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17 रानडे रोड‌
(उपन्यास)
रवीन्द्र कालिया

VII

Index I II III IV V VI VIII IX X

क्रैश करना पंखे का विमान की तरह

 

तभी अचानक कमरे में एक बड़ा हादसा होते-होते रह गया। छत पर लटकता पंखा थोड़ी देर गुर्राया और अचानक किसी विमान की तरह भयंकर विस्फोट के साथ सम्पूरन और सुप्रिया का त्रिकोण बनाता हुआ खिडक़ी के पास जा गिरा। दीवारों से चूना-प्लास्टर और पुटीन की परतें गिरने लगीं। जहाँ पँखा गिरा था, जमीन धसक गयी। सुप्रिया और सम्पूरन के बीच रखा काँच का मेज़ चटख गया। यह सब इतना अचानक हुआ कि सम्पूरन एकबारगी अकबका गया, सुप्रिया उठकर रसोई की तरफ भागी। इसे चमत्कार ही कहा जा सकता था कि पंखा उन लोगों के ऊपर नहीं गिरा। छत पर जहाँ हुक लगा था वहाँ एक बड़ा छेद हो गया था और उस छेद की जगह से निकले बिजली के टूटे तार किसी राक्षस के बड़े-बड़े दाँतों की तरह भयावह लग रहे थे। सम्पूरन वहाँ से उठा और खिडक़ी के बाहर देखने लगा। समुद्र हाई टाइड में था, लग रहा था क्षणभर में कमरे में जल प्लावन हो जाएगा। सम्पूरन की इच्छा हुई कि इस भयावह माहौल से भाग निकले, मगर उसने किसी तरह अपने को जब्त किया और मंगर से पूछा कि अब पार्टी का क्या होगा?

‘‘अब्बास मियाँ कह रहे थे आज पंखे भी लगेंगे। शायद आज ही आएँ। दीवारें तो मैं ठीक कर दूँगा और फर्श भी।’’

‘‘मगर यह पंखा गिरा कैसे?’’

‘‘बुढिय़ा के दाँत की तरह हिल तो रहा था।’’ मंगर बोला, ‘‘नीचे सब लोग कह रहे थे, यह भुतहा फ्लैट है।’’

‘‘लोगों को बकने दो।’’ सम्पूरन ने कहा, ‘‘तुम आज रात भर में मरम्मत कर दो।’’

‘‘कर दूँगा। आप बस नोटों का इन्तजाम कर दें।’’

सम्पूरन ने दस दस के तीन नोट दिए और सुप्रिया से पूछा, ‘‘तुम्हारा चेहरा क्यों इतना पीला पड़ गया है?’’

‘‘आज तो भगवान ने रक्षा कर ली।’’ सुप्रिया बोली, ‘‘सर मैंने भी सुना है, यहाँ भूतों का डेरा है।’’

‘‘मैं भी तो भूत ही हूँ। मेरी खूब पटेगी भूतों से।’’

‘‘सर इस फ्लैट को छोड़ दीजिये।’’

सुप्रिया ने हामी भरी और नमस्कार करते हुए बाहर निकल गयी।

‘‘साहब हम भी यहाँ काम न करेंगे।’’ मंगर ने हाथ मलते हुए कहा।

‘‘तुम्हें क्या हो गया?’’

‘‘रात सपने में भूत आया रहा। उसने चेतावनी दी है कि अगर मैंने काम न छोड़ा तो वह बच्चे को उठा लेगा।’’

‘‘कैसी शक्ल थी भूत की?’’ सम्पूरन ने बगैर विचलित हुए संयत स्वर में पूछा।

‘‘अब क्या बताऊँ, भूत की भी कोई शक्ल होती है क्या?’’

‘‘कुछ तो होता होगा।’’

‘‘चुड़ैल माफिक रहा। मैं तो चीखकर उठा। बच्चे को छूकर देखा, वह बुखार में तप रहा था।’’

‘‘गुनहगार तो मैं हूँ, मेरे पास क्यों नहीं आता?’’

‘‘आपसे भी इशारेबाजी तो कर ही रहा है। आप क्या सोचते हैं, पंखा किसने गिराया?’’

‘‘पंखे का कुन्दा जंग खा गया था, उसे तो टूटना ही था।’’

‘‘पीछे से भी तो टूट सकता था।’’

‘‘पीछे से कैसे टूट जाता? चलने से ही उस पर वजन पड़ा।’’

‘‘हमारा हिसाब कर दीजिये। अब हम यह काम न करेंगे।’’

‘‘पचास रुपये बढ़ा दूँ तो भी नहीं?’’

‘‘पचास रुपये मेरे लिए बहुत हैं, मगर मेरी जान इतनी सस्ती नहीं।’’

‘‘तुम तो दफ्तर में रहोगे, भूत तो फ्लैट में है।’’

‘‘अब तक वह दफ्तर भी देख चुका होगा।’’ मंगर ने सोचकर कहा।

सम्पूरन बदजन हो गया, बोला, ‘‘ठीक है, दो दिन बाद छोड़ देना। अबकी सपने में भूत आये तो उसे बता देना।’’

मंगर हो-होकर हँसने लगा, ‘‘दो दिन की मोहलत माँग लूँगा। मगर सुप्रिया मेमसाहब न आएँगी, मुझे चाबी दे गयी हैं।’’

उसने जेब से चाबी निकालकर दिखायी।

‘‘अभी तो मान गयी थी।’’

‘‘उसका भाई मारता है। वह उसकी शादी बनाना चाहता है। उसकी बीवी बोलती है, सुप्रिया काम पर जाएगी तो वह भी नौकरी कर लेगी।’’

‘‘ठीक है, तुम काम लगाओ। पंखे लगाने वाला आये तो लगवा लेना। तुम्हें डर लग रहा हो तो मैं रुक जाऊँ?’’

‘‘आप जाएँ, मैं नौटांक से काम चला लूँगा।’’

सम्पूरन बहुत खिन्न होकर वहाँ से निकला। टैक्सी वाला टैक्सी के भीतर सो गया था।

सम्पूरन को शिवेन्द्र के यहाँ जाना था, मगर आज की घटना से उसका मन इतना खिन्न हो गया कि वह अँधेरी की तरफ चल दिया। आज स्वर्ण के लौटने की बात थी। उसने मन-ही-मन तय किया कि वह स्वर्ण को अपने साथ नये फ्लैट में शिफ्ट होने को कहेगा। जिस तरह से आज यकायक पंखा धड़ाम से गिरा था, वह भीतर से कहीं सहम गया था। पिछली तमाम बातें भी उसके दिमाग पर लगातार दस्तक दे रही थीं। उसे अपने मित्रों चन्नी, शुक्लाजी और डैंगसन को भी औपचारिक निमन्त्रण देना था। उसने तय किया कि थोड़ा सुस्ता कर काम पर निकलेगा। वह जब लॉज पर पहुँचा तो पता चला स्वर्ण लौट आया है और अपने कमरे में सो रहा है। इसका सीधा-सादा एक ही अर्थ था कि उसका लेटने का प्रबन्ध भी चरमरा गया। अब वह ज्यादा से ज्यादा कुर्सी पर बैठकर ही सुस्ता सकता है। वह कमरे में गया तो देखा, स्वर्ण चादर तान कर ऐसे सो रहा था जैसे जंग से लौटा हो। उसका सामान खुला पड़ा था। उसकी निगाह टाफी के एक पुराने बड़े डिब्बे पर पड़ी तो उसने सोचा, जरूर घर से कोई मिष्टान्न लाया होगा। डिब्बे में कतारबन्द लड्डू सजे हुए थे, उड़द की दाल के लड्डू। लड्डू बहुत स्वादिष्ट बने थे, वह एक के बाद एक कई लड्डू खा गया। लड्डू खाने से उसका मूड कुछ दुरुस्त हुआ। उसे लड्डू से ज्यादा चाय की तलब महसूस हुई। वह नीचे उतर कर पास के एक ईरानी रेस्तराँ में घुस गया।

 

केसर कस्तूरी और टुंडे का कबाब

 

वास्तव में वह अपने ही घर में शिवेन्द्र का मेहमान था। उसी के आग्र्र्र्र्र्रह से आज की पार्टी का आयोजन किया गया था। स्कॉच, मुर्ग, फिश, काजू, यहाँ तक कि क्रिस्टल गिलास भी उसी ने भिजवाये थे। उसने फोन पर सम्पूरन से कहा था— जरीवाला खुश हो गया तो तुम्हारे वारे-न्यारे कर देगा। जुबान का पक्का है। पार्टी में उससे कोई आश्वासन ले लेना। सम्पूरन शिवेन्द्र का संकेत समझ गया और पार्टी में बुलाये जाने वाले लोगों की सूची बनाने लगा। इस सूची में शहर के सबसे अधिक बिकने वाले तीन समाचारपत्रों के पत्रकार थे— एक गुजराती का, एक मराठी का और थी मालविका, सबसे बड़े समाचारपत्र ‘एराउंड टाउन’ की स्तम्भ लेखिका। ग्लैमर वल्र्ड का एक चिरपरिचित नाम। एक सिने तारिका, एक लोकप्रिय खलनायिका और एक नर्तकी। एक प्रसिद्ध गजल गायक। शहर के दो प्रमुख बिल्डर, जो शिवेन्द्र की पार्टी के दीवाने थे। टेकचन्द उसकी हर पार्टी में रहता था। वह भी घोड़ों का प्रेमी था और पूना में उसके फार्म हाउस में दसियों घोड़े थे।

सुप्रिया को पार्टी के लिए राज़ी करने में बहुत खुशामद करनी पड़ी। उसने उसे पार्टी के लिए नये कपड़े भी दिलवा दिए थे और ब्यूटी पार्लर में छोड़ आया था। ब्यूटी पार्लर से वह एक नयी सुप्रिया बनकर लौटी थी। भवें तराश दी गयी थीं। अक्सर वह अपने बाल बाँधकर रखती थी, मगर आज ताजा शैम्पू किए बाल उसके कन्धों पर झूल रहे थे। जाने से पहले वह तमाम इन्तजाम कर गयी थी। पार्टी के लिए शिवेन्द्र ने अपना खानसामा भेज रखा था, मगर सम्पूरन को मटन भूनने का ऐसा नशा था कि वह घंटों उस काम में मशगूल रह सकता था। मेहमान आये, इससे पहले ही वह नहाने के लिए बाथरूम में घुस गया। जब तक वह तैयार होकर प्रकट होता, मेहमानों का आना शुरू हो चुका था। सबसे पहले पत्रकार आये, फिर टेकचन्द और शिवेन्द्र।

अपने समय की एक मशहूर अभिनेत्री को पार्टी में लाने में शिवेन्द्र सफल हो गया था। वह उसका आयकर सलाहकार भी था और वक्त जरूरत उसके लिए आयकर भवन भी हो आता था। बी क्लास अभिनेत्रियों ने आते ही अपना-अपना पैग तैयार करवा लिया था। हर तरह के ड्रिंक उपलब्ध थे। जब तक जरीवाला और कैप्टन नमूदार होते, भजनसिंह ने सुदर्शन पुरुषार्थी की प्रसिद्ध गजल की धुन छेड़ दी थी।

जरीवाला के आते ही माहौल में स्फूर्ति आ गयी। वह शहर का नामी उद्योगपति था। उसका सॉफ्ट ड्रिंक ‘जायका’ कई बहुराष्रीषारय कम्प्नियों के सॉफ्ट ड्रिंक्स को तगड़ी टक्कर दे रहा था और अफवाह थी कि एक बहुराष्री वाय कम्पनी ने दस लाख डालर में ‘जायका’ खरीदने का आफर दे दिया था। सॉफ्ट ड्रिंक के साथ-साथ हार्ड ड्रिंक में भी उसकी पैठ थी। उसकी रम देश में सबसे ज्यादा बिकती थी। अभी हाल में उसने भारत में पहली बार बियर के कैन मार्किट में उतारे थे और विश्वसुन्दरियाँ उसकी विज्ञापन कैम्पेन का सबसे बड़ा आकर्षण थीं। अक्सर समाचार पत्र के ग्लैमर पृष्ठों पर वह छाया रहता। हमेशा सुन्दरियों से घिरा रहता। आज भी उसके साथ दो सुन्दरियाँ आयी थीं। सम्पूरन ने बहुत गर्मजोशी से उसका इस्तकबाल किया और आदरपूर्वक सोफे पर बिठाया। सम्पूरन ने विश्व की एक विख्यात स्कॉच की बोतल खोली और अपने हाथ से जरीवाला के लिए ड्रिंक तैयार किया। जरीवाला ने यह कहकर सबको चौंका दिया कि वह स्कॉच नहीं पीता। वह केवल अपने ब्रांड की ‘केसर कस्तूरी’ पीता है।

‘‘आप सब भी आज केसर कस्तूरी का आनन्द लें।’’ तभी जरीवाला का ड्राइवर केसर कस्तूरी के कार्टन के साथ प्रकट हुआ। वह एक गिफ्ट पैक था। अल्यूमीनियम का कलात्मक डिब्बा था, जिसके भीतर शनील की थैलियों में लिपटी बोतलें रखी थीं। थैली खोलने के लिए रेशम की डोरियाँ थीं। उसके ड्राइवर ने एक बोतल खोल कर सम्पूरन को थमा दी। सम्पूरन ने एक झटके से सील खोल दी। भीतर गुलाबी रंग का ड्रिंक था। बोतल खुलते ही कमरे में उसका फ्लेवर छा गया।

‘‘यह एक स्पेशल ड्रिंक है। मैं इसे मार्किट नहीं करता। मैं या मेरे दोस्त ही इसे पी सकते हैं। इसकी रैसिपी अकबर के लिए मदिरा बनाने वाले विशेषज्ञ के परिवार से मुझे प्राप्त हुई थी। अकबर के बाद अब आप इसे नोश फरमाएँगे।’’

मेज पर तरह-तरह के कबाब सजा दिये गये। कबाब टुंडे के यहाँ से आये थे। टुंडे की अहमियत इस बात से समझी जा सकती है कि उसके बारे में कई किंवदन्तियाँ चल निकली थीं। टुंडे का बाप पेशावर से दिल्ली आया था। दिल्ली में जामा मस्जिद के पास वह कबाब का ठेला लगाता था। उसकी ख्याति सुनकर जल्द ही एक फाइव स्टार होटल ने उसका बारबेक्यू खुलवा दिया। दूर-दूर से आकर लोग टुंडे के कबाब नोश फरमाने लगे। जिसकी एक बाँह होती है, उसे टुंडा कहा जाता है, मगर टुंडे के बेटे की दोनों बाँहें थीं। उसने अपने बाप का नाम अपना लिया। सुनते हैं भारत के प्रथम प्रधानमन्त्री अपने विदेशी अतिथियों के लिए टुंडे के यहाँ से कबाब मँगवाते थे। एक बार किसी दावत में दिलीप कुमार ने कबाब चखा तो उन्होंने टुंडे के बेटे को बम्बई के एक पाँचसितारा होटल में भारी भरकम कांट्रेक्ट दिला दिया। अखबारों के पूरे पृष्ठ पर विज्ञापन छपा कि दिल्ली के टुंडे के कबाब अब बम्बई में भी उपलब्ध। विज्ञापन में उन देशों के नाम भी दिये गये थे जिनके दूतावासों में टुंडे के कबाब परोसे जाते थे। हिन्दुस्तान के एक मशहूर पेंटर ने टुंडे के बारबेक्यू का कलात्मक लोगो बनाया था। अगले ही रोज से उस फाइव स्टार होटल में ग्राहकों की कतारें लग गयीं।

जरीवाला ने टुंडे के कबाब देखे तो बाग-बाग हो गया। लोग केसर कस्तूरी का आनन्द ले रहे थे और जरीवाला कबाब का। उसकी प्लेट खाली होती तो कोई न कोई सुन्दरी अपनी पसन्द का कबाब उसकी प्लेट में रख देती। शिवेन्द्र ने उस समय की सबसे चर्चित और सेक्सी अभिनेत्री मणिमाला से उसका परिचय कराया तो जरीवाला ने उसे अपनी बगल में बैठने की दावत दी।

‘‘मैं आपकी हर फ़िल्म देखता हूँ।’’ जरीवाला बोला, ‘‘मेरे जेहन में आपकी जो तस्वीर थी, उससे आप कहीं ज्यादा खूबसूरत हैं, मगर...’’

‘‘मगर क्या?’’ रूपसी ने पूछा।

‘‘फ़िल्मों में आप ज्यादा लम्बी दिखती हैं।’’

अभिनेत्री के दाँत चमके, ‘‘जो हूँ, आपके सामने है।’’

‘‘सारी फ़िजा में केसर महक रहा है।’’ अभिनेत्री ने कहा, ‘‘मैं शराब नहीं लेती, मगर आज आपके हाथ से एक घूँट लूँगी।’’

जरीवाला ने अपने हाथों से मणिमाला के लिए एक पेग तैयार किया और बोला, ‘‘लीजिये नोश फरमाइए।’’ और उसने मणिमाला के होंठों से जाम लगा दिया और ड्रापर की तरह एक-एक बूँद उसकी जीभ पर गिराने लगा।

‘‘मेरी जीभ जल जाएगी।’’ वह बोली।

‘‘आप कस्तूरी की तरह महकेंगी।’’ जरीवाला दुबारा उसकी पपीते की तरह सुर्ख जीभ पर केसर कस्तूरी का छिडक़ाव करने लगा।

‘‘सूरीनाम में आपकी जुबान के रंग के पपीते होते हैं।’’ जरीवाला ने कहा, ‘‘मुझे वे पपीते बहुत पसन्द थे।’’

सुन्दरी ने आँखें मूँद ली थीं और वह एक-एक बूँद केसर से जुबान रँगने लगी।

पत्रकार एक पूर्व विश्वसुन्दरी का अनौपचारिक इंटरव्यू ले रहे थे। बिल्डर लोगों की चिन्ता का विषय लगातार गिरता जा रहा सेंसेक्स था। सम्पूरन तमाम एक्स्ट्राओं से घिरा था। वह कई प्रोड्यूसरों से अपनी दोस्ती का दम भर रहा था। किसी को उसने अभिनेत्री का रोल दिलाने का वादा कर लिया था और किसी को खलनायिका का। एक एक्स्ट्रा से उसने कहा कि वह तो हू-ब-हू मधुबाला की प्रतिकृति है।

‘‘यह बात मुझसे कई प्रोड्यूसर कह चुके हैं, पर रोल कोई नहीं देता। मैं तो अभिनेत्रियों के साथ नाचते-नाचते थक गयी हूँ।’’

‘‘चिन्ता न करो, एक दिन तुम्हारा भी जलवा देखने को मिलेगा। तुम वृहस्पति का व्रत रखना शुरू करो।’’ शिवेन्द्र अपने पुराने रूप में आ गया था। एक लडक़ी ने उसके आगे अपना हाथ फैला दिया, ‘‘कुछ मुझे भी बताएँ।’’

शिवेन्द्र एक पेशेवर हस्तरेखा विशेषज्ञ की तरह उसका कोमल गुदगुदा हाथ देखने लगा। उसने बाला की हथेली चूम ली और अपना हाथ उसकी हथेली पर रगडऩे लगा।

‘‘यह क्या कर रहे हैं?’’

‘‘अपनी हथेली पर तुम्हारी खुशकिस्मती ट्रांसफर कर रहा हूँ। मुद्दत के बाद इतना लकी हाथ देखा है। इधर आओ, कान में एक बात कहूँगा।’’

सुन्दरी ने अपना कान शिवेन्द्र के होंठों के पास कर दिया। ताजा शैम्पू किए बालों की खुशबू उसके नथुनों में भर गयी। उसने धीरे-से कहा, ‘‘वह जो मणिमाला बैठी है, सालभर के भीतर तुम्हारे सामने पानी भरेगी।’’

‘‘आपके मुँह में घी शक्कर।’’

‘‘घी शक्कर से काम नहीं चलेगा।’’

‘‘हलुआ भी खिलाऊँगी।’’

अब तक तमाम सुन्दरियाँ शिवेन्द्र से अपना भाग्य जानने के लिए बेकरार हो गयी थीं। एक नर्तकी बिल्डरों से घिरी थी। उसने शिवेन्द्र को लड़कियों से घिरे देखा तो लपक कर वहाँ पहुँच गयी, ‘‘यह एक नम्बर का पाजी है। इसकी बात का भरोसा न करना। यह पामिस्ट्री का क ख ग भी नहीं जानता। बस बातें बनाने में माहिर है।’’

‘‘अब आप लोग जान ही गयी होंगी कि मेरा बिजनेस किसने चौपट किया है!’’

सब लड़कियों ने ठहाका लगाया। तभी लगा कि जैसे हाल में सहसा शून्य व्याप्त हो गया हो। मणिमाला ने हाथ जोड़ कर सबका अभिवादन किया और शिवेन्द्र के साथ विदा हो गयी। शिवेन्द्र उसे गाड़ी तक छोडऩे गया था। उसके जाते ही जरीवाला ने अपना एक पटियाला पैग तैयार किया और गटागट निगल गया। मणिमाला के जाने से उसे जैसे गहरा झटका लगा था। लड़कियों ने जब देखा कि जरीवाला की एकाग्रता समाप्त हो चुकी है तो सबकी सब उसकी ओर लपकीं। वे आगे बढ़ बढक़र जरीवाला को अपने गाल पर चीक किस दे रही थीं। जरीवाला का चीक किस में विश्वास नहीं था, मगर वह मजबूर था। उसे टाइगर किस पसन्द थी। उसके भीतर एक पैग और होता तो शायद वह गुस्ताखी कर बैठता। लड़कियों की साँसों ने उसे जैसे जगा दिया था। उसने जल्दी से एक और पैग गटक लिया। शिवेन्द्र जानता था कि बिजनेस की बात करने का यह सुनहरा मौक़ा है। उसने सम्पूरन और सुप्रिया को बुलाया और बताया कि ये लोग बम्बई के जाने माने होस्ट हैं। आये दिन पार्टियाँ थ्रो करते हैं, मगर इधर इम्पोर्ट पर लगी पाबन्दियों के कारण हाथ तंग है।

‘‘हाथ तंग है तो हम खोल देगें। बम्बई में रहते हो। इतनी हिरोइन्स को जानते हो। हमारे लिए यानी हमारे सॉफ्ट ड्रिंक के लिए एकाध मिनट की एक शॉर्ट फ़िल्म बनाओ। एक लाख दूँगा। स्क्रिप्ट अप्रूव करा के पचास हज़ार ले जाना।’’

सम्पूरन की बाछें खिल गयीं। उसने जरीवाला को बाँहों में भर लिया, ‘‘तुसीं ग्रेट हो भापाजी। ऐसी फ़िल्म बनाऊँगा कि तुसीं याद करोगे।’’

‘‘पहले कभी फ़िल्म बनायी है?’’ जरीवाला ने पूछा।

‘‘मेरी पहली फ़िल्म ही हिट होगी। कल से ही हीरोइन की तलाश में लग जाऊँगा।

कैप्टन कुछ दूर पर एक बिल्डर से बतिया रहा था और बिल्डर के इस सुझाव की दाद दे रहा था कि अगली पार्टी अमावस्या के रोज मड आईलैंड पर रखी जाए। यह विचार उसे इतना पसन्द आया कि वह सम्पूरन, कैप्टन और जरीवाला के बीच पहुँच कर बोला, ‘‘सम्पूरन अगली पार्टी अमावस्या की रात को मड आईलैंड पर रखी जाए। अँधेरे में जिसको जिधर जाना हो निकल जाए।’’

जरीवाला ने जेब से नन्ही सी टार्च निकाल कर जलाई। लगा जैसे धुएँ को चीरते हुए आग का गोला राकेट की तरह वातावरण से पार निकल जाए। सम्पूरन ने कमरे की बत्ती बन्द कर दी। अजीब नजारा उपस्थित हो गया। जरीवाला ने टार्च बुझा दी तो एकदम सन्नाटा खिंच गया। सबको अचानक एहसास हुआ समुद्र हाई टाइड में है। अब सडक़ की रोशनी खिड़कियों से भीतर आ रही थी। और समुद्र की दहाड़ें।

इस समय कमरे में परफ्यूम की जगह केसर कस्तूरी महक रही थी। लड़कियाँ सोफों पर लुढक़ गयी थीं। कैप्टन लड़कियों के बीच फँस कर बैठ गया था। सम्पूरन को लग रहा था, वह आसमान में उड़ा जा रहा है। कुछ केसर कस्तूरी का कमाल था, कुछ एक लाख का। पचास हज़ार मिलने में कुछ ही घंटे बाकी थे। अभी कुछ देर पहले जब पार्टी शबाब पर थी तो गल्ले की दुकान का मोटा लाला घंटी पर घंटी बजा रहा था। दरवाजा सम्पूरन के गेस्ट पुरुषार्थी यानी स्क्रिप्ट राइटर ने खोला था। लाला रौद्र रूप धारण करके आया था, ‘‘बुलाओ सेठ को। आज तय करके आया हूँ। पैसा लिए बगैर नहीं लौटूँगा। बकाया एक हजार से ऊपर पहुँच चुका है।’’

‘‘लाला, अभी पार्टी चल रही है। कल सुबह आकर बात करना।’’

यह एक विचित्र संयोग था कि जिस दिन सम्पूरन के यहाँ कोई ज़रूरी किस्म की पार्टी होती थी, लाला कहीं-न-कहीं से टपक पड़ता था। आज भी यही हुआ। जब पार्टी शबाब पर थी तो सम्पूरन को सूचना मिली कि लाला उगाही के लिए आया है। सम्पूरन ने लाला को चेतावनी दी कि वह फौरन से पेश्तर यहाँ से चला जाए, वर्ना फिर से गुदगुदाना शुरू हो जाएगा।

जरीवाला के आश्वासन के बाद सम्पूरन आश्वस्त हो गया कि उसके सब छोटे-मोटे कर्ज अदा हो जाएँगे। सिगरेट वाले का कर्ज भी सैकड़ों में था। वह सब्र किए बैठा था। कई बार सम्पूरन टैक्सी से उतरता और सिगरेट वाले से कहता, भाड़ा चुका दो। वह चुपचाप चुका देता। बीस रुपये चुका कर खाते में तीस लिख देता। सम्पूरन कभी हिसाब चैक नहीं करता था। लाला ने भी गड़बडिय़ाँ की होंगी। वह इस बारे में सोचता ही नहीं था।

लाला को विदा कर सम्पूरन लौट आया था। वह इस घटना को लेकर जरा भी चिन्तित नहीं था। वह जानता था कि इस बार लाला को एक की बजाय दो हजार देकर हमेशा के लिए जरखरीद बनाया जा सकता है। लाला के अलावा वह अनेक ऐसे लोगों के कर्ज के नीचे दबा था, जो रोज कमाते और खाते थे। जैसे उसका जूते पालिश करने वाला। सम्पूरन के पास जूतों का अच्छा खासा जखीरा था। उसने अपने लिए बीसियों जोड़े खरीद रखे थे। इन जूतों की देखभाल के लिए एक आदमी सुबह आधा घंटे तक जूते चमकाता था। छह महीने से उसे एक भी पैसा नसीब न हुआ था। एक बार उसने पैसा माँगा तो सम्पूरन ने पूछा, ‘‘कितना पैसा हुआ है?’’

‘‘दो सौ से ऊपर हो चुका है।’’

‘‘धत् यह भी कोई उधारी है? पाँच सौ से कम तो मैं पेमेंट ही नहीं करता।’’

‘‘साहब सिर्फ दस रुपये दे दो।’’

सम्पूरन ने पतलून की दोनों जेबें बाहर निकाल कर दिखला दीं। यही हाल धोबी शंकर का था। एक बार वह वसूली के लिए आया तो सम्पूरन ने पूछा, ‘‘सौ का छुट्टा है?’’

‘‘हाँ है।’’ धोबी ने जेब से नोट निकाले।

सम्पूरन ने सौ-सौ के दो नोट देख लिए, बोला, ‘‘बहुत वक्त पर आये हो। मेरे पास तो आज टैक्सी के लिए भी पैसा नहीं था।’’ उसने सौ का एक नोट खींच लिया।

‘‘ऐसा न करो साब।’’ धोबी बोला।

‘‘काका शंकर को नाश्ता करवाओ, मैं निकल रहा हूँ।’’

शंकर बगलें झाँकता रह गया और सम्पूरन नीचे उतरते ही टैक्सी में सवार हो गया।

इस समय कमरे में पेज थ्री के पत्रकारों के फ्लैश चमक रहे थे। हर कोई किसी न किसी को छू-छू कर बात कर रहा था। कुछ लोगों ने एक दूसरे के गले में बाँहें डाल दी थीं। जरीवाला ने भी एक पैग अधिक पी लिया था। उसने खड़ा होने की कोशिश की, मगर लडख़ड़ा गया। लडख़ड़ाते हुए उसने सुप्रिया की स्लीवलेस बाँह थाम ली। जरीवाला के साथ-साथ सुप्रिया भी सोफे पर गिर पड़ी। जरीवाला ने दोनों हाथों से उसके सिर को थामा और एक भरपूर चुम्बन ले लिया। जब तक सुप्रिया सँभली, वह एक बार और उसकी तरफ झुका, ‘‘वंडरफुल रसीले लिप्स।’’

सुप्रिया ने आव देखा न ताव, जोर का एक थप्पड़ जरीवाला के मुँह पर जड़ दिया। कैमरे और सक्रिय हो गये। तड़ाक की आवाज सुनकर हॉल में सन्नाटा खिंच गया। सम्पूरन सोफे पर बैठा था, चुपचाप दूसरे लोगों की तरह नजारा देखता रहा। सुप्रिया वहीं बैठकर बिसूरने लगी। जरीवाला क्षणभर के लिए सुप्रिया के पास रुका और ‘आई एम रियली वैरी सॉरी मैम’ कहकर कमरे से निकल गया। शिवेन्द्र उसके पीछे-पीछे उसे विदा करने चला गया। सम्पूरन उसी तरह ठगा-सा वहाँ बैठा रहा।

जरीवाला के जाते ही दूसरे लोग भी धीरे-धीरे खिसकने लगे। मेज पर खाना लग रहा था, मगर किसी ने भी प्लेट नहीं उठायी। कमरा लगभग खाली हो गया। केवल शिवेन्द्र और कैप्टन रह गये। अचानक सम्पूरन ने सिर पर जोर से हाथ फेरा और बोला, ‘‘लेट्स हैव डिनर। आज मैंने काली मिर्च का चिकन खुद बनाया है। कैप्टन तुम्हें चिकेन चंगेजी पसन्द है, वह भी हाजिर है। सुप्रिया आओ, तुम्हारे लिए हैदराबादी बिरयानी है। स्वर्ण तुम तो पीने के बाद टुन्न हो जाते हो, कुछ खाते नहीं, आज तुम्हारे लिए प्रॉन मसाला हाजिर है। आ जाओ डार्लिंग। कम ऑन। खाना ठंडा हो रहा है।’’

सबने अपनी-अपनी प्लेट सजा ली और चुपचाप खाने लगे। सम्पूरन ने टेप रिकार्डर ऑन कर दिया और बेगम अख्तर की गजल सुनते हुए मुर्गे की टाँग में दाँत गड़ा दिये। सुप्रिया भीतर जाकर ब्रश कर आयी थी। उसने मुँह धोकर सारा मेकअप उतार दिया। बाथरूम में कपड़े बदल आयी और चुपचाप बिरयानी परोसने लगी। सब लोग चुपचाप भोजन करते रहे। कोई किसी से कुछ नहीं कह रहा था। चुप्पी तोडऩे के लिए सम्पूरन ने एक लतीफा सुनाया— ‘‘पति ने पत्नी से पूछा— अगर मैं मर गया तो तुम दूसरी शादी कर लोगी? पत्नी ने कहा कि नहीं, वह अपनी बहन के साथ रहेगी। पत्नी ने भी पति से पूछा कि अगर वह मर गयी तो पति किसके साथ रहेगा? पति ने कहा कि मैं भी तुम्हारी बहन के साथ रहूँगा।’’

कैप्टन हमेशा की तरह फूहड़ लतीफे पर उतर आया— ‘‘दो लोग एक बाजारू औरत के पास गये। पहला थोड़ी देर बाद वापस आकर बोला, इससे तो अच्छी मेरी पत्नी है। अब दूसरा भीतर गया और लौटकर बोला— तुम ठीक कह रहे थे। तुम्हारी पत्नी इससे कहीं अच्छी है।’’

सुप्रिया ने वहाँ से हट जाना ही उचित समझा। प्रॉन और बिरयानी लेकर वह सोफे पर बैठ गयी और चुपचाप खाने लगी।

‘‘मेरी स्कॉच तो धरी की धरी रह गयी। मगर मुझमें इतनी तमीज अभी बाकी है कि शराब अपने साथ वापस नहीं ले जाते। ऐसा करो बचा हुआ भोजन पैक करवा दो। मैं कल अपने यहाँ पार्टी थ्रो कर दूँगा।’’

‘‘सुप्रिया के लिए प्रॉन छोड़ जाओ। बाकी सबकुछ ले जाओ।’’

कैप्टन ने खिडक़ी पर खड़े होकर ताली पीटी और उसका ड्राइवर ऊपर चला आया।

‘‘पैक करने के चक्कर में न पड़ो। ऐसे ही एक बाल्टी में डोंगे रख लो और एहतियात से ले जाओ।’’

‘‘रास्ते में मुझे भी किसी टैक्सी स्टैंड पर उतार देना।’’ स्वर्ण बोला।

‘‘ड्राप करूँगा तो सडक़ पर सो जाओगे।’’

‘‘अब देर न करो। मुझे नींद आ रही है।’’

‘‘कैसे आदमी हो। तुम्हें बारह बजे ही नींद आने लगती है। तुम बुड्ढे हो रहे हो।’’

‘‘मैं बुड्ढा हो चुका हूँ।’’ स्वर्ण लडख़ड़ाता हुआ चल दिया, ‘‘गुडनाइट फ्रेंड्स। वी आर मीटिंग शॉर्टली।’’

सम्पूरन उन्हें दरवाजे तक छोड़ आया। लौट कर उसने कपड़े उतारे और अपनी प्रिय पोशाक यानी लुंगी पहन ली। ‘‘गुडनाइट सुप्रिया।’’ सम्पूरन ने कहा और बिस्तर पर लेट गया। थोड़ी ही देर में वह हल्के हल्के खर्राटे भरने लगा। समुद्र अब पहले से शान्त था। उसके ऊपर बल्ब की तरह चाँद लटक रहा था और चाँदनी की मोटी परतें पानी पर तैर रही थीं। सुप्रिया जाकर खिडक़ी पर खड़ी हो गयी। वह समुद्र से बोर हो चुकी थी। पिछले कई वर्षों से बम्बई में लगातार समुद्र को निहारने से वह ऊब चुकी थी। एक जमाना था, समुद्र को देखते ही उसके भीतर लहरें उठने लगती थीं। वह खिडक़ी से हट गयी और बत्तियाँ बुझा कर बिस्तर पर लेट गयी।

 

जब लेडी लक मुस्करायी

 

अब स्क्रिप्ट राइटर की तलाश शुरू हो गयी। इस तलाश में भी स्वर्ण ही काम आया। उसका एक शायर दोस्त सुदर्शन पुरुषार्थी बम्बई आ रहा था और स्वर्ण ने उसे आवास दिलाने का भरोसा दे रखा था। उसने उसे सम्पूरन से मिला दिया और उसे उसी भुतहा फ्लैट में बतौर पेईंग गेस्ट जगह दिलवा दी।

युद्धस्तर पर स्क्रिप्ट तैयार कर ली गयी। अगली सुबह जब सुदर्शन की आँखें खुलीं, उसने देखा सम्पूरन दोनों टाँगों समेत सोफे पर पसरा था और चाय सुडक़ रहा था। अखबार की अभी तह नहीं खुली थी, वह मेज पर पड़ा पुरुषार्थी की जैसे प्रतीक्षा कर रहा था। ताजा-ताजा अखबार खोलना उसे प्रिय था। अगर उससे पहले कोई दूसरा अखबार के पन्ने पलट देता तो पुरुषार्थी अखबार पढऩे का कार्यक्रम मुल्तवी कर देता। सुप्रिया नाइटी में ही थी, पुरुषार्थी को देखकर उसने उसके ऊपर हाउस कोट पहन लिया था। वह अपना कॉफी का प्याला लेकर सम्पूरन की बगल में बैठ गयी।

‘‘पुरुषार्थी साहब, आज दफ्तर को मारिये गोली।’’

‘‘आज तनख्वाह मिलेगी!’’ पुरुषार्थी ने बताया।

‘‘तो गोली मत मारिये। धक्का दे दीजिये। दूसरे टाइम चले जाइए।’’

‘‘कोई खास बात?’’

‘‘अपुन की जिन्दगी का सवाल है काके। जरीवाला ने एक लाख का काम देने का प्रामिज किया था। आज फिफ्टी परसेंट एडवांस मिलने की बात थी। पिछले हादसे के बाद तुम क्या समझते हो, वह अपने वादे पर क़ायम रहेगा?’’

‘‘जमीर बाकी होगा तो जरूर रहेगा। ट्राई करने में हर्ज नहीं।’’

सुप्रिया आशंकित थी, ‘‘बदला लेने के लिए कोई खेल न कर दे!’’

‘‘ज्यादा से ज्यादा मना कर देगा, अपने दफ्तर में कोई सीन क्रिएट नहीं करेगा।’’

‘‘सुनते हैं जाते समय उसने माफी माँगी थी।’’ पुरुषार्थी बोला, ‘‘लेकिन सुप्रिया जी, आपने बड़ा जमकर थप्पड़ रसीद किया था। फ़िल्मों जैसी आवाज गूँजी थी।’’

सम्पूरन ने सुप्रिया को बाँह में दाब लिया, ‘‘एक ही बार में शॉट ओ.के. हो गया। लगता है खूब प्रेक्टिस कर रखी है।’’

‘‘सबकुछ अचानक हो गया।’’

‘‘मैं सोचता हूँ, हमें जाना चाहिए। उसने ग्यारह बजे का टाइम दिया था। डॉक्टर साहब आप हमारे साथ चलेंगे। मैं और आप बाहर टैक्सी में बैठेंगे और सुप्रिया को भेजेंगे चैक लेने।’’

सम्पूरन की यह खास आदत थी, सुदर्शन के लिए हर बार वह नया सम्बोधन इस्तेमाल करता था।

‘‘मुझे तो शर्म आ रही है उसके सामने जाते।’’

‘‘शर्म को हमारे पास टैक्सी में छोड़ जाना। अब जाओ और तैयार हो जाओ। वही स्कर्ट ब्लाउज पहनो जो कैप्टन सिंगापुर से लाया था। होंठों पर जहरीली किस्म की लिपस्टिक लगाओ। एकदम विषकन्या का रूप धर लो। हमारा भविष्य दाँव पर लगा है।’’

‘‘शैम्पू कौन-सा करूँ?’’

‘‘वही जो कैप्टन डेनमार्क से लाया था।’’

‘‘जूते?’’

‘‘जो मैंने कोलाबा से दिलाये थे। साँप की खाल वाले।’’

सुप्रिया उठी और तैयारी में जुट गयी। अब देर तक बाथरूम खाली होने वाला नहीं था। पुरुषार्थी ने कहा, ‘‘मैं भी माहिम बीच तक होके आता हूँ।’’

‘‘तब तो मैं भी सुप्रिया के ही साथ जमकर नहा लूँगा।’’

सुप्रिया वार्डरोब खोलकर खड़ी थी और सम्पूरन को अपना मुक्का दिखाने लगी। पुरुषार्थी उठा और नीचे उतर गया। रातभर में समुद्र ने काफी कचरा तट पर फैला दिया था।

पुरुषार्थी शिवाजी पार्क के समुद्र तट पर चलते-चलते माहिम पहुँच गया। सुबह सुबह एक बेंच पर कोई उसी दिन का मराठी अखबार छोड़ गया था। वह बेमन से कुछ देर उसके पन्ने पलटता रहा और फिर खरामा-खरामा वापस घर की ओर चल दिया। घर पहुँचा तो दरवाजा सुप्रिया ने खोला। एक भीनी खुशबू के झोंके ने उसका स्वागत किया। सुप्रिया ने स्कर्ट की बजाय सफेद साड़ी पहनी हुई थी। उस पर सफेद चमकीले धागों से एम्ब्रॉयडरी की गयी थी। चटख किरमिजी रंग का पल्लू था।

‘‘कितनी भव्य लग रही हैं आप!’’ पुरुषार्थी के मुँह से बेसाख्ता निकल गया।

‘‘थैंक्स।’’ सुप्रिया बोली और बच्चों की तरह अपने पैर आगे कर दिये, ‘‘कैप्टन मेरे लिए ये सैंडल पैरिस से लाया था। पहली बार पहन रही हूँ। इसी साड़ी के लिए रखे हुए थे।’’ सुप्रिया प्राय: स्लीवलेस ब्लाउज नहीं पहनती। आज वह पहली बार उसकी गोरी गुद्दाज बाँहें देख रहा था। बाँहें इतनी ताजा लग रही थीं जैसे अभी-अभी डिब्बे से खोल कर पहनी हों।

‘‘आप गजब ढा रही हैं!’’

‘‘गजब के बच्चे भीतर आओ।’’ सम्पूरन की आवाज सुनायी दी, ‘‘जाओ झट से तैयार हो जाओ। ठीक ग्यारह बजे नरीमन प्वायंट पहुँचना है।’’

सम्पूरन भी महक रहा था। वह तौलिया-बनियान पहने बैठा था। उसके कपड़े सोफे पर रखे हुए थे। सुदर्शन से पूछा, ‘‘किसी प्राइवेट टैक्सी वाले को जानते हो?’’

‘‘ऑफ़िस के टैक्सी स्टैंड से वाकिफ हूँ।’’

‘‘टैक्सी भेज देगा?’’

‘‘इतनी दूर से क्यों मँगवा रहे हो?’’

‘‘क्योंकि दादर में जो मेरा टैक्सी वाला है, उसने इनकार कर दिया है। पिछली बार उसका चैक बाउंस हो गया था। दो बार बैंक में डाल चुका है, मगर कैश नहीं हुआ। वह तो मुकदमा करने की धमकी दे रहा था। मैंने फोन रख दिया। मैं सुबह सुबह मूड खराब नहीं करना चाहता था।’’

‘‘कितने का चैक था?’’

‘‘सिर्फ पाँच सौ का।’’ सम्पूरन बोला।

‘‘यानी सिर्फ पाँच तोले सोना।’’

‘‘तुम बनिया हो क्या जो हर चीज सोने से तौलते हो!’’ सम्पूरन ने कहा, ‘‘चलो अभी टैक्सी वाले को फोन करो।’’

‘‘पैसे कौन देगा?’’

‘‘मैं दूँगा और कौन देगा! तीन दिन के लिए टैक्सी मँगवा लो। तीन दिन में इन्तजाम हो ही जाएगा।’’

‘‘अगर उसने एडवांस माँग लिया?’’

‘‘नहीं माँगेगा। तुम्हारी कम्पनी का इतना रसूख तो होगा।’’

पुरुषार्थी ने फोन किया। हेमकुंठ टैक्सी सर्विस का मालिक प्यारा सिंह बड़े अदब से बोला और उसने पता नोट कर लिया।

‘‘फिलहाल तीन दिन के लिए भेजें। हो सकता है एनुअल कांट्रेक्ट हो जाए।’’ पुरुषार्थी ने रोब गाँठा। प्यारा सिंह बहुत प्रसन्न हुआ।

‘‘ए सी गाड़ी मँगवाओ।’’ पीछे से सम्पूरन ने गुहार लगायी।

‘‘ए सी टैक्सी ही भेजें। रेट दस फीसद कम लगाएँ, क्योंकि यहाँ किसी को घूस नहीं देनी पड़ेगी।’’

प्यारा सिंह ने ठहाका लगाया, ‘‘तुसीं ताँ सब जानदे हो।’’

पुरुषार्थी ने फोन रख दिया और बोला, ‘‘दस परसेंट का फायदा करवा दिया।’’

अब पुरुषार्थी के नहाने की बारी थी। वह बाथरूम में घुसा तो बाथरूम किसी वाटिका की तरह महक रहा था। आज वह बाथरूम में अपने लिए तौलिया ले जाना भूल गया था। दो तौलिये रखे थे। जो कम गीला था, वह उससे अपनी देह पोंछने लगा। तौलिया भी महक रहा था। जब तक वह तैयार होता, काकाजी ने नाश्ता लगा दिया था। आमलेट, टोस्ट और औरेंज जूस।

ठीक साढ़े दस बजे डोर बेल बजी। प्यारा सिंह का ड्राइवर आ गया था। सम्पूरन को ड्राइवर को वर्दी में देखकर बहुत खुशी हुई। सीढिय़ाँ उतरते हुए पुरुषार्थी ने कहा, ‘‘तुम लोगों के सामने मैं तो आपका पी.ए. लगता हूँ।’’

‘‘बाश्शाओ आप हमारे माई बाप हो। आपकी बदौलत यह मस्तियाँ हैं, यह टैक्सी है और अब आप ही नीचे उतर कर पानवाले से इंडिया किंग का पैकेट उधार लेंगे।’’

‘‘मुझे वह मना कर सकता है।’’

‘‘उसे मालूम है, आप नौकरी करते हैं और अभी छड़े हैं।’’

सम्पूरन और सुप्रिया टैक्सी में विराजमान हो गये। आगे की सीट पर बैठते हुए पुरुषार्थी ने इंडिया किंग का पैकेट सम्पूरन को सौंप दिया। सम्पूरन सुप्रिया को समझा रहा था— रिस्पेशन पर अपना विजिंटिंग कार्ड देकर बोलना जरीवाला साहब से एपॉइंटमेंट है। रिसेप्शनिस्ट बॉस से फोन पर पूछेगी।

‘‘अगर उसने मिलने से इनकार कर दिया?’’

‘‘नहीं करेगा। तुम्हारा थप्पड़ उसे हमेशा याद रहेगा। समझदार आदमी होगा तो मन ही मन तुम्हारी इज्जत करने लगा होगा।’’

विशालकाय इमारत के सामने टैक्सी रुकी और सुप्रिया को उतारकर पार्किंग प्लेस की ओर चल दी। सम्पूरन अतिथि कक्ष में बैठना नहीं चाहता था। हो सकता है कैमरे लगे हों। वह चाहता था कि जरीवाला सोचे, सुप्रिया अकेली आयी है।

ड्राइवर ने गाड़ी पार्किंग में लगा दी। अचानक ड्राइवर ने सम्पूरन से पूछा, ‘‘साब आप जो पिक्चर बना रहे थे, वह बन गयी क्या?’’

‘‘पिक्चर? कौन-सी पिक्चर?’’

‘‘आप मुझे पहचान नहीं रहे। पहले मैं सतनाम टैक्सी सर्विस में था। तब आपके यहाँ अक्सर गाड़ी जाती थी।’’

सम्पूरन पलभर के लिए असहज हो गया। सतनाम टैक्सी ने ही बकाया रकम के लिए कानूनी नोटिस भेजा था।

‘‘मगर अब मैं हेमकुंठ टैक्सी सर्विस में हूँ। सतनाम सिंह पैसों के लिए बहुत परेशान करता था।’’ सम्पूरन को लगा, उसके लिए कहीं न कहीं वह भी जिम्मेदार है।

‘‘क्या हुआ फ़िल्म का?’’

‘‘किस फ़िल्म का?’’

‘‘एक बार आप टैक्सी में किसी से कह रहे थे कि आप एक फ़िल्म बनाना चाहते हैं— दिल का राजा, जेब का फकीर।’’

सम्पूरन और पुरुषार्थी दोनों ने ठहाका लगाया, ‘‘यह एक ऐसी पिक्चर है, जिसे वही बना सकता है, जो दिल का फकीर हो और जेब का राजा।’’

सम्पूरन को लगा, इस ड्राइवर पर शीर्षक ने गहरा असर छोड़ा है। पिक्चर बनेगी तो जरूर हिट हो जाएगी।

‘‘आज का काम हो गया तो समझ लो पिक्चर जरूर बनेगी।’’

‘‘कब पता चलेगा?’’

‘‘अभी कुछ देर बाद। पुरुषार्थी साहब इनका पता नोट कर लीजिए, अपनी कम्पनी में इसे ही पहला ड्राइवर रख लूँगा।’’

ड्राइवर ने झट से जेब से अपना परिचय कार्ड निकाल कर पुरुषार्थी को दे दिया। पुरुषार्थी ने उसका पता नोट किया। साथ ही लिखा— दिल का राजा, जेब का फकीर।

सम्पूरन ने गाड़ी से उतर कर सिगरेट सुलगायी और गाडिय़ों के बीच चहलकदमी करने लगा। उसकी सारी चेतना सुप्रिया पर केन्द्रित थी। वह बार-बार घड़ी की तरफ देखता। उसे भीतर गये पैंतीस मिनट हो चुके थे। वह धीरे-धीरे दफ्तर की ओर चल दिया।

रिसेप्शनिस्ट फोन पर व्यस्त थी। लॉबी में दस बारह लोग पसरे थे। वह बाहर निकल आया और टहलते हुए सडक़ पर पहुँच गया। सडक़ पर आकर लगा जैसे पूरी बम्बई दौड़ रही है। सडक़ के दोनों ओर गाडिय़ों का हजूम था। हर कोई भाग रहा था, जैसे बहुत जल्दी में हो। सम्पूरन को लगा जैसे सारी बम्बई गतिशील है और वही जड़वत है। वह लम्बे-लम्बे डग भरता हुआ वापस पार्किंग की ओर बढ़ गया। उसे अपनी गाड़ी का न रंग याद आ रहा था न नम्बर। ड्राइवर ने उसे देख लिया था, वह कहीं से भागते हुए आया और बोला, ‘‘भापाजी, तुसीं गड्डी भुल्ल गये हो। मेम साहब गाड़ी में आपका इन्तजार कर रही हैं।’’

‘‘सुप्रिया लौट आयी?’’

‘‘अभी-अभी लौटी हैं।’’

सम्पूरन की उत्तेजना चरम पर थी। वह लगभग भागते हुए गाड़ी तक पहुँचा। उसे देखते ही उसने अँगूठा दिखाया। मतलब साफ था, चैक मिल गया था। सुप्रिया ने चैक दिखाया, पचास हज़ार का चैक था, क्लिफ्टन पार्क एंड ली के नाम। उत्तेजना में उसके हाथ काँप रहे थे। उसे इतनी बड़ी पेमेंट आज तक नहीं मिली थी। उसने सुप्रिया को बाँहों में भर लिया और चूमने लगा— यू आर माई लक लाइन।

‘‘सरदारजी अब चलिये।’’

‘‘किधर कू?’’

‘‘बैंक कू। पंजाब नेशनल बैंक।’’

दरअसल यही एक बैंक था, जिसने उसका एकाउंट क्लोज नहीं किया था। उसको मिलने वाले और उसके द्वारा जारी किए जाने वाले इतने चैक बाउंस होते कि बैंक उसका एकाउंट ही बन्द कर देते। ले देकर पंजाब नेशनल बैंक था, वह इसलिए बचा था कि उसमें उसके दोस्त डैंगसन का कार्पोरेट एकाउंट था जिसमें रोज लाखों के वारे-न्यारे होते थे।

अक्सर लोग अपने दफ्तर के पास किसी बैंक में खाता खुलवाते थे मगर ओबी का खाता वर्ली ब्रांच में था, जो उसके घर और दफ्तर से लगभग बराबर की दूरी पर था। डैंगसन का दफ्तर भी पास ही था। उसने बैंक की बजाय डैंगसन के दफ्तर में जाना मुनासिब समझा। वह चाहता था, उसका चैक आज ही कैश हो जाए। इसमें डैंगसन मदद कर सकता था। दफ्तर के ऊपर ही डैंगसन का फ्लैट था। डैंगसन का सारा स्टाफ सम्पूरन से परिचित था। उसे देखते ही दरबान ने विजिटिंग कार्ड नहीं माँगा, बल्कि डैंगसन के दफ्तर का दरवाजा खोल दिया। डैंगसन दफ्तर में बियर पी रहा था, ‘‘यह अचानक कैसे धावा बोल दिया?’’

‘‘भूख लग रही थी और प्यास भी।’’ सम्पूरन बोला।

‘‘क्या लोगे?’’

‘‘मैं तो वोदका लूँगा।’’

‘‘मैं कंपारी।’’ सुप्रिया बोली।

‘‘ये मेरे दोस्त सुदर्शन। शायरी करते हैं और देश के जाने-माने पियक्कड़। इनके लिए कुछ भी मँगा लो।’’

डैंगसन ने घंटी बजायी और दरबान से कहा कि ऊपर से कंपारी और वोदका ले आए।

‘‘बहुत एक्साइटेड लग रहे हो?’’

‘‘बहुत दिनों बाद लेडी लक मुस्करायी है।’’ सम्पूरन बोला और उसने सुप्रिया के पर्स से निकालकर चैक डैंगसन के हाथ में थमा दिया।

‘‘ओए तेरी तो लाट्री निकल आयी।’’

‘‘लेकिन यार मजा तो तब आये अगर आज ही कैश करवा दो। मुझसे अब इन्तजार नहीं हो सकता।’’ सम्पूरन ने कहा, ‘‘अब्रोल तुम्हारा दोस्त है और तुम उसके सबसे बड़े क्लायंट हो। मेरे साथ बैंक तक चल सकते हो?’’

‘‘अरे बैंक को यहाँ बुला लेते हैं।’’ डैंगसन ने रिसेप्शनिस्ट को फोन कर कहा, ‘‘अब्रोल साहब को बुलाओ। बोलो जरूरी काम है।’’

अब्रोल साहब ने प्रवेश किया तो सबके हाथ में गिलास था।

‘‘मेरा गिलास कहाँ है?’’

‘‘क्या लोगे?’’

‘‘आफ़िस आवर्स में सिर्फ बियर चल सकती है।’’

‘‘तुम्हें आज आस्ट्रेलिया की ओरिजनल बियर पिलाता हूँ।’’ डैंगसन बोला, ‘‘यहाँ सेल्फ हेल्प से काम लेना होगा। बियर फ्रिज में हैं गिलास फ्रिज के ऊपर।’’

अब्रोल ने बियर की ठंडी बोतल निकालकर गालों से छुआयी और फ्रिज पर रखे ओपनर से खोल ली। जाने उसमें कितनी झाग थी कि फ्रिज और फर्श बीयर से नहा गये। उसकी पतलून पर भी छींटे पड़े। अब्रोल ने गिलास टेढ़ा कर बोतल से भर लिया। गिलास टेढ़ा करने से झाग न बनी। डैंगसन ने चपरासी को बुला कर आदेश दिया कि फौरन से पेश्तर फ्रिज और फर्श की सफाई कर दे।

डैंगसन ने अब्रोल को ओबी की समस्या बतायी।

‘‘जरीवाला का चैक है, बाउंस नहीं होना चाहिए। उसका एकाउंट दिखवाओ तो पता चल जाए।’’

‘‘वह भी हो जाएगा। फिलहाल इस चैक के अगेंस्ट कितना पैसा अभी दिलवा सकते हो?’’

‘‘एक दिन में कितना खर्च कर सकते हो?’’ डैंगसन ने ओबी से पूछा।

‘‘यही कोई दस लाख।’’

सबने ठहाका लगाया।

‘‘आज ही क्लियरिंग में चैक डलवा देता हूँ। बीस हजार का प्रबन्ध किए देता हूँ। जरा बैंक को फोन मिलवा दो।’’

डैंगसन ने फोन मिलवा कर चोंगा उसे थमा दिया। अब्रोल ने दफ्तर में कैशियर से कहा कि बीस हजार क्लिफ्टन पार्क एंड ली के खाते से अग्रिम भिजवा दे और पचास हज़ार का चैक आज ही क्लियरिंग में भेज दे।

कैशियर ने उधर से कुछ कहा तो अब्रोल ने ठहाका लगाया, ‘‘मैं जिम्मेदारी लेता हूँ।’’

सम्पूरन ने उसी समय जेब से चैक बुक निकालकर बीस हजार का चैक काटा और मैनेजर को सौंप दिया, ‘‘मुझे आज ही यह पैसा चाहिए।’’

मैनेजर ने डैंगसन के कैशियर को बैंक रवाना कर दिया।

सुप्रिया कुर्सी की पीठ पर सिर टिका कर बैठी थी और शान्त लग रही थी।

‘‘क्या सोच रही हो?’’ डैंगसन ने पूछा।

‘‘सोच रही हूँ, वह मुझे गेट आउट कह कर अपमानित कर सकता था, मगर मुझे देखते ही हाथ जोड़ कर खड़ा हो गया और बोला— मैं अपने कल के बेहूदे व्यवहार पर शर्मिन्दा हूँ। आप मुझे मुआफ कर चुकी होंगी।’’

डैंगसन भी पार्टी में था। उसने मैनेजर को कल का किस्सा किसी फ़िल्मी कहानी की तरह सुनाया।

‘‘ऐसी पार्टियों में मुझे नहीं बुलाते।’’ मैनेजर ने शिक़ायत की।

‘‘अगली ही पार्टी में आप आएँगे।’’ सम्पूरन बोला, ‘‘कहानीकार, अब तुम फ़िल्म की पटकथा लिख डालो। वैसे मेरे जेहन में भी कुछ आइडियाज हैं।’’

‘‘लंच यहीं मँगवा लें या नेहरू सेंटर चलें।’’

‘‘वहाँ के स्टार्टर्ज से ही मेरा पेट भर जाता है। यहीं मँगवा लीजिए। मेरे लिए हैदराबादी बिरयानी।’’ सुप्रिया बोली।

‘‘मेरे लिए कोलीवाड़ा प्रॉन। और एक मिस्सी रोटी।’’

‘‘हम दोनों का काम दाल मक्खनी, जीरा आलू, मशरूम दो प्याजा से चल जाएगा।’’

‘‘स्क्रिप्ट राइटर तुम क्या खाओगे?’’

‘‘ऐसे मौकों पर मैं तन्दूरी प्रॉन खाना पसन्द करता हूँ। मेरे लिए रूमाली रोटी मँगवा देना।’’

डैंगसन ने सबके आर्डर अपने पैड पर लिखकर अपने ड्राइवर को थमा दिए।

‘‘सोचता हूँ, तब तक अपनी तनख्वाह कलेक्ट कर लूँ।’’

‘‘तनख्वाह का लफड़ा छोड़ो।’’ सम्पूरन बोला, ‘‘मेरी मानो तो नौकरी छोड़ दो। आज से दुगुनी तनख्वाह पर सुप्रिया तुम्हें क्लिफ्टन पार्क एंड ली के स्टोरी विभाग में चीफ नियुक्त कर लेगी। क्यों सुप्रिया, कहाँ यह दर दर नौकरी करता फिरेगा?’’

‘‘ओके अप्वाइंटेड।’’ सुप्रिया की आवाज लरज रही थी, ‘‘सम्पूरन चाहेगा तो एक दिन फीचर फ़िल्म प्रोड्यूस करेगा।’’

‘‘डार्लिंग, तुम इजाजत दो तो आज ही बेदी साहब को स्क्रीन प्ले के लिए पाँच हजार एडवांस दे आता हूँ।’’

‘‘मैनेजर साहब यह शाम तक बीस हजार फूँक डालेगा।’’ डैंगसन बोला।

‘‘आप जिसे फूँकना कहते हैं, वह मेरा इन्वेस्टमेंट है।’’ सम्पूरन बोला।

डैंगसन ने ऊपर अपने बावर्ची को फोन कर दिया कि जब तक खाना आता है वह टेबल लगा दे। जब तक बियर का दौर चला, खाना आ गया। खाना ही नहीं, डैंगसन का कैशियर अपने फटे से थैले में सौ-सौ की बीस गड्डियाँ ले आया। सम्पूरन ने गड्डियाँ सुप्रिया को सौंप दीं। उसकी दिलचस्पी अब खाने में शेष हो चुकी थी। वह जल्द से जल्द इन गडिडयों का वारा-न्यारा करना चाहता था।

 

चुकाना उधार दान की तरह

 

टैक्सी में बैठकर सम्पूरन ने ड्राइवर से कहा, ‘‘सबसे पहले माहिम चलो।’’ ओबी की बात पर पुरुषार्थी अवश्य चौंका, मगर सुप्रिया को आश्चर्य नहीं हुआ। माहिम में शीतला देवी टेम्पल रोड पर उसका शू शाइनर कन्हाई लाल गोपाल मेंशन के नीचे जमीन पर बैठकर फटे पुराने जूतों की मरम्मत करता था। आते जाते राहगीर जूते पालिश भी करा लिया करते थे। कन्हाई लाल पिछले कई वर्षों से ओबी के बीसियों जूते घंटों बरामदे में बैठकर चमकाया करता था। ओबी से उसे शायद ही कभी नगद मेहनताना मिला हो। रात का बचा हुआ भोजन उसे लगभग रोज मिल जाता था। ओबी ने उससे कह रखा था कि भूल से भी मुझसे पैसे मत माँगना, माँगोगे तो कभी नहीं मिलेंगे। नहीं माँगोगे तो एक दिन इतने पैसे दूँगा कि तुम विश्वास न करोगे।

रास्ते में शिवाजी पार्क के पास अपने घर के नीचे उसने टैक्सी रुकवाई और सुप्रिया से एक गड्डी माँगी। ओबी ने गड्डी पुरुषार्थी को दी कि वह उसे खोले। गड्डी इतनी जगह से स्टैपल की हुई थी कि उसे चलती गाड़ी में नहीं खोला जा सकता था। उसने सुप्रिया को गड्डी लौटा दी कि कम से कम स्टैपल वाली गड्डी दे। एक गड्डी बिल्कुल नयी थी, सिर्फ दो स्टैपल लगे थे।

‘‘लो पहलवान इसे खोलो।’’

पुरुषार्थी ने आधे नोट अँगूठे के बीच दबा कर गड्डी के कान ऐसे उमेठे कि दोनों स्टैपल बेबस परास्त सैनिकों की तरह झूल गये। पुरुषार्थी ने दोनों बाहर फेंक दिए।

‘‘शायद किसी एक्सप्लायटर की कार पंक्चर कर सकें।’’

‘‘इनमें इतना दम नहीं कामरेड।’’ ओबी ने नोट की गड्डी जेब के हवाले की और अपने प्यारे दोस्त रामलाल की गुमटी के पास पहुँचा। रामलाल ने सोचा अब यह टैक्सी का भाड़ा भी माँगेगा और गोल्ड फ्लेक सिगरेट का बड़ा पैकेट भी लेगा। उसने ओबी की तरफ बीस का पैकेट बढ़ाया।

‘‘रामलाल, तुम्हारे शीशमहल में वह जो 555 का पैकेट झाँक रहा है, वह चुपचाप मेरे हवाले कर दो और आगे से बन्दा सिर्फ इसी ब्रांड को पेट्रनाइज करेगा। आज ही कुछ कार्टन मँगवा लो।’’

‘‘यहाँ तो जहर खाने को भी पैसा नहीं है।’’

‘‘कितना जहर खाओगे, बोलो।’’

‘‘साहब, हर वक्त मजाक अच्छा नहीं होता।’’

‘‘तुमने जो मेरा झूठा सच्चा हिसाब बना रखा है, वह निकालो तो।’’

उसने सम्पूरन की बात की तरफ ध्यान नहीं दिया, बेमन से पान पर कत्था लगाने लगा।

‘‘हिसाब निकालो। आज तुम्हारी कलई खोलता हूँ।’’

वह बदस्तूर पान पर कत्था मलता रहा।

‘‘रामलाल झूठा सच्चा जो भी मेरा हिसाब है, फौरन से पेश्तर निकालो।’’

उसने पैकेट खोल कर सिगरेट सुलगाया। रामलाल ने बही खोल दी, ‘‘आज की तारीख में एक हजार दो सौ बाइस रुपये हैं।’’

‘‘इसमें कितने की गड़बड़ी है?’’

‘‘मैं गड़बड़ी क्यों करूँगा?’’

‘‘गधे हो, इसलिए नहीं करते।’’

सम्पूरन ने सौ सौ के ग्यारह नोट उस पर ताश के पत्तों की तरह फेंके और बोला, ‘‘कभी सिगरेट देने में आना कानी की या टैक्सी वाले के सामने बेइज्जत किया तो मुझसे बुरा कोई न होगा।’’

‘‘माफ करना मालिक।’’

‘‘माफ के बच्चे। तुम मुझे माफ करना।’’ ओबी आकर दुबारा टैक्सी में बैठ गया।

‘‘पुरुषार्थी साहब आपकी तनख्वाह कितनी है?’’

‘‘यही कोई ग्यारह सौ पचहत्तर।’’

‘‘पैसा चाहिए तो बोलो’’

‘‘अभी ऐसी कोई ज़रूरत नहीं है।’’

सुप्रिया ओबी की रग रग पहचानती थी, उसे मालूम था, वह आज अपनी तमाम देनदारियाँ चुकाएगा।

कन्हाई लाल के पास पहुँचकर वह गाड़ी से उतरा और बोला, ‘‘जूते चमकाओ। मेरे ही नहीं, बहूजी के और पुरुषार्थी साहब के भी। जल्दी करो। देर हो रही है।’’

उसने सम्पूरन का जूता पकड़ा और चमकाने लगा, ‘‘ई तो ठीक बा। पहले से ही चमक रहा है।’’

‘‘कब से मेरे यहाँ आ रहे हो?’’

‘‘कई बरिस हो गये।’’

‘‘क्यों आते हो? मैं बुलाने गया था क्या?’’

‘‘नहीं हजूर, पापी पेट खातिर आवत हैं। एक जून बढिय़ा खाना मिल जात है।’’

‘‘कितना बकाया है?’’

‘‘कोई बकाया नहीं हजूर। आप बख्शीश दे देंगे तो मना न करब।’’

सम्पूरन ने सौ-सौ के दो नोट उसकी मुट्ठी में बन्द कर दिये।

नोट देखकर वह भौंचक रह गया। उसने सम्पूरन के पैरों पर सिर रख दिया। सम्पूरन ने पैर पीछे हटा लिये— ‘‘यह क्या कर रहे हो! झुकना तो मुझे चाहिए, जाने कब से मेरे जूते चमका रहे हो?’’

वह कुछ जवाब देता उससे पहले ही सम्पूरन टैक्सी में बैठ गया, ‘‘सोचता हूँ लगे हाथ दादर के सतनाम टैक्सी का भी हिसाब कर दूँ। पाँच सौ के लिए मुकदमे की धमकी दे रहा था।’’ उसने टैक्सी वाले से कहा, ‘‘चलो दादर। कैडिल रोड शिवाजी पार्क।’’

सतनाम टैक्सी पर केवल ड्राइवरों की महफ़िल जमी थी। सब तख्त पर बैठकर ताश खेल रहे थे।

‘‘बाश्शाओ, सरदार बहादुर कहाँ हैं?’’

‘‘वह चार बजे आएँगे।’’

‘‘चार तो बज गये हैं।’’

‘‘बस आते ही होंगे।’’

‘‘अगली बाजी में मुझे भी शामिल कर लो।’’ सम्पूरन ने कहा।

अगली बाजी शुरू होती उससे पहले ही अपने टुटहे स्कूटर पर सरदारजी आते हुए दिखाई दिए, ‘‘सतसिरी अकाल सरदारजी। दसियों टैक्सियों के मालिक हो, इस टुटहे स्कूटर को समुद्र में क्यों नहीं बहा देते?’’

‘‘आप जैसे गाहकों की बदौलत ही मेरी यह हालत है। कहिये, कैसे आना हुआ?’’

‘‘कहते हैं न कि उसके घर में देर है अन्धेर नहीं।’’

‘‘विराजिए।’’ सरदारजी ने छोटे-से केबिन में सामने वाली सीट की तरफ इशारा करते हुए कहा।

‘‘आपका हिसाब चुकाने आया हूँ।’’

‘‘जी आयाँ नूँ।’’

‘‘कितना बकाया है?’’

सरदारजी ने अपना बहीखाता खोला और बोले, ‘‘दो बरस से पाँच सौ बत्तीस आपके नाम को रो रहे हैं।’’

‘‘यह लीजिये छह सौ। अब उन्हें चुप कराइए। खुदा हाफ़िज।’’

‘‘रसीद तो लेते जाइए।’’

‘‘डाक से भिजवा दीजिये।’’ सम्पूरन ने कहा और आकर गाड़ी में बैठ गया, ‘‘अब बस दारू खरीद लें, फिर घर चलते हैं।’’

दादर से ही उसने एक क्रेट पीटर स्कॉट खरीदी और डिक्की में रखवा ली।

‘‘सुप्रिया आज लाला का भी कल्याण कर देना चाहिए। महीनों से उसे कुछ नहीं दिया।’’

‘‘राशन तो उसी के यहाँ से आता है। सबसे पहले उसी के यहाँ चलिए। काकाजी बता रहे थे, उसने हाल ही में अपने से बहुत छोटी स्त्री से दूसरी शादी रचा ली है।’’

‘‘चलो चलते हैं। मगर उसकी दुकान कहाँ है?’’

‘‘दादर में ही कहीं है।’’

‘‘मुझे मालूम है।’’ पुरुषार्थी बोला, ‘‘स्टेशन जाते समय मैं कई बार भीड़ से बचते हुए गलियों-गलियों दादर जाता हूँ। लगता है, आगे उसने दुकान कर रखी है, पिछवाड़े में उसका घर है।’’

दुकान से पहले एक चौराहे पर पुरुषार्थी ने गाड़ी रुकवा दी और सब लोग गली में घुस गये। लाला बंडी पहने पटरे पर बैठा था। बच्चों को ज्योमेट्री बक्सा दिखा रहा था। सम्पूरन लोगों को देखकर सकपका गया। उसने खूँटी से अपनी कमीज उतारी और पहनने लगा। उसके चेहरे से मनहूसियत के बादल छँट गये थे।

‘‘आइए, पधारिये। आज पहली बार बहूजी हमारे यहाँ आयी हैं।’’ वह बोला।

‘‘सुना है लाला, तुमने शादी रचा ली है।’’ सुप्रिया बोली, ‘‘साहब मुँहदिखाई के लिए आये हैं।’’

‘‘क्या मजाक करती हैं आप! बच्चे छोटे-छोटे थे, क्या करता! उनकी देखभाल के लिए कोई तो चाहिए था।’’

‘‘जल्दी से मुँह दिखायी कराइए। उसके बाद आपका हिसाब होगा।’’ सम्पूरन बोला।

‘‘आप मजाक न उड़ाइए हुजूर। मेरी मजबूरी थी।’’

‘‘हमलोग तो आज बहू का मुँह देखकर ही जाएँगे।’’

लाला असमंजस में पड़ गया। फिर वह उठा और भीतर चला गया। थोड़ी देर में उसके पीछे-पीछे घूँघट काढ़े उसकी मेहरारू प्रकट हुई। उसने लम्बा घूँघट खींच रखा था।

‘‘ये हमारे साहब हैं, इनका आशीर्वाद लो।’’

बहू ने झुक कर सम्पूरन का चरण स्पर्श किया। सुप्रिया ने चुपके से घूँघट हटा दिया। ललाइन सचमुच सुन्दर थी। बड़ी-बड़ी कजरारी आँखें, काले घने बाल। पलक झपकती तो बिजली-सी कौंध जाती।

‘‘लाला, तुम्हारी लाटरी खुल गयी है। इस देवी की पूजा किया करो।’’ सम्पूरन ने कहा और बहू के हाथ में सौ का नोट रख दिया।

‘‘ये पैसे लाला से छिपा कर रखना। पैसे के मामले में बड़ा कंजूस और लालची है।’’

बहू धीरे-से मुस्करायी। सफेद दन्त पंक्ति पलभर के लिए चमक गयी।

‘‘अब लाला बही निकालो और जो भी झूठा-सच्चा हिसाब तुमने बनाया है उसका टोटल करके बताओ।’’

‘‘हुजूर। मुझे तो फरेब की एक बात भी हराम है। हिसाब तो तैयार है, आप खुद देख लें। काकाजी से इसकी पुष्टि करवा लें।’’

‘‘कितना बकाया है?’’

‘‘एक हजार एक सौ बयासी रुपये और साठ पैसे।’’

सम्पूरन ने सौ-सौ के पन्द्रह नोट उसकी झोली में डाल दिये, ‘‘पूरे डेढ़ हजार हैं। यह इस शर्त पर दे रहा हूँ कि कभी उधार माँगने मेरे दर पर न आओगे, न किसी सामान के लिए मना करोगे। सामान दुकान में न होगा तो कहीं से खरीद कर दोगे।’’

‘‘हुजूर ऐसा ही होगा। भूखों मर जाऊँगा, कभी पैसा माँगने नहीं आऊँगा।’’

‘‘यही नहीं, अगर मैं माँगने आऊँ तो कहीं से भी लाकर दोगे।’’

नोट देखकर लाला की लार टपक रही थी। वह मन ही मन इस उधारी को बट्टे खाते डाल चुका था और उसने तय कर रखा था कि अगर आज कुछ नहीं मिला तो एक पाई का उधार नहीं देगा।

 

उसकी पलकें उसके गाल चूमती थीं

 

बीसियों दिन हो गये, सुप्रिया के घर से किसी ने सुध न ली। बीच में एक चचेरी बहन ज़रूर आयी थी, उसी ने खबर दी कि घरवालों ने उसके घर से गायब होने की खबर किसी को न दी। उसके पिता को सुप्रिया के पिता ने विश्वास में लेकर सबकुछ बता दिया कि कैसे भाई ने उसका जीना हराम कर रखा था। भाई इस बात से भी राहत महसूस कर रहा था कि एक बहन की शादी का खर्चा बचा।

‘‘आई का क्या हाल है?’’

‘‘आई ने ही मुझे भेजा है। तुम्हें याद करके रोती रहती हैं। लगता है किसी दिन मेरे साथ तुमसे मिलने आएँगी।’’

सुप्रिया की आँखें भी भर आयीं।

‘‘तुम्हारा घर कितना सुन्दर है! सात जन्म में भी तुम्हारा भाई ऐसा घर न ढूँढ़ पाता।’’

सुप्रिया का घर पर इतना अधिकार हो गया था कि उसने एक बढिय़ा-सी साड़ी गिफ्ट पैक में भर कर उसे भेंट कर दी।

सम्पूरन के साथ भी उसके सम्बन्ध मधुर हो गये थे।

एक दिन वह बोला, ‘‘यह आप-आप मत किया करो। तुम अब मेरी पार्टनर हो। मुझे मेरे नाम से पुकारा करो।’’

‘‘इसमें थोड़ा समय लगेगा।’’

‘‘नहीं, आज से ही।’’

‘‘मैं भी आपको कैप्टन की तरह ओबी कहूँगी।’’

‘‘अभी से शुरू हो जाओ।’’

शाम को सम्पूरन ने पार्टी थ्रो कर दी। मुख्य अतिथि था शिवेन्द्र। शिवेन्द्र से कहा गया कि वह फ़िल्म उद्योग के अपने तमाम मित्रों को बुला ले। खासकर ऐसे लोगों को जिन्हें डाक्यूमेंट्री बनाने का अनुभव हो कि कम से कम पैसे में कैसे उम्दा फ़िल्म बन सकती है। ऐसे लोग ज्यादा ठीक रहेंगे जो अभी संघर्ष कर रहे हों।

‘‘पार्टी शार्टी बाद में देते रहना। आज शाम मैं तुम्हें फ़िल्म निर्माण सम्बन्धी बुनियादी जानकारी दे दूँगा। उसके बाद तुम दोनों अपने स्तर पर चीजें तय कर लेना।’’

सुप्रिया को शिवेन्द्र का यह सुझाव बहुत पसन्द आया। उसने सम्पूरन को किसी तरह इसके लिए राजी कर लिया, जो पार्टी देने को मचल रहा था।

‘‘शाम का मीनू क्या होगा?’’

‘‘शिवेन्द्रजी को अमृतसरी मछली बहुत पसन्द है। शाने पंजाब से मँगवा लेंगे। तुम्हारे लिए रोस्टेड चिकेन आ जाएगा और मेरे लिए प्रॉन करी। रोटी घर में बन जाएगी। काकाजी गैस तन्दूर से तन्दूरी रोटी सेंक देंगे।’’ सुप्रिया ने कहा।

‘‘तो चलो अब गिलास चमकाएँ।’’

यह सम्पूरन का पुराना शगल था। वह पहले डिटर्जेंट से गिलास धोता और फिर नेपकिन से उसे देर तक पोंछता। जब तक गिलास चमकने न लगता, वह उस पर नेपकिन रगड़ता रहता। सुप्रिया और सम्पूरन घंटों बैठकर गिलास चमकाया करते थे। काकाजी ने गिलास की ट्रे, रिन और धुले हुए नेपकिन लाकर रख दिए। साथ में पानी की दो बाल्टियाँ। दोनों गिलास चमकाने में मशगूल हो गये।

‘‘ओबी अब इसका ढिंढोरा मत पीट देना कि पचास हज़ार मिला है। बीस हजार तुमने पहले दिन ही फूँकने का प्रोग्राम बना डाला है। तुम्हारे सारे दोस्त भुक्खड़ हैं, कल से यहीं डेरा डाल देंगे। पैसे का किसी से जिक्र ही न करना। समझे?’’

‘‘सब समझ रहा हूँ मैडम। पैसा अब तुम्हारे कब्जे में रहेगा। तुमसे बिना पूछे एक भी चैक न काटूँगा। बल्कि चैक बुक तुम्हें सौंप दूँगा।’’

शिवेन्द्र आठ की जगह सात बजे ही नमूदार हो गया। उसके साथ हमेशा की तरह एक नयी सुन्दरी थी। साथ में असमय बूढ़ा हो गया एक नौजवान। शिवेन्द्र ने बताया कि यह महुआ है और पिछले तीन बरसों से उनकी गहरी छन रही है। आजकल अलका में मॉडलिंग कर रही है। अभी जल्द ही एक डिटर्जेंट के एड में यह रस्सी पर कपड़े सुखाती नजर आएगी। एड एजेंसी का विचार है कि औसत मध्यमवर्गीय औरत की तरह इसका ड्रेस हो और बगलों के बालों की एक उत्तेजक झलक दिखायी दे, मगर मालिकों को इस पर एतराज है। उनका तर्क है कि यह डिटेर्जेंट का विज्ञापन है, बाल सफा क्रीम का नहीं।

‘‘मालिकों का सुझाव सही है।’’ सुप्रिया बोली, ‘‘फोकस सफेदी पर होना चाहिए, बगलों पर नहीं।’’

‘‘लेकिन मैं तुमसे सहमत नहीं। विज्ञापन देखकर औसतन मध्यवर्गीय औरतें सोचेंगी कि यह हमारे बीच की औरत है। इसकी चॉयस का साबुन हम भी इस्तेमाल करेंगी।’’ शिवेन्द्र ने कहा।

‘‘इससे अच्छा है इसे पेटीकोट ब्लाउज में दिखाया जाए। ब्लाउज के नीचे ब्रा भी न हो। मैं तो गली मुहल्ले में औसत औरत की यही छवि देखता हूँ।’’ ओबी ने कहा।

महुआ को यह बहस बहुत बेहूदा लग रही थी। उसने शिवेन्द्र से कहा, ‘‘तुम्हें किसी का परिचय देना भी नहीं आता।’’ वह सुप्रिया से सम्बोधित हुई, ‘‘मेरा नाम महुआ गोस्वामी है। मैंने जेजे स्कूल ऑव आट्र्स से ग्रेजुएशन किया है। मॉडलिंग मेरा पेशा नहीं, यह तो अचानक मौक़ा मिल गया। मेरा पहला प्यार कला है।’’

सुप्रिया ने उसे अपनी तरफ खींचते हुए कहा, ‘‘बहुत समझदार और सुन्दर लडक़ी हो। इन लोगों की बातों की तरफ ज्यादा तवज्जो देने की जरूरत नहीं।’’

‘‘आपके प्रोजेक्ट के बारे में मुझे शिवेन्द्र ने बताया है। मेरी राय है उसके लिए एक निहायत कच्ची कली का चुनाव करो।’’

‘‘कहाँ मिलेगी यह कच्ची कली?’’

‘‘एक फोटोग्राफर है अशोक सिंह। वह बहुत टेलेंटेड फोटोग्राफर है। तमाम एड एजेंसियाँ उससे लड़कियों का फोटो सेशन करवाती हैं। चेहरे का सबसे खूबसूरत और सेंशुअस कोण ढूँढ निकालना उसे आता है। बहुत-सी स्ट्रगलर लड़कियाँ भी उससे फोटो खिंचवाती हैं। इंडस्ट्री में उसके एल्बम बहुत लोकप्रिय हैं। ढाई सौ रुपये में एक दिन के लिए पाँच एल्बम किराये पर देता है। कोई चेहरा पसन्द आ जाए तो ढाई सौ रुपये लेकर उसका फोन नम्बर और पता भी दे देता है। महज पाँच सौ रुपये में आप जरूरत के मुताबिक चेहरे का चुनाव कर सकते हैं।’’

‘‘यह तो बहुत बढिय़ा रास्ता सुझाया तुमने महुआ।’’ सुप्रिया ने महुआ को बाँहों में ले लिया। महुआ सचमुच महुए की तरह महक रही थी।

‘‘कौन-सा परफ्यूम इस्तेमाल करती हो?’’

महुआ ने किसी फ्रेंच परफ्यूम का नाम लिया जो सुप्रिया के पल्ले ही नहीं पड़ा।

‘‘अशोक सिंह से तुम्हारा परिचय है?’’

‘‘मुझे उसी की वजह से मॉडलिंग का काम मिला। एक बार वह हमारे जेजे स्कूल के किसी फंक्शन को कवर करने आया था, जाने कब उसने मेरी तस्वीर उतार ली और एक दिन अचानक एजेंसी के लोग मुझे खोजते हुए स्कूल चले आये। तुम्हारा फोन कहाँ है, मैं उसकी तुमसे बात कराती हूँ।’’

सुप्रिया फोन उठा लायी। घर में दो-चार जगह उसके सॉकेट थे, जिससे लम्बे तार के झंझट से निजात पायी जा सकती थी। अपने सोफे के पीछे के सॉकेट में उसने तार खोंस दिया।

महुआ ने अपनी पतली अँगुलियों से नम्बर घुमाये और हाय-हैलो करने लगी।

‘‘आजकल किसकी किस्मत चमका रहे हो? मगर तुम्हारे लिए हर बार यह बताना क्यों जरूरी होता है कि तुम्हारी जन्मकुंडली में पारस योग है। तुम जिसको छुओगे, वह सोना बन जाएगा और खुद तुम पत्थर बने रहोगे। लग रहा है तुम्हारा योग इधर जोर मार रहा है। लो मेरी नयी सहेली सुप्रिया से बात करो, इसे एक मॉडल चाहिए।’’

सुप्रिया ने चोंगा पकड़ लिया और विस्तार से एड की कहानी सुनाने लगी।

‘‘मान लीजिये एक परी हो और सिल्वर स्पाट पी रही हो। बेशकीमती ड्रेस और बेशकीमती कोल्ड ड्रिंक, कुछ ऐसा। एक सुपर सुन्दरी चाहिए, मगर बजट बहुत सीमित है।’’

‘‘कोई बांदा नहीं। आपका पहला-पहला काम है और फिर आप मेरी जान महुआ की फ्रेंड हैं। मैं पूरी मदद करूँगा। मुम्बई की चालों में सैकड़ों सुन्दरियाँ सड़ रही हैं, कोई पूछने वाला नहीं। मेरे पास जरूरतमन्द मगर योग्य लड़कियों का एक एल्बम है। कोई धर्मशाला में रह रही है, कोई सस्ते से गेस्ट हाउस में। आप अपना फोन नम्बर और पता दे दें, मैं एल्बम भिजवा दूँगा।’’

‘‘नाम पता तो इम्प्रेसिव है, बाकी सब फटीचर। फर्म का नाम है क्लिफ्टन पार्क एंड ली, लेमिग्ंटन रोड। स्टॉफ के नाम पर केवल एक कर्मचारी है— मारिया। रिसेप्शनिस्ट। अक्खी बम्बई में ऐसा दफ्तर न होगा। मेरा दोस्त ओबी यानी सम्पूरन ओबेराय कम्पनी का मालिक है, मैं उसकी पार्टनर या पीएस, कुछ भी समझ लीजिये।’’

‘‘तुम एस के की बात तो नहीं कर रही? हम लोग साथ-साथ बम्बई आये थे। कहाँ है मेरा यार?’’

‘‘ओबी-ओबी, देखो मैंने तुम्हारा एक बहुत पुराना दोस्त ढूँढ़ निकाला है। लो बात करो।’’

‘‘भूतनी के, मैं अशोक सिंह हूँ, वही पुराने लाज की खाट नम्बर आठ वाला। मैं, तुम और स्वर्ण चन्दा करके नौटांक पिया करते थे।’’

‘‘साले आओ, तुम्हें आज स्कॉच पिलाता हूँ। रहते कहाँ हो?’’

‘‘अभी आता हूँ। खार में रहता हूँ। साथ में एल्बम भी लेता आऊँगा। पता बता।’’

‘‘सत्रह रानडे रोड, शिवाजी पार्क-सी फेस।’’

‘‘खैर आकर देखता हूँ तुम्हारा सी फेस।’’

‘‘अशोक बहुत प्यारा शख्स है। आज ही मॉडल का इन्तजाम हो जाएगा।’’

‘‘डायरेक्टर को तो मैं अपने साथ ले ही आया हूँ।’’

ओबी ने पुरुषार्थी को आवाज दी और सबसे मिलवाया।

‘‘पुरुषार्थी साहब उर्दू के फस्र्ट क्लास अफसाना निगार हैं। मैगज़ीन की नौकरी छोडक़र आजकल एड एजेंसी में काम करते हैं। आदमी अच्छे हैं मगर थोड़ा दिलफेंक किस्म के इनसान हैं। हमेशा खोये-खोये रहते हैं। हमारी पहली एड फ़िल्म की पटकथा इन्होंने लिखी है।’’

शिवेन्द्र ने बताया कि वह एक कैमरामैन को भी जानता है। फली मिस्त्री का असिस्टेंट था। इतना व्यस्त रहता था कि बेचारे की बीवी एक स्टंटमैन के साथ भाग गयी। तब से पगला-सा घूमता है। परेल की किसी चाल में रहता था और मरियम आंटी के यहाँ नौटांक पीकर धुत्त पड़ा रहता है। बहुत टेलेंटेड कैमरामैन है। बहुत सस्ते में पट जाएगा। महुआ की इस प्रसंग में कोई दिलचस्पी न थी। अचानक वह महुआ को लेकर बरामदे में चला गया।

ओबी पर जीवन दर्शन का दौरा पड़ गया था। तीसरे पैग के बाद वह अध्यात्म में चला जाता था। कहता था— ‘‘दुनिया फानी है।’’ उसने बड़े-बड़े जीनियस बरबाद होते देखे हैं और एक से एक सहूटिया को आसमान की बुलन्दियाँ छूते देखा है। वाहे गुरु का खालसा वाहे गुरु दी फतेह। अपना काम ईमानदारी से करते जाओ, बस। एक न एक दिन कामयाबी आपके कदम चूमेगी। न भी चूमे तो साला क्या हो जाएगा! होशियार आदमी कभी भूखों नहीं मरता। मैं दुनिया में ही नहीं बम्बई भी खाली हाथ आया था। आज मेरे पास क्या नहीं है। सुप्रिया! सुनो और मुझे अभी बताओ, मेरे पास तू है तेरे पास क्या है? क्या है तुम्हारे पास सुप्रिया? मैं हूँ न तुम्हारे पास, अब तुम्हें किसी चीज की जरूरत नहीं। बस मेरा साथ न छोडऩा। कैमरामैन जरूर सहूटिया होगा जो उसकी बीवी भाग गयी। अच्छा हुआ वह भाग गयी वरना घुट-घुटकर दम तोड़ देती।’’

‘‘ओबी तुम अब और नहीं पिओगे। तुम अब अनापशनाप बकने लगे हो।’’

‘‘जनाब पुरुषार्थी साहब सुना आपकी भाभी क्या कह रही है? आलीजा मुझे बर्फी का एक टुकड़ा खिलाइए, उससे दारू फारू सब उतर जाएगी। यह मेरा आजमाया हुआ नुस्खा है।’’

पुरुषार्थी मिठाई का डिब्बा उठा लाया। ओबी ने मिठाई के दो-तीन टुकड़े यके बाद दीगरे अपने हलक के हवाले कर दिये और नल पर जाकर मुँह धो आया। तभी कॉलबेल बजी। वह खुद ही दरवाजा खोलने चला गया। सामने अशोक सिंह खड़ा था। सूटेड बूटेड। उसने कैमरा जैकेट पहनी हुई थी और बहुत स्मार्ट लग रहा था। उसके पीछे एक तन्वंगी थी— ‘‘मानसी, यही है मेरा दोस्त।’’

‘‘ठीक वैसा, जैसा मैंने सोचा था।’’ मानसी ने ओबी से हाथ मिलाया, ‘‘ये रास्ते भर आपके किस्से ही सुनाते रहे।’’

‘‘कैसे किस्से?’’

‘‘जैसे एक बार ताजमहल में डटकर भोजन किया और एक एक कर बगैर बिल चुकाये निकल गये।’’

‘‘अब मैं बदल गया हूँ। लगता है अशोक तो मुझसे भी ज्यादा बदल गया है।’’

भीतर आते ही अशोक महुआ की तरफ बढ़ा। महुआ ने भी बाँहें फैला दीं। दोनों आपस में गुँथ गये।

‘‘शोकी, कुछ बुजुर्गों की शर्म करो।’’ ओबी बोला और उसने मानसी का हाथ दबाया, ‘‘तुम्हारे हाथ बहुत गुद्दाज़ हैं, जैसे स्पंज लगा हो।’’

‘‘थैंक्स।’’ मानसी बोली, ‘‘आपके हाथ की ग्रिप बहुत मजबूत है।’’

‘‘मैं भी तो देखूँ।’’ सुप्रिया ने मानसी का दूसरा हाथ थाम लिया, ‘‘सचमुच कमाल के हाथ हैं!’’

‘‘शोकी, इससे मिलो— मेरी फ्रेंड, फ़िलॉसफर और वुड बी वाइफ— सुप्रिया।’’

‘‘आपके लिए एल्बम मैं लाया हूँ। अभी ड्राइवर लाता होगा।’’

दरवाजा खुला रह गया था। सुप्रिया ने देखा गलियारे में ड्राइवर एल्बम थामे समुद्र की तरफ टकटकी लगाकर देख रहा था। उसके हाथ में दो-तीन पुस्तकनुमा एल्बम थे। अशोक सिंह ने ताली बजा कर ड्राइवर का ध्यान खींचा और भीतर बुला लिया। ओबी और शिवेन्द्र एक एल्बम के पन्ने पलटने लगे तथा सुप्रिया और महुआ दूसरे एल्बम के।

‘‘इस तरह एल्बम नहीं पलटे जाते। आप लोग इत्मीनान से दो-चार दिन इनका मुतालया करें। उसके बाद मुझे बताएँ मैं सम्पर्क करा दूँगा। इतना बता दूँ कि यह काली जिल्द वाली एल्बम संघर्षशील और फोटोजेनिक चेहरों की है। लाल एल्बम की लड़कियाँ खाते-पीते घरों की हैं और इनकी फीस भी ज्यादा होगी। नखरे अलग झेलने पड़ेंगे।’’

ओबी ने लाल एल्बम ड्राइवर को लौटा दिया, ‘‘इसे तुम वापस गाड़ी में रख दो। काले एल्बम से ही मैं हीरा ढूँढ निकालूँगा। मेरी आज की रात काले एल्बम की हसीनाओं के नाम। गुलजारी लाल इसी खुशी में सबके लिए एक-एक पटियाला पैग बनाओ।’’ ओबी ने सुदर्शन को एक और नया नाम दिया।

‘‘क्या पी रहे हो?’’

‘‘आज से ओबेराय कसम खाता है कि स्कॉच के अलावा कोई दूसरी दारू नहीं पिएगा।’’

‘‘ठीक है चलेगी। मानसी तो सिर्फ कम्पारी पीती है।’’

‘‘सुप्रिया की भी यही पसन्द है।’’

गुलज़ारी लाल यानी पुरुषार्थी साहब सबके लिए पैग बनाने लगे। उन्हें ज्यादा पीने की आदत नहीं थी। स्कॉच तो उसे बहुत हल्की शराब लग रही थी। दूसरों का पैग बनाने से पहले वह अपना पैग बनाकर एक ही घूँट में पी डालता। इस बार के पैग ने कुछ ऐसा असर दिखाया कि वह बाथरूम की तरफ भागा। ऐसी खामोश कै हुई कि अब तक पी सारी स्कॉच वाश बेसिन में बह गयी। शराब के साथ-साथ अब तक का खाया-पिया भी निकल गया। उसने बाथरूम का दरवाजा बन्द कर दिया ताकि भीतर की गन्ध बाहर न आ जाए। उसने समुद्र की तरफ खुलने वाली बड़ी-सी खिडक़ी भी खोल दी, जो अक्सर बन्द रहती थी। समुद्र को छूकर आने वाली हवाओं से उसे थोड़ी राहत मिली। उसने वाश बेसिन का नल पूरा खोल दिया और खिडक़ी पर सिर टिका कर खड़ा हो गया। पेट से शराब निकल जाने के बावजूद उसका सिर घूम रहा था। टॉयलेट में खटिया होती तो वह वहीं सो जाता। हवा के ठंडे झोंके से उसकी खुमारी बढ़ रही थी। उसने ब्रश से वाश बेसिन की जाली साफ की और डिटॉल से अच्छी तरह धो दिया। बाथरूम के दरवाजे पर कोई दस्तक दे रहा था। उसने हड़बड़ी में मुँह धोकर और दरवाजा खोल दिया। सामने मानसी खड़ी थी।

‘‘सो गये थे क्या?’’ उसने हँसते हुए पूछा।

‘‘खटिया होती तो सो जाता।’’

वह जल्दी से बाथरूम में घुस गयी। सुदर्शन ने बाहर आकर देखा, सबके पैग बने हुए थे। जाने उसकी अनुपस्थिति में उसकी भूमिका किसने निभा दी। उसने भी अपना पैग तैयार किया। इस बार दारू कम और सोडा ज्यादा था। वह एक कोने बैठकर धीरे-धीरे सिप करने लगा। फिर उसने काली जिल्द वाला एल्बम उठा लिया और उसके पन्ने पलटने लगा। उसे एल्बम में बन्द तमाम लड़कियाँ सुन्दर लग रही थीं। वह इनमें से किसी के साथ भी शादी करने को तैयार था। काली साड़ी में लिपटी एक लडक़ी का फोटो उसे बहुत उत्तेजक लग रहा था। पारदर्शी पल्लू से उसकी नर्म गुद्दाज़ बाँहें उसे बहुत आकर्षक लग रही थीं। बाँहें लगभग स्लीवलेस थीं। बस एक इंच की स्लीव थी। वह उसके पार जाने को आतुर हो रहा था। उसने तय किया कि यदि उसकी राय माँगी गयी तो वह इसी लडक़ी की सिफारिश करेगा। लडक़ी का रंग-रूप और सादगी उसे इतनी भा गयी कि वह देर तक टकटकी लगा कर उसकी तरफ देखता रहा। अचानक ओबी की नजर उस पर पड़ी तो वह उठकर उसके पीछे खड़ा हो गया। लडक़ी देखते ही वह झूमने लगा, ‘‘ओ मिल गयी, मिल गयी, मिल गयी। गोवद्र्धन महाराज ने हीरा छाँट लिया।’’ वह हाथ में एल्बम लेकर भांगड़ा करने लगा। ओबी पर दारू का कम ही असर होता था चाहे जितनी पी ले। लेकिन आज उसे देखकर कोई भी कह सकता था कि ‘पिएला’ है। सुप्रिया ने उसके हाथ से एल्बम छीन लिया और अशोक सिंह से पूछा, ‘‘ऐसा क्या है उस लडक़ी में कि दो-दो गबरू उस पर फ़िदा हो गये हैं!’’

‘‘मैं उस कोलम्बस की दाद दूँगा, जिसने यह अमरीका खोज निकाला है।’’

‘‘क्या है इस लडक़ी में?’’

‘‘इसकी तो अभी मुझे बहुत-सी तस्वीरें उतारनी हैं। मैं उसकी पर्सनेलिटी को कैमरे में ठीक से कैद नहीं कर पाया। हर कोण से यह एक अलग लडक़ी लगती है। पूरी इंडस्ट्री में इस लडक़ी जैसी संवेदनशील आँखें किसी की न होंगी। पलकें इतनी लम्बी हैं कि गालों को चूमती हैं। कोयले से जैसे हीरा निकल आया हो।’’

सब लोग एल्बम ले लेकर देखने लगे। हर शख्स तारीफों के पुल बाँध रहा था।

‘‘यह एक बहुत साधारण परिवार की लडक़ी है। पिता इनकम टैक्स के रिटायर्ड इंस्पेक्टर हैं। परेल की एक चाल में रह रहे हैं। लडक़ी की जिद है कि वह हीरोइन बनकर दिखाएगी। दिन भर प्रोड्यूसरों और डायरेक्टरों के चक्कर लगाते हैं। मगर यह तो बम्बई है। ज्यादा से ज्यादा एक दो महीने इन्तजार करेंगे, कोई काम नहीं मिला तो लडक़ी की शादी कर देंगे।’’

‘‘भापे तुसीं ग्रेट हो।’’ ओबी ने अशोक सिंह को बाँहों में भर लिया, ‘‘मुझे ऐसी ही लडक़ी की तलाश थी, जिसके सितारे गर्दिश में हों। हाईफाई लड़कियों के नखरे भी बहुत होते हैं और फीस भी। ...कब मिलवाएगा इस लडक़ी से?’’

‘‘कल स्टूडियो में बुलवा लूँगा। कितने बजे ठीक रहेगा?’’

‘‘कल लंच पर इनवाइट कर लो। ताज में मेरी तरफ से लंच रहा। सुप्रिया को आशियाना में लंच लेना पसन्द है।’’

‘‘मानसी सुन रही हो? तुम तो जानती हो तुम्हारे बगैर मैं न कहीं लंच करता हूँ न डिनर। तुम वक्त पर पहुँच जाना वर्ना मैं भूखा रह जाऊँगा।’’

‘‘इसे चढ़ रही है। अब और न देना।’’ मानसी बोली, ‘‘इसकी ट्रेजेडी यही है कि यह पीकर ही मुहब्बत का इजहार कर सकता है।’’

‘‘मेरी जान हू सेज आई लव यू? यू आर मिस्टेकन। आई हेट यू। आई हेट यू मानसी।’’

मानसी मुस्करायी, ‘‘जब यह किसी को बेइन्तिहा चाहता है तो उससे हेट करने लगता है। इसका प्यार शंटिग पर निकल जाता है।’’

अशोक सिंह खड़ा हो गया। ओबी ने उसकी मुट्ठी में सौ सौ के तीन नोट दबा दिये और बोला, ‘‘कल दोपहर डेढ़ बजे ताज की लॉबी में मिलेंगे।’’

अशोक सिंह लडख़ड़ाते हुए चलने लगा। उसने मानसी के कन्धों पर अपनी बाँहें फैला दी थीं। वह उसे बहुत हिफाजत से सीढिय़ों तक ले गयी और दोनों साथ साथ सीढिय़ाँ उतरने लगे।

‘‘बाय एवरी बॉडी।’’ मानसी ने बाल झटकते हुए विदा ली। शिवेन्द्र एक कोने में महुआ के आँसू पोंछ रहा था। लड़कियों को रुलाना और बाद में आँसू पोंछना उसका प्रिय शगल था।

अगले दिन शाम को पुरुषार्थी लौटा तो उसने देखा एक दुबला-पतला आदमी धोती कोट पहने सोफे पर बैठा था। सोफे की बगल में एक छाता पड़ा था और एक गठरी। साथ वाले सोफे पर नजर पड़ते ही पुरुषार्थी की समझ में सारी कहानी आ गयी। बगल में वही लडक़ी बैठी थी, जिसे वह कल से बीसियों बार एल्बम में देख चुका था। वही दमकता हुआ चेहरा, घने बाल, मामूली-सी सूती धोती मगर शक्ल पर अद्भुत तेज। वह नजरें झुकाए एक पत्रिका के पन्ने पलट रही थी। अशोक सिंह ठीक ही कह रहा था उसकी पलकें इतनी घनी और लम्बी थीं सहसा ही ध्यान खींच लेती थीं। सचमुच अगर उस पर कोई विशेषण सटीक बैठता था तो वह था असूर्यम्पश्या। एक ऐसा चेहरा जिसे मेकअप दरकार नहीं था, न कोई कीमती पोशाक। वह एक मध्यवर्गीय किस्म का चेहरा था, गर्ल नेक्स्ट डोर जैसा। उसी चेहरे में कहीं एक अभिजात्य की भी झलक थी। पुरुषार्थी के मन में उससे बात करने की जबर्दस्त इच्छा हुई। वह उसकी आवाज, उसका उच्चारण सुनना चाहता था। ओबी और सुप्रिया घर पर नहीं थे, काकाजी ने बताया, दादर तक गये हैं। उसने काका से पूछा, ‘‘मेहमानों को चाय-वाय पिलायी कि नहीं?’’

‘‘चाय-नाश्ता हो चुका है।’’

‘‘खाकसार को पुरुषार्थी कहते हैं। मैं ओबी के साथ ही रहता हूँ। आप निश्चित रूप से सुषमा करन्दीकर हैं।’’

‘‘जी।’’ उसने पल्लू ठीक करते हुए कहा, ‘‘आपने कैसे जाना?’’

‘‘एल्बम से आपका चेहरा पसन्द करने में मेरा भी सहयोग था। आप सचमुच बहुत सुन्दर हैं और बहुत तरक्की करेंगी।’’

‘‘आपके मुँह में घी शक्कर।’’ वह बोली, ‘‘ये मेरे पिता हैं, शिवाजी करन्दीकर।’’ पुरुषार्थी ने उनका अभिवादन किया। शिवाजी ने तुरन्त एक लम्बा अभिभाषण दे डाला कि कैसे बचपन से ही इसे अभिनय का शौक था। स्कूल की हर प्रतियोगिता में भाग लेती थी और पुरस्कार जीत कर लाती थी। अब तक कई राज्य स्तरीय नाट्य प्रतियोगिताओं में पुरस्कृत हो चुकी है। अच्छे से अच्छे रिश्ते आ रहे हैं, मगर इसे एक ही धुन सवार है कि अभिनेत्री बनेगी। पिछले चार महीने से बम्बई में पड़े हैं। अभी तक सिर्फ मौखिक आश्वासन ही मिले हैं। इसने निराश होना नहीं सीखा। रोज सुबह एक नये उत्साह से उठती है। दिन भर किताबें पढ़ती है, मौक़ा मिलता है तो फ़िल्में देखती है। मेरी एक ही बच्ची है, मैं इसकी हर ख्वाहिश पूरी करूँगा। मैं तो पिछले कई दिनों से लौटने की सोच रहा था कि अचानक इसकी तकदीर चाल से उठाकर समुद्र किनारे इस आलीशान इमारत में ले आयी। साहब ने वादा किया है कि अब मुझे दर-दर भटकने की जरूरत नहीं पड़ेगी। साहब ही हम लोगों की देखभाल करेंगे। रहना, खाना, कपड़े-लत्ते सब वही दिलाएँगे। एक छोटे से काम की वह बड़ी कीमत अदा कर रहे हैं। एक मिनट की भी तो फ़िल्म नहीं है। आज ही कितना खर्च कर दिया।

‘‘अगर आपका सामान समुद्र में फेंक दें तो बुरा न मानिएगा। मेरे साथ यही हुआ था।’’ पुरुषार्थी ने कहा।

थोड़ी देर में वही हुआ जिसकी आशंका थी। ओबी और सुप्रिया थोड़ी देर बाद नमूदार हुए। उनके हाथ में दो-दो तीन-तीन शापिंग बैग थे। ओबी सोफे पर बैठ गया और बोला, ‘‘यहाँ मेहमानों की तरह नहीं, घर के लोगों की तरह रहिये। आपको कोई तकलीफ न होगी।’’ ओबी ने करन्दीकर साहब का छाता उठा लिया, उलट पलटकर देखा, कई जगह कपड़े में छेद हो गये थे। ओबी ने करन्दीकर साहब से कहा, ‘‘अब यह छाता आपको शोभा नहीं देता। आप एक मॉडल के पिता हैं। मैं आपके लिए एक नया इम्पोर्टेड छाता लाया हूँ। यह देखिये यह ऐसे खुलता है और फोल्ड होकर इतना छोटा हो जाता है कि आप अपने बैग में रख सकते हैं। आपके पुराने छाते को समुद्र में विसर्जित कर देता हूँ।’’ उसने देखते-देखते खिडक़ी से छाता नीचे फेंक दिया। उन्हें नयी काली गोल टोपी पहना दी और उनकी पुश्तैनी तेल से चिपड़ी टोपी भी समुद्र के हवाले कर दी। उसने उन्हें धोती-कमीज और अधोवस्त्रों का झोला थमा दिया और उनका स्टील का ट्रंक खंगालने लगा, ‘‘इसमें सर्टिफिकेट या कैश तो नहीं?’’ उसने पूछा।

‘‘बस यही कुछ कपड़े-लत्ते हैं।’’

‘‘तो आज इनसे भी मुक्ति पा लीजिये।’’ उसने ट्रंक की कुंडी लगायी और खिडक़ी पर जाकर दोनों हाथों से समुद्र को अर्पित कर दिया।

‘‘अभी सुप्रिया आपको एक सूटकेस देगी और जहाँ तक मेरी हीरोइन के सामान के कल्याण की बात है, यह काम भी सुप्रिया जी ही करेंगी।’’

सुप्रिया बोली, ‘‘यह काम मर्दों की अनुपस्थिति में होगा। अभी आज मेरा दर्जी आएगा, सुषमा के कपड़ों का नाप लेने। तुम्हारा काम खत्म। तुम्हें आज शिवेन्द्र के यहाँ जाना है। तैयार हो जाओ। मैं आज घर पर ही रहूँगी और सुषमा से ढेर सारी बातें करूँगी।’’

करन्दीकर साहब बहुत असमंजस में थे। पुरुषार्थी के चेताने के बाद भी वह इस प्रकार के हमले के लिए मानसिक रूप से कतई तैयार नहीं थे। वह बैग में से अपने कपड़े निकाल कर देखने लगे।

‘‘अभी समुद्र पर टहल कर आता हूँ।’’ उन्होंने अपना नया छाता उठाया और सीढिय़ाँ उतर गये। छाते के बगैर वह घर से बाहर कदम न रखते थे। छाता उनका जीवन साथी था।

घर से निकलने से पहले ओबी शेव बनाता था, बाक़ायदा स्नान करता था और औरतों से भी ज्यादा वक्त लगाकर इत्मीनान से तैयार होता था। उसके पास यूरोप के अनेक देशों के बॉडी स्प्रे थे। वह घर से निकलता तो खुशबू के मादक मन्द धुएँ की अपरोक्ष लकीर छोड़ता हुआ-सा। वह तैयारी में जुट गया। शिवेन्द्र के यहाँ उसने एक कैमरामैन को बुला रखा था और एक संघर्षशील डायरेक्टर को। उन दिनों दूरदर्शन पर धारावाहिक कार्यक्रमों का क्रम शुरू ही हुआ था। पहले ही धक्के से सेठी कैमरामैन और रेखी डायरेक्टर थोड़ा-थोड़ा स्थापित हो गये थे। वे दोनों वर्षों से फ़िल्म उद्योग में असिस्टैंट की भूमिका निभाते-निभाते बूढ़े हो चुके थे, मगर उनके हौसले बुलन्द थे। इस बीच ओबी ने कुछ फ़िल्मी लटके-झटके और शब्दावली सीख ली थी। उससे बात करके कोई अनुमान नहीं लगा सकता था कि वह फ़िल्मों के बारे में सिर्फ नगण्य जानकारी रखता है। फेड इन, फेड आउट क्लोजअप, स्क्रीन प्ले, डायलॉग, बॉक्स ऑफ़िस, एक्स्ट्रा, आउटडोर आदि शब्दों का वह बहुत होशियारी से प्रयोग करता था। मगर बात उसके भेजे में न पड़े तो वह चुप रहता था, कुछ कह कर या दखल देकर अपनी असलियत उजागर नहीं करता था। उसे सिर्फ तीस सेकेंड की फ़िल्म बनानी थी और इस पर वह अपनी इतनी ऊर्जा खर्च कर चुका था कि उसकी व्यस्तता देखकर लगता था, वह कोई फीचर फ़िल्म बनाने जा रहा है। वह दिन में स्टोरी सैशन करता, डायरेक्टर और फोटोग्राफर तथा साउंड रिकाडिस्ट से बातें करता। घर में भी कलाकारों की आवाजाही बढ़ गयी थी। बम्बई के संषर्घशील अभिनेता-अभिनेत्रियों में अफवाह फैल गयी थी कि ओबी ‘ओबेराय फ़िल्म्ज’ के बैनर तले शीघ्र ही एक मेगा बजट की फ़िल्म लांच करने वाला है। उसके दफ्तर में दिन भर संघर्षशील कलाकारों का ताँता लगा रहता। उसकी समझ में न आता कि वह इन लोगों को क्या उत्तर दे! आखिर उसने तय किया कि मनुष्य के भाग्य का कुछ पता नहीं होता, क्यों न इन सब कलाकारों के चित्र-परिचय की फाइल खोल दी जाए। आखिर उसने यह काम भी मारिया को सौंप दिया। वह स्वागत कक्ष से ही परिचय-चित्र लेकर लोगों को विदा कर देती। इलाहाबाद के एक ज्वेलर के बेटे ने जब यहाँ तक पेशकश कर दी कि वह दो लाख रुपये लगाने को तैयार है अगर उसे फ़िल्म में कोई अच्छी भूमिका मिल जाए, तो मारिया ने इंटरकाम से ओबी से सम्पर्क किया और नवयुवक का प्रस्ताव बताया। ओबी ने कहा, ‘‘उसे फौरन से पेश्तर हाजिर करो।’’

 

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