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उपन्यास |
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देस बिराना
हांडा ग्रुप के मुखिया तक ये बातें पहुंच गयी हैं। एक दिन वे खुद आये थे और सारी चीजें खुद देखी भाली थीं। उनके साथ राजकुमार, शिशिर और सुशांत भी थे। सबने
काफी तारीफ की थी। मिस्टर हांडा बोले थे - मुझे ये तो मालूम था कि यहां काम करने की जरूरत है लेकिन तुम आते ही इतनी तेजी से और इतनी सिस्टेमैटिकली ये सब कर
दोगे, हम सोच भी नहीं सकते थे। वी आर प्राउड ऑफ यू माई सन। गॉड ब्लेस यू। यू हैव डन ए ग्रेट जॉब। उन्होंने वहीं खड़े खड़े राजकुमार से कह दिया है कि लैन और
दूसरे सारे पैकेज सभी जगहों के लिए डेवलेप कर लिये जायें। जरूरत पड़े तो दीप जी को इस काम के लिए पूरी तरह फ्री कर दिया जाये।
रिनोवेशन प्रोजेक्ट पूरा होते ही सारी व्यस्तताएं खत्म हो गयी हैं। स्टोर्स का सारा काम स्ट्रीमलाइन हो जाने से अब सुपरविजन का काम नहीं के बराबर रह गया है।
अब मैं पूरी तरह खाली हो जाने की वज़ह से फिर अकेला हो गया हूं। फिर से सारे ज़ख्म हरे हो गये हैं और एक सफल प्रोजेक्ट की इन सारी सफलताओं के बावजूद मैं
अपने आपको फिर से लुटा-पिटा और अकेला पा रहा हूं।
सारी चिंताओं में घिरा ही हुआ हूं कि एक साथ तीन चिट्ठियां आयी हैं। इस उम्मीद में एक-एक करके तीनों खत खोलता हूं कि शायद इनमें से ही किसी में कोई सुकून
भरी बात लिखी हो लेकिन तीनों ही पत्रों में ऐसा कुछ भी नहीं है।
पहला खत गुड्डी का है -
वीरजी,
आपका प्यारा सा पत्र, आपकी नन्हीं सी प्यारी सी दुल्हन के फोटोग्राफ्स और खूबसूरत तोहफे मिले। इससे पहले बंबई से भेजा आपका आखरी खत भी मिल गया था। मैं बता
नहीं सकती कि मैं कितनी खुश हूं। आखिर आपको अपना घर नसीब हुआ। बेशक सात समंदर पार ही सही। मेरी खुशी तो आपका घर बस जाने की है।
पहले बिल्लू की शादी के समाचार। मैंने किसी को भी नहीं बताया था कि आप इस तरह से लंदन जा रहे हैं, बल्कि जा चुके हैं। मैं आपकी तकलीफ समझ रही थी लेकिन
काश..मैं आपकी किसी खुशी के लिए कुछ भी कर पाती तो ..मुझे बाद में बता चला था कि दारजी ने आपको एक और खत लिखा है - वही आपको मनाने की उनकी तरकीबें और आपसे
पैसे निकलवाने के पुराने हथकंडे। मैं रब्ब से दुआ कर रही थी कि वह खत आपको मिले ही नहीं और आप एक और ज़हमत से बच जायें लेकिन आपके जाने के अगले दिन ही नंदू
वीरजी ने मुझे बुलवाया और चेकों के बारे में पूछा। मैंने उन्हें बताया कि मैं ये लिफाफा ले कर आपके पास आने ही वाली थी। तब उन्होंने एयरपोर्ट से आपके फोन के
और दारजी के खत के बारे मैं बताया। मैं सारे चैक उन्हें दे आयी थी।
इधर दारजी की हालत खराब हो रही थी और वे रोज डाकिये की राह देख रहे थे। एक आध बार शायद नंदू के पास भी चक्कर लगाये कि शायद उसके पास कोई फोन आया हो। अगर
आपका ड्राफ्ट न आये तो उनकी हालत खराब हो जाने वाली थी। तभी नंदू वीरजी जैसे उनके लिए देवदूत की तरह प्रकट हुए और पचास हजार के कड़कते नोट उनके हाथ पर धर
दिये। साथ में एक चटपटी कहानी भी परोस दी.. आपका दीपू अब बंबई में नहीं है। एक बहुत बड़ी नौकरी के सिलसिले में रातों रात उसे लंदन चले जाना पड़ा। वहां जाते
ही उसे आपकी चिट्ठी रीडाइरेक्ट हो कर मिली और वह बड़ी मुश्किल से कंपनी से एडवांस ले कर ये पैसे मेरे बैंक के जरिये भिजवा पाया है ताकि आपका नेक कारज न
रुके। बल्कि कल आधी रात ही लंदन से उसका फोन आया था। बहुत जल्दी में था। कह रहा था दारजी और बेबे को कह देना कि अपने घर में खुशी के पहले मौके पर भी नहीं
पहुंच पा रहा हूं। क्या करूं नौकरी ही ऐसी है। रात-दिन काम ही काम कि पूछो नहीं।
इतने सारे कड़कते नोट देख कर तो दारजी खुशी के मारे पागल हो गये। वे तो सिर्फ पद्रह बीस हजार की उम्मीद लगाये बैठे थे। सारी बिरादरी में आपकी जय-जय कार करा
दी है दारजी ने। नंदू वीरजी वाली कहानी को ही खूब नमक मिर्च लगा कर सारी बिरादरी को सुनाते रहे। घर से आपके घर से अचानक चले जाने को भी अब दारजी ने एक और
किस्से के जरिये ऑफिशियल बना दिया है - मैंन ते जी बाद विच पता लगेया। दरअसल साडे दीपू दे बार जाण दी गल चल रई सी, ते उन्ने पासपोरट वास्ते जी अप्लाई कित्ता
होया सी। उत्थों ई अचानक तार आ गयी सी कि छेत्ती आ जाओ। कुछ सरकारी कागजां दा मामलां सी। विचारा पक्की रोटी छड्ड के ते दिलियों हवाई जहाज ते बैठ के बंबई
पोंचेया सी।..
तो वीर जी, ये रही आपके पीछे तैयार की गयी कहानी..।
आप इस भ्रम में न रहें वीरजी कि दारजी बदल गये हैं या अब आपके घर वापिस लौटने पर वे आपसे बेहतर तरीके से पेश आयेंगे। दरअसल वे इस तरह की कहानियां कह के
बिल्लू के ससुराल में अपनी मार्केट वैल्यू तो बढ़ा ही रहे हैं, गोलू के लिए भी जमीन तैयार कर रहे हैं। वे हवा में ये संकेत भेज रहे हैं कि उन्हें अब कोई
लल्लू पंजू न समझे। उनका बड़ा लड़का अब बहुत बड़ी नौकरी में लंदन में है। अब उनसे उनकी नयी मार्केट वैल्यू के हिसाब से बात की जाये।
बिल्लू की शादी अच्छी तरह से हो गयी है। गुरविन्दर कौर नाम है हमारी भाभी का। छोटी सी गोल मटोल सी है। स्वभाव की अच्छी है। बिल्लू खुश है। बेबे भी। उसे दिन
भर का संग साथ भी मिल गया और काम में हाथ बंटाने वाला भी। मुझे भी अपने बराबर की एक सहेली मिल गयी है। बेबे ने दहेज की सारी अच्छी अच्छी चीजें यहां तक कि उस
बेचारी की रोजाना की जरूरत की चीजें भी बड़े बक्से में पह़ुंचा दी हैं। मेरे दहेज में देने के लिए। छी मुझे कितनी शरम आ रही है लेकिन मुझे पूछता ही कौन है।
मैं भाभी को चुपके से बाजार ले गयी थी और उन्हें सारी की सारी चीजें नयी दिलवा दीं। उस बेचारी को कम से कम चार दिन तो खुशी से अपनी चीजें इस्तेमाल कर लेने
देते।
इतना ही,
मेरी प्यारी भाभी को मेरी तरफ से ढेर सा प्यार.।, भाभी की एक फोटो भेज रही हूं।
आपकी बहन,
गुड्डी
दूसरा ख़त दारजी का है-
बेटे दीपजी
(तो इस बार दारजी का संबोधन दीपजी हो गया है। जरूर कुछ बड़ी रकम चाहिये होगी!!)
जींदे रहो। पहले तो शादी और परदेस की नौकरी की बधाई लो। बाकी हमें और खास कर तेरी बेबे को चंगा लगा कि तुम बहुत वडी नौकरी के सिलसिले में लंदन जा पहुचे हो।
रब्ब करे खूब तरक्की करो और खुशियां पाओ। बाकी तुम्हारी शादी की खबर से भी हमें अच्छा लगा कि तुम्हारा घर बार बस गया और अब तुम्हें दुनियादारी से कोई शिकायत
नहीं होनी चाहिये। बेशक हम सबकी तुम्हारी शादी में शामिल होने की हसरत तो रह ही गयी। तुम्हें और तुम्हारी वोटी को खुद आसीसें देते तो हमें चंगा लगता। बाकी
हमारी आसीसें हमेशा तुम्हारे साथ हैं। बाकी तुमने बिल्लू के वक्त जो अपना फरज निभाया, उससे बिरादरी में हमारा सीना चौड़ा हो गया कि तुमने परदेस में जाते ही
कैसे भी करके इतनी बड़ी रकम का इंतजाम करके हमारे हाथ मजबूत किये। सब अश अश करने लगे कि बेटा हो तो दीपजी जैसा!! बेटेजी अब तो मेरी एक ही चिंता है कि किसी
तरह गुड्डी के हाथ पीले कर दूं। तुझे तो पता ही है कि बेबे की तबीयत ठीक नहीं रहती और मेरा भी काम धंधा मंदा ही है। अब उमर भी तो हो चली है। कब तक खटता
रहूंगा जबकि मेरा घर बार संभालने वाले तीन-तीन जवान जहान बेटे हैं। बाकी बिल्लू की शादी के बाद से हाथ थोड़ा तंग हो गया है। उसके अपने खरचे भी बढ़े ही हैं।
वैसे अगर तेरा भी रिश्ता यहीं हो जाता तो बात ही और थी। बिल्लू के सगों ने भी एक तरह से निराश ही किया है। मैंने तो तेरी बहुत हवा बांधी थी लेकिन कुछ बात
बनी नहीं। अब तो यही देखना है कि गुड्डी के समय हमारी इज्जत रह जाये। गोलू फिर भी एकाध बरस इंतजार कर सकता है लेकिन लड़की कितनी भी पढ़ी लिखी क्यों न हो,
सीने पर बोझ तो रहता ही है। ये खत सिरफ इस वास्ते लिखा कि कभी भी गुड्डी की बात आगे बढ़ सकती है। दो- एक जगह बात चल भी रही है। बाकी तुम खुद समझदार हो।
तुम्हारा,
दारजी
तो यह बात थी। कैसी मीठी छुरी चलाते हैं दारजी भी। पहले से खबर कर रहे हैं कि भाया, तैयारी रख, तेरी बहन के हाथ भी पीले करने हैं। आज ही नंदू से बात करनी
पड़ेगी कि किसी भी तरह से दारजी को समझाये कि गुड्डी के लिए जल्दीबाजी न मचायें। कब और कैसे रुख बदलना है, दारजी बखूबी जानते हैं।
अलबत्ता तीसरी चिट्ठी मेरे लिए थोड़ी सुकून भरी है। पत्र टीआइएफआर से है। उन्होंने मेरे बकाया पैसों का स्टेटमेंट बना कर भेजा है और पूछा है कि मैं ये पैसे
कहां और कैसे लेना चाहूंगा। लगभग दो लाख के करीब हैं।
सोचता हूं ये पैसे मैं भसीन साहब के जरिये किसी चैनल से यहां मंगवा लूं । वक्त जरूरत काम आयेंगे। रोजाना कितनी तो ज़रूरतें होती हैं मेरी और मुझे गौरी के
आगे हाथ फैलाना पड़ता है। ऑफिस को यही लिख दिया है मैंने कि ये पैसे मिस्टर देवेन्द्र को दे दिये जायें। ऑफिस और देवेन्द्र जी को ऍथारिटी लैटर भेज दिया
है।
शिशिर आया है। मेरे डेवलेप किये हुए पैकेज लेने। वैसे हम कई बार मिले हैं। उनके घर खाना खाने भी गये हैं और पार्टियों में भी मिलते रहे हैं लेकिन यह पहली
बार है कि हम दोनों अकेले आमने सामने बात कर रहे हैं। वह मेरा सबसे बड़ा साढ़ू है। वह भी मेरी ही तरह हांका करके लाया गया है। चार साल हो गये हैं उसकी शादी
को। एक बच्चा भी है उनका। कलकत्ता से एमबीए है। अच्छी भली नौकरी कर रहा था कि लंदन में मेरी ही तरह शानदार कैरियर का चुग्गा देख कर फंस गया था। वह गैस
स्टेशनों का काम देख रहा है। हम सब जवांइयों में से उसकी हालत कुछ बेहतर है क्योंकि उसने अपनी बीवी को बस में कर रखा है और लड़ झगड़ कर अपनी बात मनवा लेता
है।
पूछ रहा है वह -आपने तो वाकई कमाल कर दिया कि इतने कम समय में अपने ठीये को पूरी तरह चेंज करके रख दिया। वह हँसा है - बस हमारा ख्याल रखना, कहीं हमें घर से
या ससुराल से मत निकलवा देना। और कोई ठिकाना नहीं है अपना।
- क्यों मेरे जले पर नमक छिड़क रहे हो भाई। ये तो मैं ही जानता हूं कि ये सब मैंने क्यों और किसलिए किया। अचानक इतने दिनों से दबा मेरा आक्रोश बाहर का
रास्ता तलाशने लगा है। मेरी आवाज भारी हो गयी है।
शिशिर ने मेरे कंधे पर हाथ रखा है - आयम सौरी गगनदीप, मुझे नहीं मालूम था। वैसे आप मुझ पर भरोसा कर सकते हैं। बेशक मेरी भी वही हालत है जो कमोबेश आपकी है
बल्कि मैंने तो यहां इससे भी बुरे दिन देखे हैं। आपने कम से कम कुछ काम करके अपनी इमेज तो ठीक कर ली है।
- दरअसल मुझे यहां के जो सब्जबाग दिखाये गये थे और मैं जो उम्मीदें ले कर आया था, शादी के कुछ ही दिन बाद मुझे लगने लगा था कि मैं बुरी तरह छला गया हूं।
- बेशक हम आपस में आमने सामने नहीं मिले है लेकिन मैं आपकी हालत के बारे में जानता हूं कि आप बहुत भावुक किस्म के आदमी हैं और उतने प्रैक्टिकल नहीं हैं।
लेकिन मुझे ये नहीं पता था कि आप किसी जिद में या खुद को जस्टीफाई करने के लिए ये सब कर रहे हैं। चलिये, कहीं बाहर चलते हैं। वहीं बात करते हैं।
- चलिये।
हम सामने ही कॉफी शॉप में गये हैं ।
मैं बात आगे बढ़ाता हूं - मुझे पता नहीं कि आपकी बैक ग्राउंड क्या है और आप यहां कैसे आ पहुंचे लेकिन मैं यहां एक घर की तलाश में आया था। मुझे पता नहीं था
कि घर तो नहीं ही मिलेगा, मेरी आजादी और प्राइवेसी भी मुझसे छिन जायेंगे। इतने दिनों के बाद शिशिर अपना-सा लग रहा है जिसके सामने मैं अपने आपको खोल पा रहा
हूं।
- आप ठीक कहते हैं। हम सबकी हालत कमोबेश एक जैसी ही है। हम में से किसी का भी अपना कहने को कुछ भी नहीं है। जो कुछ अपना था भी वह भी उन्होंने रखवा लिया है।
न हम कहीं जॉब तलाश कर सकते हैं और न वापिस भाग ही सकते हैं। हम में से कुछ ने एकाध बच्चा भी पैदा करके अपने गले के फंदे को और भी मजबूती से कसवा लिया है।
मैं खुद पछता रहा हूं कि मैं इस बच्चे वाले चक्कर में फंसा ही क्यों। खैर। मैं तो अब इस बारे में सोचता ही नहीं... जो है जैसा है, चलने दो, लेकिन आप नये आये
हैं, अकेले हैं और किसी को जानते भी नहीं हैं। न हांडा परिवार में और न हममें से किसी को। और शायद आप सोचते भी बहुत हैं, इसीलिए भी आपको ऐसा लगता रहा है।
शिशिर की बात सुन कर मेरा दबा आक्रोश फिर सिर उठा रहा है। शिशिर मेरे मन की बात ही तो कर रहा है - हम बंधुआ मजदूर ही तो हैं जिनकी आज़ादी का कोई जरिया नहीं
है।
आज मैंने और शिशिर ने इस पहली ही मुलाकात में अपने अपने जख्म एक दूसरे के सामने खोल दिये हैं। एक मायने में शिशिर की हालत मुझसे अलग और बेहतर है कि वह घर
परिवार से आया है, मेरी तरह घर की तलाश में नहीं आया। उसके पीछे इंडिया में कुछ जिम्मेवारियां हैं जिन्हें वह चोरी छुपे पूरी कर रहा है। उसने हेरा-फेरी के
कुछ बहुत ही बारीक तरीके ढूंढ लिये हैं या इजाद कर लिये हैं और इस तरह हर महीने चार पांच सौ पौंड अलग से बचा लेता है। इस तरह से कमाये हुए पैसों को वह
नियमित चैनलों से भारत भेज रहा है।
मैं उसकी बात सुन कर दंग रह गया हूं। उसने मेरा हाथ दबाया है - आप ही पहले शख्स हैं जिसे मैंने इस सीक्रेट में राज़दार बनाया है। मैंने अपने घर वालों को
सख्त हिदायत दे रखी है कि भूल कर भी अपने पत्रों में रुपये पैसे मंगाने या पाने का जिक्र न करें। अपनी पसर्नल डाक भी मैं अलग-अलग दोस्तों के पतों पर मंगाता
हूं और ये पते बदलता रहता हूं। वह बता रहा है - पहले मैं भी आपकी तरह कुढ़ता रहता था लेकिन जब मैंने देखा कि यहां की गुलामी तो हम चाह कर भी खत्म नहीं कर
सकते और मरते दम तक हांडा परिवार के गुलाम ही बने रहेंगे तो फिर हमीं क्यों हरिश्चंद्र की औलाद बने रहें। पहले तो मैं भी बहुत डरा, मेरी आत्मा गवारा ही नहीं
करती थी। आज तक मैंने कोई ऐसा काम नहीं किया था लेकिन आज तक किसी ने मेरा शोषण भी नहीं किया था इसलिए मैंने भी मन मार कर ये सब करना शुरू कर दिया है, बेशक
चार पांच सौ पौंड यहां के लिहाज से कुछ नहीं होते लेकिन वहां मेरा पूरा घर इसी से चलता है। इनके भरोसे रहें तो जी चुके हम और हमारे परिवार वाले।
शिशिर से मिलने के बाद बहुत सुकून मिला है। एक अहसास यह भी है कि मैं ही अकेला नहीं हूं। दूसरा, यह भी कि शिशिर है जिससे मैं कभी-कभार सलाह ले सकता हूं या
अपने मन की बात कह सकता हूं।
शिशिर ने वादा किया है कि वह नियमित रूप से फोन करता रहेगा और हफ्ते दस दिन में मिलता भी रहेगा।
इधर गौरी बहुत खुश है कि मैंने हांडा परिवार के लिए, अपने ससुराल के लिए, गौरी के मायके के लिए इतना कुछ किया है। लेकिन मैं ही जानता हूं कि इन दिनों मैं
किस मानसिक द्वंद्व से गुजर रहा हूं। गौरी का साथ भी अब मुझे उतना सुख नहीं दे पाता। जब मन ही ठिकाने पर न हो तो तन कैसे रहेगा।
अभी उस दिन मैं अपने पुराने कागज देख रहा था तो देखा - मेरे सारे पेपर्स अटैची में से गायब हैं। मैं एकबारगी तो घबरा ही गया कि कहीं चोरी तो नहीं चले गये
हैं। जब गौरी से पूछा तो वह लापरवाही से बोली - संभाल कर रख दिये हैं। तुमने तो इतनी लापरवाही से खुली अटैची में रखे हुए थे। वैसे भी तुम्हें क्या ज़रूरत है
इन सब पेपर्स की?
मैं चुप रह गया था। क्या जवाब देता। मैं जानता था कि गौरी झूठ बोल रही है। मेरे पेपर्स ख्ली अटैची में तो कत्तई नहीं रखे हुए थे। मैं कभी भी अपनी चीजों के
बारे में लापरवाह नहीं रहा।
डिपार्टमेंटल स्टोर का सारा हिसाब-किताब कम्प्यूटराइज्ड होने के कारण मैं हमेशा खाली हाथ ही रहता हूं। यहां तक कि मुझे अपनी पसर्नल ज़रूरतों के लिए भी गौरी
पर निर्भर रहना पड़ता है। मैं भरसक टालता हूं लेकिन फिर भी शेव, पैट्रोल, बस, ट्राम, ट्यूब वगैरह के लिए ही सही, कुछ तो पैसों की जरूरत पड़ती ही है। मांगना
अच्छा नहीं लगता और बिन मांगे काम नहीं चलता। इस कुनबे के अलिखित नियमों में से एक नियम यह भी है कि कोई भी कहीं से भी हिसाब में से पैसे नहीं निकालेगा।
निकाल सकता भी नहीं क्योंकि कैश आपके हाथों तक पहुंचता ही नहीं और न सिस्टम में कहीं गुंजाइश ही है। ज़रूरत है तो अपनी अपनी बीवी से मांगो। बहुत कोफ्त होती
है गौरी से पैसे मांगने में। बेशक घर में अलमारी में ढेरों पैसे रखे रहते हैं और गौरी ने कह भी रखा है कि पैसे कहां रखे रहते हैं जब भी ज़रूरत हो ले लिया
करूं लेकिन इस तरह पैसे उठाने में हमेशा मुझे क्या किसी को भी संकोच ही होगा। यहां तो न बोलने का इजाज़त है न किसी बात पर उंगली उठाने की।
दिन भर स्टोर में ऐसी-तैसी कराओ, रात में थके हारे आओ। मूड है तो नहाओ, अगर गौरी जाग रही है तो डिनर उसके साथ लो, नहीं तो अकेले खाना भकोसो और अंधेरे में
उसके बिस्तर में घुस कर, इच्छा हो या न हो, सैक्स का रिचुअल निभाओ। बात करने का कोई मौका ही नहीं। अगर कभी बहुत जिद कर के बात करने की कोशिश भी करो तो गौरी
की भृकुटियां तन जातीं हैं - तुम्हीं अकेले ही तो नहीं खटते डियर, यहां सभी बराबरी का काम करते हैं। मैं भी तो तुम्हारे बराबर ही काम करती हूं, मैंने तो कभी
अपने लिए अलग से कुछ नहीं मांगा। तुम्हारी सारी ज़रूरतें तो ठाठ से पूरी हो रही हैं।
मैं उसे कैसे बताऊं कि ये ज़रूरतें तो मैं भारत में भी बहुत शानदार तरीके से पूरी कर रहा था और अपनी शर्तों पर कर रहा था। मैं यहां कुछ सपने ले कर आया था।
घर के, परिवार के और एक सुकून भरी ज़िदंगी के, प्यार दे कर प्यार पाने के लेकिन गौरी के पास न तो इन सारी बातों को समझ सकने लायक दिमाग है और न ही फुर्सत।
एक अच्छी बात हुई कि देवेन्द्र जी ने टीआइएफआर से मेरे बकाया पैसे ले कर अपने किसी परिचित के जरिये का हवाला के जरिये यहीं पर दिलवा दिये हैं। उनके ऑफिस का
कोई आदमी यहां आया हुआ है। उसे बंबई अपने घर पैसे भिजवाने थे। उसके पैसे देवेन्द्र जी ने वहीं बंबई में दे दिये हैं और वह आदमी मुझे यहीं पर पाउंड दे गया
है। फिलहाल मुझे एक हज़ार पाउंड मिल गये हैं और मैं रातों रात अमीर हो गया हूं। हँसी भी आती है अपनी अमीरी पर। इतने पैसे तो गौरी दो दिन में ही खर्च कर देती
है। मेरी तो इतने भर से ही काफी बड़ी समस्या हल हो गयी है। पैसों को ले कर गौरी से रोज़ रोज़ की खटपट के बावजूद आज़ मैंने उसे डिनर दिया है। मेरी अपनी कमाई
में से पहला डिनर। बेशक कमाई पहले की है। फिर भी इस बात की तसल्ली है कि घर जवांई होने के बावजूद मेरे पास आज अपने पैसे हैं। गौरी डिनर खाने के बावजूद मेरे
सैंटीमेंट्स को नहीं समझ पायी। न ही उसने ये पूछा कि जब तुम्हारे पास पैसे नहीं होते तो तुम कैसे काम चलाते हो ! क्यों अपनी ये छोटी सी पूंजी को इस तरह उड़ा
रहे हो, हज़ार पाउंड आखिर होते ही कितने हैं? लेकिन उसने एक शब्द भी नहीं कहा।
आज की डाक में तीन पत्र एक साथ आये हैं। तीनों ही पत्र परेशानी बढ़ाने वाले हैं।
पहला खत गुड्डी का है।
लिखा है उसने
- वीरजी,
सत श्री अकाल
कैसे लिखूं कि यहां सब कुछ कुशल है। होता तो लिखने की जरूरत ही न पड़ती। आप भी क्या सोचते होंगे वीरजी कि हम लोग छोटे-छोटे मसले भी खुद सुलटा नहीं सकते और
सात समंदर पार आपको परेशान करते रहते हैं। मैं आपको आखरी बार परेशान कर रही हूं वीरजी। अब कभी नही करूंगी। मैं हार गयी वीर जी। मेरी एक न चली और मेरे लिए
तीन लाख नकद और अच्छे कहे जा सकने वाले दहेज में एक इंजीनियर खरीद लिया गया हालांकि उसका बाजार भाव तो बहुत ज्यादा था। वीर जी, ये कैसा फैसला है जो मेरी
बेहतरी के नाम पर मुझ पर थोपा जा रहा है।
दारजी को उस गोभी के पकौड़े जैसी नाक वाले इंजीनियर मे पता नहीं कौन से लाल लटकते नज़र आ रहे थे कि बस हां कर दी कि हमें रिश्ता मंज़ूर है जी। आप कहेंगे
वीरजी, मेरी मर्जी के खिलाफ मेरी शादी हो रही है और मुझे मजाक सूझ रहा है। हँसूं नहीं तो और क्या करूं वीर जी। मैं कितना रोई, छटपटाई, दौड़ कर नंदू वीरजी को
भी बुला लायी लेकिन दारजी ने उन्हें देखते ही बरज दिया- यह हमारा घरेलू मामला है बरखुरदार..। जब आधी-आधी रात को पैसे चाहिये होते हैं तो यही नंदू वीरजी सबसे
ज्यादा सगे हो जाते हैं और जब वे मेरे पक्ष में सही बात करने के लिए आये तो वे बाहर के आदमी हो गये।
मेरा तो जी करता है कहीं भाग जाऊं। काश, हम लड़कियों के लिए भी घर छोड़ कर भागना आसान हो पाता। गलत न समझें लेकिन आप इतने सालों बाद घर लौट कर आये तो सबने
आपको सर आंखों पर बिठाया। अगर मैं एक रात भी घर से बाहर गुजार दूं तो मां-बाप तो मुझे फाड़ खायेंगे ही, अड़ोसी-पड़ोसी भी लानतें भेजने में किसी से पीछे नहीं
रहेंगे।
ऐसा क्यों होता है वीरजी, ये हमारे दोहरे मानदंड क्यों। आप को संतोष पसंद नहीं थी तो आप एक बार फिर घर छोड़ कर भाग गये। किसी ने आपको तो कुछ भी नहीं कहा..
लेकिन मुझे वो पकोड़े जैसी नाक वाला आदमी रत्ती भर भी पसंद नहीं है तो मैं कहां जाऊं। क्यों नहीं है मुक्ति हम लड़कियों की। जो रास्ता आपके लिए सही है वही
मेरे लिए गलत क्यों हो जाता है। मैं क्यों नहीं अपनी पसंद से अपनी ज़िंदगी के फैसले ले सकती !! आप हर बार पलायन करके भी अपनी बातें मनवाने में सफल रहे। आप
बिना लड़े भी जीतते रहे और मैं लड़ने के बावजूद क्यों हार रही हूं। क्या विकल्प है मेरे पास वीरजी !!
मैं भी घर से भाग जाऊं !! सहन कर पायेंगे आप कि आपकी कविताएं लिखने वाली और समझदार बहन जिस पर आपको पूरा भरोसा था, घर से भाग गयी है। संकट तो यही है वीरजी,
कि भाग कर भी तो मेरी या किसी भी लड़की की मुक्ति नहीं है। अकेली लड़की कहां जायेगी और कहां पहुंचेगी। अकेली लड़की के लिए तो सारे रास्ते वहीं जाते हैं। मैं
भी आगे पीछे वहीं पहुंचा दी जाऊंगी। मेरे पास भी सरण्डर करने के और कोई उपाय नहीं है। बीए में पढ़ने वाली और कविताएं लिखने वाली बेचारी लड़की भूख हड़ताल कर
सकती है, जहर खा सकती है, जो मैं नहीं खाऊंगी। तीन महीने बाद, इसी वैसाखी पर मैं दुल्हन बना दी जाऊंगी। हो सकता है, अब तक आपके पास दारजी का पत्र पहुंच गया
हो। आप नंदू वीर जी को फोन करके बता दें कि उनके पास जो चैक रखे हैं उनका क्या करना है। मुझे नहीं पता दारजी ने किस भरोसे से पकौड़े वालों से तीन लाख नकद की
बात तय कर ली है। रब्ब न करे इंतज़ाम न हो पाया तो स्टोव तो मेरे लिए ही फटेगा।
कब से ये सारी चीजें मुझे बेचैन कर रही थीं। आपको न लिखती तो किसे लिखती वीर जी, आप ही ने तो मुझे बोलना सिखाया है। बेशक मैं वक्त आने पर अपने हक के लिए
नहीं बोल पायी।
मेरी बेसिर पैर की बातों का बुरा नहीं मानेंगे।
आपकी लाडली
गुरप्रीत कौर
उसने इतनी चिट्ठियों में पहली बार अपना नाम गुरप्रीत लिखा है। मैं उसकी हालत समझ सकता हूं।
दूसरा खत नंदू का है, लिखा है उसने -
प्रिय दीपजी
अब तक आपको गुड्डी का पत्र मिल गया होगा। मेरे पास आयी थी। बहुत रोती थी बेचारी कि मैं शादी से इनकार नहीं करती कम से कम मुझे पढ़ाई तो पूरी करने दें। मेरा
और मेरे वीरजी का सपना है कि मैं एमबीए करूं। सच मान मेरे वीरा, मैं भी दारजी को समझा-समझा कर थक गया कि उसे पढ़ाई तो पूरी कर लेने दो। आखिर मैंने एक चाल
चली। तुमने जो चैक मेरे पास रख छोड़े हैं, उनके बारे में उन्हें कुछ भी नहीं पता। ये पैसे मैं उन्हें ऐन वक्त पर ही दूंगा कि दीपजी ने भेजे हैं.. तो उन्हीं
पैसों को ध्यान में रखते हुए मैंने उन्हें समझाया कि आखिर दीप को भी तो कुछ समय दो कि वह अपनी बहन के लिए लाख दो लाख का इंतज़ाम कर सके। उसकी भी तो नयी
नौकरी है और परदेस का मामला है। कुछ भी ऊंच-नीच हो सकती है। बात उनके दिगाम में बैठ गयी है, और वे कम से कम इस बात के लिए राजी हो गये हैं कि वे लड़के वालों
को कहेंगे कि भई अगर शादी धूमधाम से करना चाहते हो तो वैसाखी के बाद ही शादी हो पायेगी। मेरा ख्याल है तब तक गुडडी के बीए फाइनल के पेपर हो चुके होंगे। तब
तक वह अपनी पढ़ाई भी बिना किसी तकलीफ के कर पायेगी।
थोड़ी सी गलती मेरी भी है कि मैंने यहां पर लंदन में तुम्हारी नौकरी, रुतबे, और दूसरी चीजों की कुछ ज्यादा ही हवा बांध दी है जिससे दारजी हवा में उड़ने लगे
हैं।
तू यहां की चिंता मत करना। मैं अपनी हैसियत भर संभाले रहूंगा। गुड्डी का हौसला बनाये रखूंगा। वैसे लड़का इतना बुरा भी नहीं है। कोई आदमी किसी को पसंद ही न
आये तो सारी अच्छाइयों के बाद भी उसमें ऐब ही ऐब नजर आते हैं। वैसे भी गुड्डी इस वक्त तनावों से ग़ुज़र रही है और किसी से भी शादी से बचना चाह रही है। अपना
ख्याल रखना..मैं यहां की खबर देता रहूंगा। तू निश्चिंत रह।
तेरा ही
नंदू
तीसरा खत दारजी का है।
बेटे दीप जी
खुश रहो।
बाकी खास खबर ये है कि सानू गुड्डी के लिए एक बहुत ही चंगा लड़का ते रजेया कजेया घर मिल गया है। असां सगाई कर दित्ती है। लड़का बिजली महकमे विच इंजीनियर है
और उनकी कोई खास डिमांड नहीं है। बाकी बाजार में जो दस्तूर चल रहा है तीन-चार लाख आजकल होता क्या है। लोग मुंह खोल के बीस-बीस लाख मंग भी रहे हैं और देण
वाले दे भी रहे हैं। ज्यादा दूर क्यों जाइये। त्वाडे वास्ते भी तो पांच छः लाख नकद और कार और दूसरी किन्नी ही चीजों की ऑफर थी। आखिर देण वाले दे ही रहे थे
कि नहीं। अब हम इतने नंगे बुच्चे भी तो नहीं हैं कि कुड़ी को खाली हाथ टोर दें। आखिर उसका भाई भी बड़ा इंजीनियर है और विलायत विच काम करता है। हमें तो सारी
बातें देखणी हैं और बिरादरी में अपनी नाक भी ऊंची रखणी है।
बाकी हम तो एक दो महीने में ही नेक कारज कर देना चाहते थे कि कुड़ी अपने घर सुख सांद के साथ पहुंच जाये लेकन नंदू की बात मुझे समझ में आ गयी है कि रकम का
इंतजाम करने में हमें कुछ वकत तो लग सकता है। परदेस का मामला है, और फिर रकम इन्नी छोटी वीं नइं है। बाकी अगर ते त्वाडा आना हो सके तो इस तों चंगी कोई गल्ल
हो ही नहीं सकती। बाकी तुसी वेख लेणा। बाकी गौरी नूं असां दोंवां दी असीस।
तुम्हारा
दारजी
समझ में नहीं आ रहा कि इन पत्रों का क्या जवाब दूं। अपने यहां के मोरचे संभालूं या देहरादून के। दोनों ही मोर्चे मुझे पागल बनाये हुए हैं। गुड्डी ने तो
कितनी आसानी से लिख दिया है बेशक भारी मन से ही लिखा है लेकिन मैं कैसे लिख दूं कि यहां भी सब खैरियत है जबकि सब कुछ तो क्या कुछ भी ठीक ठाक नहीं है। मैं तो
चाह कर भी नहीं लिख सकता कि मेरी प्यारी बहना, खैरियत तो यहां पर भी नहीं है। मैं भी यहां परदेस में अपने हाथ जलाये बैठा हूं और कोई मरहम लगाने वाला भी नहीं
है।
तीनों चिट्ठियां पिछले चार दिन से जेब में लिये घूम रहा हूं। तीनों ही खत मेरी जेब जला रहे हैं और मैं कुछ भी नहीं कर पा रहा हूं।बात करूं भी तो किससे? कोई
भी तो नहीं है यहां मेरा जिससे अपने मन की बात कह सकूं। गौरी से कुछ भी कहना बेकार है। पहले दो एक मौकों पर मैं उसके सामने गुड्डी का ज़िक्र करके देख चुका
हूं। अब उसकी मेरे घर बार के मामलों में कोई दिलचस्पी नहीं रही है। बल्कि एक आध बार तो उसने बेशक गोल-मोल शब्दों में ही इशारा कर दिया था - डीयर, तुम छोड़ो
अब वहां के पचड़ों को। तुम अपने नसीब को भोगो। वे अपनी किस्मत का वहीं मैनेज कर ही लेंगे।
अचानक शिशिर का फोन आया है तो मुझे सूझा है, उसी से अपनी बात कह कर मन का कुछ तो बोझ हलका किया जा सकता है।
शिशिर को बुलवा लिया है मैंने। हम बाहर ही मिले हैं। उसे मैं संक्षेप में अपनी बैकग्राउंड के बारे में बताता हूं और तीनों पत्र उसके सामने रखता हूं। वह
तीनों पत्र पढ़ कर लौटा देता है।
- क्या सोचा है तुमने इस बारे में। पूछता है शिशिर।
- मैं यहां आने से पहले गुड्डी के लिए वैसे तो इंतज़ाम कर आया था। उसे मैं तीन लाख के ब्लैंक चैक दे आया था। दारजी को इस बारे में पता नहीं हैं। मैं बेशक
यहां से न तो ये शादी रुकवा सकता हूं और न ही उसके लिए यहां या वहां बेहतर दूल्हा ही जुटा सकता हूं। अब सवाल यह है कि उसकी ये शादी मैं रुकवाऊं तो रुकवाऊं
कैसे? वैसे नंदू इसे अप्रैल तक रुकवाने में सफल हो ही चुका है। तब तक वह बीए कर ही लेगी। मुझे कुछ सूझ नहीं रहा है इसीलिए तुम्हें मैंने बुलाया था।
- फिलहाल तो तुम यही करो कि गुड्डी को यही समझाओ कि जब तक शादी टाल सके टाले, जब बिलकुल भी बस न चले तो करे शादी। दारजी को भी एक बार लिख कर तो देख लो कि
उसे पढ़ने दें। एक बार शादी हो जाने के बाद कभी भी पढ़ाई पूरी नहीं हो पाती। और अगर गुड्डी को लड़का पसंद नहीं है तो क्यों नहीं वे कोई बेहतर लड़का देखते।
बीए करने के बाद तो गुड्डी के लिए बेहतर रिश्ते भी आयेंगे ही।
- हां, ये ठीक रहेगा। मैं इन्हीं लाइंस पर तीनों को लिख देता हूं। आज तुम से बात करके मेरा आधी परेशानी दूर हो गयी है।
- ये सिर्फ तुम्हारी ही समस्या नहीं है मेरे दोस्त। वहां घर घर की यही कहानी है। अगर तुम्हारी गुड्डी की शादी के लिए तुम्हें लिखा जा रहा है तो मेरी बहनों
अनुश्री और तनुश्री की शादी के लिए भी मेरे बाबा भी मुझे इसी तरह की चिट्ठियां लिखते हैं। तुम लकी हो कि तुम गुड्डी के लिए कम से कम तीन लाख का इंतज़ाम करके
तो आये थे और इस फ्रंट के लिए तुम्हें रातों की नींद तो खराब नहीं करनी है। हर समय ये हिसाब तो नहीं लगाना पड़ता कि तुम्हारा जुटाया या बचाया या चुराया हुआ
एक पाउंड वहां के लिए क्या मायने रखता है और उनकी कितनी ज़रूरतें पूरी करता है। मुझे यहां खुद को मेनटेन करने के लिए तो हेराफेरी करनी ही पड़ती है, साथ ही
वहां का भी पूरा हिसाब-किताब दिमाग में रखना पड़ता है। मुझे न केवल दोनों बहनों के लिए यहीं से हर तरह के दंद फंद करके दहेज जुटाना पड़ा बल्कि मैं तो आज भी
बाबा, मां और दोनों बहनों, जीजाओं की हर तरह की मांगें पूरी करने के लिए अभिशप्त हूं। मैं पिछले चार साल से यानी यहां आने के पहले दिन से ही यही सब कर रहा
हूं।
- तो बंधु, हम लोगों की यही नियति है कि घर वालों के सामने सच बोल नहीं सकते और झूठ बोलते बोलते, झूठी ज़िदंगी जीते जीते एक दिन हम मर जायेंगे। तब हमारे लिए
यहां कोई चार आंसू बहाने वाला भी नहीं होगा। वहां तो एक ही बात के लिए आंसू बहाये जायेंगे कि पाउंड का हमारा हरा-भरा पेड़ ही सूख गया है। अब हमारा क्या
होगा।
- कभी वापिस जाने के बारे में नहीं सोचा?
- वापिस जाने के बारे में मैं इसलिए नहीं सोच सकता कि शिल्पा और मोंटू मेरे साथ जायेंगे नहीं। अकेले जाने का मतलब है - तलाक ले कर, सब कुछ छोड़-छाड़ कर जाओ।
फिर से नये सिरे से जिंदगी की शुरूआत !! वह अब इस उम्र में हो नहीं पायेगा। अब यहां जिस तरह की ज़िंदगी की तलब लग गयी है, वहां ये सब कहां नसीब होगा। खटना
तो वहां भी पड़ेगा ही लेकिन हासिल कुछ होगा नहीं। जिम्मेवारियां कम होने के बजाये बढ़ ही जायेंगी। तो यहीं क्या बुरा है।
- तुम सही कह रहे हो शिशिर। आदमी जिस तरह की अच्छी बुरी ज़िंदगी जीने का आदी हो जाता है, उम्र के एक पड़ाव के बाद उसमें चेंज करना इतना आसान नहीं रह जाता।
मैं भी नहीं जानता, क्या लिखा है मेरे नसीब में। यहां या कहीं और, कुछ भी तय नहीं कर पाता। वहां से भाग कर यहां आया था, अब यहां से भाग कर कहां जाऊंगा। यहां
कहने को हम हांडा खानदान के दामाद हैं लेकिन अपनी असलियत हम ही जानते हैं कि हमारी औकात क्या है। हम अपने लिए सौ पाउंड भी नहीं जुटा सकते और अपनी मर्जी से न
कुछ कर सकते हैं न किसी के सामने अपना दुखड़ा ही रो सकते हैं।
- आयेंगे अच्छे दिन भी, शिशिर हँसता है और मुझसे विदा लेता है।
मैं शिशिर के सुझाये तरीके से दारजी और गुड्डी को संक्षिप्त पत्र लिखता हूं। एक पत्र नंदू को भी लिखता हूं। मैं जानता हूं कि इन खतों का अब कोई अर्थ नहीं है
फिर भी गुड्डी की हिम्मत बढ़ाये रखनी है। मैंने दारजी को यह भी लिख दिया है कि मैं यहां गुड्डी के लिए कोई अच्छा सा लड़का देखता रहूंगा। अगर इंतज़ार कर
सकें। उस इंजीनियर से अच्छा लड़का यहां भी देखा जा सकता है लेकिन इसके लिए वे मुझे थोड़ा टाइम जरूर दें।
बहुत दिनों बाद मिला है शिशिर इस बार।
- कैसे हो, दीप, तुम्हारे पैकैजेस ने तो धूम मचा रखी है।
- जाने दो यार, अब उनकी बात मत करो। अपनी कहो, नयी फैक्टरी की बधाई लो शिशिर, सुना है तुमने इन दिनों हांडा ग्रुप को अपने बस में कर रखा है। तुम्हारे लिए एक
फैक्टरी लगायी जा रही है। इससे तो तुम्हारी पोजीशन काफी अच्छी हो जायेगी।
- वो सब शिल्पा के ज़रिये ही हो पाया है। मैंने उसे ही चने के झाड़ पर चढ़ाया कि मैं कब तक गैस स्टेशनों पर हाथों की ग्रीस उतारने के लिए उससे साबुन मांगता
रहूंगा, आखिर वही सबसे बड़ी है। उसके हसबैंड को भी अच्छी पोजीशन दी जानी चाहिये। बस बात क्लिक कर गयी और ये फैक्टरी हांडा ग्रुप ने मेरे बेटे के नाम लगाने
का फैसला किया है।
- चलो, कहीं तो मोंटू की किस्मत चमकी।
- खैर, तुम कहो, होम फ्रंट पर कैसा चल रहा है। पूछा है शिशिर ने।
- बस, चल ही रहा है। मैं भरे मन से कहता हूं।
- क्या कोई ज्यादा डिफरेंसेंस हैं?
- हैं भी और नहीं भी। अब तो कई बार तो हममें बात तक नहीं होती।
- कोई खास वज़ह?
- यही वज़ह क्या कम है? जब आपका मन ही ठिकाने पर न हो, आप को मालूम हो कि आपके आस पास जो कुछ भी है, एक झूठा आवरण है और कदम कदम पर झूठ बोल कर आपको घेर कर
लाया गया है तो आप अपने सबसे नजदीकी रिश्ते भी कहां जी पाते हैं। और उस उस रिश्ते में भी खोट हो तो .. ..। खै। मेरी छोड़ो, अपनी कहो।
- नहीं दीप नहीं, तुम्हारी बात को यूं ही नहीं जाने दिया जा सकता। अगर तुम इसी तरह घुटते रहे तो अपनी ही सेहत का फलूदा बनाओगे। यहां तब कोई पूछने वाला भी
नहीं मिलेगा। मुझसे मत छिपाओ, मन की बात कह दो। आखिर मैं इन लोगों को तुमसे तो ज्यादा ही जानता हूं। सच बताओ, क्या बात है। उसने मेरे कंधे पर हाथ रखा है।
- सच बात हो यह है कि मैं थक गया हूं। अब बहुत हो गया। आदमी कब तक अपना मन मार कर रहता रहे, जबकि सुनवाई कहीं नहीं है। यहां तो हर तरफ झूठ ही झूठ है।
- बताओ तो सही बात क्या है।
- कुछ दिन पहले हम एक कपबोर्ड का सामान दूसरे कमरे में शिफ्ट कर रहे थे तो गौरी के पेपर्स में मुझे उसका का बायोडाटा मिला। आम तौर पर मैं गौरी की किसी भी
चीज़ को छूता तक नहीं और न ही उसके बारे मे कोई भी सवाल ही पूछता हूं। दरअसल उन्हीं कागजों से पता चला कि गौरी सिर्फ दसवीं पास है जबकि मुझे बताया गया था कि
वह ग्रेजुएट है। मुझे समझ नहीं आ रहा कि इस बारे में भी मुझसे झूठ क्यों बोला गया? मुझे तो यह भी बताया गया था कि वह अपनी कम्पनी की फुल टाइम डाइरेक्टर है।
यहां तो वह सबसे कम टर्नओवर वाले फ्लोरिस्ट स्टाल पर है और स्टाल का एकाउंट भी सेन्ट्रलाइज है।
- यही बात थी या और भी कुछ?
- तो क्या यह कुछ कम बात है। मुझसे झूठ तो बोला ही गया है ना....।
- तुम मुझसे अभी पूछ रहे थे ना कि मैंने अपनी पोजीशन काफी अच्छी कैसे बना रखी है। तो सुनो, मेरी बीबी शिल्पा डाइवोर्सी है और यह बात मुझसे भी छुपायी गयी थी।
- अरे...तो पता कैसे चला तुम्हें...?
- इन लोगों ने तो पूरी कोशिश की थी कि मुझ तक यह राज़ जाहिर न हो लेकिन शादी के शुरू शुरू में शिल्पा के मुंह से अक्सर संजीव नाम सुनाई दे जाता लेकिन वह
तुरंत ही अपने आप को सुधार लेती। कई बार वह मुझे भी संजीव नाम से पुकारने लगती। हनीमून पर भी मैंने पाया था कि उसका बिहेवियर कम से कम कुंवारी कन्या वाला तो
नहीं ही था। वापिस आ कर मैंने पता किया, पूरे खानदान में संजीव नाम का कोई भी मेम्बर नहीं रहा था। मेरा शक बढ़ा। मैंने शिल्पा को ही अपने विश्वास में लिया।
जैसे वही मेरी ज़िंदगी की सबसे बड़ी खुशी हो। उसे खूब प्यार दिया। फिर उसके बारे में बहुत कुछ जानने की इच्छा जाहिर की। वह झांसे में आ गयी। बातों बातों में
उसके दोस्तों का जिक्र आने लगा तो उसमें संजीव का भी जिक्र आया। वह इसका क्लास फेलो था। पता चला, हमारी शादी से दो साल पहले उन दोनों की शादी हुई थी। यह
शादी कुल चार महीने चली थी। हालांकि मैं अब इस धोखे के खिलाफ कुछ नहीं कर सकता था लेकिन मैंने इसी जानकारी को तुरुप के पत्ते की तरह इस्तेमाल करना शुरू कर
दिया। शिल्पा भी समझ गयी कि मुझे सब पता चल चुका है। तब से मेरी कोई भी बात न तो टाली जाती है और न ही कोई मेरे साथ कोई उलटी सीधी हरकत ही करता है। बल्कि जब
जरूरत होती है, मैं उसे ब्लैक मेल भी करता रहता हूं। कई बार तो मैंने उससे अच्छी खासी रकमें भी ऐंठी हैं।
- लेकिन इतनी बड़ी बात जान कर भी चुप रह जाना.... मेरा तो दिमाग खराब हो जाता..।
- दीप तुम एक बात अच्छी तरह से जान लो। मैंने भी अपने अनुभव से जानी है और आज यह सलाह तुम्हें भी दे रहा हूं। बेशक शिल्पा डाइवोर्सी थी और यह बात मुझसे
छिपायी गयी लेकिन यहां लंदन में तुम्हें कोई लड़की कुंवारी मिल जायेगी, इस बात पर सपने में यकीन नहीं किया जा सकता। अपोज़िट सैक्स की फ्रैंडशिप, मीटिंग और
आउटिंग, डेटिंग और इस दौरान सैक्स रिलेशंस यहां तेरह चौदह साल की उम्र तक शुरू हो चुके होते हैं। अगर नहीं होते तो लड़की या लड़का यही समझते हैं कि उन्हीं
में कोई कमी होगी जिसकी वज़ह से कोई उन्हें डेटिंग के लिए बुला नहीं रहा है। कोई कमी रह गयी होगी वाला मामला ऐसा है जिससे हर लड़का और लड़की बचना चाहते हैं।
दरअसल ये चीजें यहां इतनी तेजी से और इतनी सहजता से होती रहती हैं कि सत्तर फीसदी मामलों में नौबत एबार्शन तक जा पहुंचती है। अगर शादी हो भी जाये तो रिलेशंस
पर से चांदी उतरते देर नहीं लगती। तब डाइवोर्स तो है ही सही। इसलिए जब मैंने देखा कि ऐसे भी और वैसे भी यहां कुंवारी लड़की तो मिलने वाली थी नहीं, यही सही।
बाकी अदरवाइज शिल्पा इज ए वेरी गुड वाइफ। दूसरी तकलीफ़ें अगर मैं भुला भी दूं तो कम से कम इस फ्रंट पर मैं सुखी हूं।
हँसा है शिशिर - बल्कि कई बार अब मैं ही रिश्तों में बेईमानी कर जाता हूं और इधर-उधर मुंह मार लेता हूं। वैसे भी दूध का धुला तो मैं भी नहीं आया था। यहां भी
वही सब जारी है।
- यार, तुम्हारी बातें तो मेरी आंखें खोल रही हैं। मैं ठहरा अपनी इंडियन मैंटेलिटी वाला आम आदमी। इतनी दूर तक तो सोच भी नहीं पाता। वैसे भी तुम्हारी बातों
ने मुझे दोहरी दुविधा में डाल दिया है। इसका मतलब ..
- पूछो.. पूछो.. क्या पूछना चाहते हे.. शिशिर ने मेरी हिम्मत बढ़ाई है।
- तो क्या गौरी भी...?
- अब अगर तुममें सच सुनने की हिम्मत है और तुम सच सुनना ही चाहते हो और सच को झेलने की हिम्मत भी रखते हो तो सुनो, लेकिन यह बात सुनने से पहले एक वादा करना
होगा कि इसके लिए तुम गौरी को कोई सज़ा नहीं दोगे और अपने मन पर कोई बोझ नहीं रखोगे।
- तुम कहो तो सही।
- ऐसे नहीं, सचमुच वादा करना पड़ेगा। वैसे भी तुम्हारे रिश्तों में दरार चल रही है। बल्कि मैं तो कहूंगा कि तुम भी अपनी लाइफ स्टाइल बदलो। हर समय देवदास की
तरह कुढ़ने से न तो दुनिया बदलेगी और न कुछ हासिल ही होगा। उठो, घर से बाहर निकलो और ज़िंदगी को ढंग से जीओ। ये ज़िंदगी एक ही बार मिली है। इसे रो धो कर
गंवाने के कुछ भी हासिल नहीं होने वाला।
- अरे भाई, अब बोलो भी सही।
- तो सुनो। गौरी को भी एबार्शन कराना पड़ा था। हमारी शादी के पहले ही साल। यानी तुम्हारी शादी से तीन साल पहले। उसे शिल्पा ही ले कर गयी थी। लेकिन मैंने कहा
न.. ऐसे मामलों में शिल्पा या गौरी या विनिता या किसी भी ल़ड़की का कोई कुसूर नहीं होता। यहां की हवा ही ऐसी है कि आप चाह कर भी इन रिश्तों को रोक नहीं
सकते। मां-बाप को भी तभी पता चलता है जब बात इतनी आगे बढ़ चुकी होती है। थोड़ा बहुत रोना-धोना मचता है और सब कुछ रफा दफा कर दिया जाता है। इंडिया से कोई भी
लड़का ला कर तब उसकी शादी कर दी जाती है। अब यही देखो ना, कि इस हांडा फेमिली के ही लड़के भी तो यहां की लड़कियों के साथ यही सब कुछ कर रहे होंगे और उन्हें
प्रैगनेंट कर रहे होंगे।
- लेकिन ..गौरी भी.. अचानक मुझे लगता है किसी ने मेरे मुंह पर एक तमाचा जड़ दिया है या बीच चौराहे पर नंगा कर दिया है.. ये सब मेरे साथ ही क्यूं होता है।
मैं एकाएक चुप हो गया हूं।
- देखो दीप मैंने तुम्हें ये बात जानबूझ कर बतायी ताकि तुम इन इन्हीबीशंस से मुक्त हो कर अपने बारे में भी कुछ सोच सको। अब तुम ये भी तो देखो कि गौरी अब
तुम्हारे प्रति पूरी तरह ईमानदार है बल्कि गौरी ने खुद ही शिल्पा को बताया था कि वह तुम्हें पा कर बहुत सुखी है। खुश है और शी इज रीयली प्राउड आफ यू। वह
शिल्पा को बता रही थी कि वह एक रात भी तुम्हारे बिना नहीं सो सकती। तो भाई, अब तुम अपने इंडियन सैंटीमेंटस की पुड़िया बना कर दफन करो और अपनी भी ज़िंदगी को
एंजाय करो। वैसे बुरा मन मानना, गौरी ने तो तुमसे शादी से पहले के रिलेशंस के बारे में कुछ नहीं पूछा होगा।
मैं झेंपी हँसी हँसता हूं - पूछ भी लेती तो उसे कुछ मिलने वाला नहीं था। गौरी से पहले तो मैंने किसी लड़की को चूमा तक नहीं था। बिस्तर पर मैं कितना अनाड़ी
था, ये तो गौरी को पहली ही रात पता चल गया था।
- इसके बावजूद वह तुम्हारे बिना एक रात भी सोने के लिए तैयार नहीं है। इसका कोई तो मतलब होगा ही सही।
- तुम गौरी पर पूरा भरोसा रखो और उसके मन में इस बात के लिए कोई गिल्ट मत आने दो। अव्वल तो तुम बदला ले नहीं सकते। लेना भी चाहो तो अपना ही नुक्सान करोगे।
खैर, अब तुम मन पर बोझ मत रखो। बेईमानी करने को जी करता है तो जरूर करो लेकिन फॉर गॉड सेक, अपनी इस रोनी सूरत से छुटकारा पाओ। रियली इट इज किलिंग यू। ओके!!
टेक केयर ऑफ यूअरसेल्फ।
शिशिर बेशक इतनी आसानी से सारी बातें कह गया था लेकिन मेरे लिए ये सारी बातें इतनी सहजता से ले पाना इतना आसान नहीं है। शिशिर जिस मिट्टी का बना हुआ है,
उसने शिल्पा की सच्चाई जानने के बावजूद उसे न केवल स्वीकार कर रखा है बल्कि अपने तरीके से उसे ब्लैकमेल भी कर रहा है और रिश्तों में बेईमानी भी कर रहा है।
ये तीनों बातें ही मुझसे नहीं हो पा रहीं। न मैं गौरी के अतीत का सच पचा पा रहा हूं, न उसे ब्लैकमेल कर पाऊंगा और न ही इन सारी बातें के बावजूद पति-पत्नी के
रिश्ते में बेईमानी ही कर पाऊंगा। हालांकि गौरी मेरी बगल में लेटी हुई है और मेरा हाथ उसके नंगे सीने पर है, वह रोज ऐसे ही सोती है, मेरे मन में उसके प्रति
कोई भी कोमल भाव नहीं उपज रहा। आज भी उसकी सैक्स की बहुत इच्छा थी लेकिन मैंने मना कर दिया कि इस समय मूड नहीं है। बाद में रात को देखेंगे। अक्सर ऐसा भी हो
जाता है। कई बार उसका भी मूड नहीं होने पर हम बाद के लिए तय करके सो जाते हैं और बाद में नींद खुलने पर इस रिचुअल को भी निभा लेते हैं। अब यह रिचुअल ही तो
रहा है। न हमारे पास एक दूसरे के सुख दुख के लिए समय है न हम अपनी पर्सनल बातें ही एक दूसरे से शेयर कर पाते हैं। डिनर या लंच हम एक साथ छुट्टी के दिनों में
ही ले पाते हैं और एक दूसरे के प्रति पूरा आकर्षण खो चुके हैं। कम से कम मुझे तो ऐसा ही लगता है। मुझे पता है कि गौरी का मेरे प्रति आकर्षण का एक और एकमात्र
कारण भरपूर सैक्स है और उसके बिना उसे नींद नही आती। मेरी मजबूरी है कि मुझे खाली पेट नींद नहीं आती। कई बार हमारा झगड़ा भी हो जाता है और हम दोनों ही किसी
नतीजे पर पहुंचे बिना एक दूसरे से रूठ कर एक अलग-अलग सो जाते हैं लेकिन नींद दोनों को ही नहीं आती। गौरी को पता है मैं खाली पेट सो ही नहीं सकता और मुझे पता
है जब तक उसे उसका टॉनिक न मिल जाये, वह करवटें बदलती रहेगी। कभी उठ कर बत्ती जलायेगी, कभी दूसरे कमरे में जायेगी, कोई किताब पढ़ने का नाटक करेगी या बार-बार
मुझे सुनाते हुए तीखी बातें करेगी। उसके ये नाटक देर तक चलते रहेंगे। वैसे तो मैं भी नींद न आने के कारण करवटें ही बदलता रहूंगा। तब मान मनौव्वल का सिलसिला
शुरू होगा और बेशक रोते धोते ही सही, कम्बख्त सैक्स भी ऐसी नाराज़गी भरी रातों में कुछ ज्यादा ही तबीयत से भोगा जाता है।
अब शिशिर की बातें लगातार मन को मथे जा रही हैं।
गौरी के इसी सीने पर किसी और का भी हाथ रहा होगा। गौरी किसी और से भी इसी तरह हर रोज सैक्स की, भरपूर सैक्स की मांग करती होगी और खूब एंजाय करने के बाद सोती
होगी। आज यह मेरी बीवी बन कर मेरे साथ इस तरह अधनंगी लेटी हुई है, किसी और के साथ भी लेटती रही होगी। छी छी। मुझे ही ये सब क्यों झेलना पड़ता है!! मैं ही
क्यों हर बार रिसीविंग एंड पर होता हूं। क्या मैं भी शिशिर की तरह गौरी से बेईमानी करना शुरू कर दूं या उसे ब्लैकमेल करना शुरू कर दूं। ये दोनों ही काम
मुझसे नहीं होंगे और जिस काम के लिए शिशिर ने मुझे मना किया है, मैं वही करता रहूंगा। लगातार कुढ़ता रहूंगा और अपनी सेहत का फलूदा बनाता रहूंगा।
मेरा मन काम से उचटने लगा है। नतीजा यह हुआ है कि मैं घुटन महसूस करने लगा हूं। मेरी बेचैनी बढ़ने लगी है। मैं पहले भी अकेला था अब और अकेला होता चला गया
हूं। इसी दौर में मैंने बाहर एकाध जगह काम की तलाश की है। काम बहुत हैं और मेरी लियाकत और ट्रेनिंग के अनुरूप हैं, लेकिन दिक्कतें हैं कि हांडा परिवार से
कहा कैसे जाये और दूसरे वर्क परमिट को हासिल किया जाये।
कई बार इच्छा भी होती है कि मैं भी पैसे के इस समंदर में से अपनी मुट्ठियों में भर कर थोड़े बहुत पाउंड निकाल लूं लेकिन मन नहीं माना। यह कोई बहुत इज्जतदार
सिलसिला तो नहीं ही है। हम यहां बेशक बेगारी की जिंदगी जी रहे हैं और हेरा फेरी जैसी टुच्ची हरकतों से इस जलालत के बदले कुछ ही तो भरपाई हो पायेगी। हालांकि
कई बार गौरी मेरी बेचैनी और छटपटाहट को समझने की कोशिश करती है लेकिन या तो उसके सामने भी बंधन हैं या फिर जिस तरह की उसकी परवरिश है, वहां इन सब चीजों के
लिए कोई जगह ही नहीं है। हम पांच जवान, पढ़े-लिखे लड़के उस घर के जवाईं हैं, बेशक घर जवाईं लेकिन हैं तो उस खानदान में सबसे पढ़े लिखे, लेकिन हमें कभी भी घर
के सदस्य की तरह ट्रीटमेंट नहीं मिलता। मैं इस घर में कभी भी, एक दिन के लिए भी, न तो कभी सहज हो पाया हूं और न ही मेरी नाराजगी की, उदासी की वजह ही किसी ने
पूछने की ज़रूरत ही समझी है।
दारजी और नंदू के पत्र आये हैं। आखिर गुड्डी की शादी कर ही दी गयी।लिखा है नंदू ने - टीचर्स की हड़ताल की वज़ह से मार्च में ही पता चल गया था कि बीए की
परीक्षाएं अप्रैल में नहीं हो पायेंगी। गुड्डी ने दारजी से भी कहा था और मेरे ज़रिये भी दारजी कहलवाया था कि वह शादी से इनकार नहीं करती लेकिन कम से कम उसके
इम्तिहान तो हो जाने दें लेकिन दारजी ने साफ साफ कह दिया - शादी की सारी तैयारियां हो चुकी हैं अब तारीख नहीं बदलेंगे।
वही हुआ और गुड्डी इतनी कोशिशों के बावजूद बीए की परीक्षा नहीं दे पायी। मुझे नहीं लगता कि गुड्डी की ससुराल वाले इतने उदार होंगे कि उसे इम्तिहान में बैठने
दें। वैसे मैं खुद गुड्डी के घरवाले से मिल कर उसे समझाने की कोशिश करूंगा। शादी ठीक-ठाक हो गयी है। बेशक तेरी गैर हाजरी में मैंने गुड्डी के बड़े भाई का
फर्ज निभाया है लेकिन तू होता तो और ही बात होती। तेरी सलाह के अनुसार मैंने सारे पेमेंट्स कर दिये थे और दारजी तक यह खबर दे दी थी कि जो कुछ भी खरीदना है
या लेनदेन करना है, मुझे बता दें। मैं कर दूंगा। मैंने उन्हें पटा लिया था कि दीप ने गुड्डी की शादी के लिए जो ड्राफ्ट भेजा है, वह पाउंड में है और उसे
सिर्फ इन्टरनेशनल खाते में ही जमा किया जा सकता है। दारजी झांसे में आ गये और सारे खर्चे मेरी मार्फत ही कराये। मैं इस तरीके से काफी फालतू खर्च कम करा सका।
दारजी और गुड्डी के खत भी आगे पीछे पहुंच ही रहे होंगे।
नंदू के खत के साथ-साथ गुड्डी का तो नहीं पर दारजी का खत जरूर मिला है। इसमें भी गुड्डी की शादी की वही सारी बातें लिखी हैं जो नंदू ने लिखी हैं। अलबत्ता
दारजी की निगाह में दूसरी चीजें ज्यादा अहमियत रखती हैं, वही उन्होंने लिखी हैं। मेरे भेजे गये पैसों से बिरादरी में उनकी नाक ऊंची होना, शादी धूमधाम से
होना, फिर भी काफी कर्जा हो जाना वगैरह वगैरह। उन्होंने इस बात का एक बार भी जिक्र नहीं किया है कि गुड्डी उनकी ज़िद के कारण बीए होते होते रह गयी या वे इस
बात की कोशिश ही करेंगे कि गुड्डी के इम्तहानों के लिए उसे मायके ही बुला लेंगे। सारे खत में दारजी ने अपने वही पुराने राग अलापे हैं। इस बात का भी कोई
जिक्र नहीं है कि ये सब मेरे कारण ही हो पाया है और कि अगर मैं वहां होता तो कितना अच्छा होता।
दारजी का पत्र पढ़ कर मैंने एक तरफ रख दिया है।
अलबत्ता अगर गुड्डी का पत्र आ जाता तो तसल्ली रहती।
इन दिनों खासा परेशान चल रहा हू। न घर पर चैन मिलता है न स्टोर्स में। समझ में नहीं आता, मुझे ये क्या होता जा रहा है। अगर कोई बंबई का कोई पुराना परिचित
मुझे देखे तो पहचान ही न पाये, मैं वही अनुशासित और कर्मठ गगनदीप हूं जो अपने सारे काम खुद करता था और कायदे से, सफाई से किया करता था। जब तक बंबई में था,
मुझे ज़िंदगी में जरा सी भी अव्यवस्था पसंद नहीं थी और गंदगी से तो जैसे मुझे एलर्जी थी। अब यहां कितना आलसी हो गया हूं। चीजें टलती रहती हैं। अब न तो उतना
चुस्त रहा हूं और न ही सफाई पसंद ही। अब तो शेव करने में भी आलस आने लगा है। कई बार एक-एक हफ्ता शेव भी नहीं करता। गौरी ने कई बार टोका तो दाढ़ी ही बढ़ानी
शुरुकर दी है। मैं अब ऐसे सभी काम करता हूं जो गौरी को पसंद नहीं हैं। छुट्टी के दिन गौरी की बहुत इच्छा होती है, कहीं लम्बी ड्राइव पर चलें, किसी के घर
चलें या किसी को बुला ही लें, मैं तीनों ही काम टालता हूं।
वैसे भी जब से आया हूं, गौरी पीछे पड़ी है, घर में दो गाड़ियां खड़ी हैं, कम से कम ड्राइविंग ही सीख लो। मैंने भी कसम खा रखी है कि ड्राइविंग तो नहीं ही
सीखूंगा, भले ही पूरी ज़िंदगी पैदल ही चलना पड़े। अभी तक गौरी और मेरे बीच इस बात पर शीत युद्ध चल रहा है कि मै उससे पैसे मांगूंगा नहीं। वह देती नहीं और
मैं मांगता नहीं। एक बार शिशिर ने कहा भी था कि तुम्हीं क्यों ये सारे त्याग करने पर तुले हो। क्यों नहीं अपनी ज़रूरत के पैसे गौरी से मांगते या गौरी के
कहने पर पूल मनी से उठा लेते। आखिर कोई कब तक अपनी ज़रूरतें दबाये रह सकता है।
गौरी को जब पता चला तो उसने उंह करके मुंह बिचकाया था - अपनी गगनदीप जानें। मेरा पांच सात हज़ार पाउंड का जेब खर्च मुझे मिलना ही चाहिये।
जब शिशिर को यह बात पता चली तो वह हँसा था - यार, तुम्हें समझना बहुत मुश्किल है। भला ये सब तुम सब किस लिए कर कर रहे हो। अगर तुम एक्सपेरिमेंट कर रहे हो तो
ठीक है। अगर तुम गौरी या हांडा ग्रुप को इम्प्रेस करना चाहते हो तो तुम बहुत बड़ी गलती कर रहे हो। वे तो ये मान लेंगे कि उन्हें कितना अच्छा दामाद मिल गया
है जो ससुराल का एक पैसा भी लेना या खर्च करना हराम समझता है। उनके लिए इससे अच्छी और कौन सी बात हो सकती है। दूसरे वे ये भी मान कर चल सकते हैं कि वे कैसे
कंगले को अपना दामाद बना कर लाये हैं जो अंडरग्राउंड के चालीस पैंस बचाने के लिए चालीस मिनट तक पैदल चलता है और ये नहीं देखता कि इन चालीस मिनटों को अपने
कारोबार में लगा कर कितनी तरक्की कर सकता था। इससे तुम अपनी क्या इमेज बनाओगे, ज़रा यह भी देख लेना।
- मुझे किसी की भी परवाह नहीं है। मेरी तो आजकल ये हालत है कि मैं अपने बारे में कुछ नहीं सोच पा रहा हूं।
गुड्डी का खत आया है। सिर्फ तीन लाइन का। समझ नहीं पा रहा हं,झ जब उसके सामने खुल कर खत लिखने की आज़ादी नहीं है तो उसने ये पत्र भी क्यों लिखा! बेशक पत्र
तीन ही पंक्तियों का है लेकिन मैं उन बीस पच्चीस शब्दों के पीछे छुपी पीड़ा को साफ साफ पढ़ पा रहा हूं।
लिखा है उसने
- वीरजी,
इस वैसाखी के दिन मेरी डोली विदा होने के साथ ही मेरी ज़िंदगी में कई नये रिश्ते जुड़ गये हैं। ये सारे रिश्ते ही अब मेरा वर्तमान और भविष्य होंगे। मुझे
अफ़सोस है कि मैं आपको दिये कई वचन पूरे न कर सकी। मैं अपने घर, नये माहौल और नये रिश्तों की गहमागहमी में बहुत खुश हूं। मेरा दुर्भाग्य कि मैं आपको अपनी
शादी में भी न बुला सकी। मेरे और उनके लिए भेजे गये गिफ्ट हमें मिल गये थे और हमें बहुत पसंद आये हैं।
मेरी तरफ से किसी भी किस्म की चिंता न करें।
आपकी छोटी बहन,
हरप्रीत कौर
(अब नये घर में यही मेरा नया नाम है।)
इस पत्र से तो यही लगता है कि गुड्डी ने खुद को हालात के सामने पूरी तरह सरंडर कर दिया है नहीं तो भला ऐसे कैसे हो सकता था कि वह इतना फार्मल और शुष्क खबर
देने वाला ऐसा खत लिखती और अपना पता भी न लिखती।
मैं भी क्या करूं गुड्डी! एक बार फिर तुझसे भी माफी मांग लेता हूं कि मैं तेरे लिए इस जनम में कुछ भी नहीं कर पाया। वो जो तू अपने बड़े भाई की कद काठी,
पर्सनैलिटी और लाइफ स्टाइल देख कर मुग्ध हो गयी थी और लगे हाथों मुझे अपना आदर्श बना लिया था, मैं तुझे कैसे बताऊं गुड्डी कि मैं एक बार फिर यहां अपनी लड़ाई
हार चुका हूं। अब तो मेरी ख्दा की जीने की इच्छा ही मर गयी है। तुझे मैं बता नहीं सकता कि मैं यहां अपने दिन कैसे काट रहा हूं। तेरे पास फिर भी सगे लोग तो
हैं, बेशक उनसे अपनापन न मिले, मैं तो कितना अकेला हूं यहां और खालीपन की ज़िंदगी किसी तरह जी रहा हूं। मैं ये बातें गुड्डी को लिख भी तो नहीं सकता।
कल रात गौरी से तीखी नोंक झोंक हो गयी थी। बात वही थी। न मैं पैसे मांगूंगा और न उसे इस बात का ख्याल आयेगा। हम दोनों को एक शादी में जाना था। गौरी ने मुझे
सुबह बता दिया था कि शादी में जाना है। कोई अच्छा सा गिफ्ट ले कर रख लेना। मैं वहीं तुम्हारे पास आ जाऊंगी। सीधे चले चलेंगे। जब गौरी ने यह बात कही थी तो
उसे चाहिये था कि मेरे स्वभाव और मेरी जेब के मिज़ाज को जानते हुए बता भी देती कि कितने तक का गिफ्ट खरीदना है और कहती - ये रहे पैसे। उसने दोनों ही काम
नहीं किये थे। अब मुझे क्या पड़ी थी कि उससे पैसे मांगता कि गिफ्ट के लिए पैसे दे दो। जब हांडा ग्रुप घर खर्च के सारे पैसे तुम्हें ही देता है तो तुम्हीं
संभालो ये सारे मामले। फिलहाल तो मैं ठनठन गोपाल हूं और मैं किसी को गिफ्ट देने के लिए गौरी से पैसे मांगने से रहा।
शाप बंद हो जाने के बाद गौरी जब शादी के रिसेप्शन में जाने के लिए आयी तो कार में मेरे बैठने के साथ ही उसने पूछा - तुम्हारे हाथ खाली हैं, गिफ्ट कहां है?
- नहीं ले पाया।
- क्यों, कहा तो था मैंने, उसने गाड़ी बीच में ही रोक दी है।
- बताया न, नहीं ले पाया, बस।
- लेकिन कोई वज़ह तो होगी, न लेने की। अब सारी शॉप्स बंद हो गयी हैं। क्या शादी में खाली हाथ जायेंगे। दीप, तुम भी कई बार .. वह झल्ला रही है।
- गौरी, इस तरह से नाराज़ होने की कोई ज़रूरत नहीं है। न चाहते हुए भी मेरा पारा गर्म होने लगा है। तुम्हें अच्छी तरह से पता है, मेरे पास पैसों का कोई
इंतज़ाम नहीं है। और तुम्हें यह भी पता है कि न मैं घर से बिना तुम्हारे कहे पैसे उठाता हूं और न ही स्टोर्स में से अपने पर्सनल काम के लिए कैशियर से वाउचर
ही बनवाता हूं। गिफ्ट के लिए कहते समय तुम्हें इस बात का ख्याल रखना चाहिये था।
- यू आर ए लिमिट ! गौरी ज़ोर से चीखी है। मैं तो तंग आ गयी हूं तुम्हारे इन कानूनों से। मैं ये नहीं करूंगा और मैं वो नहीं करूंगा। आखिर तुम्हें हर बार ये
जतलाने की ज़रूरत क्यों पड़ती है कि तुम्हारे पास पैसे नहीं हैं। क्यों बार-बार तुम यही टॉपिक छेड़ देते हो। आखिर मैं भी क्या करूं? क्रेडिट कार्ड तुम्हें
चाहिये नहीं, कैश तुम उठाओगे नहीं और मांगोगे भी नहीं, बस, ताने मारने का कोई मौका छोड़ोगे नहीं।
- देखो गौरी, इस तरह से शोर मचाने की ज़रूरत नहीं है। मैं फिर भी ख्दा को शांत रखे हुए हूं - जहां तक पैसों या किसी भी चीज को लेकर मेरे प्रिंसिपल्स की बात
है, तुम कई बार मेरे मुंह से सुन चुकी हो कि मैं अपने आप कहीं से भी पैसे नहीं उठाउं€गा। काम होता है या नहीं होता, मेरी जिम्मेवारी नहीं है।
- मैं तुमसे कितनी बार कह चुकी हूं, डीयर कि धहमें जो पैसे दिये जाते हैं वे हम दोनों के लिए हैं और सांझे हैं। हम दोनों के कॉमन पूल में रखे रहते हैं। तुम
उसमें से लेते क्यों नहीं हो। अब तो तुम नये नहीं हो। न हमारे रिश्ते इतने फार्मल हैं कि आपस में एक दूसरे से पूछना पड़े कि ये करना है और वो करना हैं। अब
तुम्हारी ज़रा सी जिद की वज़ह से गिफ्ट रह गया न.. अब जा कर अपनी शॉप से कोई बुके ही ले जाना पड़ेगा।
- हमारे आपसी रिश्तों की बात रहने दो, बाकी, जहां तक पैसों की बात है तो मैं अभी भी अपनी बात पर टिका हुआ हूं कि मैं आज तक हांडा ग्रुप का सिस्टम समझ नहीं
पाया कि मेरी हैसियत क्या है इस घर में !!
- अब फिर लगे कोसने तुम हांडा ग्रुप को। इसी ग्रुप की वजह से तुम...।
- डोंट क्रॉस यूअर लिमिट गौरी। मुझे भी गुस्सा आ गया है - पहली बात तो यह कि मैं वहां सड़क पर नहीं बैठा था कि मेरे पास यहां रहने खाने को नहीं है, कोई मुझे
शरण दे दे और दूसरी बात कि बंबई में पहली ही मुलाकात में ही तुम्हारे सामने ही मुझसे दस तरह के झूठ बोले गये थे। मुझे पता होता कि यहां आ कर मुझे मुफ्त की
सैल्समैनी ही करनी है तो मैं दस बार सोचता।
- दीप, तुम ये सारी बातें मुझसे क्यों कर रहे हो। आखिर क्या कमी है तुम्हें यहां..मजे से रह रहे हो और शानदार स्टोर्स के अकेले कर्त्ताधर्त्ता हो। अब
तुम्हीं पैसे न लेना चाहो तो कोई क्या करे!!
- पैसे देने का कोई तरीका भी होता है। अब मैं रहूं यहां और पैसे इंडिया में अपने घर से मंगाऊं, ये तो नहीं हो सकता।
- तुम्हें किसने मना किया है पैसे लेने से। सारे दामाद कॉमन पूल से ले ही रहे हैं और क्रेडिट कार्ड से भी खूब खर्च करते रहते हैं। कैश भी उठाते रहते हैं।
कभी कोई उनसे पूछता भी नहीं कि कहां खर्च किये और क्यों किये। किसी को खराब नहीं लगता। तुम्हारी समझ में ही यह बात नहीं आती। तुम्हें किसने मना किया है पैसे
लेने से।
- मेरे अपने कुछ उसूल हैं।
- तो उन्हीं उसूलों का ड्रिंक बना कर दिन रात पीते रहो। सारा मूड ही चौपट कर दिया। गौरी झल्लाई है।
- कभी मेरे मूड की भी परवाह कर लिया करो। मैंने भी कह ही दिया है।
- तुमसे तो बात करना भी मुश्किल है।
कार में हुई इस नोंक-झोंक का असर पूरे रास्ते में और बाद में पार्टी में भी रहा है। शिशिर ने एक किनारे ले जा कर पूछा है - आज तो दोनों तरफ ही फुटबाल फूले
हुए हैं। लगता है, काफी लम्बा मैच खेला गया है।
मैं भरा पड़ा हूं। हालांकि मुझे अफसोस भी हो रहा है कि मैं पहली बार गौरी से इतने ज़ोर से बोला और उससे ऐसी बातें कीं जो मुझे ही छोटा बनाती हैं। लेकिन मैं
जानता हूं, मेरी ये झल्लाहट सिर्फ पैसों के लिए या गिफ्ट के लिए नहीं है। इसके पीछे मुझसे बोले गये सारे झूठ ही काम कर रहे हैं। जब से शिशिर ने मुझे गौरी के
अबॉर्शन के बारे में बताया है, मैं तब से भरा पड़ा था। आज गुस्सा निकला भी तो कितनी मामूली बात पर। हालांकि मैं शिशिर के सामने मैं खुद को खोलना नहीं चाहता
लेकिन उसके सामने कुछ भी छुपाना मेरे लिए बहुत मुश्किल हो जाता है।
मैंने उसे पूरा किस्सा सुना दिया है। शिशिर ने फिर मुझे ही डांटा है
- तुम्हें मैं कितनी बार समझा चुका हूं कि अब तो तुम्हें यहां रहते इतना अरसा हो गया है। अब तक तो तुम्हें हांडा ग्रुप से अपने लायक एक आध लाख पाउंड अलग कर
ही लेने चाहिये थे। इतना बड़ा स्टोर्स संभालते हो और तुम्हारी जेब में दस पेंस का सिक्का भी खोजे नहीं मिलेगा। मेरी मानो, इन बातों की वजह से गौरी से लड़ने
झगड़ने की ज़रूरत नहीं है। थोड़ी डिप्लोमेसी भी सीखो। चोट कहीं और करनी चाहिये तुम्हें और एनर्जी यहां वेस्ट कर रहे हो। खैर, ये भी ठीक हुआ कि तुमने गौरी से
ही सही, अपने मन की बात कही तो सही। अब देखें, ये बातें कितनी दूर तक जाती हैं।
इस बीच मेरी छटपटाहट बहुत बढ़ चुकी है। गौरी से अबोला चल रहा है। न वह अपने किये के लिए शर्मिंदा है, न मैं यह मानने के लिए तैयार हूं कि मैं गलत हूं। अब तो
वह भी बिना सैक्स के सो रही है और मैं भी, जो भी मिलता है, खा लेता हूं। दोनों ही एक दूसरे से काफी दूर होते जा रहे हैं। मैं भी अब चाहने लगा हूं, ये सब
यहीं खत्म हो जाये तो पिंड छूटे। किसी तरह वापिस लौटा जा सकता तो ठीक रहता। काम की तरफ ध्यान देना मैंने कब से छोड़ दिया है। भाड़ में जायें सब। मैं ही
हांडा परिवार की दौलत बढ़ाने के लिए क्यों दिन रात खटता रहूं। मेरी सेहत भी आजकल खराब चल रही है। मैं बेशक इस बाबत किसी से बात नहीं करता और किसी से कोई
शिकायत भी नहीं करता लेकिन बात अब हांडा परिवार के मुखिया तक पहुंच ही गयी है।
उन तक बात पहुंचाने के पीछे गौरी का नहीं, शिशिर का ही हाथ लगता है।
शिशिर ने शिल्पा से कहा होगा और शिल्पा ने अपने पापा तक बात पहुंचायी होगी कि ज़रा ज़रा सी बात पर गौरी दीप से लड़ पड़ती है और बार बार उस बेचारे का अपमान
करती रहती है। उसी ने पापा से कहा होगा कि आप लोग बीच में पड़ कर मामले को सुलझायें वरना अच्छा खासा दामाद अपना दिमाग खराब कर बैठेगा। शायद उसने उन्हें पैसे
न लेने के बारे में मेरी ज़िद के बारे में भी कहा हो। बताया होगा - अगर यही हाल रहा तो आप लोग एक अच्छे भले आदमी को इस तरह से मार डालेंगे। इसमें नुक्सान
आपका और गौरी का ही है। पता नहीं, उन्हें ये बात क्लिक कर गयी होगी, इसीलिए गौरी के शॉप पर जाने के बाद पापा मुझसे मिलने आये हैं।
यह इन दो ढाई साल में पहली बार हो रहा है कि मैं और मेरे ससुर इस तरह अकेले और इन्फार्मली बात कर रहे हैं। उन्होंने मेरी सेहत के बारे में पूछा है। मेरी
दिनचर्या के बारे में पूछा है और मेरी उदासी का कारण जानना चाहा है। पहले तो मैं टालता हूं। उनसे आंखें मिलाने से भी बचता हूं लेकिन जब उन्होंने बहुत ज़ोर
दिया है तो मैं फट पड़ा हूं। इतने अरसे से मैं घुट रहा था। कितना कुछ है जो मैं किसी से कहना चाह रहा था लेकिन आज तक कह नहीं पाया हूं और न ही किसी ने मेरे
कंधे पर हाथ ही रखा है। पहले तो वे चुपचाप मेरी बातें ध्यान से सुनते रहे। मैंने उन्हें विस्तार से सारी बातें बतायी हैं। बंबई में हुई पहली मुलाकात से लेकर
आज तक कि किस तरह मेरे साथ एक के बाद एक झूठ बोले गये और एक तरह से झांसा दे कर मुझे यहां लाया गया है। मैंने उन्हें गौरी की पढ़ाई के बारे में बोले गये झूठ
के बारे में भी बताया लेकिन उसके एबार्शन वाली बात गोल कर गया। यह एक पिता के साथ ज्यादती होती। जब उन्होंने देखा कि मैं जो कुछ कहना चाहता था, कह चुका हूं
तो वे धीरे से बोले हैं
- तुम्हारे साथ बहुत जुल्म हुआ है बेटे। मुझे नहीं मालूम था कि तुम अपने सीने पर इतने दिनों से इतना बोझ लिये लिये घूम रहे हो। तुम अगर मेरे पास पहले ही आ
जाते तो यहां तक नौबत ही न आती। इस तरह तो तुम्हारी सेहत खराब हो जायेगी। तुम चिंता मत करो। हमें एक मौका और दो। तुम्हें अब किसी भी बात की शिकायत नहीं
रहेगी। गौरी ने भी कभी ज़िक्र नहीं किया और न ही चमन वगैरह ने ही बताया कि तुम्हारी क्या बातें हुई थीं। बल्कि हम तो शॉप में और हांडा ग्रुप में तुम्हारी
दिलचस्पी देख कर बहुत खुश थे। आज तक किसी भी दामाद ने हमारे ऐस्टैब्लिशमेंट में इतनी दिलचस्पी नहीं ली थी। बेहतर यही होगा कि तुम अब इस हादसे को भूल जाओ और
हमें एक मौका और दो। मैं गौरी को समझा दूंगा। तुम्हारे लिए एक अच्छी खबर है कि तुम्हारी शॉप के प्रॉफिट भी इस दौरान बहुत बढ़े हैं। सब तुम्हारी मेहनत का
नतीजा है। तुम्हें इसका ईनाम मिलना ही चाहिये। एक काम करते हैं, गौरी और तुम्हारे लिए पूरे योरोप की ट्रिप एरेंज करते हैं। थोड़ा घूम फिर आओ। थकान भी दूर हो
जायेगी और तुम दोनों में पैचअप भी हो जायेगा। जाओ, एंजाय करो और एक महीने से पहले अपनी शक्ल हमें मत दिखाना। जाने का सारा इंंतजाम हो जायेगा। गौरी भी खुश हो
जायेगी कि तुम्हारे बहाने उसे भी घूमने फिरने का मौका मिल रहा है। जाते जाते वे मेरे हाथ में फिर एक बड़ा सा लिफाफा दे गये हैं - अपने लिए शॉपिंग कर लेना।
उन्होंने मेरा कंधा दबाया है - देखो इनकार मत करना। मुझे खराब लगेगा। और सुनो, ये पैसे गौरी को दिये जाने वाले पैसों से अलग हैं इसलिए इनके बारे में गौरी को
बताने की जरूरत नहीं है।
मैं समझ रहा हूं कि ये रिश्वत है मुझे शांत करने की, लेकिन अब वे खुद पैच अप का प्रस्ताव ले कर आये हैं तो एक दम इनकार करना भी ठीक नहीं है।
मुझे हनीमून के बाद आज पहली बार एक साथ इतने पैसे दिये जा रहे हैं।
जब शिशिर को इस बारे में मैंने बताया तो वह खुशी से उछल पड़ा - अब आया न उं€ट पहाड़ के नीचे। ये सब मेरी ही शरारत का नतीजा है कि तुमने इतना बड़ा हाथ मारा
है। अब बीच बीच में इस तरह के नाटक करते रहोगे तो सुखी रहोगे।
और इस तरह मेरे सामने ये चुग्गा डाल दिया गया है। हालांकि गौरी ने सौरी कह दिया है लेकिन मलाल की बारीक सी रेखा भी उसके चेहरे पर नहीं है। जिस तरह की बातें
उसने की थीं, उससे मेरी मानसिक अशांति इतनी जल्दी दूर नहीं होगी। वैसे भी जब भी मेरे सामने पड़ती है, मुझे उसके अतीत का भूत सताने लगता है और मैं बेचैन होने
लगता हूं। उसके प्रति मेरे स्नेह की बेलें सूखती चली जा रही हैं।
लेकिन मेरी ये खुशी भी कितनी अल्पजीवी है। हांडा ग्रुप से पैसे मिलने के अगले दिन ही नंदू का पत्र आ गया है। पत्र वाकई परेशानी में डालने वाला है। उसने लिखा
है कि गुड्डी की ससुराल में उसे दहेज के लिए परेशान किया जा रहा है। दारजी उसके पास बहुत परेशानी में गये थे और उसे बता रहे थे कि गुड्डी की ससुराल वालों ने
न तो उसे इम्तिहान देने दिये और न ही वे उसे मायके ही आने देते हैं। ऊपर से दहेज के लिए सता रहे हैं कि तुम्हारे लंदन वाले भाई का क्या फायदा हुआ। एक लाख की
मांग रखी है उन्होंने।
नंदू ने लिखा है - ये पैसे तो मैं भी दे दूं लेकिन संकट ये है कि उनका मुंह एक बार खुल गया तो वे अक्सर मांग करते रहेंगे और न मिलने पर गुड्डी को सतायेंगे।
बोलो, क्या करूं। हो सके तो फोन कर देना।
हमारे दारजी ने तो जैसे पूरे परिवार को ही तबाह करने की कसम खा रखी है। मुझे बेघर करके भी उन्हें चैन नहीं था, अब उस मासूम की जान ले कर ही छोड़ेंगे। उन्हें
लाख कहा कि गुड्डी की शादी के मामले में जल्दीबाजी मत करो लेकिन दारजी अगर किसी की बात मान लें तो फिर बात ही क्या !! अब पैसे दे भी दें तो इस बात की क्या
गारंटी कि वे लोग अब गुड्डी को सताना बंद कर देंगे। अब तो उनकी निगाह लंदन वाले भाई पर है। इतनी आसानी से थोड़े ही छोड़ेंगे। नंदू से फोन पर बात करके देखता
हूं।
नंदू ने तसल्ली दी है कि वैसे घबराने की कोई जरूरत नहीं है। दारजी ने कुछ ज्यादा ही बढ़ा- चढ़ा कर बात कही थी। वैसे वे लोग गुड्डृाú पर दबाव बनाये हुए हैं
कि कुछ तो लाओ, लेकिन दारजी के पास कुछ हो तो दें। मैं उन्हें बता दूंगा कि तुझसे बात हो गयी है। तू घबरा मत। मैं सब संभाल लूंगा।
नंदू ने बेशक तसल्ली दे दी है लेकिन मैं ही जानता हूं कि इस वक्त गुड्डी बेचारी पर क्या गुज़र रही होगी। उसने तो मुझे पत्र लिखना भी बंद कर दिया है ताकि
उसकी तकलीफों की तत्ती हवा भी मुझ तक न पहुंचे। इस बारे में शिशिर से बात करके देखनी चाहिये, वही कोई राह सुझायेगा। मेरा तो दिमाग काम नहीं कर रहा है।
शिशिर ने पूरी बात सुनी है। उसका कहना है कि वैसे तो यहां से इस तरह के नाज़ुक संबंधों का निर्वाह कर पाना बहुत मुश्किल है, क्योंकि यहां से तुम कुछ भी करो,
तुम्हारे दारजी सारे कामों पर पानी फेरने के लिए वहां बैठे हुए हैं। दूसरे, तुम्हें फीडबैक आधा अधूरा और इतनी देर से मिलेगा कि तब तक वहां कोई और डेवलेपमेंट
हो चुका होगा और तुम्हें पता भी नहीं चल पायेगा। फिर भी, यह बहन की ससुराल का मामला है। ज़रा संभल कर काम करना होगा और फिर गुड्डी का भी देखना होगा। उसे भी
इस तरह से उन जंगलियों के बीच अकेला भी नहीं छोड़ा जा सकता। उसकी सुख शांति में तुम्हारा भी योगदान होगा ही। वैसे, थोड़ा इंतज़ार कर लेने में कोई हर्ज़ नहीं
है।
उसी की सलाह पर मैं नंदू को फिर फोन करता हूं और बताता हूं कि मैं पचास हजार रुपये के बराबर पाउंड भिजवा रहा हूं। कैश कराके दारजी तक पहुंचा देना। बस दारजी
ये देख लें कि वे लोग ये पैसे देख कर बार बार मांग न करने लगें और कहीं इसके लिए गुड्डी को सतायें नहीं। नंदू को यह भी बता दिया है मैंने कि मैं महीने भर की
ट्रिप पर रहूंगा। वैसे मैं उससे कांटैक्ट करता रहूंगा फिर भी कोई अर्जेंट मैसेज हो तो इस नम्बर पर शिशिर को दिया जा सकता है। मुझ तक बात पहुंच जायेगी।
नंदू को बेशक मैंने तसल्ली दे दी है लेकिन मेरे ही मन को तसल्ली नहीं है, फिर भी ड्राफ्ट भेज दिया है। शायद ये पैसे ही गुड्डी की ज़िंदगी में कुछ रौनक ला
पायें।
हमारी ट्रिप अच्छी रही है लेकिन मेरे दिमाग में लगातार गुड्डी ही छायी रही है। इस ट्रिप में वैसे तो हम दोनों की ही लगातार कोशिश रही कि पैच अप हो जाये और
हमारे संबंधों में जो खटास आ गयी है उसे कम किया जा सके। मैं अपनी ओर से इस ट्रिप को दुखद नहीं बनाना चाहता। मैं भरसक नार्मल बना हुआ हूं। दिमाग में हर तरह
की परेशानियां होते हुए भी उसके सुख और आराम का पूरा ख्याल रख रहा हूं।
गौरी ने फिर जिद की है कि मैं भी क्रेडिट कार्ड बनवा लूं या उसी के कार्ड में ऐड ऑन ले लूं लेकिन इस बार भी मैंने मना कर दिया है।
हम लौट आये हैं। हम दोनों ने हालांकि आपसी संबंध नार्मल बनाये रखे हैं लेकिन मुझे नहीं लगता, जो दरार हम दोनों के बीच एक बार आ चुकी है, उसे कोई भी सीमेंट
ठीक से जोड़ पायेगा।
लौटने के बाद भी स्थितियों में कोई खास परिवर्तन नहीं हुआ है। सिर्फ बोलचाल हो रही है और हम जाहिर तौर पर किसी को भनक नहीं लगने देते कि हममें डिफरेंसेस चल
रहे हैं। जो पैसे मुझे दिये गये थे, उसमें से जो बचे हैं वे मेरे ही पास हैं। वे भी इतने हैं कि मेरे जैसे कंजूस आदमी के लिए तो महीनों काफी
रहेंगे।
मेरी गैरहाजरी में सिर्फ अलका दीदी और देवेद्र जी का ही पत्र आया हुआ है। एक तरह से तसल्ली भी हुई है कि घर से कोई पत्र नहीं आया है, इसलिए मैं मान कर चल
रहा हूं कि वहां सब ठीक ही होगा। फिर भी शिशिर से पूछ लेता हूं कि नंदू का कोई फोन वगैरह तो नहीं आया था। वह इनकार करता है - नहीं, कोई संदेश नहीं आया तो सब
ठीक ही होना चाहिये। वैसे तुम भी एक बार नंदू को फोन करके हाल चाल ले ही लो।
मैं भी यही सोच कर नंदू से ही बात करता हूं। वह जो कुछ बताता है वह मुझे परेशान करने के लिए काफी है। नंदू ने जब ये बताया कि उसे तो आज ही मेरा भेजा एक
हज़ार पाउंड का दूसरा ड्राफ्ट भी मिल गया है तो मैं हैरान हो गया हूं। ज़रूर दूसरा ड्राफ्ट शिशिर ने ही भेजा होगा जबकि मुझे मना कर रहा था कि नंदू का कोई
फोन नहीं आया।
मैं नंदू से ही पूछता हूं - तूने शिशिर को फोन किया था क्या ?
बताता है वह - हां, किया तो था लेकिन पैसों के लाए नहीं बल्कि यह बताने के लिए कि तुझ तक यह संदेश पहुंचा दे कि ड्राफ्ट मिल गया है और कि गुड्डी की परेशानी
में कोई कमी नहीं आयी है। बेशक वह ससुराल की कोई शिकायत नहीं करती और उनके संदेशे हम तक पहुंचाती भी नहीं, लेकिन कुल मिला कर वह तकलीफ में है।
बता रहा है कि दारजी आये थे और रो रहे थे कि किन भुक्खे लोगों के घर अपनी लड़की दे दी है। बेचारी को घर भी नहीं आने देते। वही बता रहे थे किसी तरह पचास
हज़ार का इंतज़ाम हो जाता तो उनका मुंह बंद कर देते। बहुत सोचने विचारने के बाद मैंने तेरे भेजे ड्राफ्ट में से दारजी को पचास हज़ार रुपये दिये थे ताकि उनका
मुंह बंद कर सकें। मैंने तो खाली शिशिर को यही कहा था कि तुझे खबर कर दे कि पैसों को ले कर परेशान होने की जरूरत नहीं है।
पूछता हूं मैं - और पैसे भेजूं क्या?
- नहीं ज़रूरत नहीं है। ये दो हज़ार पाउंड भी तो एक लाख रुपये से ऊपर ही होते हैं। तू फिकर मत कर.. मैं हूं न....।
मैं दोहरी चिंता में पड़ गया हूं। उधर गुड्डी की परेशानी और इधर अपने आप आगे बढ़ कर शिशिर ने इतनी बड़ी रकम भेज दी है। पचास हजार की रकम कोई मामूली रकम नहीं
होती और जब मैंने पूछा तो साफ मुकर गया कि कोई फोन ही नहीं आया था। उससे इन पैसों के बारे में कुछ कह कर उसे छोटा बना सकता हूं और न ही चुप ही रह सकता हूं।
उसने इधर उधर से इंतज़ाम किया होगा। शायद अपने घर भेजे जाने वाले पैसों में ही कुछ कमी कटौती की हो उसने। उधर नंदू अपने आप मेरी जगह मेरे घर की सारी
जिम्मेवारी उठा रहा है और बिना एक भी शब्द बोले दारजी को पचास हजार थमा आता है कि उनकी लड़की को ससुराल में कोई परेशानी न हो। ये वही दारजी है जिन्होंने
गुड्डी की सिफारिश लाने पर उससे कह दिया था कि ये हमारा घरेलू मामला है, और मैं यहां अपने घर से सात समंदर पार सारी जिम्मेवारियों से मुक्त बैठा हुआ हूं।
उनके लिए न कुछ कर पा रहा हूं और न उनके सुख दुख में शामिल हो पा रहा हूं।
दारजी, नंदू, गुड्डी और अलका दीदी को लम्बे लम्बे पत्र लिखता हूं। मन पर इतना बोझ है कि जीने ही नहीं दे रहा है। गौरी अपनी दुनिया में मस्त है और मै अपने
संसार में। द बिजी कार्नर ठीक ठाक चल रहा है और अब उसमें ऐसा कुछ भी नहीं बचा जिसे चैलेंज की तरह लिया जा सके। सब कुछ रूटीन हो चला है। अब तो दिल करता है,
यहां से भी भाग जाऊं। कहीं भी दूर चला जाऊं। जहां कुछ करने के लिए नया हो, कुछ चुनौतीपूर्ण हो और जिसे करने में मज़ा आये। अलबत्ता कम्प्यूटर से ही नाता बना
हुआ है और मैं कुछ न कुछ नया करता रहता हूं।
शिशिर के लिए तो पैकेज बना कर दिये ही हैं, सुशांत की बुक शॉप्स के लिए भी प्रोग्रामिंग करके कुछ नये पैकेज बना दिये हैं जिससे उसका काम आसान हो गया है। अब
वह भी शिशिर की तरह मेरे काफी नज़दीक आ गया है और हम सुख दुख की बातें करने लगे हैं।
नंदू का फोन आया है। उसने जो खबर सुनाई है उससे मैं एकदम अवाक् रह गया हूं। नंदू ने यह क्या बता दिया है मुझे! गुड्डी की मौत की खबर सुनने से पहले मैं मर
क्यों नहीं गया! मैंने उससे दो तीन बार पूछा - क्या वह गुड्डी की ही बात कर रहा है ना ? तो नंदू ने जवाब दिया है - हां, दीप, मैं अभागा नंदू तुझे गुड्डी की
ही मौत की खबर दे रहा हूं। उन लुटेरों ने हमारी प्यारी बहन को हमसे छीन लिया है। उसे दहेज का दानव खा गया और हम कुछ भी नहीं कर सके। यह समाचार देते समय नंदू
ज़ार ज़ार रो रहा था।
मैं हक्का बक्का बैठा रह गया हूं। यह क्या हो गया मेरी बेबे !! मेरे दारजी !! आपने तो उसके लिए रजेया कजेया घर देखा था और ये क्या हो गया। इतना दहेज देने के
बाद भी स्टोव उसी के लिए क्यों फटा ओ मेरे रब्बा !! लिखा भी तो था गुड्डी ने कि अगर पैसों का इंतजाम न हो पाया तो स्टोव तो उसी के लिए फटेगा। दारजी ने तो
ठोक बजा कर दामाद खोजा था, वह कसाई कैसे निकल गया।
गुड्डी के बारे में सोच सोच कर दिमाग की नसें फटने लगी हैं। नंदू बताते समय हिचकियां ले ले कर रो रहा था - मुझे माफ कर देना दीप, मैं तेरी बहन को उन
राक्षसों के हाथ से नहीं बचा पाया मेरे दोस्त, बेशक गुड्डी की ससुराल वालों को पुलिस ने पकड़ लिया है लेकिन उनकी गिरफ्तारी से गुड्डी तो वापिस नहीं आ
जायेगी। तू धीरज धर।
नंदू मेरे यार, मैं तुझे तो माफ कर दूं, लेकिन मुझे कौन माफ करेगा। तू मेरी जगह मेरे घर की सारी जिम्मेवारियां निभाता रहा और मैं सिर्फ अपने स्वार्थ की
खातिर यहां परदेस मैं बैठा अपने घर के ही सपने देखता रहा। न मैं अपना घर बना पाया, न गुड्डी का घर बसता देख पाया। अब तो वही नहीं रही, मैं माफी भी किससे
मांगूं। वह कितना कहती थी कि मैं आगे पढ़ना चाहती हूं, कुछ बन के दिखाना चाहती हूं, और मिला क्या उस बेचारी को!! आखिर दारजी की जिद ने उस मासूम की जान ले ही
ली। मेरा जाना तो नहीं हो पायेगा। जा कर होगा भी क्या। मैं किस की सुनूंगा और किसको जवाब दूंगा। दोनों ही काम मुझसे नहीं हो पायेंगे।
दारजी, बेबे, नंदू और अलका दीदी को भी लम्बे पत्र लिखता हूं ताकि सीने पर जमी यह शिला कुछ तो खिसके। गौरी भी इस खबर से भौंचकी रह गयी है। उसे विश्वास ही
नहीं हो रहा है कि मात्र एक दो लाख रुपये के दहेज के लिए किसी जीते जाने इंसान को यूं जलाया भी जा सकता है।
बताता हूं उसे - गुड्डी बेचारी दहेज की आग में जलने वाली अकेली लड़की नहीं है। वहां तो घर-घर में यह आग सुलगती रहती है और हर दिन वहां दहेज कम लाने वाली या
न लाने वाली मासूम लड़कियों को यूं ही जलाया जाता है।
पूछ रही है वह - इंडिया में हवस और लालच इतने ज्यादा बढ़ गये हैं और आपका कानून कुछ नहीं करता?
- अब कैसा कानून और किसका कानून, मैं उसे भरे मन से बताता हूं - जहां देश का राजकाज चलाने वाले आइएएस अधिकारी का दहेज के मार्केट में सबसे ज्यादा रेट चलता
हो, वहां का कानून कितना लचर होगा, तुम कल्पना कर सकती हो। बेशक गौरी ने गुड्डी की सिर्फ तस्वीर ही देखी है फिर भी वह डिस्टर्ब हो गयी है। दुख की इस घड़ी
में वह मेरा पूरा साथ दे रही है।
शिशिर भी इस हादसे से सन्न रह गया है। वह बराबर मेरे साथ ही बना हुआ है। उसी ने सबसे पहले हमारी सस्जाराल में खबर दी थी। मेरे ससुर और दूसरे कई लोग तुरंत
अफसोस करने आये थे। हांडा साहब ने पूछा भी था - अगर जाना चाहो इंडिया, तो इंतज़ाम कर देते हैं, लेकिन मैंने ही मना कर दिया था। अब जा कर भी क्या करूंगा।
गौरी और शिशिर के लगातार मेरे साथ बने रहने और मेरा हौसला बढ़ाये रखने के बावजूद मैं खुद को एकदम अकेला महसूस कर रहा हूं। अब तो स्टोर्स में जाने की भी
इच्छा नहीं होती। थोड़ी देर के लिए चला जाता हूं। सारा दिन गुड्डी के लिए मेरा दिल रोता रहता है। कभी किसी के लिए इतना अफसोस नहीं मनाया। अपने दुख किसी के
सामने आने नहीं दिये लेकिन गुड्डी का यूं चले जाना मुझे बुरी तरह तोड़ गया है, बार बार उसका आंखें बड़ी बड़ी करके मेरी बात सुनना, वीरजी ये और वीरजी वो
कहना, बार बार याद आते हैं। कितने कम समय के लिए मिली थी और कितना कुछ दे गयी थी मुझे और कितनी जल्दी मुझे छोड़ कर चली भी गयी।
जब से गुड्डी का यह दुखद समाचार मिला है, मैं महसूस कर रहा हूं कि मेरा सिर फिर से दर्द करने लगा है। ये दर्द भी वैसा ही है जैसा बचपन में हुआ करता था। मैं
इसे वहम मान कर भूल जाना चाहता हूं लेकिन सिर दर्द है कि दिन प्रतिदिन बढ़ता ही जा रहा है। पता नहीं, उस दर्द के अंश बाकी कैसे रह गये हैं। हालांकि इलाज तो
तब भी नहीं हुआ था लेकिन दर्द तो ठीक हो ही गया था। गौरी को मैं बता भी नहीं सकता, मेरा क्या छिन गया है।
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