चंद्रकांता
18.
अब महाराज शिवदत्त की महफिल का हाल सुनिए। महाराज शिवदत्तसिंह महफिल में
आ विराजे। रम्भा के आने में देर हुई तो एक चोबदार को कहा कि जाकर उसको बुला
लायें और चेतराम ब्राह्मण को तेजसिंह को लाने के लिए भेजा। थोड़ी बाद
चोबदार ने आकर अर्ज किया कि महाराज रम्भा तो अपने डेरे पर नहीं है, कहीं
चली गई। महाराज को बड़ा ताज्जुब हुआ क्योंकि उसको जी से चाहने लगे थे। दिल
में रम्भ के लिए अफसोस करने लगे और हुक्म दिया कि फौरन उसे तलाश करने के
लिए आदमी भेजे जायें। इतने में चेतराम ने आकर दूसरी खबर सुनाई कि कैदखाने
में तेजसिंह नहीं है। अब तो महाराज के होश उड़ गये। सारी महफिल दंग हो गई
कि अच्छी गाने वाली आई जो सभी को बेवकूफ बनाकर चली गई। घसीटासिंह और
चुन्नीलाल ऐयार ने अर्ज किया, ‘‘महाराज बेशक वह कोई ऐयार था जो इस तरह आकर
तेजसिंह को छुड़ा ले गया।’’ महाराज ने कहा, ‘‘ठीक है, मगर काम उसने काबिल
इनाम के किया। ऐयारों ने भी तो उसका गाना सुना था, महफिल में मौजूद ही थे,
उन लोगों की अक्ल पर क्या पत्थर पड़ गये थे कि उसको न पहचाना ! लानत है तुम
लोगों के ऐयार कहलाने पर !’’ यह कह महाराज गम और गुस्से से भरे हुए उठकर
महल में चले गये। महफिल में जो लोग बैठे थे उन लोगों ने अपने घर का रास्ता
लिया। तमाम शहर में यह बात फैल गई ; जिधर देखिए यही चर्चा थी।
दूसरे दिन जब गुस्से में भरे हुए महाराज दरबार में आये तो एक चोबदार ने
अर्ज किया, ‘‘महाराज, वह जो गाने वाली आयी थी असल में वह औऱत ही थी। वह
चेतराम मिश्र की सूरत बनाकर तेजसिंह को छुड़ा ले गई। मैंने अभी उन दोनों को
उस सलई वाले जंगल में देखा है।’’ यह सुन महाराज को और भी ताज्जुब हुआ,
हुक्म दिया कि बहुत से आदमी जायें और उनको पकड़ लावें, पर चोबदार ने अर्ज
किया-‘‘महाराज इस तरह वे गिरफ्तार न होंगे, भाग जायेंगे, हाँ घसीटासिंह और
चुन्नीलाल मेरे साथ चलें तो मैं दूर से इन लोगों को दिखला दूँ, ये लोग कोई
चालाकी करके उन्हें पकड़ लें।’’ महाराज ने इस तरकीब को पसन्द करके दोनों
ऐयारों को चोबदार के साथ जाने का हुक्म दिया। चोबदार ने उन दोनों को लिए
हुए उस जगह पहुंचा जिस जगह उसने तेजसिंह का निशान देखा था, पर देखा कि वहाँ
कोई नहीं है। तब घसीटासिंह ने पूछा, ‘‘अब किधर देखें ?’’ उसने कहा, ‘‘क्या
यह जरूरी है कि वे तब से अब तक इसी पेड़ के नीचे बैठे रहें ? इधर-उधर
देखिए, कहीं होंगे !’’ यह सुन घसीटासिंह ने कहा, ‘‘अच्छा चलो, तुम ही आगे
चलो।
वे लोग इधर-उधर ढूंढ़ने लगे, इसी समय एक अहीरिन सिर पर खंचिए में दूध लिए
आती नजर पड़ी। चोबदार ने उसको अपने पास बुलाकर पूछा, ‘‘कि तूने इस जगह कहीं
एक औरत और एक मर्द को देखा है ?’’ उसने कहा, ‘‘हाँ, हाँ, उस जंगल में मेरा
अडार है, बहुत-सी गाय-भैंसी मेरी वहाँ रहती हैं, अभी मैंने उन दोनों के पास
दो पैसे का दूध बेचा है और बाकी दूध लेकर शहर बेचने जा रही हूँ।’’ यह सुनकर
चोबदार बतौर इनाम के चार पैसे निकाल उसको देने लगा, मगर उसने इनकार किया और
कहा कि मैं तो सेंत के पैसे नहीं लेती, हाँ, चार पैसे का दूध आप लोग लेकर
पी लें तो मैं शहर जाने से बचूं और आपका अहसान मानूं। चोबदार ने कहा,
‘‘क्या हर्ज है, तू दूध ही दे दे।’’ बस अहीरन ने खांचा रख दिया और दूध देने
लगी। चोबदार ने उन दोनों ऐयारों से कहा, ‘‘आइए, आप भी लीजिए।’’ उन दोनों
ऐयारों ने कहा, ‘‘हमारा जी नहीं चाहता !’’ वह बोली, ’’अच्छा आपकी खुशी।’’
चोबदार ने दूध पिया और तब फिर दोनों ऐयारों से कहा, ‘‘वाह ! क्या दूध है !
शहर में तो रोज आप पीते ही हैं, भला आज इसको भी तो पीकर मजा देखिए !’’ उसके
जिद्द करने पर दोनों ऐयारों ने भी दूध पिया और चार पैसे दूध वाली को दिये।
अब वे तीनों तेजसिंह को ढूंढ़ने चले, थोड़ी दूर जाकर चोबदार ने कहा, ‘‘न
जाने क्यों मेरा सिर घूमता है।’’ घसीटासिंह बोले, ‘‘मेरी भी वही दशा है।’’
चुन्नीलाल तो कुछ कहना ही चाहते थे कि गिर पड़े। इसके बाद चोबदार और
घसीटासिंह भी जमीन पर लेट गये। दूध बेचने वाली बहुत दूर नहीं गई थी, उन
तीनों को गिरते देख दौड़ती हुई पास आई और लखलखा सुंघाकर चोबदार को होशियार
किया। वह चोबदार तेजसिंह थे, जब होश में आये अपनी असली सूरत बना ली, इसके
बाद दोनों की मुश्कें बांध गठरी कस एक चपला को और दूसरे को तेजसिंह ने पीठ
पर लादा और नौगढ़ का रास्ता लिया।
19.
तेजसिंह को छुड़ाने के लिए जब चपला चुनार गई तब चम्पा ने जी में सोचा कि
ऐयार तो बहुत से आये हैं और मैं अकेली हूं, ऐसा न हो, कभी कोई आफत आ जाय।
ऐसी तरकीब करनी चीहिए जिसमें ऐयारों का डर न रहे और रात को भी आराम से सोने
में आये। यह सोचकर उसने एक मसाला बनाया। जब रात को सब लोग सो गये औऱ
चन्द्रकान्ता भी पलंग पर जा लेटी तब चम्पा ने उस मसाले को पानी में घोलकर
जिस कमरे में चन्द्रकान्ता सोती थी उसके दरवाजे पर दो गज इधर-उधर लेप दिया
और निश्चिन्त हो राजकुमारी के पलंग पर जा लेटी। इस मसाले में यह गुण था कि
जिस जमीन पर उसका लेप किया जाये सूख जाने पर अगर किसी का पैर उस जमीन पर
पड़े तो जोर से पटाखे की आवाज आवे, मगर देखने से यह न मालूम हो कि इस जमीन
पर कुछ लेप किया है। रात भर चम्पा आराम से सोई रही। कोई आदमी उस कमरे के
अन्दर न आया, सुबह को चम्पा ने पानी से वह मसाला धो डाला। दूसरे दिन उसने
दूसरी चालाकी। मिट्टी की एक खोपड़ी बनाई और उसको रंग कर ठीक चन्द्रकान्ता
की मूरत बनाकर जिस पलंग पर कुमारी सोया करती थी तकिए के सहारे वह खोपड़ी रख
दी, और धड़ की जगह कपड़ा रखकर एक हल्की चादर उस पर चढ़ा दी, मगर मुंह खुला
रखा, और खूब रोशनी कर उस चारपाई के चारों तरफ वही लेप कर दिया। कुमारी से
कहा, ‘‘आज आप दूसरे कमरे में आराम करें।’’ चन्द्रकान्ता समझ गई और दूसरे
कमरे में जा लेटी। जिस कमरे में चन्द्रकान्ता सोई उसके दरवाजे पर भी लेप कर
दिया और जिस कमरे में पलंग पर खोपड़ी रखी थी उसके बगल में एक कोठरी थी,
चिराग बुझाकर आप उसमें सो रही।
आधी रात गुजर जाने के बाद उस कमरे के अन्दर से जिसमें खोपड़ी रखी थी पटाखे
की आवाज आई। सुनते ही चम्पा झट उठ बैठी और दौड़कर बाहर से किवाड़ बन्द कर
खूब गुल करने लगी, यहाँ तक कि बहुत-सी लौंडियाँ वहाँ आकर इकट्ठी हो गईं और
एक जोर से महाराज को खबर दी कि चन्द्रकान्ता के कमरे में चोर घुसा है। यह
सुन महाराज खुद दौड़े आये और हुक्म दिया कि महल के पहरे से दस-पांच सिपाही
अभी आवें। जब सब इकट्ठे हुए, कमरे का दरवाजा खोला गया। देखा कि रामनारायण
और पन्नालाल दोनों ऐयार भीतर हैं। बहुत से आदमी उन्हें पकड़ने के लिए अन्दर
घुस गये, उन ऐयारों ने भी खंजर निकाल चलाना शुरू किया। चार-पांच सिपाहियों
को जख्मी किया, आखिर पकड़े गये। महाराज ने उनको कैद में रखने का हुक्म दिया
और चम्पा से हाल पूछा। उसने अपनी कार्रवाई कह सुनाई। महाराज बहुत खुश हुए
औऱ उसको इनाम देकर पूछा, ‘‘चपला कहाँ है ?’ उसने कहा, ‘वह बीमार है’। फिर
महाराज ने और कुछ न पूछा अपने आरामगाह में चले गये। सुबह को दरबार में उन
ऐयारों को तलब किया। जब वे आये तो पूछा, ‘‘तुम्हारा क्या नाम है ?’’
पन्नालाल बोला, ‘‘सरतोड़सिंह।’’ महाराज को उसकी ढिठाई पर बड़ा गुस्सा आया।
कहने लगे कि, ‘‘ये लोग बदमाश हैं, जरा भी नहीं डरते। खैर, ले जाकर इन दोनों
को खूब होशियारी के साथ कैद रखो।’’ हुक्म के मुताबिक वे कैदखाने में भेज
दिये गये।
महाराज ने हरदयालसिंह से पूछा, ‘‘कुछ तेजसिंह का पता लगा ?’’ हरदयालसिंह ने
कहा, ‘‘महाराज अभी तक तो पता नहीं लगा। ये ऐयार जो पकड़े गये हैं उन्हें
खूब पीटा जाये तो शायद ये लोग कुछ बतावें।’’ महाराज ने कहा, ‘‘ठीक है, मगर
तेजसिंह आवेगा तो नाराज होगा कि ऐयारों को क्यों मारा ? ऐसा कायदा नहीं है।
खैर, कुछ दिन तेजसिंह की राह औऱ देख लो फिर जैसा मुनासिब होगा, किया
जायेगा, मगर इस बात का खयाल रखना, वह यह कि तुम फौज के इन्तजाम में होशियार
रहना क्योंकि शिवदत्तसिंह का चढ़ आना अब ताज्जुब नहीं है।’’ हरदयालसिंह ने
कहा, ‘‘मैं इन्तजाम से होशियार हूँ, सिर्फ एक बात महाराज से इस बारे में
पूछनी थी जो एकान्त में अर्ज करूंगा।’’
जब दरबार बर्खास्त हो गया तो महाराज ने हरदयालसिंह को एकान्त में बुलाया और
पूछा, ‘‘वह कौन-सी बात है ?’’ उन्होंने कहा, ‘‘महाराज तेजसिंह ने कई बार
मुझसे कहा था बल्कि कुंवर वीरेन्द्रसिंह और उनके पिता ने भी फर्माया था कि
यहां के सब मुसलमान क्रूर की तरफदार हो रहे हैं, जहां तक हो इनको कम करना
चाहिए। मैं देखता हूं तो यह बात ठीक मालूम होती है, इसके बारे में जैसा
हुक्म हो, किया जाये।’’ महाराज ने कहा, ‘‘ठीक है, हम खुद इस बात के लिए
तुमसे कहने वाले थे। खैर, अब कहे देते हैं कि तुम धीरे-धीरे सब मुसलमानों
को नाजुक कामों से बाहर कर दो।’’ हरदयालसिंह ने कहा, ‘‘बहुत अच्छा, ऐसा ही
होगा।’’ यह कह महाराज से रुखसत हो अपने घर चले आये।
20.
महाराज शिवदत्तसिंह ने घसीटासिंह और चुन्नीलाल को तेजसिंह
को पकड़ने के लिए भेजकर दरबार बर्खास्त किया और महल में चले गये, मगर दिल
उनका रम्भा की जुल्फों में ऐसा फंस गया था कि किसी तरह निकल ही नहीं सकता
था। उस महारानी से भी हंसकर बोलने की नौबत न आई। महारानी ने पूछा, ‘‘आपका
चेहरा सुस्त क्यों हैं, ‘‘महाराज ने कहा, ‘‘कुछ नहीं, जागने से ऐसी कैफियत
है।’’ महारानी ने फिर से पूछा, ‘‘आपने वादा किया था कि उस गाने वाली को महल
में लाकर तुमको भी उसका गाना सुनवाएंगे, सो क्या हुआ ?’’ जवाब दिया, ‘‘वह
हमीं को उल्लू बनाकर चली गई, तुमको किसका गाना सुनावें ?’’ यह सुनकर
महारानी कलावती को बड़ा ताज्जुब हुआ। पूछा, ‘‘कुछ खुलासा कहिए, क्या मामला
है ?’’ इस समय मेरा जी ठिकाने नहीं है, मैं ज्यादा नहीं बोल सकता।’’ यह कह
कर महाराज वहाँ से उठकर अपने खास कमरे में चले गये और पलंग पर लेटकर रम्भा
को याद करने लगे और मन में सोचने लगे, ‘‘रम्भा कौन थी ? इसमें तो कोई शक
नहीं कि वह थी औऱत ही, फिर तेजसिंह को क्यों छुड़ा ले गई ? उस पर वह आशिक
तो नहीं थी जैसा कि उसने कहा था ! हाय रम्भा, तूने मुझे घायल कर डाला। क्या
इसी वास्ते तू आई थी ? क्या करूं, कुछ पता भी नहीं मालूम जो तुमको ढूँढूँ
!’’
दिल की बेताबी और रम्भा के खयाल में रात भर नींद न आई। सुबह को महाराज ने
दरबार में आकर दरियाफ्त किया, ‘‘घसीटासिंह और चुन्नीलाल का पता लगाकर आये
या नहीं ?’’ मालूम हुआ कि अभी तक वे लोग नहीं आये। खयाल रम्भा ही की तरफ
था। इतने में बद्रीनाथ, नाजिम, ज्योतिषीजी, और क्रूरसिंह पर नजर पड़ी। उन
लोगों ने सलाम किया और एक किनारे बैठ गये। उन लोगों के चेहरे पर सुस्ती और
उदासी देखकर और भी रंज बढ़ गया, मगर कचहरी में कोई हाल उनसे न पूछा। दरबार
बर्खास्त करके तखलिए में गये और पंडित बद्रीनाथ, क्रूरसिंह, नाजिम और
जगन्नाथ ज्योतिषी को तलब किया। जब वे लोग आये और सलाम करके अदब के साथ बैठ
गये तब महाराज ने पूछा, ‘‘कहो, तुम लोगों ने विजयगढ़ जाकर क्या किया ?’’
पंडित बद्रीनाथ ने कहा, ‘‘हुजूर काम तो यही हुआ कि भगवानदत्त को तेजसिंह ने
गिरफ्तार कर लिया और पन्नालाल और रामनारायण को एक चम्पा नामी औरत ने बड़ी
चालाकी और होशियारी से पकड़ लिया, बाकी मैं बच गया। उनके आदमियों में सिर्फ
तेजसिंह पकड़ा गया जिसको ताबेदार ने हुजूर में भेज दिया था सिवाय इसके और
कोई काम न हुआ।’’ महाराज ने कहा, ‘‘तेजसिंह को भी एक औरत छुड़ा ले गई। काम
तो उसने सजा पाने लायक किया मगर अफसोस ! यह तो मैं जरूर कहूँगा कि वह औरत
ही थी जो तेजसिंह को छुड़ा ले गई, मगर कौन थी, यह न मालूम हुआ। तेजसिंह को
तो लेती ही गई, जाती दफा चुन्नीलाल और घसीटासिंह पर भी मालूम होता है कि
हाथ फेरती गई, वे दोनों उसकी खोज में गये थे मगर अभी तक नहीं आये। क्रूर की
मदद करने से मेरा नुकसान ही हुआ। खैर, अब तुम लोग यह पता लगाओ कि वह औऱत
कौन थी जिसने गाना सुनाकर मुझे बेताब कर दिया और सभी की आँखों में धूल
डालकर तेजसिंह को छुड़ा ले गई ? अभी तक उसकी मोहिनी सूरत मेरी आंखों के आगे
फिर रही है।’’
नाजिम ने तुरन्त कहा, ‘‘हुजूर मैं पहचान गया। वह जरूर चन्द्रकान्ता की सखी
चपला थी, यह काम सिवाय उसके दूसरे का नहीं !’’ महाराज ने पूछा, ‘‘क्या चपला
चन्द्रकान्ता से भी ज्यादा खूबसूरत है ?’’ नाजिम ने कहा, ‘‘महाराज
चन्द्रकान्ता को तो चपला क्या पावेगी मगर उसके बाद दुनिया में कोई खूबसूरत
है तो चपला ही है, और वह तेजसिंह पर आशिक भी है।’’ इतना सुन महाराज कुछ देर
तक हैरानी में रहे फिर बोले, ‘‘ चाहे जो हो, जब तक चन्द्रकान्ता और चपला
मेरे हाथ न लगेंगी मुझको आराम न मिलेगा। बेहतर है कि मैं इन दोनों के लिए
जयसिंह को चिट्ठी लिखूँ।’’ क्रूरसिंह बोला, ‘‘ महाराज जयसिंह चिट्ठी को कुछ
न मानेंगे।’’ महाराज ने जवाब दिया, ‘‘क्या हर्ज है, अगर चिट्ठी का कुछ खयाल
न करेंगे तो विजयगढ़ को फतह ही करूंगा।’’ यह कह मीर मुंशी को तलब किया, जब
वह आ गया तो हुक्म दिया, राजा जयसिंह के नाम मेरी तरफ से खत लिखो कि
चन्द्रकान्ता की शादी मेरे साथ कर दें और दहेज में चपला को दे दें।’’ मीर
मुंशी ने बमूजिब हुक्म के खत लिखा जिस पर महाराज ने मोहर करके पंडित
बद्रीनाथ को दिया और कहा, ‘‘तुम्हीं इस चिट्ठी को लेकर जाओ, यह काम तुम्हीं
से बनेगा।’’ पंडित बद्रनाथ को क्या उज्र था, खत लेकर उसी वक्त विजयगढ़ की
तरफ रवाना हो गये।
भाग -5
भाग -7
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