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लोग ही चुनेंगे रंग-  ‘लाल्टू’


 
जब तीस की होगी

 

जब तीस की होगी
तुम्हें वह सब बतलाना ही होगा
जो अब तीन की हो जब
बतलाती हो

जैसे यह कि दीवारों पर लकीरें खींची हैं
और यह खुशी है तुम्हारी
और कि यह खुशी होनी चाहिए हमारी

जैसे कि तुमने फाड़े हैं किताब में से पन्ने
और कागज की गेंद है तुम्हारे पास
और कि जिसे खेलने हमारे साथ है तुम्हारी आस

जैसे कि तुम्हारी छोटी कुर्सी खींच आती खिड़की तक
और जब दिल में मेरे धड़कता है खतरा
खुलता है तुम्हारी दुनिया का झरोखा

एक एक कदम होगा याद रखने लायक
पल-पल संजोएँगे हम तुम्हारा संसार
तीस की जब होगी उतारेंगे भार.

(अक्षर पर्व - 1998)

 

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