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उपन्यास |
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देस बिराना
अलका दीदी छेड़ रही हैं - कै सी लगती है गोल्डी?
- क्यों क्या हो गया हो उसे? मैं अनजान बन जाता हूं।
- ज्यादा उड़ो मत, मुझे पता है आजकल दोनों में गहरी छन रही है।
- ऐसा कुछ भी नहीं है दीदी, बस, दो-एक बार यूं ही मिल गये तो थोड़ी बहुत बात हो गयी है वरना वो अपनी राह और मैं अपनी राह?
- अब तू मुझे राहों के नक्शे तो बता मत और न ये बता कि मुझे कुछ पता नहीं है, गोल्डी बहुत ही शरीफ लड़की है। तुझसे उसकी जो भी बातें होती हैं मुझे आ कर बता
जाती है। बल्कि तेरी बहुत तारीफ कर रही थी कि इतनी ऊंची जगह पहुंच कर भी दीपजी इतने सीधे सादे हैं।
- गोल्डी अच्छी लड़की है लेकिन आपको तो पता ही है मैं जिस दौर से गुज़र रहा हूं वहां किसी भी तरह का मोह पालने की हिम्मत ही नहीं ही नहीं होती। बहुत डर लगता
है दीदी अब इन बातों से। वैसे भी पांच-सात मुलाकातों में किसी को जाना ही कितना जा सकता है।
- उसकी चिंता मत कर। रोज़-रोज़ मिलने से वैसे भी प्यार कम हो जाता है। तू मुझे सिर्फ ये बता कि उसके बारे में सोचना अच्छा लगता है या नहीं?
- अब जाने भी दो दीदी, पिछले कई दिनों से उसे देखा भी नहीं।
- बाहर गयी हुई थी। आज शाम को ही लौटी है। अभी फोन आया था। पूछ रही थी तुझे। आज आयेगी यहां। जी भर के देख लेना। तुम दोनों खाना यहीं खा रहे हो।
हम दोनों गोल्डी की बात कर ही रहे हैं कि दरवाजे की घंटी बजी। दीदी ने बता दिया है - जा, अपनी मेहमान को रिसीव कर।
- आपको कैसे पता वही है? मैं हैरानी से पूछता हूं।
- अब तेरे लिए ये काम भी हमें ही करना पड़ेगा। कदमों की आहट, कॉलबैल की आवाज पहचाननी तुझे चाहिये और बता हम रहे हैं। जा दरवाजा खोल, नहीं तो लौट जायेगी।
दरवाजे पर गोल्डी ही है। हँसते हुए भीतर आती है। हाथ में मेरी किताबें हैं।
- हम तेरी ही बात कर रहे थे। दीदी उसे बताती हैं।
- दीपजी ज़रूर मेरी चुगली खा रहे होंगे कि मैं उनकी किताबें लेकर बिना बताये शहर छोड़ कर भाग गयी हूं। इसीलिए यहां आने से पहले सारी किताबें लेती आयी हूं।
- आपको हर समय यही डर क्यों लगा रहता रहता है कि आपकी ही चुगली खायी जा रही है। आपकी तारीफ भी तो हो सकती है।
- आपके जैसा अपना इतना नसीब कहां कि कोई तारीफ भी करे। खैर, तो क्या बातें हो रही थी हमारी?
- आज दीप तुझे आइसक्रीम खिलाने ले जा रहा है।
- वॉव !! सिर्फ हमें ही क्यों ? आपको भी क्यों नहीं।
- आपके जैसा अपना नसीब कहां । दीदी ज़ोर से हँसती हैं।
हम देर तक यूं ही हलकी-फुलकी बातें करते रहे हैं। जब आइसक्रीम के लिए जाने का समय आया तब तक चुन्नू सो चुका है। मैं आइसक्रीम वहीं ले आया हूं।
वापिस जाते समय पूछा है गोल्डी ने - कुछ किताबें बदल लें क्या?
- ज़रूर .... ज़रूर। चलिये।
किताबें चुन लेने के बाद वह जाने के लिए उठी है। जब हम दरवाजे पर पहुंचे हैं तो उसने छेड़ा है - आज अपने मेहमान को फिर चाय पिलाना भूल गये जनाब....और वह
तेजी से नीचे उतर गयी है।
मैं हँसता हूं - ये लड़की भी अजीब है। रिश्तों में ज़रा सी भी औपचारिकता का माहौल बरदाश्त नहीं कर सकती। अब उसे ले कर मेरे मन में अक्सर धुकधुकी होने लगती
है। - गोल्डी आइ हैव स्टार्टेड लविंग यू.. लेकिन क्या मैं ये शब्द उससे कभी कह पाऊंगा !
दीदी को पता चल गया है कि हम दोनों अक्सर मिलते हैं। इसी चक्कर में हम दोनों ही अब उतने नियमित रूप से दीदी के घर नहीं जा पाते। गोल्डी कभी चर्चगेट आ जाती
है तो हम मैरीन ड्राइव पर देर तक घूमते रहते हैं। खाना भी बाहर एक साथ ही खा लेते हैं। मैं और गोल्डी रोजाना नयी जगह पर नये खाने की तलाश में भटकते रहते
हैं। दोनों पूरी शाम खूब मस्ती करते हैं। उसके जन्म दिन पर मैंने उसे जो वॉकमैन दिया था, वह उसे हर समय लगाये रहती है। मेरी बात सुनने के लिए उसे बार-बार
ईयर फोन निकालने पड़ते हैं लेकिन बात सुनते ही वह फिर से ईयर फोन कानों में अड़ा लेती है।
गोल्डी ने मेरे जीवन में रंग भर दिये है। एक ही बार में कई कई रंग। उसके संग-साथ में अब जीवन सार्थक लगने लगा है। उसने जबरदस्ती मेरा जनम दिन मनाया। सिर्फ
हम दोनों की पार्टी रखी और मुझे एक खूबसूरत रेडीमेड शर्ट दी। मेरी याद में मेरा पहला जनमदिन उपहार। उसके स्नेह से अब जीवन जीने जैसा लगने लगा है और बंबई शहर
रहने जैसा। शामें गुज़ारने जैसी और दिन उसके इंतज़ार करने जैसा। बेशक हम दोनों ने ही अभी तक मुंह से प्यार जैसा कोई शब्द नहीं कहा है लेकिन पता नहीं, इतने
नज़दीकी संबंध जीने के बाद ये ढाई शब्द कोई मायने भी रखते हैं या नहीं। कुल मिला कर मेरे जीवन में गोल्डी की मौजूदगी मुझे एक विशिष्ट आदमी बना रही है।
कमरे पर पहुंचा ही हूं कि मेज पर रखा लिफाफा नज़र आया है। गोल्डी का खत है। उससे आज मिलना ही है। वह डिनर दे रही है। उसके लिए मैंने कुछ अच्छी किताबें खरीद
रखी हैं। कमरे पर किताबें लेने और चेंज करने आया हूं। हैरान हो रहा हूं, जब मिल ही रहे हैं तो खत लिखने की ज़रूरत क्यों पड़ गयी है।
लिफाफा खोलता हूं। सिर्फ तीन पंक्तियां लिखी हैं -
- दीप
आज और अभी ही एक प्रोजेक्ट के सिलसिले में हैदराबाद जाना पड़ रहा है। पता नहीं कब लौटना हो। तुमसे बिना मिले जाना खराब लग रहा है, लेकिन सीधे एयरपोर्ट ही जा
रही हूं।
कान्टैक्ट करूंगी।
सी यू सून..
लॉट्स ऑफ लव।
गोल्डी।
मैं पत्र हाथ में लिये धम्म से बैठ गया हूं। तो ....गोल्डी भी गयी..। एक और सदमा...। कम से कम मिल कर तो जाती!! फोन तो कर ही सकती थी। रोज़ ही तो करती थी
फोन। कहीं भी होती थी बता देती थी और वहां से चलने से पहले भी फोन ज़रूर करती थी। आज ही ऐसी कौन सी बात हो गयी। पता नहीं क्यों लग रहा है, यह सी यू सून शब्द
भी धोखा दे गये हैं। ये शब्द अब हम दोनों को कभी नहीं मिलायेंगे।
मेरी आंखें नम हो आयी हैं। अचानक सब कुछ खाली-खाली सा लगने लगा है। सब कुछ इतनी जल्दी निपट गया? अपने आप पर हँसी भी आती है - पता नहीं हर बार ये सब मेरे साथ
ही क्यों होता है। अभी खत हाथ में लिये बैठा ही हूं कि दीदी सामने दरवाजे पर नज़र आयी है। मैं तेजी से अपनी गीली आंखें पोंछता हूं। उनके सामने कमज़ोर नहीं
पड़ना चाहता। मुस्कुराता हूं। आखिर अपना उदास चेहरा उन्हें क्यों दिखाऊं!! लेकिन यह क्या !! दीदी की आंखें लाल हैं। साफ लग रहा है, वे रोती रही हैं। मैं
चुपचाप खड़ा रह गया हूं। दीदी अचानक मेरे पास आती हैं और मेरे कंधे से लग कर सुबकने लगती हैं। मैं समझ गया हूं कि गोल्डी उन्हें सब कुछ बता गयी है। मैं संकट
में पड़ गया हूं। कहां तो अपने आंसू छुपाना चाहता था और कहां दीदी के आंसू पोंछने की ज़रूरत आ पड़ी है। मैं उनके हाथ पर हाथ रखता हूं। उनसे आंखें मिलती हैं।
मैं गोल्डी का खत उन्हें दिखाता हूं और अपनी सारी पीड़ा भूल कर उन्हें चुप कराने की कोशिश करता हूं - आप बेकार में ही परेशान हो रही हैं दीदी। मुझे इन सारी
बातों की अब तो आदत पड़ गयी है। आप कहां तक और कब तक मेरे लिए आंसू बहाती रहेंगी।
जबरदस्ती हँसती हैं दीदी - पगले मैं तेरे लिए नहीं, उस पागल लड़की के लिए रोती हूं।
- क्यों ? उसके लिए रोने की क्या बात हो गयी? कम से कम मैं तो उसे आपसे ज्यादा ही जानता था। वह ऐसी तो नहीं ही थी कि कोई उसके लिए आंसू बहाये।
- इसीलिए तो रो रही हूं। एक तरफ तेरी तारीफ किये जा रही थी और दूसरी तरफ तेरे लिए अफ़सोस भी कर रही थी कि तुझे इस तरह धोखे में रख कर जा रही है।
- क्या मतलब ? धोखा कैसा ? आखिर ऐसा क्या हो गया है ?
- तुझे उसने लिखा है कि वह एक प्रोजेक्ट के लिए हैदराबाद जा रही है और उसने तुझे सी यू सून लिखा है....।
- इसके बावज़ूद मैं जानता हूं दीदी वह अब कभी वापिस नहीं आयेगी।
- मैं तुझे यही बताना चाहती थी। दरअसल उसने मुझे कई दिन पहले ही बता दिया था कि वह हैदराबाद जा रही है। किसी प्रोजेक्ट के लिए। आज ही जाते-जाते उसने बताया
कि दरअसल ट्रांसफर पर शादी के लिए जा रही है।
- शादी के लिए ?
- हां दीप, वह और उसका इमिडियेट बॉस शादी कर रहे हैं। उसका बॉस भी इंदौर का है और उससे सीनियर बैच का है। दरअसल वह तुम्हारी इतनी तारीफ कर रही थी और साथ ही
साथ अफसोस भी मना रही थी कि इस तरह से .....।
मैंने खुद पर काबू पा लिया है। जानता हूं अब रोने-धोने से कुछ नहीं होने वाला। माहौल को हलका करने के लिए पूछता हूं
- मैं भी सुनूं, आखिर वह क्या कर रही थी मेरे बारे में?
- कह रही थी कि उसने अपनी ज़िंदगी में दीपजी जैसा ईमानदार, मेहनती, सैल्फमेड और शरीफ आदमी नहीं देखा। उनकी ज़िंदगी में जो भी लड़की आयेगी, वह दुनिया की सबसे
खुशनसीब लड़की होगी।
मैं हँसा हूं - तो उसने दुनिया की सबसे खुशनसीब लड़की बनने का चांस क्यों खो दिया?
- अब मैं क्या बताऊं। वह खुद इस बात को लेकर बहुत परेशान थी कि उसे इस तरह का फैसला करना पड़ रहा है। दरअसल वह तुम्हें कभी उस रूप में देख ही नहीं पायी कि
.. ....
- तो इसका मतलब दीदी, उन दोनों ने पहले से सब कुछ तय कर रखा होगा?
- यह तो उसने नहीं बताया कि क्या मामला है लेकिन तुम्हें इस तरह से छोड़ कर जाने में उसे बहुत तकलीफ हो रही थी।
- अब जाने दो, दीदी, मैं उन्हें दिलासा देता हूं - आपको तो पता ही है मेरे हाथों में सिर्फ दुर्घटनाओं की ही लकीरें हैं। इन्हें न तो मैं बदल सकता हूं और न
मिटा ही सकता हूं। गोल्डी पहली और आखिरी लड़की तो नहीं है।
मैं हँसता हूं - अब आप अपना सुंदर, गृह कार्य में दक्ष और योग्य कन्या खोज अभियान जारी रख सकती हैं।
दीदी आखिर हँसी हैं - वो तो मैं करूंगी ही लेकिन गोल्डी को ऐसा नहीं करना चाहिये था। इधर तेरे साथ इतनी आत्मीयता और उधर....
मैं जानता हूं कि दीदी कई दिनों तक इस बात को लेकर अफसोस मनाती रहेंगी कि गोल्डी मुझे इस तरह से धोखा दे कर चली गयी है।
गोल्डी के इस तरह अचानक चले जाने से मैं खाली-खाली सा महसूस करने लगा हूं। हर बार मेरे साथ ही ऐसा क्यों होता है कि मेरे दिल को हर आदमी खेल का मैदान समझ कर
दो चार किक लगा जाता है। जब तक अकेला था, अपने आप में खुश था। किसी के भरोसे तो नहीं था और न किसी का इंतज़ार ही रहता था। गोल्डी ने आ कर पहले मेरी उम्मीदें
बढ़ायीं। यकायक चले जा कर मेरे सारे अनुशासन तहस-नहस कर गयी है। पहले सिर्फ अकेलापन था, अब उसमें खालीपन भी जुड़ गया है जो मुझे मार डाल रहा है। समझ में
नहीं आता, उसने मेरे साथ जानते-बूझते हुए ये खिलवाड़ क्यों किया!
एक तरह से अच्छा ही हुआ कि वह मुझसे मिले बिना ही चली गयी है।
घर से धमकी भरे पत्र आने अभी भी बंद नहीं हुए हैं। आये दिन या तो कोई मांग चली आती है या वे परेशान करने वाली कोई ऐसी बात लिख देते हैं कि न सहते बने न जवाब
देते। मैं तो थक गया हूं। पूरी दुनिया में कोई भी तो अपना नहीं है जो मेरी बात सुने, मेरे पक्ष में खड़ा हो और मेरी तकलीफों में साझेदारी करे। गुड्डी बेचारी
इतनी छोटी और भोली है कि उसे अभी से इन दुनियादारी कर बातों में उलझाना उसके साथ अत्याचार करने जैसा लगता है। अलका दीदी मेरे लिए इतना करती हैं और मुझे इतना
मानती हैं लेकिन उनकी अपनी गृहस्थी है। अपनी तकलीफें हैं। उन्हें भी कब तक मैं अपने दुखड़े सुना-सुना कर परेशान करता रहूं। अब तो यही दिल करता है कि कहीं
दूर निकल जाऊं। जहां कोई भी न हो। न कहने वाला, न सुनने वाला, न कोई बात करने वाला ही। न कोई अपना होगा और न कोई मोह ही पालूंगा और न बार-बार दिल टूटेगा।
इतने दिनों के आत्ममंथन के बाद मैंने अब सचमुच बाहर जाने के बारे में गंभीरता से सोचना शुरू कर दिया है। इसके लिए अलग अलग चैनलों की खोज करनी भी शुरू कर दी
है कि कहां-कहां और कैसे-कैसे जाया जा सकता है। जब बोस्टन युनिवर्सिटी में पीएच डी कर रहा था तो कुछेक स्थानीय लोगों के पते वगैरह लिये थे। दो एक फैकल्टी
मेम्बर्स से भी वहीं नौकरी के बारे में हलकी सी बात हुई थी। उस वक्त तो सारे प्रस्ताव ठुकरा कर चला आया था कि अपने ही देश की सेवा करूंगा, लेकिन अब उन्हीं
के पते खोज कर वहां के बारे में पूछ रहा हूं। अखबारों में विदेशी नौकरियों के विज्ञापन भी देखने शुरू कर दिये हैं। हालांकि देश छोड़ने के बारे में मैं फैसला
कर ही चुका हूं, विदेश जाने के लिए इच्छुक होने के बावजूद विदेशी नौकरी के लिए थोड़ा हिचकिचा भी रहा हूं क्योंकि आजकल विदेशी नौकरी का झांसा दे कर सब कुछ
लूट लेने वालों की बाढ़-सी आयी हुई है और आये दिन इस तरह की खबरों से अखबार भरे रहते हैं।
ऑफिस में कोई बता रहा था कि आजकल विदेश जाने का सबसे सुरक्षित तरीका है कि वहां रहने वाली किसी लड़की से ही शादी कर लो। बेशक घर जंवाई बनना पड़ सकता है
लेकिन न वीजा का झंझट, न नौकरी का और न ही रहने-खाने का।
बात हालांकि बहुत कन्विसिंग नहीं है लेकिन इस पर विचार तो किया ही जा सकता है। हो सकता है इस तरह का कोई प्रोपोजल ही क्लिक कर जाये। यह रास्ता भी मैंने बंद
नहीं रखा है। बाहर बेशक नौकरी मिल ही जायेगी लेकिन सिर्फ नौकरी से इस अकेलेपन की कैद से छुटकारा तो नहीं ही मिल पायेगा। उसके लिए नये सिरे से जद्दोजहद करनी
पड़ेगी। उसके लिए यहां आते भी रहना पड़ेगा। मैं इसी से बचना चाहता हूं और सोच रहा हूं कि कोई बीच का रास्ता मिल जाये तो बेहतर। नौकरी के विज्ञापनों के
साथ-साथ मैंने अब अखबारों के इस तरह के मैट्रिमोनियल कॉलमों पर ध्यान देना शुरू कर दिया है। आजकल इसी तरह के पत्राचार में उलझा रहता हूं।
आखिर मेरी मेहनत रंग लायी है। शादी के लिए ही एक बहुत अच्छा प्रस्ताव अचानक ही सामने आ गया है। अब मैं इस दुनिया से काफी दूर जा पाऊंगा। बेशक वह मेरी
मनमाफिक दुनिया नहीं होगी लेकिन कम से कम ऐसी जगह तो होगी जहां कोई मुझे परेशान नहीं करेगा और सतायेगा नहीं।
मुझे बताया गया है कि गौरी बीए पास है और इन कम्पनियों में से एक की फुल टाइम डाइरेक्टर है। यह मेरी मर्जी पर छोड़ दिया गया है कि दामाद बन जाने के बाद चाहे
तो इन्हीं में से किसी कम्पनी का सर्वेसर्वा बन सकता हूं या फिर कहीं और अपनी पंसद और योग्यता के अनुसार अलग से काम भी देख सकता हूं। ऐसी कोई भी नौकरी
तलाशने में मेरी पूरी मदद करने की पेशकश की गयी है। सारी जानकारी के भेजने के बीच और उनके यहां आ कर मिलने के बीच उन्होंने महीने भर का भी समय नहीं लिया है।
ट्रेवल डॉक्यूमेंट्स की तैयारी में जो समय लगेगा वही समय अब मेरे पास बचा है।
यह समय मेरे लिए बहुत मुश्किल भरा है। मैंने इस संबंध में अब तक अपने घर में कुछ भी नहीं लिखा है। लिखने का मतलब ही नहीं है।
घर का तो ये हाल है कि वे तो हर खत के जरिये एक नया शगूफा छेड़ देते हैं। मैं अभी उनकी दी एक परेशानी से मुक्त हुआ नहीं होता कि वे परेशान करने वाली दूसरी
हरकत के साथ फिर हाज़िर हो जाते हैं। आजकल वे बिल्लू और गोलू की शादी की तारीखें तय करके भेजने में लगे हुए हैं। इन सारे खतों के जवाब में मैं बिलकुल चुप
बना हुआ हूं। उनके किसी खत का जवाब ही नहीं देता। मैं वहां नहीं पहुंचता तो यह तारीख आगे खिसका दी जाती है।
सारी तैयारियां हो चुकी हैं। नौकरी से इस्तीफा दे दिया है और ऑफिस को बता दिया है - जाने से एक दो दिन पहले तक काम पर आता रहूंगा। अलका दीदी बहुत उदास हो
गयी हैं। आखिर उनका मुंहबोला भाई जो जा रहा है। रोती हैं वे - कितनी मुश्किल से तो तुम्हारे जैसा हीरा भाई मिला था, वो भी रूठ कर जा रहा है।
मैं समझाता हूं - मैं आपसे रूठ कर थोड़े ही जा रहा हूं। अब हालात ऐसे बना दिये गये हैं मेरे लिए कि अब यहां और रह पाना हो नहीं पायेगा। आप तो देख ही रही हैं
मेरे परिवार को। किस तरह सताया जा रहा है मुझे। कोई दिन भी तो ऐसा नहीं होता जब उनकी तरफ से कोई डिमांड या परेशान करने वाली बात न आती हो।
- क्यों अब क्या नयी डिमांड आ गयी है?
- आप खुद ही देख लो। कल की ही डाक में आयी है ये। यह कहते हुए मैं दारजी की ताजा चिट्ठी उनके आगे कर देता हूं। वे ही तो मेरी हमराज़ हैं यहां पर आजकल। वरना
घर वालों ने तो मुझे पागल कर छोड़ने में कोई कसर नहीं छोड़ रखी है।
वे पढ़ती हैं ।
- बरखुदार
तेरी तरफ से हमारी पिछली तीन-चार चिठ्ठियों का कोई जवाब नहीं आया है। क्या माने हमें इसे - हमारे प्रति लापरवाही, बेरूखी या फिर आलस। तीनों ही बातें रिश्तों
में खटास पैदा करने वाली हैं। हम यहां रोज़ ही तेरी डाक का इंतजार करते रहते हैं कि आखिर तूने कुछ तो तय किया होगा। हमारे सारे प्रोग्राम धरे के धरे रह जाते
हैं।
फिलहाल खबर यह है कि आजकल बछित्तर यहां आया हुआ है। वे सारा मकान बेचना चाहते हैं। इसमें वैसे तो पांच हिस्से बने हुए हैं जो एक साथ होते हुए भी अलग अलग
माने जा सकते हैं। वे लोग मकान एक ही पार्टी को बेचना चाहते हैं लेकिन अगर बड़ी पार्टी न मिली तो अलग-अलग हिस्से भी बेच सकते हैं।
तुझे तो पता ही है कि उनकी और हमारी एक दीवार आगे से पीछे तक सांझी है। इस दीवार के साथ साथ उनका एक वरांडा, रसोई, लैट्रीन और आगे-पीछे दो कमरे बने हुए हैं।
ये हिस्सा जोगी का है। मैंने बछित्तरे से बात की है। वह इस बात के लिए राजी हो गया है कि अगर हम उसका यह वाला हिस्सा ले लेते हैं तो वह दूसरी पार्टियों के
साथ इस हिस्से की बात ही नहीं चलायेगा।
मकान अभी हाल ही में बनाया गया है और उसमें कभी कोई रहा ही नहीं है। उनके पास जैसे-जैसे पैसा आता गया, वे एक के बाद एक हिस्सा बनाते गये थे। हम सब का दिल है
कि बछित्तरे से अगर पूरा मकान नहीं तो कम से कम ये वाला हिस्सा तेरे लिए खरीद ही लें। वह हमारा लिहाज करते हुए इतने बड़े हिस्से का सिर्फ दो लाख मांग रहा है
वरना तुझे तो पता ही है आजकल मकानें की कीमतें आसमान को छू रही हैं। आज नहीं तो कल को तू यहां रहने के लिए आयेगा ही। तब तक इसी मकान की कीमत पांच-सात गुना
बढ़ चुकी होगी। जायदाद बनाने का इससे अच्छा मौका फिर नहीं मिलेगा। मकान बिलकुल तैयार है और अच्छा बना हुआ भी है। मैं यह मान कर चल रहा हूं कि तुझे यह पेशकश
मंज़ूर होगी। तू बेशक हमारी परवाह न करे हमें तो तेरा ही ख्याल रहता है कि तेरा घर बार बन जाये। यही सोच कर मैं आजकल में ही इंतज़ाम करके उसे बयाना दे
दूंगा। तू वापसी डाक से लिख, कब तक पूरी रकम का इंतजाम कर पायेगा। तेरे ऑफिस से मकान के लिए कर्जा तो मिलता ही होगा।
बाकी हम बेसब्री से तेरे खत की राह देख रहे हैं। रकम मिलते ही रजिस्ट्री करवा देंगे। अगर जो तुझे अपने बूढ़े बाप पर भरोसा हो तो ये काम मैं करवा दूंगा वरना
तू खुद आ कर ये नेक काम कर जाना। इस बहाने हम सबसे मिल भी लेगा। कितना अरसा हो गया है तुझे गये। बेबे तुझे सुबह शाम याद करती है।
जवाब जल्दी देना कि कब तक रकम आ जायेगी।
तेरा ही
दारजी
अलका दीदी ने पत्र पढ़ कर लौटा दिया है और चाय बनाने चली गयी हैं। मैं जानता हूं वे अपनी आंखों के आंसू मुझसे छुपाने के लिए ही रसोई में गयी हैं। उन्हें
नार्मल होने में कम से कम एक घंटा लगता है। लेकिन आश्चर्य, वे रसोई से मुस्कुराती हुई वापिस आ रही हैं। चाय के साथ मट्ठी भी है।
आते ही मुझे छेड़ती हैं - चलो, तेरी एक समस्या तो हल हुई। अब तो बना-बनाया घर भी मिल रहा है। मेरी मान, तू उसी कुड़ी, क्या नाम था उसका, संतोष कौरे से शादी
कर ही ले। दोनों काम एक ही साथ ही निपटा दे। इस बहाने हम देहरादून भी देख लेंगे।
- दीदी, यहां मेरी जान पर बनी हुई है और आपको मज़ाक सूझ रहा है।
- सच्ची कह रही हूं। तेरे दारजी को भी मानना पड़ेगा। तेरे लिए एक के बाद एक चुग्गा तो ऐसे डालते हैं कि पूछो मत। कुछ पैसे-वैसे भेजने की ज़रूरत नहीं है। तू
आराम से इस चिट्ठी को भी हजम कर जा। उनके पास बयाने तक के तो पैसे नहीं हैं, लिखा है, इंतजाम करके बयाना दे दूंगा। और दो लाख का मकान खरीद रहे हैं। उनके
चक्करों में पड़ने की ज़रूरत नहीं है।
- आपकी बातों से मेरी आधी चिंता दूर हो गयी है। वैसे तो मैं भी कुछ भेजने वाला नहीं था, अब आपके कहने के बाद तो बिलकुल भी इस चक्कर में नहीं फंसूंगा।
यहां से जाने से पहले गुड्डी को आखिरी पत्र लिख रहा हूं
- प्यारी बहना गुड्डी,
जब तक तुझे यह पत्र मिलेगा मैं यहां से बहुत दूर जा चुका होऊंगा। मैंने बहुत सोच समझ कर देश छोड़ कर लंदन जाने का फैसला किया है। बेशक आखरी उपाय के रूप में
ही किया है। मेरे सामने और कोई रास्ता नहीं था। वैसे मेरी बहुत इच्छा थी कि कम से कम तेरी पढ़ाई पूरी होने तक और कहीं ठीक-ठाक जगह तेरी नौकरी का पक्का करके
और तेरा अच्छा सा रिश्ता कराने के बाद ही मैं यहां से जाता लेकिन मैं ये दोनों ही काम पूरे किये बिना भाग रहा हूं। इसे मेरा एक और पलायन समझ लेना लेकिन
मुझसे अब और बरदाश्त नहीं होता। दारजी की धमकी भरी चिट्ठियां और बिल्लू के हिकारत भरे खत अब मुझसे और बरदाश्त नहीं होते। ये लोग मुझे क्यों चैन से नहीं रहने
देते। मैं किसी दिन पागल हो जाऊंगा ये सब पढ़ पढ़ कर। मुझे अभी भी अफसोस होता है कि एक बार घर छोड़ देने के बाद मैं क्यों वापिस लौटा जबकि मुझे पता था कि
दारजी जिस मिट्टी के बने हुए हैं उनमें कम से कम इस उम्र में बदलाव की तो कोई उम्मीद ही नहीं की जा सकती। अफसोस तो यही है कि बिल्लू भी दारजी के नक्शे कदम
पर चल रहा है। वह भी अभी से वही भाषा बोलने लगा है। तो हालात अब इतने बिगड़ गये है कि मेरे लिए और निभाना हो नहीं हो पायेगा। जब से दारजी वगैरह को मेरा पता
मिला है, हर महीने कोई न कोई डिमांड आ जाती है। अब तक मैं सत्तर अस्सी हज़ार रुपये भेज चुका हूं और तकलीफ की बात यही है कि मेरा छोटा भाई मुझे धमकी दे जाता
है कि मैं उसकी शादी में रोड़े अटका रहा हूं। मेरी तरफ से वो एक की जगह चार शादियां करे। मुझसे जो बन पड़ेगा मैं करूंगा भी लेकिन कम से कम तरीके से तो पेश
आये। मैंने तुझे जानबूझ कर नहीं लिखा था कि जब वह यहां आया था तो किस तरह की भाषा में मुझसे क्या-क्या बातें करके गया था। मुझे लिखते हुए भी शर्म आती है। जब
वह जाते समय स्टेशन पर मुझे इस तरह की बातें सुना रहा था तो मैंने उससे कहा था - तू कहे तो मैं लिख के दे देता हू कि तू मुझसे पहले शादी कर ले लेकिन फार गॉड
सेक, मुझे ये मत बता कि कहां ज्यादा दहेज मिल रहा है और मैं कहां शादी कर लूं। तू अपनी फिकर कर। मेरी रहने दे। तो पता है उसने क्या कहा। कहने लगा - ठीक है,
आप दारजी को यही बात लिख दो। मैंने ये सारी बातें एक खत में लिखी थीं लेकिन वह खत तुझे डालने की हिम्मत ही नहीं जुटा पाया और वह खत मैंने फाड़ दिया दिया था।
तो गुड्डी, अब मैं इस इकतरफा पैसे वाले प्यार से थक चुका हूं। वैसे सच तो यह है कि मैं इस खानाबदोशों वाली जिंदगी से ही थक चुका हूं। कितने साल हो गये
संघर्ष करते हुए। अकेले लड़ते हुए और हासिल के नाम पर कुछ भी नहीं। मैं यहां से सब कुछ छोड़-छाड़ कर कहीं दूर निकल जाना चाहता हूं। मै जिम्मेवारियों से नहीं
भागता लेकिन मुझे भी तो लगे कि मेरी भी कहीं कदर है। मुझे नहीं पता था कि मुझे घर लौटने की इतनी बड़ी कीमत चुकानी पड़ेगी। शायद मेरे हिस्से में घर लिखा ही
नहीं है।
एक और मोरचे पर भी मुझे करारी हार का सामना कर पड़ा है। उस बात ने भी मुझे भीतर तक तोड़ दिया है। मैं तुझे यह खबर देने ही वाला था कि एक बहुत ही सुंदर और
गुणी लड़की से मेरा परिचय हुआ है और आगे जा कर शायद कुछ बात बने। इस रिश्ते से मुझे बहुत मानसिक बल मिला था और मैं उम्मीद कर रहा था कि ये परिचय मेरी
ज़िंदगी में एक खूबसूरत मोड़ ले कर आयेगा, लेकिन अफसोस, इस रिश्ते का महल भी रेत के घर की तरह ढह गया और मैं एक छोटे बच्चे की तरह बुरी तरह छला गया। मैं हद
दरजे तक अकेला और तनहा हूं, पहले भी अकेला था और आज भी हूं। एक तू ही है जिससे मैं अपने दिल की बात कह पाता हूं। इस अकेलेपन और बार-बार की ठोकरों के बाद ही
सोच समझ कर मैंने लंदन जाने का फैसला कर लिया है। फैसला सही है या गलत यह तो वक्त ही बतायेगा। यूं समझ ले कि मैंने खुद को हालात पर छोड़ दिया है। जो भी पहला
मौका सामने आया है, उसके लिए हां कर दी है।
लंदन का कोई हांडा परिवार है। वे लोग पिछले दिनों यहां आये हुए थे। वहां उनकी कई कंपनियां हैं, बीस पच्चीस। उनकी लड़की है गौरी। वह भी आयी हुई थी। लड़की
ठीक-ठाक लगी। उसी से मेरी शादी तय हुई है। शादी की कोई शर्तें नहीं हैं। मैं चाहूं तो अपना कोई काम काज तलाश सकता हूं या चाहूं तो उनकी किसी कम्पनी में भी
अपनी पसंद का काम देख सकता हूं। सब कुछ मुझ पर छोड़ दिया गया है। ट्रेवल फार्मेलिटीज पूरी होते ही निकल जाऊंगा। गौरी की एक तस्वीर भेज रहा हूं।
मैं जानता हूं कि यह मेरी वादा खिलाफी है और मैं अपने वादे पूरे किये बगैर तुझे इस हालत में छोड़ कर जा रहा हूं। मुझे पता है तेरी लड़ाई बहुत मुश्किल है। जब
मैं ही नहीं लड़ पाया इनसे, फिर तू तो लड़की है। मैं सोच-सोच कर परेशान हूं कि तू अपनी लड़ाई अकेले के बलबूते पर कैसे लड़ेगी। लेकिन एक बात याद रखना, हम सब
को कभी न कभी, कहीं न कहीं जीवन के इस महाभारत में अपने हिस्से की लड़ाई लड़नी होती है। यह महाभारत बहुत ही अजीब होता है। इस महाभारत में हर योद्धा को अपनी
लड़ाई खुद ही तय करनी और लड़नी पड़ती है। यहां न तो कोई कृष्ण होता है न अर्जुन। हमें अपने हथियार भी खुद चुनने पड़ते हैं और अपनी रणनीति भी खुद ही तय करनी
पड़ती है। कई बार हार-जीत भी कोई मायने नहीं रखती क्योंकि यह तो अंतहीन लड़ाई है जो हमें हर रोज सुबह उठते ही लड़नी होती है। कभी खुद से, कभी सामने वाले से
तो कभी अपनों से तो कभी परायों से। तुझे भी आगे से अपनी सारी लड़ाइयां खुद ही लड़नी होंगी। कई बार ये लड़ाई खुद से भी लड़नी पड़ती है। सबसे मुश्किल होती है
ये लड़ाई। लेकिन अगर एक बार आप अपने भीतर के दुश्मन से जीत गये तो आगे की सारी लड़ाइयां आसान हो जाती हैं। तू समझदार है और न तो खुद के खिलाफ़ ही कोई अन्याय
होने देगी। पहले तुझे अपनी कमजोरियों के खिलाफ, अपने गलत फैसलों के खिलाफ और अपने खिलाफ गलत फैसलों के खिलाफ लड़ना सीखना होगा। तय कर ले कि न गलत फैसले खुद
लेगी और न किसी को गलत फैसले खुद पर थोपने देगी। तू तो खुद कविताएं लिखती है और तेरी कविताओं में भी तो बेहतर जीवन की कामना ही होती है। कर सकेगी ना यह काम
अपनी बेहतरी के लिए। खुद को बचाये रखने के लिए?
तो गुड्डी, मैं तुझे जीवन के इस कुरूक्षेत्र में लड़ने के लिए अकेला छोड़े जा रहा हूं। मैं अपनी लड़ाई बीच में ही छोड़े जा रहा हूं। मुझे भी अपनों से लड़ना
था और तुझे भी अपनों से ही लड़ना है। मैं तीसरी बार मैदान छोड़ कर भाग रहा हूं। लड़ना आता है मुझे भी लेकिन अब मुझसे नहीं होगा। बस यही समझ लो। मैं खुद को
परास्त मान कर मैदान छोड़ रहा हूं। कह लो लड़ने से ही इनकार कर रहा हूं।
मेरे पास लगभग तीन लाख रुपये हैं। इसमें से दो ढाई तेरे लिए छोड़े जा रहा हूं। साइन किये हुए पांच कोरे चैक साथ में भेज रहा हूं। जब भी तेरी शादी तय हो या
तुझे पढ़ाई के लिए जरूरत हो, अपने खाते के जरिये निकलवा लेना..। इन पैसों के बारे में किसी को भी न तो बताने की ज़रूरत है और न इन्हें किसी के साथ शेयर करने
की। किसी भी हालत में नहीं। ये सिर्फ तेरा हिस्सा है..। एक बेघर-बार बड़े भाई की तरफ से छोटी बहन को घर की कामना के साथ एक छोटी सी सौगात।
अपनी किताबें वगैरह जरूरतमंद स्टूडेंट्स के बीच बांट दी हैं। थोड़े से कपड़े और दूसरा सामान है, वे भी जरूरतमंद लोगों को दे जाऊंगा। यहां से मैं अपने ज़रूरत
भर के कपड़े और तेरा बनाया स्वेटर ही साथ ले कर जाऊंगा। वही तो तेरी याद होगी मेरे पास। नंदू को मेरे बारे में बता देना। लंदन पहुंचते ही नया पता भेज दूंगा।
अभी दारजी वगैरह को कुछ भी बताने की जरूरत नहीं है। मैं खुद ही खत लिख कर बता दूंगा...।
मन पर किसी तरह का बोझ मत रखना और अपनी पढ़ाई में दिल लगाना।
अफसोस!! अपने वीर की शादी में नाचने-गाने की की तेरी हसरत पूरी नहीं हो पायेगी। वैसे भी अपनी शादी में मैं लड़के वालों की तरफ से अकेला ही तो होऊंगा। तो इस
खत में इतना ही.. ..।
तेरा वीर,
दीप......
सारी तैयारियां हो गयी हैं। सामान से भी मुक्ति पा ली है। तनावों से भी। बेशक एक दूसरे किस्म का, अनिश्चितता का हलका-सा दबाव है। पता नहीं, आगे वाली दुनिया
कैसी मिले। जो कुछ पीछे छूट रहा है, अच्छा भी, बुरा भी, उससे अब किसी भी तरह का मोह महसूस करने का मतलब नहीं है। पूरे होशो-हवास में सब कुछ छोड़ रहा हूं।
लेकिन जो कुछ पाने जा रहा हूं, वह कैसे और कितना मिलेगा, या मिलेगा भी या नहीं, इसी की हलकी-सी आशंका है। उम्मीद भी और वायदा भी। वैसे तो इतना कुछ सह चुका
हूं कि कुछ न मिले तो भी कोई फ़र्क नहीं पड़ेगा।
आज की आखरी डाक में दारजी का खत है। पत्र खोलने की हिम्मत नहीं हो रही। फिर कोई मांग होगी या मुझे किसी न किसी चक्कर में फांसने की उनकी कोई लुभावनी योजना।
सोचता हूं अब जाते-जाते मैं उनके लिए क्या कर सकता हूं। पत्र एक तरफ रख देता हूं। बाद में देखूंगा।
सहार एयरपोर्ट के लिए निकलने से पहले पत्र उठा कर जेब में डाल लिया था। अलका और देवेन्द्र साथ आये थे। मैं सिक्युरिटी एरिया जा रहा हूं और वे दोनों आंखों
में आंसू भरे मुझे विदा करके लौट गये हैं। मैंने आज तक किसी भी परिवार से इतना स्नेह नहीं पाया जितना इन दोनों ने दिया है। दोनों सुखी बने रहें।
उनसे वादा करता हूं - उन्हें पत्र लिखता रहूंगा।
जेब में कुछ कड़ा महसूस होता है। देखता हूं - दारजी का ही पत्र है। खोल कर देखता हूं
- बरखुरदार,
जीते रहो।
एक बार फिर तेरे कारण मुझे उस बछित्तरे के आगे नीचा देखना पड़ा। वो तो भला आदमी है इसलिए बयाने के पैसे लौटा दिये हैं वरना.... अब तेरे हाथों ये भी लिखा था
हमारी किस्मत में। अच्छा खासा घर मिट्टी के मोल मिल रहा था, तेरे कारण हाथ से निकल गया। बाकी खबर यह है कि बिल्लू के लिए एक ठीक-ठाक घर मिल गया है। उम्मीद
तो यही है कि बात सिरे चढ़ जायेगी। बाकी रब्ब राखा। सोचते तो यही हैं कि कुड़माई और लावां फेरे एक ही साथ ही कर लें। पता नहीं अब कैसे निभेगा। तेरी बेबे
चाहती है कि तू अब भी आ जाये तो तेरे लिए भी कोई अच्छी सी कुड़ी वेख कर दोनों भराओं की बारात एक साथ निकालें। अगर तुझे मंजूर हो तो तार से खबर कर और तुरंत
आ। बाकी अगर तूने क्वांरा ही रहने का मन बना लिया हो तो कम से कम बड़े भाई का फरज निभाने ही आ जा। हम लड़की वालों को कहने लायक तो हो सकें कि हमारे घर में
कोई बड़ा अफसर है और हम किसी किस्म की कमी नहीं रहने देंगे। बाकी तू खुद समझदार है.।
खत मिलते ही अपने आने की खबर देना।
बेबे ने आसीस कही है।
तुम्हारा
दारजी।
तो यह है असलियत। खत लिखना तो कोई दारजी से सीखे। उन्होंने रुपये पैसे को लेकर एक भी शब्द नहीं लिखा है लेकिन पूरा का पूरा खत ही जैसे आवाजें मार रहा है -
तेरे छोटे भाई की शादी है और तू घर की हालत देखते हुए मदद नहीं करेगा तो तुझे बड़ा कौन कहेगा...।
सॉरी दारजी और सॉरी बिल्लू जी...अब वाकई देर हो चुकी है। इस समय मैं एयरपोर्ट की लाउंज में बैठा आपका पत्र पढ़ रहा हूं। अब मैं बैंक, चैक या ड्राफ्ट की
सीमाओं से बाहर जा चुका हूं। रात के बारह बजे हैं। सारे बैंक बंद हो चुके हैं। बैंक खुले भी होते तो भी उसमें रखे सारे पैसे किसी और के नाम हो चुके हैं।
वैसे दारजी, आपने दहेज के लेनदेन की बात तो पक्की कर ही रखी होगी। मैं मदद न भी करूं तो चलेगा। वैसे भी सिर्फ एक घंटे बाद मेरी फ्लाइट है और मैं चाह कर भी न
तो अपने छोटे भाई की शादी में शामिल हो पाऊंगा और न ही तुम लोगों को ही इसी महीने लंदन में होने वाली अपनी शादी में बुलवा पाऊंगा।
फलाइट का समय हो चुका है। सिक्योरिटी चैक हो चुका है और बोर्डिंग कार्ड हाथ में लिए मैं लाउंज में बैठा हूं।
तो !! अलविदा मेरे प्यारे देश भारत। तुमने बहुत कुछ दिया मुझे मेरे प्यारे देश! बस, एक घर ही नहीं दिया। घर नाम के दो शब्दों के लिए मुझे कितना रुलाया है..
क्या क्या नहीं दिखाया है मुझे..। हर बार मेरे लिए ही घर छलावा क्यों बना रहा। मैं एक जगह से दूसरी जगह भटकता रहा। खोजता रहा कहां है मेरा घर!! जो मिला, वह
घर क्यों नही रहा मेरे लिए !! आखिर मैं गलत कहां था और मेरा हिस्सा मुझे क्यों नहीं मिला अब तक। अब जा रहा हूं दूसरे देश में। शायद वहां एक घर मिले मुझे!!
मेरी राह देखता घर। मेरी चाहत का घर। मेरे सपनों का एक सीधा सादा सा घर। चार दीवारों के भीतर घर जहां मैं शाम को लौट सकूं। घर जो मेरा हो, हमारा हो। कोई हो
उस घर में जो मेरी राह देखे। मेरे सुख-दुख की भागीदार बने और अपनेपन का अहसास कराये। जहां लौटना मुझे अच्छा लगे न कि मजबूरी।
सॉरी गुड्डी, तुम्हें दिये वचन पूरे नहीं कर पाया। तुममें हिम्मत जगा कर मैं ही कमज़ोर निकल गया। अब अपना ख्याल तुम्हें खुद ही रखना है। बेबे मैं तुम्हें
कभी सुख नहीं दे सका। हमेशा दुख ही तो दिया है। बाकी तेरे नसीब बेबे। देख ना तेरे दो-दो लड़कों की शादियां हो रही हैं लेकिन बड़ा लड़का छोटे की शादी में
नहीं होगा और बड़े की शादी में तो खैर, तुम्हें बुलाया ही नहीं जा रहा है।
मेरी आंखों से आंसू बह रहे हैं। मैंने ऐसा घर तो नहीं चाहा था बेबे..।
मैं घड़ी देखता हूं। जहाज में चढ़ने की घोषणा हो चुकी है।
तभी अचानक सामने बने एसटीडी बूथ की तरफ मेरी निगाह पड़ती है। सोचता हूं, जाते जाते बड़े भाई का तथाकथित फर्ज भी अदा कर कर दिया जाये। मैं तेजी एसटीडी बूथ की
तरफ बढ़ता हूं। नंदू का नम्बर मिलाता हूं।
घंटी जा रही है। आधी रात को आदमी को उठने में इतनी देर तो लगती ही है।
लाइन पर नंदू ही है।
- नंदू सुन, मैं दीपू बोल रहा हूं।
- बोलो भाई, इस वक्त!! खैरियत तो है। वह पूरी तरह जाग गया है।
- तू मेरी बात सुन पूरी। मेरे पास वक्त कम है, मैं बस पांच-सात मिनट में ही लंदन चला जाऊंगा। गुड्डी तुझे पूरी बात बता देगी। आज ही दारजी की चिट्ठी आयी है,
बिल्लू की शादी कर रहे हैं वे। मैं यहां सारे खाते बंद कर चुका हूं और मेरे पास पैसे तो हैं लेकिन समय नहीं है।... मैंने गुड्डी के पास कुछ कोरे चैक भेजे
हैं। ये पैसे मैंने गुड्डी की पढ़ाई और शादी के लिए अलग रखे थे। वो ये चैक तेरे पास रखवाने आयेगी। तू इसमें से एक चैक पर पचास हज़ार की रकम लिख कर पैसे
निकलवा लेना और दारजी को देना। करेगा ना मेरा ये काम..? उसके लिए बाद में और भेज दूंगा।
- तू फिकर मत कर। तेरा काम हो जायेगा। अगर गुड्डी चैक नहीं भी लायेगी तो भी दारजी तक रकम पहुंच जायेगी। और कोई काम बोल..?
- बस, रखता हूं फोन। फ्लाइट के लिए टाइम हो चुका है।
- ओ के गुड लक, वीरा, अपना ख्याल रखना।
- ओ के नंदू। खत लिखूंगा।
मैं फोन रखता हूं और जहाज की तरफ लपकता हूं।
तो...मैं .. आखिर देस छोड़ कर परदेस में आ ही पहुंचा हूं। कब चाहा था मैंने - मुझे इस तरह से और इन वज़हों से घर और अपना देस छोड़ना पड़े। घर तो मेरा कभी
रहा ही नहीं। दो-दो बार घर छूटा। गोल्डी ज़िंदगी में ताजा फुहार की तरह आकर जो तन-मन भिगो गयी थी उससे भी लगने लगा था, ज़िंदगी में अब सुख के पल बस आने ही
वाले हैं, लेकिन वह सब भी छलावा ही साबित हुआ।
अब मेरे सामने एक नया देश है, नये लोग और एकदम नया वातावरण है। एक नयी तरह की ज़िंदगी की शुरूआत एक तरह से हो ही चुकी है। जिंदगी को नये अर्थ मिल रहे हैं।
इतने बरस तक उपेक्षित और अकेले रहने के बाद सारा संसार भरा पूरा और अपनेपन से सराबोर लग रहा है। शादी के पहले दिन से लगातार दावतों का सिलसिला चल रहा है।
गौरी बहुत खुश है। जैसे-जैसे हम दोनों एक दूसरे के नज़दीक आ रहे हैं, एक दूसरे के साथ ज्यादा वक्त गुजार रहे हैं, हमें एक दूसरे को अच्छी तरह से समझने का
मौका मिल रहा है। वह मेरे डरावने अतीत के बारे में कुछ भी नहीं जानती। उसे जानना भी नहीं चाहिये। मैंने उसे अपने घर-परिवार के बारे में बहुत कम बातें ही
बतायी हैं। सिर्फ गुड्डी के बारे में बताया है कि वह किस तरह से पढ़ना चाहती है और कविताएं लिखती है। मैंने गौरी को जब गुड्डी का बनाया स्वेटर दिखाया तो
उसने तुरंत ही वह स्वेटर मुझसे हथिया लिया और इठलाती हुई बोली थी - हाय, कितना सॉफ्ट और शानदार बनाया है स्वेटर। अब ये मेरा हो गया। तुम उसे मेरी तरफ से लिख
देना कि तृम्हें एक और बना कर भेज देगी। जब लैटर लिखो तो मेरी तरफ से खूब थैंक्स लिख देना और मेरी तरफ से ये गिफ्ट भी भेज देना। और उसने अपनी अलमारी से
गुड्डी के लिए एक शानदार गिफ्ट निकाल कर दे दिया था।
मुझे गुड्डी पर गर्व हो आया था कि उसकी बनायी चीज़ किस तरह से गौरी ने प्यार से अपने लिए रख ली है।
गुड्डी के अलावा गौरी और किसी के नाम वगैरह भी नहीं जानती। वैसे मैंने उसके चाचा और कजिन को भी तो सिर्फ यही बताया था कि मैं बंबई में अकेला ही रहता हूं और
जब उन्होंने मेरे मां-बाप से मिलने की इच्छा जाहिर की थी तो मैंने उन्हें यही बताया था कि अपनी ज़िंदगी के सारे फैसले मुझे खुद ही करने हैं। मैंने न उन्हें
अपने संघर्षों के बारे में बताया था न गौरी को ही अपने संघर्षों की हवा लगने दी थी।
गौरी को दुनियादारी की बातों से कोई लेना-देना नहीं है। आजकल तो वैसे भी उसकी ज़िदंगी के बस दो-चार ही मकसद रह गये हैं। खूब खाना, सोना और भरपूर सैक्स। इनके
अलावा उसे न कुछ सूझता है और न ही वह कुछ सोचना ही चाहती है। वह भीतर-बाहर की सारी प्यास एक साथ ही बुझा लेना चाहती है। ज़रा-सा भी मौका मिलते ही वह बेडरूम
के दरवाजे बंद कर लेने की फिराक में रहती है। कई बार मुझे खराब भी लगता है, लेकिन वैसे भी हमारे पास करने-धरने को कुछ भी काम नहीं है। दावतें खाना और सैक्स
भोगना। वैसे मेरे साथ दूसरा ही संकट है। ज़िंदगी में कभी भी किसी के भी साथ इतना वक्त एक साथ नहीं गुज़ारा। अकेलेपन के इतने लम्बे-लम्बे दौर गुज़ारे हैं कि
अब कई बार लगातार गौरी के साथ-साथ रहने से मन घबराने भी लगता है। आजकल तो यह हालत हो गयी है कि हम बाथरूम जाने के अलावा दिन-रात लगातार साथ-साथ ही रहते हैं।
लगता है, सोने के मामले में हम दोनों को ही अपनी आदतें बदलनी होंगी या उसे बता देना पड़ेगा कि हम बेशक एक साथ सोयें, लेकिन गले लिपटे-लिपटे सोने से मेरा दम
घुटता है। हालांकि हनीमून पर हम अगले हफते ही जा पायेंगे लेकिन इस बीच हमें जितने दिन भी मिले हैं, हम दोनों ही जी भी कर एंजाय कर रहे हैं। हनीमून के लिए
बचा ही क्या है?
इतने दिनों से गुड्डी को भी पत्र लिखना बाकी है। वैसे आज मेरे पास थोड़ा वक्त है। गौरी अपनी शापिंग के लिए गयी हुई है। गुड्डी को पत्र ही लिख लिया जाये।
प्यारी बहना, गुड्डी
तो मैं आखिर लंदन पहुंच ही गया। पिछली बीस तारीख को जब मैं यहां हीथ्रो हवाई अड्डे पर उतरा तो हांडा परिवार के कई लोग मुझे लेने आये हुए थे। इनमें से मैं
सिर्फ दो ही लोगों को पहचानता था। एक गौरी के चाचा चमन हांडा को और दूसरे गौरी के कजिन राजकुमार हांडा को। ये लोग ही मुझे बंबई में मिले थे और इनसे ही सारी
बातें हुई थीं। मुझे एयरपोर्ट से सीधे ही हांडा कंपनीज के गेस्ट हाउस में ले जाया गया। वहीं मुझे ठहराया गया था।
शाम को गौरी मिलने आयी थी। थोड़ी देर हाल चाल पूछे, कॉफी पी और चली गयी। जाते-जाते अपना फोन नम्बर दे गयी थी, कहा उसने - फोन करूंगी और आपको ज़रूरत पड़े तो
आप भी फोन कर लें। मेरे लिए वे लोग शोफर ड्रिवेन गाड़ी छोड़ गये थे।
खैर, दो-चार दिन मेरी खूब सेवा हुई। सबसे मिलवाया गया। हांडा परिवार के मुखिया से भी मिलवाया गया। वे गौरी के ताऊ जी हैं। सबसे पहले वे ही पचासों साल पहले
यहां आये थे और धीरे-धीरे अपनी जायदाद खड़ी की। इन पचास सालों में कम से कम नहीं तो अपने कम से कम सौ आदमी तो लंदन ले ही आये होंगे। अपने आप में बेहद
दिलचस्प आदमी हैं। गौरी ने अपने पापा से भी मिलवाया और मम्मी से भी। यहां इंडियन अमीरों की एक बस्ती है - कारपैंडर्स पार्क। वहीं मेरी ससुराल की भव्य इमारत
है। वैसे सबके अलग अलग अपार्टमेंट्स हैं।
तो ....मेरी भी शादी हो गयी। हमारी शादी.. मेरी और गौरी की..। बिल्लू की शादी के आगे-पीछे। अब बिल्लू को यह शिकायत नहीं रही होगी कि मैंने उसके रास्ते में
रोड़े अटका रखे हैं। हमारी शादी दो तरह से हुई। पहले कोर्ट में, रजिस्ट्रार ऑफ मैरिजेस के ऑफिस में और बाद में पूरी बिरादरी के सामने आर्य समाजी तरीके से।
अपनी शादी में लड़के वालों की तरफ से मैं अकेला ही घा। मैं ही दूल्हा, मैं ही बाराती, सबाला और मैं ही बैंड मास्टर। हँसी आ रही थी मुझे अपनी सिंगल मैन बारात
देख कर।
मुझे ससुर साहब ने नयी लैक्सस कार की चाबी दी और गौरी को फर्निश्ड अपार्टमेंट की चाबी। ये कार यहां की काफी शानदार कार मानी जाती है। जब मैंने उनसे कहा कि
मुझे कार चलानी तो आती ही नहीं है तो उन्होंने गौरी का हाथ मेरे हाथ में थमा दिया और बोले - ऐ लो जी शोफर भी लो। टर्म्स खुद तय कर लेना।
हनीमून के लिए हमें अगले हफ्ते पैरिस जाना है लेकिन मेरे इंडियन टूरिस्ट पासपोर्ट पर वीसा मिलने में थोड़ी दिक्कत आ रही है। उम्मीद तो यही है कि जा पायेंगे।
अगर नहीं भी जा पाये तो भी परवाह नहीं। यहीं इतना घूमना-फिरना और मौज मस्ती हो रहे हैं कि हम दोनों ही लगातार सातवें आसमान रह रहे है। ख्बा दावतें खा रहे
हैं।
एक नयी ज़िंदगी की शुरूआत हुई है।
गौरी बहुत खुश है इस शादी से और मुझसे एक पल के लिए अलग नहीं होना चाहती। अकसर तेरे बारे में पूछती रहती है। शादी के और लंदन के कुछ फोटो भेज रहे हैं। तेरे
लिए शादी का एक छोटा सा तोहफा मेरी तरफ से और एक गौरी की तरफ से। तेरा बनाया स्वेटर गौरी ने मुझसे छीन लिया था और तुरंत ही पहन भी लिया था। अब तुझे मेरे लिए
एक और खरगोशनुमा स्वेटर बनाना पड़ेगा। बना कर भेजेगी ना....।
अपना ख्याल रखना..
दारजी और बेबे को मेरी सत श्री अकाल और गोलू और बिल्लू को प्यार। मेरी छोटी भाभी के लिए भी एक तोहफा मेरी तरफ से। बेबे की तबीयत नयी बहू के आने से संभल गयी
होगी।
पता दे रहा हूं। अपने समाचार देना।
तेरा वीर
दीप
अलका दीदी और नंदू को भी इसी तरह के पत्र लिखता हूं। शादी के कुछ फोटो और लंदन के कुछ पिक्चर पोस्ट कार्ड भी भेजता हूं। दीदी को पत्र लिखते समय पता नहीं
क्यों बार-बार गोल्डी का ख्याल आ रहा है। अच्छी लड़की थी। अगर मुझसे कहती - मैं शादी करने जा रही हूं। ज़रा मेरी शापिंग करा दो, शादी का जोड़ा दिलवा दो तो
मैं मना थोड़े ही करता। हमेशा की तरह उसकी शॉपिंग कराता। एक पत्र अपने पुराने ऑफिस को भी लिखता हूं ताकि वे मेरे बकाया पैसों का हिसाब किताब कर दें।
गौरी मेरे लिए क्रेडिट कार्ड का फार्म लायी है। मैंने मना कर दिया है - मुझे क्या करना क्रेडिट कार्ड!
- क्यों पैरिस जायेंगे तो ज़रूरत पड़ेगी। वैसे भी यहां लंदन में कोई भी किसी भी काम के लिए कैश ले कर नहीं चलता। दिन में दस तरह के पेमेंट करने पड़ते हैं।
- देखो गौरी, मैं क्या करूंगा ये कार्ड लेकर। न मुझे कोई शॉपिंग करनी है, न कोई पेमेंट ही करने होंगे। तुम हो न मेरे साथ। तुम्हीं करती रहना सब पेमेंट।
- समझा करो दीप, तुम्हें सिर्फ खर्च करना है। तुम्हें क्रेडिट कार्ड का पेमेंट करने के लिए कौन कह रहा है।
- फिलहाल रहने दो, बाद में देखेंगे।
- जैसी तुम्हारी मर्जी।
हनीमून बढ़िया रहा। शानदार रहना और शानदार घूमना फिरना। सब कुछ भव्य तरीके से। सारी व्यवस्थाएं पहले से ही कर ली गयी थीं। चलते समय ससुर साहब ने मुझे एक
भारी सा लिफाफा पकड़ाया था।
जब मैंने पूछा कि क्या है इसमें तो वे हँसे थे - भई, आप अपना तो कर लेंगे, लेकिन शोफर के लिए तो खरचा पानी चाहिये ही होगा ना.. थोड़ी बहुत करेंसी है। गौरी
बता रही थी कि आपने क्रेडिट कार्ड के लिए मना कर दिया है। यहां उसके बिना चलता नहीं है, वैसे आपकी मर्जी।
वह लिफाफा मैंने उनके सामने ही गौरी को थमा दिया था - हमारी तो पैकेज डील है। जितना खर्च हो वो करे और बाकी जो बचे वो टिप।
गौरी खिलखिलायी थी - पापा, आपने तो कमाल का दामाद ढूंढा है। यहां तो इतनी टिप मिल जाया करेगी कि कुछ और करने की ज़रूरत ही नहीं पड़ेगी।
मैं हँस दिया हूं - हमारे साथ रहोगी तो यूं ही ऐश करोगी।
पैरिस अच्छा लगा। हम दोनों ही तो सातवें आसमान पर थे। गौरी ने खूब शॉंपिंग की। अपने लिए भी और मेरे लिए भी। वैसे भी पैसे तो उसके पास ही रखे थे। मैं चाहता
भी तो कुछ नहीं खरीद सकता था। इंडिया से जो थोड़ी बहुत रकम लाया था, उससे तो गौरी की एक दिन की शॉपिंग भी नहीं हो पाती। इसलिए मैं अपनी गांठ ढीली करने की
हालत में नहीं था। अलबत्ता गौरी के लिए एकाध चीज़ ज़रूर खरीद ली ताकि उसे यह भी न लगे कि कैसे कंगले के साथ आयी है।
हम नये घर में सारी चीजें व्यवस्थित कर रहे हैं। गौरी यह देख कर दंग है कि मैं न केवल रसोई की हर तरह की व्यवस्था संभाल सकता हूं बल्कि घर भर के सभी काम कर
सकता हूं। कर भी रहा हूं।
पूछ रही है - आपने ये सब जनानियों वाले काम कब सीखे होंगे। आपकी पढ़ाई को देख कर लगता तो नहीं कि इन सबके लिए समय मिल पाता होगा।
- सिर्फ जनानियों वाले काम ही नहीं, मैं तो हर तरह के काम जानता हूं। देख तो रही ही हो, कर ही रहा हूं। कोई भी काम सीखने की इच्छा हो तो एक ही बार में सीखा
जा सकता है। उसे बार-बार सीखने की ज़रूरत नहीं होती। बस, शौक रहा, और सारी चीजें अपने आप आ गयीं।
- थैंक्स दीप, अच्छा लगा ये जान कर कि आप चीजों के बारे में इतने खुलेपन से सोचते हैं। मेरे लिए तो और भी अच्छा है। मैं तो मैंडिंग और रिपेयरिंग के चक्कर
में पड़ने के बजाये चीजें फेंक देना आसान समझती हूं। अब आप घर-भर की बिगड़ी चीजें ठीक करते रहना।
कुल मिला कर अच्छा लग रहा है घर सजाना। अपना घर सजाना। बेशक यहां का सारा सामान अलग-अलग हांडा कम्पनीज़ या स्टोर्स से ही आया है, लेकिन अब से है तो हमारा ही
और इन सारी चीजों को एक तरतीब देने में भी हम दोनों को सुख मिल रहा है। वैसे काफी चीजें इस बीच हमने खरीदी भी हैं।
हम दोनों में बीच-बीच में बहस हो जाती है कि कौन सी चीज़ कहां रखी जाये। आखिर एक दूसरे की सलाह मानते हुए और सलाहें देते हुए घर सैट हो ही गया है।
इतने दिनों से आराम की ज़िंदगी गुज़ारते हुए, तफरीह करते हुए मुझे भी लग रहा है कि मेरे सारे दुख दलिद्दर अब खत्म हो गये हैं। अब मुझे मेरा घर मिल गया है।
ससुर साहब की तरफ से बुलावा आया है। वैसे तो हर दूसरे तीसरे दिन वहां जाना हो ही जाता है या फोन पर ही बात हो जाती है लेकिन हर बार गौरी साथ होती है। इस बार
मुझे अकेले ही बुलाया गया है। पता नहीं क्या बात हो गयी हो। शायद मेरे भविष्य के बारे में ही कोई बात कहना चाहते हों। वैसे भी अब मज़ा और आराम काफी हो लिये।
कुछ काम धाम का सिलसिला भी शुरू होना चाहिये। आखिर कब तक घर जंवाई बन कर ससुराल की रोटियां तोड़ता रहूंगा।
वहां पहुंचा हूं तो मेरे ससुर और उनके बड़े भाई हांडा ग्रुप के मुखिया, दोनों भाई ही बैठे हुए हैं। मैं बारी बारी से दोनों को आदर पूर्वक झुक कर प्रणाम करता
हूं। यहां लंदन में भी इस परिवार ने कई भारतीय परम्पराएं बनाये रखी हैं। यहां छोटे-बड़े सभी बुजुर्गों के पैर छू कर ही अभिवादन करते हैं। कोई भी ऊंची आवाज
में बात नहीं करता। एक बात और भी देखी है मैंने यहां पर कि हांड़ा ग्रुप के मुखिया हों या और कोई बुजुर्ग, किसी की भी बात काटी नहीं जाती। वे जो कुछ भी कहते
हैं, वही आदेश होता है। ना नुकुर की गुंजाइश नहीं होती। एक दिन गौरी ने बताया था कि बेशक पापा या ताऊजी किसी के भी काम में दखल नहीं देते और न ही रोज़ रोज़
सबसे मिलते ही हैं लेकिन फिर भी इतने बड़े एम्पायर में कहां क्या हो रहा है उन्हें सबकी खबरें मिलती रहती हैं।
- घूमना फिरना कैसा रह़ा!
- बहुत अच्छा लगा। काफी घूमे।
- कैसा लग रहा है हमारे परिवार के साथ जुड़ना?
- दरअसल मैं यहां पहुंचने तक कुछ भी विजुअलाइज़ नहीं कर पा रहा था कि यहां आ कर ज़िंदगी कैसी होगी। एकदम नया देश, नये लोग और बिलकुल अपरिचित परिवार में
रिश्ता जुड़ना, लेकिन यहां आ कर मेरे सारे डर बिलकुल दूर हो गये हैं। बहुत अच्छा लग रहा है।
- और आपकी शोफर के क्या हाल हैं, ससुर साहब ने छेड़ा है - उससे कोई टर्म्स तय की हैं या बेचारी मुफ्त में ही तुम्हारी गाड़ी चला रही है।
- गौरी बहुत अच्छी है लेकिन अब काम धंधे का कुछ सिलसिला बैठे तो टर्म्स भी तय कर ही लेंगे।
- हमने इसी लिए बुलाया है आपको। वैसे आपने खुद काम काज के बारे में क्या सोचा है? वे खुद ही मुद्दे की बात पर आ गये हैं।
- जैसा आप कहें। मैं खुद भी सोच रहा था कि आपसे कहूं कि घूमना फिरना बहुत हो गया है और पार्टियां भी बहुत खा लीं। आपकी इजाज़त हो तो मैं किसी अपनी पसंद के
किसी काम. .. .. मैंने जानबूझ कर बात अधूरी छोड़ दी है।
- देखो बेटे, हम भी यही चाहते हैं कि तुम अपनी लियाकत, एक्सपीरियंस और पसंद के हिसाब से काम करो। हम तुम्हारी पूरी मदद करेंगे। लेकिन दो एक बातें हैं जो हम
क्लीयर कर लें।
- जी.. ..
- पहली बात तो यह कि अभी तुम टूरिस्ट वीसा पर आये हो। यहां काम करने के लिए तुम्हें वर्क परमिट की ज़रूरत पड़ेगी जो कि तुम्हें टूरिस्ट वीसा पर मिलेगा नहीं।
- आप ठीक कह रहे हैं। मैंने इस बारे में तो सोचा ही नहीं था।
मैंने सचमुच इस बारे में नहीं सोचा था कि मुझे अपनी पसंद का काम चुनने में इस तरह की तकलीफ भी आ सकती है।
- लेकिन पुत्तर जी हमें तो सारी बातों का ख्याल रखना पड़ता है ना जी..।
- आप सही कह रहे हैं। लेकिन फिर मेरा ....
- उसकी फिकर आप मत करो। इसी लिए आपको बुलाया था कि पहले आपकी राय ले लें, तभी फैसला करें।
- जी हुक्म कीजिये...मेरी सांस तेज़ हो गयी है।
- ऐसा है कि इस समय लंदन में हांडा ग्रुप की कोई तीस-चालीस फर्में हैं। पैट्रोल पम्प हैं। डिपार्टमेंटल स्टोर्स हैं और भी तरह तरह के काम काज हैं।
- जी.. गौरी ने बताया था और कुछ जगह तो वो मुझे ले कर भी गयी थी।
- हां, ये तो बहुत अच्छा किया गौरी ने कि तुम्हें सब जगह घुमा फिरा दिया है। तुम्हें अपनी फलोरिस्ट शाप में भी ले गयी थी या नहीं?
- इस बारे में तो उसने कोई बात ही नहीं की है।
- यही तो उसकी खासियत है। वैसे तुम्हें बता दें कि हैरो ऑन द हिल पर उसकी फ्लोरिस्ट शॉप लंदन की गिनी चुनी शॉप्स में से एक है। पैलेस और ड्राउनिंग स्ट्रीट
के लिए जाने वाले बुके वगैरह उसी के स्टाल से जाते हैं।
- लेकिन इतने दिनों में तो उसने एक बार भी नहीं बताया कि वह कोई काम भी करती है।
- कमाल है, उसने तुम्हें हवा भी नहीं लगने दी। आजकल उसका काम उसकी ही एक कज़िन नेहा देख रही है। दो एक दिन में गौरी भी काम पर जाना शुरू कर देगी। हां तो,
हमने सोचा है कि अपना सबसे बड़ा और सबसे रेपुटेड डिपार्टमेंटल स्टोर्स - द बिज़ी कॉर्नर नाम की शाप तुम्हारे नाम कर दें। ये स्टोर्स वेम्ब्ले हाइ स्ट्रीट पर
है। गौरी ले जायेगी तुम्हें वहां। तुम्हें पसंद आयेगा। काफी नाम और काम है उसका। वैसे हम उसे नयी इमेज देना चाह रहे हैं। काम बहुत है उसका और नाम भी है
लेकिन जरा पुराने स्टाइल का है। हम चाहते हैं कि तुम उसे अपने मैनेजमेंट में ले लो और जैसे चाहे संभालो। क्या ख्याल है?
- जैसा आपका आदेश. . ..। मैंने कह तो दिया है लेकिन मैं तय नहीं कर पा रहा हूं कि अपनी इन डिग्रियों और काम काज के अनुभव के साथ मैं डिपार्टमेंटल स्टोर्स
में भला क्या कर पाऊंगा। लेकिन इन लोगों के सामने मना करने की गुजांइश नहीं है। गौरी ने पहले ही इशारा कर दिया था - किसी भी तरह की बहस में मत उलझना। जो कुछ
कहना सुनना है, वो खुद बाद में देख लेगी।
- वैसे हमारे और भी कई प्लांस हैं। हम कुछ नये एरियाज़ में डाइवर्सीफाई करने के बारे में सोच रहे हैं, वैसे तुम्हें कभी भी किसी किस्म की तकलीफ नहीं होगी।
- जानता हूं जी, आप लोगों के होते हुए....।
- वैसे सारी चीजें आपको धीरे धीरे पता चल ही जायेंगी। आप हमारे परिवार के नये मैम्बर हैं। खूब पढ़े लिखे और ब्राइट आदमी हैं। हमें यकीन है आप खूब तरक्की
करेंगे और आपका हमारे खानदान से जुड़ना हमें और आपको, दोनों को रास आयेगा। यू आर एन एसेट टू हांडा एम्पायर। गॉड ब्लैस यू। हमारे इस प्रोपोजल के बारे में
क्या ख्याल है ?
- जी दुरुस्त है। मैं कल से ही वहां जाना शुरू कर दूंगा। मैं चाहूं तो भी अब विरोध नहीं कर सकता। टूरिस्ट वीसा पर आने पर और घर जवांई बनने की कुछ तो कीमत
अदा करनी ही पड़ेगी।
- कोई जल्दी नहीं है। वहां और लोग तो हैं ही सही। जब जी चाहे जाओ, आओ, और आराम से सारी चीजों को समझो, जो मरजी आये चेंज करो वहां और उसे अपनी पर्सनैलिटी की
मुहर लगा दो। ओके !!
- जी थैंक्स। गुड नाइट। और मैं दोनों को एक बार फिर पैरी पौना करके बाहर आ गया हूं।
घर आते ही गौरी ने घेर लिया है - क्या क्या बात हुई और क्या दिया गया है आपको।
मैं निढाल पड़ गया हूं। समझ में नहीं आ रहा, कैसे बताऊं कि अब आगे से मेरी ज़िंदगी क्या होने जा रही है। इंडिया में फंडामेंटल रिसर्च के सबसे बड़े सेंटर
टीआइएफआर का सीनियर सांइटिस्ट डॉ. गगनदीप बेंस अब लंदन में अपनी ससुराल के डिपार्टमेंटल स्टोर्स में अंडरवियर और ब्रा बेचने का काम करेगा। कहां तो सोच रहा
था, यहां रिसर्च के बेहतर मौके मिलेंगे और कहां .. .। मुझे वर्क परमिट का ज़रा सा भी ख्याल होता तो शायद ये प्रोपोजल मानता ही नहीं।
मेरा खराब मूड देख कर, गौरी डर गयी है। बार बार मेरा चेहरा अपने हाथों में लेकर मेरे हाथ पकड़ कर पूछ रही है - आखिर इतने टेंस क्यों हो। तुम्हें मेरी कसम।
सच बताओ, क्या बात हुई।
मैं उसकी आंखों में झांकता हूं - वहां मुझे स्नेह का एक हरहराता समंदर ठांठें मारता दिखायी दे रहा है - वह मेरे माथे पर एक गहरा चुंबन अंकित करती है और एक
बार फिर कहती है - खुद को अकेला मत समझो, डीयर। बताओ, किस बात से इतने डिस्टर्ब हो!!
मैं उसे बताता हूं। अपने सपनों की बात और अपने कैरियर की बात और इन सारी चीजों के सामने उसके पापा के प्रोपोजल।
पूछता हूं उसी से - क्या मुझे यही सब करना होगा, मैं तो सोच कर आया था कि .. ..।
वह हँसने लगी है। यहां मेरी जान पर बनी हुई है और ये पागलों की तरह रही है - रिलैक्स डीयर, जब घर में ही इतने सारे शानदार काम हैं तो बाहर किसी और की गुलामी
करने की क्या जरूरत। वैसे भी वर्क परमिट के बिना तो आप घरों के बाहर अखबार डालने का काम भी पता नहीं कर पायेंगे या नहीं। आप हांडा ग्रुप के फैमिली मैम्बर
हैं। हजारों में से चुन कर लाये गये हैं और आपको लंदन के सबसे बड़े स्टोर्स का काम काज संभालने के लिए दिया जा रहा है। हमारे खानदान के कितने ही लड़कों की
निगाह उस पर थी। बल्कि मैं मन ही मन मना रही थी कि तुम्हें द बिजी कार्नर ही मिले। कहीं गैस स्टेशन वगैरह दे देते तो मुसीबत होती। यू आर लकी डियर। चलो, इसे
सेलेब्रेट करते हैं। कैंडिल लाइट डिनर मेरी तरफ से।
इतना सुन कर भी मेरा हौसला वापिस नहीं आया है। वह चीयर अप करती है - आप जाकर अपना काम देखें तो सही। वहां बहुत स्कोप है। आप खुद ही तो बता रहे थे कि आपकी
निगाह में कोई भी काम छोटा या बड़ा नहीं होता। आप छोटे से छोटे काम को भी पूरी लगन और मेहनत से शानदार तरीके से कर सकते हैं। उसमें पूरा सैटिस्फैक्शन पा
सकते हैं। फिर भी वहां अगर आपका मन न लगे तो डाइवर्सीफिकेशन करके आप अपनी पसंद का कोई भी काम शुरू कर सकते हैं। बस, मेरी पोजीशन का भी ख्याल रखना।
इसका मतलब अब मेरे पास इस प्रोपोजल को मानने के अलावा और कोई उपाय नहीं है। चलो यही सही, जब चमगादड़ की मेहमाननवाजी स्वीकार की है तो उलटा तो लटकना ही
पड़ेगा।
हम पहले गौरी के स्टाल पर गये हैं। पूरा स्टाफ उसे और मुझे शादी की विश कर रहा है। कई लोग तो आये भी थे रिसेप्शन में। अब वह सबसे मेरा परिचय करा रही है।
स्टाफ की तरफ से हमें एक खूबसूरत बुके दिया गया है। वाकई बहुत अच्छी शाप है उसकी। वहां कॉफी पी कर गौरी मुझे द बिज़ी कॉर्नर में ले कर आयी है। मैनेजर से
परिचय कराया है। मैनेजर साउथ इंडियन है। उसने बहुत ही सज्जनता से हमारा स्वागत किया है और पूरे स्टाफ से मिलवाया है। स्टोर्स में सब जगह घुमाया है। सारे
सैक्शंस में ले कर जा रहा है और सारी चीजों के बारे में बोरियत की हद तक बता रहा है।
गौरी लगातार मेरे साथ है और मेरे साथ ही सारी चीजें समझ रही है। कहीं कहीं कुछ पूछ भी लेती है मैनेजर से। एकाउंट्स और इन्वैंटरी में हमने सबसे ज्यादा वक्त
बिताया है। मैनेजर हमें अपने केबिन में लेकर गया है। केबिन क्या है, ज़रा सी जगह को ग्लास की दीवारों से कवर कर दिया गया है। वहीं तीन शार्ट सर्किट टीवी
क्रीन लगे हैं जो बारी-बारी से पूरे स्टोर्स में अलग अलग लोकेशनों की गतिविधियां दिखा रहे हैं।
मैनेजर इन सारी चीजों के बारे में बोरियत की हद तक विस्तार से बात कर रहा है।
मैंने और कुछ भी पूछना उचित नहीं समझा है। मैं सब कुछ देख समझ रहा हूं। कल से तो मुझे यहीं आना ही है। अभी तो पता नहीं कितने दिन लगें इस तंत्र को समझने
में।
आज स्टोर्स में दूसरा ही दिन है। मैं अकेला ही पहुंचा हूं। गौरी ने भी आज ही से अपना काम शुरू किया है। वह अल-सुबह ही निकल गयी थी। मेरे जागने से पहले वह
तैयार भी हो चुकी थी और अगर मैं उठ कर उसके लिए चाय न बनाता तो बिना मिले और बिना एक कप चाय पिये ही वह चली जाती। तब मैंने ही उठ कर उसके लिए चाय बनायी और
उसे एक स्वीट किस के साथ विदा किया।
आज मैनेजर ने मुझे सारी चीजें फिर से समझानी शुरू कर दी हैं। वह आखिर इतने डिटेल्स में क्यों जा रहा है। सब कुछ तो मैं पहले दिन समझ ही चुका हूं। और फिर ऐसी
भी क्या जल्दी है कि सब कुछ एक साथ ही समझ लिया जाये। मैं हैरान हूं कि ये सारी औपचारिकताएं किस लिये दोहरायी जा रही हैं। वह भी जिस तरीके से हर मामूली से
मामूली चीज के बारे में बता रहा है, मुझे अटपटा लग रहा है लेकिन मैं उसे टोक भी नहीं पा रहा हूं। सारा दिन उसी के साथ माथा पच्ची करते बीत गया है।
दिन ही बेहद थकाऊ रहा। दुनिया भर की चीजों की इन्वैंट्री दिखा डाली है मैनेजर ने। वैसे भी दिमाग भन्नाया हुआ है। दिन भर ग्राहकों की भीड़ और हिसाब किताब
देखने, समझने और रखने का झंझट। इस किस्म के काम का न तो अनुभव है और मानसिक तैयारी ही। गौरी बीच बीच में फोन करती रही है। चार बजे के करीब आयी गौरी तभी
मैनेजर नाम के पिस्सु से छुटकारा मिल सका है।
आज दो महीने हो गये हैं मुझे स्टोर्स संभाले। लंदन आये लगभग तीन महीने। मैं ही जानता हूं कि दो महीने का यह बाद वाला अरसा मेरे लिए कितना भारी गुज़रा है। एक
- एक पल जैसे आग पर बैठ कर गुज़ारा हो मैंने। स्टोर्स में जाने के अगले हफ्ते ही उस मैनेजर को स्टोर से निकाल दिया गया था। वह इसीलिए हड़बड़ी में दिखायी दे
रहा था। अब मैं ही इसका नया मैनेजर था।
मैं इस नयी हैसियत से डिस्टर्ब हो गया हूं। यह क्या मज़ाक है। मैंने इस घर में शादी की है और इस शादी का मैनेजरी से क्या मतलब? गौरी के पापा ने तो ये कहा था
कि ये स्टोर्स मेरे हवाले कर रहे हैं। अगर यही बात ही थी तो मैनेजर को निकालने का क्या मतलब? अगर वे मैनेजर की ही सेलेरी बचाना चाहते थे तो मुझसे साफ-साफ कह
दिया होता कि हमें दामाद नहीं दो-ढाई हज़ार पाउंड वाला मैनेजर चाहिये। मैं तब तय करता कि मुझे आना भी है या नहीं। यहां की नौकरी करना तो बहुत दूर की बात थी।
मुझे वर्क परमिट का ख्याल नहीं था या पता ही नहीं था लेकिन उन्हें तो पता था कि यहां मैं आऊं या और कोई दामाद आये, ये समस्या तो आने ही वाली है। इसका मतलब
इन लोगों ने अच्छी तरह से सोच-समझ कर ये जाल बुना है। अब दिक्कत ये है कि कहीं सुनवाई भी तो नहीं है। धीरे-धीरे मुझे सारी चीजें समझ में आने लगी थीं। सारा
चक्कर ही इन सारी दुकानों के लिए भरोसे का और एक तरह से बिना पैसे का स्टाफ जुटाने का ही था। मैंने पूरी स्टडी की है और मेरा डर सही निकला है।
मुझसे पहले चार लड़कियों के लिये दामाद इसी तरह से लाये गये हैं। पांचवां मैं हूं। उनके सभी दामाद हाइली क्वालिफाइड हैं। पांचों की शादियां इसी तरह से की
गयी हैं। न लड़कियां घर से बाहर गयी हैं और न बिजिनेस ही। सबसे बड़ी शिल्पा की शादी शिशिर से हुई है। शिशिर एमबीए है और चार गैस स्टेशन देख रहा है। सुचेता
के पति सुशांत के पास सारे पब और रेस्तरां हैं। वह कैमिकल इंजीनियर है। दोनों मिल कर संभालते हैं ये सारे ठीये। नीलम का आर्कीटेक्ट पति देवेश बुक शॉप में है
और संध्या का एमकॉम पति रजनीश सेन्ट्रल स्टोर्स संभालता है और सारे स्टोर्स के लिए और सारे घरों के लिए सप्लाई देखता है। अलबत्ता घर के सारे आदमी और लड़के
इन कम्पनियों के या तो अकेले कर्त्ता हैं या ज्वाइंटली सारा कामकाज संभालते हैं। उनके पास बेहतर पोजीशंस वाली ऐसी इंटरनेशनल कम्पनियां हैं जिनमें खूब
घूमना-फिरना और कॉटैक्ट्स हैं। वैसे तो इनकी लड़कियों की पोजीशन भी उनकी पढ़ाई के हिसाब से है लेकिन दामादों की हालत मैनेजरों या उसके आसपास वाली है। जहां
लड़की दामाद एक साथ हैं भी, वहां वाइफ ही सर्वेसर्वा है और उसके हसबैंड की पोजीशन दोयम दरजे की ही है। हां, लड़का बहू वाले मामले में भी यही दोहरे मानदंड
अपनाये गये हैं। बहुएं भी आम तौर पर इंडियन ही हैं और उनके जिम्मे अलग-अलग ठीये हैं।
हम सभी दामाद भारतीय अखबारों के जरिये घेरे गये हैं। पता नहीं पूरे खानदान में कितनी लड़कियां और बाकी हैं और कितने दामाद अभी और इम्पोर्ट किये जाने हैं।
अब मुझे गौरी के फ्लोरिस्ट स्टाल पर बैठने का भी कारण समझ में आ गया है। वजह बहुत सीधी सादी है। उसे वहां बहुत कम देर के लिए बैठना पड़ता है और बाकी वक्त वह
फिल्में देखते हुए और कॉमिक्स पढ़ते हुए गुजारती है। कई बार वह नहीं भी जाती और स्टाफ ही सारा काम देखता रहता है। वह अक्सर अपनी कजिंस की शॉप्स पर चली जाती
है।
अब मेरे सामने इस स्टोर्स में मैनेजरी संभालने के अलावा और कोई उपाय नहीं है। गलती मेरी ही थी। मैं ही तो भागा-भागा इतने सारे लालच देख कर खिंचा चला आया
हूं। यह तो मुझे ही देखना चाहिये था कि बिना वर्क परमिट के मेरी औकात यहां सड़क पर खड़े मज़दूर जितनी भी नहीं।
लेकिन यहां कोई भी तो नहीं है जिससे मैं ये बातें कह सकूं। हांडा ग्रुप से तो पहली मुलाकात में ही लाल सिग्नल मिल गया था कि नो डिस्कशन एट ऑल। अब कहूं भी तो
किससे? मेरे पास घुट-घुट कर जीने कुढ़ने के अलावा उपाय ही क्या है ?
जब मैनेजर को निकाला गया था तो मैंने गौरी से इस बारे में बात की थी - तुम्हें नहीं लगता गौरी, इस तरह से स्टोर्स के मैनेजर को निकाल कर उसकी जगह मुझे दे
देना, एनी हाऊ, मैं पता नहीं क्यों इसे एक्सेप्ट नहीं कर पा रहा हूं।
- देखो दीप, जो आदमी वहां का काम देख रहा था, दरअसल स्टॉपगैप एरेंजमेंट था। पहले वहां मेरा कजिन देवेश काम देखता था। उस वक्त वहां कोई मैनेजर नहीं था। वैसे
भी हमारे ज्यादातर एस्टेबलिशमेंट्स में मैनेजर नहीं हैं।
उसने मेरा हाथ दबाते हुए कहा है - भला हम तुम्हें मैनेजर की बराबरी पर कैसे रख सकते हैं।
बेशक गौरी ने अपनी तरफ से मुझे बहलाने के लिए ये सारी बातें कही हैं लेकिन असलियत वही है जो मेरे सामने है। मैनेजर का जाना और मेरा आना, इसमें तो मुझे पाउंड
बचाने के अलावा और कोई तर्क नज़र नहीं आता।
इस बीच मैंने बारीकी से सारी चीजें देखी भाली हैं और सारे तंत्र को समझने की कोशिश की है। मैंने पाया है कि यहां, घर स्टोर्स में, फैमिली मैटर्स में,
बिजिनेस में, मेरे स्टोर्स में हर चीज के लिए सिस्टम बना हुआ है। यही लंदन की खासियत है। कहीं कोई चूक नहीं। कोई सिस्टम फेल्यर नहीं। जब मैनेजर के जाने के
बाद के महीने में हांडा ग्रुप के कार्पोरेट ऑफिस से स्टाफ की सेलरी का स्टेटमेंट आया था तो मैंने देखा, पिछली बार की तुलना में मैनेजर की सैलरी के खाते में
पूरे ढाई हज़ार पौंड महीने के बचा लिये गये हैं। अब सारा खेल मेरी समझ में आ गया है। मुफ्त का, भरोसेमंद मैनेजर, घर जवांई का घर जवांई। न घर छोड़ कर जाये और
न दुकान। अब गौरी के सारे तर्कों की भी पोल खुल गयी है।
मैं पूरी तरह घिर चुका हूं। अपने घर का सपना एक बार फिर मुझे छल गया है। मेरे हाथ खाली हैं और पूरे देश में मैं किसी को भी नहीं जानता। यहां तो घर में किसी
और से कुछ भी कहने का न हक है, न मतलब। यह तो मुझे पहले ही दिन बता दिया गया था कि मुझे जो कुछ कहना है गौरी के जरिये ही कहना है। अलबत्ता सिस्टम, परिवार या
पसर्नल लाइफ के बारे में कुछ भी कहने की मनाही है। गौरी से बात करो तो उसके बहलाने के अपने तरीके हैं - क्यों टैंशन लेते हो डीयर। तुम्हें किस बात की चिंता?
किस बात की तकलीफ है तुम्हें?
इन सारी मानसिक परेशानियों के बावजूद मैंने एक फैसला किया है कि जो काम मुझे सौंपा गया है, वह मैं कर के दिखाऊंगा। गौरी ने जो मेरी ही बात का ताना मारा था
कि मेरे लिए कोई भी काम छोटा या बड़ा नहीं है तो सचमुच ऐसा ही है। मैं एक बार तो यह भी कर के दिखा ही देता हूं कि मैं स्टोर्स भी संभाल सकता हूं और इस पर भी
अपनी छाप छोड़ सकता हूं। इसमें ऐसा क्या है जो एक मामूली और कम पढ़ा लिखा मद्रासी संभाल सकता है और मैं नहीं संभाल सकता। बल्कि मुझे तो इस बात के पूरे
अधिकार भी दे दिये गये हैं कि मैं जैसा चाहूं इसे बना संवार सकूं।
मैंने देख लिया है कि मेरे सामने क्या काम है और उसे कैसे करना है। मैंने स्टोर्स की लुक, इसकी सर्विस, इसकी डिज़ाइनिंग और इसकी ओवरऑल इमेज को बेहतर बनाने
के लिए सारी चीजों की स्टडी की है। इस पूरे प्रोजेक्ट के लिए मैंने तीन महीने का समय तय किया है और अपनी रिपोर्ट में यह भी ज़िक्र कर दिया है कि इस बीच कुछ
सैक्शन्स को शिफ्ट करना पड़ सकता है या एक आध हफ्ते के लिए बंद भी करना पड़ सकता है लेकिन कुल मिला कर रोजाना के कामकाज पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा।
गौरी ने जब रिपोर्ट देखी है तो वह दंग रह गयी है कि मैं इतने सिस्टम से काम करता हूं - आप तो यार, छुपे रुस्तम निकले। हमारे यहां आज तक किसी ने भी इतनी
दिलचस्पी से किसी काम को लेकर रिपोर्ट तैयार नहीं की होगी।
मै गौरी को बताता हूं - ये तुम्हारे ही उकसाने की नतीजा है कि मैं ये प्रोजेक्ट कर रहा हूं।
कुल मिला कर गौरी बहुत खुश है कि उसके हसबैंड ने हांडा एम्पायर के लिए कुछ नया सोचा है।
रिपोर्ट हाथों हाथ एप्रूव कर दी गयी हेदिया गया और पूरे काम का एजेंसी को कांट्रैक्ट दे दिया गया है।
इस तरह से मैंने खुद को स्टोर्स को बेहतर बनाने के लिए व्यस्त कर लिया है। इसके अलावा मैंने जब देखा कि यहां जितने कम्प्यूटर्स थे, वे पुराने थे और उनमें जो
पैकेजेस थे वे स्टोर्स की ज़रूरत जैसे तैसे पूरी कर रहे थे।
स्टोर्स के रेनोवेशन का काम पूरा हो गया है। अब नये रूप में स्टोर्स की शक्ल ही बदल गयी है और इसकी इमेज भी एक तरह से नयी हो गयी है। हालांकि इस सबमें खर्च
हुआ है और मेहनत भी लगी है, लेकिन रिजल्ट्स सामने हैं।
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