवेश कर जाता हूं जहां आकर हमेशा मुझे लगा है
कि वहां के निवासियों को प्रभु की कृपा की सबसे ज्यादा जरूरत है।
इसलिये वहां बपतिस्मा प्राप्त किसी प्राणी को धार्मिक उपदेश देने
जाने का मौका मिलने पर मुझे आंतरिक खुशी मिलती है।
उस दिन भी सभी कुछ ऐसा ही था। थोडा सा फर्क यह आया था कि जेल के
अंदर घुसते समय मुझे खुशी से अधिक अवसाद की अनुभूति हो रही थी। मैं
अंदर एक ऐसी महिला कैदी से मिलने जा रहा था जिसे दूसरे दिन फांसी
लगने वाली थी। पिछले कई हफ्तों से मैं उसे नियमित रूप से पवित्र
बाइबिल सुना रहा था। मैंने विस्तार से उसे कनफेशन के बारे में बताया
था। वह एक श्रद्धालु इसाई लगती थी और हर बार पूरी तन्मयता से मेरे
प्रवचन सुनती थी । पहली बार जब मुझे लगा कि वह पूरी तरह से प्रभु
चरणों में लीन हो गयी है तब मैंने उसे कनफेशन के लिये कहा तो एक दम
से उसका चेहरा विकृत हो गया। उसके होंठ फडफ़डाने लगे और आंखें शून्य
में टिक गयीं। मेरी लाख कोशिशों के बावजूद उसने मुझसे आंखें नहीं
मिलायीं । थक हार कर मैं लौट आया। उसके बाद कई हफ्तों तक मैं कोशिश
करता रहा पर हर बार कनफेशन के दरवाजे पर पहुंचकर मैं लौट आता।
फांसी के एक दिन पहले सब कुछ पहले जैसा ही हुआ। मैंने विस्तार से
उसके सामने कनफेशन के महत्व पर प्रकाश डाला। मैंने देखा कि हर बार की
तरह वह बेचैन हो उठी, हर बार की तरह उसके होंठ फडफ़डाये और हर बार की
तरह उसकी आंखें शून्य पर अटक गयीं। मुझे पता था कि आज अखिरी मौका है
, अगर आज उसने कनफेशन नहीं किया तो उसके पाप कभी माफ नहीं किये
जाएेंगे। प्रभु यीशू की शरण में जाने का आज अंतिम मौका है। मैं लगा
रहा- उसकी आंखों में भरी घोर अवज्ञा के बावजूद । लेकिन कब तक मैं
चट्टान से सिर टकराता ? निराश होकर मैं उठा और थके कदमों से उसके सेल
से बाहर निकल आया। तभी वह कुछ घटा जिसकी मैंने उम्मीद नहीं की थी।
मैं मुश्किल से दस कदम चला हूंगा कि मुझे सलाखों के पीटने की आवाज
सुनायी दी। पीछे मुडक़र मैंने देखा कि वह सेल के सलाखों वाले दरवाजे
पर अपना सर पटक रही थी और दरवाजे पर ताला लगा चुका संतरी फटी आंखों
से उसे देख रहा था। मैं वापस झपटा।
''मुझे कनफेशन करना है फादर। '' सलाखों पर सर पटकते हुये उसने
सिर्फ इतना कहा।
''दरवाजा खोलो। ''
मेरे मुंह से निकला। संतरी ने हिचकिचाहट से मेरी तरफ देखा। शायद
नियम उसे इस बात की इजाजत नहीं दे रहे थे कि मृत्युदण्ड के कैदी का
कक्ष एक बार बंद कर देने के बाद बिना बडे अफसर के हुक्म के दुबारा
खोला जाए।
''दरवाजा खोलो। ''
मैंने सख्ती से फिर कहा। शायद यह मेरे और उस जेल के जेलर आगस्टीन
के बीच मित्रता थी जिसे जेल के मुलाजिम जानते थे और शायद इसी की वजह
से संतरी ने कुछ क्षण की हिचकिचाहट के बाद सेल का दरवाजा खोल दिया।
उसके बाद उस पतिहंता औरत ने जो कुछ मेरे सामने कनफेस किया वह इतना
यातना जनक था कि मैं काफी देर तक स्तब्ध बैठा सुनता रहा। उसने कब
बोलना बन्द किया और कब जमीन पर लुढक़ गयी ,मुझे पता ही नहीं चला। उसका
मुंह नीचे जमीन की तरफ था और वह एक मद्धम लय में हौले हौले सुबक रही
थी। मैने घुटने के बल बैठकर अपनी सलीब चूमी और हलके हाथों से उसका सर
सहलाया और तेज कदमों से बाहर निकल आया। वहां एक क्षण भी रूकना संभव
नहीं था। प्रभु यीशू तुम्हें क्षमा करेंगे,यह भी मैं बाहर निकल कर ही
कह सका।
क्या सचमुच उसे क्षमा की जरूरत थी ? उसका कनफेशन सिर्फ मेरे और
प्रभु के लिये है इसलिये मैं उसे लिख नहीं सकता लेकिन अगर मैं उसकी
जगह होता तो क्या मैं उस राक्षस पति को नहीं मारता? कन्फेशन करने की
जरूरत किसे थी- मारे गये पति को या हत्यारोपी पत्नी को ? तय करना
मुश्किल था । पता नहीं कई बार पाप और पुण्य की विभाजक रेखा इतनी
क्षीण क्यों हो जाती है?
आज जिसके सेल से मैं थका हारा लौटा हूं वह मेरे जीवन का पहला कैदी
है जिसने मृत्युदण्ड की पूर्व संध्या पर भी कनफेशन नहीं किया। मेरी
हर कोशिश के बाद वह सिर्फ हल्के से मुस्कुराता और बस इतना कहता-
''मैंने कोई पाप नहीं किया फादर, किस बात को कनफेस करूं। ''
ऐसा क्यों हुआ कि हर बार मैंने अपने को और अधिक कमजोर पाया। पहली
बार जब उसने कहा तो अपनी सारी कोशिशों के बावजूद मैं झुंझला उठा।
मैंने कठोर निगाहों से उसे देखा। वह हत्या के कुछ ही घंटों बाद पकडा
गया था और सारे साक्ष्य उसके खिलाफ थे। अदालत में उसे सफाई देने का
मौका मिला था और सब कुछ सुनने के बाद ही जज ने उसे मृत्युदण्ड दिया
होगा। इसके बावजूद भी अगर वह कनफेस करने के लिये तैयार नहीं था तो
ऐसे ढीठ आदमी के साथ आप कैसे सहानुभूति रख सकतें हैं? पर प्रभु यीशू
ने एक पादरी की हैसियत से मुझे जो दायित्व सौंपा है उसे तो निभाना ही
था। संत पीटर से चली आ रही परम्परा को मैं कैसे छोड सकता था?
एलन के साथ जो कागजात देहरादून की सेशन अदालत से जेल में आये थे
उन्हें सुपरिम्टेन्डैन्ट आगस्टीन के दफ्तर में बैठकर मैंने पढा था ।
मामला बहुत सीधा सादा था। काफी कुछ तो 14 अगस्त को मेरे घर पर लंच
लेते समय लैण्डोर के कमाण्डिंग अफसर मेजर अलबर्टो ने हमारे सामने
बयान किया ही था । अदालत के कागजात पढकर चीजें और साफ हो गयीं ।
31 अगस्त 1909 को मसूरी के माल रोड पर एक कैमिस्ट की दूकान में
काम करने वाले मि। जेम्स रेगिलैण्ड क्लैप की दूकान के अन्दर किसी ने
हत्या कर दी। हत्या बडे ज़घन्य तरीके से की गयी थी। किसी ने पहले सोडा
वाटर की बोतल से मृतक के सर पर वार किया था। सर पर गहरी चोट के कारण
मृतक अचेत होकर अपनी कुर्सी से नीचे लुढक़ा होगा और उसके बाद उसी के
तेज रेजर से उसकी गर्दन पर एक कान से दूसरे कान तक चीरा लगा दिया गया
था। इसी रेजर से उसकी गर्दन में एक सूराख किया गया था । शायद हत्यारे
को रेजर के अलावा कोई हथियार नहीं मिला होगा। इससे यह भी साबित हो
गया कि हत्यारा मृतक का परिचित था और बिना किसी हथियार के उसके पास
गया था। हत्या का इरादा करते ही उसने वहीं जेम्स के कमरे में उपलब्ध
सोडावाटर बोतल और रेजर से काम चलाया।
हत्या का पता दूसरे दिन सुबह तब चला जब दूकान की सफाई करने वाला
लडक़ा वहां आया और बहुत आवाज लगाने और दरवाजा पीटने के बाद भी जेम्स
ने दरवाजा नहीं खोला। आस पडाेस के काफी लोग वहां इकट्ठे हो गये और
दूकान की मालकिन मिसेज सैमुअल को भी खबर भेजी गयी। उन के आने के बाद
ही यह फैसला लिया गया कि दूकान का दरवाजा तोड दिया जाए। दूकान का
दरवाजा तोडने के बाद मिसेज सैमुअल और उनके साथ कुछ लोग अंदर घुसे तो
उन्हें दूकान के अंदर सब कुछ सामान्य सा लगा। एक ही चीज असामान्य थी
कि दूकान से सटे कमरे का दरवाजा अंदर से बंद नहीं था। मिसेज सैमुअल
को पता था कि जेम्स रात में सोने से पहले दूकान और अपने रहने के कमरे
के बीच का दरवाजा बंद कर देता था। दरवाजा खुला देखते ही किसी अनिष्ट
की आशंका से वे उधर झपटी।
अंदर कमरे की दशा देखते ही एक लम्बी चीख के साथ मिसेज सैमुअल
बेहोश होकर जमीन पर गिर पडी
मिसेज सैमुअल के साथ अंदर आये दूसरे लोग भी सकते में आ गये। अन्दर
का दृश्य था ही ऐसा। अन्दर फर्श पर खून के थक्कों के बीच जेम्स मृत
पडा था। पास ही एक कुर्सी उलटी हुयी थी। उसके पास एक सोडे की आधी
टूटी बोतल पडी हुयी थी शव के पास ही टूटी बोतल के टुकडे बिखरे हुये
थे। शव औंधा पडा था। सर पर गहरे जख्म के इर्द गिर्द खून जम गया था।
बाद में पुलिस ने आकर जब शव को सीधा किया तब यह स्पष्ट हुआ कि उसके
चेहरे पर एक कान से दूसरे तक एक लम्बा चीरा लगा हुआ था। कमरे में ही
वह रेजर भी मिल गया जिससे मृतक का चेहरा काटा गया था।
यद्यपि एलन के खिलाफ कोई प्रत्यक्षदर्शी साक्ष्य नहीं था पर सारी
परिस्थितियां उसके खिलाफ थीं। वह जेम्स के साथ देखा जाने वाला अंतिम
व्यक्ति था। जेम्स को उसी दिन अपनी मालकिन से वेतन मिला था मृतक के
पास उसका वेतन नहीं था । वेतन में कछ मलका विक्टोरिया की तस्वीर वाले
सोने के सिक्के या सावरेन भी थे और एलन ने राजपुर के होटल में सावरेन
से भुगतान किया था। एलन के पास एक टिन का डिब्बा मिला जिसमें वह कुछ
सैण्डविचेस लेकर मसूरी से चला था। जेम्स की हत्या भी टिन से गर्दन
काटकर की गयी थी। अदालत ने पूरी सुनवाई के बाद उसे दोषी करार दिया था
अतः मेरे पास भी शुरू में उसे हत्यारा मानने के सिवाय कोई विकल्प
नहीं था। यह तो बाद में जैसे- जैसे मैं उससे मिलता गया मेरे मन का
संशय बढता गया।
आज जब मैं उसके सेल से बाहर निकल रहा था मैं पूरी तरह से भ्रमित
था। शायद भ्रमित कहना उचित नहीं होगा। ऐसा तो नहीं कि जब सेल से सर
झुकाये ,थके कदमों से मैं बाहर निकला तो कहीं न कहीं मुझे भी लग रहा
था कि एलन अपराधी नहीं था। फिर वह कनफेशन किस बात का करता?
वापस लौटते समय मेरे मन में कई बार आया कि मैं जेल के उस एकांत
भरे कारीडोर में, जिसका सन्नाटा सिर्फ मेरे कदमों की चाप से टूट रहा
, रुकूँ और पीछे मुडकर काल कोठरी की सलाखों को दोनो हाथों से पकडे और
मेरी पीठ पर एक टक निगाहें गडाये एलन को अंतिम बार देख लूँ पर सिर्फ
इस झिझक से मैं सीधे चलता चला गया कि उसके चेहरे पर नजरें डालते ही
मेरी निगाह उस मुस्कान पर पडेगी जिसके बारे में मैं अब तक फैसला नहीं
कर पाया था कि उसमें सिर्फ खिलन्दडा भोलापन है या कोई चुनौती छिपी है
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