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लोग ही चुनेंगे रंग-  ‘लाल्टू’


 
प्रासंगिक

 

लम्बे समय तक खाली मकान की बाल्कनी में बना उसका घोंसला उखड़ चुका था.
ठण्ड की बारिश के दिन. मकान के अन्दर रजाई में दुबकी तकलीफें.
उड़ने की आदत में चाय की जगह कहाँ.
वे बार बार लौटते, अपना घोंसला ढूँढते.
शीशे की खिड़कियों से दिखता आदमी उनके पँखों की फड़फड़ाहट पर झल्लाता हुआ.
सुबह सुबह अखबार.
विस्फोट, बेघरी, बेबसी और राजकन्या को परेशान करने वाले सनकी आदमी की गिरफ्तारी.
शीशों पार दुनिया में कितनी तकलीफें.
निरन्तर वापस आना उनका ढूँढना घोंसला
प्रासंगिक.

(साक्षात्कार - 1997)

 

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