हिंदी का रचना संसार

मुखपृष्ठ | उपन्यास | कहानी | कविता | नाटक | आलोचना | विविध | भक्ति काल | हिंदुस्तानी की परंपरा | विभाजन की कहानियाँ | अनुवाद | ई-पुस्तकें | छवि संग्रह | हमारे रचनाकार | हिंदी अभिलेख | खोज | संपर्क

 


 आलोकधन्वा/ दुनिया रोज़ बनती है/सफ़ेद रात(iii)
 

 

अब वह भारत ही नहीं रहा
जिसमें जन्म लिया


क्या है इस पूरे चाँद के उजाले में
इस बिखरती हुई आधी रात में
जो मेरी साँस
लाहौर और कराची और सिंध तक उलझती है?


क्या लाहौर बच रहा है?
वह अब किस मुल्क में है?
न भारत में न पाकिस्ताबन में
न उर्दू में न पंजाबी में
पूछो राष्ट्र निर्माताओं से
क्या लाहौर फिर बस पाया?


जैसे यह अछूती
आज की शाम की सफ़ेद रात
एक सच्चाई है
लाहौर भी मेरी सच्‍चाई है

 
कहाँ है वह
हरे आसमान वाला शहर बग़दाद
ढूँढ़ो उसे अब वह अरब में कहाँ है?


पूछो युद्ध सरदारों से
इस सफ़ेद हो रही रात में

क्या वे बग़दाद को फिर से बना सकते है?


वे तो खजूर का एक पेड़ भी नहीं उगा सकते हैं
वे तो रेत में उतना भी पैदल नहीं चल सकते
जितना एक बच्चा ऊँट का चलता है
ढूह और ग़ुबार से
अंतरिक्ष की तरह खेलता हुआ

 

क्या वे एक ऊँट बना सकते हैं ?
एक गुंबद एक तरबूज़ एक ऊँची सुराही
एक सोता
जो धीरे-धीरे चश्मा बना
एक गली
जो ऊँची दीवारों के साये में शहर घूमती थी
और गली में
सिर पर फ़िरोज़ी रूमाल बाँधे एक लड़की
जो फिर कभी उस गली में नहीं दिखेगी


अब उसे याद करोगे
तो वह याद आयेगी
अब तुम्हारी याद ही उसका बग़दाद है
तुम्हारी याद ही उसकी गली है उसकी उम्र है
उसका फ़ीरोजी रूमाल है

 
जब भगत सिंह फाँसी के तख्ते की ओर बढ़े
तो अहिंसा ही था
उनका सबसे मुश्किल सरोकार
 

अगर उन्हे क़बूल होता
युद्ध सरदारों का न्याय
तो वे भी जीवित रह लेते
बर्दाश्त कर लेते
धीरे-धीरे उजड़ते रोज़ मरते हुए
लाहौर की तरह
बनारस अमृतसर लखनऊ इलाहाबाद
कानपुर और श्रीनगर की तरह।

 (1997)
 

 

                                <<सफ़ेद रात...<<                                        सूची                                     >>कवि परिचय>>

 

 

मुखपृष्ठ | उपन्यास | कहानी | कविता | नाटक | आलोचना | विविध | भक्ति काल | हिंदुस्तानी की परंपरा | विभाजन की कहानियाँ | अनुवाद | ई-पुस्तकें | छवि संग्रह | हमारे रचनाकार | हिंदी अभिलेख | खोज | संपर्क

Copyright 2009 Mahatma Gandhi Antarrashtriya Hindi Vishwavidyalaya, Wardha. All Rights Reserved.