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लोग ही चुनेंगे रंग-  ‘लाल्टू’


 
कबसे

 

अँधेरे में
दो छोटी मोमबत्तियाँ
आधी जलीं
पतंगों से खिलवाड़ करती चलीं

एक रेत पर बैठी हाथ लहरा रही
लहरें उमड़तीं आ रहीं
दूसरी बैठी उसे एकटक निहार रही

एक की लौ इस वक्त आसमान
दूसरी नाच रही मदमत्त
साथ हवा साँ साँ

लौ, लपटें और बहाव
कब से, कब से!

(अक्षर पर्व – 1999)
 

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