प
हिंदी वर्णमाला का व्यंजन वर्ण। उच्चारण की दृष्टि से यह द्वि-ओष्ठ्य, अघोष, अल्पप्राण स्पर्श है।
पँखड़ा
[सं-पु.] बाँह और कंधे का जोड़; पखौरा।
पँचमेल
[वि.] 1. जिसमें पाँच तरह की चीज़ें मिली हों; मिश्रित; मिला-जुला 2. जिसमें सभी तरह की चीज़ें मिली हों 3. विविधतापूर्ण।
पँचमेवा
[सं-पु.] दे. पंचमेवा।
पँचरंग
[वि.] दे. पंचरंगा।
पँचरंगा
[वि.] 1. पाँच रंग का; पाँच रंगों से युक्त 2. अनेक रंगों वाला 3. {ला-अ.} मिला-जुला; विविधतापूर्ण।
पँचलड़ा
[वि.] जिसमें पाँच लड़ियाँ हो; पाँच लड़ों वाला।
पँजीरी
[सं-स्त्री.] 1. आटे को घी में भूनकर और चीनी मिलाकर बनाया गया मीठा चूर्ण; कसार 2. एक प्रकार की मिठाई 3. दक्षिण भारत में होने वाला एक प्रकार का पौधा;
इंद्रपर्णी।
पँवरी
[सं-स्त्री.] 1. पैरों में पहनने की एक प्रकार की खड़ाऊँ या चप्पल; पाँवड़ी 2. घर के प्रवेश द्वार में दहलीज का चौड़ा स्थान; दरवाज़े की ड्योढ़ी।
पँवाड़ा
[सं-पु.] 1. वीरतापूर्ण कारनामों से परिपूर्ण काव्य; लोकगीतों की एक शैली; वीरकाव्य; पँवारा 2. अतिशयोक्ति पूर्ण कथन 3. लंबी गाथा।
पँवारना
[क्रि-स.] 1. काम करने से रोकना 2. उपेक्षापूर्वक दूर हटाना; फेंकना।
पँवारा
[सं-पु.] दे. पँवाड़ा।
पंक
(सं.) [सं-पु.] 1. कीचड़; गारा 2. दलदल; तलछट 3. गंदा करने वाली कोई चीज़ 4. {ला-अ.} किसी प्रकार का लांछन; अपराध; पाप 5. लेप आदि के काम आने वाला कोई गाढ़ा गीला
पदार्थ।
पंकज
(सं.) [सं-पु.] 1. कमल 2. सारस पक्षी। [वि.] कीचड़ में उत्पन्न होने वाला।
पंकजराग
(सं.) [सं-पु.] पद्मराग मणि।
पंकजासन
(सं.) [सं-पु.] 1. पंकज या कमल का आसन 2. ब्रह्मा।
पंकिल
(सं.) [वि.] 1. कीचड़ से युक्त; कीचड़ मिला हुआ 2. गंदा; मैला 3. दलदली।
पंक्चर
(इं.) [सं-पु.] 1. गाड़ी या साइकिल आदि के पहिए की ट्यूब में किसी नुकीली वस्तु से होने वाला बहुत महीन छेद जिससे उसमें भरी हवा निकल जाती है 2. छिद्र।
पंक्चुअल
(इं.) [वि.] 1. समय का पालन करने वाला 2. नियमित; अनुशासित; पाबंद 3. नियमों से बँधा हुआ; नियमबद्ध; निश्चित 4. नियम, कायदे या कानून के अनुसार बना हुआ;
बाकायदा।
पंक्ति
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. समान वर्ग के व्यक्तियों या वस्तुओं आदि का एक-दूसरे के बाद एक सीध में होना; कतार; श्रेणी 2. शृंखला 3. ताँता; पट्टी 4. अवली; लड़ी 5.
भोज में एक साथ खाने वालों की पाँत; पंगत 6. छंदशास्त्र में दस अक्षरों वाले छंदों की संख्या 7. एक ही सीध में दूर तक बनी हुई रेखा; लकीर 8. जीवों की वर्तमान
पीढ़ी।
पंक्तिपावन
(सं.) [वि.] स्मृतियों के अनुसार ऐसा ब्राह्मण जिसे भोजन कराना, दान देना श्रेष्ठ माना गया है।
पंक्तिबद्ध
(सं.) [वि.] 1. किसी उद्देश्य से एक सीध में या क्रमिक रूप से खड़े हुए 2. एक शृंखला में बँधा हुआ 3. क्रमिक 4. कतारबद्ध; श्रेणीबद्ध।
पंख
(सं.) [सं-पु.] 1. पक्षियों का वह अंग जिनके सहारे वे हवा में उड़ते हैं; डैना; पर 2. हवा देने वाले यंत्र या पंखे का घूमने वाला लंबा हिस्सा। [मु.] -जमना : भागने या कुसंगति में पड़ने के लक्षण प्रकट होना। -निकलना : चतुर होना; आज़ाद होना। -लगाना : उड़ान
भरना; पक्षियों की तरह गतिमान होना।
पंखदार
(सं.+फ़ा.) [वि.] जिसमें पंख लगे हों; पंखवाला; पंखयुक्त।
पंखहीन
(सं.) [वि.] 1. जिसमें पंख न हों; जिसके पंख कट चुके हों 2. {ला-अ.} निरुपाय; लाचार।
पंखा
[सं-पु.] 1. वह वस्तु जिसे हिलाने से हवा होती है; हाथ पंखा; बिजना 2. बिजली से चलने वाला वह यंत्र जो हवा देता है; (फ़ैन) 3. चँवर।
पंखी
[सं-पु.] 1. पक्षी; चिड़िया 2. उड़ने वाला छोटा कीड़ा या पतिंगा; शलभ। [सं-स्त्री.] 1. पहाड़ी भेड़ों पर से उतारी जाने वाली मुलायम एवं हलकी ऊन 2. उक्त ऊन से
निर्मित चादर 3. साखू के फल के सिरे पर लगी हुई पतली पत्तियाँ 4. छोटा पंखा।
पंगत
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. भोज के समय एक पंक्ति में बैठकर भोजन करना 2. पाँत; पंक्ति; कतार 3. सामूहिक भोज; दावत।
पंगा1
(सं.) [वि.] 1. लँगड़ा; लूला 2. अपंग।
पंगा2
(फ़ा.) [सं-पु.] 1. दो व्यक्तियों का आपसी झगड़ा 2. शत्रुता; दुश्मनी।
पंगु
(सं.) [वि.] 1. पैरों में कोई ख़राबी होने के कारण जो चलने में अक्षम हो; लँगड़ा 2. {ला-अ.} असहाय; अक्षम; शक्तिहीन; निष्चेष्ट; गतिहीन। [सं-पु.] लँगड़ा आदमी।
पंगुता
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. पंगु होने की अवस्था या भाव; लँगड़ापन 2. सहयोग न करने की अवस्था 3. {ला-अ.} गतिहीनता; अक्षमता।
पंगुल
(सं.) [वि.] लँगड़ा; पंगु। [सं-पु.] लँगड़ापन।
पंच1
(सं.) [सं-पु.] 1. पाँच की संख्या 2. पंचायत 3. ग्राम पंचायत का प्रधान व्यक्ति 4. न्याय करने के लिए चुने गए पाँच आदमियों का समूह; मध्यस्थ 5. तटस्थ निर्णायक।
[वि.] पाँच। -मानना : विवाद का फ़ैसला कराने के लिए मध्यस्थ बनाना।
पंच2
(इं.) [सं-पु.] 1. घूँसा; मुक्का 2. किसी घटना या समाचार के संदर्भ में वह रोचक तथ्य जो किसी को रोमांचित कर देता हो; हैरतंगेज़ तथ्य 3. छेदने या दबाने की
क्रिया या अवस्था।
पंचक
(सं.) [सं-पु.] 1. सजातीय पाँच वस्तुओं का समूह 2. पाँच रुपए प्रति सैकड़े के हिसाब से लगने वाला ब्याज 3. धनिष्ठा, शतभिषा, पूर्वाभाद्रपद, उत्तराभाद्रपद और
रेवती नामक पाँच नक्षत्रों का समूह जिसमें कुछ धार्मिक कार्य निषिद्ध होते हैं; पचखा 4. युद्धक्षेत्र। [वि.] 1. पाँच अवयवों या अंगोंवाला 2. पाँच में खरीदा हुआ
3. पाँच से संबंधित।
पंचकन्या
(सं.) [सं-स्त्री.] (पुराण) कन्याओं की तरह मानी जाने वाली पाँच स्त्रियाँ- अहल्या, तारा, मंदोदरी, कुंती और द्रौपदी।
पंचकर्म
(सं.) [सं-पु.] 1. (न्यायशास्त्र) पाँच प्रकार के कर्म- उत्कक्षेपण, अवक्षेपण, आकुंचन, प्रसारण और गमन 2. (आयुर्वेद) चिकित्सा के अंतर्गत पाँच क्रियाएँ- वमन,
विरेचन, नस्य, निरूह और अनुवासन।
पंचकर्मी
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. आयुर्वेदिक उपचार के पाँच अंग 2. पंचकर्म।
पंचकल्याण
(सं.) [सं-पु.] लाल या काले रंग का घोड़ा जिसके चारों पैर और सिर सफ़ेद रंग के हों।
पंचकवल
(सं.) [सं-पु.] भोजन करने के समय पक्षियों के लिए निकाला जाने वाला पाँच ग्रास अन्न।
पंचकषाय
(सं.) [सं-पु.] पाँच प्रकार के वृक्ष- जामुन, सेमल, बेर, मौलसिरी तथा बरियारा की छाल का रस या काढ़ा।
पंचकाम
(सं.) [सं-पु.] कामदेव के पाँच रूप- काम, मन्मथ, कंदर्प, मकरध्वज और मीनकेतु।
पंचकारण
(सं.) [सं-पु.] (जैन साहित्य) कार्योत्पत्ति के पाँच कारण- काल, स्वभाव, नियति, व्यक्ति (स्त्री या पुरुष) और कर्म।
पंचकृत्य
(सं.) [सं-पु.] ईश्वर द्वारा किए जाने वाले पाँच कर्म- सृष्टि, ध्वंस, संहार, तिरोभाव और अनुग्रहकरण।
पंचकोण
(सं.) [सं-पु.] 1. पाँच भुजाओं से घिरी हुई आकृति या क्षेत्र 2. पंचभुज। [वि.] पाँच कोनोंवाला; पंचकोणीय।
पंचकोश
(सं.) [सं-पु.] वेदांत के अनुसार आत्मा के आवरण के रूप में माने जाने वाले पाँच कोश- अन्नमय कोश, प्राणमय कोश, मनोमय कोश, विज्ञानमय कोश और आनंदमय कोश।
पंचकोष
(सं.) [सं-पु.] दे. पंचकोश।
पंचकोसी
[सं-स्त्री.] काशी की परिक्रमा जिसमें पाँच पड़ाव हैं- कंदवा, भीमचंदी, रामेश्वर, शिवपुर और कपिलधारा।
पंचक्रोशी
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. पाँच कोस का फ़ासला 2. (पौराणिक मान्यता) पाँच कोस के घेरे में बसा हुआ काशी नामक नगर 3. किसी तीर्थस्थान की परिक्रमा।
पंचक्लेश
(सं.) [सं-पु.] दुख या क्लेश पैदा करने वाले पाँच कारक- अविद्या, अस्मिता, राग, द्वेष और अभिनिवेश।
पंचक्षारगण
(सं.) [सं-पु.] पाँच तरह के लवण या रसायन- काच, सैंधव, सामुद्र, विट और सौवर्चल।
पंचगंग
(सं.) [सं-पु.] पाँच नदियों का समूह जिन्हें गंगा के समान महत्व प्राप्त है- गंगा, यमुना, सरस्वती, किरणा और धूतपापा (अब सरस्वती, किरणा और धूतपापा लुप्त हो
चुकी हैं)।
पंचगंगा
(सं.) [सं-स्त्री.] काशी का एक प्रसिद्ध घाट जो मान्यतानुसार पाँच नदियों का संगमस्थान है।
पंचगव्य
(सं.) [सं-पु.] गौ (गाय) से प्राप्त होने वाले पाँच द्रव्य- दूध, दही, घी, गोमूत्र तथा गोबर।
पंचगुण
(सं.) [सं-पु.] पाँच गुण- शब्द, स्पर्श, रूप, रस और गंध।
पंचगौड़
(सं.) [सं-पु.] पाँच तरह के ब्राह्मणों का समूह- सारस्वत, कान्यकुब्ज, गौड़, मैथिल और उत्कल।
पंचग्रास
(सं.) [सं-पु.] भोजन करने के समय पक्षियों के लिए निकाला जाने वाला पाँच ग्रास अन्न; पंचकवल।
पंचजन
(सं.) [सं-पु.] 1. (पुराण) पाँच तरह के जन- देव, मानव, नाग, गंधर्व और पितर 2. (पुराण) एक असुर जिसे कृष्ण ने मारा था तथा जिसकी अस्थियों से पांचजन्य नामक शंख
बनाया गया था।
पंचतंत्र
(सं.) [सं-पु.] पाँच प्रकरणों में विभाजित संस्कृत की एक प्रसिद्ध पुस्तक जिसमें जीवन व्यवहार के संबंध में उपदेशात्मक कहानियाँ हैं।
पंचतत्व
(सं.) [सं-पु.] 1. जीवन के पाँच आधारभूत तत्व- पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश 2. पंचमहाभूत; पंचमकार 3. पदार्थ; तत्व; (एलीमेंट)।
पंचतरु
(सं.) [सं-पु.] 1. पाँच सबसे पवित्र माने जाने वाले वृक्ष- कल्पवृक्ष, पारिजात, मंदार, संतान तथा हरिचंदन 2. देवतरु।
पंचतारा
(सं.+अ.) [सं-पु.] सुविधाओं की दृष्टि से दिए जाने वाले सितारा संख्या के आधार पर पाँच सितारों या उत्तम सुविधाओं से युक्त होटल; (फ़ाइव स्टार)।
पंचतिक्त
(सं.) [सं-पु.] पाँच कड़वी औषधियों- गुडुच (गिलोय), भटकटैया, सोंठ, कुट और चिरायता का मिश्रण।
पंचतृण
(सं.) [सं-पु.] पाँच प्रकार के उपयोगी तिनके या घास- कुश, कास, सरकंडा, डाभ और ईख का समूह।
पंचत्व
(सं.) [सं-पु.] 1. पाँच का भाव 2. शरीर के पाँच महाभूत या तत्वों का अपने स्वरूप को प्राप्त हो जाना; मौत; मृत्यु।
पंचदश
(सं.) [सं-पु.] पंद्रह की संख्या।
पंचदीर्घ
(सं.) [सं-पु.] शरीर के पाँच दीर्घ अंग- बाहु, नेत्र, कुक्षि, नासिका और वक्षस्थल।
पंचदेव
(सं.) [सं-पु.] धार्मिक रूप से उपास्य पाँच देव- सूर्य, शिव, विष्णु, गणेश और दुर्गा।
पंचन
(इं.) [सं-पु.] काग़ज़ आदि में छेद करने का कार्य; (पंचिंग)।
पंचनद
(सं.) [सं-पु.] 1. पंजाब प्रांत की पाँच बड़ी नदियों (सतलज, व्यास, रावी, चनाब और झेलम) का समूह 2. पाँच नदियों से घिरा प्रदेश; पंजाब प्रदेश।
पंचनामा
(सं.+फ़ा.) [सं-पु.] किसी महत्वपूर्ण विषय पर लिए गए निर्णय का लिखित रूप जिसपर पंचों के हस्ताक्षर होते हैं; एक तरह का सहमति-पत्र।
पंचनीराजन
(सं.) [सं-पु.] पाँच वस्तुओं- दीपक, कमल, आम, वस्त्र और पान द्वारा की जाने वाली आरती या पूजा।
पंचपल्लव
(सं.) [सं-पु.] पाँच तरह के वृक्षों- आम, जामुन, कैथ, बिजौरा और बेल के पत्ते जिनका पूजा आदि में प्रयोग होता है।
पंचपात्र
(सं.) [सं-पु.] 1. पाँच पात्रों का समूह 2. प्राचीन रीति के अनुसार श्राद्ध का एक प्रकार जिसमें पाँच पात्र रखे जाते हैं 3. चौड़े मुँह के गिलास के आकार का एक
पात्र जिसमें पूजा आदि के निमित्त जल रखा जाता है।
पंचपिता
(सं.) [सं-पु.] (पुराण) पिता या पितृतुल्य व्यक्ति- पिता, आचार्य, श्वसुर, अन्नदाता और भयत्राता।
पंचपुष्प
(सं.) [सं-पु.] पाँच प्रकार के फूलों- चंपा, आम, शमी, कमल और कनेर का समूह।
पंचप्राण
(सं.) [सं-पु.] शरीर में संचरण करने वाली वायु के पाँच भेद- प्राण, अपान, समान, व्यान, और उदान।
पंचफोड़न
[सं-स्त्री.] छौंकने के काम आने वाली पाँच वस्तुओं- राई, जीरा, मेथी, सौंफ और मंगरैला (कलौंजी, किरायता) का मिश्रण।
पंचबाण
(सं.) [सं-पु.] कामदेव के पाँच बाण- सम्मोहन, उन्मादन, स्तंभन, शोषण और तापन।
पंचबीज
(सं.) [सं-पु.] पाँच बीजकोश वाले फल- अनार, ककड़ी, खीरा, पद्मबीज और पानरीबीज।
पंचभुज
(सं.) [सं-पु.] पाँच भुजाओं वाली आकृति। [वि.] पाँच भुजाओं वाला; पंचकोणीय; पंचबाहु।
पंचभूत
(सं.) [सं-पु.] 1. (भारतीय दर्शन) पाँच मूलतत्व- आकाश, वायु, अग्नि, जल और पृथ्वी जिनसे सृष्टि की रचना हुई है 2. अजैव पदार्थ 3. पंचतत्व।
पंचभौतिक
(सं.) [वि.] पाँच तरह के तत्वों अथवा भौतिक पदार्थों से बना हुआ।
पंचम
(सं.) [सं-पु.] (संगीत में) सरगम या सप्तक का 'प' के रूप में पाँचवाँ स्वर जिसे कोयल की कूक का स्वर भी माना जाता है। [वि.] 1. पाँचवाँ 2. सुंदर; मनोहर 3.
निपुण; दक्ष।
पंचमकार
(सं.) [सं-पु.] तांत्रिक साधना में प्रयुक्त 'म' से आरंभ होने वाली पाँच वस्तुएँ- मद्य, मांस, मत्स्य, मुद्रा और मैथुन जिन्हें तंत्र साधना में पंचतत्व,
कुलद्रव्य या कुलतत्व भी कहा जाता है।
पंचमहापातक
(सं.) [सं-पु.] धर्मशास्त्र वर्णित पाँच प्रकार के महापाप- मानव हत्या, मद्यपान, चोरी, गुरु-पत्नी से व्यभिचार और इन चार पापों को करने वाले से मेल-जोल।
पंचमहाभूत
(सं.) [सं-पु.] 1. पृथ्वी, जल, अग्नि, आकाश एवं वायु नामक पाँच मूल तत्व 2. भारतीय चिंतन परंपरा के अनुसार उक्त तत्वों से निर्मित संसार या सृष्टि।
पंचमहायज्ञ
(सं.) [सं-पु.] धर्मशास्त्र वर्णित गृहस्थों द्वारा नित्य करने योग्य माने जाने वाले पाँच कार्य- अध्यापन, पितृतर्पण, होम, भूतयज्ञ और अतिथि-पूजन।
पंचमांग
(सं.) [सं-पु.] 1. पत्रकारिता में ख़ास उद्देश्य से तैयार किया जाने वाला कॉलम; (फ़िफ़्थ कॉलम) 2. किसी बात या काम का पाँचवाँ अंग।
पंचमांगी
(सं.) [वि.] 1. पंचमांग संबंधी 2. गद्दार। [सं-पु.] वह व्यक्ति या वर्ग जो दूसरे देश से गुप्त संबंध रखकर अपने देश को हानि पहुँचाता है; गुप्त देशद्रोही।
पंचमी
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. चांद्र मास के प्रत्येक पक्ष की पाँचवी तिथि 2. अपादान कारक 3. (महाभारत) पाँडव पत्नी द्रौपदी 4. वैदिक युगीन एक प्रकार की ईंट जो यज्ञ की
वेदी बनाने के काम आती थी 5. संगीत की एक रागिनी 7. बिसात।
पंचमेवा
(सं.+फ़ा.) [सं-पु.] पाँच मेवों- गरी (नारियल), चिरौंजी, बादाम, छुहारा और किशमिश का मिश्रण।
पंचर
(इं.) [सं-पु.] 1. कील आदि नुकीली चीज़ के धँस जाने से वाहन के पहिए की हवा निकलने की स्थिति 2. किसी पाइप आदि में छेद हो जाने के कारण उससे प्रवाहित होने वाले
द्रव या गैस के रिसने की स्थिति।
पंचरंगी
[वि.] 1. पाँच रंगों वाला 2. पाँच तरह के रंगों से बना हुआ 3. जिसमें पाँच रंग हों 4. विविधतापूर्ण। [सं-पु.] पाँच रंगों से पूरा गया चौक।
पंचरत्न
(सं.) [सं-पु.] 1. पाँच प्रकार के रत्नों- नीलम, हीरा, पद्मराग मणि, मोती और मूँगा का समूह 2. (महाभारत) पाँच प्रसिद्ध आख्यान।
पंचरात्र
(सं.) [सं-पु.] पाँच रातों का समय। [वि.] लगातार पाँच रात तक चलने वाला।
पंचराशिक
(सं.) [सं-पु.] गणित का एक सूत्र जिसमें चार ज्ञात राशियों की सहायता से पाँचवीं अज्ञात राशि का पता लगाया जाता है।
पंचवटी
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. पाँच वृक्षों का समूह- अशोक, पीपल, बेल, वट और पाकड़ 2. रामायण आदि ग्रंथों में वर्णित दंडकारण्य (नासिक) में गोदावरी के तट का एक
प्रसिद्ध स्थान जहाँ वनवासी राम, सीता और लक्ष्मण ने निवास किया था।
पंचवर्ण
(सं.) [सं-पु.] अकार, उकार, मकार, नाद और बिंदु से संयुक्त ओंकार नामक शब्द।
पंचवर्षीय
(सं.) [वि.] पाँच वर्ष तक चलने या होने वाला; पाँच वर्ष का।
पंचशब्द
(सं.) [सं-पु.] पाँच तरह के वाद्य- तंत्री, ताल, झाँझ, नगाड़ा और तुरही जिनकी ध्वनियों को मंगलसूचक माना जाता है।
पंचशर
(सं.) [सं-पु.] (पुराण) पाँच बाणों वाला अर्थात कामदेव।
पंचशाख
(सं.) [सं-पु.] 1. पाँच शाखाओं का समूह 2. हाथ।
पंचशील
(सं.) [सं-पु.] बौद्ध धर्म के नीति संबंधी पाँच सिद्धांत- अस्तेय, अहिंसा, ब्रह्मचर्य, सत्य और मादक द्रव्य निषेध।
पंचसुगंधक
(सं.) [सं-पु.] (आयुर्वेद) सुगंध देने वाले पाँच पदार्थ- कपूर, शीतलचीनी, लौंग, अगर और जायफल।
पंचस्कंध
(सं.) [सं-पु.] (बौद्ध दर्शन) समस्त पदार्थों के पाँच स्कंध- रूप, वेदना, संज्ञा, संस्कार तथा विज्ञान।
पंचस्नेह
(सं.) [सं-पु.] चिकने या स्निग्ध पाँच पदार्थ- घी, तेल, चरबी, मज्जा और मोम।
पंचांग
(सं.) [सं-पु.] 1. किसी चीज़ के पाँच अंग 2. पाँच अंगों वाली वस्तु 3. तिथि, वार, योग, नक्षत्र और करणों वाली एक पुस्तिका या पंजी; पत्रा; जंत्री 4. जड़, छाल,
पत्ती, फूल एवं फल; किसी वनस्पति के पाँच अंग 5. तंत्र में जप, होम, तर्पण, अभिषेक और भोजन नामक पाँच अंगोंसे युक्त पुरश्चरण 6. प्रणाम करने की वह विधि जिसके
अंतर्गत घुटना, सिर, हाथ तथा छाती को पृथ्वी से सटाकर और आँखों को प्रणम्य की ओर देखते हुए मुँह से प्रणाम शब्द का उच्चारण किया जाता है 7. राजनीतिशास्त्र के
अंतर्गत (सहाय, साधन, उपाय, देश-कालभेद और विपत-प्रतिकार नामक) पाँच कार्य।
पंचांगुल
(सं.) [सं-पु.] 1. अरंड या अंडी का पेड़ 2. तेजपत्ता 3. भूसा आदि बटोरने के लिए पाँचा नामक उपकरण। [वि.] 1. जिसमें पाँच उँगलियाँ हो 2. जो नाप में पाँच अंगुल का
हो।
पंचांश
(सं.) [सं-पु.] किसी वस्तु का पाँचवाँ भाग या अंश; पंचमांश।
पंचाक्षर
(सं.) [सं-पु.] 1. प्रतिष्ठा नामक वृत्ति जिसमें पाँच अक्षर होते हैं 2. शिव का 'ओम नमः शिवाय' मंत्र जिसमें पाँच अक्षर होते हैं। [वि.] पाँच अक्षरों वाला;
जिसमें पाँच अक्षर हों।
पंचाग्नि
(सं.) [सं-पु.] 1. अन्वाहार्यपचन, गार्हपत्य, आहवनीय, सभ्य और आवसथ्य नामक अग्नि के पाँच प्रकार 2. (छांदोग्य उपनिषद) सूर्य, पर्जन्य, पृथ्वी, पुरुष और योषित्
नामक अग्नि के पाँच रूप 3. (आयुर्वेद) चीता, चिचिड़ी, भिलावाँ, गंधक और मदार नामक पाँच गरम तासीरवाली औषधियाँ 4. चारों ओर से जलती हुई पाँचों प्रकार की अग्नियों
के बीच बैठकर और ऊपर से सूर्य का तप सहते हुए ग्रीष्म ऋतु में किया जाने वाला एक प्रकार का तप।
पंचाट
(सं.) [सं-पु.] 1. किसी विवादित विषय पर पंचों द्वारा लिया गया निर्णय या फ़ैसला; परिनिर्णय 2. मध्यस्थता; बीचबचाव 3. समझौता; सौदेबाज़ी।
पंचात्मा
(सं.) [सं-स्त्री.] शरीर में स्थित माने जाने वाले पंचप्राण- प्राण, अपान, समान, उदान और व्यान।
पंचानन
(सं.) [सं-पु.] 1. किसी विषय का विद्वान 2. शेर; सिंह 3. पंचमुखी रुद्राक्ष; शिव 4. सिंह राशि 5. (संगीत) स्वर-साधना की एक प्रणाली।
पंचामृत
(सं.) [सं-पु.] 1. पाँच पदार्थों- दूध, दही, घी, चीनी और शहद मिलाकर बनाया जाने वाला प्रसाद 2. (आयुर्वेद) पाँच गुणकारी औषधियाँ- गिलोय, मुसली, गोखरू, गोरखमुंडी
और शतावरी का समूह।
पंचायत
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. किसी समाज में लोगों द्वारा निर्वाचित या मनोनीत सदस्यों की सभा 2. संबंधित समाज के किसी विवाद या झगड़े के विषय में उक्त सदस्यों द्वारा
लिया गया सर्वमान्य निर्णय 3. पंचायतघर 4. पंचों की मंडली, सभा या सम्मेलन।
पंचायतघर
[सं-पु.] 1. वह स्थान जहाँ गाँव, बिरादरी या समुदाय की पंचायत होती है 2. ग्राम-पंचायत की इमारत 3. चौपाल।
पंचायतन
(सं.) [सं-पु.] 1. वह स्थान जहाँ पाँच देवताओं की मूर्तियाँ स्थापित हों 2. किसी एक देवता की मूर्ति के साथ चार अन्य देवताओं की मूर्तियों का समूह।
पंचायती
(सं.) [वि.] 1. पंचायत संबंधी; पंचायत का 2. लोकतांत्रिक; सामाजिक 3. मिला-जुला या साझे का; सार्वजनिक; सामूहिक।
पंचाल
(सं.) [सं-पु.] 1. एक प्राचीन देश जो हिमालय और चंबल के बीच गंगा के दोनों ओर स्थित था 2. उक्त देश का निवासी 3. पंचमुख महादेव 4. एक प्रकार का छंद 5. लकड़ी और
लोहे का काम करने वाली दक्षिण भारतीय एक जाति 6. एक प्रकार का जहरीला कीड़ा 7. बाभ्रव्य गोत्र के एक ऋषि।
पंचालिका
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. अभिनेत्री; नटी 2. गुड़िया; पुतली 3. (काव्यशास्त्र) पांचाली रीति का दूसरा नाम।
पंचाली
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. पंचाल प्रदेश की नारी 2. द्रौपदी 3. गुड़िया; कठपुतली 4. चौपड़ या चौरस की बिसात।
पंचावयव
(सं.) [सं-पु.] 1. पाँच अवयवों- प्रतिज्ञा, हेतु, उदाहरण, उपनय और निगमन से युक्त न्याय-वाक्य 2. न्याय के पाँच अवयव। [वि.] पाँच अवयवों या अंगों वाला; पंचांगी।
पंचास्य
(सं.) [वि.] पाँच मुखों वाला; पँचमुखी; पंचानन।
पंचेंद्रिय
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. पाँच ज्ञानेंद्रियाँ 2. पाँच कर्मेंद्रियाँ।
पंचोपचार
(सं.) [सं-पु.] गंध, पुष्प, धूप, दीप एवं नैवेद्य नामक पाँच द्रव्यों से किया जाने वाला पूजन।
पंछा
(सं.) [सं-पु.] 1. प्राणियों के शरीर पर होने वाले फुंसी या दाने के फूटने से उसमें से निकलने वाला स्राव 2. वनस्पतियों को किसी स्थान से काटने या छीलने पर
निकलने वाला तरल पदार्थ 3. फफोले, चेचक के दाने आदि में भरा हुआ पानी।
पंछी
(सं.) [सं-पु.] पक्षी; पाखी; परिंदा; चिड़िया।
पंज
(फ़ा.) [वि.] 1. पाँच 2. पाँच का संक्षिप्त रूप।
पंजक
(सं.) [सं-पु.] 1. मांगलिक अवसरों पर दीवारों पर लगाया जाने वाला हाथ के पंजे का निशान या छापा 2. चित्रकला में पाँच-पाँच दल या शाखाएँ दिखाकर किया जाने वाला
चित्रण।
पंजर
(सं.) [सं-पु.] 1. हड्डियों का ढाँचा 2. मांस, त्वचा आदि से ढके हुए शरीर की हड्डियों का ढाँचा जिनके आधार पर शरीर ठहरा रहता है; कंकाल; ठठरी 3. पिंजड़ा 4. कोल
नामक छंद 5. {ला-अ.} किसी वस्तु का वह आंतरिक ढाँचा जिसपर कई आवरण रहते हैं और जिनसे उनका अस्तित्व बना रहता है।
पंजा
(सं.) [सं-पु.] 1. हाथ या पैर का वह अगला भाग जिसमें हथेली या तलवा और पाँचों उँगलियाँ होती हैं 2. पाँच वस्तुओं का समूह 3. ताश का वह पत्ता जिसमें पाँच बूटियाँ
होती हैं 4. एक प्रकार की कसरत जिसमें पंजा लड़ाते हैं 5. जूते का अगला भाग जिसमें उँगलियाँ ढकी रहती हैं 6. टिन आदि का पंजे के आकार का वह टुकड़ा जिसे लंबे बाँस
में लगाकर ताज़िए के साथ झंडे या निशान के रूप में लेकर चलते हैं।
पंजाब
(फ़ा.) [सं-पु.] भारत का पश्चिमोत्तर राज्य जिसमें रावी, चिनाब, झेलम, व्यास और सतलज नामक पाँच नदियाँ बहती हैं।
पंजाबी
(फ़ा.) [सं-स्त्री.] पंजाब राज्य की भाषा। [वि.] 1. पंजाब से संबंधित 2. पंजाब का। [सं-पु.] पंजाब का निवासी।
पंजिका
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. ऐसी टीका जिसमें प्रत्येक शब्द का अर्थ स्पष्ट किया गया हो 2. आय-व्यय का हिसाब लिखने की पुस्तिका; (रजिस्टर) 3. तिथिपत्र; पंचांग;
(कैलेंडर)।
पंजी
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. वह पुस्तिका जिसमें ख़र्च का हिसाब, जन्म-मृत्यु का विवरण, गृह, भूमि आदि की अधिकृत बिक्री या हस्तांतरण आदि का ब्योरा दर्ज किया जाता है
2. बही; (रजिस्टर)।
पंजीकरण
(सं.) [सं-पु.] 1. शासन या सरकार द्वारा किया जाने वाला प्रमाणीकरण; मान्यीकरण 2. किसी लेख या विवरण का किसी पंजिका, बही या रजिस्टर में लिखा जाना 3. नाम की
सूची में नाम का लिखा जाना 4. पंजी में लिखकर मान्यता प्रदान करना।
पंजीकार
(सं.) [सं-पु.] 1. पंजी या बही-खाता लिखने का काम करने वाला व्यक्ति 2. आय-व्यय आदि का ब्योरा लिखने वाला व्यक्ति; लेखक; मुनीम 3. पंचांग बनाने का काम करने वाला
व्यक्ति।
पंजीकृत
(सं.) [वि.] 1. व्यवस्थित उपादान या संस्था के रूप में सरकार द्वारा प्रमाणित 2. जो पंजिका या रजिस्टर में दर्ज किया जा चुका हो; जिसका पंजीकरण किया जा चुका हो;
(रजिस्टर्ड)।
पंजीबद्ध
(सं.) [वि.] दे. पंजीकृत।
पंजीयक
(सं.) [सं-पु.] 1. किसी संस्था अथवा विभाग के अभिलेख, पत्र, विवरण आदि की प्रामाणिक प्रतिलिपि पंजी में सुरक्षित रखने का प्रबंध करने वाला अधिकारी; कुलसचिव;
(रजिस्ट्रार) 2. वह व्यक्ति जो पंजी या बहीखाता में लेख, विवरण आदि लिखने या दर्ज कराने का प्रबंध करता हो।
पंजीयन
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. किसी लेख, विवरण या ब्योरे का संबंधित विभाग की पंजी में दर्ज किया जाना; (रजिस्ट्रेशन) 2. भूमि, भवन आदि संपत्ति की बिक्री अथवा
हस्तांतरण का ब्योरा पंजिका या रजिस्टर में चढ़ाकर अभिलेख के रूप में रखा जाना 3. पत्र, पार्सल आदि के सुरक्षित रूप से भेजे जाने के लिए पाने वाले का पता आदि
लिखना।
पंजीरी
[सं-स्त्री.] दे. पँजीरी।
पंडा
[सं-पु.] 1. तीर्थ स्थान, नदी घाट आदि स्थानों पर कर्मकांड कराने वाला व्यक्ति; तीर्थ पुरोहित 2. रसोई बनाने वाला ब्राह्मण 3. {ला-अ.} चालाक या छल करने वाला
व्यक्ति। [सं-स्त्री.] सत्य-असत्य का विवेक करने वाली बुद्धि।
पंडाइन
[सं-स्त्री.] 1. पंडे की पत्नी 2. पुरोहित की पत्नी 3. रसोईदारिन।
पंडाल
(त.) [सं-पु.] 1. कनातों आदि से घिरा और तंबुओं से छाया हुआ उत्सव आदि का विस्तृत मंडप; शामियाना; (टेंट) 2. किसी संस्था के अधिवेशन आदि के लिए लगाया हुआ
शामियाना।
पंडित
(सं.) [सं-पु.] 1. शिक्षित और व्यवहारिक व्यक्ति; अध्यापक 2. किसी कार्य में निपुण या कुशल व्यक्ति 3. शास्त्रज्ञ विद्वान; धर्मज्ञानी 4. पूजा-पाठ कराने वाला
व्यक्ति; उपदेशक 5. सिद्ध कलाकार 6. विशेषज्ञ 7. ब्राह्मणों के नाम के पहले लगने वाला एक आदरसूचक शब्द 8. कश्मीरी ब्राह्मणों में प्रचलित एक कुलनाम या सरनेम।
[वि.] कुशल; निपुण।
पंडिताइन
[सं-स्त्री.] 1. पंडित की पत्नी 2. ब्राह्मण जाति की स्त्री 3. शिक्षित स्त्री।
पंडिताई
[सं-स्त्री.] 1. पंडित होने का गुण या भाव; पांडित्य 2. कुशलता; विद्वत्ता 2. धार्मिक कर्मकांड करने वाले पंडित समुदाय की वृत्ति, कार्य या व्यवसाय।
पंडिताऊ
[वि.] 1. पंडितों की तरह का 2. पंडितों के ढंग का 3. विद्वत्तापूर्ण 4. परंपरागत 5. आडंबरपूर्ण।
पंडु
(सं.) [वि.] 1. पीलापन लिए हुए मटमैला 2. पीला।
पंडुक
(सं.) [सं-पु.] कबूतर की प्रजाति का हलके कत्थई रंग का एक पक्षी; फ़ाख़्ता; पेंडकी।
पंत
[सं-पु.] पहाड़ी ब्राह्मण समाज में एक कुलनाम या सरनेम।
पंथ
(सं.) [सं-पु.] 1. पथ; राह; रास्ता; मार्ग 2. कोई ऐसा धार्मिक संप्रदाय जिसके अनुयायी उसकी प्रथाओं तथा सिद्धातों को विशेषरूपसे मान्यता देते हैं, जैसे- नानकपंथ
3. मत; धर्म; संप्रदाय 4. रीति; परंपरा 5. आचार-व्यवहार या रहन-सहन का ढंग। [मु.] -देखना : किसी की प्रतीक्षा करना, बाट जोहना। -दिखाना : रास्ता दिखलाना; शिक्षा देना। -लगाना : सही रास्ते पर चलाना।
पंथक
(सं.) [वि.] मार्ग में उत्पन्न होने वाला।
पंथ-निरपेक्ष
(सं.) [वि.] 1. जो किसी पंथ का अनुयायी न हो 2. पंथों या संप्रदायों के परस्पर विरोधी विचारों से अप्रभावित; (सेक्युलर)।
पंथी
(सं.) [सं-पु.] 1. राही; पथिक; यात्री; बटोही 2. धार्मिक पक्षधर; मतानुगामी 3. किसी संप्रदाय या पंथ का अनुयायी, जैसे- गोरखपंथी 4. किसी विशेष मत को मानने वाला
व्यक्ति। [सं-स्त्री.] पंथ होने की अवस्था। [परप्रत्य.] कुछ शब्दों के अंत में लगकर भाववाचक प्रत्यय का अर्थ देता है, जैसे- वामपंथी।
पंद्रह
(सं.) [वि.] संख्या '15' का सूचक।
पंप
(इं.) [सं-पु.] 1. पानी आदि तरल पदार्थों को हवा के ज़ोर से ऊपर खींचने का यंत्र 2. पिचकारी 3. ट्यूब आदि में हवा भरने का उपकरण 4. एक प्रकार का हलका अँग्रेज़ी
जूता जिसमें पंजे से ऊपर का भाग ढका रहता है।
पंसारी
(सं.) [सं-पु.] जीरा, धनियाँ, नमक आदि किराने का सामान तथा साधारण जड़ी-बूटी बेचने वाला दुकानदार।
पकड़
[सं-स्त्री.] 1. पकड़ने का भाव या क्रिया; शिकंजा 2. पकड़ने का ढंग या तरीका 3. अपहरण 4. ग्रहण 5. मूठ; सँडसी 6. कुश्ती या लड़ाई में एक बार की भिड़ंत; हाथापाई 7.
किसी कार्य का वह अंग जिससे उसकी त्रुटि या दोष का पता चल सकता हो 8. लाभ का डौल या सुभीता 9. {ला-अ.} किसी विषय या कलाक्षेत्र में गहरी समझ; विशेषज्ञता; कौशल;
गुणज्ञता; अंतर्बोध। [मु.] -जाना : कैद कर लिया जाना। -में आना : पकड़ा जाना; काबू में आना।
पकड़-धकड़
[सं-स्त्री.] गिरफ़्तारी; धर-पकड़।
पकड़ना
(सं.) [क्रि-स.] 1. किसी वस्तु को इस प्रकार दृढ़तापूर्वक थामना कि वह इधर-उधर न हट सके; दबोचना; थामना 2. ग्रहण करना; चंगुल में लेना; झपटना 3. खोज निकालना;
पता लगाना; गिरफ़्तार करना 4. वेगवान वस्तु को आगे बढ़ने से रोकना 5. किसी रोग या विकार के कारण शरीर या उसके किसी अंग का ठीक ढंग से काम न करना 6. किसी काम में
आगे बढ़े हुए के बराबर पहुँचना।
पकड़वाना
(सं.) [क्रि-स.] 1. किसी को कुछ पकड़ने में प्रवृत्त करना 2. किसी के पकड़े जाने में सहायक होना या सहायता करना।
पकड़ाना
(सं.) [क्रि-स.] 1. पकड़ने में प्रवृत्त करना; सौंपना 2. किसी के अधिकार में कोई चीज़ देना।
पकना
(सं.) [क्रि-अ.] 1. परिपक्व होना 2. पूर्णता की अवस्था तक पहुँचना 3. आँच पर भोज्य पदार्थों का इतना तपना कि वह खाया जा सके; रँधना 4. प्राकृतिक या कृत्रिम
तरीके से फलों का इस अवस्था में पहुँचना कि उन्हें खाया जा सके 5. कच्ची मिट्टी से निर्मित वस्तुओं का आँच पर इस प्रकार पकना कि वह सहजता से टूट न सके 6. बालों
का सफ़ेद होना 7. फोड़ा-फुंसी आदि का इस अवस्था में पहुँचना कि उसमें मवाद भर जाए 8. चौसर के खेल में गोटियों का सभी खानों को पार करके अपने खाने में पहुँचना 9.
ऐसी अवस्था में पहुँचना जहाँ से पतन, ह्रास या विनाश का आरंभ होता है 10. लेन-देन या व्यवहार में कोई बात पक्की या निश्चित होना।
पकवान
(सं.) [सं-पु.] 1. घी अथवा तेल में तलकर पकाया हुआ कोई भोज्य या खाद्य पदार्थ, जैसे- कचौड़ी, जलेबी, समोसा आदि 2. पक्का खाना; व्यंजन।
पकवाना
(सं.) [क्रि-स.] 1. किसी को कुछ पकाने में प्रवृत्त करना 2. पकाने का काम किसी दूसरे से कराना।
पकाई
[सं-स्त्री.] 1. पकाने की क्रिया या भाव 2. पकाने की मज़दूरी 3. मज़बूती; दृढ़ता (ईंट) 4. अभ्यास।
पकाना
(सं.) [क्रि-स.] 1. ऐसी क्रिया करना जिससे कुछ पक सकता हो; पकाने में प्रवृत्त करना 2. अन्न एवं फल का पकने की अवस्था में पहुँचना; उबालना; भूनना 3. अन्न का आँच
पर रख कर गलाना या तपाना जिससे कि वह खाने योग्य हो सके; राँधना 4. ऐसी क्रिया करना जिससे कच्चे फल मीठे और मुलायम हो जाए तथा उन्हें खाया जा सके 5. कच्ची
मिट्टी से निर्मित वस्तुओं को आग पर तपाना जिससे वे सहजता से टूट न सकें या पानी में गल न सकें 6. फोड़ा-फुंसी को मवाद भर आने की अवस्था तक पहुँचाना 7. सफ़ेद
करना या बनाना 8. अभ्यास आदि से परिपक्व और कुशल बनाना।
पका-पकाया
[वि.] 1. खाने योग्य 2. बना-बनाया 3. किया-कराया; तैयार।
पकौड़ा
[सं-पु.] बेसन, आलू, प्याज़, हरी सब्ज़ियों और मसालों से युक्त तेल में तला हुआ व्यंजन; बड़ी पकौड़ी।
पक्का
(सं.) [वि.] 1. (ऐसा प्रपत्र) जो विधिक दृष्टि से प्रामाणिक माना जाता हो 2. जो विकसित होकर पुष्ट तथा पूर्ण हो चुका हो; अटूट; अचल; सुदृढ़ 3. पूरी तरह से पका
या पकाया हुआ 4. अनुभवी; निपुण; निष्णात; दक्ष 5. निश्चित; निर्णायक 6. जिसमें किसी प्रकार की मिलावट या खोट न हो 7. जो इतना स्थिर या निश्चित हो चुका हो कि
उसमें सहसा किसी परिवर्तन की गुंजाइश न हो; प्रभावातीत 8. कटिबद्ध; दायित्वपूर्ण 9. जिसमें किसी प्रकार का दोष या त्रुटि न हो; प्रमाणसिद्ध; विवादातीत 10. जो
प्रायः सभी जगह प्रामाणिक और मानक माना जाता हो; सत्याधारित 11. जिसका अच्छी तरह संशोधन किया जा चुका हो 12. जो कभी छूट न सके; विजड़ित 13. जिसपर लिखी हुई बात
कानून के विरुद्ध न हो 14. जो वृद्धि करते हुए विनाश के निकट पहुँच चुका हो।
पक्का चिट्ठा
[सं-पु.] आय-व्यय का तैयार किया गया सटीक प्रपत्र या कागज़।
पक्की निकासी
[सं-स्त्री.] 1. कुल आय में से होने वाली बचत; (नेट एसेट्स) 2. किसी संपत्ति में से व्यय को निकाल देने के बाद बची हुई आय या रकम।
पक्की रसोई
[सं-स्त्री.] 1. घी या तैलीय पदार्थ में पका या तला हुआ खाद्यपदार्थ 2. पकवान; व्यंजन।
पक्व
(सं.) [वि.] 1. पका या पकाया हुआ 2. पुष्ट; दृढ़ 3. अनुभवी; पक्का 4. वयस्क; पूर्णतः विकसित। [सं-पु.] पकाया हुआ भोजन।
पक्वान्न
(सं.) [सं-पु.] 1. पका या पकाया हुआ अन्न 2. पकायी हुई भोज्य वस्तु 3. पकवान।
पक्वाशय
(सं.) [सं-पु.] पाचन तंत्र का वह अंश जहाँ आहार पचता है; आमाशय; जठर।
पक्ष
(सं.) [सं-पु.] 1. किसी वस्तु या व्यक्ति का दायाँ या बायाँ भाग 2. किसी विशेष स्थिति से दाहिने या बाएँ पड़ने वाला विस्तार 3. ओर; तरफ़; पार्श्व 4. किसी विषय या
वस्तु के दो या दो से अधिक परस्पर विरोधी तत्व, सिद्धांत या भाग 5. किसी प्रतियोगिता या विवाद आदि में सम्मिलित होने वाले व्यक्तियों या दलों में से प्रत्येक
व्यक्ति या दल 6. सेना का आगे की ओर बढ़ा हुआ भाग; पार्श्व 7. किसी बात या विचार का कोई भाग 8. शरीर का अंग; आयाम 9. किसी विचारधारा या सिद्धांत के समर्थकों का
दल; सहायक; गुट 10. पक्षियों का डैना; पंख; पर 11. चूल्हे का वह गड्ढा या मुँह जिसमें राख इकट्ठा होती है 12. जवाब; उत्तर 13. चंद्रमास के दो बराबर भागों में से
प्रत्येक भाग जो पंद्रह दिनों का माना जाता है।
पक्षधर
[वि.] 1. झगड़े-लड़ाई या किसी अन्य विषय में किसी का पक्ष लेने वाला; पक्षपाती 2. जो निष्पक्ष न हो; तरफ़दार; हिमायती 3. समर्थक; पिछलग्गू। [सं-पु.] 1. पक्षी;
पाखी 2. चिड़िया।
पक्षधरता
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. पक्षधर होने की अवस्था या भाव; पक्षपात; तरफ़दारी 2. दो पक्षों में से किसी एक पक्ष के प्रति हिमायत 3. झंडाबरदारी; अलमबरदारी।
पक्षपात
(सं.) [सं-पु.] 1. राग या संबंध आदि के कारण अच्छे-बुरे का विचार त्याग कर किसी पक्ष के प्रति होने वाली अनुकूल प्रवृत्ति 2. स्वार्थ या लोभ आदि के कारण किसी की
तरफ़ होने वाला झुकाव; तरफ़दारी; हिमायत 3. भेदभाव; धाँधली 4. {व्यं-अ.} अनीति; अन्याय।
पक्षपातपूर्ण
(सं.) [वि.] 1. पक्षपात किया हुआ; पक्षपात का सूचक 2. सिफ़ारिशी 3. {व्यं-अ.} न्यायहीन; भेदभावपूर्ण।
पक्षपाती
(सं.) [वि.] 1. पक्षपात करने वाला; भेदभाव करने वाला; पक्षधर 2. तरफ़दार; सहायक 3. अन्यायी; कुटिल; बेईमान 4. भेदभावपूर्ण। [सं-पु.] औचित्य या न्याय का विचार
छोड़कर जो व्यक्ति किसी एक पक्ष का समर्थन करे; पक्ष लेने वाला व्यक्ति।
पक्ष विपक्ष
(सं.) [सं-पु.] 1. वादी तथा प्रतिवादी 2. संसदीय प्रणाली में सत्ताधारी दल तथा उसका विरोधी दल।
पक्षसमर्थक
(सं.) [वि.] 1. किसी विषय या विचार के अनुकूल प्रवृत्ति रखने वाला 2. सत्ता की तरफ़दारी करने वाला; हिमायती।
पक्षहीन
(सं.) [वि.] 1. जो किसी पक्ष का न हो; निष्पक्ष 2. गुटनिरपेक्ष 3. तटस्थ।
पक्षाघात
(सं.) [सं-पु.] 1. शरीर के बाईं या दाईं ओर के हिस्से को निष्क्रिय कर देने वाला एक गंभीर रोग; अंगघात; (परैलसिस) 2. लकवा; फ़ालिज।
पक्षावलंबी
(सं.) [सं-पु.] जो किसी पक्ष की तरफ़ हो; पक्षपाती; पक्षधर।
पक्षावसर
(सं.) [सं-पु.] 1. पूर्णिमा 2. अमावस्या।
पक्षाहार
(सं.) [सं-पु.] 1. पक्ष में केवल एक बार भोजन करना 2. किसी पक्ष से संबंधित नियम या व्रत।
पक्षिणी
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. मादा चिड़िया या पक्षी 2. दो दिन और एक रात का समय 3. पूर्णिमा तिथि।
पक्षी
(सं.) [सं-पु.] 1. पंक्षी; चिड़िया; खग; विहग 2. खेचर; नभचर। [वि.] 1. पंख या पर से युक्त; पंखवाला 2. पक्षपात करने वाला; पक्षपाती 3. किसी का पक्ष लेने या
ग्रहण करने वाला; तरफ़दार।
पक्षीय
(सं.) [वि.] 1. किसी पक्ष से संबंधित 2. (मासांत में) पक्ष का, जैसे- एकपक्षीय, बहुपक्षीय 3. पक्षधर 4. पार्श्वीय।
पक्षीराज
(सं.) [सं-पु.] पक्षियों का राजा अर्थात गरुड़।
पक्षीविज्ञान
(सं.) [सं-पु.] जीवविज्ञान की वह शाखा जिसके अंतर्गत पक्षियों की बाह्य और आंतरिक रचना, वर्गीकरण एवं विकास तथा मानव के लिए प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष उपयोगिता
इत्यादि का विवेचन होता है; (ऑर्निथोलॉजी)।
पक्षीविहार
(सं.) [सं-पु.] 1. वह प्राकृतिक स्थल जो पक्षियों के रहने के अनुकूल हो एवं उसे संरक्षित किया गया हो; (बर्ड सैंक्चुअरी) 2. पक्षियों के लिए संरक्षित उद्यान।
पक्ष्म
(सं.) [सं-पु.] 1. आँख की पलक; बरौनी, भौंह 2. किसी पुष्प का केसर 3. पुष्प की पंखुड़ी 4. पंख; पर 5. बाल।
पख़
(फ़ा.) [सं-स्त्री.] 1. ऐसी शर्त जिससे किसी काम में बाधा या अड़चन पैदा हो; अड़ंगा; प्रतिबंध; रोक 2. झंझट; झगड़ा; विवाद फ़साद 3. दोष; ऐब।
पखवाड़ा
(सं.) [सं-पु.] 1. महीने का आधा भाग; पंद्रह दिन का समय; अर्धमास; (फोर्टनाइट) 2. चंद्रमास का शुक्ल या कृष्ण पक्ष।
पखारना
(सं.) [क्रि-स.] 1. पैर आदि को पानी से धोना 2. किसी स्थान को धोकर साफ़ करना 3. धूल, मैल आदि गंदगी छुड़ाना।
पखाल
[सं-स्त्री.] 1. पानी भरने की मशक 2. लुहार की धौंकनी 3. मुँह धोने का बरतन 4. चिलमची।
पखाली
[सं-पु.] पानी भरने का काम करने वाला व्यक्ति; भिश्ती।
पखावज
(सं.) [सं-स्त्री.] मृदंग जैसा किंतु उससे कुछ छोटे आकार का एक वाद्य यंत्र।
पखावजी
[सं-पु.] पखावज अथवा मृदंग बजाने वाला व्यक्ति; ढोलकिया।
पखिया
[सं-पु.] 1. व्यर्थ का दोष निकालने वाला 2. व्यर्थ का झगड़ा-फ़साद खड़ा करने वाला; झगड़ालू; फ़सादी 3. वितंडावादी। [वि.] बेकार का; फ़िज़ूल।
पखुरा
[सं-पु.] मानव शरीर में कंधे और बाँह के जोड़ के पास का भाग; भुजमूल के पास का भाग।
पखेरू
[सं-पु.] पक्षी; चिड़िया।
पग
(सं.) [सं-पु.] 1. पैर; पाँव; चरण 2. डग; कदम।
पगडंडी
[सं-स्त्री.] 1. वह सँकरा मार्ग जो पैदल आने-जाने से जंगल, बगीचे आदि में बन जाता है; टेढ़ा-मेढ़ा रास्ता 2. खेत या मैदान आदि में बना हुआ छोटा रास्ता 3. कच्ची
राह; डगर; बाट; लीक।
पगड़ी
[सं-स्त्री.] 1. सिर पर लपेटकर बाँधा जाने वाला एक लंबा कपड़ा; साफ़ा; मुरेठा; मुँडासा; पाग 2. दुकान आदि किराए पर देने के पूर्व भावी किराएदार से नज़राने के रूप
में ली जाने वाली रकम 3. किसी व्यक्ति के देहांत के बाद उत्तराधिकार घोषित करने की रस्म 4. {ला-अ.} मध्यकालीन विचार से प्रतिष्ठा; मान-मर्यादा।
पगना
(सं.) [क्रि-अ.] 1. किसी वस्तु या पदार्थ का किसी गाढ़े तरल पदार्थ या रस से ओत-प्रोत होना; सराबोर होना 2. मिठाई आदि का चाशनी में डूबना 3. निमग्न होना 4.
लिप्त होना 5. {ला-अ.} किसी के प्रेम में डूबना।
पग-पग
(सं.) [क्रि.वि.] 1. थोड़ी-थोड़ी दूरी या देर 2. कदम-कदम।
पगरा
[सं-पु.] डग; कदम; पग।
पगला
[वि.] 1. नासमझ 2. पागल।
पगली
[सं-स्त्री.] 1. वह स्त्री जिसका मानसिक संतुलन ठीक न हो 2. जेल में किसी प्रकार का ख़तरा उत्पन्न होने पर बजाई जाने वाली घंटी; खतरे की घंटी; (अलार्म)।
पगहा
(सं.) [सं-पु.] पशुओं के गले में बाँधी जाने वाली वह रस्सी जिससे उन्हें खूँटे से बाँधा जाता है; पघा।
पगाना
[क्रि-स.] किसी खाद्य वस्तु को चाशनी में डुबोकर रखना।
पगार1
[सं-पु.] 1. पैरों से कुचलकर तैयार किया हुआ गारा 2. कीचड़।
पगार2
(सं.) [सं-पु.] 1. चहारदीवारी; परकोटा 2. दीवार; घेरा।
पगार3
(फ़ा.) [सं-पु.] वह नाला या नदी जिसे पैदल पार किया जा सके।
पगार4
(तु.) [सं-स्त्री.] वेतन; तनख़्वाह।
पगिया
[सं-स्त्री.] 1. पगड़ी 2. साफ़ा।
पगुराना
[क्रि-अ.] 1. मुँह चलाना 2. चौपायों का जुगाली या पागुर करना। [क्रि-स.] {ला-अ.} हड़प जाना; पचा जाना।
पगोडा
(ब.) [सं-पु.] 1. बौद्ध धर्मावलंबियों का उपासना स्थल 2. महात्मा बुद्ध का मंदिर; बौद्ध मंदिर।
पग्गड़
[सं-पु.] सिर पर लपेटकर बाँधी जाने वाली बहुत बड़ी और भारी पगड़ी।
पघा
[सं-पु.] गाय, भैंस आदि के गले में बाँधी जाने वाली रस्सी; पगहा।
पचकना
[क्रि-अ.] दे. पिचकना।
पचगुना
[वि.] जिसमें कोई राशि या माप पाँच बार सम्मिलित किया गया हो; पाँचगुना।
पचड़ा
[सं-पु.] 1. व्यर्थ का बखेड़ा, झंझट या प्रपंच 2. लावनी की तरह का एक प्रकार का लोकगीत 3. वह गीत जो ओझा लोगों द्वारा देवी के सामने गाया जाता है।
पचन
(सं.) [सं-पु.] पचने की क्रिया या भाव।
पचना
(सं.) [क्रि-अ.] 1. खाए हुए भोज्य पदार्थ का आमाशय में पहुँचकर जठराग्नि की सहायता से गल कर तरल रूप में परिवर्तित हो जाना; हज़म होना 2. किसी दूसरे का धन इस
प्रकार भोगा जाना या अधिकार में करना कि उसके मूल स्वामी को उसका कोई भी अंश प्राप्त न हो और उसका दुष्परिणाम भी न भोगना पड़े 3. एक पदार्थ का दूसरे पदार्थ में
पूर्ण रूप से लीन होना; खपना 4. किसी बात का किसी व्यक्ति के मन में इस प्रकार छिपा रहना कि उसका औरों को पता न चले 5. अधिक परिश्रम से क्षीण होना 6. परेशान
होना।
पचनाग्नि
(सं.) [सं-स्त्री.] पेट की आग जिससे खाया हुआ पदार्थ पचता है; जठराग्नि।
पचनीय
(सं.) [वि.] 1. जो पच या पचाया जा सकता हो 2. पकाने योग्य 3. पचने योग्य।
पचपच
[सं-स्त्री.] 1. 'पच-पच' शब्द करने या होने की क्रिया या भाव 2. बार-बार पच शब्द उत्पन्न करना 3. कीच।
पचपन
(सं.) [वि.] संख्या '55' का सूचक।
पचमढ़ी
[सं-पु.] 1. मध्यप्रदेश के होशंगाबाद जिले में स्थित एक पर्वतीय पर्यटन स्थल 2. सतपुड़ा श्रेणियों के बीच स्थित होने और अपने सुंदर स्थलों के कारण इसे सतपुड़ा
की रानी भी कहा जाता है।
पचमेल
[वि.] दे. पँचमेल।
पचरंग
[सं-पु.] पाँच रंग की बुकनी या चूर्ण जिसका प्रयोग चौक पूरने में होता है।
पचहत्तर
[वि.] संख्या '75' का सूचक।
पचहरा
[वि.] 1. पाँच तहों या परतों वाला 2. पाँच बार का 3. पाँच तरह का 4. पँचगुणा।
पचाना
(सं.) [क्रि-स.] 1. खाई हुई वस्तु को पक्वाशय की अग्नि से रस में परिणत करना 2. किसी बात या तथ्य को छुपा ले जाना।
पचास
(सं.) [सं-पु.] संख्या '50' का सूचक।
पचासा
[सं-पु.] 1. पचास सजातीय वस्तुओं का समूह 2. पचास वर्षों का समूह 3. पचास रुपए।
पचित
[वि.] 1. पचा हुआ 2. घुला-मिला हुआ।
पचीसी
[सं-स्त्री.] 1. पच्चीस सजातीय वस्तुओं का समूह 2. गणना का वह प्रकार जिसमें पच्चीस वस्तुओं की एक इकाई मानी जाती है 3. किसी के जीवन के आरंभिक पच्चीस वर्ष 4.
एक तरह की द्यूतक्रीड़ा 5. द्यूतक्रीड़ा की बिसात।
पचेलिम
(सं.) [सं-पु.] 1. सूर्य 2. अग्नि। [वि.] सुगमतापूर्वक और शीघ्रता से पचने वाला।
पचेलुक
(सं.) [सं-पु.] रसोइया; जो भोजन बनाता या पकाता है
पचौनी
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. पचने या पचाने की क्रिया या भाव 2. आमाशय; अँतड़ी; आँत; मेदा।
पच्चड़
[सं-पु.] दे. पच्चर।
पच्चर
(सं.) [सं-पु.] 1. बाँस या लकड़ी का वह छोटा एवं पतला टुकड़ा जो लकड़ी की बनी हुई चीज़ों में संधि की दरार भरने के लिए ठोंका जाता है 2. {ला-अ.} व्यर्थ की बाधा;
अड़चन; रुकावट।
पच्ची
(सं.) [सं-स्त्री.] धातुओं, पत्थरों आदि पर नगीने आदि के छोटे-छोटे टुकड़े जड़ने की वह क्रिया या प्रकार, जिसमें जड़ी जाने वाली चीज़ इस प्रकार जमाकर बैठाई जाती है,
कि उसका ऊपरी तल उभरा हुआ नहीं रह जाता, जैसे- सोने के हार में हीरों की पच्ची। [परप्रत्य.] एक प्रकार का प्रत्यय जिसका अर्थ पचना, पचाना या खपाना होता है,
जैसे- माथापच्ची।
पच्चीकारी
[सं-स्त्री.] 1. पच्ची करके जड़ाई करने की क्रिया या भाव 2. पच्ची करके तैयार किया गया काम।
पच्चीस
[सं-पु.] संख्या '25' का सूचक।
पच्छिम
[सं-पु.] दे. पश्चिम।
पछताना
[क्रि-अ.] 1. कोई अनुचित कार्य करके बाद में उसके लिए दुखी होना 2. अफ़सोस या पश्चाताप करना।
पछतावा
[सं-पु.] 1. पछताने की क्रिया या भाव 2. पश्चाताप; अफ़सोस 3. अनुचित कार्य करने के बाद होने वाली आत्मग्लानि।
पछना
[सं-पु.] 1. पाछने का औज़ार 2. फसद। [क्रि-अ.] पाछा अर्थात छुरे से हलका चीरा लगाया जाना।
पछवाँ
[सं-स्त्री.] 1. पश्चिम की ओर से आने वाली हवा; पश्चिमी हवा 2. अँगिया का वह भाग जो पीछे की ओर होता है। [वि.] पश्चिमीय; पश्चिम का।
पछाँह
(सं.) [सं-पु.] 1. किसी स्थान विशेष के पश्चिम की ओर स्थित प्रदेश या क्षेत्र 2. पश्चिम दिशा।
पछाँही
(सं.) [वि.] 1. पछाँह से संबंधित 2. पछाँह (पश्चिम) में रहने वाला।
पछाड़
[सं-पु.] कुश्ती का एक दाँव। [सं-स्त्री.] 1. पछाड़ने की क्रिया या भाव 2. पछाड़े जाने की अवस्था या भाव 3. किसी शोक के कारण बेसुध होकर ज़मीन पर गिर पड़ना;
मूर्छित होना।
पछाड़ना1
[क्रि-स.] 1. किसी प्रतियोगिता में प्रतिद्वंद्वी को पराजित करना 2. कुश्ती प्रतियोगिता में विपक्षी को चित करना।
पछाड़ना2
(सं.) [सं-पु.] कपड़ा धोकर साफ़ करने के लिए ज़मीन पर ज़ोर-ज़ोर से पटकना।
पछियाव
(सं.) [सं-स्त्री.] पश्चिम दिशा की ओर से आने वाली हवा; पश्चिमी हवा।
पछुआ
[सं-स्त्री.] पश्चिम दिशा से चलने वाली हवा; पछवाँ। [सं-पु.] कड़े जैसा एक आभूषण जिसे पैरों में पहना जाता है।
पछेली
[सं-स्त्री.] हाथ में पहना जाने वाला स्त्रियों का एक गहना।
पछोड़न
[सं-स्त्री.] अनाज आदि को पछोड़ने या फटकने के बाद उससे निकला कूड़ा-करकट।
पछोड़ना
[क्रि-स.] अनाज आदि को फटककर साफ़ करना; फटकना।
पज़ाबा
(फ़ा.) [सं-पु.] ईंट पकाने की भट्ठी।
पजारना
[क्रि-स.] जलाना।
पजूसण
[सं-पु.] जैनों का एक व्रत; पर्यूषण।
पट
(सं.) [सं-पु.] 1. परदा; ओट; आवरण 2. कोई आड़ करने वाली चीज़ या कपड़ा; पल्ला 3. पहनने के कपड़े, वस्त्र या पोशाक 4. किवाड़ का पल्ला 5. पालकी का दरवाज़ा 6. किसी
वस्तु की चपटी सतह 7. कुश्ती का पेंच 8. सिंहासन 9. जगन्नाथ, बदरीनाथ आदि का चित्र 10. जलबूँद के गिरने की ध्वनि।
पटइन
[सं-स्त्री.] गहने गूँथने वाली पटवा जाति की स्त्री।
पटकथा
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. मुख्य कथा 2. सिनेमा आदि में प्रयुक्त कथा एवं संवाद; (स्क्रीनप्ले)।
पटकना
(सं.) [क्रि-स.] 1. निर्दयता के साथ ज़मीन पर फेंकना या गिराना 2. कुश्ती में प्रतिद्वंद्वी को ज़मीन पर पछाड़ना या दे मारना 3. हाथ में ली हुई वस्तु को ज़मीन आदि
पर ज़ोर से गिराना। [क्रि-अ.] 1. ऊपरी तल का दब कर कुछ कम हो जाना; पचकना 2. पट की आवाज़ करते हुए दरकना या फूटना 3. सूखकर सिकुड़ना।
पटकनिया
[सं-स्त्री.] पटकने का ढंग, भाव अथवा युक्ति।
पटकनी
[सं-स्त्री.] 1. पटकने या पटके जाने की क्रिया, भाव या अवस्था 2. पछाड़ खाकर गिरने की क्रिया या भाव; पटकान।
पटका
[सं-पु.] कमर में लपेटकर बाँधने वाला कपड़ा; कमरबंद।
पटकान
[सं-स्त्री.] 1. पटकने या पटके जाने की क्रिया या भाव 2. गिराने की क्रिया या भाव।
पटचित्र
(सं.) [सं-पु.] कपड़े पर बना हुआ चित्र जिसे लपेटकर रखा जा सके।
पटतारना
[क्रि-स.] 1. असमान धरातल को समतल या चौरस करना 2. भाला, तलवार आदि को इस प्रकार पकड़ना कि उससे वार किया जा सके।
पटना
[सं-पु.] प्राचीन भारत की एक प्रसिद्ध नगरी पाटलिपुत्र का वर्तमान नाम जो बिहार राज्य की राजधानी है। [क्रि-अ.] 1. पाटा जाना 2. अपेक्षाकृत नीची भूमि या गड्ढे
आदि को भरकर समतल किया जाना 3. खेतों आदि का पानी से सींचा जाना 4. रुचि, स्वभाव आदि में समानता के कारण परस्पर सौहार्दपूर्ण संबंध स्थापित होना 5. ऋण आदि अदा
किया जाना 6. व्यापारिक मुद्दों पर सहमति होना।
पटनी
[सं-स्त्री.] 1. वह कमरा जिसके ऊपर और भी कमरा हो 2. चीज़ें रखने के लिए दीवार में लगा हुआ पट्टा 3. ज़मीन का स्थायी बंदोवस्त करने की रीति।
पटपट
[सं-स्त्री.] पट शब्द का निरंतर उत्पन्न होना। [क्रि.वि.] 'पट-पट' शब्द करते हुए।
पटपटाना
[क्रि-स.] 1. लगातार 'पट-पट' की आवाज़ करना 2. 'पट-पट' की ध्वनि के साथ किसी चीज़ को बजाना या पीटना। [क्रि-अ.] भूख या गरमी से तड़पना।
पट-बंधक
(सं.) [सं-पु.] रेहन अथवा बंधक का एक प्रकार।
पटभाक्ष
(सं.) [सं-पु.] प्राचीन काल में प्रयुक्त एक प्रकार का प्रकाशयंत्र।
पटमंजरी
(सं.) [सं-पु.] वसंत ऋतु में आधी रात के समय गाई जाने वाली एक रागिनी।
पटरा
(सं.) [सं-पु.] 1. लकड़ी का ऐसा समतल टुकड़ा जिसकी लंबाई अधिक किंतु चौड़ाई और मोटाई कम हो; तख़्ता; पल्ला 2. काठ का पीढ़ा; पाटा 3. धोबी का पाट 4. हेंगा।
पटरानी
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. राजा की प्रथम ब्याहता पत्नी; पट्टमहिषी 2. वह रानी जिसको राजा के साथ सिंहासन पर बैठने का अधिकार होता था।
पटरी
[सं-स्त्री.] 1. लोहे के मोटे और समानांतर गार्डर जिन पर रेलगाड़ी चलती है; (रेलवेलाइन) 2. लकड़ी से बना एक विशेष प्रकार का पट्टा, जिसपर खड़िया या चॉक से लिखा
जाता है; तख़्ती; पटिया 3. छोटा पटरा 4. एक प्रकार की चूड़ी 5. साड़ी, लहँगे आदि की कोर पर टाँकने का सोने या चाँदी के तारों से बना फ़ीता 6. नहर, सड़क आदि के
किनारे का रास्ता 7. सीधी रेखा खींचने में प्रयोग की जाने वाली लकड़ी या प्लास्टिक पट्टी; (स्केल)।
पटल
(सं.) [सं-पु.] 1. छत 2. आड़ करने का आवरण; परदा 3. तह; परत 4. आँख का एक रोग 5. छप्पर 6. पटर; तख़्ता 7. पक्ष; पहल 8. पंखुड़ी 9. पट्ट; (बोर्ड)।
पटलन
(सं.) [सं-पु.] पटल चढ़ाने या जमाने का कार्य।
पटवा
[सं-पु.] 1. एक जाति जो गहने गूँथने का काम करती है; गुहेरा 2. पटसन; पाट।
पटवाना
[क्रि-स.] 1. पाटने का काम किसी अन्य से कराना या इस हेतु किसी को प्रवृत्त करना 2. गड्ढा आदि भरवाकर समतल कराना 3. ऋण आदि अदा करवाना 4. व्यापारिक सौदा तय
कराना।
पटवारी
[सं-पु.] ज़मीन आदि का पट्टा लिखने वाला सरकारी अधिकारी; लेखपाल।
पटवास
(सं.) [सं-पु.] 1. तंबू; खेमा 2. स्त्रियों का लहँगा।
पट विज्ञापन
(सं.) [सं-पु.] पटल रूप में किसी सार्वजनिक स्थान पर लटकाया या गाड़ा गया विज्ञापन।
पटसन
(सं.) [सं-पु.] 1. एक प्रसिद्ध पौधा जिसके डंठल में लगे हुए रेशे को बटकर रस्सी, बोरा आदि तैयार किया जाता है तथा उसके सूखे तने से दियासलाई की सींक तैयार की
जाती है 2. सनई के रेशे; जूट।
पटह
(सं.) [सं-पु.] 1. डुगडुगी 2. डंका; नगाड़ा 3. ढोल 4. किसी काम में हाथ डालना या लगाना 5. क्षति या हानि पहुँचाना 6. हिंसा।
पटहार
(सं.) [सं-पु.] 1. रेशम या सूत में मनके आदि गूँथने वाला व्यक्ति; गहना गूँथने वाला व्यक्ति 2. गहना गूँथने का पेशा करने वाली एक जाति 3. एक तरह का बैल 4. पटवा।
पटहारिन
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. रेशम या सूत में मनके आदि गूँथने वाली स्त्री; गहना गूँथने का काम करने वाली स्त्री 2. पटहार की स्त्री।
पटा
(सं.) [सं-पु.] 1. पटरा; पीढ़ा 2. दुपट्टा 3. कपड़ा; वस्त्र 4. लोहे की पट्टी जिससे लोग तलवारबाज़ी सीखते हैं।
पटाई
[सं-स्त्री.] 1. पाटने या पटाने की क्रिया या भाव 2. पाटने या पटाने की मज़दूरी।
पटाक
[सं-पु.] 1. पट की आवाज़ 2. किसी भारी वस्तु के गिरने अथवा किसी वस्तु पर कठोर आघात करने से उत्पन्न शब्द।
पटाका
[सं-पु.] 1. छोटी आतिशबाज़ी 2. पट या पटाक की ध्वनि।
पटाक्षेप
(सं.) [सं-पु.] 1. परदा गिरना या गिराना 2. रंगमंच पर किए जा रहे नाटक का एक अंक समाप्त होने पर परदा गिरना 3. {ला-अ.} किसी घटना की समाप्ति की क्रिया या भाव।
पटाखा
[सं-पु.] 1. पटाक से होने वाला ज़ोर का शब्द 2. एक तरह की आतिशबाज़ी जिससे तीव्र ध्वनि होती है 3. थप्पड़ और तमाचा।
पटान
[सं-स्त्री.] 1. ऋण या कर्ज़ चुकाने की क्रिया या भाव 2. पाटने की क्रिया या भाव।
पटाना
[क्रि-स.] 1. पाटने की क्रिया में किसी को प्रवृत्त करना 2. गड्ढा आदि भरवाकर समतल कराना 3. खेत में सिंचाई कराना 4. ऋण या कर्ज़ चुकाना 5. व्यापार संबंधी सहमति
बनाना; सौदा पटाना 6. मोलभाव करके सौदा तय करना 7. अपने व्यवहार तथा स्वभाव से किसी को वशीभूत करना 8. सहमत करना।
पटापट
[सं-स्त्री.] निरंतर होने वाली पटपट की ध्वनि या शब्द। [अव्य.] 1. निरंतर 'पट-पट' शब्द करते हुए 2. बहुत तेज़ी या शीघ्रता से।
पटापटी
[सं-स्त्री.] 1. वह वस्तु जिसपर रंग-बिरंगे बेल-बूटे, फूल-पत्तियाँ आदि बनी हों 2. रंगबिरंगी वस्तु।
पटाफेर
[सं-पु.] विवाह की एक रस्म जिसमें वर-वधू परस्पर आसन बदलते हैं।
पटाव
[सं-पु.] 1. पाटने की क्रिया या भाव 2. पाटकर समतल या ऊँचा किया हुआ स्थल।
पटिया
[सं-स्त्री.] पट्टी।
पटी
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. कपड़े का लंबा एवं पतला टुकड़ा; पट्टी 2. साफ़ा; पगड़ी 3. कमरबंद; पटका 4. परदा; आवरण 5. रंगमंच का परदा; यवनिका।
पटीमा
[सं-पु.] छीपियों का वह तख़्ता जिसपर वे कपड़े को फैलाकर छापते हैं।
पटीर
(सं.) [सं-पु.] 1. कत्था; खैर 2. एक प्रकार का चंदन 3. कत्था या खैर का वृक्ष; खदिर वृक्ष 4. गेंद 5. बरगद का पेड़; वटवृक्ष 6. मूली 7. क्यारी 8. क्षेत्र; मैदान
9. जुकाम; प्रतिश्याय 10. उदर; पेट 11. चलनी 12. मेघ; बादल।
पटीलना
[क्रि-स.] 1. किसी को समझा-बुझाकर या बहला-फुसलाकर अपने मत के अनुकूल करना 2. छलना; ठगना 3. पराजित करना; हराना 4. कोई काम पूर्ण करना 5. कमाना 6. मारना; पीटना।
पटु
(सं.) [वि.] 1. कुशल; दक्ष; निपुण; प्रवीण; चतुर; होशियार 2. तीक्ष्ण; तेज़। [सं-पु.] 1. नमक 2. पाँगा या पांशु नमक; समुद्री नमक 3. परवल 4. करेला 5. जीरा 6.
चिरमिटा नामक लता।
पटुआ
(सं.) [सं-पु.] 1. जूट; पटसन 2. वह डंडा जिसके सिरे पर डोरी बँधी रहती है और जिसे पकड़कर नाव खींचते हैं।
पटुता
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. पटु होने की अवस्था या भाव 2. दक्षता; कुशलता; निपुणता; प्रवीणता; होशियारी।
पटुवा
(सं.) [सं-पु.] दे. पटुआ।
पटेबाज़
[सं-पु.] पटा खेलने वाला; पटैत। [वि.] धूर्त और व्यभिचारी।
पटेल
(सं.) [सं-पु.] 1. गाँव का मुखिया या प्रधान 2. प्राचीन काल में गाँव का एक कर्मचारी; नंबरदार 3. गुजराती कुर्मियों में एक कुलनाम या सरनेम।
पटोरी
[सं-स्त्री.] 1. रेशम की साड़ी या धोती 2. रेशमी चादर।
पटोल
(सं.) [सं-पु.] 1. एक प्रकार का रेशमी वस्त्र 2. परवल।
पटोलक
(सं.) [सं-पु.] सीपी; शुक्ति।
पटोलरी
[सं-पु.] पटोल।
पटोला
[सं-पु.] 1. कपड़े का छोटा टुकड़ा 2. गुजरात में बनने वाला एक प्रकार का रेशमी कपड़ा; परवल।
पटौनी
[सं-स्त्री.] 1. पाटने या पटाने की क्रिया या भाव 2. पाटने या पटाने की मज़दूरी।
पट्ट
(सं.) [सं-पु.] 1. किसी धातु या लकड़ी का समतल छोटा टुकड़ा; तख़्ती; पटिया; (प्लेट) 2. पीढ़ा; पाटा 3. राजाज्ञा, दानपत्र आदि खुदवाने के लिए प्रयुक्त ताँबा आदि
की पट्टी 4. घाव आदि पर बाँधने के लिए कपड़े की पट्टी 5. पत्थर का मध्यम आकार का समतल टुकड़ा; सिल 6. पगड़ी 7. दुपट्टा 8. शहर; नगर 9. चौराहा 10. राजसिंहासन 11.
पटसन; पाट 12. रेशम।
पट्टक
(सं.) [सं-पु.] 1. लेखन कार्य में प्रयुक्त पट्टी या तख़्ती 2. राजकीय आदेश या दान-लेख आदि खुदवाने के लिए ताँबा आदि धातुओं का पत्तर 3. दस्तावेज़ 4. घाव या सूजन
आदि पर बाँधने की पट्टी 5. पगड़ी या साफ़ा बनाने में प्रयुक्त रेशमी कपड़ा।
पट्टन
(सं.) [सं-पु.] नगर; शहर।
पट्टमहिषी
(सं.) [सं-स्त्री.] पटरानी; राजा की पहली रानी।
पट्टला
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. आधुनिक जनपद जैसी एक प्राचीन प्रशासनिक इकाई 2. उक्त इकाई में निवास करने वाली जनता या जनसमुदाय।
पट्टा
[सं-पु.] 1. किसी ज़मीन के उपयोग का अधिकारपत्र; इस्तमरारी 2. कुत्ते आदि के गले में बाँधी जाने वाली चमौटी 3. लकड़ी का बना बैठने का उपकरण; पीढ़ा 4. पुरुषों के
सिर के पीछे की ओर के बराबर कटे बाल 5. चमड़े का कमरबंद; (बेल्ट)।
पट्टाधारी
(सं.) [वि.] वह व्यक्ति जिसने कुछ शर्तों के अधीन कोई भू-खंड या अन्य संपत्ति भोग्यार्थ प्राप्त की हो।
पट्टानामा
(सं.) [सं-पु.] 1. किसी स्थावर संपत्ति के उपभोग एवं प्रशासनिक व्यवस्था की देख-रेख से संबंधित सशर्त अधिकारपत्र; सनद 2. ज़मींदार द्वारा किसान को एक निश्चित
अवधि तक ज़मीन जोतने-बोने के लिए दिया जाने वाला नियमों एवं शर्तों से संबंधित लेख; दस्तावेज़।
पट्टार
(सं.) [सं-पु.] एक प्राचीन देश।
पट्टिका
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. पटिया; तख़्ती 2. छोटे आकार का चित्र-पट या ताम्रपट 3. घाव आदि पर बाँधने की पट्टी 4. दस्तावेज़; पट्टा 5. रेशम का पतला एवं लंबा टुकड़ा 6.
पठानी लोध।
पट्टिकाख्य
(सं.) [सं-पु.] पठानी लोध; रक्त लोध्र।
पट्टिल
(सं.) [सं-पु.] पलंग।
पट्टिलोध्र
(सं.) [सं-पु.] पठानी लोध।
पट्टिश
(सं.) [सं-पु.] दोनों तरफ़ धार वाला एक प्राचीन अस्त्र; पटा।
पट्टी
[सं-स्त्री.] 1. तख़्त और पलंग के किनारे की ओर लगने वाली लकड़ी की तख़्ती 2. चोट पर बाँधा जाने वाला जालीदार कपड़ा 3. बच्चों के लिखने की पाटी; पटिया 4. उपदेश;
शिक्षा 5. बुरे इरादे से दी जाने वाली सलाह 6. किसी संपत्ति या उससे होने वाली आय का अंश; हिस्सा; पत्ती 7. पाठ; सबक 8. ज़मीन पर बिछाया जाने वाला टाट का लंबा
सँकरा कपड़ा 9. नाव के बीच का तख़्ता 10. तिल एवं गुड़ से बनी एक प्रकार की मिठाई 11. कमरबंध 12. कुछ दूर तक जाने वाली कम चौड़ी और अधिक लंबी वस्तु या भूभाग।
पट्टीदार
[सं-पु.] 1. संपत्ति या ज़मीन में हिस्सेदार व्यक्ति 2. बराबर का हकदार।
पट्टीदारी
[सं-स्त्री.] पट्टीदारों का आपसी या पारस्परिक संबंध।
पट्टू
[सं-पु.] 1. एक प्रकार का ऊनी कपड़ा जो कम चौड़ा और लंबी पट्टी के रूप में बुना होता है 2. एक प्रकार का चारख़ानेदार कपड़ा।
पट्टेदार
[सं-पु.] 1. वह व्यक्ति जिसने पट्टा लिखकर कोई ज़मीन ली हो 2. संपत्ति आदि में समान हिस्सा रखने वाला व्यक्ति।
पट्ठा
[सं-पु.] 1. जवान; युवा; तरुण 2. चढ़ती जवानी वाला व्यक्ति 3. कुश्ती लड़ने वाला पहलवान; कुश्तीबाज़ 4. एक तरह का चौड़ा गोटा 5. लंबा, बड़ा तथा दलदार मोटा पत्ता 6.
मांस-पेशियों को हड्डियों के साथ बाँधे रखने वाली तंतु या नसें; स्नायु।
पठन
(सं.) [सं-पु.] पढ़ने की क्रिया या भाव।
पठन-पाठन
(सं.) [सं-पु.] पढ़ना और पढ़ाना; अध्ययन और अध्यापन।
पठन-सामग्री
(सं.) [सं-स्त्री.] पढ़ने के लिए प्रयोग की जाने वाली सामग्री; पाठ्य पुस्तक।
पठनीय
(सं.) [वि.] 1. जो पढ़ने के योग्य हो 2. जिसे सरलता से पढ़ा जा सके।
पठमंजरी
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. पटमंजरी 2. भारतीय शास्त्रीय संगीत की एक रागिनी।
पठान
(फ़ा.) [सं-पु.] 1. मुसलमानों की एक उपजाति और उपनाम 2. पश्तो भाषा बोलने वाला व्यक्ति 3. अफ़गानिस्तान-पख़्तूनिश्तान प्रदेश का निवासी।
पठानी
(फ़ा.) [सं-स्त्री.] 1. पठान की या पठान जाति की स्त्री 2. पठान का स्वभाव; पठानपन। [वि.] 1. पठान संबंधी 2. पठान का।
पठार
(सं.) [सं-पु.] 1. दूर तक फैली हुई लंबी-चौंड़ी ऊँची ज़मीन 2. एक पहाड़ी जाति।
पठावन
[सं-पु.] दूत; संदेशवाहक।
पठावनी
[सं-स्त्री.] किसी को कुछ देने या संदेश पहुँचाने हेतु कहीं भेजने की क्रिया या भाव।
पठित
(सं.) [वि.] जिसे पढ़ा जा चुका हो; पढ़ा हुआ।
पठौनी
[सं-स्त्री.] पठावनी।
पड़छत्ती
[सं-स्त्री.] परछत्ती।
पड़ता
[सं-पु.] 1. बिक्री मूल्य में से लागत मूल्य निकालकर होने वाली बचत 2. किसी वस्तु की ख़रीद, लागत, परिवहन आदि पर होने वाला व्यय जिसके आधार पर उसका मूल्य निश्चित
होता है 3. आय-व्यय आदि का औसत या माध्य 4. भूमिकर की दर; लगान की दर।
पड़ताल
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. किसी वस्तु या बात आदि के विषय में भली-भाँति की जाने वाली छान-बीन या निरीक्षण; जाँच 2. पटवारियों या कानूनगो द्वारा भूमि की माप, बोई गई
फ़सल, बोने वाले के नाम आदि से संबंधित की जाने वाली जाँच।
पड़ती
[सं-स्त्री.] कुछ समय के लिए खाली पड़ी उर्वर ज़मीन; न जोती-बोई गई खेती योग्य भूमि; परती।
पड़ना
(सं.) [क्रि-अ.] 1. किसी पात्र या आधान में किसी चीज़ का डाला या पहुँचाया जाना 2. गिरना; पतित होना 3. दुख, कष्ट आदि ऊपर आना 4. एक वस्तु का किसी दूसरी वस्तु पर
ठीक ढंग से फैलाया या बिछाया जाना 5. कहीं अचानक जा पहुँचना 6. किसी विकट स्थिति या कष्टदायक घटना का सामना होना।
पड़पड़ाना
[क्रि-अ.] 1. 'पड़-पड़' शब्द उत्पन्न करना 2. 'पड़-पड़' शब्द होना।
पड़पड़ाहट
[सं-स्त्री.] 'पड़-पड़' शब्द करने या होने की क्रिया अथवा भाव।
पड़पोता
[सं-पु.] दे. परपोता।
पड़वा
[सं-पु.] भैंस का नर बच्चा।
पड़ा
[सं-पु.] भैंस का नर बच्चा; पड़वा।
पड़ाव
[सं-पु.] 1. डेरा; शिविर; अस्थायी ठहरने का स्थान 2. सेना, पथिकों आदि का कुछ समय के लिए रास्ते में कहीं ठहरना; टिकान; ठहराव।
पड़िया
[सं-स्त्री.] भैंस का मादा बच्चा।
पड़िहार
[सं-पु.] राजपूतों में एक कुलनाम या सरनेम; प्रतिहार; परिहार।
पड़ोस
(सं.) [सं-पु.] 1. किसी के निवास स्थान के आस-पास के घर एवं क्षेत्र 2. किसी नगर, गाँव, प्रदेश आदि से सटा या लगा हुआ अथवा समीपवर्ती क्षेत्र 3. प्रतिवेश;
प्रतिवास।
पड़ोसन
(सं.) [सं-स्त्री.] पड़ोस में रहने वाली स्त्री।
पड़ोसिन
(सं.) [सं-स्त्री.] दे. पड़ोसन।
पड़ोसी
(सं.) [सं-पु.] पड़ोस में रहने वाला व्यक्ति; हमसाया; प्रतिवेशी; प्रतिवासी।
पढ़ंत
[सं-स्त्री.] पढ़ाई।
पढ़त
[सं-स्त्री.] पढ़ने की क्रिया या भाव; पढ़ाई।
पढ़ना
(सं.) [क्रि-स.] 1. किसी लिपि के वर्णों के उच्चारण, रूप आदि से परिचित होना 2. लिखे या छपे हुए अक्षरों का क्रम से उच्चारण करना 3. लिखित अथवा मुद्रित चिह्नों,
वर्णों आदि को देखकर उनका आशय या अभिप्राय जानना 4. किसी पाठ का बार-बार उच्चारण करते हुए अभ्यास करना।
पढ़ना-लिखना
[क्रि-स.] 1. पढ़ने और लिखने का कार्य करना 2. शिक्षा प्राप्त करना।
पढ़वाना
(सं.) [क्रि-स.] 1. किसी को पढ़ने में प्रवृत्त करना 2. किसी को पढ़ाने में प्रवृत्त करना; किसी से पढ़ाने की क्रिया कराना।
पढ़वैया
[वि.] 1. पढ़नेवाला 2. पढ़ानेवाला।
पढ़ाई
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. पढ़ने की क्रिया या भाव 2. अध्ययन; पठन 3. विद्योपार्जन; शिक्षा 4. पढ़ने के लिए मिलने वाला धन 5. पढ़ाने का काम 6. पाठन; अध्यापन 7.
पढ़ाने का ढंग या तरीका 8. पढ़ाने के बदले दिया जाने वाला या मिलने वाला धन।
पढ़ाना
(सं.) [क्रि-स.] 1. किसी को पढ़ने में प्रवृत्त करना 2. किसी को शिक्षा देना या शिक्षित करना 3. लिखित या मुद्रित बातों का ज्ञान प्राप्त कराने के उद्देश्य से
किसी को किसी पाठ का वाचन कराना 4. मंत्र, श्लोक आदि का विधिपूर्वक उच्चारण संपन्न कराना 5. तोता, मैना आदि पक्षियों को मनुष्य की तरह किसी शब्द या शब्दसमूह का
उच्चारण करना सिखाना 6. किसी को कोई कला या हुनर सिखाना।
पढ़ालिखा
(सं.) [वि.] 1. शिक्षित 2. जिसे पढ़ना-लिखना आता हो 3. पढ़ने-लिखने में सक्षम।
पढ़ैया
[सं-पु.] पढ़नेवाला; पढ़ाकू।
पण
(सं.) [सं-पु.] 1. पासों से खेला जाने वाला एक खेल; जुआ; द्यूत 2. बाजी; शर्त 3. क्रय-विक्रय की वस्तु 4. किसी वस्तु की कीमत या मूल्य 5. विक्रेता 6.
पारिश्रमिक; मज़दूरी 7. वेतन 8. व्यापार; रोज़गार 9. प्राचीन कालीन तौल की एक नाप 10. प्राचीनकाल में प्रचलित दस या बीस माशे के बराबर का एक ताम्र सिक्का 11.
प्रशंसा; स्तुति 12. प्रतिज्ञा।
पणता
(सं.) [सं-स्त्री.] मूल्य; कीमत; दाम।
पणन
(सं.) [सं-पु.] 1. क्रय-विक्रय की क्रिया या भाव 2. व्यापार आदि करने की क्रिया 3. बाजी या शर्त लगाना 4. प्रतिज्ञा, इकरार या कौल करना।
पणनीय
(सं.) [वि.] 1. जिसका क्रय-विक्रय किया जा सके 2. पणन के योग्य 3. जिससे धन के लोभ से कोई काम कराया जा सके।
पणवानक
(सं.) [सं-पु.] एक प्रसिद्ध बाजा; नगाड़ा।
पणांगना
(सं.) [सं-स्त्री.] वेश्या; रंडी।
पणायित
(सं.) [वि.] 1. वह वस्तु जो ख़रीदी या बेची जा चुकी हो 2. जिसकी स्तुति की गई हो; स्तुत।
पणास्थि
(सं.) [सं-स्त्री.] कौड़ी; कपर्दक।
पणि
(सं.) [सं-पु.] 1. क्रय-विक्रय करने वाला व्यक्ति 2. कंजूस या पापी व्यक्ति। [सं-स्त्री.] 1. बाज़ार; हाट 2. दुकानों की कतार या पंक्ति।
पणित
(सं.) [सं-पु.] 1. बाजी; शर्त 2. अग्रिम राशि; पेशगी; बयाना 3. द्यूत; जुआ। [वि.] 1. जिसका क्रय-विक्रय हो चुका हो 2. जिसके संबंध में या जिसकी बाज़ी लगाई गई हो
3. जिसके विषय में कोई शर्त लगी हो 4. जिसकी स्तुति की गई हो; स्तुत; प्रशंसित।
पणितव्य
(सं.) [वि.] 1. जिसका क्रय-विक्रय किया जा सके 2. जिसका लेन-देन हो सके 3. जिसके साथ लेन-देन या व्यवहार किया जा सके 4. जिसकी प्रशंसा या स्तुति की जा सके।
पणिता
(सं.) [सं-पु.] क्रय-विक्रय करने वाला व्यक्ति; व्यापारी; सौदागर।
पण्य
(सं.) [सं-पु.] 1. वह चीज़ जो खरीदी और बेची जाती हो; माल; सौदा; विक्रेय वस्तु 2. बाज़ार; हाट 3. दुकान 4. व्यापार 5. मूल्य; दाम। [वि.] जिसे ख़रीदा या बेचा जा
सके।
पत
(सं.) [सं-स्त्री.] लाज; आबरू; प्रतिष्ठा; इज़्ज़त।
पतंग
(सं.) [सं-स्त्री.] पतले कागज़ से बनी वह वस्तु जो डोर की सहायता से हवा में उड़ाई जाती है; कनकौआ; गुड्डी; चंग।
पतंगबाज़
[सं-पु.] वह व्यक्ति जिसे पतंग उड़ाने का व्यसन हो; पतंगबाज़ी का शौकीन व्यक्ति।
पतंगबाज़ी
[सं-स्त्री.] 1. पतंग उड़ाने की क्रिया या भाव 2. पतंग उड़ाने का शौक 3. पतंग उड़ाने की कला।
पतंगा
[सं-पु.] 1. उड़ने वाला कीड़ा; पतिंगा 2. चिनगारी 3. दीए का फूल; चिराग का गुल 4. एक प्रकार का कीड़ा जो पौधों की पत्तियों, फलों आदि को खाता तथा नष्ट करता है 5.
कीड़ा; कीट।
पतंगी
(सं.) [सं-पु.] पक्षी; चिड़िया।
पतंचल
(सं.) [सं-पु.] एक गोत्र प्रवर्तक ऋषि।
पतंचिका
(सं.) [सं-स्त्री.] धनुष की डोरी; प्रत्यंचा; चिल्ला।
पतंजलि
(सं.) [सं-पु.] 1. योगदर्शन के प्रवर्तक 2. एक प्रसिद्ध ऋषि जिन्होंने पाणिनीय सूत्रों और कात्यायन कृत उनके वार्तिक पर 'महाभाष्य' नामक बृहद भाष्य का निर्माण
किया था।
पतजिव
(सं.) [सं-पु.] पुत्र-जीव।
पतझड़
[सं-पु.] 1. वह ऋतु जिसमें सभी वृक्षों के पत्ते झड़ जाते हैं और नए पत्ते निकलते हैं (फागुन और चैत माह में); शिशिर ऋतु 2. {ला-अ.} उन्नति के बाद होने वाली
अवनति या ह्रास।
पतझड़ी
[वि.] 1. पतझड़ की-सी स्थिति 2. पतझड़ संबंधी।
पतत्र
(सं.) [सं-पु.] 1. पंख; पर 2. डैना; पंखा 3. वाहन; सवारी।
पतत्रि
(सं.) [सं-पु.] पक्षी; चिड़िया।
पतन
[सं-पु.] 1. ऊपर से नीचे आने या गिरने का भाव या क्रिया 2. 'उत्थान' का विलोम; अधोगति 3. मरण; संहार; नाश 4. किसी राष्ट्र या जाति आदि का ऐसी स्थिति में आना कि
उसकी प्रभुता और महत्ता नष्ट हो जाए 5. पातक; पाप 6. बैठना; डूबना 7. उड़ना 8. किसी ग्रह या नक्षत्र का अक्षांश 9. घटाव।
पतनशील
(सं.) [वि.] 1. जिसका पतन हो रहा हो; पतन की ओर जाने वाला 2. गिरने वाला या गिरता हुआ।
पतनशीलता
(सं.) [सं-स्त्री.] पतनशील होने की स्थिति या भाव।
पतनीय
(सं.) [वि.] 1. पतन के योग्य 2. पतित होने के योग्य 3. पतन की ओर अग्रसर 4. पतित करने या बनाने वाला। [सं-पु.] पतित या च्युत करने वाला पाप।
पतनोन्मुख
(सं.) [वि.] 1. पतन की ओर उन्मुख 2. पतन की ओर जाने वाला 3. पतन की राह पर चलने वाला।
पतयिष्णु
(सं.) [वि.] जिसका पतन हो रहा हो; पतनशील।
पतर
(सं.) [सं-पु.] 1. पत्ता 2. पत्तल।
पतरिंगा
[सं-पु.] लंबी चोंच तथा लंबी पूँछवाला सुनहले हरे रंग का एक पक्षी।
पतरौल
[सं-पु.] 1. राजस्व विभाग का वह कर्मचारी जो कृषकों से जल कर आदि को वसूलकर राजस्व विभाग में जमा करता है; अमीन 2. गश्त लगाने वाला व्यक्ति।
पतला
(सं.) [वि.] 1. जिसका फैलाव या विस्तार कम हो 2. कृश 3. सँकरा 4. बारीक; झीना 5. जो गाढ़ा न हो 6. जिसमें द्रव की अधिकता हो; तरल 7. {ला-अ.} शक्तिहीन; निर्बल;
दुर्बल; कमज़ोर।
पतलापन
(सं.) [सं-पु.] पतला होने की अवस्था या भाव; दुबलापन; कमज़ोरी।
पतलून
(इं.) [सं-स्त्री.] 1. सीधे पायँचों तथा जेबों वाला एक तरह का वस्त्र; (पेंट) 2. अँग्रेज़ी ढंग का एक प्रकार का पाजामा।
पतवार
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. डाँड; नाव खेने का डंडा 2. नाव में पीछे की ओर लगी तिकोनी लकड़ी 3. पार उतारने का साधन। [सं-पु.] खेत में उगी घास-फूस।
पतवास
(सं.) [सं-स्त्री.] पक्षियों का अड्डा; चिक्कस।
पतस
(सं.) [सं-पु.] 1. पतिंगा; शलभ 2. चंद्रमा 3. पक्षी; चिड़िया।
पता
(सं.) [सं-पु.] 1. किसी वस्तु, व्यक्ति या स्थान का ऐसा परिचय जो उसे पाने-ढूँढ़ने या उसके पास तक संदेश पहुँचाने में सहायक हो 2. ठिकाना 3. डाक और रेल से भेजे
जाने वाले समानों के आवरण पर लिखा जाने वाला नाम और रहने की जगह का पूरा विवरण 4. ज्ञात; मालूम 5. खोज; अनुसंधान 6. स्थिति सूचक लक्षण 7. गूढ़ तत्व; रहस्य।
पताका
(सं.) [सं-पु.] 1. झंडा; ध्वजा; फरहरा 2. बाँस आदि का वह डंडा जिसमें ध्वज पहनाया जाता है 3. चिह्न; निशान; प्रतीक 4. सौभाग्य 5. (नाट्यशास्त्र) प्रासंगिक
कथावस्तु के दो भेदों में से एक; किसी नाटक की मूल कथा के साथ चलने वाली दूसरी कथा।
पताकिनी
(सं.) [सं-स्त्री.] सेना; फ़ौज।
पता-ठिकाना
[सं-पु.] किसी व्यक्ति या वस्तु का परिचय और स्थान आदि।
पतापत
(सं.) [वि.] अतिशय पतनयुक्त।
पतावर
[सं-पु.] झड़े हुए सूखे पत्ते।
पति
(सं.) [सं-पु.] 1. वह पुरुष जिससे किसी स्त्री का विवाह हुआ हो; शौहर; खाविंद; भर्ता; कांत; दूल्हा 2. सहचर; जीवनसाथी 3. किसी वस्तु या स्थान का मालिक।
पतिंग
[सं-पु.] दे. पतिंगा।
पतिआना
[क्रि-अ.] दे. पतियाना।
पतिगृह
(सं.) [सं-पु.] पति का घर; स्त्री का ससुराल।
पतित
(सं.) [वि.] 1. गिरा हुआ 2. जिसका नैतिक पतन हो चका हो; आचार भ्रष्ट 3. अधम; नीच; पापी 4. जाति, धर्म, समाज आदि से च्युत 5. युद्ध में पराजित 6. अपवित्र; मलिन
7. नीचे की ओर झुका हुआ; नत।
पतितपावन
(सं.) [वि.] 1. पतित को भी पवित्र करने वाला 2. पतितों का उद्धार करने वाला। [सं-पु.] 1. सगुण ब्रह्म 2. ईश्वर।
पतितावस्था
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. पतित होने की अवस्था या भाव 2. पापी या अधम होने की अवस्था।
पतित्व
(सं.) [सं-पु.] 1. पति होने की अवस्था या भाव 2. स्वामित्व; प्रभुत्व।
पतियाना
(सं.) [क्रि-स.] 1. विश्वास करना 2. विश्वसनीय या सच्चा समझना।
पतिव्रत
(सं.) [सं-पु.] 1. विवाहिता स्त्री का यह संकल्प कि मै सदा पति का साथ दूँगी एवं कभी विश्वासघात नहीं करूँगी 2. पति के प्रति एकनिष्ठ प्रेम; अनुराग; भक्ति।
पतिव्रता
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. पति में पूर्ण निष्ठा, अनन्य श्रद्धा, अनुराग रखने वाली स्त्री 2. सच्चरित्रा; साध्वी।
पतिहंता
(सं.) [वि.] पति की हत्या करने वाली। [सं-स्त्री.] पति को मारने वाली स्त्री।
पतीला
(सं.) [सं-पु.] ताँबे, पीतल या एल्यूमिनियम आदि का गोल आकार का ऊँचे तथा खड़े किनारे वाला एक प्रसिद्ध पात्र।
पतीली
[सं-स्त्री.] दाल, चावल आदि पकाने का धातु से बना एक पात्र या बरतन।
पतोई
[सं-स्त्री.] गन्ने का रस खौलाते समय उसमें से निकलने वाला मैला झाग।
पतोखदी
[सं-स्त्री.] किसी वृक्ष, पौधे या घास के फूल, पत्ते आदि से निर्मित औषधि।
पतोखा
[सं-पु.] 1. पत्ते अथवा पत्तों से बना कटोरे के आकार का पात्र; दोना 2. पत्तों से निर्मित छाता या छतरी 3. एक प्रकार का बगुला; पतंखा।
पतोहू
[सं-स्त्री.] पुत्र की पत्नी; पुत्रवधू।
पत्तंग
(सं.) [सं-पु.] 1. पतंग नामक लकड़ी; बक्कम 2. लाल चंदन।
पत्तन
(सं.) [सं-पु.] 1. बंदरगाह; पोताश्रय 2. बंदरगाही शहर; (पोर्ट) 3. वह स्थान जहाँ से वायुयान उड़ान भरते हैं या उतरते हैं; विमानपत्तन; हवाईअड्डा; (एयरपोर्ट) 4.
नगर; शहर।
पत्तनक्षेत्र
(सं.) [सं-पु.] पत्तन के आसपास विकसित कस्बा या नगर जिसकी पूरी व्यवस्था वहाँ के कुछ निर्वाचित लोगों के हाथों में होती है।
पत्तर
(सं.) [सं-पु.] 1. पीटकर पतला किया हुआ धातु का टुकड़ा 2. किसी धातु की चादर 3. पत्तल।
पत्तल
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. पत्तों को जोड़कर बनाया हुआ एक पात्र जो खाने के लिए थाली का काम करता है 2. पत्तल पर रखी हुई भोजन सामग्री।
पत्ता
(सं.) [सं-पु.] 1. पेड़ पर लगा हुआ हरे रंग का अवयव; पत्र; पर्ण 2. मोटे कागज़ के चौकोर टुकड़े (ताश के पत्ते) 3. पत्ते का आकार का वह चिह्न जो कपड़े, कागज़ आदि पर
छापा या काढ़ा जाता है 4. कान में पहनने का एक गहना 5. सरकारी नोट।
पत्तागोभी
[सं-स्त्री.] 1. एक प्रकार की सब्ज़ी 2. आपस में कस कर गुँथे हुए पत्तों की गोलाकार हलके हरे रंग की सब्ज़ी।
पत्ति
(सं.) [सं-पु.] प्यादा; पैदल सिपाही।
पत्ती
[सं-स्त्री.] 1. छोटा पत्ता 2. आय का हिस्सा, भाग या अंश 3. पंखुड़ी; दल 4. भंग 5. धातु आदि का कटा छोटा धारदार टुकड़ा; (ब्लेड) 6. व्यवसाय, रोज़गार आदि में होने
वाला साझे का अंश; भाग 7. ताश का कोई पत्ता।
पत्तीदार
(हिं.+फ़ा.) [वि.] 1. जिसमें पत्तियाँ हों; पत्तियों से युक्त 2. जिसका किसी व्यापार में हिस्सा हो 3. जो संपत्ति का भागीदार हो।
पत्तेबाज़
[वि.] 1. ताश के पत्तों में हेराफ़ेरी करने वाला 2. चालाक; धूर्त।
पत्थर
(सं.) [सं-पु.] 1. पहाड़ों को काटकर या खानों को खोदकर निकाला गया खंड; पृथ्वी का कठोर स्तर; वह पदार्थ जिससे पृथ्वी का कठोर स्तर बना है; शिला 2. शिलाखंड 3.
मील की संख्या सूचित करने के लिए सड़क के किनारे गाड़ा जाने वाला पत्थर का टुकड़ा; ढेला 4. सीमा निर्धारित करने के लिए गाड़ा जाने वाला पत्थर 5. {व्यं-अ.} वह जो मौन
या जड़ हो 6. {ला-अ.} कठोर हृदय वाला व्यक्ति 7. गुड़ से युक्त कठोर वस्तु 8. ओला; बिनौरी 9. लाल, पन्ना आदि रत्न।
पत्थरदिल
(सं.+फ़ा.) [वि.] जिसका दिल पत्थर के समान कठोर हो; कठोर हृदयवाला।
पत्थरबाज़ी
[सं-स्त्री.] 1. दूसरों पर पत्थर चलाकर उन्हें मारने एवं घायल करने की क्रिया 2. पत्थर फेंकने की क्रिया।
पत्नी
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. किसी की विवाहिता स्त्री; भार्या; परिणीता; कांता; जोरू 2. सहचरी; जीवनसंगिनी; सहगामिनी।
पत्नीधर्म
(सं.) [सं-पु.] पत्नी का पति के प्रति कर्तव्य।
पत्नीव्रत
(सं.) [सं-पु.] पत्नी के प्रति एकनिष्ठ प्रेम; अनुराग; भक्ति।
पत्र
(सं.) [सं-पु.] 1. चिट्ठी; ख़त 2. पेड़ का पत्ता 3. अख़बार 4. वह कागज़ जिसपर कोई बात छपी हो 5. पुस्तक का कोई पन्ना 6. समाचारपत्रों का समूह (प्रेस) 7. धातु का
पत्तर 8. तेजपत्ता 9. कागज़ 10. बाण का पर की तरह निकला हुआ हिस्सा 11. सुंदरता बढ़ाने के लिए रंगों, सुगंधित द्रव्यों आदि से बनाई जाने वाली आकृतियाँ या चिह्न।
पत्रक
(सं.) [सं-पु.] 1. पत्ता 2. पत्तों की श्रेणी या शृंखला; पत्रावली 3. तेजपत्ता 4. स्मृतिपत्र 5. शांति नामक साग। [वि.] 1. पत्र से संबंधित 2. पत्र के रूप में
होने वाला।
पत्रक धन
(सं.) [सं-पु.] वह धन जो छपे हुए पत्र या कागज़ के रूप में हो; (पेपर मनी)।
पत्रकार
(सं.) [सं-पु.] 1. वह व्यक्ति जो समाचार पत्रों को नित नई सूचना देता है; समाचार पत्र का लेखक या संपादक 2. टीवी, रेडियो आदि जन संचार माध्यमों में सक्रिय रूप
से कार्य करने वाला व्यक्ति; (जर्नलिस्ट)।
पत्रकार कक्ष
(सं.) [सं-पु.] सरकारी अथवा गैरसरकारी संस्थानों का वह कक्ष जहाँ पत्रकार आपस में विचार-विमर्श कर सकते हैं।
पत्रकार कोष्ठ
(सं.) [सं-पु.] सरकारी अथवा अन्य बड़े संस्थानों में पत्र-पत्रिकाओं के प्रतिनिधियों के लिए विशेष रूप से आरक्षित स्थान।
पत्रकारिक
(सं.) [वि.] पत्रकारिता या पत्रकार से संबद्ध।
पत्रकारिता
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. पत्रकार होने की अवस्था या भाव 2. पत्रकार का काम या पेशा 3. ऐसा विषय जिसमें पत्रकारों के कार्यों, उद्देश्यों आदि का विवेचन किया जाता
है; (जर्नलिज्म)।
पत्रकारिता लेखन
(सं.) [सं-स्त्री.] पत्र-पत्रिकाओं में लिखने की एक विशिष्ट शैली जो मुख्यतः सरल, सुबोध, प्रवाहमयी और प्रभावकारी होती है।
पत्रकार्यालय
(सं.) [सं-पु.] 1. समाचार पत्र का कार्यालय 2. संपादक अथवा व्यवस्थापक का कार्यालय।
पत्रचाप
(सं.) [सं-पु.] कागज़-पत्रों को दबाकर रखने के लिए प्रयुक्त लकड़ी, पत्थर, शीशा आदि का टुकड़ा जिससे वे हवा में उड़ न सकें; पत्रभारक; (पेपरवेट)।
पत्रपंजी
(सं.) [सं-स्त्री.] वह रजिस्टर जिसमें आए हुए पत्रों और उनके उत्तरों का विवरण रखा जाता है; (आवक-जावक रजिस्टर)।
पत्र-पेटिका
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. डाक विभाग द्वारा विभिन्न स्थानों पर लगाया गया लाल रंग का वह बड़ा डिब्बा जिसमें बाहर भेजे जाने वाले पत्र लोगों द्वारा छोड़े जाते हैं
2. घर के प्रवेश-द्वार पर लगा वह डिब्बा जिसमें डाकिया बाहर से आया पत्र डाल जाता है 3. पत्र रखने की पेटी अथवा संदूक; (लेटरबॉक्स)।
पत्र-पेटी
(सं.) [सं-स्त्री.] दे. पत्र-पेटिका।
पत्रबंध
(सं.) [सं-पु.] पत्र लिखने हेतु निर्मित कागज़ों की गड्डी; (लेटर पैड)।
पत्रवाहक
(सं.) [सं-पु.] पत्र-पत्रिकाओं की प्रतियाँ ग्राहकों के पास पहुचाने वाला व्यक्ति।
पत्र व्यवहार
(सं.) [सं-पु.] 1. एक दूसरे को पत्र लिखना; पत्रोत्तर देना 2. पत्राचार।
पत्रा
(सं.) [सं-पु.] 1. तिथिपत्र 2. पंचांग 3. पृष्ठ; पन्ना।
पत्रांक
(सं.) [सं-पु.] 1. पत्र या पत्रिका का अंक 2. पत्ते की गोद।
पत्रांग
(सं.) [सं-पु.] 1. भोजपत्र 2. पतंग या बक्कम नामक वृक्ष 3. लाल चंदन 4. कमलगट्टा।
पत्राचार
(सं.) [सं-पु.] पत्र-व्यवहार; ख़तोकिताबत; लिखा-पढ़ी; (कॉरेस्पांडेंस)।
पत्रान्य
(सं.) [सं-पु.] 1. पतंग; बक्कम 2. लाल चंदन।
पत्रालय
(सं.) [सं-पु.] डाकघर; (पोस्ट ऑफ़िस)।
पत्रावलि
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. सजावट के लिए बनाई गई फूल-पत्तियों की लड़ी या श्रेणी 2. गेरू 3. पत्रभंग।
पत्रावली
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. पत्रावलि 2. पीपल की कोंपलों के साथ मधु और जौ को मिला कर दुर्गा पूजा हेतु तैयार की गई सामग्री।
पत्रिका
(सं.) [सं-स्त्री.] पाक्षिक, मासिक या त्रैमासिक निकलने वाली पुस्तिका।
पत्रिकाख्य
(सं.) [सं-पु.] एक प्रकार का कपूर; पानकपूर।
पत्रिका परिशिष्ट
(सं.) [सं-स्त्री.] सभी प्रमुख समाचार पत्रों में प्रकाशित होने वाला साप्ताहिक साहित्यिक परिशिष्ट।
पत्रिका संपादक
(सं.) [सं-पु.] पत्रिका का संपादन करने वाला व्यक्ति।
पत्री
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. चिट्ठी; पत्र; ख़त 2. छोटी पत्रिका 3. जन्मपत्री 4. पत्तों का बना हुआ दोना। [सं-पु.] 1. तीर; बाण 2. पक्षी 3. रथ का सवार; रथी 4. पर्वत;
पहाड़ 5. पेड़; वृक्ष। [वि.] 1. जिसमें पत्ते हों; पत्तोंवाला 2. पंखदार।
पत्रोर्ण
(सं.) [सं-पु.] 1. रेशमी वस्त्र 2. सोनापाठा।
पत्रोल्लास
(सं.) [सं-पु.] अँखुआ; कोंपल।
पथ
(सं.) [सं-पु.] 1. मार्ग; रास्ता; राह 2. कार्य या व्यवहार की रीति या पद्धति।
पथगामी
(सं.) [वि.] 1. पथ या रास्ते पर चलने वाला; पथिक; राही 2. अनुसरण करने वाला।
पथचिह्न
(सं.) [सं-पु.] रास्ते में रास्तों की पहचान हेतु बने हुए चिह्न।
पथदर्शिका
(सं.) [सं-स्त्री.] मार्ग दिखाने वाली स्त्री; मार्गदर्शिका।
पथप्रदर्शक
(सं.) [सं-पु.] राह या मार्ग दिखाने वाला; मार्गदर्शक; रहनुमा।
पथप्रदर्शन
(सं.) [सं-पु.] 1. मार्गदर्शन 2. पथ या रास्ता दिखाना।
पथबाधा
(सं.) [सं-पु.] 1. मार्ग में आने वाली बाधा 2. {ला-अ.} किसी कार्य के निष्पादन में आने वाली रुकावट या अवरोध।
पथभ्रष्ट
(सं.) [वि.] 1. जो अपने उचित मार्ग या व्यवहार आदि के प्रतिकूल हो गया हो 2. {ला-अ.} बुरे आचरणवाला; दुराचारी।
पथभ्रष्टता
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. अनुचित मार्ग पर चलने की स्थिति, क्रिया या भाव 2. पथभ्रष्ट होने की अवस्था या भाव।
पथरना
[क्रि-स.] पत्थर पर रगड़कर औज़ार आदि की धार तेज़ करना।
पथराना
[क्रि-अ.] 1. सूखकर पत्थर की तरह कड़ा एवं कठोर हो जाना 2. शुष्क हो जाना 3. स्तब्ध एवं स्थिर हो जाना 4. चेतनाशून्य या जड़ हो जाना।
पथराव
[सं-पु.] ईंट, पत्थर आदि के टुकड़ों की बौछार करना; दूसरों पर पत्थर फेंकना; झगड़ा हो जाने पर दोनों पक्षों का एक-दूसरे पर ईंट या पत्थर के टुकड़े फेंक कर मारना।
पथरी
[सं-स्त्री.] 1. एक रोग जिसमें वृक्क आदि में पत्थर के छोटे-छोटे टुकड़े जैसे पिंड बन जाते हैं; अश्मरी 2. कटोरेनुमा पत्थर का बना हुआ पात्र 3. उस्तरा आदि की
धार तेज़ करने के लिए प्रयुक्त पत्थर का टुकड़ा; सिल 4. चकमक पत्थर 5. पक्षियों के पेट का वह भाग जहाँ खाए हुए कड़े पदार्थ पच जाते हैं 6. जायफल की जाति का एक
वृक्ष जिसके फल से तेल निकाला जाता है।
पथरीला
[वि.] 1. जिसमें पत्थर या उसके खंड मिले हों 2. पत्थरों से बना हुआ 3. जो पत्थर के समान कठोर हो।
पथरीली
[वि.] 1. कंकड़ों-पत्थरों से युक्त, जैसे- पथरीली ज़मीन 2. जिसपर कंकड़-पत्थर पड़े हों, जैसे- पथरीली सड़क।
पथरौटा
[सं-पु.] पत्थर का बना हुआ बड़े आकार का कटोरेनुमा एक पात्र; बड़ी पथरी।
पथरौटी
[सं-स्त्री.] पत्थर की कड़ी; पथरी।
पथिक
(सं.) [सं-पु.] बटोही; राहगीर; मुसाफ़िर।
पथिका
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. मुनक्का 2. मुनक्का या अंगूर से बनाई जाने वाली एक प्रकार की शराब।
पथिल
(सं.) [सं-पु.] पथिक; राही; यात्री।
पथी
(सं.) [सं-पु.] 1. मार्ग पर चलने वाला व्यक्ति; राही; पथिक; यात्री 2. राह; रास्ता; मार्ग 3. यात्रा 4. संप्रदाय; मत।
पथेरा
[सं-पु.] 1. ईंट पाथने वाला व्यक्ति 2. खपड़ा पाथने वाला व्यक्ति; कुम्हार 3. गोबर पाथने वाला व्यक्ति। [वि.] पाथने वाला।
पथौरा
[सं-पु.] वह स्थान जहाँ गोबर पाथा जाता हो; गोबर पाथने की जगह।
पथ्य
(सं.) [सं-पु.] 1. रोगी को दिया जाने वाला उचित और अनुकूल आहार जिसे वह आसानी से पचा सके 2. स्वास्थ के लिए हितकर वस्तु 3. हड़ का पेड़ 4. सेंधा नमक 5. कल्याण;
मंगल। [वि.] 1. पथ संबंधी 2. लाभकर; हितकर 3. अनुकूल; उचित।
पथ्या
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. हरीतकी; हरड़ 2. चिरमिटा 3. सैंधनी 4. बनककोड़ा 5. गंगा 6. (काव्यशास्त्र) एक मात्रिक छंद 7. सड़क; मार्ग।
पथ्याशी
(सं.) [वि.] पथ्य खाने वाला
पद
(सं.) [सं-पु.] 1. पैर; कदम; पग 2. पैर का निशान; चरण-चिह्न 3. पदवी; ओहदा; काम के अनुसार कर्मचारियों का नियत स्थान 4. आधार; स्थान 5. किसी श्लोक या छंद का
चतुर्थांश 6. विभक्ति; प्रत्यय युक्त शब्द 7. मंत्र में प्रयुक्त शब्दों को अलग-अलग करना 8. कोष्ठ; ख़ाना 9. किसी वाक्य का कोई अंश या भाग।
पदक
(सं.) [सं-पु.] 1. उत्कृष्ट कार्य हेतु किसी को उपहारस्वरूप दिया जाने वाला सोने, चाँदी, ताँबा आदि धातु का वह टुकड़ा जिसपर प्रायः देने वाले का नाम अंकित रहता
है; तमगा; (मेडल) 2. पूजा हेतु निर्मित किसी देवता के चरण की प्रतिमूर्ति 3. आभूषण के रूप में पहना जाने वाला वह धातुखंड जिसपर किसी देवता के चरण-चिह्न अंकित
हों 4. वैदिक पद-पाठ का ज्ञाता 5. एक प्रचीन गोत्र प्रवर्तक ऋषि।
पदक्रम
(सं.) [सं-पु.] 1. चलना; डग भरना; गमन 2. वेद मंत्रों के पदों को एक दूसरे से अलग करने का कार्य।
पदग्रहण
(सं.) [सं-पु.] किसी पद को धारण करने की क्रिया या भाव।
पदग्रहण-समारोह
(सं.) [सं-पु.] किसी के पदभार-ग्रहण करने के अवसर पर होने वाला समारोह या जलसा।
पदचर
(सं.) [सं-पु.] पैदल।
पदचाप
(सं.) [सं-स्त्री.] चलते समय पैर से निकलने वाली ध्वनि या आवाज़।
पदचार
(सं.) [सं-पु.] 1. पैदल चलना 2. घूमना-फिरना 3. टहलना।
पदचारण
(सं.) [सं-पु.] 1. पैदल चलने की क्रिया 2. टहलना; घूमना-फिरना।
पदचिह्न
(सं.) [सं-पु.] 1. पैर के निशान; पगचिह्न 2. अनुभवी व्यक्तियों द्वारा बताए हुए आदर्शों एवं विचारों के अनुसरण करने का भाव या क्रिया।
पदच्छेद
(सं.) [सं-पु.] पद को विच्छेद करने की प्रक्रिया; मूल शब्द से उपसर्ग या प्रत्यय को पृथक करने की क्रिया।
पदच्युत
(सं.) [वि.] 1. जो अपने पद से हट गया हो या हटा दिया गया हो 2. नौकरी आदि से बरख़ास्त किया हुआ।
पदच्युति
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. पद से हटने या हटाने की क्रिया, अवस्था या भाव 2. सेवा से हटा दिया जाना; बरख़ास्तगी; (डिसमिसल)।
पदज
(सं.) [सं-पु.] पाँव की उँगली।
पदतल
(सं.) [सं-पु.] पाँव का तलवा।
पदत्याग
(सं.) [सं-पु.] 1. अपना पद, ओहदा या अधिकार छोड़ना 2. इस्तीफ़ा; (रेज़िग्नेशन)।
पदत्राण
(सं.) [सं-पु.] पैरों की रक्षा करने वाला जूता; चप्पल; खडाऊँ।
पददलित
(सं.) [वि.] 1. पैरों तले रौंदा या कुचला हुआ 2. समाज में जिसे दबाकर रखा गया हो 3. जो हीन अवस्था में पड़ा हो 4. जिसे विकास के अवसर से वंचित रखा गया हो।
पदनाम
(सं.) [सं-पु.] 1. किसी अधिकारी के पद का नाम 2. ओहदा; पदवी; (डेज़िग्नेशन)।
पदनामित
(सं.) [वि.] 1. पदसंज्ञित 2. नामज़द 3. मनोनीत; नामित; निर्दिष्ट।
पदपल्लव
(सं.) [सं-पु.] पल्लव की तरह कोमल पाँव।
पदबंध
(सं.) [सं-पु.] 1. पग; डग 2. पदों का व्यवस्थित स्वरूप 3. व्याकरण में पद एवं पदों का विस्तार।
पदबंधीय
(सं.) [वि.] 1. पदबंध संबंधी 2. पदबंध की तरह।
पदभार
(सं.) [सं-पु.] वह उत्तरदायित्व या भार जिसका निर्वहन करना आवश्यक होता है; (चार्ज)।
पदमुक्त
(सं.) [वि.] जो अपने पद से मुक्त हो चुका हो।
पदमैत्री
(सं.) [सं-स्त्री.] पदों का मिलता-जुलता समूह।
पदयात्रा
(सं.) [सं-पु.] 1. पैदल चल कर यात्रा करना 2. पैदल यात्रा।
पदयोजना
(सं.) [सं-स्त्री.] वाक्य में पदों (शब्दों) को जोड़ने या बिठाने की क्रिया या भाव।
पदविन्यास
(सं.) [सं-पु.] 1. चलने की शैली; चाल 2. पदों या शब्दों को वाक्य में ठीक ढंग से रखने की क्रिया।
पदवी
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. शासन या किसी संस्था की ओर से किसी को दी जाने वाली आदरसूचक या योग्यतासूचक उपाधि; ख़िताब; (टाइटल) 2. सरकारी या गैरसरकारी सेवाओं में कोई
ऊँचा पद; (रैंक)।
पदस्थ
(सं.) [वि.] 1. जो किसी ऊँचे पद या ओहदे पर हो 2. पैदल चलने वाला 3. जो अपने पैरों के बल खड़ा हो या चल रहा हो।
पदांक
(सं.) [सं-पु.] पैर का चिह्न या छाप; पदचिह्न।
पदांगी
(सं.) [सं-स्त्री.] हंसपदी नामक लता।
पदांत
(सं.) [सं-पु.] 1. किसी पद का अंतिम भाग 2. किसी श्लोक आदि का अंतिम अंश।
पदांतर
(सं.) [सं-पु.] 1. एक कदम या डग की दूरी 2. दूसरा कदम या डग 3. दूसरा स्थान।
पदांत्य
(सं.) [वि.] पद के अंत में स्थित; अंतिम।
पदाक्रांत
(सं.) [वि.] 1. पैरों से कुचला या रौंदा हुआ 2. पददलित।
पदाघात
(सं.) [सं-पु.] पैर से लगाया जाने वाला धक्का; (किक)।
पदाति
(सं.) [सं-पु.] 1. जो पैदल चलता हो 2. पैदल सिपाही; प्यादा 3. पैदल यात्रा करने वाला व्यक्ति; पदयात्री 4. सेवक; नौकर 5. जनमेजय के एक पुत्र का नाम।
पदातिक
(सं.) [सं-पु.] 1. पैदल चलने वाला व्यक्ति 2. पैदल सेना; (इनफ़ैंट्री) 3. सेवक; नौकर।
पदाती
(सं.) [सं-पु.] दे. पदाति।
पदादि
(सं.) [सं-पु.] 1. किसी पद का आरंभिक अंश 2. छंद के चरण का आरंभिक भाग 3. किसी शब्द का पहला वर्ण।
पदाधिकारी
(सं.) [सं-पु.] पद पर रह कर कार्य करने वाला अधिकारी; ओहदेदार।
पदाध्ययन
(सं.) [सं-पु.] पदपाठ की दृष्टि से वेद का पाठ या अध्ययन।
पदाना
[क्रि-स.] खेल में प्रतिपक्षी को हराना; बार-बार दौड़ाना; परेशान करना (गुल्ली-डंडे के खेल में)।
पदानुकूल
(सं.) [वि.] 1. जो पद के अनुकूल हो 2. जो पद के योग्य और पद के अनुसार हो।
पदानुक्रम
(सं.) [सं-पु.] 1. पद का अनुक्रम 2. पदों या शब्दों का वाक्य आदि में निश्चित स्थान या क्रम।
पदानुक्रमता
(सं.) [सं-स्त्री.] वाक्य में शब्दों के क्रमानुसार होने की अवस्था या स्थिति।
पदानुराग
(सं.) [सं-पु.] किसी के चरणों में होने वाला अनुराग; किसी के प्रति होने वाली श्रद्धा।
पदानुशासन
(सं.) [सं-पु.] शब्दानुशासन; व्याकरण।
पदाभिलाषी
(सं.) [सं-पु.] वह जो पद की अभिलाषा रखता हो; पद पाने का इच्छुक।
पदायता
(सं.) [सं-स्त्री.] जूता।
पदार
(सं.) [सं-पु.] 1. पैर की धूल; चरण रज 2. पैर का ऊपरी भाग।
पदारूढ़
(सं.) [वि.] पद पर आसीन; पद पर बैठा हुआ।
पदार्थ
(सं.) [सं-पु.] 1. पद (शब्द) का अर्थ 2. वह वस्तु जिसका कुछ नाम हो और जिससे उसे जाना जा सके 3. जिसका कोई रूप या आकार हो अथवा जो पिंड, शरीर आदि के रूप में
मूर्त हो 4. भार और विस्तार से युक्त वस्तु जिसका ज्ञानेंद्रियों के माध्यम से ज्ञान प्राप्त किया जाता है; (मैटर) 5. (भारतीय दर्शन) विभिन्न संप्रदायों में
अलग-अलग संख्या में वर्णित वे विषय जिनका सम्यक ज्ञान मोक्ष प्राप्ति के लिए आवश्यक माना गया है।
पदार्थवाचक
(सं.) [वि.] पदार्थ की विवेचना करने वाला।
पदार्थवाद
(सं.) [सं-पु.] 1. वह मत या सिद्धांत जिसमें केवल भौतिक पदार्थों की ही सत्ता स्वीकार की जाती है; (मटिरियलिज़म) 2. ऐसा सिद्धांत जो अध्यात्मवाद से बिल्कुल
भिन्न हो।
पदार्थवादी
(सं.) [सं-पु.] पदार्थवाद का समर्थक या अनुयायी। [वि.] पदार्थवाद संबंधी।
पदार्थविज्ञान
(सं.) [सं-पु.] वह विज्ञान जिसमें पृथ्वी, जल, वायु, प्रकाश आदि तत्वों के गुण आदि का अध्ययन एवं विवेचन किया जाता है।
पदार्थविद्या
(सं.) [सं-स्त्री.] भौतिकविज्ञान; भौतिकी; (फ़िज़िक्स)।
पदार्पण
(सं.) [सं-पु.] 1. पैर रखना; आना (आदरसूचक) 2. किसी स्थान या क्षेत्र में होने वाला प्रवेश या आगमन।
पदालिक
(सं.) [सं-पु.] पैर का ऊपरी भाग या हिस्सा।
पदावनत
(सं.) [वि.] 1. जिसे अपने वर्तमान पद से हटाकर निम्न पद पर कर दिया गया हो 2. पैरों पर झुका हुआ 3. जो झुककर प्रणाम कर रहा हो 4. विनीत; नम्र।
पदावनति
(सं.) [सं-स्त्री.] ऊँचे पद से हटाकर नीचे पद पर किया जाना; (डिमोशन)।
पदावली
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. पदों का क्रम, शृंखला या समूह 2. गाए जाने वाले पदों, भजनों और गीतों का संग्रह, जैसे- विद्यापति पदावली 3. पदों या शब्दों की परंपरा 4.
किसी सहित्यकार द्वारा प्रयुक्त शब्दों की योजना, प्रकार या ढंग 5. किसी विषय के पारिभाषिक पदों एवं शब्दों की सूची।
पदासन
(सं.) [सं-पु.] वह आसन या छोटी चौकी जिसपर पैर रखा जाता है; पादपीठ।
पदासीन
(सं.) [वि.] पद पर आसीन, आरूढ़ या विराजमान।
पदाहत
(सं.) [वि.] पैर से ठुकराया हुआ।
पदिक
(सं.) 1. पैदल सेना; प्यादा; (इनफ़ैंट्री) 2. गले में पहनने का जुगनूँ नामक एक आभूषण 3. रत्न 4. तमगा। [वि.] 1. पैदल 2. एक कदम के बराबर 3. जिसमें केवल एक विभाग
हो।
पदी
(सं.) [सं-पु.] पैदल; प्यादा। [वि.] 1. पैरवाला; पदवाला 2. पद युक्त रचना।
पदुम
(सं.) [सं-पु.] 1. घोड़ों के शरीर पर पाया जाने वाला एक प्रकार का चिह्न 2. पद्म।
पदेन
(सं.) [अव्य.] 1. किसी पद पर आरूढ़ होने के अधिकार से 2. पद पर रहने की वजह से; पद की हैसियत से।
पदे-पदे
(सं.) [क्रि.वि.] पग-पग पर; कदम-कदम पर।
पदोड़ा
(सं.) [वि.] 1. बहुत अधिक पादने वाला 2. डरपोक; कायर।
पदोदक
(सं.) [सं-पु.] वह जल जिससे पूज्य व्यक्तियों का पैर धोया गया हो; चरणामृत।
पदोन्नति
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. पद में होने वाली उन्नति या तरक्की; पदवृद्धि; (प्रमोशन) 2. वर्तमान पद से उच्च पद पर नियुक्त होना।
पद्धटिका
(सं.) [सं-स्त्री.] (काव्यशास्त्र) एक मात्रिक छंद जिसके प्रत्येक चरण में सोलह मात्राएँ होती हैं तथा अंत में जगण होता है।
पद्धड़ी
(सं.) [सं-स्त्री.] दे. पद्धटिका।
पद्धति
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. एक विशेष प्रकार का तरीका; प्रविधि; प्रणाली 2. परिपाटी; रिवाज; रीति 3. मार्ग; रास्ता 4. पंक्ति; शृंखला 5. तरीका; ढंग; शैली।
पद्म
(सं.) [सं-पु.] 1. कमल का फूल और पौधा 2. (सामुद्रिकशास्त्र) किसी के पैर के तलवे में पाया जाने वाला कमल के आकार का एक सौभाग्यसूचक चिह्न 3. मोर्चाबंदी;
पद्मव्यूह 4. कमल के आकार का विष्णु का एक आयुध 5. एक रतिबंध 6. सीसा 7. पदमकाठ 8. दाग; धब्बा; चिह्न 9. शरीर पर विद्यमान कोई दाग; तिल 10. शरीर में विद्यमान
षट् चक्रों में से कोई एक 11. कुबेर की नौ निधियों में से एक 12. वास्तुकला में स्तंभ के सातवें भाग की संज्ञा 13. गले में पहना जाने वाला एक हार 14. हाथी के
मस्तक पर की जाने वाली रंगीन चित्रकारी 15. साँप के फन पर बना हुआ चिह्न 16. एक प्रकार का मंदिर 17. एक आसन 18. एक वर्णवृत्त 19. (पुराण) एक नरक 20. (पुराण) एक
कल्प 21. (बौद्ध मत) एक नक्षत्र 22. कश्मीर का एक शासक जिसने पद्मपुर नगर बसाया था 23. एक नदी।
पद्मक
(सं.) [सं-पु.] 1. पद्मकाठ नामक पेड़ 2. पद्मव्यूह 3. हाथी की सूँड़ पर का चिह्न या दाग 4. श्वेत कुष्ठ; सफ़ेद कोढ़ 5. कुट नामक औषधि 6. पद्मासन।
पद्मजा
(सं.) [सं-स्त्री.] लक्ष्मी।
पद्मनाभ
(सं.) [सं-पु.] 1. विष्णु 2. अस्त्र चलाते समय पढ़ा जाने वाला एक मंत्र 3. एक नाग 4. धृतराष्ट्र का एक पुत्र।
पद्मनाल
(सं.) [सं-स्त्री.] कमल का डंठल; मृणाल।
पद्मपुराण
(सं.) [सं-पु.] अठारह महापुराणों में एक महापुराण, जिसमें भगवान विष्णु की विविध लीलाओं का वर्णन है।
पद्मबंध
(सं.) [सं-पु.] एक प्रकार का चित्रकाव्य।
पद्मबीज
(सं.) [सं-पु.] कमल का बीज; कमलगट्टा।
पद्मभूषण
(सं.) [सं-पु.] स्वतंत्र भारत में केंद्र सरकार द्वारा विशिष्ट नागरिकों, विद्वानों तथा देशसेवकों को विभिन्न क्षेत्रों में उनके अद्वितीय योगदान के लिए दिए
जाने वाले अलंकरणों भारत रत्न, पद्मविभूषण, पद्मभूषण तथा पद्मश्री के क्रम में तृतीय अलंकरण।
पद्मराग
(सं.) [सं-पु.] माणिक्य; मानिक; लालड़ी; लाल।
पद्मश्री
(सं.) [सं-पु.] 1. स्वतंत्र भारत में केंद्र सरकार द्वारा विशिष्ट नागरिकों, विद्वानों तथा देशसेवकों को विभिन्न क्षेत्रों में उनके अद्वितीय योगदान के लिए दिए
जाने वाले अलंकरणों भारत रत्न, पद्मविभूषण, पद्मभूषण तथा पद्मश्री के क्रम में चतुर्थ अलंकरण 2. एक बोधिसत्व का नाम।
पद्मा
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. लक्ष्मी 2. मनसा देवी 3. गंगा नदी की एक शाखा जो बंगाल में पूर्वी शाखा के रूप में जानी जाती है 4. लौंग 5. कुसुंभ का फूल (बर्रे का फूल)
6. गेंदे का पौधा।
पद्मांतर
(सं.) [सं-पु.] कमलदल।
पद्माकर
(सं.) [सं-पु.] 1. जिस जलाशय में कमल खिले हों; कमल युक्त जलाशय 2. कमलराशि 3. हिंदी के एक प्रसिद्ध कवि।
पद्माट
(सं.) [सं-पु.] बरसात में उगने वाली एक प्रकार की वनस्पति जिसके छाल एवं पत्ते का प्रयोग औषधि के रूप में किया जाता है।
पद्मावती
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. (लोककथा) सिंहल द्वीप की एक राजकुमारी जिसका विवाह चित्तौड़ के राजा रत्नसेन के साथ हुआ था 2. मनसा देवी का एक नाम 3. एक मात्रिक छंद।
पद्मासन
(सं.) [सं-पु.] 1. कमल का आसन 2. विशिष्ट प्रकार की पालथी मारकर तनकर बैठने की एक योगमुद्रा 3. वह जो उक्त मुद्रा में बैठा हो 4. स्त्री के संभोग करने का एक आसन
या रतिबंध।
पद्मिनी
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. कमल का पौधा 2. कमल की नाल 3. कमलों का समूह 4. कमल से युक्त तालाब 5. मादा हाथी 6. कामशास्त्र के अनुसार स्त्रियों के चार प्रकारों में
से एक श्रेष्ठ प्रकार।
पद्य
(सं.) [सं-पु.] 1. पद के नियमों के अनुसार होने वाली साहित्यिक रचना; छंदोबद्ध रचना; काव्य 2. (पुराण) ब्रह्मा के पैरों से उत्पन्न 3. कीचड़ जो अभी पूरी तरह
सूखा न हो। [वि.] 1. पद या पैर संबंधी 2. जो काव्य के रूप में हो।
पद्यबद्ध
(सं.) [वि.] पद्य में रची हुई; पद्यात्मक; छंदोबद्ध।
पद्या
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. पैदल चलने से बनने वाला रास्ता; पगडंडी 2. मुख्य सड़क के किनारे पैदल चलने के लिए बना हुआ रास्ता; (फ़ुटपाथ)।
पद्यात्मक
(सं.) [वि.] पद्य के रूप में होने वाला; पद्यरूप; छंदोबद्ध।
पधारना
[क्रि-स.] आदर के साथ बैठाना; प्रतिष्ठित करना। [क्रि-अ.] उपस्थित होना; पदार्पण करना; पहुँचना।
पन1
(सं.) [परप्रत्य.] कुछ संज्ञाओं या गुणवाचक विशेषणों के अंत में जुड़कर उनका भाववाचक रूप बनाने वाला प्रत्यय, जैसे- लड़कपन, बाँकपन। [सं-पु.] मानव जीवन की चार
अवस्थाओं में से कोई एक।
पन2
[पूर्वप्रत्य.] 1. पानी का वह संक्षिप्त रूप जो यौगिक पदों के आरंभ में लगने पर प्राप्त होता है, जैसे- पनचक्की 2. पान का वह संक्षिप्त रूप जो यौगिक पदों के
आरंभ में लगने पर प्राप्त होता है, जैसे- पनवाड़ी।
पनकाल
[सं-पु.] अतिवृष्टि के कारण पड़ने वाला अकाल।
पनघट
[सं-पु.] वह घाट जहाँ से पानी भरा जाता है; कोई ऐसा स्थान जहाँ से पानी घड़े आदि में भरकर ले जाया जाता हो।
पनचक्की
[सं-स्त्री.] पानी के प्रवाह या वेग की शक्ति से चलने वाली चक्की।
पनडुब्बा
[सं-पु.] 1. पानी में गोता लगाने वाला; गोताख़ोर 2. एक पक्षी जो जलाशय आदि में गोता लगाकर मछलियाँ पकड़ता है; मुरगाबी 4. (अंधविश्वास) जलाशय आदि में रहने वाला
भूत।
पनडुब्बी
[सं-स्त्री.] 1. जलाशयों या पोखरों आदि में रहने वाली एक प्रकार की चिड़िया, जो पानी में डुबकी लगाकर मछलियाँ पकड़ती है 2. पानी के अंदर डूबकर चलने वाली एक प्रकार
की नाव; (सबमैरीन)।
पनपना
[क्रि-अ.] 1. वनस्पतियों का अंकुरित होकर समुचित विकास और वृद्धि को प्राप्त होना; हरा-भरा होना 2. व्यवसाय या रोज़गार आदि में उन्नति होना 3. किसी व्यक्ति का
पुनः स्वस्थ, संपन्न और सशक्त होना।
पनपाना
[क्रि-स.] किसी को पनपने में प्रवृत्त करना; किसी के पनपने में सहायक या कारण बनना।
पनबिजली
[सं-स्त्री.] जलविद्युत।
पनभरा
[सं-पु.] घरों में पानी भरने वाला और इससे प्राप्त पारिश्रमिक से जीविका चलाने वाला सेवक; पनहरा।
पनरंगा
[वि.] पानी के रंग जैसा।
पनवाड़ी
[सं-पु.] तमोली; पान बेचने वाला।
पनवारी
[सं-स्त्री.] पान के पौधौं का भीटा; वह टीलेनुमा ज़मीन जो पान की पैदावार के लिए तैयार की जाती है; वह खेत अथवा भूमि जिसमें पान की खेती की जाती है।
पनस
(सं.) [सं-पु.] 1. कटहल का वृक्ष 2. उक्त वृक्ष का फल 3. काँटा 4. एक प्रकार का साँप 5. विभीषण का एक मंत्री 6. राम की सेना का एक बंदर।
पनसारी
[सं-पु.] दे. पंसारी।
पनसाल
[सं-स्त्री.] 1. जल की गहराई मापने का उपकरण 2. पानी पिलाने का सार्वजनिक स्थान; प्याऊ; पौसरा।
पनहरा
[सं-पु.] दूसरों के घरों में पानी भरने का काम करने वाला व्यक्ति; पनभरा।
पनहारा
[सं-पु.] दे. पनहरा।
पना1
(सं.) [सं-पु.] आग में भूने हुए आम या भिगाई हुई इमली आदि के गूदे से तैयार किया गया एक प्रकार का खट्टा-मीठा पेय पदार्थ; पन्ना।
पना2
[परप्रत्य.] एक प्रत्यय जो भाववाचक संज्ञा बनाने के लिए जातिवाचक और गुणवाचक संज्ञाओं से जोड़ा जाता है, जैसे- बाँकपना, पाजीपना।
पनाती
(सं.) [सं-पु.] पुत्री का नाती; नाती का पुत्र; परनाती।
पनारा
[सं-पु.] गंदा पानी बहने की नाली; नाला; नाबदान; परनाला।
पनाला
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. पानी बहने का रास्ता; नाला; नाबदान 2. प्रवाह।
पनाह
(फ़ा.) [सं-स्त्री.] 1. शत्रु आदि द्वारा उत्पन्न किसी प्रकार के संकट से प्राण बचाने की क्रिया या भाव 2. उक्त आशय से किसी की शरण में जाने की क्रिया या भाव 3.
शरण लेने का स्थान; शरण्य; आड़; आश्रय 4. रक्षा; बचाव। [मु.] -मांगना : शरण लेना; किसी से संरक्षण माँगना।
पनाहगाह
(फ़ा.) [सं-स्त्री.] 1. वह स्थान जहाँ शत्रु आदि से जीवन सुरक्षित रह सके 2. वह स्थान जहाँ से भरण-पोषण हो और सहायता मिले 3. शरण लेने की जगह; शरणस्थल।।
पनाहगीर
(फ़ा.) [वि.] पनाह देने वाला; किसी व्यक्ति को संकट के समय शरण देने वाला; ज़रूरतमंद की सहायता करने वाला।
पनिया
[वि.] 1. पानी में रहने वाला 2. जिसमें पानी मिला हो।
पनियाना
[क्रि-स.] 1. पानी से सराबोर करना 2. खेत आदि को पानी से सींचना। [क्रि-अ.] पानी से चपचपाना।
पनिहा
[सं-पु.] 1. चोरी गए माल का पता लगाने वाला तांत्रिक 2. इस हेतु दिया जाने वाला पुरस्कार। [वि.] 1. पानी संबंधी 2. पानी में रहने वाला 3. जिसमें पानी का मेल हो;
जलयुक्त।
पनिहारिन
[सं-स्त्री.] 1. वह स्त्री जो सबके घर पानी पहुँचाने का काम करती है; पानी भरने वाली स्त्री 2. गाँवों में कहार जाति की स्त्रियों द्वारा पानी भरने के समय गाया
जाने वाला कहरवा की तरह का एक लोकगीत।
पनीर
(फ़ा.) [सं-स्त्री.] 1. फटे दूध का थक्का; छेना 2. इससे तैयार की गयी एक प्रकार की टिकिया जो खाने के काम में आती है।
पनीला
[वि.] 1. पानी से भरा हुआ; गीला 2. जो पानी में रहता हो।
पनेरी
[सं-पु.] पान बेचने वाला व्यक्ति; पनवाड़ी; बरई; तँबोली। [सं-स्त्री.] 1. अन्यत्र लगाने के लिए उगाए गए छोटे पौधे; पौधों के बेहन 2. ऐसे पौधे या बेहन उगाने की
क्यारी।
पनेहड़ी
[सं-स्त्री.] वह पात्र जिसमें पनवाड़ी पान या हाथ धोने के लिए पानी रखते हैं।
पनेहरा
[सं-पु.] 1. पानी भरने के लिए रखा हुआ सेवक; पनभरा 2. वह पात्र जिसमें सुनार गहने धोने के लिए पानी रखते हैं।
पनैला
[सं-पु.] एक प्रकार का चिकना एवं चमकदार कपड़ा जो प्रायः अस्तर के लिए प्रयोग किया जाता है। [वि.] 1. जिसमें पानी मिला हो; पानी से युक्त; पनीला 2. जो पानी में
रहता या होता हो।
पनौटी
[सं-स्त्री.] पान रखने की पिटारी या डिब्बा; बाँस का बना पानदान।
पन्नई
[वि.] पन्ना नामक एक प्रसिद्ध रत्न के रंग का; फ़िरोजी रंग का; गहरे हरे रंग का।
पन्नग
(सं.) [सं-पु.] 1. साँप 2. एक प्रकार की जड़ी-बूटी; पदमकाठ 3. सीसा।
पन्नगारि
(सं.) [सं-पु.] साँप का शत्रु; गरूड़।
पन्नगाशन
(सं.) [सं-पु.] साँपों का शत्रु और उनका भक्षक; गरुड़।
पन्नगी
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. साँपिन; सर्पिणी 2. सर्पिणी नामक जड़ी-बूटी।
पन्ना1
[सं-पु.] 1. पुस्तक के दो पृष्ठ; वरक; (पेज) 2. एक प्रसिद्ध व कीमती रत्न 3. भेड़ों के कान का वह भाग जहाँ का ऊन काटा जाता है 4. जूते का पान 5. कच्चे आम से बना
पेय; पना।
पन्ना2
(सं.) [सं-पु.] हरे या फ़िरोजी रंग का एक बहुमूल्य रत्न; पर्ण।
पन्नी
[सं-स्त्री.] 1. रंगीन चमकीला कागज़ 2. सोना-चाँदी का पानी चढ़ाया हुआ कपड़ा या कागज़ 3. रांगे, पीतल आदि का पतला पत्तर जिसे काटकर अन्य वस्तु की शोभा बढ़ाने
हेतु उन वस्तुओं पर चिपकाया जाता है।
पपड़ा
[सं-पु.] 1. रोटी के ऊपर का छिलका 2. लकड़ी आदि का छीलन (छिलका); चिप्पड़ 3. वृक्ष की चिटकी हुई छाल।
पपड़ी
[सं-स्त्री.] 1. सूखकर ऐंठी हुई किसी नरम, गीली वस्तु की ऊपरी परत 2. मवाद सूख जाने पर घाव या ज़ख़्म के ऊपर जमी परत या खुरंट 3. पत्तर के ऊपर जमाई गई मिठाई;
सोहन पपड़ी 4. पापड़ के आकार का पकवान 5. पेड़ की सूखकर चिटकी हुई छाल।
पपड़ीदार
(हिं.+अ.) [वि.] पपड़ीला।
पपड़ीला
[वि.] पपड़ीयुक्त; पपड़ीदार; जिसमें पपड़ी पड़ी हो।
पपरी
[सं-स्त्री.] एक पौधा जिसकी जड़ औषधि के काम आती है।
पपीता
[सं-पु.] 1. एक प्रसिद्ध पौधा जिसमें लंबोतर आकार के फल लगते हैं 2. उक्त पौधे का फल जो मीठा होता है तथा रेचक का काम करता है।
पपीहा
[सं-पु.] 1. हलके काले रंग का एक प्रसिद्ध पक्षी जो वसंत तथा पावस में मधुर स्वर में 'पी-कहाँ' 'पी-कहाँ' की तरह का शब्द बोलता है; चातक 2. सितार के छह तारों
में से एक लोहे वाले तार का नाम 3. आल्हा नामक वीर के पिता के घोड़े का नाम 5. अमोला (आम की गुठली) को घिसकर बनाई जाने वाली सीटी।
पपोटा
[सं-पु.] आँख की पलक।
पपोलना
[क्रि-अ.] पोपले (दंतविहीन व्यक्ति का) का मुँह में कुछ रखकर चुभलाना या मुँह चलाना।
पप्पी
[सं-स्त्री.] बच्चों का चुंबन; चुम्मी।
पब
(इं.) [सं-पु.] छोटी मद्यशाला; मधुशाला; शराबख़ाना।
पब्लिक
(इं.) [सं-स्त्री.] जनता; जनसाधारण लोग। [वि.] 1. सार्वजनिक; आम 2. शासकीय 3. सर्वविदित; प्रकट; खुला।
पब्लिक सेक्टर
(इं.) [सं-पु.] राजकीय क्षेत्र; लोक उद्यम।
पब्लिशर
(इं.) [सं-पु.] प्रकाशक, पुस्तक आदि प्रकाशित करने वाला व्यक्ति।
पब्लिसिटी
(इं.) [सं-पु.] 1. प्रचार; विज्ञापन 2. ख्याति।
पमार
[सं-पु.] 1. परमार; राजपूत समाज में एक सरनेम 2. चक्रमर्दक नामक औषधि।
पम्मन
[सं-पु.] गेहूँ का एक प्रकार; बड़े दाने वाला उत्तम गेहूँ।
पयश्चय
(सं.) [सं-पु.] झील; जलाशय।
पयस्
(सं.) [सं-पु.] 1. पानी; पय 2. दूध।
पयस्य
(सं.) [सं-पु.] दूध का विकार- घी, दही आदि। [वि.] 1. दूध से निर्मित; दूध का 2. जल का।
पयस्या
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. दुधिया नामक घास 2. एक वनौषधि- क्षीरकाकोली; अर्क पुष्पी; स्वर्णक्षीरी।
पयस्वल
(सं.) [सं-पु.] अज; बकरा। [वि.] जल से युक्त।
पयस्विनी
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. चित्रकूट में बहने वाली एक पवित्र नदी 2. दूध देने वाली गाय; धेनु 3. क्षीरकाकोली; अर्क पुष्पी; स्वर्णक्षीरी और जीवंती 4. बकरी।
पयस्वी
(सं.) [वि.] 1. दूधयुक्त 2. जिसमें जल हो।
पयहारी
(सं.) [सं-पु.] केवल जल या दूध पीकर रहने वाला व्यक्ति।
पयादा
[सं-पु.] प्यादा; शतरंज का एक मोहरा। [वि.] पैदल।
पयान
(सं.) [सं-पु.] गमन; रवानगी; प्रस्थान।
पयाम
(फ़ा.) [सं-पु.] पैगाम; संदेश।
पयार
[सं-पु.] धान आदि के दाने निकाल दिए जाने के बाद बचे सूखे डंठल; पुआल।
पयाल
(सं.) [सं-पु.] पुआल; पयाल; धान; कोदो के वे डंठल जिनसे दाने झाड़ लिए गए हों।
पयोद
(सं.) [सं-पु.] बादल; मेघ।
पयोधर
(सं.) [सं-पु.] 1. स्तन 2. मेघ; बादल 3. तालाब 4. पर्वत; पहाड़।
पयोधि
(सं.) [सं-पु.] सागर; उदधि।
पयोनिधि
(सं.) [सं-पु.] समुद्र; सागर।
पयोष्णी
(सं.) [सं-स्त्री.] विंध्य पर्वत से निकलने वाली एक पुरानी नदी।
पर1
(सं.) [अव्य.] परंतु; किंतु; लेकिन। [पूर्वप्रत्य.] 1. भिन्न, गैर, दूर, बाद या पीछे का अर्थ देने वाला एक प्रत्यय, जैसे- परलोक, परदेस 2. एक पीढ़ी पहले होने का
द्योतक प्रत्यय, जैसे- परदादा, परनाना 3. एक पीढ़ी बाद का द्योतक प्रत्यय, जैसे- परनाती, परपोता। [पर.] 'ऊपर' अर्थ द्योतक, जैसे- मेज़ पर।
पर2
(फ़ा.) [सं-पु.] पक्ष; पंख; डैना। [मु.] -न मारना : पास न आ सकना। -फड़फड़ाना : उड़ान भरने की कोशिश करना।
परंच
(सं.) [अव्य.] 1. परंतु; लेकिन; तो भी 2. और भी।
परंज
(सं.) [सं-पु.] 1. कोल्हू 2. इंद्र का खड्ग 3. फेन 4. छुरी का फल।
परंजन
(सं.) [सं-पु.] पश्चिम दिशा के स्वामी; वरुण।
परंजय
(सं.) [सं-पु.] शत्रुजित; वरुण देवता। [वि.] शत्रु को जीतने वाला।
परंजा
(सं.) [सं-स्त्री.] उत्सव के समय अस्त्र-शस्त्र आदि के प्रदर्शन से उत्पन्न ध्वनि।
परंतप
(सं.) [सं-पु.] 1. अर्जुन; कौंतेय 2. चिंतामणि 3. तामस मनु के एक पुत्र का नाम। [वि.] शत्रुसंतापक; तप द्वारा इंद्रियों को वश में करने वाला।
परंतु
(सं.) [अव्य.] 1. किंतु; मगर; लेकिन 2. इतना होने पर भी (पूर्व कथित स्थिति से वैपरीत्य या अंतर दिखाने वाला शब्द)।
परंतुक
(सं.) [सं-पु.] अनावश्यक और संदेहास्पद तर्क; कुतर्क।
परंदा
(फ़ा.) [सं-पु.] 1. पक्षी; चिड़िया 2. एक तरह की हवादार नाव (प्रायः कश्मीर की झीलों में चलने वाली नाव)।
परंपरया
(सं.) [अव्य.] परंपरा से; परंपरा के अनुसार।
परंपरा
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. वह व्यवहार जिसमें वर्तमान पीढ़ी पुरानी पीढ़ी की देखा-देखी करते हुए उनके रीति-रिवाज़ों का अनुकरण करती है 2. प्राचीन समय से चली आ रही
रीति; परिपाटी; (ट्रैडिशन) 3. बहुत-सी घटनाओं, बातों या कार्यों के एक-एक कर होने का क्रम; अनुक्रम।
परंपराक
(सं.) [सं-पु.] 1. जो पहले परंपरा से होता आ रहा था 2. यज्ञ हेतु पशुओं का वध।
परंपरागत
(सं.) [वि.] 1. परंपरा से प्राप्त होने वाला; परंपरा से संबद्ध 2. पीढ़ी दर पीढ़ी होने वाला।
परंपरानिष्ठ
(सं.) [वि.] परंपरा में निष्ठा रखने वाला; परंपराओं का निष्ठापूर्वक पालन करने वाला।
परंपरानुगत
(सं.) [वि.] 1. परंपरा से चली आ रही 2. परंपरा के अनुसार।
परंपराप्रसूत
(सं.) [वि.] परंपरा से उत्पन्न; परंपरा से प्राप्त।
परंपराबद्ध
(सं.) [वि.] परंपरा से आबद्ध; परंपराओं से बँधा हुआ।
परंपराभंजक
(सं.) [वि.] परंपरा को तोड़ने वाला; परंपरा को नकारने वाला।
परंपराभंजन
(सं.) [सं-पु.] परंपरा को तोड़ना; परंपरा को नकारना।
परंपरावाद
(सं.) [सं-पु.] वह मत या विचारधारा जिसमें परंपरा से चली आ रही बातों या चीज़ों को ही सार्थक, उचित और सत्य मान लिया जाता है; वह सिद्धांत तथा कार्य जिसमें
परंपराबद्ध सिद्धांत या मत को सार्थक माना जाता है; (ट्रैडिशनलिज़म)।
परंपरावादी
(सं.) [वि.] 1. परंपरावाद संबंधी; परंपरावाद का 2. परंपरावाद के सिद्धांत को मानने वाला।
परंपरित
(सं.) [वि.] परंपरायुक्त; परंपरा पर अवलंबित।
परई
(सं.) [सं-स्त्री.] सकोरे की तरह का मिट्टी का एक बड़ा पात्र; मिट्टी का एक बड़ा कसोरा।
परक1
(सं.) [सं-स्त्री.] परकने की क्रिया या भाव; चस्का।
परक2
(सं.) [परप्रत्य.] 1. एक प्रत्यय जो शब्दों के अंत में लगकर निम्नलिखित अर्थ देता है, जैसे- विष्णुपरक नामावली अर्थात ऐसी नामावली जिसके अंत में विष्णु या कोई
उसका वाचक शब्द हो 2. संबंध रखने वाला, जैसे- आध्यात्मपरक; प्रशंसापरक।
परकटा
(फ़ा.+हिं.) [वि.] 1. जिसका पर काट दिया गया हो 2. {ला-अ.} जिसकी शक्ति नष्ट कर दी गई हो या अधिकार छीन लिए गए हों।
परकना
[क्रि-अ.] 1. चसका लगना; आदत लगना; किसी विषय या कार्य में ढीठ बनना 2. हिलना-मिलना।
परकाया प्रवेश
(सं.) [सं-पु.] 1. वह स्थिति जिसमें रचनाकार अन्य व्यक्तियों की अनुभूतियों को स्वयं में आत्मसात कर लेते हैं 2. अपने आत्म या मन को किसी दूसरे शरीर में प्रवेश
कराने की क्रिया या भाव।
परकार
(फ़ा.) [सं-पु.] वृत्त अथवा गोलाई खींचने का एक उपकरण।
परकाला1
(सं.) [सं-पु.] 1. सीढ़ी 2. देहरी; चौखट; दहलीज़।
परकाला2
(फ़ा.) [सं-पु.] 1. टुकड़ा; शीशे का टुकड़ा 2. चिनगारी; अंगार।
परकासना
[क्रि-स.] प्रकाशित करना; रोशन करना।
परकीय
(सं.) [वि.] जो किसी दूसरे का हो; पराया; जिसका संबंध दूसरे से हो।
परकीया
(सं.) [सं-स्त्री.] वह (विवाहिता) नायिका जो गुप्त रूप से परपुरुष से प्यार करती है; (काव्यशास्त्र) नायिका का एक भेद।
परकोटा
[सं-पु.] गढ़ या किले की रक्षा के लिए बनाया गया घेरा जिसके ऊपर टहलने के लिए जगह होती है।
परक्रामण
[सं-पु.] पूरे अधिकारों के साथ (अनुबंधपत्रादि) किसी दूसरे को हस्तांतरित करने की क्रिया; (नेगोशिएशन)।
परक्षेत्र
(सं.) [सं-पु.] पराया खेत; पराया शरीर। [सं-स्त्री.] पराई स्त्री।
परख
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. परखने की क्रिया या भाव; अच्छे-बुरे की समझ, योग्यता या पहचान 2. जाँच; परीक्षण; परीक्षा; (टेस्ट)।
परखचा
[सं-पु.] खंड; टुकड़ा। [मु.] परखच्चे उड़ाना : टुकड़े-टुकड़े करना; छीछालेदर करना।
परखनली
[सं-स्त्री.] परीक्षण नालिका; विज्ञान प्रयोगशाला में प्रयुक्त एक उपकरण; शीशे की पारदर्शी एक ओर ही मुखवाली नलिका; (टेस्टट्यूब)।
परखना
[क्रि-स.] किसी व्यक्ति या वस्तु को उसके गुण-दोष के आधार पर भली-भाँति जाँचना या देखना; अच्छे-बुरे की पहचान करना।
परखवाना
[क्रि-स.] परखाना; परखने का काम दूसरे से करवाना; जाँच या परीक्षा करवाना।
परखी
[सं-स्त्री.] लोहे का छोटा, लंबा और पतला शंक्वाकार उपकरण जिसकी सहायता से बोरे में भरे अनाज को नमूने के तौर पर निकाला जाता है।
परखैया
[सं-पु.] परख करने वाला; परखने वाला।
परगाछा
[सं-पु.] दूसरे पेड़ों पर उगने वाला पौधा।
परचम
(फ़ा.) [सं-पु.] 1. झंडे का कपड़ा 2. पताका; झंडा।
परचा
(फ़ा.) [सं-पु.] 1. कागज़ का टुकड़ा; चिट 2. प्रश्नपत्र 3 कागज़ के छोटे टुकड़े पर लिखी हुई बात या सूचना 4. कोई छोटा विज्ञापन 5. शोधपत्र 6. नामांकनपत्र 7.
पत्र-पत्रिका का कोई अंक 8. रहस्य संप्रदाय में किसी बात का परिचय।
परची
(फ़ा.) [सं-स्त्री.] चिट; कागज़ के टुकड़े पर लिखी हुई सूचना।
परचून
(सं.) [सं-पु.] खाना बनाने का छोटा-मोटा सामान; ख़ुदरा, जैसे- आटा, दाल, चावल आदि।
परचूनियाँ
[सं-पु.] ख़ुदरा व्यापारी; (रिटेलर)।
परछत्ती
[सं-स्त्री.] 1. सामान रखने के लिए घर के अंदर दीवार से लगाकर बनाया जाने वाला ख़ाना या टाँड़ 2. फूस आदि का हलका छप्पर।
परछन
[सं-पु.] 1. एक वैवाहिक लोकाचार- वर के द्वार पर पहुँचने पर होने वाली एक रीति जिसमें स्त्रियाँ वर को दही एवं अक्षत का टीका लगाती हैं, आरती करती हैं तथा उसके
ऊपर मूसल, बट्टा (लोढ़ा) आदि घुमाती हैं 2. वर की आरती उतारने की रीति।
परछना
[क्रि-स.] परछन करना; वर की आरती करना।
परछाँई
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. किसी दिशा से प्रकाश पड़ने से किसी वस्तु या व्यक्ति की उसके विपरीत दिशा में बनने वाली अंधेरे की आकृति; प्रतिच्छाया 2. जल, दर्पण आदि में
दिखाई पड़ने वाला किसी वस्तु या व्यक्ति का प्रतिबिंब या अक्स। [मु.] किसी की परछाँई से डरना : किसी के पास जाने तक से घबराना।
परछाई
(सं.) [सं-स्त्री.] दे. परछाँई।
परज
(सं.) [सं-पु.] 1. कोयल; कोकिल 2. रात के अंतिम पहर में गाया जाने वाला एक राग। [वि.] अपने पिता के अतिरिक्त अन्य से उत्पन्न; परजात।
परजवट
[सं-पु.] दे. परजौट।
परजा
[सं-स्त्री.] दूसरी जाति। [वि.] दूसरी जाति का।
परजात
[सं-पु.] 1. दूसरी जाति का व्यक्ति 2. कोयल। [ वि.] 1. दूसरे से उत्पन्न 2. दूसरी जाति से संबध रखने वाला।
परजाता
[सं-पु.] 1. हरसिंगार का पौधा 2. हरसिंगार का फूल; पारिजात।
परजीवी
(सं.) [सं-पु.] 1. ऐसे जीवजंतु या वनस्पति जो आहार या अस्तित्व के लिए दूसरे जीवों पर निर्भर रहते है, जैसे- अमरबेल, पिस्सू, मलेरिया आदि; (पैरासाइट) 2. दूसरों
के सहारे जीवन बिताने वाला व्यक्ति। [वि.] दूसरों पर निर्भर रहने वाला।
परजौट
[सं-पु.] घर आदि बनाने हेतु सालाना दर पर ज़मीन लेने की प्रथा; मकान बनाने की ज़मीन का सालाना ख़िराज; (टैक्स)।
परणना
(सं.) [क्रि-स.] ब्याहना। [क्रि-अ.] ब्याहा जाना; विवाहित होना।
परणाना
[क्रि-स.] दे. परणना।
परत
(सं.) [सं-पु.] 1. स्तर; तह 2. किसी वस्तु को मोड़ने पर बनने वाला उसका मोड़; तह।
परतंत्र
(सं.) [वि.] जो दूसरे के शासन या नियंत्रण में हो; गुलाम; पराधीन; परवश; 'स्वतंत्र' का उलटा।
परतंत्रता
(सं.) [सं-स्त्री.] परवशता; गुलामी; 'स्वतंत्रता' का विपर्यय।
परतः
(सं.) [क्रि.वि.] 1. आगे; परे 2. पीछे; पश्चात 3. दूसरे से।
परत-दर-परत
[क्रि.वि.] तह-दर-तह; एक के बाद एक कई परतें।
परतदार
(सं.+अ.) [वि.] परतवाला; तहयुक्त; स्तरवाला।
परतर
(सं.) [वि.] ठीक बाद का; क्रमानुसार जो ठीक बाद का हो।
परतल
(सं.) [सं-पु.] 1. सामान ढोने वाले घोड़े या खच्चर की पीठ पर रखी जाने वाली बोरी या बोरा 2. गोनी या गून जिसमें सामान भरा या लादा जाता है।
परतला
(सं.) [सं-पु.] कंधे से लटकाई जाने वाली कमर तक की कपड़े या चमड़े की बनी पट्टी जिसमें तलवार लटकाई जाती है।
परतली
(सं.) [सं-स्त्री.] एक प्रकार की चमड़े या कपड़े की पट्टी जो कंधे से कमर तक तिरछी पहनी जाती है।
परताल
[सं-स्त्री.] पड़ताल; जाँच; निरीक्षण।
परती
[सं-स्त्री.] 1. वह ज़मीन जिसे जोता-बोया न गया हो 2. बंजर 3. वह चादर जिससे हवा करके अनाज के दानों का भूसा उड़ाते हैं।
परत्व
(सं.) [सं-पु.] पराया या अन्य होने का भाव।
परथन
[सं-स्त्री.] पलेथन; वह सूखा आटा जिसे लोई पर लगाकर रोटी बेलते हैं।
परदा
(फ़ा.) [सं-पु.] 1. आड़ करने के लिए लटकाया हुआ कपड़ा; पट; (कर्टेन) 2. ओट; आड़ 3. दुराव; छिपाव 4. स्त्रियों के घूँघट निकालने की प्रथा 5. रंगमंच पर लगाया जाने
वाला आड़ करने का वह कपड़ा जो समय-समय पर उठाया और गिराया जाता है 6. आड़ करने के लिए बनाई जाने वाली दीवार 7. जनानख़ाना 8. मर्यादा; लाज 9. रहस्य 10. हारमोनियम आदि
में स्वर निकलने का स्थान 11. कान का आवरण 12. फ़ारसी के बारह रागों में से हर एक। [मु.] -खोलना : रहस्य प्रकट करना। -डालना :
छिपाना। आँखों पर परदा पड़ना : वास्तविकता दिखाई न देना। -करना : परदे में रहना।
परदादा
[सं-पु.] प्रपितामह; पिता का दादा।
परदानशीन
(फ़ा.) [वि.] परदे में रहने वाली (स्त्री); पराए मर्दों के सामने अपने मुँह को कपड़े से ढककर रखने वाली (स्त्री)।
परदाफाश
(फ़ा.) [सं-पु.] किसी गुप्त विषय या वस्तु को प्रकट करने की कार्यवाही; प्रकटीकरण; ख़ुलासा; रहस्योद्घाटन; भेद खोलना।
परदारी
(सं.) [सं-स्त्री.] परस्त्री; दूसरे की पत्नी; परकीया।
परदुखकातर
(सं.) [वि.] दूसरे के दुख से दुखी होने वाला।
परदेश
(सं.) [सं-पु.] वह देश जहाँ कोई व्यक्ति अपना देश छोड़ कर आया हो; विदेश; अपने देश से भिन्न देश।
परदेशी
(सं.) [सं-पु.] 1. दूसरे देश में रहने वाला या परदेस से आया हुआ व्यक्ति; विदेशी 2. बाहरी। [वि.] परदेस संबंधी; दूसरे देश का; परदेस से आया हुआ।
परदेस
[सं-पु.] दे. परदेश।
परदेसी
[सं-पु.] दे. परदेशी।
परधर्म
(सं.) [सं-पु.] अपने धर्म से भिन्न धर्म; दूसरा धर्म।
परधाम
(सं.) [सं-पु.] 1. बैकुंठधाम 2. मृत्युलोक।
परनाना
[सं-पु.] नाना का पिता; माता का दादा।
परनानी
[सं-स्त्री.] परनाना की पत्नी; माता की दादी।
परनाला
[सं-पु.] मोरी; बड़ा चौड़ा नाला।
परनाली
[सं-स्त्री.] 1. छोटी मोरी; छोटी पतली नाली 2. घोड़ों के पीठ के मध्य का नीचापन (पुट्ठों और कंधों की अपेक्षा) जो उनके शुभ लक्षणों में गिना जाता है।
परनिंदक
(सं.) [सं-पु.] दूसरे की निंदा (शिकायत) करने वाला।
परपट
[सं-पु.] समतल भूमि; चौरस मैदान। [वि.] चौपट।
परपद
(सं.) [सं-पु.] 1. श्रेष्ठतम पद या स्थान 2. मोक्ष।
परपराना
[अव्य.] मिर्च जैसी कड़वी चीज़ों का जीभ या मुँह में लगने पर होने वाला अनुभव; चुनचुनाना।
परपराहट
[सं-स्त्री.] मिर्ची आदि लगने से जीभ की जलन।
परपार
(सं.) [सं-पु.] दूसरी ओर का तट या किनारा।
परपीड़क
(सं.) [वि.] 1. दूसरों को सताने वाला 2. दूसरे की पीड़ा या दर्द को समझने वाला; दूसरे के दर्द को सहानुभूतिपूर्वक अनुभव करने वाला; पराई पीड़ा समझने वाला।
परपीड़न
(सं.) [क्रि-अ.] दूसरे की पीड़ा; कष्ट; पर-दुख।
परपुरुष
(सं.) [सं-पु.] परकीया नायिका से प्रेम करने वाला पुरुष; विवाहिता स्त्री की दृष्टि से उसके पति से भिन्न पुरुष।
परपुष्ट
(सं.) [वि.] 1. दूसरे से पोषित 2. दूसरे द्वारा समर्थित।
परपोता
[सं-पु.] परपौत्र; पोता का पुत्र; पुत्र का पोता।
परफ़ार्मर
(इं.) [सं-पु.] वह जो मंच पर गीत, नृत्य आदि की प्रस्तुति देता है; वह जो प्रदर्शन करता है; प्रदर्शक; अभिनेता; कलाकार।
परबत्ता
(सं.) [सं-पु.] पहाड़ी तोता।
परबाबा
[सं-पु.] दादा या बाबा के पिता; परदादा।
परब्रह्म
(सं.) [सं-पु.] जगत से परे निर्गुण और निरुपाधि ब्रह्म; ब्रह्म का निर्गुण स्वरूप।
परभृत
(सं.) [सं-पु.] 1. जिसका पालन किसी और ने किया हो 2. कोयल 3. कार्तिकेय।
परम
(सं.) [सं-पु.] वह जो मुख्य या सर्वोच्च हो। [वि.] 1. उच्च; उत्कृष्ट; श्रेष्ठ 2. अत्यधिक; सबसे बढ़कर 3. प्रधान; मुख्य।
परमआज्ञा
(सं.) [सं-स्त्री.] ऐसी आज्ञा जो अंतिम हो और जिसमें किसी प्रकार का परिवर्तन या फेर-बदल न हो सकता है।
परमक
(सं.) [वि.] 1. सर्वोत्तम; सर्वोच्च; सर्वश्रेष्ठ 2. परले सिरे का; चरम सीमा का।
परमगति
(सं.) [सं-स्त्री.] मुक्ति; मोक्ष।
परमटा
[सं-पु.] पनैला; वह चिकना रंगीन कपड़ा जो अस्तर के काम आता है।
परम-तत्व
(सं.) [सं-पु.] 1. सृष्टि या विकास का कारक मूल तत्व 2. परब्रह्म।
परमधाम
(सं.) [सं-पु.] 1. बैकुंठ 2. स्वर्गलोक।
परमपद
(सं.) [सं-पु.] 1. श्रेष्ठतम पद या स्थान 2. मोक्ष; मुक्ति।
परमपिता
(सं.) [सं-पु.] परब्रह्म; ईश्वर; परमेश्वर।
परमपुरुष
(सं.) [सं-पु.] 1. वह व्यक्ति जो पुरुषों में श्रेष्ठ हो 2. परमात्मा 3. विष्णु।
परमपूज्य
(सं.) [वि.] 1. वह व्यक्ति जो पूजा करने के योग्य हो 2. व्यावहारिक और आचरणशील (व्यक्ति) 3. सारे जगत में पूजनीय।
परमप्रिय
(सं.) [वि.] सबसे प्रिय (व्यक्ति); प्राणप्रिय; प्राणप्यारा।
परमब्रह्म
(सं.) [सं-पु.] 1. निर्गुण और उपाधि रहित ब्रह्म 2. ईश्वर।
परममित्र
(सं.) [सं-पु.] 1. सबसे प्रिय मित्र 2. लंगोटिया यार।
परमवीर
(सं.) [सं-पु.] सबसे अधिक बलवान; ज़्यादा शक्तिशाली व्यक्ति। [वि.] वीरों में श्रेष्ठ।
परमसत्ता
(सं.) [सं-पु.] वह सत्ता या शक्ति जो अन्य सत्ता को न मानती हो अर्थात जिसके ऊपर कोई और सत्ता न हो; प्रभुसत्ता; (एब्सोल्यूट पॉवर)।
परमसत्ताधारी
(सं.) [वि.] सबसे बड़ी सत्ता या अधिकार को प्राप्त करने वाला; सर्वेसर्वा; (सॉवरेन)।
परमहंस
(सं.) [सं-पु.] 1. एक प्रकार का संन्यासी; परिव्राजक (इनके लिए शिखा, सूत्र आदि महत्वपूर्ण नहीं होते) 2. परमेश्वर 3. ज्ञान की परमावस्था तक पहुँचा हुआ
संन्यासी।
परमाणविक
(सं.) [वि.] परमाणु संबंधी।
परमाणु
(सं.) [सं-पु.] (विज्ञान) अत्यंत क्षुद्र कणों- प्रोटॉन, न्यूट्रॉन तथा इलेक्ट्रॉन से निर्मित पदार्थ का वह सूक्ष्मतम कण जो रासायनिक क्रिया में भाग लेता है।
परमाणु ऊर्जा
(सं.) [सं-स्त्री.] परमाणु विखंडन से उत्पन्न ऊर्जा; (ऐटॉमिक इनर्जी)।
परमाणु बम
(सं.) [सं-पु.] एक प्रकार का गोला (बम) जिसमें रासायनिक क्रियाओं (यूरैनियम नाभिक की विखंडन शृंखला) द्वारा अणु का विस्फोट होता है तथा जिसके फलस्वरूप ढेर-सी
ऊर्जा विस्फोट के रूप में विमुक्त होती है; (ऐटम बम)।
परमाणु भट्टी
(सं.) [सं-स्त्री.] वह भट्टी जिसमें भारी धातु (पारा, प्लुटेनियम आदि) के टुकड़े रख देने के बाद वे रेडियो सक्रिय हो जाते हैं; (न्यूक्लियर रिऐक्टर)।
परमाणु भार
(सं.) [सं-पु.] वह संख्या जो यह प्रदर्शित करती है कि किसी तत्व का एक परमाणु कार्बन-12 के परमाणु के 1/12 भाग द्रव्यमान अथवा हाइड्रोज़न के 1.008 भाग द्रव्यमान
से कितना गुना भारी है; (ऐटॉमिक वेट)। परमाणु भार = तत्व के परमाणु का द्रव्यमान/ कार्बन।
परमाणुवाद
(सं.) [सं-पु.] वैशेषिक दर्शन का वह सिद्धांत जो पदार्थों की निर्मिति को परमाणुओं के संयोग से हुआ मानता है।
परमाणुवादी
(सं.) [वि.] परमाणुवाद के सिद्धांत को मानने वाला; वैशेषिक दर्शन को मानने वाला।
परमाणु विघटन
(सं.) [सं-पु.] परमाणु के नाभिक का विखंडन; (ऐटॉमिक फ़्यूज़न)।
परमाणु संख्या
(सं.) [सं-पु.] किसी परमाणु के नाभिक में उपस्थित प्रोटॉनों को व्यक्त करने वाली संख्या।
परमात्म
(सं.) [वि.] परमात्मा संबंधी; परमात्मा का।
परमात्मपरायण
(सं.) [वि.] परमात्मा की आराधना या सेवा में लगा हुआ।
परमात्मा
(सं.) [सं-पु.] परमसत्ता; ब्रह्म; ईश्वर; भगवान; ख़ुदा। [वि.] जो श्रेष्ठ और उत्तम हो।
परमानंद
(सं.) [सं-पु.] आनंदस्वरुप ब्रह्म; आत्मा को परमात्मा में लीन करने पर प्राप्त उच्चतम आनंद।
परमायु
(सं.) [सं-स्त्री.] मनुष्य के जीवन-काल की चरम सीमा (जो लगभग सौ वर्ष मानी जाती है)।
परमार्थ
(सं.) [सं-पु.] 1. भलाई; उपकार; परोपकार 2. ऐसा पदार्थ या वस्तु जो सबसे बढ़कर हो; उत्कृष्ट वस्तु 3. मोक्ष 4. नाम, रूप आदि से परे वास्तविक परम तत्व 5. यथार्थ
तत्व 6. नित्य एवं अबाधित पदार्थ 7. सत्य; ब्रह्म 8. ईश्वर।
परमार्थपरायण
(सं.) [वि.] परमार्थ में लगा रहने वाला; परमार्थी।
परमावश्यक
(सं.) [वि.] अति अनिवार्य; बहुत ज़रूरी; (नेसेसरी)।
परमिट
(इं.) [सं-पु.] 1. कोई काम करने या कोई वस्तु ख़रीदने की अनुमति जो सरकार द्वारा आधिकारिक तौर पर लिखित रूप में दी जाती है 2. आधिकारिक अनुमति पत्र 3. वह कागज़
जिसपर अनुमति लिखी जाती है।
परमुखापेक्षी
(सं.) [वि.] प्रत्येक बात के लिए दूसरों का मुँह ताकने वाला; दूसरे से सहयोग के लिए लालायित।
परमेश
(सं.) [सं-पु.] सबसे बड़ा ईश्वर; परमात्मा।
परमेश्वर
(सं.) [सं-पु.] 1. सर्वशक्तिमान ईश्वर 2. सगुण ब्रह्म; ब्रह्मा; विष्णु; महेश; ओंकार।
परमेश्वरी
(सं.) [सं-स्त्री.] सृष्टि मंडल की मूल अधिष्ठाता शक्ति; आदिशक्ति; परमशक्ति माता भुवनेश्वरी; परब्रह्म का स्त्री रूप; दुर्गा। [वि.] 1. परमेश्वर संबंधी 2.
दैवीय; ईश्वरीय।
परमेष्ट
(सं.) [वि.] जो परम इष्ट हो; जो सबसे अधिक प्रिय हो।
परमेष्टी
(सं.) [सं-पु.] 1. प्राचीन काल का एक प्रकार का यज्ञ 2. अग्नि, जल, वायु आदि तत्व 3. ब्रह्मा, विष्णु, शिव आदि देवता।
परराष्ट्र
(सं.) [सं-पु.] अपने राष्ट्र से भिन्न राष्ट्र; अन्य राष्ट्र; विदेश।
परला
[वि.] उधर का; उस ओर का।
परलोक
(सं.) [सं-पु.] इस लोक से भिन्न लोक, दूसरा लोक, स्वर्ग आदि।
परलोकवास
(सं.) [सं-पु.] मृत्यु; देहांत।
परलोकवासी
(सं.) [वि.] परलोक में वास करने वाला; मरा हुआ; मृत।
परवर
(फ़ा.) [सं-पु.] पालक; पालनकर्ता।
परवरदिगार
(फ़ा.) [सं-पु.] ईश्वर; भगवान।
परवरिश
(फ़ा.) [सं-स्त्री.] पालन-पोषण; देखरेख।
परवर्ती
(सं.) [वि.] 1. बाद के काल का 2. घटना क्रम के अनुसार बाद का।
परवल
(सं.) [सं-पु.] 1. एक प्रसिद्ध लता 2. उक्त लता का फल जिसकी सब्ज़ी, तरकारी बनाई जाती है 3. चिचड़ा नामक पौधा जिसके फलों की तरकारी बनती है।
परवश
(सं.) [वि.] 1. अन्याश्रित 2. जो दूसरे के वश में हो; पराधीन।
परवशता
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. अपना वश न चलने का भाव; मजबूरी 2. पराधीनता।
परवश्य
(सं.) [वि.] दे. परवश।
परवा1
[सं-पु.] मिट्टी का कटोरे जैसा पात्र; पुरवा (कोसा या कसोरा)। [सं-स्त्री.] 1. एक प्रकार की घास 2. प्रतिपदा तिथि 3. सहारा; भरोसा; अवलंब।
परवा2
(फ़ा.) [सं-स्त्री.] 1. सोच; चिंता 2. गरज़; ध्यान; ख़याल।
परवाज़
(फ़ा.) [सं-स्त्री.] 1. उड़ान 2. अहंकार; नाज़। [वि.] 1. उड़ने वाला 2. डींग मारने वाला।
परवान
(सं.) [सं-पु.] 1. प्रमाण 2. सीमा; हद 3. अवधि 4. जहाज़ का मस्तूल। [वि.] 1. उचित 2. विश्वसनीय एवं प्रामाणिक। [मु.] -चढ़ना : सत्य सिद्ध होना।
परवानगी
(फ़ा.) [सं-स्त्री.] अनुमति; आज्ञा।
परवाना1
[सं-पु.] खली, चूना, बरी आदि नापने का एक पैमाना, जो प्रायः लकड़ी का बना होता है।
परवाना2
(फ़ा.) [सं-पु.] 1. पतंगा; शलभ 2. आदेशपत्र; नियुक्तिपत्र 3. भक्त 4. आसक्त; मुग्ध; किसी पर स्वयं को बलिदान कर देने वाला व्यक्ति।
परवाल
[सं-पु.] 1. प्रवाल; मूँगा 2. कोपल; कल्ला 3. सितार आदि का बीचवाला लंबा डंड; बीन।
परवाह
[सं-स्त्री.] दे. परवा। (लोक प्रयुक्त) [सं-पु.] प्रवाह; शव को बहा देना।
परशु
(सं.) [सं-पु.] फरसा; कुल्हाड़ी की तरह का एक शस्त्र।
परशुराम
(सं.) [सं-पु.] रेणुका के गर्भ से उत्पन्न ऋषि जमदग्नि के पुत्र। परशु धारण करने के कारण इनका नाम परशुराम पड़ा।
परसों
(सं.) [अव्य.] 1. बीते हुए कल से पहले का दिन 2. आगामी कल के बाद का दिन।
परस्त
(फ़ा.) [वि.] 1. पूजा करने वाला 2. अनुयायी।
परस्पर
(सं.) [अव्य.] 1. एक दूसरे के साथ 2. एक दूसरे के प्रति 3. दो या दो से अधिक पक्षों में।
परस्परता
(सं.) [सं-स्त्री.] एक दूसरे के साथ रहने की अवस्था या भाव; आपसदारी।
परस्परव्याप्ति
(सं.) [वि.] वस्तुओं, बातों या सिद्धांतों का आपस में आंशिक रूप में एक दूसरे के क्षेत्र का अतिक्रमण कर उनमें व्याप्त होना; (ओवरलैपिंग)।
परस्परावलंबन
(सं.) [सं-पु.] आपस में एक-दूसरे पर निर्भर रहने की अवस्था या भाव।
परस्परोपमा
(सं.) [सं-स्त्री.] (काव्यशास्त्र) उपमेयोपमा; उपमा अलंकार का एक भेद।
परस्व
(सं.) [सं-पु.] 1. परायापन 2. परतंत्रता; पराधीनता।
परहित
(सं.) [सं-पु.] 1. दूसरे का हित; उपकार 2. जनहित।
परहेज़
(फ़ा.) [सं-पु.] 1. ऐसी वस्तुओं का सेवन न करना जिनसे स्वास्थ बिगड़ता हो; बीमार द्वारा हानिप्रद पदार्थ का सेवन न करना; कुपथ्य से दूर रहना 2. बुरी बातों या
चीज़ों से बचाव 3. संयम रखना 4. निषेध।
परहेज़गार
(फ़ा.) [वि.] परहेज करने वाला; संयमी।
परहेज़ी
(फ़ा.) [वि.] पथ्य; रोगी की दशानुसार प्रदत्त भोजन।
परा
(सं.) [पूर्वप्रत्य.] एक प्रत्यय जो निम्नलिखित अर्थ देता है- 1. विपरीत अर्थ, जैसे- पराजय 2. आगे की ओर, जैसे- पराक्रमण 3. प्राधान्य, जैसे- परागत 4. अभिमुख्य,
जैसे- पराक्रांत 5. विक्रम, जैसे- पराक्रम आदि अर्थों को प्रकट करता है।
पराँठा
[सं-पु.] तवे पर घी या तेल लगाकर सेंकी हुई रोटी; पराठा।
परांग
(सं.) [सं-पु.] 1. दूसरे का अंग 2. उत्तम (श्रेष्ठ) अंग।
परांगद
(सं.) [सं-पु.] महादेव; शिव।
परांज
(सं.) [सं-पु.] 1. तेल पेरने के लिए प्रयुक्त कोल्हू 2. तलवार या छुरी का फल (धार) 3. फेन।
परांजन
(सं.) [सं-पु.] दे. परांज।
परांत
(सं.) [सं-पु.] मृत्यु काल; प्राणांत।
परांतक
(सं.) [सं-पु.] मृत्युंजय; शिव।
पराई
[सं-स्त्री.] अपनी से भिन्न; दूसरे की; 'पराया' का स्त्रीलिंग।
पराकाष्ठा
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. चरम सीमा; अंत; चरम कोटि; (क्लाइमैक्स) 2. उच्चता; उत्कृष्टता 3. {ला-अ.} किसी कार्य या बात को ऐसी स्थिति में ले जाना जहाँ से आगे ले
जाने की कल्पना असंभव हो।
पराक्रम
(सं.) [सं-पु.] 1. शौर्य; विक्रम; बल; पुरुषार्थ 2. अभियान; साहसिक कार्य।
पराक्रमी
(सं.) [वि.] पराक्रमवाला; पुरुषार्थी; शूर।
पराक्रांत
(सं.) [वि.] 1. आक्रांत; पीछे की ओर मुड़ा हुआ 2. उत्साह और वीरतायुक्त।
पराग
(सं.) [सं-पु.] 1. पुष्परज 2. धूल; रज 3. चंदन 4. कपूर का रज (चूर्ण) 5. एक प्राचीन पर्वत का नाम 6. एक प्रकार का अंगराग (सुगंधित चूर्ण)।
परागकेसर
(सं.) [सं-पु.] फूल के बीच उगा हुआ केसर या सींका।
परागकोश
(सं.) [सं-पु.] फूल का वह भाग जिसके अंदर पराग बनता है।
परागण
(सं.) [सं-पु.] पेड़-पौधों का पुष्परज या पराग से युक्त होना या किया जाना; (पालिनेशन)।
परागत
(सं.) [वि.] 1. दूर गया हुआ; विस्तृत 2. मृत 3. आवृत; वेष्टित।
पराङ्मुख
(सं.) [वि.] 1. विमुख 2. विरुद्ध; प्रतिकूल; उदासीन।
पराजय
(सं.) [सं-स्त्री.] शिकस्त; पराभव; हार।
पराजित
(सं.) [वि.] हारा हुआ; परास्त; विजित।
परात
(सं.) [सं-स्त्री.] थाली के आकार का ऊँचे कोर वाला बरतन; बड़ा थाल।
परात्पर
(सं.) [सं-पु.] जो सबसे परे हो; परमात्मा। [वि.] सर्वश्रेष्ठ।
परादन
(सं.) [सं-पु.] एक प्रकार का घोड़ा; फ़ारस या अरब का एक घोड़ा।
पराधि
(सं.) [सं-स्त्री.] अति तीव्र मानसिक व्यथा। [वि.] जो दूसरे के अधीन हो।
पराधीन
(सं.) [वि.] 1. जो दूसरे के अधीन हो; परवश; परतंत्र 2. जिसपर किसी दूसरे का अंकुश या शासन हो।
पराधीनता
(सं.) [सं-स्त्री.] पराधीन होने की अवस्था या भाव।
परानंद
(सं.) [सं-पु.] परमानंद।
परानुभूति
(सं.) [सं-पु.] दूसरे के सुख-दुख की अनुभूति; संवेदना।
परान्न
(सं.) [सं-पु.] दूसरे का दिया हुआ अन्न या भोजन।
परापर
(सं.) [सं-पु.] फालसा नामक फल। [वि.] वैशेषिक दर्शन में परत्व और अपरत्व दोनों गुणों से युक्त; पर और अपर; अच्छा-बुरा।
पराभव
(सं.) [सं-पु.] पतन; पराजय; हार; मानमर्दन।
पराभिक्ष
(सं.) [सं-पु.] थोड़ी भिक्षा से जीवन निर्वाह करने वाला वानप्रस्थ।
पराभूत
(सं.) [वि.] पराजित; हारा हुआ।
पराभूति
(सं.) [सं-स्त्री.] पराभव; पराजय; हार; विनाश; तिरस्कार।
परामर्श
(सं.) [सं-पु.] 1. सलाह; युक्ति 2. निर्णय 3. (न्यायशास्त्र) पक्ष में हेतु के होने की अनुमिति; व्याप्य हेतु पक्षधर्म होना।
परामर्शदाता
(सं.) [सं-पु.] दूसरों को परमर्श या सलाह देने वाला व्यक्ति।
परामर्शदात्री
(सं.) [सं-स्त्री.] परामर्शदायिनी; सलाह देने वाली स्त्री।
परामर्शालय
(सं.) [सं-पु.] परामर्शगृह; परामर्शशाला; परामर्शकेंद्र; (काउंसिलिंग सेंटर)।
परायचा
[सं-पु.] सिले हुए कपड़े बेचने वाला व्यक्ति; वह जो कपड़े के छोटे-छोटे टुकड़ों से टोपियाँ बना कर बेचता है।
परायण
(सं.) [सं-पु.] 1. अत्यासक्ति 2. अंतिम लक्ष्य 3. सार 4. शरणस्थल 5. विष्णु। [वि.] 1. लगा हुआ; निरत 2. किसी के प्रति पूर्ण निष्ठा या भक्तिवाला।
परायत्त
(सं.) [वि.] पराधीन; परतंत्र; पराश्रित।
पराया
(सं.) [वि.] 1. दूसरे का; अन्य का; अपने से भिन्न; अलग 2. जो आत्मीय न हो; गैर; बिराना; जिसका संबंध दूसरे से हो; आत्मीय से भिन्न; 'अपना' का विलोम।
परायु
(सं.) [वि.] जिसकी आयु सबसे अधिक हो। [सं-पु.] ब्रह्मा।
परार्थ
(सं.) [सं-पु.] 1. अन्य के प्रयोजन, उद्देश्य या कार्य हेतु 2. परमार्थ 2. सर्वाधिक लाभ। [वि.] अन्य के निमित्त।
परार्थवाद
(सं.) [सं-पु.] मनुष्य को सदा दूसरों की भलाई के काम में संलग्न रहने की प्रेरणा देने वाला सिद्धांत।
परार्ध
(सं.) [सं-पु.] 1. उत्तरार्ध; बाद वाला आधा हिस्सा 2. गणित की सबसे बड़ी 'एक शंख' की संख्या; 1,00,00,00,00,00,00,00,000 3. ब्रह्मा की आयु का परवर्ती आधा भाग।
पराव
(सं.) [सं-पु.] 1. परायापन 2. छिपाव; दुराव।
परावर
(सं.) [सं-पु.] 1. विश्व 2. अखिलता 3. कार्य-कारण। [वि.] 1. पहले और पीछे का 2. पास और दूर का 3. परंपरागत 4. सर्वश्रेष्ठ।
परावरा
(सं.) [सं-स्त्री.] (उपनिषद्) एक प्रकार की श्रेष्ठ (परा) विद्या।
परावर्तन
(सं.) [सं-पु.] 1. प्रत्यावर्तन; पीछे लौटना 2. (जैन दर्शन) धार्मिक ग्रंथों के पाठ की पुनरावृत्ति; उद्धरणी 3. विनिमय 4. प्रकाश की किरण का परावर्तन 5. फ़ैसला
उलटना।
परावर्तित
(सं.) [वि.] 1. परावर्तन के बाद लौटी किरण; परावृत्त 2. लौटाया हुआ।
परावर्ती
(सं.) [वि.] लौटकर आने वाला।
परावलंबी
(सं.) [वि.] दूसरों पर अवलंबित या आश्रित।
पराविद्या
(सं.) [सं-स्त्री.] तत्वज्ञान; ब्रह्मज्ञान।
परावृत्त
(सं.) [वि.] लौटाया हुआ; लौटा हुआ; परावर्तित।
पराव्याध
(सं.) [सं-पु.] परास; हाथ से पत्थर फेंकने पर वह जहाँ तक जाए वहाँ तक की माप; (रेंज)।
पराशर
(सं.) [सं-पु.] 1. एक गोत्र प्रवर्तक ऋषि जो कृष्णद्वैपायन व्यास के पिता तथा ऋषि वशिष्ठ के पौत्र थे; 'पराशर स्मृति' के रचयिता 2. एक गोत्र का नाम 3. एक नाग 4.
आयुर्वेद के एक प्रधान आचार्य 5. 'वृहत्पराशरी' नामक ज्योतिष ग्रंथ के रचयिता।।
पराश्रय
(सं.) [सं-पु.] 1. दूसरे का आश्रय, सहारा या आलंबन 2. पराधीनता; परवशता। [वि.] दूसरे पर आश्रित रहने वाला।
पराश्रयी
(सं.) [सं-पु.] कीटाणुओं, वनस्पतियों आदि का वह वर्ग जो दूसरे जंतुओं, वनस्पतियों आदि के अंगों पर रहकर उनका ख़ून या रस पीकर जीवन निर्वाह करते हो। [वि.] दूसरे
के आश्रय एवं सहारे पर रहने वाला; परजीवी।
पराश्रित
(सं.) [वि.] दूसरों पर आश्रित रहने वाला; दूसरों के आश्रय में रहने वाला; दूसरे के भरोसे काम करने वाला; परमुखापेक्षी।
परासन
(सं.) [सं-पु.] हत्या; वध; मारण।
परासपीपल
[सं-पु.] पारिस पीपल; भिंडी की जाति का एक पौधा।
परासी
(सं.) [सं-स्त्री.] एक रागिनी 'पलासश्री'; पलासी नामक रागिनी।
परास्त
(सं.) [वि.] 1. पराजित; हारा हुआ या हराया हुआ 2. दबा हुआ; झुका हुआ 3. विनष्ट; ध्वस्त।
पराह
(सं.) [सं-पु.] अन्य दिन या दूसरा दिन।
पराहत
(सं.) [सं-पु.] आघात। [वि.] 1. आक्रांत 2. जोता हुआ 3. खदेड़ा हुआ; हटाया हुआ 4. खंडित 5. ध्वस्त।
पराहृत
(सं.) [वि.] हटाया हुआ; अलग किया हुआ।
पराह्न
(सं.) [सं-पु.] दोपहर के बाद का समय; अपराह्न।
परि
(सं.) [पूर्वप्रत्य.] एक प्रत्यय जो निम्नलिखित अर्थ देता है- 1. व्याप्ति, जैसे- परिणत 2. दोष कथन, जैसे- परिवाद।
परिंदा
(फ़ा.) [सं-पु.] पक्षी; चिड़िया; पाखी।
परिकंप
(सं.) [सं-पु.] बहुत ज़ोरों का कंपन; अत्यधिक भय; कँपकँपी।
परिकथा
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. ऐसी कथा जिसमें परियों की कहानी हो; काल्पनिक कथा 2. बड़ी कथा के साथ आई हुई (चलने वाली) छोटी कथा; अनुकथा 3. बौद्धों के अनुसार कोई
धार्मिक विवरण या कथा।
परिकर
(सं.) [सं-पु.] 1. पलंग 2. परिजन 3. आस-पास साथ रहने वाले लोग 4. समूह; वृंद 5. समारंभ; तैयारी 6. पटका; कमरबंद 7. (काव्यशास्त्र) एक अर्थालंकार जो अभिप्राय
युक्त विशेषणों से युक्त होता है, जैसे- हिमकर वदनी।
परिकर्तन
(सं.) [सं-पु.] 1. चारों ओर से काटना; गोलाकार काटना 2. शूल।
परिकर्म
(सं.) [सं-पु.] 1. तन का शृंगार; शरीर में उबटन, काजल, महावर आदि लगाना 2. शरीर को आभूषणों से सजाने का कार्य 3. अंकों का परस्पर योग, गुणन, भाग आदि
परिकर्मी
(सं.) [सं-पु.] सेवक; सहायक; दास। [वि.] सजाने वाला; अलंकृत करने वाला।
परिकर्षण
(सं.) [सं-पु.] 1. खेती हेतु ज़मीन जोतना, बोना आदि 2. बाहर निकालना या खींच लाना।
परिकर्षित
(सं.) [वि.] उत्पीड़ित; बाहर खींचा हुआ।
परिकलक
(सं.) [सं-पु.] 1. हिसाब लगाने वाला; लेखा करने वाला व्यक्ति जो परिकलन करता हो; गणना करने वाला 2. गणना यंत्र; परिगणक; हिसाब की मशीन; गणक।
परिकलन
(सं.) [सं-पु.] गिनने या हिसाब लगाने का काम; गणना करना; (कैलकुलेशन)।
परिकल्पना
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. मन में किसी बात को गढ़ लेना 2. किसी तर्क के लिए ऐसी कल्पना करना जिसकी भविष्य में यथार्थ रूप लेने की संभावना हो 3. बनाना; रचना; किसी
बात की कल्पना कर लेना 4. ऐसी बात प्रस्तुत करना जो अभी प्रमाणित न हुई हो पर हो सकती हो; (हाइपोथिसिस) 5. गणित में कोई विशिष्ट मान निकालने से पहले उसके लिए
कोई निश्चित मान अवधारित करना 6. निर्णय; निश्चय 7. तर्क के लिए कोई बात मान लेना।
परिकल्पित
(सं.) [वि.] 1. मन में कल्पित (गढ़ा हुआ) 2. जो मात्र तर्क हेतु मान लिया गया हो 3. आविष्कृत; निर्मित; बनाया हुआ 4. निर्णीत।
परिकांक्षित
(सं.) [सं-पु.] तपस्वी; भक्त; दास।
परिकीर्ण
(सं.) [वि.] चारों ओर छितराया हुआ; विस्तृत; फैलाया हुआ; भरा हुआ; व्याप्त; परिवेष्टित।
परिकीर्तन
(सं.) [सं-पु.] 1. अति प्रशंसा; अतिशय गुणगान 2. ख़ूब ऊँचे स्वर से कीर्तन।
परिकीर्तित
(सं.) [वि.] जिसका परिकीर्तन किया गया हो या हुआ हो।
परिकूट
(सं.) [सं-पु.] 1. वह खाई जो नगर या दुर्ग के द्वार को घेरती है 2. एक नागराज का नाम।
परिकूल
(सं.) [सं-पु.] किनारे की भूमि या स्थान; तटवर्ती भूमि।
परिकृश
(सं.) [वि.] अति दुर्बल; बहुत पतला; क्षीण।
परिक्रम
(सं.) [सं-पु.] 1. चारों ओर भ्रमण; परिक्रमा 2. घूमना; टहलना; सैर 3. क्रम 4. किसी कार्य की जाँच हेतु जगह-जगह जाना।
परिक्रमा
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. किसी स्थान या वस्तु के चारों ओर घूमना या चक्कर लगाना; प्रदक्षिणा; फेरी 2. मंदिर, मठ, तीर्थ आदि के चारों ओर श्रद्धा एवं भक्ति से चक्कर
या फेरी लगाने की क्रिया।
परिक्रय
(सं.) [सं-पु.] 1. ख़रीद 2. मज़दूरी 3. लिया हुआ माल; खरीदा हुआ माल 4. विनिमय; क्रय-माल के बदले माल 5. भाड़ा।
परिक्रांत
(सं.) [वि.] 1. आक्रांत; रौंदा हुआ; जिसपर बहुत चला गया हो 2. जिसके चारों ओर चक्कर लगाया जा सके।
परिक्लांत
(सं.) [वि.] जो थक कर चूर हो गया हो।
परिक्षय
(सं.) [सं-पु.] 1. नाश; बरबादी 2. लोप 3. सामूहिक क्षय (विनाश)।
परिक्षा
(सं.) [सं-स्त्री.] पंक; कीचड़; गीली मिट्टी।
परिक्षालन
(सं.) [सं-पु.] 1. प्रक्षालन; धोने की क्रिया या भाव 2. धोने के कार्य हेतु जल।
परिक्षीण
(सं.) [वि.] 1. नष्ट; तबाह 2. अति दुर्बल; शक्तिहीन 3. जिसका दिवाला निकल गया हो; निर्धन 4. लुप्त।
परिक्षीव
(सं.) [वि.] प्रमत्त; मदमस्त; मतवाला।
परिक्षेत्र
(सं.) [सं-पु.] 1. किसी नगर या शहर का कोई विशिष्ट विभाग; (सेक्टर) 2. आस-पास की भूमि; परिवेश; परिसर।
परिक्षेत्रिक
(सं.) [वि.] परिक्षेत्र संबंधी।
परिखा
(सं.) [सं-स्त्री.] दुर्ग या किले के चारों ओर खोदी जाने वाली खाई।
परिखात
(सं.) [सं-पु.] किसी वस्तु के चारों ओर खोदा गया गड्ढ़ा; खाई; परिखा।
परिखान
(सं.) [सं-स्त्री.] गाड़ी चलने से बनी हुई लीक; गाड़ी चलने से बना हुआ गाड़ी के पहिए का चिह्न।
परिखावन
(सं.) [सं-स्त्री.] किसी के गुण-दोष का पता लगाने की शक्ति; वस्तु स्थिति जानने की योग्यता; परख।
परिखिन्न
(सं.) [वि.] अत्यधिक खिन्न; बहुत दुखी।
परिख्यात
(सं.) [वि.] सर्वत्र ख्यातिवाला; यथेष्ट प्रसिद्धि।
परिख्याति
(सं.) [सं-स्त्री.] विशेष प्रसिद्धि; विशेष ख्याति।
परिगंतव्य
(सं.) [वि.] 1. ज्ञेय; जानने योग्य 2. प्राप्त करने योग्य 3. जिस तक पहुँचा जा सके।
परिगणन
(सं.) [सं-पु.] 1. संपूर्ण गणना करना 2. किसी विशेष उद्देश्य से किसी स्थान पर स्थित वस्तुओं की गणना 3. विधि तथा निषेधशास्त्र का विशेष रूप से कथन।
परिगणना
(सं.) [सं-स्त्री.] परिगणन; अनुसूची; (शेड्यूल)।
परिगणनीय
(सं.) [वि.] 1. परिगणना के योग्य 2. जिसका परिगणन होने को हो।
परिगणित
(सं.) [वि.] जिसका गणन किसी अनुसूची में हुआ हो; जिसका परिगणन किया गया हो।
परिगमन
(सं.) [सं-पु.] 1. परिगम; चारों ओर से घेरना या व्याप्त होना; आवेष्टित करना 2. पूर्ण रूप से जानना 3. प्राप्त करना।
परिगर्भिक
(सं.) [सं-पु.] एक बालरोग जो गर्भवती स्त्री (माता) का दूध पीने से बच्चों में होता है।
परिगर्वित
(सं.) [वि.] अतिगर्वीला; अति अभिमानी।
परिगर्हण
(सं.) [सं-पु.] अतिनिंदा; अतिबुराई।
परिगीति
(सं.) [सं-स्त्री.] एक वर्णिक छंद; एक प्रकार का वर्णवृत्त।
परिगुंडित
(सं.) [वि.] धूल से आच्छादित; धूल से ढका हुआ; धूलपूरित (भरा हुआ)।
परिगुणन
(सं.) [सं-पु.] 1. किसी संख्या को गुणा करके कई गुणा बढ़ा देना 2. किसी वस्तु को बढ़ा देना।
परिगृद्ध
(सं.) [वि.] अत्यधिक लालची; अति लोभी।
परिगृहीत
(सं.) [वि.] 1. पकड़ा हुआ 2. ग्रहण किया हुआ; धारण किया हुआ 3. चारों ओर से घिरा हुआ 4. संरक्षित 5. सम्मिलित।
परिग्रह
(सं.) [सं-पु.] 1. ग्रहण करना 2. दान लेना 3. धन आदि का संग्रह 4. किसी स्त्री को भार्या रूप में ग्रहण करना 5. घर; परिवार 6. अनुचर 7. राहु द्वारा सूर्य या
चंद्र का ग्रसा जाना 8. शपथ 9. आधार; मूल 10. स्वीकृति 11. संपत्ति; राज्य 12. दावा 13. आतिथ्य; स्वागत सत्कार 14. आदर 15. दमन 16. दंड 17. शाप 18. योग; संकलन
19. संबंध 20. सहायता 21. विष्णु 22. (जैन दर्शन) तीन प्रकार के प्रगति निबंधन कर्म- द्रव्य परिग्रह, भाव परिग्रह और द्रव्यभाव परिग्रह।
परिग्रहण
(सं.) [सं-पु.] धारण करना; पहनना; अच्छी तरह ग्रहण करना।
परिग्राह
(सं.) [सं-पु.] 1. यज्ञ आदि में बलि चढ़ाने के स्थान पर बना हुआ चारों ओर का घेरा 2. यज्ञवेदी के चारों ओर तीन रेखाएँ खींचना 3. एक विशेष प्रकार की यज्ञवेदी।
परिग्राह्य
(सं.) [वि.] सद्व्यवहार के योग्य; वह जो आदरपूर्वक ग्रहण किये जाने के योग्य हो।
परिघट्टन
(सं.) [सं-पु.] 1. मंथन 2. चारों ओर से रगड़ना 3. कलछी आदि से किसी तरल पदार्थ को चलाने या घोटने की क्रिया।
परिघट्टित
(सं.) [वि.] जिसे पूर्ण रूप से मथा (घोटा) गया हो; जिसका परिघट्टन किया गया हो।
परिघात
(सं.) [सं-पु.] 1. प्रहार; पूर्ण रूप से मार डालना; नष्ट करना 2. प्रहार करने का अस्त्र-शस्त्र 3. गदा 4. प्रतिकार; आदेश का उल्लंघन।
परिघाती
(सं.) [वि.] 1. प्रतिकार करने वाला; आदेश का उल्लंघन करने वाला 2. नष्ट करने वाला।
परिचना
[क्रि-अ.] 1. परचना; हिल-मिल जाना 2. चस्का लगना। [क्रि-स.] जाँचना; परीक्षा लेना।
परिचपल
(सं.) [वि.] अस्थिर; अति चंचल या चपल।
परिचय
(सं.) [सं-पु.] 1. किसी व्यक्ति के नाम, धन, गुण तथा कार्य आदि से संबंध रखने वाली बातें; पहचान; (इंट्रोडक्शन) 2. जानकारी; जान-पहचान।
परिचयपत्र
(सं.) [सं-पु.] ऐसा पत्र जिसमें किसी व्यक्ति का नाम, पता आदि लिखा होता है।
परिचर
(सं.) [सं-पु.] 1. सेवक; भृत्य 2. रोगी की सेवा में नियुक्त व्यक्ति 3. रथ की रक्षा में नियुक्त सैनिक 4. आदर-सत्कार 5. अंगरक्षक 6. दंडनायक। [वि.] चलने वाला;
भ्रमणशील; वहनशील।
परिचरण
(सं.) [सं-पु.] 1. सेवा; परिचर्या 2. परिभ्रमण।
परिचरणीय
(सं.) [वि.] परिचर्या के योग्य; परिचरण के योग्य; सेवायोग्य।
परिचर्चा
(सं.) [सं-स्त्री.] गोष्ठी; गुफ़्तगू; चर्चा; वार्ता; संगोष्ठी।
परिचर्मण्य
(सं.) [सं-पु.] चमड़े से निर्मित फ़ीता; (बेल्ट)।
परिचर्या
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. ख़िदमत; सेवा; टहल 2. रोगी की देखभाल; तीमारदारी 3. किसी गोष्ठी या सभा-समिति में होने वाली ऐसी बातचीत जिसमें किसी विषय का विवेचन होता
है।
परिचायक
(सं.) [वि.] 1. जिसके द्वारा किसी का परिचय प्राप्त होता है; किसी वस्तु या व्यक्ति का परिचय कराने वाला 2. सूचित कराने वाला; सूचक।
परिचार
(सं.) [सं-पु.] 1. परिचर्या; सेवा 2. सेवक 3. भ्रमण का स्थान 4. छोटे बच्चे या पेड़-पौधों का उचित विधि से पालन-पोषण एवं अभिवर्धन 5. अशक्त, रुग्ण एवं पंगु
लोगों की सेवा।
परिचारक
(सं.) [सं-पु.] 1. सेवक; नौकर; ख़िदमतगार 2. रोगी की सेवा करने वाला व्यक्ति 3. देवमंदिर का प्रबंध करने वाला व्यक्ति।
परिचारण
(सं.) [सं-पु.] 1. संग या साथ रहना 2. सेवा करना 3. सूचनाओं, विधेयकों आदि का सदस्यों या लोगों में परिचारित (वितरण) करवाना या किया जाना।
परिचारिक
(सं.) [सं-पु.] 1. परिचारक; परिचारी; सेवक 2. भ्रमण करने वाला; टहलुआ 3. देवमंदिर का प्रबंधक 4. रोगी की सेवा करने वाला व्यक्ति। [वि.] परिचार करने वाला।
परिचारिका
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. सेविका 2. रोगी की सेवा करने वाली स्त्री; परिचार करने वाली स्त्री।
परिचारित
(सं.) [सं-पु.] 1. खेल; क्रीड़ा 2. मनोविनोद। [वि.] 1. सेवित 2. जिसका परिचारण किया गया हो।
परिचार्य
(सं.) [वि.] परिचर्या के योग्य; सेवा के योग्य।
परिचालन
(सं.) [सं-पु.] 1. अच्छी तरह चलाना; सही विधि से कार्य का निर्वाह; संचालन; हिलाना-डुलाना 2. विद्युत या उष्मा का संवाहन।
परिचालित
(सं.) [वि.] चारों ओर से या अच्छी तरह जिसका परिचालन किया गया हो; जो चलाया गया हो।
परिचिंतन
(सं.) [वि.] संपूर्ण रूप से (अच्छी तरह) सोचना।
परिचित
(सं.) [वि.] जिसका परिचय प्राप्त हो; जिसे जानते हों; जाना-पहचाना हुआ; समझा हुआ; ज्ञात; जिससे जान-पहचान या मेलजोल हो।
परिचिति
(सं.) [सं-स्त्री.] परिचित होने की अवस्था या भाव; परिचय; जान-पहचान।
परिचुंबन
(सं.) [सं-पु.] अच्छी तरह चूमना; अतिशय प्रेम से चूमना।
परिच्छंद
(सं.) [सं-पु.] अनुचर; साथ में चलने वाला व्यक्ति।
परिच्छद
(सं.) [सं-पु.] 1. किसी चीज़ को ढाँकनेवाला कपड़ा; ढाँकने की वस्तु 2. वस्त्र; पोशाक; पहनावा; (ड्रेस) 3. किसी संस्था, दल या सेवा विशेष का विशिष्ट पहनावा; वर्दी;
(यूनिफ़ार्म) 4. राजा के साथ चलने वाले सैनिक 5. यात्रा के लिए ज़रूरी सामान; असबाब।
परिच्छन्न
(सं.) [सं-पु.] 1. आच्छादन; ढकने की वस्तु 2. तकिये का खोल 3. पहनावा; पोशाक 4. राजचिह्न 5. परिचर 6. माल; सामान 7. परिवार के लोग।
परिच्छिति
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. काल या व्याप्ति का निर्धारण 2. सीमा; हद; परिमिति 3. सटीक परिभाषा; अवधारणा 4. विभाजन।
परिच्छिन्न
(सं.) [वि.] 1. जिसका विभाजन किया गया हो 2. घिरा हुआ; आच्छादित; छिपा या ढका हुआ 3. जिसका कुछ अंश छाँट दिया गया हो; ठीक से जो मर्यादित या सीमित किया गया हो;
परिमित; उपचारित।
परिच्छेद
(सं.) [सं-पु.] 1. किसी पुस्तक का प्रकरण; अध्याय 2. काट-छाँटकर अलग करना 3. किसी वस्तु के अलग-अलग खंड; विभाजन; बँटवारा 4. अवधि; सीमा; हद 5. निर्णय; निश्चय 6.
उपचार; माप 7. परिभाषा।
परिच्छेदक
(सं.) [वि.] 1. अच्छी तरह काट-छाँटकर अलग करने वाला 2. सीमा निर्धारित करने वाला 3. अवधारण करने वाला; परिभाषा निर्माण करने वाला 4. विभाजक।
परिच्छेदन
(सं.) [सं-पु.] 1. विभाजन 2. अवधारण 3. निर्णय 4. अध्याय; प्रकरण।
परिच्युत
(सं.) [वि.] 1. गिरा हुआ; भ्रष्ट; पतित 2. पद, स्थान या जाति से हटाया हुआ या बहिष्कृत।
परिच्युति
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. परिच्युत होने की अवस्था या भाव 2. भ्रंश; पतन।
परिछन
(सं.) [सं-स्त्री.] विवाह की एक रस्म जिसमें स्त्रियाँ वर और कन्या की आरती करती हैं तथा उनके ऊपर से मूसल, बट्टा आदि घुमाती हैं; परछन।
परिजन
(सं.) [सं-पु.] 1. परिवार के सदस्य, जैसे- पत्नी, पुत्र आदि 2. भरण-पोषण के लिए आश्रित लोग 3. साथ रहने वाले लोग 4. अनुगामी और अनुचर वर्ग 5. राजा के साथ चलने
वाले लोग।
परिजप्त
(सं.) [वि.] धीमे से कहा हुआ; मंद स्वर में उच्चरित, जैसे- मंत्र, प्रार्थना आदि।
परिजय्य
(सं.) [वि.] जो चारों ओर से जीता जा सके।
परिजीवन
(सं.) [सं-पु.] 1. अपने वर्ग, परिवार आदि के सदस्यों के न रह जाने पर भी प्राप्त होने वाला दीर्घकालिक जीवन 2. नियत समय से अधिक चलने वाला जीवन।
परिजीवित
(सं.) [वि.] जो व्यक्ति अपने चारों ओर रहने वालों आदि के न रहने पर भी बचा हुआ या जीवित हो।
परिजीवी
(सं.) [वि.] 1. अधिक समय तक जीवित रहने वाला 2. परिवार या अपने वर्ग आदि के समाप्त हो जाने के बाद भी बचा रहने वाला।
परिज्ञप्ति
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. पूर्ण रूप से जानना 2. बातचीत; वार्तालाप; कथोपकथन 3. पहचान; परिचय।
परिज्ञात
(सं.) [वि.] विशेष रूप से जाना हुआ; अच्छी तरह से जाना हुआ; भली-भांति जाना हुआ।
परिज्ञान
(सं.) [सं-पु.] 1. पूर्ण ज्ञान; पूरा ज्ञान; पूरी जानकारी 2. सूक्ष्म ज्ञान; गहरा ज्ञान।
परिणत
(सं.) [वि.] 1. जिसका परिवर्तन हुआ हो; रूपांतरित 2. बहुत अधिक झुका या झुकाया हुआ; नत 3. पका या पचा हुआ; जिसकी पूरी वृद्धि हो चुकी हो; परिपक्व; प्रौढ़; पुष्ट
4. ढलता हुआ; समाप्त 5. बहुत अधिक नम्र या विनीत। [सं-पु.] वह हाथी जो दाँत से हमला करने के लिए एक ओर झुका हो।
परिणति
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. परिणत होने की अवस्था या भाव; अत्यंत नति; चारों ओर से झुका होना; झुकाव 2. परिणाम; नतीजा; प्रतिफल 3. परिपक्व होने की अवस्था 4. पूर्ण
वृद्धि; पुष्टता; प्रौढ़ता 5. परिवर्तन के बाद बनने वाला नया रूप 6. अंत; अवसान।
परिणद्ध
(सं.) [वि.] 1. अच्छी तरह बँधा पुआ 2. विस्तृत; दूर तक फैला हुआ 3. बहुत बड़ा; विशाल।
परिणमन
(सं.) [सं-पु.] 1. रूपांतरण; रूप परिवर्तन 2. परिणत 3. परिणाम प्राप्त।
परिणय
(सं.) [सं-पु.] विवाह; शादी।
परिणयन
(सं.) [सं-पु.] विवाह की क्रिया; विवाह; पाणिग्रहण।
परिणहन
(सं.) [सं-पु.] 1. लपेटना 2. कसना; बाँधना।
परिणाम
(सं.) [सं-पु.] 1. किसी कार्य के अंत में प्राप्त होने वाला; नतीजा; फल; (रिज़ल्ट) 2. एक अवस्था से दूसरी अवस्था प्राप्त करने की क्रिया या भाव; रूपांतर; विकार
3. निष्कर्ष; (कन्क्लूज़न) 4. किसी कार्य का क्रियात्मक रूप से पड़ने वाला या होने वाला कोई प्रभाव; (इफ़ेक्ट)।
परिणामक
(सं.) [सं-पु.] 1. परिणत; परिवर्तित 2. अच्छी तरह पुष्टित और वर्द्धित।
परिणामदर्शी
(सं.) [वि.] परिणाम को ध्यान में रखकर कार्य करने वाला; जिसे परिणाम का पहले से अनुमान या भान हो; जो पहले से ही परिणाम जान या समझ लेता हो; दूरदर्शी।
परिणामस्वरूप
(सं.) [वि.] फलस्वरूप।
परिणामात्मक
(सं.) [वि.] परिणाम के रूप में होने वाला।
परिणामित्र
(सं.) [सं-पु.] वह यंत्र जो एक प्रकार की विद्युतधारा को अन्य प्रकार की विद्युतधारा में परिवर्तित करता है अर्थात उच्च विद्युत धारा को निम्न तथा निम्न विद्युत
धारा को उच्च में परिवर्तित करता है; (ट्रांसफ़ार्मर)।
परिणामी
(सं.) [वि.] 1. परिणाम के रूप में प्राप्त; परिणामस्वरूप; परिणाम संबंधी 2. परिणामदर्शी; परिणाम को प्राप्त होना जिसका स्वभाव हो।
परिणायक
(सं.) [सं-पु.] 1. परिणय करने वाला; वर; पति 2. नेता; पथप्रदर्शक 3. सेनापति।
परिणाह
(सं.) [सं-पु.] 1. विस्तार; फैलाव 2. घेरा; परिधि 3. दीर्घ निश्वास।
परिणाही
(सं.) [वि.] विस्तृत; प्रशस्त; फैला हुआ; परिणाहवान।
परिणीत
(सं.) [वि.] 1. विवाहित 2. वैवाहिक संबंध के आधार पर जिसका किसी के साथ घनिष्ठ संबंध स्थापित हो चुका हो 3. कार्य का संपन्न होना; समाप्त।
परिणीता
(सं.) [सं-स्त्री.] पत्नी; विवाहिता।
परिणेय
(सं.) [वि.] जो सब ओर या चारों ओर घुमाया जाए।
परितः
(सं.) [अव्य.] 1. चारों ओर; सब ओर 2. पूरी तरह से; सब प्रकार से।
परितप्त
(सं.) [वि.] 1. बहुत गरम; तपा हुआ 2. बहुत अधिक दुखी और संतप्त।
परितप्ति
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. पूरी तरह तप्त या जलन की अवस्था या भाव 2. डाह; जलन 3. अत्यंत संताप; अति दुख।
परितर्कण
(सं.) [सं-पु.] प्रत्येक दृष्टि से अच्छी तरह विचार करना; किसी मत या वस्तु पर पूर्ण तर्कयुक्त विचार।
परितर्पण
(सं.) [सं-पु.] पूर्ण रूप से तृप्त करना; पूर्णतः संतुष्ट करना प्रसन्न या ख़ुश करना।
परिताप
(सं.) [सं-पु.] 1. अधिक ताप या आँच; अधिक गरमी 2. दुख; संताप; क्लेश 3. कँपकँपी; डर; भय 4. पछतावा।
परितापना
(सं.) [क्रि-अ.] परिताप करना; पश्चाताप करना।
परितापी
(सं.) [सं-पु.] दुख देने वाला व्यक्ति; सताने वाला व्यक्ति। [वि.] 1. परिताप संबंधी 2. बहुत अधिक दुख या क्लेश पहुँचाने वाला 3. बहुत गरम; जलता हुआ 4. परिताप
उत्पन्न करने वाला।
परितुष्ट
(सं.) [वि.] पूर्णतः तुष्ट; संतुष्ट; अति प्रसन्न या ख़ुश।
परितुष्टि
(सं.) [सं-स्त्री.] परितुष्ट होने का भाव; परितोष; संतोष; प्रसन्नता।
परितृप्त
(सं.) [वि.] अति तृप्त होने की अवस्था या भाव; पूर्णतः संतुष्ट।
परितृप्ति
(सं.) [सं-स्त्री.] पूर्ण रूप से तृप्त; अच्छी तरह से तृप्त होना; परितृप्त होने का भाव।
परितोष
(सं.) [सं-पु.] मन के अनुसार काम होने या करने पर होने वाला संतोष; तुष्टि; तृप्ति; इच्छापूर्ति होने की प्रसन्नता या ख़ुशी।
परितोषक
(सं.) [वि.] पूर्णतः संतुष्ट करने वाला; पूर्णतः प्रसन्न या ख़ुश करने वाला।
परितोषण
(सं.) [सं-पु.] 1. वह कार्य जिससे किसी को परितोष हो; परितुष्ट करने की क्रिया या भाव 2. वह धन जो किसी को पूर्ण संतुष्ट करने के लिए दिया गया हो।
परितोषद
(सं.) [वि.] परितोष देने या संतुष्ट करने वाला; जिससे परितोष हो।
परित्यक्त
(सं.) [वि.] पूर्ण रूप से त्यागा हुआ; पूर्णतः उपेक्षा पूर्वक छोड़ा हुआ।
परित्यक्ता
(सं.) [सं-स्त्री.] वह जो त्यागी या छोड़ी हुई हो; तलाकशुदा स्त्री।
परित्याग
(सं.) [सं-पु.] 1. पूरी तरह छोड़ने या त्यागने की क्रिया या अवस्था 2. उदारता 3. किसी व्यक्ति या वस्तु से सदा के लिए संबंध तोड़ लेना।
परित्यागना
(सं.) [क्रि-स.] परित्याग करना; छोड़ देना; त्यागना।
परित्यागी
(सं.) [वि.] पूरी तरह त्याग देने वाला; एकदम छोड़ देने वाला; दूसरों के लिए न्योछावर करने वाला।
परित्याज्य
(सं.) [वि.] परित्याग करने योग्य; छोड़ने योग्य; छोड़ देने योग्य।
परित्रस्त
(सं.) [वि.] अति भयभीत; अति त्रस्त; बहुत डरा हुआ।
परित्राण
(सं.) [सं-पु.] 1. विपत्ति या कष्ट आदि से की जाने वाली पूर्ण रक्षा; पूरा बचाव; आत्मरक्षा 2. पनाह; आश्रय 3. शरीर पर के बाल; रोएँ।
परित्राणार्थ
(सं.) [अव्य.] रक्षा के लिए; परित्राण के लिए।
परित्रात
(सं.) [वि.] 1. जिसका भय समाप्त किया गया हो 2. विपत्ति, कष्ट आदि से की जाने वाली पूर्ण रक्षा।
परित्राता
(सं.) [वि.] परित्राण करने वाला; पूरी रक्षा करने वाला।
परिदर्शन
(सं.) [सं-पु.] 1. पूर्ण दर्शन; सम्यक दर्शन 2. निरीक्षण 3. न्ययालय में मुकदमे की सुनवाई (ट्रायल)।
परिदष्ट
(सं.) [वि.] 1. पूरी तरह डँसा हुआ; पूरी तरह काट खाया हुआ; दंशित 2. टुकड़े-टुकड़े किया हुआ।
परिदहन
(सं.) [सं-पु.] पूर्णरूपसे जलाना; अच्छी तरह जलाना।
परिदाह
(सं.) [सं-पु.] 1. अति जलन; अति दाह या ताप 2. अत्यधिक मानसिक संताप।
परिदिग्ध
(सं.) [सं-पु.] वह मांस का टुकड़ा जिसपर अन्न लपेटा या चढ़ाया हुआ हो। [वि.] जिसपर कोई वस्तु अत्यधिक मात्रा में लिपटी, चढ़ाई या पुती गई हो 2. अच्छी तरह ढका
हुआ।
परिदृढ़
(सं.) [वि.] अति दृढ़; बहुत मज़बूत।
परिदृश्य
(सं.) [वि.] चारों ओर दिखने वाला दृश्य।
परिधान
(सं.) [सं-पु.] 1. वस्त्र; पहनावा; लत्ता; पहनने का कपड़ा 2. विशेष अवसर पर पहने जाने वाले वस्त्र; पूरी पोशाक 3. चारों ओर से घेरना।
परिधानीय
(सं.) [वि.] 1. धारण करने योग्य 2. पहने जाने के योग्य वस्त्र या पोशाक।
परिधाय
(सं.) [सं-पु.] 1. परिधान; पहनने के कपड़े; वस्त्र 2. जलयुक्त स्थान 3. मध्य भाग; शरीर में नितंब स्थल 4. अनुचरगण; दलबल।
परिधायक
(सं.) [सं-पु.] 1. प्राचीर; प्राकार; चहारदीवारी 2. बेड़ा (सैनिकों का) 3. घेरा; लकड़ी का बाड़ा। [वि.] चारों ओर से घेरने वाला; ढकने वाला; चारों ओर से आवृत्त
करने वाला।
परिधावन
(सं.) [सं-पु.] 1. बहुत अधिक या तेज़ दौड़ना 2. ज़ोर से भागना 3. किसी के चारों ओर दौड़ना।
परिधि
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. बाहरी सीमा 2. गोल घेरा 3. वृत्त की रेखा 4. कुछ विशेष लोगों या कार्यों का स्वतंत्र क्षेत्र; वृत्त; (सर्किल) 5. वृत्त को घेरने वाली गोल
रेखा या उसकी लंबाई की नाप; (सरकंफ़रेंस) 6. नियत या नियमित और प्रायः गोलाकार वह मार्ग जिसपर कोई चीज़ चलती, घूमती या चक्कर लगाती हो; कक्षा 7. ऐसा वास्तविक या
कल्पित घेरा जो दूसरे बाहरी क्षेत्रों से अलग हो।
परिधिक
(सं.) [वि.] 1. परिधि का; परिधि संबंधी 2. जिसका कार्यक्षेत्र किसी विशेष परिधि में हो।
परिनिर्वाण
(सं.) [सं-पु.] मोक्ष; पूर्ण निर्वाण।
परिनिवृत्ति
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. परिनिर्वृत्ति; पूर्ण निर्वाण; मोक्ष 2. छुटकारा; मुक्ति।
परिनिष्ठ
(सं.) [वि.] 1. पूर्ण रूप से ज्ञानी; ज्ञान की पूर्णता; निपुण 2. पूर्ण रूप से परिचित।
परिनिष्ठा
(सं.) [वि.] 1. पराकाष्ठा; चरम सीमा 2. पूर्णता 3. ज्ञान की पूर्णता।
परिनिष्ठित
(सं.) [वि.] 1. पूर्णतः शुद्ध 2. एकदम सही 3. किसी काम में पूर्णतया निपुण; पूर्ण कुशल 4. कार्य पूर्णतः संपन्न होना।
परिन्यास
(सं.) [सं-पु.] 1. नाटक में मूल कथा के बीज (मूल घटना) का संकेत 2. किसी पद या वाक्य का सार; भाव या अर्थ को पूरा करना।
परिपक्व
(सं.) [वि.] 1. अच्छी तरह पका हुआ; प्रौढ़; विकसित 2. समझ से पूर्ण 3. अक्लमंद 4. अपने आप में पूर्ण 5. बहुदर्शी; अनुभवी; अभ्यस्त; दक्ष; निपुण; कुशल।
परिपक्वता
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. पूर्णता 2. निपुणता; कुशलता; दक्षता।
परिपक्वावस्था
(सं.) [सं-स्त्री.] परिपक्वता; परिपक्व होने की अवस्था या भाव।
परिपत्र
(सं.) [सं-पु.] 1. आधिकारिक सूचनापत्र; वह आधिकारिक सूचनापत्र जो किसी संस्था से संबद्ध अधिकारियों, कर्मचारियों तथा सदस्यों के बीच सूचनार्थ वितरित या प्रेषित
किया जाता है; (सरक्यूलर) 2. ज्ञापनपत्र; स्मृतिपत्र; (मेमोरेंडम)।
परिपथ
(सं.) [सं-पु.] 1. किसी वृत्ताकार वस्तु के किनारे-किनारे बना हुआ पथ 2. विभिन्न नगरों, देशों आदि में जाने के लिए पहले से निर्धारित किया हुआ मार्ग।
परिपाक
(सं.) [सं-पु.] 1. परिपक्व; अच्छी तरह पका; सम्यक पाक 2. अच्छी तरह पचाना 3. दक्षता; निपुणता; बुद्धि; ज्ञान; तथा अनुभव के आधार पर पका हुआ 4. परिणाम; फल 5.
पूर्ण विकास; प्रौढ़ता को प्राप्त।
परिपाकिनी
(सं.) [सं-स्त्री.] एक औषधीय लता निसोथ; एक लता जिसकी जड़ और डंठल दवा के काम आते हैं।
परिपाटी
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. परंपरा; पद्धति; नियम; रीति; रिवाज; प्रथा; दस्तूर 2. किसी कार्य को करने का ऐसा ढंग जो किसी शास्त्र आदि पर आधारित हो 3. क्रम; सिलसिला
4. चली आई हुई प्रणाली या शैली; प्रचलन 5. तौर-तरीका; व्यवहार; ढंग।
परिपाठ
(सं.) [सं-पु.] 1. विस्तार के साथ पाठ 2. विस्तृत वर्णन या उल्लेख 3. वेदों का पुनर्पठन।
परिपार्श्व
(सं.) [सं-पु.] बगल; पड़ोस; पार्श्व; निकटता; समीपता। [वि.] पास का; पार्श्व का; निकट का; निकटवर्ती।
परिपालक
(सं.) [वि.] सम्यक रूप से पालन करने वाला; परिपालन करने वाला।
परिपालन
(सं.) [सं-पु.] 1. रक्षण; रक्षा 2. पालन-पोषण; लालन-पालन।
परिपालनीय
(सं.) [वि.] परिपालन के योग्य; जिसका परिपालन किया जाना या होना चाहिए।
परिपाल्य
(सं.) [वि.] परिपालनीय।
परिपीड़न
(सं.) [सं-पु.] 1. अति पीड़ित करना; अति कष्ट प्रदान करना 2. अनिष्ट; अपकार या क्षति करना 3. अच्छी तरह पेरना; पीसना या दबाना।
परिपुष्ट
(सं.) [वि.] जो चारों तरफ़ से स्पष्ट हो; जिसका पोषण अच्छी तरह किया गया हो; सुगठित; सम्यक पोषित; अति पुष्ट; पूर्ण रूप से पुष्ट।
परिपूजन
(सं.) [सं-पु.] उचित विधि से अर्चन; सम्यक विधि से पूजा करने की क्रिया; सम्यक पूजन।
परिपूत
(सं.) [वि.] 1. पवित्र 2. साफ़ किया हुआ (अन्न) 3. विशुद्ध।
परिपूरक
(सं.) [वि.] 1. परिपूर्ण करने वाला; पूर्णरूपसे भर देने वाला 2. धन-धान्य आदि से भर देने वाला; संपन्न बनाने वाला।
परिपूरण
(सं.) [सं-पु.] परिपूर्ण; पूर्णतः भर देना; परिपूर्ण करना।
परिपूरणीय
(सं.) [वि.] परिपूर्ण करने योग्य; भरने योग्य।
परिपूरित
(सं.) [वि.] 1. लबालब; पूर्णतः भरा हुआ 2. उचित विधि से अच्छी तरह समाप्त (परिपूर्ण) किया हुआ।
परिपूर्ण
(सं.) [वि.] 1. संपूर्ण; पराकाष्ठा को प्राप्त; पूरा 2. सुविन्यस्त; सुसंस्कृत 3. अच्छी तरह भरा हुआ 4. अघाया हुआ; संतुष्ट 5. समाप्त किया हुआ; पूरा किया हुआ।
परिपूर्णतः
(सं.) [वि.] 1. पूरी तरह से 2. संतुष्ट।
परिपूर्णता
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. अच्छी तरह भरे होने का भाव 2. परिपूर्ण होने की अवस्था या भाव; किसी कार्य की पूर्ण समाप्ति।
परिपूर्णवादी
(सं.) [वि.] जो हर चीज़ को परिपूर्ण देखना चाहता हो।
परिपृच्छ
(सं.) [सं-पु.] सम्यक प्रश्न; जिज्ञासा; सवाल।
परिपृच्छक
(सं.) [सं-पु.] जिज्ञासु; जिज्ञासा रखने वाला व्यक्ति। [वि.] प्रश्नकर्ता; प्रश्न करने वाला; प्रश्न पूछने वाला।
परिपृच्छा
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. प्रश्न; जिज्ञासा; पूछना 2. किसी बात या घटना आदि का पता लगाने के लिए पूछताछ; परिप्रश्न।
परिपोषण
(सं.) [सं-पु.] अच्छी तरह लालन-पालन; पालन-पोषण; भली-भाँति पुष्ट करना।
परिप्रश्न
(सं.) [सं-पु.] किसी बात या घटना आदि का पता लगाने के लिए किया जाने वाला प्रश्न।
परिप्राप्ति
(सं.) [सं-स्त्री.] उपलब्धि; मिलना; प्राप्त होना।
परिप्रेक्ष्य
(सं.) [सं-पु.] 1. देखने अथवा सोचने की दृष्टि विशेष 2. किसी विषय, घटना या बात के विभिन्न पक्ष 3. उन परिस्थितियों का समाहार जिसमें कोई घटना घटी हो 4.
(साहित्य) किसी वस्तु, पदार्थ, मत, मूल्य आदि को देखने का दृष्टिकोण; (पर्सपेक्टिव) 5. दृश्य के अनुरूप चित्रण या विवरण 6. वस्तुओं, दृश्यों आदि की दूरी आदि का
ठीक-ठीक अनुपात दिखलाने वाला चित्र।
परिप्रेषण
(सं.) [सं-पु.] 1. चारों ओर या सब ओर भेजना 2. निर्वासन; देश निकाला 3. परित्याग।
परिप्रेषित
(सं.) [वि.] 1. अच्छी तरह भेजा हुआ 2. त्यागा हुआ 3. निर्वासित; निकाला हुआ।
परिप्रेष्य
(सं.) [सं-पु.] नौकर; दास; अनुचर; भृत्य। [वि.] भेजने योग्य; प्रेषणीय।
परिप्लव
(सं.) [सं-पु.] 1. तैरना 2. बाढ़ 3. अत्याचार 4. नौका; पोत। [वि.] 1. चंचल; अस्थिर 2. तैरता हुआ।
परिप्लावित
(सं.) [सं-पु.] छलाँग; कूद। [वि.] 1. जलसिक्त; गीला; सराबोर; जलार्द्र 2. जो बाढ़ के कारण जलमग्न हो चुका हो (भूमि या स्थान) 3. अभिभूत।
परिप्लुत
(सं.) [वि.] 1. डूबा हुआ; प्लावित; जिसके चारों ओर जल हो 2. गीला; तर; भीगा हुआ।
परिबद्ध
(सं.) [वि.] चारों ओर से बँधा हुआ।
परिभावना
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. विचार; चिंतन 2. चिंता; फ़िक्र।
परिभावुक
(सं.) [वि.] परिभावी; अवज्ञा करने वाला; तिरस्कार या अपमान करने वाला।
परिभाषा
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. गुण, स्वरूप और विशेषता के आधार पर किसी वस्तु या पदार्थ का यथार्थ वर्णन; निरूपण; व्याख्या; स्पष्ट कथन; (डेफ़िनेशन) 2. किसी वस्तु के
बारे में सीमित शब्दों में वस्तुनिष्ठ विवेचन; किसी वस्तु का सटीक और नपा-तुला विवरण; स्वरूप स्पष्ट करने वाली सीमित शब्दों की व्याख्या; ब्योरा।
परिभाषित
(सं.) [वि.] 1. जिसकी परिभाषा दी गई हो; (डिफ़ाइंड) 2. जिसका स्वरुप या लक्षण स्पष्ट किया गया हो।
परिभाष्य
(सं.) [वि.] 1. जिसकी परिभाषा की जाए 2. ज़्यादा स्पष्ट रूप से कहा जाने योग्य 3. परिभाषा के योग्य।
परिभूत
(सं.) [वि.] 1. तिरस्कृत; अनादृत; जिसका अनादर किया गया हो 2. हारा हुआ; जिसका पराभव हुआ हो।
परिभूति
(सं.) [सं-स्त्री.] तिरस्कार; अनादर।
परिभूषण
(सं.) [सं-पु.] 1. अलंकृत; बनाव-शृंगार 2. प्राचीनकाल में अन्य राजा को मालगुज़ारी या राजस्व देकर की जाने वाली संधि।
परिभूषित
(सं.) [वि.] जिसका परिभूषण किया गया हो या हुआ हो सजाया हुआ; सँवारा हुआ।
परिभेदक
(सं.) [सं-पु.] यथेष्ट छेदने वाला या अच्छी तरह भेदने वाला अस्त्र आदि। [वि.] परिमित करने वाला; फाड़ने वाला; गहरा घाव करने वाला।
परिभोग
(सं.) [सं-पु.] 1. अत्यधिक भोग; बहुत अधिक किया जाने वाला भोग 2. संभोग; स्त्री के साथ किया जाने वाला संसर्ग (मैथुन)।
परिभ्रमण
(सं.) [सं-पु.] 1. सब ओर (चारों ओर) घूमना 2. पहिए का घूमना; केंद्र (धुरी) के चारों ओर घूमना 3. परिधि; घेरा 4. पर्यटन 5. इधर-उधर घूमना।
परिभ्रष्ट
(सं.) [वि.] 1. अनैतिक 2. कलुषित 3. गिरा हुआ; पतित; स्खलित 4. अधःपतित 5. खोया हुआ; जो लापता हो गया हो 6. भागा हुआ 7. बहका हुआ 8. किसी वस्तु से रहित किया
हुआ।
परिभ्रामी
(सं.) [वि.] चारों ओर घूमने वाला; परिभ्रमण करने वाला।
परिमल
(सं.) [सं-पु.] 1. कुमकुम, चंदन आदि के मर्दन से उत्पन्न सुगंधि 2. कुमकुम, चंदन आदि को मलना 3. सुगंध; सुवास 4. विद्वद्मंडल; पंडितसभा।
परिमाण
(सं.) [सं-पु.] 1. नाप-तौल 2. मात्रा; वज़न 3. विस्तार; आकार 4. किसी वस्तु की लंबाई, चौड़ाई आदि का ज्ञान 5. भार, घनत्व आदि का मान; (क्वांटिटी)।
परिमाणक
(सं.) [सं-पु.] वज़न; तौल; मात्रा; भार; परिमाण।
परिमाणवाची
(सं.) [वि.] परिमाण बताने वाला; परिमाण करने वाला; तराज़ू; तुला।
परिमाणात्मक
(सं.) [सं-पु.] 1. परिमाण को बताने वाला 2. किसी वस्तु या क्षेत्र के परिमाण को बताने वाला 3. परिमाण से संबंधित।
परिमाप
(सं.) [सं-पु.] 1. मापने या नापने की क्रिया या भाव 2. लंबाई, चौड़ाई, आयतन आदि का लेखा और नाप; (डाइमेंशन) 3. मानदंड; मानक 4. नापने का उपकरण; मापक; (स्केल) 5.
किसी ज्यामितीय आकृति के घेरे की पूरी लंबाई या विस्तार 6. वृत की परिधि।
परिमार्जक
(सं.) [सं-पु.] 1. धोने वाला व्यक्ति; धोबी 2. कपड़े स्वच्छ करने वाला साबुन आदि; (डिटर्जेंट; वाशसोप)। [वि.] धोने वाला; साफ़ या स्वच्छ करने वाला।
परिमार्जन
(सं.) [सं-पु.] 1. त्रुटियाँ दूर करना; सुधारना 2. धोने या माँजने का काम 3. झाड़ने-पोछने का काम; स्वच्छ करना।
परिमार्जनीय
(सं.) [वि.] संशोध्य; संशोधन करने योग्य; जिसकी त्रुटियाँ दूर करके शुद्ध करना आवश्यक हो।
परिमार्जित
(सं.) [वि.] 1. स्वच्छ किया हुआ 2. धोया हुआ।
परिमित
(सं.) [वि.] 1. जिसे माप लिया गया हो; नपा-तुला 2. जो उचित मात्रा या परिमाण में हो; जिसकी मात्रा कमवेश न हो 3. सीमित; कम; थोड़ा; मामूली; अल्प।
परिमिति
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. माप; परिमाण 2. सीमा 3. काल; अवधि 4. सीधी रेखाओं से निर्मित क्षेत्र की भुजाओं की लंबाइयों का योग 5. प्रतिष्ठा; मर्यादा।
परिमुक्त
(सं.) [वि.] पूर्णतः स्वतंत्र; वह जिसे छुटकारा मिला हो; मुक्त किया हुआ।
परिमुक्ति
(सं.) [सं-स्त्री.] पूर्णतः स्वतंत्र होने की अवस्था या भाव; छुटकारा।
परिमेय
(सं.) [वि.] 1. जिसका परिमाण जाना जा सके; जिसे मापा या तौला जा सके; मापने या तौलने योग्य 2. सीमित 3. थोड़ा; कुछ।
परिया
[सं-पु.] दक्षिण भारत की एक प्राचीन दलित जाति।
परियान
[सं-पु.] अपना देश छोड़कर स्थायी रूप से किसी दूसरे देश में जाना; परियाण; प्रयाण।
परियुक्ति
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. किसी निश्चित स्थान और समय पर किसी से मिलने की निर्धारित व्यवस्था 2. किसी काम के लिए वचनबद्ध होना 3. ठहराव।
परियोजना
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. निर्माण की कोई विशिष्ट योजना; विशेष प्रयोजन से किए जाने वाले कार्यों की योजना; नियमित एवं व्यवस्थित रूप से स्थिर किया गया विचार एवं
स्वरूप 2. विकास के लिए तैयार की गई योजना; (प्रोजेक्ट) 3. किसी स्थिति का अनुमान लगाकर सोची गई कोई योजना।
परिरंभ
(सं.) [सं-पु.] 1. गले लगाने की क्रिया 2. आलिंगन करना; कसकर गले लगाना; प्रगाढ़ आलिंगन।
परिरक्षण
(सं.) [सं-पु.] हर तरह से रक्षा करना; सतर्कतापूर्ण देखभाल; रक्षण।
परिरक्षा
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. सभी प्रकार से रक्षा करना 2. पूरी देखभाल करना 3. संभालकर या सहेजकर रखना।
परिरक्षित
(सं.) [वि.] 1. जिसकी अच्छी तरह रक्षा की गई हो; वह जो सुरक्षित हो 2. पूरी तरह निभाया हुआ; जिसका पूरी तरह पालन किया गया हो।
परिरूप
(सं.) [सं-पु.] 1. किसी होने वाले कार्य के स्वरूप आदि के संबंध में पहले से की जाने वाली कल्पना 2. नमूना 3. किसी वस्तु की बनावट आदि का कलात्मक और सुंदर ढंग।
परिरूपक
(सं.) [सं-पु.] शिल्पी जो किसी वस्तुओं के नए-नए प्रतिरूप बनाता हो (डिज़ाइनर)।
परिलक्षित
(सं.) [वि.] 1. अच्छी तरह से देखा-भाला हुआ 2. अच्छी प्रकार से निरूपित, वर्णित या कथित 3. चारों ओर से देखा हुआ 4. जो स्पष्ट रूप से दिखाई पड़ रहा हो;
दृष्टिगोचर।
परिलब्धि
(सं.) [सं-स्त्री.] अनुलाभ; निर्धारित मज़दूरी या वेतन के अतिरिक्त अलग से प्रदत्त भत्ता या शुल्क।
परिलुप्त
(सं.) [वि.] 1. लुप्त; गायब 2. नष्ट 3. क्षतिग्रस्त।
परिलेख
(सं.) [सं-पु.] 1. रेखाचित्र; चित्र का ढाँचा; ख़ाका 2. कूँची; कलम 3. वर्णन 4. अधिकारियों के पास भेजा जाने वाला विवरण।
परिलोप
(सं.) [सं-पु.] 1. पूर्ण लोप; नाश; क्षति 2. उपेक्षा; तिरस्कार; अवहेलना।
परिवपन
(सं.) [सं-पु.] 1. काटना; कतरना 2. मूँड़ना (केश)।
परिवर्जन
(सं.) [सं-पु.] 1. त्याग; छोड़ना 2. वध; मारण; हत्या।
परिवर्जनीय
(सं.) [वि.] त्याग करने योग्य; परित्याज्य।
परिवर्त
(सं.) [सं-पु.] 1. चक्कर; घुमाव 2. विनिमय; अदला-बदली; वस्तु विनिमय 3. युगांत; किसी काल या युग की समाप्ति 4. ग्रंथ का विभाजन या परिच्छेद 5. संगीत में स्वर
साधन की एक विधि 6. राशि चक्र का भ्रमण 7. पुनर्जन्म 8. यम का एक प्रपौत्र 9. पलायन।
परिवर्तक
(सं.) [वि.] 1. चक्कर खाने वाला; चक्कर देने वाला; घूमने वाला 2. विनिमयकर्ता 3. किसी प्रकार का परिर्तन करने वाला। [सं-पु.] यम का पौत्र।
परिवर्तन
(सं.) [सं-पु.] 1. एक अवस्था से दूसरी अवस्था में आना 2. तबदीली; फेरबदल; रूप और आकार आदि में बदलाव; हेरफेर; रद्दोबदल; आकृति, गुण, रूप आदि में सुधार या बिगाड़
आदि 3. एक युग की समाप्ति 4. एक के स्थान पर दूसरे का आगमन 5. घुमाव; चक्कर 6. एक को छोड़कर उसकी जगह दूसरा ग्रहण करना, जैसे- जलवायु परिवर्तन 7. कुछ घटा-बढ़ाकर
रूप बदलना; एक रूप से दूसरे रूप में लाना 8. उलटफेर; (चेंज; आल्टरेशन; वेरिएशन) 9. एक चीज़ के बदले दूसरी लेना 10. कुछ अंशों को नया रूप देना; सुधारना।
परिवर्तनकारी
(सं.) [वि.] 1. परिवर्तन करने वाला; जिसे परिवर्तन या नूतनता में विश्वास हो 2. इनकलाबी; क्रांतिकारी।
परिवर्तनशील
(सं.) [वि.] 1. जिसमें परिवर्तन स्वाभाविक रूप से होता है; परिवर्ती 2. अनस्थिर; अनिश्चित।
परिवर्तनशीलता
(सं.) [सं-स्त्री.] परिवर्तनशील होने की अवस्था।
परिवर्तनीय
(सं.) [वि.] परिवर्तन के योग्य; वह जिसमें परिवर्तन किया जाने को हो; बदलने के योग्य।
परिवर्तनीयता
(सं.) [सं-स्त्री.] परिवर्तन होने की अवस्था, भाव या गुण।
परिवर्तिका
(सं.) [सं-स्त्री.] पुरुष के लिंग में होने वाला एक रोग; पुरुष जननेंद्रिय में होने वाला एक प्रकार का रोग जिसमें खुजली, चोट या गंदगी से उत्पन्न संक्रमण के
कारण लिंगचर्म उलट कर सूज जाता है।
परिवर्तित
(सं.) [वि.] 1. जिसमें परिवर्तन किया गया हो; जिसका स्वरूप बदला गया हो 2. जिसकी अदला-बदली की गई हो; विनिमयित 3. लौटा हुआ।
परिवर्ती
(सं.) [वि.] 1. परिवर्तनशील 2. पलायन करने वाला 3. विनिमय करने वाला 4. जो घूमता या चक्कर देता रहे।
परिवर्त्य
(सं.) [वि.] जो अन्य रूप में परिवर्तित किया जा सके, जैसे- कंपनी के शेयर, ऋणपत्र आदि।
परिवर्धन
(सं.) [सं-पु.] 1. अच्छी तरह से विकसित होना; बढ़ना 2. संख्या, गुण आदि में बढ़ने का भाव 3. सम्यक वृद्धि; बढ़ाना; (एडिशन) 4. आकार, मान, विस्तार आदि बढ़ाने की
क्रिया या भाव; (इनलार्जमेंट)।
परिवर्धित
(सं.) [वि.] जो अच्छी तरह बढ़ा हुआ हो या बढ़ाया गया हो; बढ़ा या बढ़ाया हुआ; (इनलार्जड)।
परिवहन
(सं.) [सं-पु.] एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाने का साधन; (ट्रांसपोर्ट)।
परिवाद
(सं.) [सं-पु.] 1. शिकायत; निंदा; दोषकथन 2. अपवाद 3. आरोप; दोषारोपण 4. झूठी निंदा 5. लोहे के तारों से निर्मित अँगूठी जिसे पहन कर सितार, वीणा आदि बजाए जाते
हैं।
परिवादी
(सं.) [वि.] 1. परिवादक; आरोपित करने वाला; आरोप लगाने वाला 2. निंदा करने वाला 3. शोर मचाने वाला।
परिवार
(सं.) [सं-पु.] 1. किसी घर में माता-पिता और उनकी संतानों का समूह; कुटुंब; कुल 2. एक रक्त संबंध के लोग 3. किसी संस्था या व्यवसाय से जुड़े व्यक्तियों का समूह
4. वंश; ख़ानदान 5. बाल-बच्चे 6. किसी के पास रहने और उसके साथ चलने वाले लोग 7. एक ही तरह की वस्तुओं का समूह या वर्ग 8. सजातीय व्यक्ति।
परिवारजन
(सं.) [सं-पु.] परिवार के लोग; स्वजन; कुटुंब; आत्मीयजन।
परिवारण
(सं.) [सं-पु.] 1. आवरण; आच्छादन 2. तलवार की म्यान 3. ढकने की क्रिया।
परिवार नियोजन
(सं.) [सं-पु.] 1. कृत्रिम उपायों या साधनों से परिवार में बच्चों का जन्म रोकना; संतानों की संख्या का परिसीमन; (फ़ैमिली प्लानिंग) 2. किसी देश में बढ़ती हुई
जनसंख्या को रोकने के लिए लागू की जाने वाली सरकारी योजना।
परिवारवाद
(सं.) [सं-पु.] समाज के हितों की उपेक्षा कर परिवार के लोगों के संवर्धन की नीति।
परिवारवादी
(सं.) [सं-पु.] परिवार के लोगों का हित साधने वाला व्यक्ति। [वि.] 1. परिवारवाद संबंधी 2. परिवारवाद को बढ़ावा देने वाला।
परिवारीकरण
(सं.) [सं-पु.] 1. परिवार का रूप देना 2. किसी को परिवार के सदस्य के रूप में स्वीकार करना।
परिविष्ट
(सं.) [वि.] 1. घिरा या घेरा हुआ 2. परोसा हुआ या निकाला हुआ (भोजन)।
परिवीक्षा
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. जाँच 2. अदालत के आदेश पर अपराधियों तथा बालकों को सुधार संस्थाओं के प्रशिक्षित अधिकारियों की देखरेख में रखना 3. बाल अपराधियों को
सुधारने के लिए की जाने वाली कारागार या जेल से अलग विशेष व्यवस्था 4. किसी विशेष कार्य या पद के लिए किसी व्यक्ति को नियुक्त करने के बाद नौकरी पक्की करने से
पहले एक अवधि तक उसके आचरण की उपयुक्तता की परीक्षा करने की क्रिया; (प्रोबेशन)।
परिवीक्षाधीन
(सं.) [वि.] 1. परिक्ष्यमान; परीक्षणीय; जाँच के योग्य 2. वह जिसकी नियुक्ति अभी पक्की न हुई हो; जो अभी परीक्षण काल में हो।
परिवृत्ति
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. चक्कर; घुमाव 2. घेरा 3. विनिमय; अदला-बदला 4. किसी के किए हुए काम को देखकर वैसा ही कोई और काम करना 5. एक शब्द के स्थान पर दूसरे शब्द
को इस प्रकार रखना कि उसके अर्थ में कोई अंतर न पड़े।
परिवेत्ता
(सं.) [सं-पु.] 1. परिवेदक 2. वह जिसका छोटा भाई उससे पहले ही अग्नि का आधान या विवाह कर ले; परिवित्त; परिवित्ति।
परिवेदन
(सं.) [सं-पु.] 1. छोटे भाई का बड़े से पहले ही अग्नि का आधान विवाह कर लेना; विवाह 2. पूर्ण ज्ञान 3. विद्यमानता; उपस्थित होना 4. कष्ट; विपत्ति।
परिवेदना
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. संपूर्ण ज्ञान प्राप्त करने की विवेक-शक्ति; बुद्धिमता 2. चतुराई 3. दूरदर्शिता।
परिवेश
(सं.) [सं-पु.] 1. वातावरण; माहौल 2. जिस वातावरण में निवास किया जाता है अथवा रहा जाता है 3. मंडल; परिधि; घेरा 4. प्रभामंडल; किरणों का वह घेरा जो कभी-कभी
सूर्य या चंद्रमा के चारों ओर बन जाता है; सूर्यमंडल; चंद्रमंडल|
परिवेषक
(सं.) [सं-पु.] भोजन परोसने वाला व्यक्ति।
परिवेषण
(सं.) [सं-पु.] 1. भोजन आदि परोसने का काम 2. घेरा; परिधि 3. घेरने की क्रिया 4. सूर्य या चंद्र के चारों ओर का मंडल।
परिवेष्टन
(सं.) [सं-पु.] 1. घेरा; परिधि 2. आच्छादन; आवरण 3. पट्टी; ढकने वाली वस्तु।
परिवेष्टा
(सं.) [सं-पु.] परिवेषक; भोजन परोसने वाला व्यक्ति; बैरा।
परिवेष्टित
(सं.) [वि.] आच्छादित; ढका हुआ; जो चारों ओर से घिरा या घेरा हुआ हो; आवृत।
परिव्यय
(सं.) [सं-पु.] 1. किसी वस्तु के निर्माण या उत्पादन में होने वाला व्यय; लागत मूल्य; (कॉस्ट) 2. पारिश्रमिक; मज़दूरी।
परिव्ययनीय
(सं.) [वि.] जो परिव्यय के रूप में किसी से लिया या किसी को दिया जा सके; जिसपर परिव्यय लगाया जा सके (चार्जेबल)।
परिव्याप्त
(सं.) [वि.] 1. अच्छी तरह समाया हुआ 2. अच्छी तरह व्याप्त 3. सब अंगों या स्थानों में फैला हुआ।
परिव्याप्ति
(सं.) [सं-स्त्री.] अच्छी तरह समाने की अवस्था।
परिव्रज्या
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. भ्रमण; इधर-उधर घूमना; चारों ओर घूमना 2. तपस्या 3. संन्यास; संसार से विरक्त होकर भिक्षुक की तरह जीवन बिताना।
परिव्राजक
(सं.) [सं-पु.] 1. सदा भ्रमण करते रहने वाला संन्यासी 2. परमहंस 3. संन्यासी; यती।
परिशयन
(सं.) [सं-पु.] 1. बहुत अधिक सोना 2. पशुओं या जीव-जंतुओं की वह निष्क्रिय अवस्था जिसमें वे जाड़े के दिनों में बिना कुछ खाए-पीए चुपचाप एक जगह पड़े रहते हैं।
परिशिष्ट
(सं.) [सं-पु.] 1. पुस्तक, लेख आदि का वह अंतिम भाग जिसमें आवश्यक या उपयोगी बातें रहती हैं, जो पहले न आ पाई हों 2. किसी पुस्तक का पूरक अंश। [वि.] 1. बचा हुआ;
जो छूट गया हो 2. बाद में जोड़ा गया।
परिशीलन
(सं.) [सं-पु.] अनुशीलन; मननपूर्वक किया जाने वाला गंभीर एवं सम्यक अध्ययन।
परिशीलित
(सं.) [वि.] वह जिसका परिशीलन किया गया हो (ग्रंथ या विषय)।
परिशुद्ध
(सं.) [वि.] बिल्कुल ठीक; पूर्णतया शुद्ध; जिसमें कुछ भी कमी-बेशी या भूल आदि न हो; (ऐक्यूरेट)।
परिशुद्धता
(सं.) [सं-स्त्री.] परिशुद्ध होने का भाव; सटीक।
परिशुद्धि
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. पूर्ण शुद्धि 2. जिसमें कोई कमी-बेशी या भूल-चूक न हो; (ऐक्यूरेसी)।
परिशोध
(सं.) [सं-पु.] 1. अच्छी तरह से की गई शुद्धि; पूरी तरह से साफ़ करने की क्रिया 2. ऋण आदि का चुकाया जाना।
परिशोधन
(सं.) [सं-पु.] 1. किसी वस्तु को शुद्ध करने की क्रिया; पूरी तरह से साफ़ करना; संशोधन; सम्यक शुद्धि 2. ऋण को चुकता करने की क्रिया; भुगतान।
परिश्रम
(सं.) [सं-पु.] 1. कोई कठिन या बड़ा काम करने के लिए किया जाने वाला शारीरिक या मानसिक श्रम; मेहनत; मशक्कत 2. क्लांति; थकावट।
परिश्रमशील
(सं.) [वि.] ख़ूब श्रम करने वाला; मेहनत करने वाला; जो स्वभाव से परिश्रमी हो।
परिश्रमी
(सं.) [वि.] 1. परिश्रम करने वाला; हर काम अपनी पूरी शक्ति लगाकर करने वाला; मेहनती 2. अध्ययनशील 3. पुरुषार्थी; अध्यवसायी; उद्यमी 4. उत्साही।
परिश्रांत
(सं.) [वि.] बहुत थका हुआ; थका-माँदा।
परिश्लेष
(सं.) [सं-पु.] गले लगाने की क्रिया; आलिंगन।
परिषद
(सं.) [सं-पु.] 1. किसी विशेष उद्देश्य के लिए गठित समिति या संस्था; मंडली; समूह; सभा, जैसे- कला परिषद 2. किसी कार्य या उद्देश्य विशेष के लिए निर्वाचित या
मनोनीत सदस्यों की सभा 3. जनपद या नगर आदि प्रशासनिक इकाई की स्थानीय प्रबंध कमेटी 4. सलाह देने वाले या वाद-विवाद में हिस्सा लेने वाले सदस्यों की विशेष सभा;
(काउंसिल) 5. प्राचीन काल में राजा द्वारा बुलाई जाने वाली वेद-वेदांग, धर्मशास्त्र आदि में पारंगत विद्वानों की वह सभा जो धर्म आदि के विषयों में निर्णय करने
के लिए बुलाई जाती थी।
परिषिक्त
(सं.) [वि.] जिसपर पानी डाला या छिड़का गया हो; सींचा हुआ।
परिषेक
(सं.) [सं-पु.] स्नान; सिंचाई; छिड़काव।
परिष्कर
(सं.) [सं-पु.] सज्जा; सजावट।
परिष्करण
(सं.) [सं-पु.] 1. परिष्कार करने की क्रिया; शुद्ध या साफ़ करने की क्रिया या भाव; शुद्धीकरण; संशोधन 2. किसी चीज़ के दोष या बुराइयों को दूर कर ठीक करने की
क्रिया या भाव 3. संस्कार देना; सुंदर बनाना 4. सुधार के लिए किया जाने वाला परिवर्तन।
परिष्कार
(सं.) [सं-पु.] 1. अच्छी तरह से स्वच्छ और शुद्ध करने की क्रिया या भाव; शुद्धीकरण; मँजाई; सँवार 2. त्रुटि या गलती दूर करने की क्रिया; परिमार्जन; सुधार;
संशोधन 3. निर्मलता 4. संस्कार 5. सजावट; शृंगार 6. सजावट का सामान।
परिष्कृत
(सं.) [वि.] 1. जिसका परिष्कार किया गया हो; शुद्ध किया हुआ 2. जिसे सजाया या सँवारा गया हो; अलंकृत 3. स्वच्छ; निर्मल 4. चमकाया हुआ 5. सुधारा हुआ; संशोधित 6.
विकसित; सुसंस्कृत; उन्नत।
परिष्कृति
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. साफ़ करना; शुद्ध करना 2. सजाने या सँवारने की क्रिया; चमकाना 3. उत्थान 4. {ला-अ.} आचरण या व्यवहार आदि में होने वाला परिवर्तन, परिष्कार
या सुधार।
परिसंख्या
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. गिनती; गणना 2. (काव्यशास्त्र) एक अर्थालंकार जिसमें किसी पदार्थ या वस्तु का व्यंग्यपूर्वक निषेध करके अन्य स्थान पर प्रतिष्ठापन करने का
वर्णन होता है 3. ऐसा विधान जिसमें विहित वस्तु से भिन्न समस्त वस्तुओं का निषेध हो जाए।
परिसंघ
(सं.) [सं-पु.] 1. अनेक स्वतंत्र राष्ट्रों या उन राष्ट्र के सदस्यों द्वारा आपसी हितों की रक्षा के लिए बनाया गया महासंघ या अंतरराष्ट्रीय संगठन; छोटे राज्यों
आदि का संगठन 2. ऐसी राजनैतिक व्यवस्था जिसमें दो या अधिक लगभग पूर्णतः स्वतंत्र राष्ट्रों द्वारा यह समझौता कर लिया जाए कि शेष विश्व के साथ वे एक ही राष्ट्र
की तरह संबंध रखेंगे; राज्यमंडल; (कनफ़ेडरेशन) 3. अनेक समूहों, वर्गों या परिषदों या संस्थाओं के सामूहिक हितों की पूर्ति के लिए बनाया गया महासंघ।
परिसंपत्ति
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. वह मूल्यवान वस्तु जिसपर किसी का अधिकार हो; (ऐसेट्स) 2. किसी व्यक्ति या व्यापारिक संस्था की वह संपत्ति, जायदाद आदि जिससे उसका देय या
ऋण आदि चुकाया जा सकता हो; मालमत्ता।
परिसंपदा
(सं.) [सं-स्त्री.] ऐसी संपदा जो पूँजी, संपत्ति आदि के रूप में हो।
परिसंवाद
(सं.) [सं-पु.] 1. दो या अधिक व्यक्तियों में किसी बात पर होने वाली तर्कसंगत और विचारपूर्ण बातचीत; (डिस्कशन) 2. किसी विषय पर होने वाला मैत्रीपूर्ण
विचार-विमर्श; वार्तालाप; परिचर्चा; (सिंपोज़ियम)।
परिसमापन
(सं.) [सं-पु.] 1. समाप्त या पूरा करने की क्रिया 2. (वाणिज्य) किसी व्यापारिक संस्था या समूह आदि की देनदारी चुकाकर उसका संपूर्ण व्यवसाय समाप्त करना; ऋण आदि
को चुका देना 3. (विधि) किसी कंपनी के व्यवसाय को बंद करने के लिए कंपनी अधिनियम के अनुसार की गई कार्रवाई।
परिसमाप्ति
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. समाप्त या पूरा करने की अवस्था 2. किसी चलते हुए काम का समाप्त होना; (टरमीनेशन) 3. किसी प्रकार के ऋण, देन आदि पूरी तरह चुका देने की
स्थिति।
परिसर
(सं.) [सं-पु.] 1. किसी इमारत या भवन आदि के चारों ओर की वह भूमि या मैदान जिसकी चहारदीवारी हो 2. किसी स्थान के आसपास या चारों ओर की भूमि; घेरा; बाड़ा 3. किसी
संस्था के चारों ओर का अधिकृत क्षेत्र या अहाता। [वि.] 1. फैला हुआ; विस्तृत; प्रसारित 2. किसी के चारों ओर प्रवाहित होने वाला 3. किसी से सटा हुआ।
परिसरण
(सं.) [सं-पु.] 1. चारों ओर घूमना; विचरण; पर्यटन 2. इधर-उधर जाना या दौड़ना।
परिसर्प
(सं.) [सं-पु.] 1. परिक्रमण; चारों ओर घूमना या जाना 2. किसी के पीछे-पीछे जाना; किसी का पीछा करना या घेरना 3. एक प्रकार का सर्प 4. एक प्रकार का त्वचा रोग
जिसमें शरीर पर दाने फैलते जाते हैं।
परिसर्पण
(सं.) [सं-पु.] 1. साँप की तरह रेंगना; सरक कर गमन करना 2. इधर-उधर जाना; परिभ्रमण।
परिसार
(सं.) [सं-पु.] 1. चारों ओर घूमना, जाना या बहना; परिसरण 2. रसाकर्षण; (ओस्मोसिस)।
परिसीमन
(सं.) [सं-पु.] 1. सीमा या हद का निर्धारण करने की क्रिया या भाव; सीमांकन; हदबंदी; (डिलिमिटेशन) 2. किसी स्थान, क्षेत्र या प्रदेश आदि की सीमा निश्चित करना।
परिसीमा
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. किसी बात, क्रिया या स्थिति की पराकाष्ठा; अंतिम सीमा; हद 2. किसी स्थान या क्षेत्र के चारों ओर की सीमा; चौहद्दी 3. काल; अवधि 4. {ला-अ.}
वह मर्यादा जिसका उल्लंघन न किया जा सकता हो।
परिसीमित
(सं.) [वि.] 1. जिसकी परिसीमा निर्धारित की जा चुकी हो; सीमाबद्ध 2. (ऐसी कंपनी) जिसकी पूँजी, हिस्सेदारी आदि कुछ विशिष्ट नियमों या सीमाओं के अंदर रखी गई हो;
(लिमिटेड)।
परिस्तरण
(सं.) [सं-पु.] 1. इधर-उधर फेंकने या डालने की क्रिया; फैलाना; छितराना 2. आवरण; लपेटना; ढकना 3. जमा करना।
परिस्तान
(फ़ा.) [सं-पु.] 1. परीलोक; अप्सराओं का देश 2. {ला-अ.} ऐसा स्थान जहाँ सुंदर स्त्रियाँ रहती या एकत्र होती हों।
परिस्थिति
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. चारों ओर की स्थिति; माहौल; वस्तुस्थिति; वातावरण 2. चारों ओर होने वाली घटनाएँ; आसपास के हालात 3. देश, काल या राजनीति आदि से संबंधित वे
समस्त स्थितियाँ या बातें जो मनुष्य पर प्रभाव डालती हैं; दशा; दौर 3. अवसर; मौका।
परिस्थितिकी
(सं.) [सं-पु.] प्राणिविज्ञान की वह शाखा जिसके अंतर्गत पौधों, प्राणियों तथा वातावरण के आपसी संबंधों का अध्ययन किया जाता है; (इकोलॉजी)।
परिस्थितिजन्य
(सं.) [वि.] परिस्थिति से पैदा होने वाला; संयोगपूर्ण।
परिस्पंद
(सं.) [सं-पु.] 1. स्पंदन; हरकत; कँपकँपी; कंपन 2. सजावट; शृंगार; तड़क-भड़क; ठाट-बाट।
परिस्पर्धा
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. विजय या लक्ष्य को पाने के लिए किया जाने वाला संघर्ष; प्रतिस्पर्धा 2. किसी बात या कार्य में किसी को मात देने या पीछे छोड़ने की होड़;
प्रतिद्वंद्विता।
परिस्फुट
(सं.) [वि.] 1. अच्छी तरह खिला हुआ; पूर्णतः विकसित 2. {ला-अ.} सुस्पष्ट; भली-भाँति अभिव्यक्त।
परिस्फुरण
(सं.) [सं-पु.] 1. पौधों से कोपलों का निकलना 2. कलियों का खिलना या अंकुरों का फूटना 3. कंपन; थरथराहट; स्फुरण।
परिस्राव
(सं.) [सं-पु.] 1. चारों ओर से स्रावित होना; रिसना; टपकना; चूना 2. प्रवाह।
परिस्रावी
(सं.) [वि.] जिसमें बहुत अधिक स्राव या रिसाव हो; बहुत चूने या टपकने वाला; बहने वाला; प्रवाही।
परिस्रुत
(सं.) [सं-पु.] 1. पुष्पसार; फूलों का सुगंधित सार 2. आसवन विधि से द्रव्य के सार को निकालने की क्रिया। [सं-स्त्री.] शराब; मद्य; मदिरा। [वि.] रिसा हुआ;
स्रावयुक्त; चुआया या टपकाया हुआ।
परिस्रुता
(सं.) [सं-स्त्री.] वह शराब जो आसवन से बनाई गई हो; मद्य; अंगूरी शराब।
परिहत1
[सं-स्त्री.] एक प्रकार की लकड़ी जो हल के पीछे की ओर लगी रहती है तथा जिसे हल चलाते समय हाथ से पकड़े रहते हैं।
परिहत2
(सं.) [वि.] 1. मारा हुआ 2. नष्ट; बरबाद।
परिहरण
(सं.) [सं-पु.] 1. किसी की चीज़ पर बलपूर्वक किया जाने वाला अधिकार 2. त्यागने या छोड़ने की क्रिया; तजना; परित्याग 3. दोष आदि दूर करना; निवारण 4. छीन लेने या
अपहरण करने की क्रिया।
परिहस्त
(सं.) [सं-पु.] 1. हाथ में बाँधा जाने वाला एक प्रकार का तावीज़ या यंत्र 2. हाथ का छल्ला; अँगूठी; मुद्रिका।
परिहार
(सं.) [सं-पु.] 1. त्यागने या तजने की क्रिया या भाव; छोड़ना 2. दोष-विकार आदि को दूर करना 3. गाँव के चारों ओर जनता की ओर से पशुओं के लिए छोड़ी हुई परती ज़मीन 4.
निराकरण; खंडन 5. दुराव; छिपाव 6. बलपूर्वक छीनने की क्रिया या भाव 7. कर, लगान आदि की छूट या माफ़ी 8. क्षत्रिय समाज में एक कुलनाम या सरनेम।
परिहारक
(सं.) [वि.] 1. परिहार करने वाला; दोष दूर करने वाला; दोष निवारक 2. छोड़ने वाला; त्यागने वाला।
परिहारी
(सं.) [वि.] 1. परिहार करने वाला; त्यागने वाला; तजने वाला 2. निवारण करने वाला।
परिहार्य
(सं.) [वि.] 1. परिहार करने योग्य; छोड़ने लायक; त्याज्य 2. निवारण करने योग्य 3. जो अनिवार्य न हो।
परिहास
(सं.) [सं-पु.] 1. उपहास; हास्योक्ति; व्यंग्यपूर्ण हँसी 2. हँसी; मज़ा; दिल्लगी 3. ईर्ष्या; डाह।
परिहास्य
(सं.) [वि.] परिहास के योग्य; जिससे हँसी आती हो; उपहास्य; हास्यास्पद।
परिहित
(सं.) [वि.] 1. चारों ओर से ढका हुआ; आच्छादित; आवृत्त 2. ओढ़ा या पहना हुआ; धारण किया हुआ (कपड़ा)।
परिहृत
(सं.) [वि.] त्यागा या छोड़ा हुआ; परित्यक्त; दूर किया हुआ; हटाया हुआ।
परिहृति
(सं.) [सं-स्त्री.] परिहार करने की अवस्था या भाव; त्यागना; छोड़ना।
परी
(फ़ा.) [सं-स्त्री.] 1. कथा-कहानियों में वर्णित वह कल्पित रूपवती स्त्री जो अपने परों की सहायता से आकाश में उड़ती है; अप्सरा; हूर 2. फ़ारसी मिथकों के अनुसार काफ़
पर्वत पर बसने वाली पंखों से युक्त वह सुंदर स्त्री जो जहाँ चाहे जा सकती थी और ज़रूरत पड़ने पर अदृश्य हो जाती थी 3. {ला-अ.} बहुत सुंदर स्त्री।
परीकथा
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. वह कथा जो परी के विषय में कही जाती हो या कही गई हो; बच्चों की कथा; (फ़ेअरी टेल) 2. {ला-अ.} कोई काल्पनिक कथा या कहानी।
परीक्षक
(सं.) [सं-पु.] 1. वह जो किसी की परीक्षा करता या लेता हो; किसी के गुण, योग्यता आदि का परीक्षण करने वाला अधिकारी; (इग्ज़ैमिनर) 2. परखने या जाँचने वाला
व्यक्ति; निरीक्षक; तथ्यान्वेषक; विश्लेषक; समीक्षक।
परीक्षण
(सं.) [सं-पु.] 1. परीक्षा करने या लेने की क्रिया या भाव; जाँच; (टेस्टिंग) 2. परीक्षा लेने, परखने या जाँच करने का काम; (इग्ज़ैमिनेशन) 3. रोग आदि का पता लगाने
के लिए स्वास्थ की जाँच; (चेकअप)।
परीक्षणिक
(सं.) [वि.] 1. परीक्षण संबंधी; परीक्षण का 2. नियुक्ति किए जाने से पहले जिसकी समर्थता या योग्यता की परीक्षा ली जा रही हो; (प्रोबेशनरी)।
परीक्षा
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. किसी के गुण-दोष, शक्ति, योग्यता आदि की ठीक-ठीक स्थिति जानने या पता लगाने की क्रिया या भाव; इम्तिहान; (एग्ज़ैमिनेशन) 2. तर्क, प्रमाण
आदि के द्वारा किसी वस्तु के तत्व का निश्चय करना; विवेचना; जाँच-पड़ताल।
परीक्षा-फल
(सं.) [सं-पु.] किसी परीक्षा का नतीजा या परिणाम; (रिज़ल्ट)।
परीक्षार्थ
(सं.) [अव्य.] परीक्षणार्थ; परीक्षा के लिए; परीक्षा के उद्देश्य से; परीक्षण हेतु।
परीक्षार्थी
(सं.) [सं-पु.] 1. वह जो परीक्षा दे रहा हो; जिसकी परीक्षा ली जा रही हो 2. किसी प्रकार की परीक्षा देने का इच्छुक व्यक्ति; उम्मीदवार; (कैंडिडेट)।
परीक्षालय
(सं.) [सं-पु.] वह भवन जहाँ परीक्षार्थियों द्वारा परीक्षा दी जाती है या संस्था द्वारा परीक्षा कराई जाती है; परीक्षागृह; (एग्ज़ैमिनेशन हॉल)।
परीक्षित
(सं.) [वि.] 1. जिसका परीक्षण किया जा चुका हो; जाँचा हुआ; सत्यापित 2. विचारित 3. विश्वसनीय; भरोसेमंद; अच्छा 4. परीक्षा में सफल होने वाला 5. परीक्षा में
सम्मिलित होने वाला; परीक्षार्थी 6. {ला-अ.} अनुभूत; आज़माया हुआ। [सं-पु.] (महाभारत) पांडु कुल के एक राजा जो अभिमन्यु के पुत्र तथा अर्जुन के पौत्र थे।
परीक्ष्य
(सं.) [वि.] परीक्षण के योग्य; जिसकी परीक्षा आवश्यक या उचित हो।
परीक्ष्यमाण
(सं.) [वि.] 1. परीक्षण संबंधी; परीक्षणिक 2. जिसकी नियुक्ति अभी स्थायी नहीं हुई हो या जो परीक्षण काल में हो; (प्रोबेशनर)।
परीज़ाद
(फ़ा.) [वि.] 1. परी से उत्पन्न 2. सुंदर।
परुष
(सं.) [वि.] 1. कठोर; कड़ा; रूखा; खुरदरा 2. तीव्र; उग्रतायुक्त 3. नीरस; रसहीन 4. जो भावुक न हो; कठोर हृदयवाला 5. बुरा लगने वाला; कर्कश 6. गंदा। [सं-पु.] 1.
अप्रिय या कठोर बात; दुर्वचन 2. तीर 3. सरकंडा 4. नीली कटसरैया 5. फालसा (फल) 6. (रामायण) खर और दूषण नामक दैत्यों की सेना का सेनापति।
परे
(सं.) [अव्य.] 1. अलग; इतर 2. और आगे; बहुत दूर; उस पार; वहाँ 3. ऊर्ध्व; ऊपर 4. पहुँच से दूर या आगे; कहीं और 5. बाद; बाहर 6. किसी प्रकार की हद या सीमा के
पार।
परेड
(इं.) [सं-स्त्री.] 1. सैनिकों द्वारा किया जाने वाला नियमित अभ्यास या कवायद 2. छात्रों या सैनिकों का कतारबद्ध होकर या समूह में पथ संचलन; प्रदर्शन; गश्त;
(ड्रिल)।
परेता
(सं.) [सं-पु.] 1. एक प्रकार का बेलन जो बाँस की पतली चिपटी तीलियों का बना होता है; परछा 2. सूत लपेटने के काम आने वाला जुलाहों का आला; बड़े आकार की रील।
परेवा
[सं-पु.] 1. तेज़ उड़ने वाला एक पक्षी; फ़ाख़ता; पंडुक 2. {ला-अ.} तेज़ गति वाला पत्रवाहक या संदेशवाहक।
परेश
(सं.) [सं-पु.] ईश्वर; परमात्मा।
परेशान
(फ़ा.) [वि.] 1. हैरान; भ्रमित 2. व्याकुल; उद्विग्न; बेचैन; चिंतित 2. सताया हुआ; पीड़ित 3. बिखरा हुआ; विशृंखल।
परेशानी
(फ़ा.) [सं-स्त्री.] 1. परेशान होने की अवस्था या भाव; व्याकुलता; उद्विग्नता; हैरानी 2. किसी काम में होने वाला कष्ट या झंझट 3. चिंता 4. असुविधा।
परेषक
(सं.) [वि.] दे. प्रेषक।
परेषण
(सं.) [सं-पु.] 1. पारसल द्वारा अपना माल भेजने की क्रिया 2. सुपुर्द करना।
परेषणी
(सं.) [सं-पु.] वह व्यक्ति जिसके नाम कोई माल रेल पारसल द्वारा भेजा जाए; प्रेषिती; (कनसाइनी)।
परेष्टि
(सं.) [सं-पु.] ब्रह्म; परमतत्व।
परैना
[सं-पु.] वह उपकरण या हथियार जिससे पशुओं को हाँका जाता है।
परोक्ष
(सं.) [वि.] 1. जो आँखों के सामने न हो; अनदेखा; अप्रत्यक्ष 2. छिपा हुआ; अलक्षित; गुप्त; अज्ञात 3. अनुपस्थित; गैरहाज़िर 4. अनजान; अपरिचित 5. व्यंग्यात्मक।
[सं-पु.] 1. वर्तमान में न होने की स्थिति; अनुपस्थिति 2. बीता हुआ समय या भूतकाल 3. संस्कृत व्याकरण में पूर्ण भूतकाल। [अव्य.] किसी की अनुपस्थिति में;
पीठ-पीछे, जैसे- परोक्ष में किसी की चुगली करना।
परोक्ष कर
(सं.) [सं-पु.] 1. अप्रत्यक्ष कर 2. कारख़ानों आदि में उत्पादित माल पर लगाया जाने वाला एक प्रकार का कर जिसका भार करदाता पर न पड़कर उपभोक्ता पर पड़ता है, जैसे-
उत्पादन कर, आयात-निर्यात कर आदि।
परोपकार
(सं.) [सं-पु.] दूसरों की भलाई; दूसरे के हित का काम; उपकार।
परोपकारक
(सं.) [वि.] 1. परोपकार करने वाला; दूसरे की भलाई करने वाला; जनहितैषी; परहितकारी 2. परोपकार संबंधी।
परोपकारी
(सं.) [वि.] दूसरे की भलाई करने वाला; उपकारक; हितैषी।
परोपकृत
(सं.) [वि.] दूसरे के द्वारा उपकृत; जिसकी दूसरे ने भलाई की हो।
परोपजीवी
(सं.) [सं-पु.] कीटाणुओं, वनस्पतियों आदि का वह वर्ग जो दूसरे जंतुओं, वनस्पतियों आदि के अंगों पर रहकर जीवन निर्वाह करते हों; परजीवी; (पैरासाइट)। [वि.] दूसरों
के आश्रय एवं सहारे पर रहने वाला; दूसरों के भरोसे जीवन निर्वाह करने वाला; परजीवी; पराश्रयी; परावलंबी।
परोल
(इं.) [सं-पु.] अपराध न करने, समय पर हाज़िर होने आदि की प्रतिज्ञा, जिसके आधार पर कैदी को अवधि पूरी होने के पूर्व भी अपरिहार्य कारणवश कुछ समय के लिए मुक्त
किया जाता है। [सं-स्त्री.] कैदी को थोड़े दिन के लिए कुछ शर्तों पर दी गई रिहाई।
परोसना
(सं.) [क्रि-स.] 1. भोजन करने की थाली या पत्तल में खाद्य पदार्थ रखना; भोजन आदि देना 2. {ला-अ.} प्रस्तुत करना; हाज़िर करना।
परोसा
[सं-पु.] पत्तल या थाली में रखे जाने वाली एक व्यक्ति के खाने भर की भोजन की वह मात्रा जो भोज या निमंत्रण में शामिल न होने वाले के पास भिजवाई जाती है।
परोहन
(सं.) [सं-पु.] वह पशु जिसपर सवारी की जाए या बोझ लादा जाए।
पर्जन्य
(सं.) [सं-पु.] 1. मेघ; बरसता हुआ बादल 2. (पुराण) इंद्र।
पर्ण
(सं.) [सं-पु.] 1. पत्र; पत्ता; पल्लव 2. बाण में लगा हुआ पंख 3. पलाश का वृक्ष 4. पान।
पर्णकुटी
(सं.) [सं-स्त्री.] पत्तों या घासफूस की कुटी; तृणकुटी; पत्तों से बनाई गई छाजन वाली झोपड़ी।
पर्णयुक्त
(सं.) [वि.] जिसमें पर्ण या पत्ते लगे हों; पत्तों से भरा हुआ; पर्णल।
पर्णल
(सं.) [वि.] जिसमें बहुत पत्ते लगे हों; पत्तों से भरा हुआ; पर्णयुक्त।
पर्णाशन
(सं.) [सं-पु.] 1. वह जो केवल पत्ते खाकर रहता हो 2. बादल; मेघ।
पर्त
(सं.) [सं-स्त्री.] दे. परत।
पर्दा
(फ़ा.) [सं-पु.] दे. परदा।
पर्दानशीन
(फ़ा.) [वि.] दे. परदानशीन।
पर्दाफ़ाश
(फ़ा.) [सं-पु.] दे. परदाफ़ाश।
पर्पटी
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. परत; संस्तर; (लेअर) 2. पापड़ 3. एक प्रकार की रसौषधि; गोपीचंदन।
पर्यंक
(सं.) [सं-पु.] 1. पलंग; कोच; बड़ी खाट 2. (योगशास्त्र) एक प्रकार का आसन; वीरासन।
पर्यंत
(सं.) [सं-पु.] किसी क्षेत्र के विस्तार की समाप्ति को सूचित करने वाली रेखा; सीमा; अंत; समाप्ति स्थान; किनारा; (बाउंडरी)। [वि.] सीमित; घिरा हुआ। [क्रि.वि.]
तक; इस बीच; तलक; दौरान; मध्य; अंतराल में।
पर्यटक
(सं.) [वि.] पर्यटन करने वाला; देश-विदेश घूमने वाला; भ्रमण करने वाला; सैलानी; यात्री; (टुअरिस्ट)।
पर्यटन
(सं.) [सं-पु.] 1. भ्रमण करने योग्य क्षेत्र 2. किसी प्रसिद्ध या मनोरम स्थान की यात्रा; देशदर्शन और मनोरंजन के लिए किया जाने वाला भ्रमण; सैर-सपाटा; देशाटन;
(टुअरिज़म)।
पर्यटन स्थल
(सं.) [सं-पु.] वह मनोरम या विशिष्ट स्थान जहाँ घूमने-फिरने के उद्देश्य से जाया जाता है; भ्रमण स्थल; दर्शनीय स्थल।
पर्यय
(सं.) [सं-पु.] 1. समय का अपव्यय; समय या काल का व्यतीत होना, जैसे- काल पर्यय 2. चारों ओर चक्कर लगाना 3. परिवर्तन; बदलाव 4. किसी नियम, परंपरा आदि का उल्लंघन।
पर्यवरोध
(सं.) [सं-पु.] चारों ओर से होने वाली रोक या बाधा।
पर्यवलोकन
(सं.) [सं-पु.] किसी काम या किसी क्षेत्र आदि को चारों ओर से निरीक्षणात्मक दृष्टि से देखना, जाँचना और समझना; सर्वेक्षण।
पर्यवलोचन
(सं.) [सं-पु.] पूरे काम को आदि से अंत तक सरसरी तौर पर जाँचने या समझने की क्रिया; सर्वेक्षण।
पर्यवसान
(सं.) [सं-पु.] 1. अंत; समाप्ति 2. अंतर्भाव; निष्कर्ष; समावेश 3. अवधारण 4. निश्चित।
पर्यवसायी
(सं.) [वि.] 1. समाप्त करने वाला 2. परिणाम के रूप में प्रकट होने वाला 3. समावेशित।
पर्यवसित
(सं.) [वि.] 1. समाप्त; नष्ट 2. समाहित 3. निश्चित।
पर्यवेक्षक
(सं.) [वि.] किसी कार्य को समुचित तरीके से निगरानी या देखरेख करने वाला; चारों तरफ़ नज़र रखने वाला; पर्यवेक्षण करने वाला; प्रेक्षक; (सुपरवाइज़र)।
पर्यवेक्षण
(सं.) [सं-पु.] 1. चारों तरफ़ नज़र रखने, जाँचने या निगरानी करने का काम; देखभाल; (इंस्पेक्शन) 2. ठीक प्रकार से किया जाने वाला परीक्षण; (सुपरविज़न)।
पर्यवेक्षी
(सं.) [सं-पु.] पर्यवेक्षण करने वाला; पर्यवेक्षक।
पर्यसन
(सं.) [सं-पु.] 1. फेंकना 2. हटाना; दूर करना; बाहर करना 3. नष्ट करना 4. रद्द करना।
पर्याप्त
(सं.) [वि.] 1. जितना चाहिए उतना; जितना ज़रूरी है उतना; अभीष्ट; आवश्यकतानुकूल 2. उचित; उपयुक्त; काफ़ी 3. कामचलाऊ; ठीक 4. योग्य; समर्थ 5. बड़ा; विस्तृत।
पर्याप्ति
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. पर्याप्त होने की अवस्था या भाव 2. प्राप्ति; मिलना 3. समाप्ति; अंत 4. संतुष्टि; तृप्ति 5. निवारण।
पर्याय
(सं.) [सं-पु.] 1. समानार्थक शब्द; पर्यायवाची; हमनामी; (सिनॉनेम) 2. प्रकार; ढंग 3. निश्चित क्रम या अनुक्रम; सिलसिला 4. अवसर; मौका 5. सदृश; समान।
पर्यायक्रम
(सं.) [सं-पु.] 1. पद, मान, गुण आदि की दृष्टि से स्थिर किया जाने वाला क्रम 2. उत्तरोत्तर होती रहने वाली वृद्धि।
पर्यायवाचक
(सं.) [वि.] पर्यायवाची।
पर्यायवाची
(सं.) [वि.] 1. समान अर्थवाला; समानार्थक (शब्द) 2. पर्याय के रूप में होने वाला।
पर्यायोक्ति
(सं.) [सं-स्त्री.] (काव्यशास्त्र) एक अर्थालंकार जिसमें कोई बात सीधी तरह से न कहकर चमत्कारिक और विलक्षण रूप से कही जाती है।
पर्यालोकन
(सं.) [सं-पु.] अच्छी तरह की जाने वाली देखभाल; पर्यालोचन।
पर्यालोचन
(सं.) [सं-पु.] अच्छी तरह की जाने वाली देखभाल; सम्यक विवेचन; समीक्षण।
पर्यालोचना
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. किसी वस्तु के गुण-दोष को जाँचने-परखने के लिए अच्छी तरह से देखना; समीक्षा 2. सर्वेक्षण।
पर्यावरण
(सं.) [सं-पु.] 1. चारों ओर की स्थिति; जैवमंडल; पारिस्थितिकी; वातावरण 2. पृथ्वी पर संपूर्ण जड़ और चेतन पदार्थों का सम्मिलित नाम 3. किसी व्यक्ति या विषय को
प्रभावित करने वाली परिस्थितियाँ, आसपास की घटनाएँ 4. किसी समाज का रीति-व्यवहार।
पर्यावरणी
(सं.) [वि.] 1. पर्यावरण या वातावरण संबंधी 2. प्राकृतिक वातावरण से संबंधित।
पर्यावर्त
(सं.) [सं-पु.] वापस आने की क्रिया; लौटना; पुनरागमन।
पर्यावर्तन
(सं.) [सं-पु.] 1. वापस आने या लौटने की क्रिया 2. विनिमय; अदला-बदली।
पर्यास
(सं.) [सं-पु.] 1. पतन; गिरना; हनन 2. समाप्ति; उपसंहार; अंत।
पर्युत्थान
(सं.) [सं-पु.] उठ खड़ा होने की क्रिया या भाव।
पर्युदय
(सं.) [सं-पु.] सूर्योदय के कुछ पहले का समय; प्रभात के कुछ पहले का काल; तड़का।
पर्युपासक
(सं.) [वि.] 1. उपासक 2. सेवा करने वाला; सेवक।
पर्युपासन
(सं.) [सं-पु.] 1. पूजा; उपासना 2. सेवा-सत्कार 3. मैत्री 4. आस-पास बैठना।
पर्व
(सं.) [सं-पु.] 1. उत्सव; त्योहार 2. उत्सव मनाने या कोई विशिष्ट धार्मिक कृत्य करने का समय या दिन, जैसे- अमावस्या, पूर्णिमा आदि 3. पुस्तक का कोई खंड, अंश या
अध्याय, जैसे- महाभारत में अठारह पर्व हैं 4. मौका; अवसर 5. शरीर के अवयवों का संधिस्थान; गाँठ; जोड़ 6. उँगलियों के पोर 7. गन्ने की गाँठों में से प्रत्येक।
पर्वकाल
(सं.) [सं-पु.] 1. पर्व का समय; उत्सव का समय 2. पुण्यकाल 3. पूर्णमासी से अमावस्या तक का समय।
पर्वणी
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. पूर्णिमा 2. शुक्ल प्रतिपदा 3. उत्सव; त्योहार।
पर्वत
(सं.) [सं-पु.] 1. पहाड़; गिरि; नाग; कूट; कोह 2. बहुत-सी चीज़ों का बना हुआ ऊँचा ढेर 3. दशनामी संप्रदाय के संन्यासियों का एक भेद और उनके नाम के पूर्व लगने
वाली एक उपाधि।
पर्वतमाला
(सं.) [सं-स्त्री.] पहाड़ों की वह शृंखला या क्रम जहाँ एक पर्वत दूसरे से सटा रहता है।
पर्वतराज
(सं.) [सं-पु.] 1. सबसे ऊँचा और विशाल पहाड़ 2. पर्वतों में सबसे श्रेष्ठ 3. हिमालय।
पर्वतवासी
(सं.) [सं-पु.] पर्वत या पहाड़ पर रहने वाले लोग; पहाड़ी; गिरिजन।
पर्वतशिला
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. पर्वत का एक बड़ा हिस्सा या खंड 2. पहाड़ का कोई बड़ा पत्थर।
पर्वतशृंखला
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. पर्वतों की श्रेणी; पर्वतमाला 2. किसी क्षेत्र में दूर तक चला गया पर्वतों का क्रम।
पर्वतस्थ
(सं.) [वि.] पर्वत पर स्थित; पहाड़ का।
पर्वतारोहण
(सं.) [सं-पु.] पहाड़ पर चढ़ने की क्रिया।
पर्वतारोही
(सं.) [वि.] पर्वतारोहण करने वाला; पहाड़ पर चढ़ने वाला; (माउंटेनर)।
पर्वतासन
(सं.) [सं-पु.] (हठयोग) एक प्रकार का आसन।
पर्वतीय
(सं.) [वि.] 1. पहाड़ का; पहाड़ संबंधी 2. पहाड़ पर रहने वाला; पहाड़ी 3. विशालकाय; बुलंद 4. शैलेय; दुर्गम।
पर्वसंधि
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. प्रतिपदा तथा पूर्णिमा या अमावस्या का संधिकाल 2. प्रतिपदा और पूर्णिमा के आदि और अंत के चार दंड।
पर्शियन
(इं.) [सं-पु.] फ़ारस का निवासी। [सं-स्त्री.] फ़ारस की एक भाषा। [वि.] फ़ारस का; फ़ारस से संबंधित।
पर्शिया
(इं.) [सं-पु.] फ़ारस या आधुनिक ईरान।
पर्स
(इं.) [सं-पु.] रुपए-पैसे या अन्य वस्तुएँ रखने का छोटा थैला; बटुआ; (हैंडबेग)।
पल
(सं.) [सं-पु.] 1. समय की लघुतम इकाई; दम 2. एक क्षण (चौबीस सेकंड का समय) 3. चार कर्ष की एक प्राचीन तौल।
पलंग
(सं.) [सं-पु.] निवार से बनाई जाने वाली बड़ी या मज़बूत चारपाई; लकड़ी या लोहे से बनी शय्या; खाट; पर्यंक; (बेड)।
पलंगतोड़
[वि.] आलसी; निकम्मा।
पलंगपोश
(सं.) [सं-पु.] 1. पलंग पर बिछाई जाने वाली चादर; (बेडशीट) 2. बिछौना।
पलक
(सं.) [सं-स्त्री.] आँखों को ढकने वाली वह त्वचा जिसके गिरने और उठने से आँख बंद होती और खुलती है; नेत्रों का सुरक्षात्मक आवरण; निमेषक। [मु.]-झपकते : थोड़े समय में। -पाँवड़े बिछाना : किसी का प्रेमपूर्वक स्वागत करना; किसी की उत्कंठापूर्वक प्रतीक्षा करना। -बिछाना : गहरी श्रद्धा या स्नेह से स्वागत करना। -लगना : आँखें बंद होना या सो जाना।
पलटन
(इं.) [सं-स्त्री.] 1. पैदल सैनिकों का वह दल जिसमें लगभग दो सौ सैनिक हों; (प्लाटून) 2. छोटी सैन्य टुकड़ी या टोली; गुल्म 3. समुदाय; झुंड।
पलटना
(सं.) [क्रि-स.] 1. नीचे का भाग ऊपर और ऊपर का भाग नीचे करना 2. एक बार उलटना 3. कथन से मुकरना; बात फेर देना 4. बदल देना; परिवर्तित करना 5. वस्तु लौटाना; एक
वस्तु के बदले दूसरी वस्तु लेना; फेरना 6. षड्यंत्र, विद्रोह आदि से शासन या सत्ता का दूसरे के हाथ में जाना। [क्रि-अ.] 1. उलट जाना 2. अच्छी से बुरी स्थिति को
प्राप्त होना 3. पीछे की ओर मुँह करना 4. लौटना; मुड़ना; वापस होना 5. मुकरना 6. अच्छी दशा या अवस्था को प्राप्त होना। [मु.] पलटा खाना : दशा
बदल जाना।
पलटनिया
[सं-पु.] पलटन में काम करने वाला सिपाही; सैनिक। [वि.] 1. पलटन में काम करने वाला 2. पलटन संबंधी; पलटन का।
पलटवार
[सं-पु.] 1. किसी के वार के बदले किया जाने वाला वार 2. प्रतिशोध; प्रत्याक्रमण; प्रत्याघात 3. किसी बात का प्रतिकार 4. {ला-अ.} वाद-विवाद या विमर्श में किसी
सिद्धांत का खंडन; किसी की बात का जवाब; प्रत्युत्तर।
पलटा
[सं-पु.] 1. पलटने की क्रिया या भाव 2. प्रतिफल; बदला 3. लोहे या पीतल आदि की बड़ी कलछी; बेलची 4. कुश्ती का एक पेंच।
पलटाना
[क्रि-स.] 1. लौटाना; वापस करना 2. उलटाना; बदलना।
पलटाव
(सं.) [सं-पु.] 1. पलट जाने की क्रिया 2. स्थिति परिवर्तन 3. पुनरागमन 4. किसी सड़क पर पूरा मोड़ या घुमाव।
पलड़ा
(सं.) [सं-पु.] 1. तराज़ू का पल्ला 2. {ला-अ.} शक्ति, सामर्थ्य आदि की दृष्टि से दो पक्षों में से किसी एक पक्ष की स्थिति। [मु.] -भारी होना :
किसी की तुलना में अधिक शक्तिशाली होना।
पलथी
(सं.) [सं-स्त्री.] दाहिने पैर का पंजा बाँए पिंडली की नीचे और बाँए पैर का पंजा दाहिने पिंडली के नीचे दबाकर बैठने का एक आसन या मुद्रा; पालथी।
पलना
(सं.) [क्रि-अ.] 1. पाला-पोसा जाना; पालित होना 2. खा-पीकर हृष्ट-पुष्ट होना; तैयार होना।
पल-पल
(सं.) [क्रि.वि.] प्रतिक्षण; सदा; हमेशा; लगातार; थोड़ी-थोड़ी देर में।
पलभर
(सं.) [क्रि.वि.] क्षणभर; थोड़े समय में।
पलस्तर
(इं.) [सं-पु.] 1. सीमेंट या चूने को बालू में मिलाकर तैयार किया गया एक प्रकार का लेप जो फ़र्श, दीवार, छत आदि पर चढ़ाया जाता है 2. टूटी हड्डी को जोड़ने या किसी
अंग को स्थिर करने के लिए चढ़ाया जाने वाला कोई मोटा लेप; (प्लास्टर)। [मु.] -उखाड़ देना : बेइज़्ज़त कर देना। -ढीला होना :
मेहनत या हानि के कारण शिथिल पड़ना।
पला
[सं-पु.] किसी बड़े बरतन से तेल आदि निकालने का डंडीदार पात्र; बड़ी पली।
पलान
(सं.) [सं-पु.] घोड़े आदि की पीठ पर कसी जाने वाली गद्दी; ज़ीन; चारजामा। [मु.] -लेना : घोड़े पर ज़ीन कसना।
पलायक
(सं.) [वि.] पलायन करने वाला; भागने वाला; भगोड़ा; सरकार द्वारा पकड़े जाने के डर से भागा या छिपा हुआ; फ़रार।
पलायन
(सं.) [सं-पु.] 1. एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाने की क्रिया 2. आपदा, अत्याचार आदि के कारण एक स्थान से दूसरे स्थान पर चले जाना या भाग जाना 3. {ला-अ.} अपने
कार्य, स्थान या उत्तरदायित्व से विमुख होने की अवस्था या भाव।
पलायनवाद
(सं.) [सं-पु.] वह सिद्धांत या मत जिसमें जीवन की सच्चाइयों, कठिनाइयों तथा संघर्षों से दूर भागने की प्रवृति को प्रश्रय दिया जाता है, इसे यथार्थवाद का विरोधी
माना जाने लगा है; संघर्ष या प्रतिरोध न करके भाग जाने की प्रवृति।
पलायनवादी
(सं.) [वि.] 1. पलायन की प्रवृति वाला 2. पलायनवाद का समर्थक या अनुयायी; पलायनवाद का सहारा लेने वाला (कवि, लेखक आदि) 3. पलायनवाद संबंधी।
पलायमान
(सं.) [वि.] पलायन करता हुआ; भागता हुआ।
पलायित
(सं.) [वि.] 1. जो पलायन कर गया हो; भागा हुआ 2. जो डरकर किसी दूसरी जगह चला गया हो।
पलाव
(सं.) [सं-पु.] मछली फँसाने का काँटा; बंसी।
पलाश
(सं.) [सं-पु.] 1. लाल रंग के फूल वाला एक प्रसिद्ध पौधा; ढाक; टेसू 2. उक्त वृक्ष का फूल 3. पत्ता 4. विदारीकंद 5. हरा रंग। [वि.] 1. मांस खाने वाला; मांसाहारी
2. निर्दय; कठोर हृदय 3. हरा।
पलाशन
(सं.) [सं-स्त्री.] मैना; सारिका।
पलाशी
(सं.) [सं-स्त्री.] वृक्ष पर चढ़ने वाली एक लता; लाख। [वि.] पत्तोंवाला।
पली
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. तेल आदि निकालने की छोटी डंडीदार कटोरी 2. उक्त पात्र में भरे हुए तेल आदि की मात्रा। [मु.] -पली जोड़ना : थोड़ा-थोड़ा जमा
करना।
पलीता
(फ़ा.) [सं-पु.] 1. बत्ती के आकार का बारूद लगा हुआ डोरा जो पटाखों में लगा रहता है 2. तोप के गोले में आग लगाने का बरोह या बारूद लगी रस्सी 3. चिराग की बत्ती
4. (अंधविश्वास) जादू-टोना आदि से मुक्ति हेतु बत्ती के आकार में लपेटा हुआ वह कागज़ जिसपर कुछ लिखा हो। [वि.] 1. अति क्रुद्ध; क्रोध से तमतमाया हुआ 2.
तीव्रगामी। [मु.] -लगाना : झगड़ा या बखेड़ा खड़ा कराना।
पलीद
(फ़ा.) [वि.] 1. अपवित्र; अशुद्ध; नापाक; मलिन; गंदा 2. दुष्ट; ख़राब।
पलेथन
(सं.) [सं-पु.] वह सूखा आटा जिसे रोटी बेलते समय लोई पर लगाते हैं; परथन। [मु.] -निकालना : तंग करना; ख़ूब मारना।
पल्लव
(सं.) [सं-पु.] 1. नया और कोमल पत्ता; कोंपल 2. घास की पत्ती 3. फूल की कली 4. हाथ में पहनने का एक आभूषण 5. साड़ी का छोर; पल्ला 6. (नृत्यशास्त्र) हाथ की एक
मुद्रा।
पल्लवक
(सं.) [सं-पु.] 1. नया कोमल पत्ता; कोंपल 2. अशोक नामक वृक्ष 3. एक प्रकार की मछली।
पल्लवग्राही
(सं.) [वि.] 1. जिसमें पल्लव लगे हों; पल्लवयुक्त 2. {ला-अ.} किसी विषय की गहराई में न जाकर केवल स्थूल रूप से जानने वाला; स्थूल और अपूर्ण ज्ञानवाला 3. मामूली
बातों की जानकारी रखने वाला।
पल्लवन
(सं.) [सं-पु.] 1. नए पत्ते आना; खिलना; विकसित होना (पौधों का) 2. {ला-अ.} किसी बात या विषय का विस्तार करना।
पल्लवित
(सं.) [वि.] 1. जिसमें पल्लव लगे हों; जिसमें नए पत्ते निकल रहे हों; जो हरा-भरा एवं लहराता हुआ हो, जैसे- पल्लवित वृक्ष 2. विकसित; विस्तृत 3. रोमांचयुक्त 4.
लाख में रँगा हुआ। [सं-पु.] लाख का रंग।
पल्लवी
(सं.) [वि.] जिसमें नए पत्ते निकले हों; पत्तोंवाला। [सं-पु.] वृक्ष; पेड़। [सं-स्त्री.] पत्ती।
पल्ला
[सं-पु.] 1. साड़ी, चुनरी आदि का सिरा; दामन; छोर; आँचल; घूँघट 2. दरवाज़ा, किवाड़ आदि की जोड़ी में से कोई एक 3. अनाज आदि बाँधने का चादर या कपड़ा 4. दुपल्ली टोपी
का आधा हिस्सा। [मु.] -छूटना : छुटकारा मिलना। पल्ले बाँधना : किसी बात को अच्छी-तरह याद रखना; किसी के ज़िम्मे लगाना। -भारी होना : पक्ष मज़बूत होना। -पसारना : किसी से कुछ माँगना। -छुड़ाना : किसी से छुटकारा पाना या अलग होना।
पल्ली
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. छोटा गाँव; खेड़ा; पुरवा 2. कुटी; झोंपड़ी 3. ज़मीन पर फैलने वाली लता।
पल्लू
[सं-पु.] 1. किसी कपड़े का सिरा या पल्ला; साड़ी का कंधे से लटकता हुआ छोर; आँचल 2. स्त्रियों का घूँघट 3. चौड़ी गोट या झालर।
पल्ले
[क्रि.वि.] पास में; हाथ में; अधिकार में।
पल्लेदार
(हिं.+फ़ा.) [सं-पु.] अनाज आदि को ढोने, लादने या उतारने का काम करने वाला व्यक्ति; भाड़े पर लाया गया बोझ ढोने वाला मज़दूर।
पल्लेदारी
(हिं.+फ़ा.) [सं-स्त्री.] 1. पल्लेदार का काम 2. पल्लेदार का पारिश्रमिक।
पवन
(सं.) [सं-पु.] 1. हवा; वायु 2. (पुराण) वायु का अधिष्ठाता देवता। विशेष- पवन शब्द में सुत, पुत्र और कुमार जोड़ने पर अर्थ हनुमान होता है, जैसे- पवनसुत,
पवनपुत्र, पवनकुमार।
पवनचक्की
(सं.) [सं-स्त्री.] पवन के वेग से चलने वाली चक्की; (विंडमिल)।
पवमान
(सं.) [सं-पु.] 1. हवा; पवन; वायु 2. चंद्रमा।
पवित्र
(सं.) [वि.] 1. जो गंदा या मैला न हो; शुद्ध; साफ़; निर्मल 2. पाप एवं दोष रहित; पाक; पुनीत।
पवित्रता
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. पवित्र होने की अवस्था या भाव; निर्मलता; स्वच्छता 2. निश्छलता।
पवित्रात्मा
(सं.) [वि.] शुद्ध तथा स्तुत्य आचरण वाला; जिसकी आत्मा या अंतःकरण पवित्र हो; निष्पाप।
पवित्री
(सं.) [सं-स्त्री.] (कर्मकांड) अनामिका में पहनने का कुश नामक घास का छल्ला; पैंती; कुशमुद्रिका। [वि.] शुद्ध या पवित्र करने वाला।
पवित्रीकरण
(सं.) [सं-पु.] पवित्र या शुद्ध करने की क्रिया या भाव; साफ़-सफ़ाई की क्रिया।
पवीलियन
(इं.) [सं-पु.] 1. खेल के मैदान की दर्शक-दीर्घा में खिलाड़ियों तथा विशिष्ट अतिथियों के बैठने के लिए निश्चित स्थान 2. खेल के मैदान के साथ बना विशेष प्रकार का
कमरा जिसमें खिलाड़ियों के लिए वस्त्र बदलने, विश्राम आदि की सुविधाएँ हों।
पशु
(सं.) [सं-पु.] 1. चार पैरों से चलने वाला और पूँछ वाला जंतु; जानवर; चौपाया, जैसे- गाय, बैल, बाघ आदि 2. प्राणी 3. (शैवदर्शन) जीवात्मा 4. {ला-अ.} पशु समान
व्यवहार करने वाला मनुष्य; मूर्ख और विवेकहीन व्यक्ति।
पशुचर
(सं.) [सं-पु.] पशुओं के चरने की घास; पशुओं के चरने हेतु सुरक्षित भूमि; गोचर भूमि।
पशुचारण
(सं.) [सं-पु.] पशुओं को चराने का काम; पशु चराना।
पशुता
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. पशु होने की अवस्था या भाव; पशुत्व; जानवरपन; पाशविकता 2. पशुवत स्वभाव; पशुओं जैसा आचरण 3. {ला-अ.} बुद्धिहीनता; मूर्खता; जड़ता।
पशुदेववाद
(सं.) [सं-पु.] वह मतवाद जो पशु को देवी या देवता मानने में विश्वास रखता है।
पशुधन
(सं.) [सं-पु.] उत्पादन, सुरक्षा आदि में उपयोगी पालतू पशु; ढोर-डंगर; मवेशी।
पशुनाथ
(सं.) [सं-पु.] 1. पशुओं का स्वामी; पशुपति 2. शिव।
पशुपति
(सं.) [सं-पु.] 1. पशुओं का स्वामी; पशुनाथ 2. शिव; महादेव 3. जीवात्माओं का स्वामी।
पशुपाल
(सं.) [सं-पु.] ग्वाला; अहीर। [वि.] पशु पालने वाला।
पशुपालक
(सं.) [सं-पु.] वह जो आजीविका हेतु पशु पालने का कार्य करता है; पशुपाल।
पशुपालन
(सं.) [सं-पु.] आजीविका हेतु पशु पालने का कार्य; गाय, बैल, भैस, बकरी आदि का पालन।
पशुप्रेमी
(सं.) [वि.] 1. पशुओं से प्रेम करने वाला 2. गाय, बैल, भैस, बकरी आदि का पालन करने वाला।
पशुवत
(सं.) [वि.] 1. पशु की तरह आचरण करने वाला; पशु सदृश्य स्वभाववाला; पशुतुल्य 2. असभ्य; अशिष्ट; निर्दयी।
पशुवृति
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. पशुवत आचरण; पशुओं जैसा स्वभाव 2. ओछा स्वभाव; क्रूरता।
पशुशाला
(सं.) [सं-स्त्री.] पशु के रहने या रखने का स्थान; पशुगृह; पशु आवास।
पश्च
(सं.) [वि.] 1. पहले का (वर्तमान से); पिछला 2. बाद का; परवर्ती; पश्चात्कालीन 3. (संगीत) एक स्वर 4. पश्चिमी; पश्चिम का। [क्रि.वि.] पीछे की ओर, जैसे- पश्चगमन।
पश्चगामी
(सं.) [वि.] 1. पीछे की ओर जाने वाला; प्रतिगामी; (रिग्रेसिव) 2. ह्रास या पतन की ओर बढ़ने वाला।
पश्च-वर्त्स्य
वे ध्वनियाँ जो कठोर तालु के अग्र भाग तथा वर्त्स्य के बीच के स्थान से उच्चरित होती हैं उन्हें पश्च-वर्त्स्य ध्वनियाँ कहते हैं, जैसे- 'ट्, ठ्, ड्, ड़्, ढ्,
ढ़्, ण्'। संस्कृत में ये ध्वनियाँ मूर्धा से उच्चरित होने के कारण मूर्धन्य कही जाती थीं।
पश्चात
(सं.) [क्रि.वि.] 1. पीछे से; पीछे का 2. अंत में; बाद में; अंततोगत्वा 3. अंत की ओर 4. अनंतर 5. पश्चिम दिशा में।
पश्चाताप
(सं.) [सं-पु.] कोई अनुचित कार्य करने के बाद मन में होने वाला पछतावा; ग्लानि; खेद; अनुताप; दुख।
पश्चिम
(सं.) [सं-पु.] 1. पूर्व दिशा के सामने की दिशा; प्रतीची; (वेस्ट) 2. सूर्य के अस्त होने की दिशा। [वि.] 1. पूर्व दिशा के सामने की दिशा से संबंधित; प्रतीची
दिशा का, जैसे- पश्चिम भारत 2. अंतिम; पिछला 3. पीछे या बाद में उत्पन्न हुआ हो।
पश्चिमी
(सं.) [वि.] 1. पश्चिम दिशा का; पश्चिम दिशा संबंधी 2. पश्चिमी देशों में होने वाला 3. पश्चिम से आने वाला; पछवा (हवा)।
पश्चिमोत्तर
(सं.) [वि.] पश्चिम दिशा और उत्तर दिशा के बीच में स्थित; उत्तर-पश्चिमी। [सं-पु.] उत्तर और पश्चिम दिशा के मध्य की दिशा; वायुकोण।
पश्तो
(फ़ा.) [सं-स्त्री.] भारत की पश्चिमोत्तर सीमा (आधुनिक पाकिस्तान के उत्तर-पश्चिम प्रदेशों) से लेकर अफ़गानिस्तान तक बोली जाने वाली एक प्राचीन आर्यभाषा।
[सं-पु.] तीन मात्राओं का एक ताल विशेष जिसमें दो आघात होते हैं।
पश्म
(फ़ा.) [सं-पु.] 1. बहुत बढ़िया मुलायम ऊन जिससे दुशाले आदि बनते हैं 2. भेड़ या बकरी का रोयाँ 3. जननेंद्रिय के आस-पास के बाल 4. {ला-अ.} बहुत ही तुच्छ वस्तु।
पश्मीना
(फ़ा.) [सं-पु.] 1. भेंड़ों की एक प्रकार की प्रजाति 2. कश्मीर में बनने वाला एक प्रकार का ऊनी कपड़ा।
पश्यंती
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. वेश्या 2. (हठयोग) वह सूक्ष्म ध्वनि जो वाक को उत्पन्न करने वाली वायु के मूलाधार से हटकर नाभि में पहुँचने पर होती है।
पश्यतोहर
(सं.) [वि.] देखते-देखते चतुरता से कोई वस्तु चुरा लेने वाला।
पस1
(फ़ा.) [अव्य.] 1. पीछे; बाद या अंत में 2. इसलिए 3. निःसंदेह; बेशक 4. अतः; आख़िरकार।
पस2
(इं.) [सं-पु.] मवाद; पीव।
पसंद
(फ़ा.) [वि.] 1. रुचिकर; प्रिय; मनभावन 2. जिसे वरीयता दी गई हो 3. मनोनीत; मंज़ूर; स्वीकृत। [सं-स्त्री.] 1. रुचि; इच्छा; मंशा 2. वरीयता; मंज़ूरी; तरज़ीह 3.
रुचिकर लगने वाला व्यक्ति, वस्तु, कार्य आदि 4. वरणीय वस्तु; कबूलियत; स्वीकृति। [परप्रत्य.] भाने वाला; पसंद आने वाला, जैसे- दिलपसंद।
पसंदगी
(फ़ा.) [सं-स्त्री.] पसंद आने का भाव; दिलचस्पी; रुझान; कबूलियत; चाव।
पसंदा
(फ़ा.) [सं-पु.] एक प्रकार का कबाब जो मांस के कुचले हुए टुकड़ों से बनाया जाता है।
पसंदीदा
(फ़ा.) [वि.] 1. जो पसंद हो; पसंद किया हुआ 2. प्रिय; मनभावन; रुचिकर।
पसर
[सं-पु.] 1. पशुओं के चरने का मैदान; चरागाह 2. एक प्रकार के गीत जो पशु चराते समय गाए जाते है 3. विस्तार; फैलाव 4. आक्रमण; धावा; चढ़ाई।
पसरना
[क्रि-अ.] 1. विस्तृत होना; दूर तक व्याप्त हो जाना; फैलना 2. हाथ-पाँव फैलाकर लेटना या सोना; कुछ फैलकर बैठना।
पसरहट्टा
(सं.) [सं-पु.] वह बाज़ार या हाट जहाँ पंसारियों की अधिक दुकानें होती हैं।
पसराना
[क्रि-स.] किसी को पसरने में प्रवृत्त करना; फैलवाना।
पसली
(सं.) [सं-स्त्री.] स्तनपायी जंतुओं के कंकाल में छाती के पास पाई जाने वाली गोलाकार या अंडाकार हड्डियों में से प्रत्येक।
पसाई1
[सं-स्त्री.] पकाए हुए चावल आदि में से माँड़ आदि निकालने या पसाने की क्रिया।
पसाई2
(सं.) [सं-स्त्री.] ताल या जलाशय में पाई जाने वाली एक प्रकार की घास; पसताल।
पसाना
[क्रि-स.] 1. पके हुए चावल में से बचा हुआ पानी या माँड़ निकालना 2. किसी वस्तु या पदार्थ में से उसका जलीय अंश निकालना। [सं-पु.] कृपा करने के लिए किसी पर
प्रसन्न होने की क्रिया।
पसार
[सं-पु.] 1. पसरने की क्रिया; विस्तार; फैलाव; प्रसार 2. दालान।
पसारना
[क्रि-स.] 1. विस्तृत करना; फैलाना; छितराना 2. आगे की ओर करना; आगे बढ़ाना, जैसे- प्रसाद के लिए हाथ पसारना 3. हाथ-पाँव फैलाकर लेटना, बैठना या सोना।
पसाव
[सं-पु.] 1. पसाने की क्रिया या भाव 2. पसाने पर निकलने वाला तरल या माँड़ 3. चावल का माँड़ 4. पीव; मवाद।
पसीजना
[क्रि-अ.] 1. अधिक गरमी या उष्णता के कारण किसी ठोस पदार्थ से पानी निकलना 2. पसीने से तर होना 3. {ला-अ.} मन में दया की भावना आना, जैसे- उसकी विपन्नता देख दिल
पसीज गया।
पसीना
[सं-पु.] शारीरिक श्रम करने या अधिक गरमी के कारण शरीर से निकलने वाला पानी; स्वेद। [मु.] -छूटना : अत्यंत भयभीत होना; डरना।
पसेरी
[सं-स्त्री.] 1. पाँच सेर की एक पुरानी तौल 2. पाँच सेर का बाट; पंसेरी 3. उक्त बाट के बराबर भार की कोई वस्तु, जैसे- पाँच पसेरी सरसों।
पसेव
(सं.) [सं-पु.] 1. कच्ची अफ़ीम को सुखाने से प्राप्त तरल पदार्थ 2. किसी वस्तु या पदार्थ में से रिस-रिसकर निकलने वाला तरल पदार्थ; जलांश 3. स्वेद; पसीना।
पसोपेश
(फ़ा.) [सं-पु.] 1. किसी निर्णय पर न पहुँच पाने की स्थिति; दुविधा; असमंजस; सोच-विचार 2. आगे-पीछे सोच-विचार करते रहने की स्थिति 3. लाभ-हानि का विचार।
पस्त
(फ़ा.) [वि.] 1. हारा हुआ; पराजित; मायूस 2. थका हुआ; शिथिल; ऊर्जा रहित; निष्क्रिय 3. लघु; छोटा 4. तुच्छ; हीन 5. मंद; धीमा; पिछड़ा।
पहचनवाना
[क्रि-स.] किसी से पहचानने का काम कराना; किसी को पहचानने में प्रवृत्त करना।
पहचान
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. पहचानने की क्रिया या भाव; किसी का गुण या मूल्य जानने की योग्यता; परख 2. निश्चित पहचान का चिह्न; (आइडेंटिफ़िकेशन) 3. परिचय, जैसे-
जान-पहचान 4. भेदक अभिलक्षण; चिह्न 5. गुण-दोष के आधार पर वस्तु को परखने की शक्ति, जैसे- अच्छे गुण की पहचान।
पहचानना
[क्रि-स.] 1. किसी व्यक्ति या वस्तु को देख कर समझ लेना कि यह कौन है या क्या है; जानना; समझना 2. किसी वस्तु या व्यक्ति की योग्यता, विशेषता या दोष को जान लेना
3. अंतर समझना 4. किसी वस्तु के रुप-रंग से परिचित होना 5. चिह्नित करना।
पहनना
(सं.) [क्रि-स.] शरीर या अंग विशेष पर धारण करना (कपड़े, गहने आदि); डालना; ओढ़ना; लपेटना।
पहनवाना
[क्रि-स.] किसी को कपड़े, गहने आदि पहनाने में प्रवृत्त करना; किसी दूसरे से कपड़े, गहने आदि धारण कराना; धारण करवाना।
पहनाई
[सं-स्त्री.] 1. पहनने की क्रिया या ढंग 2. पहनाने का पारिश्रमिक या नेग।
पहनाना
[क्रि-स.] 1. किसी दूसरे को अपने हाथों से कपड़े, गहने आदि धारण कराना 2. {ला-अ.} विशेष अवसर पर किसी पूजनीय व्यक्ति को वस्त्र, आभूषण आदि उपहार में देना।
पहनावा
[सं-पु.] 1. नीचे से ऊपर तक धारण किए जाने वाले कपड़े; पहनने के कपड़े; वेश; वेशभूषा; पोशाक; परिधान; (ड्रेस) 2. कपड़े पहनने का ढंग या तरीका 3. किसी स्थान विशेष
के अनुसार विशेष प्रकार का वेश या ख़ास प्रकार के पहनने के वस्त्र; किसी विद्यालय या संस्था आदि का विशिष्ट वेश; (यूनिफ़ार्म)।
पहर
(सं.) [सं-पु.] 1. समय की विशेष प्रकार की गणना 2. दिन-रात (24 घंटे) का आठवाँ भाग; तीन घंटे का समय 3. बेला; समय; काल।
पहरा
(सं.) [सं-पु.] 1. किसी व्यक्ति या वस्तु की सुरक्षा के लिए किसी व्यक्ति को नियुक्त करने की स्थिति; चौकी 2. रक्षक का किसी की रक्षा में तैनात रहने का समय 3.
रक्षकदल; पहरेदारों का दल 4. गश्त के समय की बोली 5. रखवाली; निगरानी; देखरेख 6. हिरासत। [मु.] -देना : रखवाली करना। -बदलना : पुराने रक्षक के स्थान पर नया रक्षक नियुक्त करना।
पहरावनी
(सं.) [सं-स्त्री.] दान के रूप में दी जाने वाली पोशाक; शुभ अवसर पर छोटों को दिए जाने वाले कपड़े।
पहरी
[सं-पु.] पहरा देने वाला व्यक्ति; प्रहरी; पहरेदार; (गार्ड)।
पहरेदार
[सं-पु.] 1. वह जो पहरा देता है; चौकीदार; संतरी; पहरी; (गार्ड) 2. रक्षा के लिए तैयार रहने वाला व्यक्ति; रक्षक।
पहल1
[सं-स्त्री.] 1. किसी काम को करने के लिए सबसे पहले अपनी तरफ़ से कुछ करना या कहना 2. आरंभ; शुरूआत; आरंभिक प्रयत्न; आगे बढ़ने का भाव।
पहल2
(फ़ा.) [सं-पु.] 1. किसी ठोस या पोली चीज़ के तीन या तीन से अधिक कोनों के मध्य का तल 2. परत; तह 3. पार्श्व; पहलू; बगल 4. रजाई, तोशक आदि के भीतर रुई की परत;
गाला।
पहलकदमी
(हिं.+फ़ा.) [सं-स्त्री.] 1. सबसे पहले कदम उठाने की क्रिया या भाव 2. आरंभिक प्रयत्न।
पहलवान
(फ़ा.) [सं-पु.] 1. कुश्ती लड़ने वाला व्यक्ति; मल्ल; कुश्तीबाज़ 2. मज़बूत और कसरती शरीर वाला आदमी। [वि.] 1. अत्यधिक बलवान 2. मोटा-ताज़ा; हट्टा-कट्टा।
पहलवानी
(फ़ा.) [सं-पु.] 1. पहलवान होने की अवस्था; पहलवान का काम या पेशा; मल्लवृति; कुश्ती 2. कुश्ती लड़ने की विद्या 3. शरीर की हृष्ट-पुष्टता और सशक्तता। [वि.] 1.
पहलवानों से संबंध रखने वाला 2. पहलवानों की तरह का।
पहलवी
(फ़ा.) [सं-स्त्री.] ईरान की एक पुरानी भाषा।
पहला
[वि.] 1. जो गणना में एक के स्थान पर हो; जो सबसे आरंभ में हो; आद्य; प्रथम 2. पहले का; बीता हुआ; विगत 3. जो सबसे बढ़कर हो; कीमती; बहुत ज़रूरी।
पहलू
(फ़ा.) [सं-पु.] 1. बगल; पार्श्व 2. किसी वस्तु का दाहिना या बाँया भाग 3. गुण-दोष की दृष्टि से किसी बात या वस्तु के भिन्न-भिन्न पक्ष 4. दृष्टिकोण; नज़रिया 5.
ओर; तरफ़ 6. करवट 7. समतल पृष्ठ; पहल 8. आस-पास का स्थान।
पहले
(सं.) [अव्य.] 1. शुरू में; सर्वप्रथम 2. नियत समय से पूर्व या आगे 3. देश या काल के क्रम के अनुसार प्रथम 4. प्राचीन काल में; पुराने जमाने में।
पहले-पहल
[अव्य.] सबसे पहले; सर्वप्रथम; पहली बार; आरंभ में।
पहलौठा
[वि.] जो सबसे पहले जन्मा हो; प्रथम गर्भ से उत्पन्न। [सं-पु.] सबसे पहली संतान।
पहलौठी
[सं-स्त्री.] पहली बार बच्चे को जन्म देने की क्रिया; प्रथम प्रसव। [वि.] जो सबसे पहले जन्मा हो।
पहाड़
(सं.) [सं-पु.] 1. प्राकृतिक रूप से उठी हुई पृथ्वी तल से बहुत ऊँचे पत्थर, चूने आदि की बड़ी-बड़ी चट्टानें जो प्रायः ऊबड़-खाबड़ रूप में होती हैं; पर्वत 2. किसी
वस्तु का ऊँचा या बड़ा ढेर 3. बहुत भारी वस्तु 4. {ला-अ.} बहुत कठिन कार्य या स्थिति। [मु.] -टूटना या टूट पड़ना : अचानक भारी मुसीबत आ पड़ना। -से टक्कर लेना : शक्तिशाली से भिड़ना। -उठाना : अपने ऊपर कोई भारी काम लेना।
पहाड़ा
(सं.) [सं-पु.] किसी अंक विशेष की गुणन सूची; गुणन सारणी; (मल्टीप्लिकेशन टेबल), जैसे- चार का पहाड़ा।
पहाड़ी
[सं-स्त्री.] 1. छोटा पहाड़ 2. पहाड़ी क्षेत्र का निवासी 3. पहाड़ी लोगों के गाने की एक प्रकार की धुन 4. (भाषाविज्ञान) पहाड़ी बोलियों का वर्ग या समूह। [वि.] 1.
पहाड़ से संबंधित; पहाड़ का 2. जो पहाड़ से निकले 3. पहाड़ पर या उसके आसपास रहने वाला 4. पहाड़ पर होने वाला; पहाड़ से उत्पन्न।
पहाड़ीनुमा
[वि.] पहाड़ी के समान; पहाड़ी की तरह ऊपर की ओर पतला।
पहिएदार
(सं.) [वि.] पहिया लगा हुआ; पहियों वाला; चक्कायुक्त।
पहिया
(सं.) [सं-पु.] वाहन में लगा हुआ धातु या लकड़ी का वह गोल चक्का जो अपनी धुरी पर नाचता है और जिसके घूमने पर गाड़ी आगे चलती है; चक्र; चक्कर; (व्हील)।
पहुँच
[सं-स्त्री.] 1. पहुँचने की क्रिया या भाव; प्रवेश; पैठ; गति 2. (शास्त्र, विद्या आदि में) ज्ञान की सीमा, जैसे- गणित मेरी पहुँच से बाहर है 3. समझने का
सामर्थ्य; योग्यता; पकड़; जानकारी 4. संपर्क; प्रभाव।
पहुँचना
[क्रि-अ.] 1. एक स्थान से चलकर किसी अन्य स्थान पर उपस्थित होना 2. भेजी हुई वस्तु का प्राप्त होना 3. किसी के समतुल्य हो जाना 4. संख्या या मान में किसी विशेष
स्थिति को प्राप्त करना, जैसे- सेब का भाव सौ रुपए तक पहुँच गया है 5. फल के रूप में प्राप्त होना; मिलना 6. फैलकर या बढ़कर किसी स्थान या सीमा तक जाना या छूना
7. व्याप्त होना; प्रविष्ट होना; घुसना; समाना 8. {ला-अ.} किसी पद को प्राप्त करना; तरक्की होना। [मु.] पहुँचा हुआ : अच्छा जानकार; सिद्ध;
पारंगत।
पहुँचा
[सं-पु.] हाथ का वह भाग जो हथेली से जुड़ा रहता है; कलाई।
पहुँचाना
[क्रि-स.] 1. नियत स्थान पर वस्तु को ले जाना 2. किसी पदार्थ को एक स्थान से दूसरे स्थान पर रखवाना 3. वस्तु या व्यक्ति को किसी नियत स्थान या पद पर स्थापित
करवाना 4. समकक्ष या बराबरी पर लाना 5. समवाना; प्रविष्ट कराना 6. अनुभव कराना।
पहुँची
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. कलाई पर पहनने का गहना 2. युद्ध आदि में कलाई की रक्षा के लिए पहना जाने वाला आवरण।
पहेली
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. किसी की बुद्धि की परीक्षा लेने के लिए बनाया गया वाक्य या प्रश्न जिसे आसानी से बूझा या सुलझाया न जा सके; बुझौवल; प्रहेलिका; रहस्यमय
बात; दुर्बोध वर्णन 2. किसी वस्तु या विषय का गूढ़ वर्णन जिसका उत्तर बहुत सोचकर देना पड़े 3. {ला-अ.} ऐसी समस्या जो जल्दी हल न की जा सके। [मु.] -बुझाना : बात को घुमा-फिराकर कहना।
पहेलीदार
(सं.+फ़ा.) [वि.] पहेलीयुक्त; जल्द समझ में न आने वाली बात से युक्त; उलझनयुक्त।
पा1
(सं.) [सं-पु.] (संगीत) सात स्वरों में से पाँचवाँ स्वर जो कोकिल के स्वर के अनुरूप माना जाता है; पंचम स्वर।
पा2
(फ़ा.) [सं-पु.] पैर; पाँव।
पाँख
[सं-पु.] 1. पक्षी आदि का पंख; डैना; पर 2. फूल आदि की पँखुड़ी।
पाँच
[वि.] संख्या '5' की सूचक। [मु.] पाँचों उँगलियाँ घी में होना : ख़ूब लाभ होना।
पाँचवाँ
[वि.] गिनती या श्रेणी में पाँच के स्थान पर पड़ने वाला (व्यक्ति, वस्तु आदि)।
पाँचसितारा
[वि.] 1. सुविधाओं और गुणवत्ता के आधार पर होटलों को दिया जाने वाला एक विशेषण; (फ़ाइवस्टार) 2. प्रसिद्ध अर्थ में आधुनिक सुविधाओं से युक्त।
पाँजना
(सं.) [क्रि-स.] पीतल, लोहे आदि के टुकड़ों को जोड़ने के लिए उनमें टाँका लगाना; झालना।
पाँत
[सं-स्त्री.] 1. पंक्ति; कतार; पंगत 2. एक साथ पंक्ति में बैठकर भोजन कर रहे लोगों का समूह।
पाँयचा
(सं.) [सं-पु.] 1. पायजामे का वह भाग जो नीचे लटकता है 2. पलंग का पैर की ओर वाला भाग; पैताना 3. पाख़ानों में बना हुआ पैर रखने का आधार या ईंट।
पाँव
(सं.) [सं-पु.] वह अंग जिससे जीव-जंतु, पशु तथा मनुष्य चलते हैं; पैर; पग। [मु.] -अड़ाना : बेकार में किसी काम में दख़ल देना या विघ्न डालना। -तले मिट्टी निकल जाना : कोई विकट बात सुनकर स्तब्ध रह जाना। -पखारना : आदर-सत्कार करना। -पड़ना : किसी के
पैर छूकर प्रणाम करना या दीनतापूर्वक निवेदन करना। -फैलाना : अधिक पाने का आग्रह करना। -रोकना : प्रतिज्ञा करना।
पाँवड़ा
[सं-पु.] 1. वह बिछौना जो किसी पूज्य या आदरणीय व्यक्ति के मार्ग में बिछाया जाता है 2. दरवाज़े पर रखा जाने वाला कपड़ा या बिछावन; पायदान।
पाँवड़ी
[सं-स्त्री.] 1. खड़ाऊँ; जूता 2. सोपान; सीढ़ी 3. वह वस्तु जिसपर पैर रखे जाते हैं।
पाँस
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. राख, गोबर आदि की खाद 2. किसी चीज़ को सड़ाकर उठाया जाने वाला ख़मीर 3. शराब निकाला हुआ महुआ।
पाँसा
(सं.) [सं-पु.] दे. पासा।
पांकेरूह
(सं.) [सं-पु.] 1. कमल 2. सारस।
पांचजन्य
(सं.) [सं-पु.] (पुराण) कृष्ण के शंख का नाम।
पांचाल
(सं.) [सं-पु.] 1. पंचाल नामक प्राचीन देश 2. पंचाल देश का राजा 3. पंचाल देश में रहने वाला व्यक्ति। [वि.] 1. पंचाल देश संबंधी; पंचाल देश का 2. पंचाल देश पर
शासन करने वाला।
पांचालिका
(सं.) [सं-स्त्री.] कपड़े आदि से निर्मित गुड़िया; पुतली।
पांचाली
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. पंचाल देश की स्त्री या रानी 2. द्रौपदी 3. (काव्यशास्त्र) एक रीति का नाम 4. (संगीत) स्वर साधना की एक विधि।
पांडव
(सं.) [सं-पु.] 1. (महाभारत) राजा पांडु के पुत्र- युधिष्ठिर, भीम, अर्जुन, नकुल तथा सहदेव 2. पाँचों पांडु पुत्रों में से कोई एक 3. रहस्य संप्रदाय में पाँचों
इंद्रियाँ। [वि.] पांडव संबंधी; पांडव का।
पांडित्य
(सं.) [सं-पु.] पंडित होने की अवस्था या भाव; पंडिताई; विद्वता।
पांडु
(सं.) [सं-पु.] 1. श्वेत-पीत या सफ़ेद-पीला रंग 2. पीलिया नामक रोग 3. सफ़ेद हाथी 4. (महाभारत) पांडवों के पिता 5. मध्य देश का एक प्राचीन प्रदेश।
पांडुक
(सं.) [सं-पु.] 1. पीला रंग 2. पीलिया रोग 3. पांडवों के पिता; पांडु।
पांडुकी
(सं.) [वि.] जिसे पीलिया रोग हुआ हो।
पांडुर
(सं.) [वि.] 1. श्वेत-पीत या सफ़ेद-पीला रंग 2. श्वेत कुष्ठ 3. पीलिया नामक रोग। [वि.] पीलापन लिए हुए सफ़ेद रंग का।
पांडुरंग
(सं.) [सं-पु.] 1. (पुराण) विष्णु का एक अवतार 2. एक प्रकार का साग।
पांडुरक
(सं.) [वि.] श्वेत-पीत या सफ़ेद-पीले रंग का।
पांडुरा
(सं.) [सं-स्त्री.] बौद्धों की एक देवी; मासपर्णी।
पांडुरिमा
(सं.) [सं-स्त्री.] सफ़ेदीयुक्त पीलापन; हलका पीला।
पांडुलिपि
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. किसी पुस्तक या लेख की हस्तलिखित मूल प्रति जो छपाई हेतु तैयार हो; (मैनूस्क्रिप्ट) 2. वह हस्तलिखित आलेख जिसमें काँट-छाँट या परिवर्तन
संभव हो तथा जो छापे जाने योग्य हो; (ड्राफ़्ट)।
पांडुलेख्य
(सं.) [सं-पु.] किसी पुस्तक या लेख की हस्तलिखित मूल प्रति जो छपाई हेतु तैयार हो; पांडुलिपि।
पांडेय
[सं-पु.] ब्राह्मण समाज में एक कुलनाम या सरनेम।
पांथ
(सं.) [सं-पु.] 1. यात्री; राही; पथिक 2. प्रवासी 3. {ला-अ.} विरही; वियोगी; बटोही।
पांशुल
(सं.) [वि.] 1. कलंकित करने वाला; पांसुल 2. जिसमें धूल लगी हो 3. दोषयुक्त; अपवित्र 4. व्यभिचारी; लंपट। [सं-पु.] शिव का एक अस्त्र।
पाइट
(इं.) [सं-स्त्री.] बाँस आदि का बना हुआ वह ढाँचा जिसपर खड़े होकर राजगीर दीवार बनाने या पलस्तर आदि करने का काम करते हैं; मचान; चबूतरा।
पाइप
(इं.) [सं-पु.] 1. धातु या प्लास्टिक की वह नली या नल जिसमें से होकर पानी या कोई तरल पदार्थ एक स्थान से दूसरे स्थान की ओर प्रवाहित होता है 2. बांसुरी; बंसी
3. तंबाकू पीने की नलिका; सिगार; चिलम।
पाइरेसी
(इं.) [सं-स्त्री.] फ़िल्म, संगीत आदि उद्योग में प्रतिकृति या नकल बनाकर किया जाने वाला अवैध व्यवसाय।
पाइलट
(इं.) [सं-पु.] विमान चलाने वाला व्यक्ति; वायुयानचालक।
पाइल्स
(इं.) [सं-पु.] बवासीर या अर्श नामक रोग।
पाई1
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. एक प्राचीन सिक्का; कौड़ी 2. पैसे का तीसरा और एक आने का बारहवाँ हिस्सा। [मु.] -पाई जोड़ना : एक-एक रुपया जोड़ना; बचत
करना।
पाई2
(इं.) [सं-स्त्री.] 'π' नामक एक गणितीय नियतांक जिसका संख्यात्मक मान किसी वृत्त की परिधि और उसके व्यास के अनुपात के बराबर होता है।
पाउंड
(इं.) [सं-पु.] 1. तौल का एक अँग्रेज़ी मात्रक जो आठ छटाँक से कुछ कम होता है 2. सोने का एक अँग्रेज़ी सिक्का जो बीस शिलिंग के बराबर होता है।
पाउच
(इं.) [सं-पु.] कागज़, प्लास्टिक आदि की छोटी थैली; कोई पदार्थ या वस्तु भरकर सीलबंद की गई छोटी थैली।
पाउडर
(इं.) [सं-पु.] 1. चूर्ण 2. शरीर पर छिड़का या मला जाने वाला सुगंधित चूर्ण 3. कूट-पीस कर निर्मित औषधि, जैसे- त्रिफला पाउडर 4. धूल; रज।
पाक1
(सं.) [सं-पु.] 1. पकाने की क्रिया या भाव 2. पकाया हुआ अन्न; भोजन 3. किसी चीज़ या बात का अपने में पूर्ण होना 4. पकाई गई औषधि; अवलेह, जैसे- बादामपाक।
पाक2
(फ़ा.) [वि.] 1. निर्मल; पवित्र; शुद्ध 2. बिना मिलावट का; बेमेल; ख़ालिस 3. दोषहीन; बेकसूर 4. महफ़ूज़; सुरक्षित 5. अपराध या बुराई से बचने वाला। [सं-पु.]
पाकिस्तान का संक्षिप्त रूप।
पाककला
(सं.) [सं-स्त्री.] विविध प्रकार के व्यंजन बनाने की कला; पाकविद्या।
पाकड़
[सं-पु.] बरगद की प्रजाति का एक पेड़।
पाकदामन
(फ़ा.) [सं-पु.] जिसका चरित्र बिलकुल निर्दोष या निष्कलंक हो; सदाचारी।
पाकविद्या
(सं.) [सं-स्त्री.] पाकशास्त्र; पाककला; भोजन बनाने की कला।
पाकशाला
(सं.) [सं-स्त्री.] रसोईघर; भोजनगृह; (किचन)।
पाकशास्त्र
(सं.) [सं-पु.] विविध खाद्य पदार्थों को बनाने की विधियाँ बताने वाला शास्त्र; पाकविद्या; पाककला।
पाक-साफ़
(फ़ा.) [वि.] 1. निर्दोष; निष्कलंक 2. साफ़-सुथरा; निर्मल; विशुद्ध।
पाकिस्तान
(फ़ा.) [सं-पु.] 1. पाक (पवित्र) स्थान 2. भारत के विभाजन से बना पश्चिमोत्तर सीमा पर स्थित एक पड़ोसी देश।
पाकिस्तानी
(फ़ा.) [सं-पु.] पाकिस्तान का निवासी। [वि.] 1. पाकिस्तान का; पाकिस्तान संबंधी 2. पाकिस्तान में होने वाला।
पाकी
(फ़ा.) [सं-स्त्री.] 1. पवित्रता 2. निर्दोषता; निष्कलंकता 3. स्वच्छता; सफ़ाई 4. शुचिता।
पाकीज़ा
(फ़ा.) [वि.] 1. पवित्र; निष्कलंक; निर्दोष 2. सुंदर; हसीन 3. साफ़-सुथरा 4. श्रेष्ठ; उम्दा; परिमार्जित।
पाक्य
(सं.) [वि.] 1. पकाए जाने योग्य 2. पचने योग्य। [सं-पु.] 1. काला नमक 2. नौसादर 3. शोरा।
पाक्षिक
(सं.) [वि.] 1. पक्षक; एक पक्ष से संबंधित; पखवाड़े का 2. चांद्र-मास के प्रतीक पक्ष से संबंध रखने वाला 3. जो एक पक्ष (पंद्रह दिन) में एक बार होता है 4. पंद्रह
दिनों के अंतराल पर प्रकाशित होने वाला; अर्धमासिक (पत्र या पत्रिका) 5. पक्षपात करने वाला।
पाखंड
(सं.) [सं-पु.] 1. समाज के विरुद्ध किया जाने वाला धूर्ततापूर्ण व्यवहार; छल-कपट 2. दिखावटी उपासना, भक्ति या कर्मकांड; स्वार्थसिद्धि के लिए अपनाई गई
धार्मिकता; आडंबर; ढोंग 3. शरारत; दुष्टता; नीचता।
पाखंडी
(सं.) [वि.] 1. दूसरों को धोखा देने के लिए भक्ति या उपासना का ढोंग रचने वाला; पाखंड करने वाला; कपटी; ढकोसलेबाज़ 2. ठग; धूर्त।
पाखर
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. युद्ध में हाथियों तथा घोड़ों की रक्षा हेतु उन पर डाली जाने वाली एक प्रकार की लोहे की झूल जो दोनों ओर लटकी रहती है; (ज़ीन) 2. मोम, राल
आदि का लेप किया हुआ मोटा कपड़ा या टाट।
पाख़ाना
(फ़ा.) [सं-पु.] 1. मल त्याग के लिए बना स्थल; शौचालय; (लेटरिन) 2. टट्टी; विष्ठा; मल।
पाखी
[सं-स्त्री.] 1. पक्षी 2. पंखों वाला कीड़ा।
पाग
(सं.) [सं-पु.] 1. वह शीरा या चाशनी जिसमें पेठे, बादाम आदि को डुबाया जाता है 2. चाशनी या शीरा में डालकर बनाया गया या पकाया गया विशेष प्रकार का खाद्य पदार्थ,
जैसे- गाजर-पाग।
पागना
(सं.) [क्रि-स.] चाशनी या शीरे में डुबाना। [क्रि-अ.] चाशनी में सराबोर होना।
पागल
(सं.) [वि.] 1. जो किसी तीव्र मनोविकार के कारण ज्ञान या विवेक खो बैठा हो; जिसकी दिमागी हालत ठीक न हो; बावला; विक्षिप्त; सनकी 2. प्रेम या क्रोध में आपे से
बाहर व्यक्ति; दीवाना 3. बहुत मूर्ख।
पागलख़ाना
(सं.+फ़ा.) [सं-पु.] वह स्थान जहाँ पागल रखे जाते हैं; वह स्थल जहाँ पागलों की चिकित्सा और देखरेख की जाती है।
पागलपन
[सं-पु.] 1. पागल होने का भाव या रोग 2. बुद्धि में विकार; विक्षिप्तता 3. मूर्खता; बेवकूफ़ी; उन्माद; सनक।
पाचक
(सं.) [वि.] किसी प्रकार का पाचन करने वाला; पकाने या पचाने वाला। [सं-पु.] 1. रसोइया; बावर्ची 2. भोजन को पचाने या पाचन शक्ति बढ़ाने वाली दवा (अवलेह, टिकिया,
चूर्ण आदि) 3. (आयुर्वेद) भोजन को पचाने वाला पित्त।
पाचन
(सं.) [सं-पु.] 1. भोजन को पचाने की क्रिया; भोजन के अवयवों का आँतों द्वारा अवशोषण; (डाइजेशन) 2. जठराग्नि; हाज़मा 3. अम्लरस।
पाचन-तंत्र
(सं.) [सं-पु.] 1. शरीर के भीतर स्थित उन महत्वपूर्ण अंगों, संरचनाओं और ग्रंथियों का सामूहिक नाम जो भोजन को पचाते हैं (मुख, ग्रासनली, आमाशय, पक्वाशय, यकृत,
छोटी आँत, बड़ी आँत आदि)।
पाचनशक्ति
(सं.) [सं-स्त्री.] खाद्य पदार्थ को पचाने की शक्ति या सामर्थ्य; जठराग्नि; हाज़मा।
पाचनिका
(सं.) [सं-स्त्री.] पकाने की क्रिया; पचाना।
पाच्य
(सं.) [वि.] जो पच जाए; पचाने या पकाने योग्य।
पाजामा
(फ़ा.) [सं-पु.] पैरों में पहनने का सिला हुआ वस्त्र जिसमें टखने से कमर तक का भाग ढका रहता है, यह कई प्रकार का होता है, जैसे- नेपाली, चूड़ीदार, पेशावरी,
कलीदार, इजार, तमान आदि।
पाजी1
(सं.) [सं-पु.] 1. पैदल चलने वाला आदमी 2. पैदल सिपाही; प्यादा; पहरेदार।
पाजी2
(फ़ा.) [वि.] दुष्ट; लुच्चा; ढीठ; बदमाश।
पाजीपन
(फ़ा.+हिं.) [सं-पु.] पाजी या दुष्ट होने की अवस्था; दुष्टता; शरारत; बदमाशी।
पाज़ेब
(फ़ा.) [सं-स्त्री.] चाँदी, सोने आदि का बना एक प्रकार का गहना जो पैरों में पहना जाता है; पायल।
पाट
(सं.) [सं-पु.] 1. चक्की के दोनों पल्लों में से एक; चाक 2. रेशम और उससे बटकर तैयार किया हुआ महीन धागा 3. नदी का सूखा हुआ भाग 4. पटसन 5. कपड़ा; वस्त्र 6. पीढ़ा
7. पत्थर की पटिया जिसपर धोबी कपड़े धोता है 8. लकड़ी का तख़ता 9. चौड़ाई का विस्तार।
पाटंबर
(सं.) [सं-पु.] रेशमी कपड़ा; रेशमी वस्त्र।
पाटन
(सं.) [सं-पु.] 1 तोड़ने-फोड़ने, चीरने-फाड़ने तथा छेदने की क्रिया 2. नगर या पत्तन। [सं-स्त्री.] 1. पाटने की क्रिया या भाव; पटाव 2. छत; मकान की पहली मंजिल से
ऊपर की मंजिल।
पाटना
(सं.) [क्रि-स.] 1. गड्ढे या असमतल भूमि को मिट्टी-पत्थर आदि से भरकर आस-पास की समतल भूमि के बराबर करना 2. कमरे को छतदार बनाना 3. {ला-अ.} किसी वस्तु की भरमार
या बहुतायत होना; विवाद का निपटारा; ऋण का चुका दिया जाना।
पाटनीय
(सं.) [वि.] तोड़ने-फोड़ने, चीरने-फाड़ने या छेदने के योग्य।
पाटल
(सं.) [सं-पु.] 1. पाढर या पाड़र नामक पेड़ 2. गुलाब का पौधा व फूल 3. केसर 4. गुलाबी रंग 5. एक प्रकार का बरसाती धान। [वि.] 1. गुलाबी; गुलाब के रंग का 2. गुलाब
संबंधी।
पाटला
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. पाढर का पेड़ 2. दुर्गा या पार्वती नामक देवी 3. जलकुंभी। [सं-पु.] बढ़िया, शुद्ध और खरा सोना।
पाटलिक
(सं.) [सं-पु.] 1. शिष्य; विद्यार्थी 2. पाटलिपुत्र। [वि.] 1. देशकाल का ज्ञान रखने वाला 2. दूसरे का भेद जानने वाला।
पाटलिपुत्र
(सं.) [सं-पु.] (इतिहास) अजातशत्रु का बसाया हुआ मगध का एक प्रसिद्ध नगर जिसका वर्तमान नाम पटना है।
पाटव
(सं.) [सं-पु.] 1. दक्षता; पटुता; कौशल 2. आरोग्य; स्वास्थ्य 3. मज़बूती; दृढ़ता 4. शीघ्रता; जल्दी 5. तीव्रता; तीक्ष्णता।
पाटा1
[सं-पु.] 1. काठ का पीढ़ा 2. दो दीवारों के बीच कड़ी, बाँस आदि लगाकर बनाया जाने वाला आधार जिसपर चीज़ें रखते हैं 3. आयताकार लंबी और भारी धरन जिसकी सहायता से
किसान जोते हुए खेत की मिट्टी के ढेले तोड़कर उसे समतल करते हैं 4. पत्थर का बड़ा टुकड़ा जिसपर कपड़ा धुला जाता है 5. राजमिस्त्री का दीवारों के प्लास्टर को समतल
करने का उपकरण।
पाटा2
(सं.) [सं-स्त्री.] सिलसिला; परंपरा।
पाटित
(सं.) [वि.] चीड़ा-फाड़ा हुआ; तोड़-फोड़ा हुआ; विदारित।
पाटी
[सं-स्त्री.] 1. लकड़ी का वह लंबोतरा टुकड़ा जिसपर बच्चों को अक्षर लिखना सिखाया जाता है; तख़्ती 2. पाठ; सबक 3. रीति; प्रणाली; परिपाटी 3. पंक्ति; श्रेणी 4.
चट्टान; शिला 5. बालों में कंघी से बनाई गई माँग पट्टी 6. खाट में लगाई जाने वाली लंबी लकड़ियाँ या डंडे 7. हिसाब; गणित। [मु.] -पारना : बालों
में कंघी से माँग निकालना।
पाटीर
(सं.) [सं-पु.] 1. चंदन की लकड़ी और उसका वृक्ष 2. मैदान 3. हल 4. खेत।
पाठ
(सं.) [सं-पु.] 1. पढ़ने की क्रिया या भाव; वाचन 2. किसी पाठ्य-पुस्तक का वह अंश जो किसी एक विषय से संबंधित हो; किसी विषय का वह अंश जो एक बार में पढ़ा या पढ़ाया
जाए; अध्याय 3. पाटी; सबक 5. किसी धर्म ग्रंथ के नियमित रूप से पढ़ने की क्रिया; वेदपाठ। [मु.] -पढ़ाना : किसी को बहकाना। उलटा पाठ पढ़ाना : कुछ का कुछ समझा देना।
पाठक
(सं.) [सं-पु.] 1. विद्यार्थी; छात्र 2. अध्यापक; गुरु 3. कथावाचक; धर्मोपदेशक 4. ब्राह्मण समाज में एक कुलनाम या सरनेम। [वि.] 1. पाठ पढ़ने वाला 2. पाठ करने
वाला; कथावाचक।
पाठकीय
(सं.) [वि.] पाठक या पाठकों से संबंधित; पाठक का।
पाठन
(सं.) [सं-पु.] 1. पाठ पढ़ाने की क्रिया; अध्यापन 2. पढ़कर सुनाना; वाचन।
पाठभेद
(सं.) [सं-पु.] एक ही ग्रंथ के विभिन्न संस्करणों के पाठ में मिलने वाला भेद; पाठांतर।
पाठशाला
(सं.) [सं-स्त्री.] वह स्थान या संस्था जहाँ छोटे बच्चों को शिक्षा दी जाती है; विद्यालय; (स्कूल)।
पाठा
(सं.) [वि.] पट्ठा; जवान; हृष्ट-पुष्ट; तगड़ा। [सं-पु.] 1. जवान बकरा, बैल आदि 2. मोटा-ताज़ा और जवान व्यक्ति 3. गाय-बैलों की एक जाति। [सं-स्त्री.] पाढ़ा नाम की
लता।
पाठांतर
(सं.) [सं-पु.] एक ही ग्रंथ की दो प्रतियों के पाठ में मिलने वाला अंतर; किसी ग्रंथ के दो पाठ्यांशों में मात्रा तथा वर्ण की भिन्नता; पाठभेद।
पाठांश
(सं.) [सं-पु.] किसी पुस्तक या ग्रंथ के पाठ का एक भाग।
पाठावली
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. पाठ की पंक्ति 2. पाठ्य सामग्री का संग्रह 3. वह पुस्तक जिसमें पाठ्य सामग्री का संग्रह हो।
पाठिक
(सं.) [वि.] जो मूल पाठ के अनुरूप हो; मूल पाठ से मिलने वाला; पाठानुसार; पाठानुकूल।
पाठी
(सं.) [वि.] पाठ करने वाला; पाठ पढ़ने वाला; पाठक। [सं-पु.] 1. वह जो अध्ययन समाप्त कर चुका हो 2. चीता नामक वृक्ष।
पाठ्य
(सं.) [वि.] जिसे पढ़ा या पढ़ाया जा सके; पढ़ने या पढ़ाए जाने योग्य; लिखा हुआ; सुलिखित।
पाठ्यक्रम
(सं.) [सं-पु.] 1. किसी संस्था या समिति द्वारा किसी कक्षा की शिक्षा या परीक्षा हेतु निर्धारित पाठ्य सामग्री; (सिलॅबस) 2. किसी कक्षा या परीक्षा विशेष के
अध्ययन के लिए निर्धारित समस्त विषय या पुस्तकें; (कोर्स)।
पाठ्यचर्चा
(सं.) [सं-स्त्री.] वह पाठ्यक्रम-विवरण जिसमें विभिन्न परीक्षाओं के लिए निर्धारित विषयों तथा संबंधित पाठ्य-विवरणों का उल्लेख रहता है।
पाठ्य पुस्तक
(सं.) [सं-स्त्री.] वह पुस्तक जो कक्षा में विद्यार्थियों को नियमित रूप से पढ़ाई जाती हो; पाठ्यक्रम से संबंधित पुस्तक; (टैक्स्ट बुक)।
पाठ्य विवरण
(सं.) [सं-पु.] एक प्रकार की पुस्तक जिसमें विभिन्न पाठ्यक्रमों का विवरण दिया जाता है।
पाठ्य सामग्री
(सं.) [सं-स्त्री.] पढ़ने-लिखने की आवश्यक चीज़ें, जैसे- पुस्तक, पेन आदि।
पाठ्येतर
(सं.) [वि.] पाठ्यक्रम से भिन्न; पढ़ाई के अतिरिक्त वे क्रियाएँ या गतिविधियाँ जो विश्वविद्यालय या महाविद्यालय में संचालित की जाती हैं।
पाड़
(सं.) [सं-पु.] 1. धोती, साड़ी आदि का किनारा 2. मचान; (पाइट) 3. कुएँ को ढकने की लकड़ी की ठठरी या ढाँचा 4. फाँसी की तख़्ता।
पाड़ा
[सं-पु.] 1. मुहल्ला; टोला 2. खेत की सीमा; हद 3. भैंस का नर बच्चा।
पाढ़
(सं.) [सं-पु.] 1. पीढ़ा; पाटा 2. वह मचान जिसपर बैठ कर किसान खेत की रखवाली करता है 3. धोती, साड़ी आदि का किनारा 4. गहनों पर नक्काशी करने का सुनारों का एक
उपकरण 5. लकड़ी की सीढ़ी।
पाढ़र
(सं.) [सं-पु.] बेल के समान पत्तों वाला एक वृक्ष; पाटल; पाटालि।
पाढ़ा
(सं.) [सं-स्त्री.] पाठा नाम की लता।
पाणि
(सं.) [सं-पु.] कर; हाथ। [सं-स्त्री.] बाज़ार; हाट।
पाणिगृहीता
(सं.) [सं-स्त्री.] जिस स्त्री का पाणिग्रहण संस्कार हुआ हो; विवाहिता; वधू (पत्नी)।
पाणिग्रहण
[सं-पु.] 1. हिंदुओं में विवाह की एक रस्म जिसमें वर अपनी भावी पत्नी का हाथ पकड़कर उसे पत्नी के रूप में स्वीकार करता है 2. विवाह; शादी।
पाणिग्रहणिक
(सं.) [वि.] 1. विवाह के समय का 2. विवाह संबंधी; विवाह का।
पाणिग्राहक
(सं.) [सं-पु.] पाणिग्रहण के समय कन्या का हाथ पकड़ने वाला वर। [वि.] किसी का हाथ पकड़ने वाला; विवाह करने वाला।
पाणिनि
(सं.) [सं-पु.] 'अष्टाध्यायी' नामक प्रसिद्ध व्याकरण ग्रंथ के रचयिता व संस्कृत के एक प्राचीन ऋषि।
पाणिनिसूत्र
(सं.) [सं-पु.] पाणिनी द्वारा संस्कृत भाषा के व्याकरण के लिए बनाए गए सूत्र।
पाणिनीय
(सं.) [वि.] 1. पाणिनि संबंधी; पाणिनि का 2. पाणिनि के मत को मानने वाला 3. पाणिनि का व्याकरण पढ़ने वाला 4. पाणिनि के द्वारा विरचित या उक्त।
पात1
[सं-पु.] 1. पत्ता; पत्र; पल्लव 2. कान में पहना जाने वाला एक प्रकार का गहना जो पत्ते के आकार का होता है।
पात2
(सं.) [सं-पु.] 1. गिरने या गिराने की क्रिया या भाव; पतन 2. उचित स्थान से नीचे आने की क्रिया, जैसे- अधःपात होना 3. डालना; ले जाना; पड़ने की क्रिया, जैसे-
दृष्टिपात 4. नाश; ध्वस्त; बरबादी 5. मौत; मृत्यु 6. आघात; चोट।
पातंजल
(सं.) [सं-पु.] 1. पतंजलि द्वारा रचित 'योगशास्त्र' 2. पतंजलिकृत 'योगसूत्र' के अनुसार योग आचरण या योगसाधना करने वाला व्यक्ति। [वि.] 1. पतंजलि संबंधी; पतंजलि
का 2. पतंजलि द्वारा रचित; पतंजलिकृत 3. पतंजलि द्वारा चलाया जाने वाला।
पातक
(सं.) [वि.] 1. गिराने वाला 2. पतित होने वाला। [सं-पु.] पाप; अपराध; गुनाह।
पातकी
(सं.) [वि.] पाप करने वाला; अघी; पापी; अपराधी; दुराचारी।
पातन
(सं.) [सं-पु.] 1. नीचे गिराने या ढकेलने की क्रिया या भाव; झुकाना 2. काटकर गिरा देने की क्रिया 3. फेंकना 4. डालना 5. (आयुर्वेद) पारद शोधन के आठ संस्कारों
में पाँचवाँ संस्कार।
पातनीय
(सं.) [वि.] 1. जिसको गिराया जाना हो; गिराने योग्य; जो गिराए जाने को हो 2. प्रहार या अघात करने योग्य।
पाताबा
(फ़ा.) [सं-पु.] 1. पैरों में पहनने का मोज़ा 2. जूते के भीतर का तल्ला।
पाताल
(सं.) [सं-पु.] 1. अत्यधिक नीचा और गहरा स्थान; गहरा खड्ड या गड्डा 2. (पुराण) पृथ्वी के नीचे के सात लोकों में से सातवाँ लोक; एक कल्पित लोक; नागलोक।
पातिव्रत
(सं.) [सं-पु.] पति के प्रति होने वाली पूर्ण निष्ठा की भावना।
पाती
(सं.) [सं-स्त्री.] पत्र; चिट्ठी; पत्री।
पातुर
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. वेश्या 2. नटी।
पात्र
(सं.) [सं-पु.] 1. वह आधान जिसमें कुछ रखा या खाया-पीया जाता है; बरतन, जैसे- भोजन का पात्र 2. ऐसा व्यक्ति जो किसी काम या बात के सब प्रकार से उपयुक्त या योग्य
समझा जाता हो; कोई वस्तु पाने का अधिकारी; हकदार 3. उपन्यास, कहानी, नाटक आदि में वे व्यक्ति जो कथा-वस्तु की घटनाओं के घटक होते हैं और जिनके क्रिया-कलाप या
चरित्र से कथावस्तु की सृष्टि और उसका परिपाक होता है; अभिनेता।
पात्रता
(सं.) [सं-स्त्री.] पात्र होने की अवस्था या गुण; योग्यता; अर्हता।
पात्रत्व
(सं.) [सं-पु.] पात्र होने की योग्यता या धर्म; पात्रता; काबिलियत।
पात्री
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. छोटा पात्र या बरतन 2. कहानी, नाटक आदि में स्त्री पात्र; अभिनेत्री; नटी 3. छोटी भट्ठी। [वि.] 1. जिसके पास बरतन हो 2. जिसके पास योग्य
व्यक्ति हो।
पाथ
(सं.) [सं-पु.] पथ; रास्ता; मार्ग।
पाथना
(सं.) [क्रि-स.] साँचों द्वारा या हाथों से दबाकर या पीटकर गीली मिट्टी या गोबर आदि को चौकोर या गोल आकार में लाना; थापना; गढ़ना; बनाना।
पाथेय
(सं.) [वि.] पथ संबंधी; पथ का। [सं-पु.] 1. यात्रा में खाने हेतु ले जाया जाने वाला भोजन 2. यात्रा का ख़र्चा; यात्रा व्यय 3. (पुराण) एक प्राचीन देश का नाम।
पाद1
[सं-पु.] 1. गुदामार्ग या मलद्वार से निकलने वाली हवा; अपान वायु 2. शरीर में प्रवाहित होने वाली पाँच प्रकार की वायु में से एक अधोगामी वायु।।
पाद2
(सं.) [सं-पु.] 1. पैर; चरण; पाँव 2. छंद, श्लोक या मंत्र का चतुर्थ भाग 3. वृक्ष की जड़ 4. अंश; हिस्सा 5. विशाल पर्वत के समीप स्थित छोटा पहाड़ 6. एक पग की
माप 7. अंगुल की माप 8. चलने की क्रिया या भाव; गमन।
पाद टिप्पणी
(सं.) [सं-स्त्री.] वह टिप्पणी जो किसी ग्रंथ में पृष्ठ के निचले भाग में सूचना, निर्देश आदि देने के लिए लिखी गई हो; पन्ने के नीचे की टीका; (फ़ुटनोट)।
पादत्राण
(सं.) [सं-पु.] जूता, खड़ाऊँ, चप्पल आदि। [वि.] जिससे पैर की रक्षा हो।
पादना
[क्रि-अ.] 1. गुदामार्ग से अपान वायु को शरीर से बाहर निकालना 2. (खेल में) अधिक दौड़ाया या भगाया जाना।
पादप
(सं.) [सं-पु.] पौधा; वनस्पति।
पादपूरक
(सं.) [सं-पु.] वह वर्ण या अक्षर जिसके कारण छंद के पाद की पूर्ति हो जाती है लेकिन अर्थ पर कोई कुप्रभाव नहीं पड़ता।
पादपूरण
(सं.) [सं-पु.] 1. कविता के अधूरे चरण को पूरा करना; पादपूर्ति 2. वह शब्द या अक्षर जिससे किसी कविता या पद की पूर्ति होती है।
पादमूल
(सं.) [सं-पु.] 1. पर्वत का निचला भाग; तराई 2. पैर का निचला भाग; तलवा; एड़ी; टखना।
पादरी
(पु.) [सं-पु.] चर्च में धार्मिक कर्मकांड करने वाला व्यक्ति; ईसाइयों का धार्मिक गुरु।
पादाक्रांत
(सं.) [वि.] 1. पैर से कुचला या रौंदा हुआ; पद दलित 2. पराजित।
पादानुप्रास
(सं.) [सं-पु.] (काव्यशास्त्र) अनुप्रास अलंकार का एक भेद; पदगत अनुप्रास।
पादुका
(सं.) [सं-स्त्री.] खड़ाऊँ; चप्पल; जूता; (फ़ुटवियर)।
पादुकोण
(सं.) [सं-पु.] एक प्रकार का सरनेम।
पादोदक
(सं.) [सं-पु.] 1. पाँव या चरण धोने का जल; चरणोदक 2. किसी का पाँव पखारा हुआ जल; चरणामृत।
पाद्य
(सं.) [वि.] 1. पैर या चरण से संबंध रखने वाला; चरण या पैर का; पाद संबंधी। [सं-पु.] किसी सम्मानित व्यक्ति या देवता आदि के पैर प्रक्षालन हेतु प्रयुक्त होने
वाला जल।
पाद्यार्घ
(सं.) [सं-पु.] 1. हाथ-पैर धोने के लिए दिया गया जल 2. पूजा की सामग्री 3. भेंट; नज़र 4. प्राचीनकाल में राजा द्वारा ब्राह्मण को दान के रूप में दी गई भूमि जिसका
कर नहीं लिया जाता था।
पान1
(सं.) [सं-पु.] 1. तरल पदार्थ पीने की क्रिया या भाव 2. पीने योग्य तरल पदार्थ; पेय पदार्थ 3. शराब या मद्य बनाने या बेचने वाला व्यक्ति; कलवार।
पान2
(फ़ा.) [सं-पु.] 1. कत्था, चूना आदि लगाकर खाया जाने वाला एक प्रसिद्ध लता का पत्ता; तांबूल; नागबेल 2. लगा हुआ पान का पत्ता; गिलौरी; बीड़ा 3. ताश के पत्तों पर
बनी हुई पान के आकार की लाल रंग की बूटियाँ 4. पान के आकार की कोई रचना 5. जूते में एड़ी पर लगाया जाने वाला पान के आकार का चमड़े का टुकड़ा। [मु.] -देना : सत्कार के रूप में पान का बीड़ा देना। -खाने को देना : रिश्वत या घूस देना।
पानक
(सं.) [सं-पु.] 1. एक प्रकार का पेय 2. आग पर पकाए गए कच्चे आम, इमली आदि के गूदे में पानी, पुदीने का रस, नमक, चीनी आदि को मिलाकर तैयार किया जाने वाला एक पेय
पदार्थ; पना या पन्ना।
पानड़ी
(सं.) [सं-स्त्री.] एक प्रकार की पत्ती जो प्रायः मीठे पेय पदार्थों तथा तेल और उबटन आदि में उन्हें सुगंधित करने के लिए छोड़ी जाती है।
पानदान
(फ़ा.) [सं-पु.] पान के पत्तों, सुपारी तथा पान के मसालों को रखने का डिब्बा; पान के बीड़े रखने का डिब्बा; पनडिब्बा।
पानपत्ता
(फ़ा.+हिं.) [सं-पु.] 1. लगा हुआ पान 2. साधारण उपहार या भेंट 3. सत्कार की सामग्री।
पानफूल
(सं.) [सं-पु.] 1. कोमल या सुकुमार वस्तु 2. साधारण (अत्यल्प) उपहार या भेंट।
पानसुपारी
(फ़ा.+सं.) [सं-स्त्री.] किसी शुभ या मांगलिक अवसर पर आमंत्रित व्यक्तियों का पान-सुपारी से किया जाने वाला सत्कार।
पाना
[क्रि-स.] 1. कुछ प्राप्त करना; ग्रहण करना 2. खोई वस्तु का मिल जाना 3. अनुभव करना; समझ लेना 4. भोगना 5. किसी के पास पहुँचना 6. भोजन करना 7. बराबरी करना 8.
पारिश्रमिक प्राप्त करना। [क्रि-अ.] सकना।
पानागार
(सं.) [सं-पु.] वह स्थान जहाँ बहुत से लोग एकत्रित होकर शराब पीते हों; शराब पीने का स्थान।
पानी
(सं.) [सं-पु.] 1. रंग, गंध और स्वाद से रहित एक पारदर्शी तरल द्रव्य जो जीवन के लिए आवश्यक है; जल; नीर 2. वर्षा; मेह 4. किसी हरे या सरस पदार्थ के भीतर से
निकलने वाला रस 5. पदार्थ का विशेष गुण जिसके कारण वह आभायुक्त बना रहता है 6. {ला-अ.} आब; कांति 7. {ला-अ.} मान-प्रतिष्ठा; इज़्ज़त। [मु.]-करना : किसी का क्रोध शांत करना। -की तरह बहाना : ख़ूब ख़र्च करना। -के मोल होना : बहुत सस्ता होना।-देना : सींचना; तर्पण करना। -पानी होना : बहुत शर्मिंदा होना। -पी-पीकर कोसना : ख़ूब खरी-खोटी सुनाना।-फेरना : सर्वनाश कर देना। -में आग लगाना : अशांति-उपद्रव करा देना। -फेंकना : नष्ट करना। -उतारना : अपमानित करना।
पानीदार
(हिं.+फ़ा.) [वि.] 1. जिसमें पानी हो; कांतिमान; चमकदार; लावण्ययुक्त 2. प्रतिष्ठित; इज़्ज़तदार 3. स्वाभिमानी।
पानीपत
[सं-पु.] 1. दिल्ली के पास स्थित एक प्रसिद्ध नगर 2. उक्त नगर के पास स्थित एक मैदान जहाँ अनेक प्रसिद्ध युद्ध हुए।
पानीपूरी
[सं-स्त्री.] गोल फूली हुई पपड़ी में नमक, मिर्च, इमली, पुदीना तथा चटपटे मसाले मिले पानी को भरकर खाया जाने वाला व्यंजन; गोलगप्पा; पानीबतासा; गुपचुप।
पानीफल
[सं-पु.] पानी में होने वाला तिकोने आकार का एक फल जिसके तीनों कोनों पर काँटा होता है, सिंघाड़ा।
पानौरा
[सं-पु.] पान के पत्तों को बेसन में लपेटकर बनाई हुई पकौड़ी; पनौआ।
पाप
(सं.) [सं-पु.] 1. धर्म और नीति के विरुद्ध किया जाने वाला आचरण; गुनाह 2. अपराध; कसूर 3. अनिष्ट; अहित 4. अशुभ फल देने वाला कर्म। [मु.] -कमाना : पाप करके फल का भोगी बनना। -कटना : पीछा छूटना। -मोल लेना : जानबूझकर झंझट मोल लेना।
पापकर्म
(सं.) [सं-पु.] 1. धर्म विरुद्ध कर्म 2. ऐसा बुरा और निंदनीय काम जिसको करने से पाप लगता हो 3. खोटा कार्य।
पापघ्न
(सं.) [वि.] पाप नाश करने वाला।
पापड़
[सं-पु.] 1. उड़द, मूँग, आलू आदि से निर्मित एक गोलाकार बारीक मसालेदार पपड़ी या रोटी जिसे तल कर या सेक कर खाया जाता है 2. पापड़ जैसी कोई सूखी और गोल चीज़।
[मु.] -बेलना : बहुत परिश्रम करना।
पापड़ी
[सं-स्त्री.] 1. बेसन और चीनी से निर्मित एक प्रकार की मिठाई 2. एक प्रकार का नमकीन व्यंजन; चाट 3. मध्यप्रदेश, पंजाब और तमिलनाडु में पाया जाने वाला एक प्रकार
का वृक्ष।
पापनाशक
(सं.) [वि.] पापों का नाश करने वाला।
पापनाशी
(सं.) [वि.] पापों का नाश करने वाला; पापों को नष्ट करने वाला।
पापमति
[वि.] जिसका मन सदैव पाप कर्म में लगा हो; पापचेता; दुरात्मा; पापबुद्धि।
पापलीन
(इं.) [सं-पु.] एक प्रकार का सूती कपड़ा जो नरम होता है।
पापशोधन
(सं.) [सं-पु.] 1. पाप से मुक्त होने की क्रिया या भाव 2. पाप निवारण 2. पाप निवारण करने का स्थान; तीर्थस्थान।
पापा1
[सं-पु.] बरसात में जौ-बाजरे में लगने वाला एक प्रकार का कीड़ा।
पापा2
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. ज्योतिष में बुध ग्रह की उस समय की गति जब वह हस्त, ज्येष्ठा या अनुराधा नक्षत्र पर होता है 2. एक शिकारी जंतु।
पापा3
(इं.) [सं-पु.] पिता; बच्चों द्वारा पिता हेतु प्रयुक्त संबोधन 2. यूनानी पादरियों के एक वर्ग विशेष के लिए प्रयुक्त की जाने वाली सम्मानसूचक उपाधि।
पापाचार
(सं.) [सं-पु.] 1. पापपूर्ण आचरण 2. पापयुक्त कृत्य 3. दुराचार। [वि.] पाप कर्म करने वाला; पापी।
पापात्मा
(सं.) [वि.] जिसकी आत्मा सदैव पाप कर्म में प्रवृत्त रहे; सदा पाप कर्म में लगा रहने वाला; पापी।
पापिन
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. पाप में लीन या अनुरक्त स्त्री; पातकी; अघी 2. {ला-अ.} क्रूर; निर्मोही; निर्दय।
पापिष्ठ
(सं.) [वि.] सबसे बड़ा पापी; अतिपापी।
पापी
(सं.) [वि.] 1. पाप करने वाला; पाप कर्म में रत या अनुरक्त; पातकी; अघी 2. {ला-अ.} निर्दय; निर्मोही; क्रूर। [सं-पु.] वह जिसने पाप किया हो; पाप करने वाला
व्यक्ति।
पाबंद
(फ़ा.) [वि.] 1. किसी नियम, वचन, समय या सिद्धांत आदि का पूर्ण रूप से पालन करने वाला या मानने वाला 2. अनुशासन प्रिय; अनुशासित 3. नियम, प्रतिज्ञा, विधि, आदेश
आदि का पालन करने के लिए बाध्य।
पाबंदी
(फ़ा.) [सं-स्त्री.] 1. पाबंद होने की क्रिया, भाव या अवस्था 2. किसी नियम, वचन, सिद्धांत आदि का पूर्ण रूप से पालन करने की विवशता या लाचारी 3. किसी के अधीन
होकर काम करने का भाव 4. कोई विशेष कार्य करने की बाध्यता या लाचारी।
पाम1
(सं.) [सं-पु.] 1. एक प्रकार का चर्मरोग; विचर्चिका; दद्रु; (एकज़िमा) 2. खाज; खुजली।
पाम2
(इं.) [सं-पु.] 1. ताड़ का वृक्ष 2. हथेली; हस्त।
पामर
(सं.) [वि.] 1. दुष्ट; अधम 2. पापी 3. मूर्ख; निर्बुद्धि 4. नीच 5. जिसका जन्म निम्न कुल में हुआ हो 6. निर्धन 7. असहाय 8. पाम रोग से ग्रस्त। [सं-पु.] 1. पाप
कर्म में संलग्न व्यक्ति 2. नीच या अधम व्यक्ति।
पामरी
(सं.) [सं-स्त्री.] दुपट्टा; उपरना।
पाय
(फ़ा.) [पूर्वप्रत्य.] शब्दों के आरंभ में जुड़कर पैरों से संबंधित तथा पैरों की तरफ़ का अर्थ देता है, जैसे- पायदान, पायताना।
पायँता
(सं.) [सं-पु.] चारपाई का वह भाग जिस तरफ़ पैर रहते हैं; पैताना।
पायंदाज
(फ़ा.) [सं-पु.] पैर आदि पोंछने का बिछावन; पायदान; गर्दख़ोर।
पायक1
[सं-पु.] 1. पहलवान 2. पटेबाज़।
पायक2
(सं.) [वि.] पीने वाला; पान करने वाला।
पायक3
(फ़ा.) [सं-पु.] 1. सेवक; दास 2. पैदल सिपाही; पदातिक 3. समाचार पहुँचाने वाला दूत।
पायजामा
(फ़ा.) [सं-पु.] पैर में पहनने का एक प्रकार का सिला हुआ वस्त्र जिससे टखने से कमर तक का भाग ढका रहता है; पाजामा; सुथना; तमान; इज़ार।
पायताना
[सं-पु.] पलंग या चारपाई का वह भाग जिधर पैर होते हैं।
पायदान
(फ़ा.) [सं-पु.] 1. पैर रखने के लिए बना हुआ स्थान या वस्तु 2. काठ की छोटी चौकी जो कुरसी पर बैठे हुए आदमी के पैर रखने के लिए मेज़ के नीचे रखी जाती है 3. किसी
वाहन के बगल में बाहर की ओर लटकाई हुई धातु की छोटी पटरी जिसपर पैर रखकर नीचे से गाड़ी पर चढ़ा जाता है 4. ऊपर चढ़ने या उतरने के लिए बने साधनों में पैर रखने के
लिए बना प्रत्येक स्थान 5. {ला-अ.} उन्नति या बढ़ाव के मार्ग पर पड़ने वाली विभिन्न स्थितियों में से प्रत्येक स्थिति या स्थान।
पायदार
(फ़ा.) [वि.] दृढ़, मज़बूत और टिकाऊ।
पायदारी
(फ़ा.) [सं-स्त्री.] दृढ़ता; मज़बूती।
पायना
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. गीला या तर करना 2. सींचना 3. पिलाने की क्रिया 4. किसी धारदार वस्तु की धार तेज़ करना; सान धरना।
पायमाल
(फ़ा.) [वि.] 1. पैरों से रौंदा या कुचला हुआ; पददलित; पदक्रांत 2. बुरी तरह तबाह; बरबाद; चौपट; सत्यानाश।
पायरिया
(सं.) [सं-पु.] 1. दाँतों की साफ़ सफ़ाई में कमी के कारण होने वाली बीमारी 2. साँस की बदबू, मसूढ़ों से ख़ून और मवाद निकलना।
पायल
[सं-स्त्री.] 1. स्त्रियों द्वारा पैर में पहना जाने वाला एक प्रकार का घुँघरू वाला ज़ेवर; पाज़ेब; नूपुर 2. बाँस की सीढ़ी। [वि.] जन्म के समय जिस बच्चे का पैर
पहले बाहर निकले।
पायस
(सं.) [सं-पु.] 1. दूध में पकाया हुआ चावल; खीर 2. सलई का गोंद। [वि.] 1. दूध या जल से संबद्ध 2. दूध या जल से निर्मित।
पाया
(फ़ा.) [सं-पु.] 1. पलंग, चौकी आदि का पैर 2. नींव; बुनियाद 3. स्तंभ; खंभा 4. पद; ओहदा; दरजा 5. घोड़ों के पैर में होने वाला एक प्रकार का रोग।
पायी
(सं.) [परप्रत्य.] पीने वाला, जैसे- स्तनपायी, विषपायी आदि।
पार
(सं.) [सं-पु.] 1. झील, नदी, समुद्र आदि का दूसरी ओर का किनारा 2. किसी काम या बात का अंतिम छोर या सिरा 3. विस्तार या व्याप्ति की चरम सीमा या हद। [मु.] -उतरना : छुट्टी पाना। -लगना : किसी काम का पूरा होना। -लगाना : उद्धार करना। -पाना : किसी
की गहराई की थाह लेना या किसी के विरुद्ध सफलता प्राप्त करना।
पारंगत
(सं.) [वि.] 1. किसी शास्त्र या विद्या में दक्ष; निष्णात 2. जिसने किसी शास्त्र या विद्या में अत्यधिक ज्ञान प्राप्त कर लिया हो 3. जो पार पहुँच चुका हो; जिसने
पार पा लिया हो।
पारंपरिक
(सं.) [वि.] परंपरा से चला आया हुआ; परंपरा से प्राप्त; परंपरा से संबद्ध; परंपरागत; क्रमागत।
पारंपरीय
(सं.) [वि.] परंपरागत; क्रमागत।
पारंपर्य
(सं.) [सं-पु.] 1. परंपरा का भाव 2. परंपराक्रम 3. कुलक्रम; वंशपरंपरा 4. परंपरा से चली आती हुई रीति।
पारक्य
(सं.) [सं-पु.] पवित्र आचरण या पुण्य कार्य जो परलोक में उत्तम गति प्राप्त कराता है। [वि.] 1. पराया 2. जो विरुद्ध हो; विरोधी।
पारखी
[सं-पु.] वह जिसमें परखने की शक्ति हो; परखने वाला; जाँचने वाला; परीक्षक।
पारग
(सं.) [वि.] 1. पार जाने वाला 2. जो पार चला गया हो 3. कार्य पूरा करने वाला 4. किसी विषय का अच्छा जानकार।
पारगमन
(सं.) [सं-पु.] एक अवस्था, स्थान या स्थिति से दूसरी अवस्था, स्थान या स्थिति में जाने या भेजने की क्रिया या भाव।
पारण
(सं.) [सं-पु.] 1. पार करने या जाने की क्रिया या भाव 2. व्रत या उपवास के बाद का पहला भोजन 3. तृप्ति; संतोष 4. उत्तीर्ण होना; परीक्षा या जाँच में खरा उतरना
5. बादल 6. अध्ययन; पढ़ना 7. आगे बढ़ना 8. पूरा करना। [वि.] पार करने वाला; उद्धार करने वाला।
पारणपत्र
(सं.) [सं-पु.] 1. किसी सभा या समारोह में बाहर या भीतर जाने का लिखित अनुमति पत्र; (पास) 2. रेल आदि में बिना किराए के यात्रा करने का अनुमति पत्र।
पारतंत्र्य
(सं.) [सं-पु.] पराधीनता; परतंत्रता; गुलामी।
पारत्रिक
(सं.) [वि.] 1. परलोक संबंधी 2. पारलौकिक 3. जिससे परलोक में उत्तम गति प्राप्त हो।
पारद
(सं.) [सं-पु.] 1. चाँदी जैसी एक चमकीली और भारी धातु जो सामान्यतः द्रव रूप में रहती है; पारा; (मरकरी) 2. एक प्राचीन असभ्य जाति 3. पारद जाति के रहने का
प्रदेश।
पारदर्शक
(सं.) [वि.] 1. जिसके भीतर से होकर प्रकाश की किरणों के जा सकने के कारण उस पार की वस्तुएँ दिखाई दें; जिससे आरपार दिखाई पड़े, जैसे- शीशा 2. पार को दिखाने
वाला।
पारदर्शिका
(सं.) [वि.] आरपार दिखाई देने वाली।
पारदर्शिता
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. पारदर्शी होने का गुण या भाव 2. पदार्थों के आर-पार देखे जा सकने का गुण या क्षमता; (ट्रांसपरेंसी)।
पारदर्शी
(सं.) [वि.] 1. इस पार से उस पार तक दिखने वाला, जैसे- काँच, हवा, झीना वस्त्र 2. {ला-अ.} आर-पार अर्थात बहुत दूर तक की बात देखने और समझने वाला; परिणामदर्शी;
दूरदर्शी; चतुर; बुद्धिमान; पारदर्शक।
पारधी
(सं.) [सं-पु.] व्याध; बहेलिया; वधिक; आखेटक; शिकारी। [सं-स्त्री.] आड़; ओट।
पारना
(सं.) [क्रि-स.] 1. किसी वस्तु को स्वरूप देकर ज़मीन पर डालना 2. गिराना 3. लेटाना 4. कुश्ती में पछाड़ना या पटकना 5. स्थापित या प्रस्थापित करना। [क्रि-अ.]
सकना; कार्य करने में समर्थ होना।
पारपत्र
(सं.) [सं-पु.] एक राजकीय अधिकार-पत्र जो अपने देश के नागरिक को दिया जाता है, जिससे वह विदेश यात्रा के समय उसे दिखाकर आसानी से भ्रमण कर सके; (पासपोर्ट)।
पारब्रह्म
(सं.) [सं-पु.] निर्गुण या निरुपाधि ब्रह्म; परब्रह्म।
पारमार्थिक
(सं.) [वि.] 1. जिससे पारमार्थ सिद्ध हो 2. परमार्थ का प्रेमी 3. अति उत्तम 4. सदैव एकरूप एवं एकरस रहने वाला 5. अविकारी और सत्य।
पारमिता
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. सीमा; हद 2. पूर्णता; उत्कृष्टता।
पारलौकिक
(सं.) [वि.] 1. जो लौकिकता से परे हो; परलोक संबंधी; परलोक का 2. अलौकिक 3. अज्ञात 4. अपार्थिव 5. अप्राकृतिक 6. असाधारण 7. विलक्षण।
पारवर्ग्य
(सं.) [वि.] 1. किसी अन्य वर्ग से संबंधित 2. विरोधी 3. प्रतिकूल।
पारस1
[सं-पु.] 1. परोसा हुआ भोजन 2. वह पत्तल जिसमें एक आदमी के खाने-भर का भोजन रखा गया हो।
पारस2
(सं.) [सं-पु.] 1. एक प्रकार का कल्पित पत्थर जिसके स्पर्श मात्र से लोहा भी सोना हो जाता है; स्पर्शमणि 2. लाभदायक एवं उपयोगी पदार्थ 3. बादाम या खूबानी की
जाति का मझोले कद का एक पहाड़ी वृक्ष जो देखने में ढाक के पेड़ की तरह लगता है। [वि.] 1. पारस पत्थर के समान स्वच्छ और उत्तम; चंगा; निरोग; तंदुरुस्त 2. जो किसी
दूसरे को भी अपने समान कर ले; दूसरों को अपने जैसा बनाने वाला।
पारस3
(फ़ा.) [सं-पु.] आधुनिक ईरान देश (फ़ारस) का प्राचीन नाम।
पारसनाथ
[सं-पु.] 1. जैनों के तेईसवें तीर्थंकर; पार्श्वनाथ 2. झारखंड में स्थित एक पहाड़ी का नाम 3. एक प्रसिद्ध जैन तीर्थस्थल।
पारसल
(इं.) [सं-पु.] डाक अथवा रेल आदि के माध्यम से किसी के नाम से भेजा जाने वाला लिफ़ाफ़ा या डिब्बानुमा पैकेट।
पारसाई
(फ़ा.) [सं-स्त्री.] पारसा (धर्मात्मा) होने की अवस्था या भाव; धार्मिकता; साधुता; सदाचार।
पारसी
(सं.) [सं-पु.] 1. एक अग्निपूजक जाति जो कमर में एक प्रकार का यज्ञोपवीत पहने रहते हैं 2. फ़ारस (आधुनिक ईरान) का वासी। [वि.] पारस या फ़ारस का; फ़ारस संबंधी।
पारस्परिक
(सं.) [वि.] आपसी; आपस का; एक-दूसरे से संबंधित; परस्पर होने वाला; (म्यूचुअल)।
पारस्परिकता
(सं.) [सं-स्त्री.] परस्पर होने की अवस्था या भाव; परस्परता; आपसी भाव।
पारा1
[सं-पु.] गारा या मसाले का प्रयोग किए बिना ईंट या पत्थर के टुकड़ों से बनी छोटी दीवार।
पारा2
(सं.) [सं-पु.] 1. चाँदी की तरह की एक चमकीली और भारी धातु जो सामान्यतः द्रव रूप में रहती है; पारद; (मरकरी) 2. दीया जैसा परंतु उससे कुछ बड़े आकार का पात्र;
परई।
पारा3
(फ़ा.) [सं-पु.] टुकड़ा; खंड।
पारापार
(सं.) [सं-पु.] 1. दोनों तरफ़ का किनारा या तट; उभय तट 2. समुद्र।
पारायण
(सं.) [सं-पु.] 1. किसी ग्रंथ का आदि से अंत तक नियमित पाठ 2. किए जाने वाले किसी कार्य की समाप्ति 3. पार जाना।
पारावत
(सं.) [सं-पु.] 1. कपोत; पंडुक; कबूतर 2. बंदर 3. एक प्रकार का सर्प 4. पर्वत।
पारावार
(सं.) [सं-पु.] 1. आरपार 2. नदी आदि के दोनों किनारे 3. सीमा; अंत; हद 4. समुद्र।
पाराशर
(सं.) [सं-पु.] 1. पराशर मुनि के पुत्र; वेदव्यास 2. ब्राह्मण समाज में एक कुलनाम या सरनेम। [वि.] 1. पराशर से संबंधित 2. पराशर विरचित।
पाराशरी
(सं.) [सं-पु.] पाराशर मत का अनुयायी (संन्यासी)।
पारिजात
(सं.) [सं-पु.] 1. (पुराण) समुद्र मंथन के समय निकला हुआ एक वृक्ष जिसके विषय में माना जाता है कि यह इंद्र के नंदनकानन में लगा हुआ है 2. हरसिंगार वृक्ष या
उसका फूल 3. एक मुनि का नाम।
पारिणामिक
(सं.) [वि.] 1. परिणाम संबंधी 2. जिसका रूपांतरण या विकास हो सके 3. पचने वाला; जो पच सके या पचाया जा सके।
पारित
(सं.) [वि.] 1. जो पार हो चुका हो; जिसका पारण हुआ हो 2. जो परीक्षा में उत्तीर्ण हो चुका हो 3. जो नियम या विधिपूर्वक किसी संस्था या विधान सभा द्वारा स्वीकृत
किया जा चुका हो; (विधेयक, प्रस्ताव आदि)।
पारितोषिक
(सं.) [सं-पु.] पुरस्कार; सम्मान; इनाम; (प्राइज़)। [वि.] 1. पूर्णरूपसे संतुष्ट करने वाला 2. प्रसन्न करने वाला।
पारिपार्श्व
(सं.) [सं-पु.] साथ-साथ चलने वाला व्यक्ति; अनुचर; सेवक।
पारिपार्श्विक
(सं.) [सं-पु.] 1. सेवक; अनुचर 2. नाटक में, स्थापक का सहायक नट।
पारिभाव्य
(सं.) [सं-पु.] 1. सुरक्षित राशि 2. जमानत आदि के रूप में लिया हुआ 3. कुष्ठ रोग की एक औषधि।
पारिभाषिक
(सं.) [वि.] 1. जिसका अर्थ परिभाषा द्वारा सूचित किया जाए 2. परिभाषा संबंधी 3. जो (शब्द) किसी शास्त्र या विषय में अपना साधारण से भिन्न कोई विशिष्ट अर्थ रखता
हो; जिसका व्यवहार किसी विशेष अर्थ के संकेत के रूप में किया जाए।
पारिभाषिक शब्द
(सं.) [सं-पु.] वह शब्द जो किसी शास्त्र या विषय में अपना साधारण से भिन्न कोई विशिष्ट अर्थ रखता हो।
पारिभाषिक शब्दावली
(सं.) [सं-स्त्री.] विशिष्ट अर्थों में प्रयुक्त होने वाले शब्दों की सूची।
पारिमिता
(सं.) [सं-स्त्री.] हद; सीमा।
पारिवारिक
(सं.) [वि.] परिवार संबंधी; परिवार का।
पारिवारिकता
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. पारिवारिक होने का भाव 2. स्वजन भावना।
पारिव्राज्य
(सं.) [सं-पु.] 1. संन्यास; विरत 2. विरक्त होने की अवस्था या भाव।
पारिश्रमिक
(सं.) [सं-पु.] किए हुए श्रम या कार्य के बदले में मिलने वाला धन; मज़दूरी; मेहनताना।
पारिषद
(सं.) [वि.] परिषद संबंधी, परिषद का। [सं-पु.] 1. परिषद या सभा में बैठने वाला व्यक्ति; सभासद 2. सभ्य 3. मध्यकाल में राजा का मित्र; अनुचर 4. गण; अनुयायी वर्ग।
पारी1
[सं-स्त्री.] 1. किसी कार्य को करने में क्रमानुसार प्राप्त होने वाला मौका; बारी 2. क्रिकेट के खेल में प्रत्येक दल को बल्लेबाज़ी करने के लिए प्राप्त होने
वाला अवसर; पाली।
पारी2
(सं.) [सं-स्त्री.] वह रस्सी जिसके द्वारा हाथी के पैर बाँधे जाते हैं।
पारुष्य
(सं.) [सं-पु.] 1. परुष होने की अवस्था, गुण या भाव 2. परुषता 3. कठोरता; बात का कड़वापन; रुखाई।
पारेषण
(सं.) [सं-पु.] 1. भेजना; प्रेषण 2. संचरण; संचार; संचारण।
पार्क
(इं.) [सं-पु.] 1. किसी नगर का वह स्थान जहाँ फल-फूलदार या सुंदर पौधों, वृक्षों आदि को लगाया गया हो; उपवन 2. भूमि का एक हिस्सा जो अपने प्राकृतिक रूप में
सार्वजनिक संपत्ति के रूप में सुरक्षित रखा गया हो; सार्वजनिक उद्यान।
पार्किंग
(इं.) [सं-स्त्री.] 1. वह स्थान जहाँ गाड़ियाँ खड़ी की जाती हैं 2. पड़ाव।
पार्ट
(इं.) [सं-पु.] 1. भाग; अंश; हिस्सा 2. अवयव; अंग 3. पुस्तक या सामग्री का भाग 4. अभिनय में अभिनेता को सौंपा गया काम (अभिनेय अंश)।
पार्टी
(इं.) [सं-स्त्री.] 1. समान विचारधारा के व्यक्तियों का समूह 2. वादी या प्रतिवादी पक्ष 3. समारोह या उत्सव से संबंधित जलपान; प्रीतिभोज।
पार्टीबाज़
(इं.+फ़ा.) [सं-पु.] 1. वह जो नई-नई पार्टियाँ बनाने में सिद्धहस्त हो 2. गुट बनाने वाला व्यक्ति; गुटबाज़ 3. प्रायः सभा, सम्मेलन या उत्सव आदि में सम्मिलित
होने वाला व्यक्ति।
पार्टीबाज़ी
(इं.+फ़ा.) [सं-स्त्री.] 1. ख़ेमाबंदी; गुटबाज़ी 2. समारोह या उत्सव में भाग लेने की क्रिया।
पार्थ
(सं.) [सं-पु.] 1. अर्जुन (गीता में कृष्ण द्वारा संबोधित) 2. पृथा (कुंती) के पुत्र अर्जुन 3. अर्जुन नामक वृक्ष 4. राजा; भूपति।
पार्थक्य
(सं.) [सं-पु.] 1. पृथक या अलग होने की अवस्था या भाव 2. अंतर 3. वियोग; जुदाई 3. एक वस्तु को दूसरी वस्तु से अलग करने वाला गुण।
पार्थिव
(सं.) [वि.] 1. पृथ्वी संबंधी 2. पृथ्वी से उत्पन्न; पृथ्वीतत्व का विकार रूप, जैसे- पार्थिव शरीर 3. मिट्टी आदि से निर्मित 4. संसारिक; संसार संबंधी 5. राजा के
योग्य; राजसी 6. पृथ्वी का। [सं-पु.] 1. पृथ्वी पर रहने वाले प्राणी; सांसारिक जीव 2. शरीर; देह।
पार्लर
(इं.) [सं-पु.] 1. वार्ताकक्ष 2. विशिष्ट सेवा प्रदान करने हेतु निर्मित कक्ष 3. बैठकख़ाना।
पार्लियामेंट
(इं.) [सं-स्त्री.] 1. संसद 2. महासभा 3. संसद भवन।
पार्वती
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. (पुराण) हिमालय की पुत्री 2. शिव की पत्नी।
पार्वतीय
(सं.) [सं-पु.] वह जो पर्वत पर रहता हो; पहाड़ी। [वि.] 1. पर्वत पर रहने वाला 2. पहाड़ का; पहाड़ी।
पार्श्व
(सं.) [सं-पु.] 1. छाती के दाएँ-बाएँ का भाग; बगल 2. दोनों ओर के काँख के नीचे का वह भाग जिनमें पसलियाँ होती हैं 3. आस-पास या पीछे की जगह 4. कपटयुक्त साधन या
उपाय। [वि.] निकट या पास का।
पार्श्ववर्ती
(सं.) [वि.] 1. पास या निकट रहने वाला; पड़ोसी 2. साथ रहने वाला। [सं-पु.] 1. सेवक; सहचर 2. परिचारक।
पार्श्विक1
जिह्वा के उच्चारण स्थान को छूते समय दोनों तरफ़ से हवा बाहर निकलती है, जैसे- 'ल्'।
पार्श्विक2
(सं.) [सं-पु.] 1. पक्षपाती 2. सहचर; साथी 3. धूर्त; बाज़ीगर; छल से पैसा कमाने वाला व्यक्ति। [वि.] 1. पार्श्व संबंधी 2. किसी एक ओर, अंग या पार्श्व में होने
वाला।
पार्षद
(सं.) [सं-पु.] 1. किसी परिषद या सभा का सदस्य; सभासद 2. देवभक्त; किसी देवता का अनुचर 3. सेवक।
पार्सल
(इं.) [सं-पु.] दे. पारसल।
पाल1
[सं-पु.] 1. कच्चे फलों को पकाने की कृत्रिम विधि; फलों को गरमी पहुँचाकर पकाने के लिए पत्ते बिछाकर रखने की विधि 2. फलों को पकाने के लिए भूसा, पत्ते या कागज़
आदि बिछाकर बनाया हुआ स्थान।
पाल2
(सं.) [सं-पु.] 1. पालक; पालनकर्ता 2. चरवाहा 3. पीकदान 4. चित्रक वृक्ष; चीते का पेड़ 5. बंगाल का एक प्रसिद्ध राजवंश 6. बंगालियों में एक कुलनाम या सरनेम 7.
राजा; नरेश 8. वह लंबा चौड़ा कपड़ा जिसे नाव के मस्तूल से लगाकर इसलिए तानते हैं कि उसमें हवा भरे और नाव को ढकेले 9. तंबू; शामियाना; चँदोवा 10. गाड़ी या पालकी
आदि ढकने का कपड़ा; ओहार 11. पानी को रोकने वाला बाँध या किनारा; मेंड़ 12. ऊँचा किनारा; कगार; तट 13. पानी के कटाव से नदी आदि के किनारे पर भीतर की ओर बनने
वाला खोखला स्थान।
पालक
(सं.) [सं-पु.] 1. पालन करने वाला; पालनकर्ता; पिता 2. राजा; नरपति 3. अश्वरक्षक; साईस 4. अश्व; तुरंग 5. चीते का पेड़ 6. पाला हुआ लड़का; दत्तक पुत्र 7. रक्षण;
बचाव 8. वह व्यक्ति जो किसी बात का निर्वाह करे 9. एक प्रकार का साग। [वि.] रक्षक; त्राता।
पालकी
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. एक प्रसिद्ध सवारी जिसमें सवार आराम से बैठता या लेटता है और जिसे कहार या मज़दूर कंधे पर उठाकर एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाते हैं;
डोली; शिविका 2. पालक नामक साग।
पालतू
(सं.) [वि.] 1. पाला-पोसा हुआ 2. पाला जाने वाला, जैसे- पालतू कुत्ता।
पालतूपन
(सं.) [सं-पु.] पशुओं-पक्षियों को पालतू बनाने या रखने की अवस्था या भाव; वन्य जीवों को पकड़कर घर में रखने का भाव।
पालथी
[सं-स्त्री.] बैठने का एक आसन जिसमें दाहिने और बाएँ पैरों के पंजे क्रमशः बाईं और दाईं जाँघ के नीचे दबे रहते हैं।
पालन
(सं.) [सं-पु.] 1. भरण-पोषण; परवरिश 2. आज्ञा, आदेश, कर्तव्य, वचन आदि का निर्वाह।
पालनकर्ता
(सं.) [वि.] 1. निर्वाह करने वाला 2. रक्षा करने वाला 3. भरण-पोषण करने वाला 4. निभाने वाला।
पालनहार
[वि.] 1. पालक 2. पालन करने वाला।
पालना
(सं.) [सं-पु.] 1. एक प्रकार का बच्चों का छोटा झूला जिसमें उन्हें सुलाया, लेटाया या झुलाया जाता है। [क्रि-स.] 1. भरण-पोषण करना; परवरिश करना 2. आजीविका या
मनोविनोद हेतु पशु-पक्षी को घर में रखना 3. वचन, आदेश प्रतिज्ञा आदि मानना या निबाहना 4. रक्षा करना।
पालनीय
(सं.) [वि.] पालन करने योग्य; जिसका पालन किया जाना चाहिए।
पाला1
(सं.) [सं-पु.] हवा में मिले हुए पानी या भाप के अत्यंत सूक्ष्म कण जो ठंडक के कारण पृथ्वी पर सफ़ेद तह के रूप में जम जाते हैं और फ़सल को नुकसान पहुँचाते हैं।
[मु.] -मार जाना : फ़सल नष्ट हो जाना।
पाला2
[सं-पु.] 1. प्रधान स्थान; पीठ 2. कबड्डी आदि खेलों में दोनों पक्षों के लिए अलग-अलग निर्धारित क्षेत्र जो गहरी लकीर खींचकर बनाया जाता है 3. पतला 4. अखाड़ा
[मु.] -पड़ना : काम पड़ना। -बदल देना : विरोधी पक्ष में जा मिलना।
पालि
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. कान के पुट के नीचे का मुलायम चमड़ा; कर्णलताग्र; कान की लौ 2. किसी चीज़ का कोना 3. पंक्ति; श्रेणी; कतार 4 किनारा 5. सीमा; हद 6. मेंड़;
बाँध 7. पुल; करारा; कगार; भीटा 8. देग; बटलोई 9. प्राचीन काल में प्रचलित एक तौल जो एक प्रस्थ के बराबर होती थी 10. वह बँधा हुआ भोजन जो छात्र या ब्रह्मचारी को
गुरुकुल में मिलता था 11. अंक; गोद; उत्संग 12. परिधि 13. जूँ या चीलर 14. स्त्री जिसकी दाढ़ी में बाल हों 15. अंक; चिह्न 16. संस्तवन; प्रशंसन 17. श्रोणी;
नितंब 18. बड़ा अंडाकार तालाब 19. एक प्राचीन भाषा जिसमें बौद्ध ग्रंथ लिखे गए थे।
पालिका
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. पालन करने वाली स्त्री 2. कान का वह निचला भाग जो अत्यंत कोमल होता है 3. तलवार या किसी अन्य शस्त्र का पैना किनारा 4. छुरी; छोटा चाकू।
[वि.] पालन करने वाली; रक्षिका।
पालित
(सं.) [वि.] पाला हुआ; जिसे पाला गया हो। [सं-पु.] सिहोड़ का पेड़।
पालिनी
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. पालन करने वाली 2. दूसरों का भरण-पोषण करने वाली 3. रक्षा करने वाली।
पाली
[सं-स्त्री.] 1. एक प्राचीन भाषा पालि, जिसमें गौतम बुद्ध ने उपदेश दिया था और प्राचीन बौद्ध धर्म ग्रंथ इसी भाषा में लिखे गए 2. बरतन का ढक्कन 3. बटलोई 4.
मज़दूरों के काम करने की अवधि, जैसे- पहली या दूसरी पाली; (शिफ़्ट) 5. तीतर-बटेर आदि पक्षियों के लड़ाने की जगह।
पाल्य
(सं.) [वि.] 1. पालने योग्य 2. जिसका पालन होने को हो या किया जाने को हो।
पाव
[सं-पु.] 1. चौथाई भाग; चतुर्थांश 2. एक सेर का एक चौथाई भाग 3. एक किलो का चौथाई भाग (250 ग्राम)।
पावक
(सं.) [सं-पु.] 1. आग; अग्नि 2. अग्निदेव 4. सूर्य 5. वरुण वृक्ष 6. सदाचार 7. अग्निमंथ वृक्ष 8. चीते का पेड़ 9. विद्युत अग्नि 10. तपस्वी 11. तीन की संख्या
12. भिलावाँ 13. बायविरंग 14. कुसुम; बर्र। [वि.] पवित्र करने वाला; शुद्ध करने वाला।
पावती
[सं-स्त्री.] 1. रसीद 2. लिखित सूचना।
पावदान
(हिं.+फ़ा.) [सं-पु.] 1. मोटरयान, बस, ट्रेन तथा घोड़ागाड़ी आदि में पैर रखने के लिए बना स्थान 2. सन, मूँज आदि का बना चौकोर टुकड़ा जिसपर पैर पोंछे जाते हैं;
पाँवड़ा।
पावन
(सं.) [वि.] 1. पवित्र; शुद्ध 2. पवित्र करने या बनाने वाला 3. पापों से छुड़ाने वाला।
पावनता
(सं.) [सं-स्त्री.] पावन होने की अवस्था या भाव; पवित्रता।
पावना
[सं-पु.] वह धन जो दूसरों से मिलता है।
पावनी
(सं.) [वि.] पवित्र करने वाली। [सं-स्त्री.] 1. गाय; गौ 2. गंगा नदी 3. तुलसी।
पावमान
(सं.) [वि.] 1. (वेद में प्राप्त एक सूक्त) जिसमें पवमान अग्नि की स्तुति की गयी हो 2. पवमान से संबंधित।
पावर1
(सं.) [सं-पु.] 1. पासा का वह तल या पार्श्व, जिसपर दो बिंदियाँ बनी हों 2. पाशा फेंकने का ढंग या तरीका।
पावर2
(इं.) [सं-पु.] 1. अधिकार; शक्ति 2. वह शक्ति जिससे यंत्र चलते हैं 3. सैन्य शक्ति 4. प्रशासनिक शक्ति।
पावरलूम
(इं.) [सं-पु.] यंत्र शक्ति से चलने वाला करघा; विद्युत शक्ति से चलने वाला करघा।
पावरोटी
(पु.+हिं.) [सं-स्त्री.] एक प्रकार की मोटी और फूली हुई रोटी जो मैदे का ख़मीर उठाकर बनाई जाती है; डबलरोटी; (ब्रेड)।
पावस
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. वर्षा-ऋतु; बरसात 2. वृष्टि 3. वर्षाकाल में समुद्र की ओर से आने वाली वर्षासूचक हवाएँ; मानसून।
पाश1
(सं.) [सं-पु.] 1. फाँस 2. जाल 3. प्राचीन काल में प्रचलित एक प्रकार का आयुध 4. बंधन 5. रस्सी का गाँठ युक्त घेरा जिसे गागर आदि में फँसाकर पानी भरते हैं 6.
पाशा 7. किसी बुनी हुई चीज़ का छोर।
पाश2
(फ़ा.) [सं-पु.] किसी वस्तु का अंश, टुकड़ा या खंड। [प्रत्य.] 1. छिड़कने वाला, जैसे- गुलाबपाश 2. फैलाने वाला, जैसे- ज़ियापाश।
पाशव
(सं.) [सं-पु.] पशुओं का झुंड या समूह। [वि.] पशु विषयक; पशु संबंधी।
पाशविक
(सं.) [वि.] 1. पशु सदृश 2. जो पशु जैसा आचरण करे।
पाशविकता
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. पाशविक होने की अवस्था, गुण या भाव; पाशविक प्रवृत्ति 2. पशुता।
पाशा
(तु.) [सं-पु.] तुर्किस्तान में बड़े अधिकारियों और सरदारों को दी जाने वाली उपाधि।
पाशी1
(सं.) [सं-पु.] 1. पाश जिसका अस्त्र है अर्थात वरुण देवता 2. यम 3. बहेलिया।
पाशी2
(फ़ा.) [परप्रत्य.] शब्दों के अंत में जुड़ने वाला एक प्रत्यय जो छिड़कने या सींचने का भाव देता है, जैसे- गुलाबपाशी, आबपाशी।
पाशुपत
(सं.) [सं-पु.] 1. पशुपति या शिव का उपासक 2. एक प्रसिद्ध दार्शनिक विचारधारा 3. पाशुपत मत का अनुयायी 4. अगस्त का फूल 5. अथर्ववेद का एक उपनिषद 6. शिव द्वारा
कथित एक तंत्रशास्त्र। [वि.] पशुपति संबंधी; पशुपति या शिव का।
पाशुपतास्त्र
(सं.) [सं-पु.] शिव का एक शूलास्त्र, जिसे अर्जुन ने तप करके शिव से प्राप्त किया था।
पाश्चात्य
(सं.) [वि.] 1. पश्चिम दिशा का; पश्चिम दिशा में रहने वाला 2. पीछे का; पिछला 3. यूरोप के देशों का या उनसे संबंध रखने वाला।
पाश्चात्यीकरण
(सं.) [सं-पु.] किसी देश या जाति को पाश्चात्य सभ्यता के साँचे में ढालना या पाश्चात्य ढंग का बनाना; (वेस्टर्नाइज़ेशन)।
पाश्चात्योन्मुखी
(सं.) [वि.] पश्चिमी सभ्यता, तकनीक आदि की ओर उन्मुख।
पाषाण
(सं.) [सं-पु.] 1. पत्थर; शिला 2. नीलम, पन्ना आदि रत्नों में पाया जाने वाला एक प्रकार का दोष 3. गंधक। [वि.] 1. कठोर; हृदयहीन 2. निर्दय 3. नीरस।
पाषाणकालीन
(सं.) [वि.] पाषाणकाल से संबंधित; पाषाणयुगीन।
पाषाणमणि
(सं.) [सं-पु.] सूर्यकांत मणि।
पाषाणयुग
(सं.) [सं-पु.] वह काल जिसमें मनुष्य पत्थर के औज़ारों का ही प्रयोग करता था; प्रस्तर काल; (स्टोन एज)।
पाषाणवत
(सं.) [वि.] 1. पत्थर जैसा 2. मज़बूत; दृढ़।
पाषाणी
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. पत्थर का बटखरा 2. भाला। [वि.] निर्दय स्त्री; कठोर हृदय वाली स्त्री।
पास1
(सं.) [अव्य.] समय, स्थान आदि की दृष्टि से बगल में, निकट, समीप या नज़दीक; दूर का विपरीत। [मु.] -बैठना : किसी की संगत में जाना। -न फटकना : निकट न जाना।
पास2
(इं.) [सं-पु.] 1. किसी स्थान पर प्रवेश हेतु लिखित अनुमतिपत्र; आज्ञापत्र 2. बिना टिकट लिए, निःशुल्क या बेरोक-टोक यात्रा करने हेतु किसी संस्था द्वारा प्रदत्त
प्रमाणपत्र। [वि.] 1. जो परीक्षा में उत्तीर्ण या सफल हुआ हो 2. एक श्रेणी से दूसरी श्रेणी में जाने वाला 3. स्वीकृत।
पासंग
(फ़ा.) [सं-पु.] 1. तराज़ू के दोनों पलड़ों का वह थोड़ा-सा अंतर जो दोनों ओर कुछ न रखने पर पाया जाता है 2. तराज़ू की डंडी बराबर करने के लिए हलके पलड़े पर रखा हुआ
पत्थर या लोहे आदि का टुकड़ा 3. डाँड़ी का ऊपर-नीचे होना 4. किसी की तुलना में सूक्ष्म या हीन।
पास-पास
(सं.) [अव्य.] एक दूसरे के समीप; एक दूसरे के निकट; थोड़े अंतर पर।
पासपोर्ट
(इं.) [सं-पु.] विदेश जाने हेतु सरकार से लिया जाने वाला अनुमतिपत्र; पारपत्र।
पासबुक
(इं.) [सं-स्त्री.] बैंक, डाकखाने आदि से मिलने वाली वह किताब जिसपर रुपया निकालने और जमा करने आदि का हिसाब लिखा रहता है।
पासा
(सं.) [सं-पु.] 1. काठ या हड्डी के वे छह पहलों वाले लंबे टुकड़े जिनके पहलों पर बिंदियाँ बनी होती हैं, जिनसे चौसर आदि खेल खेलते हैं 2. एक खेल जो बिसात पर
गोटियों से खेला जाता है 3. सुनारों का एक उपकरण। [मु.] -उलटा पड़ना : प्रतिकूल परिणाम निकलना। -पड़ना : भाग्य अनुकूल होना। -पलटना : अच्छा से बुरा या बुरा से अच्छा भाग्य होना; भाग्य का अनुकूल से प्रतिकूल या प्रतिकूल से अनुकूल होना।
पासी
(सं.) [सं-पु.] संविधान में उल्लिखित एक अनुसूचित जाति। [सं-स्त्री.] 1. घास बाँधने की रस्सी 2. घोड़े के पैर बाँधने की रस्सी 3. फंदा।
पाही
(सं.) [सं-स्त्री.] वह कृषि भूमि जो किसान के गाँव या निवास स्थान से दूर हो। [वि.] जो बसा न हो।
पाहुना
(सं.) [सं-पु.] 1. अतिथि; अभ्यागत; मेहमान 2. दामाद।
पाहुनाई
[सं-स्त्री.] 1. पाहुना होने की अवस्था या भाव 2. पाहुना होकर कहीं आना या जाना 3. पाहुने का आदर-सत्कार 4. रिश्तेदार का घर जहाँ पाहुना बनकर जाया जाए।
पिंग
(सं.) [सं-पु.] 1. पिंग वर्ण 2. भैंसा 3. चूहा 4. हरताल। [वि.] 1. पीलापन और लालिमा लिए हुए (भूरा रंग) 2. दीपशिखा (लौ) के रंग का।
पिंगल
(सं.) [सं-पु.] 1. ललाई लिए भूरा रंग 2. छंदशास्त्र के प्रथम आचार्य तथा छंदशास्त्र के रचयिता 3. एक संवत्सर का नाम 4. संगीत में एक राग 5. एक प्राचीन देश का
नाम 6. हरताल।
पिंगलशास्त्र
(सं.) [सं-पु.] 1. छंदशास्त्र 2. पिंगल मुनि विरचित शास्त्र।
पिंगला
(सं.) [सं-स्त्री.] (योगशास्त्र) एक नाड़ी विशेष जो शरीर के दक्षिण भाग में स्थित होती है।
पिंज
(सं.) [सं-पु.] 1. एक प्रकार का कपूर 2. बल 3. वध 4. चंद्रमा 5. समूह। [वि.] विकल; व्याकुल।
पिंजड़ा
[सं-पु.] 1. पशु-पक्षी आदि को बंद करके रखने हेतु धातु या लकड़ी आदि की तीलियों से निर्मित बक्सा; पिंजरा 2. {ला-अ.} ऐसा स्थान जहाँ से किसी का बाहर निकलना
कठिन, दुष्कर या असंभव हो।
पिंजना
(सं.) [क्रि-स.] 1. रुई धुनना 2. रुई धुनने की क्रिया।
पिंजर
(सं.) [सं-पु.] 1. शरीर के अंदर हड्डियों की ठठरी 2. कंकाल; हड्डियों का ढाँचा 3. सोना 4. नागकेसर 5. लाल रंग का घोड़ा जिसमें कुछ भूरापन हो 6. एक प्रकार का
साँप।
पिंजरा
(सं.) [सं-पु.] दे. पिंजड़ा।
पिंजल
(सं.) [वि.] 1. कष्टादि के कारण जिसका वर्ण पीला पड़ गया हो 2. दुखी 3. अत्यधिक आतंकित।
पिंजा
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. रुई 2. हल्दी 3. हिंसा 4. जादूगरनी।
पिंजाल
(सं.) [सं-पु.] स्वर्ण; सोना।
पिंड
(सं.) [सं-पु.] 1. घनी या ठोस चीज़ का छोटा और प्रायः गोलाकार खंड या टुकड़ा 2. शरीर; देह 3. जौ के आटे, भात आदि का बनाया हुआ वह गोलाकार खंड जो श्राद्ध में
पितरों को प्रदान करने के उद्देश्य से वेदी आदि पर रखा जाता है। [मु.] -छोड़ना : किसी को तंग करने से विरत होना। -न छोड़ना :
लगातार साथ लगे रहना। -पड़ना : बहुत अधिक आग्रह करना। -छुड़ाना : पीछा छुड़ाना; छुटकारा पाना।
पिंडखजूर
(सं.) [सं-स्त्री.] खजूर की जाति का पेड़ जिसके फल मीठे होते हैं।
पिंडज
(सं.) [सं-पु.] पिंड के रूप में उत्पन्न होने वाला जीव; गर्भ से सजीव उत्पन्न होने वाला जीव; जरायुज; अंडज और स्वेदज से भिन्न जीव, जैसे- मनुष्य, कुत्ता, घोड़ा
आदि।
पिंडदान
(सं.) [सं-पु.] (कर्मकांड) पितरों को पिंड देने का कर्म जो श्राद्ध में किया जाता है।
पिंडरोगी
(सं.) [वि.] वह जो हमेशा बीमार रहता हो और जल्दी स्वस्थ न हो सकता हो; जिसके शरीर में किसी रोग ने जड़ जमा ली हो।
पिंडल
(सं.) [सं-पु.] सेतु; पुल।
पिंडली
(सं.) [सं-स्त्री.] टाँग का ऊपरी पिछला भाग जो मांसल होता है।
पिंडा
(सं.) [सं-पु.] 1. ठोस या गीले पदार्थ का गोला 2. (कर्मकांड) पके चावल या खीर का हाथ से बनाया गया वह छोटा गोला जो पितरों को श्राद्ध में अर्पित किया जाता है 3.
शरीर 4. गोलमटोल टुकड़ा। [सं-स्त्री.] 1. वंशपत्री 2. एक प्रकार की कस्तूरी 3. फ़ौलाद। [मु.] -पारना : पिंड-दान करना। -पानी देना : श्राद्ध और तर्पण करना।
पिंडार
(सं.) [सं-पु.] 1. ग्वाला 2. भैसों को चराने वाला चरवाहा 3. एक नाग 4. विकंकत का वृक्ष 5. एक फल 6. जैन या बौद्ध संन्यासी; क्षपणक 7. एक प्रकार का शाक 8. एक
जुगुप्सा सूचक शब्द।
पिंडारा
(सं.) [सं-पु.] एक प्रकार का पित्तनाशक एवं शीतल शाक।
पिंडारी
[सं-पु.] दक्षिण में रहने वाली तथा खेती करने वाली एक जाति, जो बाद में मध्यप्रदेश तथा उसके आस-पास लूटमार करने लगी।
पिंडिका
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. छोटा पिंड 2. पिंडली 3. छोटा शिवलिंग 4. इमली 5. चक्रनाभि।
पिंडी
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. गोला 2. चक्रनाभि; चक्रमध्य; पहिए के बीच स्थित वह गोला जिसमें धुरी पहनाई जाती है 3. अशोक वृक्ष 4. कद्दू 5. पिंडली 6. वह पीठिका या
पीढ़ा जिसपर देवमूर्ति स्थापित की जाती है 7. मकान।
पिक
(सं.) [सं-स्त्री.] कोयल नामक पक्षी जिसकी आवाज़ मधुर होती है।
पिकनिक
(इं.) [सं-पु.] 1. अपने घर या संस्था से बाहर मनोरंजन हेतु किया जाने वाला भ्रमण या यात्रा जिसमें लोग एक साथ नाच-गाने व मौज-मस्ती आदि करते हैं 2. मनोरम स्थल
पर भ्रमण 3. मनोरंजन के लिए प्रयुक्त अवसर 4. सैर-सपाटे पर जाना।
पिक्चर
(इं.) [सं-स्त्री.] 1. फ़िल्म; सिनेमा; चलचित्र 2. दृश्यचित्र।
पिघलना
(सं.) [क्रि-अ.] 1. किसी ठोस पदार्थ का गरमी से गलकर तरल होना 2. दया से आर्द्र होना; चित्त में दया उत्पन्न होना; द्रवीभूत होना; पसीजना।
पिघलाना
[क्रि-स.] 1. द्रवीभूत करना 2. दया से आर्द्र करना 3. किसी ठोस पदार्थ को गरमी से तरल करना या बनाना।
पिच
(इं.) [सं-स्त्री.] 1. क्रिकेट के खेल में धावन स्थली (22 गज की चौड़ी पट्टी जिसके एक छोर पर बल्लेबाज़ी तथा दूसरे छोर से गेंदबाज़ी की जाती है) 2. (संगीत) स्वर
की ऊँचाई का स्तर 3. किसी काम हेतु प्रेरित करने वाली बात।
पिचकना
[क्रि-अ.] 1. उभरे या फूले हुए, गाल आदि का दब जाना 2. बैठ जाना 3. उभारहीन होना 4. सिकुड़ना।
पिचकवाना
[क्रि-स.] पिचकवाने में प्रवृत्त करना; पिचकाने में संलग्न करना।
पिचका
[वि.] 1. दबा हुआ 2. जो पिचक गया हो।
पिचकारी
[सं-स्त्री.] 1. किसी तरल पदार्थ को धार या फुहारे के रूप में फेंकने का एक उपकरण; वह उपकरण जिसके मुँह पर एक या अनेक ऐसे छोटे-छोटे छेद होते हैं, जिनके मार्ग
से नली में भरा हुआ तरल पदार्थ दबाव से धार या फुहार के रूप में दूसरों पर या दूर तक छिड़का या फेंका जाता है; (सिरिंज) 2. किसी चीज़ से ज़ोर से निकलने वाली तरल
पदार्थ की धार।
पिचपिचा
[वि.] 1. गुलगुल 2. चिपचिपा।
पिचपिचाना
[क्रि-अ.] घाव या किसी पदार्थ का अति गीला होना; सड़ने या ख़राब होने की स्थिति में आना; घाव आदि से पंछा या पीब निकलना।
पिचपिचाहट
[सं-स्त्री.] पिचपिचाने की क्रिया या भाव।
पिच्छ
(सं.) [सं-पु.] 1. पूँछ; दुम; लांगूल 2. कलगी; चूड़ा 3. पंख 4. सेमल का गोंद 5. बाण में लगाया जाने वाला मोर आदि का पंख।
पिच्छल
(सं.) [सं-पु.] 1. वासुकी सर्प के वंश का एक नाग 2. आकाशबेल 3. मोचरस 4. शीशम। [वि.] 1. चिकनाई युक्त; चिकना 2. फिसलाने वाला 3. पीछे रह जाने वाला।
पिच्छिका
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. चँवर; चामर 2. जैन साधुओं द्वारा प्रयुक्त ऊन निर्मित चँवर।
पिच्छिल
(सं.) [सं-पु.] 1. लिसोड़ा का पेड़ 2. सरस व्यंजन; सालन। [वि.] 1. चिकना या गीला; जिसपर पैर पड़ने से फिसले 2. (पक्षी) जिसके सिर पर चोटी हो 2. (पदार्थ) खट्टा,
फूला हुआ और कफकारी।
पिछड़ना
[क्रि-अ.] 1. आगे न बढ़ना 2. विकास रुक जाना 3. नासमझ 4. अज्ञानी रह जाना 5. समाज की मुख्यधारा से हटना 6. सामाजिक तथा आर्थिक दृष्टि से पिछड़ जाना 7. प्रतियोगिता
आदि में पीछे रह जाना।
पिछड़ा
[वि.] 1. जो पिछड़ गया हो; पीछे रह जाने वाला; क्रम में साथ वाले के आगे या बराबरी में भी नहीं रहने वाला 2. विकास की दृष्टि से अन्य की अपेक्षा पीछे रहने वाला।
पिछड़ापन
[सं-पु.] 1. किसी व्यक्ति तथा समूह का आर्थिक, सामाजिक तथा शिक्षा के क्षेत्र में दूसरों की तुलना में पीछे रह जाना 2. अज्ञानता, आडंबर तथा पुरानी मान्यताओं को
ज्यों का त्यों मानने से उपजी अराजकता 3. ज्ञान की कमी।
पिछड़ा वर्ग
[सं-पु.] सामाजिक, आर्थिक तथा शैक्षिक दृष्टि से पिछड़े लोगों का समूह।
पिछलगा
[सं-पु.] 1. दास; सेवक 2. पीछे-पीछे चलने वाला 3. अनुयायी; अनुगमन करने वाला।
पिछलग्गू
[वि.] 1. दीन-हीन एवं अकिंचन भाव से किसी के पीछे लगा रहने वाला 2. पिछलगा 3. शक्ति व सामर्थ्य के अभाव में स्वतंत्र न रह सकने के कारण किसी का अनुसरण या अनुगमन
करने वाला; अनुगामी; अनुवर्ती।
पिछला
[वि.] 1. जो किसी वस्तु के पीछे की ओर हो; पश्चातवर्ती 2. काल, घटना, स्थिति आदि के क्रम के विचार से किसी के पीछे 3. पूर्व में या पहले पड़ने या होने वाला 4.
बीता हुआ।
पिछवाई
[सं-स्त्री.] सिंहासनों के पीछे लटकाया जाने वाला परदा।
पिछवाड़ा
[सं-पु.] 1. किसी वस्तु आदि के पीछे की तरफ़ का भाग 2. घर या मकान के पीछे का हिस्सा; घर या मकान के पीछे की ओर का भाग 3. घर या मकान के पीछे की ओर की ज़मीन।
पिछाड़ी
[सं-स्त्री.] 1. पीछे का भाग; पृष्ठभाग 2. घोड़े के पिछले पैरों को बाँधने की रस्सी।
पिछेलना
[क्रि-स.] 1. दौड़ आदि प्रतियोगिता में धक्का देकर पीछे कर देना 2. पीछे हटाना 3. पीछे छोड़ना; पछाड़ना।
पिछोकड़
[सं-पु.] 1. पृष्ठभूमि 2. पीछे की तरफ़।
पिट1
[सं-स्त्री.] एक हलकी तथा दूसरी कड़ी वस्तु के परस्पर टकराने से उत्पन्न ध्वनि; वह शब्द जो कड़ी तथा छोटी वस्तु के हलके आघात से उत्पन्न होता है।
पिट2
(सं.) [सं-पु.] 1. संदूक; पिटारा 2. झोपड़ी 3. मकान; मकान की छत।
पिटक
(सं.) [सं-पु.] 1. पिटारा 2. झाँपी का बक्सा 3. फुड़िया 4. इंद्र की पताका पर सुशोभित एक प्रकार का आभूषण 5. विशेष प्रकार के बौद्ध ग्रंथ।
पिटना
[क्रि-अ.] 1. मार खाना; पीटा जाना 2. परास्त होना; प्रतियोगिता आदि में बुरी तरह हारना 3. बजाया जाना 4. लूडो, शतरंज आदि खेलों में गोटी या मोहरे का मारा जाना।
[सं-पु.] वह उपकरण जिससे कोई चीज़ पीटी जाए।
पिटपिटाना
[क्रि-अ.] विवश या लाचार होकर रह जाना।
पिटवाना
[क्रि-स.] 1. किसी को पीटने में प्रवृत्त करना; किसी के पीटे जाने का कारण होना 2. ढिंडोरा, डुग्गी आदि बजवाना।
पिटाई
[सं-स्त्री.] 1. पीटने की क्रिया या भाव 2. अच्छी तरह पड़ने वाली मार 3. ज़मीन या छत को पीटने से मिलने वाली मज़दूरी।
पिटाना
[क्रि-स.] पिटवाना; पीटने का काम दूसरे से कराना।
पिटा-पिटाया
[वि.] अर्थ-हीन; घिसा-पिटा; बेकार।
पिटारा
(सं.) [सं-पु.] बाँस, बेंत तथा मूँज आदि से निर्मित एक ढक्कनदार पात्र।
पिटारी
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. छोटी संदूकची 2. छोटा पिटारा 3. पानदान 4. बाँस की तीलियों से बना सपेरों का डिब्बा।
पिट्टक
(सं.) [सं-पु.] दाँतों की जड़ों में जमने वाला मैल; दाँत की पपड़ी; दंतकिट्ट।
पिट्ठू
[सं-पु.] 1. पीछे-पीछे चलने वाला; अनुगामी; पिछलगा; अनुयायी 2. छिपकर सहायता करने वाला 3. सहायक; समर्थक 4. ख़ुशामदी 5. किसी पक्ष के खिलाड़ी का साथी 6. कल्पित
खेल का साथी।
पिठौरी
[सं-स्त्री.] पीठी से तैयार खाद्य पदार्थ; पीठी की पकौड़ी या बरी।
पिड़की
(सं.) [सं-स्त्री.] 1 छोटा फोड़ा 2. फुड़िया; फुंसी।
पितर
(सं.) [सं-पु.] 1. मृत पूर्वज या पूर्वपुरुष 2. पुरखे।
पिता
(सं.) [सं-पु.] 1. बाप; तात; जनक 2. संतान का जन्मदाता पुरुष।
पितामह
(सं.) [सं-पु.] 1. दादा; बाबा; पिता के पिता 2. ब्रह्मा 3. शिव 4. भीष्म 5. एक धर्मशास्त्रकार ऋषि।
पितामही
(सं.) [सं-स्त्री.] पिता की माता; दादी; माता की सास।
पितृ
(सं.) [सं-पु.] 1. पिता 2. मृत पूर्वज 3. पितर।
पितृऋण
(सं.) [सं-पु.] 1. (धर्मशास्त्र) एक प्रकार का ऋण जिससे मनुष्य पुत्र उत्पन्न करने पर मुक्त होता है 2. (धर्मशास्त्र) मनुष्य के तीन ऋणों में से एक।
पितृगण
[सं-पु.] 1. पितर 2. मरीचि आदि ऋषियों के पुत्र।
पितृगृह
(सं.) [सं-पु.] 1. पिता का घर 2. विवाहिता स्त्री के संदर्भ में मायका, नैहर या पीहर।
पितृतर्पण
(सं.) [सं-पु.] 1. पितरों के लिए किया जाने वाला तर्पण 2. तिल 3. श्राद्ध के समय दिया जाने वाला दान।
पितृत्व
(सं.) [सं-पु.] पिता होने की अवस्था या भाव।
पितृपक्ष
(सं.) [सं-पु.] 1. अश्विन मास का कृष्णपक्ष 2. पिता का कुल 3. पिता 4. पितृकुल का मनुष्य।
पितृ-प्रणाली
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. पुरुष प्रधान समाज 2. पितृ सत्तात्मक व्यवस्था।
पितृप्रधान
(सं.) [सं-पु.] पिता की सत्तावाला या प्रधानता वाला परिवार।
पितृभक्ति
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. पितृभक्त होने की अवस्था या भाव 2. पिता के प्रति सेवा तथा आदर का भाव।
पितृभूमि
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. पिता या पूर्वजों के रहने का देश 2. पिता की जन्मभूमि।
पितृयज्ञ
(सं.) [सं-पु.] 1. पितृतर्पण 2. पंच महायज्ञों में से एक।
पितृलोक
(सं.) [सं-पु.] वह लोक जिसमें पितरों का निवास माना जाता है।
पितृव्य
(सं.) [सं-पु.] 1. पिता समान आदरणीय व्यक्ति 2. चाचा।
पितृसत्ता
(सं.) [सं-स्त्री.] जिस परिवार में पिता का मत या निर्णय सर्वोपरि होता है; पुरुष प्रधान सत्ता।
पित्त
(सं.) [सं-पु.] यकृत से निकलने वाला वह पीला या नीलापन लिए हुए तरल द्रव जो पाचन में सहायक होता है।
पित्तघ्न
(सं.) [वि.] पित्त का नाश करने वाला। [सं-पु.] घी; घृत।
पित्ता
(सं.) [सं-पु.] 1. पित्ताशय 2. पित्त 3. हिम्मत; साहस। [मु.] -मरना : क्रोध, आवेश आदि का न रह जाना। -मारना : धैर्यपूर्वक काम
करना; दूषित मनोविकारों को उभरने न देना।
पित्तातिसार
(सं.) [सं-पु.] 1. एक रोग 2. पित्त के प्रकोप से होने वाला एक प्रकार का अतिसार।
पित्ताशय
(सं.) [सं-पु.] 1. शरीर का एक आंतरिक अंग विशेष जिसमें पित्त रहता है 2. पित्त कोष; पित्त की थैली।
पित्ती
(सं.) [सं-स्त्री.] पित्त की अधिकता या गरमी से शरीर में होने वाला एक रोग जिसमें शरीर पर चकत्ते उत्पन्न होते हैं; चकत्ता; लाल रंग की घमौरी या अंभौरी 2. एक
प्रकार की लता।
पिद्दी
[सं-स्त्री.] 1. छोटा या अति तुच्छ प्राणी 2. बया जाति की एक छोटी चिड़िया।
पिधान
(सं.) [सं-पु.] 1. आच्छादित करने की क्रिया 2. ढक्कन 3. आवरण 4. तलवार की म्यान 5. परदा 6. दरवाज़ा।
पिन
(इं.) [सं-स्त्री.] कागज़ आदि में खोंसी जाने वाली या नत्थी की जाने वाली एक प्रकार की पतली नुकीली कील; आलपीन।
पिनक
[सं-स्त्री.] 1. पिनकने की क्रिया या भाव 2. ऊँघ; अफ़ीम के नशे में आगे की ओर झुकने की क्रिया।
पिनकना
[क्रि-अ.] 1. पीनक लेना; अफ़ीमची का अफ़ीम के नशे में आगे की ओर झुकने की क्रिया 2. ऊँघने की क्रिया या भाव।
पिनपिन
[सं-स्त्री.] 1. बच्चों द्वारा नकियाकर धीरे-धीरे रोने की आवाज़ 2. अस्पष्ट स्वर में ठहर-ठहरकर रोने की ध्वनि।
पिनपिनाना
[क्रि-अ.] 1. हिचकियाँ लेते हुए रोना; बच्चे का नकिया कर रोना 2. रोते समय नाक से पिन-पिन-सा शब्द करना।
पिनपिनाहट
[सं-स्त्री.] पिनपिनाने की क्रिया या भाव 2. पिनपिनाने से उत्पन्न ध्वनि।
पिनाक
(सं.) [सं-पु.] 1. शिव का धनुष; अजगव 2. धनुष 3. त्रिशूल 4. नीला अभ्रक 5. छड़ी या डंडा 6. धूल- वृष्टि।
पिनाकी
(सं.) [सं-पु.] 1. पिनाक धारण करने वाले; शिव 2. प्राचीन काल का एक प्रकार का बाजा।
पिन्नी
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. अन्न को पीसकर घी, चीनी आदि मिलाकर बनाया गया लड्डू 2. धागे को लपेटकर बनाया गया छोटा पिंड।
पिपरमिंट
(इं.) [सं-पु.] 1. पुदीने की जाति का एक पौधा 2. उक्त पौधे की पत्तियों का सत्व जो औषधि बनाने के काम आता है।
पिपरिहा
(सं.) [सं-पु.] क्षत्रिय समाज में एक सरनेम।
पिपासा
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. पानी या कोई अन्य तरल पदार्थ पीने की इच्छा; तृष्णा; तृषा; प्यास 2. किसी चीज़ को पाने की प्रबल इच्छा।
पिपासु
(सं.) [वि.] 1. पीने की इच्छा वाला; प्यासा; तृषित 2. किसी विशेष प्रकार की कामना वाला।
पिपीलक
(सं.) [सं-पु.] 1. एक प्रकार का सोना 2. बड़ा चींटा।
पिपीलिका
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. चींटी 2. चींटियों की तरह एक के पीछे एक चलने की प्रवृत्ति।
पिप्पल
(सं.) [सं-पु.] 1. पीपल का पेड़ 2. एक प्रकार का पक्षी 3. चूचुक 4. जल 5. पीपल का गोंद 6. आस्तीन 7. कपड़े का टुकड़ा।
पिप्पली
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. पीपल नामक लता 2. उक्त लता की कली जो औषधि बनाने के काम आती है।
पिय
(सं.) [सं-पु.] 1. प्रियतम 2. पति 3. प्रेमी।
पियक्कड़
[वि.] 1. शराबी 2. अधिक शराब पीने का आदी।
पियानो
(इं.) [सं-पु.] 1. एक विशेष प्रकार का वाद्ययंत्र 2. हारमोनियम जैसा एक यूरोपीय बाजा।
पियार
(सं.) [सं-पु.] एक पेड़ जिसके बीजों से चिरौंजी निकलती है।
पियाल
(सं.) [सं-पु.] 1. चिरौंजी का पेड़; पयार 2. उक्त पेड़ का फल और उसका बीज 3. गहराई 3. पाताल।
पिराक
(सं.) [सं-पु.] 1. एक पकवान 2. गुझिया।
पिरामिड
(इं.) [सं-पु.] 1. वह बहुफलक जिसका आधार बहुभुज होता है और दूसरे फलक त्रिभुजाकार होते हैं, जिनका एक सर्वनिष्ठ शीर्ष होता है; सूचीस्तंभ 2. मिस्र देश में
विद्यमान उक्त आकृति वाले प्राचीन स्तूप जिनका आधार प्रायः चतुर्भुजाकार होता है।
पिरोना
[क्रि-स.] 1. एक साथ नत्थी करना 2. सुई आदि से किसी छेद वाली वस्तु में धागा डालना।
पिलना
(सं.) [क्रि-अ.] 1. तत्पर होना 2. प्रवृत्त होना 3. वेग से किसी काम में जुट जाना 4. पेरना।
पिलपिला
[वि.] बहुत नरम; अधिक पका हुआ।
पिलपिलाना
[क्रि-स.] 1. चारों ओर से इस प्रकार दबाना की गुल-गुल हो जाए और भीतर का रस तथ गूदा बाहर आ जाए 2. पिलपिला करना।
पिलवाना
[क्रि-स.] 1. पिलाने का काम कराना; किसी को पिलाने में प्रवृत्त करना 2. पेरने का काम कराना।
पिलाई
[सं-स्त्री.] 1. पिलाने की क्रिया या भाव 2. किसी रंध्र या छिद्र में तरल पदार्थ को डालना 3. कंचों के खेल में गोली (कंचा) को छोटे गड्ढे में डालने की क्रिया।
पिलाना
[क्रि-स.] 1. किसी को कुछ पीने में प्रवृत्त करना 2. जल आदि कोई तरल पदार्थ किसी को पीने हेतु देना 3. कोई तरल पदार्थ किसी छेद में डालना।
पिल्ला
(त.) [सं-पु.] कुत्ते का बच्चा।
पिल्लू
(सं.) [सं-पु.] 1. सफ़ेद रंग का एक प्रकार का छोटा कीड़ा जो घावों या सड़े हुए फलों में दिखता है 2. ढोला।
पिशाच
(सं.) [सं-पु.] (अंधविश्वास) एक प्रकार के भूत-प्रेत; एक योनि जिसमें पड़ी आत्माएँ मनुष्य जीवन में बाधा उत्पन्न करती हैं।
पिशाचक
(सं.) [सं-पु.] (अंधविश्वास) पिशाच; राक्षस; एक प्रकार का निम्न देवयोनि विशेष।
पिशाचकी
(सं.) [सं-पु.] कुबेर; एकाक्ष; पिंगाक्ष।
पिशाचपूजक
[वि.] 1. पिशाच के अस्तित्व को मानने वाला 2. पिशाच की पूजा करने वाला।
पिशाचिका
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. पिशाची; पिशाच स्त्री 2. छोटी जटामासी।
पिशाचिन
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. पिशाच स्त्री 2. राक्षसी 3. जटामासी।
पिशाचिनी
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. पिशाच स्त्री 2. डरावनी 3. एक प्रकार की गाली।
पिशाची
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. पिशाच स्त्री 2. एक प्रकार की जटामासी।
पिशुन
(सं.) [सं-पु.] 1. चुगली करके दो पक्षों में लड़ाई कराने वाला व्यक्ति 2. विश्वासधाती 3. (अंधविश्वास) एक प्रकार का प्रेत जो गर्भिणियों को बाधा पहुँचाता है 4.
कपास 5. केसर 6. तगर 7. नारद 8. कौआ। [वि.] 1. क्रूर 2. नीच 3. चुगली करने वाला; चुगलख़ोर।
पिशुनता
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. पिशुन होने की अवस्था या भाव 2. चुगलख़ोरी 3. एक घास जो रेशम रँगने के काम आती है; असबर्ग।
पिष्ट
(सं.) [सं-पु.] 1. पिसा हुआ अन्न जिसमें पानी का अंश हो 2. एक पकवान जिसमें दाल भरी हो; पीठी भरा पकवान। [वि.] 1. पिसा हुआ 2. चूर्ण किया हुआ 3. निचोड़ा हुआ।
पिष्टपेषण
(सं.) [सं-पु.] 1. पीसी हुई वस्तु को फिर से पीसना 2. किसी कार्य की पुनरावृत्ति करना 3. व्यर्थ परिश्रम।
पिष्टान्न
(सं.) [सं-पु.] 1. पीसा हुआ अन्न 2. पीसे हुए अन्न से बना पकवान।
पिष्टोक्ति
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. बेकार की बात 2. घिसी-पिटी बात।
पिष्टोदक
(सं.) [सं-पु.] वह जल जिसमें पीसा हुआ अन्न डाला या मिलाया गया हो।
पिसनहारी
[सं-स्त्री.] अन्न पीसने वाली स्त्री; जीविकोपार्जन हेतु अन्न पीसने का पेशा करने वाली स्त्री।
पिसना
[क्रि-अ.] 1. कुचला जाना; बुरी तरह दबाया जाना 2. चूर्ण किया जाना 3. थकावट, कष्ट, व्यथा आदि से शिथिल हो जाना 4. शोषित होना 5. पीसा जाना।
पिसवाना
[क्रि-स.] 1. किसी से पीसने का काम लेना 2. किसी को पीसने में प्रवृत्त करना।
पिसाई
[सं-स्त्री.] 1. पीसने की क्रिया या भाव 2. अन्न आदि पीसने का व्यवसाय; चक्की चलवाने का पेशा 3. पीसने की मज़दूरी 4. {ला-अ.} कठिन परिश्रम।
पिसान
[सं-पु.] गेहूँ या जौ आदि का आटा।
पिसाना
[क्रि-स.] किसी अन्न को पिसवाना; पीसने का काम करना।
पिसौनी
[सं-स्त्री.] 1. पीसने का काम; अन्न आदि पीसने का पेशा 2. पीसने के बदले प्राप्त मज़दूरी।
पिस्टन
(इं.) [सं-पु.] इंजन की एक नली के अंदर लगाया हुआ वह धातुखंड जो इंजन के अन्य भागों को गतिमान करता है; मुसली।
पिस्टल
(इं.) [सं-पु.] 1. तमंचा 2. पिस्तौल।
पिस्ता
(फ़ा.) [सं-पु.] 1. एक प्रकार का मेवा; पिस्ता के फल की गिरी 2. पिस्ता का पेड़।
पिस्तौल
(इं.) [सं-स्त्री.] गोली चलाने की छोटी बंदूक; गोली दागने का एक छोटा हथियार।
पिस्सू
(फ़ा.) [सं-पु.] एक मच्छर जैसा छोटा कीड़ा जो शरीर का रक्त चूसता है।
पिहकना
[क्रि-अ.] कोयल, मोर, पपीहे आदि पक्षियों के बोलने या चहकने की ध्वनि।
पिहित
(सं.) [सं-पु.] (साहित्य) एक अर्थालंकार जिसमें ऐसी क्रिया का वर्णन होता है जिससे यह प्रकट होता है कि सामने वाले के मन में व्याप्त गुप्त भाव समझ लिया गया है।
[वि.] 1. छिपा हुआ; ढका हुआ 2. गुप्त।
पिहुकना
[क्रि-अ.] पिहूपिहू की ध्वनि करना।
पिहूपिहू
[सं-स्त्री.] मोर की ध्वनि।
पी
[सं-स्त्री.] पपीहे की ध्वनि।
पींजना
(सं.) [क्रि-स.] रुई धुनना।
पींजा
(सं.) [सं-पु.] धुनिया; रुई धुनने वाला व्यक्ति।
पीक
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. चबाए हुए पान, तंबाकू या गिलौरी की थूक 2. कपड़े पर पहली बार रँगाई में चढ़ने वाला रंग।
पीकदान
(हिं.+फ़ा.) [सं-पु.] पान की पीक थूकने का एक पात्र; उगालदान।
पीकना
[क्रि-अ.] पी-पी ध्वनि करना।
पीच1
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. उबले चावल का तरल पदार्थ; माँड़; पसावन। [सं-पु.] ठुड्डी।
पीच2
(इं.) [सं-पु.] अलकतरा; तारकोल।
पीछा
(सं.) [सं-पु.] 1. किसी व्यक्ति या वस्तु का पिछला भाग 2. किसी का अनुकरण; पिछलगी 3. किसी व्यक्ति या वस्तु की विपरीत दिशा। [मु.] -दिखाना :
पीठ दिखाकर भागना। -करना : किसी को तंग करना या किसी के पीछे-पीछे लगे रहना। -छुड़ाना : किसी अवांछनीय संबंध को समाप्त करना;
अपनी जान बचाना। -छोड़ना : हाथ में लिए गए काम से अलग होना; किसी व्यक्ति को तंग करने की क्रिया से विरत होना। -लेना :
अनुयायी बनना या अनुकरण करना।
पीछे
[अव्य.] 1. पीठ की ओर 2. देश-काल आदि के विचार से किसी के पश्चात या उपरांत 3. घटना या स्थिति के विचार से किसी के अनंतर या उपरांत। [मु.]-छूटना : किसी की तुलना या किसी के विचार से घटकर होना। -छोड़ना : किसी बात में किसी से आगे हो जाना। -हटना : अपने वचन या कर्तव्य का पालन न करना। -खड़े होना : किसी की पूरी सहायता करना। -चलना : किसी की नकल
करना। -लगना : किसी का अनुगामी या अनुयायी बनना; किसी का भेद जानने के लिए किसी को नियत करना। -पड़ना : किसी काम को करने की
ठान लेना; किसी को बार-बार तंग करना, आलोचना करना, बुराई करना।
पीटना
(सं.) [क्रि-स.] 1. मारना 2. किसी धातु को फैलाने हेतु हथौड़े आदि से आघात करना 3. किसी कार्य को किसी तरह संपन्न करना 4. चौसर, शतरंज आदि खेलों में विपक्षी की
गोट या मोहरा मारना।
पीटीआई
(इं.) [सं-पु.] प्रेस ट्रस्ट ऑव इंडिया; भारत की प्रमुखतम समाचार एजेंसी।
पीठ
(सं.) [सं-पु.] 1. बैठने का आधार या आसन; किसी सभा, संस्था के अध्यक्ष या देवता का आसन 2. केंद्र; विद्यापीठ 3. पद; (चेयर) 4. न्यायाधीशों का वर्ग; (बेंच) 5.
योग या पूजा में बैठने की विशेष मुद्रा 6. वेदी 7. राजसिंहासन 8. वे तीर्थस्थल जहाँ-जहाँ सती के अंग कट-कट कर गिरे; शक्तिपीठ 9. स्थान; राज्य; प्रदेश 10. एक
राक्षस 11. कंस का एक मंत्री 12. गणित में वृत्त के किसी अंग का पूरक। [सं-स्त्री.] 1. गरदन से कमर तक का मानव शरीर का पिछला भाग जिसके बीचोबीच रीढ़ रहती है 2.
किसी वस्तु या वस्त्र का पीछे का भाग 3. कुरसी आदि में पीठ के सहारे के लिए निर्मित भाग। [मु.] -ठोंकना : किसी की प्रशंसा करना; किसी को
उत्साहित करना; शाबाशी देना। -दिखाना : हार मानना; किसी प्रतियोगिता आदि में मैदान छोड़कर हट जाना। -दिखा कर जाना : ममता
छोड़कर दूर चले जाना। -देना : मुँह मोड़ना; विमुख होना; भाग जाना। -पर हाथ फेरना : अच्छा कार्य करने पर किसी की प्रशंसा करना;
किसी को अच्छा कार्य करने में प्रवृत्त करना। -फेरना : प्रस्थान करना; भाग जाना; विमुख होना। -लगना : पीठ पर घाव हो जाना। -लगाना : लेट कर आराम करना।
पीठमर्द
(सं.) [सं-पु.] 1. (साहित्य) नायक का सखा जो गुणों में उससे कुछ कमतर होता है; नाटक में नायक का मुख्य सहयोगी 2. (काव्यशास्त्र) नायक के चार सखाओं में से एक जो
वचनचातुरी से रुष्ट नायिका को मनाने और उसका मानमोचन करने में समर्थ होता है 3. वेश्याओं को नाच-गाना सिखाने वाला व्यक्ति; उस्ताद। [वि.] ढीठ और निर्लज्ज।
पीठस्थान
(सं.) [सं-पु.] वे स्थल जो दक्ष की कन्या सती के अंग गिरने के कारण पवित्र माने जाते हैं।
पीठा
(सं.) [सं-पु.] एक प्रकार का पकवान जो आटे की लोई में पीठी भरकर बनाया जाता है।
पीठासीन
(सं.) [वि.] जो पीठ या अध्यक्ष के आसन पर बैठा हो।
पीठिका
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. वह पत्थर का आसन या पीढ़ा जिसपर देव मूर्ति की स्थापना की जाती है 2. पीढ़ा या छोटी चौकी 3. पुस्तक का अंश या भाग 4. खंभे आदि का आधार 5.
पृष्ठभूमि।
पीठी
(सं.) [सं-स्त्री.] भीगी हुई दाल का पिसा हुआ रूप।
पीड़
(सं.) [सं-पु.] 1. एक प्रकार का शिरोभूषण 2. मिट्टी का वह आधार जो घड़े को पीटकर बढ़ाते समय घड़े के भीतर रखा जाता है।
पीड़न
(सं.) [सं-पु.] 1. कष्ट प्रदान करना; दबाना 2. मलना 3. पेरना 4. पेरने का उपकरण 5. रौंदवाना 6. हाथ में लेकर मसलना 7. सूर्य या चंद्र ग्रहण 8. नष्ट करना 9.
उच्चारण प्रक्रिया में किसी स्वर को दबाना 10. फोड़े को दबा कर पीब निकालना।
पीड़ा
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. शारीरिक या मानसिक कष्ट; वेदना; व्यथा; दर्द 2. बाधा 3. सिर पर लपेटकर पहनी जाने वाली माला 4. क्षति; हानि।
पीड़ाहर
(सं.) [वि.] पीड़ा हरने वाला; पीड़ा निवारण करने वाला।
पीड़ित
(सं.) [वि.] 1. पीड़ायुक्त; जिसे व्यथा या पीड़ा पहुँची हो; दुखी; क्लेशयुक्त 2. रोगी; बीमार 3. दबाया हुआ; जिसपर दाब पहुँचाया गया हो 4. नष्ट किया हुआ 5. कसकर
बाँधा हुआ 6. ग्रस्त 7. ध्वस्त 8. मसला हुआ 9. पेरा हुआ। [सं-पु.] 1. स्त्रियों के कान का छेद; कर्णछेद 2. 'तंत्रसार' में दिया हुआ एक प्रकार का मंत्र 3. पीड़ा
देने या कष्ट पहुँचाने की क्रिया 4. एक रतिबंध।
पीड़ोन्माद
(सं.) [सं-पु.] पीड़ा से उत्पन्न होने वाली एक प्रकार की सुखात्मक अनुभूति।
पीढ़ा
(सं.) [सं-पु.] छोटी चौकी के आकार का लकड़ी, धातु या प्लास्टिक का बना वह आसन जिसपर हिंदू लोग विशेषतः भोजन करते समय बैठते हैं; पाटा; पीठ; पीठक।
पीढ़ी
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. किसी कुल या वंश की परंपरा में, क्रमशः आगे बढ़ने वाली संतान की प्रत्येक कड़ी या स्थिति; वंशवृक्ष 2. किसी विशिष्ट युग या काल में
उत्पन्न होने या रहने वाले लोगों का समूह जिनकी अवस्था में अधिक अंतर न हो 3. किसी प्रकार परंपरागत स्थिति 4. छोटा पीढ़ा।
पीत
(सं.) [सं-पु.] 1. पीला रंग 2. वृक्ष की छाल 3. चंपक 4. कनेर 5. केसर 6. पुष्पराज 7. इंद्र 8. गरुड़ 9. मिश्रित या उपधातु जिससे घंटे बनाए जाते हैं 10. दीप 11.
मेंढक 12. चकवा; चक्रवाक पक्षी 13. हरताल 14. कुसुम 15. पीला मूँगा 16. पीला खस। [वि.] 1. पीला 2. भूरा।
पीतक
(सं.) [सं-पु.] 1. हरताल 2. पीतल 3. पीला चंदन 4. हल्दी 5. सोनापाठा 6. अंडे की जर्दी 7. केसर 8. अगर 9. विजयसार।
पीतदृष्टि
(सं.) [वि.] पीली आँखोंवाला।
पीतपट
(सं.) [सं-पु.] पीतांबर; पीला कपड़ा।
पीतपत्रकारिता
(सं.) [सं-स्त्री.] (पत्रकारिता) पत्रकारों द्वारा स्वार्थ साधने के लिए अपनाई गई आदर्शविहीन तथा भ्रष्ट रीति-नीति।
पीतमणि
(सं.) [सं-पु.] 1. एक बहुमूल्य रत्न; पुखराज; पुष्पराज 2. अल्यूमिनियम और फ़्लोरीन मिश्रित सिलिकेट खनिज।
पीतरक्त
(सं.) [सं-पु.] 1. पीली आभायुक्त लाल रंग 2. पुखराज। [वि.] पीलापन लिए लाल रंग का।
पीतरोग
(सं.) [सं-पु.] 1. एक प्रकार का रोग जिसमें मनुष्य की आँखें और शरीर पीला हो जाता है 2. पीलिया; कामला।
पीतल
(सं.) [सं-पु.] 1. ताँबे और जस्ते के संयोग से बनी पीले रंग की एक प्रसिद्ध मिश्रधातु 2. पीला रंग। [वि.] पीले रंग का।
पीतांग
(सं.) [सं-पु.] 1. पीत अर्थात पीले अंगों वाला व्यक्ति 2. सोनापाठा नामक वृक्ष 3. एक प्रकार का मेंढक। [वि.] पीले अंगोंवाला।
पीतांबर
(सं.) [सं-पु.] 1. पीला वस्त्र; पीली धोती; पीतवर्णीय वस्त्र जिसे पहन कर पूजा पर बैठते हैं 2. विष्णु; कृष्ण 3. पीला अंबरधारी संन्यासी। [वि.] पीले वस्त्रवाला;
जिसने पीला अंबर (वस्त्र) धारण किया हो।
पीतांबरधारी
(सं.) [सं-पु.] कृष्ण; विष्णु।
पीताभ
(सं.) [वि.] पीली आभावाला; पीले रंग का।
पीतारुण
(सं.) [सं-पु.] 1. पीलापन लिए हुए लाल रंग; पीली आभायुक्त लाल रंग 2. सूर्योदय का मध्यकाल। [वि.] पीलापन लिए हुए लाल रंगवाला; पीलापन लिए लाल रंग का।
पीन
(सं.) [सं-पु.] स्थूल होने की अवस्था या भाव; मोटाई। [वि.] 1. परिपुष्ट; भारी 2. स्थूल; बड़ा; मोटा 3. दीर्घकाय 4. संपन्न; भरा-पूरा।
पीनक
[सं-स्त्री.] 1. पिनकने की क्रिया 2. अफ़ीम के नशे में धुत्त।
पीनता
(सं.) [सं-स्त्री.] स्थूलता; मोटाई; मोटापा।
पीनस1
(सं.) [सं-पु.] एक प्रकार का रोग जिसमें नाक से दुर्गंधमय गाढ़ा पानी निकलता है सरदी; ज़ुकाम।
पीनस2
(फ़ा.) [सं-स्त्री.] 1. पालकी 2. एक प्रकार की नाव।
पीना
(सं.) [क्रि-स.] 1. किसी द्रव को गले से नीचे उतारना 2. शराब पीना 3. हुक्का या सिगरेट आदि का धुआँ खींचना 4. किसी तरल पदार्थ को सोख लेना 5. क्रोध को मन में ही
दबा लेना।
पीप
(सं.) [सं-स्त्री.] घाव का मवाद; पीब।
पीपल
(सं.) [सं-पु.] बरगद की जाति का एक प्रसिद्ध वृक्ष।
पीपा
[सं-पु.] 1. लोहे या लकड़ी का ढोल के आकार का बना एक बड़ा पात्र जिसमें द्रव पदार्थ रखकर बाहर भेजा जाता है 2. राजस्थान के एक प्रसिद्ध राजा जो राज्य त्याग कर
रामानंद के शिष्य हो गए थे 3. भक्तिकालीन एक संत कवि।
पीब
(सं.) [सं-पु.] पीप।
पीयूष
(सं.) [सं-पु.] अमृत; सुधा।
पीयूषवर्षण
(सं.) [सं-पु.] 1. अमृत की वर्षा 2. चंद्रमा।
पीर
(फ़ा.) [सं-पु.] 1. महात्मा और सिद्ध पुरुष 2. परलोक का मार्ग दर्शक; धर्म गुरु 3. मुसलमानों के धर्म गुरु 4. सोमवार का दिन। [वि.] वृद्ध 2. सिद्ध 3. पूज्य।
पीरज़ादा
(फ़ा.) [सं-पु.] पीर या मुस्लिम धर्मगुरु का पुत्र।
पीरी
(फ़ा.) [सं-स्त्री.] 1. वृद्धावस्था; बुढ़ापा 2. गुरुआई; चेला या शिष्य बनाने का पेशा।
पील
(फ़ा.) [सं-पु.] 1. हाथी; गज 2. शतरंज का एक मोहरा (ऊँट) 3. पीलू नामक कीड़ा 4. पीलू नामक पेड़।
पीलपाँव
(फ़ा.) [सं-पु.] एक रोग जिसमें पैर फूलकर हाथी के पैर की तरह हो जाता है; फीलपा।
पीलवान
[सं-पु.] महावत; हाथी हाँकने वाला।
पीला
(सं.) [वि.] 1. जो सोने या हल्दी के रंग का हो; पीत वर्ण 2. {ला-अ.} फीका; आभारहित; निष्प्रभ (चेहरा)। [मु.] -पड़ना : भय, चिंता आदि के कारण
शरीर में रक्त का अभाव होना या भय से चेहरे पर सफ़ेदी आना।
पीलाकार्ड
(हिं.+इं.) [सं-पु.] फ़ुटबॉल, हॉकी के खेल में निर्णायक द्वारा खिलाड़ी को दिया जाने वाला कार्ड जो नियम भंग करने के कारण चेतावनी देने का सूचक होता है;
(यलोकार्ड)।
पीलापन
[सं-पु.] 1. पीलेपन की अवस्था या भाव; ज़र्दी 2. ख़ून की कमी से शरीर पर चमक या लाली का अभाव।
पीलिया
[सं-पु.] एक प्रकार का रोग जिसमें शरीर पीला पड़ जाता है; यकृत विकार से उत्पन्न होने वाला रोग; पांडु रोग; कामला रोगी।
पीलू
(सं.) [सं-पु.] 1. दक्षिण भारत में होने वाला काँटेदार वृक्ष जिसकी पत्तियाँ औषधि के काम आती हैं 2. उक्त वृक्ष का फल एवं फूल 3. ताड़ के पेड़ का तना 4. ताड़ के
पेड़ों का समूह 5. (संगीत) एक प्रकार का राग।
पीव
(सं.) [सं-पु.] घाव का मवाद; पस।
पीस जर्नलिज़म
(इं.) [सं-पु.] (पत्रकारिता) शांति स्थापित करने की दृष्टि से की गई पत्रकारिता।
पीसना
(सं.) [क्रि-स.] 1. रगड़ या दबाव के माध्यम से किसी सूखी वस्तु को चूरे के रूप में बदलना; चूर्ण करना 2. गीली वस्तु को चटनी के रूप में बदलना 3. कठिन परिश्रम
करना 4. कुचल देना 5. {ला-अ.} तंग करना।
पीहर
[सं-पु.] विवाहित स्त्रियों के पिता का घर; मायका; मैका; नैहर।
पीहरी
[सं-पु.] स्त्रियों के लिए उनके माता-पिता के घर के सदस्य; मायके के लोग।
पीहा
(सं.) [सं-स्त्री.] पपीहे की बोली।
पुंकेसर
(सं.) [सं-पु.] पुष्प का वह केसर जिसमें पुंसत्व वाला तत्व रहता है और जिसके पराग के संयोग से स्त्री केसर में गर्भाधान होता है।
पुंग
(सं.) [सं-पु.] पुंज; समूह; राशि।
पुंगफल
(सं.) [सं-पु.] सुपाड़ी; पुंगीफल।
पुंगव
(सं.) [सं-पु.] 1. बैल; वृष; साँड़ 2. एक प्रकार की वनस्पति जिसका उपयोग औषधि के रूप में होता है। [वि.] श्रेष्ठ; उत्तम।
पुंगी
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. सुपारी 2. एक प्रकार की बाँसुरी; बीन।
पुंगीफल
(सं.) [सं-पु.] सुपारी।
पुंज
(सं.) [सं-पु.] समूह; ढेर; अटाला; राशि।
पुंजन
(सं.) [सं-पु.] राशि बनाने की क्रिया; पुंज।
पुंजातीय
(सं.) [वि.] लिंग के विचार से नर जाति का; (मेल)।
पुंजित
(सं.) [वि.] 1. संचित; एकत्र किया हुआ; ढेर लगाया हुआ 2. राशिकृत।
पुंडरीक
(सं.) [सं-पु.] 1. श्वेत कमल 2. अग्निकोण का दिग्गज 3. बाघ 4. एक सुगंधित पौधा 5. एक द्रव्यौषध 6. सफ़ेद हाथी 7. श्वेत कुष्ठ 8. क्रौंच द्वीप का एक पर्वत 9. एक
तीर्थ 10. जैनों का एक गणधर 11. तिलक; टीका 12. अग्नि।
पुंडरीकाक्ष
(सं.) [वि.] कमल के समान आँख वाला; जिसकी आँखें कमल के समान हों।
पुंड्रक
(सं.) [सं-पु.] 1. ईख का एक भेद 2. तिलक; टीका 3. तिलक वृक्ष 4. माधवी लता।
पुंस
(सं.) [सं-पु.] पुरुष; नर; मर्द।
पुंसंतति
(सं.) [सं-स्त्री.] वह वंशज जो पुरुष हो; नर संतान, जैसे- पुत्र, पौत्र आदि।
पुंसक
(सं.) [वि.] वह जिसमें स्त्री संभोग और संतान उत्पन्न करने की शक्ति हो।
पुंसत्व
(सं.) [सं-पु.] 1. पुरुषत्व; पुरुष होने का भाव 2. पुरुष की कामशक्ति 3. शुक्र; वीर्य।
पुंसवत
(सं.) [वि.] पुरुष जैसा; पुरुष के समान। [अव्य.] पुरुष की तरह।
पुआ
[सं-पु.] आटे या मैदे को चीनी या गुड़ के रस में मिलाकर घी या तेल में तलकर तैयार किया जाने वाला एक पकवान; एक प्रकार का मीठा पकवान।
पुआल
[सं-पु.] 1. धान आदि के डंठल जिसके दाने झाड़ लिए गए हों 2. एक जंगली पेड़ व उसकी मज़बूत लकड़ी।
पुकार
[सं-स्त्री.] 1. ऊँची या तेज़ आवाज़ में किसी को बुलाने की क्रिया 2. रक्षा या आत्मरक्षा हेतु गुहार; फ़रियाद 3. निवेदन 4. बुलावा; आह्वान 5. आवाज़ 6. निमंत्रण 7.
कचहरी के चपरासी का मुकदमे में पेशी पर वादी-प्रतिवादी का नाम लेकर बुलाना।
पुकारना
[क्रि-स.] 1. किसी को बुलाने, संबोधित करने या उसका ध्यान आकृष्ट करने के लिए ज़ोर से उसका नाम लेना 2. रक्षा या आत्मरक्षा हेतु फ़रियाद करना 3. निर्देश करना 4.
किसी बात को बार बार ज़ोर-ज़ोर से कहना 5. आवाज़ लगाना या चिल्लाना।
पुक्कस
(सं.) [सं-पु.] 1. अधम 2. चांडाल 3. एक संकर जाति। [वि.] कमीना; नीच।
पुखराज
(सं.) [सं-पु.] पीले रंग का एक रत्न विशेष; पुष्पराज।
पुख़्ता
(फ़ा.) [वि.] 1. मज़बूत; टिकाऊ; सख़्त; ठोस 2. ईंट, चूना, सीमेंट आदि से जुड़ा हुआ 3. {ला-अ.} परिपक्व; अनुभवी; जानकार।
पुचकार
[सं-स्त्री.] पुचकारने की क्रिया या भाव; चुमकार; प्यार व्यक्त करने हेतु होठों से निकला हुआ चूमने का-सा शब्द।
पुचकारना
[क्रि-स.] 1. प्यार से कहना; प्रेम से मनाना 2. स्नेह व्यक्त करना; होठों से चूमने का-सा शब्द उत्पन्न करते हुए किसी के प्रति लाड़-प्यार प्रकट करना; प्यार
जतलाते हुए मुँह से पुच-पुच शब्द करना।
पुचकारी
[सं-स्त्री.] 1. पुचकारने की क्रिया; पुचकार 2. मुँह से निकला हुआ चूमने का प्रेमसूचक शब्द।
पुचारा
[सं-पु.] 1. पोतने का काम 2. पोतने का तरल पदार्थ 3. भीगे हुए कपड़े से ज़मीन रगड़कर पोंछने का काम; पोंछा 4. ख़ुशामद 5. उत्साहवर्धक वचन।
पुच्छ
(सं.) [सं-पु.] 1. पूँछ; दुम 2. किसी वस्तु का अंतिम सिरा; पीछे का भाग।
पुच्छल
(सं.) [वि.] जिसके पीछे पूँछ हो; पूँछवाला; दुमदार।
पुच्छल-तारा
(सं.) [सं-पु.] सूर्य के चारों ओर घूमने वाला एक विशेष प्रकार का तारा या पिंड जिसके पीछे भाप या गैस की पूँछ-सी लगी प्रतीत होती है।
पुच्छाग्र
(सं.) [सं-पु.] पूँछ के आगे (अग्र) का भाग।
पुच्छी
(सं.) [सं-पु.] 1. मदार का पौधा 2. मुरगा। [वि.] पूँछ वाला।
पुछल्ला
[सं-पु.] 1. बड़ी या लंबी पूँछ 2. पूँछ की तरह पीछे लगी या जोड़ी हुई वस्तु या धज्जी; अनावश्यक वस्तु 3. {ला-अ.} वह जो अनावश्यक रूप से किसी के पीछे लगा रहता हो
या साथ चलता हो।
पुछवाना
[क्रि-स.] 1. किसी दूसरे को पूछने के लिए प्रेरित करना 2. पता करवाना; मालूम करवाना।
पुछार
[सं-पु.] 1. पूछने वाला व्यक्ति 2. आदर करने वाला व्यक्ति 3. देखरेख या ख़ोज-ख़बर लेने वाला व्यक्ति।
पुजवाना
[क्रि-स.] 1. किसी अन्य व्यक्ति से पूजा या आराधना कराना; किसी से पूजने का काम करवाना 2. अपनी पूजा या आवभगत कराना।
पुजाई
[सं-स्त्री.] 1. पूजने की क्रिया या भाव 2. पूजने की मज़दूरी।
पुजाना
[क्रि-स.] 1. किसी से पूजा करवाना 2. अपनी आवभगत करवाना 3. पूरा करना 4. भेंट चढ़वाना।
पुजापा
[सं-पु.] 1. पूजन की सामग्री 2. वह झोली या थैला जिसमें पूजन की सामग्री रखी जाती है; पुजाही।
पुजारिन
[सं-स्त्री.] 1. पूजा करने वाली स्त्री 2. पुजारी की पत्नी; पुजारन।
पुजारी
[सं-पु.] 1. पूजा करने वाला व्यक्ति; पूजक; किसी मंदिर में नियमित रूप से पूजा करने वाला व्यक्ति 2. जो किसी के लिए समर्पित हो, जैसे- प्रेम पुजारी, धन का
पुजारी।
पुट1
[सं-पु.] 1. किसी पदार्थ को हलका गीला करने या मेल देने के लिए किसी द्रव का छींटा 2. थोड़ी मिलावट या मेल 3. किसी वस्तु को हलके मेल के लिए किसी अन्य वस्तु या
तेल में डालना।
पुट2
(सं.) [सं-पु.] 1. किसी चीज़ की तह या परत 2. पत्तों आदि से बनाया गया दोना 3. खाली स्थान; विवर 4. ढकने वाला; आवरण 5. मंजूषा 6. परस्पर ढके मिट्टी के दो कपाल 7.
वैद्यक में औषधि पकाने का एक प्रकार का पात्र; संपुट 8. जायफल 9. घोड़े की टाप।
पुटकी1
[सं-स्त्री.] 1. एकाएक होने वाली मृत्यु 2. बहुत बड़ी आफ़त; आकस्मिक विपत्ति।
पुटकी2
(सं.) [सं-स्त्री.] पोटली; छोटी गठरी।
पुटपाक
(सं.) [सं-पु.] (वैद्यक) पत्ते के दोने में रखकर औषधि पकाने या भस्म बनाने की क्रिया।
पुटी
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. छोटा कटोरा; छोटा दोना 2. पुड़िया 3. लँगोटी 4. ख़ाली स्थान। [वि.] औषधि जो पुट पाक विधि में प्रस्तुत हो।
पुटीन
(इं.) [सं-पु.] लकड़ी की दरारों आदि में भरने का मसाला।
पुटोदक
(सं.) [सं-पु.] नारियल; जिस वस्तु में जल या रस का पुट हो।
पुट्ठा
(सं.) [सं-पु.] 1. कमर के पास चूतड़ का ऊपरी मांसल भाग; चौपाए का चूतड़ 2. मोटे कागज़ का आधार जिसपर रख कर लिखा जाता है; दफ़्ती।
पुठवार
[अव्य.] 1. पीछे; पृष्ठ भाग में 2. बगल में।
पुड़ा1
[सं-पु.] 1. पुट्ठा 2. ढोल पर मढ़ा जाने वाला चमड़ा।
पुड़ा2
(सं.) [सं-पु.] 1. बड़ी पुड़िया 2. गौ का गर्भाशय।
पुड़िया
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. किसी कागज़ आदि में किसी वस्तु को विशेष प्रकार से ऐसे लपेट देना जैसे वह बंद हो गई हो 2. {ला-अ.} खान; घर, जैसे- आफ़त की पुड़िया।
पुड़ी
[सं-स्त्री.] 1. आटे या मैदे को सानकर निर्मित एक खाद्य पदार्थ; पूरी; सुहारी 2. पुड़िया 3. पुटी।
पुण्य
(सं.) [सं-पु.] 1. धार्मिक दृष्टि से शुभ कर्म; धर्मकार्य 2. परोपकार आदि का काम 3. सुकर्म से उत्पन्न शुभ दृष्टि 4. (ज्योतिष) कुंडली में लग्न से नौवाँ भाव।
[वि.] 1. शुभ; पवित्र; मंगलकारक 2. दूसरों की सहायता या उपकार का कार्य करने वाला 3. सुंदर; अनुकूल; मधुर।
पुण्यकर्म
(सं.) [सं-पु.] (लोकमान्यता) वह कर्म जिसे करने से पुण्य प्राप्त हो; भला या शुभ कर्म।
पुण्यकाल
(सं.) [सं-पु.] (लोकमान्यता) वह समय या काल जिसमें स्नान, दान आदि करने से पुण्य प्राप्त होता है या विशेष पुण्य मिलता है।
पुण्यतिथि
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. पवित्र, शुभ नक्षत्र वाला स्नान, दान आदि करने का दिन; शुभ या पवित्र कार्य करने का अच्छा दिन 2. किसी महापुरुष की मृत्यु की तिथि।
पुण्यफल
(सं.) [सं-पु.] 1. शुभ कर्मों का शुभ फल 2. लक्ष्मी के निवास करने का उद्यान।
पुण्यभूमि
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. तीर्थस्थान 2. पवित्रभूमि।
पुण्यवती
[सं-स्त्री.] 1. जिसे पुण्य प्राप्त हो 2. उपकारी; दूसरों की भलाई करने वाली।
पुण्यशील
(सं.) [वि.] पुण्यात्मा; जिसका पुण्य कर्मों या सदाचरण की ओर झुकाव हो।
पुण्यश्लोक
(सं.) [सं-पु.] 1. युधिष्ठिर 2. राजा नल 3. विष्णु। [वि.] जिसका चरित्र और यश शुभ और सुंदर हो।
पुण्यस्थल
(सं.) [सं-पु.] तीर्थ स्थान।
पुण्यात्मा
(सं.) [वि.] 1. जिसकी प्रवृत्ति पुण्य करने की हो 2. धर्मात्मा; पुण्यशील।
पुण्यार्थ
(सं.) [सं-पु.] 1. लोक उपकार की भावना से दिया जाने वाला धन 2. पुण्य की प्राप्ति के विचार से किया गया कार्य।
पुण्याह
(सं.) [सं-पु.] शुभ, पवित्र या मंगल कारक दिन।
पुण्योदय
(सं.) [सं-पु.] शुभ, पवित्र या मंगल कारक कार्य करने के फलस्वरूप होने वाला सौभाग्य या भाग्य का उदय।
पुतला
(सं.) [सं-पु.] 1. लकड़ी, कपड़े या धातु की बनी हुई किसी व्यक्ति की प्रतिमा जो ख़ासकर खिलौने के काम आती है 2. किसी मनुष्य का बना मुखौटा।
पुतली
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. आँख का काला भाग जिसके बीच में ज्योति केंद्र होता है 2. लकड़ी या कपड़ों आदि की बनी गुड़िया।
पुताई
[सं-स्त्री.] 1. पोतने की क्रिया या भाव 2. दीवार पर रंग या लेप करने की क्रिया 3. पुताई की मज़दूरी।
पुत्तलिका
(सं.) [सं-स्त्री.] पुतली; गुड़िया।
पुत्तिका
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. एक प्रकार की मधुमक्खी 2. दीमक।
पुत्र
(सं.) [सं-पु.] 1. बेटा; सुत; लड़का; संतान 2. शिष्य के लिए संबोधन।
पुत्रजीव
(सं.) [सं-पु.] इंगुदी की तरह का एक पेड़ जिसके बीज सूखने पर रूद्राक्ष की तरह हो जाते हैं और साधु लोग उसकी माला पहनते हैं; जियापोता।
पुत्रवती
(सं.) [सं-स्त्री.] पुत्रवाली स्त्री; पूती।
पुत्रवधू
(सं.) [सं-स्त्री.] पुत्र की पत्नी; पतोहू।
पुत्रवान
(सं.) [वि.] पुत्रवाला; जिसके पुत्र हो।
पुत्रादिनी
(सं.) [वि.] अपने पुत्रों को स्वयं ही खा जाने वाली, जैसे- सर्पिणी, व्याघ्री आदि।
पुत्रादी
(सं.) [वि.] 1. पुत्रभक्षक 2. {ला-अ.} बेटे को खाने वाला; (एक गाली)।
पुत्रान्नाद
(सं.) [सं-पु.] 1. पुत्र की कमाई खाने वाला व्यक्ति 2. कुटीचक्र; यतियों का एक भेद।
पुत्रिणी
(सं.) [वि.] पुत्रवती; पुत्रवाली।
पुत्री
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. कन्या; बेटी; लड़की; सुता 2. {ला-अ.} दुर्गा।
पुदगल
(सं.) [सं-पु.] 1. (जैनशास्त्र) कोई ऐसा पदार्थ जिसमें रूप, रस, स्पर्श, गंध, शब्द आदि हों 2. (बौद्ध) शरीर; देह; बदन 3. आत्मा 4. शिव। [वि.] सुंदर।
पुदीना
(फ़ा.) [सं-पु.] एक पौधा जिसका औषधीय प्रयोग होता है; छोटी हरी पत्तियों वाला ज़मीन पर फैलने वाला सुगंधित पौधा जिसकी पत्तियों से चटनी बनाई जाती है।
पुनः
(सं.) [अव्य.] 1. फिर; दुबारा 2. अनंतर; बाद 3. इसके अतिरिक्त।
पुनराकलन
(सं.) [सं-पु.] पुनर्मूल्यांकन; फिर से आकलन करने की क्रिया।
पुनराख्याता
(सं.) [सं-पु.] टिप्पणी या नई आख्या करने वाला व्यक्ति।
पुनरागमन
(सं.) [सं-पु.] लौटना; फिर से आना; वापस होना।
पुनरारंभ
(सं.) [सं-पु.] स्थगित किया हुआ या छोड़ा हुआ काम फिर से आरंभ करना; (रिजांशन)।
पुनरावर्तन
(सं.) [सं-पु.] 1. फिर से लौटकर आना; दुबारा होने वाला आवर्तन 2. किसी रोग के ठीक हो जाने पर फिर से होने वाला उसका आक्रमण या प्रकोप।
पुनरावलोकन
(सं.) [सं-पु.] 1. दोहराना 2. किसी किए हुए कार्य को फिर से देखना या करना; पूर्व में देखी गई किसी चीज़ को पुनः देखना।
पुनरावाहन
(सं.) [सं-पु.] 1. पुनः वापस बुलाना 2. स्मरण करना; चिंतन करना 3. फिर से प्रयोग में लाना।
पुनरावृत्ति
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. किए हुए काम या बात को फिर से करने या दोहराने की क्रिया या भाव 2. लौटना; वापसी 3. दुबारा जन्म लेना।
पुनरावेदन
(सं.) [सं-पु.] पुनः की गई प्रार्थना या अपील; दुबारा किया गया आवेदन।
पुनरासीन
(सं.) [वि.] वह जो एक बार अपने स्थान से हटने या हटाए जाने के बाद फिर उसी स्थान पर आ कर बैठे।
पुनरीक्षक
(सं.) [सं-पु.] पुनः निरीक्षण या संशोधन करने वाला व्यक्ति।
पुनरीक्षण
(सं.) [सं-पु.] 1. किए हुए काम को जाँचने के लिए फिर से देखना; पुनः संशोधन; भूल-सुधार 2. आय-व्यय के आँकड़े आदि को फिर से देखना या पढ़ना; न्यायालय में मुकदमें
की फिर से सुनवाई; (रिविज़न)।
पुनरीक्षित
(सं.) [वि.] पुनःसंशोधित; जो फिर से देख लिया गया हो; (रिवाइज़्ड)।
पुनरुक्त
(सं.) [वि.] दुबारा कहा हुआ; फिर से कहा हुआ।
पुनरुक्ति
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. किसी बात या उक्ति को बार-बार कहना 2. पुनर्कथन।
पुनरुज्जीवन
(सं.) [सं-पु.] 1. फिर से प्राप्त जीवन; फिर से जीवनदान देना; (रिवाइवल) 2. फिर से उन्नति की ओर ले जाना।
पुनरुज्जीवित
(सं.) [सं-पु.] 1. फिर से जीवित या सजीव होने की अवस्था या भाव 2. किसी बंद या मृत संस्था या उद्योग को पुनः पूर्व की तरह संचालन या उन्नति की ओर ले जाना।
पुनरुत्थान
(सं.) [सं-पु.] 1. पुनर्जागरण 2. पतन के पश्चात फिर से उन्नति की ओर बढ़ना।
पुनरुत्पादन
(सं.) [सं-पु.] 1. फिर से बनाने की क्रिया 2. पुनः उत्पादन करने की क्रिया।
पुनरुद्धार
(सं.) [सं-पु.] किसी नष्ट हुई टूटी-फूटी वस्तु को फिर से ठीक करके नए जैसा बनाना; (रिनोवेशन)।
पुनरुपलब्ध
(सं.) [वि.] पुनः प्राप्त; जो फिर से प्राप्त किया गया हो।
पुनरोदय
(सं.) [सं-पु.] पुनः उदय होना; दुबारा अस्तित्व ग्रहण करना।
पुनर्गठन
(सं.) [सं-पु.] 1. दुबारा या फिर से गठन करना 2. पुनर्निर्माण 3. व्यवस्था स्थापित करने की क्रिया।
पुनर्गठित
(सं.) [वि.] जिसे फिर से गठित किया गया हो; जिसका संयोजन फिर से किया गया हो।
पुनर्गमन
(सं.) [सं-पु.] फिर से जाना; दुबारा जाने की क्रिया।
पुनर्चक्रण
(सं.) [सं-पु.] उपयोग में लाई जा चुकी वस्तुओं को सँभालकर रखने और उन्हें फिर से उपयोग में लाने की क्रिया या भाव; उपयोग में लाई जा चुकी वस्तुओं को पुनः उपयोग
में लाने के लिए तैयार करना; पुनरावर्तन; पुनश्चक्रण; (रिसाइक्लिंग)।
पुनर्जन्म
(सं.) [सं-पु.] मृत्यु के बाद फिर से जन्म लेना; दुबारा शरीर धारण करना।
पुनर्जागरण
(सं.) [सं-पु.] 1. सोए हुए का फिर से जागना; निद्रा के बाद जगना 2. {ला-अ.} किसी देश; समाज संस्था आदि की सोई हुई चेतना का जागरण।
पुनर्जीवन
(सं.) [सं-पु.] 1. फिर से प्राप्त होने वाला जीवन; पुनःजीवन; दूसरा जीवन 2. आत्मा का फिर से शरीर धारण करना; पुनर्जन्म।
पुनर्जीवित
(सं.) [वि.] पुनः सक्रिय किया हुआ; पुनः उसी उत्साह, प्रेरणा और सक्रियता से परिपूर्ण।
पुनर्निर्माण
(सं.) [सं-पु.] दूसरी बार निर्मित करना; टूटी-फूटी वस्तु (मूर्ति, मकान इत्यादि) का फिर से निर्माण करना।
पुनर्परीक्षण
(सं.) [सं-पु.] जिसकी एक बार परीक्षा ली जा चुकी हो; उसकी फिर से परीक्षा लेना या करना।
पुनर्पाठ
(सं.) [सं-पु.] दुबारा किया जाने वाला पाठ; दोहराना; आवृत्ति।
पुनर्मुद्रण
(सं.) [सं-पु.] पुस्तकों आदि का दुबारा मुद्रण; एक बार छपी हुई पुस्तक दुबारा उसी रूप में छपना; (रिप्रिंटिंग)।
पुनर्मुद्रित
(सं.) [वि.] फिर से छपा हुआ; जो फिर से छापा गया हो।
पुनर्मूल्यन
(सं.) [सं-पु.] 1. किसी वस्तु का पुनः (फिर से) मूल्यांकन 2. मुद्रा आदि का फिर से मूल्य निश्चित करना।
पुनर्योग
(सं.) [सं-पु.] दुबारा होने वाला मिलन।
पुनर्वाद
(सं.) [सं-पु.] 1. पुनरुक्ति; कही हुई बात को फिर उलट-फेरकर कहना 2. किसी न्यायालय से निर्णय हो जाने पर उसके विरोध में ऊँचे न्यायालय में फिर से उस विवाद पर
विचार के लिए अपील करना।
पुनर्वादी
(सं.) [सं-पु.] किसी ऊँचे न्यायालय में विवाद पर फिर से विचार की प्रार्थना करने वाला व्यक्ति।
पुनर्वास
(सं.) [सं-पु.] 1. उजड़े हुए को फिर से बसाना 2. घर-बार नष्ट हो जाने या छीन लिए जाने पर फिर से नया घर बसाना; पुनः बसना; (री-हैबिलिटेशन) 3. (पद से हटाए गए किसी
व्यक्ति की) पुनः नियुक्ति।
पुनर्वासन
(सं.) [सं-पु.] उजड़े हुए लोगों को फिर से बसाना या आबाद करना।
पुनर्विचार
(सं.) [सं-पु.] किसी वस्तु, कार्य या घटना, आलेख या मत पर फिर से विचार करना; चिंतन।
पुनर्विधान
(सं.) [सं-पु.] 1. किसी चीज़ का फिर से विधान करना या बनाया जाना 2. पुनर्घटन।
पुनर्विधायन
(सं.) [सं-पु.] फिर से कोई विधान निर्माण; किसी बने हुए विधान को घटा या बढ़ाकर नए सिरे से विधान का रूप देना।
पुनर्विभाजन
(सं.) [सं-पु.] विभाजित वस्तु का फिर से विभाजन करना।
पुनर्विलोकन
(सं.) [सं-पु.] 1. फिर से अच्छी तरह देखना 2. घटित घटनाओं की संक्षिप्त आलोचना 3. किसी दिए हुए आदेश या दंड आदि पर फिर से विचार करना।
पुनर्विवाह
(सं.) [सं-पु.] किसी का, विशेषतः विधवा स्त्री का फिर से होने वाला विवाह।
पुनर्विहित
(सं.) [वि.] जिसका फिर से विधान किया गया हो; पहले से बना हुआ (विधान) जिसमें संशोधन कर नए विधान के रूप में लाया गया हो।
पुनर्सृजन
(सं.) [सं-पु.] 1. दुबारा होने वाला निर्माण 2. पुनः होने वाला सकारात्मक या रचनात्मक कार्य।
पुनर्स्थापन
(सं.) [सं-पु.] जो पहले अपने स्थान से हटाया गया हो उसे फिर से उसी स्थान पर रखना या स्थापित करना।
पुनर्स्थापित
(सं.) [वि.] 1. फिर से स्थापित किया हुआ 2. पुनः प्रचलन में लाया हुआ।
पुनीत
(सं.) [वि.] 1. शुद्ध; पाक; पवित्र 2. पवित्र किया हुआ 3.पवित्र माना जाने वाला।
पुनीता
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. पवित्र; शुद्ध; पाक 2. पवित्र तथा अच्छे आचरण वाली स्त्री।
पुपली
[सं-स्त्री.] आम की गुठली के अंदर की गिरी को घिसकर बनाया गया बाजा या सीटी।
पुर1
(सं.) [सं-पु.] 1. नगर; शहर 2. मकान; घर; गृह; आगार 3. कोट; किला; दुर्ग 4. बाज़ार 5. शरीर; देह 6. कोठा; अटारी 7. भुवन; लोक 8. मोथा 9. भंडारघर 10. वेश्यालय 11.
राशि ढेर।
पुर2
(फ़ा.) [पूर्वप्रत्य.] भरपूर; पूरा; भरा हुआ; पूर्ण, जैसे- पुरज़ोर, पुरजोश।
पुरंजन
(सं.) [सं-पु.] 1. जीवात्मा; आत्मा 3. वरुण।
पुरंजनी
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. प्रज्ञा; निर्विकल्पक ज्ञान; बुद्धि।
पुरंजय
(सं.) [सं-पु.] (रामायण) रघुकुल में उत्पन्न एक प्रसिद्ध राजा; काकुत्स्थ। [वि.] पुर पर विजय करने वाला; पुर को जीतने वाला।
पुरंजर
(सं.) [सं-पु.] पार्श्व; बगल; काँख।
पुरंदर
(सं.) [सं-पु.] 1. इंद्र 2. शिव 3. विष्णु 4. ज्येष्ठा नक्षत्र 5. अग्नि। [वि.] पुर (नगर) को तोड़ने वाला।
पुरंध्री
(सं.) [सं-स्त्री.] ऐसी सौभाग्यशाली स्त्री जो पति, पुत्र व कन्या युक्त हो।
पुरकायस्थ
(सं.) [सं-पु.] प्राचीन भारत में नगर का वह अधिकारी जिसके पास मुख्य लेखों, दस्तावेज़ों की नकल रहती थी।
पुरखा
(सं.) [सं-पु.] 1. पूर्वज; पिता के ऊपर की पीढ़ी में उत्पन्न कोई व्यक्ति 2. {ला-अ.} बुद्धिमान; वृद्ध व्यक्ति।
पुरज़ा
[सं-पु.] 1. किसी मशीन या यंत्र का अंग-प्रत्यंग; अवयव 2. पर्ची; कागज़ का टुकड़ा 3. खंड; टुकड़ा; कतरन। [मु.] चलता पुरज़ा होना : चालाक व्यक्ति
होना -ढीला होनाः बुद्धि की कमी होना; सनकी होना।
पुरज़ोर
(फ़ा.) [क्रि.वि.] भरपूर ताकत से; ज़ोर से; पूरी ताकत, शक्ति या उत्साह से। [वि.] 1. ज़ोरदार 2. ओजपूर्ण।
पुरना
[क्रि-अ.] 1. पूरा होना; पूर्ण होना; समाप्त होना 2. यथेष्ट मात्रा या मान में प्राप्त होना।
पुरनिया
[वि.] वृद्ध; अधिक उम्रवाला।
पुरपेच
(फ़ा.) [वि.] पेचदार; बलदार; टेढ़ामेढ़ा; घुमावदार।
पुरबिया
[सं-पु.] पूर्व दिशा या देश का निवासी। [वि.] पूरब का; पूरब में उत्पन्न या रहने वाला।
पुरवा
[सं-पु.] 1. छोटा गाँव; खेड़ा; पुरा 2. मिट्टी के प्याले जैसा बरतन; कुल्हड़ 3. बैलों का एक रोग जो पुरवा हवा लगने से होता है। [सं-स्त्री.] पूर्व दिशा से चलने
वाली हवा।
पुरवाई
[सं-स्त्री.] पुरवा हवा; पूर्व से चलने वाली या आने वाली वायु; पूर्व की वायु।
पुरवैया
[सं-स्त्री.] पुरवाई; पूर्व से चलने वाली या आने वाली हवा।
पुरश्चरण
(सं.) [सं-पु.] किसी निश्चित कार्य की सिद्धि के लिए पहले से की गई तैयारी तथा अनुष्ठान; निश्चित कार्य की सिद्धि के लिए विधिपूर्वक किया गया तांत्रिक प्रयोग।
पुरसा1
(सं.) [सं-पु.] 1. गहराई मापने की एक माप 2. लगभग चार या पाँच हाथ की एक माप; हाथ उठाकर खड़े हुए मनुष्य के बराबर की माप।
पुरसा2
(फ़ा.) [सं-पु.] किसी के यहाँ गमी या मृत्यु हो जाने पर सहानुभूति और शोक प्रकट करने जाना; मातमपुरसी।
पुरसाँ
(फ़ा.) [वि.] ख़ोज-ख़बर लेने वाला; हालचाल पूछने वाला।
पुरसाहाल
[सं-पु.] हाल पूछने वाला।
पुरसी
(फ़ा.) [सं-स्त्री.] ख़ोज-ख़बर, हालचाल लेने या जानने के लिए, कुछ पूछने की क्रिया या भाव; समस्त पदों में उत्तर पद के रूप में प्रयुक्त, जैसे- मिज़ाजपुरसी,
मातमपुरसी।
पुरस्कर्ता
(सं.) [सं-पु.] प्रस्तुत करने वाला व्यक्ति; सामने लाने वाला व्यक्ति।
पुरस्कार
(सं.) [सं-पु.] 1. किसी प्रतियोगिता आदि में विजेता या बेहतर प्रदर्शन करने वाले को दिया जाने वाला पारितोषिक या इनाम 2. उपहार; भेंट; (प्राइज़; अवार्ड;
रिवार्ड)।
पुरस्कृत
(सं.) [वि.] 1. आगे किया हुआ 2. सम्मानित; इनाम पाया हुआ; जिसे इनाम मिला हो 3. पूजित।
पुरस्सर
(सं.) [सं-पु.] 1. नेता; अगुआ 2. संगी; साथी। [वि.] 1. मिला हुआ; युक्त; सहित 2. संग या साथ रहने या होने वाला।
पुरा
(सं.) [सं-पु.] बस्ती; गाँव; छोटा गाँव। [सं-स्त्री.] 1. प्राची; पूरब 2. गंगा 3. किला 4. एक सुगंधित तरल पदार्थ। [वि.] प्राचीन; पुराना। [अव्य.] 1. पहले 2.
अबतक 3. अल्प काल में; थोड़े समय में।
पुरांतक
(सं.) [सं-पु.] शिव; संहार करने वाले महेश।
पुराकाल
(सं.) [सं-पु.] यूरोपीय इतिहास की दृष्टि से मध्ययुग के पूर्व का समय।
पुराकृत
(सं.) [वि.] 1. पहले का किया हुआ; प्राचीन काल में बना हुआ 2. प्राचीन; पुराना 3. पूर्व जन्म में किया हुआ।
पुराख्यान
(सं.) [सं-पु.] पौराणिक आख्यान।
पुराण
(सं.) [सं-पु.] 1. प्राचीन घटना या उसका वृत्तांत 2. सृष्टि की उत्पत्ति, लय, मन्वंतरों, प्राचीन ऋषि-मुनियों तथा राजाओं के वंश में उत्पन्न लोगों के चरित्रों
के वर्णन से युक्त शास्त्र, जिनकी संख्या अठारह है 3. एक प्रकार का पुराना सिक्का; कार्षापण 4. बहुत पुराना होने के कारण जीर्ण-शीर्ण।
पुराणकाल
(सं.) [सं-पु.] वह काल विशेष जब हिंदुओं के धार्मिक ग्रंथों- अठारह पुराणों की रचना हुई थी।
पुराणपंथ
(सं.) [सं-पु.] अत्यंत पुराना विचार; पुरानी मान्यता, पुराने अंधविश्वासों से पूर्ण मत या विचारधारा।
पुराणपंथी
(सं.) [वि.] पुरानी सोच का; पुरानी मान्यता या विचार को मानने वाला; दकियानूसी।
पुराणविद्या
(सं.) [सं-स्त्री.] (पुराण) वेद, वेदांग, धर्म, दर्शन, नाट्य तथा साहित्य से संबंधित विद्या।
पुराणशास्त्र
(सं.) [सं-पु.] पुराणों में प्रतिपादित विद्या से संबंधित शास्त्र; वह शास्त्र जिसमें पुराणों में वर्णित विभिन्न मत, पुराण पठन की विधि तथा पुराणों में प्राप्त
वेद, वेदांग, धर्म, दर्शन, नाट्य, साहित्य तथा ब्रह्मविद्या की विवेचना की गई हो।
पुरातत्व
(सं.) [सं-पु.] 1. वह विद्या जिसमें मुख्यतः इतिहास पूर्व काल की वस्तुओं के आधार पर पुराने अज्ञात इतिहास का पता लगाया जाता है 2. उत्खनन से प्राप्त सामग्री,
पुरालेखों, सिक्कों इत्यादि के अध्ययन के आधार पर इतिहास संबंधी वैज्ञानिक अध्ययन का शास्त्र; पुरातत्वविज्ञान; (आर्कियॉलॉजी)।
पुरातत्वज्ञ
(सं.) [सं-पु.] पुरातत्व विद्या को जानने वाला व्यक्ति; वह जो पुरातत्व का अच्छा ज्ञाता हो; पुरातत्ववेत्ता।
पुरातत्ववेत्ता
(सं.) [सं-पु.] प्राचीन संस्कृति तथा सभ्यता से जुड़े हुए तत्वों की जानकारी रखने वाला व्यक्ति; (आर्कियोलॉजिस्ट)।
पुरातन
(सं.) [वि.] 1. प्राचीन; पुराना 2. आदिकालीन।
पुरातनपंथी
(सं.) [वि.] पुराने विचारों वाला; रूढ़िवादी।
पुरातात्विक
(सं.) [वि.] पुरातत्व से संबंधित।
पुराधिप
(सं.) [सं-पु.] 1. पुर (नगर) का प्रधान अधिकारी 2. पुराध्यक्ष।
पुराध्यक्ष
(सं.) [सं-पु.] पुराधिप।
पुराना
(सं.) [वि.] 1. जो प्राचीन काल का हो 2. जिसको स्वरूप में आए बहुत दिन हो गए हों 3. जिसका समय अब नहीं रहा हो 4. जिसका रिवाज उठ गया हो 5. जीर्ण 6. बीता हुआ 7.
{ला-अ.} मँजा हुआ; सधा हुआ। [क्रि-स.] 1. पूरा कराना; भरवाना; पूरा करना 2. आटे, अबीर आदि से (चौक या रंगोली) बनवाना 3. इस प्रकार बाँटना कि कोई बिना पाए न रहे
4. अँटाना।
पुरानापन
(सं.) [सं-पु.] पुराना होने का भाव या अवस्था।
पुरानी
(सं.) [वि.] 1. बीती हुई 2. जो नई न हो 3. लंबे समय तक प्रयोग की हुई या व्यवहार में लाई जा चुकी (वस्तु)।
पुराभिलेखागार
(सं.) [सं-पु.] पुरालेखभवन; वह कक्ष या स्थान जहाँ पुराने अभिलेख संगृहीत कर रखे जाते हैं; (आर्काइव्ज़)।
पुरालिपि
(सं.) [सं-स्त्री.] पुरातन काल में प्रचलित लिपि; प्राचीन लिपि।
पुरालिपिविद
(सं.) [वि.] पुरातन काल में प्रचलित लिपि को पढ़ने वाला; प्राचीन लिपि का विशेषज्ञ या ज्ञाता।
पुरालिपिशास्त्र
(सं.) [सं-पु.] वह शास्त्र जिसमें प्राचीन काल की लिपियाँ पढ़ने की कला या विद्या का विवेचन होता है।
पुरालेख
(सं.) [सं-पु.] 1. प्राचीन लिपि में लिखा गया लेख; किसी शिला, भवन सिक्के या स्मृति चिह्न में प्राचीन लिपि पर अंकित किया हुआ लेख 2. पुराने सरकारी लेख।
पुरावती
(सं.) [सं-स्त्री.] महाभारत काल की एक प्राचीन नदी।
पुरावशेषविधि
(सं.) [सं-स्त्री.] पुरावशेषों को भविष्य के लिए सुरक्षित रखने की व्यवस्था करने वाला कानून।
पुरावसु
(सं.) [सं-पु.] देवव्रत; गंगापुत्र भीष्म।
पुरावस्तु
(सं.) [सं-स्त्री.] पुरातात्विक महत्व की वस्तु, जैसे- बहुत पुरानी कला सामग्री, कोई पुरानी अलंकृत रचना, पुरावशेष आदि।
पुराविद
(सं.) [सं-पु.] पुरातत्वज्ञ; (आर्कियोलॉजिस्ट)। [वि.] प्राचीन काल की ऐतिहासिक, सामाजिक तथा सांस्कृतिक बातों को जानने वाला; प्राचीन इतिहास जानने वाला।
पुरावृत्त
(सं.) [सं-पु.] कोई प्राचीन ऐतिहासिक कथा या प्राचीन काल का कोई वृत्तांत; प्राचीन इतिहास; प्राचीन वार्ता।
पुरासिनी
(सं.) [सं-स्त्री.] एक प्रकार की वनौषधि; सहदेई या सहदेवी नाम की जड़ी।
पुरी
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. नगरी 2. हिंदुओं के तीर्थ का संक्षिप्त नाम जगन्नाथपुरी 3. नदी 4. दुर्ग; गढ़ 5. {ला-अ.} शरीर; देह।
पुरु
(सं.) [सं-पु.] 1. स्वर्ग; देव लोक 2. एक चंद्रवंशी राजा, जो ययाति का पुत्र था 3. सिकंदर के आक्रमण के समय पंजाब का राजा 4. एक प्राचीन पर्वत 5. एक दैत्य जो
इंद्र द्वारा मारा गया 6. पराग 7. एक देश का नाम 8. शरीर।
पुरुष
(सं.) [सं-पु.] 1. मानव जाति का नर 2. एक माप की इकाई; पुरसा 3. (व्याकरण) पुरुष वाचक सर्वनाम के भेद प्रथम, मध्यम तथा अन्य पुरुष।
पुरुषक
(सं.) [सं-पु.] 1. सीख-पाँव; घोड़े का पिछले दोनों पैरों पर खड़े हो जाने की स्थिति।
पुरुषत्व
(सं.) [सं-पु.] 1. पुरुष होने की अवस्था, गुण या भाव 2. पुरुष में सामान्य रूप से होने वाले गुण या विशेषताएँ 3. पुंसत्व।
पुरुषसत्ता
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. ऐसी सामाजिक व्यवस्था जो पुरुष प्रधान हो 2. वह सामाजिक व्यवस्था जिसमें सत्ता पूर्णतः पुरुष के हाथ में होती है।
पुरुषांग
(सं.) [सं-पु.] पुरुष की लिंगेंद्रिय; पुरुष का शिश्न; पुरुष की जननेंद्रिय।
पुरुषाकार
(सं.) [वि.] पुरुष के आकार का; पुरुष के समान; पुरुष से मिलता-जुलता।
पुरुषाद
(सं.) [सं-पु.] 1. पुरुषभक्षी; राक्षस 2. वराहमिहिर की वृहत्संहिता के अनुसार एक देश जो आर्द्रा, पुनर्वसु तथा पुष्य नक्षत्र के अधिकार क्षेत्र में माना गया है।
पुरुषाधिकार
(सं.) [सं-पु.] 1. पुरुष का हक 2. पुरुष का प्रभुत्व।
पुरुषार्थ
(सं.) [सं-पु.] 1. (पुराण) वह मुख्य अर्थ, उद्देश्य या प्रयोजन जिसकी प्राप्ति या सिद्धि के लिए मनुष्य का प्रयत्न करना आवश्यक कर्तव्य हो (पुरुषार्थ चार हैं-
धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष) 2. उद्योग; उद्यम।
पुरुषार्थी
(सं.) [वि.] पुरुषार्थ करने वाला; परिश्रमी; उद्योगशील; मेहनतकश; कर्मठ; कर्मशील।
पुरुषेंद्र
(सं.) [सं-पु.] 1. नृप; राजा 2. पुरुषों में श्रेष्ठ; श्रेष्ठ पुरुष।
पुरुषोचित
(सं.) [वि.] जो पुरुषों के लिए उचित हो; जिन (विशेषताओं) का पुरुषों में होना आवश्यक है।
पुरुषोत्तम
(सं.) [सं-पु.] 1. पुरुषों में उत्तम या सर्वश्रेष्ठ 2. ईश्वर; विष्णु; हरि; नारायण 3. अच्छे सेवक या कर्मचारी 4. भारतीय पंचांग में कभी-कभी वर्ष में दो बार आने
वाला महीना; अधिकमास 5. जैनियों के एक वासुदेव का नाम 6. (धर्मशास्त्र) निष्पाप तथा शत्रुता मित्रता के भाव से उदासीन व्यक्ति।
पुरूरवा
(सं.) [सं-पु.] 1. (पुराण) एक प्रसिद्ध चंद्रवंशी राजा जिसका विवाह उर्वशी से हुआ था 2. एक विश्वदेव।
पुरोगामी
(सं.) [वि.] 1. अगुआ; आगे चलने वाला; अग्रगामी 2. उन्नति करता और आगे बढ़ता हुआ 3. किसी विषय में उदार विचार रखने और अग्रसर रहने वाला। [सं-पु.] 1. नायक 2.
कुत्ता 3. अग्रदूत।
पुरोडाश
(सं.) [सं-पु.] 1. यज्ञ में दी जाने वाली आहुति 2. जौ के आटे की टिकिया जिसे कपाल में रखकर मंत्र पढ़कर देवताओं के लिए आहुति दी जाती थी 3. सोमरस।
पुरोधा
(सं.) [सं-पु.] 1. किसी क्षेत्र में अग्रणी 2. पुरोहित।
पुरोहित
(सं.) [सं-पु.] 1. कर्मकांड आदि जानने वाला व्यक्ति जो अपने यजमान के यहाँ मुंडन, यज्ञोपवीत, विवाह आदि संस्कार कराता है तथा ऐसे अवसरों पर उनसे दान, दक्षिणा
आदि लेता है 2. किसी भी जाति या धर्म का वह व्यक्ति जो धार्मिक कृत्य कराता हो।
पुरोहिततंत्र
(सं.) [सं-पु.] पुरोहितों की शासन व्यवस्था; कैथोलिक पादरियों के क्रमानुसार अधिकारियों का वर्ग।
पुरोहितवृत्ति
(सं.) [सं-स्त्री.] धार्मिक कृत्य कराकर आजीविका कमाना; धार्मिक कृत्य कराने का पेशा; पुरोहिताई।
पुरोहिताई
[सं-स्त्री.] पुरोहित का पेशा; पुरोहितवृत्ति।
पुरोहिती
[सं-स्त्री.] पुरोहितवृत्ति; पुरोहिताई। [वि.] पुरोहित का; पुरोहित संबंधी।
पुर्जा
[सं-पु.] दे. पुरज़ा।
पुर्जी
[सं-स्त्री.] 1. कागज़ का छोटा टुकड़ा 2. कागज़ के छोटे टुकड़े पर रुपए या सामान आदि की रसीद; परची।
पुर्तगाली
(पु.) [सं-पु.] यूरोप महाद्वीप में स्थित एक छोटे देश पुर्तगाल में रहने वाला। [सं-स्त्री.] पुर्तगाल की भाषा (पोर्चुगीज़)। [वि.] पुर्तगाल का; पुर्तगाल संबंधी।
पुल
(फ़ा.) [सं-पु.] खाइयों, नदी-नालों, रेल लाइनों आदि के ऊपर आर-पार पाट कर बनाई हुई वह वास्तु रचना जिसपर से होकर गाड़ियाँ और आदमी इधर से उधर आते-जाते हैं;
सेतु; (ब्रिज)। [मु.] तारीफ़ के पुल बाँधना : बहुत अधिक तारीफ़ करना।
पुलक
(सं.) [सं-पु.] 1. हर्ष आदि से रोंगटे खड़े होना; लोमहर्षण; त्वचा में स्फुरण; रोमांच 2. एक प्रकार का खनिज 3. एक रत्न 4. एक रत्नदोष।
पुलकन
(सं.) [सं-स्त्री.] पुलकने की क्रिया या भाव; दुख, हर्ष आदि मनोविकारों की प्रबलता के कारण शरीर में होने वाला अल्पकालिक रोमांच।
पुलकावलि
(सं.) [सं-स्त्री.] हर्ष या प्रेम से उत्पन्न रोमांच; पुलकालि।
पुलकित
(सं.) [वि.] 1. गदगद 2. जिसे रोमांच हुआ हो।
पुलटिस
(इं.) [सं-स्त्री.] हलवे की तरह पकाया हुआ अलसी, आटा आदि जो फोड़े को पकाने या फोड़ने के उद्देश्य से उस पर बाँधा जाता है; दवाओं का मोटा लेप।
पुलपुला
[वि.] जो भीतर से नरम और ढीला हो; पिलपिला।
पुलपुली
[वि.] 1. कमज़ोर 2. कोमल 3. जो भीतर से नरम और ढीली हो।
पुलस्त्य
(सं.) [सं-पु.] 1. (रामायण) एक प्राचीन ऋषि जो रावण के पितामह तथा विश्वश्रवा के पिता थे 2. शिव; महादेव।
पुलह
(सं.) [सं-पु.] 1. शिव 2. ब्रह्मा के मानस पुत्रों और प्रजापतियों में से एक।
पुला
(सं.) [सं-स्त्री.] घंटिका।
पुलाक
(सं.) [सं-पु.] 1. अँकरा; एक प्रकार का मोटा अन्न या कदन्न 2. भात का पिंड; उबला हुआ चावल 3. पुलाव।
पुलाव
(फ़ा.) [सं-पु.] 1. मांस, सब्ज़ियों आदि का चावल के साथ पकाकर तैयार किया गया व्यंजन 2. पकाए हुए नमकीन स्वाद के चावल।
पुलिंद
(सं.) [सं-पु.] 1. जहाज़ का मस्तूल 2. प्राचीन काल की एक असभ्य जाति 3. वह देश जहाँ उक्त जाति बसी थी।
पुलिंदा
(सं.) [सं-पु.] 1. लपेटे हुए कपड़े, कागज़ आदि का छोटा गट्ठा; बंडल; गठरी 2. बाँधे हुए बहुत सारे कागज़। [सं-स्त्री.] ताप्ती की एक सहायक नदी।
पुलिन
(सं.) [सं-पु.] 1. नदी या सागर का रेतीला किनारा; तट 2. नदी में पड़ी हुई रेत; ढूह 3. पानी हटने से निकल आई रेत 4. एक यक्ष का नाम।
पुलिया
[सं-स्त्री.] छोटी नालियों आदि को पार करने के लिए लोहे या लकड़ी से निर्मित छोटा पुल।
पुलिस
(इं.) [सं-स्त्री.] 1. जनता के जान-माल और शांति की रक्षा का प्रबंध करने वाला सरकारी महकमा; उक्त विभाग के लोगों का दल 2. आरक्षी या आरक्षक; सिपाही।
पुलिसिया
[वि.] पुलिस का; पुलिस द्वारा; पुलिस से संबंधित।
पुलोवर
(इं.) [सं-पु.] पूरी बाँहों का स्वेटर।
पुल्कस
(सं.) [सं-पु.] 1. एक संकर जाति 2. ब्राह्मण पुरुष तथा क्षत्रिय स्त्री के संयोग से उत्पन्न जाति।
पुल्लिंग
(सं.) [सं-पु.] 1. पुरुष वाचक 2. पुरुष के चिह्न या लिंग से युक्त 3. (व्याकरण) वह शब्द जो पुरुष जाति या उससे संबंध रखने वाले विशेषणों, क्रियाओं आदि का बोधक
हो; (मैसकुलिन)।
पुश्त
(फ़ा.) [सं-स्त्री.] 1. पीठ; पीछे का भाग 2. पीढ़ी; वंश परंपरा में क्रम से बढ़ने वाला स्थान।
पुश्ता
(फ़ा.) [सं-पु.] 1. पानी की रोक या मज़बूती के लिए दीवार की तरह बनाया हुआ ढालुआँ टीला 2. ऊँची मेड़ 3. किताब की ज़िल्द के पीछे का चमड़ा; पुट्ठा 4. (संगीत) पौने चार
मात्राओं की एक प्रकार की ताल जिसमें तीन आघात होते हैं और एक ख़ाली रहता है।
पुश्तैनी
[वि.] 1. जो कई पीढ़ियों से चला आ रहा हो 2. जो पुरानी पीढ़ी के लोगों के अधिकार में रहा हो 3. पूर्वजों का; पीढ़ी दर पीढ़ी का।
पुष्कर
(सं.) [सं-पु.] 1. सरोवर 2. कमल 3. राजस्थान में अजमेर के पास एक तीर्थ स्थल जहाँ ब्रह्मा का प्रसिद्ध मंदिर है 4. मृदंग, ढोल आदि का मुँह 5. विष्णु 6. सूर्य 7.
मेघों की एक जाति 8. गौतम बुद्ध का एक नाम 9. कुट नामक औषधि 10. पुष्कर मूल 11. भग्नपाद नक्षत्र का एक अशुभ योग।
पुष्करिणी
(सं.) [सं-स्त्री.] छोटा तालाब।
पुष्कल
(सं.) [सं-पु.] 1. अनाज मापने का एक प्राचीन परिमाण, जो चौसठ मुट्ठी का होता था 2. मात्र चार गाँवों से माँग कर लाई गई भिक्षा 3. वरुण का एक पुत्र 4. एक प्रकार
की वीणा 5. एक प्रकार का ढोल 6. एक प्रकार का तंत्रयुक्त पात्र 7. शिव 8. बुद्ध का एक नाम 9. भरत के एक पुत्र का नाम। [वि.] अधिक व प्रचुर मात्रा में 2.
परिपूर्ण 3. उत्तम 4. स्वच्छ; निर्मल।
पुष्ट
(सं.) [वि.] 1. पोषित; जिसका पोषण किया गया हो 2. मज़बूत 3. मोटा।
पुष्टई
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. ताकत की दवा 2. पुष्टता 3. एक प्रकार की औषधि जो शरीर को पुष्ट करने के लिए खाई जाती है।
पुष्टता
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. मज़बूती 2. बलिष्ठता; पुष्ट होने का भाव; तगड़ापन।
पुष्टि
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. पोषण; वृद्धि 2. पुष्ट करने की क्रिया या भाव; मज़बूती; दृढ़ीकरण 3. अभ्युदय 4. सहारा 5. एक योगिनी 6. मत का समर्थन; अनुमोदन 7. वैभव 8. एक
मातृका।
पुष्टिकर्म
(सं.) [सं-पु.] 1. एक प्रकार का अनुष्ठान 2. कही गई बात या काम का समर्थन करते हुए उसकी पुष्टि करना।
पुष्टिका
(सं.) [सं-स्त्री.] सीपी; जल की सीप; सुतही।
पुष्टिकारक
(सं.) [वि.] बलवर्धक; पोषण करने वाला; पुष्ट करने वाला।
पुष्टिदायक
(सं.) [वि.] पुष्टि प्रदान करने वाला; मज़बूती देने वाला।
पुष्टिमार्ग
(सं.) [सं-पु.] वल्लभाचार्य द्वारा चलाया हुआ एक वैष्णव भक्तिमार्ग।
पुष्टीकरण
(सं.) [सं-पु.] किसी कथन, बात या कृत्य को ठीक मानकर उसका किसी उदाहरण, तर्क या प्रमाण से समर्थन या अनुमोदन; (कनफ़र्मेशन)।
पुष्प
(सं.) [सं-पु.] 1. फूल; कुसुम 2. मधु; शहद 3. आँख का एक रोग 4. स्त्री का रज 5. कुबेर का पुष्पक विमान 6. लौंग 7. वाममार्गियों की परिभाषा में खाया जाने वाला
मांस।
पुष्पक
(सं.) [सं-पु.] 1. फूल; पुष्प 2. कुबेर का विमान 3. विषहीन सर्प 4. एक प्राचीन पर्वत 5. एक प्रकार का अंजन 6. एक प्रकार का खंभा जिसके कोने आठ भागों में बँटे
हों।
पुष्पकार
(सं.) [सं-पु.] पुष्प सूत्र के रचयिता।
पुष्पगुच्छ
(सं.) [सं-पु.] फूलों का गुच्छा; गुलदस्ता; (बुके)।
पुष्पज्ञ
(सं.) [सं-पु.] फूलों या पुष्पों का जानकार।
पुष्पदल
(सं.) [सं-पु.] 1. पुष्प की पंखुड़ी 2. पुष्प का समूह; पुष्प वर्ग।
पुष्पन
(सं.) [सं-पु.] खिलना; पुष्पित होना।
पुष्पमाला
(सं.) [सं-स्त्री.] पुष्प से बनी हुई माला; फूल की माला।
पुष्पवती
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. फूलवाली 2. ऋतुमती या रजस्वला स्त्री 3. एक तीर्थ।
पुष्पवाटिका
(सं.) [सं-स्त्री.] पुष्पोद्यान; फुलवारी; फूलों से युक्त छोटा उद्यान।
पुष्पवाण
(सं.) [सं-पु.] 1. फूलों का वाण 2. कामदेव; पुष्पधन्वा; मदन 3. कुश द्वीप का एक पर्वत 4. एक दैत्य।
पुष्पवाहिनी
(सं.) [सं-स्त्री.] (पुराण) एक प्राचीन नदी।
पुष्पवृष्टि
[सं-स्त्री.] बहुत से फूलों की ऊपर से होने वाली या की जाने वाली वर्षा।
पुष्पसार
(सं.) [सं-पु.] 1. फूलों का इत्र 2. फूलों का सुगंधित रस।
पुष्पांजलि
(सं.) [सं-स्त्री.] फूलों से भरी हुई अंजलि जो किसी देवता या महापुरुष को अर्पित की जाती है; अंजलि में रखे हुए फूल।
पुष्पांबुज
(सं.) [सं-पु.] पुष्प रस; मकरंद; पुष्पसार।
पुष्पागम
(सं.) [सं-पु.] वसंत ऋतु।
पुष्पाग्र
(सं.) [सं-पु.] बीजकोष; गर्भकेशर।
पुष्पाजीव
(सं.) [सं-पु.] माली; बागवान; पुष्पोपजीवी; एक जाति विशेष।
पुष्पानन
(सं.) [सं-पु.] 1. एक यक्ष 2. एक प्रकार की शराब।
पुष्पाभिषेक
(सं.) [सं-पु.] 1. पुष्प से सुसज्जित 2. पुष्य नक्षत्र में किया जाने वाला पुण्य स्नान।
पुष्पायुध
(सं.) [सं-पु.] पुष्पधन्वा; कामदेव; रतिपति।
पुष्पासार
(सं.) [सं-पु.] पुष्पवृष्टि; फूलों की वर्षा।
पुष्पास्तरण
(सं.) [सं-पु.] 1. फूल बिखेरने की क्रिया या भाव 2. शय्या पर पुष्प सज्जा या पुष्प बिछाने का काम।
पुष्पास्त्र
(सं.) [सं-पु.] कामदेव; पुष्पायुध।
पुष्पिका
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. दाँत का मैल 2. लिंग का मैल 3. किसी ग्रंथ या संस्कृत नाटक आदि में अध्याय या अंक आदि का समापक वाक्य जिसमें प्रतिपाद्य की समाप्ति की
सूचना तथा लेखक आदि के नाम, रचना काल आदि का उल्लेख रहता है।
पुष्पित
(सं.) [वि.] 1. पुष्पों से युक्त 2. विकसित; खिला हुआ; जिसमें फूल लगे हों।
पुष्पिता
(सं.) [वि.] ऋतुमती; रजस्वला (स्त्री)।
पुष्पेषु
(सं.) [सं-पु.] कामदेव।
पुष्पोद्यान
(सं.) [सं-पु.] बाग; फुलवारी।
पुष्य
(सं.) [सं-पु.] 1. एक नक्षत्र 2. पुष्टि; पोषण 3. पूस (दिसंबर और जनवरी के मध्य) का महीना 4. फूल 5. कलिकाल।
पुष्यमित्र
(सं.) [सं-पु.] मगध में मौर्य शासन समाप्त करके शुंगवंशीय राज्य स्थापित करने वाला एक प्रतापी राजा।
पुस्त
(सं.) [सं-पु.] 1. हाथ से लिखी हुई किताब या पोथी 2. शिल्पकारी; रचना कौशल 3. मिट्टी, लोहे, लकड़ी आदि पर की जाने वाली कारीगरी।
पुस्तक
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. किताब 2. लिखी हुई पोथी; ग्रंथ।
पुस्तकाकार
(सं.) [वि.] जो पुस्तक के आकार या रूप में हो।
पुस्तकालय
(सं.) [सं-पु.] वह भवन जहाँ पुस्तकें अध्ययन के लिए एकत्र की जाती हैं; वह स्थान जहाँ विभिन्न विषयों की पुस्तकें संगृहीत हों; (लाइब्रेरी)।
पुस्तकालयाध्यक्ष
(सं.) [सं-पु.] पुस्तकालय का प्रधान अधिकारी; (लाइब्रेरियन)।
पुस्तकीय
(सं.) [वि.] 1. पुस्तक संबंधी 2. पुस्तक से प्राप्त होने वाला; पुस्तक में वर्णित 3. {ला-अ.} जो व्यावहारिक न हो (कार्य या व्यवहार); केवल किताबी (ज्ञान)।
पुस्तिका
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. छोटी पुस्तक 2. पत्रिका।
पुस्ती
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. पांडुलिपि; हाथ की लिखी पुस्तक 2. किताब।
पूँछ
(सं.) [सं-स्त्री.] जंतुओं, पक्षियों, कीड़ों आदि के शरीर में सबसे अंतिम या पिछला भाग जिसे दुम या पुच्छ कहा जाता है।
पूँजी
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. संचित धन; जमा किया हुआ धन 2. मूलधन; अधिक धन कमाने हेतु व्यवसाय में लगाया हुआ अथवा ऋण (कर्ज़) के रूप में लगाया गया धन; (कैपिटल)।
पूँजीगत
[वि.] पूँजी पर आधारित; पूँजी-व्यय से संबद्ध।
पूँजीपति
[सं-पु.] 1. धनी; धनवान 2. लाभ के ही उद्देश्य से किसी उद्योग का संचालन करने वाला या विभिन्न धंधों में पैसा लगाने वाला धनी व्यक्ति।
पूँजीवाद
(सं.) [सं-पु.] 1. एक ऐसी आर्थिक व्यवस्था जिसमें निजी उद्योगों को बढ़ावा दिया जाता है 2. एक ऐसी आर्थिक राजनीतिक व्यवस्था जिसमें उद्योग-व्यवस्था का नियंत्रण
राज्य के हाथों में न होकर निजी क्षेत्र के हाथों में होता है जिसका मुख्य उद्देश्य मुनाफ़ा कमाना होता है।
पूँजीवादी
[सं-पु.] पूँजीवाद के सिद्धांत का समर्थक या अनुयायी।
पूग
(सं.) [सं-पु.] 1. सुपारी का पेड़ या फल 2. कटहल 3. शहतूत का पेड़ 4. किसी विशेष कार्य या व्यापार के लिए बना हुआ संघ 5. समूह; ढेर।
पूछ
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. आदर; इज़्ज़त; सम्मान 2. पूछने या पूछे जाने की क्रिया या भाव; जिज्ञासा।
पूछताछ
[सं-स्त्री.] 1. किसी बात का पता लगाने के लिए लोगों से प्रश्न करना या पूछना 2. ख़ोजबीन करना 3. मालूमात के लिए सवाल-जवाब करना; (इनक्वाइरी)।
पूछना
[क्रि-स.] 1. जिज्ञासा शांत करने के लिए बात करके जानकारी लेना 2. किसी बात को जानने के लिए बात करना 3. ख़ोज-ख़बर लेना 4. प्रश्न करना 5. {ला-अ.} आदर या सम्मान
करना। [मु.] बात न पूछना : उपेक्षा करना; तुच्छ समझकर ध्यान न देना।
पूजक
(सं.) [वि.] पूजा करने वाला; पूजने वाला।
पूजन
(सं.) [सं-पु.] 1. पूजने की क्रिया 2. देवी, देवता की आराधना या वंदना 3. आदर 4. {ला-अ.} खाद्य पदार्थ ग्रहण, जैसे- पेट पूजा 5. {ला-अ.} पिटाई।
पूजना
(सं.) [क्रि-स.] 1. पत्र, पुष्प, गंध, फल, जल इत्यादि समर्पित करके ईश्वर या किसी विशिष्ट देवता का ध्यान करना; देवी देवताओं को प्रसन्न करने के उद्देश्य से
उनकी पूजा-अर्चना करना 2. किसी को परम श्रद्धा, भक्ति और आदर की दृष्टि से देखना तथा उसका सेवा-सत्कार करना। [क्रि-अ.] पूरा होना; पूर्ति होना; पूर्ण होना।
पूजनीय
(सं.) [वि.] 1. पूजा करने के योग्य 2. अर्चनीय 3. आदरणीय 4. आदर, श्रद्धा आदि के योग्य।
पूजबंद
(फ़ा.) [सं-पु.] जानवरों के मुँह पर बाँधने की जाली; लगामी।
पूजा
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. किसी देवी-देवता पर विनय, श्रद्धा और समर्पण के भाव के साथ जल, फूल, फल, अक्षत आदि चढ़ाने का धार्मिक कृत्य 2. अर्चन; पूजन 3. बहुत अधिक
आदर-सत्कार; आव-भगत 4. {ला-अ.} संतुष्ट करने के लिए दिया गया धन आदि; घूस।
पूजागृह
(सं.) [सं-पु.] 1. देवालय; मंदिर 2. वह घर जिसमें पूजा की जाती है।
पूजाघर
(सं.) [सं-पु.] 1. घरों में पूजा करने का कक्ष; पूजास्थल 2. मंदिर।
पूजापद्धति
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. पूजा करने की विधि 2. वह पुस्तक जिसमें पूजा करने की विधि का उल्लेख हो।
पूजार्ह
(सं.) [वि.] पूजा करने के योग्य; अर्चनीय; पूजनीय; मान्य।
पूजास्थल
(सं.) [सं-पु.] 1. पूजा करने का स्थान 2. पूजागृह; देवालय
पूजित
(सं.) [वि.] 1. अर्चित; जिसकी पूजा की गई हो 2. जिसका सम्मान किया गया हो।
पूजिता
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. पूजी जाने वाली; वंदनीया 2. श्रद्धेय स्त्री।
पूज्य
(सं.) [सं-पु.] पूजनीय व्यक्ति। [वि.] पूजा करने के योग्य; अर्चनीय; वंदनीय; पूजनीय।
पूज्यता
(सं.) [सं-स्त्री.] पूजे जाने योग्य होना; पूज्य होने की अवस्था या भाव।
पूज्यपाद
(सं.) [वि.] 1. परम पूज्य और मान्य 2. जिसके पैर पूजे जाने योग्य हों।
पूड़ी
[सं-स्त्री.] 1. वह रोटी जो गेहूँ के आटे से घी या तेल में तलकर बनाई जाती है; पूरी 2. वह चमड़ा जिससे तबला या मृदंग मढ़ा जाता है; तबले या मृदंग पर चढ़ा हुआ गोल
चमड़ा।
पूत
(सं.) [सं-पु.] 1. बेटा; पुत्र 2. शंख 3. पलास 4. श्वेत कुश 5. जलाशय 6. भूसी निकाला हुआ अन्न। [वि.] 1. पवित्र; पवित्र किया हुआ 2. भूसी निकाल कर साफ़ किया हुआ
(अन्न)।
पूतना
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. (पुराण) एक प्रसिद्ध राक्षसी जो कृष्ण को मारना चाह रही थी 2. दानवी; राक्षसी 3. बच्चों का एक क्षुद्ररोग 4. सुगंधित जटामासी; गंधमासी 5.
(पुराण) कार्तिकेय की एक अनुचरी; एक मातृका 6. पीली हरड़।
पूतनिका
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. एक राक्षसी; पूतना 2. एक प्रकार का बालरोग।
पूता
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. दुर्गा; शक्ति 2. एक प्रकार की दूब घास। [वि.] (स्त्रीलिंग शब्दों के साथ प्रयुक्त) शुद्ध; पवित्र; निर्मल।
पूतात्मा
(सं.) [सं-पु.] विष्णु; त्रिविक्रम; उरुगाय। [वि.] शुद्ध अंतःकरण का।
पूति
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. दुर्गंध 2. घाव की सड़ांध; मवाद; (सेप्टिक) 3. गंध-मार्जार नामक पशु।
पूतिक
(सं.) [सं-पु.] 1. दुर्गंध करंज; पूति करंज 2. विष्ठा; पाख़ाना। [वि.] बदबूदार; दुर्गंधयुक्त।
पूतिका
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. पोई का साग 2. बिल्ली 3. एक प्रकार की मधुमक्खी।
पूती
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. गाँठ के रूप में होने वाली पौधों की जड़; गाँठ 2. लहसुन आदि की गाँठ।
पूतीकरंज
(सं.) [सं-पु.] दुर्गंध करंज; गंध मार्जार नामक पशु।
पूतीका
(सं.) [सं-स्त्री.] दे. पूतिका।
पूत्कारी
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. सरस्वती 2. नागलोक की राजधानी।
पूथिका
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. पोई नामक पौधा 2. पोई नामक पौधे की पत्ती।
पूनम
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. जिस दिन आकाश में चंद्रमा अपनी पूर्ण कलाओं में रहता है और पूरा दिखाई देता है; एक तिथि; पूर्णिमा; पूर्णमासी 2. शुक्ल पक्ष का अंतिम दिन।
पूनसलाई
[सं-स्त्री.] लोहे की वह पतली सींक जिसपर धुनी हुई रुई लपेट कर पूनी बनाते हैं।
पूनी
(सं.) [सं-स्त्री.] रुई की बनी वह बत्ती जो चरखे पर सूत कातने के लिए लगाई जाती है।
पूप
(सं.) [सं-पु.] एक तरह की मीठी पूरी; एक प्रकार का पकवान; पुआ।
पूय
(सं.) [सं-पु.] घाव का पीव; मवाद।
पूयन
(सं.) [सं-पु.] 1. किसी प्राणी या वनस्पति के किसी अंग का इस प्रकार सड़ना कि उसमें से दुर्गंध आने लगे; सड़न 2. मवाद; पीव।
पूयोद
(सं.) [सं-पु.] एक नरक का नाम।
पूर
[सं-पु.] 1. कोई काम पूरा करने की क्रिया या भाव 2. कचौरी, समोसे, गुझिया आदि पकवानों में भरे जाने वाले मसाले 3. नदी की तेज़ धारा 4. समूह; ढेर।
पूरक
(सं.) [सं-पु.] (योग) एक प्रकार का प्राणायाम जिसमें नाक के बाएँ छेद से प्राणवायु को धीरे-धीरे भीतर पहुँचाते हैं। [वि.] पूरा करने वाला; तुष्ट करने वाला।
पूरण
(सं.) [सं-पु.] 1. पूर्ण करने की क्रिया या भाव 2. भरने की क्रिया 3. एक प्रकार की रोटी 4. बाँध 5. किसी संख्या की पूर्ति 6. पुनर्नवा नामक औषधीय पौधा 7. मृत्यु
से दसवें दिन मृतक को दिया जाने वाला पिंड। [वि.] पूर्ण करने वाला।
पूरणीय
(सं.) [वि.] 1. पूर्ण किए जाने योग्य 2. भरे जाने योग्य।
पूरन
[सं-पु.] उबाले जाने के बाद सिल पर पिसी हुई चने या मटर की दाल। [वि.] पूर्ण।
पूरनपूरी
[सं-स्त्री.] एक प्रकार की मीठी पूरी जो उबली और घोंटी हुई चने की दाल में गुड़ या चीनी मिलाकर रोटी में भर कर पराठे की तरह सेक कर बनाई जाती है; पूरनपोली।
पूरना
(सं.) [क्रि-स.] 1. पूरा करना; पूर्ति करना 2. भरना 3. आच्छादित करना; ढकना 4. कमी या त्रुटि दूर करना 5. मांगलिक अवसरों पर दीवारों और फ़र्श पर मंगल चिह्न या
चॉक बनाने की क्रिया।
पूरब
(सं.) [सं-पु.] 1. सूर्योदय की दिशा 2. पूर्व दिशा; प्राची 3. पश्चिम के सामने की दिशा।
पूरबी
[सं-पु.] 1. (संगीत) एक प्रकार का दादरा 2. एक प्रकार का तंबाकू। [सं-स्त्री.] (संगीत) एक रागिनी। [वि.] पूरब का; पूरब संबंधी।
पूरयिता
(सं.) [सं-पु.] पूर्णकर्ता; पूरक। [वि.] 1. पूरा करने वाला 2. संतुष्ट करने वाला।
पूरा
(सं.) [वि.] 1. पूरी तरह से भरा हुआ; परिपूर्ण 2. समग्र; समूचा; सारा; कुल; यथेष्ट; भरपूर। [मु.] -पाना : यथेष्ट फल या सुख पाना। -उतरना : जैसा चाहिए वैसा होना।
पूरित
(सं.) [वि.] 1. पूरा किया हुआ; परिपूर्ण; लबालब 2. गुणित; गुणा किया हुआ 3. तृप्त।
पूरी
[सं-स्त्री.] 1. आटे या मैदे की छोटी रोटी जो घी या तेल में तली गई हो 2. घास आदि का बँधा हुआ छोटा पूला या गट्ठर; पूली।
पूर्ण
(सं.) [वि.] 1. जो पूरी तरह से भरा हुआ हो 2. सब प्रकार की यथेष्टता के कारण जिसमें कुछ भी अपेक्षा, अभाव या आवश्यकता न रह गई हो; सब; पूरा; सारा; समस्त 3. हर
तरह से ठीक और पूरा 4. जो अपनी अवधि या सीमा के सिरे या अंत पर पहुँच गया हो।
पूर्णक
(सं.) [सं-पु.] 1. देवताओं की एक योनि 2. मुरगा; कुक्कुट 3. एक वृक्ष 4. चाष पक्षी।
पूर्णकाम
(सं.) [सं-पु.] ईश्वर; परमेश्वर। [वि.] जिसकी कामनाएँ पूरी हो चुकी हों।
पूर्णकालिक
(सं.) [वि.] 1. जो पूरे समय तक काम करे 2. पूरे समय से जिसका संबंध हो 3. जो पूरे समय के लिए नियुक्त किया गया हो।
पूर्णघट
(सं.) [सं-पु.] जल से भरा हुआ घड़ा जो मांगलिक और शुभ माना जाता है।
पूर्णतः
(सं.) [अव्य.] पूर्ण रूप से; अच्छी तरह; सम्यक।
पूर्णतया
(सं.) [क्रि.वि.] पूरी तरह से; पूर्ण रूप से।
पूर्णता
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. सब प्रकार से पूर्ण होने की अवस्था या भाव; पूरापन 2. त्रुटियों या दोषों से रहित होने की स्थिति या भाव; त्रुटिहीनता; निर्दोषता 3. किसी
विषय में प्रवीणता, निपुणता या दक्षता।
पूर्णमास
(सं.) [सं-पु.] 1. चंद्रमा 2. पूर्णिमा को किया जाने वाला यज्ञ।
पूर्णमासी
(सं.) [सं-स्त्री.] चंद्र मास की अंतिम तिथि जिसमें चंद्रमा अपनी सभी कलाओं से पूर्ण होता है; पूर्णिमा; पूनो; पूनम।
पूर्णरूप
(सं.) [वि.] पूर्ण रूप या आकार वाला।
पूर्णरूपेण
(सं.) [अव्य.] पूर्णतया; पूर्ण रूप से; अच्छी तरह; सम्यक प्रकारेण।
पूर्णविराम
(सं.) [सं-पु.] 1. पूर्णतः रुक जाने की क्रिया या भाव; शब्द, पद या वाक्य की समाप्ति या ठहराव का सूचक चिह्न 2. वाक्य की समाप्ति पर लगने वाली खड़ी पाई (।)।
[वि.] पूर्ण रूप से रुक जाने वाला; पूर्ण रूप से समाप्त होने वाला।
पूर्णा
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. (ज्योतिष) एक विशेष संज्ञक तिथि; पंचमी, दशमी, पूर्णिमा तथा अमावस की तिथियाँ; चंद्रमा की पंद्रहवीं कला 2. दक्षिण भारत की एक नदी।
पूर्णांक
(सं.) [सं-पु.] 1. किसी परीक्षा में पूर्ण प्रश्नपत्र हेतु निर्धारित अंक 2. पूरी संख्या 3. अविभक्त संख्या।
पूर्णांग
(सं.) [सं-पु.] 1. संपूर्ण अंग 2. सभी अंगों के पूर्ण होने की अवस्था।
पूर्णाघात
(सं.) [सं-पु.] (संगीत) ताल में एक विशेष स्थान, जो अनाघात के उपरांत एक मात्रा के बाद आता है, कभी-कभी वह स्थान सम का भी काम कर देता है।
पूर्णाधिवेशन
(सं.) [सं-पु.] किसी सभा, संस्था या संगठन का वह अधिवेशन जिसमें उसके सभी सदस्य सम्मिलित होते हैं; (प्लेनरी सेशन)।
पूर्णानंद
(सं.) [सं-पु.] 1. पूर्ण आनंद 2. ईश्वर; परमात्मा; परमेश्वर।
पूर्णाभिषेक
(सं.) [सं-पु.] 1. पूर्ण रूप से अभिषिक्त; पूर्ण रूप से सुसज्जित; महाभिषेक 2. वाममार्गियों का एक तांत्रिक संस्कार जो किसी नए साधक का (गुरु के द्वारा दीक्षा
प्रदान करते समय) किया जाता है।
पूर्णायु
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. किसी की जन्म से मृत्यु तक की संपूर्ण आयु 2. मान्यतानुसार सौ या एक सौ बीस वर्ष की आयु। [वि.] पूरी आयु वाला; सौ या सौ से अधिक वर्ष की
आयु वाला।
पूर्णावधि
(सं.) [सं-स्त्री.] पूरी अवधि।
पूर्णावस्था
(सं.) [सं-पु.] पूर्ण-अवस्था; अंशावस्था से भिन्न ऐसी अवस्था जो पूर्ण हो।
पूर्णाहुति
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. किसी अनुष्ठान या संस्कार की समाप्ति पर किया जाने वाला हवन या अग्नि में दी जाने वाली आहुति; होम कर्म की अंतिम आहुति 2. किसी कार्य का
वह अंश जिससे वह पूर्णता को प्राप्त हो 3. {ला-अ.} किसी कार्य की समाप्ति पर होने वाला अंतिम कृत्य।
पूर्णिमा
(सं.) [सं-स्त्री.] चंद्र-मास के शुक्ल पक्ष की अंतिम तिथि जिसमें चंद्रमा अपने पूरे आकार में उदित होता है; पूर्णमासी।
पूर्णोपमा
(सं.) [सं-स्त्री.] (काव्यशास्त्र) उपमा अलंकार का एक भेद जिसमें उपमा अलंकार के चारों अंग उपमेय, उपमान, वाचक तथा साधारण धर्म विद्यमान होते हैं।
पूर्ति
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. पूरा करने की क्रिया; पूर्णता 2. तृप्ति; संतुष्टि 3. गुणा करना 4. आवश्यकता को पूर्ण करने का भाव; कमी पूरा करना।
पूर्तिकर्ता
(सं.) [सं-पु.] 1. किसी सामान की आपूर्ति करने वाला व्यक्ति; पूरयिता 2. माँग के अनुसार वस्तुओं की पूर्ति करने वाला व्यक्ति; (सप्लायर)। [वि.] आपूर्ति करने
वाला।
पूर्व
(सं.) [सं-पु.] एक दिशा जहाँ से सूर्योदय होता है। [वि.] 1. प्रथम; पहला 2. जो किसी से पहले आया या बना हो 3. वर्तमान समय से पहले का 4. पुराना; प्राचीन।
पूर्वक
(सं.) [परप्रत्य.] शब्दों के अंत में जुड़कर साथ या सहित का अर्थ देने वाला प्रत्यय, जैसे- कुशलतापूर्वक।
पूर्वकथा
(सं.) [सं-स्त्री.] किसी पत्रिका या टेलीविज़न पर आने वाली किसी धारावाहिक कथा की कई कड़ियों में अगली कड़ी की कथा कहने या दिखाने के पूर्व दिखाई या कही गई कथा
का सारांश।
पूर्वकथित
(सं.) [वि.] जिसका कथन पहले हो चुका हो।
पूर्वकल्पना
(सं.) [सं-स्त्री.] प्राक्कल्पना; पूर्वधारणा; (हाइपॉथसिस)। [वि.] किसी योजना की रूपरेखा एवं उद्देश्य के पूर्व की कल्पना।
पूर्वकल्पित
(सं.) [वि.] 1. पहले सोचा हुआ 2. पहले ही मन में गढ़ा हुआ 3. पहले ही मन में सजाया हुआ।
पूर्वकाल
(सं.) [सं-पु.] 1. बीता हुआ समय 2. पहले का समय; प्राचीन काल; पुराना ज़माना।
पूर्वकालिक
(सं.) [वि.] 1. पूर्वकाल जात; पूर्वकाल संबंधी; प्राचीन 2. (व्याकरण) क्रिया का एक भेद।
पूर्वगामी
(सं.) [वि.] पहले जाने वाला; जो पहले चला गया हो।
पूर्वग्रह
(सं.) [सं-पु.] 1. किसी विषय के संबंध में वह आग्रहपूर्ण धारणा जो पहले से बिना सोचे-समझे मन में स्थिर कर ली गई हो 2. किसी व्यक्ति या वस्तु के लिए पहले से
झुकाव; पक्षपात।
पूर्वचर्चित
(सं.) [वि.] जिसकी चर्चा पहले हुई हो, जिसपर पहले बात-चीत हो चुकी हो।
पूर्वज
(सं.) [सं-पु.] 1. परबाबा, बाबा, दादा आदि पुरखे 2. बड़ा भाई; अग्रज। [वि.] जिसकी उत्पत्ति या जन्म पहले हुआ हो; अपने से पूर्व का जन्मा हुआ।
पूर्वजन्म
(सं.) [सं-पु.] वर्तमान जन्म से पहले का कोई जन्म; पिछला कोई जन्म।
पूर्वज्ञान
(सं.) [सं-पु.] 1. पूर्वार्जित या पहले का ज्ञान 2. आत्मिक शक्ति की सहायता से ऐसी घटनाओं या बातों का पहले से ही परिज्ञान हो जाना जो भविष्य में कभी घटित होने
को हों।
पूर्वज्ञानी
(सं.) [सं-पु.] वह जिसे पूर्वज्ञान (भविष्य में होने वाली घटना का पूर्वाभास) होता हो।
पूर्वतर
(सं.) [वि.] 1. पहला 2. पूर्व या पहले का 3. पूर्व और पूर्वतम के मध्य का।
पूर्वतिथि
(सं.) [सं-स्त्री.] किसी कार्य हेतु निर्धारित तिथि से पहले की तिथि।
पूर्वदत्त
(सं.) [वि.] पहले का दिया हुआ; जो पहले ही चुका दिया गया हो।
पूर्वनिर्मित
(सं.) [वि.] जो पहले निर्मित हो चुका हो; पहले बना हुआ।
पूर्वपक्ष
(सं.) [सं-पु.] 1. चंद्रमास का कृष्ण पक्ष 2. किसी विषय के बारे में उठाई हुई चर्चा, शंका या प्रश्न जिसका किसी को उत्तर देना या समाधान करना पड़े 3. अभियोग,
व्यवहार आदि में वादी की प्रतिज्ञा या नालिश; मुद्दई की फ़रियाद।
पूर्वपद
(सं.) [सं-पु.] 1. पहला स्थान 2. (व्याकरण) समास में प्रथम पद, जैसे- माता-पिता में 'माता'।
पूर्वपीठिका
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. वह अवस्था जिसके पहले या सामने कोई स्थिति या रूप खड़ा हो; किसी कथा का पूर्व भाग; भूमिका 2. पुस्तक का प्रारंभिक अध्याय।
पूर्वपुरुष
(सं.) [सं-पु.] पुरखा; पूर्वज; दादा-परदादा।
पूर्वप्रदर्शित
(सं.) [वि.] जिसका प्रदर्शन पहले हो चुका हो।
पूर्वरंग
(सं.) [सं-पु.] नाटक शुरू होने से पहले की जाने वाली स्तुति; नांदी पाठ।
पूर्वराग
(सं.) [सं-पु.] प्रिय को देखे बिना उसके रूप, गुण आदि को सुनकर उसके प्रति नायक या मन में उत्पन्न हुआ अनुराग।
पूर्वरूप
(सं.) [सं-पु.] 1. वह रूप जो पहले रहा हो 2. (व्याकरण) संधि का एक भेद 3. (काव्यशास्त्र) एक अलंकार जिसमें किसी व्यक्ति या वस्तु आदि के विशिष्ट गुण, रूप, वैभव
आदि के फिर से लौट आने का उल्लेख होता है।
पूर्वलक्षित
(सं.) [वि.] जिसका संकेत वर्तमान से पहले किया गया हो; पूर्व संकेतित।
पूर्ववत
[अव्य.] पहले की तरह; उसी प्रकार या पूर्व के ही अनुसार; ज्यों का त्यों।
पूर्ववर्ती
(सं.) [वि.] 1. जो पूर्व में हो चुका हो 2. पहले वाला।
पूर्ववृत्त
(सं.) [सं-पु.] 1. पहले की घटनाओं का विवरण 2. पहले का चरित्र या आचरण 3. पुराना वृत्तांत 4. इतिहास।
पूर्वव्यापित
(सं.) [वि.] जिसका प्रभाव बीते हुए समय के कार्यों, व्यवस्थाओं पर भी पड़ता हो (आदेश, नियम या निश्चय)।
पूर्वसंध्या
[सं-स्त्री.] किसी दिन विशेष के पहले वाले दिन की संध्या; (ईव)।
पूर्वसूचक
(सं.) [सं-पु.] भविष्य में घटने वाली किसी घटना की पहले ही सूचना या पूर्वाभास देने वाला, जैसे- घिरे हुए काले बादल वर्षा के पूर्वसूचक हैं।
पूर्वसूचना
(सं.) [सं-स्त्री.] किसी कार्य या घटना की पहले ही ख़बर; किसी घटना के विषय में पहले से ही जानकारी।
पूर्वा
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. पूर्व दिशा 2. नक्षत्र विशेष (पूर्वाषाढ़ा, पूर्वा फाल्गुनी आदि) 3. राजाओं की प्रशस्ति।
पूर्वांचल
(सं.) [सं-पु.] किसी देश या क्षेत्र का पूर्व का हिस्सा; पूर्व का अंचल।
पूर्वाग्रह
(सं.) [सं-पु.] कार्य, व्यवस्था, ज्ञान या व्यक्ति आदि के विषय में पहले से ही बनी हुई कोई विशेष धारणा; किसी के विषय में अच्छी या बुरी धारणा बना लेना।
पूर्वाग्रही
(सं.) [वि.] 1. पहले से ही बिना किसी आधार के किसी के प्रति कुछ भी धारणा बना लेने वाला 2. जो पहले से ही दुराग्रह से ग्रस्त हो 3. पक्षपातपूर्ण।
पूर्वाचल
(सं.) [सं-पु.] पूर्व दिशा का पर्वत; पूर्वाद्रि; उदयाचल।
पूर्वाधिक
(सं.) [वि.] पहले से अधिक मात्रा, संख्या या परिमाणवाला।
पूर्वाधिकारी
(सं.) [सं-पु.] 1. जो व्यक्ति पहले अधिकारी के रूप में रहा हो 2. संपत्ति का वह स्वामी या अधिकारी जो उसके वर्तमान अधिकारी से पहले रहा हो।
पूर्वानिल
(सं.) [सं-पु.] ऐसी हवा जो पूरब दिशा से पश्चिम दिशा की ओर बह रही हो; पुरवा, पुरवैया।
पूर्वानुमति
(सं.) [सं-स्त्री.] किसी कार्य को करने के लिए अधिकारी से पहले से ली जाने वाली अनुमति।
पूर्वानुमान
(सं.) [सं-पु.] किसी कार्य या घटना के विषय में पहले से किया जाने वाला अनुमान; पूर्वकल्पना, जैसे- मौसम, फ़सल, जनसंख्या आदि का पहले से किया गया अनुमान।
पूर्वानुमित
(सं.) [सं-पु.] जिसका पहले से अनुमान या आकलन कर लिया गया हो।
पूर्वापर
(सं.) [सं-पु.] 1. आगा-पीछा 2. प्रमाण और प्रमेय। [वि.] अगला और पिछला।
पूर्वापेक्षा
(सं.) [सं-स्त्री.] पहले से की हुई अपेक्षा। [क्रि.वि.] पहले की तुलना में; पहले की अपेक्षा।
पूर्वाभास
(सं.) [सं-पु.] किसी घटना के घटित होने के पहले होने वाला आभास।
पूर्वाभिमुख
(सं.) [वि.] जिसका मुख (रुख) पूरब दिशा की ओर हो। [क्रि.वि.] पूरब की ओर; पूर्व की ओर मुँह करके।
पूर्वाभ्यास
(सं.) [सं-पु.] किसी कार्य के लिए पहले से अभ्यास करना; (रिहर्सल)।
पूर्वार्ध
(सं.) [सं-पु.] 1. किसी कार्य को दो भागों में बाँटने पर पहला भाग 2. 'उत्तरार्ध' का विपरीत।
पूर्वावलोकन
(सं.) [सं-पु.] कार्य के पूर्ण होने बाद की गई समीक्षा।
पूर्वाश्रम
(सं.) [सं-पु.] 1. प्रथम आश्रम 2. ब्रह्मचर्य आश्रम; अन्य आश्रम में प्रवेश से पूर्व का आश्रम, जैसे- अमुक संन्यासी पूर्वाश्रम (गृहस्थाश्रम) में डॉक्टर थे।
पूर्वाषाढ़ा
(सं.) [सं-पु.] नक्षत्र मंडल का बीसवाँ नक्षत्र जिसमें दो तारे होते हैं और जिसका आकार सूप जैसा और अधिष्ठाता देवता को जल माना गया है।
पूर्वाह्न
(सं.) [सं-पु.] दिन का पहला भाग; सवेरे से दोपहर तक का समय।
पूर्वी
(सं.) [वि.] पूरब का; पूर्व दिशा संबंधी।
पूर्वोक्त
(सं.) [वि.] जिसका ज़िक्र पहले आ चुका हो, जो पहले कहा जा चुका हो।
पूर्वोत्तर
(सं.) [सं-पु.] किसी देश का पूर्वोत्तर क्षेत्र; पूर्वोत्तर इलाका। [वि.] 1. पूरबी-उत्तरी 2. पूर्व और उत्तर के बीच की दिशा; ईशान कोण।
पूर्वोल्लिखित
(सं.) [वि.] जिसका उल्लेख पहले हो चुका हो।
पूल1
(सं.) [सं-पु.] पूला, तृण, घास आदि का ढेर या बँधा हुआ गट्ठर।
पूल2
(इं.) [सं-पु.] 1. पानी से भरा हुआ गड्ढा 2. तालाब 3. एक बड़ी मेज़ पर खेला जाने वाला एक खेल।
पूला
(सं.) [सं-पु.] घास-फूस का बँधा गट्ठर; पूल; पूलक।
पूलिका
(सं.) [सं-स्त्री.] एक प्रकार की मीठी पूरी; छोटा पुआ।
पूषक
(सं.) [सं-पु.] 1. शहतूत का पेड़ 2. शहतूत का फल।
पूषण
(सं.) [सं-पु.] 1. सूर्य 2. बारह आदित्यों में से एक 3. एक वैदिक देवता।
पूषात्मज
(सं.) [सं-पु.] 1. इंद्र 2. बादल; मेघ।
पूस
(सं.) [सं-पु.] 1. वह चांद्र-मास जो अगहन के बाद पड़ता है 2. पौष माह।
पृक्का
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. असवर्ग नाम का एक गंध द्रव्य 2. एक प्रकार का शाक।
पृच्छक
(सं.) [वि.] प्रश्न पूछने वाला; जिज्ञासु।
पृच्छन
(सं.) [सं-पु.] पूछने की क्रिया या भाव; पूछना।
पृच्छा
(सं.) [सं-स्त्री.] प्रश्न; सवाल; भविष्य संबंधी प्रश्न।
पृथक
(सं.) [वि.] अलग; भिन्न किया हुआ; जुदा किया हुआ।
पृथकतावादी
(सं.) [वि.] पृथकतावाद के सिद्धांत में विश्वास रखने वाला; संबंध विच्छेद नीति का समर्थक; अलगाववादी।
पृथकतासूचक
(सं.) [सं-पु.] संबंध विच्छेद नीति का संकेतक; वह जिसके द्वारा पृथकता या विच्छेद का पूर्वाभास मिलता है।
पृथक्करण
(सं.) [सं-पु.] 1. अलग करने की क्रिया या भाव; अलगाव; विश्लेषण 2. दो क्षेत्रों, विभागों आदि के तालमेल को समाप्त करके अलग करना; (सेपरेशन)।
पृथक्कारक
(सं.) [वि.] 1. एक को दूसरे से भिन्न करने वाला 2. एक को दूसरे से भिन्न बताने वाला (गुण, स्वभाव या स्थिति)।
पृथा
(सं.) [सं-स्त्री.] (महाभारत) राजा कुंतिभोज की कन्या कुंती जो पांडु की पत्नी तथा पांडवों की माता थी।
पृथिका
(सं.) [सं-स्त्री.] गोजर नामक जीव; कनखजूरा; कनगोजर।
पृथी
(सं.) [सं-पु.] 1. (पुराण) पृथु नामक एक राजा। [सं-स्त्री.] पृथ्वी।
पृथु
(सं.) [वि.] 1. महान; बड़ा 2. विस्तीर्ण 3. बहुत अधिक 4. चतुर। [सं-पु.] 1. अग्नि 2. विष्णु 3. शिव 4. इक्ष्वाकु वंश का एक राजा। [सं-स्त्री.] 1. काला जीरा 2.
एक तरह की हींग 3. अफ़ीम।
पृथुक
(सं.) [सं-पु.] 1. बालक 2. चूड़ा; चिउड़ा 3. एक प्रकार की हींग।
पृथुता
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. मोटापा; मोटापन; पृथु होने की अवस्था या भाव 2. विशालता; फैलाव।
पृथुल
(सं.) [वि.] 1. मोटा; स्थूल 2. विशाल; विस्तीर्ण।
पृथुलाक्ष
(सं.) [वि.] बड़ी बड़ी आँखों वाला; दीर्घाक्ष।
पृथूदक
(सं.) [सं-पु.] सरस्वती नदी के दक्षिणी तट पर स्थित एक प्राचीन तीर्थस्थल; आधुनिक युग में 'पोहोआ' नामक स्थान।
पृथ्वी
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. सौर मंडल का वह ग्रह जिसपर जीवन है; भूलोक; धरती 2. स्वर्ग और नरक से भिन्न संसार 3. भूमि; ज़मीन; पृथ्वी का तल 4. पाँच महाभूतों में से
एक।
पृथ्वीतल
[सं-पु.] 1. धरातल; भूतल 2. संसार; दुनिया।
पृथ्वीराजरासो
[सं-पु.] चंदवरदाई द्वारा डिंगल भाषा में रचित वीर रस का एक महाकाव्य, जिसमें उनहत्तर समय (सर्ग या अध्याय) हैं।
पृथ्वीश
(सं.) [सं-पु.] 1. पृथ्वी का स्वामी; ईश्वर 2. पृथ्वीपति; राजा; नृपति।
पृश्नि
(सं.) [सं-पु.] 1. बौना 2. एक मंत्रद्रष्टा ऋषि 3. अनाज 4. अमृत 6. पानी 7. वेद। [सं-स्त्री.] 1. चितकबरी गाय; छोटी गाय 2. देवकी (कृष्ण की माता) का एक नाम 3.
किरण। [वि.] 1. छोटे कद का 2. दुबला-पतला 3. चितकबरा।
पृश्निका
(सं.) [सं-स्त्री.] जल में उत्पन्न होने वाली एक लता जिसमें घड़े की आकृति का छोटा अवयव होता है; जलकुंभी।
पृषत
(सं.) [सं-पु.] 1. शरीर पर सफ़ेद चकत्ते या धब्बे वाला हिरण; चितल 2. जल की बूँद 3. धब्बा 4. (महाभारत) द्रुपद के पिता।
पृष्ट
(सं.) [वि.] 1. पूछा हुआ; पूछा गया 2. सिक्त; सींचा हुआ।
पृष्ठ
(सं.) [सं-पु.] 1. पीठ 2. सतह; तल 3. पन्ना; (पेज) 4. किसी वस्तु, घर आदि का पिछला भाग।
पृष्ठक
(सं.) [सं-पु.] 1. पीठ या पीछे की ओर का हिस्सा 2. पृष्ठ।
पृष्ठतः
(सं.) [अव्य.] 1. पीछे या पीछे की ओर से; पीछे से 2. चुपके से।
पृष्ठभूमि
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. पहले वाली वे सभी बातें एवं परिस्थितियाँ जिसके सामने कोई नई विशेष बात या घटना हो और जिनके साथ मिलान करने पर उन सभी बातों और घटनाओं का
स्वरूप स्पष्ट होता हो 2. व्यक्ति का परिवार, सामाजिक वर्ग या स्तर, शिक्षा, अनुभव आदि 3. भूमिका; प्राक्कथन; आमुख 4. किसी चित्र में चित्र के मुख्य लक्ष्य के
अतिरिक्त उसके पीछे दिखाई देने वाले दृश्य या वस्तुएँ; पिछला भाग।
पृष्ठवंश
(सं.) [सं-पु.] रीढ़; मेरुदंड।
पृष्ठ शीर्षक
(सं.) [सं-पु.] 1. (पत्रकारिता) समाचार पत्र के प्रथम पृष्ठ के शीर्ष भाग में बहुत बड़े अक्षरों में मुद्रित मुख्य समाचार के शब्दों की पंक्ति; अख़बार आदि में
बड़े शीर्षक 2. सामने पृष्ठ पर अंकित समाचार सारांश अभिव्यक्त करने वाली गहरे बड़े अक्षरों में छपी पंक्ति; (बैनर हेडलाइन)।
पृष्ठांकन
(सं.) [सं-पु.] 1. हुंडी; किसी लेख, पत्र, धनादेश आदि की पीठ पर समर्थन में कुछ लिखना या हस्ताक्षर करना 2. किसी को कुछ प्रदान करने हेतु लिखित आदेश प्रदान
करना; स्वीकृति देना 3. समर्थन करना; अनुमोदन।
पृष्ठाधार
(सं.) [सं-पु.] 1. पिछली सूचना, साहित्य या आँकड़ों का आधार जिसपर अगली कार्यवाही की जाती है 2. हुंडी, किसी लेख, पत्र, धनादेश आदि की पीठ पर समर्थन में कुछ
लिखे हुए का आधार 3. पृष्ठभूमि।
पृष्ठिका
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. किसी घटना के पहले की परिस्थितियाँ; पृष्ठभूमि 2. किसी चित्र में पृष्ठभूमि में दिखाई देने वाली चीज़ें।
पृष्ठोदय
(सं.) [सं-पु.] 1. जिसका उदय पीठ की ओर से हो 2. (ज्योतिष) पीठ की ओर से उदित होने वाली राशियाँ, जैसे- मेष, वृष, कर्क, धनु, मकर, मीन।
पेंग
[सं-स्त्री.] झूला झूलते समय झूले या हिंडोले का एक ओर से दूसरी ओर जाना। [सं-पु.] एक प्रकार का पक्षी।
पेंच
(फ़ा.) [सं-पु.] दे. पेच।
पेंचकस
(फ़ा.) [सं-पु.] दे. पेचकश।
पेंचदार
(फ़ा.) [वि.] दे. पेचदार।
पेंचीदा
(फ़ा.) [वि.] दे. पेचीदा।
पेंचीला
[वि.] दे. पेचीला।
पेंट
(इं.) [सं-पु.] 1. रंगीन द्रव जो किसी सतह पर साज-सज्जा या सुरक्षा हेतु लगाया जाता है 2. चित्र बनाने में प्रयुक्त होने वाले रंगीन द्रव; रोगन।
पेंटर
(इं.) [सं-पु.] 1. भवनों, दीवारों आदि को रँगने वाला व्यक्ति; रंगसाज़ 2. चित्रकार।
पेंदा
(सं.) [सं-पु.] किसी वस्तु का वह निचला भाग जिसके सहारे वह स्थिर होती है; किसी गहरी या बड़ी वस्तु का तला; तल; आधार।
पेंदी
[सं-स्त्री.] 1. किसी वस्तु या बरतन का बिलकुल निचला भाग 2. तोप या बंदूक की वह कोठी जिसमें बारूद भरा जाता था 3. शरीर में गुदा नामक अंग 4. गाजर, मूली आदि की
जड़ 5. किसी वस्तु के खड़ा रहने का आधार।
पेंपें
[सं-स्त्री.] 1. भोंपू से निकलने वाला शब्द 2. बच्चे का धीमी गति से रोने का शब्द।
पेंशन
(इं.) [सं-स्त्री.] सेवा-निवृत्ति के उपरांत नियमित रूप से मिलने वाला धन; सेवाकाल के पूरे हो जाने पर सरकारी कर्मचारियों या उनके परिवार को दिया जाने वाला
वेतनांश; निवृत्ति वेतन।
पेंशनधारी
(इं.+सं.) [वि.] अनुवृत्ति पाने वाला; पेंशनभोगी।
पेंशनभोगी
(इं.+सं.) [वि.] जिसे पेंशन मिलती हो; पेंशनधारी।
पेंशनर
(इं.) [वि.] सेवा-निवृत्ति के बाद नियमित रूप से प्रति माह धन प्राप्त करने वाला (कर्मी); पेंशनभोगी।
पेंसिल
(इं.) [सं-स्त्री.] लिखने के लिए प्रयुक्त लकड़ी की मोटी नली जैसी वस्तु जिसके लंबे छेद में काले या रंगीन पदार्थ की दंडिका पड़ी रहती है।
पेग
(इं.) [सं-पु.] 1. पीने के लिए शराब की एक नाप 2. उतनी शराब जितनी एक बार में पीने के लिए गिलास में डाली जाए 3. खूँटी।
पेच
(फ़ा.) [सं-पु.] 1. घुमाव; चक्कर; लपेट; फिराव 2. झंझट; झमेला 3. उलझन; बखेडा 4. कुश्ती का एक दाँव 5. चालबाज़ी; धूर्तता 6. यंत्र का छोटा पुरज़ा 7. धोखा; फ़रेब;
चाल। [मु.] -घुमाना : ऐसी तरकीब निकालना जिससे कार्य का स्वरूप बदल जाए।
पेचक1
(सं.) [सं-पु.] 1. उल्लू 2. बादल 3. पलंग 4. हाथी की पूँछ की जड़ 5. जूँ 6. खाट; चारपाई।
पेचक2
(फ़ा.) [सं-स्त्री.] बटे हुए तागे की गोली या गुच्छी।
पेचकश
(फ़ा.) [सं-पु.] 1. कारीगरों का एक उपकरण जिससे वे पेच कसते हैं या निकालते हैं; वह औज़ार जिससे पेच कसा और निकाला जाता है 2. लोहे का बना एक पेचदार उपकरण जिसकी
सहायता से बोतलों का कॉर्क निकाला जाता है।
पेचकी
(सं.) [सं-स्त्री.] उल्लू की मादा; उलूकी।
पेचदार
(फ़ा.) [वि.] 1. पेचयुक्त 2. जिसमें पेच या बल हो 3. उलझा हुआ। [सं-पु.] एक प्रकार का कसीदे का काम जिसमें सीधी रेखा के इधर-उधर और स्थान-स्थान पर फंदे भी लगाए
जाते हैं।
पेचवान
(फ़ा.) [सं-पु.] एक प्रकार का हुक्का।
पेचिश
(फ़ा.) [सं-स्त्री.] 1. एक प्रकार का रोग जिसमें आँतों में घाव तथा पेट में ऐंठन होती है 2. उक्त रोग में होने वाली ऐंठन या मरोड़।
पेचीदा
(फ़ा.) [वि.] 1. जिसमें बहुत से पेच हो; पेच या लपेट वाला 2. घुमाव-फिराव वाला; चक्करदार; टेढ़ा-मेढ़ा 3. कठिन; मुश्किल 4. {ला-अ.} जिसमें बहुत-सी उलझनें,
कठिनाइयाँ या झंझट हों।
पेचीला
[वि.] पेचवाला; पेचदार; पेचीदा; जटिल।
पेज1
(सं.) [सं-स्त्री.] अत्यधिक खौलाए हुए दूध का वह लच्छेदार रूप जिसमें दूध का अंश कम और मलाई का अंश अधिक होता है तथा जिसमें चीनी, मेवा आदि भी मिलाया गया होता
है; रबड़ी; बसौंधी।
पेज2
(इं.) [सं-पु.] पुस्तक, समाचार पत्र आदि का पृष्ठ; पन्ना।
पेजीनेशन
[सं-पु.] पृष्ठांक; एक बड़े प्रलेख को पृष्ठानुसार विभाजित करने की प्रक्रिया।
पेट
(सं.) [सं-पु.] शरीर का मध्य भाग जिसमें भोजन के पाचन से संबंधित अंग होते हैं। [मु.] -काटना : बचत करने के उद्देश्य से जान-बूझ कर कम खाना;
किसी को मिलने वाले धन या मज़दूरी में कमी करना। -का पानी न पचना : गुप्त बात प्रकट किए बिना न रह पाना। -सहलाना : पेट पर हाथ
फेर कर भूखे होने का इशारा करना। -चलना : पतले दस्त होना; ऐसी व्यवस्था जिसमें जीविका चलती रहे या उसका साधन बना रहे। -जलना : बहुत तेज़ भूख लगना। -पालना : गुज़ारा करना। -फूलना : किसी बात के कहने के लिए अत्यंत विकल या
उत्सुक होना -रहना : गर्भवती होना। -गिरना : गर्भपात होना। -से होना : गर्भवती होना।
पेटदर्द
(हिं.+फ़ा.) [सं-पु.] उदर शूल; उदर पीड़ा।
पेटपूजा
[सं-स्त्री.] 1. भोजन करना 2. पेट भरना।
पेटिका
(सं.) [सं-स्त्री.] पिटारी; छोटी पिटारी।
पेटी
[सं-स्त्री.] 1. मनुष्य के शरीर में छाती तथा पेड़ू के बीच का स्थान; तोंद की झोल 2. बेल्ट बाँधने का स्थान 3. नाइयों का लोहखर (उपकरण रखने का स्थान) 4. अन्न के
दानों का भीतरी भाग 5. छोटा संदूक; संदूकची 6. छोटी डिबिया 7. कमरबंद; (बेल्ट)। [मु.] -पड़ना : तोंद निकलना।
पेटीकोट
(इं.) [सं-पु.] घाघरे की तरह का वस्त्र जिसे स्त्रियाँ साड़ी के नीचे पहनती हैं।
पेटू
[वि.] 1. जो बहुत अधिक खाता है; भुक्खड़ 2. जिसे सदा खाने की चिंता लगी रहती है।
पेटूपन
[सं-पु.] अत्यधिक खाने की आदत।
पेटेंट
(इं.) [सं-पु.] 1. किसी आविष्कार या खोज पर मिलने वाला स्वत्व या एकाधिकार 2. वह सरकारी स्वीकृति या पंजीयन जिसके अनुसार किसी को नए आविष्कार या किसी वस्तु के
उत्पादन या विक्रय का एकाधिकार प्राप्त होता है।
पेट्रोल
(इं.) [सं-पु.] 1. पेट्रोलियम से प्राप्त या व्युत्पन्न तरल मिश्रण जिसे अंतर्दहन इंजन में ईंधन के तौर पर प्रयोग किया जाता है; गैसोलीन 2. यंत्रों, गाड़ियों
तथा वायुयान का ईंधन।
पेट्रोलियम
(इं.) [सं-पु.] एक पदार्थ जिसका निर्माण कोयले की तरह वनस्पतियों के पृथ्वी के नीचे दबने तथा कालांतर में उनके ऊपर उच्च दाब तथा ताप के कारण हुआ। प्राकृतिक रूप
से पाए जाने वाले इस पदार्थ को अपरिष्कृत तेल (क्रूड ऑयल) कहते हैं जो काले रंग का गाढ़ा द्रव होता है। इसी से विभिन्न प्रक्रियाओं द्वारा केरोसिन, पेट्रोल,
डीज़ल, प्राकृतिक गैस, वेसलीन, ल्यूब्रिकेंट तेल इत्यादि प्राप्त होते हैं।
पेठा
[सं-पु.] 1. श्वेत रंग का कुम्हड़ा; भतुआ 2. उक्त कुम्हड़े से बनी मिठाई; भतुआ से बनी मिठाई।
पेड़
[सं-पु.] वृक्ष; दरख़्त।
पेड न्यूज़
(इं.) [सं-स्त्री.] (पत्रकारिता) विज्ञापन का एक प्रकार जिसमें विज्ञापनदाता द्वारा मीडिया, जैसे- टेलिविज़न, अख़बार या अन्य समाचार माध्यमों को धन देकर विज्ञापन
को ख़बर या न्यूज़ की तरह प्रकाशित या प्रसारित करवाया जाता है।
पेड़ा
[सं-पु.] दूध या खोए से बनी गोल आकार की एक मिठाई।
पेड़ी
[सं-स्त्री.] 1. छोटा पेड़ा 2. रोटी, पापड़ आदि बेलने के लिए गूँथी हुई सामाग्री की बनाई हुई लोई।
पेड़ू
[सं-पु.] 1. शरीर का नाभि से नीचे और उपस्थ से ऊपर का भाग; वस्ती।
पेन1
[सं-पु.] गढ़वाल में प्राप्त लसोड़े की जाति का एक वृक्ष जिसे 'कूम' कहते हैं।
पेन2
(इं.) [सं-पु.] 1. कलम जिसमें रिफ़िल भरी हुई होती है; धातु की निब लगी कलम 2. कष्ट; पीड़ा; दर्द।
पेपर
(इं.) [सं-पु.] 1. कागज़ 2. परीक्षा का प्रश्नपत्र 3. समाचारपत्र 4. दस्तावेज़ 5. किसी विशेष प्रकार का कागज़-पत्र।
पेपरबैक
(इं.) [सं-स्त्री.] वह पुस्तक जिसकी जिल्द मोटे कागज़ या कार्ड बोर्ड की हो।
पेपरवेट
(इं.) [सं-पु.] कागज़-पत्रों को दबाने के लिए रखी जाने वाली काँच, लकड़ी आदि की बनी भारी वस्तु।
पेमचा
(सं.) [सं-पु.] एक प्रकार का रेशमी कपड़ा।
पेमेंट
(इं.) [सं-पु.] भुगतान; अदायगी; चुकाया हुआ रुपया।
पेय
(सं.) [सं-पु.] पिया जाने वाला पदार्थ; पेय पदार्थ, जैसे- दूध, शरबत आदि। [वि.] जिसे पिया जा सके; पीने के योग्य।
पेयजल
(सं.) [सं-पु.] पीने का पानी। [वि.] पीने योग्य जल; शुद्ध जल।
पेयस
(सं.) [सं-पु.] हाल में बच्चा दे चुकी गाय; भैंस का दूध जो पीला होता है, वह पीने योग्य नहीं होता; फेनुस या फेनसा।
पेयूष
(सं.) [सं-पु.] 1. पीयूष; अमृत 2. पेउस; गाय के बच्चा देने के बाद सात दिनों तक का दूध 3. ताज़ा मक्खन।
पेरना
[क्रि-स.] 1. कोल्हू आदि में दबाकर पदार्थ का रस निकालना, जैसे- ईख पेरना, सरसों पेरना 2. {ला-अ.} सताना या कष्ट देना।
पेराई
[सं-स्त्री.] 1. पेरने की क्रिया या भाव 2. पेरने की मज़दूरी।
पेलना
[क्रि-स.] 1. ज़ोर से भीतर घुसेड़ना 2. दबाकर भीतर पहुँचाना 3. प्रेरित करना 4. दंड या मुगदर से कसरत करना।
पेलवाना
[क्रि-स.] पेलने का काम किसी और से करवाना; किसी को पेलने में प्रवृत्त करना।
पेला
[सं-पु.] 1. पेलने की क्रिया या भाव 2. आक्रमण 3. झगड़ा; तकरार 4. अपराध।
पेवस
(सं.) [सं-पु.] हाल में बच्चा दे चुकी गाय, भैंस का दूध जो पीला होता है; पेयस।
पेश
(फ़ा.) [अव्य.] सामने; समक्ष; आगे।
पेशकब्ज़
(फ़ा.) [सं-स्त्री.] छोटी कटार; एक प्रकार की छोटी तलवार।
पेशकश
(फ़ा.) [सं-स्त्री.] 1. प्रस्तुति 2. पुरस्कार; भेंट; नज़राना 3. प्रार्थना; निवेदन।
पेशकार
(फ़ा.) [सं-पु.] 1. पेश करने वाला 2. आगे रखने वाला 3. न्यायालय में हाकिम के सामने कागज़-पत्र पेश करने वाला कर्मचारी।
पेशकारी
(फ़ा.) [सं-स्त्री.] पेशकार का काम या पद।
पेशख़ेमा
(फ़ा.) [सं-पु.] 1. फ़ौज का अगला हिस्सा; हरावल 2. फ़ौज का वह सामान जो पहले से ही आगे भेज दिया जाए 3. किसी घटना का पूर्व लक्षण।
पेशगी
(फ़ा.) [सं-स्त्री.] वह धन जो किसी वस्तु के लिए या किसी को कोई काम करने के लिए पहले ही दे दिया जाए; अग्रिम धनराशि; बयाना; (एडवांस)।
पेशतर
(फ़ा.) [क्रि.वि.] 1. पूर्व; पहले 2. किसी की तुलना में पहले।
पेशबंद
(फ़ा.) [सं-पु.] घोड़े की पीठ पर काठी के नीचे रखे जाने वाले कपड़े को खिसकने से रोकने के लिए लगाई जाने वाली पट्टी।
पेशबंदी
(फ़ा.) [सं-स्त्री.] 1. बचाव के लिए पहले से कर ली जाने वाली युक्ति 2. प्रबंध; उपाय।
पेशल
(सं.) [वि.] 1. कोमल; नाज़ुक; मुलायम 2. मनोहर; सुंदर; सुहावना; बहुत अच्छा; उत्तम 3. दक्ष; होशियार; चतुर; प्रवीण।
पेशवा
(फ़ा.) [सं-पु.] 1. सरदार; नेता 2. मराठों के प्रधान मंत्रियों की उपाधि।
पेशवाई
(फ़ा.) [सं-स्त्री.] 1. पेशवा होने की अवस्था या भाव 2. पेशवाओं का काम या पद 3. पेशवाओं की शासन प्रणाली।
पेशवाज़
(फ़ा.) [सं-स्त्री.] बहुत बड़े घेरे वाला घाघरा; नर्तकियों का घाघरा जिसपर प्रायः ज़री का काम रहता है।
पेशा
(फ़ा.) [सं-पु.] 1. जीविका हेतु किया जाने वाला धंधा; व्यवसाय; काम 2. उद्योग; रोज़गार; (प्रोफ़ेशन) 3. {ला-अ.} वेश्यावृत्ति। [मु.] -करना : देह
व्यापार द्वारा धन कमाना।
पेशानी
(फ़ा.) [सं-स्त्री.] 1. ललाट; माथा 2. भाग्य; किस्मत।
पेशाब
(फ़ा.) [सं-पु.] मूत्र; मूत।
पेशाबख़ाना
(फ़ा.) [सं-पु.] वह स्थान जहाँ लोग मूत्र त्याग करते हों; मूत्रालय।
पेशाबघर
(फ़ा.) [सं-पु.] पेशाबख़ाना; पेशाब करने के लिए बनाया गया स्थान।
पेशावर
(फ़ा.) [सं-पु.] पाकिस्तान का एक प्रसिद्ध नगर। [वि.] जो पेशा करता हो।
पेशी1
(सं.) [सं-स्त्री.] (जीवविज्ञान) तंतुओं से निर्मित एक सुदृढ़ ऊतक जो अपने संकुचन और शिथिलन के द्वारा शरीर में गति उत्पन्न करता है; मांसपेशी; पुट्ठा; (मसल)।
पेशी2
(फ़ा.) [सं-स्त्री.] न्यायालय या अधिकारी के सामने किसी अभियोग या मुकदमे के पेश होने और सुने जाने की कार्रवाई।
पेशेंट
(इं.) [सं-पु.] जिसका इलाज चल रहा हो; मरीज़; बीमार; रोगी।
पेशेवर
(फ़ा.) [वि.] व्यवसायी; पेशे वाला।
पेश्तर
(सं.) [क्रि.वि.] दे. पेशतर।
पेषण
(सं.) [सं-पु.] 1. पिसाई; पीसने की क्रिया 2. किसी पदार्थ को चूर्ण या चटनी के रूप में लाना 3. तिहारा; थूहर।
पैंजन
[सं-स्त्री.] पायल; पैरों में पहना जाने वाला आभूषण; पाज़ेब।
पैंजनी
[सं-स्त्री.] 1. पैर में पहनी जाने वाली छोटी घुँघरू वाली पायल 2. पैर में पहना जाने वाला पोला कड़ा।
पैंठ
[सं-स्त्री.] 1. एक खोई हुई हुंडी के स्थान पर लिखी हुई दूसरी हुंडी 2. सप्ताह का वह विशिष्ट दिन जिसमें किसी निश्चित स्थान पर हाट (बाज़ार) लगती है।
पैंड़ा
[सं-पु.] 1. रास्ता; मार्ग 2. तय की गई दूरी; चला हुआ रास्ता 3. अस्तबल; घुड़साल।
पैंतरा
(सं.) [सं-पु.] 1. दाँव बदलना; जगह बदलना 2. चालाकी से भरी हुई बात या युक्ति 3. धूल आदि पर बना पैर का निशान; पदचिह्न 4. कुश्ती या तलवारबाज़ी में
प्रतिद्वंद्वी के पैर रखने की मुद्रा। [मु.] -बदलना : पहले वाली बात या कार्य में बदलाव करना।
पैंतरेबाज़ी
(हिं.+फ़ा.) [सं-स्त्री.] चाल; चालबाज़ी; दाँवपेच।
पैंतालीस
(सं.) [वि.] संख्या '45' का सूचक।
पैंती
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. पूजा के समय पहनी जाने वाली कुश की अँगूठी 2. ताँबे का बना हुआ उक्त प्रकार का छल्ला।
पैंतीस
(सं.) [वि.] संख्या '35' का सूचक।
पैंसठ
(सं.) [वि.] संख्या '65' का सूचक।
पैकिंग
(इं.) [सं-स्त्री.] मज़बूती एवं हिफ़ाजत से बाँधने की क्रिया; पैक करना; सामान आदि बाँधना।
पैकेट
(इं.) [सं-पु.] किसी चीज़ का बँधा हुआ पुलिंदा या बंडल; छोटा डिब्बा जिसमें कोई वस्तु पैक करके रखी गई हो।
पैख़ाना
[सं-पु.] पाख़ाना; विष्ठा; मल।
पैगंबर
(फ़ा.) [सं-पु.] इस्लाम, ईसाई, मूसाई आदि कुछ धर्मों में ईश्वर का पैगाम या संदेशा लाने वाला; नबी; (प्रॉफ़ेट)।
पैग़ंबर
(फ़ा.) [सं-पु.] उर्दू उच्चारणानुसार वर्तनी (दे. पैगंबर)।
पैगाम
(फ़ा.) [सं-पु.] 1. संदेशा; समाचार 2. विवाह प्रस्ताव।
पैगार
(फ़ा.) [सं-पु.] 1. गड्ढा; खंदक 2. हराई; हल की लकीर।
पैजनी
[सं-स्त्री.] 1. पैंजनी; पैजनिया 2. पैर में पहना जाने वाला आभूषण पोला कड़ा।
पैज़ार
(फ़ा.) [सं-स्त्री.] जूता; जोड़ा; पनही।
पैठ
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. पैठने या घुसने की क्रिया या भाव; प्रवेश; दख़ल 2. पहुँच; गति; किसी स्थान पर पहुँचने की क्षमता।
पैठना
[क्रि-अ.] 1. कहीं प्रवेश करना; घुसना 2. बैठना।
पैठाना
[क्रि-स.] 1. बलपूर्वक भीतर प्रवेश कराना 2. घुसाना।
पैड
(इं.) [सं-पु.] 1. पत्र लिखने के काम आने वाले कागज़ों का एक सिरे से जुड़ा जत्था 2. सोखते की मुलायम गड़डी, जैसे- स्याही का पैड।
पैड़ी
[सं-स्त्री.] 1. मकान आदि में ऊपर चढ़ने की सीढ़ी 2. ढलुआ रास्ता 3. वह गड्ढा जिसमें सिंचाई के लिए जल डालते हैं।
पैताना
[सं-पु.] चारपाई का वह हिस्सा जिस तरफ़ पैर रहते हैं; बिस्तर में पैरों की तरफ़ का स्थान (निचला हिस्सा); पाँयता।
पैतृक
(सं.) [वि.] 1. पिता संबंधी 2. पुरखों का; पुश्तैनी।
पैदल
(सं.) [सं-पु.] 1. बिना किसी सवारी के पैरों से चलने की क्रिया; पादचारण 2. पैदल चलने वाला सिपाही 3. शतरंज का एक मोहरा।
पैदल सेना
(सं.) [सं-स्त्री.] पैदल आक्रमण करने वाली सेना।
पैदा
(फ़ा.) [वि.] 1. जन्मा हुआ; उत्पन्न 2. आविर्भूत; व्यक्त।
पैदाइश
(फ़ा.) [सं-स्त्री.] 1. जन्म; उत्पत्ति 2. उपज 3. आविर्भाव।
पैदाइशी
(फ़ा.) [वि.] 1. जन्म से; जन्मजात 2. स्वाभाविक।
पैदावार
(फ़ा.) [सं-स्त्री.] अन्न आदि जो खेत में बोने से पैदा होता है; उपज; फ़सल।
पैनल
(इं.) [सं-पु.] 1. सलाहकार मंडल या वार्ताकार मंडल 2. किसी विषय पर परामर्श या सामयिक मुद्दों पर टेलीविज़न या रेडियो पर चर्चा करने वाले व्यक्तियों का समूह 3.
दोनों ओर हाशिया छोड़कर कंपोज़ किया जाने वाला संक्षिप्त समाचार।
पैना
(सं.) [वि.] 1. धारदार 2. तीक्ष्ण; तेज़ 4. चोखा। [सं-पु.] 1. हलवाहों की लचकने या झुक जाने वाली छड़ी जो बैल हाँकने के काम आती है 2. धातु आदि की नुकीली छड़ 3.
हाथी को नियंत्रित करने का अंकुश।
पैनापन
[सं-पु.] विलक्षण या तीक्ष्ण होने की अवस्था या भाव। [वि.] 1. तीक्ष्णता 2. विलक्षणता।
पैनिंग
(इं.) [सं-स्त्री.] कैमरे को उसकी धुरी पर घुमाना।
पैनी
[सं-स्त्री.] हलवाहों की बैल हाँकने की छोटी तथा पतली छड़ी। [वि.] 1. नुकीली; तेज़ 2. तीक्ष्ण; कुशाग्र।
पैबंद
(फ़ा.) [सं-पु.] छिद्र छिपाने के लिए प्रयुक्त कपड़े आदि का छोटा सा टुकड़ा; वस्त्र आदि के फटे अंश को बंद करने या ढकने के लिए लगाई गई चकती।
पैमाइश
(फ़ा.) [सं-स्त्री.] 1. नापने या मापने की क्रिया 2. भू-सर्वेक्षण के लिए की जाने वाली भवनों, खेतों, ज़मीनों आदि का नाप।
पैमाना
(फ़ा.) [सं-पु.] 1. लंबाई नापने का उपकरण; मापक; माप; (स्केल) 2. शराब का प्याला।
पैर
(सं.) [सं-पु.] 1. शरीर का वह अंग जिससे प्राणी चलते हैं; चरण; पाँव 2. (धूल या बालू आदि पर बना) चरण का निशान। [मु.] -उखड़ जाना : लड़ाई या
विरोध के आगे ठहर न पाना। -उठाना : कदम बढ़ाना। -की जूती : दासी। -छूना : चरण स्पर्श करना; प्रणाम करना।-पकड़ना : दीनतापूर्वक निवेदन करना। -पसारना : फैलाना; आराम से लेटना। -पूजना : आदर-सत्कार करना। -भारी होना : गर्भ रहना। -पड़ना : दंडवत प्रणाम करना।
पैरवी
(फ़ा.) [सं-स्त्री.] 1. तरफ़दारी 2. पीछे-पीछे जाना; अनुगमन; ख़ुशामद 3. मुकदमे में पक्ष की बात रखना।
पैरवीकार
(फ़ा.) [वि.] 1. समर्थन करने वाला 2. पक्ष की बात करने वाला; पैरोकार।
पैरा1
[सं-पु.] 1. पैरों में पहना जाने वाला एक प्रकार का कड़ा 2. किसी स्थान विशेष पर रखे हुए चरण।
पैरा2
(इं.) [सं-पु.] अनुच्छेद; (पैराग्राफ़ का संक्षिप्त रूप)।
पैराग्राफ़
(इं.) [सं-पु.] किसी आलेख का वह खंड जिसमें कोई एक बात कही गई हो तथा जिसकी पहली पंक्ति कुछ स्थान छोड़ कर लिखी गई हो; परिच्छेद; अनुच्छेद; (पैरा)।
पैराशूट
(इं.) [सं-पु.] एक प्रकार की छतरी; आपातकाल में उड़ते हुए वायुयानों से सुरक्षापूर्वक धरती पर उतरने के काम आने वाला छतरी जैसा उपकरण।
पैरी
[सं-स्त्री.] 1. पैर में पहना जाने वाला काँसे या फूल नामक धातु से निर्मित एक प्रकार का आभूषण 2. दवनी हेतु फैलाए गए फ़सल के कटे हुए पौधे 3. दौनी या फ़सल मड़ाई
की क्रिया।
पैरोकार
(फ़ा.) [सं-पु.] पैरवी करने वाला व्यक्ति; पैरवीकार।
पैवस्त
(फ़ा.) [वि.] 1. परस्पर जुड़ा हुआ; सटा हुआ 2. अंदर तक घुसा हुआ।
पैशाचिक
(सं.) [वि.] 1. पिशाच का; पिशाच संबंधी 2. {ला-अ.} क्रूरतापूर्ण; घोर।
पैशाची
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. प्राकृत भाषा का एक भेद 2. रात्रि। [वि.] पिशाच की तरह का।
पैष्टिक
(सं.) [सं-स्त्री.] अन्न से निर्मित एक प्रकार की शराब; मक्का, जौ आदि से निर्मित मद्य। [वि.] (आटे) पिष्टी से निर्मित।
पैसा
(फ़ा.) [सं-पु.] 1. एक सिक्का जो एक रुपए का सौवाँ भाग होता है 2. धन-संपत्ति। [मु.] -लगाना : धन का निवेश करना।
पैसार
[सं-पु.] 1. प्रवेश; पैठ 2. प्रवेश द्वार 3. अंदर जाने का मार्ग।
पैसेंजर
(इं.) [सं-पु.] 1. किसी सवारी से सफ़र करने वाला यात्री; सवारी 2. वह सवारी गाड़ी जो प्रत्येक ठहराव पर रुकती है; (लोकल ट्रेन)।
पैसेवाला
[वि.] धनवान; अमीर।
पैहारी
(सं.) [सं-पु.] वे साधु जो केवल दूध पीकर रहते हैं। [वि.] सिर्फ़ दूध पीकर रहने वाला।
पॉकेट
(इं.) [सं-पु.] 1. जेब 2. थैली। [मु.] -गरम करना : घूस देना या लेना।
पॉकेटमनी
(इं.) [सं-पु.] जेबख़र्च।
पॉकेटमार
(इं.+हिं.) [वि.] चोरी से जेब में से रुपया-पैसा आदि निकालने या जेब काटने का काम करने वाला।
पॉकेटमारी
(इं.+हिं.) [सं-स्त्री.] 1. जेब काटने का काम 2. पॉकेटमार का धंधा या पेशा।
पॉलिटिक्स
(इं.) [सं-पु.] वे कार्य और नीतियाँ जिनका संबंध किसी देश की शासन व्यवस्था के संचालन से हो; राजनीति।
पॉलिटीशियन
(इं.) [सं-पु.] 1. राजनीति करने वाला; राजनेता 2. {ला-अ.} अपना स्वार्थ सिद्ध करने के लिए दूसरे को बेवकूफ़ बनाने वाला व्यक्ति।
पॉलिश
(इं.) [सं-स्त्री.] 1. चिकनाई और चमक लाने वाला रोगन या मसाला 2. चिकनाई और चमक; ओप।
पॉलिसी
(इं.) [सं-स्त्री.] 1. कार्यविशेष की सिद्धि के लिए काम में लाई जाने वाली युक्ति 2. वह आधारभूत सिद्धांत जिसके अनुसार कोई कार्य संचालित किया जाए; नीति 3. बीमा
कंपनी द्वारा प्रदत्त बीमा संबंधी वह प्रतिज्ञापत्र जो वह बीमा कराने वाले व्यक्ति को प्रदान करती है 4. चतुराई भरी चाल।
पोंका
[सं-पु.] पौधों पर उड़ने वाला बड़े आकार का पतंगा; बोंका।
पोंगा
(सं.) [सं-पु.] 1. बाँस की नली 2. धातु निर्मित एक प्रकार का नल 3. टीन का चोंगा 4. पैर की लंबी हड्डी; नली; (शिम बोन)। [वि.] 1. पोला; खोखला 2. निकम्मा 3.
मूर्ख; नासमझ 4. {ला-अ.} कूपमंडूक।
पोंगापंथी
[सं-स्त्री.] 1. मूर्खतापूर्ण व्यवहार; कूपमंडूकता 2. ढोंग। [वि.] 1. वज्रमूर्ख 2. ढोंगी।
पोंछन
[सं-स्त्री.] 1. पोंछने की क्रिया या भाव 2. पोंछने के काम आने वाला कपड़ा 3. किसी पात्र में लगी या सटी वस्तु का पोंछकर निकाला गया भाग।
पोंछना
[सं-पु.] पोंछने के काम आने वाला कपड़ा; वह कपड़ा जिससे कोई चीज़ साफ़ की जाए। [क्रि-स.] किसी सूखे कपड़े को इस प्रकार किसी अंग, वस्तु या स्थान पर फेरना कि वह उस
स्थान की नमी सोख ले; रगड़कर धूल या मैल आदि साफ़ करना।
पोई
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. वर्षा तथा शिशिर ऋतु में होने वाली एक लता जिसकी पत्तियों से साग, पकौड़े आदि बनाए जाते हैं 2. किसी पौधे का नरम कल्ला 3. ईंख का कल्ला;
अँखुआ।
पोखर
(सं.) [सं-पु.] 1. छोटा तालाब 2. बड़ा गड्ढा जिसमें वर्षा का जल जमा हो जाता है।
पोखरा
(सं.) [सं-पु.] 1. जलाशय; तालाब 2. छोटा ताल 3. नेपाल की पोखरा घाटी में स्थित एक शहर।
पोगंड
(सं.) [सं-पु.] 1. पाँच से दस वर्ष तक की अवस्था का बालक 2. न्यूनाधिक या विकृत अंगवाला। [वि.] अल्पवयस्क; जो अभी जवान न हुआ हो।
पोच
(फ़ा.) [वि.] 1. निकृष्ट; बेकार 2. सभी प्रकार के गुणों तथा शक्तियों से हीन 3. तुच्छ; हीन।
पोचारा
[सं-पु.] पुचारा; रंगों या चूने से घर रँगवाना; दीवार की पुताई।
पोज़
(इं.) [सं-पु.] 1. चित्र बनवाने या फ़ोटो खिचवाने आदि के लिए खड़ा होने या बैठने आदि की मुद्रा 2. ढंग 3. लोगों को प्रभावित करने के लिए किया जाने वाला दिखावा;
आडंबर।
पोज़ीशन
(इं.) [सं-स्त्री.] 1. स्थिति 2. श्रेणी; कोटि; स्तर; दर्जा 3. पद; ओहदा 4. अवस्था; हालत 5. सामाजिक स्तर; प्रतिष्ठा; हैसियत।
पोट
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. कपड़े, कागज़, टाट आदि से चारों ओर से बँधी हुई गठरी या पोटली 2. ढेर; राशि 3. शव पर डाली जाने वाली चादर; कफ़न के ऊपर का कपड़ा 4. पुस्तक
की सिलाई में उसका पुट्ठा।
पोटला
(सं. [सं-पु.] बड़ी गठरी; गट्ठर।
पोटली
[सं-स्त्री.] छोटी-सी गठरी; छोटे से वस्त्र में कसकर बाँधी हुई थोड़ी-सी वस्तु।
पोटा1
[सं-पु.] 1. उदराशय; पेट की थैली 2. सामर्थ्य 3. हृदय में उत्पन्न होने वाला उत्साह, साहस आदि 4. उँगली का सिरा 5. चिड़िया का बच्चा जिसके पर न निकले हो।
पोटा2
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. पुरुष के लक्षण वाली (दाढ़ी-मूँछवाली) स्त्री 2. नर एवं मादा दोनों के लक्षण वाला मनुष्य या जानवर। [सं-पु.] घड़ियाल; मगरमच्छ।
पोटाश
(इं.) [सं-पु.] 1. एक सफ़ेद क्षार; खार 2. एक क्षार जो खान से निकलता है और लकड़ी की राख से भी तैयार किया जाता है।
पोढ़ा
[वि.] 1. कड़ा; मज़बूत 2. हृष्ट-पुष्ट 3. पूर्ण वयस्क।
पोत
(सं.) [सं-पु.] 1. पशु या पक्षी का छोटा बच्चा 2. बड़ी नाव; जलयान; जहाज़।
पोतक
(सं.) [सं-पु.] 1. पशु शावक; छोटा बच्चा 2. छोटा कल्ला; छोटा पौधा 3. मकान बनाने की जगह।
पोतड़ा
[सं-पु.] वह तिकोना कपड़ा जो शिशुओं को कच्छे की तरह बाँधा जाता है।
पोतदार
(हिं.+फ़ा.) [सं-पु.] वह व्यक्ति जो लगान या कर का रुपया जमा करके रखता हो; ख़जानची, कोषाध्यक्ष; ख़जाने में रुपया परखने वाला।
पोतना
[सं-पु.] पोतन; पोतने के काम आने वाला कपड़ा। [क्रि-स.] 1. चुपड़ना 2. लेप करना 3. मिट्टी गोबर आदि के घोल से लीपना।
पोतमार्ग
(सं.) [सं-पु.] पोत (जलयान) के जाने का निर्दिष्ट पथ या मार्ग; जलमार्ग।
पोतवाहिनी
(सं.) [सं-स्त्री.] जलसेना का जहाज़ी बेड़ा।
पोता
(सं.) [सं-पु.] 1. पौत्र; पुत्र का पुत्र 2. पोतन; पोतना 3. वायु; हवा 4. एक प्रकार की मछली 5. यज्ञ के सोलह ऋत्विजों में एक 6. दीवार आदि रँगने के काम आने वाली
कूची।
पोती
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. बेटे की बेटी; पौत्री 2. हँड़िया को कड़ी आँच से बचाने के लिए उसके तले पर बाहर से किया गया मिट्टी का लेप।
पोथा
[सं-पु.] 1. बड़ी पुस्तक या पोथी 2. {व्यं-अ.} कागज़ का पुलिंदा।
पोथी
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. बड़ी पुस्तक 2. कागज़ों की गड्डी 3. लहसुन की गाँठ।
पोदीना
[सं-पु.] पुदीना।
पोद्दार
[सं-पु.] एक प्रकार का सरनेम।
पोना
[क्रि-स.] 1. पिरोना; गूँथना 2. तवे पर डालने के लिए गूँथे हुए आटे से रोटी तैयार करना।
पोप
(लै.) [सं-पु.] रोमन कैथोलिक चर्च के सर्वोच्च धर्म गुरु; वैटिकन के राज्याध्यक्ष।
पोपला
[वि.] 1. दंतहीन 2. जिसके दाँत टूटे हों एवं गाल पिचके हों 3. जिसमें पोल हो; जो भीतर से खाली हो।
पोपलाना
[क्रि-अ.] पोपला होना; पुपलाना।
पोर
(सं.) [सं-पु.] 1. उँगली या अँगूठे का जोड़ 2. उक्त दो या जोड़ों गाँठों के बीच का भाग।
पोर्च
(इं.) [सं-पु.] 1. घर में मुख्य दरवाज़े के सामने कार आदि खड़ी करने की जगह 2. स्तंभों पर खड़ी छत जो मकान के प्रवेश द्वार तक जाती है और प्रायः ड्योढ़ी का काम देती
है।
पोर्टर
(इं.) [सं-पु.] कुली; भारवाहक।
पोर्न
(इं.) [सं-पु.] 'पोर्नोग्राफ़ी' का संक्षिप्त रूप।
पोर्नोग्राफ़ी
(इं.) [सं-पु.] 1. अश्लील साहित्य 2. कामवासना उत्तेजित करने के लिए यौनक्रियाओं का वर्णन करने वाली पुस्तकें, पत्रिकाएँ, फ़िल्में आदि।
पोल1
[सं-स्त्री.] 1. पोलापन; खोखलापन; ख़ाली जगह; अवकाश 2. निस्सारता, मूर्खता 3. भेद, रहस्य। -खुलना : भंडा फूटना; आंतरिक बात का पता लगना। -खोलना : भंडा फोड़ना; किसी की आंतरिक बात प्रकट करना।
पोल2
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. नगर का प्रमुख प्रवेश-द्वार 2. फाटक के पास का स्थान; बड़ा दरवाज़ा 3. आँगन।
पोल3
(इं.) [सं-पु.] 1. लकड़ी या लोहे का खंभा; लट्ठा 2. उत्तरी या दक्षिणी ध्रुव 3. चुनाव 4. जन समुदाय के मतों का संग्रह।
पोलक
[सं-पु.] लंबे बाँस के छोर पर चरखी में बँधा हुआ पुआल जिसे मशाल की तरह जला कर मदमस्त या बिगड़े हाथी को डराया जाता है।
पोला
[सं-पु.] 1. एक प्रकार का छोटा पेड़ जिसकी छाल से रस्सी बनाई जाती है 2. परेती पर सूत लपेटने से तैयार होने वाला लच्छा 3. महाराष्ट्र का एक प्रसिद्ध त्योहार।
[वि.] 1. खोखला; खाली 2. 'ठोस' का विलोम; जो पूरा भरा, ठोस या कड़ा न हो।
पोलिंदा
(सं.) [सं-पु.] नाव या जहाज़ का मस्तूल।
पोलितब्यूरो
(इं.) [सं-पु.] किसी देश की कम्युनिस्ट पार्टी की राजनीतिक और कार्यकारी समिति या किसी देश के साम्यवादी दल की केंद्रीय समिति का राजनीतिक विभाग; विशेषतः पूर्व
सोवियत संघ की कम्युनिस्ट पार्टी की महत्वपूर्ण समिति।
पोलियो
(यू.) [सं-पु.] विषाणु जनित एक संक्रामक रोग जिसमें मांसपेशियाँ शिथिल पड़ जाने के कारण शरीर, विशेषकर पैर बेकार हो जाते हैं।
पोलो
(इं.) [सं-पु.] घोड़े पर चढ़ कर गेंद से खेला जाने वाला एक प्रकार का खेल जिसमें हर टीम में चार खिलाड़ी होते हैं; चौगान।
पोश
(फ़ा.) [परप्रत्य.] शब्द के अंत में प्रत्यय के रूप में प्रयुक्त होने वाला शब्द जो 'पहनने वाला', 'छिपाने' या 'ढकने वाला' अर्थ देता है, जैसे- नकाबपोश,
सफ़ेदपोश।
पोशाक
(फ़ा.) [सं-स्त्री.] 1. परिधान; वस्त्र; पहनावा; लिबास 2. किसी विशेष अवसर या विशेष लोगों के पहनने के वस्त्र।
पोशीदगी
(फ़ा.) [सं-स्त्री.] 1. छिपे होने का भाव 2. छिपाने की क्रिया या भाव; छिपाव।
पोशीदा
(फ़ा.) [वि.] 1. गुप्त; छिपा हुआ 2. ढका हुआ।
पोषक
(सं.) [वि.] 1. समर्थक; हिमायती 2. पोषण प्रदान करने वाला; स्वास्थ्यवर्धक।
पोषकतत्व
(सं.) [सं-पु.] वह रसायन जिसकी आवश्यकता किसी जीव के जीवन और वृद्धि के साथ साथ उसके शरीर के उपापचय की क्रिया को चलाने के लिए भी पड़ती है; शरीर को स्वस्थ और
सबल बनाने वाले तत्व।
पोषण
(सं.) [सं-पु.] 1. किसी वस्तु में आवश्यक उपयोगी तत्व पहुँचाकर उसे पुष्ट करना, बनाए रखना या बढ़ाना 2. ऐसा काम करना या ऐसी सहायता देना जिससे कोई सुखपूर्वक
जीवन बिता सके; लालन-पालन 3. पालने-पोसने की क्रिया 4. समर्थन आदि के द्वारा ठीक ठहराना या पक्का करना, जैसे- किसी के मत का पोषण।
पोषणवृत्ति
(सं.) [सं-स्त्री.] किसी को मिलने वाली वह वृत्ति जो भरण-पोषण या जीविका-निर्वाह के लिए दी जाती है।
पोषणीय
(सं.) [वि.] पोषण के योग्य; जिसका पोषण करना आवश्यक हो।
पोषाहार
(सं.) [सं-पु.] ऐसा आहार या खाद्य पदार्थ जिससे प्राणियों के शरीर का पोषण और वर्धन (विकास) होता है।
पोषिका
(सं.) [सं-स्त्री.] (जीवविज्ञान) गले के अंदर की वह नली जिससे भोजन पेट तक पहुँचता है; आहारनली; खाद्य नलिका; (फ़ूड पाइप)।
पोषित
(सं.) [वि.] पालित; पाला हुआ; जिसका पोषण किया गया हो।
पोष्य
(सं.) [वि.] 1. पोषण के योग्य; पालनीय 2. पालित; पाला हुआ 3. अभ्युदय करने वाला।
पोस
(सं.) [सं-पु.] 1. पालने-पोसने की क्रिया या भाव 2. पालन-पोषण के दौरान होने वाली ममता; स्नेह।
पोसना
(सं.) [क्रि-स.] 1. पालन करना; जीव-जंतु पालना 2. रक्षा करना 3. {ला-अ.} किसी बुरी आदत या नशे की लत को लगाए रखना।
पोसा
(सं.) [वि.] पोषित; पाला हुआ; जिसका पालन या पोषण किया गया हो।
पोस्ट
(इं.) [सं-पु.] 1. पद; नौकरी 2. नियुक्ति का स्थान 3. (पुलिस आदि की) चौकी 4. डाक।
पोस्ट ऑफिस
(इं.) [सं-पु.] डाकघर; डाकख़ाना।
पोस्टकार्ड
(इं.) [सं-पु.] डाकघर से ख़रीदा जाने वाला एक मोटे कागज़ या पतले गत्ते से बना एक आयताकार टुकड़ा, जिसे संदेश लिखने के लिए प्रयोग किया जाता है, साथ ही इसे बिना
किसी लिफ़ाफ़े में बंद किए, डाक द्वारा भेजा भी जा सकता है।
पोस्टमास्टर
(इं.) [सं-पु.] डाकपाल; डाकघर का प्रधान कर्मचारी।
पोस्टमैन
(इं.) [सं-पु.] डाक विभाग का पत्र वितरण करने वाला कर्मचारी; डाकख़ाने का वह कर्मी जो लोगों को चिट्ठियाँ पहुँचाता है; डाकिया।
पोस्टमॉर्टम
(इं.) [सं-पु.] मृत्यु का कारण जानने के लिए मृत शरीर की चीरफाड़; अंत्यपरीक्षण; शवपरीक्षा या विच्छेदन।
पोस्टर
(इं.) [सं-पु.] 1. कागज़, कैनवस आदि की एक बड़ी चादर पर या तस्वीर के साथ मुद्रित बहुत मोटे अक्षरों में छपा हुआ बड़ा विज्ञापन 2. कोई घोषणापत्र या बिल जिसे एक
विज्ञापन के रूप में किसी सार्वजनिक स्थान पर चिपका कर कोई सूचना दी जाती है 3. किसी प्रसिद्ध चित्र या लोकप्रिय व्यक्ति की तस्वीर का उक्त प्रकार छापा रूप।
पोस्टल
(इं.) [वि.] डाकविभाग संबंधी; डाकघर संबंधी।
पोस्टलआर्डर
(इं.) [सं-पु.] डाक-विभाग द्वारा जारी एक प्रकार का पैसा प्रदान करने का वचनपत्र या हुंडी; भारतीय डाक विभाग द्वारा 13 नवंबर, 1995 को प्रकाशित राजपत्र के
अनुसार इस की वैधता अवधि जारी करने के महीने के अंतिम दिन से 24 माह मानी गई है; धनादेश।
पोस्टिंग
(इं.) [सं-स्त्री.] नियुक्ति; तैनाती।
पोस्त
(फ़ा.) [सं-पु.] 1. छिलका; बकला 2. खाल; त्वचा; चमड़ा 3. अफ़ीम के पौधे का डोडा; पोस्ता।
पोस्ता
(फ़ा.) [सं-पु.] एक प्रकार का पौधा जिसके डोडों से अफ़ीम तैयार की जाती है।
पोस्ती
(फ़ा.) [सं-पु.] 1. वह जो नशे के लिए पोस्ते के डोडे पीसकर पीता हो; नशेबाज़ 2. {ला-अ.} आलसी आदमी।
पोस्तीन
(फ़ा.) [सं-पु.] 1. लोमड़ी, सुअर आदि कुछ जानवरों की खाल से निर्मित गरम, मुलायम पहनावा; खाल का बना हुआ कोट जिसमें बाल अंदर की ओर होते हैं 2. किताब की जिल्द के
भीतरी भाग पर चिपकाया जाने वाला कागज़।
पौ
(सं.) [सं-पु.] 1. जड़ 2. पाँव; पैर। [सं-स्त्री.] 1. प्रातःकाल के सूर्य का प्रकाश 2. पासे का दाँव 3. वह स्थान जहाँ जन-साधारण को पानी पिलाया जाता है। [मु.] -बारह होना : सभी ओर से जीत अथवा लाभ होना।
पौंचा
[सं-पु.] गन्ने का प्रकार।
पौंड
(इं.) [सं-पु.] दे. पाउंड।
पौआ
[सं-पु.] 1. एक सेर का चौथाई भाग; पाव 2. इस मान का बटखरा 3. रुतबा; पद 4. बरतन जिसमें पाव भर दूध, पानी या कोई अन्य तरल पदार्थ आता हो।
पौगंड
(सं.) [सं-पु.] बच्चों की पाँच वर्ष से दस वर्ष तक की अवस्था। [वि.] पाँच से दस वर्ष की अवस्थावाला; बालोचित।
पौतिक
(सं.) [वि.] (घाव या फोड़ा) जिसमें विषाक्त कीटाणुओं के उत्पन्न होने से पूति अर्थात पीव या पस पड़ गया हो; पूति दूषित; पूयित; (सेप्टिक)।
पौत्र
(सं.) [सं-पु.] पुत्र का पुत्र; बेटे का बेटा; पोता। [वि.] पुत्र का; पुत्र संबंधी।
पौत्री
(सं.) [सं-स्त्री.] पुत्र की पुत्री; बेटे की बेटी; पोती। [वि.] पुत्री का; पुत्री संबंधी।
पौध
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. नया उपजता हुआ पौधा; एक स्थान से दूसरे स्थान पर रोपने लायक छोटा पौधा, जैसे- धान की पौध 2. पैदावार; उपज 3. संतान; नई पीढ़ी 4. पाँवड़ा।
पौधशाला
(सं.) [सं-स्त्री.] वह स्थान जहाँ विभिन्न प्रकार के पौधों का वपन, वर्धन, संरक्षण तथा विपणन किया जाता है; (प्लांट नर्सरी)।
पौधा
(सं.) [सं-पु.] 1. वृक्ष का आरंभिक या छोटा रूप; नया पेड़ 2. छोटा पेड़।
पौधारोपण
[सं-पु.] नया या छोटा पौधा रोपने या लगाने की क्रिया।
पौन
(सं.) [वि.] किसी संख्या या माप का तीन चौथाई; किसी वस्तु का 3/4 भाग; संपूर्ण से 1/4 कम।
पौनरुक्त
(सं.) [सं-पु.] 1. आवृत्ति 2. फिर से कहने का भाव; पुनः कहे जाने का भाव।
पौना
(सं.) [सं-पु.] काठ या लोहे की कलछी। [वि.] किसी संख्या या माप का तीन चौथाई; पौन।
पौनी
[सं-स्त्री.] किसी उत्सव के अवसर पर नाइयों, धोबियों, कुम्हारों आदि को प्राप्त होने वाला उपहार। [सं-स्त्री.] 1. छोटा पौना 2. एक प्रकार की कलछी।
पौर
(सं.) [सं-पु.] नागरिक; नगर का निवासी। [वि.] नगर का; नगर या पुर संबंधी।
पौरव
(सं.) [सं-पु.] 1. पुरु का वंशज या संतान 2. (महाभारत) उत्तर-पूर्व दिशा का एक देश व उक्त देश का राजा या निवासी। [वि.] 1. पुरु संबंधी; पुरु का 2. पुरु से
उत्पन्न।
पौरवृद्ध
(सं.) [सं-पु.] प्रधान या प्रमुख नागरिक।
पौरस्त्य
(सं.) [वि.] 1. पूर्व दिशा संबंधी; प्राच्य 2. प्रथम; आद्य 3. आगे वाला; सामने; अगला।
पौराणिक
(सं.) [वि.] 1. पुराण संबंधी; प्राचीन काल का; पुराना 2. पुराणों का ज्ञाता 3. जिसका विवरण पुराणों में मिलता हो।
पौरातनिक
(सं.) [वि.] प्राचीन; पुरातन।
पौरिया
[सं-पु.] 1. द्वारपाल; दरबान; दरवाज़े पर पहरा देने वाला 2. द्वार पर बैठकर मंगल गीत गाने वाला।
पौरी1
[सं-स्त्री.] 1. खड़ाऊँ 2. सीढ़ी 3. सीढ़ी का डंडा।
पौरी2
(सं.) [सं-स्त्री.] घर या मकान के मुख्य द्वार के अंदर का वह भाग जिसमें से होकर घर के कमरों आदि में जाया जाता है; ड्योढ़ी।
पौरुष
(सं.) [सं-पु.] 1. पुरुष होने की अवस्था या भाव 2. पुरुषों की विशेषताएँ और गुण, जैसे- साहस, शौर्य आदि 3. पुरुष का कर्म; पुरुषार्थ। [वि.] पुरुष संबंधी; पुरुष
का।
पौरुषहीन
(सं.) [वि.] 1. पुरुषत्वहीन 2. निरुद्यमी; अकर्मण्य 3. पराक्रमहीन।
पौरुषेय
(सं.) [सं-पु.] 1. पुरुष द्वारा किया गया कार्य 2. जन समुदाय 3. दैनिक वेतन पर कार्य करने वाले मज़दूर। [वि.] पुरुष संबंधी; पुरुष का 2. पुरुष निर्मित।
पौरेय
(सं.) [वि.] 1. पुर से संबंधित 2. पुर (नगर) के समीप का 3. नागर।
पौरोधस
(सं.) [सं-पु.] 1. पुरोहित का पद; ऋत्विक 2. पुरोहित का कर्म।
पौरोहित्य
(सं.) [सं-पु.] 1. पुरोहित होने की अवस्था या भाव; पुरोहित का पद 2. पुरोहित का कर्म।
पौर्णमास
(सं.) [सं-पु.] 1. पूर्णिमा को किया जाने वाला एक यज्ञ विशेष 2. पूर्णिमा। [वि.] पूर्णिमा संबंधी।
पौर्णमासी
(सं.) [सं-स्त्री.] शुक्ल पक्ष की पंद्रहवीं तिथि; पूनम; पूर्णिमा।
पौर्वात्य
(सं.) [वि.] 1. पूरब से संबंधित; प्राच्य 2. पाश्चात्य के अनुकरण पर बना (शब्द)।
पौर्विक
(सं.) [वि.] 1. पहले का; प्राचीन 2. पैतृक।
पौलस्ती
(सं.) [सं-स्त्री.] रावण की बहन; शूर्पणखा।
पौलस्त्य
(सं.) [सं-पु.] 1. पुलस्त्य का पुत्र या उसके गोत्र का व्यक्ति 2. रावण, कुंभकर्ण आदि 3. चंद्रमा 4. कुबेर।
पौला
[सं-पु.] 1. एक प्रकार का जूता 2. खड़ाऊँ जिसमें खूँटी के स्थान पर छेद होता है और उसमें लगी बेल्ट में अँगूठा फँसाकर पहना जाता है।
पौष
(सं.) [सं-पु.] 1. विक्रम संवत का दसवाँ महीना; पूस 2. इस मास की पूर्णिमा को पड़ने वाला त्योहार 3. युद्ध।
पौष्टिक
(सं.) [वि.] 1. पुष्ट बनाने वाला 2. शक्तिवर्धक।
पौष्टिकता
(सं.) [सं-स्त्री.] पुष्ट बनाने की क्षमता या गुण; शक्तिवर्धकता।
पौसला
(सं.) [सं-पु.] वह स्थान जहाँ लोगों को परोपकार की दृष्टि से पानी पिलाया जाता है; सबील; प्याऊ।
पौहारी
(सं.) [सं-पु.] अन्न छोड़कर केवल दूध पीकर रहने वाला व्यक्ति।
प्याऊ
(सं.) [सं-पु.] वह स्थान जहाँ गरमी के दिनों में राह चलते प्यासे लोगों को धर्मार्थ पानी, शरबत, लस्सी आदि पिलाई जाती है; पौसाला। [वि.] पिलाने वाला।
प्याज़
(फ़ा.) [सं-स्त्री.] सब्ज़ी, मसाले और औषधि में प्रयोग होने वाला एक कंद; एक प्रकार का गाँठदार कंद जो तीव्र गंध और चरपरे तथा तीखे स्वाद वाला होता है।
प्याज़ी
(फ़ा.) [वि.] प्याज़ के रंग का; हलका गुलाबी। [सं-पु.] प्याज़ से मिलता-जुलता एक रंग।
प्यादा
(फ़ा.) [सं-पु.] 1. पैदल सिपाही; पैदल 2. दूत; हरकारा 3. शतरंज का एक मोहरा 4. पैदल चलने वाला व्यक्ति 5. साथ-साथ या पीछे-पीछे लगा रहने वाला नौकर। [वि.] जो
पैदल हो।
प्यार
(सं.) [सं-पु.] 1. किसी के प्रति होने वाली आसक्तिपूर्ण या श्रद्धापूर्ण भावना 2. पुरुष व स्त्री की एक-दूसरे के प्रति होने वाली ऐसी आसक्तिपूर्ण भावना जो
पारस्परिक आकर्षण के कारण होती है 3. प्रेमपूर्वक किया जाने वाला आलिंगन, चुंबन, स्नेह आदि 4. प्रेम; मुहब्बत; प्रीति 5. पियाल नामक वृक्ष जिसका बीज चिरौंजी
कहलाता है।
प्यारा
[वि.] 1. जिसके प्रति बहुत अधिक प्रेम, स्नेह या मोह हो; स्नेहभाजन; स्नेह या प्रेम का पात्र; प्रीतिपात्र; प्रिय 2. जो देखने में अच्छा और भला लगे; अच्छा लगने
वाला।
प्याला
(फ़ा.) [सं-पु.] 1. चीनी मिट्टी या धातु आदि का बना हुआ एक प्रकार का कटोरीनुमा पात्र जिसमें चाय या शराब आदि पी जाती है; छोटा कटोरा; जाम 2. उक्त पात्र में भरा
पेय या तरल 3. तोप या बंदूक में रंजक (मसाला) रखने की जगह 4. भीख माँगने का खप्पर; भिक्षापात्र 5. जुलाहों का नरी भिगोने का पात्र।
प्याली
(फ़ा.) [सं-स्त्री.] 1. पीने का छोटा बरतन; (कप) 2. शराब पीने का छोटा पात्र; जाम 3. छोटी कटोरी।
प्यास
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. वह स्थिति जिसमें जल या कोई तरल पदार्थ पीने की उत्कट इच्छा होती है; तृष्णा; पिपासा 2. {ला-अ.} किसी वस्तु की प्राप्ति की प्रबल इच्छा या
कामना।
प्यासा
[वि.] 1. जिसे प्यास लगी हो; तृषित; पिपासार्त 2. {ला-अ.} किसी वस्तु की प्राप्ति की प्रबल कामना करने वाला।
प्योंदा
(फ़ा.) [सं-पु.] किसी पेड़ की टहनी काटकर लगाई जाने वाली कलम; पैवंद; थिगली। [वि.] 1. (पेड़) जो कलम लगाने से तैयार हुआ हो 2. उक्त पेड़ का (फल)।
प्रकंप
(सं.) [सं-पु.] 1. बहुत ज़ोर से काँपना या हिलना 2. थरथराहट; कँपकँपी।
प्रकंपन
(सं.) [सं-पु.] 1. बहुत ज़ोर से काँपने या हिलने की क्रिया 2. थरथराहट; कँपकँपी। [वि.] बहुत ज़ोर से काँपने या हिलने वाला।
प्रकंपित
(सं.) [वि.] 1. बहुत ज़ोर से कँपाया या हिलाया हुआ 2. काँपता या हिलता हुआ।
प्रकट
(सं.) [वि.] 1. जो सामने हो; समक्ष 2. प्रत्यक्ष; वर्तमान 3. उत्पन्न 4. जो गुप्त न हो; व्यक्त; अगोपन; स्पष्ट।
प्रकटन
(सं.) [सं-पु.] 1. प्रकट होने या करने की क्रिया, अवस्था या भाव 2. उत्पन्न या उपस्थित होने या करने की क्रिया, अवस्था या भाव।
प्रकटित
(सं.) [वि.] 1. जो प्रकट हुआ हो; प्रकट किया हुआ 2. प्रकाशित।
प्रकटीकरण
(सं.) [सं-पु.] प्रकट या प्रकाशित करने की क्रिया।
प्रकथन
(सं.) [सं-पु.] 1. घोषित करना 2. कही हुई बात की पुष्टि।
प्रकर
(सं.) [सं-पु.] 1. कुशल या दक्ष 2. समूह; राशि 3. खिला हुआ फूल 4. सहायता 5. रिवाज 6. सम्मान 7. दोस्ती 8. गुलदस्ता 9. अगर नामक गंधद्रव्य; अगरु 10. आश्रय 11.
अधिकार।
प्रकरण
(सं.) [सं-पु.] 1. निर्माण करना; उत्पन्न करना 2. मुद्दा; प्रसंग; संदर्भ 3. किसी ग्रंथ के अंतर्गत विभिन्न अध्यायों में से कोई एक 4. रूपक के दस भेदों में एक,
जिसकी कथा काल्पनिक होती है तथा नायक ब्राह्मण या वणिक होता है।
प्रकरणिका
(सं.) [सं-स्त्री.] (नाट्यशास्त्र) वह रूपक (नाटक) जो प्रकरण के गुणों या लक्षणों वाला हो परंतु आकार में छोटा हो; छोटा प्रकरण; वह काल्पनिक इतिवृत्त जिसमें
नायक वणिक तथा नायिका उसकी सजातीय स्त्री होती है, शेष लक्षण रूपक के होते हैं।
प्रकरी
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. एक कथा के भीतर चलने वाली दूसरी छोटी कथा; अंतर्कथा 2. नाटक में एक अर्थ प्रकृति 3. नाटक में चलने वाली प्रासंगिक कथा, जैसे- 'रामायण' में
शबरी की कथा 4. एक प्रकार का गान 5. आँगन 6. चौराहा।
प्रकर्ष
(सं.) [सं-पु.] 1. उत्तमता; उत्कर्ष 2. अधिकता; अतिरेक 3. खींचने की क्रिया; शक्ति 4. विस्तार 5. विशेषता।
प्रकर्षण
(सं.) [सं-पु.] 1. पीछे ठेलना या ढकेलना 2. अशांत या क्षुब्ध करना 3. बहुतायत 4. हल चलाना 5. खींचना 6. लगाम; चाबुक।
प्रकला
(सं.) [सं-स्त्री.] कला (समय) का साठवाँ भाग।
प्रकल्प
(सं.) [सं-पु.] 1. युग; काल 2. विशिष्ट घटनाओं का कालखंड।
प्रकल्पना
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. लोक व्यवहार और विधिक क्षेत्र में किसी घटना या बात से निकलने वाला ऐसा आनुमानिक निष्कर्ष जो बहुत कुछ ठीक और संभाव्य जान पड़ता हो; यह
मान लिया जाना कि इस बात का यही अर्थ या आशय हो सकता है; संभाव्य अनुमान 2. निष्कर्ष का पूर्वानुमान; (हाइपोथिसिस)।
प्रकल्प्य
(सं.) [वि.] 1. निश्चित या स्थिर किए जाने योग्य 2. जिस विषय या वस्तु की प्रकल्पना हो या होने को हो।
प्रकांड
(सं.) [सं-पु.] 1. वृक्ष का तना या शाखा 2. बाँह का ऊपर का भाग। [वि.] 1. श्रेष्ठ; प्रशस्त; उत्तम 2. बहुत विशाल; प्रचंड 3. बहुत बड़ा।
प्रकाम
(सं.) [सं-पु.] 1. कामना; इच्छा 2. तृप्ति। [वि.] 1. जिसमें अत्यधिक कामवासना हो 2. पूरा; यथेष्ट; काफ़ी 3. आवश्यकतानुरूप।
प्रकार
(सं.) [सं-पु.] 1. भेद; किस्म; तरह; भाँति 2. सादृश्य 3. विशेषता।
प्रकारांतर
(सं.) [वि.] दूसरे प्रकार से; किसी और तरह से।
प्रकार्य
(सं.) [सं-पु.] 1. ऐसा कार्य जिसे कोई कर्तव्य समझकर या स्वभावतः करता हो 2. प्रमुख कार्य; विशिष्ट कार्य।
प्रकाश
(सं.) [सं-पु.] 1. वह तेज जिसके कारण वस्तुओं का रूप दिखाई देता है; आलोक; ज्योति 2. प्रकट या गोचर होना 3. किसी बात का प्रकाशन 4. पुस्तक का विभाजन; अध्याय 5.
धूप; आतप।
प्रकाशक
(सं.) [सं-पु.] वह जो पुस्तकें, समाचारपत्र आदि का प्रकाशन करता हो; (पब्लिशर)।
प्रकाशकीय
(सं.) [वि.] प्रकाशक का; प्रकाशक संबंधी। [सं-पु.] पुस्तक के आरंभ में प्रकाशक की ओर से किया गया निवेदन।
प्रकाशगृह
(सं.) [सं-पु.] ऊँची इमारत जहाँ से बहुत प्रबल प्रकाश निकलकर चारों ओर फैलता हो; (लाइट हाउस)।
प्रकाशन
(सं.) [सं-पु.] 1. पत्र-पत्रिका, ग्रंथ आदि को छपवाकर बेचने तथा प्रचारित करने का व्यवसाय या पेशा; (पब्लिकेशन) 2. प्रकाशित पुस्तकें, पत्र आदि 3. प्रकाश करने
की क्रिया या भाव 4. आलोकित करना; प्रकट करना। [वि.] प्रकाशित करने वाला।
प्रकाशनाधिकार
(सं.) [सं-पु.] 1. जिसके पास प्रकाशन का अधिकार है; कृतिस्वाम्य; (कॉपीराइट) 2. जिसे किसी रहस्य को प्रकट करने का अधिकार हो।
प्रकाशनालय
(सं.) [सं-पु.] वह स्थान जहाँ पत्र-पत्रिकाओं एवं ग्रंथ आदि का प्रकाशन होता है।
प्रकाश परावर्तक
(सं.) [सं-पु.] (भौतिकविज्ञान) शीशे का वह टुकड़ा या उपकरण जो कहीं से प्रकाश ग्रहण कर उसे अन्य दिशा में प्रक्षेपित करे; वह उपकरण जो किसी की छाया या प्रतिबिंब
ग्रहणकर दूसरी ओर प्रतिफलित करे; प्रकाश प्रतिफलक; प्रतिक्षेपक।
प्रकाशपुंज
(सं.) [सं-पु.] प्रकाश की राशि; प्रकाश की किरणें; प्रकाश किरणों का समूह।
प्रकाशमान
(सं.) [वि.] 1. ज्योतिर्मान; देदीप्यमान; चमकता हुआ 2. प्रसिद्ध।
प्रकाशवान
(सं.) [वि.] जिसमें प्रकाश हो; प्रकाशयुक्त; चमकीला; आभायुक्त।
प्रकाशसंश्लेषण
(सं.) [सं-पु.] (वनस्पतिविज्ञान) वह क्रिया जिससे क्लोरोफ़िल युक्त हरे पौधे सूर्य के प्रकाश में वायुमंडल की कार्बन डाई ऑक्साइड तथा जल से कार्बोहाइड्रेट का
संश्लेषण कर लेते हैं; सजीव कोशिकाओं के द्वारा प्रकाशकीय ऊर्जा को रासायनिक ऊर्जा में परिवर्तित करने की क्रिया।
प्रकाशस्तंभ
(सं.) [सं-पु.] 1. सागर में या सागर के किनारे पर बनाया गया वह स्तंभ या मीनार जिसपर रात में जहाज़ों को चट्टानों या अन्य ख़तरों से बचाने के लिए या किनारे का
संकेत करने हेतु तेज़ रोशनी की जाती है; दीप घर; दीपस्तंभ; (लाईट हाउस) 2. हवाई अड्डे पर रात में वायुयानों का पथ प्रदर्शन करने के लिए चारों ओर भ्रमण करता आकाश
दीप।
प्रकाशित
(सं.) [वि.] 1. छपा हुआ 2. चमकता हुआ; प्रकाशयुक्त।
प्रकाशोत्सव
(सं.) [सं-पु.] 1. चारों तरफ़ दीप जलाकर मनाया जाने वाला उत्सव; प्रकाश का उत्सव; दीपावली 2. {ला-अ.} आनंदोत्सव।
प्रकाश्य
(सं.) [वि.] प्रकाशन करने योग्य। [क्रि.वि.] सबके सामने सुनाकर कहने योग्य; प्रकट रूप से।
प्रकिरण
(सं.) [सं-पु.] 1. बिखेरना; फैलाना 2. मिलाना; मिश्रित करना।
प्रकीर्ण
(सं.) [सं-पु.] 1. किसी ग्रंथ का अध्याय, परिच्छेद अथवा प्रकरण 2. विक्षेप 3. विस्तार 4. अनेक प्रकार की वस्तुओं का मिश्रण 5. काँटेदार करंज। [वि.] 1. बिखरा हुआ
2. फैलाया हुआ 3. मिलाया हुआ 4. अस्त-व्यस्त किया हुआ 5. परिशिष्ट 6. फुटकल।
प्रकीर्णक
(सं.) [सं-पु.] 1. अध्याय; प्रकरण 2. चँवर 3. फुटकल या फुटकर 4. फैलाव 5. वह पाप जिसके प्रायश्चित का उल्लेख किसी ग्रंथ में न हो। [वि.] छितराया हुआ; फैलाया
हुआ।
प्रकीर्तन
(सं.) [सं-पु.] 1. यश गान; प्रशंसा 2. घोषणा।
प्रकीर्ति
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. ख्याति; प्रसिद्धि; यश 2. उद्घोष; घोषणा।
प्रकुपित
(सं.) [वि.] 1. जिसका प्रकोप बहुत बढ़ गया हो; अतिक्रोधित 2. विशेष रूप से कुपित।
प्रकृत
(सं.) [वि.] 1. जो प्रकृति से उत्पन्न या प्राप्त हुआ हो अथवा उसका बनाया हुआ हो; प्रकृतिजन्य 2. जो ठीक उसी रूप में हो जिस रूप में प्रकृति उसे उत्पन्न करती
हो; स्वाभाविक; सहज; साधारण 3. जो प्रस्तुत प्रकरण या प्रसंग के विचार से उपयुक्त, यथेष्ट या वांछनीय हो; संगत।
प्रकृति
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. सहज स्वाभाविक गुण या स्वभाव 2. विश्व की रचना या सृष्टि करने वाली मूल नियामक तथा संचालन शक्ति; कुदरत; (नेचर)।
प्रकृतिजन्य
(सं.) [वि.] 1. जो प्रकृति से उत्पन्न हुआ हो; प्राकृतिक 2. जो सहज रूप से होता हो; स्वाभाविक।
प्रकृतिवाद
(सं.) [सं-पु.] 1. यह मत कि मनुष्य के सभी आचरण, कार्य, विचार आदि प्रकृति से उत्पन्न होने वाली प्रवृत्तियों तथा कामनाओं पर आधारित होते हैं 2. कला तथा साहित्य
के क्षेत्र में यह मत कि प्रकृति में जो दिखाई देता है, उसका यथावत चित्रण होना चाहिए न कि उस पर नैतिक मूल्यों या भावनाओं का अनावश्यक आरोपण; (नेचुरलिज़म)।
प्रकृतिवादी
(सं.) [सं-पु.] 1. वह व्यक्ति जो प्रकृतिवाद के सिद्धांत को मानता हो 2. प्रकृति का वर्णन करने वाला कवि या चित्रकार। [वि.] प्रकृतिवाद संबंधी; प्रकृतिवाद का।
प्रकृतिविज्ञान
(सं.) [सं-पु.] 1. वह विज्ञान जिसमें जगत की उत्पत्ति, विकास आदि का अध्ययन किया जाता है; वह विज्ञान या शास्त्र जिसमें प्राकृतिक बातों अर्थात सृष्टि की
उत्पत्ति, विकास, लय आदि का निरूपण होता है 2. पारिभाषिक और वैज्ञानिक क्षेत्रों में वह विज्ञान या शास्त्र जिसमें प्राकृतिक या भौतिक जगत के भिन्न-भिन्न अंगों,
क्षेत्रों, रूपों, स्थितियों आदि का विचार या विवेचन होता है; (नैचुरल साइंस)।
प्रकृतिस्थ
(सं.) [वि.] 1. जो अपने स्वभाव या स्वरूप में स्थित हो; स्वाभाविक 2. विकार रहित 3. स्वस्थ।
प्रकृत्या
(सं.) [अव्य.] स्वभावतः; स्वाभाविक रूप से; सहज रूप से।
प्रकृष्ट
(सं.) [वि.] 1. ज़ोर से खींचा हुआ 2. बढ़ाया हुआ 3. उत्तम; उत्कृष्ट 4. मुख्य; प्रधान।
प्रकोप
(सं.) [सं-पु.] 1. बहुत अधिक क्रोध का भाव 2. क्षोभ 3. बीमारी को बढ़ाने वाला ज़ोर 4. शरीर के वात, पित्त आदि में विकार होना जिससे रोग होते हैं।
प्रकोष्ठ
(सं.) [सं-पु.] 1. किसी संस्था में अलग-अलग उद्देश्य से निर्मित विशेष कक्ष 2. घर के मुख्य दरवाज़े के पास का कमरा 3. सभाकक्ष 4. महल के भीतर का आँगन 5.
विधानसभा, संसद आदि के बाहर का कमरा या प्रांगण; (लॉबी) 6. बाँह या कलाई से लेकर कुहनी तक का भाग।
प्रक्रम
(सं.) [सं-पु.] 1. क्रम; सिलसिला 2. उपक्रम 3. उलंघन; अतिक्रण 4. अवसर; मौका 5. विकास क्रम में बीच-बीच में आने वाली स्थितियाँ 6. प्रक्रिया; (प्रोसेस)।
प्रक्रमण
(सं.) [सं-पु.] 1. कदम बढ़ाना 2. आरंभ करना 3. अधिक भ्रमण 4. पार करना; उत्तीर्ण।
प्रक्रिया
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. वह क्रिया या प्रणाली जिससे कोई वस्तु होती, बनती या निकलती हो; (प्रोसेस) 2. किसी कृत्य, विशेषतः अभियोग आदि की सुनवाई में होने वाले आदि
से अंत तक के सभी कार्य या उनके ढंग; (प्रोसीज़र) 3. किसी कार्य की सिद्धि या पूर्ति के संबंध में वह सारी कार्यवाही जो अब तक हो चुकी हो।
प्रक्रियात्मक
(सं.) [वि.] 1. कार्यविधि संबंधी; कार्यविधिक 2. प्रक्रिया के रूप में होने वाला।
प्रक्षय
(सं.) [सं-पु.] क्षय; विनाश; अंत।
प्रक्षाल
(सं.) [सं-पु.] प्रायश्चित; धोना। [वि.] शुद्ध करने वाला; शोधक।
प्रक्षालन
(सं.) [सं-पु.] 1. जल से सफ़ाई करना; धोना 2. वैज्ञानिक क्षेत्र में जल के संयोग से या विशिष्ट प्रक्रिया से किसी वस्तु में विद्यमान मैल या अवांक्षित अंश अलग
करना 3. स्वच्छ या निर्मल करना 4. नहाना।
प्रक्षिप्त
(सं.) [वि.] 1. फेंका हुआ 2. मिलाया हुआ; डाला हुआ; पीछे से जोड़ा हुआ 3. आगे की ओर निकला हुआ।
प्रक्षीण
(सं.) [वि.] पूर्णतः नष्ट; विनष्ट। [सं-पु.] 1. विनाश स्थल 2. विनाश की अवस्था या स्थिति।
प्रक्षुण्ण
(सं.) [वि.] 1. कूटा हुआ; चूर्णित 2. चोट पहुँचाया हुआ 3. रौंदा हुआ (मार्ग)।
प्रक्षेप
(सं.) [सं-पु.] 1. आगे की ओर ज़ोर से फेंकना 2. अस्त्र प्रहार 3. छितराना 4. किसी वस्तु में दूसरी वस्तु मिलाना 5. साझेदारी के व्यवसाय में साझेदार का मूलधन।
प्रक्षेपक
(सं.) [सं-पु.] वह यंत्र जिसके द्वारा किसी आकृति का प्रतिबिंब सामने वाले परदे या दीवार आदि पर डाला जाता है; (प्रोजेक्टर) 2. किसी लेख या पुस्तक में जोड़ा गया
अतिरिक्त अंश 3. वह यंत्र जिसके द्वारा कृत्रिम उपग्रह आदि को प्रक्षेपित किया जाता है। [वि.] प्रक्षेपण करने वाला या फेंकने वाला।
प्रक्षेपण
(सं.) [सं-पु.] 1. सामने की ओर कोई चीज़ फेंकने की क्रिया या भाव 2. ऊपर से मिलाना 3. निश्चित करना 4. जहाज़ आदि चलाना 5. मूल लेख में कुछ जोड़कर समानार्थ
प्रकटीकरण 6. साधारण सीमा या नियमित रेखा से आगे निकालना या बढ़ाना।
प्रक्षेपणीय
(सं.) [वि.] प्रक्षेपण के योग्य; फेंकने योग्य।
प्रक्षेप पथ
(सं.) [सं-पु.] 1. वह मार्ग, दिशा या स्थान जिसपर कोई वस्तु प्रक्षेपित की जाती है 2. उड़ानपथ; वायुमार्ग 3. रॉकेट, उपग्रह आदि हेतु प्रक्षेपण कक्षा।
प्रक्षेपास्त्र
(सं.) [सं-पु.] 1. कृत्रिम उपग्रह आदि के प्रक्षेपण हेतु उपयोग में लाया जाने वाला अस्त्र 2. वह अस्त्र जिसका प्रयोग दूर स्थित लक्ष्य को बेधने के लिए किया जाता
है।
प्रक्षेपित
(सं.) [वि.] 1. फेंका हुआ 2. ऊपर से मिलाई अथवा बिछाई जाने वाली (वस्तु)।
प्रक्षेपी
(सं.) [सं-स्त्री.] सामाजिक अनुसंधान में व्यक्तित्व मापन की एक निर्धारित विधि। [वि.] 1. प्रक्षेपक; फेंकने वाला 2. फेंक कर चलाया जाने वाला।
प्रक्षेप्य
(सं.) [वि.] 1. आगे फेंका हुआ; फेंकने योग्य 2. फेंककर चलाया जाने वाला।
प्रखंड
(सं.) [सं-पु.] 1. किसी बड़े विभाग का छोटा विभाग; (डिवीज़न) 2. खंड का खंड।
प्रखर
(सं.) [वि.] 1. बुद्धिमत्तापूर्ण 2. तीक्ष्ण; प्रचंड; उग्र।
प्रखरता
(सं.) [सं-स्त्री.] प्रखर होने की अवस्था, गुण या भाव; प्रचंडता; तीक्ष्णता; तेज़ी।
प्रख्यात
(सं.) [वि.] 1. अति प्रसिद्ध; मशहूर 2. प्रसन्न; सुखी। [सं-पु.] नाटक का एक भेद जिसमें कथावस्तु का आधार ऐतिहासिक या पौराणिक कहानियाँ होती हैं।
प्रख्याति
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. प्रसिद्धि; बहुत ख्याति 2. प्रशंसा।
प्रख्यान
(सं.) [सं-पु.] 1. सूचना 2. सूचित करना 3. अनुभव करना।
प्रख्यापन
(सं.) [सं-पु.] 1. कोई आज्ञप्ति सर्वसाधारण को सूचित करना; आवश्यक आदेश 2. प्रचारित या संचारित करना 3. प्रसिद्ध करना।
प्रगट
(सं.) [वि.] 1. प्रकट; सामने; प्रत्यक्ष 2. उत्पन्न 2. जो गुप्त न हो 3. जिसका प्रादुर्भाव हुआ हो। [क्रि.वि.] प्रकट रूप से।
प्रगत
(सं.) [वि.] 1. जिसने प्रस्थान किया हो; जो चल चुका हो 2. आगे बढ़ा हुआ 3. मुक्त 4. मृत।
प्रगति
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. निरंतर विकसित अथवा उन्नत होने का भाव; क्रमिक उन्नति 2. विशेषतः किसी कार्य को पूर्णता की ओर बढ़ाते चलना।
प्रगतिरुद्ध
(सं.) [वि.] जिसकी प्रगति या उन्नति रुक गई हो।
प्रगतिवाद
(सं.) [सं-पु.] 1. समाज, साहित्य आदि की निरंतर सर्वांग उन्नति (विकास) पर बल देने वाला सिद्धांत 2. (साहित्य) मार्क्सवाद तथा भौतिक यथार्थवाद के लक्ष्य को पूरा
करने के लिए दिया गया साहित्य का आधुनिक सिद्धांत; (साहित्य) एक वाद या विचारधारा।
प्रगतिवादी
(सं.) [वि.] 1. जो प्रगति की ओर उन्मुख हो 2. प्रगतिवाद संबंधी।
प्रगतिशील
(सं.) [वि.] बराबर आगे बढ़ने वाला; उन्नतिशील; (प्रोग्रेसिव)।
प्रगल्भ
(सं.) [वि.] 1. प्रायः बढ़-चढ़कर बोलने वाला; अधिक बोलने वाला; वाचाल 2. प्रतिभाशाली 3. उत्साही; हिम्मती 4. हाज़िरजवाब 5. निडर; निर्भय।
प्रगल्भता
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. प्रगल्भ होने की अवस्था या भाव 2. वाक्चातुर्य 3. प्रतिभा 4. मुखरता 5. प्रौढ़ता 6. निःशंकता 7. प्रसिद्धि।
प्रगल्भा
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. (काव्यशास्त्र) नायिका का एक भेद; प्रौढ़ा नायिका 2. दुर्गा का एक नाम।
प्रगाढ़
(सं.) [वि.] 1. डुबाया या तर किया हुआ 2. बहुत गाढ़ा 3. बहुत मज़बूत; दृढ़ 4. गहरा 5. घना।
प्रगाढ़ता
(सं.) [सं-स्त्री.] प्रगाढ़ होने की अवस्था या भाव; प्रगाढ़ आत्मीयता का भाव।
प्रगाढ़न
(सं.) [सं-पु.] प्रगाढ़ करना या बनाना।
प्रगाता
(सं.) [सं-पु.] बड़ा या महान गायक; गवैया। [वि.] बहुत अच्छा गाने वाला।
प्रगामी
(सं.) [वि.] गमन या प्रस्थान करने वाला; जाने वाला।
प्रगीत
(सं.) [सं-पु.] गीत; गाना। [वि.] गाया हुआ।
प्रगीतात्मक
(सं.) [वि.] गीतों से भरा।
प्रगीति
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. गीतिकाव्य 2. एक प्रकार का छंद।
प्रगुण
(सं.) [वि.] 1. उत्तम गुण वाला; गुणी; गुणवान 2. चतुर; होशियार 3. अच्छा और लाभदायक 4. अनुकूल 5. शुभ।
प्रगुणी
(सं.) [वि.] 1. जिसमें गुण रहता हो; गुणवान 2. चतुर 3. मित्रतापूर्ण।
प्रग्रह
(सं.) [सं-पु.] 1. अच्छी तरह पकड़ने का ढंग 2. ग्रहण करने की क्रिया 3. सूर्य या चंद्र ग्रहण का आरंभ 4. आदर; सत्कार 5. तराज़ू में लगी रस्सी 6. बागडोर 7. कोड़ा
8. अनुग्रह; कृपा 9. पगहा 10. नेता; अगुआ; मार्गदर्शक 11. उपग्रह 12. स्वर्ण; सोना 13. विष्णु 14. हाथ; बाँह 15. कनेर का पेड़ 16. कैद; बंधन; 17. बंदी; कैदी 18.
नियमन।
प्रघटन
(सं.) [सं-पु.] 1. घटित होने की क्रिया या अवस्था 2. घटित घटना या कार्य; मामला।
प्रघोष
(सं.) [सं-पु.] 1. प्रचंड आवाज़ या ध्वनि 2. ऊँची ध्वनि।
प्रचंड
(सं.) [वि.] 1. अतितीव्र; प्रखर 2. प्रचंड; भंयकर; भीषण 3. प्रबल 4. असह्य 5. अत्यंत क्रोधी 6. अतितेजस्वी; प्रतापी।
प्रचंडता
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. प्रचंड होने की अवस्था या भाव 2. तेज़ी 3. प्रखरता 4. उग्रता 5. भयंकरता।
प्रचंडा
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. दुर्गा 2. दुर्गा की एक सखी 3. शंखपुष्पी; क्षीरपुष्प (दूध के समान सफ़ेद फूल वाले); मांगल्य कुसुमा।
प्रचर
(सं.) [सं-पु.] 1. राह; रास्ता; मार्ग 2. चलन; रीतिरिवाज।
प्रचरण
(सं.) [सं-पु.] 1. चरण आगे बढ़ाना; आरंभ करना 2. घूमना-फिरना 3. विचरण 4. प्रचलित होना।
प्रचरित
(सं.) [वि.] 1. जिसका प्रचार हो; जो प्रचरण में हो 2. प्रचलित 3. अभ्यस्त।
प्रचल
(सं.) [वि.] 1. अति चंचल 2. अधिक चलने वाला।
प्रचलन
(सं.) [सं-पु.] 1. प्रथा; रिवाज 2. उपयोग या व्यवहार आदि में आना 3. चलनसार होना।
प्रचलित
(सं.) [वि.] जिसका प्रचलन हो; जो उपयोग या व्यवहार में आ रहा हो।
प्रचार
(सं.) [सं-पु.] 1. जनता में किसी बात को प्रसिद्ध करना, प्रसारित करना या फैलाना 2. विज्ञापन 3. किसी वस्तु का प्रयोग 4. गति 5. मार्ग 6. आचरण 7. चलन; रिवाज।
प्रचारक
(सं.) [वि.] 1. प्रचार करने वाला; विस्तार करने वाला; फैलाने वाला 2. किसी वस्तु, योजना, घटना, सिद्धांत आदि को फैलाने या प्रसारित करने वाला।
प्रचारकर्ता
(सं.) [वि.] प्रचार करने वाला; विज्ञापन करने वाला; प्रचारक।
प्रचारण
(सं.) [सं-पु.] 1. प्रचार करने की क्रिया; प्रचारित होना 2. विचरण; घूमना-फिरना 3. चलन होना।
प्रचारणा
(सं.) [सं-स्त्री.] आह्वान; चुनौती; ललकार।
प्रचार-प्रसार
(सं.) [सं-पु.] 1. किसी का प्रचार एवं साथ ही साथ प्रसार करने की क्रिया 2. फैलाव 3. किसी वस्तु का निरंतर व्यवहार।
प्रचार वाक्य
(सं.) [सं-पु.] नारा; आदर्श वाक्य; (स्लोगन)।
प्रचारात्मक
(सं.) [वि.] 1. प्रचार से संबंधित 2. किसी घटना या वस्तु के विषय में समाचार प्रसार करने संबंधी।
प्रचारार्थ
(सं.) [अव्य.] प्रचार-प्रसार के लिए।
प्रचारिका
(सं.) [सं-स्त्री.] प्रचार करने वाली स्त्री।
प्रचारिणी
(सं.) [वि.] प्रचार करने वाली; विज्ञापन करने वाली।
प्रचारित
(सं.) [वि.] 1. प्रचार किया हुआ 2. फैलाया हुआ।
प्रचालन
(सं.) [सं-पु.] 1. ठीक ढंग से चलाने की क्रिया या भाव 2. प्रचलन में लाने की अवस्था।
प्रचुर
(सं.) [वि.] 1. अधिक; पर्याप्त; विपुल 2. भरापूरा; पूर्ण।
प्रचुरता
(सं.) [सं-स्त्री.] प्रचुर होने का भाव; अधिकतता; आधिक्य।
प्रचेता
(सं.) [सं-पु.] 1. वरुण 2. एक प्राचीन स्मृतिकार ऋषि। [वि.] 1. महान ज्ञानवान; बुद्धिमान 2. चालाक; चतुर।
प्रचेल
(सं.) [सं-पु.] 1. पीला चंदन 2. पीले वर्ण वाला मलय वृक्ष।
प्रचोद
(सं.) [सं-पु.] प्रेरित करना; उत्तेजित करना।
प्रचोदक
(सं.) [वि.] प्रेरक; उकसाने वाला; उत्तेजक।
प्रचोदन
(सं.) [सं-पु.] 1. आगे बढ़ाना 2. उत्तेजित करना; उकसाना 3. प्रेषण 4. घोषणा 5. नीति, सिद्धांत, आज्ञा आदि।
प्रचोदित
(सं.) [वि.] 1. जिसे बढ़ावा दिया गया हो; जिसे प्रेरणा दी गई हो; प्रेरित किया हुआ 2. उकसाया हुआ; उत्तेजित किया हुआ 3. भेजा हुआ 4. आदिष्ट 5. प्रेषित 6. घोषित
किया हुआ 7. आदेशित; जिसे आदेश मिला हो।
प्रच्छन्न
(सं.) [वि.] 1. छुपा हुआ; गुप्त 2. ढका हुआ; आच्छादित। [सं-पु.] 1. खिड़की 2. चोर दरवाज़ा।
प्रच्छादक
(सं.) [वि.] 1. अच्छी तरह ढकने वाला; आच्छादक 2. छिपाने वाला।
प्रच्छादन
(सं.) [सं-पु.] 1. अच्छी तरह ढकने की क्रिया या भाव 2. दूसरों से छिपाने या चुराने का भाव 3. वह वस्तु जिससे कोई चीज़ ढकी जाए 4. आँख की पलक।
प्रच्छादित
(सं.) [वि.] 1. ढका हुआ; आच्छादित 2. छुपा हुआ; गुप्त।
प्रच्छाया
(सं.) [सं-स्त्री.] ग्रहण के समय सूर्य पर पड़ने वाली चंद्रमा की छाया या चंद्रमा पर पड़ने वाली पृथ्वी की छाया।
प्रच्छेदन
(सं.) [सं-पु.] 1. अच्छी तरह काटना 2. टुकड़े-टुकड़े करना।
प्रजनक
(सं.) [सं-पु.] 1. पिता 2. वंशक्रम में पूर्वज 3. पशुपालन तथा पशु-प्रजनन करने वाला व्यक्ति। [वि.] 1. जन्म देने वाला 2. उत्पन्न करने वाला।
प्रजनन
(सं.) [सं-पु.] 1. अपने ही जैसे नए जीवों को जन्म देने की क्रिया; संतान उत्पन्न करना; प्रसव क्रिया 2. जीवों का होने वाला जन्म।
प्रजननशास्त्र
(सं.) [सं-पु.] अनुवंशशास्त्र; आनुवंशिकी; (जेनेटिक्स)।
प्रजनित
(सं.) [वि.] उत्पन्न किया हुआ।
प्रजा
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. किसी राज्य या राष्ट्र की जनता; रिआया; अवाम 2. संतान; औलाद 3. किसी विशिष्ट राज्य या शासन में रहने वाले वे सभी लोग जो उसके द्वारा शासित
होते हैं 4. स्वामी पर निर्भर जन।
प्रजाक्षोभ
(सं.) [सं-पु.] 1. शासन या राज्य सत्ता के विरुद्ध प्रजा में उत्पन्न असंतोष, क्षोभ या विरोध की भावना 2. राज्य प्रतिरोध।
प्रजागरण
(सं.) [सं-पु.] 1. जागते रहने का भाव; जागरण 2. पहरा देना।
प्रजातंत्र
(सं.) [सं-पु.] एक शासन प्रणाली जिसमें प्रजा द्वारा चुने हुए प्रतिनिधि शासन चलाते हैं; जनतंत्र; लोकतंत्र।
प्रजातंत्री
(सं.) [वि.] प्रजातांत्रिक; जनतंत्रवादी; प्रजातंत्रवादी; प्रजातंत्रात्मक; सार्वलौकिक; लोकतंत्र संबंधी।
प्रजाता
(सं.) [सं-स्त्री.] वह स्त्री जिसने शिशु को जन्म दिया हो; प्रसूतिका।
प्रजाति
(सं.) [सं-स्त्री.] प्राणियों, वनस्पतियों आदि का वह समूह जिसके सदस्यों के आकार-प्रकार, रूप-रंग आदि में समानता हो।
प्रजापति
(सं.) [सं-पु.] 1. सृष्टि का रचयिता; ब्रह्मा 2. सूर्य 3. अग्नि 4. विश्वकर्मा 5. यज्ञ 6. जनक 7. राजा।
प्रजायी
(सं.) [वि.] उत्पन्न करने वाला या जन्म देने वाला।
प्रजीवन
(सं.) [सं-पु.] आजीविका; रोज़ी-रोज़गार।
प्रजेश
(सं.) [सं-पु.] प्रजा का स्वामी; राजा; प्रजापति।
प्रज्ञ
(सं.) [सं-पु.] 1. विद्वान; पंडित 2. बुद्धिमान। [वि.] 1. प्रकृष्ट बुद्धिवाला 2. जिसमें प्रज्ञाशक्ति यथेष्ट हो; मतिमान।
प्रज्ञप्ति
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. सूचित करने या ज्ञात कराने की क्रिया 2. संकेत; इशारा 3. सूचना 4. बुद्धि।
प्रज्ञा
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. बुद्धि; समझ; विवेक; मति; मनीषा 2. सरस्वती 3. बुद्धि का वह परिष्कृत, विकसित तथा संस्कृत रूप जो उसे अध्ययन, अभ्यास, निरीक्षण आदि के
द्वारा प्राप्त होता है और जिससे मनुष्य किसी विषय या वस्तु के वास्तविक रूप को सहज में समझ लेता है; न्यायबुद्धि।
प्रज्ञाचक्षु
(सं.) [वि.] 1. अपनी बुद्धि से ही सब कुछ जान-समझ लेने वाला; बुद्धिमान 2. जिसकी बुद्धि ही आँखों का कार्य करती हो। [सं-पु.] 1. धृतराष्ट्र 2. बुद्धिमान;
ज्ञानी।
प्रज्ञात्मा
(सं.) [वि.] परम ज्ञानवान; परम बुद्धिमान।
प्रज्ञान
(सं.) [सं-पु.] 1. किसी विषय या वस्तु का विशेष रूप से प्राप्त ज्ञान 2. विवेक; बुद्धि; ज्ञान 3. निशान; चिह्न 4. चैतन्य। [वि.] पंडित; बुद्धिमान।
प्रज्ञापक
(सं.) [सं-पु.] मोटे या बड़े अक्षरों में लिखा हुआ विज्ञापन। [वि.] 1. प्रज्ञापन करने वाला 2. सूचित करने वाला।
प्रज्ञापन
(सं.) [सं-पु.] 1. किसी विषय या घटना आदि के विषय में सूचित करना 2. जताना।
प्रज्ञापित
(सं.) [वि.] 1. जिसका ज्ञान कराया गया हो 2. जिसकी सूचना दी गई हो।
प्रज्ञावान
(सं.) [वि.] 1. चतुर; बुद्धिमान 2. विवेक, बुद्धि और ज्ञान से युक्त।
प्रज्ञाशील
[वि.] 1. वह जिसमें सभी काम सोच-समझ कर करने की योग्यता हो या जो सभी काम सोच समझकर करता हो 2. वह जिसमें न्यायबुद्धि हो।
प्रज्वलन
(सं.) [सं-पु.] 1. अच्छी तरह या तेज़ जलना; ज़ोर से जलना; दहकना 2. प्रकाश, ताप आदि उत्पन्न करने के उद्देश्य से किसी वस्तु को जलाना।
प्रज्वलित
(सं.) [वि.] 1. जलता हुआ 2. दहकता हुआ 3. चमकता हुआ 4. {ला-अ.} व्यक्त और सुस्पष्ट।
प्रज्वालन
(सं.) [सं-पु.] जलाने की क्रिया; जलाना।
प्रण
(सं.) [सं-पु.] दृढ़ निश्चय; प्रतिज्ञा। [वि.] पुराना; प्राचीन।
प्रणत
(सं.) [सं-पु.] 1. उपासक या भक्त 2. दास 3. नौकर। [वि.] 1. झुका हुआ 2. प्रणाम करने हेतु झुका हुआ 3. नमित; विनीत; नम्र 4. दक्ष; चतुर 5. शरणागत।
प्रणतपाल
(सं.) [सं-पु.] दीन-दुखियों की रक्षा करने वाला; पालन-पोषण करने वाला।
प्रणति
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. झुकने की क्रिया 2. प्रणाम; दंडवत; प्रणिपात 3. नम्रता 4. प्रार्थना; निवेदन; विनती।
प्रणम्य
(सं.) [वि.] 1. प्रणाम करने योग्य; वंद्य 2. जिसके आगे झुककर प्रणाम करना अथवा नतमस्तक होना उचित हो 3. पूज्य और वंदनीय।
प्रणय
(सं.) [सं-पु.] प्रेम; प्यार; अनुराग।
प्रणयन
(सं.) [सं-पु.] 1. कोई चीज़ कहीं से ले आना या ले जाकर कहीं पहुँचाना 2. कोई काम पूरा करना 3. साहित्यिक काव्य, ग्रंथ, लेख आदि लिखना 4. कोई नई चीज़ बनाकर तैयार
करना; रचना 5. उपस्थित करना; सामने लाना 6. होम आदि के समय किया जाने वाला अग्नि का एक संस्कार।
प्रणय निवेदन
(सं.) [सं-पु.] प्रेम हेतु की गई प्रार्थना।
प्रणय स्थल
(सं.) [सं-पु.] प्रणयलीला स्थल; प्रेमी-प्रेमिका के मिलने का गोपनीय या निर्जन स्थान।
प्रणयिनी
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. प्रेयसी; प्रेमिका; कांता 2. पत्नी।
प्रणयी
(सं.) [सं-पु.] 1. प्रेमी; कांत 2. पति 3. सेवक 4. प्रार्थी 5. उपासक। [वि.] प्रणय (प्रेम) या अनुराग करने वाला।
प्रणव
(सं.) [सं-पु.] 1. ओंकार; ओंकार मंत्र 2. परमेश्वर 3. त्रिदेव (ब्रह्मा, विष्णु और शिव)।
प्रणाम
(सं.) [सं-पु.] 1. श्रद्धायुक्त होकर किसी के सामने नत होना 2. हाथ जोड़ कर अभिवादन का एक प्रकार 3. नमस्कार; अभिवादन।
प्रणामी
(सं.) [सं-पु.] प्रणाम करने वाला व्यक्ति। [सं-स्त्री.] वह धन या दक्षिणा जो बड़ों को प्रणाम करते समय उनके चरणों पर आदरपूर्वक रखा जाता है।
प्रणायक
(सं.) [सं-पु.] 1. मार्गदर्शक; पथप्रदर्शक 2. नेता 3. सेनापति।
प्रणाली
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. वह मार्ग या नाला जिसमें से होकर जल बहता हो 2. विशेषतः ऐसा जलमार्ग जो दो जलराशियों को मिलाता हो 3. कोई काम करने का उचित, उपयुक्त नियत
या विधि-विहित ढंग, प्रकार या साधन; (चैनल) 4. द्वार 5. परंपरा; प्रथा।
प्रणाशन
(सं.) [सं-पु.] नाश करना; नाश करने की क्रिया या भाव; विनाश; बरबादी।
प्रणिधान
(सं.) [सं-पु.] 1. देखा जाना 2. रखा जाना 3. उपयोग; व्यवहार 4. प्रयत्न 5. (योग) समाधि 6. पूरी भक्ति और श्रद्धा से की जाने वाली साधना; उपासना 7. चित्त की
एकाग्रता 8. किए जाने वाले कर्म के फल का त्याग 9. अर्पण 10. भक्ति।
प्रणिधि
(सं.) [सं-पु.] 1. गुप्तचर 2. अनुचर 3. याचन 4. अवधान। [सं-स्त्री.] 1. मन की एकाग्रता 2. प्रार्थना; निवेदन 3. तत्परता।
प्रणिपात
(सं.) [सं-पु.] 1. नमन; प्रणाम 2. अभिवादन 3. चरणों पर गिरना।
प्रणीत
(सं.) [वि.] 1. जिसका प्रणयन किया गया हो या हुआ हो; बना या तैयार किया हुआ; निर्मित; रचित 2. जिसका संशोधन या संस्कार हुआ हो; संशोधित; संस्कृत 3. प्रवेशित 4.
अलग किया हुआ; फेंका हुआ। [सं-पु.] 1. मंत्र से संस्कारित जल 2. मंत्र से संस्कारित अग्नि 3. पकाया हुआ भोजन।
प्रणीता
(सं.) [सं-स्त्री.] अभिमंत्रित जलपात्र; मंत्र शोधित (शुद्ध किया गया) पानी रखने का बरतन।
प्रणेता
(सं.) [सं-पु.] 1. पथप्रदर्शक; नेता; निर्माता 2. ग्रंथ का रचयिता 3. किसी मत या सिद्धांत का प्रवर्तक।
प्रतनु
(सं.) [वि.] 1. अतिकृश; अति क्षीण 2. अति सूक्ष्म 3. अत्यल्प।
प्रताड़ना
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. सताना; सताने की क्रिया 2. डाँट-फटकार 3. कष्टदायक स्थिति।
प्रताड़ित
(सं.) [वि.] 1. जिसे प्रताड़ित किया गया हो 2. जिसे डाँटा-फटकारा गया हो 3. जिसे मानसिक वेदना पहुँचाई गई हो।
प्रतान
(सं.) [सं-पु.] 1. नए पत्ते; किसलय 2. लतातंतु; लता 3. विस्तार; फैलाव 4. एक रोग; मिरगी।
प्रताप
(सं.) [सं-पु.] 1. तेज 2. पराक्रम; विक्रम 3. वीरता 4. प्रभुत्व 5. प्रभाव 6. पौरुष; प्रकृष्ट ताप 7. प्राचीन भारत में युवराज के सिर पर लगाया जाने वाला एक
प्रकार का छत्र 8. (संगीत) कर्नाटक पद्धति का एक राग 9. मदार का पेड़।
प्रतापवान
(सं.) [वि.] पराक्रमी; प्रतापी।
प्रतापी
(सं.) [वि.] 1. पराक्रमी 2. जिसका प्रताप चारों ओर फैला हो 3. बहुत दुख देने वाला 4. संताप देने वाला; सताने वाला।
प्रतारण
(सं.) [सं-पु.] 1. ठगी; वंचना 2. धूर्तता; धोखेबाज़ी।
प्रतारणा
(सं.) [सं-स्त्री.] धोखा देने या ठगने की कोई क्रिया या ढंग; वंचना; ठगी।
प्रतारित
(सं.) [वि.] 1. जिसे धोखा दिया गया हो 2. जो ठगा गया हो।
प्रति1
(सं.) [सं-स्त्री.] अनेक पुस्तकों या समाचार पत्रों में से कोई एक (कॉपी)। [अव्य.] 1. ओर; तरफ़ 2. संबंध में; विषय में।
प्रति2
[पूर्वप्रत्य.] एक प्रत्यय जो शब्दों के साथ जुड़कर निम्नलिखित अर्थ देता है- 1. विरोध, विपरीतता, जैसे- प्रतिकूल 2. बदला, जैसे- प्रतिघात, प्रतिकार 3. समानता,
सादृश्य, जैसे- प्रतिमूर्ति, प्रतिरूप 4. खंडन, जैसे- प्रतिवाद 5. अधिकता, जैसे- प्रतिख्याति 6. स्थानापन्न; सहायक, जैसे- प्रतिकुलपति इत्यादि।
प्रतिंचा
(सं.) [सं-स्त्री.] धनुष की डोरी; प्रत्यंचा; चिल्ला।
प्रतिकर
(सं.) [सं-पु.] 1. क्षतिपूर्ति; हरजाना 2. विक्षेप; प्रतिशोध।
प्रतिकरक
(सं.) [वि.] 1. हरजाने या प्रतिकर से संबंध रखने वाला 2. हरजाने के रूप में दिया जाने वाला।
प्रतिकरणीय
(सं.) [वि.] प्रतिकार करने योग्य; जिसका प्रतिरोध किया जाए; जिसे रोका जाए।
प्रतिकर्षण
(सं.) [सं-पु.] विरोध या घृणा का भाव।
प्रतिकर्षी
(सं.) [वि.] घृणा या विरोध करने वाला; विरोधी।
प्रतिकार
(सं.) [सं-पु.] 1. बदला चुकाने के लिए किया गया कार्य; बदला 2. कार्य आदि को रोकने के लिए किया जाने वाला प्रयत्न या उपाय; विरोध।
प्रतिकारक
(सं.) [सं-पु.] रोग-प्रतिरोधक औषधि; शरीर के अंदर प्रवेशकर किसी विष के प्रभाव को रासायनिक क्रिया द्वारा नष्ट करने वाली औषधि। [वि.] प्रतिकार करने वाला।
प्रतिकारी
(सं.) [सं-पु.] वह जो किसी का प्रतिकार करता है। [वि.] प्रतिकार करने वाला; विरोध करने वाला।
प्रतिकुलपति
(सं.) [सं-पु.] पद क्रम में कुलपति के ठीक नीचे का पद; (प्रोवाइसचांसलर)।
प्रतिकूल
(सं.) [वि.] 1. जो अनुकूल न हो; खिलाफ़ 2. विरुद्ध; विपरीत 3. रुचि, वृत्ति, निश्चय आदि के विरुद्ध या उलटा पड़ने वाला 4. कार्य में बाधक।
प्रतिकूलता
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. प्रतिकूल होने की अवस्था 2. बाधा; अड़चन 3. विरोधी; विपक्ष।
प्रतिकृति
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. प्रतिरूप; प्रतिबिंब; सादृश्य 2. किसी के अनुकरण पर बनाई हुई मूर्ति या रूप, जैसे- प्रतिमा, चित्र आदि 3. किसी व्यक्ति की आकृति के अनुसार
बना हुआ उसका चित्र; तस्वीर।
प्रतिकोप
(सं.) [सं-पु.] विपक्षी या विरोधी के प्रति होने वाला क्रोध।
प्रतिक्रम
(सं.) [सं-पु.] 1. उलटा या विपरीत क्रम 2. प्रतिकूल आचरण या कार्य। [वि.] जो किसी नियत या मानक क्रम के अनुसार न होकर विपरीत क्रम से बना या लगा हुआ हो।
प्रतिक्रमण
(सं.) [सं-पु.] 1. पीछे लौटना; पीछे जाना 2. विपरीत या उलटा क्रम अपनाना।
प्रतिक्रमात
(सं.) [अव्य.] निर्दिष्ट या बताए हुए क्रम के उलटे या विपरीत क्रम से।
प्रतिक्रिया
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. किसी कार्य या घटना के परिणाम-स्वरूप होने वाला कार्य; (रिएक्शन) 2. प्रतिकार; बदला 3. (रसायनशास्त्र) एकाधिक द्रव्यों के संयोग से होने
वाला रासायनिक परिवर्तन 4. प्राकृतिक नियम के अनुसार होने वाली क्रिया के विपरीत स्वाभाविक क्रिया।
प्रतिक्रियात्मक
(सं.) [वि.] 1. प्रतिक्रिया संबंधी 2. प्रतिक्रिया से युक्त 3. प्रतिक्रिया के फलस्वरूप किया जाने वाला; प्रतिक्रियास्वरूप।
प्रतिक्रियायित
(सं.) [वि.] जो किसी की प्रतिक्रिया के फलस्वरूप सक्रिय होकर प्रतिक्रिया करने लगे।
प्रतिक्रियावाद
(सं.) [सं-पु.] वह सिद्धांत या मत जो उन्नति या नवीन मान्यताओं या क्रांति का विरोधी हो; परंपरागत बातों में सुधार या परिवर्तन करने वालों का विरोध करने का मत
या सिद्धांत।
प्रतिक्रियावादी
(सं.) [सं-पु.] प्रतिक्रियावाद का समर्थक। [वि.] 1. प्रतिक्रियावाद संबंधी 2. सुधार या विकास के विपरीत जाने वाला।
प्रतिक्रियाशील
(सं.) [वि.] वह जो नवीन मान्यताओं या क्रांति का विरोधी हो; प्रतिक्रियावादी।
प्रतिक्रूर
(सं.) [सं-पु.] क्रूरता के विरोध में क्रूरता का भाव; विपक्षी या विरोधी की क्रूरता के प्रति उत्पन्न होने वाली क्रूरता।
प्रतिक्रोध
(सं.) [सं-पु.] क्रोध के प्रति उत्पन्न क्रोध; किसी के क्रोध के कारण (अथवा क्रोध के बदले) उत्पन्न होने वाला क्रोध।
प्रतिक्षण
(सं.) [अव्य.] 1. प्रत्येक क्षण; हर पल; प्रत्येक पल में 3. हमेशा; निरंतर।
प्रतिख्यात
(सं.) [वि.] जिसकी चारों ओर ख्याति हो; अतिप्रसिद्ध।
प्रतिगर्जना
(सं.) [सं-स्त्री.] किसी के गर्जन के प्रत्युत्तर में किया गया गर्जन।
प्रतिगामी
(सं.) [सं-पु.] 1. वह जो प्रतिकूल या विपरीत दिशा में जाए या ले जाए (व्यक्ति, विचार आदि) 2. उन्नति या नवीन मान्यताओं का विरोध करने वाला व्यक्ति;
प्रतिक्रियावादी; (रिएक्शनरी)। [वि.] प्रतिकूल या उलटी दिशा में जाने या ले जाने वाला; प्रतिक्रियावादी।
प्रतिगुंजित
(सं.) [वि.] 1. बार-बार गूँजने वाला 2. प्रतिध्वनित।
प्रतिग्रह
(सं.) [सं-पु.] 1. ग्रहण करना; स्वीकार करना; किसी की दी हुई वस्तु ले लेना 2. पाणिग्रहण; विवाह 3. पत्नी के रूप में ग्रहण करना; ब्याहता 4. प्रतिकार; विरोध 5.
अभ्यर्थना 6. किसी अभियुक्त या संदिग्ध की जाँच के लिए अधिकारियों को सौंपा जाना; (कस्टडी) 7. सेना का पिछला भाग। [वि.] ग्रहण करने वाला; लेने वाला।
प्रतिग्रहण
(सं.) [सं-पु.] 1. विधिपूर्वक दी हुई वस्तु स्वीकार करना 2. पाणिग्रहण 3. दान लेना 4. ऋण आदि का भुगतान न होने पर न्यायालय के आदेश से संबंधित (व्यक्ति) की
संपत्ति पर अधिकार करना।
प्रतिग्राहक
(सं.) [सं-पु.] 1. गृहीता 2. टेलीफ़ोन का एक उपकरण; (रिसीवर) 3. संपत्ति से होने वाली आय लेने वाला या न्यायालय द्वारा नियुक्त वह अधिकारी जो किसी विवादित या
ऋण-ग्रस्त संपत्ति की देखरेख के लिए नियुक्त किया जाता है। [वि.] दान लेने वाला; दी हुई वस्तु लेने वाला।
प्रतिघात
(सं.) [सं-पु.] 1. आघात के बदले किया गया आघात; बाधा; रुकावट 2. मारण; वध।
प्रतिघाती
(सं.) [वि.] प्रतिघात करने वाला।
प्रतिचक्रवात
(सं.) [सं-पु.] (भूगोल) चक्रवात से पूर्णतः विपरीत प्रकृति का चक्रवात जिसके केंद्र में उच्च वायुदाब तथा परिधि की ओर निम्न वायुदाब पाया जाता है जिसके कारण
हवाएँ केंद्र से परिधि की ओर प्रवाहित होती हैं।
प्रतिच्छवि
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. प्रतिबिंब; परछाईं 2. चित्र; तस्वीर 3. प्रतिमा।
प्रतिच्छाया
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. चित्र; तस्वीर 2. प्रतिरूप 3. परछाईं; प्रतिबिंब 4. प्रतिमा।
प्रतिच्छायित
(सं.) [वि.] 1. जिसपर किसी की परछाईं पड़ी हो 2. प्रतिबिंबित।
प्रतिछाया
(सं.) [सं-स्त्री.] प्रतिच्छाया; परछाईं।
प्रतिजल्प
(सं.) [सं-पु.] 1. किसी को उसकी बात के उत्तर में कही गई बात; प्रत्युत्तर 2. विपरीत या विरोध में कही गई बात 3. सम्मति; परामर्श।
प्रतिजिह्वा
(सं.) [सं-स्त्री.] गले के भीतर (अंदर) की घंटी; कौआ।
प्रतिजैविक
(सं.) [सं-पु.] एक पदार्थ या यौगिक जो जीवाणुओं को मार डालता है या उसके विकास को रोकता है; (एंटीबायोटिक)।
प्रतिज्ञ
(सं.) [वि.] प्रतिज्ञा करने वाला; दृढ़ संकल्प करने वाला।
प्रतिज्ञा
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. किसी कार्य के करने या न करने के संबंध में दृढ़ निश्चय; प्रण; संकल्प 2. कसम; शपथ; सौगंध 3. वादा; वचन 4. घोषणा; दावा 5. (न्याय) किसी के
पक्ष में कहा गया मत, कथन या वक्तव्य 6. (न्याय) अनुमान के पाँच अवयवों में से एक।
प्रतिज्ञात
(सं.) [सं-पु.] प्रतिज्ञा; दृढ़ संकल्प। [वि.] 1. घोषित किया हुआ 2. जिसके विषय या संबंध में प्रतिज्ञा की गई हो 3. संभव; साध्य; जिसे किया जा सकता हो।
प्रतिज्ञान
(सं.) [सं-पु.] 1. प्रतिज्ञा 2. किसी बात को सत्य-निष्ठा के साथ गंभीरतापूर्वक कहना 3. स्वीकार।
प्रतिज्ञापत्र
(सं.) [सं-पु.] शपथपत्र; इकरारनामा; ऐसा पत्र जिसमें कोई प्रतिज्ञा लिखी हो।
प्रतिज्ञाबद्ध
(सं.) [वि.] प्रतिज्ञा से बँधा हुआ; वचनबद्ध।
प्रतिज्ञायुक्त
(सं.) [वि.] प्रतिज्ञा किया हुआ; शपथ लिया हुआ।
प्रतित
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. विस्तार 2. लंबी-चौड़ी और बड़ी लता।
प्रतिदर्श
(सं.) [सं-पु.] 1. नमूना; (सैंपल) 2. प्रतिरूप 3. किसी वस्तु आदि के निर्माण के लिए पूर्व निर्मित आदर्श; (मॉडल)।
प्रतिदर्शी
(सं.) [सं-पु.] किसी वस्तु आदि के निर्माण के पूर्व बनाया जाने वाला नमूना; बानगी।
प्रतिदान
(सं.) [सं-पु.] 1. लौटाना; वापस करना 2. ली हुई वस्तु के बदले में दूसरी वस्तु देना; विनिमय 3. बदले में किया गया वैसा ही व्यवहार।
प्रतिदिन
(सं.) [क्रि.वि.] प्रत्येक दिन; हर रोज़; प्रतिदिवस।
प्रतिदेय
(सं.) [सं-पु.] ख़रीद कर लौटाई हुई वस्तु या लौटाई जाने वाली वस्तु। [वि.] लौटाने या बदलने योग्य।
प्रतिदेश
(सं.) [सं-पु.] 1. सीमावर्ती प्रदेश; सीमा पर का देश 2. सीमांत भूमि; सीमांत प्रदेश।
प्रतिद्वंद्विता
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. प्रतिद्वंद्वी होने की अवस्था या भाव 2. प्रतिस्पर्धा।
प्रतिद्वंद्वी
(सं.) [सं-पु.] 1. धन, जन, बल तथा कौशल में समान स्तर का विरोधी या शत्रु 2. प्रतिस्पर्धी व्यक्ति 3. किसी एक ही वस्तु, पद आदि के लिए प्रयत्नशील। [वि.] 1.
विरोधी; प्रतिकूल 2. मुकाबला करने वाला; प्रतिपक्षी; प्रतिस्पर्धी।
प्रतिधान
(सं.) [सं-पु.] 1. कहीं पर रखना 2. निराकरण 3. लौटाना।
प्रतिध्वनन
(सं.) [सं-पु.] ध्वनि के प्रत्यावर्तित होकर सुनाई देने की क्रिया; ध्वनि-तरंगों का सामने की किसी वस्तु से टकराकर लौटने की क्रिया।
प्रतिध्वनि
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. परावर्तित होकर सुनाई पड़ने वाली ध्वनि तरंगें 2. किसी ध्वनि का किसी बाधक पदार्थ से टकराने पर उत्पन्न होने वाला प्रतिरूप; प्रतिशब्द;
गूँज 3. {ला-अ.} दूसरे के विचारों, कथनों आदि का मूल से मिलते-जुलते रूप में दोहराया जाना 4. {ला-अ.} दोहराई गई बात।
प्रतिनंदन
(सं.) [सं-पु.] 1. बधाई; मुबारक; अभिनंदन; मुबारकबाद 2. बधाई सूचक वाक्य 3. बधाई देने वाले के प्रति प्रकट की जाने वाली शुभकामना।
प्रतिनव
(सं.) [वि.] पूर्णतः नया; नूतन।
प्रतिनाद
(सं.) [सं-पु.] प्रतिध्वनि; प्रत्यावर्तित होकर सुनाई पड़ने वाली ध्वनि-तरंगें; (ईको साउंड)।
प्रतिनायक
(सं.) [सं-पु.] 1. (साहित्य) किसी काव्य या रचना में मुख्य नायक का प्रतिद्वंद्वी पात्र 2. खलनायक।
प्रतिनिधायन
(सं.) [सं-पु.] 1. प्रतिनिधि के रूप में कुछ लोगों को कहीं भेजने की क्रिया 2. प्रतिनिधियों का वह दल जो किसी काम के लिए कहीं जाए।
प्रतिनिधि
(सं.) [सं-पु.] 1. किसी अन्य के स्थान पर कार्य करने के लिए भेजा गया व्यक्ति 2. किसी समूह, वर्ग के द्वारा चुना हुआ या निर्वाचित व्यक्ति जो उसके पक्ष को
प्रस्तुत कर सके और उसकी ओर से कार्य कर सके 3. प्रतिमा; प्रतिरूप 4. किसी वैदिक कृत्य या औषधि के काम आने वाले द्रव्य के अभाव में उसके स्थान पर प्रयुक्त होने
वाला द्रव्य।
प्रतिनिधिक
(सं.) [वि.] 1. नुमाइंदा 2. प्रतिनिधित्व करने वाला।
प्रतिनिधित्व
(सं.) [सं-पु.] प्रतिनिधि का कार्य; प्रतिनिधि का भाव; दूतत्व।
प्रतिनिधिपत्र
(सं.) [सं-पु.] किसी व्यक्ति को किसी अन्य व्यक्ति के प्रतिनिधि के रूप में कार्य करने के लिए मिला हुआ वैधानिक अधिकारपत्र; मुख़तारनामा।
प्रतिनिधि मंडल
(सं.) [सं-पु.] 1. व्यक्तियों का विशेष दल 2. प्रतिनिधि सदस्यों का दल या मंडल 3. समूह आदि का वह व्यक्ति या इकाई जिससे उक्त जाति या समूह के अन्य सदस्यों या
इकाइयों के बारे में अनुमान लगाया जा सके।
प्रतिनिनाद
(सं.) [सं-पु.] प्रतिध्वनि; प्रतिनाद; निनाद (ध्वनि) का प्रत्यावर्तित होकर लौटना।
प्रतिनियुक्ति
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. दूसरे के स्थान पर कुछ समय तक काम करना 2. किसी व्यक्ति के स्थान पर किसी अन्य व्यक्ति को नियुक्त करना 3. किसी को किसी विशेष कार्य हेतु
नियुक्त करना।
प्रतिनिर्देश
(सं.) [सं-पु.] पुनःनिर्देश, कथन या उल्लेख।
प्रतिपक्ष
(सं.) [सं-पु.] 1. विरोधी पक्ष; प्रतिवादी पक्ष; विरूद्ध पक्ष 2. वह दल जिससे खेल में मुकाबला करना है 3. शत्रु 4. विरोधी मत।
प्रतिपक्षता
(सं.) [सं-स्त्री.] प्रतिपक्षी होने की अवस्था या भाव; विरोध।
प्रतिपक्षित
(सं.) [वि.] 1. विरोधी दल में गया हुआ 2. (न्याय दर्शन) वह हेतु जो सत्प्रतिपक्ष नामक दोष से युक्त हो।
प्रतिपक्षी
(सं.) [सं-पु.] विपरीत पक्ष का; विरोधी; विपक्षी; शत्रु।
प्रतिपक्षीय
(सं.) [वि.] प्रतिपक्ष का; प्रतिपक्ष संबंधी।
प्रतिपण
(सं.) [सं-पु.] एक-सा मूल्य; समान मूल्य।
प्रतिपत्ति
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. प्राप्त करना 2. अनुमान 3. ज्ञान 4. दान ग्रहण 5. किसी विषय का प्रतिपादन; निरूपण 6. स्वीकृति 7. प्रसिद्धि 8. कार्यारंभ 9. दृढ़ निश्चय।
प्रतिपत्र
(सं.) [सं-पु.] वह पत्र जिसके द्वारा किसी व्यक्ति को किसी के बदले कुछ काम करने या मतदान आदि का अधिकार दिया जाता है।
प्रतिपत्रक
(सं.) [सं-पु.] 1. चालान बही; (चेकबुक) 2. रसीद का वह हिस्सा जिसे लिखित प्रमाण के रूप में धारक को दिया जाता है।
प्रतिपत्री
(सं.) [सं-पु.] प्रतिपत्र; प्रतिनिधि; किसी का स्थानापन्न; (प्रॉक्सी)।
प्रतिपदा
(सं.) [सं-स्त्री.] प्रथमा तिथि; चंद्रमास के किसी पक्ष की पहली तिथि।
प्रतिपन्न
(सं.) [वि.] 1. ज्ञात; अवगत 2. स्वीकृत 3. प्रमाणित 4. प्राप्त 5. जिसका उत्तर दिया गया हो 6. आरंभ किया हुआ 7. निरूपित 8. सम्मानित 9. प्रचंड 10. शरणागत 11.
पराभूत।
प्रतिपरीक्षण
(सं.) [सं-पु.] 1. न्यायालय आदि में गवाह आदि के बयान हो जाने के उपरांत उसके द्वारा छिपाई गई बातों का पता लगाने के लिए उससे कुछ और प्रश्न करना; जिरह; (क्रॉस
एग्ज़ैमिनेशन) 2. साक्षी-परीक्षा।
प्रतिपर्ण
(सं.) [सं-पु.] प्रतिपत्रक; (काउंटर फ़ाइल)।
प्रतिपर्णशिफा
(सं.) [सं-स्त्री.] एक प्रकार की औषधि; मूषिकपर्णी; द्रवंती।
प्रतिपादक
(सं.) [वि.] 1. प्रतिपादन करने वाला; किसी मत को स्थापित करने वाला 2. उत्पादक 3. निर्वाह करने वाला 4. व्याख्यान करने वाला। [सं-पु.] 1. उन्नायक 2. व्याख्याता।
प्रतिपादन
(सं.) [सं-पु.] 1. अच्छी तरह समझकर कोई बात कहना; प्रतिपत्ति 2. अपना मत पुष्ट करने के लिए प्रमाणपूर्वक कुछ कहना 3. ज्ञान कराना; बोधन 4. किसी विषय का सप्रमाण
कथन; निरूपण।
प्रतिपादित
(सं.) [वि.] 1. जिसका प्रतिपादन हो चुका हो 2. अच्छी तरह समझाया हुआ; बोधित 3. सिद्ध किया हुआ; प्रमाणित 4. स्थापित 5. उत्पादित; घोषित; कथित।
प्रतिपाद्य
(सं.) [वि.] 1. प्रतिपादन करने योग्य; जिसका प्रतिपादन किया जा सकता हो 2. जिसे प्रमाणित किया जाए 3. जिसका स्पष्टीकरण दिया जा सकता हो।
प्रतिपाल
(सं.) [वि.] 1. प्रतिपालन करने वाला 2. रक्षा करने वाला। [सं-पु.] 1. पालन; रक्षा 2. सहायता।
प्रतिपालक
(सं.) [वि.] 1. पालन-पोषण करने वाला 2. रक्षक। [सं-पु.] 1. पालक-पोषक; अन्नदाता 2. रक्षा करने वाला व्यक्ति।
प्रतिपालन
(सं.) [सं-पु.] 1. पालन करना 2. आज्ञा, आदेश आदि का कर्तव्यपूर्वक पालन 3. रक्षण; देखरेख।
प्रतिपुरुष
(सं.) [सं-पु.] 1. वह पुरुष जो किसी दूसरे पुरुष के स्थान पर उसका प्रतिनिधि या स्थानापन्न होकर काम करता हो 2. प्रतिपत्र; किसी सभा में किसी का प्रतिनिधि 3.
किसी का स्थानापन्न।
प्रतिपुस्तक
(सं.) [सं-स्त्री.] किसी लेख या पुस्तक की हस्तलिखित प्रति की नकल या प्रतिलिपि।
प्रतिपूजा
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. अभिवादन के बदले अभिवादन करना; पारस्परिक अभिवादन 2. ख़ातिरदारी; स्वागत-सत्कार।
प्रतिपूज्य
(सं.) [वि.] जो अभिवादन या प्रतिपूजन के योग्य हो; अभिवाद्य।
प्रतिपूरक
(सं.) [वि.] 1. परिपूरण करने वाला; भरने वाला 2. अनुपूरक; अतिरिक्त 3. क्षतिपूर्ति करने वाला; क्षतिपूरक 4. परिशिष्ट।
प्रतिपूरकता
(सं.) [सं-स्त्री.] प्रतिपूरक होने की अवस्था या भाव।
प्रतिपूर्ति
(सं.) [सं-स्त्री.] किसी व्यक्ति या बैंक से लिया हुआ या ख़र्च किया हुआ धन उस व्यक्ति या बैंक को देकर उसकी पूर्ति करने की क्रिया।
प्रतिप्रक्षेपास्त्र
(सं.) [सं-पु.] प्रक्षेपास्त्र को नष्ट करने वाला प्रक्षेपास्त्र।
प्रतिप्रश्न
(सं.) [सं-पु.] प्रश्न पर प्रश्न करना।
प्रतिप्रसूत
(सं.) [वि.] 1. प्रतिप्रसव संबंधी 2. प्रतिप्रसव के रूप में होने वाला 3. किसी ख़ास अवसर पर निषिद्ध होते हुए भी स्वीकार होने वाला।
प्रतिप्रहार
(सं.) [सं-पु.] प्रहार के प्रत्युत्तर (जवाब) में किया जाने वाला प्रहार; प्रत्याक्रमण।
प्रतिप्राप्ति
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. पुनःप्राप्ति 2. वसूली 3. खोई हुई या अधिकार से प्राप्त निकली हुई चीज़ की पुनः प्राप्ति; (रिकवरी)।
प्रतिप्रिय
(सं.) [सं-पु.] उपकार के बदले किया जाने वाला उपकार; सेवा के बदले की जाने वाली सेवा या कृपा।
प्रतिफल
(सं.) [सं-पु.] 1. किसी कार्य का परिणाम 2. प्रतिबिंब; प्रतिच्छाया 3. किसी कार्य के बदले मिलने वाला पुरस्कार 4. वह जो बदले में दिया जाए 5. किसी कार्य का
प्रतिकार।
प्रतिफलक
(सं.) [सं-पु.] 1. वह फलक जिसकी मदद से किसी वस्तु की पड़ने वाली परछाईं किसी दूसरी ओर या दूसरी वस्तु पर परावर्तित की जाती है 2. किसी वस्तु को प्रतिफलित करने
का यंत्र; प्रकाश परावर्तक; (रीफ़्लेक्टर)।
प्रतिफलन
(सं.) [सं-पु.] प्रतिफल।
प्रतिफलित
(सं.) [वि.] 1. जो प्रतिफल के रूप में हो 2. जिसका प्रतिफल मिल रहा हो; सफल 3. जो प्रतिफल दे रहा हो 4. प्रतिबिंबित 5. जिसका बदला लिया गया हो; प्रतिकृत।
प्रतिबंध
(सं.) [सं-पु.] 1. बाँधने की क्रिया या भाव 2. ऋण आदि देने पर लगाई गई रोक; निषेध; मनाही 3. प्रतिरोध 4. किसी कार्य में लगाई गई शर्त 5. उपबंध 6. निराशा की
स्थिति।
प्रतिबंधक
(सं.) [वि.] प्रतिबंध लगाने वाला; रोकने वाला; प्रतिरोधक।
प्रतिबंधन
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. किसी व्यक्ति, बात या कार्य पर लगाया जाने वाला बंधन; रोक 2. प्रतिबंध लगाने की क्रिया या भाव 3. विघ्न; अवरोध; बाधा 4. कैद।
प्रतिबंधि
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. दोनों पक्षों पर लागू होने वाली दलील 2. आपत्ति; विरोध।
प्रतिबंधित
(सं.) [वि.] 1. सीमित 2. प्रतिबंधपूर्वक; जिसपर प्रतिबंध लगा हो 3. जो आम जनता के लिए सुलभ न हो 4. प्रतिबंध के अधीन।
प्रतिबंधी
(सं.) [वि.] 1. बाधा पहुँचाने वाला 2. बाँधने वाला 3. जिससे बाधा पहुँच रही हो 4. रोकने वाला।
प्रतिबंधु
(सं.) [सं-पु.] 1. वह जो पद या पदवी में समान हो 2. वह जो बंधु के समान हो; बंधुत्व।
प्रतिबद्ध
(सं.) [वि.] 1. बँधा हुआ 2. प्रतिबंधित 3. नियंत्रित 4. जो किसी से इस प्रकार संबद्ध हो कि अलग न किया जा सके; लगा हुआ 5. फँसा हुआ; अटका हुआ 6. जो प्रतिबंध का
विषय हो।
प्रतिबद्धता
(सं.) [सं-स्त्री.] किसी ख़ास उद्देश्य, मतवाद आदि से संबद्ध होने की संकल्पबद्धता; वचनबद्धता।
प्रतिबल
(सं.) [वि.] 1. बराबर बल वाला 2. सशक्त। [सं-पु.] विरोधी; शत्रु।
प्रतिबाधक
(सं.) [वि.] 1. बाधा खड़ी करने वाला 2. अवरोधक 3. कष्ट पहुँचाने वाला। [सं-पु.] 1. वह जो बाधा खड़ी करे 2. अवरोधक व्यक्ति, वस्तु या स्थिति 3. कष्ट पहुँचाने
वाला व्यक्ति।
प्रतिबाधन
(सं.) [सं-पु.] 1. बाधा; विघ्न 2. पीड़ा; कष्ट।
प्रतिबाधित
(सं.) [वि.] 1. निवारित या हटाया हुआ 2. पीड़ित 3. बाधित; जिसमें पहले से ही बाधा डाल दी गई हो।
प्रतिबिंब
(सं.) [सं-पु.] 1. पानी व शीशे में दिखाई देने वाली छाया; परछाईं; प्रतिच्छाया; (इमेज) 2. प्रतिमा; प्रतिमूर्ति; चित्र; तस्वीर।
प्रतिबिंबक
(सं.) [वि.] परछाईं के समान (छाया की तरह) पीछे-पीछे चलने वाला। [सं-पु.] अनुगामी; अनुचर।
प्रतिबिंबन
(सं.) [सं-पु.] 1. छाया या परछाईं पड़ना; प्रतिबिंबित होना 2. अनुकरण 3. तुलना।
प्रतिबिंबित
(सं.) [वि.] 1. जिसका प्रतिबिंब पड़ा हो 2. दर्पण आदि में प्रतिफलित 3. जिसका आभास मिलता हो; जो कुछ स्पष्ट रूप से व्यक्त होता हो।
प्रतिबीज
(सं.) [सं-पु.] वह बीज जिसका बीजत्व नष्ट हो गया हो; ख़राब या सड़ा हुआ बीज। [वि.] जिसकी उत्पन्न करने की शक्ति नष्ट हो गई हो।
प्रतिबुद्ध
(सं.) [वि.] 1. जाना हुआ; प्रतिबोधित किया हुआ; अवगत; ज्ञात 2. जागा हुआ 3. उन्नत 4. प्रसिद्ध 5. खिला हुआ।
प्रतिबुद्धि
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. आत्मघाती या विपरीत बुद्धि; शत्रुता या विरोध का भाव 2. जागरण।
प्रतिबोध
(सं.) [सं-पु.] 1. जागरण; जागना 2. ज्ञान 3. जागना; होश में आना 4. स्मृति।
प्रतिबोधक
(सं.) [वि.] 1. जगाने वाला 2. ज्ञान कराने वाला 3. शिक्षा देने वाला 4. तिरस्कार करने वाला। [सं-पु.] गुरु; अध्यापक; शिक्षक।
प्रतिबोधन
(सं.) [सं-पु.] 1. ज्ञान कराने की क्रिया; ज्ञान उत्पन्न करना 2. जगाने की क्रिया या भाव; जगाना।
प्रतिबोधित
(सं.) [वि.] 1. जिसे किसी बात का ज्ञान कराया गया हो 2. जगाया हुआ।
प्रतिबोधी
(सं.) [वि.] 1. जो शीघ्र ही ज्ञान प्राप्त करने को हो 2. जागता हुआ।
प्रतिभट
(सं.) [सं-पु.] 1. बराबर का योद्धा; शत्रु पक्ष का योद्धा 2. शत्रु 3. विरोधी 4. प्रतिद्वंद्वी।
प्रतिभा
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. किसी विषय को तत्काल समझ लेने वाली असाधारण बुद्धि; असाधारण प्रखरता वाली मानसिक शक्ति 2. बुद्धि; समझ; विलक्षण बौद्धिक शक्ति 3. लेखक,
कवि, कलाकार आदि की वह शक्ति जिससे वह अनुभव के आधार पर किसी कृति का सर्जन करता है; नवोन्मेषशालिनी शक्ति 4. ऊपर या सामने दिखाई देने वाली आकृति या रूप 5.
दीप्ति; प्रभा; चमक।
प्रतिभाग
(सं.) [सं-पु.] 1. प्राचीनकाल में लिया जाने वाला एक प्रकार का राजकर 2. उत्पादकर।
प्रतिभागिता
[सं-स्त्री.] 1. सहभागिता; हिस्सेदारी; भाग लेना या सम्मिलित होना 2. प्रतिभागी होने का भाव।
प्रतिभागी
(सं.) [सं-पु.] 1. किसी प्रतियोगिता में भाग लेने वाला व्यक्ति; संभागी 2. वह जो किसी आयोजन, समिति आदि में सम्मिलित होता है।
प्रतिभाज्य
(सं.) [वि.] 1. जिसपर शुल्क लगाया जाता हो 2. एक प्रकार का कर।
प्रतिभात
(सं.) [वि.] 1. चमक या प्रभायुक्त 2. अवगत; ज्ञात; प्रतीत 3. सामने आया हुआ।
प्रतिभान
(सं.) [सं-पु.] 1. चमक; प्रभा 2. प्रत्यक्ष (उपस्थित) बुद्धि 3. प्रगल्भता; वाक्चातुर्य 4. विश्वास।
प्रतिभावान
(सं.) [वि.] 1. जिसमें प्रतिभा हो; प्रतिभायुक्त; प्रतिभाशाली 2. प्रगल्भ 3. दीप्तिमान।
प्रतिभाव्य
(सं.) [वि.] जिसकी जमानत हो सकती हो; वह अपराधी या अभियुक्त जिसकी जमानत मुकदमें के निर्णय काल तक के लिए हो सकती हो; प्रतिभूमोच्य; (बेलेबल)।
प्रतिभाशाली
(सं.) [वि.] जो प्रतिभा से युक्त हो; प्रतिभावान।
प्रतिभाशील
(सं.) [वि.] जिसमें प्रतिभा हो; प्रतिभावान; प्रतिभायुक्त; (जीनियस)।
प्रतिभाषा
(सं.) [सं-स्त्री.] उत्तर; जवाब; प्रत्युत्तर।
प्रतिभास
(सं.) [सं-पु.] 1. अचानक होने वाला ज्ञान 2. आभास 3. भ्रम 4. मिथ्या ज्ञान।
प्रतिभा-संपन्न
(सं.) [वि.] जिसमें प्रतिभा हो; प्रतिभाशाली; प्रतिभावान; प्रतिभायुक्त।
प्रतिभासन
(सं.) [सं-पु.] 1. चमकना 2. भासित होना; ज्ञात होना; जान पड़ना 3. दिखाई देना।
प्रतिभाहीन
(सं.) [वि.] जिसमें प्रतिभा का अभाव हो; प्रतिभा से रहित।
प्रतिभिन्न
(सं.) [वि.] 1. जिसका भेदन किया गया हो 2. जो अलग किया गया हो; विभक्त; विभाजित।
प्रतिभू
(सं.) [सं-पु.] 1. धन आदि देकर या कर्ज़ चुकाकर किसी की ज़मानत कराने वाला व्यक्ति; ज़मानतदार 2. जमानत राशि; प्रतिभूति।
प्रतिभूत
(सं.) [वि.] 1. वह (व्यक्ति) जिसकी ज़मानत की गई हो 2. ज़मानत के रूप में जमा किया गया (धन) 3. वह (संपत्ति) जो ज़मानत के रूप में किसी को सौंपी गई हो।
प्रतिभूति
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. ज़मानत राशि; मुचलका 2. सरकार द्वारा जारी किया गया ऋण का प्रमाणपत्र; सरकारी ऋणपत्र; साखपत्र 3. कोई काम या वचन पूरा करने के लिए दिया गया
निश्चित आश्वासन या उसके बदले जमा की गई वस्तु या धन।
प्रतिमंडल
(सं.) [सं-पु.] 1. ग्रह, नक्षत्र आदि के चारों ओर का घेरा; सूर्य आदि के चारों ओर का घेरा; परिवेश; आभामंडल 2. प्रतिनिधियों का दल, समूह या मंडल।
प्रतिमंत्रण
(सं.) [सं-पु.] 1. उत्तर; जवाब 2. अभिमंत्रण।
प्रतिमंत्रित
(सं.) [वि.] 1. मंत्र द्वारा शुद्ध या पवित्र किया हुआ; अभिमंत्रित 2. जिसका उत्तर दिया जा चुका हो; उत्तरित।
प्रतिमा
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. किसी की वास्तविक अथवा कल्पित आकृति के अनुसार बनाई हुई मूर्ति या चित्र; अनुकृति 2. आराधन, पूजन आदि के लिए धातु, पत्थर, मिट्टी आदि की
बनाई हुई देवता या देवी की मूर्ति; देवमूर्ति 3. प्रतिबिंब; परछाईं 4. (काव्यशास्त्र) एक अलंकार जिससे किसी मुख्य पदार्थ या व्यक्ति के न होने की दशा में उसी के
समान किसी दूसरे पदार्थ या व्यक्ति की स्थापना का उल्लेख होता है 5. हाथियों के दाँतों पर जड़ा जाने वाला पीतल, ताँबे आदि का छल्ला या मंडल 6. तौलने का बटखरा;
बाट।
प्रतिमान
(सं.) [सं-पु.] 1. परछाईं; प्रतिमा; प्रतिमूर्ति; चित्र; नमूना 2. वह मूर्ति जिसके नमूने पर वैसी ही मूर्ति बनाई जाए 3. अनुकरणीय व्यक्ति; आदर्श।
प्रतिमानित
(सं.) [वि.] 1. मानक रूप दिया हुआ 2. प्रतिरूपित।
प्रतिमुद्रण
(सं.) [सं-पु.] 1. खुदी या लिखी हुई आकृति, लेख आदि पर से उसकी ठीक प्रतिलिपि छापने की क्रिया 2. ज्यों का त्यों छापी गई प्रति।
प्रतिमुद्रा
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. मुद्रण से ली जाने वाली छाप 2. अँगूठी या मोहर (मुद्रा) से ली जाने वाली छाप।
प्रतिमुद्रांकन
(सं.) [सं-पु.] 1. जिसपर पहले किसी अधीनस्थ अधिकारी का मुद्रांकन हो चुका हो या मुहर लग चुकी हो उस पर किसी बड़े अधिकारी का अपनी स्वीकृति या सहमति सूचित करने
के लिए अपनी मोहर का लगाना 2. उक्त प्रकार से किया हुआ मुद्रांकन या लगाई हुई मोहर।
प्रतिमूर्ति
(सं.) [सं-स्त्री.] किसी की आकृति को देखकर उसके अनुरूप बनाई हुई मूर्ति या चित्र आदि।
प्रतियुद्ध
(सं.) [सं-पु.] 1. किसी के विरुद्ध युद्ध 2. बराबरी का युद्ध।
प्रतियोग
(सं.) [सं-पु.] 1. परस्पर विरोधी पदार्थों का संबंध 2. किसी का विरोधी पक्ष बनाना; विरोध संबंध 3. किसी मत या वाद का खंडन 4. वैर; शत्रुता 5. किसी का प्रभाव
नष्ट करने वाला तत्व, मारक 6. असफल होने के बाद भी सफलता हेतु पुनर्प्रयत्न।
प्रतियोगात्मक
(सं.) [वि.] 1. प्रतियोगिता संबंधी 2. प्रतिस्पर्धात्मक।
प्रतियोगिता
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. प्रतियोगी होने का भाव; प्रतिद्वंद्विता 2. शत्रुता; दुश्मनी 3. एक निश्चित वस्तु पाने हेतु अनेक लोगों, संस्थाओं या दलों के बीच होड़;
मुकाबला।
प्रतियोगी
(सं.) [सं-पु.] 1. प्रतियोगिता में भाग लेने वाला 2. होड़ करने वाला 3. प्रतिद्वंद्वी 4. हिस्सेदार।
प्रतियोद्धा
(सं.) [सं-पु.] 1. बराबरी में रहकर युद्ध करने वाला; प्रतिद्वंद्वी 2. वैरी; शत्रु 3. विरोधी।
प्रतियोध
(सं.) [सं-पु.] प्रतियोद्धा; बराबरी में युद्ध करने वाला; प्रतिद्वंद्वी।
प्रतिरंभ
(सं.) [सं-पु.] क्रोध; कोप; रोष।
प्रतिरक्षण
(सं.) [सं-पु.] 1. रक्षा; हिफ़ाज़त 2. किसी अभियोग से अपनी निर्दोषिता दिखाने का प्रयत्न; सफ़ाई; (डिफ़ेंस) 3. किसी आक्रमण से स्वयं की रक्षा का कार्य या व्यवस्था।
प्रतिरक्षा
(सं.) [सं-स्त्री.] प्रतिरक्षण।
प्रतिरक्षात्मक
(सं.) [वि.] प्रतिरक्षा में किया गया; प्रतिरक्षा करने वाला।
प्रतिरक्षी
(सं.) [सं-पु.] 1. एक विशेष प्रकार का प्रोटीन जो जंतुओं द्वारा प्रतिजन अणुओं की अनुक्रिया में उत्पादित किया जाता हैं; (एंटीबॉडी) 2. एक विशेष प्रकार का
प्रोटीन जो प्रतिरक्षी प्रतिजन के साथ रासायनिक संयोग कर के रोगों के बाह्य आक्रमण से शरीर की रक्षा करता है।
प्रतिरुद्ध
(सं.) [वि.] 1. अवरुद्ध; जिसे रोका गया हो 2. जिसे बाधा पहुँचाई गई हो 3. (नगर, दुर्ग आदि) जो घेर लिया गया हो।
प्रतिरूप
(सं.) [सं-पु.] 1. चित्र; तस्वीर 2. मूर्ति; प्रतिमा 3. नमूना; नमूने की प्रति (स्पेसिमेन कॉपी) 4. प्रतिनिधि 5. (महाभारत) एक दानव। [ वि.] 1. कृत्रिम; बनावटी
2. जाली; समान रूपवाला 3. अनुरूप; सदृश।
प्रतिरूपक
(सं.) [सं-पु.] 1. प्रतिबिंब; प्रतिच्छाया 2. प्रतिमा 3. छवि; चित्र 4. वह जो नकली चीज़, सिक्के, नोट आदि बनाता हो। [वि.] एक ही जैसा (समास में)।
प्रतिरूपकता
(सं.) [सं-स्त्री.] प्रतिरूपक होने की अवस्था या भाव।
प्रतिरूपण
(सं.) [सं-स्त्री.] किसी वस्तु आदि का प्रतिरूप या मॉडल बनाना या तैयार करना; (मॉडलिंग)।
प्रतिरोध
(सं.) [सं-पु.] 1. बाधा; रुकावट; अड़चन; प्रतिबंध 2. विरोध 3. शत्रु के दुर्ग, सेना आदि के चारों ओर डाला जाने वाला घेरा 4. तिरस्कार 5. छिपाव; दुराव।
प्रतिरोधक
(सं.) [वि.] 1. प्रतिरोध करने वाला 2. बाधा डालने वाला; बाधक 3. रोकने वाला। [सं-पु.] 1. वह जो प्रतिरोध करे; बाधक 2. चोर, ठग, डाकू आदि 3. विरोधी 4. घेरने या
आवृत्त करने वाला व्यक्ति।
प्रतिरोधकता
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. प्रतिरोध करने की अवस्था, क्रिया या भाव 2. वेग या गति आदि को रोकने वाली शक्ति; आक्रमण।
प्रतिरोधन
(सं.) [सं-पु.] प्रतिरोध करने की क्रिया या भाव।
प्रतिरोध शक्ति
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. आक्रमण, वेग, गति आदि को रोकने वाली क्षमता 2. प्रतिबंध लगाने की शक्ति 3. किसी को किसी कार्य से रोक देने की शक्ति।
प्रतिरोधित
(सं.) [वि.] जिसका प्रतिरोध किया गया हो; जिसे रोका गया हो; बाधित।
प्रतिरोधी
(सं.) [सं-पु.] 1. रुकावट या बाधा पहुँचाने वाला व्यक्ति; रोकने वाला 2. विरोधी।
प्रतिरोपण
(सं.) [सं-पु.] 1. प्रत्यारोपण 2. किसी वस्तु को एक स्थान से निकालकर दूसरे स्थान पर लगाने की क्रिया; (ट्रांसप्लांट)।
प्रतिरोपित
(सं.) [वि.] 1. जो (फिर से) रोपा गया हो 2. जो पुनः लगाया गया हो।
प्रतिलंभ
(सं.) [सं-पु.] 1. दोष; कलंक; इलज़ाम 2. कुरीति; बुरी चाल 3. निंदा; दुर्वचन; गाली 4. प्राप्ति; लाभ।
प्रतिलक्षण
(सं.) [सं-पु.] किसी घटना या रोग आदि का संकेतक चिह्न; संकेत चिह्न।
प्रतिलक्षित
(सं.) [वि.] 1. दिखाई पड़ना 2. दृष्टिगोचर।
प्रतिलाभ
(सं.) [सं-पु.] 1. पुनः लाभ प्राप्त करना; दोहरा लाभ 2. पुनः प्राप्त करना; पुनर्प्राप्ति 3. शालक राग का एक भेद।
प्रतिलिपि
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. मूल लेख या पत्र आदि की नकल 2. हाथ का लिखा हुआ लेख।
प्रतिलिपिक
(सं.) [सं-पु.] वह जो प्रतिलेख लिखता है; प्रतिलेखक; अनुलिपिक।
प्रतिलिपित
(सं.) [वि.] जिसकी नकल या प्रतिलिपि कर ली गई हो।
प्रतिलेख
(सं.) [सं-पु.] 1. किसी भाषण, व्याख्यान आदि के अभिदिष्ट या अभिलिखित लेख की प्रतिलिपि 2. लेख आदि का अक्षरशः स्वरूप।
प्रतिलेखक
(सं.) [सं-पु.] प्रतिलिपिक।
प्रतिलेखन
(सं.) [सं-पु.] 1. किसी आलेख, पत्र या पुस्तक आदि से कोई चीज़ ज्यों का त्यों उतारने की क्रिया या भाव 2. भाषण या संकेत लिपि में अंकित तथ्यों या टिप्पणियों के
आधार पर पढ़ने योग्य लिखित प्रति तैयार करना; (ट्रांसक्रिप्शन)।
प्रतिलोम
(सं.) [वि.] 1. उलटा; विपरीत 2. अप्रिय; प्रतिकूल। [सं-पु.] 1. तुच्छ और नीच 2. अप्रिय या हानिकारक कार्य।
प्रतिलोमक
(सं.) [सं-पु.] विपरीत या उलटा क्रम। [वि.] 1. विपरीत; उलटा 2. तुच्छ और नीच 3. अप्रिय 4. प्रतिकूल।
प्रतिवक्ता
(सं.) [सं-पु.] 1. वह जो किसी की बात का जवाब दे 2. किसी विधान या कानून का व्याख्याता। [वि.] 1. उत्तर देने वाला 2. (कानून) व्याख्या करने वाला।
प्रतिवच
(सं.) [सं-पु.] 1. उत्तर; जवाब 2. प्रतिध्वनि; प्रतिक्रिया में पलट कर उत्तर देना।
प्रतिवचन
(सं.) [सं-पु.] 1. उत्तर; जवाब 2. प्रतिध्वनि।
प्रतिवनिता
(सं.) [सं-स्त्री.] सपत्नी; सौतन; सौत।
प्रतिवर्णिक
(सं.) [वि.] 1. समान वर्ण या रंग का 2. एक ही जैसा; समान; सदृश।
प्रतिवर्तन
(सं.) [सं-पु.] 1. लौटना; वापस आना 2. पुरानी घटनाओं पर पुनर्विचार; अनुदर्शन; सिंहावलोकन 3. किसी के व्यवहार के बदले किया जाने वाला व्यवहार।
प्रतिवर्ती
(सं.) [वि.] 1. वापस होने या लौटने वाला 2. पीछे की ओर घूमने या मुड़ने वाला 3. जो किसी के व्यवहार के अनुसार (प्रतिफल के रूप में) आचरण करता हो 4. लाभ आदि की
वह रकम जो किसी की मृत्यु के बाद प्राप्त हो; जो उत्ताधिकार के रूप में भोग्य हो।
प्रतिवहन
(सं.) [सं-पु.] विपरीत दिशा में या पीछे की ओर ले जाने की क्रिया या भाव; उलटी ओर ले जाना; विरुद्ध दिशा में ले जाना।
प्रतिवाक्य
(सं.) [सं-पु.] प्रतिवचन; उत्तर; जवाब। [वि.] जवाब या उत्तर देने योग्य।
प्रतिवाणी
(सं.) [सं-स्त्री.] किसी शब्द को सुनकर प्रत्युत्तर में कही गई दूसरी बात; प्रत्युत्तर; प्रतिवाद।
प्रतिवात
(सं.) [सं-पु.] वह क्षेत्र, प्रदेश या दिशा जिधर से हवा चल रही हो।
प्रतिवाद
(सं.) [सं-पु.] 1. विरोध; खंडन 2. किसी कथन को मानने से इनकार करना; किसी बात के विरोध में कही जाने वाली बात 3. वादी के कथन का उत्तर।
प्रतिवादिक
(सं.) [वि.] 1. जिसके द्वारा खंडन हो 2. विरोधी।
प्रतिवादिता
(सं.) [सं-स्त्री.] प्रतिवादी होने की अवस्था या भाव; प्रतिवादी का कार्य।
प्रतिवादी
(सं.) [सं-पु.] 1. वह जो दूसरे के द्वारा लगाए गए आरोप का प्रतिवाद करे या उत्तर दे 2. प्रतिपक्षी; मुद्दालेह; विरोधी; शत्रु। [वि.] 1. प्रतिवाद करने वाला;
विरोध करने वाला 2. किसी मत का खंडन करने वाला 3. जिसपर दावा किया गया हो 4. वादी की बात का उत्तर देने वाला।
प्रतिवार
(सं.) [सं-पु.] 1. दूर करना 2. रक्षा करना; बचाना। [क्रि.वि.] प्रतिदिन; रोज़-रोज़।
प्रतिवारण
(सं.) [सं-पु.] 1. रोकना 2. चेतावनी 3. विपक्षी; विरोधी 4. शत्रु का हाथी।
प्रतिवारित
(सं.) [वि.] रोका हुआ; प्रतिबंधित; निषेधित; निवारित।
प्रतिवार्ता
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. किसी मिली हुई टिप्पणी का दिया जाने वाला उत्तर; प्रत्युत्तर 2. वृत्तांत।
प्रतिवास
(सं.) [सं-पु.] 1. ख़ुशबू; सुगंध 2. साथ में रहना; समीप का निवास 3. पड़ोस।
प्रतिवासी
(सं.) [सं-पु.] पड़ोसी; पड़ोस में रहने वाला; प्रतिवेशी।
प्रतिविधान
(सं.) [सं-पु.] 1. प्रतिकार 2. धर्मशास्त्र में प्रतिपादित वह विधान, नियम या कृत्य जो किसी अन्य कृत्य के बदले किया जाता है 3. एहतियात; चौकसी।
प्रतिविधि
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. प्रतिविधान; प्रतिकार 2. ऐसा कार्य या बात, जिससे किसी प्रकार की क्षति, दोष आदि का परिमार्जन हो।
प्रतिविष
(सं.) [सं-पु.] वह वस्तु या पदार्थ जिससे विष का असर दूर हो। [वि.] विष का प्रतिकारक (मारक)।
प्रतिविषा
(सं.) [सं-स्त्री.] एक प्रसिद्ध वनौषधि; अतीस; (अकोनाइ)।
प्रतिविष्णु
(सं.) [सं-पु.] (पुराण) विष्णु के प्रतिद्वंद्वी राजा मुचकुंद का एक नाम।
प्रतिविहित
(सं.) [वि.] प्रतिबंधित; निवारित।
प्रतिवेदन
(सं.) [सं-पु.] 1. निवेदन; प्रार्थना 2. आख्या; किसी कार्य, घटना, योजना और तथ्य के विषय में छानबीन या पूछताछ आदि के बाद तैयार किया हुआ विवरण; (रिपोर्ट)।
प्रतिवेदित
(सं.) [वि.] 1. प्रार्थित 2. जताया हुआ; आगाह किया हुआ 3. जिसके विषय में रिपोर्ट तैयार कर के बड़े अधिकारी के पास भेजा जा चुका हो।
प्रतिवेदी
(सं.) [सं-पु.] 1. वह व्यक्ति जो प्रतिवेदन तैयार करता हो 2. वह जो समाचारपत्र आदि में छपने के लिए समाचार तैयार करता हो या लिख कर भेजता हो; (रिपोर्टर)। [वि.]
जानने-समझने वाला।
प्रतिवेश
(सं.) [सं-पु.] 1. पड़ोस 2. घर के निकट या सामने का मकान 3. किसी के समीप या आस-पास रहने की अवस्था या भाव।
प्रतिवेशी
(सं.) [सं-पु.] पड़ोस में रहने वाला व्यक्ति; पड़ोसी।
प्रतिव्यक्ति
(सं.) [क्रि.वि.] 1. हरेक व्यक्ति; व्यक्तिवार 2. प्रतिजन।
प्रतिव्यूह
(सं.) [सं-पु.] 1. शत्रु की योजना के विरुद्ध की जाने वाली मोर्चाबंदी या व्यूह रचना 2. समूह।
प्रतिशत
(सं.) [सं-पु.] 1. प्रति सौ पर एक भाग 2. प्रति सौ के हिसाब से होने वाली दर। [वि.] प्रति सौ के हिसाब से होने वाला; फ़ीसदी। [क्रि.वि.] प्रत्येक सौ पर; हर सैकड़े
के हिसाब से; फ़ीसदी; (परसेंट)।
प्रतिशतता
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. प्रति सौ की दर से किसी वस्तु की मात्रा 2. प्रतिशत; अनुपात; सैकड़ा।
प्रतिशब्द
(सं.) [सं-पु.] 1. गूँज; प्रतिध्वनि 2. पर्याय। [अव्य.] प्रति शब्द में; शब्द-शब्द में; शब्द-शब्द पर।
प्रतिशाखा
(सं.) [सं-स्त्री.] एक शाखा से निकली हुई दूसरी शाखा; प्रशाखा।
प्रतिशासक
(सं.) [सं-पु.] 1. राजहंता; राजविरोधी 2. राजहत्या; राजवध।
प्रतिशासन
(सं.) [सं-पु.] 1. किसी को किसी कार्य में नियुक्त करना 2. किसी शत्रु या विरोधी का शासन।
प्रतिशिष्ट
(सं.) [वि.] 1. जिसे कहीं नियुक्त किया या भेजा गया हो 2. जिसका निराकरण किया गया हो 3. अस्वीकृत 4. प्रसिद्ध।
प्रतिशीत
(सं.) [वि.] 1. तरल 2. पिघला हुआ 3. चूता हुआ; टपकता हुआ।
प्रतिशुल्क
(सं.) [सं-पु.] आयातित वस्तुओं पर लगाया गया वह कर जिसके कारण वह वस्तु, देशी वस्तु से सस्ती न बिके; विदेश द्वारा पहले लगाए गए किसी शुल्क का अनिष्टकारी प्रभाव
समाप्त करने के लिए लगाया जाने वाला आयात कर।
प्रतिशोध
(सं.) [सं-पु.] किसी के अशिष्ट या गलत व्यवहार के बदले में उसके साथ किया जाने वाला वैसा ही बरताव; बदला; प्रतिकार।
प्रतिशोधी
(सं.) [सं-पु.] 1. ईर्ष्यालु 2. बदला या प्रतिशोध लेने वाला व्यक्ति 3. प्रतिहिंसक। [वि.] 1. प्रतिशोध लेने वाला 2. प्रतिशोध संबंधी।
प्रतिश्या
(सं.) [सं-स्त्री.] सरदी; ज़ुकाम; प्रतिश्याय।
प्रतिश्यान
(सं.) [सं-पु.] 1. सरदी या ज़ुकाम नामक रोग 2. पीनस रोग।
प्रतिश्याय
(सं.) [सं-पु.] प्रतिश्यान।
प्रतिश्रय
(सं.) [सं-पु.] 1. आश्रय 2. यज्ञशाला 3. जगह; स्थान 4. सभा 5. सहायता; मदद 6. निवास स्थान।
प्रतिश्रव
(सं.) [सं-पु.] 1. प्रतिध्वनि; गूँज 2. प्रतिज्ञा 3. अंगीकरण; स्वीकृति; मंज़ूरी।
प्रतिश्रुत
(सं.) [वि.] 1. अच्छी तरह सुना हुआ 2. जिसने किसी बात की ज़िम्मेदारी ली हो या कोई प्रतिज्ञा की हो 3. जिसके संबंध में कोई प्रतिज्ञा की गई हो या जिसे कोई वचन
दिया गया हो 4. स्वीकृत 5. प्रतिज्ञात।
प्रतिश्रुति
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. गूँज; प्रतिध्वनि 2. वह पत्र या प्रलेख जिसमें किसी बात की प्रतिज्ञा की गई हो; कोई बात करने या न करने के संबंध में आपस में किया गया
लिखित समझौता।
प्रतिषिद्ध
(सं.) [वि.] 1. (बात या काम) जिसे करने से किसी को रोका गया हो; निषिद्ध 2. वह (मत या विचार) जिसका खंडन किया गया हो; खंडित।
प्रतिषेद्धा
(सं.) [सं-पु.] प्रतिषेधक। [वि.] प्रतिषेध करने वाला।
प्रतिषेध
(सं.) [सं-पु.] 1. मनाही; निषेध 2. निवारण 3. खंडन 4. (काव्यशास्त्र) एक अर्थालंकार जिसमें चमत्कारपूर्ण ढंग से प्रसिद्ध अर्थ का निषेध किया जाता है।
प्रतिषेधक
(सं.) [सं-पु.] वह जो प्रतिषेध करे। [वि.] प्रतिषेध करने वाला; रोकने वाला।
प्रतिषेधन
(सं.) [सं-पु.] प्रतिषेध करने की क्रिया।
प्रतिषेधाधिकार
(सं.) [सं-पु.] 1. एक प्रकार का विशेषाधिकार (निषेधाधिकार) जिसके द्वारा किसी राष्ट्र के राष्ट्रपति या प्रशासक को यह अधिकार प्राप्त होता है कि वह विधानसभा
द्वारा स्वीकृत किसी प्रस्ताव को अमान्य कर सके 2. सुरक्षा परिषद द्वारा स्वीकृत किसी प्रस्ताव को न मानने या उसे कार्यान्वित होने से रोक देने का चीन, फ़्रांस,
रूस, युनाइटेड किंगडम और संयुक्त राज्य अमेरिका को प्राप्त अधिकार; (पॉवर ऑव वीटो)।
प्रतिष्ठा
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. मान-मर्यादा; सम्मान; इज़्ज़त 2. स्थिति; ठहराव; स्थापन; रखा जाना 3. देव प्रतिमा की स्थापना करना 4. अभीष्ट की सिद्धि।
प्रतिष्ठान
(सं.) [सं-पु.] 1. आधार; स्थान; संस्था 2. नगरस्थापन; विश्रामालय।
प्रतिष्ठापन
(सं.) [सं-पु.] 1. स्थापित करने की क्रिया या भाव 2. पदारूढ़ करना; स्थापित करना 3. देवप्रतिमा आदि की स्थापना।
प्रतिष्ठापना
(सं.) [क्रि-स.] 1. स्थापित करने का काम 2. देवप्रतिमा की स्थापना 3. पदासीन करना।
प्रतिष्ठापित
(सं.) [वि.] जिसका प्रतिष्ठापन किया गया हो या हुआ हो।
प्रतिष्ठावान
(सं.) [वि.] 1. जिसकी समाज में प्रतिष्ठा या इज़्ज़त हो; इज़्ज़तदार 2. गौरवशाली 3. प्रसिद्ध 4. मान-मर्यादावाला।
प्रतिष्ठित
(सं.) [वि.] 1. सम्मानित 2. जिसकी स्थापना की गई हो 3. पदाभिषिक्त 4. पूरा किया हुआ; निश्चित; निर्धारित 5. प्रयुक्त।
प्रतिसंक्रम
(सं.) [सं-पु.] 1. प्रतिच्छाया; परछाईं; प्रतिबिंब 2. प्रतिसंचार; प्रलय।
प्रतिसंक्रांत
(सं.) [वि.] जिसकी परछाईं या छाया पड़ रही हो; प्रतिबिंबित।
प्रतिसंधि
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. वियोग 2. खोज; अनुसंधान 3. दो युगों का संधिकाल 4. पुनर्जन्म 5. भाग्य की प्रतिकूलता 6. अंत; समाप्ति।
प्रतिसंयोग
(सं.) [सं-पु.] 1. शत्रु मिलन 2. संयोग हेतु संघर्ष (संभोगोपरांत शुक्राणुओं का अंड से संसर्ग हेतु)। [अव्य.] प्रति बार का संयोग।
प्रतिसंलयन
(सं.) [सं-पु.] एकांतवासी होना (ईश्वर स्मरण हेतु)।
प्रतिसंवेदक
(सं.) [वि.] 1. किसी विषय की पूरी जानकारी रखने वाला 2. जिससे किसी के विषय में पूरी जानकारी मिलती हो।
प्रतिसंस्कार
(सं.) [सं-पु.] 1. पुनर्निर्माण 2. जीर्णोद्धार; मरम्मत; सुधारना।
प्रतिसंहरण
(सं.) [सं-पु.] किसी आदेश, अनुज्ञा, वचन या विज्ञप्ति को घोषित या जारी कर पुनः वापस लेना या रद्द कर देना; (रिवोकेशन)।
प्रतिसंहार
(सं.) [सं-पु.] 1. रद्द करना 2. सिमटाव; संकोचन 3. त्यागना 4. ह्रास।
प्रतिसम
(सं.) [वि.] 1. जो समान हो; जो बराबरी का हो 2. प्रतिसाम्य से युक्त।
प्रतिसरकार
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. समानांतर सरकार; किसी देश में प्रतिष्ठित सरकार के विरोध में स्थापित अन्य सरकार; (पैरेलल गवर्नमेंट) 2. सतारा क्षेत्र का एक सत्ता विरोधी
आंदोलन।
प्रतिसामंत
(सं.) [सं-पु.] शत्रु या विपक्षी सामंत; शत्रु या विपक्षी।
प्रतिसाम्य
(सं.) [सं-पु.] 1. समरूपता; सममिति; समानुपात 2. शरीर के अंगों, किसी रचना अथवा किसी वस्तु के विभिन्न अंगों में बनावट संबंधी उचित अनुपात जो उसे सुंदर और मोहक
बनाने में सहायक हो; (सिमेट्री)।
प्रतिसारण
(सं.) [सं-पु.] 1. दूर हटाना; अपसारण 2. चूर्ण, कल्क आदि से मसूढ़ों की सफ़ाई 3. मरहम-पट्टी 4. मरहम लगाने का उपकरण 5. चिकित्सा की एक प्राचीन विधि, जिसमें रुग्ण
अंग को घी या तेल से दागा जाता है।
प्रतिसारी
(सं.) [वि.] विपरीत दिशा में गमन करने वाला; उलटी दिशा में जाने वाला।
प्रतिसूर्य
(सं.) [सं-पु.] 1. सूर्य के चारों ओर का घेरा या सूर्य का मंडल 2. आकाश में होने वाला एक प्रकार का उत्पात जिसमें सूर्य के सामने एक और सूर्य निकलता दिखाई देता
है।
प्रतिस्कंध
(सं.) [सं-पु.] (पुराण) कार्तिकेय का एक अनुचर।
प्रतिस्थापन
(सं.) [सं-पु.] 1. विकल्प 2. किसी वस्तु के न रहने या नष्ट हो जाने पर या खो जाने पर उसके स्थान पर वैसी ही अन्य वस्तु को रखना 3. किसी व्यक्ति के स्थान पर अन्य
व्यक्ति को रखना 4. (अर्थशास्त्र) एक नियम; (लॉ ऑव सब्स्टिट्यूशन)।
प्रतिस्थापित
(सं.) [वि.] किसी के स्थान पर काम चलाने के लिए किसी को रखा हुआ या अस्थायी रूप से नियुक्त किया हुआ; (सब्स्टिट्यूट); बदले में रखा हुआ।
प्रतिस्नात
(सं.) [वि.] जो स्नान कर चुका हो; नहाया हुआ।
प्रतिस्पंदन
(सं.) [सं-पु.] हृदय की धक-धक; स्पंदन; स्फुरण; हरकत।
प्रतिस्पर्धा
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. प्रतियोगिता; प्रतिद्वंद्विता; होड़; मुकाबला; (कॉम्पटिशन) 2. किसी काम में किसी को मात देने की होड़; वह स्थिति जिसमें दो या दो से अधिक
व्यक्ति किसी लक्ष्य की प्राप्ति हेतु एक-दूसरे से आगे निकलने के लिए प्रयत्नशील रहते हैं; संघर्ष 3. बराबरी।
प्रतिस्पर्धात्मक
(सं.) [वि.] 1. प्रतिस्पर्धा के योग्य 2. प्रतिस्पर्धा संबंधी; प्रतिद्वंद्वात्मक 3. जिसकी प्रतिस्पर्धा या प्रतियोगिता हुई हो या होने वाली हो।
प्रतिस्पर्धी
(सं.) [सं-पु.] प्रतिस्पर्धा करने वाला व्यक्ति; प्रतियोगी; प्रतिद्वंद्वी।
प्रतिस्वर
(सं.) [सं-पु.] प्रतिध्वनि; प्रतिशब्द।
प्रतिहंता
(सं.) [वि.] 1. अवरोधक; बाधा पहुँचाने वाला; रोकने वाला 2. मुकाबले में खड़ा होकर मारने वाला।
प्रतिहत
(सं.) [वि.] 1. हटाया हुआ 2. भगाया हुआ 3. रोका हुआ 4. आहत 5. फेंका हुआ 6. जिसके सामने कोई बाधा हो 7. निराश।
प्रतिहति
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. प्रतिहनन; प्रतिघात 2. रोकने या हटाने की चेष्टा या क्रिया 3. विफलता; नैराश्य 4. क्रोध 5. टक्कर।
प्रतिहनन
(सं.) [सं-पु.] आघात करने वाले को मार डालना; प्रतिघात; आघात के बदले आघात; हनन करने वाले को मार डालना।
प्रतिहरण
(सं.) [सं-पु.] 1. विनाश 2. निवारण 3. परित्याग।
प्रतिहर्ता
(सं.) [सं-पु.] वेदों में प्राप्त सोलह प्रकार के ऋत्विजों में एक। [वि.] 1. विनाश करने वाला 2. निवारण करने वाला।
प्रतिहस्त
(सं.) [सं-पु.] 1. किसी के न रहने पर उसके स्थान पर गया हुआ या रखा हुआ; प्रतिनिधि 2. सहायक।
प्रतिहस्ताक्षर
(सं.) [सं-पु.] किसी के हस्ताक्षर के पास ही किसी अन्य का किया हुआ हस्ताक्षर; (काउंटर सिग्नेचर)।
प्रतिहार
(सं.) [सं-पु.] 1. द्वारपाल 2. द्वार; दरवाज़ा 3. बाज़ीगर; जादूगर 4. सामवेद गान का एक अंग 5. दो लोगों के बीच होने वाला सशर्त समझौता।
प्रतिहारक
(सं.) [सं-पु.] 1. वह जो प्रतिहार नामक साम का गायन करता है 2. ऐंद्रजालिक; बाज़ीगर।
प्रतिहारी
(सं.) [सं-पु.] द्वारपाल; दरबान। [सं-स्त्री.] 1. संस्कृत नाटकों में प्रयुक्त एक स्त्री पात्र 2. राजाओं के यहाँ रहने वाली द्वारपालिका; संदेशवाहिका।
प्रतिहार्य
(सं.) [सं-पु.] बाज़ीगर; ऐंद्रजालिक; जादूगर। [वि.] 1. जिसका विरोध किया जाए 2. लौटाया या हटाया जाने वाला।
प्रतिहास
(सं.) [सं-पु.] 1. कनेर; कनेर का पेड़ 2. हँसी के बदले हँसी।
प्रतिहिंसा
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. हिंसा के बदले की गई या की जाने वाली हिंसा 2. बदला लेना।
प्रतीक
(सं.) [सं-पु.] 1. वह गोचर या दृश्य वस्तु जो किसी अगोचर या अदृश्य वस्तु के बहुत कुछ अनुरूप होने के कारण उसके गुण, रूप आदि का परिचय कराने के लिए उसका
प्रतिनिधित्व करती हो; (सिंबल) 2. चिह्न; लक्षण; निशान।
प्रतीकपूजा
(सं.) [सं-स्त्री.] प्रतीकों की पूजा; लिंगपूजा; मूर्तिपूजा; आध्यात्मिक आस्था के कारण प्रकृति के किसी उपादान की पूजा।
प्रतीकवाद
(सं.) [सं-पु.] अभिव्यंजना की वह विशिष्ट प्रणाली या उससे संबंधित मूल तथा स्थूल सिद्धांत जिसके अनुसार प्रतीकों के आधार पर भावों, वस्तुओं आदि का बोध कराया
जाता है; (सिंबलिज़म)।
प्रतीकवादी
(सं.) [वि.] 1. प्रतीकवाद से संबंधित; प्रतीकवाद का 2. प्रतीकवाद का अनुयायी, पोषक या समर्थक (व्यक्ति, कलाकार)।
प्रतीकात्मक
(सं.) [वि.] 1. जो प्रतीक या प्रतीकों से संबद्ध हो 2. (साहित्यिक रचना) जिसमें प्रतीकों की सहायता से भावों, वस्तुओं, विषयों आदि का बोध कराया गया हो 3.
नाममात्र का।
प्रतीकात्मकता
(सं.) [सं-स्त्री.] प्रतीकात्मक होने की अवस्था या भाव।
प्रतीकार्थ
(सं.) [सं-पु.] 1. प्रतीक के आधार पर प्राप्त अर्थ 2. सांकेतिकता 3. प्रतीकात्मकता। [वि.] जिसका प्रयोग प्रतीक के रूप में हुआ हो।
प्रतीकोपासन
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. देवता का कोई प्रतीक बनाकर उसकी पूजा करना 2. किसी के प्रतीक की जाने वाली उपासना 3. मूर्तिपूजन।
प्रतीक्षक
(सं.) [वि.] 1. प्रतीक्षा करने वाला; किसी की राह देखने वाला 2. पूजक; पूजा करने वाला।
प्रतीक्षण
(सं.) [सं-पु.] 1. प्रतीक्षा करना; आसरा देखना 2. कृपादृष्टि 3. अपेक्षा; आशा; उम्मीद।
प्रतीक्षा
(सं.) [सं-स्त्री.] वह स्थिति जिसमें कोई उत्सुकतापूर्वक किसी आने वाले व्यक्ति या वस्तु की बाट जोहता या रास्ता देख रहा होता है; इंतज़ार।
प्रतीक्षाकुल
(सं.) [वि.] प्रतीक्षा में अधीर या आकुल; प्रतीक्षारत।
प्रतीक्षा गृह
(सं.) [सं-पु.] 1. रेल, बस, विमान आदि के लिए प्रतीक्षारत यात्रियों के लिए बनाया गया कमरा 2. बड़े आदमी से मिलने वालों के लिए बैठ कर प्रतीक्षा करने का स्थान।
प्रतीक्षारत
(सं.) [वि.] जो किसी की प्रतीक्षा कर रहा हो।
प्रतीक्षालय
(सं.) [सं-पु.] 1. रेलगाड़ी, वायुयान या बस आदि के आने की प्रतीक्षा में प्रतीक्षारत यात्रियों के बैठने का कमरा 2. किसी व्यक्ति से मिलने वालों के लिए बैठकर
मिलने की प्रतीक्षा करने का कक्ष; (वेटिंग रूम)।
प्रतीक्षा सूची
(सं.) [सं-स्त्री.] किसी चीज़ की प्रतीक्षा में रत लोगों की सूची; किसी कार्य को संपन्न करने के लिए परीक्षा, साक्षात्कार आदि के परिणाम में लोगों या व्यक्तियों
के बाद के लोगों की क्रमवार सूची।
प्रतीक्षित
(सं.) [वि.] 1. जिसकी प्रतीक्षा की गई हो अथवा की जा रही हो 2. जिसका यथेष्ट ध्यान रखा गया हो 3. पूजित।
प्रतीक्षी
(सं.) [वि.] जो प्रतीक्षा करे; प्रतीक्षा करने वाला।
प्रतीक्ष्य
(सं.) [वि.] जिसकी प्रतीक्षा की जाए या की जा सके; प्रतीक्षा के योग्य।
प्रतीची
(सं.) [सं-स्त्री.] पश्चिम दिशा; पश्चिम देश।
प्रतीच्य
(सं.) [वि.] 1. पश्चिम संबंधी 2. पश्चिम में रहने वाला 3. पश्चिम में होने वाला।
प्रतीत
(सं.) [वि.] 1. लगना; आभास होना; ज्ञात; विदित 2. अटकल; अनुमान के आधार पर जान पड़ने वाला 3. प्रसिद्ध; विख्यात 3. प्रसन्न और संतुष्ट।
प्रतीति
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. प्रतीत होने की क्रिया या भाव 2. जानकारी; ज्ञान 3. किसी बात या विषय के संबंध में होने वाला दृढ़ निश्चय या विश्वास; यकीन 4. प्रसन्नता;
हर्ष 5. आदर; सम्मान।
प्रतीत्य
(सं.) [सं-पु.] 1. सांत्वना; प्रोत्साहन 2. आराम।
प्रतीप
(सं.) [वि.] 1. विपरीत; प्रतिकूल; विलोम 2. विरोधी 3. हठी 4. अप्रिय। [सं-पु.] 1. (काव्यशास्त्र) एक अर्थालंकार जिसमें उपमेय को उपमान से श्रेष्ठ दिखाया जाता है
2. (पुराण) राजा शांतनु के पिता।
प्रतीपक
(सं.) [वि.] विपरीत; प्रतिकूल; विलोम; विरुद्ध।
प्रतीपित
(सं.) [वि.] उलटा या उलटाया हुआ।
प्रतीयमान
(सं.) [वि.] 1. जिसकी प्रतीति हो रही हो 2. व्यंजना द्वारा प्रकट अर्थ; विशेषार्थ।
प्रतीर
(सं.) [सं-पु.] किनारा; तट; कछार; कूल।
प्रतीष्ट
(सं.) [वि.] 1. स्वीकृत; स्वीकार किया हुआ 2. प्राप्त।
प्रतुष्टि
(सं.) [सं-स्त्री.] तृप्ति; संतुष्टि।
प्रतूर्ण
(सं.) [वि.] गतिवान; वेगवान।
प्रतूर्त
(सं.) [वि.] प्रतूर्ण।
प्रतूलिका
(सं.) [सं-स्त्री.] गद्दा; तोशक; तुला (रुई) से बनी शय्या।
प्रतोद
(सं.) [सं-पु.] 1. छड़ी; कोड़ा; चाबुक 2. किसी को किसी काम के लिए उत्तेजित करना या विवश करना 3. अंकुश।
प्रतोष
(सं.) [सं-पु.] 1. संतुष्ट होने की अवस्था या भाव 2. परितोष; संतोष 3. (पुराण) स्वयंभुव मनु के एक पुत्र का नाम।
प्रत्त
(सं.) [वि.] 1. प्रदत्त; उपहृत; दिया हुआ 2. विवाह में प्रदत्त।
प्रत्न
(सं.) [वि.] 1. प्राचीन; पुरातन; पुराना; 2. परंपरागत; पारंपरिक।
प्रत्यंकन
(सं.) [सं-पु.] अनुरेखन; अंकित की हुई किसी आकृति की ज्यों की त्यों प्रतिकृति निर्मित करना; (ट्रेसिंग)।
प्रत्यंग
(सं.) [सं-पु.] 1. शरीर का गौण अंग विशेष 2. अध्याय; खंड; विभाग 3. एक मान 4. अस्त्र। [अव्य.] अंग-अंग में; प्रत्येक अंग में।
प्रत्यंगिरा
(सं.) [सं-पु.] 1. (पुराण) एक ऋषि जो अंगिरस ऋषि के पुत्र थे 2. बिसखोपड़ा नामक एक जंतु 3. सिरस का पेड़। [सं-स्त्री.] 1. दुर्गा का एक रूप 2. तांत्रिकों की एक
देवी।
प्रत्यंचा
(सं.) [सं-स्त्री.] धनुष की डोरी जिसकी सहायता से बाण छोड़ा जाता है; चिल्ला।
प्रत्यंचित
(सं.) [वि.] सम्मानित; अर्चित; पूजित।
प्रत्यंजन
(सं.) [सं-पु.] काजल लगाने की क्रिया; लेपन; अंजन लगाना।
प्रत्यंत
(सं.) [सं-पु.] सीमा। [वि.] जो सन्निकट (अति समीप) हो; प्रत्यासन्न।
प्रत्यंतर
(सं.) [सं-पु.] 1. किसी अंतर के अंदर होने वाला कोई दूसरा छोटा या विभागीय अंतर 2. उक्त प्रकार की अवधि।
प्रत्यक्ष
(सं.) [वि.] 1. जो आँखों के सामने हो; आँख से दिखाई देने वाला; दृष्टिगोचर 2. जो समझ में आ रहा हो या जिसका ज्ञान इंद्रियों से हो सके 3. स्पष्ट; साफ़ 4. जिसमें
कोई घुमाव-फिराव न हो; सीधा 5. जिसमें किसी बाहरी आधार या साधन का प्रयोग न हुआ हो, जैसे- प्रत्यक्ष प्रमाण 6. सीधे होने वाला, जैसे- प्रत्यक्ष निर्वाचन 7.
भौतिक। [सं-पु.] चार प्रकार के प्रमाणों में से एक जिसका आधार देखी या जानी हुई बातों पर होता है।
प्रत्यक्षता
(सं.) [सं-स्त्री.] प्रत्यक्ष रूप से होने की अवस्था या भाव।
प्रत्यक्षदर्शी
(सं.) [वि.] जिसने प्रत्यक्ष रूप से कोई घटना या बात होती हुई देखी हो; साक्षी; चश्मदीद।
प्रत्यक्षर
(सं.) [अव्य.] अक्षर-अक्षर पर; अक्षर-अक्षर में।
प्रत्यक्षवाद
(सं.) [सं-पु.] प्रत्यक्ष प्रमाण या इंद्रियों के अनुभव को ही प्रमाण मानने का मत; चार्वाक द्वारा स्थापित मत।
प्रत्यक्षवादी
(सं.) [सं-पु.] 1. वस्तुनिष्ठवाद में विश्वास रखने वाला व्यक्ति 2. वह जो केवल प्रत्यक्ष ज्ञान का साक्षात्कार करता हो। [वि.] 1. केवल प्रत्यक्ष ज्ञान को मानने
वाला 2. वस्तुनिष्ठवाद से संबंधित।
प्रत्यक्ष साक्षी
(सं.) [सं-स्त्री.] कर्मसाक्षी; चश्मदीद गवाह; प्रत्यक्षदर्शी; साक्षी।
प्रत्यक्षीकरण
(सं.) [सं-पु.] 1. स्पष्टीकरण 2. प्रकटीकरण 3. स्वयं अपनी आँखों से देखने की क्रिया।
प्रत्यक्षीकृत
(सं.) [वि.] प्रत्यक्ष किया हुआ (देखा हुआ); आँखों से देखा हुआ; जिसका प्रत्यक्षीकरण हुआ हो।
प्रत्यक्षीभूत
(सं.) [वि.] जो प्रत्यक्ष हो चुका हो; जो सामने आ चुका हो।
प्रत्यग्र
(सं.) [वि.] 1. हाल का; ताज़ा; नया 2. शुद्ध; शोधित।
प्रत्यनंतर
(सं.) [वि.] अति समीप; प्रत्यासन्न; सन्निकट। [सं-पु.] उत्तराधिकारी।
प्रत्यनीक
(सं.) [सं-पु.] 1. शत्रु 2. शत्रु सेना 3. विघ्न; बाधा 4. (काव्यशास्त्र) एक अर्थालंकार जिसमें किसी शत्रु को न जीत पाने पर उसके पक्षवालों के किए जाने वाले
तिरस्कार का उल्लेख होता है 5. (काव्यशास्त्र) एक प्रकार का रस दोष, जिसमें एक ही समय परस्पर विरोधी रसों का वर्णन होता है। [वि.] विपक्षी; प्रतिवादी; विरोधी।
प्रत्यपकार
(सं.) [सं-पु.] अपकार के बदले किया जाने वाला अपकार; बदला; प्रतिशोध।
प्रत्यभिज्ञा
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. जानना; ज्ञान प्राप्त करना 2. कभी देखे हुए व्यक्ति या पदार्थ को फिर से देख लेने पर पहचान लेना 3. एक प्राचीन भारतीय दर्शन।
प्रत्यभिज्ञात
(सं.) [वि.] जाना हुआ; पहचाना हुआ।
प्रत्यभिज्ञान
(सं.) [सं-पु.] 1. सदृश वस्तु को देखकर किसी देखी हुई वस्तु का स्मरण हो आना; स्मृति की सहायता से होने वाला ज्ञान 2. पहचान।
प्रत्यभिभूत
(सं.) [वि.] परास्त; विजित; पराभूत।
प्रत्यभियोग
(सं.) [सं-पु.] प्रतिवादी या अभियुक्त की ओर से वादी पर लगाया गया आरोप या अभियोग।
प्रत्यय
(सं.) [सं-पु.] 1. (व्याकरण) वह अक्षर या अक्षरों का समूह जो धातुओं अथवा विकारी शब्दों के अंत में लगकर उनके अर्थों में परिवर्तन अथवा विशेषता उत्पन्न कर देता
है; (सफ़िक्स) 2. विश्वास; प्रतीति; धारणा 3. किसी वस्तु का मानसिक बोध; (आइडिया) 4. प्रमाण; सबूत 5. प्रसिद्धि; ख्याति 6. लक्षण; चिह्न 7. व्याख्या 8. निश्चय;
राय; निर्णय।
प्रत्ययन
(सं.) [सं-पु.] प्रतीत होने की क्रिया; आभास होने की प्रक्रिया।
प्रत्ययित
(सं.) [वि.] 1. जिसे विश्वास हुआ हो; विश्वस्त 2. आप्त।
प्रत्ययी
(सं.) [वि.] 1. विश्वास करने वाला; भरोसा रखने वाला 2. विश्वास करने योग्य; विश्वसनीय।
प्रत्यर्थ
(सं.) [सं-पु.] 1. शत्रुता; विरोध 2. जवाब; उत्तर। [वि.] लाभदायक; उपयोगी।
प्रत्यर्थक
(सं.) [सं-पु.] प्रतिपक्षी; विपक्षी; विरोधी; शत्रु।
प्रत्यर्थिक
(सं.) [सं-पु.] प्रत्यर्थक।
प्रत्यर्थी
(सं.) [सं-पु.] 1. प्रतिवादी 2. प्रतिपक्षी; मुद्दालेह 3. विरोधी; शत्रु।
प्रत्यर्पण
(सं.) [सं-पु.] 1. ग्रहित वस्तु को पुनः लौटा देना 2. किसी देश के भागे हुए अपराधी को पकड़ कर पुनः उस देश को लौटा देना 3. कर्ज़ ली हुई रकम को पुनः वापस कर
देना; (रिफ़ंड)।
प्रत्यर्पित
(सं.) [वि.] लौटाया हुआ; वापस किया हुआ।
प्रत्यवमर्श
(सं.) [सं-पु.] 1. पुनर्विमर्श; अनुचिंतन 2. सहिष्णुता 3. अनुसंधान।
प्रत्यवर
(सं.) [वि.] अति नीच; अत्यंत गिरा हुआ; अति निकृष्ट।
प्रत्यवरोध
(सं.) [सं-पु.] विध्न; बाधा; रुकावट।
प्रत्यवरोधन
(सं.) [सं-पु.] प्रत्यवरोध उत्पन्न करना; बाधा; रुकावट।
प्रत्यवलोकन
(सं.) [सं-पु.] 1. पीछे की ओर देखना 2. कवि के कृतित्व को समझने के लिए फिर से विचार करना 3. दोहराना; फिर से देखना।
प्रत्यवसान
(सं.) [सं-पु.] भोजन करना; परिभक्षण; खाना।
प्रत्यवसित
(सं.) [वि.] 1. भुक्त; खाया हुआ 2. जो पुनः पुराना (ख़राब) रहन-सहन अपना चुका हो।
प्रत्यवस्कंद
(सं.) [सं-पु.] 1. किसी के द्वारा लगाए गए आरोप या अभियोग को इस तरह स्वीकार करना कि उसकी गिनती अभियोग में न हो पाए 2. किसी के द्वारा लगाए गए आरोप या अभियोग
का वह उत्तर जिसमें वह वादी के अभियोग का खंडन करता है।
प्रत्यवस्थाता
(सं.) [सं-पु.] 1. शत्रु; वैरी 2. प्रतिवादी; मुद्दालेह।
प्रत्यवस्थान
(सं.) [सं-पु.] 1. पूर्ववत रहना 2. विरोध 3. विरोधी या प्रतिवादी के रूप में उपस्थित होना 4. पृथक करना।
प्रत्यवहार
(सं.) [सं-पु.] 1. पूर्ण नाश; विनाश; संहार 2. प्रलय 3. युद्ध हेतु प्रस्तुत या उद्धत सैनिकों को युद्ध से विमुख या निवृत्त करना।
प्रत्यवेक्षण
(सं.) [सं-पु.] 1. अच्छी तरह देखभाल; निगरानी; चौकसी 2. भली-भाँति जानना 3. ध्यान रखना।
प्रत्यवेक्षा
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. बौद्धों में पाँच प्रकार के बोध या ज्ञान में से एक का नाम 2. प्रत्यवेक्षण।
प्रत्यस्तमय
(सं.) [सं-पु.] 1. सूर्यास्त 2. अवसान या समाप्ति की ओर बढ़ता हुआ।
प्रत्यांत
(सं.) [वि.] जिस (शब्द) के अंत में प्रत्यय लगा हो; प्रत्यय से युक्त (शब्द)।
प्रत्याकार
(सं.) [सं-पु.] म्यान; खड्गकोश; तलवार रखने का कोष।
प्रत्याक्रमण
(सं.) [सं-पु.] आक्रमण के बदले में किया जाने वाला आक्रमण; जवाबी हमला।
प्रत्याख्यात
(सं.) [वि.] 1. अस्वीकृत 2. निषिद्ध; वर्जित 3. ख़ारिज किया हुआ 4. खंडित 5. (निषिद्ध अर्थ में) प्रसिद्ध 6. अतिक्रांत 7. आपत्ति; (प्रोटेस्ट)।
प्रत्याख्यान
(सं.) [सं-पु.] 1. स्वीकार न करना; अस्वीकृति; इनकार 2. प्रतिवाद; खंडन 3. तिरस्कार 4. फटकार।
प्रत्यागत
(सं.) [वि.] 1. वापस आया हुआ; कहीं से लौट कर आया हुआ 2. पुनः प्राप्त।
प्रत्यागति
(सं.) [सं-स्त्री.] वापस होने की क्रिया या भाव; लौटना; वापसी।
प्रत्यागम
(सं.) [सं-पु.] 1. लौटना 2. दुबारा आना 3. किसी काम या व्यापार में व्यय की गई पूँजी के बदले में मिलने वाला धन; लाभ।
प्रत्यागमन
(सं.) [सं-पु.] वापस आना; लौट आना; प्रतिगमन; प्रत्यागम।
प्रत्याघात
(सं.) [सं-पु.] 1. किसी आघात के बदले किया जाने वाला आघात; बदले का प्रहार 2. प्रतिक्रिया; बदले की भावना से किया जाने वाला कार्य।
प्रत्याचार
(सं.) [सं-पु.] 1. किसी के अच्छे या बुरे आचरण के बदले किया गया वैसा ही आचरण; जैसे को तैसा 2. अनुकूल आचरण।
प्रत्यादान
(सं.) [सं-पु.] फिर से वापस लेना; लौटा लेना; पुनः प्राप्त करना।
प्रत्यादिष्ट
(सं.) [वि.] 1. निर्दिष्ट; निर्देश किया हुआ 2. चिताया हुआ 3. लांक्षित 4. निराकृत; अस्वीकृत 5. पृथक (अलग) किया हुआ।
प्रत्यादेश
(सं.) [सं-पु.] 1. किसी निर्णय या आदेश का खंडन; निराकरण 2. निर्देश 3. चेतावनी के रूप में होने वाली भविष्यवाणी 4. आदेश 5. अस्वीकरण 6. किसी को परास्त करने की
क्रिया या भाव।
प्रत्याधान
(सं.) [सं-पु.] 1. वह स्थल जहाँ कोई वस्तु जमा की जाए 2. (वेद) मस्तक।
प्रत्यानयन
(सं.) [सं-पु.] 1. किसी को अथवा किसी के हाथ में गई हुई वस्तु को वापस लाना 2. प्रत्यर्पण।
प्रत्यानीत
(सं.) [वि.] वापस किया हुआ; लौटा कर लाया हुआ।
प्रत्यापत्ति
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. वापसी; पुनरागमन 2. वैराग्य 3. किसी वारिस या उत्तराधिकारी के न रहने पर संपत्ति का राज्य के अधिकार में आना 4. उक्त प्रकार की संपत्ति से
राज्य को होने वाली आय; नज़ूल।
प्रत्याभिवादन
(सं.) [सं-पु.] अभिनंदन का अभिनंदन से जवाब देना; अभिवादन के उत्तर में किया जाने वाला अभिवादन।
प्रत्याभूति
(सं.) [सं-स्त्री.] जमानत के रूप में दी (रखी) गई वस्तु या धनराशि।
प्रत्याय
(सं.) [सं-पु.] 1. राजस्व; कर; चुंगी 2. उत्पादन के घटकों के आपूर्तिकर्ताओं को वापस मिलने वाला धन।
प्रत्यायक
(सं.) [वि.] 1. विश्वास कराने वाला 2. प्रमाणित करने वाला; सिद्ध करने वाला 3. व्याख्यान देने वाला।
प्रत्यायन
(सं.) [सं-पु.] 1. विश्वास दिलाना 2. प्रमाणित करना 3. सूर्य का अस्त होना 4. व्याख्यान 5. वर या वधू को घर ले जाना।
प्रत्यायित
(सं.) [सं-पु.] विश्वस्त दूत या प्रतिनिधि; वह दूत या प्रतिनिधि जो पूर्णतः विश्वस्त हो।
प्रत्यायुक्त
(सं.) [वि.] 1. किसी विशेष कार्य हेतु नियुक्त किया गया (व्यक्ति) 2. जो किसी के बदले में प्रतिनिधि बना कर भेजा गया हो।
प्रत्यायोजन
(सं.) [सं-पु.] अपने अधिकार या शक्तियाँ किसी अन्य व्यक्ति को सौंपना या प्रदान करना; (ऐक्ट ऑव डेलिगेटिंग)।
प्रत्यारंभ
(सं.) [सं-पु.] 1. फिर से प्रारंभ करना; पुनरारंभ 2. मनाही; निषेध।
प्रत्यारोप
(सं.) [सं-पु.] किसी आरोप के प्रतिवाद या प्रत्युत्तर में प्रस्तुत किया गया आरोप; (काउंटर चार्ज)।
प्रत्यारोपण
(सं.) [सं-पु.] प्रत्यारोपित करने की क्रिया; किसी आरोप के प्रतिवाद में आरोप लगाने की क्रिया।
प्रत्यारोपित
(सं.) [वि.] 1. आरोप के उत्तर में लगाया गया (आरोप) 2. परस्पर दोषारोपण।
प्रत्यार्पण संधि
(सं.) [सं-स्त्री.] दो देशों के बीच होने वाली वह संधि जिसके अनुसार देश में अपराध करके किसी दूसरे देश में जाकर रहने वाले अपरधियों को उस देश को लौटा दिया जाता
है।
प्रत्यालोचन
(सं.) [सं-पु.] 1. किसी के किए हुए निर्णय पर फिर से विचार करना 2. समीक्षा 3. समालोचना 4. पुनरीक्षण।
प्रत्यालोचना
(सं.) [सं-पु.] किसी ग्रंथ, रचना या विषय की आलोचना में कही गई बातों की पुनः आलोचना करना; आलोचना की समीक्षा करना।
प्रत्यावर्तन
(सं.) [सं-पु.] 1. लौटकर आना; वापसी 2. संपदा, जायदाद आदि की वापसी 3. कर्मचारी आदि की पद पर वापसी; बहाली।
प्रत्यावर्तित
(सं.) [वि.] जिसका प्रत्यावर्तन हुआ हो या किया गया हो।
प्रत्यावेदन
(सं.) [सं-पु.] जवाबी वक्तव्य; किसी के लगाए गए आरोप या वक्तव्य के विरोध में कही गई बात; (काउंटर स्टेटमेंट)।
प्रत्याशा
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. आशा; उम्मीद; भरोसा 2. अधीरता से प्रतीक्षा; बेचैनी से इंतज़ार; उत्कंठा 3. होने, मिलने आदि की संभावना।
प्रत्याशित
(सं.) [वि.] 1. जिसकी आशा या अपेक्षा की गई हो; अपेक्षित 2. जिसका पहले से अनुमान किया गया हो; पूर्वानुमानित।
प्रत्याशी
(सं.) [सं-पु.] 1. वह जो किसी पद की प्राप्ति के लिए इच्छुक हो 2. निर्वाचन में किसी दल या पार्टी द्वारा घोषित किया गया व्यक्ति; उम्मीदवार। [वि.] प्रत्याशा
करने वाला; आशा या प्रतीक्षा करने वाला।
प्रत्याशी सूची
(सं.) [सं-पु.] 1. किसी पद के इच्छुक आवेदकों या अभ्यर्थियों की सूची 2. निर्वाचित होने के लिए चुनाव लड़ने वाले प्रत्याशियों के नामों की अनुक्रमणिका 3. चुनाव
में भाग लेने हेतु किसी दल द्वारा जारी अपने उम्मीदवारों की सूची।
प्रत्याश्रय
(सं.) [सं-पु.] शरण लेने का स्थान; पनाह लेने की जगह।
प्रत्याश्वासन
(सं.) [सं-पु.] धीरज; सांत्वना; ढाढस।
प्रत्यासंग
(सं.) [सं-पु.] 1. संबंध 2. संयोग।
प्रत्यासत्ति
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. निकटता; सामीप्य 2. प्रसन्नता 3. आसक्ति 4. (न्यायशास्त्र) अलौकिक प्रत्यक्ष का कारण रूप संबंध।
प्रत्यासन्न
(सं.) [वि.] 1. अति निकटस्थ 2. पास आया हुआ; अति निकट पहुँचा हुआ।
प्रत्यासर
(सं.) [सं-पु.] 1. ऐसी सैनिक व्यूह रचना जिसमें एक व्यूह के पीछे दूसरा बनाया गया हो; सेना के पीछे का व्यूह 2. सेना का पिछला भाग।
प्रत्यास्थतता
(सं.) [सं-स्त्री.] खींचने पर किसी तत्व या पदार्थ के बड़े या लंबे हो जाने तथा फिर पूर्ववत हो जाने का गुण; (इलैस्टिसिटी)।
प्रत्यास्मरण
(सं.) [सं-पु.] विस्मृत (भूली हुई) बात या घटना को पुनः याद करना; (रिकॉल)।
प्रत्याहत
(सं.) [वि.] हटाया हुआ; अस्वीकृत; निवारित।
प्रत्याहरण
(सं.) [सं-पु.] 1. वापस लेना या लाना 2. रोक रखना 3. इंद्रिय संयम 4. निग्रह करना।
प्रत्याहार
(सं.) [सं-पु.] 1. व्याकरण में विभिन्न वर्ण समूह का संक्षेप में उल्लेख 2. प्रतिकार 3. फिर से आरंभ करना 4. आज्ञा, वचन आदि वापस लिया जाना 5. पीछे की ओर ले
जाना।
प्रत्याहूत
(सं.) [वि.] वापस बुलाया हुआ; वापस आने का आदेश दिया हुआ।
प्रत्युक्त
(सं.) [वि.] 1. जिसका उत्तर दिया गया हो; प्रत्युत्तर 2. जिसका खंडन किया गया हो।
प्रत्युक्ति
(सं.) [सं-स्त्री.] उत्तर; जवाब।
प्रत्युच्चार
(सं.) [सं-पु.] फिर से उच्चरित करना; फिर से उच्चारण करना; फिर से कहना; पुनरुक्ति।
प्रत्युच्चारण
(सं.) [सं-पु.] प्रत्युच्चार।
प्रत्युज्जीवन
(सं.) [सं-पु.] 1. पुनर्जीवन; फिर से जी उठना 2. किसी मृत्यु तुल्य घटना से बच निकलना।
प्रत्युत
(सं.) [अव्य.] 1. बल्कि; वरन 2. इसके विपरीत।
प्रत्युत्क्रम
(सं.) [सं-पु.] 1. किसी कार्य को आरंभ करने हेतु उद्यम; प्रथम प्रयत्न 2. युद्ध की तैयारी 3. वह आक्रमण जो युद्ध के समय सबसे पहले हो 4. मुख्य कार्य की सिद्धि
हेतु किया जाने वाला गौण कार्य।
प्रत्युत्तर
(सं.) [सं-पु.] 1. उत्तर; जवाब 2. प्राप्त उत्तर का उत्तर।
प्रत्युत्थान
(सं.) [सं-पु.] 1. अभ्युत्थान; बड़े के आने पर उनके सम्मान में खड़ा होना 2. किसी के विरुद्ध खड़ा होना; युद्ध हेतु तैयारी करना।
प्रत्युत्थित
(सं.) [वि.] 1. किसी ज्येष्ठ या बड़े के आने पर उनके प्रति सम्मान में खड़ा होने वाला 2. किसी शत्रु के विरुद्ध मुकाबला करने या युद्ध हेतु खड़ा होने वाला।
प्रत्युत्पन्न
(सं.) [सं-पु.] गुणन। [वि.] 1. जो फिर से उत्पन्न हुआ हो 2. जो तत्काल उत्पन्न हुआ हो 3. उपस्थित।
प्रत्युत्पन्नमति
(सं.) [सं-स्त्री.] अतिशीघ्र सोचने, समझने की शक्ति। [वि.] 1. हाज़िरजवाब 2. जो तुरंत कोई उपयुक्त बात सोच ले।
प्रत्युद्गति
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. प्रत्युदगमन; किसी अतिथि या बड़े के आने पर उनके सम्मान में अपना आसन छोड़ कर खड़े हो जाना 2. अतिथि का स्वागत।
प्रत्युद्गम
(सं.) [सं-पु.] 1. प्रत्युत्थान 2. स्वागत करना।
प्रत्युद्गमन
(सं.) [सं-पु.] प्रत्युद्गम।
प्रत्युद्धरण
(सं.) [सं-पु.] 1. पुनर्प्राप्ति; फिर से प्राप्त करना 2. फिर से उठाना।
प्रत्युपकार
(सं.) [सं-पु.] भलाई के बदले भलाई; उपकार के बदले उपकार।
प्रत्युपमान
(सं.) [सं-पु.] उपमान को उपमित करने वाला उपमान; उपमान का उपमान।
प्रत्युपस्थान
(सं.) [सं-पु.] घर के आसपास का क्षेत्र; प्रतिवेश; पड़ोस।
प्रत्युप्त
(सं.) [वि.] 1. जड़ा हुआ या बैठाया हुआ 2. बोया हुआ या जमाया हुआ।
प्रत्यूष
(सं.) [सं-पु.] 1. भोर; प्रभात; सवेरा; प्रातःकाल 2. सूर्य।
प्रत्येक
(सं.) [वि.] हर एक संख्या के विचार से दो या दो से अधिक इकाइयों, समूहों में से एक-एक; अलग-अलग; हर एक; (एवरी)।
प्रथम
(सं.) [वि.] 1. क्रम, गणना या पंक्ति में जो सबसे पहले हो 2. जो गुण, महत्व या योग्यता में सबसे बढ़कर हो; श्रेष्ठ 3. मुख्य; प्रधान 4. पहले का। [क्रि.वि.]
पहले; आगे।
प्रथमक
(सं.) [वि.] प्रथम; पहला; सबसे पहलेवाला।
प्रथमतया
(सं.) [अव्य.] गुण, महत्व या योग्यता में पहले; सबसे पहले।
प्रथमता
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. प्राथमिक 2. प्रथम होने की अवस्था या भाव।
प्रथम दीर्घाक्षर
(सं.) [सं-पु.] (पत्रकारिता) अनुच्छेद के आरंभ में लगाया गया बड़े आकार का मोटा मुद्राक्षर।
प्रथम दृष्ट्या
(सं.) [क्रि.वि.] पहली नज़र में; पहली बार देखने पर।
प्रथमा
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. व्याकरण में प्रथम कर्ता कारक (प्रथमा विभक्ति) 2. तांत्रिकों के अनुरूप मद्य या शराब।
प्रथमांक
(सं.) [सं-पु.] 1. पहला अंक 2. शुरू की संख्या।
प्रथमाक्षर
(सं.) [सं-पु.] किसी वर्णमाला का पहला अक्षर, जैसे- देवनागरी वर्णमाला का 'अ'।
प्रथमार्ध
(सं.) [सं-पु.] 1. किसी वस्तु के दो समान भागों में पहले वाला आधा भाग 2. दो खंडों में विभक्त किसी पुस्तक का प्रथम आधा खंड।
प्रथमाश्रम
(सं.) [सं-पु.] चार आश्रमों में प्रथम आश्रम; ब्रह्मचर्य आश्रम।
प्रथमोदित
(सं.) [वि.] सबसे पहले कहा गया या कहा हुआ; प्रथमोक्त।
प्रथमोपचार
(सं.) [सं-पु.] किसी घायल व्यक्ति का उचित चिकित्सा की सुविधा प्राप्त होने के पूर्व किया गया उपचार; प्राथमिक चिकित्सा; (फ़र्स्ट एड)।
प्रथा
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. परंपरा; रिवाज 2. किसी जाति, समाज आदि में किसी विशिष्ट अवसर पर किसी विशिष्ट ढंग से किया जाने वाला कोई काम; रीति 3. नियम 4. प्रसिद्धि;
ख्याति।
प्रथागत
(सं.) [वि.] प्रथा या रीति के अनुसार; रीतिगत।
प्रथानुसार
(सं.) [क्रि.वि.] आमतौर पर; नियमित रूप से; सामान्य रूप से; परंपरागत रूप से; आदतन।
प्रथित
(सं.) [वि.] 1. विस्तृत; लंबा-चौड़ा 2. प्रसिद्ध; मशहूर 3. प्रस्थापित।
प्रथिति
(सं.) [सं-स्त्री.] लोकप्रियता; ख्याति; प्रसिद्धि।
प्रथिमा
(सं.) [सं-स्त्री.] मोटापा; स्थूलता; पृथुलता।
प्रद
(सं.) [परप्रत्य.] देने वाला; दाता; दायक; उत्पन्न करने वाला; पैदा करने वाला, जैसे- संतोषप्रद, लाभप्रद आदि।
प्रदक्षिण
(सं.) [वि.] 1. दाहिनी ओर स्थित 2. योग्य; समर्थ 3. दक्ष; चतुर 4. विनम्र; शालीन। [सं-पु.] श्रद्धा-भक्ति से किसी देवता आदि के चारों ओर इस प्रकार भ्रमण करना कि
दायाँ अंग बराबर उसी ओर पड़े; परिक्रमा; फेरी।
प्रदक्षिणा
(सं.) [सं-स्त्री.] किसी पवित्र स्थान या देव मूर्ति के चारों ओर इस प्रकार घूमना कि वह पवित्र स्थान या मूर्ति बराबर दाहिनी ओर रहे; परिक्रमा।
प्रदग्ध
(सं.) [वि.] अति दग्ध (जला हुआ); बहुत जला हुआ।
प्रदत्त
(सं.) [सं-पु.] एक गंधर्व का नाम। [वि.] जो दिया जा चुका हो; दिया या प्रदान किया हुआ।
प्रदर
(सं.) [सं-पु.] 1. तोड़ने-फोड़ने की क्रिया या भाव 2. छिद्र 3. दरार 4. तितर-बितर होना 5. स्त्रियों का एक रोग जिसमें उनके गर्भाशय से सफ़ेद या लाल रंग का लसदार
गंदा तरल पदार्थ निकलता है 6. तीर; बाण।
प्रदर्प
(सं.) [सं-पु.] अति अहंकार; प्रचंड अभिमान; अत्यधिक घमंड।
प्रदर्श
(सं.) [सं-पु.] 1. रूप; आकृति; शक्ल; आकार 2. आज्ञा; आदेश।
प्रदर्शक
(सं.) [सं-पु.] 1. देखने या दिखाने वाला व्यक्ति 2. गुरु; पैगंबर 3. मत; सिद्धांत। [वि.] 1. दिखलाने वाला या सिखलाने वाला 2. भविष्यवक्ता।
प्रदर्शन
(सं.) [सं-पु.] 1. नाटक, खेल आदि को दिखाने की क्रिया; प्रस्तुति 2. आकृति; रूप; शक्ल 3. शिक्षण; उपदेश 4. उदाहरण; दृष्टांत 5. राजनीतिक, सामाजिक आदि प्रश्नों
या समस्याओं पर अपने विचारों, विरोध या सहमति आदि की सार्वजनिक अभिव्यक्ति।
प्रदर्शन कक्ष
(सं.) [सं-पु.] वह कक्ष जहाँ वस्तुओं का प्रदर्शन किया जाता है; दिखाने का कक्ष; (शोरूम)।
प्रदर्शनकारी
(सं.) [सं-पु.] 1. प्रदर्शन करने वाला व्यक्ति 2. वह व्यक्ति या वर्ग जो राजनीतिक, सामाजिक आदि प्रश्नों पर अपने विचारों, विरोध या सहमति आदि का सार्वजनिक
प्रदर्शन करे। [वि.] प्रदर्शन करने वाला।
प्रदर्शनी
(सं.) [सं-स्त्री.] वह स्थान जहाँ तरह-तरह की वस्तुएँ दिखाने के लिए रखी हों; नुमाइश।
प्रदर्शनीय
(सं.) [वि.] 1. दिखाने योग्य 2. नुमाइश करने योग्य।
प्रदर्शिका
(सं.) [सं-स्त्री.] प्रदर्शनशाला।
प्रदर्शित
(सं.) [वि.] 1. जिसे दिखाया गया हो 2. सिखाया हुआ; समझाया हुआ; बताया हुआ 3. जो प्रदर्शनी या नुमाइश में रखा गया हो।
प्रदर्शी
(सं.) [वि.] दिखाने वाला; प्रदर्शन करने वाला; प्रदर्शक। [सं-पु.] वह जो देखता हो; दर्शक।
प्रदल
(सं.) [सं-पु.] तीर; बाण।
प्रदव
(सं.) [सं-पु.] प्रज्वलन; बहुत अधिक ताप; अत्यधिक गरमी।
प्रदाता
(सं.) [सं-पु.] वह जो ख़ूब दान देता है; बड़ा दानी। [वि.] प्रदान करने वाला; दाता।
प्रदान
(सं.) [सं-पु.] 1. देने की क्रिया या भाव 2. इनाम; पुरस्कार।
प्रदानक
(सं.) [सं-पु.] 1. वह जो दिया जाए 2. वह जो भेंट आदि प्रदान करता हो; उपहारदाता; दाता 3. उपहार; भेंट।
प्रदायी
(सं.) [वि.] प्रदान करने वाला; प्रदायक; देने वाला।
प्रदावी
(सं.) [वि.] प्रबल रूप से दावा करने वाला; मज़बूत दावेदार।
प्रदाह
(सं.) [सं-पु.] 1. ज्वर आदि के कारण अथवा किसी अन्य कारण से शरीर में होने वाली जलन; दाह 2. ध्वंस; विनाश; बरबादी।
प्रदिग्ध
(सं.) [सं-पु.] 1. घी में अच्छी तरह भूना हुआ ऐसा मांस जिसमें ऊपर से जीरा, दही या मट्ठा आदि मिलाया हुआ होता है 2. अन्न से निर्मित एक प्रकार का खाद्य पदार्थ;
व्यंजन। [वि.] लिपटा हुआ; चिकना किया हुआ।
प्रदिशा
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. दो मुख्य दिशाओं के बीच की दिशा; कोण 2. विदिशा।
प्रदिष्ट
(सं.) [वि.] 1. दिखाया हुआ; प्रदर्शित; संकेतित 2. आदिष्ट; बताया हुआ 3. आदेशित नियत किया हुआ; निर्देशित; ठहराया हुआ।
प्रदीप
(सं.) [सं-पु.] 1. दीपक; दीप; दीया 2. प्रकाश 3. वह जो किसी विषय को द्योतित करे या स्पष्ट करे (इस अर्थ में इस शब्द का प्रयोग ग्रंथों के नाम के साथ होता है,
जैसे- अलंकारप्रदीप, काव्यप्रदीप आदि) 4. (संगीत) एक राग।
प्रदीपक
(सं.) [वि.] 1. प्रकाश में लाने वाला; प्रकाशित करने वाला; प्रकाशक 2. स्पष्ट करने वाला।
प्रदीपन
(सं.) [सं-पु.] 1. प्रदीप्त करने की क्रिया; जलाना 2. उत्तेजित करना। [वि.] 1. प्रकाश करने वाला 2. उत्तेजित करने वाला।
प्रदीप्त
(सं.) [वि.] 1. जलता हुआ या जलाया हुआ 2. प्रकाशित 3. जगमगाता हुआ 4. उज्ज्वल; प्रकाशमान 4. उत्तेजित।
प्रदीप्ति
(सं.) [सं-स्त्री.] प्रभा; प्रकाश; चमक।
प्रदीर्घ
(सं.) [वि.] 1. अत्यधिक दीर्घ; अत्यधिक बड़ा; ऊँचा 2. बढ़ा हुआ।
प्रदुष्ट
(सं.) [वि.] 1. दोषयुक्त; बिगड़ा हुआ 2. बुरे स्वभाव का; दुष्ट 3. लंपट।
प्रदूषक
(सं.) [सं-पु.] वह जो दूषित या ख़राब करता हो; वह जो दोषयुक्त करता हो। [वि.] 1. दूषित करने वाला; नष्ट करने वाला 2. अपवित्र करने वाला।
प्रदूषण
(सं.) [सं-पु.] 1. नष्ट करना; चौपट या बरबाद करना 2. अपवित्र करना 3. दोषयुक्त बनाना 4. वातावरण की भौतिक, रासायनिक और जैविक अवस्था में ऐसा परिवर्तन जिससे
मनुष्यों, पशुओं, पक्षियों, जलचरों, वनस्पतियों अथवा भवनों आदि को हानि हो।
प्रदूषणकारी
(सं.) [सं-पु.] वह तत्व या पदार्थ जो प्रदूषण उत्पन्न करता हो। [वि.] प्रदूषण फैलाने वाला।
प्रदूषणरोधी
(सं.) [सं-पु.] प्रदूषण को कम करने या रोकने वाला पदार्थ या विचार।
प्रदूषित
(सं.) [वि.] 1. दोषयुक्त; दूषित 2. अपवित्र; ख़राब 3. प्रदुष्ट स्वभाव का।
प्रदृप्ति
(सं.) [सं-स्त्री.] अहंकार; घमंड; गर्व।
प्रदेय
(सं.) [वि.] दान करने योग्य; जो प्रदान किए जाने के योग्य हो; जो दिया जा सके।
प्रदेश
(सं.) [सं-पु.] 1. स्थान; जगह 2. किसी देश का वह बड़ा भाग जो भाषा, रीति आदि की दृष्टि से उसी देश के अन्य भागों से भिन्न हो 3. संघ राज्य की इकाई; राज्य;
(स्टेट) 4. शरीर का भाग; अंग 5. दीवार 6. संज्ञा; नाम 7. दिखाना; निर्देश करना।
प्रदेशन
(सं.) [सं-पु.] 1. उपहार; भेंट; तोहफ़ा; नज़राना 2. परामर्श; उपदेश; सलाह 3. दिखलाना; दिखाना।
प्रदेशनी
(सं.) [सं-स्त्री.] अँगूठे के बाद वाली उँगली; तर्जनी।
प्रदेशवाद
(सं.) [सं-पु.] 1. अपने प्रदेश को प्रमुखता देने वाला सिद्धांत या मत 2. प्रादेशिक योजना के लिए विशिष्ट क्षेत्रों के चयन से संबंधित संकल्पना 3. किसी क्षेत्र
के संदर्भ में लोगों के अंदर पाई जाने वाली प्रादेशिक भावना या चेतना।
प्रदेशित
(सं.) [वि.] 1. बतलाया हुआ; आदिष्ट; निर्दिष्ट 2. दिखलाया हुआ 3. प्रदिष्ट।
प्रदेशीय
(सं.) [वि.] प्रदेश का; प्रदेश संबंधी; प्रदेश विषयक।
प्रदेष्टा
(सं.) [सं-पु.] वह जो सलाह देता हो; प्रधान।
प्रदोष
(सं.) [सं-पु.] 1. सायंकाल; सूर्यास्त का समय 2. त्रयोदशी का व्रत 3. भारी दोष या अपराध 4. पक्षपात; नैतिक पतन 5. अव्यवस्था।
प्रदोषक
(सं.) [वि.] 1. प्रदोषकाल संबंधी 2. जो प्रदोष काल में उत्पन्न हुआ हो 3. प्रदुष्ट।
प्रदोह
(सं.) [सं-पु.] गाय, भैंस आदि को दुहने का काम; दोहन।
प्रद्युतित
(सं.) [वि.] प्रदीप्त; प्रकाशित; आलोकित; प्रज्वलित।
प्रद्युम्न
(सं.) [सं-पु.] 1. कामदेव; अनंग; रतिपति; कंदर्प 2. कृष्ण के एक पुत्र का नाम 3. (पुराण) मनु के दस पुत्रों में एक 4. वीर पुरुष।
प्रद्योत
(सं.) [सं-पु.] 1. किरण 2. आभा; चमक 3. एक यक्ष का नाम।
प्रद्योतन
(सं.) [सं-पु.] 1. चमकाने की क्रिया; चमकाना; दीप्तियुक्त करना 2. दीप्ति; चमक 3. सूर्य। [वि.] चमकने वाला।
प्रद्रव
(सं.) [वि.] तीव्र गति से बहने वाला; द्रव; तरल।
प्रद्राव
(सं.) [सं-पु.] 1. पलायन; निकल भागना 2. तेज़ चलना या जाना।
प्रद्वार
(सं.) [सं-पु.] दरवाज़े के सामने की जगह या स्थान; दरवाज़े का अगला भाग।
प्रद्वेष
(सं.) [सं-पु.] 1. अति द्वेष; तीव्र द्वेष; घृणा 2. अरुचि 3. वैर।
प्रद्वेषण
(सं.) [सं-पु.] प्रद्वेष।
प्रधर्ष
(सं.) [सं-पु.] 1. अपमान 2. आक्रमण 3. पराभव 4. किसी स्त्री का शील भंग करना; बलात्कार; (रेप)।
प्रधर्षक
(सं.) [वि.] 1. आक्रमण करने वाला; आक्रमणकारी 2. तंग करने वाला; सताने वाला 3. बलात्कार करने वाला।
प्रधर्षण
(सं.) [सं-पु.] 1. आक्रमण 2. तिरस्कार; अपमान 3. दुर्व्यवहार 4. स्त्री का बलात्कार।
प्रधर्षित
(सं.) [वि.] 1. जिसपर आक्रमण किया गया हो; चोट पहुँचाया हुआ; आक्रांत 2. जिसका अपमान किया गया हो; अपमानित 3. क्षतिग्रस्त 4. अभिमानी 5. बलात्कार पीड़िता; जिसका
बलात्कार हुआ हो।
प्रधान
(सं.) [वि.] 1. सबसे बड़ा 2. मुख्य; मुखिया। [सं-पु.] 1. नेता; मुखिया; सरदार 2. परमात्मा; ईश्वर 3. सचिव; मंत्री; वज़ीर 4. किसी विभाग या संस्था का सर्वोच्च
अधिकारी 5. संसार का उपादान कारण 6. बुद्धि; समझ 7. प्रकृति।
प्रधानतया
(सं.) [अव्य.] मुख्यतः; मुख्यरूप से।
प्रधानता
(सं.) [सं-स्त्री.] प्रधान या मुख्य होने का गुण या भाव।
प्रधानमंत्री
(सं.) [सं-पु.] 1. किसी देश या राज्य का सबसे बड़ा मंत्री; महामात्य; (प्राइम मिनिस्टर) 2. किसी संस्था का सबसे बड़ा मंत्री; (जनरल सेक्रेटरी) 3. किसी संस्था का
महामंत्री।
प्रधान संपादक
(सं.) [सं-पु.] किसी पत्र-पत्रिका के सहसंपादकों और उपसंपादकों के संपादन कार्य में नीति निर्धारक और प्रकाशित सामग्री के लिए उत्तरदायित्वपूर्ण उच्चतम संपादक।
प्रधानांग
(सं.) [सं-पु.] 1. किसी राज्य का सर्वप्रसिद्ध व्यक्ति 2. किसी वस्तु, यंत्र या शरीर का मुख्य अंग।
प्रधानाचार्य
(सं.) [सं-पु.] विद्यालय का मुखिया; प्रधानाध्यापक; प्रधान।
प्रधानाध्यापक
(सं.) [सं-पु.] किसी विद्यालय या स्कूल का प्रधान या सर्वप्रमुख अध्यापक।
प्रधानामात्य
(सं.) [सं-पु.] 1. प्रधान सचिव 2. प्रधान मंत्री 3. महामात्य।
प्रधानोत्तम
(सं.) [वि.] 1. प्रसिद्ध वीर 2. बहुत प्रसिद्ध।
प्रधारणा
(सं.) [सं-स्त्री.] किसी विषय पर एकाग्र होकर ध्यान जमाए रखना; मस्तिष्क को किसी एक ओर या किसी विषय पर जमाना।
प्रधावन
(सं.) [सं-पु.] 1. मार्जन; जल से साफ़ करने का काम 2. वायु; पवन।
प्रधूपित
(सं.) [वि.] 1. तप्त 2. संतापित; पीड़ित 3. चमकता हुआ; दीप्त 4. सुवासित; धूपित।
प्रधूमन
(सं.) [सं-पु.] वातावरण को शुद्ध करने हेतु कमरे में या घर के बाहर संक्रमण (कीट आदि) नाशक सुगंधित धूम प्रसारित करना; लोहवान (लोबान), गुग्गुल आदि का धुआँ
करना; (फ़्यूमिगेशन)।
प्रधूमित
(सं.) [वि.] 1. भीतर ही भीतर जलने वाला 2. जिसमें से धुआँ निकल रहा हो 3. जो धुआँ उत्पन्न करने हेतु जलाया गया हो।
प्रध्यान
(सं.) [सं-पु.] 1. घोर ध्यान 2. प्रगाढ़ चिंतन; गंभीर चिंतन।
प्रध्वंस
(सं.) [सं-पु.] 1. नष्ट होना; नाश; विनाश 2. (न्याय वैशेषिक दर्शन) अभाव नामक पदार्थ का एक भेद 3. (सांख्य मत) किसी वस्तु की अतीतावस्था।
प्रध्वंसक
(सं.) [वि.] नष्ट करने वाला; नाश या विनाश करने वाला।
प्रध्वंसित
(सं.) [वि.] नष्ट किया हुआ; जिसका नाश कर दिया गया हो।
प्रध्वंसी
(सं.) [वि.] नाश होने वाला; नाशवान; नाश करने वाला।
प्रध्वस्त
(सं.) [वि.] जिसका ध्वंस या नाश हो चुका हो; विनष्ट।
प्रनप्ता
(सं.) [सं-पु.] परनाती; नाती का पुत्र।
प्रनिघातन
(सं.) [सं-पु.] वध; मारण; हत्या।
प्रपंच
(सं.) [सं-पु.] 1. कोई ऐसा कार्य या बात जो वास्तविक या सत्य न रहने पर भी सत्य और ठीक जान पड़े 2. वह आचरण, काम आदि जिसमें ऊपरी बनावट का भाव रहता है 3. छल-कपट
से भरा कार्य; वह काम जो किसी को धोखे में डाल कर कोई स्वार्थ साधने के लिए किया जाए 4. झंझट; बखेड़ा; व्यर्थ की परेशानी 5. व्याख्या; विस्तार।
प्रपंचक
(सं.) [वि.] 1. प्रपंच (व्याख्या या विस्तार) करने वाला; दिखाने वाला; प्रदर्शन करने वाला 2. विकास करने वाला।
प्रपंचन
(सं.) [सं-पु.] 1. प्रपंच खड़ा करना 2. विस्तार करना; व्याख्या करना; तूल देना।
प्रपंचित
(सं.) [वि.] जो ठगा गया हो; जो छला गया हो; प्रताड़ित।
प्रपंची
(सं.) [वि.] 1. प्रपंच करने वाला; झंझट खड़ा करने वाला 2. बखेड़ा पैदा करने वाला 3. छली या धोखेबाज़; ठग; आडंबर फैलाने वाला।
प्रपंजी
(सं.) [सं-स्त्री.] किसी व्यावसायिक संस्था की वह पंजिका जिसमें उसकी आय-व्यय या लेनदेन का विवरण अंकित किया जाता है; लेखाबही या खाताबही; (लेज़र)।
प्रपतन
(सं.) [सं-पु.] 1. नीचे गिरना; पतन 2. नाश; मृत्यु 3. नीचे उतरना 4. वह स्थान जिसपर से कोई वस्तु गिरे 5. पलायन 6. चट्टान 7. आक्रमण।
प्रपत्ति
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. भक्त द्वारा स्वयं को ईश्वर की शरण में समर्पित कर देना कि वह उसकी रक्षा अवश्य करेगा; शरणागति 2. किसी के प्रति होने वाली एकनिष्ठ भक्ति;
अनन्य भक्ति।
प्रपत्र
(सं.) [सं-पु.] 1. आवेदनपत्र; (एप्लिकेशन) 2. विवरणपत्र; (फ़ार्म)।
प्रपथ्य
(सं.) [सं-पु.] अति हितकारक खाद्य पदार्थ (बीमार हेतु)।
प्रपद
(सं.) [सं-पु.] पंजा; पैर।
प्रपदन
(सं.) [सं-पु.] पहुँच; प्रवेश; अति निकट संबंध।
प्रपदीन
(सं.) [वि.] 1. पैर के अगले भाग से संबंधित; प्रपद संबंधी 2. पैर के पंजे का; प्रपद का।
प्रपन्न
(सं.) [वि.] 1. प्राप्त 2. आया हुआ; पहुँचा हुआ 3. शरणागत; आश्रित 4. कष्टग्रस्त; दीन; दुखी। [सं-पु.] वह जो अवयस्क होने के कारण अपने अभिभावक के अधीन हो;
प्रतिरक्ष्य।
प्रपर्ण
(सं.) [सं-पु.] गिरा हुआ पत्ता। [वि.] जिसके पत्ते झड़ गए हों।
प्रपात
(सं.) [सं-पु.] 1. झरना; ऊँचे स्थान से गिरने वाला जलप्रवाह 2. एकबारगी और बहुत तेज़ी से ऊपर से नीचे आना या गिरना 3. एक प्रकार की उड़ान 4. आकस्मिक आक्रमण 5.
किनारा; तट।
प्रपातन
(सं.) [सं-पु.] 1. नीचे की ओर उतरना 2. नीचे फेंकना; गिराना।
प्रपाती
(सं.) [सं-पु.] खड़े किनारे वाला पहाड़ या चट्टान। [सं-स्त्री.] नदियों के जल-प्रवाह में कुछ ऊँची-नीची चट्टानें पड़ने के कारण बनने वाला झरना; (वाटर फ़ाल)।
प्रपादिक
(सं.) [सं-पु.] मयूर; मोर; नीलकंठ।
प्रपानक
(सं.) [सं-पु.] पकाए गए या उबाले गए कच्चे आम के गूदे में जीरा, पुदीना, नमक, चीनी आदि डाल कर बनाया गया मीठा या नमकीन शरबत; पना; पन्ना।
प्रपितामह
(सं.) [सं-पु.] परदादा; दादा के पिता।
प्रपितृव्य
(सं.) [सं-पु.] परदादा के भाई; चचेरे परबाबा।
प्रपीड़न
(सं.) [सं-पु.] 1. बहुत अधिक कष्ट देना 2. दबा कर निचोड़ना; दबाना 3. कोष्ठ (कब्ज़) करने वाली दवा; धारक औषधि।
प्रपीत
(सं.) [वि.] 1. विस्तृत; प्रसारित; फैला हुआ 2. निगला हुआ 3. सूजा हुआ।
प्रपुंज
(सं.) [सं-पु.] विशाल समूह; बड़ा झुंड।
प्रपुत्र
(सं.) [सं-पु.] पुत्र का पुत्र; पोता।
प्रपुष्ट
(सं.) [वि.] 1. मज़बूत कंधों वाला 2. बलवान।
प्रपूरण
(सं.) [सं-पु.] 1. भरना; पूरा करना; पूर्ण करना 2. मिलाना 3. तृप्त करना।
प्रपूरित
(सं.) [वि.] 1. विशेष रूप से पूर्ण किया हुआ 2. अच्छी तरह भरा हुआ।
प्रपूर्ण
(सं.) [सं-पु.] पूर्ण रूप से अथवा अच्छी तरह भरा हुआ; युक्त।
प्रपौत्र
(सं.) [सं-पु.] पोते का बेटा; परपोता।
प्रफुल्ल
(सं.) [वि.] 1. खिला हुआ; विकसित 2. जिसमें फूल खिले हुए हों; पुष्पयुक्त; पुष्पित 3. प्रसन्न; आनंदित 4. मुस्कराता हुआ 5. विकासयुक्त 6. खुला हुआ; जो मुँदा हुआ
न हो, जैसे- प्रफुल्ल मुख।
प्रफुल्लचित्त
(सं.) [वि.] प्रसन्नचित्त; प्रसन्न हृदयवाला; आनंदित मनवाला।
प्रफुल्लता
(सं.) [सं-स्त्री.] प्रसन्नता; ख़ुशी। [वि.] फूल की तरह खिला हुआ।
प्रफुल्लमुख
(सं.) [वि.] खिले चेहरेवाला; जिसका मुख ख़ुश दिखता हो; प्रसन्नवदन।
प्रफुल्लित
(सं.) [वि.] 1. खिला हुआ 2. बहुत अधिक प्रसन्न; प्रमुदित; आनंदित।
प्रबंध
(सं.) [सं-पु.] 1. व्यवस्था 2. अच्छा, पक्का और श्रेष्ठ संचालन 3. ठीक तरह से निरंतर चलता रहने वाला क्रम 4. किसी तरह के काम के लिए की जाने वाली कोई योजना 5.
निबंध; रचना 6. काव्य रचना का एक भेद।
प्रबंधक
(सं.) [सं-पु.] व्यवस्थापक; प्रबंधकर्ता; (मैनेजर)। [वि.] व्यवस्था करने वाला; प्रबंध करने वाला।
प्रबंधक मंडल
(सं.) [सं-पु.] व्यवस्थापकों की समिति; व्यवस्थापक मंडल; किसी कार्य, कार्यालय या विभाग के कार्यों का संचालन करने वाले लोगों की समिति; (मैनेजिंग कमिटी)।
प्रबंधकर्ता
(सं.) [सं-पु.] प्रबंधक; व्यवस्थापक। [वि.] प्रबंध करने वाला।
प्रबंधकारिणी
(सं.) [सं-स्त्री.] किसी बड़ी संस्था, सभा, संगठन कार्यालय या विभाग के कार्यों, निर्णयों का संचालन तथा प्रबंध करने वाली समिति।
प्रबंधकाव्य
(सं.) [सं-पु.] 1. वह काव्य जिसमें जीवन की घटनाओं का क्रमबद्ध उल्लेख किया जाता है 2. लंबे कथानक से युक्त जीवनचरित्र 3. आठ या आठ से अधिक सर्गों में विभाजित
सर्गबद्ध रचना।
प्रबंधकीय
(सं.) [वि.] प्रबंध-व्यवस्था से संबंधित; प्रबंधन का कार्य या उत्तरदायित्व।
प्रबंधन
(सं.) [सं-पु.] 1. किसी कार्य या बात का प्रबंध (व्यवस्था) करने की क्रिया या भाव 2. किसी रचनाकार की विशिष्ट रचनाशैली; साहित्यिक रचना का प्रकार।
प्रबंधनकर्ता
(सं.) [सं-पु.] किसी कार्यालय, संस्था आदि का प्रबंधन करने वाला व्यक्ति; व्यवस्थापक; (मैनेजर)।
प्रबंधनीय
(सं.) [वि.] प्रबंध करने योग्य; जिसकी व्यवस्था की जानी हो; संपाद्य।
प्रबंध समिति
(सं.) [सं-स्त्री.] वह समिति जो किसी सभा के आयोजन का पूर्णतया प्रबंध करती हो; प्रबंधकारिणी; (मैनेजिंग कमिटी)।
प्रबल
(सं.) [वि.] 1. शक्तिशाली; बलवान; जिसमें बहुत अधिक बल हो 2. प्रचंड; उग्र; तेज़ 3. बहुत ज़ोरों का; घोर; भारी।
प्रबलता
(सं.) [सं-स्त्री.] प्रबल होने की क्रिया या भाव; बहुत बली होने की स्थिति; प्रकृष्ट बलवाला होने की स्थिति।
प्रबलन
(सं.) [सं-पु.] 1. शक्ति बढ़ाने या बलवर्धन करने की क्रिया या भाव; ताकत बढ़ाना 2. दुर्बल या गरीब को मज़बूत बनाने का भाव या दी जाने वाली सहायता।
प्रबला
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. प्रसारिणी नामक लता 2. प्रसारिणी नामक औषधि। [वि.] ख़ूब बलवाली; प्रबल (स्त्री)।
प्रबाधक
(सं.) [वि.] 1. सताने या उत्पीड़न करने वाला 2. निवारण करने वाला 3. हटाने वाला।
प्रबाधन
(सं.) [सं-पु.] 1. अपसरण; हटाना 2. उत्पीड़न; प्रपीड़न।
प्रबाधित
(सं.) [वि.] 1. उत्पीड़ित 2. दबाया हुआ 3. अग्रसरित; आगे बढ़ाया हुआ।
प्रबाल
(सं.) [सं-पु.] 1. प्रवाल; मूँगा 2. नया कोमल पत्ता; किसलय 3. वीणा निर्माण करने की लकड़ी; वीणादंड।
प्रबालिक
(सं.) [सं-पु.] एक प्रकार की शाक; जीवशाक।
प्रबाहु
(सं.) [सं-पु.] हाथ का अगला भाग; हथेली।
प्रबुद्ध
(सं.) [सं-पु.] 1. ज्ञानी 2. जागा हुआ; जाग्रत 3. जिसे यथार्थ का ज्ञान हो; ज्ञानी 4. जानकार।
प्रबुद्धजन
(सं.) [सं-पु.] 1. ज्ञानी; विद्वतजन 2. चैतन्यजन 3. जाग्रत बुद्धि वाले लोग।
प्रबोध
(सं.) [सं-पु.] 1. जागना; जागरण 2. सचेत होना 3. यथार्थ ज्ञान; सत्य ज्ञान 4. पूर्ण बोध; तत्वज्ञान 5. ज्ञान; विवेक या समझदारी 6. सांत्वना; दिलासा।
प्रबोधक
(सं.) [वि.] 1. सचेत करने वाला; जगाने वाला 2. ज्ञान कराने वाला 3. राजा को प्रातःकाल जगाने वाला 4. स्तुति पाठ करने वाला 5. ढाढस बँधाने वाला।
प्रबोधन
(सं.) [सं-पु.] बोध; ज्ञान; जागरण।
प्रबोधित
(सं.) [वि.] 1. जगाया हुआ 2. सिखाया तथा समझाया हुआ।
प्रबोधिता
(सं.) [सं-स्त्री.] (काव्यशास्त्र) एक वर्ण वृत्त या एक वर्णिक छंद।
प्रबोधिनी
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. देवोत्थान एकादशी (पौराणिक मान्यतानुसार विष्णु इस दिन चार मास शयन के पश्चात जागते हैं) 2. दुरलभा, जवासा, धमासा तथा हिंगुंवा नामक
वनस्पति।
प्रभंग
(सं.) [वि.] 1. अच्छी तरह तोड़ा हुआ 2. रौंदा हुआ 3. पूर्णतः पराभूत।
प्रभंजन
(सं.) [सं-पु.] 1. पूर्ण रूप से तोड़ने-फोड़ने की क्रिया या भाव 2. निवारण करना 3. टुकड़े-टुकड़े करना 4. प्रचंड वायु अथवा तेज़ हवा 5. विशेष प्रकार की आँधी;
(हरिकेन) 6. एक प्रकार की समाधि 7. एक नाड़ी रोग। [वि.] तोड़फोड़ करने वाला; नष्ट करने वाला।
प्रभद्र
(सं.) [सं-पु.] नीम का वृक्ष; नीम।
प्रभद्रक
(सं.) [सं-पु.] एक वर्ण वृत्त; एक वर्णिक छंद। [वि.] अति सुंदर।
प्रभव
(सं.) [सं-पु.] 1. उत्पत्ति 2. उत्पत्ति का कारण 3. उत्पत्ति स्थल; नदी का उद्गम 4. मूल; जड़ 5. एक संवत्सर का नाम 6. पराक्रम।
प्रभविष्णु
(सं.) [सं-पु.] 1. प्रभु 2. स्वामी 3. विष्णु। [वि.] 1. प्रभाववाला 2. शक्तिशाली।
प्रभविष्णुता
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. प्रभावोत्पादकता; औरों की तुलना में होने वाली प्रधानता 2. किसी वस्तु में स्थित वह गुण या तत्व जिसका दूसरी वस्तु पर प्रभाव पड़ता है।
प्रभा
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. दीप्ति; प्रकाश; आभा; चमक 2. सूर्य का बिंब या मंडल 3. (काव्यशास्त्र) बारह अक्षरों की वर्णवृत्ति जिसे मंदाकिनी भी कहते हैं।
प्रभाकर
(सं.) [सं-पु.] 1. सूर्य 2. (पुराण) शिव 3. अग्नि 4. चंद्रमा 5. सागर 6. प्रसिद्ध मीमांसक तथा गुरु मत के प्रवर्तक; (प्रभाकर गुरु) 7. मदार का पेड़ 8. कुश द्वीप
का एक पहाड़। [वि.] प्रकाश करने वाला; प्रभा उत्पन्न करने वाला।
प्रभाग
(सं.) [सं-पु.] 1. किसी विभाग का उपविभाग 2. कार्य-संचालन की सुविधा के लिए किसी कार्यक्षेत्र के कई छोटे-छोटे हिस्सों में से एक; खंड; विभाग; (सेक्शन)।
प्रभात
(सं.) [सं-पु.] 1. भोर; सुबह; प्रातःकाल 2. संगीत में एक राग। [वि.] जो स्पष्ट या प्रकाशित होने लगा हो।
प्रभातकर
(सं.) [सं-पु.] सूर्य; भानु।
प्रभातफेरी
(सं.) [सं-स्त्री.] प्रचार, उत्सव आदि के उद्देश्य से सुबह-सुबह दल या समूह बनाकर गाते-बजाते और नारे लगाते हुए बस्तियों में चक्कर या फेरी लगाना।
प्रभाती
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. एक प्रकार का गीत जो प्रातःकाल गाया जाता है 2. दातून।
प्रभापन
(सं.) [सं-पु.] प्रभावान या दीप्तयुक्त होने की अवस्था या भाव।
प्रभामंडल
(सं.) [सं-पु.] 1. चित्रों या मूर्तियों में दिखलाया जाने वाला देवी-देवताओं और महामानवों के मुख के चारों ओर का आभायुक्त मंडल 2. परिवेश; भूमंडल।
प्रभार
(सं.) [सं-पु.] किसी विभाग या प्रभाग के कार्य की ज़िम्मेदारी; कार्यभार; (चार्ज)।
प्रभारी
(सं.) [वि.] जिसके ऊपर किसी विभाग का कार्यभार या ज़िम्मेदारी हो; (इनचार्ज)।
प्रभाव
(सं.) [सं-पु.] 1. किसी के बुद्धिबल, उच्चपद आदि के फलस्वरूप दूसरों पर पड़ने वाला दबाव; (इंफ़्लूएंस) 2. प्रभाव 3. अधिकार; इख़्तियार 4. प्रताप; तेज 5. अन्न, दवा
आदि का गुण या गुणकारिता 6. सामर्थ्य; शक्ति; बल 7. महत्व; गौरव 8. अलौकिक शक्ति; चमत्कारी असर 9. महिमा; माहात्म्य 10. फल; परिणाम।
प्रभावक
(सं.) [वि.] 1. प्रभाव दिखलाने या डालने वाला; जिसका दूसरों पर बहुत प्रभाव पड़ता हो; प्रभावशाली 2. प्रमुख; मुख्य।
प्रभावकारी
(सं.) [वि.] 1. जिसका प्रभाव हो 2. प्रभावी; असर डालने वाला 3. फल देने वाला; परिणामकारी 4. शक्तिशाली।
प्रभावती
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. (महाभारत) सूर्य की पत्नी का नाम 2. प्रभाती नामक गीत 3. कार्तिकेय की एक अनुचरी 4. एक असुर कन्या 5. शिव के एक गण की वीणा 6.
(काव्यशास्त्र) रुचि नामक समवर्णिक छंद का नाम। [वि.] 1. प्रभावशाली 2. कांतिवाली; चमकीली।
प्रभावना
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. प्रभाव से युक्त करना 2. प्रकट करने की क्रिया या अवस्था 2. प्रकाश 3. उद्भावना 4. प्रचार (वस्तु या सिद्धांत आदि का)।
प्रभावपूर्ण
(सं.) [वि.] 1. जो प्रभावित करता हो; असरदार 2. जो प्रभाव से भरा हुआ हो।
प्रभाववाद
(सं.) [सं-पु.] साहित्य, कला आदि के क्षेत्र में एक मत जिसके अनुसार किसी दृश्य, मनोभाव, व्यक्ति या पदार्थ के द्वारा मन पर पड़े हुए प्रभाव को विवरण या व्याख्या
के द्वारा नहीं बल्कि कुछ रेखाओं के द्वारा या दृश्य आदि के तत्काल उत्पन्न प्रभाव के चित्रण द्वारा व्यक्त किया जाता है।
प्रभावशाली
(सं.) [वि.] 1. जिसमें प्रभाव उत्पन्न करने की शक्ति हो; प्रभाववाला; जिसका दूसरों पर बहुत प्रभाव या असर पड़ता हो; असरदार 2. तेजस्वी 3. फलप्रद; परिणामकारी।
प्रभावशील
(सं.) [वि.] जिसका प्रभाव पड़ता हो; असर करने वाला।
प्रभावशीलता
(सं.) [सं-स्त्री.] प्रभावशील होने की क्रिया, अवस्था या भाव; असरकारी होने का भाव।
प्रभावहीन
(सं.) [वि.] जिसका प्रभाव या असर न पड़ता हो; अप्रभावी; बेअसर।
प्रभावान्वित
(सं.) [वि.] प्रभावित; प्रभाव से युक्त; असर में आया हुआ।
प्रभावित
(सं.) [वि.] 1. जिसपर प्रभाव या असर पड़ा हो 2. किसी के प्रभाव से दबा हुआ।
प्रभावी
(सं.) [वि.] 1. जिसका प्रभाव पड़ता हो; असरदार 2. जो लागू हो 3. शक्तिशाली।
प्रभावोत्पादक
(सं.) [वि.] 1. प्रभाव उत्पन्न या प्रकट करने वाला 2. प्रचार करने वाला 3. प्रकाश करने वाला।
प्रभाषण
(सं.) [सं-पु.] कठिन शब्दों, पदों अथवा वाक्यों आदि की व्याख्या।
प्रभाषी
(सं.) [वि.] व्याख्या करने वाला; व्याख्याकार।
प्रभास
(सं.) [सं-पु.] 1. ज्योति 2. दीप्ति; चमक। [वि.] 1. चमकीला; अत्यंत चमकदार 2. प्रभापूर्ण।
प्रभासंत
(सं.) [सं-पु.] 1. ईश्वर; परमेश्वर 2. रुद्र।
प्रभासन
(सं.) [सं-पु.] 1. आलोकित या प्रकाशित करने की क्रिया या अवस्था 2. ज्योति; दीप्ति।
प्रभास्वर
(सं.) [वि.] बहुत चमकीला; कांतियुक्त।
प्रभिन्न
(सं.) [वि.] 1. जो भिन्न या अलग हो; विभक्त 2. टुकड़े-टुकड़े होने वाला 3. परिवर्तित; रूपांतरित 4. ढीला किया हुआ 5. खिला हुआ 6. विकृत; विकारयुक्त।
प्रभिभांजग
(सं.) [सं-पु.] एक तरह का अंजन जो तेल में तैयार किया जाता है।
प्रभु
(सं.) [सं-पु.] 1. ईश्वर 2. शासक; मालिक; स्वामी 3. बड़ों के लिए प्रयोग किया जाने वाला एक संबोधन। [वि.] जो अधिक बलवान हो।
प्रभुता
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. प्रभु होने की अवस्था या भाव; प्रभुत्व; स्वामित्व 2. अधिकार, शक्ति आदि से युक्त बड़प्पन; महत्व 3. शासन आदि का अधिकार; हुकूमत 4. वैभव।
प्रभुताई
[सं-स्त्री.] प्रभु होने की अवस्था या भाव; प्रभुत्व; प्रभुता।
प्रभुत्व
(सं.) [सं-पु.] शासन; सत्ता; प्रभुता। [वि.] प्रभुतासंपन्न; प्रभुता से युक्त।
प्रभुसत्ता
(सं.) [सं-स्त्री.] पूर्ण अधिकार; पूर्ण सत्ता; संप्रभुता।
प्रभूत
(सं.) [वि.] 1. जो हुआ हो 2. निकला हुआ 3. उत्पन्न; उद्गत 4. बहुत अधिक; प्रचुर 5. पूर्ण; पूरा 6. पक्व; पका हुआ 7. उन्नत।
प्रभूति
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. प्रभूत होने की अवस्था या भाव 2. वह स्थान जहाँ उत्पत्ति हुई हो 2. अधिकता; प्रचुरता 3. शक्ति।
प्रभृति
(सं.) [अव्य.] आदि; इत्यादि; वगैरह।
प्रभेद
(सं.) [सं-पु.] 1. प्रकार; भेद; श्रेणी; किस्म 2. कोई छोटा विभाग, प्रभाग या वर्ग 3. अंतर; भेद 4. भेदन करने की क्रिया या भाव 5. तोड़ना-फोड़ना; स्फोटन।
प्रभेदक
(सं.) [वि.] 1. अंतर या भेद करने वाला; चीरने-फाड़ने वाला 3. भेदन करने वाला तोड़ने-फोड़ने वाला।
प्रभेदन
(सं.) [वि.] 1. तोड़ने-फोड़ने की क्रिया या भाव 2. अंतर या भेद करना।
प्रभ्रंश
(सं.) [सं-पु.] गिरने या हटने की क्रिया या भाव।
प्रभ्रंशी
(सं.) [वि.] गिरने वाला; हटने वाला।
प्रमंडल
(सं.) [सं-पु.] 1. पहिए के बाहरी भाग का खंड; चक्के का खंड 2. प्रदेश का वह विभाग जिसमें अनेक मंडल या जिले हों 3. मिल-जुलकर कोई काम करने के लिए बनाया गया कुछ
व्यक्तियों का संघ या समूह, जैसे- कंपनी आदि; (कमिश्नरी)।
प्रमत्त
(सं.) [वि.] 1. जिसे होश न हो; नशे में चूर; मतवाला 2. पागल; बावला 3. भूल-चूक करने वाला; लापरवाह; असावधान 4. प्रमाद या अभिमान से भरा हुआ।
प्रमत्तता
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. प्रमत्त होने का भाव या अवस्था 2. पागलपन 3. मतवालापन 4. लापरवाही।
प्रमथ
(सं.) [सं-पु.] शिव के एक गण का नाम। [वि.] 1. अच्छी तरह मथने वाला 2. कष्ट देने वाला।
प्रमथन
(सं.) [सं-पु.] 1. मथना 2. वध 3. नष्ट या बरबाद करने की क्रिया या भाव; उत्पीड़न; तकलीफ़ या पीड़ा पहुँचाना; हानि पहुँचाना।
प्रमथित
(सं.) [वि.] 1. मथा हुआ 2. जिसका वध किया गया हो 3. सताया हुआ 4. उत्पीड़ित 5. रौंदा हुआ।
प्रमथेश्वर
(सं.) [सं-पु.] शिव; महादेव।
प्रमद
(सं.) [वि.] 1. नशे में चूर; मतवाला 2. मस्त; प्रसन्न; ख़ुश 3. असावधान; लापरवाह 4. उग्र 5. विवेकहीन। [सं-पु.] 1. धतूरे का फल 2. आनंद; प्रसन्नता 3. मतवालापन 4.
वशिष्ठ के एक पुत्र 5. एक दैत्य।
प्रमदा
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. सुंदर तथा युवा स्त्री 2. कन्या राशि 3. पत्नी 4. एक प्रकार का छंद।
प्रमय
(सं.) [सं-पु.] 1. वध; हत्या 2. मृत्यु; मौत 3. नाश; पतन।
प्रमर्दन
(सं.) [सं-पु.] 1. मलने, दलने, मसलने, रगड़ने या रौंदने की क्रिया या भाव 2. दमन करना 3. नाश करना 4. विष्णु 5. एक दैत्य 6. शिव का एक अनुचर। [वि.] 1. नष्ट करने
वाला 2. रौंदने वाला।
प्रमर्दित
(सं.) [वि.] 1. नष्ट किया हुआ 2. दमित किया हुआ 3. रौंदा हुआ।
प्रमस्तिष्क
(सं.) [सं-पु.] 1. मस्तिष्क का एक बड़ा भाग जो शारीरिक, मानसिक तथा बौद्धिक क्रियाओं को संचालित करता है 2. दिमाग; खोपड़ी।
प्रमा
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. चेतना; यथार्थबोध 2. माप-तौल।
प्रमाण
(सं.) [सं-पु.] 1. वह कथन या तत्व जिसे किसी बात को सिद्ध करने के लिए प्रस्तुत किया जाए; सबूत; साक्ष्य; (एविडेंस) 2. लंबाई, चौड़ाई आदि नापने या भार आदि तौलने
का मान, नाप या तौल; नाप या तौल की नियत इकाई या इयत्ता 3. सीमा; हद।
प्रमाणक
(सं.) [सं-पु.] 1. किसी रकम के आय-व्यय के खाते में चढ़ाए जाने की पुष्टि या प्रमाण के रूप में साथ में नत्थी किया गया हिसाब के ब्योरे का कागज़; (वाउचर) 2.
प्रमाणपत्र; (सर्टिफ़िकेट)। [वि.] प्रमाणित करने वाला।
प्रमाणकर्ता
(सं.) [सं-पु.] प्रमाणित करने वाला व्यक्ति; वह जो कोई बात, कार्य आदि को प्रमाणित करे।
प्रमाणपत्र
(सं.) [सं-पु.] वह पत्र जिसपर लिखी हुई बातें सही और प्रामाणिक मानी जाती हैं; (सर्टिफ़िकेट)।
प्रमाणिक
(सं.) [सं-पु.] चौबीस अंगुल की एक लंबाई की माप।
प्रमाणित
(सं.) [वि.] प्रमाण द्वारा सिद्ध; प्रमाणसिद्ध।
प्रमाणीकरण
(सं.) [सं-पु.] सत्यापन; पुष्टीकरण; किसी लेख पर यह लिखकर हस्ताक्षर करने की क्रिया कि यह वास्तविक और सत्य है।
प्रमाणीकृत
(सं.) [वि.] जो प्रमाण के रूप में सत्य मान लिया गया हो।
प्रमाता
(सं.) [सं-पु.] 1. प्रमाणों के आधार पर न्याय करने वाला अधिकारी 2. न्यायाधीश 3. आत्मा या चेतन पुरुष 4. साक्षी; द्रष्टा। [सं-स्त्री.] पिता की माता; दादी।
[वि.] 1. जो प्रमाण द्वारा किसी वस्तु का ज्ञान प्राप्त करे 2. किसी विषय का साक्षात्कार या ज्ञान प्राप्त करने वाला।
प्रमाद
(सं.) [सं-पु.] 1. पागलपन; उन्माद 2. मद; नशा 3. असावधानी; लापरवाही; गफ़लत 4. कर्तव्य की उपेक्षा।
प्रमादित
(सं.) [वि.] 1. तिरस्कृत 2. हेय या कमतर समझा जाने वाला।
प्रमादी
(सं.) [वि.] 1. प्रमादशील; प्रमाद करने वाला 2. पागल; बावला 3. लापरवाह 4. विक्षिप्त 5. मत्त।
प्रमापक
(सं.) [वि.] प्रमाणित करने वाला।
प्रमापित
(सं.) [वि.] 1. ध्वस्त; जो नष्ट हो चुका हो 2. जिसका वध कर दिया गया हो; हत।
प्रमापी
(सं.) [वि.] 1. नष्ट करने वाला 2. मारने या वध करने वाला।
प्रमार्जन
(सं.) [सं-पु.] 1. झाड़-पोंछ या धोकर साफ़ करने की क्रिया 2. दूर करने की क्रिया या भाव 3. सुधार या मरम्मत करने की क्रिया या अवस्था।
प्रमित
(सं.) [वि.] 1. प्रमाणित; प्रमाण द्वारा सिद्ध किया हुआ 2. ज्ञात; जिसका यथार्थ ज्ञान हुआ हो 3. नापा या मापा हुआ 4. परिमित; अल्प; सीमित 5. निश्चित।
प्रमिति
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. नापने की क्रिया या भाव 2. नाप; माप 3. किसी प्रमाण द्वारा प्राप्त यथार्थ ज्ञान।
प्रमीत
(सं.) [वि.] मृत; मरा हुआ; स्वर्गीय; परलोकवासी।
प्रमीति
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. वध 2. हनन; नाश 3. मृत्यु।
प्रमीलन
(सं.) [सं-पु.] आँख बंद करना; आँख मूँदना।
प्रमीला
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. तंद्रा 2. शिथिलिता; थकावट 3. (महाभारत) अर्जुन की एक पत्नी।
प्रमुक्त
(सं.) [वि.] 1. परित्यक्त 2. जिसका बंधन खोल दिया गया हो।
प्रमुक्ति
(सं.) [सं-स्त्री.] मुक्ति; मोक्ष।
प्रमुख
(सं.) [सं-पु.] 1. प्रधान 2. प्रधान शासक। [वि.] 1. महत्वपूर्ण 2. मुख्य; मुखिया 3. सबसे आगे वाला; प्रथम; पहला।
प्रमुग्ध
(सं.) [वि.] 1. अचेत; मूर्छित 2. बहुत सुंदर 3. हतबुद्धि।
प्रमुदित
(सं.) [वि.] अत्यंत प्रसन्न; हर्षित; आनंदित; प्रफुल्लित।
प्रमुषित
(सं.) [वि.] 1. छीना हुआ 2. चुराया हुआ 3. हतबुद्धि।
प्रमृत
(सं.) [सं-पु.] 1. कृषि; खेती 2. मृत्यु। [वि.] 1. मृत 2. दृष्टि से दूर या ओझल 3. ढका हुआ; घिरा हुआ।
प्रमृष्ट
(सं.) [वि.] धोया हुआ; चमकाया हुआ; साफ़ किया हुआ।
प्रमेय
(सं.) [सं-पु.] 1. वह जो प्रमा या यथार्थ ज्ञान का विषय हो सके; प्रमा का विषय 2. गणित या ज्यामिति में कोई ऐसी बात जो प्रमाणित या सिद्ध की जाने वाली हो;
(थियोरम) 3. ग्रंथ का अध्याय या परिच्छेद। [वि.] 1. जो प्रमाणित किया जाने को हो 2. जिसका मान जाना जा सके; नापने योग्य 3. अवधारणा के योग्य; अवधार्य।
प्रमेह
(सं.) [सं-पु.] एक रोग जिसमें थोड़ी-थोड़ी देर पर पेशाब लगने लगता है तथा जिसमें शरीर की शुक्र आदि धातुएँ पेशाब के रास्ते गिरा करती हैं।
प्रमेही
(सं.) [सं-पु.] प्रमेह का रोगी। [वि.] प्रमेह रोग से पीड़ित या ग्रस्त।
प्रमोक्ष
(सं.) [सं-पु.] 1. मुक्ति; मोक्ष 2. त्याग।
प्रमोक्षण
(सं.) [सं-पु.] सूर्य या चंद्रमा के ग्रहण का अंत।
प्रमोचन
(सं.) [सं-पु.] 1. मुक्त करने की अवस्था या भाव 2. छुड़ाना या छोड़ना।
प्रमोद
(सं.) [सं-पु.] 1. बहुत अधिक ख़ुशी, प्रसन्नता या हर्ष 2. आराम; सुख।
प्रमोदन
(सं.) [सं-पु.] 1. प्रमुदित करने की क्रिया या भाव; प्रसन्न या आनंदित करना 2. विष्णु।
प्रमोशन
(इं.) [सं-पु.] 1. तरक्की; उन्नति 2. अधिक बड़े पद की प्राप्ति; पदोन्न्ति 3. किसी वस्तु के प्रचार और विक्रय में वृद्धि के लिए किया गया काम; प्रचार-प्रसार,
जैसे- फ़िल्म का प्रमोशन।
प्रमोह
(सं.) [सं-पु.] 1. मोह 2. मूर्च्छा 3. मूर्खता; जड़ता।
प्रम्लान
(सं.) [वि.] 1. मैला-कुचैला 2. मुरझाया हुआ।
प्रयत्न
(सं.) [सं-पु.] 1. प्रयास 2. क्रियाशीलता; सक्रियता 3. वह शारीरिक या मानसिक चेष्टा जो किसी उद्देश्य या कार्य को पूरा करने के लिए की जाती है 4. सतर्कता;
सावधानी।
प्रयत्नरत
(सं.) [वि.] 1. लगातार प्रयास या कोशिश करते रहने वाला 2. उद्योगशील; उद्यमशील।
प्रयत्न लाघव
(सं.) [सं-पु.] ऐसी युक्ति जिसमें किसी कार्य में लगने वाले समय या शक्ति की बचत हो।
प्रयत्नवान
(सं.) [वि.] प्रयत्न या कोशिश में लगा हुआ; सक्रिय; सचेष्ट।
प्रयत्नशील
(सं.) [वि.] प्रयत्न में लगा हुआ; जो प्रयत्न कर रहा हो।
प्रयाग
(सं.) [सं-पु.] 1. हिंदुओं का एक प्रसिद्ध तीर्थ जो गंगा और यमुना के संगम पर बसा हुआ है 2. इलाहाबाद (आधुनिक नाम) 3. वह स्थान जहाँ बहुत से यज्ञ हुए हों।
प्रयाण
(सं.) [सं-पु.] 1. प्रस्थान; अभियान; कहीं जाने के लिए यात्रा आरंभ करना; कूच 2. यात्रा; सफ़र; विशेषतः सैनिक यात्रा 3. उक्त अवसर पर बजाया जाने वाला नगाड़ा 4.
मरकर किसी अन्य लोक में जाना।
प्रयाणगीत
(सं.) [सं-पु.] 1. सैनिक अभियान के समय गाया जाने वाला गीत 2. आधुनिक हिंदी साहित्य में वीरगाथा युक्त गीत।
प्रयात
(सं.) [सं-पु.] 1. रात्रि युद्ध 2. बहुत ऊँचा किनारा जिसपर से गिरने से कोई चीज़ एकदम नीचे चली जाए; कगार। [वि.] 1. मरा हुआ; मृत 2. जो रवाना हो चुका हो 3. बहुत
चलने वाला 4. सोया हुआ।
प्रयापन
(सं.) [सं-पु.] 1. प्रस्थान करना; भगाना या हटाना 2. दूर करना 4. बढ़ना या आगे निकलना।
प्रयापित
(सं.) [वि.] 1. प्रस्थान किया हुआ 2. चले जाने के लिए विवश किया हुआ।
प्रयास
(सं.) [सं-पु.] कोशिश; प्रयत्न; किसी नए अथवा कठिन काम को आरंभ करने के लिए किया जाने वाला उद्योग; मेहनत; परिश्रम।
प्रयासरत
(सं.) [वि.] प्रयासशील; प्रयत्नशील; जो कोशिश या प्रयास में लगा हो।
प्रयासी
(सं.) [वि.] प्रयत्नी; प्रयत्नवान; कोशिश करने वाला।
प्रयुक्त
(सं.) [वि.] 1. जोड़ा या मिलाया हुआ; सम्मिलित 2. जिसे प्रयोग या व्यवहार में लाया गया हो अथवा लाया जा रहा हो; जो किसी काम में लगाया गया हो।
प्रयुक्ति
(सं.) [सं-स्त्री.] प्रयुक्त होने की अवस्था या भाव; प्रयोग; किसी काम में या उपयोग में लाए जाने की क्रिया।
प्रयुद्ध
(सं.) [सं-पु.] जंग; लड़ाई। [वि.] 1. युद्ध करने वाला 2. जो युद्ध कर चुका हो।
प्रयोक्ता
(सं.) [वि.] किसी वस्तु को प्रयोग या व्यवहार में लाने वाला; किसी काम में लगाने वाला।
प्रयोग
(सं.) [सं-पु.] 1. इस्तेमाल; व्यवहार 2. किसी चीज़ या बात को आवश्यकता अथवा अभ्यासवश काम में लाना 3. बल, अधिकार आदि का उपयोग करना 4. आज कल वैज्ञानिक क्षेत्रों
में किसी प्रकार का अनुसंधान करने या कोई नई बात ढूँढ़ निकालने के लिए की जाने वाली कोई परीक्षणात्मक क्रिया अथवा उसका साधन; (एक्सपेरिमेंट)।
प्रयोगकर्ता
(सं.) [सं-पु.] प्रयोग करने वाला व्यक्ति।
प्रयोगधर्मी
(सं.) [वि.] प्रयोगों पर विश्वास करने वाला; प्रयोगवादी।
प्रयोगवाद
(सं.) [सं-पु.] एक आधुनिक साहित्यिक मत या सिद्धांत जो साहित्य में भाषा, शिल्प, विषय, भाव संबंधी पुरानी पंरपरा को विरोधी है तथा नए-नए प्रयोगों पर बल देता है।
प्रयोगवादी
(सं.) [वि.] 1. प्रयोगवाद से संबंधित; प्रयोगवाद से संबंध रखने वाला; प्रयोगशील 2. वह जो प्रयोगवाद का समर्थक हो।
प्रयोगशाला
(सं.) [सं-स्त्री.] वह स्थान जहाँ भौतिकविज्ञान, रासायनविज्ञान आदि विषयों के तथ्यों को समझने, जानने या नई बातों का पता लगाने की दृष्टि से विविध प्रयोग किए
जाते हैं।
प्रयोग साध्य
(सं.) [वि.] जिसे प्रयोग में लाया जा सके; प्रयोग में लाया जाने वाला।
प्रयोगात्मक
(सं.) [वि.] प्रयोग संबंधी।
प्रयोगी
(सं.) [वि.] 1. प्रयोगकर्ता; प्रयोग करने वाला 2. जिसके सामने कोई उद्देश्य हो।
प्रयोजक
(सं.) [सं-पु.] 1. वह जो प्रयोग या अनुष्ठान करे 2. किसी काम या उद्देश्य में लगने वाला व्यक्ति 3. जोड़ने वाला या एक में मिलाने वाला व्यक्ति 4. महाजन 5.
संस्थापक 6. धर्मशास्त्री 7. प्रेरणार्थक क्रिया का कर्ता 8. ग्रंथ लेखक। [वि.] 1. नियुक्त करने वाला 2. प्रेरक 3. जो कारण बने।
प्रयोजन
(सं.) [सं-पु.] 1. अभिप्राय; आशय; उद्देश्य; मतलब; हेतु 2. किसी काम, चीज़ या बात का प्रयोग करने अर्थात उसे व्यवहार में लाने की क्रिया या भाव।
प्रयोजनमूलक
(सं.) [वि.] 1. किसी उद्देश्य या प्रयोजन की सिद्धि में सहायता करने वाला 2. व्यावहारिक।
प्रयोजनीय
(सं.) [वि.] प्रयोजन के योग्य; प्रयोग में लाने योग्य; उपयोगी।
प्रयोज्य
(सं.) [सं-पु.] 1. नौकर; टहलू 2. किसी काम में लगाया जाने वाला धन या पूँजी। [वि.] 1. जो प्रयोग में लाए जाने को हो या लाया जा सकता हो; (एप्लिकेबल) 2. जो
अधिकार के रूप में काम में लाया जा सकता हो; (एक्सरसाइज़ेबल)।
प्रयोज्यता
(सं.) [सं-पु.] प्रयोजनीयता; व्यावहारिकता; उपादेयता।
प्ररूढ़
(सं.) [वि.] उगा हुआ; बढ़ा हुआ।
प्ररूढ़ि
(सं.) [सं-स्त्री.] बाढ़; वृद्धि।
प्ररूपण
(सं.) [सं-स्त्री.] समझाने की क्रिया या अवस्था; व्याख्या करना।
प्ररोह
(सं.) [सं-पु.] 1. आरोह; चढ़ाव 2. उत्पत्ति 3. अंकुर 4. प्रकाश-किरण 5. संतान 6. नया पत्ता, कोंपल 7. किस्सा 8. उगना; जमना 9. एक वृक्ष।
प्ररोहण
(सं.) [सं-पु.] 1. ऊपर की ओर जाने या बढ़ने की क्रिया या भाव 2. अंकुर, कोंपल आदि का निकलना 2. पौधे आदि का उगना।
प्ररोही
(सं.) [वि.] 1. उगने वाला 2. उत्पन्न होने वाला 3. ऊपर की ओर बढ़ने या जाने वाला।
प्रलंब
(सं.) [सं-पु.] 1. लटकने की क्रिया या भाव 2. लटकाव 3. लटकने वाली वस्तु 4. शाखा; डाल; टहनी 5. स्तन; छाती; कुच 6. गले में पहनने का एक आभूषण; कंठहार या माला 7.
बीज का अंकुर 8. काम में विलंब 9. एक असुर जिसे बलराम ने मारा था। [वि.] 1. लटका हुआ 2. लंबा 3. काम करने में ढीला या सुस्त।
प्रलंबन
(सं.) [सं-पु.] 1. लटकना 2. लंबा करना 3. मुअतल होना 4. सहारा लेना।
प्रलंबित
(सं.) [वि.] 1. प्रलंब के रूप में लाया हुआ 2. जिसका प्रलंबन हुआ हो; (कर्मचारी) 3. बहुत नीचे तक लटकाया हुआ 3. झूलता हुआ 4. नीचे की ओर दूर तक बढ़ा हुआ।
प्रलंबी
(सं.) [वि.] 1. काम में देर लगाने वाला 2. सहारा लेने वाला 3. लटकने वाला।
प्रलंभ
(सं.) [सं-पु.] 1. लाभ; प्राप्ति 2. छल-कपट; धोखा।
प्रलंभन
(सं.) [सं-पु.] 1. लाभ या प्राप्ति होना; मिलना 2. छलना; धोखा देना।
प्रलब्ध
(सं.) [वि.] 1. जो छला गया हो या जिसे धोखा दिया गया हो 2. जो ग्रहण किया गया हो; गृहीत।
प्रलब्धा
(सं.) [वि.] 1. लालच में पड़ा हुआ 2. धोखा देने या छलने वाला; वंचक।
प्रलय
(सं.) [सं-पु.] 1. सृष्टि का अपने मूल कारण प्रकृति में सर्वथा लीन हो जाना; सृष्टि का सर्वनाश; जगत के नाना रूपों का प्रकृति में लीन होकर मिट जाना 2. भयंकर
नाश या बरबादी; विलीनता; अंत; विश्व का नाश; विनाश; व्यापक संहार 3. मृत्यु; मौत।
प्रलयंकर
(सं.) [वि.] प्रलयकारी; सर्वनाशकारी; विनाशकारी।
प्रलयकाल
(सं.) [सं-पु.] 1. प्रलय का समय; वह समय जब समस्त संसार का नाश हो 2. {ला-अ.} भीषण विपत्ति या विनाश का समय।
प्रलव
(सं.) [सं-पु.] 1. किसी चीज़ का छोटा टुकड़ा; खंड 2. अच्छी तरह काटना 3. लेश 4. धज्जी।
प्रलाप
(सं.) [सं-पु.] 1. प्रपंच; ढोंग 2. बकवास; अंड-बंड बातचीत 3. वियोग की अवस्था का करुण विलाप।
प्रलापक
(सं.) [सं-पु.] 1. वह जो रो-रोकर अपना कष्ट सुनाए 2. एक तरह का सन्निपात रोग जिसमें रोगी प्रलाप करता अर्थात अनाप-शनाप बकता है। [वि.] 1. प्रलाप करने वाला 2.
बकवास करने वाला या अंड-बंड बकने वाला।
प्रलापी
(सं.) [वि.] 1. प्रलाप करने वाला 2. बेकार की बातचीत या बकवास करने वाला; बातूनी।
प्रलाभ
(सं.) [सं-पु.] विशिष्ट रूप में होने वाला लाभ।
प्रलिप्त
(सं.) [वि.] 1. लिप्त; लीन 2. लिपटा या चिपका हुआ।
प्रलीन
(सं.) [वि.] 1. घुला हुआ 2. मग्न 3. ध्वस्त; नष्ट-भ्रष्ट 4. तिरोहित; छिपा हुआ।
प्रलीनता
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. विलीनता; तिरोभाव 2. प्रलीन होने की अवस्था या भाव 3. विनाश 4. जड़ता; जड़त्व।
प्रलुंठित
(सं.) [वि.] 1. लुढ़कता हुआ 2. उछलता या कूदता हुआ 3. गिरा हुआ।
प्रलुब्ध
(सं.) [वि.] 1. लालची; लोभी 2. किसी पर अनुरक्त या मोहित होने वाला 3. दूसरों को धोखा देने वाला; वंचक।
प्रलुब्धा
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. लोभ या लालच करने वाली स्त्री 2. वह जो किसी पर अनुरक्त या मोहित हो गई हो।
प्रलून
(सं.) [सं-पु.] एक प्रकार का कीट। [वि.] काटा हुआ।
प्रलेख
(सं.) [सं-पु.] 1. किसी विषय की सूचना या प्रामाणिक जानकारी देने वाला लेख; लेख्य; दस्तावेज़; (डॉक्युमेंट) 2. एक प्रपत्र जिसपर एक पक्ष हस्ताक्षर करके दूसरे
पक्ष को देता है; अनुबंध पत्र; (डीड)।
प्रलेखक
(सं.) [सं-पु.] लेख या दस्तावेज़ आदि लिखने वाला कर्मचारी; कातिब; अर्ज़ीनवीस।
प्रलेखन
(सं.) [सं-पु.] 1. प्रलेख लिखने की क्रिया; प्रलेखीकरण 2. लेख आदि लिखने का काम।
प्रलेप
(सं.) [सं-पु.] 1. लेप (उबटन आदि); किसी गाढ़ी चीज़ का किसी दूसरी चीज़ पर किया जाने वाला लेप 2. घाव या फोड़े पर चढ़ाने का मरहम।
प्रलेपक
(सं.) [सं-पु.] 1. प्रलेप या लेप करने वाला व्यक्ति 2. मरहम आदि लगाने वाला व्यक्ति 3. एक प्रकार का मंद ज्वर।
प्रलेपन
(सं.) [सं-पु.] 1. लेप करने की क्रिया या भाव; पुताई 2. मरहम आदि लगाने का काम।
प्रलेप्य
(सं.) [वि.] लेप चढ़ाने योग्य। [सं-पु.] घुँघराले बाल।
प्रलेह
(सं.) [सं-पु.] कोरमा; मांस का बना एक प्रकार का व्यंजन।
प्रलेहन
(सं.) [सं-पु.] चाटने की क्रिया या अवस्था।
प्रलोप
(सं.) [सं-पु.] 1. लोप; विलय 2. नाश; ध्वंश।
प्रलोभ
(सं.) [सं-पु.] अधिक लालच; लोभ; प्रलोभन।
प्रलोभक
(सं.) [सं-पु.] 1. वह जो ललचाए 2. प्रलोभन देने वाला व्यक्ति। [वि.] 1. लालच उत्पन्न करने वाला 2. लुभाने वाला।
प्रलोभन
(सं.) [सं-पु.] 1. लोभ; लालच 2. कुछ करने या पाने के लिए मन में उत्पन्न होने वाली अनुचित वृत्ति; (टेंप्टेशन)।
प्रलोभित
(सं.) [वि.] 1. प्रलोभ में पड़ा हुआ; प्रलुब्ध 2. मोहित; मुग्ध।
प्रलोल
(सं.) [वि.] 1. कंपित; उत्तेजित 2. अत्यंत चंचल 3. क्षुब्ध।
प्रवंचक
(सं.) [वि.] 1. धोखेबाज़; धूर्त 2. वंचन करने वाला; ठगने वाला; ठग।
प्रवंचन
(सं.) [सं-पु.] धोखा देना; धोखेबाज़ी; ठगने या छलने का काम; ठगी।
प्रवंचना
(सं.) [सं-स्त्री.] धोखेबाज़ी; ठगी; धूर्तता; छलना।
प्रवंचित
(सं.) [वि.] जो ठगा गया हो; जिसे धोखा दिया गया हो; छला गया।
प्रवक्ता
(सं.) [सं-पु.] 1. अच्छी तरह समझाकर कहने वाला व्यक्ति 2. किसी संस्था या सरकार आदि की ओर से आधिकारिक रूप से बोलने वाला प्रतिनिधि; (स्पोक्समैन)। [वि.] 1.
अच्छा वक्ता 2. प्रवचन या उपदेश देने वाला 3. कुशलता से समझाने वाला।
प्रवचन
(सं.) [सं-पु.] धार्मिक, नैतिक आदि गंभीर विषयों पर परोपकार की दृष्टि से कही जाने वाली अच्छी तथा विचारपूर्ण बातें; उपदेशपूर्ण भाषण।
प्रवचनकर्ता
(सं.) [सं-पु.] 1. वेद, पुराण आदि का उपदेशपूर्ण व्याख्यान देने वाला व्यक्ति 2. वह जो धार्मिक उपदेश देता है।
प्रवचनीय
(सं.) [वि.] 1. प्रवचन के योग्य 2. समझाकर कहने योग्य।
प्रवट
(सं.) [सं-पु.] 1. जौ 2. गेहूँ।
प्रवण
(सं.) [वि.] 1. ढालू; ढालुवाँ 2. वक्र; टेढ़ा; झुका या मुड़ा हुआ 3. विनीत; नम्र 4. निपुण; दक्ष 5. जो सच्चा और साफ़ व्यवहार करे; खरा 6. चिकना 7. उदार; सहृदय 8.
प्रवृत्त 9. दीर्घ; लंबा 10. अनुकूल। [सं-पु.] 1. चौराहा 2. उतार; ढलान।
प्रवणता
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. प्रवण होने की अवस्था या भाव 2. तरलता 3. नम्रता 4. झुकाव; प्रवृत्ति।
प्रवत्सथ
(सं.) [वि.] जो विदेश जाने वाला हो; परदेश जाने वाला।
प्रवदन
(सं.) [सं-पु.] घोषणा।
प्रवप
(सं.) [वि.] स्थूलकाय; बहुत मोटा।
प्रवयण
(सं.) [सं-पु.] 1. चाबुक; कोड़ा; अंकुश 2. बुने हुए कपड़े के ऊपर का हिस्सा।
प्रवर
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. वंश; कुल 2. पूर्व पुरुष। [वि.] 1. सर्वश्रेष्ठ; प्रधान; प्रमुख 2. उम्र में बड़ा; उच्चतर।
प्रवर्ग
(सं.) [सं-पु.] 1. किसी वर्ग या श्रेणी का छोटा विभाग या श्रेणी; (कैटेगरी) 2. हवन करने की अग्नि।
प्रवर्त
(सं.) [सं-पु.] 1. किसी कार्य का आरंभ; उत्तेजन; ठानना; अनुष्ठान 2. एक प्रकार के बादल 3. एक प्राचीन आभूषण।
प्रवर्तक
(सं.) [वि.] 1. किसी काम या बात का आरंभ या प्रचलन करने वाला; संचालक 2. किसी काम में लगाने या प्रवृत्त करने वाला 3. आविष्कार करने वाला 4. उभारने वाला 5.
उकसाने वाला 6. गति देने वाला 7. प्रचार करने वाला 8. विचार करने वाला 9. न्याय करने वाला; पंच।
प्रवर्तन
(सं.) [सं-पु.] 1. प्रवृत्त करना 2. कोई नया काम या नई बात आरंभ करना; ठानना 3. उत्तेजित करना; उकसाना 4. जारी करना; चलाना 5. उभारना 6. आविष्कार या खोज करना 7.
नए सिरे से प्रचलित करना 8. कानून लागू करना।
प्रवर्तना
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. प्रवृत्त करने की क्रिया 2. प्रेरणा; उत्तेजना 3. उकसाना; उकसाव 4. नियुक्त करने की क्रिया या नियोजन।
प्रवर्तित
(सं.) [वि.] 1. आरंभ किया हुआ 2. जिसका प्रवर्तन किया गया हो 3. आविष्कृत 4. स्थापित 5. प्रवृत्त 6. कानून द्वारा जिसे लागू किया गया हो।
प्रवर्धक
(सं.) [सं-पु.] विद्युत तरंगों की तीव्रता बढ़ाने वाला उपकरण; (एंप्लीफ़ाइयर)। [वि.] बढ़ाने वाला; वृद्धिकारक।
प्रवर्धन
(सं.) [सं-पु.] 1. बढ़ाने की क्रिया; बढ़ती; वृद्धि 2. अच्छी तरह बढ़ाना।
प्रवर्षण
(सं.) [सं-पु.] 1. वर्षा; बारिश 2. पहली बारिश 3. (पुराण) किष्किंधा के समीप का एक पर्वत जिसपर राम और लक्ष्मण ने कुछ समय तक निवास किया था।
प्रवसन
(सं.) [सं-पु.] 1. अपना मूल निवास छोड़ कर किसी दूसरी जगह रहना या बसना 2. विदेश यात्रा 3. मरण; मृत्यु।
प्रवह
(सं.) [सं-पु.] 1. बहाव; तेज़ बहाव 2. वायु 3. घर आदि से बाहर जाना 4. सात वायुओं में से एक।
प्रवहण
(सं.) [सं-पु.] 1. ले जाना 2. डोली; पालकी; छकड़ा 3. पोत 4. एक प्रकार का छोटा रथ; बहली।
प्रवाक
(सं.) [वि.] 1. घोषणा करने वाला 2. शेखी बघारने वाला 3. बहुत अधिक बोलने वाला; वाचाल 4. युक्तियुक्त बातें कहने वाला।
प्रवाचक
(सं.) [वि.] 1. अच्छा वक्ता; वाकपटु 2. अर्थव्यजंक; अर्थद्योतक 3. व्याख्याता।
प्रवाचन
(सं.) [सं-पु.] 1. विज्ञप्ति 2. अच्छी तरह कहना; घोषणा 3. नाम; उपाधि; अभिधान।
प्रवाण
(सं.) [सं-पु.] कपड़े का छोर या अंचल बनाकर सज्जित करना।
प्रवाणि
(सं.) [सं-स्त्री.] जुलाहों की ढरकी या भरनी।
प्रवाद
(सं.) [सं-पु.] 1. परस्पर होने वाली बातचीत; वार्तालाप 2. किंवदंती; जनश्रुति; जनरव 3. बोलना; व्यक्त करना 4. झूठी बदनामी 5. तर्क-वितर्क; बहस 6. चुनौती; ललकार।
प्रवादी
(सं.) [सं-पु.] वह जो प्रवाद या वार्तालाप करे। [वि.] 1. प्रवाद करने वाला 2. बहस करने वाला 3. ज़्यादा बोलने वाला 4. झूठी बदनामी करने वाला।
प्रवारण
(सं.) [सं-पु.] 1. मनाही; निषेध; प्रतिरोध 2. किसी कामना से किया जाने वाला दान; काम्यदान 3. इच्छापूर्ति 4. वर्षा ऋतु बीत जाने पर बौद्धों का एक उत्सव।
प्रवाल
(सं.) [सं-पु.] 1. मूँगा 2. नया कोमल पत्ता; कोंपल; कल्ला 3. वीणा, सितार आदि का लंबा दंड 4. वीणा की लकड़ी।
प्रवास
(सं.) [सं-पु.] 1. अपना देश छोड़कर किसी अन्य देश में रहने का भाव; विदेश में रहना; देशांतरण 2. परदेश; विदेश 3. यात्रा; सफ़र।
प्रवासन
(सं.) [सं-पु.] 1. निर्वासन; देश आदि से बाहर निकालना 2. अपना मूल निवास छोड़कर किसी अन्य जगह बसना या रहना; प्रवास।
प्रवासित
(सं.) [वि.] 1. देश से निकला हुआ 2. जिसे देश निकाले का दंड मिला हो 3. मारा हुआ।
प्रवासी
(सं.) [सं-पु.] परदेश में रहने वाला व्यक्ति; मूलस्थान छोड़कर अन्य स्थान में बसा व्यक्ति। [वि.] प्रवास करने वाला।
प्रवाह
(सं.) [सं-पु.] 1. बहाव; बहने की क्रिया या भाव 2. धार; धारा 3. विद्युत गति 4. जलाशय 5. निरंतर क्रमिकता (भाषण आदि की)।
प्रवाहक
(सं.) [सं-पु.] 1. वह जो अच्छी तरह वहन करे 2. राक्षस। [वि.] अच्छी तरह वहन करने वाला।
प्रवाहमान
(सं.) [वि.] जो बह रहा है; बहने वाला; प्रवाहशील; गतिमान।
प्रवाहशील
(सं.) [वि.] प्रवाहित; निरंतर बहता हुआ; गतिमान; गतिशील; आस्राव; जिसमें प्रवाह हो।
प्रवाहिका
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. ग्रहणी रोग; पेचिश; (डिसेंट्री) 2. अतिसार; ग्रहणी रोग का एक भेद 3. बहने वाली धारा या नदी।
प्रवाहित
(सं.) [वि.] 1. बहता हुआ 2. बहाया हुआ 3. नदी की धारा में बह जाने के लिए छोड़ा हुआ 4. ढोया हुआ।
प्रवाही
(सं.) [सं-स्त्री.] बालू; रेत। [वि.] 1. बहने वाला या प्रवाह वाला 2. बहाने वाला 3. वहन करने वाला 4. तरल; द्रव 5. ले जाने वाला या चलाने वाला।
प्रविकर्षण
(सं.) [सं-पु.] 1. आकर्षण 2. खींचना या तानना।
प्रविकीर्ण
(सं.) [वि.] 1. बिखरा, छितरा या फैलाया हुआ 2. विघटित; अलग-अलग।
प्रविचेतन
(सं.) [सं-पु.] 1. समझ 2. ज्ञान; बोध।
प्रविधि
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. कोई कार्य करने की विशेष विधि, कौशल या तकनीक 2. किसी विशिष्ट विषय का विधान या कानून 3. कला या शिल्प की विधि।
प्रविर
(सं.) [सं-पु.] 1. पीला चंदन 2. पीतकाष्ठ।
प्रविरल
(सं.) [वि.] 1. अति विरल या कम 2. अलग; पृथक 3. जो बहुत बड़े अंतराल के कारण अलग हो गया हो।
प्रविष्ट
(सं.) [वि.] 1. जिसका प्रवेश हो चुका हो; जो प्रवेश कर चुका हो; जिसे दाख़िला मिला हो 2. अंदर गया हुआ; घुसा हुआ।
प्रविष्टि
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. प्रवेश 2. खाते, पुस्तक आदि में विवरण, लेखे आदि लिखने, चढ़ाने या दर्ज, करने की क्रिया 3. वह वस्तु या बात जो लिखी या दर्ज की जाए;
(एंट्री) 4. शब्दकोश में लिखा हुआ प्रथम एवं मुख्य शब्द, जिसका चयन अर्थ देने के लिए किया जाता है; (एंट्री)।
प्रवीण
(सं.) [वि.] किसी कार्य का पूर्ण ज्ञान रखने वाला; निपुण; कुशल; दक्ष; चतुर; निष्णात (एक्सपर्ट)।
प्रवीणता
(सं.) [सं-स्त्री.] निपुणता; कुशलता; दक्षता; प्रवीण होने की अवस्था या भाव।
प्रवीर
(सं.) [सं-पु.] 1. वीर व्यक्ति 2. महान योद्धा। [वि.] 1. बली 2. उत्तम 3. प्रधान।
प्रवृत्त
(सं.) [वि.] 1. किसी काम में लगा हुआ; तत्पर; उन्मुख 2. जिसका आरंभ हुआ हो 3. निश्चित; निर्दिष्ट 4. निर्विवाद; निर्बाध।
प्रवृत्ति
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. स्वभाव; आदत 2. झुकाव; रुझान; प्रवाह; बहाव 3. आचार-व्यवहार; अध्यवसाय 4. किसी कार्य को करने की तदनुकूल क्रिया-व्यापार; निरंतर बढ़ते
रहने की क्रिया या भाव 5. सांसारिक भोगों या विषयों के प्रति आसक्ति।
प्रवृत्तिमूलक
(सं.) [वि.] 1. प्रवृत्तिजन्य; आसक्तिजन्य 2. (वह रचना) जो किसी विशेष भाव या प्रवृत्ति का अनुसंधान करती हो।
प्रवेक्षा
(सं.) [सं-स्त्री.] पहले से लगाया जाने वाला अनुमान; पूर्वानुमान।
प्रवेग
(सं.) [सं-पु.] 1. अधिक या प्रबल वेग; (टेंपो) 2. घटनाओं आदि का तेज़ी से आगे बढ़ना 3. गति या वेग का वह मान जिसमें कोई चीज़ आगे बढ़ रही हो या कोई क्रिया हो रही
हो; संवेग; (वेलॉसिटी)।
प्रवेदन
(सं.) [सं-पु.] 1. प्रकट या ज़ाहिर करना 2. ज्ञात कराना।
प्रवेश
(सं.) [सं-पु.] 1. किसी संस्था आदि में भरती होना; दाख़िला; (एडमिशन) 2. भीतर जाना; घुसना 3. विद्यालय, संस्था आदि की भरती 4. पहुँच; पैठ 5. अंदर जाने की क्रिया
6. किसी विषय का सामान्य ज्ञान।
प्रवेशक
(सं.) [सं-पु.] 1. वह जो प्रवेश करे 2. नाटक में दो अंकों के बीच का एक प्रकार का अंक।
प्रवेशद्वार
(सं.) [सं-पु.] भीतर जाने का मार्ग, द्वार या रास्ता; (एंटरेंस)।
प्रवेशन
(सं.) [सं-पु.] 1. प्रवेश 2. किसी संस्था आदि में प्रवेश कराना 3. ले जाना; पहुँचाना 4. रतिक्रिया 4. द्वार; दरवाज़ा।
प्रवेशपत्र
(सं.) [सं-पु.] 1. किसी परीक्षा में सम्मिलित होने के लिए दिया जाने वाला पत्र; (एडमिटकार्ड) 2. सिनेमा, नाट्यशाला आदि में प्रवेश का अधिकार प्रदान करने वाला
पत्र; (पास या टिकट)।
प्रवेशपथ
(सं.) [सं-पु.] वह मार्ग या पथ जहाँ से किसी स्थान विशेष में प्रवेश किया जाता है।
प्रवेशशुल्क
(सं.) [सं-पु.] 1. किसी संस्था आदि में प्रवेश लेते समय दिया जाने वाला शुल्क 2. देश के भीतर आने वाले माल का महसूल; आयातकर।
प्रवेशांक
(सं.) [सं-पु.] 1. किसी पत्र-पत्रिका आदि का पहला अंक 2. किसी विद्यालय आदि में प्रवेश लेनेवाले विद्यार्थी को दिया जाने वाला नंबर (रजिस्ट्रेशन नं.)।
प्रवेशार्थी
(सं.) [सं-पु.] प्रवेश का इच्छुक व्यक्ति।
प्रवेशिका
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. प्रवेशपत्र 2. प्रवेश के लिए दी गई परीक्षा 3. आरंभिक शिक्षा देने वाली पुस्तक।
प्रवेशी
(सं.) [वि.] प्रवेश करने वाला; जिसने प्रवेश किया हो।
प्रवेश्य
(सं.) [सं-पु.] देश के बाहर से आने वाला व्यक्ति या माल। [वि.] 1. प्रवेश करने योग्य 2. जिसका प्रवेश हो सके।
प्रव्रजक
(सं.) [वि.] 1. प्रवासी; प्रवास करने वाला 2. स्थानांतरण करने वाला 3. दूसरे देश में जाने वाला 4. संन्यास लेने वाला।
प्रव्रजन
(सं.) [सं-पु.] 1. एक स्थान से चलकर दूसरे स्थान पर जाना 2. अपना निवास स्थान छोड़कर किसी दूसरे देश में बसना या रहना; (माइग्रेशन) 3. घरबार छोड़कर संन्यास लेना।
प्रव्रजित
(सं.) [सं-पु.] 1. संन्यासी; संन्यास ग्रहण करने वाला व्यक्ति 2. बौद्ध भिक्षु का शिष्य। [वि.] 1. जीविकोपार्जन के लिए विदेश में जा कर बसा हुआ 2. जिसने विदेश
की यात्रा की हो।
प्रव्रज्या
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. विदेश गमन 2. व्यवसाय, रोज़गार आदि के उद्देश्य से अपना निवास स्थान छोड़कर किसी दूसरे स्थान में जाना या बसना; (माइग्रेशन) 3. संन्यास;
संन्यासाश्रम 4. देश निकाला।
प्रव्राजक
(सं.) [सं-पु.] 1. संन्यासी 2. वह जो घर बार छोड़ कर किसी दूसरे स्थान पर चला जाए।
प्रशंसक
(सं.) [सं-पु.] वह व्यक्ति जो किसी की प्रशंसा करे; प्रशंसा करने वाला व्यक्ति। [वि.] 1. जो किसी की प्रशंसा करता हो 2. किसी के अच्छे गुणों को आदर की दृष्टि से
देखने वाला; (एडमायरर)।
प्रशंसनीय
(सं.) [वि.] प्रशंसा के योग्य; प्रशंसा का अधिकारी; सराहनीय; प्रशंस्य; स्तुत्य।
प्रशंसा
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. तारीफ़; बड़ाई; गुणों का बखान 2. आदरसूचक बात, विचार या कथन 3. ख्याति; कीर्ति।
प्रशंसात्मक
(सं.) [वि.] प्रशंसापूर्ण।
प्रशंसापत्र
(सं.) [सं-पु.] किसी व्यक्ति के द्वारा किए गए कार्य या उपलब्धि की प्रशंसा में दिया जाने वाला पत्र; (टेस्टीमोनियल)।
प्रशंसिका
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. प्रशंसा करने वाली स्त्री 2. किसी विशिष्ट या आदर्श व्यक्ति को पसंद करने वाली स्त्री।
प्रशंसित
(सं.) [वि.] प्रशंसा किया हुआ; अभिनंदित।
प्रशंसी
(सं.) [सं-पु.] 1. प्रशंसक 2. वह जो किसी विशिष्ट या आदर्श व्यक्ति को पसंद करे; (फ़ैन)। [वि.] प्रशंसा करने वाला।
प्रशंस्य
(सं.) [वि.] प्रशंसनीय; सराहनीय; स्तुत्य।
प्रशम
(सं.) [सं-पु.] 1. शमन; शांति; निवृत्ति 2. नाश; ध्वंस।
प्रशमन
(सं.) [सं-पु.] 1. शमन; शांत करना 2. नाशन; ध्वंस करना 3. दबाना या वश में करना 4. निरोग करना 5. प्रतिपादन 6. वध।
प्रशमित
(सं.) [वि.] 1. शांति संधि किया हुआ 2. सांत्वना दिया हुआ।
प्रशम्य
(सं.) [वि.] जिसका शमन हो सकता हो या होने को हो।
प्रशस्ति
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. प्रशंसा; तारीफ़; बड़ाई 2. किसी की प्रशंसा में लिखी गई कविता आदि 3. प्रशंसा सूचक वाक्य या विवरण 4. प्राचीन भारत में राजाओं के एक प्रकार
के प्रख्यापन जो शिलालेखों, ताम्रपत्रों आदि पर खोदे जाते थे 5. प्राचीन ग्रंथों के अंत की पंक्तियाँ जिनमें पुस्तक के रचयिता, विषय, काल आदि का उल्लेख रहता है।
प्रशांत
(सं.) [वि.] 1. आवेगहीन 2. शांत किया हुआ; शांत; वश में किया हुआ 3. मृत 4. स्थिर; निश्चल। [सं-पु.] एक महासागर का नाम।
प्रशांतात्मा
(सं.) [वि.] 1. जिसकी आत्मा अत्यंत शांत हो 2. अत्यंत धीर-गंभीर स्वभाववाला।
प्रशांति
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. शांति; शमन 2. विश्राम।
प्रशाखा
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. शाखा की शाखा; टहनी; पतली शाखा 2. किसी विषय क्षेत्र या अनुशासन की शाखा की अन्य छोटी शाखा; उपशाखा, जैसे- विज्ञान की प्रशाखा।
प्रशाखिका
(सं.) [सं-स्त्री.] वृक्ष की छोटी डाल या टहनी।
प्रशासक
(सं.) [सं-पु.] 1. वह जो राज्य, संस्थान आदि का प्रशासन या प्रबंध करता हो 2. शासन का प्रबंध करने वाला अधिकारी।
प्रशासकीय
(सं.) [वि.] प्रशासक संबंधी; प्रशासक का।
प्रशासन
(सं.) [सं-पु.] सार्वजनिक व्यवस्था की दृष्टि से किया जाने वाला कार्य; किसी राज्य अथवा संस्था के परिचालन की व्यवस्था या प्रबंध; शासन; (एडमिनिस्ट्रेशन)।
प्रशासनतंत्र
(सं.) [सं-पु.] प्रशासन की व्यवस्था हेतु बना तंत्र; प्रशासन का तंत्र।
प्रशासनिक
(सं.) [वि.] प्रशासन से संबंधित; प्रशासन का।
प्रशिक्षक
(सं.) [सं-पु.] प्रशिक्षण देने वाला व्यक्ति; वह व्यक्ति जो किसी व्यवसाय, कला, खेल आदि की व्यावहारिक रूप से शिक्षा देता है; (ट्रेनर)।
प्रशिक्षण
(सं.) [सं-पु.] किसी पेशे या कला-कौशल की क्रियात्मक रूप में दी जाने वाली व्यावहारिक शिक्षा; (ट्रेनिंग)।
प्रशिक्षणकेंद्र
(सं.) [सं-पु.] वह स्थान या संस्थान जहाँ कुशलता पूर्वक किसी व्यवसाय, कला, खेल आदि का प्रशिक्षण दिया जाता है; (ट्रेनिंग सेंटर)।
प्रशिक्षणाधीन
(सं.) [वि.] जो प्रशिक्षण प्राप्त कर रहा हो।
प्रशिक्षणार्थी
(सं.) [सं-पु.] 1. प्रशिक्षण प्राप्त करने वाला 2. प्रशिक्षण प्राप्त करने का इच्छुक; प्रशिक्षु।
प्रशिक्षार्थी
(सं.) [सं-पु.] प्रशिक्षण लेने वाला व्यक्ति; किसी क्षेत्र विशेष की व्यवहारिक रूप से शिक्षा लेने वाला व्यक्ति।
प्रशिक्षित
(सं.) [वि.] जो प्रशिक्षण प्राप्त कर चुका हो; जिसे सिखाकर तैयार किया गया हो; (ट्रेंड)।
प्रशिक्षु
(सं.) [सं-पु.] प्रशिक्षण लेने वाला व्यक्ति; वह व्यक्ति जिसका प्रशिक्षण चल रहा हो।
प्रशिष्ट
(सं.) [वि.] 1. शासित; अच्छा शासन 2. आज्ञप्त; आदिष्ट; आदेश।
प्रशिष्य
(सं.) [सं-पु.] शिष्य का शिष्य; पट्ट शिष्य।
प्रशीतक
(सं.) [सं-पु.] विद्युत से चलने वाला एक प्रकार का उपकरण जो पानी को ठंडा करने, बरफ़ को जमाने और खाद्य पदार्थों, औषधियों आदि को ख़राबी से बचाने के काम आता है;
(रेफ़्रिजरेटर; फ़्रिज)। [वि.] ठंडा या शीतल रखने वाला।
प्रशीतन
(सं.) [सं-पु.] 1. बहुत ठंडा या शीतल करके रखना 2. खाद्य पदार्थों को सड़ने से बचाने के लिए प्रशीतित करना।
प्रश्न
(सं.) [सं-पु.] 1. वह बात जिसका उत्तर पूछा गया हो; सवाल; (क्वेश्चन) 2. पूछ-ताछ; जाँच-पड़ताल 3. चिंतन या विवाद का विषय; मुद्दा; (इश्यू) 4. समस्या 5. भविष्य के
संबंध में जिज्ञासा 6. एक उपनिषद।
प्रश्नक
(सं.) [सं-पु.] प्रश्नकर्ता; प्रश्न करने वाला व्यक्ति।
प्रश्नकर्ता
(सं.) [सं-पु.] प्रश्न करने वाला व्यक्ति; वह जो पूछताछ करे।
प्रश्नचिह्न
(सं.) [सं-पु.] 1. प्रश्नवाचक वाक्यों के अंत में लगाया जाने वाला एक प्रकार का विराम चिह्न; प्रश्नवाचक चिह्न (?) 2. {ला-अ.} कोई विकट या कठिन समस्या।
प्रश्नपत्र
(सं.) [सं-पु.] परीक्षा के प्रारंभ में दिया जाने वाला वह परचा या कागज़ जिसमें उत्तर देने के लिए प्रश्न अंकित हों।
प्रश्नमाला
(सं.) [सं-स्त्री.] प्रश्नावली; प्रश्नों की सूची; किसी विषय से संबंधित प्रश्नों की सूची।
प्रश्नवाचक
(सं.) [वि.] सवालिया; प्रश्न का सूचक।
प्रश्नविद्ध
(सं.) [वि.] प्रश्नों से घायल या आहत।
प्रश्नसूचक
(सं.) [वि.] जो प्रश्न को सूचित करे; प्रश्नवाचक; सवालिया।
प्रश्नात्मक
(सं.) [वि.] प्रश्न से पूर्ण; प्रश्न से संबंधित; जिसमें कोई प्रश्न या सवाल निहित हो।
प्रश्नार्थक
(सं.) [वि.] प्रश्न का सूचक; प्रश्नवाचक; सवालिया।
प्रश्नावली
(सं.) [सं-स्त्री.] प्रश्नमाला; प्रश्नों की सूची या सारणी।
प्रश्नोत्तर
(सं.) [सं-पु.] प्रश्न और उसका उत्तर; सवाल-जवाब; पूछताछ।
प्रश्नोत्तरी
(सं.) [सं-स्त्री.] वह पुस्तक या पुस्तिका जिसमें कोई विषय सवालों और उनके जवाबों के रूप में समझाया गया हो।
प्रश्रय
(सं.) [सं-पु.] 1. आश्रय; सहारा; आधार; समर्थन 2. स्नेह; अनुराग; प्रणय; प्रीति 3. विनय; शिष्टता; नम्रता।
प्रश्रयी
(सं.) [वि.] 1. नम्र; विनीत 2. मिलनसार; भलामानुस; सरलप्रकृति।
प्रश्रुति
(सं.) [सं-स्त्री.] किसी कार्य को करने के लिए लिया गया प्रण।
प्रश्वास
(सं.) [सं-पु.] 1. साँस बाहर निकालने की क्रिया या अवस्था 2. बाहर निकली हुई साँस या वायु।
प्रसंख्या
(सं.) [सं-स्त्री.] कुल संख्याओं का योग या जोड़; कुल।
प्रसंग
(सं.) [सं-पु.] 1. बातों का परस्पर संबंध 2. विषय; अवसर; घटना; मौका 3. प्रकृष्ट संग; संबंध; लगाव; व्याप्तिरूप संबंध 4. विषय का तारतम्य 5. प्रकरण।
प्रसंगवश
(सं.) [क्रि.वि.] 1. प्रसंग के कारण; घटनावश 2. प्रकरण या चर्चा होने पर।
प्रसंगोचित
(सं.) [वि.] उचित; उपयुक्त; संबद्ध; प्रासंगिक; प्रसंग के अनुसार।
प्रसन्न
(सं.) [वि.] 1. ख़ुश; हर्षित; आनंदित; प्रफुल्लित; खिला हुआ 2. शांत; संतुष्ट; तुष्ट 3. निर्मल; स्वच्छ; प्रसादयुक्त 4. उचित; अनुकूल; युक्त 5. कृपालु।
प्रसन्नचित्त
(सं.) [वि.] प्रफुल्लित; ख़ुश; हर्षित; जिसका चित्त प्रसन्न हो।
प्रसन्नता
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. ख़ुशी; आनंद; हर्ष; प्रफुल्लता 2. अनुग्रह; कृपा 3. संतुष्टि; संतोष; शांति।
प्रसन्नतापूर्वक
(सं.) [क्रि.वि.] प्रसन्नता के साथ; आनंद से।
प्रसन्ना
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. प्रसन्न करने की क्रिया या भाव 2. चावल से बनी शराब या मदिरा।
प्रसरण
(सं.) [सं-पु.] आगे की ओर फैलना या बढ़ना; विस्तार; प्रसार; व्याप्ति।
प्रसव
(सं.) [सं-पु.] 1. बच्चा जनने की क्रिया 2. बच्चा; संतान 3. गर्भमोचन 4. उत्पत्ति; उत्पत्ति स्थान 5. फल; फूल। [वि.] फलप्रद; उत्पादक।
प्रसवकाल
(सं.) [सं-पु.] 1. प्रसव का समय 2. उत्पत्ति का समय या अवसर।
प्रसवन
(सं.) [सं-पु.] 1. स्त्री का अपने गर्भ से बच्चा जनना; गर्भमोचन 2. उत्पन्न करना।
प्रसव पीड़ा
(सं.) [सं-स्त्री.] गर्भावस्था की अंतिम स्थिति में या प्रसव के दौरान स्त्री को होने वाली पीड़ा, कष्ट या तकलीफ़; प्रसववेदना; प्रसवव्यथा; (लेबर पेन)।
प्रसवा
(सं.) [वि.] जन्म देने वाली; उत्पन्न करने वाली।
प्रसविनी
(सं.) [सं-स्त्री.] अपने गर्भ से संतान उत्पन्न करने वाली या जनने वाली स्त्री।
प्रसाद
(सं.) [सं-पु.] 1. अनुग्रह; कृपा; आशीर्वाद 2. वह खाद्य पदार्थ या मिठाई जिसे देवता आदि को चढ़ाने के उपरांत लोग ग्रहण करते हैं 3. (काव्यशास्त्र) काव्य के तीन
गुणों में से एक 4. हर्ष; प्रसन्नता 5. मानसिक शांति; स्वभाव की सरलता। [मु.] -पाना : भोजन करना।
प्रसादक
(सं.) [वि.] 1. निर्मल; स्वच्छ 2. अनुग्रहकारक; बहुत बड़ी कृपा करने वाला 3. प्रसन्न करने वाला।
प्रसादी
(सं.) [सं-स्त्री.] वह खाने या पीने की वस्तु जो किसी देवता को चढ़ाई जा चुकी हो; प्रसाद।
प्रसाधक
(सं.) [सं-पु.] प्राचीन भारत में वह व्यक्ति जो राजाओं को वस्त्र, आभूषण आदि पहनाता था। [वि.] 1. प्रसाधन करने वाला; सजावट या शृंगार करने वाला 2. निर्वाह या
निष्पादन करने वाला (कार्य का); कार्य की सिद्ध या संपादन करने वाला।
प्रसाधन
(सं.) [सं-पु.] 1. सजावट; शृंगार; बनावट 2. बालों को सजाने, होंठ या पैर रँगने की क्रिया 3. निष्पादन; सिद्धि।
प्रसाधनालय
(सं.) [सं-पु.] 1. वह स्थान जहाँ साज-शृंगार करने या कराने का काम किया जाता है 2. प्रसाधन करने तथा प्रसाधन सामग्री बेचने की दुकान; (ब्यूटीपार्लर या
ब्यूटीसैलून) 3. शौचालय; (टॉयलेट)।
प्रसाधिका
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. अपनी स्वामिनी, रानी आदि का प्रसाधन करने वाली सेविका 2. प्रसाधन गृह में ग्राहक स्त्रियों का प्रसाधन करने वाली स्त्री।
प्रसाधित
(सं.) [वि.] 1. जिसका प्रसाधन किया गया हो; अलंकृत 2. संपादित; प्रमाणित; निष्पादित।
प्रसार
(सं.) [सं-पु.] 1. विस्तार; फैलाव 2. एक स्थान से दूसरे स्थान पर पहुँचाना; भेजना; संचार।
प्रसारक
(सं.) [वि.] फैलने या फैलाने वाला; प्रसार करने वाला; विस्तृत करने वाला।
प्रसारण
(सं.) [सं-पु.] 1. फैलाने की क्रिया; फैलाना; पसारना; आगे करना; बढ़ाना 2. रेडियो, दूरदर्शन आदि द्वारा समाचार, गीत, भाषण आदि दूरस्थ लोगों को सुनाने के लिए
विद्युत तरंगों से फैलाना; (ब्रॉडकास्टिंग)।
प्रसारण यंत्र
(सं.) [सं-पु.] 1. विद्युत तरंगों द्वारा बहुत दूरवर्ती क्षेत्रों तक समाचार, भाषण, संगीत आदि का प्रसारण करने वाला यंत्र या उपकरण 2. आकाशवाणी 3. दूरदर्शन;
(ब्रॉडकास्टिंग सिस्टम)।
प्रसारण-समय
(सं.) [सं-पु.] टीवी, रेडियो आदि पर प्रसारित कार्यक्रम की अवधि।
प्रसार-प्रचार
(सं.) [सं-पु.] वह प्रयास जो किसी बात, सिद्धांत आदि को जनता या लोक में फैलाने के लिए विशेष रूप से किया जाता है; प्रसार और प्रचार।
प्रसार विभाग
(सं.) [सं-पु.] (पत्रकारिता) किसी पत्र-पत्रिका के प्रसार और विक्रय से संबंधित संपूर्ण व्यवस्था के लिए उत्तरदायी विभाग।
प्रसारशील
(सं.) [वि.] 1. प्रसारण के योग्य 2. प्रसारित किया जाने वाला।
प्रसारिणी
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. एक प्रकार की लता 2. फैलकर शत्रु को घेर लेना 3. लाजवंती या छुईमुई का पौधा 4. संगीत में एक श्रुति। [वि.] 1. फैलने या फैलाने वाली 2.
प्रसारित करने वाली (रेडियो आदि से)।
प्रसारित
(सं.) [वि.] 1. फैलाया हुआ; पसारा हुआ; विस्तृत 2. रेडियो आदि से प्रसारण किया हुआ 3. प्रदर्शित।
प्रसारी
(सं.) [वि.] 1. फैलने या फैलाने वाला 2. प्रसारण करने वाला (रेडियो आदि से) 3. निकलने वाला (समास में)।
प्रसार्य
(सं.) [वि.] प्रसारण योग्य।
प्रसाविका
(सं.) [सं-स्त्री.] प्रसव कराने वाली दाई; धात्री; (मिडवाइफ़)।
प्रसिद्ध
(सं.) [वि.] 1. विख्यात; मशहूर; नामी (व्यक्ति, वस्तु या कोई बात) 2. अलंकृत; भूषित 3. जिसे बहुत से लोग जानते हों (वस्तु या व्यक्ति)।
प्रसिद्धि
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. प्रसिद्ध होने की अवस्था या भाव 2. शोहरत; ख्याति 3. भूषण; बनाव-सिंगार 4. सिद्धि; सफलता।
प्रसुप्त
(सं.) [वि.] 1. सोया हुआ; निद्रित 2. रुका, थमा या दबा हुआ 3. संज्ञाहीन 4. संपुटित (फूल) 5. {ला-अ.} निष्क्रिय या असावधान।
प्रसुप्ति
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. गहरी नींद 2. संज्ञाहीनता 3. {ला-अ.} निष्क्रियता; निश्चेष्टता।
प्रसूत
(सं.) [सं-पु.] 1. फूल 2. उत्पत्ति का साधन 3. चाक्षुष मन्वंतर का एक देवगण। [वि.] प्रसव किया हुआ; उत्पन्न; संजात।
प्रसूता
(सं.) [सं-स्त्री.] जच्चा; नवजात शिशु की माता; वह स्त्री जिसे कुछ समय पूर्व बच्चा पैदा हुआ हो।
प्रसूति
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. प्रसव 2. जच्चा; प्रसूता 3. संतान; संतति 4. उत्पत्ति।
प्रसून
(सं.) [सं-पु.] 1. फूल; पुष्प 2. फूल की कली। [वि.] 1. प्रसूत 2. उत्पन्न 3. संजात।
प्रसृत
(सं.) [वि.] 1. आगे बढ़ा हुआ 2. फैला हुआ 3. खिसका हुआ 4. भेजा हुआ 5. नम्र; विनीत 6. नियुक्त; लगा हुआ 7. लंबा 8. प्रचलित।
प्रसृष्ट
(सं.) [वि.] त्यागा हुआ; परित्यक्त।
प्रस्खलन
(सं.) [सं-पु.] स्खलन; पतन।
प्रस्तर
(सं.) [सं-पु.] 1. पत्थर 2. समतल स्थान 3. पत्तों का बिछौना या बिस्तर।
प्रस्तर कला
(सं.) [सं-स्त्री.] पत्थरों को काटछाँट या गढ़कर उनकी विशिष्ट आकृतियाँ बनाने की कला।
प्रस्तरण
(सं.) [सं-पु.] 1. आसन; बिछावन; सेज 2. बिछाना; फैलाना।
प्रस्तरफलक
(सं.) [सं-पु.] पत्थर का फलक; पत्थर का बोर्ड।
प्रस्तरिणी
(सं.) [सं-स्त्री.] सफ़ेद दूब।
प्रस्तरीभूत
(सं.) [वि.] 1. जो पत्थर की तरह हो गया हो 2. {ला-अ.} ऐसी विचारधाराएँ जो पुरातनपंथी होने के कारण निर्जीव पत्थर की तरह बेकार हो गई हों।
प्रस्तार
(सं.) [सं-पु.] 1. फैलाव 2. (पत्तों आदि का) बिछावन, बिस्तर या सेज 3. घास का जंगल या वन 4. समतल भूमि 5. सीढ़ी 6. एक प्रकार का ताल 7. वस्तुओं, अक्षरों,
संख्याओं आदि को अलग-अलग प्रकार की कतारों में रखना।
प्रस्ताव
(सं.) [सं-पु.] 1. कोई काम करने के लिए किसी के सामने रखा जाने वाला विचार, सुझाव या पेशकश; (प्रपोज़ल) 2. आरंभ; शुरू 3. भूमिका; प्रस्तावना 4. किसी सभा या
संस्था के सामने रखा जाने वाला औपचारिक सुझाव; (रिज़ोलूशन) 5. संसद आदि में किसी विचारणीय विषय पर वाद-विवाद के लिए प्रस्तुत सुझाव; विधेयक; (बिल) 6. प्रसंग;
प्रकरण; चर्चा 7. अवसर; मौका; (ऑफ़र)।
प्रस्तावक
(सं.) [वि.] 1. प्रस्ताव करने वाला; प्रस्तावकर्ता 2. प्रस्ताव को प्रस्तुत करने वाला; सुझाव देने वाला (विधानसभा, संसद आदि में)।
प्रस्तावकर्ता
(सं.) [सं-पु.] प्रस्ताव करने वाला व्यक्ति।
प्रस्तावना
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. (किसी पुस्तक आदि की) भूमिका; प्राक्कथन या आमुख 2. किसी निबंध, भाषण आदि का आरंभिक अंश 3. आरंभ 4. प्रस्ताव 5. अभिनय के पहले नाटक के
विषय का परिचय देने के लिए सूत्रधार के माध्यम से छेड़ा हुआ प्रसंग।
प्रस्तावित
(सं.) [वि.] 1. जिसका प्रस्ताव किया गया हो; जो किसी कार्य को करने हेतु रखा गया हो (विचार) 3. आरंभ किया हुआ; आरब्ध 4. वर्णित; कथित; (प्रपोज़्ड)।
प्रस्तुत
(सं.) [वि.] 1. जो उपस्थित या पेश किया गया हो 2. उपस्थित; मौजूद; (प्रजेंट) 3. तत्पर या तैयार होने वाला (कार्य) 4. विचाराधीन; विवादग्रस्त या प्रकरणप्राप्त
(विषय) 5. जिसकी चर्चा चल रही हो; प्रासंगिक 6. जिसकी आशा या इच्छा की गई हो 7. जो कार्य के रूप में किया गया हो 8. किसी प्रकार तैयार किया हुआ 9. कथित; उक्त
10. जिसकी स्तुति या प्रशंसा की गई हो 11. जो उपहार या भेंट में दिया गया हो 12. अभिनीत (नाटक)।
प्रस्तुतकर्ता
(सं.) [सं-पु.] प्रस्तुत करने वाला व्यक्ति।
प्रस्तुति
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. प्रस्तुत होने की अवस्था या भाव 2. भूमिका; प्रस्तावना 3. प्रशंसा 4. तैयारी; निष्पत्ति 5. उपस्थिति; मौजूदगी।
प्रस्तुतीकरण
(सं.) [सं-पु.] प्रस्तुत करने की क्रिया; प्रस्तुति।
प्रस्तोता
(सं.) [सं-पु.] 1. प्रस्तुत करने वाला व्यक्ति 2. प्रस्ताव करने वाला व्यक्ति; (रजिस्ट्रार) 3. वह जो इधर-उधर से सामग्री एकत्र कर लेख प्रस्तुत करे 4. उत्पादक
5. सामवेद का प्रथम भाग गाने वाला; ऋत्विक।
प्रस्थ
(सं.) [सं-पु.] 1. पर्वत के ऊपर की समतल भूमि या चौरस मैदान 2. समतल भूमि या मैदान 3. बत्तीस पल का एक प्राचीन परिमाण या मान 4. विस्तार 5. पहाड़ों का ऊँचा
किनारा। [वि.] 1. प्रस्थान करने वाला 2. दृढ़; स्थिर 3. फैलाने वाला 4. कहीं जाकर रहने वाला, जैसे- वानप्रस्थ।
प्रस्थान
(सं.) [सं-पु.] 1. किसी स्थान से दूसरे स्थान को जाना; चलना; गमन; रवानगी; (डिपार्चर) 2. सेना का युद्धक्षेत्र की ओर जाना; कूच 3. मार्ग; रास्ता 4. पद्धति;
विधि; तरीका 5. कर्मकांडी हिंदुओं की यात्रा संबंधी दोष हटाने की एक प्रथा 6. {ला-अ.} मृत्यु; मरण।
प्रस्थानित
(सं.) [वि.] प्रस्थान करने वाला; जो चला गया हो।
प्रस्थानी
(सं.) [वि.] कूच करने वाला; जाने वाला; रवाना होने वाला।
प्रस्थापक
(सं.) [सं-पु.] संसद, विधानसभा आदि में कोई प्रस्ताव रखने या पेश करने वाला व्यक्ति। [वि.] 1. प्रस्तावक; प्रस्ताव करने वाला; प्रस्तोता 2. प्रस्थापन करने वाला।
प्रस्थापन
(सं.) [सं-पु.] 1. किसी तथ्य, विषय या सिद्धांत को सिद्ध या प्रमाणित करना 2. प्रस्थान करने या भेजने की क्रिया या भाव 3. प्रयोग में लाना; उपयोग करना 4. कोई
कारख़ाना या यंत्र आदि स्थापित करना; संस्थापन; (इंस्टालेशन) 5. दृढ़ता या मज़बूती से जमाने की क्रिया 6. प्रेरणा।
प्रस्थापना
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. भेजना; प्रेषण करना 2. विधानसभा आदि में कोई प्रस्ताव लाना 3. वह प्रस्ताव जो प्रस्थापक द्वारा सभा आदि में रखा जाए 4. विशिष्ट रूप से
स्थापित करना।
प्रस्थापित
(सं.) [वि.] 1. जिसकी स्थापना हो चुकी हो 2. प्रेषित किया गया; भेजा गया 3. जो आगे बढ़ाया हुआ हो; प्रवर्तित।
प्रस्थित
(सं.) [वि.] 1. ठहरा या रुका हुआ; टिका हुआ 2. स्थिर; दृढ़ता से टिका हुआ 3. जो जाने को उद्यत हो 4. जिसे भेजा गया हो।
प्रस्पंदन
(सं.) [सं-पु.] 1. काँपने या हिलने की क्रिया 2. प्रकंपन; कँपकँपी; थरथराहट।
प्रस्फुट
(सं.) [वि.] 1. जो खिला हो; प्रफुल्ल 2. विकसित 3. (तथ्य या विषय) जो भली प्रकार से स्पष्ट हो; प्रकट; सुस्पष्ट 4. जो व्यक्त किया गया हो।
प्रस्फुटन
(सं.) [सं-पु.] 1. फूटना 2. विकसित होना 3. व्यक्त होना; प्रकट होना।
प्रस्फुटित
(सं.) [वि.] 1. फूटा या खिला हुआ 2. प्रकट; व्यक्त 3. जिसे स्पष्ट किया गया हो 4. विकसित 5. खुला हुआ।
प्रस्फुरण
(सं.) [सं-पु.] 1. फैलना; बिखरना 2. स्पष्ट होना; निकलना 3. कंपन; थरथराना; काँपना 4. चमकना।
प्रस्रव
(सं.) [सं-पु.] 1. धारा के रूप में निरंतर प्रवाहित होना या बहना; प्रवाह; धारा के रूप में बहाव 2. रिसना; चूना 3. बहने या चूने वाली धारा 4. स्नेह और वात्सल्य
की अधिकता के कारण स्तन या थन से निकलने वाला दूध।
प्रस्रवण
(सं.) [सं-पु.] 1. तरल पदार्थों की चूने या बहने की क्रिया या भाव 2. स्तन से निकलता हुआ दूध 3. पसीना; प्रस्वेद 4. पानी का सोता या झरना।
प्रस्वीकृत
(सं.) [वि.] 1. जो औपचारिक रूप से मान्यता प्राप्त हो 2. जो अधिकृत रूप से मान लिया गया हो।
प्रस्वेद
(सं.) [सं-पु.] 1. पसीना; स्वेद 2. त्वचा के रोम छिद्रों से निकलने वाला एक प्रकार का पानी जैसा द्रव।
प्रस्वेदी
(सं.) [वि.] 1. पसीने से तरबतर 2. पसीना लाने वाला।
प्रहत
(सं.) [सं-पु.] 1. आघात या प्रहार 2. पासा आदि फेंकने की क्रिया। [वि.] 1. आहत 2. जिसका वध किया गया हो; निहत 3. पीटा या मारा हुआ (ढोल आदि) 4. फैलाया हुआ;
प्रसारित 5. विद्वान 6. पराजित।
प्रहर
(सं.) [सं-पु.] पहर; एक दिन का आठवाँ भाग; तीन घंटे का समय।
प्रहरण
(सं.) [सं-पु.] 1. आघात; प्रहार; वार (लाठी, तलवार आदि से) 2. हथियार; अस्त्र-शस्त्र 3. बलपूर्वक छीनना 4. युद्ध; आक्रमण 5. परित्याग 6. फेंकना 7. एक प्रकार की
परदेदार गाड़ी; पालकी 8. पालकी में बैठने की जगह 9. ध्यान 10. मृदंग का एक प्रबंध।
प्रहरी
(सं.) [सं-पु.] 1. पहरेदार; देखरेख करने के लिए गश्त लगाने वाला; पहरा देने वाला 2. निश्चित अवधि पर घंटा बजाने वाला; घड़ियाली।
प्रहर्ष
(सं.) [सं-पु.] 1. अत्यधिक प्रसन्नता; आनंद या हर्ष 2. {ला-अ.} पुरुषेंद्रिय में तनाव या उत्तेजना आना।
प्रहर्षण
(सं.) [सं-पु.] 1. प्रसन्नता; हर्ष या आनंद 2. अति हर्षित या आनंदित करने की क्रिया 3. अभीष्ट की प्राप्ति 4. (काव्यशास्त्र) एक प्रकार का अलंकार। [वि.] 1.
अतिप्रसन्न या हर्षित करने वाला 2. पुलकित करने वाला।
प्रहर्षणी
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. हल्दी; हरिद्रा 2. तेरह अक्षरों की एक वर्णवृति।
प्रहसन
(सं.) [सं-पु.] 1. ज़ोर की हँसी; परिहास; दिल्लगी 2. नाटकों का एक प्रकार जो हास्य-व्यंग्य से युक्त होता है; भाण की तरह का हास्य रस प्रधान एक रूपक।
प्रहसित
(सं.) [वि.] हँसता हुआ। [सं-पु.] 1. हास्य; हँसी 2. ठहाका; अट्टहास 3. एक बुद्ध।
प्रहार
(सं.) [सं-पु.] 1. आघात; वार; ऐसी चोट या वार जिसकी वेदना असहृय हो 2. {ला-अ.} कंठहार।
प्रहारक
(सं.) [वि.] प्रहार करने वाला; प्रहारी।
प्रहारी
(सं.) [वि.] 1. प्रहार करने वाला 2. मारने वाला; नाशक।
प्रहार्य
(सं.) [वि.] 1. जिसपर प्रहार या आघात किया जा सके 2. हरण करने या छीनने योग्य।
प्रहास
(सं.) [सं-पु.] 1. हास्य; प्रहसन 2. ठहाका; अट्टहास 3. व्यंग्योक्ति 4. तिरस्कार 5. रंगों की चटक 6. नट 7. सोमतीर्थ का एक नाम।
प्रहित
(सं.) [वि.] 1. प्रेरित, भेजा हुआ 2. फेंका या चलाया हुआ 3. नियुक्त 4. निष्कासित 5. उपयुक्त।
प्रहेलक
(सं.) [सं-पु.] 1. लपसी 2. पुआ।
प्रहेलिका
(सं.) [सं-स्त्री.] पहेली; प्रवह्लिका।
प्रह्लाद
(सं.) [सं-पु.] 1. आह्लाद; प्रसन्नता; आनंद 2. (विष्णुपुराण) हिरण्याकशिपु नाम के राजा का एक पुत्र जो विष्णु भक्त था 3. एक प्राचीन स्थान।
प्रह्लादक
(सं.) [वि.] प्रसन्न करने वाला; पुलकित करने वाला; हर्षकारक।
प्रह्लादी
(सं.) [वि.] प्रसन्न होने वाला; पुलकित होने वाला।
प्रांगण
(सं.) [सं-पु.] 1. मकान के सामने की खुली जगह 2. आंगन 3. {ला-अ.} छोटा ढोल।
प्रांजल
(सं.) [वि.] 1. सरल या शुद्ध 2. खरा; ईमानदार 3. समतल; बराबर।
प्रांजलि
(सं.) [सं-स्त्री.] अंजलि, एक प्रकार की मुद्रा जिसमें दोनों हथेलियाँ जुड़ी हुई होती हैं। [वि.] जो हाथ जोड़े हो; अंजलीबद्ध।
प्रांत
(सं.) [सं-पु.] 1. किसी देश का कोई बड़ा भाग; प्रदेश 2. अंत; शेष भाग 3. छोर; किनारा 4. सीमा; हद 5. पृष्ठ भाग।
प्रांतपति
(सं.) [सं-पु.] 1. प्रांत या प्रदेश का प्रधान शासक 2. भारत के किसी राज्य का प्रधान शासक जो केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त किया जाता है; राज्यपाल।
प्रांतर
(सं.) [सं-पु.] 1. छाया आदि से रहित लंबा, निर्जन पथ, मार्ग या रास्ता 2. वन; जंगल 3. कोटर; पेड़ का खोखला भाग 4. दो गाँवों के बीच की ज़मीन 5. दो प्रदेशों के बीच
का वह स्थान जहाँ बसाहट न हो।
प्रांतीय
(सं.) [सं-पु.] प्रांतों या किसी संघ राज्य से सम्मिलित राज्यों को प्राप्त स्वराज्य जिसके अनुसार उन्हें आंतरिक विषयों संबंधी निर्णय करने या नीति निर्धारित
करने की स्वतंत्रता होती है। [वि.] प्रांत विशेष का; प्रांत संबंधी।
प्रांतीयता
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. प्रांतीय या क्षेत्रीय होने का भाव 2. अपने प्रांत पर अगाध श्रद्धाभाव; अपने प्रांत का विशेष या अतिरिक्त पक्षपात या मोह;
(प्रॉविंशलिज़म)।
प्रांशु
(सं.) [वि.] 1. ऊँचा; उच्च 2. लंबा।
प्राइम
(इं.) [वि.] 1. मुख्य; प्रधान 2. उत्कृष्ट; सर्वोत्तम 3. सर्वश्रेष्ठ 4. श्रेष्ठतम अवस्था; शिखर काल।
प्राइममिनिस्टर
(इं.) [सं-पु.] प्रधानमंत्री।
प्राइमरी
(इं.) [वि.] प्राथमिक; आरंभिक। [सं-पु.] वह स्कूल जिसमें आरंभिक शिक्षा दी जाए।
प्राइवेट
(इं.) [वि.] 1. व्यक्ति विशेष से संबद्ध 2. व्यक्ति विशेष का निजी जो औरों से छिपाया जाए; गुप्त; आपसी 3. गैरसरकारी, जैसे- प्राइवेट नौकरी।
प्राइवेट सेक्रेटरी
(सं.) [सं-पु.] किसी अधिकारी या बड़े आदमी का निजी सहायक जिसका मुख्य कार्य पत्र व्यवहार तथा उसके अन्य व्यक्तिगत कार्य देखना होता है।
प्राक
(सं.) [सं-पु.] पूर्व; पूरब। [वि.] 1. सामने का; अगला 2. पहले का 3. पूर्व का 4. पुराना। [अव्य.] आगे; पहले; पूर्व में।
प्राकट्य
(सं.) [सं-पु.] प्रकट या व्यक्त होने की अवस्था या भाव।
प्राकल्पनात्मक
(सं.) [वि.] 1. जो प्रकल्पना पर आधारित हो 2. प्रकल्पना संबंधी।
प्राकार
(सं.) [सं-पु.] 1. किसी स्थान, दुर्ग, इमारत आदि के चारों ओर बनाई जाने वाली दीवार चारदीवारी; परकोटा 2. घेरा।
प्राकृत
(सं.) [सं-स्त्री.] एक भाषा जिसका प्रयोग प्राचीन साहित्य में मिलता है। [वि.] 1. प्रकृति संबंधी; प्रकृति का 2. जो प्रकृति से उत्पन्न हो; नैसर्गिक; कुदरती;
प्राकृतिक 3. लौकिक; सांसारिक 4. स्वाभाविक 5. सामान्य।
प्राकृतवाद
(सं.) [सं-पु.] 1. दर्शन में प्राकृतिक वस्तुओं की वास्तविक सत्ता मानने का सिद्धांत 2. (कला तथा साहित्य के क्षेत्र में) प्रकृति में जो जैसा है, उसे वैसा ही
चित्रित करने का सिद्धांत, (नेचुरलिज़म)।
प्राकृतिक
(सं.) [वि.] 1. प्रकृति का; प्रकृति संबंधी 2. प्रकृति के किसी परिवर्तन या विकार से होने वाला 3. स्वाभाविक; सहज; मामूली 4. जो लौकिक हो; सांसारिक; भौतिक 5. जो
कृत्रिम, बनावटी या क्रूर न हो; नैसर्गिक; कुदरती; (नेचुरल)।
प्राकृतिक चिकित्सा
(सं.) [सं-स्त्री.] रोगों की चिकित्सा की एक पद्धति जिसमें प्रकृति में प्रचुर मात्रा में उपलब्ध तत्वों, जैसे- जल, मिट्टी, धूप आदि के उचित इस्तेमाल द्वारा रोग
का उपचार किया जाता है।
प्राक्कथन
(सं.) [सं-पु.] 1. पूर्व कथन 2. पुस्तक के विषय आदि के संबंध में पहले कही जाने वाली बात; प्रस्तावना; भूमिका।
प्राक्कलन
(सं.) [सं-पु.] 1. पूर्वानुमान; अंदाज़ा 2. संभावित व्यय का पहले से अनुमान लगाना; (एस्टीमेट)।
प्राक्कल्पना
(सं.) [सं-स्त्री.] किसी वस्तु के निर्माण के पहले की रूपरेखा; मसौदा; (हाइपोथिसिस)।
प्राक्तन
(सं.) [सं-पु.] भाग्य; प्रारब्ध। [वि.] पुराना; प्राचीन; पहले का।
प्राक्षेपिक
(सं.) [वि.] प्रक्षेप संबंधी।
प्राग
(सं.) [वि.] 1. पहले वाला 2. पहला या मुख्य माना जाने वाला।
प्रागैतिहासिक
(सं.) [वि.] जिस समय का निश्चित और पूरा इतिहास मिलता है उससे पूर्व काल का; इतिहास में वर्णित और निश्चित काल से पहले का।
प्राचार्य
(सं.) [सं-पु.] 1. महाविद्यालय का सर्वोच्च पद या पदाधिकारी 2. महाविद्यालय की समस्त व्यवस्था का संचालन कर्ता।
प्राची
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. पूर्व दिशा; पूरब 2. (कर्मकांड) पूज्य एवं पूजक के बीच की दिशा।
प्राचीन
(सं.) [वि.] जो काफ़ी साल पहले अस्तित्व में आया हो; पुरातन; पुराना।
प्राचीनतम
(सं.) [वि.] सर्वाधिक पुराना; पुरातन।
प्राचीनता
(सं.) [सं-स्त्री.] प्राचीन होने की अवस्था; आदिमता; पुरातनता।
प्राचीर
(सं.) [सं-पु.] ऐसी ऊँची तथा पक्की दीवार जो किले, नगर आदि के रक्षार्थ उसके चारों ओर बनाई गई हो; परकोटा; चहारदीवारी।
प्राचुर्य
(सं.) [सं-पु.] प्रचुर होने की अवस्था या भाव; प्रचुरता; अधिकता; बहुतायत।
प्राच्य
(सं.) [सं-पु.] 1. (भारत के संदर्भ में) पूर्वी भूभाग बिहार, मगध 2. प्राचीन भारत में शरावती नदी के पूर्व के देशों (कोशल, काशी, विदेह तथा अंग देश) की सामूहिक
संज्ञा 3. उक्त देश के निवासी। [वि.] 1. पूर्वीय या एशिया महाद्वीप के देशों से संबंध रखने वाला 2. पूर्व या प्राची दिशा से संबंध रखने वाला 3. प्राचीन; पुराना
4. 'पाश्चात्य' का विलोम 5. सामने वाला; (ओरिएंटल)।
प्राच्यविद
(सं.) [सं-पु.] 1. प्राच्यविद्या का जानकार; प्राच्यवेत्ता 2. एशिया के पूर्वी देशों के इतिहास, धर्म, दर्शन, संस्कृति, भाषा एवं साहित्य संबंधी ज्ञान का
विशेषज्ञ।
प्राच्यविद्या
(सं.) [सं-स्त्री.] एशिया के पूर्वी देशों के इतिहास, धर्म, दर्शन, संस्कृति, भाषा एवं साहित्य का ज्ञान।
प्राच्या
(सं.) [सं-स्त्री.] प्राच्य देश की भाषा (अर्धमागधी और मागधी इसी का विकसित रूप है)।
प्राजापत्य
(सं.) [वि.] 1. (पुराण) प्रजापति का; प्रजापति संबंधी 2. प्रजापति से उत्पन्न।
प्राजापत्य विवाह
(सं.) [सं-पु.] 1. (हिंदू धर्मशास्त्र) आठ प्रकार के विवाह में से एक 2. उक्त विवाहों में पिता अपने पुत्री को यह कहकर वर के हाथ में देता था कि तुम लोग मिलकर
धर्म का पालन करो।
प्राजी
(सं.) [सं-पु.] एक प्रकार का शिकारी पक्षी; बाज़।
प्राज्ञ
(सं.) [वि.] 1. बुद्धिमान; दक्ष 2. चतुर; होशियार।
प्राज्ञा
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. बुद्धि 2. वह स्त्री जो विद्वान हो।
प्राज्ञी
(सं.) [सं-स्त्री.] विदुषी; बहुत पढ़ी-लिखी या विद्वान स्त्री।
प्राण
(सं.) [सं-पु.] 1. श्वास; साँस 2. वह वायु या हवा जो साँस के साथ अंदर जाती और बाहर निकलती है 3. वह शक्ति जो जीव-जंतुओं, पेड़-पौधों आदि में रहकर उन्हें जीवित
रखती और उन्हें अपनी सब क्रियाएँ चलाने में समर्थ करती है; जीवनशक्ति; जान। [मु.] -गले तक आना : मरने को होना। -निकलना या छूटना : जीवन का अंत होना; मरना। -देना (किसी पर) : किसी के लिए जान देने तक के लिए तैयार रहना; किसी के लिए बहुत
अधिक परिश्रम या प्रयत्न करना। -निकलना : मरना या मृत्यु-सा कष्ट होना। -लेना : मार डालना। -हरना : मार
देना; उत्साहहीन कर देना। -पखेरू उड़ जाना : मर जाना; मृत्यु को प्राप्त होना।
प्राणघात
(सं.) [सं-पु.] मार डालने की क्रिया; मारण।
प्राणघातक
(सं.) [वि.] 1. प्राण लेने या मार डालने वाला; जानलेवा 2. (ऐसा विष या पदार्थ) जिसके सेवन से प्राण निकल जाएँ।
प्राणतत्व
(सं.) [सं-पु.] 1. प्राण; प्राणशक्ति; श्वास 2. {ला-अ.} वह तत्व या कारक जो किसी रचना या कृति के शिल्प और महत्व को बढ़ाता हो।
प्राणत्याग
(सं.) [सं-पु.] 1. प्राण छोड़ देने की क्रिया; मृत्यु 2. आत्महत्या।
प्राणदंड
(सं.) [सं-पु.] वह दंड जिसमें किसी के प्राण ले लिए जाते हैं; मौत की सजा; मृत्युदंड; (कैपिटल पनिशमेंट)।
प्राणदंडित
(सं.) [वि.] जिसे प्राणदंड मिला हो या जिसे मौत की सज़ा हुई हो।
प्राणदाता
(सं.) [वि.] 1. प्राणों का संचार करने वाला; प्राणद 2. किसी की जान बचाने वाला।
प्राणदात्री
(सं.) [वि.] प्राण देने वाली।
प्राणदान
(सं.) [सं-पु.] 1. किसी में प्राण डालना; संजीवन 2. किसी को मरने या मारे जाने से बचाना 3. प्राणदंड से मुक्त कर देना; जीवनदान।
प्राणदायक
(सं.) [वि.] 1. जान बचाने वाला; प्राण दाता 2. स्वास्थ्य की रक्षा करने वाला 3. जीवन शक्ति बढ़ाने वाला।
प्राणधारण
(सं.) [सं-पु.] 1. जीवन धारण करने की क्रिया; प्राणशक्ति 2. जीवन का सहारा।
प्राणन
(सं.) [सं-पु.] 1. श्वास 2. जीवन 3. इस प्रकार से हिलना-डुलना कि जीवित होने का प्रमाण मिले।
प्राणनाथ
(सं.) [सं-पु.] 1. पारंपरिक दृष्टि से पति या प्रेमी के लिए प्रयोग होने वाला शब्द 2. वह जो प्राणों का मालिक हो 3. प्रियतम; प्रेमपात्र।
प्राणनाश
(सं.) [सं-पु.] 1. मौत; मृत्यु; मरण 2. अंत; विनाश; नाश।
प्राणनाशक
(सं.) [वि.] जीवनाशक; घातक; मारक।
प्राणपण
(सं.) [सं-पु.] 1. जान की बाज़ी 2. जीवन का दाँव।
प्राणपति
(सं.) [सं-पु.] प्रिय व्यक्ति; प्यारा; प्रियतम; पति।
प्राणप्रतिष्ठा
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. किसी में प्राण डालकर सजीव बनाने की क्रिया 2. किसी देवी-देवता आदि की मूर्ति की स्थापना करके उसकी पूजा-अर्चना आरंभ करने से पहले
मंत्रोंच्चार आदि से प्रतिष्ठित करना; किसी प्रतिमा में मंत्रों आदि के द्वारा देवता का किया जाने वाला आहवान।
प्राणप्रिय
(सं.) [सं-पु.] 1. प्रियतम; प्रेमी; प्रेमिका 2. पति। [वि.] प्राणों के समान प्रिय या प्यारा।
प्राणप्रिया
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. प्राणों के समान परम प्रिय स्त्री; प्राणप्यारी 2. प्रियतमा; प्रेमिका 3. पत्नी।
प्राणबेधी
(सं.) [वि.] 1. हृदय को बेधने वाला 2. कर्कश।
प्राणभय
(सं.) [सं-पु.] मृत्यु होने की आशंका या भय; जान जाने का भय या डर या भय की स्थिति।
प्राणमय
(सं.) [वि.] जिसमें प्राण या जीवन शक्ति हों; सजीव; जानदार; प्राणवान; जीवित।
प्राणरक्षा
(सं.) [सं-पु.] जीवन रक्षा करने की क्रिया या अवस्था; आत्मरक्षा।
प्राणलेवा
(सं.) [वि.] 1. ऐसा हमला जिससे जीवन संकट में पड़ जाए; जानलेवा; प्राणघाती; मारक 2. जिससे जान जा सकती हो (वस्तु, व्यक्ति आदि)।
प्राणवत्ता
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. जीवन शक्ति 2. प्राणवान होने का भाव।
प्राणवान
(सं.) [वि.] 1. जिसमें प्राण हों; जीवित 2. जीव; प्राणी 3. {ला-अ.} उत्साही; चुस्त; सक्रिय।
प्राणवायु
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. वातावरण में पाई जाने वाली एक प्रकार की गैस जो जीवन के लिए अत्यंत आवश्यक है; (ऑक्सीजन) 2. प्राणों का पोषण करने वाली वायु।
प्राणांत
(सं.) [सं-पु.] 1. प्राणों का अंत; जीवन का अंत 2. नाश; मृत्यु।
प्राणांतक
(सं.) [वि.] 1. प्राणों का अंत करने वाला; प्राण लेने या मार डालने वाला; हत्यारा 2. मृत्यु जैसा कष्ट देने वाला, जैसे- प्राणांतक परिश्रम 3. मारक; विषैला।
प्राणांतकारी
(सं.) [सं-पु.] 1. प्राणों का अंत करने वाला या मार डालने वाला व्यक्ति 2. वह जो मृत्यु के समान कष्ट दे।
प्राणांतिक
(सं.) [वि.] 1. प्राण लेने वाला 2. घातक; खतरनाक 3. जीवन के अंत तक रहने वाला।
प्राणाघात
(सं.) [सं-पु.] 1. वध; हत्या 2. वह आघात या प्रहार जो किसी के प्राण लेने के उद्देश्य से किया गया हो।
प्राणाचार्य
(सं.) [सं-पु.] वैद्य; आयुर्वेद पद्धति से उपचार करने वाला व्यक्ति।
प्राणाधार
(सं.) [सं-पु.] 1. प्रेमपात्र 2. प्रिय; प्रियतम; स्त्री का पति। [वि.] जिसके कारण प्राण बचे हुए हों; अत्यंत प्रिय; प्यारा।
प्राणाधिक
(सं.) [वि.] प्राणों से भी अधिक प्रिय; बहुत प्यारा; प्राणाधार।
प्राणायन
(सं.) [सं-पु.] ज्ञानेंद्रिय।
प्राणायाम
(सं.) [सं-पु.] 1. संयमित तरीके से श्वास लेने की क्रिया 2. (योग) प्राण संयम; श्वास अनुशासन; श्वास-प्रश्वास का नियंत्रण या नियमन 3. योग के आठ अंगों में से
एक।
प्राणायामी
(सं.) [वि.] 1. प्राणायाम संबंधी 2. नियमित रूप से प्राणायाम करने वाला।
प्राणावरोध
(सं.) [सं-पु.] श्वास को अंदर खींचकर रोककर रखना; श्वासरोध; श्वासावरोध।
प्राणासन
(सं.) [सं-पु.] 1. एक प्रकार का आसन 2. योग क्रिया की एक अवस्था।
प्राणाहुति
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. किसी महान उद्देश्य के लिए अपने जीवन का बलिदान करना; शहादत 2. भोजन के आरंभ में मंत्र आदि पढ़कर पाँच ग्रासों के रूप में दी जाने वाली
आहुति।
प्राणी
(सं.) [सं-पु.] 1. जीव-जंतु 2. मनुष्य; व्यक्ति। [वि.] 1. जिसमें जीवन हो 2. जिसमें प्राण हों।
प्राणीमंडल
(सं.) [सं-पु.] जीवमंडल; (बायोस्फ़ीयर)।
प्राणीमात्र
(सं.) [सं-पु.] प्राणीजगत।
प्राणीवाचक
(सं.) [वि.] सजीव पदार्थ का ज्ञान कराने वाला।
प्राणीविज्ञान
(सं.) [सं-पु.] वह विज्ञान या शास्त्र जिसमें जीव-जंतुओं या प्राणियों के उद्भव, स्वरूप, विकास तथा वर्गों-विभेदों का अध्ययन-विवेचन होता है।
प्राणीशास्त्र
(सं.) [सं-पु.] वह विज्ञान या शास्त्र जिसमें जीव-जंतुओं का अध्ययन तथा विश्लेषण किया जाता है; प्राणीविज्ञान।
प्राणेश
(सं.) [सं-पु.] 1. वह व्यक्ति जिससे प्रेम हुआ हो; प्रियतम; प्रेमपात्र 2. पति के लिए एक संबोधन।
प्राणेश्वर
(सं.) [सं-पु.] 1. परम प्रिय व्यक्ति, प्रियतम 2. पति।
प्राणेश्वरी
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. पत्नी; स्वामिनी 2. परम प्रिया, प्रियतमा।
प्राणोत्सर्ग
(सं.) [सं-पु.] 1. किसी महान उद्देश्य के लिए प्राणों का उत्सर्ग या त्याग करना; आत्मबलिदान 2. मृत्यु का वरण करने का भाव।
प्रातः
(सं.) [सं-पु.] सुबह; भोर। [अव्य.] सवेरे; तड़के।
प्रातःकर्म
(सं.) [सं-पु.] प्रातःकाल किए जाने वाले कार्य, जैसे- शौच, स्नान आदि।
प्रातःकाल
(सं.) [सं-पु.] सुबह; भोर; सूर्योदय का समय; पौ फटने का समय।
प्रातःस्मरणीय
(सं.) [वि.] 1. प्रातः उठते ही स्मरण करने के योग्य 2. बहुत श्रेष्ठ; पूज्य; पूजनीय; आदरणीय।
प्रातर
(सं.) [अव्य.] प्रभात के समय; सवेरे; तड़के।
प्रातिकूल्य
(सं.) [सं-पु.] 1. प्रतिकूल या विरुद्ध होने की अवस्था या भाव; प्रतिकूलता 2. इस बात का विचार कि प्रतिकूल अवस्था में कार्य कब और कैसे किया जाए।
प्रातिज्ञ
(सं.) [सं-पु.] वह विषय जिसपर तर्क एवं कुतर्क किया जाए।
प्रातिनिधिक
(सं.) [सं-पु.] 1. प्रतिनिधि 2. स्थानापन्न। [वि.] 1. प्रतिनिधि संबंधी; प्रतिनिधि का 2. प्रतिनिधि के रूप में होने वाला।
प्रातिपद
(सं.) [वि.] 1. प्रतिपदा का; प्रतिपदा संबंधी 2. आरंभिक 3. प्रतिपदा के दिन होने वाला।
प्रातिपदिक
(सं.) [सं-पु.] (संस्कृत व्याकरण) धातु और प्रत्यय से भिन्न कोई अर्थवान शब्द, जैसे- वृक्ष, फल आदि।
प्रातिभ
(सं.) [वि.] 1. प्रतिभा का; प्रतिभा संबंधी 2. प्रतिभावान; प्रतिभायुक्त 3. प्रतिभाजन्य 4. मानसिक; बौद्धिक। [सं-पु.] प्रतिभाशाली व्यक्ति।
प्रातिभासिक
(सं.) [वि.] 1. प्रतिभास संबंधी; अनुरूपक 2. जो यथार्थ में न हो लेकिन भ्रमवश महसूस होता हो 3. जो अस्तित्व में न हो; जिसका अस्तित्व भ्रममूलक हो 4. अविद्यामूलक
5. जो वास्तविक न हो।
प्रातिरूपिक
(सं.) [वि.] 1. समान रूप का 2. नकली।
प्रातिशाख्य
(सं.) [सं-पु.] ऐसा ग्रंथ जिसमें वेदों की किसी शाखा के स्वर, पद, संहिता, संयुक्त वर्णों के उच्चारण आदि पर विचार किया जाता है।
प्रातिहार
(सं.) [सं-पु.] दे. प्रतिहार।
प्राथमिक
(सं.) [वि.] 1. आरंभ का; आरंभिक 2. प्रथम संबंधी 3. सबसे अधिक महत्व का; मुख्य 4. सबसे पहले होने वाला; सर्वप्रथम 5. पहले का; (प्रिलिमिनरी)।
प्राथमिकता
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. किसी कार्य, बात या व्यक्ति को औरों से पहले दिया जाने या मिलने वाला अवसर या स्थान; अग्रता; प्रथमता 2. प्रथम स्थान में होने या रखे जाने
की अवस्था या भाव; प्राथमिक होने का भाव।
प्रादुर्भाव
(सं.) [सं-पु.] 1. जन्म धारण कर अस्तित्व में आने का भाव 2. उत्पत्ति 3. पुनः, दुबारा या नए सिरे से अस्तित्व में आना या पनपना।
प्रादुर्भूत
(सं.) [वि.] 1. जिसका प्रादुर्भाव हुआ हो; जो प्रकट हुआ हो; सामने आया हुआ 2. उत्पन्न; जन्मा हुआ 3. उत्पादित; विकसित।
प्रादेश
(सं.) [सं-पु.] 1. प्रदेश; स्थान; जगह 2. अँगूठे से प्रारंभ कर तर्जनी तक की लंबाई का एक मान 3. तर्जनी तथा अँगूठे का बीच का भाग।
प्रादेशिक
(सं.) [वि.] 1. प्रदेश संबंधी; प्रदेश का; प्रांतिक 2. प्रसंगानुसार; विषयानुसार 3. सीमित; स्थानिक; (टेरिटोरियल)।
प्रादेशिकता
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. क्षेत्रीयता; प्रांतीयता 2. अपने प्रदेश के प्रति विशेष पक्षपात या मोह रखने वाली वह संकुचित भावना या मानसिकता जिसमें अन्य प्रदेशों के
प्रति उदासीनता तथा उपेक्षा का भाव होता है।
प्रादेशिक सेना
(सं.) [सं-स्त्री.] किसी प्रदेश या क्षेत्र विशेष में स्थानीय सुरक्षा और शांति व्यवस्था आदि के लिए तैयार की जाने वाली नागरिकों की सेना; (टेरिटोरियल आर्मी)।
प्राधान्य
(सं.) [सं-पु.] 1. प्रधान होने की अवस्था या भाव, प्रमुखता 2. वह स्थान या स्थिति जिसमें किसी चीज़ की अधिकता होती है; बाहुल्य।
प्राधिकरण
(सं.) [सं-पु.] 1. कोई काम करने या आदेश देने का अधिकार प्राप्त करना 2. विशेष अधिकार प्राप्त व्यक्तियों का समूह।
प्राधिकार
(सं.) [सं-पु.] 1. कोई काम करने या आदेश देने का आधिकार 2. वह अधिकार जो किसी अधिकारी को अपने पद से प्राप्त होता है; (अथॉरिटी)।
प्राधिकार पत्र
(सं.) [सं-पु.] किसी अधिकारी आदि को कोई काम करने या आदेश देने का अधिकार प्रदान करने वाला पत्र; (अथॉरिटी लेटर)।
प्राधिकारी
(सं.) [सं-पु.] विशेष अधिकार प्राप्त व्यक्ति; अधिकारी।
प्राधिकृत
(सं.) [वि.] 1. जिसे विधिविहित अधिकार प्राप्त हो 2. जिसके लिए या जिसके संबंध में प्राधिकार मिला हो; (अथॉराइज़्ड)।
प्राधिदत्त
(सं.) [वि.] अधिकार पूर्वक दिया हुआ।
प्राध्यापक
(सं.) [सं-पु.] 1. किसी विषय का विद्वान अध्यापक; प्रवक्ता; व्याख्याता; (लेक्चरर) 2. विश्वविद्यालय या महाविद्यालय का उच्चश्रेणी का अध्यापक; (प्रोफ़ेसर)।
प्राध्यापिका
(सं.) [सं-स्त्री.] महिला प्राध्यापक।
प्रापक
(सं.) [वि.] 1. प्राप्त करने वाला; (रिसीवर) 2. प्राप्त होने या मिलने वाला 3. पहुँचाने वाला 4. पाने वाला या चुकाने वाला; आदायक (रुपया, पैसा आदि)।
प्राप्त
(सं.) [वि.] 1. मिला या पाया हुआ; लब्ध 2. अर्जित या हस्तगत किया हुआ (अधिकार) 3. सामने आया हुआ; उपस्थित 4. जो अनुभूत हुआ हो।
प्राप्तकर्ता
(सं.) [सं-पु.] 1. पाने वाला व्यक्ति 2. वह जिसे कोई वस्तु प्राप्त हो।
प्राप्तव्य
(सं.) [वि.] 1. जो प्राप्त हो सके; पाने योग्य; प्राप्य 2. जो मिलने को हो; मिलने योग्य।
प्राप्तांक
(सं.) [सं-पु.] किसी परीक्षा या प्रतियोगिता आदि में प्राप्त किए गए अंक।
प्राप्ताधिकार
(सं.) [सं-पु.] 1. वह विशेष अधिकार जो सीमित लोगों को प्राप्त हो 2. संस्था, वर्ग आदि द्वारा प्राप्त अधिकार; (प्रिविलेज)।
प्राप्ति
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. पाया जाना; हासिल होना; मिलना 2. अधिकार में आना; उपलब्धि 3. अधिगम; अर्जन; उपार्जन 4. लाभ; फ़ायदा 5. पहुँच 6. संगति; मेल 7. भाग्य 8. आय;
आमदनी 9. आठ सिद्धियों में से एक 10. जरासंध की पुत्री जिसका विवाह कंस से हुआ था 11. (ज्योतिष) वह स्थिति जिसमें चंद्रमा ग्यारहवें स्थान पर हो 12. (पुराण)
कामदेव की एक पत्नी 13. नाटक का सुखद उपसंहार; फलागम।
प्राप्तिका
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. वह पत्र जिसपर किसी वस्तु की प्राप्ति या पहुँच का उल्लेख होता है; प्राप्तिपत्र 2. रसीद; पावती; (रिसीट)।
प्राप्ति पत्र
(सं.) [सं-पु.] किसी वस्तु आदि के प्राप्त होने का पत्र; पावती।
प्राप्त्याशा
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. पाने या मिलने की आशा 2. प्राप्ति की उम्मीद।
प्राप्य
(सं.) [वि.] 1. जो कहीं से या किसी से प्राप्त हो सकता हो; प्राप्त करने के योग्य 2. जो मिल सके; मिलने के योग्य 3. जिस तक पहुँच हो सके; गम्य 4. जो बाकी निकलता
हो और जिसे पाने का किसी को अधिकार हो (उधार दी हुई राशि या बेची हुई चीज़ का मूल्य)।
प्राबल्य
(सं.) [सं-पु.] 1. प्रबलता; प्रधानता 2. शक्ति 3. अधिकता या दबाव।
प्राबोधक
(सं.) [सं-पु.] दे. प्रबोधक।
प्राभाविक
(सं.) [वि.] प्रभाव दिखाने वाला; प्रभाव उत्पन्न करने वाला; (इफ़ेक्टिव)।
प्राभियोजक
(सं.) [सं-पु.] किसी के विरुद्ध अभियोग चलाने वाला व्यक्ति।
प्राभियोजन
(सं.) [सं-पु.] किसी के विरुद्ध अपराध का कोई अभियोग या मामला; (प्रॉसीक्यूशन)।
प्रामंडलिक
(सं.) [वि.] 1. प्रमंडल संबंधी 2. कई मंडल या जिलोंवाला।
प्रामाणिक
(सं.) [वि.] 1. जो प्रमाण के रूप में माना जाता हो या माना जा सकता हो 2. जो शास्त्रों आदि द्वारा प्रमाणित या सिद्ध हो 3. जिसकी सत्यता पर कोई संदेह न हो 4.
सत्य 5. विश्वसनीय।
प्रामाणिकता
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. प्रमाणिक होने का गुण या भाव 2. किसी वस्तु आदि के संदर्भ में अनुभव के आधार पर निष्कर्ष न प्रस्तुत करने अपितु उसे परीक्षण के उपरांत
स्वीकार करने की अवस्था।
प्रामाण्य
(सं.) [सं-पु.] 1. प्रमाण का भाव 2. विश्वसनीयता 3. शास्त्रसिद्ध होना 4. मान-मर्यादा।
प्रामादिक
(सं.) [वि.] 1. जो प्रमाद या गंभीरता के अभाव से हुआ हो; प्रमादजनित 2. प्रमाद संबंधी; प्रमाद का 3. दूषित।
प्रायः
(सं.) [अव्य.] 1. करीब-करीब; लगभग 2. अक्सर; अधिकतर 3. बीच-बीच में।
प्रायद्वीप
(सं.) [सं-पु.] ज़मीन का वह भाग जो तीन ओर से पानी से घिरा हो और एक ओर ज़मीन से लगा हो।
प्रायशः
(सं.) [अव्य.] प्रायः; अक्सर; बहुधा; अधिकतर।
प्रायश्चित
(सं.) [सं-पु.] 1. अपने किसी व्यवहार, भूल, दोष आदि के कारण होने वाला दुख या कष्ट; पछतावा 2. पाप का मार्जन करने के लिए किया जाने वाला शास्त्रविहित कर्म 3.
दोषमुक्त होने के लिए अपनी इच्छा से दुख भोगना।
प्रायिक
(सं.) [वि.] 1. जो नियमित रूप से या अक्सर होता हो 2. प्रायः या बहुधा होने वाला; सामान्य 3. अनुमान या संभावना की दृष्टि से बहुत कुछ उचित; संभव।
प्रायिकता
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. प्रायिक होने की अवस्था या भाव 2. प्रायः या बहुधा होने की अवस्था।
प्रायोगिक
(सं.) [वि.] 1. प्रयोग संबंधी; व्यवहार संबंधी; व्यावहारिक 2. जिसका इस्तेमाल किया जा सके 3. क्रियात्मक 4. नित्य उपयोग में लाया जाने वाला 5. प्रयोग तथा
परीक्षण पर आधारित; प्रायोगिक।
प्रायोजक
(सं.) [सं-पु.] 1. रेडियो, दूरदर्शन आदि के कार्यक्रम को आर्थिक सहयोग देने वाली वह कंपनी जिसके बदले उसके उत्पादों का विज्ञापन किया जाता है 2. प्रतियोगिता आदि
का आयोजन करने वाला; आयोजक व्यक्ति या कोई समूह; (स्पॉन्सर)।
प्रायोजन
(सं.) [सं-पु.] किसी व्यक्ति या व्यावसायिक समूह (कंपनी) द्वारा अपने उत्पाद के प्रचार हेतु किसी कार्यक्रम या आयोजन को करने के लिए किया जाने वाला आर्थिक
सहयोग; तत्वाधान; सौजन्य; (स्पॉन्सरशिप)।
प्रायोजित
(सं.) [वि.] 1. विशेष प्रकार से आयोजित; जो किसी उद्देश्य से आयोजित किया जाए 2. किसी उत्पाद के विज्ञापन और बिक्री के उद्देश्य से आयोजित होने वाला
(कार्यक्रम)।
प्रारंभ
(सं.) [सं-पु.] 1. किसी काम या बात का आरंभ 2. किसी बात का पहला अंश।
प्रारंभण
(सं.) [सं-पु.] आरंभण; प्रारंभ या शुरू करना।
प्रारंभिक
(सं.) [वि.] 1. शुरुआत का; पहले का; प्राथमिक 2. आदिम।
प्रारंभीय
(सं.) [वि.] 1. प्रारंभ; आरंभ या शुरू का 2. आरंभ में होने वाला।
प्रारब्ध
(सं.) [सं-पु.] 1. भाग्य; नियति 2. पूर्वजन्म या पूर्वकाल में किए हुए अच्छे और बुरे वे कर्म जिनका वर्तमान में फल भोगा जा रहा हो 3. उक्त कर्मों का फल भोग।
प्रारब्धी
(सं.) [वि.] अच्छी किस्मतवाला; भाग्यशाली; भाग्यवान।
प्रारूप
(सं.) [सं-पु.] 1. किसी योजना, प्रस्ताव, विधेयक आदि का वह प्राथमिक रूप जिसमें आगे आवश्यक होने पर संशोधन आदि किया जा सके; मसौदा; ख़ाका; प्रालेख; (ड्राफ़्ट) 2.
किसी यंत्र आदि के पूर्ण विकसित रूप के पहले का अविकसित या भद्दा रूप।
प्रारूपिक
(सं.) [वि.] 1. जो गुण और स्वरूप आदि में अपने वर्ग की समस्त विशेषताओं से युक्त हो तथा अपनी जाति या वर्ग के प्रतिनिधि का कार्य करता हो; प्रारूपिक; (टिपिकल)
2. प्रारूप संबंधी।
प्रारूपी
(सं.) [वि.] प्रारूपिक।
प्रार्थना
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. निवेदन; विनती; (रिक्वेस्ट) 2. किसी से कुछ माँगना 3. भक्ति और श्रद्धापूर्वक ईश्वर, देवता आदि से किया जाने वाला निवेदन; स्तुति 4. किसी
के अथवा सबके कल्याण के लिए कही जाने वाली बात 4. (तंत्र) प्रार्थना के समय की जाने वाली एक विशिष्ट मुद्रा।
प्रार्थनागीत
(सं.) [सं-पु.] परमात्मा, गुरू आदि के प्रति भक्तिपूर्ण गीत।
प्रार्थनापत्र
(सं.) [सं-पु.] 1. वह पत्र जिसमें किसी से किसी आवश्यकता के लिए प्रार्थना की गई हो 2. निवेदनपत्र; अरज़ी।
प्रार्थनालय
(सं.) [सं-पु.] सामूहिक रूप से प्रार्थना करने का स्थान।
प्रार्थनासभा
(सं.) [सं-पु.] प्रार्थना के लिए समूह में एकत्रित लोग।
प्रार्थनीय
(सं.) [वि.] 1. जिसके लिए प्रार्थना की जाए 2. प्रार्थना संबंधी। [सं-पु.] द्वापर युग का एक नाम।
प्रार्थित
(सं.) [वि.] 1. जिसके लिए प्रार्थना की गई हो; माँगा हुआ; याचित 2. जिसकी चाह या तलाश हो 3. जिसपर आक्रमण किया गया हो; आक्रांत 4. जिसको मार दिया गया हो या
जिसपर आघात किया गया हो; आहत 5. जिसकी इच्छा की गई हो; आकांक्षित।
प्रार्थी
(सं.) [वि.] 1. प्रार्थना या निवेदन करने वाला; याचक; निवेदक 2. माँगने वाला 3. चाहने वाला; इच्छुक 4. उम्मीदवार।
प्रालंब
(सं.) [सं-पु.] 1. सीने तक लटकने वाली एक प्रकार की माला 2. रस्सी आदि के ढंग की कोई चीज़ जो किसी ऊँची वस्तु में टँगी और लटकती हो 3. मोतियों का हारनुमा एक
आभूषण 4. एक तरह का कद्दू।
प्रालेख
(सं.) [सं-पु.] किसी प्रस्ताव, योजना, लेख या विधान आदि का वह प्राथमिक रूप जिसमें आवश्यक काँट-छाँट या संशोधन किया जा सकता है, कच्चा लेख; मसौदा; ख़ाका;
(ड्राफ़्ट)।
प्रालेखक
(सं.) [सं-पु.] वह जो लेखों के पांडुलेख या प्रालेख लिखने का काम करता है।
प्रालेखन
(सं.) [सं-पु.] 1. लेखों के पांडुलेख या प्रालेख तैयार करने का काम 2. काँट-छाँट की जरूरत वाला आलेख या मसौदा लिखने का काम; (ड्राफ़्टिंग)।
प्रालेय
(सं.) [सं-पु.] 1. तुषार; पाला 2. हिम; बरफ़ 3. वह समय जब उत्तरी ध्रुव पर अत्यधिक हिम पड़ने से सब पदार्थ और वनस्पतियाँ नष्ट हो जाती हैं। [वि.] प्रलय संबंधी।
प्रावधान
(सं.) [सं-पु.] 1. नियम; कानून; व्यवस्था 2. किसी कानून के साथ कोई शर्त रख देने का कार्य; उपबंध; (प्रॉविज़न)।
प्रावालिक
(सं.) [सं-पु.] प्रवाल या मूँगे का व्यापार करने वाला व्यक्ति।
प्रावासिक
(सं.) [वि.] 1. यात्रा के अनुकूल 2. प्रवास के उपयुक्त।
प्राविडेंट फंड
(इं.) [सं-पु.] भविष्य निधि।
प्राविधानिक
(सं.) [वि.] 1. प्रावधान से संबंधित 2. प्रावधान के रूप में होने वाला।
प्राविधिक
(सं.) [वि.] 1. किसी कला, शिल्प आदि की विशेष कार्यविधि या प्रक्रिया संबंधी 2. प्रविधि युक्त; प्रविधिवाला; प्रक्रिया संबंधी; (टेकनीकल)।
प्रावृत
(सं.) [वि.] 1. आवृत; ढका हुआ 2. घिरा हुआ।
प्रावृतिक
(सं.) [सं-पु.] संदेशवाहक; दूत। [वि.] 1. प्रवृति संबंधी 2. जानकार 3. गौण।
प्रावेशन
(सं.) [सं-पु.] निर्माणशाला; कारख़ाना। [वि.] जो प्रवेश के समय दिया या किया जाए।
प्रावेशिक
(सं.) [वि.] 1. प्रवेश संबंधी 2. जिसके कारण या जिसके द्वारा प्रवेश मिले 3. प्रवेश का साधन या कारण 4. जिसमें घुसने की आदत हो।
प्राश
(सं.) [सं-पु.] 1. आहार; भोजन 2. भोजन करना 3. चखना; स्वाद लेना।
प्राशक
(सं.) [वि.] खाने वाला; भोजन करने वाला।
प्राशन
(सं.) [सं-पु.] 1. भोजन; खाना 2. खाने या खिलाने की क्रिया या अवस्था।
प्राशी
(सं.) [वि.] 1. प्राशन करने वाला; खाने वाला 2. चखने वाला।
प्राश्निक
(सं.) [सं-पु.] 1. प्रश्नकर्ता; प्रश्न करने वाला व्यक्ति 2. परीक्षा लेने वाला व्यक्ति; परीक्षक; (एग्ज़ैमिनर) 3. निर्णायक; निर्णयकर्ता 4. प्रश्नपत्र तैयार
करने वाला व्यक्ति 5. पंच; मध्यस्थ। [वि.] 1. पूछने वाला 2. जिसमें प्रश्न हो 3. जो अनेक प्रश्न करता हो।
प्रास
(सं.) [सं-पु.] 1. वह क्षैतिज दूरी जो किसी वस्तु को एक बार फेंकने पर तय होती है; मार 2. वह पूरी दूरी या विस्तार जिसमें कोई बात या वस्तु सक्रिय होती हो;
(रेंज) 3. फेंकना 4. अनुप्रास; वर्णसाम्य 5. भाला; बरछा।
प्रासंगिक
(सं.) [वि.] 1. प्रसंग से संबंधित 2. प्रस्तुत प्रसंग से संबंध रखने वाला 3. किसी अवसर, विषय आदि के अनुकूल 4. उपयुक्त; उचित 5. सार्थक। [सं-पु.] (काव्यशास्त्र)
दृश्य काव्य में कथावस्तु के दो अंशों में से वह दूसरा अंश जो मूल या आधिकारिक अंश में प्रसंगानुसार सहायक होता है।
प्रासंगिकता
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. प्रासंगिक होने की अवस्था या भाव 2. उपयुक्तता; अनुकूलता 3. सुसंगति; सार्थकता।
प्रासंग्य
(सं.) [सं-पु.] 1. जुआ ले जाने वाला व्यक्ति 2. वह नया बैल जिसे हल आदि में जोता जा रहा हो।
प्रासन
(सं.) [सं-पु.] फेंकना या फेंकने की क्रिया या अवस्था।
प्रासविक
(सं.) [वि.] 1. प्रसव संबंधी 2. प्रसूतीय; प्रसवजन्य।
प्रासविकविज्ञान
(सं.) [सं-पु.] वह विज्ञान जिसमें गर्भवती स्त्रियों को प्रसव कराने की कला का अध्ययन तथा विवेचन किया जाता है; प्रसूतिविज्ञान।
प्रासाद
(सं.) [सं-पु.] 1. राज भवन; महल 2. देवमंदिर; मंदिर 3. भिक्षुओं के एकत्रित होने का विशाल कक्ष।
प्रासूतिक
(सं.) [वि.] प्रसव और प्रसूता से संबंध रखने वाला।
प्राहारिक
(सं.) [सं-पु.] 1. प्रहरी; चौकीदार 2. चौकीदारों का प्रधान अधिकारी।
प्रिंट
(इं.) [सं-पु.] 1. छपाई; मुद्रण 2. चिह्न; निशान 3. रंगदार बेलबूटे वाला कपड़ा; छींटदार वस्त्र 4. छापा; ठप्पा 5. फ़ोटो आदि की प्रति।
प्रिंटआर्डर
(इं.) [सं-पु.] किसी पुस्तक या पत्र-पत्रिका के मुद्रण का आदेश देना।
प्रिंट मीडिया
(इं.) [सं-पु.] (पत्रकारिता) समाचार-पत्र और पत्रिकाओं द्वारा जनसंपर्क का एक लिखित माध्यम।
प्रिंट लाइन
(इं.) [सं-पु.] समाचार पत्र व पत्रिका में संपादक, प्रकाशक और मुद्रक का पता लिखे जाने का स्थान।
प्रिंटिंग
(इं.) [सं-स्त्री.] 1. छपाई; मुद्रण 2. छपाई का काम।
प्रिंस
(इं.) [सं-पु.] राजा या रानी का पुत्र; राजकुमार; युवराज।
प्रिंसिपल
(इं.) [सं-पु.] 1. किसी कॉलेज या महाविद्यालय का सर्वोच्च अधिकारी; प्राचार्य।
प्रिय
(सं.) [सं-पु.] आत्मीय व्यक्ति; पति या प्रेमी। [वि.] 1. जिसके प्रति बहुत अधिक प्रेम हो; बहुत प्यारा 2. पत्र लेखन में, किसी का आदर, महत्व आदि सूचित करने के
लिए प्रयुक्त होने वाला संबोधनपरक विशेषण 3. मनोहर या शुभ।
प्रियंकर
(सं.) [वि.] 1. प्रियकर; प्रेम या स्नेह करने वाला 2. प्रसन्नकारक।
प्रियंगु
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. कँगनी नाम का अन्न 2. राई; राजिका 3. पीपल; पिप्पली।
प्रियंवद
(सं.) [वि.] मधुर बोलने वाला; मीठी बात कहने वाला; मधुरभाषी; प्रियभाषी।
प्रियंवदा
(सं.) [वि.] प्रिय बोलने वाली; मधुरभाषिणी। [सं-स्त्री.] 1. एक छंद 2. 'अभिज्ञान शाकुंतलम' में शंकुतला की एक सखी का नाम।
प्रियकर
(सं.) [वि.] 1. हर्ष उत्पन्न करने वाला; हर्षप्रद; सुंदर 2. प्यारा; प्रिय; मनोरम।
प्रियतम
(सं.) [वि.] जो सबसे अधिक प्रिय हो; परम प्रिय। [सं-पु.] 1. प्रेमी; माशूक 2. पति।
प्रियतमा
(सं.) [वि.] सबसे अधिक प्यारी। [सं-स्त्री.] 1. प्रेमिका; माशूका 2. पत्नी।
प्रियदर्शन
(सं.) [वि.] 1. जो देखने में प्रिय हो; सुंदर; सुदर्शन 2. आकर्षक; मोहक 3. भला और सुखद; मनोहर; दर्शनीय।
प्रियदर्शी
(सं.) [वि.] 1. सबको प्रेमपूर्वक देखने वाला; सबसे स्नेह करने वाला 2. मनोहर।
प्रियपात्र
(सं.) [सं-पु.] वह जो सबसे प्यारा हो; प्रेमभाजन। [वि.] जिसके साथ प्रेम किया जाए; प्रेमपात्र।
प्रियभाषी
(सं.) [वि.] प्रिय बोलने वाला; मीठी बात बोलने वाला; मधुरभाषी; प्रियंवद।
प्रियवर
(सं.) [वि.] प्रिय या प्यारों में श्रेष्ठ; बहुत प्रिय।
प्रियवादी
(सं.) [वि.] जो प्रिय बोलता हो या प्रिय बोलने वाला; प्रियभाषी; प्रियंवद।
प्रिया
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. प्रेमिका; माशूका; प्रियतमा 2. पत्नी; भार्या।
प्रियांबु
(सं.) [सं-पु.] 1. आम का वृक्ष तथा फल 2. वह जिसे जल अधिक प्रिय हो।
प्रीतम
(सं.) [सं-पु.] 1. वह पुरुष जिससे किसी स्त्री का प्रेम या स्नेह हो 2. प्रेमी; आशिक; माशूक 3. प्रियतम; पति।
प्रीति
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. हर्ष; आनंद 2. प्रेम; प्यार; अनुराग 3. तृप्ति; आमोद 4. कृपा; अनुग्रह; दया 5. मैत्री 6. कामदेव की एक पत्नी 7. ज्योतिष के सत्ताईस योगों
में से दूसरा योग।
प्रीतिकर
(सं.) [वि.] 1. प्रसन्नता उत्पन्न करने वाला; हर्षजनक 2. प्रेम उत्पन्न करने वाला; प्रेमजनक।
प्रीतिभोज
(सं.) [सं-पु.] किसी मांगलिक या सुखद अवसर पर बंधु-बांधवों और इष्ट मित्रों को अपने यहाँ बुलाकर कराया जाने वाला भोजन; दावत।
प्रीत्यर्थ
(सं.) [अव्य.] 1. प्रसन्न करने के वास्ते 2. प्रीति के कारण।
प्रीमियम
(इं.) [सं-पु.] बीमा किस्त।
प्रीमियर
(इं.) [वि.] 1. प्रथम; मुख्य 2. प्रमुख; प्रधान 3. नाटक, फ़िल्म आदि का पहला प्रदर्शन।
प्रुष्ट
(सं.) [वि.] 1. दग्ध; जला हुआ 2. अक्षेम; अमंगल।
प्रूफ़
(इं.) [सं-पु.] 1. सबूत; प्रमाण 2. किसी छपने वाली वस्तु का वह प्रारूप जो उसके प्रकाशन एवं वितरण से पूर्व अशुद्धियाँ आदि दूर करने के लिए तैयार किया जाता है
3. वस्तुविशेष के प्रभाव से बचने का साधन, जैसे- वाटरप्रूफ़।
प्रूफ़रीडर
(इं.) [सं-पु.] प्रारूप की अशुद्धियाँ ठीक करने वाला कर्मचारी; प्रूफ़ शोधक।
प्रूफ़रीडिंग
(इं.) [सं-स्त्री.] छपाई शुद्ध करने के लिए पढ़ना; लिखित या छपी सामग्री में वर्तनी की अशुद्धियों को ठीक करना।
प्रेक्षक
(सं.) [सं-पु.] वह व्यक्ति जो किसी वस्तु, व्यक्ति, काम या बात को विशेष उद्देश्य से बहुत ध्यानपूर्वक देखता रहता हो। [वि.] देखने वाला; दर्शक; द्रष्टा।
प्रेक्षण
(सं.) [सं-पु.] 1. देखने की क्रिया 2. दृश्य; नज़ारा 3. किसी काम, चीज़ या बात को किसी विशेष उद्देश्य से ध्यानपूर्वक देखने का भाव 3. खेल, तमाशा, अभिनय आदि 4.
आँख।
प्रेक्षणक
(सं.) [सं-पु.] 1. दृश्य; प्रदर्शन; तमाशा 2. दृष्टिविषय 3. तमाशा देखने का शौकीन आदमी। [वि.] देखने वाला।
प्रेक्षणालय
(सं.) [सं-पु.] प्रेक्षागृह; रंगशाला; नाट्यशाला; प्रेक्षागार; (थियेटर)।
प्रेक्षणिका
(सं.) [सं-स्त्री.] तमाशा देखने की शौकीन स्त्री।
प्रेक्षणीय
(सं.) [वि.] 1. दर्शनीय; देखने के योग्य; दृष्टिगोचर 2. सुंदर।
प्रेक्षणीयक
(सं.) [सं-पु.] तमाशा; प्रर्दशन; दृश्य; नज़ारा।
प्रेक्षा
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. देखने की क्रिया 2. निगाह; दृष्टि 3. किसी बात की अच्छाई या बुराई का विवेक 4. नाटक, तमाशा आदि।
प्रेक्षागार
(सं.) [सं-पु.] 1. वह स्थान जहाँ नाटक खेला जाए और दर्शक बैठकर देखें; प्रेक्षागृह; रंगशाला; नाट्यशाला; (थियेटर) 2. प्राचीन समय में राजाओं आदि के मंत्रणा करने
का स्थान; मंत्रणागृह।
प्रेक्षागृह
(सं.) [सं-पु.] 1. वह स्थान जहाँ नाटक खेला जाए और दर्शक बैठकर देखें; प्रेक्षागृह; रंगशाला; नाट्यशाला (थियेटर) 2. प्राचीन काल में राजमहल का वह कमरा जहाँ राजा
मंत्रियों से मंत्रणा करते थे।
प्रेक्षालय
(सं.) [सं-पु.] वह स्थान जहाँ नाटक आदि का मंचन होता है; प्रेक्षागृह; प्रेक्षागार; मंत्रणागृह।
प्रेक्षावान
(सं.) [वि.] सोच-समझ कर काम करने वाला; चतुर; विवेकी।
प्रेक्ष्य
(सं.) [वि.] अच्छी तरह देखे जाने के योग्य; प्रेक्षणीय।
प्रेत
(सं.) [वि.] जो यह संसार छोड़कर चला गया हो; मरा हआ; मृत। [सं-पु.] 1. (पुराण) वह सूक्ष्म शरीर जो आत्मा भौतिक शरीर छोड़ने पर धारण करती है 2. भूत।
प्रेतकर्म
(सं.) [सं-पु.] हिंदू धर्म में मृत शरीर को जलाने से लेकर सपिंडी तक के वे सभी काम जो मृतक को प्रेत योनि से मुक्त रखने के उद्देश्य से किए जाते हैं।
प्रेतनी
(सं.) [सं-स्त्री.] स्त्री प्रेत; पिशाचनी; भूतनी।
प्रेतयज्ञ
(सं.) [सं-पु.] एक प्राचीन मान्यता के अनुसार वह यज्ञ जिसे करने से प्रेतयोनि प्राप्त होती थी।
प्रेतयोनि
(सं.) [सं-पु.] (अंधविश्वास) पापकर्म करने वाला प्राणी मरने के बाद एक विशेष योनि में भयानक रूप धारण करके घृणित कार्य करता है और भटकता रहता है; भूत।
प्रेतलोक
(सं.) [सं-पु.] वह काल्पनिक स्थान या लोक जहाँ प्रेतों का वास माना जाता है; यमपुर; यमलोक।
प्रेतात्मा
(सं.) [सं-स्त्री.] (एक काल्पनिक मान्यता या अंधविश्वास) मृत व्यक्ति की कुछ समय या बहुत समय बाद सशरीर दिखने वाली जीवात्मा जो स्थूल शरीर से रहित और सूक्ष्म
शरीर से युक्त होती है।
प्रेती
(सं.) [सं-पु.] (अंधविश्वास) भूत-प्रेत की पूजा करने वाला व्यक्ति; प्रेतपूजक।
प्रेम
(सं.) [सं-पु.] प्रीति; प्यार; स्नेह; अनुराग; किसी व्यक्ति, वस्तु, काम, बात, विषय आदि के प्रति मन में होने वाला राग।
प्रेमकथा
(सं.) [सं-स्त्री.] प्रेमकहानी; प्रेम संबंधी आख्यान।
प्रेमकहानी
(सं.) [सं-पु.] वह कथा या कहानी जिसमें प्रेम और शृंगार की प्रधानता हो; प्रणयकथा; प्रेमगाथा; (लवस्टोरी)।
प्रेमक्रीड़ा
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. नर एवं मादा के मध्य आंगिक-वाचिक ढंग से होने वाला प्रेम 2. आलिंगन 3. संभोग।
प्रेमगाथा
(सं.) [सं-स्त्री.] प्रेमकहानी; (लवस्टोरी)।
प्रेमगीत
(सं.) [सं-पु.] 1. वह गीत जिसमें प्रेम भाव की प्रधानता होती है 2. प्रेमी-प्रेमिका द्वारा एक दूसरे के लिए गाया जाने वाला गीत।
प्रेमपत्र
(सं.) [सं-पु.] 1. प्रेमी या प्रेमिका द्वारा एक दूसरे को लिखा जाने वाला पत्र 2. वह पत्र जिसमें प्रेम भाव की अभिव्यक्ति हो; (लवलेटर)।
प्रेमपात्र
(सं.) [सं-पु.] वह जिससे प्रेम किया जाए। [वि.] प्यारा; प्रियपात्र।
प्रेमभाजन
(सं.) [वि.] जो प्रेम के लायक हो; प्रेमपात्र; प्यार पाने का अधिकारी।
प्रेममय
(सं.) [वि.] प्रेम में डूबा हुआ; प्रेम में लीन।
प्रेममार्ग
(सं.) [सं-पु.] प्रेम से जीवन व्यतीत करने का मार्ग; प्रेमपथ।
प्रेममूर्ति
(सं.) [वि.] जिसके हृदय में प्रेम हो; स्नेही।
प्रेमरस
(सं.) [सं-पु.] 1. प्रेम का आनंदमय रूप 2. प्रेमी या प्रेमिका का सदैव अपने प्रिय के ध्यान में आनंदमग्न रहने की स्थिति।
प्रेमलीला
(सं.) [सं-स्त्री.] नर और मादा के बीच आंगिक और वाचिक ढंग से होने वाला प्रेम।
प्रेमवंत
(सं.) [वि.] 1. प्रेम से भरा हुआ; प्रेमवान 2. प्रेमी; प्रेमासक्त।
प्रेमवती
(सं.) [सं-स्त्री.] वह जो प्रेम से भरी हुई; प्रेमिका।
प्रेमवश
(सं.) [क्रि.वि.] स्नेहवश; आत्मीयता से।
प्रेमविवाह
(सं.) [सं-पु.] प्रेमी-प्रेमिका द्वारा किया जाने वाला विवाह; (लवमैरिज)।
प्रेमशील
(सं.) [वि.] जो प्रेम भाव से युक्त हो; प्रेममय।
प्रेमसागर
(सं.) [सं-पु.] जो प्रेम से परिपूर्ण हो।
प्रेमहीन
(सं.) [वि.] निष्ठुर; नीरस।
प्रेमाकांक्षा
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. प्रेम की इच्छा या कामना; प्रेमाभिलाषा 2. मिलन की आतुरता।
प्रेमाक्षेप
(सं.) [सं-पु.] (काव्यशास्त्र) एक प्रकार का आक्षेप अलंकार जिसमें प्रेम का वर्णन करते समय उसमें व्याघात भी दिखाया जाता है।
प्रेमाग्नि
(सं.) [सं-स्त्री.] प्रेम की तड़प; प्रेम की तीव्र आकांक्षा।
प्रेमाचार
(सं.) [सं-पु.] प्रेमी और प्रेयसी द्वारा एक-दूसरे को रिझाने या प्रसन्न करने के लिए की जाने वाली प्रेमपूर्ण क्रियाएँ; प्रेमालाप।
प्रेमातुर
(सं.) [वि.] प्रेम के कारण व्याकुल; प्रेम से पीड़ित; मिलन के लिए आतुर।
प्रेमातुरता
(सं.) [सं-स्त्री.] प्रेम के कारण व्याकुल होने की अवस्था या भाव।
प्रेमानंद
(सं.) [सं-पु.] प्रेम का आनंद; मिलन या संसर्ग का सुख।
प्रेमानुभूति
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. प्रेम में होने वाली अनुभूति 2. प्रेम से प्राप्त अनुभव।
प्रेमानुराग
(सं.) [सं-पु.] प्रेम और अनुराग; आसक्ति; मोह; स्नेह; वात्सल्य; अनुरक्ति।
प्रेमालाप
(सं.) [सं-पु.] प्रेमपूर्वक होने वाली बातचीत; प्यार-मुहब्बत से होने वाला संवाद।
प्रेमालिंगन
(सं.) [सं-पु.] प्रेम से गले लगाने की क्रिया या अवस्था।
प्रेमाश्रम
(सं.) [सं-पु.] वह स्थान या जगह जहाँ प्रेम, अपनत्व, सहानुभूति आदि से युक्त व्यवहार होता है।
प्रेमाश्रु
(सं.) [सं-पु.] प्रेम के कारण आँखों से निकलने वाले आँसू।
प्रेमास्पद
(सं.) [वि.] जिससे प्यार मिलता हो; प्रेमपात्र।
प्रेमिका
(सं.) [सं-स्त्री.] माशूका; दिलरुबा; प्रिया; महबूबा।
प्रेमिल
(सं.) [वि.] प्यार से परिपूर्ण; प्रेममय; प्यार-भरा।
प्रेमी
(सं.) [सं-पु.] वह पुरुष जो किसी स्त्री से प्रेम करता हो; आशिक। [वि.] 1. प्रेम करने वाला 2. प्रेमयुक्त; प्रेमपूर्ण।
प्रेमोन्मत्त
(सं.) [वि.] प्रेम में पागल या दीवाना।
प्रेय
(सं.) [वि.] अति प्रिय; विशेष प्रिय। [सं-पु.] 1. अत्यंत प्रिय व्यक्ति; प्रेमी; प्रेमिका; पति; पत्नी 2. सांसारिक सुख।
प्रेयसी
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. प्रेमिका; महबूबा 2. पत्नी; प्रिया।
प्रेरक
(सं.) [सं-पु.] प्रेरणा देने वाला व्यक्ति; प्रयोजक। [वि.] 1. प्रेरित करने वाला 2. भेजने वाला।
प्रेरणा
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. किसी को किसी कार्य में प्रवृत्त करने की क्रिया या भाव; प्रेरण 2. मन में उत्पन्न होने वाला प्रोत्साहनपरक भाव-विचार; (इंस्पिरेशन) 3.
उत्तेजन; उकसाव; मन की तरंग; उमंग।
प्रेरणात्मक
(सं.) [वि.] 1. जिसमें प्रेरणा हो 2. प्रेरणा संबंधी।
प्रेरणादाई
(सं.) [वि.] प्रेरणा देने वाला; प्रेरक।
प्रेरणादायक
(सं.) [वि.] 1. प्रेरणा देने वाला; प्रेरक 2. किसी काम के लिए नियुक्त या प्रवृत्त करने के योग्य।
प्रेरणापूर्ण
(सं.) [वि.] जिससे प्रेरणा मिलती हो; प्रेरणाप्रद; उत्प्रेरक।
प्रेरणाप्रद
(सं.) [वि.] प्रेरणा देने वाला; प्रेरक; प्रेरणादाई (व्यक्ति, विचार आदि)।
प्रेरणार्थक
(सं.) [वि.] 1. प्रेरणा संबंधी 2. जो प्रेरणा के रूप में हो।
प्रेरणार्थक क्रिया
(सं.) [सं-स्त्री.] (व्याकरण) वह क्रिया जिससे यह सूचित होता है कि वह किसी की प्रेरणा से या किसी दूसरे के द्वारा कराई जा रही है।
प्रेरणास्पद
(सं.) [वि.] प्रेरणा देने वाला; प्रेरणाप्रद; प्रेरक; उत्साहित करने वाला।
प्रेरणास्रोत
(सं.) [सं-पु.] 1. प्रेरणा देने वाला व्यक्ति 2. वह विचार या कार्य जो प्रेरणा दे।
प्रेरणीय
(सं.) [वि.] 1. जिसे किसी कार्य में प्रवृत्त या नियुक्त किया जाए 2. जिसे प्रेरित किया जाना आवश्यक हो।
प्रेषक
(सं.) [सं-पु.] 1. वह व्यक्ति जो किसी के पास कोई संदेश या वस्तु भेजे; 'प्रापक' का विलोम; 2. पारसल द्वारा अपना माल भेजने वाला व्यक्ति; (सेंडर; कंसाइनर)।
प्रेषण
(सं.) [सं-पु.] कोई वस्तु कहीं से किसी के पास भेजना; (ट्रांसमिशन)।
प्रेषणीय
(सं.) [वि.] 1. प्रेरित करने योग्य 2. भेजने योग्य।
प्रेषित
(सं.) [सं-पु.] (संगीत) स्वर साधना की एक प्रणाली। [वि.] भेजा हुआ।
प्रेषितक
(सं.) [सं-पु.] वह वस्तु जो कहीं भेजी जाए; प्रेषित की जाने वाली चीज़।
प्रेषितव्य
(सं.) [वि.] जिसे भेजा जाए; प्रेषण करने के योग्य।
प्रेषिती
(सं.) [सं-पु.] 1. वह जिसके नाम कोई वस्तु भेजी जाए 2. प्रेषित माल को पाने वाला व्यक्ति।
प्रेषित्र
(सं.) [सं-पु.] रेडियो तरंगों द्वारा कोई ध्वनि एक स्थान से दूसरे स्थान पर भेजने का काम करने वाला यंत्र या साधन; दूरविक्षेपक यंत्र; (ट्रांसमीटर)।
प्रेष्य
(सं.) [सं-पु.] 1. नौकर; सेवक 2. दूत; टहलू; हरकाया। [वि.] जो भेजा जाने को हो या भेजा जा सकता हो।
प्रेष्या
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. दूती; संदेशवाहिका 2. नौकरानी; भृत्या; सेविका।
प्रेस
(इं.) [सं-पु.] 1. मुद्रणालय; छापाख़ाना; वह स्थान जहाँ अख़बार या समाचारपत्र की छपाई होती है 2. कपड़ों की सिकुड़न और सिलवट दूर करने वाला एक यंत्र; इस्त्री।
प्रेसकांफ़्रेंस
(इं.) [सं-स्त्री.] 1. पत्रकारों को बुलाकर किया जाने वाला सम्मेलन; पत्रकार सम्मेलन; संवावदाता सम्मेलन 2. किसी बात या सूचना को जन-जन तक पहुँचाने के लिए किसी
नेता, अधिकारी आदि के द्वारा अख़बार और टेलीविज़न के पत्रकारों हेतु आयोजित बैठक।
प्रेसकाउंसिल
(इं.) [सं-पु.] (पत्रकारिता) पत्र-पत्रिकाओं से संबंधित मामलों पर विचार करने तथा प्रशासन को सुझाव देने के लिए निर्मित समिति; प्रेस परिषद।
प्रेस किट
(इं.) [सं-स्त्री.] संवाददाता सम्मेलन के दौरान उपस्थित मीडिया कर्मियों को दी जाने वाली सामग्री।
प्रेसगैलरी
(इं.) [सं-स्त्री.] किसी समारोह, अधिवेशन आदि में पत्रकारों के लिए बैठने का स्थान; पत्रकार दीर्घा; संसद में सदन आदि की कार्यवाही की रिपोर्टिंग के लिए
पत्रकारों के लिए नियत स्थान; पत्रकार कक्ष।
प्रेस चेंबर
(इं.) [सं-पु.] पत्रकारों के लिए आरक्षित कक्ष।
प्रेस नोट
(इं.) [सं-पु.] प्रेस विज्ञप्ति; विभिन्न संस्थाओं या संगठनों द्वारा अपने कार्यक्रमों और गतिविधियों की जानकारी के लिए प्रेस को जारी की जाने वाली सूचना।
प्रेस परिषद
(इं.+सं.) [सं-स्त्री.] (पत्रकारिता) पत्र-पत्रिकाओं से संबंधित मामलों पर विचार करने तथा प्रशासन को सुझाव देने के लिए निर्मित समिति।
प्रेसप्रतिनिधि
(इं.+सं.) [सं-पु.] पत्र प्रतिनिधि।
प्रेस बॉक्स
(इं.) [सं-पु.] (पत्रकारिता) सरकारी अथवा अन्य बड़े संस्थानों में पत्र-पत्रिकाओं के प्रतिनिधियों के लिए विशेष रूप से आरक्षित स्थान।
प्रेस मटिरियल
(इं.) [सं-पु.] पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशनार्थ दी जाने वाली सामग्री।
प्रेस रिलीज़
(इं.) [सं-पु.] किसी संगठन या व्यक्ति की ओर से प्रकाशन हेतु जारी की गई सामग्री।
प्रेस रूम
(इं.) [सं-पु.] 1. सरकारी अथवा गैरसरकारी संस्थानों का वह कक्ष जहाँ पत्रकार आपस में विचार-विमर्श कर सकते हैं 2. छपाई की मशीनों वाला कमरा।
प्रेसविज्ञप्ति
(इं.+सं.) [सं-स्त्री.] 1. समाचारपत्र में प्रकाशन के लिए दी जाने वाली सामयिक सूचना 2. किसी विषय या प्रकरण के संबंध में सरकारी या गैरसरकारी संस्था द्वारा
दिया गया वक्तव्य या लेख; (प्रेसनोट)।
प्रेसिडेंट
(इं.) [सं-पु.] 1. वह व्यक्ति जिसके नेतृत्व में किसी सभा, समिति या संगठन का कार्य किया जाए; अध्यक्ष 2. राष्ट्रपति।
प्रेसीडेंसी
(इं.) [सं-स्त्री.] 1. प्रेसिडेंट का पद या कार्य 2. अध्यक्षाधीन मंडल 3. सभापति का अधिकार क्षेत्र; सभापतित्व।
प्रैक्टिकल
(इं.) [वि.] 1. जो करके दिखाया जाए; प्रायोगिक; क्रियात्मक 2. जो व्यवहार में आ सके; व्यावहारिक।
प्रैक्टिस
(इं.) [सं-स्त्री.] 1. अभ्यास 2. प्रथा; रिवाज 3. व्यवसाय; वृत्ति; पेशा; काम।
प्रॉपर्टी
(इं.) [सं-पु.] 1. वह धन-दौलत संपत्ति जिसपर किसी का स्वामित्व हो; ज़मीन-जायदाद 2. गुणधर्म; गुण; विशेषता 3. अधिकार 4. सामग्री।
प्रॉसिक्यूटर
(इं.) [सं-पु.] 1. न्यायालय में किसी पर अपराध के लिए अभियोग या इल्ज़ाम लगाने वाला सरकारी अधिकारी; अभियोजक 2. अभियोग पक्ष का वकील।
प्रोक्त
(सं.) [सं-पु.] कही हुई बात; प्रोक्ति। [वि.] कहा हुआ; कथित।
प्रोक्ति
(सं.) [सं-स्त्री.] (भाषाविज्ञान) वाक्य से बड़ी इकाई या वाक्य समूह जो एक-दूसरे से संदर्भ-संकेतों से जुड़ा हुआ हो।
प्रोक्षण
(सं.) [सं-पु.] 1. छिड़काव करना 2. जल छिड़ककर पवित्र करना; मार्जन 3. प्राचीन समय में यज्ञ के निमित्त पशु का वध करना 4. वध; हत्या 5. विवाह का परिछन नामक कर्म
6. श्राद्ध आदि में होने वाला एक कर्म।
प्रोक्षणीय
(सं.) [सं-पु.] वह जल जो छिड़काव के काम में लाया जाए। [वि.] 1. जिसका प्रोक्षण किया जाए 2. प्रोक्षण के योग्य।
प्रोग्राम
(इं.) [सं-पु.] 1. कार्यक्रम; आयोजन 2. योजना 3. कार्यसूची।
प्रोजेक्ट
(इं.) [सं-स्त्री.] कोई योजनाबद्ध काम; परियोजना; योजना।
प्रोजेक्टर
(इं.) [सं-पु.] प्रक्षेपक; एक यंत्र जिसके द्वारा परदे पर बड़े रूप में चित्र दिखाया जाता है।
प्रोटीन
(इं.) [सं-स्त्री.] 1. (जीवविज्ञान) जैव पदार्थों की संरचना में मौजूद एक जटिल कार्बनिक यौगिक जिसमें नाइट्रोज़न प्रमुख रूप से होता है 2. भोजन का एक आवश्यक
तत्व।
प्रोटेक्शन
(इं.) [सं-पु.] सुरक्षा; हिफ़ाज़त; देखभाल।
प्रोटेस्टेंट
(इं.) [सं-पु.] 1. ईसाई धर्म का वह दूसरा संप्रदाय जो कैथोलिक संप्रदाय अर्थात पोप की सर्वोच्च सत्ता की अराजकता के विरोध में अस्तिव में आया 2. उक्त संप्रदाय
का अनुयायी।
प्रोटॉन
(इं.) [सं-पु.] (विज्ञान) परमाणु का एक अति सूक्ष्म कण तथा जिसपर धनविद्युत आवेश होता है, जिसका धनात्मक आवेश परिमाण में ठीक इलेक्ट्रान के आवेश के बराबर होता
है।
प्रोटोकॉल
(इं.) [सं-पु.] 1. राजनयिक प्रतिनिधियों के साथ किए जाने वाले औपचारिक व्यवहार की रीतियाँ; शिष्टाचार 2. अंतरराष्ट्रीय संधि का मूल पत्र 3. वरीयता पद क्रम;
निश्चित नियमों के अनुसार पदों की वरिष्ठता के अनुरूप प्रदत्त महत्ता का रखा गया क्रम।
प्रोटोज़ोआ
(इं.) [सं-पु.] (जंतुविज्ञान) एक कोशिकीय प्राणी जो सामान्यतः जल में रहता है।
प्रोटोप्लाज़्म
(इं.) [सं-पु.] वनस्पति तथा प्राणियों में स्थित ऐसा जीवद्रव्य जो जीवन का आधार होता है।
प्रोडक्ट
(इं.) [सं-पु.] उत्पाद; माल; चीज़; वस्तु।
प्रोडक्शन
(इं.) [सं-पु.] बिक्री हेतु उत्पादों के निर्माण की क्रिया; उत्पादन; निर्माण।
प्रोत
(सं.) [वि.] 1. सिला हुआ; पिरोया हुआ; गुँथा हुआ 2. अच्छी तरह मिलाया हुआ 3. घुसा हुआ; प्रविष्ट 4. जड़ा हुआ; जोड़ा हुआ 5. बँधा हुआ।
प्रोत्फल
(सं.) [सं-पु.] एक वृक्ष जो ताड़ की तरह होता है।
प्रोत्सारण
(सं.) [सं-पु.] 1. हटाना; दूर करना 2. मुक्त होना; पिंड छुड़ाना 3. निकालना।
प्रोत्साह
(सं.) [सं-पु.] अत्यधिक उत्साह, जोश या उमंग।
प्रोत्साहक
(सं.) [वि.] उत्साह बाँधने वाला; हिम्मत बँधाने वाला; पीठ ठोंकने वाला।
प्रोत्साहन
(सं.) [सं-पु.] 1. उत्साह बढ़ाने की क्रिया या भाव; हिम्मत बँधाना 2. उत्साह बढ़ाने वाली बात 3. उत्तेजित करना; उकसाना; बढ़ावा।
प्रोत्साहित
(सं.) [वि.] जिसे उत्साहित किया गया हो; जिसको बढ़ावा दिया गया हो।
प्रोन्नत
(सं.) [वि.] 1. विशेष रूप से उन्नत; बहुत ऊँचा 2. जो आगे निकला हो; बढ़ाचढ़ा 3. जिसकी पदोन्नति हुई हो।
प्रोन्नति
(सं.) [सं-स्त्री.] किसी काम, पद या वर्ग आदि में ऊपर चढ़ना या उन्नत करना; पदोन्नति; तरक्की; (प्रमोशन)।
प्रोपगेंडा
(इं.) [सं-पु.] 1. प्रचार; अधिप्रचार 2. मतप्रचार 3. अधिप्रचार करने वाला संघ या दल।
प्रोप्राइटर
(इं.) [सं-पु.] स्वत्वधारी; स्वामी; मालिक।
प्रोफ़ेशन
(इं.) [सं-पु.] पेशा; व्यवहार।
प्रोफ़ेशनल
(इं.) [वि.] 1. व्यवसाय संबंधी व्यावसायिक; पेशे संबंधी; पेशेवर 2. व्यवसायी।
प्रोफ़ेसर
(इं.) [सं-पु.] 1. किसी विश्वविद्यालय या महाविद्यालय का प्राध्यापक 2. किसी विषय का पूर्ण ज्ञाता; विद्वान; आचार्य 3. विश्वविद्यालय के प्राध्यापकों में वरिष्ठ
श्रेणी को सूचित करने वाला पद; आचार्य।
प्रोष
(सं.) [सं-पु.] 1. बहुत अधिक दुख या कष्ट 2. जलना; दग्ध होना 3. दाह; संताप।
प्रोषित
(सं.) [वि.] 1. विदेश गया हुआ; परदेसी; प्रवासी 2. (साहित्य) वह नायक जो नायिका को छोड़कर विदेश चला गया हो; दग्ध; विरही।
प्रोष्ठ
(सं.) [सं-पु.] 1. साँड़; बैल; वृषभ 2. (महाभारत) एक प्राचीन देश।
प्रोष्ठी
(सं.) [सं-स्त्री.] सौरी जाति की मछली।
प्रोसेशन
(इं.) [सं-पु.] 1. विशेषकर लोगों या वाहनों के प्रदर्शन आदि के लिए क्रम में आगे बढ़ने की गतिविधि; जुलूस; शोभा यात्रा 2. धूमधाम से निकलना।
प्रोस्पेक्टस
(इं.) [सं-पु.] 1. स्कूल या कॉलेज के विषय में जानकारी देने वाली पुस्तिका; विवरणिका 2. सभा-संस्थाओं या घटनाओं आदि का वह विवरण जो सूचना के लिए प्रकाशित किया
जाता है।
प्रौढ़
(सं.) [वि.] 1. जिसकी पूरी वृद्धि हो चुकी हो; जिसमें पूर्णता आ गई हो; परिपक्व; पक्का; परिपूर्ण; वयस्क; (मैच्योर) 2. जिसकी युवावस्था समाप्ति पर हो। [सं-पु.]
तांत्रिकों का चौबीस अक्षरों का एक मंत्र।
प्रौढ़ता
(सं.) [सं-स्त्री.] प्रौढ़ होने की अवस्था या भाव; प्रौढ़त्व; परिपक्वता।
प्रौढ़फ़िल्म
(सं.+इं.) [सं-स्त्री.] 1. प्रौढ़ों के देखने योग्य फ़िल्म; हिंसक या यौन दृश्यों वाली फ़िल्म जो बच्चों या किशोरों के देखने योग्य न हो 2. ऐसी फ़िल्म जिसमें
हिंसा या यौन दृश्यों आदि के कारण 'केवल वयस्कों के लिए' या 'ए' (अडल्ट) प्रमाणपत्र के साथ प्रदर्शित किया जाता है।
प्रौढ़ शिक्षा
(सं.) [सं-स्त्री.] सामान्य आयु से अधिक आयु होने पर स्कूली शिक्षा लेने वाले लोगों की शिक्षा।
प्रौढ़ा
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. अधिक उम्र वाली स्त्री 2. (साहित्य) नायिका जो कामकला या रतिक्रिया में निपुण होती है; रतिप्रिया आनंद-सम्मोहिता। [वि.] 1. अधिक आयुवाली;
प्रवृद्ध 2. परिपक्व।
प्रौढ़ावस्था
(सं.) [सं-स्त्री.] वह अवस्था जब व्यक्ति शारीरिक और मानसिक रूप से प्रौढ़ता प्राप्त कर लेता है।
प्रौढ़ोक्ति
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. ऐसी उक्ति या कथन जिसमें कोई गहरा रहस्य हो 2. (साहित्य) एक अर्थालंकार जिसमें किसी व्यक्ति या वस्तु की उन्नति का कोई ऐसा कारण मान लिया
जाता है जो वास्तव में नहीं होता है; अतिरंजित उक्ति या कथन।
प्रौद्योगिक
(सं.) [सं-पु.] 1. उद्योगों से संबंधित; उद्योग को उन्नत करने वाला 2. उद्योगविज्ञान या प्रौद्योगिकी का; (टेक्नोलॉजिकल)।
प्रौद्योगिकी
(सं.) [वि.] औद्योगिक उत्पादन का विज्ञान; उद्योग विज्ञान; औद्योगिकी।
प्रौह
(सं.) [वि.] बुद्धिमान; चतुर; तार्किक; तर्क या विचार करने वाला।
प्लक्ष
(सं.) [सं-पु.] 1. (पुराण) जंबू आदि सात द्वीपों में से एक 2. पीपल 3. वट; बरगद 4. पिलखा या पाकड़ नामक वृक्ष 5. पिछवाड़े की खिड़की या छोटा दरवाज़ा 6. दरवाज़े के
पास की ज़मीन 7. सरस्वती नदी का उद्गम स्थान।
प्लक्षावतरण
(सं.) [सं-पु.] (महाभारत) सरस्वती नदी का उद्गम स्थान; प्लक्षराज।
प्लव
(सं.) [सं-पु.] 1. नदी की बाढ़; सैलाब 2. उछलकर या उड़कर जाने वाले पक्षी 3. कारंडव पक्षी; जल पक्षी 4. तैरने की क्रिया; उतराना 5. कुलाँछ; छलाँग; कुदान; उछाल;
फलाँग 6. मछली पकड़ने का जाल 7. उडूप; छोटी नौका; लकड़ी या बाँस से बनी नौका 8. उतार; ढलान 9. साठ संवत्सरों के चक्र में से पैंतीसवाँ संवत्सर।
प्लवंगम
(सं.) [सं-पु.] 1. वानक; बंदर; कपि 2. मेढ़क 3. (काव्यशास्त्र) एक सममात्रिक छंद जिसके प्रत्येक चरण में इक्कीस मात्राएँ होती हैं।
प्लवक
(सं.) [वि.] 1. तैरने वाला; तैराक 2. उछलने-कूदने वाला। [सं-पु.] 1. रस्सी पर नाचने वाला कलाकार या नट 2. मेढ़क 3. पाकड़ नामक वृक्ष।
प्लवगद्र
(सं.) [सं-पु.] हनुमान।
प्लवन
(सं.) [सं-पु.] 1. तैरने की क्रिया; तैरना; स्नान; तरण 2. कूदना; उछलना; छलाँग 3. बाढ़; जलप्लावन; महाप्लावन 4. उड़ना 5. अश्व की एक चाल 6. ढालवाँ ज़मीन; ढाल;
उतार।
प्लवनशील
(सं.) [वि.] 1. प्लवन करने वाला 2. जो तैर सकता हो 3. उछलने वाला; छलाँग लगाने वाला।
प्लवनशीलता
(सं.) [वि.] 1. प्लवन या तैरने का गुण 2. उछाल; छलाँग।
प्लवाका
(सं.) [सं-स्त्री.] नौका; नाव।
प्लविक
(सं.) [सं-पु.] नाव से पार उतारने वाला व्यक्ति; माँझी।
प्लांट
(इं.) [सं-पु.] 1. वनस्पति; पौधा 2. औद्योगिक प्रकल्प या परियोजना 3. कारख़ाना।
प्लाज़मा
(इं.) [सं-पु.] 1. (जीवविज्ञान) रक्त, लसीका आदि का तरल भाग जिसमें कणिकाएँ होती हैं; जीवद्रव्य 2. पदार्थ की तीन अवस्थाओं के अलावा चौथी अवस्था।
प्लाटून
(इं.) [सं-पु.] 1. दल; दस्ता 2. छोटा सैन्य-दल।
प्लान
(इं.) [सं-पु.] 1. किसी कार्य को करने से पूर्व बनाई गई योजना 2. किसी इमारत, नगर आदि का बनाया गया नक्शा; रेखाचित्र 3. किसी किताब आदि की रूपरेखा 4. विकास आदि
की योजना; (स्कीम) 5. निश्चय; इरादा।
प्लावन
(सं.) [सं-पु.] 1. बाढ़; जल-प्रलय 2. ऊपर फेंकना; उछालना।
प्लावनिक
(सं.) [वि.] 1. बाढ़ से संबंधित; बाढ़ का 2. महाप्लावन या प्रलय से संबंध रखने वाला 3. तैराने वाला।
प्लावित
(सं.) [वि.] 1. डूबा हुआ (बाढ़ में); जलमग्न 2. जिसपर बाढ़ का पानी चढ़ आया हो 3. जल से व्याप्त; तैराया हुआ 4. जिसमें बाढ़ का पानी भरा हुआ हो।
प्लावी
(सं.) [वि.] 1. तैरता रहने वाला; तैरता हुआ 2. फैलने वाला 3. उमड़कर बहने वाला 4. व्याप्त होने वाला।
प्लाव्य
(सं.) [वि.] 1. जल में डूबाए जाने के योग्य; बाढ़ में बहने के लायक; जो पानी में डुबाया जाए 2. जिसे बाढ़ में बहाया जाना हो 3. जिसे उछाला जाए।
प्लाशुक
(सं.) [वि.] 1. जो शीघ्र पक जाए (अनाज आदि) 2. शीघ्र तैयार होने वाला।
प्लास्टर
(इं.) [सं-पु.] 1. ईटों की दीवार पर लगाया जाने वाला सीमेंट, रेत आदि का लेप; पलस्तर 2. एक प्रकार का चिकित्सकीय लेप जो शरीर के किसी अंग पर चोट या घाव होने पर
उसे अच्छा करने के लिए लगाया जाता है।
प्लास्टिक
(इं.) [सं-पु.] 1. एक कार्बनिक, संश्लेषित, कृत्रिम और लचीला पदार्थ जिसका उपयोग विभिन्न वस्तुओं के निर्माण में किया जाता है, जैसे- बरतन, खिलौने और थैली
इत्यादि 2. पर्यावरण के लिए घातक एक रासायनिक तथा अविघटनीय पदार्थ।
प्लीहा
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. पेट के भीतरी भाग का वह छोटा अंग जो पसलियों के नीचे बाईं ओर होता है; तिल्ली नामक अंग; बरवट 2. उक्त अंग के सूज कर बढ़ने का रोग;
प्लीहोदर।
प्लुत
(सं.) [सं-पु.] 1. घोड़े की चाल का नाम जिसे पोई कहते हैं 2. (व्याकरण) तीन मात्राओं वाला स्वर 3. टेढ़ी चाल; उछाल; कुदान 4. (संगीत) तीन मात्राओं वाला एक ताल।
[वि.] 1. जो काँपता हुआ चले 2. प्लावित 3. ढका हुआ; आवृत।
प्लुत स्वर
जिन स्वरों के उच्चारण में दीर्घ स्वर से भी ज़्यादा समय लगे, जैसे- 'ओ३म' में [ओ]।
प्लूटो
(इं.) [सं-पु.] 1. सौरमंडल का वह नौवाँ ग्रह जिसे वैज्ञानिकों ने नए शोध के आधार पर ग्रह की सूची से हटा दिया है 2. (यूनानी मिथक) पाताल का एक शासक।
प्ले
(इं.) [सं-पु.] 1. रंगमंच पर खेला जाने वाला नाटक 2. सिनेमा या दूरदर्शन के पर्दे पर फ़िल्माई जाने वाली कहानी या कथा; (स्क्रीन प्ले)।
प्ले अप
(इं.) [सं-पु.] (पत्रकारिता) किसी समाचार को अधिक महत्वपूर्ण तरीके से प्रकाशित करना।
प्लेग
(इं.) [सं-पु.] एक भयानक संक्रामक रोग जिसमें जाँघ आदि में गिलटी निकलती है और बहुत तेज़ बुख़ार रहता है; ताऊन।
प्लेगग्रस्त
(इं+सं.) [सं-पु.] प्लेग से पीड़ित व्यक्ति।
प्लेट
(इं.) [सं-पु.] 1. तश्तरी; स्टील, चीनी मिट्टी आदि का बना एक छिछला पात्र 2. धातु, लकड़ी आदि का फ़लक; पत्तर; पटिया; पट्टी; तख़्ती 3. उक्त फ़लक आदि जिसपर नाम या
लेख आदि अंकित या उत्कीर्ण हो 4. प्लास्टिक की पट्टी जिसपर कृत्रिम दाँत लगाए जाते हैं 5. कपड़ों की सिलाई में लगाई जाने वाली विशेष पट्टी या डाली जाने वाली
सिकुड़न जो मज़बूती या शोभा के लिए होती है।
प्लेटफ़ार्म
(इं.) [सं-पु.] 1. ज़मीन से कुछ ऊँचा, चौकोर और चौरस चबूतरा 2. रेलवे स्टेशनों पर बना वह लंबा ऊँचा, चौकोर तथा समतल चबूतरा जिसके सामने ट्रेन लगती है और जिसपर से
होकर लोग उस पर सवार होते हैं या उससे उतरते हैं 3. साहित्यकारों, राजनीतिज्ञों आदि का अपनी विशेष नीतियों वाला मोर्चा या मंच 4. {ला-अ.} काम करने का अवसर या
स्थान।
प्लेटोनिक प्रेम
(इं+सं.) [सं-पु.] स्त्री-पुरुष का वासनारहित प्रेम; ऐसा प्रेम जिसमें यौनाकर्षण के बावजूद एक संयम बना रहे; निष्काम प्रेम; वायवीय प्रेम; अशरीरी प्रेम;
वासनारहित प्रेम।
प्ले डाउन
(इं.) [सं-पु.] (पत्रकारिता) प्ले अप के विपरीत किसी विशेष समाचार को कम महत्व देकर प्रकाशित करना।
प्लेन
(इं.) [सं-पु.] 1. समतल भूमि; मैदान 2. हवाई जहाज़; विमान। [वि.] 1. एक ही रंग का; बिना पैटर्न का, जैसे- प्लेन कपड़ा 2. सादा; सपाट; जिसमें सजावट न हो।
प्लैटिनम
(इं.) [सं-पु.] एक प्रसिद्ध बहुमूल्य धातु जो बहुत कड़ी और प्रायः अन्य धातुओं से भारी होती है, सफ़ेद रंग की इस धातु का उपयोग आभूषण आदि के निर्माण में होता है।
प्लैटो
(इं.) [सं-पु.] एक यूनानी दार्शनिक जो सुकरात का शिष्य था, इसका ग्रीक रूप 'प्लातोन' है।
प्लॉट
(इं.) [सं-पु.] 1. भूमि का छोटा भाग; आवास के लिए भूखंड 2. खेती करने की ज़मीन का टुकड़ा 3. किसी उपन्यास या कहानी की कथावस्तु; कथानक 4. किसी को हानि पहुँचाने
के लिए बनाई गई कुटिल योजना; षड्यंत्र; दुरभिसंधि; साज़िश।
प्वाइंट
(इं.) [सं-पु.] 1. उल्लेख 2. बिंदु 3. काल; क्षण 4. तथ्य 5. स्थान 6. नोक 7. {ला-अ.} मुद्दे या महत्व की बात; सार्थकता या उपयोगिता।