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मोहन राकेश संचयन /उपन्यास
 

मोहन राकेश संचयन
संपादक- रवींद्र कालिया



 

मुख्य सूची नाटक कहानी निबंध डायरी यात्रा-वृत्तांत

उपन्यास अंश

अंधेरे बंद कमरे

न आने वाला कल

भाग-1

भाग-2 भाग-3 भाग-4 1-डर 2-सहयोगी 3-दरवाजे

न आनेवाला कल

1- डर

अगली सुबह काफी सर्द थी।

अपना त्यागपत्र मैं क्लासें शुरू होने से पहले मिस्टर व्हिसलर की मेज़ पर छोड़ आया था। उस समय चेपल की घंटियाँ बज रही थीं, इसलिए दफ्तर में सिवाय चपरासी फकीरे के और किसी से सामना होने की सम्भावना नहीं थी। ख्याल था कि अभी एकाध दिन शायद स्टाफ में किसी को इसका पता नहीं चलेगा। पर ग्यारह बजे टी ब्रेक में सब लोग कामन रूम में जमा हुए, तो लगा कि कम से कम चार व्यक्ति तब तक उस बात को जानते हैंबर्सर बुधवानी, हेड क्लर्क पार्कर, मिसेज़ पार्कर और एकाउंटेंट गिरधारीलाल।

रात का कोहरा सुबह तक घना होकर बरफानी बादल में बदल गया था, हालाँकि बरफ पडऩी अभी शुरू नहीं हुई थी। हर हाथ की प्याली से उठती भाप मुँह की भाप से टकराकर कुछ ऐसा आभास देती थी जैसे सीधे भाप की ही चुस्कियाँ ली जा रही हों। बड़े सोफे पर और उसके आसपास महिलाओं का जमाव था। उस जमाव में बॉनी हाल स्टाफ की एकमात्र कुँवारी मेट्रन होने के नाते सबसे ज़्यादा चहक रही थी। वह कान खोले जैसे हर बात को दबोचने के लिए तैयार रहती थी और ज्योंही बात कानों तक पहुँचती थी, एकाएक खिल-खिलाकर हँस उठती थी। आँखें उसकी पूरे कमरे में तफरीह कर रही थीं। यह बॉनी हाल की खासियत थी कि वह जिस किसी भी समुदाय में हो, उस समुदाय के हर व्यक्ति को अपनी तरफ देखती जान पड़ती थी। उसकी आँखें एक टिड्डे की तरह यहाँ से वहाँ और वहाँ से यहाँ फुदकती रहती थीं।

कोहली और जेम्स हमेशा की तरह साथ-साथ एक कोने में खड़े थे। जैसे कि वे लोग स्टाफ के सदस्य न होकर बाहर से आए मेहमान हों या ऐसे दर्शक जिन्हें बाहर देखकर चाय पीने के लिए अन्दर बुला लिया गया हो। उनसे थोड़ा हटकर दूसरे ग्रुप में चारों हाउस-मास्टर एक-दूसरे से सटकर खड़े किसी गम्भीर मसले पर बात कर रहे थे। मिसेज़ पार्कर एक अलग कुर्सी पर बैठी अपनी कापियाँ जाँच रही थी। उसकी कापियों का कुछ ऐसा सिलसिला था कि हर समय जाँचते रहने पर भी वे कभी पूरी जाँचने में नहीं आती थीं। हर बार हाथ की कापी हटाकर दूसरी कापी उठाने पर वह एक उसाँस छोड़ लेती थी।

बुधवानी, पार्कर और गिरधारीलाल तीनों अलग-अलग खड़े थेपूरे कमरे में यहाँ से वहाँ चक्कर काटते हुए वे मेरे काफी नज़दीक आ गये थे। फिर भी तीनों मुझसे और एक-दूसरे से इतना फासला बनाए हुए थे कि यह न लगे कि उनके उस तरह खड़े होने का कोई खास मतलब है। मुझे लग रहा था कि उनमें से हर एक मुझसे अलग से बात करना चाहता है और इस प्रतीक्षा में है कि दूसरे दो ज़रा परे हट जाएँ, तो वह दो कदम और पास चला आये।

उन तीनों नेबल्कि मिसेज़ पार्कर समेत चारों नेबीच में कई-कई आदान-प्रदान चाहती नज़र से मुझे देख लिया था। मगर ऊपर से हर एक अपनी गम्भीरता और उदासीनता बनाए हुए था। पहले दो-एक बार उस तरह देखे जाने से मुझे असुविधा हुई थी। पर बाद में मैंने स्वयं खोजना शुरू कर दिया था कि उन चार के अलावा क्या कोई और भी है जो उस तरह मुझसे आँख मिलाना चाहता हो।

महिलाओं के वर्ग में उस समय मौसम और आनेवाली छुट्टियों को लेकर बात हो रही थी। वहाँ से डोरी थामकर बुधवानी ने दूर से ही मुझसे बात का सिलसिला शुरू करने की कोशिश की, “असली जाड़ा उतर आया है आज तो। इसके बाद लगता है टेम्परेचर रोज़-रोज़ गिरता जाएगा। छुट्टियों से पहले अब धूप नहीं निकलेगी। क्या ख्याल है?”

इस बार काफी जल्दी बरफ पडऩे लगी है।मैंने कहा, “एक बरफ पहले पड़ चुकी है, एक आज पड़ जाएगी। इसके बाद धूप अगर निकली भी, तो जाड़ा कम नहीं होगा।

बुधवानी ने हाथ की प्याली रख दी और अपने को गरमाने के लिए अपने दोनों हाथ मलने लगा। अच्छी खुली धूप के लिए हमें तीन महीने इन्तज़ार करना पड़ेगा।उसने कहा, “मेरा ख्याल है छुट्टियों से पहले अभी दो-एक बरफें और पड़ेंगीकम से कम एक तो ज़रूर पड़ेगी।

मेरा भी यही ख्याल है।मैंने अपने हाथ बगलों में दबा लिये। बुधवानी के हाथ उसकी जेबों में चले गये।

आज बरफ पड़ गयी, तो बाहर निकलने के लिए शाम बहुत अच्छी हो जाएगी।वह मुस्कराया पर वह मुस्कराहट उसकी बात से जुड़ी हुई नहीं थी। वह हल्के-हल्के अपना होंठ काटकर अपनी उत्तेजना को छिपाना चाह रहा था। पर इससे उसकी उत्तेजना छिप नहीं पा रही थी। उस समय बुधवानी के अन्दर से उत्तेजित होने का अर्थ था कि वह मिस्टर व्हिसलर को उत्तेजित देखकर आया था। उसका चेहरा एक आईना था जिसमें हेडमास्टर के मन की हर प्रतिक्रिया का अक्स देखा जा सकता था। जब हैडमास्टर खुश रहता था, तो बुधवानी भी खुश नज़र आता था। पर जब हैडमास्टर की त्योरी चढ़ी रहती, तो बुधवानी के लिए भी चीज़ों का बरदाश्त करना मुश्किल हो जाता था। इसलिए पीठ पीछे लोग उसका ज़िक्र हेडमास्टर्ज माइंडऔर हेडमास्टर्ज वायसके रूप में करते थे। मिस्टर व्हिसलर को अच्छा-बुरा जो भी करना होता था, उसे मुँह से कहने की ज़िम्मेदारी बुधवानी पर ही आती थी। यूँ भी वह कुछ इस तरह अपने को हैडमास्टर के तौर-तरीके में ढाले रहता थाकपड़े पहनने से लेकर चलने तक के अन्दाज़ मेंकि उसका अपना कोई अलग व्यक्तित्व नज़र ही नहीं आता था। अगर किसी दूसरे की तरह सोचने, महसूस करने और व्यवहार करने को ही एक तरह का व्यक्तित्व न मान लिया जाए तो। जिस किसी से बुधवानी खासी बेतकल्लुफी से बात करता था, उसके बारे में यह निश्चित रूप से सोचा जा सकता था कि टोनी व्हिसलर आजकल उस आदमी पर खुश है। जिससे टोनी व्हिसलर नाराज हों, उससे बेतकल्लुफी तो दूर, बुधवानी की बातचीत तक बन्द हो जाती थी। किसी खास चीज़ को लेकर टोनी व्हिसलर का क्या रुख है, इसकी काफी पहचान बुधवानी की मुस्कराहट या उसके होंठ हिलाने के अन्दाज से हो जाती थी। वह जिस भाव से उस समय मुझे देख रहा था, उसका अर्थ था कि मेरे त्यागपत्र को लेकर हेडमास्टर ने अभी कोई निश्चय नहीं किया था। निश्चय करने से पहले अभी मेरा मन टटोलने की ज़रूरत थीक्योंकि बुधवानी की मुस्कराहट में मुस्कराने से ज़्यादा टटोलने की ही कोशिश थी।

उसकी मुस्कराहट के जवाब में मैं भी मुस्करायाउसके बढक़र और पास आने की प्रतीक्षा में और उस विषय में पहली बातचीत की तैयारी के साथ। बुधवानी अपने कोट के कालर को उँगली और अँगूठे के बीच मसलता हुआ सचमुच मेरे बहुत करीब आ गया। यह देखकर कि अब उनके लिए मौका नहीं रहा, पार्कर और गिरधारीलाल अलग-अलग दिशा से कोहली के ग्रुप में जा शामिल हुए। मिसेज़ पार्कर ने माथे पर त्योरी डाले हाथ की कापी पर तीन जगह क्रास खींच दिए।

तो?” अब मैंने हाथ बगलों से निकालकर जेबों में डाल लिये।

पहले किसी से ज़िक्र तक नहीं किया और अचानक...?”

बात इतनी महत्त्वपूर्ण नहीं थी कि मैं पहले किसी से ज़िक्र करता।

फिर भी...,” उसने एक दोस्त की तरह मेरी कुहनी पर हाथ रख लिया। “...हेड ने अभी मुझे बताया, तो मुझे बहुत हैरानी हुई। मुझे विश्वास है कि तुम...कि तुम उस बात को लेकर बहुत गम्भीर नहीं हो।

बात अपने में ही ज़्यादा गम्भीर नहीं है।मैंने अपनी कुहनी पर उसके स्पर्श से असुविधा महसूस करते हुए कहा, “मैं नौकरी छोडऩा चाहता था, इसलिए मैंने त्यागपत्र दे दिया है।

बुधवानी ने एक बार आसपास देख लिया कि मेरे मुँह से निकले शब्द त्यागपत्र ने किसी का ध्यान तो नहीं खींचा। फिर हल्के से अपना हाथ दबाकर बोला, “देखो, जब तक अन्तिम रूप से बात तय नहीं हो जाती, तब तक बेहतर है इस शब्द को जबान पर न लाओ। तुम तो जानते ही हो कि लोग किस तरह हर बात को लेकर तरह-तरह के मतलब निकालने लगते हैं।

ठीक है जहाँ तक मेरा सवाल है...

वह बात अभी देखने की है।कहते हुए उसने फिर एक बार पूरे कमरे का जायज़ा ले लियाहाउस-मास्टरों का ग्रुप तब तक छितरा गया था। मिस्टर व्हाइट और मिस्टर क्राउन बाहर चले गये थे और बाकी दोनोंमिस्टर ब्रैंडल और मिस्टर मर्फीमहिलाओं के बीच जा खड़े हुए थे। मिसेज़ ज्याफ्रे वहाँ कोई किस्सा सुना रही थी, जिससे सब लोग एक ठहाके में फूट पडऩे की तैयारी में थे।

हेड तुमसे बात करना चाहते हैं।बुधवानी ने फिर मेरी तरफ मुडक़र कहा, “तुम्हारा छठा पीरियड आज खाली है न?”

मैंने सिर हिला दिया।

तो लंच के बाद हेड के कमरे में उनसे मिल लेना। उन्होंने बुलाया है। वे इस बात से काफी परेशान हैं कि बिना कारण ही तुमने...

कारण मेरे लिए अपने हैं। तुम जानते हो बिना कारण ऐसा कदम कोई नहीं उठाता।

कारण जो भी हों, तुम्हें उन पर हेड से बात कर लेनी चाहिए।वह मेरी कोहनी थामे हुए मुझे मैगजीनों वाली मेज की तरफ ले आया। पार्कर इस बीच फिर कोनेवाले ग्रुप से थोड़ा इधर को हट आया था। मेरी तरफ उसने एक बार हल्के से आँख भी दबा दी थी, जिसका मतलब था कि यह आदमी तुम्हें क्या समझ रहा है, मुझे पता है। मिसेज़ ज्याफ्रे की बात से फूटा ठहाका अचानक ही दब गया था, क्योंकि एकाएक सब लोग सचेत हो गये थे कि स्कूल के अन्दर हँसी की इतनी ऊँची आवाज़ मिस्टर व्हिसलर को बर्दाश्त नहीं है।

हेड सचमुच तुमसे तुम्हारी बात जानना और समझना चाहते हैं,” बुधवानी को कमरे में छा गई खामोशी ने कुछ अव्यवस्थित कर दिया। वह जो बात ढककर करना चाहता था, वह इससे नंगी हुई जा रही थी। आगे बात करने के लिए उसने तब तक प्रतीक्षा की जब तक मिसेज़ ज्याफ्रे ने एक नया किस्सा छेडक़र फिर लोगों का ध्यान नहीं बँटा लिया। फिर बोला, “यह मैं ही जानता हूँ कि तुम्हारी तरफ हेड का रुख हमेशा किसी हमदर्दी का रहा है। वे तुम्हारी कद्र भी बहुत करते हैं। सो तुम्हारे मन में जो भी बात हो, तुम खुलकर उनसे कर सकते हो।

तभी बॉनी हाल थिरकती हुई हम लोगों के पास आ गयी, “मेरे आफ डे का क्या हुआ?” उसने बुधवानी से पूछा।

मैंने हेड से बात कर ली है।बुधवानी कोमल अभिवादन के साथ बोला, “इस सप्ताह से छुट्टियाँ होने तक हर शनिवार तुम्हें खाली मिल जाएगा। तुम यही चाहती थीं न?”

ओह फाइन, फाइन!बॉनी अपनी एड़ी पर घूमकर वापस लौट गयी, “इस उपकार के बदले में मैं एक शनिवार को तुम्हारे साथ डेट रखूँगी।

हर शनिवार को नहीं?”

हर शनिवार को तुम्हारे साथ? तुम इतने खूबसूरत नहीं हो।

तो मैं हेड से कहूँगा कि...

शट अप! मैं एक भी शनिवार को तुम्हारे साथ डेट नहीं रखूँगी।

बुधवानी के जबड़े उतनी देर ढीले रहने के बाद मेरी तरफ देखकर फिर कस गये, “तुम्हारा कागज़ पढक़र हेड को बुरा नहीं लगा, यह मैं नहीं कहता।वह मुझसे बोला, “तुम्हें पता ही है इन सब मामलों में उनका रवैया क्या रहता है। तुम्हारी जगह और आदमी होता, तो वे उसे बुलाकर हरगिज़ बात न करते। चुपचाप उस कागज़ पर दस्तख़त करके मुझसे उसका हिसाब करने को कह देते। पर तुम्हारे साथ वे बात करना चाहते हैं, इसी से तुम सोच सकते हो कि तुम्हारे लिए उनके मन में क्या एहसानात हैं। तुम उन लोगों में से नहीं हो जिनके चले जाने से उन्हें लगे कि किसी चीज़ को कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता, बल्कि वे तो सोच रहे थे कि...।

अब गिरधारीलाल पास आ गया, “वह वाउचर अभी बनाना है या...?” उसने पूछा।

तुमसे कहा था टी ब्रेक के बाद तुम्हें बताऊँगा।बुधवानी चिढ़े हुए स्वर में बोला, “मैं यहाँ से सीधा दफ्तर में ही आऊँगा।

गिरधारीलाल इस स्वर से कुछ घबरा गया और एक रोनी-सी मुस्कराहट दोनों की तरफ मुस्कराकर कामन रूप से बाहर चला गया।

“...वे तो बल्कि सोच रहे थे।बुधवानी ने बात आगे जारी रखी, “कि सीनियर हिन्दी मास्टर की जो जगह खाली है, उसके लिए तुम्हारा नाम बोर्ड के सामने रखें। तुम एक दोस्त के नाते मेरी राय लेना चाहो, तो मैं तुमसे कहूँगा कि तुम्हें उनसे काफी सँभालकर बात करनी चाहिए। तुमने जो कदम उठाया है, इसे तुम अपनी बेहतरी के लिए भी इस्तेमाल कर सकते हो। निर्भर इस पर करता है कि तुम सारी चीज़ को किस तरह हैंडल करते हो। तुम कहो, तो लंच से पहले मैं भी हेड से थोड़ी बात कर लूँगा। वे सुनने के मूड में इसलिए होंगे कि आज तक यहाँ किसी ने अपनी तरफ से ऐसा नहीं किया। तुम पहले आदमी हो जिसने...

ओफ!मिसेज़ पार्कर की ऊँची आवाज़ ने उसे बीच में रोक दिया। वह गर्दन पर काफी ज़ोर देकर लगभग मेरे कान में बात कर रहा था। अब अपने को अलगाने के लिए वह थोड़ा पीछे हट गया। मिसेज़ पार्कर की ओफसे कमरे के और लोग भी चौंक गये थे। हल्के वकफे के बाद सबके होंठों पर मुस्कराहट आ गयी। डायना और बॉनी हाल तो मुँह पर हाथ रखे हँस भी दीं। मिसेज़ पार्कर बिना अपनी ओफके प्रभाव को जाने अब भी अपनी जगह व्यस्त थी। हाथ की कापी पर वह गुस्से में पूरे-पूरे सफे के क्रास खींच रही थी। हॉरीबल! हॉरीबल!साथ वह कहती जा रही थी, “ऐसे-ऐसे स्पेलिंग हैं कि पढक़र आदमी के होश-हवास गुम हो जाएँ।फिर आँखें उठाकर आसपास के लोगों को देखते हुए उसने कहा, “मैं कई बार सोचती हूँ कि यह सब पढ़-पढक़र मैं अब तक पागल क्यों नहीं हो गयी? मुझे पागल ज़रूर हो जाना चाहिए था। ओफ!

सारे कमरे में कोई किसी से बात नहीं कर रहा था। अकेला पार्कर ही था जो कोहली से चल रही अपनी बात आगे जारी रखने की कोशिश में था। वह तब ऊपर से घूमकर सामने चला आया है? सामने से उसने जो उसे पटखनी दी, तो बस!

पर कोहली का ध्यान भी मिसेज़ पार्कर की तरफ ही थाऔर इस बात की तरफ कि पूरे कमरे की खामोशी में उसकी—‘हूँ-हाँसबको सुनाई दे रही है। पार्कर भी यह देख रहा था, फिर भी वह बोलने से रुका नहीं, “एक और कुश्ती मैंने देखी थी जब मैं बेगमाबाद में था। उस कुश्ती की खासियत यह थी कि...

मिसेज़ पार्कर कापियाँ परे हटाकर कुर्सी से उठ खड़ी हुई थी। हमेशा थके रहनेवाले अपने भारी शरीर को किसी तरह धकेलती हुई वह चाय की मेज़ की तरफ जा रही थी। यहाँ यह देखकर कि चायदानी में चाय नहीं है, वह ऐसे हो गयी जैसे उसे बेकार ही उतनी दूर तक आने देकर सब लोगों ने उसके साथ ज़्यादती की हो। फिर एक पैर दबाकर अपनी घिसटती चाल से वह पैंट्री के दरवाज़े तक जा पहुँची। वहाँ से उसने आवाज़ दी, “शेरसिंह! मुझे चाय की एक प्याली बनाकर ला दो, प्लीज़! घंटी का वक्त हो गया है, ज़रा जल्दी से। चीनी मत डालना? तुम्हें पता ही है मैं चीनी नहीं लेती।फिर पैंट्री से अपनी कापियों के ढेर के पास वापस आकर वह निढाल-सी बैठ गयीजैसे कि एक ख़ामख़ाह के सफर पर निकलने के बाद आधे रास्ते से उसे अपने डेरे पर लौटना पड़ा हो। सब काम जान लेने वाले होते हैं।वह हाँफती हुई बोली, “पर यह काम तो सबसे ज़्यादा जानलेवा है। पता नहीं इस सबका अन्त किस दिन होगा? मेरे शरीर में प्राण रहते तो शायद होगा नहीं।

उसने एक नई कॉपी जाँचने के लिए सामने रख ली, तो बुधवानी वहाँ से चलने की तैयारी में अपने कालर को मसलता हुआ पहले से भी आहिस्ता स्वर में मुझसे बोला, “याद रखना। छठे पीरियड में, हेड के कमरे में। अब तक सिवा दफ्तर के लोगों के किसी को पता नहीं है। दफ्तर के लोगों से भी ऐसे ही बात हो गयी थी...यूँ उन्हें भी हेड ने मना कर दिया है। एक बार हेड से तुम्हारी बात हो जाए, तो फिर जैसे हो देख लेना...ओ.के.?” और चलते हुए मेरा हाथ काफी घनिष्ठता से दबाकर वह एक बार फिर मुस्करा दिया।

शेरसिंह ने जैसे मिसेज़ पार्कर की असुविधा बढ़ाने के लिए ठीक उस वक्त उसे चाय की प्याली लाकर दी जब टी ब्रेक समाप्त होने की घंटी बज रही थी। तब तक आधे लोग कामन रूम से जा चुके थे। बाकी अपने-अपने गाउन सँभालकर जा रहे थे। मिसेज़ पार्कर प्याली हाथ में लेते ही कुढ़ गयी। देखो, कैसी प्याली लाकर दी है इसने मुझे!वह जाते लोगों को सुनाकर बोली, “ऊपर से नीचे तक गीली! बताओ, कौन इन्सान ऐसी प्याली में चाय पी सकता है?” पर प्याली उसने लौटाई नहीं। एक नज़र अपने पति पर डालकर जल्दी-जल्दी चुस्कियाँ भरने लगी। फिर चाय की गर्मी अन्दर पहुँचने से पल-भर आँखें मूँदे रही। वह जब भी ऐसा करती थी, तो उसका थलथल गोल चेहरा ऐसे लगता था जैसे चमड़े के घिसे हुए थैले पर दो बन्द क्लिपें लगी हों। अगली चुस्की भरने के लिए उसने आँखें खोलीं, तो पार्कर को दरवाज़े की तरफ बढ़ते देखकर उसकी बड़बड़ाहट फिर शुरू हो गयी, “कौन समझाए इन्हें कि प्याली में चाय डालने से पहले एक बार उसे अच्छी तरह पोंछ लेना चाहिए? पाँच-पाँच साल हो जाते हैं इन्हें यहाँ काम करते, फिर भी ज़रा-सी बात इनकी समझ में नहीं आती। मैं तो कहती हूँ, इन्हें कुछ भी सिखाने का कुछ मतलब ही नहीं है। ये लोग कभी सीख ही नहीं सकते। यहाँ के लडक़ों को कभी स्पेलिंग नहीं आ सकते और यहाँ के नौकरों को...

तुम्हारी क्लास नहीं है? घंटी बज चुकी है।पार्कर ने उसके पास रुककर कुछ तुर्श आवाज़ में कहा। मिसेज़ पार्कर की दोनों क्लिपें कस गयीं। पर इससे पहले कि वह जवाब में कुछ कहे, पार्कर मेरे पास आ गया। की गल्ल ए जी?” वह हिंदुस्तानी मास्टरों से मित्रता बढ़ाने के अपने खास लहज़े में बोला, “ए की पुआड़ा पा दित्ता जे अज्ज?” फौज में कई साल रहने के कारण पार्कर हिन्दी और पंजाबी दोनों गुज़ारे लायक बोल लेता था। इस वजह से वह हिंदुस्तानी मास्टरों में काफी लोकप्रिय था, हालाँकि इसी वजह से लोग उससे कतराते थे क्योंकि स्कूल में कौन क्या कहता-करता है, इसकी ज़्यादातर रिपोर्टें पार्कर ही हेडमास्टर के पास पहुँचाता था।

तुम्हें दफ्तर में काम नहीं है? तुम्हारे लिए घंटी नहीं बजी?” मिसेज़ पार्कर ने प्याली रखते हुए उसे जवाब दे दिया। पार्कर इस तरह हँसकर जैसे कि वह इस चोट की आशा ही कर रहा था, बाहर को चलता हुआ मुझसे बोला, “तुमसे मुझे कुछ बात करनी है। लंच ब्रेक से पहले या बाद में जब भी वक्त मिला, देखेंगे।फिर जल्दी-जल्दी से मिसेज़ पार्कर से कहकर, “तुम्हारी क्लास रो रही है उधर,” वह जूता चरमराता बरामदे में पहुँच गया।

पार्कर ने अन्तिम बात उसे नहीं कहने दी, इसलिए मिसेज़ पार्कर हताश भाव से उसे पीछे से देखती रही। तब तक कामन रूम में उसके और मेरे सिवा और कोई नहीं रह गया था।

देखो, यह आदमी है।उसने आँखें झपकाते हुए मुझसे कहाजैसे मुझसे किसी चोर की शनाख्त करा रही हो।

मैं सिर हिलाकर मुस्करा दिया।

मैं कितना कुछ बरदाश्त करती हूँ यहाँ।वह निढाल हाथों से अपनी कापियाँ समेटती बोली, “पर अब मुझसे बरदाश्त नहीं होता। मैं अब जल्द-अज-जल्द यहाँ से वापस चली जाना चाहती हूँ।

वापस? तुम्हारा मतलब है कि...?”

बैक होम। मेरा असली घर लन्दन में है। तुम्हें पता नहीं?”

वह कितनी ही बार यह बात कहती थी। पर हर बार हर एक उससे यही कहता था, “अच्छा? मुझे पता नहीं था।

मेरी दादी वहाँ पर है। यहाँ तो मेरी सिर्फ एक ही पुश्त बीती है। मेरी माँ एक सिविल सर्वेंट से शादी करके यहाँ चली आयी थी।वह सिविल सर्वेंट क्या और कौन था, इस पर मिसेज़ पार्कर कभी रोशनी नहीं डालती थी। मेरी दादी मुझे कितनी बार लिख चुकी है कि वह मुझे वीज़ा भेज देगी, मैं जब चाहूँ वहाँ चली जाऊँ। मैं तो इसी साल चली जाना चाहती थी, पर...।और किसी तरह कापियों के साथ अपने को सँभाले वह उठ खड़ी हुई। पर यह आदमी ऐसा है कि मेरी बात ही नहीं सुनता। इसे जाने क्यों यहीं पड़े रहना पसन्द है! इसकी वजह से मैं भी यहाँ पड़ी हूँ...अपनी लडक़ी को हालाँकि मैंने पिछले साल भेज दिया है। वहाँ रहकर उसका कुछ बन भी जाएगा, यहाँ पर उसका क्या बनना था? मेरी तरह ज़िन्दगी-भर किसी स्कूल में कापियाँ जाँचती रहती और शादी भी किसी ढंग के आदमी के साथ न कर पाती।...मैं इस आदमी से कई बार पूछती हूँ कि यहाँ हम लोगों का अब क्या भविष्य है? यहाँ आये दिन जिस तरह की बातें सुनने को मिलती रहती हैं, उससे तुम्हें लगता है कि यह स्कूल साल-दो साल से ज़्यादा चल जाएगा? मुझे तो ज़रा नहीं लगता।

बातें तो सब तरह की लोग करते रहते हैं, उससे क्या होता है?” मैंने कहा, “सत्तर साल पुराना स्कूल है।

फिर भी...,” वह पैर घसीटती मेरे पास आ गयी, “तुम शायद बेहतर जानते हो, क्योंकि तुम...अच्छा बताओ, वह बात ठीक है जो चार्ली ने टी ब्रेक से पहले मुझे बतायी है?”

कौन-सी बात?”

मिसेज़ पार्कर पल भर सन्देह की नज़र से मुझे देखती रही। फिर अपने मन से बोझ उतार फेंकने की तरह बोली, “तुमने स्कूल से त्यागपत्र दे दिया है?”

मैंने आँखें हिलाकर एक मैगज़ीन उठा ली।

फिर भी तुम कहते हो कि यहाँ कुछ होनेवाला नहीं है?”

क्यों? एक आदमी के त्यागपत्र दे देने से...?”

इतने मासूम मत बनो। कम से कम मुझे तो तुम बता ही सकते हो। तुम्हें पता है, मैं यहाँ किसी चीज़ के लेने-देने में नहीं हूँ।

मेरे पास बताने को कुछ हो तब न!

तुमने इसलिए त्यागपत्र नहीं दिया कि...?”

किसलिए?”

इसलिए कि...?” मिसेज़ पार्कर ऐसे स्वर में बोली जैसे कि त्यागपत्र देकर मैंने खास उसी के साथ कुछ बुराई की हो। अच्छा, रहने दो। नहीं तो चार्ली बाद में मेरी जान खाएगा।

मेरा ख्याल है अपने त्यागपत्र की असली वजह का सिर्फ मुझे पता नहीं है।

तुम्हें किस चीज़ का पता नहीं है?” मिसेज़ पार्कर अभी बात करने के लिए रुकना चाहती थी, पर अपनी क्लास की वजह से उसे जाने की उतावली भी हो रही थी, “मेरा ख्याल है यहाँ सबसे होशियार आदमी एक तुम्हीं हो।

सचमुच?”

नहीं हो क्या?”

कह नहीं सकता। मेरा तो ख्याल था कि...।

मैं चार्ली से कितनी बार कह चुकी हूँ कि तुम बाहर से जितने चुप रहते हो, अन्दर से उतने ही...उतने ही तेज़ आदमी हो।” ‘तेज़ आदमीकी जगह वह कुछ और कहना चाहती थी, पर आखिरी क्षण कुछ सोचकर उसने शब्द बदल दिया था।

मुझे आशा है कि यह बात मेरी प्रशंसा में कही जा रही है!मैंने फिर मुस्करा दिया। मिसेज़ पार्कर आश्वस्त हो गयीं कि जो नश्तर उसने बचा लिया था, उसका अन्दाज़ा मुझे नहीं हुआ।

और नहीं तो क्या?” वह आँखों में बीतते समय का दबाव लिये बाहर को चल दी, “तुम्हारी इस वक्त क्लास नहीं है?”

मैंने सिर हिला दिया, “सोमवार को मेरे दो पीरियड खाली होते हैंचौथा और छठा। सिर्फ सोमवार को ही।

तभी तुम इतने आराम से खड़े बात कर रहे हो।वह पहले से ज़्यादा हड़बड़ा गयी, “खुशकिस्मत आदमी हो तुम जो तुम्हें किसी एक दिन तो दो पीरियड खाली मिल जाते हैं। मेरे किसी भी दिन दो पीरियड खाली नहीं होते। मेरा ख्याल है, यहाँ सबसे खराब टाइम टेबल मेरा है। मैं किसी से कुछ कहती नहीं, इसलिए जैसा चाहते हैं रख देते हैं। मैं भी कहती हूँ चलो, मुझे कौन ज़िन्दगी-भर यहाँ पड़ी रहना है।

पर चौखट लाँघने के बाद वह फिर एक बार अन्दर लौट आयी, “तुम किसी दिन हमारे यहाँ चाय पीने क्यों नहीं आते?” उसने कहा।

तुमने आज तक कभी बुलाया ही नहीं।

आज तक की बात छोड़ो। तुम आज या कल किसी वक्त आ सकते हो...मतलब शाम को किसी वक्त।

हाँ-हाँ...क्यों नहीं? मुझे बहुत खुशी होगी?”

तो मैं चार्ली से कहूँगी, तुमसे तय कर ले। मैं अपने हाथ की बनी पाई तुम्हें खिलाऊँगीअगर पाई तुम्हें पसन्द हो तो।

पसन्द क्यों नहीं होगी? खासतौर से तुम्हारे हाथ की बनी पाई...।

मैं चार्ली से कहूँगी तुमसे तय कर ले। कल का या परसों का। कुछ देर बैठकर बातें करेंगे।

मिसेज़ पार्कर के जाने के बाद मैं अकेले कामन रूम में इस तरह खड़ा रहा जैसे कि एक भीड़ से निकलकर वहाँ आया होऊँ। यहाँ-वहाँ तिपाइयों पर पड़ी जूठी प्यालियाँ, सोफे के कवर पर महिलाओं के बैठने की सलवटें। अन्दर की उदास ठंडक उस एकान्त में मुझे और गहरी महसूस होने लगी। मैंने मन ही मन दिन गिने। छुट्टियाँ होने में पूरे चार हफ्ते थे। मेरा नोटिस पीरियड छुट्टियों में ही पूरा हो जाना था, इसलिए लौटकर एक दिन के लिए भी वहाँ आने की ज़रूरत नहीं थी। मैं कुछ देर इस नज़र से कमरे को देखता रहा जैसे कि मैं अभी से वहाँ से जा चुका हूँ। वह कमरा अगले साल के किसी उतने ही ठंडे दिन में उसी तरह उदास पड़ा है, लोग वहाँ से चाय पीकर अपनी-अपनी क्लासों में गये हैं और किसी को यह याद भी नहीं है कि पिछले साल सक्सेना नाम का कोई आदमी यहाँ काम करता था, या कि आज के दिन उसके त्यागपत्र को लेकर लोगों ने यहाँ थोड़ी हलचल महसूस की थी। नई टर्म से स्टाफ में कुछ नए लोग आ गये हैं जो नए सिरे से अपने को यहाँ के वातावरण में ढकने की कोशिश में हैं। किसी सिलसिले में जब उनमें से किसी के कान में सक्सेना का नाम पड़ता है, तो वह यूँ ही चलते ढंग से पूछ लेता है, “सक्सेना? वह कौन था?”

फिर मैं सोचने लगा कि अगले साल इन दिनों में कहाँ रहूँगा, क्या कर रहा हूँगा। साल के बारह महीनों में से कुछ महीने तो यहाँ से मिली तनख्वाह से निकल जाएँगेउसके बाद के महीने? तब यह सोचकर मन को थोड़ा आश्वासन मिला कि अभी मेरा त्यागपत्र मंजूर नहीं हुआ, अभी उस बारे में मुझसे बात की जानी हैमैं चाहूँ, तो त्यागपत्र वापस भी ले सकता हूँ और अगले साल आज के दिन अपने को यहीं, इसी तरह, खड़ा पा सकता हूँ।

मैंने त्यागपत्र क्यों दिया है?” यह सवाल मेरे अन्दर से भी कोई बुधवानी या पार्कर मुझसे पूछ रहा था, लेकिन उसे भी जवाब देना मैं उसी तरह टाल रहा था। मुझे इस बारे में सोचना नहीं चाहिए,’ मैंने अपने से कहा। मुझे डर लग रहा था कि मिस्टर व्हिसलर के पास जाने तक मेरा निश्चय कहीं टूट न जाए।

क्या सोच रहे हो?” मुझे पता नहीं चला था कि गिरधारीलाल कब पिछले दरवाज़े से दबे पैरों अन्दर चला आया था। चेचक के दागों से लदे अपने साँवले चेहरे पर सहानुभूति का भाव लिये वह उस कुर्सी के पास आ गया था जिससे मिसेज़ पार्कर उठकर गयी थी।

सोचना क्या है?” मैंने थोड़ा चौंककर कहा, “ऐसे ही खाली वक्त बिता रहा हूँ।

आज बुधवानी ने बचा दिया।वह बोला, “नहीं, हेड ने तो काम कर ही दिया था। वह सतर्क आँखों से आसपास देखता मेरे नज़दीक आ गया।

क्या मतलब?”

उसने तो त्यागपत्र का कागज़ पढ़ते ही सीधे मुझे बुला लिया था। मुझसे बोला कि मैं तुम्हारे पूरे हिसाब का वाउचर बना दूँआज शाम को ही आपसे चले जाने को कह दिया जाएगा। मैंने बाहर आकर बुधवानी को बताया, तो इसने अन्दर जाकर उसे जाने क्या समझा-बुझा दिया। वाउचर रोके रहने के लिए अभी मुझसे बुधवानी ने ही कहा है, हेडमास्टर ने खुद नहीं, बुधवानी ने बताया है कि लंच के बाद तुम हेडमास्टर से मिल रहे हो। मैंने सोचा कि मुझे इस बारे में तुम्हें बता तो देना ही चाहिए। एक घर में रहते हैं, इसलिए इतना तो फर्ज़ मेरा बनता ही है।

बता देने के लिए शुक्रिया।मैंने कहा, “हेडमास्टर से मिलने की बात मेरी तरफ से नहीं है। मुझसे बुधवानी ने कहा है कि हेड मुझसे बात करना चाहते हैं।

बुधवानी अच्छा आदमी है।गिरधारीलाल थोड़ा और सतर्क हो गया, “मैं पहले उसे जितना अच्छा समझता था, उससे भी अच्छा है।

लेकिन मुझे हेड से कुछ खास बात नहीं करनी है...।

बात तुम्हें ज़रूर करनी चाहिए, क्योंकि हेडमास्टर का ख्याल है कि...।

मैं आगे बात सुनने की प्रतीक्षा में उसे देखता रहा। गिरधारीलाल की सतर्कता में अब एक डर भी आ समायाकि मेरा हित चाहने में कहीं वह अपने हित की क्षति तो नहीं कर रहा। पर किसी तरह अपने डर पर काबू पाकर उसने इतने धीमे स्वर में कि हम लोगों से एक गज़ दूर भी सुनाई न दे, कहा, “उसका ख्याल है कि इसके पीछे चेरी की कुछ साज़िश है। चेरी अभी कल-परसों ही डी.पी.आई. से मिलकर आया है। दो-चार दिनों में किसी दिन डी.पी.आई. के यहाँ आने की भी बात है।

चेरी पर हेडमास्टर ने कुछ अभियोग लगा रखे हैं, यह बात कामन रूम में ही किसी से सुनी थी। यह भी सुना था कि चेरी ने उन अभियोगों के उत्तर में हेडमास्टर तथा डी.पी.आई. को एक लम्बा खरड़ा लिखकर दिया है। मेरे त्यागपत्र का उसके साथ सम्बन्ध जोड़ा जा रहा है, इससे मुझे थोड़ा गुस्सा हो आया, “मुझे इस चीज़ से कोई मतलब नहीं कि हेडमास्टर मेरे त्यागपत्र को लेकर क्या सोचता है।मैंने कहा, “मेरे त्यागपत्र के कारण बिल्कुल व्यक्तिगत हैं।

यही मैंने भी मिस्टर व्हिसलर से कहा था कि कोई ऐसी-वैसी बात होती, तो घर में साथ रहते कभी तो ज़िक्र आता। उसने मुझसे पूछा था कि त्यागपत्र देने से पहले तुमने किसी को कुछ बताया तो नहीं। मैंने कहा कि कल शाम को तो हमारी मुलाकात नहीं हुई, पर परसों और परले रोज़ हमारी घर पर बात हुई हैउसमें ज़िक्र तक नहीं आया ऐसा किसी चीज़ का।

कल रात तक मैंने खुद नहीं सोचा था कि मैं त्यागपत्र दे दूँगा।

तो फिर एकाएक कैसे...?”

बस तय कर ही लिया कल रात। मेरा मन नहीं लगता था यहाँ।

थामें जो अतीत की ध्वनि थी, उसने फिर मुझे अन्दर कहीं पर खरोंच दिया।

अकेले में मन लग सकना मुश्किल तो है ही। मैंने पहले भी कहा था दो-एक बार कि शोभा बहन को वहाँ से बुला लो। कितने दिन रहेंगी वे अपने पिता के यहाँ?”

यह शोभा जाते हुए उन लोगों से कह गयी थी कि वह जालन्धर जा रही है, अपने पिता के पास। उसके जाने के बाद से मैं भी उस झूठ को निभा रहा था।

अकेलेपन का मन न लगने से कोई ताल्लुक नहीं था। मैंने कहा।

जो भी बात हो, मिस्टर व्हिसलर को यह नहीं लगना चाहिए कि...।

मिस्टर व्हिसलर को क्या लगता है, इसकी मैं चिन्ता नहीं करना चाहता।

गिरधारीलाल का चेहरा मुरझा गया। वह मुझसे इतने रूखे स्वर की आशा नहीं करता था। वह पल-भर सिकुड़ा-सा मुझे देखता रहा, “देख लो। अब यह तुम पर है।

अब ही क्यों, पहले भी मुझी पर था।मुझे खुद लग रहा था कि मैं बेचारे गिरधारीलाल से इस तरह क्यों बात कर रहा हूँ? उससे मुझे किस चीज़ की चिढ़ थी?

खैर, मेरा फर्ज़ था कि मैं इस बारे में तुमको आगाह कर दूँ। हेडमास्टर की त्योरी सुबह से चढ़ी हुई है। वह ग्यारह बजे की चाय पीने घर पर नहीं गया। मिसेज़ व्हिसलर ने इसे बुला भेजा, क्योंकि उन्हें इससे कुछ बात करनी थी। पर इसने कहला दिया कि इस वक्त फुरसत नहीं हैशाम को ही घर आएगा।

आगाह कर देने के लिए शुक्रिया!मैंने बात समाप्त करने के लिए कहा और पत्रिका में आँखें गड़ा लीं।

गिरधारीलाल फिर भी रुका रहा, “कोई गलत बात कही गयी हो, तो माफ कर देना।वह मुझे ठीक से न समझ पाने के असमंजस में बोला, “मेरा मतलब सिर्फ इतना ही था कि...

मुझे पता है तुम्हारा मतलब मेरा भला चाहना ही है।मैंने उसका कन्धा थपथपा दिया, “मैं बाद दोपहर हेडमास्टर से बात कर लूँ, तो फिर...

जो भी बात हो बताना। शाम को घर पर मिलेंगे।कहकर वह बेबस सद्भावना के साथ मुस्कराया और दबे पैरों वहाँ से चला गया।

मैं मैगज़ीन हाथ में लिये खिडक़ी के पास आ गया। बाहर घास पर हल्की-हल्की सफेद चकत्तियाँ पड़ गयी थीं। बरफ गिरने लगी थी। इस तरह यहाँ खड़ा होकर क्या फिर भी मैं बरफ गिरती देखूँगा?’ मैंने सोचा और खिडक़ी की सिल पर बैठ गया।

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