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 आलोकधन्वा/ दुनिया रोज़ बनती है/भागी हुई लड़कियाँ(iii)
 

 

कुछ भी कर सकती है
सिर्फ़ जन्म देना ही स्त्री होना नहीं है


तुम्हारे टैंक जैसे बंद और मज़बूत
घर से बाहर
लड़कियाँ काफी बदल चुकी हैं
मैं तुम्हें यह इजाज़त नहीं दूँगा
कि तुम अब
उनकी संभावना की भी तस्करी करो
 

वह कहीं भी हो सकती है
गिर सकती है
बिखर सकती है
लेकिन वह ख़ुद शामिल होगी सब में
ग़लतियाँ भी ख़ुद ही करेगी
सब कुछ देखेगी
शुरू से अंत तक
अपना अंत भी देखती हुई जायेगी
किसी दूसरे की मृत्यु नहीं मरेगी
 

पाँच

लड़की भागती है
जैसे सफ़ेद घोड़े पर सवार
लालच और जुए के आर-पार
जर्जर दूल्हों से
कितनी धूल उठती है !
 

तुम
जो
 

पत्नियों को अलग रखते हो
वेश्याओं से
और प्रेमिकाओं को अलग रखते हो
पत्नियों से
कितना आतंकित होते हो
जब स्त्री बेख़ौफ़ भटकती है
ढूँढ़ती हुई अपना व्यक्तित्व
एक ही साथ वेश्याओं और पत्नियों
और प्रेमिकाओं में !
 

अब तो वह कहीं भी हो सकती है
उन आगामी देशों में भी
जहाँ प्रणय एक काम होगा पूरा का पूरा !
 

छह

कितनी-कितनी लड़कियाँ
भागती हैं मन ही मन
अपने रतजगे, अपनी डायरी में
सचमुच की भागी लड़कियों से
उनकी आबादी बहुत बड़ी है
 

क्या तुम्हारे लिए कोई लड़की भागी?
 

क्या तुम्हारी रातों में
एक भी लाल मोरम वाली सड़क नहीं ?
क्या तुम्हें दांपत्य दे दिया गया ?
क्या तुम उसे उठा लाये
 

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