अपने इस असीम विशाल अवकाश में निर्माता ने अनगिनत सूर्यमंडलों के साथ उनके ग्रहों-उपग्रहों के साथ उनसे संबंधित सभी जीव-प्राणियों को पैदा किया है। उनमें से हम सभी मानव नर-नारियों को उसके लिए क्या-क्या करना चाहिए, हम सभी नर-नारियों को उसका स्मरण मन में जाग्रत रखकर एक-दूसरे के साथ किस तरह का आचरण करने से उसको खुशी होगी; इसको दृष्टि में रखते हुए मैंने उसकी मेहरबानी से सभी मानव नर-नारियों के कल्याण के लिए यह छोटा-सा ग्रंथ लिखा है। यह सभी को स्वीकार करने योग्य हो और हम सभी लोग निर्माता के सत्यमय राज का समान उपभोग कर सकें, मेरी उससे यही माँग है।
मैंने इस ग्रंथ में अपनी समझ के आधार पर जो कुछ लिखा है, उसमें हमारे विद्वान नर-नारियों और समझदार पढ़ने वालों के ध्यान में जो चुभती बातें दिखाई दें, इसके लिए उन्हें मुझे माफ करना चाहिए और इसमें जो अच्छी बातें हैं उसको स्वीकार करना चाहिए, मेरी उन सभी से यही प्रार्थना है। इस ग्रंथ को पढ़ते समय यदि उनके ध्यान में ऐसी भी कोई बात आ जाए जो आम हितों की दृष्टि से अयोग्य या झूठ हो तो वे बातें उन्हें अखबार के द्वारा हमें सूचित करना चाहिए या इस ग्रंथ के समर्थन में यदि उनको कुछ सत्य विचार सुझाने हो तो उन्हें भी हमें सूचित करना चाहिए। उनके सुझाव यदि सही में विचारणीय होंगे तो हम उनको बड़े एहसान के साथ स्वीकार करेंगे और दूसरे संस्करण में उस सुझाव या संशोधन को स्थान देंगे।
इस ग्रंथ को हम विस्तार से लिखना चाहते थे, लेकिन सभी नर-नारियों को अपनी-अपनी गृहस्थी को सँभालकर यदि यह ग्रंथ पढ़ना संभव न हुआ तो धूर्त-निठल्ले लोग इसको बरबाद कर देंगे। इसलिए यह ग्रंथ सभी नर-नारियों के उपयोग का हो, इसी उद्देश्य से इसे बहुत बड़ा न करके छोटे रूप में रखकर इसका 'सार्वजनिकसत्य धर्म पुस्तक' नाम दिया गया है। इस उद्देश्य की सफलता के लिए सभी लोगों ने उचित सहयोग दिया तो हम इस ग्रंथ का दूसरा संस्करण भी प्रकाशित करेंगे। यदि इस ग्रंथ में कुछ कमियाँ रह गई हों, तो उनको सुधार करके और उसमें नये प्रमाण देकर नकली थोथे ग्रंथों का खंडन करने की हमको हिम्मत आएगी।
ग्रंथ रचयिता
माह-अप्रैल
तारीख-1, सन् 1889 ईसवी
पूना