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कविता

 

धरा निष्ठुर.
अनन्त गह्वरों से लहू लुहान लौटते हो और ज़मीन कहती देखो चोटी पर गुलाब.

हवा निष्ठुर.
सीने को तार-तार कर हवा कहती मैं कवि की कल्पना.

आस्मान निष्ठुर.
दिन भर उसकी आग पी आसमान कहता देखो नीला मेरा प्यार.

निष्ठुर कविता.
तुमने शब्दों की सुरंगें बिछाईं, कविता कहती मैं वेदना, संवेदना, पर नहीं गीतिका.
शब्द नहीं, शब्दों की निष्ठुरता, उदासीनता.

(साक्षात्कार - 1997)
 

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