हिंदी का रचना संसार

मुखपृष्ठ | उपन्यास | कहानी | कविता | नाटक | आलोचना | विविध | भक्ति काल | हिंदुस्तानी की परंपरा | विभाजन की कहानियाँ | अनुवाद | ई-पुस्तकें | छवि संग्रह | हमारे रचनाकार | हिंदी अभिलेख | खोज | संपर्क

 

17 रानडे रोड
(उपन्यास)
रवीन्द्र कालिया

X

Index I II III IV V VI VII VIII IX

अचार और मिस्सी रोटी की पार्टी

 

बम्बई पहुँचकर ओबी ने सबसे पहले धारावाहिक प्रोड्यूसर जायसवाल की सुध ली। उसकी बहन ने उसके लिये जो अचार दिए थे, उसे लेकर ओबी ने एक पार्टी थ्रो कर दी— पिकिल एंड ड्रिंक्स। उसका इरादा सन एंड सैंड में एक सुएट बुक करा के पिकिल एंड ड्रिंक्स पार्टी देने का था, मगर अपने सीमित साधनों को देखते हुए यह सम्भव नहीं था। पार्टी में उसने स्क्रिप्ट राइटर, डायरेक्टर के अलावा केवल शिवेन्द्र को ही आमन्त्रित किया। शिवेन्द्र आजकल बहुत अवसाद में था, उसके घोड़े ने उसे धोखा दे दिया था और उसके लगभग पचास हजार रुपये इसमें डूब गये थे। वह खुद तो हारा ही था, उसके बहुत से क्लांयट्स का भी उससे मोहभंग हो गया और उसका धन्धा बन्द हो गया था।

इधर वह दोबारा अपनी वकालत की तरफ ध्यान दे रहा था। आजकल उसके बैच का अधिकारी बम्बई का आयकर आयुक्त नियुक्त होकर आ गया था, इसी प्रचार से बहुत-सी फ़िल्मी हस्तियों ने उसे अपना आयकर सलाहकार नियुक्त कर लिया था। शिवेन्द्र को दलाली का धन्धा पसन्द नहीं था, मगर क्या करता, उसकी मजबूरी थी। आये दिन उसके घर के नीचे फ़िल्मी हस्तियों की गाडिय़ाँ खड़ी रहतीं। मगर अब भी उसका ज्यादा ध्यान घोड़ों में ही था। उसने फोन पर ही ओबी को बधाई दी कि उसका भाग्य अच्छा था जो उसने शिवेन्द्र की सलाह पर घोड़ों पर दाँव नहीं लगा दिया। अनुपम राही और सागर अदीब को वह शंकर जयकिशन के नाम से पुकारता था। शंकर जयकिशन से उसे मालूम हुआ कि जायसवाल की बीवी उसे वापस इन्दौर ले जाने के लिए आयी हुई है, मगर वह पैसा गँवाकर लौटना नहीं चाहता। बीवी ने उसे यहाँ तक आश्वासन दे दिया है कि वह एक लाख रुपये अपने मायके से लाकर उसे दे देगी, अगर वह फौरन घर लौट चले। सुनते हैं कि एक दिन वह यह कहते हुए समुद्र में डूबने निकल गयी थी कि उसे पता रहना चाहिए कि उसके भाई उसके इन्दौर से भाग निकलने पर बहुत खुश हैं और धीरे-धीरे पूरे बिजनेस पर कब्जा कर लेंगे। आये दिन वह शराब के और ठेके ले रहे हैं। उसने सुना है कि अब उनका कारोबार उ.प्र. तक फैल गया है। किसी भी दिन वह उसे बिजनेस से अलग कर देंगे। जायसवाल किसी तरह अपनी आगबबूला पत्नी को समझा-बुझाकर घर लाया और तब से गम्भीरतापूर्वक इन्दौर लौट जाने के प्रस्ताव पर विचार कर रहा है।

‘‘अगर ऐसा है तो मियाँ-बीवी को भी पार्टी में बुलाओ।’’

‘‘मगर वे लोग तो शुद्ध शाकाहारी हैं।’’

‘‘हम शाकाहारी पार्टी रख लेंगे। अचार के साथ मिस्सी रोटी, मा की दाल, बैंगन का भर्ता वगैरह। जायसवाल शराब नहीं पीता, कोई बात नहीं, शराब का धन्धा करता है। मैं आज ही उसे पटाता हूँ।’’

जायसवाल सपत्नीक पार्टी में शामिल होने को तैयार हो गया। ओबी के हाथ में जायसवाल की कमज़ोर नस आ चुकी थी, उसे विश्वास था वह सारी ताकत लगा कर सौदा पटा लेगा। ओबी ने कैप्टन से स्कॉच की चार बोतलें उधार मँगवायीं, कैप्टन खुद भी आना चाहता था लेकिन ओबी ने कहा, बहुत बेमजा पार्टी होगी। एक भी खूबसूरत चेहरा दिखाई न देगा। उसे एक बहुत कंजूस किस्म के आदमी से काम निकालना है, जो न केवल दारू नहीं पीता, बल्कि मछली तक नहीं खाता, इसलिए वह न आये तो सुखी रहेगा।

ओबी का गरीबखाना देखकर मिसेज जायसवाल, जिसे वह बिल्लो कहता था, बहुत प्रभावित हुई। समुद्र हाई टाइड में था और ओबी ने कमरे में खूब रोशनी कर रखी थी और एक खिडक़ी के ऊपर फ्लड लाइट्स लगा रखी थीं, ताकि खास मेहमानों को रात की बाँहों में समुद्र के दर्शन कराये जा सकें। उस दिन चाँदनी रात थी, समुद्र बौराया हुआ था। ओबी ने फ्लड लाइट्स ऑन की और बोला, ‘‘भाभीजी, समुद्र का नजारा देखिये और आज यह बहुत प्रसन्न है, आप इससे जो माँगेंगी, वह खुशी-खुशी दे देगा।’’

‘‘भइया मुझे कुछ नहीं चाहिए। समुन्दर से कहो कि मेरे पति को सद्बुद्धि दे और वे घर लौट चलें।’’

‘‘बस इतनी-सी बात है! आपकी बात समुद्र ने सुन ली है, वह जरूर आपकी मुराद पूरी करेगा। आपका पति एक लाख रुपये की रट लगाये हैं, मैंने कई बार समझा कर देख लिया कि वह आधी रकम अभी इसी समय ले लें, बाकी रकम मय सूद के मैं छह महीनों में लौटा दूँगा, मैं स्टाम्प पेपर पर लिख कर दे दूँगा। किसी वकील की सलाह ले लें। खुद कागज तैयार करा दें, मैं आँख मूँदकर दस्तखत कर दूँगा।’’

‘‘क्यों जी, इसमें क्या नुक्सान है?’’

‘‘अगर यह शख्स अपनी बात से मुकर जाए तो मैं क्या करूँगा?’’

‘‘मैडम, मैं इसकी गवाही देने को तैयार हूँ।’’ शिवेन्द्र ने सिगार का लम्बा कश खींचते हुए कहा, ‘‘ओबी, जरा इन लोगों को मेरा परिचय दे दो।’’

‘‘ये हैं मेरे दोस्त शिवेन्द्र। इन्कम टैक्स के उच्च अधिकारी रहे हैं। अब तक कई फ़िल्में प्रोड्यूस कर चुके हैं। ‘यारा मेरी यारी’ इन्हीं की फ़िल्म थी। आजकल ये आयकर सलाहकार हैं। आपको कभी किसी प्रकार की कानूनी मदद की जरूरत हो, इनसे ले लीजिये। टैक्स वाले सताएँ तो ये एक फोन से काम करा देंगे। आपको इन पर भरोसा न हो तो कोई दूसरा वकील कर लें।’’ ओबी ने कहा और अलमारी से पचास हजार रुपये निकाल लाया और मिसेज जायसवाल की झोली में डाल दिए।

‘‘मैं इनके घर में गृहलक्ष्मी बन कर आयी हूँ। जब से शादी हुई है इनके समूचे परिवार में खुशहाली आ गयी है।’’ मिसेज जायसवाल झोली में रुपये थामे अपने पति की बगल में जा बैठी।

‘‘आप लोग आपस में मश्विरा कर लें। यहाँ कोई धोखाधड़ी का काम नहीं है।’’ शंकर जयकिशन भी मिसेज जायसवाल की हाँ में हाँ मिलाने लगे।

‘‘भाभी जान, अगर आप बुरा न मानें तो हम लोग तब तक अपना हलक गीला कर लें। मेरे पास दुनिया की बेहतरीन स्कॉच है, मगर जायसवाल साहब मदिरा के कैसे व्यापारी हैं कि उसका रस भी नहीं लेते। उम्मीद है आप इजाजत दे देंगी। हम तभी पैग तैयार करेंगे और हाँ, मेरी बीवी भी एकाध घूँट भर लेती है, आप उसे मुआफ कर देंगी।’’

‘‘मेरी सब भाभियाँ बियर पीती हैं।’’

‘‘तो इसे भी अपनी भाभी समझें। अगर चाहें तो अपनी भाभी को कम्पनी दे सकती हैं।’’

सुप्रिया ने इशारा भाँप लिया और लगी अनुरोध करने कि उसके पास कम्पारी है जो बियर से भी लाइट होती है। आप चखेंगी, मैं तभी गिलास छुऊँगी। वरना इन लोगों की सेवा में लगी रहूँगी।

‘‘मन है तो ले लो। मुझे भाभी ने बताया था कि उसके बच्चे के मुंडन पर तुमने भी बियर पी थी।’’ जायसवाल ने अपनी पत्नी से कहा।

‘‘तो क्या गुनाह किया था? अपनी भाभी से पूछो, उसने कितनी मिन्नतें की थीं। अब तो वह शराब भी पीने लगी है, मैंने सुना है।’’

‘‘तुम्हें तो मेरे परिवार वालों को बदनाम करने का बहाना मिलना चाहिए।’’

‘‘मेरी जुबान न खुलवाओ, वरना अभी सारा कच्चा चिट्ठा खोल दूँगी।’’

जायसवाल समझदार था, उसने चुप्पी अख्तियार कर ली।

मिसेज जायसवाल ने नोट उसी प्रकार झोली में फैलाये हुए थे, यह देखकर ओबी कुछ आश्वस्त हुआ। इस नतीजे पर पहुँचने में उसे देर न लगी कि मिसेज जायसवाल पति पर छा जाने वाली औरत है और बहुत जल्द चुनौती फेंक देती है। जायसवाल की जुबान पर ताला लग चुका था।

‘‘आप जैसी समर्पित स्त्री को छोडक़र भाई साहब बम्बई की खाक क्यों छान रहे हैं, मेरी समझ में नहीं आता। आज से मैं आपको अपनी बहन बना रहा हूँ और प्रण करता हूँ कि हर बरस आपसे राखी बँधवाऊँगा। आज राखी तो नहीं है, मगर मैं आज ही आपसे राखी बँधवा कर रहूँगा। सुप्रिया मन्दिर में मौली का धागा पड़ा होगा, उठा ला।’’

सुप्रिया मुस्करायी। घर में मन्दिर तो क्या भगवान की मूर्ति तक न थी। अलमारी में बाबा नानक की एक तस्वीर लगी थी, वही ओबी का मन्दिर और गुरुद्वारा था। सुप्रिया की दाद देनी पड़ेगी कि वह कहीं से मौली का धागा ढूँढ़ लायी और मिसेज जायसवाल के हाथ में थमा दिया। घर में मिठाई नहीं थी, वह एक छोटी प्लेट में चीनी ले आयी। बहन ने भाई की कलाई पर पवित्र धागा पहना दिया और चीनी के कुछ दाने उसके मुँह में डाल दिए। ओबी उठा और अलमारी से सौ रुपये निकाल लाया और बहन को भेंट कर दिए।

‘‘लो सँभालो पचास हजार एक सौ रुपये। बाकी की चिन्ता छोड़ दो, मेरा भाई अपने बहनोई को धोखा न देगा।’’ मिसेज जायसवाल बोलीं, ‘‘चाहो तो अपनी तसल्ली के लिए किसी वकील से कागज बनवा लेना। कल सारे काम निपटा लो और परसों इन्दौर लौटने की तैयारी करो।’’

एक आज्ञाकारी पति की तरह जायसवाल ने अपनी पतलून की गुप्त जेब में रुपये रख लिये।

‘‘अब इसी खुशी में वोदका का एक पैग हो जाए।’’ सुप्रिया ने मिसेज जायसवाल से कहा और बगैर उसकी सहमति मिले ब्लडी मैरी का पैग बनाकर ले आयी। दोनों महिलाओं ने पैग टकराये और घूँट भरा।

‘‘यह तो टमाटर का जूस लागे है।’’

‘‘वही है, बस कुछ बूँद वोदका मिलायी है।’’

शिवेन्द्र स्कॉच का सिप भरते हुए यह ड्रामा देख रहा था। अचानक उसने घोषणा कर दी, ‘‘सब लोग कान खोलकर सुन लो। कोई ताकत ओबी को कामयाब होने से नहीं रोक सकती। एक दिन बम्बई में इसकी तूती बोलेगी। बहनजी, आपकी पत्री में महालक्ष्मी योग है। मेरी बात पर यकीन न हो तो अगले साल आकर अपने भाई का जलवा देख लेना। बस जायसवाल साहब से एक गलती हो गयी।’’

‘‘क्या?’’

‘‘यही कि वह अगर बम्बई आपको साथ लेकर आये होते तो बम्बई से लौटने की नौबत ही न आती।’’

‘‘आप ठीक कहते हैं भाई साहब। इनकी भाभियों ने इन्हें इसलिए बम्बई रवाना कर दिया ताकि बिजनेस पर कब्जा कर लें।’’

‘‘आप साथ में आयी होतीं तो यह यहाँ उससे बड़ा बिजनेस खड़ा कर दिखाते।’’

‘‘आप क्या हाथ भी देखते हैं?’’ मिसेज़ जायसवाल थोड़ा उत्सुक हुईं।

‘‘मैं जन्मपत्री में थोड़ा बहुत विश्वास रखता हूँ। वैसे हाथ देखता तो नहीं, आपका हाथ देख लूँगा। यहाँ लाइट कम है। लाइट के नीचे आइए।’’

लाइट के नीचे जायसवाल साहब बैठे थे। खुद ही उठकर खड़े हो गये।

‘‘आप इधर मेरी जगह बैठें, मैं हाथ देखकर सीट लौटा दूँगा।’’

शिवेन्द्र ने स्कॉच का एक लम्बा घूँट भरा और अपनी दोनों हथेलियों में मिसेज जायसवाल का हाथ बन्द कर लिया।

‘‘यह क्या कर रहे हैं?’’

‘‘आप कुछ देर चुप रह सकती हैं? मैं मन्त्रोच्चार कर रहा हूँ।’’

शिवेन्द्र ने आँखें बन्द कर लीं। मिसेज जायसवाल की हथेली बहुत गुदाज़ और काफी गरम थी। शिवेन्द्र की हथेली तपने लगी। उसकी इच्छा तो हो रही थी कि जीवन भर इसी तरह हथेली थामे रहे। जब जायसवाल परेशान नजर आया तो उसने कहा। ‘‘अब मुट्ठी बन्द कर लीजिये। जब मैं कहूँ तभी खोलिये।’’

मिसेज जायसवाल को भी शिवेन्द्र का स्पर्श अच्छा लग रहा था। जायसवाल ने कभी इतनी गर्मजोशी से उसका हाथ नहीं थामा था।

‘‘ओबी तुम्हारे पास मेग्नीफाइंग ग्लास है?’’

‘‘मैं उसका क्या करूँगा?’’

‘‘ठीक है।’’ शिवेन्द्र ने तुक्का मारा, ‘‘आपकी कोई सन्तान नहीं। मगर सन्तान का योग है। वृहस्पति का व्रत करें। आठ रत्ती का पुखराज पहनें, वृहस्पति के ही रोज। किसी अच्छे जौहरी से खरीदें। पुखराज का रंग गोमूत्र जैसा होना चाहिए।’’

‘‘आप सचमुच पहुँचे हुए नजूमी हो।’’ मिसेज जायसवाल बोलीं, ‘‘एक प्रश्न और पूछना चाहती हूँ।’’

‘‘पूछिए।’’

‘‘एकान्त में पूछना चाहती हूँ।’’

शिवेन्द्र उठा और अन्तिम खिडक़ी के पास जाकर खड़ा हो गया जहाँ फ्लड लाइट्स से समुद्र की लहरें मछलियों की तरह नृत्य कर रही थीं।

‘‘देखिये समुद्र कितना भव्य लग रहा है!’’

मिसेज जायसवाल ने समुद्र की तरफ देखा और बोली, ‘‘सच-सच बताइए, क्या मैं माँ बन सकूँगी?’’

‘‘दुनिया की कोई ताकत नहीं रोक सकती।’’

‘‘कब तक?’’

शिवेन्द्र समुद्र से जवाब की सीपी चुनने लगा।

‘‘अगले ग्यारह महीनों के भीतर।’’

‘‘सच?’’

‘‘हंड्रेड परसेंट सच।’’

‘‘भगवान जाने कब मेरी मुराद पूरी होगी!’’

‘‘आज की रात बहुत शुभ है। चाँदनी रात है, चन्द्र पर वृहस्पति की दृष्टि है। आज रात बारह बजे तक बहुत अच्छा योग है। अभी से ओम नमो: शिवाय का पाठ मन ही मन शुरू कर दीजिये।’’

वह एकदम मुड़ी और जायसवाल से बोली, ‘‘चलिये जी।’’

‘‘अरे ऐसा क्या कर दिया आपने?’’ ओबी ने शिवेन्द्र से पूछा।

‘‘कुछ नहीं। एक मन्त्र बताया है।’’

‘‘इतने सारे व्यंजन बने हैं। ढेरों अचार हैं। आपके लिए गोभी गाजर शलगम का अचार है। मिस्सी रोटी के साथ खाकर देखिये।’’

‘‘आइए जी, जो खाना हो जल्दी-जल्दी खा लीजिये।’’

वह एक प्लेट में हर तरह का अचार लेकर मिस्सी रोटी के साथ चटखारे ले-लेकर खाने लगी।

जायसवाल को भी बहुत भूख लग रही थी। अब तक वह संकोच में बैठा था। उसने दाल से कटोरा भर लिया और बैंगन का भर्ता भी जीभर कर ले लिया। उसे गेहूँ की रोटी ही पसन्द थी। पत्नी ने उसकी प्लेट देखी तो बोली, ‘‘इतना खाना खाने में तो पूरी रात निकल जाएगी।’’

शिवेन्द्र मन्द-मन्द मुस्करा रहा था। मिसेज जायसवाल ने अपना खाना समाप्त किया तो पति की प्लेट पर जुट गयी। वह जल्द से जल्द होटल के लिए रवाना होना चाहती थीं। ‘‘होटल पहुँचने में कितनी देर लगेगी?’’ उन्होंने पति से पूछा।

‘‘यही कोई पौन घंटा।’’

‘‘क्या नजदीक में कोई होटल नहीं ले सकते थे?’’

‘‘बम्बई के लिहाज से पौन घंटा ज्यादा समय नहीं है।’’ जायसवाल ने कहा। उसने हाथ धोने के लिए वाश बेसिन की तरफ रुख किया कि मिसेज जायसवाल ने टेबल से नेपकिन उठाकर उसे सौंप दिया, ‘‘अब देर मत करो। होटल पहुँच कर हाथ धो लेना।’’

जायसवाल चकित था कि अचानक इस औरत को क्या हो गया जो बच्चों की तरह घर जाने को मचल रही है। वह बार-बार घड़ी की तरफ देख रही थीं।

वे लोग विदा हो गये। तय हुआ कि कल ग्यारह बजे ओबी के आफ़िस में जायसवाल अपने वकील के साथ पहुँचेगा और एग्रीमेंट पर दस्तखत होंगे।

वे लोग सीढिय़ाँ उतर गये तो शिवेन्द्र ने अपना पैग तैयार किया और बोला, ‘‘काम हो गया तो मैंने सोचा इन्हें जल्द से जल्द अब विदा कर देना चाहिए।’’

‘‘आपने क्या किया?’’ सुप्रिया ने पूछा।

शिवेन्द्र ने सारा किस्सा सुनाया। सभी लोगों के पेट में हँस-हँसकर बल पड़ गये।

‘‘ह्वाट ए क्रुएल जोक!’’ सुप्रिया बोली।

शिवेन्द्र और दूसरे मेहमान भी रवाना हो गये तो ओबी बोला, ‘‘आज चाँदनी रात है। चाँदनी रात को भूत जरूर आते हैं। केवल आधा घंटा बचा है बारह बजकर एक मिनट होने में।’’

‘‘मैं सब समझती हूँ।’’ सुप्रिया बोली सामान समेटने लगी। काकाजी खाना लगाकर जा चुके थे।

मेहमानों को विदा कर ओबी और सुप्रिया ने राहत की साँस ली। जायसवाल लोगों ने ग्यारह बजे एग्रीमेंट साइन करने का समय दिया था मगर वे लोग आये डेढ़ बजे। ओबी लोग तो निराश हो गये थे कि कहीं रात भर में इरादा तो नहीं बदल लिया! बारह बजे के करीब जायसवाल का फोन आया कि वे लोग बस निकलने वाले हैं।

‘‘आज ग्यारह बजे तो ये सो कर उठे। जाने कितने दिनों बाद सोये थे।’’ मिसेज़ जायसवाल बहुत प्रसन्न थीं। बोली, ‘‘देखने में कितने भोले लगते हैं, मगर पोर-पोर में शरारत भरी रहती है। छुटटा छोडऩे लायक तो ज़रा भी नहीं।’’

‘‘आप लोग भोजन करेंगे?’’

‘‘भूखे शेर की तरह सोकर उठे थे। उठते ही पराँठों का आर्डर दे दिया। बम्बई आकर इनकी भूख बहुत बढ़ गयी है।’’

वह आज अपने पति पर बहुत फिदा थी।

जहाँ वकील ने बताया जायसवाल ने दस्तखत कर दिए।

‘‘जाने से पहले शिवेन्द्र जी के दर्शन ज़रूर करूँगी और उनका आशीर्वाद प्राप्त करूँगी।’’

ओबी ने मारिया से कहा शिवेन्द्र जी का नम्बर मिला कर मिसेज़ जायसवाल से बात करा दे।

‘‘आप जैसे देवता स्वरूप व्यक्ति भाग्य से ही सम्पर्क में आये हैं।’’ मिसेज़ जायसवाल चालू हो गयीं, ‘‘आपका आशीर्वाद ग्रहण किए बगैर इन्दौर न लौटूँगी। आपके दर्शन मात्र से मेरा जीवन सार्थक हो गया।’’

‘‘जी जी, मैं फोन करती रहूँगी। आपका रोज़ स्मरण करूँगी। आपने मेरे जीवन को एक नयी दिशा दे दी।’’

‘‘...इस बार सम्भव नहीं तो अगली बार आपके दर्शन करूँगी। अच्छा प्रणाम।’’

ओबी समझ गया कि शिवेन्द्र दर्शन देने को तैयार नहीं हुए। उनकी अब मिसेज़ जायसवाल में कोई दिलचस्पी भी न थी। वह एक ऐसे शिकारी हैं जो शौकिया शिकार करता है। बाद में मुड़ कर भी नहीं देखता कि शिकार जीवित है या खुदा को प्यारा हो गया।

जायसवाल दम्पती ने दिनभर के लिए टैक्सी ले रखी थी। अभी वे लोग गेटवे ऑव इंडिया देखना चाहते थे, महालक्ष्मी मन्दिर के दर्शन करने थे, चौपाटी पर भेलपूरी खानी थी, मालाबार हिल, हैंगिंग गार्डन, बालेश्वर मन्दिर, कालका देवी जाना था, कोलाबा, कालका देवी और भुलेश्वर के बाज़ारों में घूमना था। ये सब काम पौने सात बजे तक करने थे, क्योंकि सात पचीस पर बम्बई सेंट्रल से इन्दौर के लिए अवन्तिका एक्सप्रेस पकडऩी थी।

दोनों को टैक्सी में बैठाकर ओबी लोग रानडे रोड की तरफ रवाना हो गये। रास्ते में उन्होंने दादर के एक पंजाबी ढाबे से प्रॉन करी और रोस्टेड चिकेन तथा रूमाली रोटियाँ पैक करवायीं। आज उनका भी जायसवाल दम्पती की तरह घोड़े बेचकर सोने का इरादा था। उन्होंने भोजन किया, फोन का तार निकाल दिया और खिड़कियों के परदे गिरा कर लेट गये। आज समुद्र भी असाधारण तरीके से शान्त था। लग रहा था, वह भी थक चुका है और इस समय भरपेट भोजन करके अलसाया हुआ विश्राम कर रहा है।

अगले दिन से दिनचर्या में बदलाव आने लगा। शंकर जयकिशन सुबह ही आ जाते और अगले एपीसोड के बारे में विचार विमर्श होता। ओबी को अब धन की कमी भी खलने लगी थी, जबकि आगे के खर्चे मुँह बाये खड़े थे। वह दोपहर बाद स्पांसर की तलाश में निकल जाता। विज्ञापनदाता दूरदर्शन की अन्त:शक्ति के प्रति अभी पूर्णत: आश्वस्त न हुए थे, मगर फिर भी दूरदर्शन पर प्रतिदिन विज्ञापनों का प्रचार-प्रसार बढ़ रहा था। एक-दो उद्योगपतियों ने धारावाहिक में रुचि भी दिखायी, मगर जब तक धारावाहिक एप्रूव नहीं हो जाता, वे अपना समय नष्ट नहीं करना चाहते थे।

एक शिवेन्द्र ही था, जो ओबी को भरोसा दिला रहा था कि जिस दिन वह दूरदर्शन से स्वीकृति ले आये, वह अगले रोज़ उसे स्पांसर दिलवा देगा। शिवेन्द्र को अपने इन्कम टेक्स कमिश्नर मित्र पर बहुत भरोसा था। वह उसका जूनियर रह चुका था, और एक ज़माने में शिवेन्द्र के घर के आटे-दाल तक का वही ध्यान रखता था। आज भी उसकी ज़्यादातर सन्ध्याएँ उसी के यहाँ व्यतीत होती थीं। शिवेन्द्र बातों का सौदागर था और वह कमिश्नर साहब के लिए कई स्तरों पर बहुत उपयोगी साबित हो रहा था।

शंकर जयकिशन सलूजा के गहन सम्पर्क में थे। सलूजा आश्वस्त था कि काम हो जाएगा, मगर प्रक्रियाएँ इतनी जटिल और समय खाऊ थीं कि कोई उनमें गति नहीं ला सकता था। गीतिशीलता लाने का यह भी अर्थ निकलता था कि ज़रूर इसमें किसी का निहित स्वार्थ है।

एक दिन सुप्रिया को अप्रत्याशित रूप से एक सफलता मिल गयी। उसका एक ममेरा भाई महाराष्र्ाए पुलिस का ट्रेफिक चीफ था। उसके बच्चे की सालगिरह पर सुप्रिया उनके यहाँ एक जापानी गुडिय़ा ले गयी, जो बटन दबाने पर नृत्य करती थी। नन्हे बच्चे को वह इतनी पसन्द आ गयी कि वह उस पर लट्टू हो गया। दूसरे उपहारों की तरफ उसने पलट कर न देखा।

भाई ने आभार जताया और पूछा कि आजकल क्या कर रही है तो सुप्रिया ने अपनी परियोजना बतायी और बोली, ‘‘आजकल विज्ञापनों के लिए दौड़ रही हूँ।’’

‘‘मेरे अधिकार में विज्ञापन के लिए पाँच लाख का बजट है। एक लाख का बजट तुम्हारे नाम कर दूँगा। मुझे कल तक तुम्हारा प्रस्ताव मिल जाना चाहिए ताकि इसी वित्त वर्ष में पैसा खर्च हो जाए।’’

सुप्रिया को विश्वास नहीं था, उसे इतनी जल्दी और इतने सहज रूप से सफलता मिल जाएगी। ममेरे भाई का शादी के बाद अचानक निमन्त्रण पाकर वह चली आयी थी। ममेरे भाई खार में रहता था, सुप्रिया की शाम को सात बजे एक व्यस्तता थी। दशा और दिशा ने साथ दिया और वह चली आयी। भाई ने उसे अपना विजिटिंग कार्ड दिया और सुप्रिया ने अपना।

घर पहुँची तो पता चला, ओबी को भी एक सफलता मिली है। एक दन्तमंजन बनाने वाली कम्पनी अपना नया उत्पाद राष्री पतय स्तर पर ला रही है और उसने तेरह ऐपिसोड के लिए एक लाख का अनुबन्ध करने का वचन दिया है। वह एक मिनट का समय माँग रहे थे, ओबी ने तीस सेंकड पर राजी कर लिया है।

‘‘मैं तो बगैर प्रसारण समय तय किए, मैदान जीत आयी।’’ सुप्रिया ने विस्तार से अपनी उपलब्धि बतायी तो ओबी ने उसे बाँहों में भर लिया।

 

खंडाला से सीधे अस्पताल

 

धारावाहिक की सारी टीम में एक नया उत्साह आ गया था। इससे पहले उन्हें लग रहा था, उनका सारा श्रम, सारे सपने धूल में मिल चुके हैं। जायसवाल और ओबी का अनुबन्ध होते ही ओबी के यहाँ धारावाहिक से सम्बन्धित लोगों की आमदोरफ्त बढ़ गयी। एक दिन सागर और अनुपम उर्फ शंकर जयकिशन शेफाली को भी ले आये, जिसकी धारावाहिक में प्रमुख भूमिका थी। पूरे यूनिट में वही एक ऐसी कलाकार थी, जिसे देखकर लगता था कि वह किसी सम्पन्न परिवार से ताल्लुक रखती है और बम्बई संघर्ष करने नहीं आयी है। उसके गालों पर बाल मचलते रहते, जबकि धारावाहिक में उसे एक गृहिणी की भूमिका दी गयी थी।

सब लोग आग्रह कर रहे थे कि अनुबन्ध का जश्न मनाया जाए। ओबी की मुश्किल यह थी कि वह जी खोल कर जश्न मनाता, मगर सुप्रिया उसे इजाज़त नहीं दे रही थी। एक बार धारावाहिक एप्रूव हो जाए, उसके बाद किसी भी तरह का जोखिम उठाया जा सकता था। बचे-खुचे रुपये उसने अपने कब्ज़े में कर लिये थे। ओबी चाहकर भी फ़िजूलखर्ची नहीं कर पा रहा था।

यूनिट के लोगों का लोनावला जाकर पिकनिक मनाने का मन था। ओबी टालमटोल कर रहा था, मगर उसे भीतर से बहुत कष्ट हो रहा था। एक दिन अचानक यूनिट के भाग्य का छींका फूटा, ओबी ने देखा उसके सामने चन्दन बैठा है। उसी तरह मुस्कराते हुए, हाथ में गोल्ड फ्लेक का डिब्बा। पहले से स्वस्थ नज़र आ रहा था।

‘‘शुक्लाजी दिखाई नहीं दे रहे?’’ उसने पूछा।

ओबी को याद आया, जब चन्दन पहली बार मुम्बई आया था, शुक्लाजी ने मज़ाक ही मज़ाक में उसकी अँगूठी रेहन रख ली थी और उसे इलाहाबाद का टिकट दिलवा दिया था।

‘‘शुक्लाजी अब यहाँ नहीं हैं। उन्हें बिजनेस रास नहीं आया और वे दोबारा नौकरी पर लौट गये।’’

‘‘उसी दफ्तर में हैं?’’

‘‘वहीं होंगे, और कहाँ जाएँगे!’’ ओबी ने मारिया से कहा कि शुक्लाजी से बात करा दे।

‘‘आज कैसे मेरी याद आ गयी?’’ शुक्लाजी ने पूछा।

‘‘आपको हरदम याद रखता हूँ। फिलहाल एक खुशखबरी है। अपने चन्दन जी इलाहाबाद से फिर लौट आए हैं।’’

‘‘उनसे बात कराएँ।’’

ओबी ने रिसीवर चन्दन को सौंप दिया। दुआ सलाम के बाद उसने पूछा कि उसकी अँगूठी कहाँ है? ‘‘दरअसल इस बार इलाहाबाद पहुँचकर मुझे इल्हाम हुआ कि वह अँगूठी जब से उतारी, घरवालों की फटकार ही सुनता रहा। इलाहाबाद में बचपन की एक दोस्त थी, मेरी गैरहाजि़री में उसने शादी कर ली। मुझ पर रहम कीजिये और मेरी अँगूठी लौटा दीजिये।’’

‘‘अरे आप कैसी बात कर रहे हो! अँगूठी आपकी है, आप अभी आकर ले जाइए।’’

उसने अपना अटैची उठाया और यह कहते हुए खड़ा हो गया कि जल्द ही फिर हाजि़र होगा। जल्दबाज़ी में वह अपना सिगरेट का डिब्बा वहीं छोड़ गया। ओबी ने खोलकर देखा अभी डिब्बे की सब सिगरेटें कतारों में लगी थीं। शायद नीचे से नया डिब्बा खरीद कर लाया था।

वीटी स्टेशन पर ही मध्य रेलवे का कार्यालय था। शुक्लाजी उसी की प्रतीक्षा में थे और लंच में नहीं गये थे। उसे देखते ही उन्होंने अँगूठी सौंप दी। चन्दन ने दो बार अँगूठी को चूमा, माथे से लगाया और अँगुली में पहन ली।

‘‘आपने मेरी जि़न्दगी लौटा दी।’’ वह बोला, ‘‘मुझे मालूम नहीं था कि इस अँगूठी से मेरी तकदीर बँधी है। अब आप देखेंगे मेरा जलवा।’’

‘‘क्या फिर से भाग आये हो?’’

‘‘हमेशा के लिए।’’

उसने शुक्लाजी को टिकट के पैसे लौटा दिए और बोला, ‘‘मैं जि़न्दगी भर आपका एहसान न भूलूँगा।’’

‘‘काहे का एहसान भाई, तुम्हारी चीज़ थी, तुम्हें लौटा दी।’’ शुक्लाजी बोले, ‘‘आओ मेरे साथ लंच कर लो। कैंटीन चलते हैं।’’

‘‘देखिए अँगूठी का चमत्कार। अँगूठी पहनते ही भोजन की व्यवस्था हो गयी। वैसे आज मेरा इरादा मेकडोनल्ड में लंच करने का था।’’

‘‘इस समय वहाँ बहुत भीड़ रहती है। किसी दिन फुर्सत में वहाँ भी चलेंगे।’’

भोजन करते ही उसे सिगरेट के डिब्बे की याद आ गयी। कैंटीन से निकल कर उसने सबसे पहले गोल्ड फ्लेक का डिब्बा खरीदा, ‘‘यह मेरा ट्रेड मार्क है।’’ वह बोला और हँसा। डिब्बा खोलकर वह गौर से शुक्लाजी का चेहरा देखने लगा, ‘‘आपसे मैं एक ज़रूरी मश्विरा करना चाहता हूँ।’’

‘‘चलो, आज़ाद मैदान में बैठकर बात करते हैं।’’

‘‘शुक्लाजी, जाने क्यों अक्खी बम्बई में इस समय मुझे आप ही सबसे भरोसेमन्द दोस्त लग रहे हैं।’’

शुक्लाजी मुस्कराये, ‘‘इतनी जल्द किसी पर भरोसा नहीं करना चाहिए।’’

‘‘अब मैंने अँगूठी पहन ली है। मेरा अनुमान गलत नहीं निकल सकता।’’

‘‘किसी के प्रेम में गिरफ्तार हो गये हो?’’

‘‘नहीं, बात दरअसल यह है कि इस समय मेरे पास दो लाख रुपये हैं। बैंक में डाल नहीं सकता और खुद इनकी देखभाल भी नहीं कर सकता। आपको अपना बड़ा भाई मानते हुए मैं यह रकम आपके पास रखना चाहता हूँ। वक्त ज़रूरत लेता रहूँगा।’’

‘‘घर में इतना धन रखना सुरक्षित नहीं। मैं यह जोखिम नहीं उठा सकता।’’

‘‘छोटे भाई के लिए आपको कुछ तो करना ही होगा।’’

‘‘जब तुम मुझे ठीक से जानते नहीं, ऐसी नादानी क्यों कर रहे हो?’’

‘‘यह मेरे बाप की हराम की कमाई है। मैं घर में एक चिट्ठी छोड़ आया हूँ कि दो लाख रुपये लेकर बम्बई लौट रहा हूँ। जि़न्दगी में कामयाब हुआ तो मय सूद लौटा दूँगा, वरना अपनी सूरत भी न दिखाऊँगा। मुझे मेरे हाल पर छोड़ दीजिये और मुझे खोजने की ज़हमत न उठाइए।’’

‘‘कितनी बार घर से भागे हो?’’

‘‘तीसरी बार भागा हूँ और यह अन्तिम प्रयास है।’’ वह बोला और अपने सूटकेस से एक ब्रीफकेस निकाल कर शुक्लाजी को सौंप दिया।

‘‘अपने खर्च के लिए मैंने दस हज़ार रख लिये हैं। दो-तीन हज़ार उड़ा दूँगा, बाकी से कुछ दिन काम चलाऊँगा। और फ़िल्म पर काम करूँगा।’’

‘‘रहोगे कहाँ? बम्बई में सबसे बड़ी समस्या तो आवास की है।’’

‘‘वहीं रहूँगा, जहाँ पहले रहता था। बेप्सी के यहाँ, अँधेरी पूर्व में एक बड़ी हवेली में वह अकेली रहती है। मुझे अपने बेटे माफ़िक प्यार करती है, जिसका एक सडक़ दुर्घटना में देहान्त हो गया था। उसके पास एक लाइसेंसी बन्दूक है, जिसे वह हमेशा अपने आसपास रखती है। खाना एक पारसी होटल से आता है। मेरा खाना भी वहीं से आता है।’’ वह अपनी अँगूठी की तरफ प्यार से देख रहा था, ‘‘इस बार मैं बेप्सी के लिए सोने का ब्रेसलेट भी लाया हूँ।’’

‘‘कहीं इस बीच मर-मरा तो नहीं गयी?’’

‘‘वह मेरी बाँहों में ही दम तोड़ेगी। मैं भी उससे ज़्यादा दिन अलग नहीं रह सकता हूँ।’’

‘‘आगे की क्या योजनाएँ हैं?’’

‘‘यह तो ऊपर वाला ही जानता है।’’

‘‘एक बार दुरैस्वामी से क्यों नहीं मिल लेते?’’

‘‘वह कौन है?’’

‘‘अरे उसे नहीं जानते! कमाल का शख्स है, जो कह देता है होकर रहता है। मैं तो पेंटिंग के धन्धे में फँसा रहता, उसने कहा, नौकरी पर वापस लौट जाओ। सचमुच मैं राहत महसूस कर रहा हूँ। ओबी की तो उसने जि़न्दगी बदल दी, एक सी-फेस के भुतहे फ्लैट में रहने की ताकत दी और कहा कि एक दिन करोड़ों का मालिक होगा। सुनते हैं उसका धारावाहिक दूरदर्शन के लिए एप्रूव होने वाला है। इसकी भविष्यवाणी उसने तब की थी जब ओबी चप्पल चटखाते हुए बम्बई में भटक रहा था।’’

‘‘मुझे आज ही उससे मिलवाओ।’’

‘‘ओबी ही उसका ठिकाना जानता है। वह मिलवा देगा।’’

‘‘उसकी मॉडल का क्या हुआ?’’

‘‘दुरैस्वामी ने कहा था, एक दिन हीरोइन बनोगी, कुछ ही दिन में दत्त साहब ने उसे अपनी फ़िल्म के लिए साइन कर लिया।’’

‘‘क्या अब भी ओबी के यहाँ रहती है?’’

‘‘वह बहुत ऊँची हस्ती हो चुकी है। सुना है जुहू पर रहती है। आए दिन पत्रिकाओं के मुख पृष्ठ पर उसके चित्र छपते रहते हैं।’’

‘‘अभी लेमिंग्टन रोड पर जाकर ओबी से मिलता हूँ।’’ उसने सौ का एक नोट शुक्लाजी को देते हुए कहा, ‘‘आज टैक्सी से लौटिएगा। ट्रेन में बहुत मवाली और जेबकतरे घूमते हैं।’’

‘‘खुदा हाफ़िज़।’’ शुक्लाजी ने ब्रीफकेस उठाया और दफ्तर की तरफ चल दिए। सीट पर पहुँचकर उन्होंने मिसेज़ शुक्ला को फोन किया कि वह विश्वविद्यालय में उनकी प्रतीक्षा करे, आज टैक्सी में साथ-साथ लौटेंगे। कुछ ही देर में चन्दन वापस लौट आया, ‘‘पता चला ओबी और सुप्रिया दोनों दफ्तर में नहीं हैं। कल इतवार है, घर पर मिल लूँगा। आज आपके साथ ही चलूँगा, मुझे अन्धेरी तक लिफ्ट दे दीजिये।’’

अगले रोज़ सुबह नाश्ता करते ही चन्दन शिवाजी पार्क की तरफ जाने वाली बस पर बैठ गया। बस, समय ज़्यादा लेती है, मगर उसे बस में चलना ट्रेन से कहीं अधिक अच्छा लगता था। जीवन की जो चहल-पहल बस से देखी जा सकती है, वह ट्रेन में सम्भव नहीं।

ओबी के यहाँ धारावाहिक की टीम का लंच था। चन्दन की नज़र सबसे पहले शेफाली पर पड़ी। उसके गालों पर शर्मिला टैगोर की तरह डिम्पल पड़ता था, रेखा जैसी केश राशि थी, नूतन जैसा कद और माला सिन्हा जैसे उरोज। उसने उसी समय उसे मन ही मन अपनी पहली फ़िल्म के लिए साइन कर लिया।

‘‘ओ जौहरी साहब, आप कहाँ से टपक पड़े?’’

वह हँसा, ‘‘आपको बधाई देने चला आया, सुना है आप कोई धारावाहिक प्रोड्यूस कर रहे हैं।’’

‘‘जौहरी साहब, इस समय आप धारावाहिक की यूनिट के साथ हैं। अब आप ही एक समस्या का हल बताइए। यूनिट के तमाम सदस्य वीक एंड पर पिकनिक मनाने जाना चाहते हैं। मैं इन्हें समझा रहा हूँ कि चौपाटी से खूबसूरत जगह कौन हो सकती है!’’

‘‘मेरा सुझाव खंडाला चलने का है।’’

‘‘मैं लोनावला के लिए कम्प्रोमाइज़ कर सकता हूँ।’’ धारावाहिक में शेफाली का पति कारदार बोला।

‘‘छोड़ो सब झगड़ा, माथेरान तक हो आते हैं। मुझे माथेरान बहुत प्रिय है।’’

‘‘माथेरान से अच्छा है, एलिफेंटा केव्स तक हो आएँ। फेरी का आनन्द भी मिल जाएगा।’’

‘‘भई आप लोग धैर्य रखें! अभी वोदका पियें और पॉम्फ्रेट का आनन्द लें। सुप्रिया जी ने अपने हाथ से बनायी है। मैंने मुर्गा रोस्ट किया है, अँगुलियाँ चाटते रह जाओगे।’’

‘‘बात टालना कोई आपसे सीखे!,’’ शेफाली इठला कर बोली, ‘‘मैं तो खंडाला जाऊँगी।’’

‘‘दूरदर्शन से एप्रूवल आ जाए, मैं अगली अमावस्या को एक नायाब दावत दूँगा।’’

‘‘ज़रा सुनें तो?’’

‘‘अमावस की काली रात को मड आईलैंड चलेंगे। आप सब अपनी-अपनी माशूकों को भी न्योता दे सकते हैं, मगर वहाँ इतना अन्धेरा होगा और वह ऐसी कयामत की रात होगी कि किसी को खबर न होगी, उसकी माशूक किसकी बाँहों में है। रात बारह बजे पेट्रोमैक्स जला दिया जाएगा और उसके बाद सी फूड का डिनर होगा।’’

‘‘न बाबा न, मैं तो प्रस्ताव सुन कर ही दहशत में आ गयी हूँ। चलना है तो चलो खंडाला।’’

चन्दन को बहुत कष्ट हुआ कि इतनी सुन्दर लडक़ी के अनुरोध की तरफ कोई ध्यान नहीं दे रहा। अचानक वह खड़ा हो गया और बोला, ‘‘दोस्तो, मैं ओबी को बहुत कम जानता हूँ। आप मुझसे भी कम जानते हैं। ओबी चाहे तो आपको स्विट्ज़रलैंड घुमा सकता है, मड आईलैंड की बात छोडिय़े। पिछली बार मैं इनके यहाँ आया था तो एक लडक़ी नीचे फर्श पर गद्दा डालकर पड़ी रहती थी, आज देश भर में उसके चर्चे हैं। दत्त साहब ने उसे साइन करके उसके लिए जन्नत के दरवाज़े खोल दिए। ओबी एक पारस पत्थर है, जिसको छू देगा, वह सोना बन जाएगा।’’

‘‘ओबी प्लीज़ एक बार मुझे छू दो।’’ शेफाली ओबी के स्पर्श की माँग करने लगी। ओबी ने उसे बाँहों में भरकर चूम लिया।

चन्दन ने कहा, ‘‘अब मैं आप लोगों से वादा करता हूँ, मैं आप सबको आगामी वीक एंड पर खंडाला ले चलूँगा। एक मिनी बस किराये पर लेंगे, उसमें स्कॉच का एक क्रेट होगा, शेफाली जी और सुप्रिया जी के लिए कम्पारी और मेरे लिए निम्बू पानी का इन्तज़ाम रहेगा। फ्राइडे को चलकर हम लोग संडे ईवनिंग को लौट आएँगे।’’

सब लोगों ने तालियाँ पीट कर इस प्रस्ताव का स्वागत किया और तय हो गया कि ओबी मेज़बान नहीं इस पिकनिक का इन्तज़ाम अली भी होगा।

चन्दन ने जेब से सौ की एक गड्डी लहराते हुए कहा, ‘‘तमाम भुगतान सुप्रिया जी करेंगी। बजट तीन हज़ार रुपये का है, वह मैं अभी सुप्रिया जी को सौंप दूँगा, मगर ओबी को एक पैसा न दूँगा। उसकी अभी आपके सामने तीन क्या तीस हज़ार रुपये फूँकने की क्षमता है। वह पैसे का दुश्मन है, जितना मैं ओबी को जानता हूँ, उसकी बिना पर यह नि:संकोच कह सकता हूँ।’’

उसने उसी समय सौ-सौ के तीस नोट सुप्रिया को सौंप दिए। धारावाहिक के हीरो ने उसे गोद में उठा लिया। सब लोगों ने अपना अपना ड्रिंक तैयार किया और ‘चियर्स’ का जयघोष हुआ।

शुक्रवार को काफ़िला खंडाला के लिए रवाना हो गया। शिवेन्द्र अपनी बंगालन दोस्त कल्याणी के साथ पूना जा रहा था, वे लोग भी साथ हो लिए। उसके एक क्लायंट का लोनावला में रिज़ॉर्ट था, शिवेन्द्र ने पचास प्रतिशत डिस्काउंट पर चार कमरे दिलवा दिए। वह तो अगले रोज़ स्कॉच की एक बोतल और कल्याणी को लेकर पुणे रवाना हो गया। बाकी लोगों ने जमकर सैर-सपाटा और मस्ती की।

शनिवार की सुबह सब लोग स्तब्ध रह गये जब उन्होंने देखा एक हिल टॉप पर चन्दन शेफाली के साथ सूर्योदय का आनन्द ले रहा था। उसने शेफाली को विश्वास में ले लिया था कि वही उसकी पहली फ़िल्म की हीरोइन होगी। वेद राही की कहानी होगी और वही फ़िल्म का निर्देशन करेंगे। हीरो का चुनाव उसने शेफाली पर छोड़ दिया। उसके बाद वह और शेफाली हर वक्त साथ नज़र आते। वे लोग लंच पर गायब हो जाते और सीधा डिनर के समय प्रकट होते।

‘‘यार इस शख्स के चेहरे से यतामत छलकती है, इसने शेफाली पर कैसे डोरे डाल दिए?’’ धारावाहिक के हीरो ने जल भुनकर ओबी से पूछा।

‘‘मेरा अनुभव है, कुछ लड़कियाँ दौले शाह की चुहिया पर ही मर मिटती हैं।’’ ओबी बोला, ‘‘तुम काहे को परेशान हो रहे हो? वह अब तक कई चन्दनों को बेवकूफ बना चुकी होगी।

छोटे-छोटे ग्रुप बन गये थे। दिन भर शॉपिंग, खाना-पीना और गाना-बजाना होता। रात को कैम्प फायर।

इतवार की सुबह दोनों प्राचीन बौद्ध गुफाएँ देखने निकल गये और फिर लौट कर न आये। ड्राइवर ने बताया वे लोग खंडाला रवाना हो गये हैं और मंडे को बम्बई में मिलेंगे।

वह एक बुझी बुझी-सी सुबह थी। रात से ही झमाझम बारिश हो रही थी। समुद्र बेआवाज़ था। तट पर सन्नाटा था। ओबी को कम रोशनी से नफरत थी, जो इस समय चारों तरफ पसरी थी। उसने सिगरेट सुलगाया और काकाजी को चाय बनाने के लिए कहा। काकाजी उसकी बेचैनी समझ रहे थे। उन्होंने घर की तमाम बत्तियाँ जला दीं। घर लौटने पर ओबी सबसे पहले यही करता था। यहाँ तक कि टॉयलेट और बरामदे की बत्तियाँ भी जला देता था। अक्सर सुबह की चाय वह सुप्रिया के साथ ही पिया करता था, मगर आज वह जैसे घोड़े बेचकर सो रही थी। उसने मुँह तक चादर ओढ़ रखी थी।

‘‘लगता है यह आज दफ्तर जाने के मूड में नहीं है।’’ उसने सोचा और गीजर ऑन कर दिया। उसकी जेब खाली थी, रुपये पैसे पर सुप्रिया का कब्ज़ा था। उसने सुप्रिया का पर्स खोलकर टटोला। उसने मुड़ा-तुड़ा दस का एक नोट था और कुछ रेजगारी। उसे मालूम था कि उसके पास अभी दस हज़ार तक की रकम हो सकती थी। अकसर वह अपनी साडिय़ों के नीचे पैसे छुपाकर रखती थी। उसने तमाम साडिय़ाँ उठाकर देख लीं, कहीं कुछ न था।

वह नहा धोकर बाथरूम से निकला तो काकाजी नाश्ता परोसने लगे।

‘‘मेरे लिए दो टोस्ट सेंक दो और दो अंडों को हाफ फ्राई कर दो।’’

काकाजी जब आये थे ता अंडा छूते तक न थे, इतने वर्षों में यह परहेज़ खत्म हो चुका था।

ओबी तौलिया पहने आदमकद आईने के सामने खड़ा था, जो उसकी अल्मारी में ही जड़ा था। अकसर वह सफेद शर्ट और सलेटी रंग की पतलून पहनता था। टाई का शेड बदलता रहता था। उसने बड़े चटख रंग की टाई निकाल ली और पहनने के लिए जूते छाँटने लगा। उसने शू रैक खोला और सबसे महँगा जूता निकाल लिया। यह जोड़ा उसने बैंगलौर से खरीदा था। वह जिस शहर में जाता, जूता ज़रूर खरीदता था। खंडाला में भी सब लोग चिक्की वगैरह खरीद रहे थे और वह अपने लिए कोल्हापुरी चप्पल पसन्द कर रहा था।

‘‘घर में एक दर्जन कोल्हापुरी चप्पलें हैं। अब क्या जूतों की दुकान खोलोगे!’’

‘‘हाँ खोलूँगा।’’ वह सबके बीच गाने लगा—

बारहीं बरसीं खटन गया सी

खटके लियाया जूता।

सुप्रिया टूटी-फूटी पंजाबी में बोली, ‘‘तेरी मेरी नईं निभनीं।’’

सब लोग ताली पीटने लगे थे।

नाश्ता करने के बाद उसे सुप्रिया की चिन्ता हुई, अचानक उसे लगा कि कहीं मर-मरा तो नहीं गयी। उसने पास जाकर उसे झँझोडऩा शुरू किया।

‘‘मेरी हड्डी पसली तोड़ कर भी तुम्हारी तसल्ली नहीं हुई। सोने दो। बहुत मीठी नींद आ रही है।’’

‘‘मेरी जान, दस बज चुके हैं।’’

‘‘मैं बाद में आ जाऊँगी।’’ सुप्रिया ने करवट बदल ली।

‘‘ऐसा तो तुम कभी नहीं सोती थी। कहीं प्रेगनेंट तो नहीं हो गयीं?’’

सुप्रिया ने कोई जवाब न दिया और अपने को अच्छी तरह चादर में लपेट लिया। बारिश के कारण माहौल में हल्की-सी खुनकी आ गयी थी।

‘‘मैं जा रहा हूँ। अल्लाह के नाम पर कुछ पैसे दे दो।’’

‘‘मेरे पर्स से ले लो।’’

‘‘उसमें सिर्फ दस का एक नोट है।’’

‘‘काकाजी से उधार ले लो। मैं चुका दूँगी।’’

तभी चन्दन कमरे में नमूदार हुआ। वह सिर से पैर तक भीगा हुआ था। लग रहा था दादर स्टेशन से भीगते हुए पैदल ही चला आ रहा है।

‘‘यह कैसी हालत बना रखी है तुमने?’’ ओबी ने कहा, ‘‘तौलिया लो और हाथ-मुँह अच्छी तरह पोंछ लो, ऐसे तो बीमार पड़ जाओगे।’’

‘‘मुझे पाँच हज़ार रुपये अभी चाहिए।’’

‘‘यह तो बड़ी रकम है, मेरे पास तो आज टैक्सी का पैसा नहीं है।’’

‘‘कहाँ गये वे दो लाख?’’

‘‘कौन से दो लाख?’’

‘‘जो मैंने तुम्हारे पास अमानत के तौर पर रखे थे।’’

बातचीत सुन कर सुप्रिया के भी कान खड़े हो गये। ओबी ने उसे दो लाख के बारे में कुछ नहीं बताया था।

‘‘तुम्हारा दिमाग तो ठीक है या सपना देख रहे हो?’’

‘‘मुझे उल्लू मत बनाओ, चुपचाप मेरे रुपये लौटा दो वरना मैं पुलिस की मदद लूँगा।’’

सुप्रिया ने हाउस कोट पहना और चन्दन के पास जाकर बोली, ‘‘मुझे बताओ, क्या बात है? झालं तरी काय?’’

‘‘इलाहाबाद से लौट कर मैंने इनको दो लाख रुपये दिए थे और कहा था, जब जब ज़रूरत होगी, मैं लेता रहूँगा।’’

‘‘मुझे याद है, जब तुम इलाहाबाद से लौटे थे तो तुम्हारे हाथ में एक ब्रीफकेस था, मगर जाते समय तुम अपने साथ ले गये थे।’’

चन्दन सिर खुजाने लगा, ‘‘इस शहर में हर कोई मुझे ठग रहा है। यह बम्बई नहीं ठगों की बस्ती है।’’ वह वहीं फर्श पर बैठ गया और बच्चों की तरह ज़ोर-ज़ोर से रोने लगा।

सुप्रिया ने उसे चाय का प्याला थमाते हुए कहा, ‘‘लो चाय पिओ बेटा। तुम्हें ज़रूर गलतफहमी हो गयी है। याद करो कहीं टैक्सी में तो ब्रीफकेस नहीं भूल गये?’’

वह उसी प्रकार रोता रहा। सुप्रिया ने उसका सिर ऊपर कर अपने हाथों से चाय का एक घूँट पिलाया। गर्म-गर्म चाय उसे अच्छी लगी। उसने प्याला पकड़ लिया सुडक़-सुडक़ पीने लगा।

‘‘लगता है यह ब्रीफकेस कहीं रख कर भूल गया है।’’ सुप्रिया बोली, ‘‘याद करो उस रोज़ तुम कहाँ कहाँ गये थे।’’

‘‘मैं सीधा खंडाला चला गया था। वहाँ शेफाली ने मुझे ठग लिया। उसी दिन से मेरी सोने की चेन गायब है।’’

‘‘चेन तो तुम्हारे गले में लटक रही है।’’

उसने छूकर देखा और सुप्रिया के पैर छू कर मुआफी माँगी, ‘‘मुझे माफ कर दो यार मुझे बहुत घबराहट हो रही है। मुझे डॉक्टर के पास ले चलो।’’

‘‘इसे कोई गहरा सदमा पहुँचा है। माहिम में डॉ. वागले का खैराती अस्पताल है। तुम जल्दी से तैयार हो जाओ।’’

सुप्रिया जल्द से तैयार होकर आ गयी और काकाजी की मदद से उसे टैक्सी तक पहुँचाया। संयोग से डॉ. बापट अपने चैम्बर में ही थे। सुप्रिया की आई के वह रिश्ते में भाई थे। बचपन से ही सुप्रिया के पारिवारिक डॉक्टर। उसे आज ओबी और चन्दन के साथ देखकर वह कुछ समझ नहीं पाए।

‘‘ये हैं मिस्टर ओबेराय। क्लिफ्टन पार्क एंड ली के एम.डी.। आजकल मैं इनकी फर्म में ही काम करती हूँ। चन्दन एक करोड़पति बाप का बेटा है और बम्बई में फ़िल्म लाइन में जगह बनाने के लिए स्ट्रगल कर रहा है। आज यकायक अस्वस्थ हो गया।’’

डॉ. ने उसकी नब्ज़ देखी, ब्लडप्रेशर लिया। चन्दन टुकुर-टुकुर सब देख रहा था।

‘‘लगता है, इन्हें कोई सदमा लगा है। दिमागी तौर पर भी अस्थिर हो रहा है। फिलहाल, भर्ती किए लेता हूँ और सेडेटिव का इंजेक्शन देकर सुला देता हूँ।’’

वार्ड ब्वाय उसे अपने साथ में ले गये।

ओबी ने डॉ. वागले को अपना विजि़टिंग कार्ड दिया और बोला, ‘‘किसी भी समय आप फोन करवा के मुझे बुलवा सकते हैं।’’

‘‘शुक्रिया डॉ. मामा।’’ सुप्रिया बोली और दोनों बाहर निकल आए।

‘‘कैसा सदमा लगा होगा इसे?’’ सुप्रिया ने पूछा।

‘‘यह तो शेफाली बता सकती है। खंडाला में उसी के साथ टहल रहा था।’’

‘‘दफ्तर जाकर उसे फोन करूँगी।’’

‘‘जहाँ तक मुझे याद पड़ रहा है, उस रोज़ यह हमारे यहाँ से शुक्लाजी के यहाँ गया था।’’

‘‘उनसे भी पूछ लेना चाहिए।’’

दफ्तर पहुँचकर सबसे पहले सुप्रिया ने शेफाली से बात की और सारा किस्सा बयान किया।

‘‘दीदी वह तो नीम पागल आदमी है। ज़बरदस्ती मेरे हाथ में अपनी अँगूठी पहना दी। मेरी अँगुलियों के लिए वह बहुत खुली अँगूठी थी, उसने मेरे अँगूठे में पहना दी। बहुत भारी अँगूठी है। उसने कोई बदतमीजी भी न की और लगातार मेरी तारीफ करता रहता था कि वह मुझे अपनी फ़िल्म में हीरोइन का रोल देगा।’’

‘‘बम्बई लौटकर कोई बात नहीं हुई?’’

‘‘वह रात-बिरात किसी भी समय फोन करने लगा था, मैंने उसे समझा दिया कि वह ऐसा न करे। वह फोन पर रोने लगा, मैंने रिसीवर रख दिया।’’

‘‘उसके बाद तो फोन नहीं आया?’’

‘‘कई बार आया, मगर मैंने उठाया नहीं।’’

‘‘लगता है कोई भटकी हुई रूह है। आदमी नेक है मगर कोई गाइड करने वाला नहीं। जिसकी आँखों में ज़रा-सा अपनापन देखता है, उसी का हो जाता है। वक्त मिले तो एक बार माहिम जाकर वागले के अस्पताल में उसे देख आना।’’

‘‘मैं कोशिश करूँगी दीदी, अगर कोई साथ मिल गया।’’

शुक्लाजी को फोन करने पर पता चला कि वह उनके पास दो लाख रुपये छोड़ गया था, लगता है अब भूल गया है।

‘‘क्या करना चाहिए?’’

‘‘उसके घर का पता आपके पास है क्या?’’

‘‘था तो, जब उसके लिए टिकट खरीदा था तो उसने लिखवाया था।’’

‘‘उसे ढूँढ़ निकालो यार, वरना वह बेमौत मारा जाएगा।’’

संयोग से दोपहर तक शुक्लाजी ने पता खोज निकाला। उसका इलाहाबाद का फोन नम्बर भी मिल गया। उन्होंने ओबी को पता और फोन नम्बर दे दिया और बोले, ‘‘लौटते समय वह उसे देखते हुए घर लौटेंगे।’’

ओबी ने तुरत उसके पिता को फोन मिलाया और हालात बताते हुए उन्हें तुरत बम्बई पहुँचने को कहा। उसके पिता को शुक्लाजी के फोन नम्बर भी लिखवा दिए और कहा कि उनका पैसा सुरक्षित रखा है।

शिवेन्द्र ने आयकर आयुक्त के सम्मान में पार्टी का आयोजन किया था। माथुर साहब अब तक बड़े से बड़े उद्योगपति का निमन्त्रण अस्वीकार कर चुके थे। जब उनके पास शिवेन्द्र का निमन्त्रण पहुँचा तो बम्बई के उद्योग जगत में अचानक शिवेन्द्र पर शोध होने लगा। कौन है यह माई का लाल जो माथुर साहब को पार्टी में लाने में सफल हो गया। शिवेन्द्र ने केवल दो सौ लोगों को निमन्त्रण भेजे थे, इनमें अधिसंख्य उद्योगपति और सिनेजगत के अभिनेता-अभिनेत्रियाँ थीं। प्रेस को इस पार्टी से दूर ही रखा गया था। पार्टी का आयोजन वर्ली के एक क्लब में किया गया था। सुप्रिया को मेहमानों का स्वागत करने की जि़म्मेदारी दी गयी थी और सम्पूरन को मेहमानों की आवभगत का काम सौंपा गया था। हाल में सफेद टोपी पहने एक दर्जन बैरे ड्रिंक्स और कबाब आदि लिये कठपुतलियों की तरह घूम रहे थे, उनका धागा सम्पूरन की अँगुली से बँधा था। वह सबके गिलासों पर निगाह रख रहा था कि खाली होते ही उसका खालीपन मिटा दिया जाए।

शिवेन्द्र ने उद्योग जगत में खास महत्त्व रखने वाले हर उस उद्योगपति से सम्पूरन को यह कहकर परिचय कराया कि वह इस समय विज्ञापन जगत में चमकने वाला सबसे तेज़ सितारा है। उसके आने वाले धारावाहिक से मनोरंजन के क्षेत्र में एक ज़ोरदार परिवर्तन आने वाला है। ठीक उसी समय सम्पूरन अपनी जेब से अपना विजि़टिंग कार्ड पेश करता, कार्ड पाते ही सामने का उद्योगपति भी अपना कार्ड थमा देता— ‘‘यू आर वेलकम।’’

सम्पूरन को जानकर हर्ष हुआ कि शिवेन्द्र की बड़े बड़े सितारों और उद्योगपतियों से अच्छी-खासी दोस्ती थी। हर सितारे की बगल में उसकी नयी फ़िल्म की अभिनेत्री थी। सितारों और उद्योगपतियों की बीवियों की उपस्थिति नगण्य थी। मेहमानों ने शिवेन्द्र के निमन्त्रण के नीचे इस पंक्ति का सम्मान किया था कि कोई भी अपने साथ उपहार न लाये। हर कोई माथुर साहब से मिलने को आतुर था, अतिथियों को मुख्य अतिथि से मिलवाने का मोर्चा शिवेन्द्र ने सँभाल रखा था।

कुछ देर में अतिथियों की छोटी-छोटी टोलियाँ बन गयीं और वे डाइनिंग टेबल पर स्थापित होने लगे। बहुत ही अनुशासित पार्टी थी, ऐसी शालीन पार्टी कम ही हुआ करती है। माथुर साहब का इतना दबदबा था कि उनकी उपस्थिति क्लास में टीचर की तरह थी।

‘‘यार यह कैसा शख्स है, इसने मुस्कराना भी नहीं सीखा।’’ एक खान बन्धु ने दूसरे खान से कहा।

‘‘मुझे तो शक्ल से ही जल्लाद लग रहा है।’’

‘‘मुझे तो बाल ब्रह्मचारी लगता है।’’ तीसरे खान ने कहा।

सिनेजगत के अलावा भी उनके व्यक्तित्व को लेकर हर उद्योगपति का भी यही आकलन था कि ऐसा पत्थरदिल इनसान पहली बार आयुक्त बनकर बम्बई आया है।

माथुर साहब शुरू से ही एकान्त प्रिय व्यक्ति थे। लोगों को यह जान कर आश्चर्य होता कि उन्होंने अन्तरजातीय और अन्तरप्रान्तीय प्रेम विवाह किया था। उनकी पत्नी विदेश सेवा में हैं और इस समय विदेश मन्त्रालय में इस मरहले पर थीं कि किसी भी समय विदेश सचिव हो सकती थीं। माथुर साहब के दो लडक़े थे, दोनों प्रशासनिक सेवा में थे। इस पार्टी में उपस्थित कोई भी व्यक्ति इस बात की कल्पना नहीं कर सकता कि माथुर साहब अपने मित्रों के बीच खूब गज़लें सुनाया करते हैं, वह भी तरन्नुम में।

पार्टी निर्धारित समय पर निर्विघ्न रूप से समाप्त हो गयी। अन्त में शिवेन्द्र, ओबी और सुप्रिया ने उन्हें विदा किया। अब तक शिवेन्द्र और सम्पूरन अपने पर नियन्त्रण रखे थे, दोनों ने अपने-अपने गिलास टकराये और दिन की शुरुआत की। दोनों ने बीच में रोस्टेड चिकेन और प्रॉन पकौड़े रख लिए और वे पार्टी का विश्लेषण करने लगे।

‘‘देखो यार। मैं तो दस बड़े उद्योगपतियों का आयकर सलाहकार हो जाऊँगा। मैं घोड़ों से ऊब चुका हूँ। घोड़ों की बेवफाई ने मुझे धन्धा बदलने को मजबूर कर दिया है। मगर मैं जानता हूँ, जेब में मूड़ी आते ही मैं दोबारा रेसकोर्स जाऊँगा। जब तक रेसकोर्स नहीं जाता, सुप्रिया सुनो, जब तक रेसकोर्स नहीं जाता, मैं सम्पूरन पर दाँव लगाऊँगा। तुम्हारा धारावाहिक हिट होगा। इतने विज्ञापन दिला दूँगा कि तुम्हारी जि़न्दगी बदल जाएगी। मैं तुम्हें लेमिंग्टन रोड से वर्ली में स्थापित कर दूँगा। ओबी, मैं नजूमी हूँ। मैं तुम्हारा भविष्य देख रहा हूँ। एक दिन मैं दुरैस्वामी को धूल चटा दूँगा।’’

सम्पूरन उसके पैर छूकर बोला, ‘‘भाई, मैं कसम खाता हूँ, ताउम्र आपका गुलाम रहूँगा। आज आपका जलवा देखकर मैं दंग रह गया। भारत के सबसे नामी उद्योगपतियों को भी आपके दरबार में हाजि़री देनी पड़ी।’’

‘‘एक तो कह रहा था, आपको राज्यसभा पहुँचा दूँगा, आप बहुत काम के आदमी हो। वह मुझ पर कोई भी दाँव लगाने को तैयार था।’’

‘‘सुप्रिया, तुम तिजौरी खरीद लो, मुझे लग रहा है जल्द ही तुम्हारे ऊपर पैसों की बरसात होने वाली है।’’

ओबी भी हवा में तैर रहा था, परन्तु वह सपने नहीं देख रहा था। वह शिवेन्द्र को बता रहा था कि शायद ही बम्बई में कभी इतने बड़े उद्योगपति एक साथ देखे गये हों। यह शिवेन्द्र की सफलता है कि पूरी पार्टी में बताया जा सकता था कि ‘हू इज़ हू ऑफ बम्बई’।

‘‘आप बम्बई के बेताज बादशाह हैं।’’ ओबी ने शिवेन्द्र से कहा।

शिवेन्द्र टॉयलेट जाने के लिए खड़ा हुआ, मगर लडख़ड़ा कर बैठ गया।

सुप्रिया ने उसका गिलास पलट कर रख दिया, ‘‘अब और नहीं।’’

‘‘आई हेट यू सुप्रिया, आई हेट यू।’’ कहते हुए वह मेज़ पर झुक गया।

सम्पूरन बैरों की मदद से उसे किसी तरह गाड़ी तक ले गया। गाड़ी का ड्राइवर भी नीचे कै कर रहा था। बैरा लोगों ने उसका हाथ-मुँह धुलाया और नीबू का अचार चटाया था। ओबी ने उसे भी पिछली सीट पर शिवेन्द्र की बगल में बैठा दिया। उसने एक बैरे को साथ लिया और सुप्रिया स्टीयरिंग पर बैठ गयी। केवल वही इस स्थिति में थी, जो सही-सलामत सबको घर पहुँचा सकती थी। चर्चगेट पहुँचते पहुँचते ड्राइवर कुछ सचेत हुआ। बैरे और ड्राइवर ने अपने-अपने गले में शिवेन्द्र की बाँहें लपेट लीं और उसे सीढिय़ों का सफर तय कराने लगे।

सुबह काकाजी दो बार चाय बनाकर रख चुके थे, मगर सम्पूरन लोग सोते रहे। कई बार टेलीफोन की घंटी बजकर बन्द हो गयी। आजिज़ आकर काकाजी ने रिसीवर उठाया। पता चला दूसरी तरफ स्वर्ण था और वह कोई ज़रूरी बात करना चाहता था।

‘‘एक घंटे बाद फोन कीजिये, साब लोग अभी सो रहे हैं।’’

काकाजी ने खिडक़ी पर से परदे उठा दिए। कुछ ही देर में बिस्तर पर धूप आ गयी। ओबी आँखें मलते हुए उठा और सामने घड़ी देखी— बारह बजे थे।

‘‘काकाजी फौरन चाय पिलाइए।’’ उसने सुप्रिया को झंझोड़ा, ‘‘देख रही हो, क्या टाइम हो गया है!’’

‘‘मेरा तो ग्यारह बजे महाशय जी से एप्वायंटमेंट था? एक बजे की फ्लाइट से वह दिल्ली लौटने वाले थे।’’

‘‘कई बार फोन बजा था।’’ काकाजी ने चाय के गिलास रखते हुए कहा, ‘‘स्वर्ण साहब का भी फोन था। वह ज़रूरी बात करना चाहते थे।’’

‘‘लगता है, सीरियल एप्रूव हो गया होगा। स्वर्ण कह रहा था इसी हफ्ते फैसला होने वाला था।’’

फोन का तार लम्बा था। उसने काकाजी को फोन लाने को कहा और स्वर्ण का नम्बर मिलाया। स्वर्ण का ड्राइवर फोन पर था— ‘‘साहब तो दो दिन से दिल्ली में हैं।’’

‘‘उसका दिल्ली का नम्बर मालूम है?’’ ओबी ने पूछा।

‘‘नाहीं।’’ वह बोला और रिसीवर रख दिया।

ओबी टॉयलेट में था, जब फोन की घंटी दोबारा बजी।

सुप्रिया ने लपक कर रिसीवर उठाया, ‘‘सुप्रिया हि हेयर।’’

‘‘स्वर्ण हूँ दिल्ली से, सुबह से फोन मिला रहा हूँ।’’

‘‘बोलो क्या खबर है?’’

‘‘बहुत बुरी खबर है। आज सुबह सलूजा का निधन हो गया। वह चौबीस घंटे से आईसीयू में था।’’

‘‘क्या हुआ था उसे?’’

‘‘दिल का दौरा पड़ा था।’’

ऐसे माहौल में वह आगे क्या बात करती। उसने रिसीवर रख दिया। उसका नम्बर लेना भी भूल गयी। कुछ देर बाद फोन करके जानकारी हासिल की जा सकती थी कि उसने जाने से पहले धारावाहिकों पर निर्णय लिया था या नहीं।

फोन की घंटी सुनकर ओबी तौलिया पहने टॉयलेट से निकल आया, ‘‘किसका फोन था?’’

‘‘बहुत बुरी खबर है ओबी। सलूजा की डेथ हो गयी हार्टअटैक से।’’

ओबी सोफे पर पसर गया, ‘‘काकाजी चाय।’’

‘‘मैंने उसे दोबारा फोन करने को कहा है।’’ सुप्रिया ने अपने बचाव में झूठ बोला। वह जानती थी ओबी अभी डाँटना शुरू कर सकता था, तुमने फोन नम्बर क्यों नहीं लिया, धारावाहिक के बारे में क्यों नहीं पूछा।

ओबी चाय सुडक़ने लगा।

वह हस्बेमामूल इकनामिक टाइम्स उठाकर टॉयलेट में घुस गया। थोड़ी देर में रोज़ की तरह शावर की आवाज़ आने लगी। अकसर वह बाथरूम में नहाते हुए ऊँचे स्वर में कुछ न कुछ गाया करता था, आज सिर्फ पानी में छींटों की दस्तक सुनायी दे रही थी। नहा-धोकर वह तरोताज़ा, महकते हुए निकला और अपनी वार्डरोब के सामने खड़ा हो गया। सुप्रिया को लगा कि इस समय वह बातचीत के मूड में नहीं है, वह भी टॉयलेट में घुस गयी।

सम्पूरन ने सबसे भडक़ीली कमीज़ हैंगर से उतारी और कुछ सोचकर वापस वार्डरोब में रख दी। आखिर उसने एक पीच रंग की शर्ट निकालकर तुरत पहन ली। बहुत दिनों के बाद उसने सफेद रंग का ट्राउज़र पहना और औरतों की तरह आइने में दायें-बायें देखकर जायज़ा लेने लगा। फिर उसने शिवेन्द्र को फोन मिलाया और पूछा, ‘‘भाजी, एक बात बताइए, अब तक आप एक दिन में रेस में कितना पैसा हारे हैं?’’

‘‘क्यों सुनना चाहते हो, बच्चे सुनोगे तो बेहोश हो जाओगे।’’

‘‘भाजी, आज कर ही डालिये बेहोश।’’

‘‘एक दिन में डेढ़ लाख हारने का रिकार्ड बना चुका हूँ।’’

सम्पूरन हँसा, ‘‘मैं आपका छोटा भाई हूँ, आपसे तो आधा स्कोर भी नहीं कर पाया।’’

‘‘क्या हुआ?’’

‘‘मेरा तो घोड़ा ही मर गया।’’

‘‘क्या मतलब?’’

‘‘सलूजा की दिल का दौरा पडऩे से मौत हो गयी, जिस पर मेरा धारावाहिक पास कराने की जि़म्मेदारी थी।’’

‘‘जी छोटा न कर मुंड्या। हारने वाले ही जीता करते हैं। तुमने मेरा जीतने का रिकार्ड तो पूछा ही नहीं।’’

‘‘वह क्या है भाजी?’’

‘‘ढाई लाख।’’ शिवेन्द्र बोला, ‘‘आज शाम मेरे यहाँ चले आना। सब गम गलत हो जाएँगे।’’

‘‘चंगा।’’ सम्पूरन बोला, ‘‘मैं ज़रूर आवाँगा।’’

शिवेन्द्र से बात करके उसका जी हल्का हो गया। जब तक सुप्रिया बाथरूम से निकली, वह काफी हद तक सामान्य हो चुका था। उसने तय किया कि दफ्तर जाते हुए मार्केट से टाइम और लाइफ के नये पुराने अंक खरीदेगा और आज से ही अपने पुराने धन्धे में उतर जाएगा। किसी भी निर्णय पर पहुँचने से पहले वह एक बार स्वर्ण से बात कर लेना चाहता था।

दफ्तर पहुँचते ही मारिया ने बताया कि दो बार दिल्ली से स्वर्ण जी का फोन आ चुका है। उसने उनका नम्बर ले लिया है।

‘‘यू आर ग्रेट मारिया। फौरन बात कराओ। अर्जेंट कॉल बुक करा दो, फिर भी न मिले तो डैंगसन साहब से बोलो, उनकी एक्सचेंज में जान पहचान है।’’

‘‘तुम जी छोटा न करो डार्लिंग।’’ सम्पूरन ने सुप्रिया से कहा, ‘‘मुझे अपने पर पूरा भरोसा है। जब बम्बई आया तो जेब में सिर्फ बीस रुपये थे, आज मेरे पास तू है, दफ्तर है, दफ्तर में मारिया है, समुद्र किनारे बँगला है, चाहे भूतबँगला ही क्यों न हो। मेरे सिर पर छत है। कर्ज़ भी ज़्यादा नहीं है, जबकि तुम जानती हो, ये कन्धे लाखों का कर्ज़ उठाने की कुव्वत रखते हैं।’’

‘‘बड़े जाँबाज़ हो।’’

‘‘यह शब्द कहाँ से सीख गयी?’’

‘‘टी.वी. से।’’

स्वर्ण की कॉल दो घंटे तक न मिल पायी। सम्पूरन ने भी ऑपरेटर की बहुत खुशामद की, मगर सफल नहीं हो पाया। डैंगसन का प्रभाव भी निष्प्रभावी रहा। तीन बजे अचानक स्वर्ण का ही फोन आ गया।

‘‘तुम्हें कैसे मिल जाती है कॉल?’’

‘‘संचार मन्त्री के पीए के यहाँ ठहरा हूँ।’’

‘‘मेरा यार तो मेरे पहुँचने से पहले ही चल बसा। तुम चिन्ता मत करो। तुम्हारा सीरियल उसी दिन पास हुआ था, जिस दिन सलूजा को दिल का दौरा पड़ा।’’

‘‘तो सीरियल एप्रूव हो गया?’’ सम्पूरन को विश्वास नहीं हो रहा था, ‘‘बल्ले बल्ले!’’

‘‘मगर एक लफड़ा पड़ गया है?’’

‘‘क्या?’’

‘‘बम्बई के ही एक आलू के थोक व्यापारी ने आदेश जारी होने से पहले ही कोर्ट से स्टे ऑर्डर ले लिया है। उसने एक सीरियल को फाइनेंस किया था, उसे खबर लग गयी थी कि उसका धारावाहिक रिजेक्ट हो गया।’’

‘‘अब क्या होगा?’’

‘‘होगा क्या, सरकार स्टे ऑर्डर वेकेट कराएगी। यहाँ सलूजा के प्रति सहानुभूति की लहर आयी हुई है। अधिकारी भी चाहते हैं उसके अन्तिम प्रोजेक्ट में रुकावट नहीं आनी चाहिए।’’

‘‘इसमें तो बहुत समय लग सकता है।’’

‘‘सरकार इस मसले को जल्द से जल्द सुलझा लेना चाहती है।’’

‘‘इसका मतलब हुआ, कुछ भी तय नहीं है कि मामला कब तक निपटेगा।’’

‘‘दुनिया फानी है यार। किसे मालूम था, सलूजा यों अचानक कूच कर जाएगा! यह दुनिया ही ऐसी है। कभी भी कुछ भी हो सकता है।’’

‘‘ठीक कह रहे हो मेरे यार।’’ सम्पूरन ने रिसीवर रख दिया और सुप्रिया से बोला, ‘‘कल से तेरा खादिम फिर से अखबार बेचेगा। चलो आज एक कीमती-सा पोर्टफोलियो खरीदते हैं और अलका एड एजेंसी से अपना नया विजि़टिंग कार्ड डिज़ाइन कराते हैं।’’

वह विश्वास से ओतप्रोत था। सुप्रिया उसे कौतुक, प्यार और प्रशंसा से निहार रही थी।

 

(समाप्त)

 

 

मुखपृष्ठ | उपन्यास | कहानी | कविता | नाटक | आलोचना | विविध | भक्ति काल | हिंदुस्तानी की परंपरा | विभाजन की कहानियाँ | अनुवाद | ई-पुस्तकें | छवि संग्रह | हमारे रचनाकार | हिंदी अभिलेख | खोज | संपर्क

Copyright 2009 Mahatma Gandhi Antarrashtriya Hindi Vishwavidyalaya, Wardha. All Rights Reserved.