न आनेवाला कल
2-सहयोगी
रात को स्टिवर्ड चाल्र्टन की काटेज के बाहरी कमरे में
हम तीन आदमी बैठे थे...चाल्र्टन,
लैरी जो और मैं। खिड़कियाँ-दरवाज़े सब बन्द करके
बुखारी में आग जला दी गयी थी जिससे कमरा काफी गरम था। फिर भी मैं चाह
रहा था कि बाहर की हवा के लिए कहीं कोई दरार छोड़ दी गयी होती,
क्योंकि चेरी ने सिगार
फूँक-फूँककर इतना धुआँ कमरे में भर दिया था कि अपने समेत सब कुछ उस
कसैली गन्ध में घुटा-घुटा लग रहा था।
“देखो, वह
कुतिया अब तक नहीं आयी।”
चेरी ने राख का मोटा-सा लोंदा ऐश-ट्रे में झाड़ते हुए
कहा और अपनी दोहरी ठोड़ी छाती पर झुकाए फिर से कश खींचने लगा। लैरी
आँखें मूँदकर बाँहें सिर पर रखे गम्भीर भाव से कुछ सोच रहा था। उसने
उसी मुद्रा में अपने होंठ वितृष्णा से हिला दिये। मैं प्लेट से
सींक-कबाब का एक टुकड़ा उठाकर धीरे-धीरे चबाने लगा।
शाम को लैरी ने मुझसे अपने यहाँ आने को कहा था,
तो मुझे इस पूरे आयोजन का पता नहीं था। स्कूल से
चलते समय उसने कुछ उसी तरह मुझे रात को अपने यहाँ पीने आने की दावत
दी थी जैसे पहले दिया करता था...हर महीने की पहली के आसपास। इस बार
इतना अन्तर ज़रूर था कि पहली तारीख बहुत पीछे छूट चुकी थी। मैंने सोचा
था कि इस बार भी वह हमेशा की तरह मद्रास के दिनों के अपने
प्रेम-सम्बन्धों की चर्चा करेगा, पर उसके
यहाँ पहुँचने पर पता चला कि कार्यक्रम चेरी के क्वार्टर में है।
“मैंने स्कूल में तुमसे ज़िक्र करना उचित नहीं
समझा।” उसने कहा, “किसी
के कान में बात पड़ जाती, तो तुम्हारे लिए
खामखाह की परेशानी हो जाती। चेरी चाहता है कि तुम्हारे त्यागपत्र को
लेकर जो नयी स्थिति पैदा हो गयी है, उस पर हम
लोग आपस में बात कर लें। वह खुद तुमसे कहना चाहता था,
पर मैंने ही उसे मना किया था कि वह बात न करे,
मैं तुम्हें अपने यहाँ बुलाकर साथ लेता आऊँगा।
तुम्हें कोई एतराज़ तो नहीं?”
मुझे एतराज़ था,
पर उस वक्त उस एतराज़ की बात करना बेमानी था। मैं
चुपचाप उसके साथ चेरी के क्वार्टर में चला आया था। वह क्वार्टर एक
पहाड़ी की ऊँचाई पर बिल्कुल अलग-थलग बना था,
इसलिए चेरी उसे क्वार्टर न कहकर अपना काटेज कहा करता था। उस क्वार्टर
की तरफ जाते व्यक्तियों को नीचे स्कूल की सडक़ से देखा जा सकता था,
इसलिए अँधेरा होने के बावजूद मेरी आँखें बार-बार उस
तरफ मुड़ जाती थीं। बरफानी हवा और पगडंडी की बरफ-मिली मिट्टी से
ज़्यादा मैं उस तरफ़ की आहटों के प्रति सचेत था। मुझे लग रहा था कि
दोपहर को टोनी व्हिसलर की जिस बात से मुझे गुस्सा आया था,
उसे कुछ ही घंटे बाद चेरी के क्वार्टर में जाकर मैं
एक तरह से सच साबित कर रहा हूँ। आसपास की झाडिय़ों और ढलान पर उगे
पेड़ों के बीच से कुछ साये जैसे मुझे उस पहाड़ी पर ऊपर जाते देख रहे
थे और मैं कोट का कालर ऊँचा किये अपने को उन द्वारा पहचाने जाने से
बचा लेना चाहता था। लैरी मुझसे आगे-आगे चल रहा था,
इसलिए भी मैं अपने को उस रास्ते पर
काफी अनढका-सा महसूस कर रहा था। पर लैरी को इसका कुछ एहसास नहीं था।
वह इतना ही जानता था कि मैंने चुपचाप मुस्कराकर उसका प्रस्ताव
स्वीकार कर लिया था।
चेरी के क्वार्टर में पहुँचने पर पता चला कि लारा
वहाँ नहीं है।
“उसकी माँ की तबीयत ठीक नहीं थी,
वह उसे देखने के लिए गयी है।”
चेरी ने कमरे में दाखिल होते ही बताया, “उसने
कहा था कि मैं उसकी ओर से तुमसे क्षमा माँग लूँ।”
मगर यह बात सच नहीं थी। वहाँ आने के थोड़ी ही देर
बाद मुझ पर स्पष्ट हो गया कि चेरी ने जान-बूझकर उसे वहाँ से भेज दिया
है। स्कूल में यह बात प्राय: सुनी जाती थी कि शादी के बाद भी चेरी
किंडरगार्डन की मिसेज़ दारूवाला से अपना सम्बन्ध बनाए है और कि अब भी
लारा घर से जाती है चेरी मिसेज़ दारूवाला को अपने यहाँ बुला लेता है।
उस दिन भी मिसेज़ दारूवाला वहाँ निमन्त्रित थी,
हालाँकि हम लोगों को पहुँचे डेढ़
घंटा हो गया था और वह अब तक आयी नहीं थी।
बातचीत की शुरुआत लैरी ने की थी। कहा था कि अब मौका आ
गया है जब हम लोगों को मिलकर हेडमास्टर के खिलाफ अपना मोर्चा बना
लेना चाहिए। जब वह पहला पेग पी रहा था,
तो उसका ख्याल था कि मैंने त्यागपत्र देकर बहुत साहस
का काम किया है। पर तीसरे पेग के बाद वह मेरा कन्धा हिलाता हुआ कहने
लगा था कि मैं बहुत डरपोक आदमी हूँ...अगर मुझमें साहस होता,
तो मैं चेरी की तरह डटकर उस आदमी से लोहा लेता।
“त्यागपत्र देने का क्या है?
एक चपरासी भी त्यागपत्र दे सकता है। गुरदा चाहिए
लडऩे के लिए। मुझे अफसोस है कि तुम्हारे पास वह गुरदा नहीं है।”
लैरी की बातों से मुझे पता चल गया था कि जेम्स ने
मेरे त्यागपत्र की बात पूरे स्कूल में फैला दी है—यहाँ
तक कि शाम की चाय के समय यह बात लडक़ों की ज़बान पर भी थी। लैरी ने
कुरेद-कुरेदकर मुझसे पूछने की कोशिश की कि मेरे निर्णय का वास्तविक
कारण क्या है और कि हेडमास्टर ने इस चीज़ को लेकर मुझसे क्या बात की
है। मैं उस कमरे में आने के बाद से ही मन में इतना कुढ़ गया था कि
उसके हर सवाल को मैंने एक मुस्कराहट के साथ टाल दिया। संक्षेप में
इतना बता देने के बाद कि मुझे अब इस नौकरी में दिलचस्पी नहीं रही,
उसकी गेंद को हर बार वापस उसी की तरफ उछाल दिया।
“तुम बताओ, तुम क्या
सोचते हो इस बारे में?”
लैरी आखिर थककर और शायद अपनी ही रट से ऊबकर कुछ देर
के लिए खामोश हो गया।
चेरी शुरू से ही खामोश था। मेरा ध्यान बार-बार उसके
भारी पेट पर कसे जैकेट की तरफ चला जाता था जिसके बटन बुरी तरह खिंचे
हुए थे। तब तक उसके व्यक्तित्व की जो छाप मेरे मन पर थी,
उस समय वह उससे काफी भिन्न लग रहा था। यह वह मुँहफट
और दबंग आदमी नहीं था जो किचन, पैंट्री और
डाइनिंग हाल के इलाके में दूसरे हेडमास्टर की तरह कहता घूमता था,
“मुझसे क्या बात करेगा कोई?
मुझसे इनमें से किसी का कुछ छिपा है?” और
जिसके कमरे में हर समय टेलीफोन पर मांस-मच्छी वालों से की जानेवाली
इस तरह की बातचीत सुनाई देती थी, “एक पूरा
बकरा खराब है...यह क्या भेजा है तुमने? ऐसा
माँस तो कुत्तों के खाने लायक भी नहीं है,
हरामखोर, तुमने समझ क्या रखा है?
यह तन्दूर है या ढाबा? पता
है यहाँ एक-एक लडक़े से महीने का दो-दो सौ रुपया लिया जाता है?
उसके बदले में मैं उन्हें यह बकरा खाने को दूँ?
तुम दूसरा बकरा जल्दी से भेजो अपने आदमी के हाथ। वह
भी ठीक न हुआ, तो तुम्हारे आदमी को ही काटकर
चढ़ा दूँगा आज। और कल मुझे तीन सूअर चाहिए। तुम्हारी तरह पले हुए। आ
गया समझ में? आ गया कि नहीं?”
इसके अलावा वह राह चलते किसी के भी कन्धे पर हाथ
मारकर कह सकता था, “क्यों पट्ठे,
बताओ क्या खाओगे आज शाम को?”
और अपेक्षा रखता था कि उसके बनवाए पानी की शक्ल के स्टू से लेकर
डंठलों समेत उबली गोभी तक हर चीज़ की उसके सामने प्रशंसा की जाए।
प्रशंसा सुनकर उसका चेहरा एक उदार मुस्कराहट से खिल जाता था।
“गोभी कल शाम मैंने तुम्हारे लिए स्पेशल बनवाई थी।
मुझे पता है तुम्हें गोभी बहुत पसन्द है।”
लोग उससे ज़्यादा बात करने से अक्सर बचते थे,
पर खास मुश्किल उस समय पड़ती थी जब हेडमास्टर से डाँट खाकर वह अपना
गुबार निकालने के लिए कामन रूम में चला आता था। “पता
है आज सूअर के उसने मुझसे क्या कहा है? कहता
है, खाना दिन-ब-दिन बदज़ायका होता जा रहा है?
कोई पूछे इस बन्दर की औलाद से कि खाना यहाँ
हेडमास्टर बनने से पहले इसने कभी खाया भी था?
वहाँ मद्रास में मिलता क्या था इसे? एसम् और
तक्रम्? डंठल चूसते यहाँ आकर हड्डियाँ चूसने
को मिल गयीं, तो बड़ा जानकार हो गया यह खाने
का! जानता नहीं कि हम तो पैदा ही मुर्गे के शोरबे में हुए हैं। बीस
साल का त$जुरबा है मेरा इस काम का। जिन दिनों
कलकत्ता के ग्रैंड होटल में मुझे सात सौ तनख्वाह मिलती थी,
उन दिनों इसे तीन सौ भी नहीं जुटते होंगे मास्टरी
के। पहला हेडमास्टर चाहे पादरी था, पर उसे
तमीज़ थी खाने-पीने की। उसके ज़माने में कभी कोई पार्टी होती थी यहाँ
बगैर ब्रांडी-व्हिस्की के? पर यह नीरे की
औलाद, न खुद पीता है न दूसरों को पीने देता
है। बस पार्टी के बाद भेज देता है अपने बैरे को कि जितना सामान बचा
हो, उठाकर ले आये। सुबह बुला लेता है हिसाब
चेक करने। मैं कहता हूँ कर ले हिसाब चेक, मैं
एक-एक पैसे का खर्चा लिखकर रखता हूँ अपने पास। तुझे जिस-जिस चीज़ का
बिल चाहिए, उसका बिल ले ले। कुछ और चाहिए तो
वह भी ले ले। मुझे क्या पता नहीं कि यह सारी साज़िश किस चीज़ की है?
यह उसे लगाना चाहता है स्टिवर्ड अपनी मदाम जाफरी को
(मिसेज़ ज्याफ्रे का चेरीकरण) जिससे लडक़ों के माँ-बाप का खून
चूस-चूसकर ये अपने ग्लैंड्स में भर ले। मैं कहता हूँ मैंने न कर दिया
पंक्चर तुम्हारा एक-एक ग्लैंड तो कहना। दिखाते फिरोगे एक-दूसरे को कि
देखो चेरी ने क्या कर दिया है। इन्हें पता नहीं कि चेरी की पहुँच
इनके भी माई-बापों तक है। मैंने एक बार वहाँ जाकर कर दी न रिपोर्ट तो
हड्डियों की गाँठें ढीली हो जाएँगी।”
ज़्यादातर बातें वह काली चमड़ी के रिश्ते से
हिन्दुस्तानी मास्टरों के सामने और हिन्दी में ही कहता था। एक बार
कोहली ने उसे इस तरह खुलेआम बकझक करने से टोक दिया था,
तो पन्द्रह दिन उसके यहाँ खाना जाता रहा था जो
बैरे-चपरासियों का हिस्सा देकर बच जाया करता था। यह बात भी चेरी ने
किसी से छिपा नहीं रखी थी कि वह कोहली को दब्बूपन की सज़ा दे रहा है।
“मैं कहता हूँ क्या करेगा वह यह अच्छा खाना
खाकर? गुरदे में जो सत ईसबगोल भरा है,
उससे सब निकल जाता है बाहर। इसलिए कुछ दिन ऐसा खाना
खा ले जिससे इसका सत ईसबगोल थोड़ा कम हो जाए।”
पर उस समय व्हिस्की का आधा गिलास हाथ में लिये अपनी
कुर्सी पर फैला वह एक मार खाये साँड़ की तरह साँस ले रहा था। मुझे लग
रहा था कि उसने एक बार कुछ लम्बी साँस खींच ली,
तो जैकेट का एकाध बटन ज़रूर
टूट जाएगा।
“तो?”
लैरी सिर से हाथ हटाकर सीधा हो गया।
“तो क्या?”
मैंने पूछा।
“तुम इस हक में बिल्कुल नहीं हो कि
कल हम तीनों—और अगर मिसेज़ दारूवाला भी चलने
को तैयार हो, तो चारों जाकर डी.पी.आई. से मिल
लें? तुम्हें नौकरी छोडऩी ही है,
तो इससे तुम्हारा कुछ बिगड़ नहीं जाएगा?
मगर दूसरों का, जो यहाँ रहना
चाहते हैं इससे थोड़ा भला हो सकता है। मेरी समझ में नहीं आता कि
तुम्हारे मन में डर किस चीज़ का है।”
“मेरे मन में डर किसी चीज़ का नहीं
है।” मैंने कहा, “मगर
मेरे छोडऩे का कारण क्योंकि बिल्कुल व्यक्तिगत है,
इसलिए...”
लैरी वितृष्णा के साथ हँस दिया,
“मैं समझ गया तुम्हारी बात।”
“मैं नहीं जानता कि तुम क्या समझ गये
हो, लेकिन...।”
“मैं बिल्कुल समझ गया हूँ। मेरा
ख्याल है चेरी भी ज़रूर समझ गया होगा। क्यों चेरी,
तुम समझ नहीं गये इसकी बात?”
चेरी के गले से जो आवाज़ निकली,
वह ऐसी थी जैसे एक गाली में से व्यंजन निकालकर केवल
स्वर रहने दिये गये हों। “मैं पहले ही समझ
रहा था।” उसने कहा, “मैंने
तुमसे कहा नहीं था कि मामला कुछ दूसरा ही हो सकता है?”
“इसे पता नहीं है कि उस आदमी की
मियाद यहाँ खत्म हो चुकी है।” लैरी अपने
गिलास में और व्हिस्की डालने लगा। फिर मेरी तरफ मुडक़र कुछ ऊँचे स्वर
में बोला, “तुम सुन रहे हो न मेरी बात?
उस आदमी की मियाद यहाँ खत्म हो चुकी है। इसलिए उसकी
जी-हुज़ूरी करने से तुम्हें कुछ फायदा नहीं होने का।”
मैं अपना गिलास रखकर उठ खड़ा हुआ,
“मैं जा रहा हूँ।” मैंने कहा,
“मुझे नहीं पता था कि तुम लोगों ने इस सबके लिए मुझे
यहाँ बुलाया है।”
लैरी भी साथ ही उठ खड़ा हुआ,
“देखो सक्सेना,” वह मेरी
बाँह थामकर बोला, “तुम्हें यह बताकर जाना
होगा कि तुम हमारे दोस्त हो या दुश्मन।”
“मैं नहीं जानता।”
मैंने बाँह छुड़ाने की कोशिश की। लेकिन उसने बाँह
नहीं छोड़ी, “मैं तो समझता था कि...”
“तुम हमारे दोस्त हो।”
लैरी के हाथ की जकड़ और मज़बूत हो गयी, “दोस्त
होने के नाते तुम्हारा फर्ज़ है कि तुम हमारा साथ दो। तुम हमारा साथ
देने से इनकार नहीं कर सकते।”
“देखो,
लैरी...”
“तुम बैठकर बात करो। मैं इस तरह
तुम्हें यहाँ से नहीं जाने दे सकता।” उसने
मुझे ज़बरदस्ती फिर कुर्सी पर बिठा दिया, “तुम
यह तो मानते हो न कि टोनी व्हिसलर को जितना मैं जानता हूँ,
उतना यहाँ तुम लोगों में से कोई नहीं जानता?”
“यह दावा वह पहली बार नहीं कर रहा
था। कुछ साल पहले वह और टोनी व्हिसलर मद्रास में एक स्कूल में साथ
पढ़ाते थे। उसी आधार पर टोनी उसे यहाँ लाया भी था। पर उसके आने के
एक-डेढ़ महीने के अन्दर ही यह बात दोनों पर स्पष्ट हो गयी थी कि जिस
रूप में वे पहले एक-दूसरे को जानते थे,
वह अब दोनों में से किसी का नहीं
रहा। निराशा के कारण ही लैरी की उन सब लोगों से घनिष्ठता हो गयी थी
जो टोनी के विश्वासपात्र नहीं थे और उनमें भी सबसे ज़्यादा चेरी से।
लैरी इसी तरह का सवाल पूछकर जब कुछ क्षण उत्तर सुनने
की प्रतीक्षा में रुका रहता था,
तो उसका चेहरा, उभरी हुई
आँखों समेत, प्लास्टर आफ पेरिस के एक बुत
जैसा लगने लगता था। फिर अपने आप जैसे लोगों की आँखों से ही उत्तर
पाकर, वह प्लास्टर पिघल जाता था, “तो
मैं तुम्हें बतला रहा हूँ कि उसके यहाँ रहने का समय अब चुक गया है।
जिस तरह यहाँ आकर एकदम यह इस रुतबे पर पहुँच गया है,
उसी तरह एकदम अब इससे नीचे गिरनेवाला है। मैं यह बात
पूरे विश्वास के साथ कह रहा हूँ। तुम्हें मुझ पर ज़रा भी भरोसा है,
तो तुम्हें भी इस बात पर पूरा विश्वास हो जाना
चाहिए। तुम देख लेना...इसमें ज़्यादा वक़्त नहीं लगेगा। मद्रास में तो
हम इसे बहुत अक्लमन्द आदमी भी नहीं समझते थे। सचमुच बहुत मामूली
दिमाग का आदमी माना जाता था इसे। यह तो यहीं आकर इसने अपने लिए इतना
ऊपर तक रास्ता बना लिया है। वहाँ होता तो आज भी यह तीसरे और चौथे
फार्म की क्लासें ले रहा होता।”
चेरी ठोड़ी ऊँची करके लगातार सिगार के कश खींच रहा
था। कुछ देर खाँसने और मुँह में आया बलगम निगल जाने के बाद वह बोला,
“यह तो यहाँ हर आदमी जानता है कि अगले साल तक यह
यहाँ हेडमास्टर नहीं रहेगा। सवाल सिर्फ इतना है कि इसे हटाने में
कामयाब कौन होता है।”
“अगर हम लोग समय से कार्यवाही नहीं
करते, तो यह निश्चित है कि वह स्त्री जो चीज़
चाहती है, वह कर ले जाएगी।”
लैरी ने उसकी बात पूरी कर दी।
वह किस स्त्री की बात कर रहा है,
यह मुझे पूछने की ज़रूरत नहीं थी। स्कूल में जब भी
कोई बातचीत में ‘उस स्त्री’
का ज़िक्र करता था, तो उसका
मतलब मिसेज़ ज्याफ्रे से होता था। ज़्यादातर लोगों की आपसी बातचीत का
विषय भी वही रहती थी। इस दृष्टि से स्कूल में सबसे महत्त्वपूर्ण
व्यक्ति वही थी। रहस्यमय भी, क्योंकि उसके
अतीत को लेकर कई तरह की बातें लोगों से सुनने को मिल जाती थीं। एक
बात जो सबसे ज़्यादा प्रचलित थी, वह यह थी कि
मॉली क्राउन उसके पति की सन्तान नहीं है। “मॉली
आधी हिन्दुस्तानी है,” कोहली कहा करता था,
“जबकि इसका पति इसकी तरह खालिस अँग्रेज़ था। बीस साल
यह एक राजकुमारी की गवर्नेस रही है। उसी ज़माने में सुना है कि...।”
लोगों को मिसेज़ ज्याफ्रे का बीस साल पहले का इतिहास
कहाँ से मालूम हुआ था, पता नहीं। पर बातें
काफी विस्तार के साथ कही जाती थीं। “यह जिस
महाराजा के यहाँ रहती थी, सुना है उसी ने
इसके पति को ज़हर देकर मरवा दिया था। पार्टियों में देखते हो यह कितनी
कीमती पोशाकें पहनकर आती है? वे पोशाकें तुम
समझते हो इसने अपनी तनखाह से बनवाई हैं?”
इसके अलावा भी कई तरह का ब्यौरा उसके बारे में दिया जाता था,
“पता है वहाँ से इसे निकाला क्यों गया था?
यह शिकार पर जाया करती थी महाराजा के एक दोस्त के
साथ। एक बार ऐसा हुआ कि...”
“तुम्हें पता है वह स्त्री क्या खेल
खेल रही है यहाँ?”
चेरी बोला।
मैंने कन्धे दिला दिये। मतलब था कि न मैं जानता हूँ,
न मेरी जानने में दिलचस्पी
है।
“वह अपनी जगह इस कोशिश में लगी है कि
इसे उखाडक़र इसकी जगह एल्बर्ट को हेडमास्टर लगवा दे।”
“और टोनी इतना बेवकूफ आदमी है कि
उसकी इस चाल को समझ ही नहीं रहा।”
लैरी अपना चेहरा मेरे इतने करीब ले आया कि उसकी साँस
से बचने के लिए मुझे अपना सिर काफी पीछे हटा लेना पड़ा। मेरी खामोशी
उन लोगों को एक तरह का बचाव लग रही थी जिसे वे किसी तरह तोड़ देना
चाहते थे।
“वह तो समझता है कि वह स्त्री उसकी
खुफिया है जो यहाँ-वहाँ की सब खबरें उस तक पहुँचाती रहती है।”
“एल्बर्ट और मॉली को भी इस वजह से वह
अपने आदमी समझता है।”
“पर यह स्त्री शतरंज की बिसात पर
बड़ी सावधानी से एक-एक चाल चल रही है।”
“देखा नहीं कि गोरी चमड़ी वाले के
बीच वह अँग्रेज़ बनकर बात करती है और काली चमड़ी वालों के बीच
हिन्दुस्तानी बनकर?”
“यहाँ तक कि बैरों से भी इस तरह बात
करती है जैसे कि वे भी इसके बहुत अपने हों—‘किसने
तुमको बुलाया इदर? मैंने बुलाया?
किसने बोला’—छिनाल कहीं की!”
“तुम बताओ कि जब एल्बर्ट और मॉली एक
बार चले गये थे लन्दन, तो इसने खास कोशिश
करके उन्हें यहाँ क्यों बुलाया था?”
“पिछले हेडमास्टर को पता था कि वह
कितनी बदकार औरत है। तभी न उसने कपड़ों की धुलाई का काम इससे लेकर
इसे किंडरगार्डन की इंचार्ज बना दिया था?”
“किंडरगार्डन में यह उस तरह कमीशन
नहीं ले सकती न, जैसे धोबियों से लिया करती
थी!”
“स्कूल की आधी चादरें और पर्दे उन
दिनों हर साल सिकुड़ जाते थे या गुम हो जाते थे।”
“अगर इसे कमीशन मिल सकता,
किंडरगार्डन के आधे लडक़े भी हर साल गुम हो जाया
करते।”
“इसीलिए स्कूल के पर्दों को छू-छूकर
अब नाक-भौं चढ़ाती रहती है—कैसी धुलाई होने
लगी है आजकल यहाँ?”
“बड़ी बनती है सफाईपसन्द! दुनिया-भर
की गन्दगी ज़िन्दगी भर पेट में भरती रही है!”
“उसे धोने के लिए ही तो पीती रहती है
इतनी स्पिरिट!”
“और चेरी की जगह पर उसकी आँख किसलिए
है? इसलिए न कि...?”
यहाँ पर चेरी ने उसे टोक दिया,
“उसे मिल जाए न इस महकमे का चार्ज,
तो देख लेना हर महीने का खर्च कितना बढ़ जाता है।”
“मेरा मतलब यही था।”
लैरी ने जल्दी से अपनी गलती को सुधारा, “उसे
हर चीज़ में कमीशन लेने की लत पड़ी है, इसीलिए
मैं यह कह रहा हूँ।”
“एल्बर्ट यहाँ हेडमास्टर हो जाए,
इसकी भी कोशिश वह किसलिए कर रही है?
इसलिए नहीं कि अपने दामाद से उसे लगाव है;
वह ऐसा हेडमास्टर चाहती है यहाँ जिसके नीचे अपनी
मनमानी करने में उसे किसी तरह की रोक-टोक न रहे।”
“तुम्हारा ख्याल है एल्बर्ट इसे
समझता नहीं है?”
“एल्बर्ट अच्छी तरह समझता है। मेरा
ख्याल है जितनी नफ़रत एल्बर्ट को इससे है,
उतनी और किसी को हो ही नहीं सकती।”
“देखा नहीं इसकी पीठ पीछे वह कैसे
नाक हिलाता रहता है, जैसे कि उसे इससे बदबू आ
रही हो।”
“खैर वह चीज़ तो वह पब्लिक रिलेशन्ज
के लिए करता है...”
“और जिस तरह वह सबके सामने मॉली से
पूछता रहता है, ‘व्हेयर इज योर बिग मदर?”
“एल्बर्ट मॉली से भी उतनी ही नफरत
करता है जितनी...”
“इसमें तो कोई शक ही नहीं है। पर उसे
जब इस तरह अपना काम बनता नज़र आता है, तो वह
भी सोचता है ठीक है...”
अचानक दोनों आदमी चुप हो गये। बाहर किसी के पैरों की
आहट सुनाई दे रही थी।
“मेरा ख्याल है मिसेज़ दारूवाला है।”
कुछ देर उधर कान लगाये रहने
के बाद लैरी ने कहा और अपनी टाई पर पड़े टमाटर की चटनी के निशान को
उँगली से साफ करने लगा।
पर वह आहट बरामदे तक नहीं आयी। बरामदे के परे से ही
कच्ची बरफ पर पड़ते पैरों की कचर-कचर दूसरी तरफ चली गयी।
“कोई और था शायद!”
लैरी ने एक आशंकित नज़र चेरी पर डाल
ली।
पर चेरी उस आहट से आशंकित नहीं हुआ था,
“होगा कोई।” उसने कहा,
“उधर सिंह की कोठी है। वहाँ आधी रात तक लोगों का
आना-जाना चलता रहता है।”
“तुम्हें विश्वास है न कि...?”
चेरी ने आँखें हिलायीं,
“इस तरह इस काटेज तक आने का किसी का हौसला नहीं पड़
सकता।”
लैरी फिर भी आश्वस्त नहीं हुआ। कुछ देर अपने गिलास को
हाथ में घुमाने के बाद वह व्यस्त भाव से उठ खड़ा हुआ,
“मैं अभी गुसलखाने से होकर आता हूँ।”
पर बाहर जाने के लिए दरवाज़ा उसने काफी आहिस्ता से और
सावधानी के साथ खोला। ठंडी हवा की एक लहर कमरे के धुएँ को चीर गयी।
“बातें बहुत बड़ी-बड़ी करता है,
पर है बहुत कमज़ोर दिल का आदमी।”
दरवाज़ा फिर से बन्द हो जाने पर चेरी अपनी कुर्सी
थोड़ा आगे को सरकाकर बोला, “तुमसे कहता है कि
तुम्हारे अन्दर हौसला नहीं है, पर अपने को
देखो...”
मैंने जवाब न देकर घड़ी में वक्त देख लिया।
“तुम अब तक उस बात का बुरा माने बैठे
हो?”
मैंने सिर हिलाया,
पर कहा फिर भी कुछ नहीं।
“फिर तुम्हारा चेहरा ऐसे क्यों हो
रहा है?”
मैंने ज़बरदस्ती मुस्करा दिया।
“मुझे नींद लग रही है।”
मैंने कहा, “सोचता हूँ कि अब
घर जाकर खाना-वाना खा लिया जाए और...”
“तुम्हें इस आदमी की बातों का बुरा
नहीं मानना चाहिए।” वह बोला, “तुम्हें
पता ही है यह कितना बेवकूफ आदमी है। मैंने तुमसे कोई ऐसी-वैसी बात
कही हो, तो तुम बताओ...”
“देखो,
चेरी...”
“यह मतलबी आदमी है। अपने मतलब से
मेरे पीछे लगा रहता है। तुम्हारी इसके साथ दोस्ती ज़रूर है,
पर तुम इसे ठीक से जानते नहीं हो।”
“मैं कभी दावा नहीं करता कि मैं...”
“हम लोग कभी अलग से बैठेंगे,
तो मैं तुम्हें इसके बारे में बताऊँगा। एक-एक बोटी
माँस और एक-एक गुत्थी नमक के लिए यह आदमी कैसे मेरी मिन्नत करता है,
तुम नहीं जानते।”
“मैंने कहा है न कि मुझे इस बात का
बिल्कुल दावा नहीं है कि...”
“तुम्हारे साथ इसके सम्बन्ध बनाकर
रखने का भी एक राज़ है। तुम्हारी नियुक्ति डी.पी.आई. के ज़रिए हुई थी,
इसलिए यह समझता रहा है कि तुम्हें खुश रखकर यह अपने
को डी.पी.आई. की नज़रों में ला सकता है? मेरे
साथ इसके दोस्ती रखने की वजह भी माँस-मच्छी के अलावा यही है कि मैं
डी.पी.आई. के पास आता-जाता रहता हूँ। टोनी से जो इसकी अनबन हुई है,
उसकी असली वजह तुम जानते हो?”
मैंने बात में दिलचस्पी न रखने के ढंग से सिर हिला
दिया।
“इसका ख्याल था कि यहाँ आकर टोनी का
सबसे नज़दीकी आदमी यही होगा। इसकी नज़र सीनियर मास्टर की जगह पर थी,
क्योंकि इसने सुन रखा था कि जिमी ब्राइट कुछ दिनों
में यहाँ से जानेवाला है? पर जब यहाँ आकर
इसने देखा कि टोनी का अन्दरूनी सर्कल बिल्कुल दूसरा है और कि मिसेज़
ज्याफ्रे और एल्बर्ट क्राउन के सामने इसकी दाल नहीं गल सकती,
तो यह अपनी दूसरी जोड़-तोड़ में लग गया।”
“हो सकता है।”
मैंने फिर भी अपने को तटस्थ रखते हुए कहा, “यह
उसका अपना तरीका है जीने का।”
“तुम बात समझ नहीं रहे।”
वह बोला, “मैं तुम्हें इसलिए
बता रहा हूँ कि वह तुमसे अलग से बात करने लगे,
तो तुम ज़रा होशियार रहो। आज हम लोग यहाँ मिलकर बात
करें, यह सुझाव भी उसी का था। दरअसल यह अपनी
जगह डरा हुआ है कि छुट्टियों के शुरू में टोनी इसे नोटिस न दे दे।
तुम्हें पता ही है, टोनी का यह तरीका है। उसे
जिस आदमी को निकालना होता है, उसे तीन महीने
की तनख्वाह और नोटिस एक ही दिन हाथ में पकड़ा देता है। मैंने भी
इसीलिए इसके सामने आज ज़्यादा बात नहीं की। इसका मतलब यह नहीं कि मैं
इससे या किसी से डरता हूँ। चेरी को और चाहे कुछ भी कह ले,
डरपोक कभी कोई नहीं कह सकता। मुझे जो भी कुछ
कहना-करना होता है, मैं धड़ल्ले के साथ
कहता-करता हूँ। इसीलिए टोनी और किसी से भी उस तरह खम नहीं खाता जिस
तरह मुझसे खाता है, बल्कि पूरे स्कूल में वह
अगर किसी से डरता है, तो मुझसे। मैं अगर आज
डी.पी.आई. से अपनी शिकायत वापस ले लूँ तो उससे जो चाहूँ अपने लिए करा
लूँ। मगर मैं एक बुनियादी चीज़ के लिए लड़ रहा हूँ—हेडमास्टर
और उसके पिट्ठुओं को स्कूल में खाने-पीने की खास रियायतें मिली रहें,
इस चीज़ के खिलाफ—इसलिए अपना
नफा-नुकसान ताक पर रखकर मैं यह चीज़ साबित कर देना चाहता हूँ कि
दुनिया में उसूल नाम की भी कोई चीज़ है। जिस तरह तुम्हारी लड़ाई उसूल
की है कि तुम्हें सीनियर ग्रेड मिलना ही चाहिए जिसके कि तुम हकदार हो,
उसी तरह मेरी भी लड़ाई उसूल की है कि बावर्चीखाने के
काम-काज को लेकर मुझ पर किसी तरह का दबाव नहीं डाला जाना चाहिए। जब
इस काम की उनमें से किसी को समझ ही नहीं है,
तो जिसे समझ है, उसे अपने ढंग से काम करने
देना चाहिए। ठीक है कि नहीं? पर मुझे इस आदमी
पर इतना भी एतबार नहीं है कि कल को हेडमास्टर इसे फुसलाकर अपनी तरफ
करना चाहे तो यह जाकर यहाँ पर हुई सारी बातें उसके सामने उगल नहीं
देगा। यह आज बात मेरी तरफ से कर रहा है, पर
तुम समझते हो इसे सचमुच इस चीज़ का गम है कि कहीं मिसेज़ ज्याफ्रे मेरी
वाली जगह न ले ले? इसे गम है तो इस चीज़ का
कि...”
दरवाज़ा खुलने की आवाज़ से उसकी बात रुक गयी और उसने
अपनी कुर्सी फिर पीछे सरका ली। लैरी अन्दर आया,
तो उसका रूमाल उसके हाथ में
था। पीछे दरवाज़ा बन्द करने और कुर्सी की तरफ बढऩे के उसके ढंग से
स्पष्ट था कि वह गुसलखाने में कै करके आया है। अपनी कुर्सी पर आकर वह
कुछ पल आँखें मूँदे रहा।
“तुम्हारी तबीयत तो ठीक है?”
चेरी ने उससे पूछा।
लैरी ने हाथ से बाहर की तरफ इशारा कर दिया।
“यह उस वजह से हुआ है।”
“उस वजह से यानी...?”
“हवा की वजह से। ठंडी हवा में जाते
ही मेरा सिर चकरा गया था।”
“तुम्हें कोई चीज़ चाहिए इसके लिए।”
“नहीं। मैं अभी ठीक हो जाऊँगा। काफी
ठीक हो गया हूँ अब तक।”
“मेरा ख्याल है तुम्हें अपने
क्वार्टर में जाकर लेट रहना चाहिए।”
मैंने इतनी देर से पहली बार उससे बात की।
“चाहो तो यहीं लेट जाओ कुछ देर के
लिए।” चेरी ने कहा।
“नहीं, मैं
ठीक हो जाऊँगा ऐसे ही।” लैरी हठ के साथ बोला,
“मैं सीधा खुले में चला गया था। पगडंडी की तरफ। इसी
से हवा खा गया हूँ।”
“वहाँ क्या देखने गये थे कि कौन गया
है निकलकर?” चेरी की
आँखें मुझसे मिल गयीं। मैंने अपनी आँखें हटा लीं।
“मैंने कहा था,
देख लूँ वह आ भी रही है या नहीं...दारूवाला। पर नीचे
सडक़ तक वह मुझे कहीं नहीं दिखी। मेरा ख्याल है वह डर के मारे नहीं
आयी कुतिया।”
चेरी का चेहरा कस गया। वह मिसेज़ दारूवाला के लिए जिस
शब्द का प्रयोग स्वयं करता था,
उसे लैरी के मुँह से सुनना उसे गवारा नहीं हुआ।
“हो सकता है उसे मेरी चिट न मिली हो,”
उसने कहा, “मैं ऊपर जाते हुए
एक बैरे के पास चिट छोड़ आया था कि उसके क्वार्टर में दे आये।”
लैरी ने ठीक से आँखें खोल लीं,
“तुम्हें उसका जवाब नहीं मिला था कि वह आ रही है?”
चेरी ने हल्के से सिर हिला दिया और नया सिगार मुँह
में लेकर तीलियाँ घिसने लगा।
“पर तुमने तो कहा था कि वह निश्चित
रूप से आ रही है।”
“मैंने सोचा था कि उसे चिट मिल जाएगी,
तो वह निश्चित रूप से आ जाएगी।”
“तुमने यह नहीं कहा था। तुमने कहा था
कि...”
“मेरा ख्याल था वह आ जाएगी। नहीं आयी,
तो मैं उसके लिए ज़िम्मेदार नहीं हूँ।”
लैरी की आँखों में लाल डोरे उभर आये थे। उसका चेहरा
भी पहले से विकृत हो गया था,
“और तुम कहते हो कि तुम्हारे कहने से वह कुछ भी कर
सकती है।”
चेरी जवाब में कुछ कहने को हुआ,
पर मेरी तरफ देखकर अपने को रोक गया। “इस
वक्त हम इस पर बात नहीं कर रहे।” उसने
आहिस्ता से कहा, “कि मेरे कहने से वह क्या कर
सकती है और क्या नहीं।”
लैरी निचला होंठ बाहर निकालकर ऊपरी होंठ को उस पर
दबाए बारी-बारी से हम दोनों को देखता रहा।
“लगता है तुम लोग इस बीच किसी नतीजे
पर पहुँच गये हो।”
उसने कहा।
“तुम्हारे पीछे हम लोगों में बात तक
नहीं हुई, किसी नतीजे पर क्या पहुँचना था!”
चेरी ने अपने स्वर से मुझे भी
साथ समेट लिया।
“खूब!” लैरी
सिर हिलाने लगा, “बाहर से लग तो ऐसे रहा था
जैसे अन्दर तुम्हारा भाषण चल रहा हो।”
“मैं इससे इसकी पत्नी के विषय में
पूछ रहा था। वह बहुत भली स्त्री है। मुझे बहुत अच्छी लगती है।”
“तो कुछ भी तय नहीं किया तुम लोगों
ने?” लैरी अब मेरी तरफ घूम गया। मेरा ध्यान
उसके हाथ की नसों की तरफ चला गया जो रूमाल को भींचे रहने से बाहर को
उभर आयी थीं। “या मुझे अब इस बातचीत से बाहर
रखने का फैसला किया गया है इस बीच?”
“तुम्हें आज थोड़ी-सी पीकर ही नशा हो
गया है।” चेरी बोला, “इसलिए
बेहतर यही है कि...”
लैरी ने अपने दोनों हाथ हम लोगों की तरफ फैला दिये,
“तुम लोग समझते हो कि मैं परवाह करता हूँ?
मैं तुम दोनों को यह बता देना चाहता हूँ कि मैं
बिल्कुल परवाह नहीं करता। किसी भी चीज़ की परवाह नहीं करता। जो आदमी
टोनी व्हिसलर जैसे आदमी को सुर्ख आँख से देख सकता है,
वह किसी की क्या परवाह कर सकता है?
तो ठीक है। मैं खुद अपने को इस बातचीत से बाहर रखना
चाहता हूँ। मुझे इसमें कोई दिलचस्पी नहीं है। सच पूछो तो मुझे किसी
भी चीज़ में कोई दिलचस्पी नहीं है। मुझे यहाँ की हर चीज़ से उबकाई आती
है—लोगों से, बातों
से, हर चीज़ से।”
“इसकी तबीयत ठीक नहीं है।”
लैरी ने मेरी तरफ देखकर कहा, “मेरा
ख्याल है इसके बाद जो भी बात करनी हो, वह फिर
किसी वक्त की जाए। आज के लिए हम लोग...”
“फिर किसी वक्त क्यों की जाए?”
लैरी अपना रूमाल वाला हाथ कुर्सी की बाँह पर पटकने
लगा, “जो बात इस वक्त नहीं की जा सकती,
वह फिर किसी वक्त भी नहीं की जा सकती। और मैं इस बात
में आता कहाँ हूँ? बात तुम दोनों की है। तुम
दोनों की नौकरी का सवाल है। मुझे क्या पड़ी है कि मैं बीच में दखल
दूँ?”
“लैरी!”
चेरी ने अपने ऊँचे स्वर से उसे दबाने
की कोशिश की।
“मुझसे इस तरह बात मत करो।”
लैरी सरककर अपनी कुर्सी के सिरे पर आ गया, “मैं
किसी के मुँह से इस तरह अपना नाम सुनने का आदी नहीं हूँ।”
“देखो लैरी...।”
मैंने एक मध्यस्थ की तरह कहना शुरू
किया।
“मुझसे इस तरह बात मत करो।”
उसने मुझे भी काट दिया, “मैं
जानता हूँ कि तुम लोग किस वजह से मुझसे बात करने से कतरा रहे हो। मैं
बच्चा नहीं हूँ। मैंने ज़िन्दगी देखी है। मैं आदमी को सूँघकर बता सकता
हूँ कि उसके मन के अन्दर क्या बात है। तुम लोग समझते हो कि मैं समझता
नहीं हूँ। मैं सब समझता हूँ।”
“इसे घर जाकर लेट रहना चाहिए।”
चेरी बोला।
“मुझे कुछ काम भी है।”
मैंने कहा, “इसलिए मैं समझता
हूँ कि...”
“तुम लोग समझते हो कि मुझे ही कुछ
काम नहीं है?” लैरी और भी चमक उठा, “यहाँ
इतनी ज़रा-सी शराब पीने आने के लिए मेरे पास फालतू वक्त रखा है। मैं
आया था तुम दोनों की खातिर, वरना मुझे क्या
पड़ी थी यहाँ आने की? शराब मैंने ज़िन्दगी में
बहुत पी है। औरतें भी बहुत देखी हैं। अगर किसी का यह ख्याल था कि...”
चेरी ने ताव में उसकी बाँह झकझोर दी,
“तुम्हें होश है कि तुम क्या बात कर रहे हो?”
लैरी ने झटके से बाँह छुड़ा ली और पल भर हाँफता हुआ
उसे देखता रहा। फिर ऐसे जैसे कि उसकी बात के उत्तर पर ही सब कुछ
निर्भर करता हो—बोला,
“तुम समझते हो कि मुझे होश नहीं है?”
“हाँ, मैं
समझता हूँ कि तुम्हें होश नहीं है।”
चेरी उसकी आँखों में आँखें गड़ाये रहा।
“सचमुच समझते हो कि मुझे होश नहीं है?”
“हाँ, सचमुच
समझता हूँ कि तुम्हें होश नहीं है।”
“और तुम्हें होश है?”
“हाँ, मुझे
होश है।”
“सचमुच होश है?”
“यह तुम्हें भी दीख रहा है कि सचमुच
होश है।”
“और अगर मुझे कुछ और ही दीख रहा हो,
तो?”
“और क्या दीख रहा है?”
“तुम जानना चाहोगे?”
“क्यों नहीं जानना चाहूँगा?”
मैंने अपने को तैयार कर लिया था कि जहाँ से ये
सवाल-जवाब रुकेंगे वहाँ एक का हाथ दूसरे के गले की तरफ बढ़ जाएगा। वे
अपनीे-अपनी कुर्सियों पर कुछ उसी तरह आगे को बढ़ भी आये थे। मैं उनके
बीच बिल्कुल फालतू पड़ गया था। अगर मैं कुछ कहता,
तो वह उनके कानों को छूता भी नहीं। आगे आने वाले
‘कुछ’ की प्रतीक्षा
में मैंने अपने को अपनी कुर्सी पर ढीला छोड़ दिया। वे दोनों भी जैसे
उसी ‘कुछ’ की
प्रतीक्षा में कुछ पल एक-दूसरे को देखते रुके रहे। फिर लैरी ने सिर
पीछे टिकाते हुए वितृष्णा के साथ हँस दिया, “मैं
तुम्हें बताकर अपने को छोटा नहीं करना चाहता।”
“हाँ, वैसे
तो तुम काफी बड़े हो।”
कहकर चेरी ने कुछ देर और प्रतीक्षा की। फिर वह भी
अपनी जगह ठीक से हो गया।
उसके बाद खामोशी का एक लम्बा अन्तराल रहा। हम तीनों
बिना एक-दूसरे की तरफ देखे अपनी-अपनी अस्थिरता को दबाये पर्दों,
गिलासों और दीवारों तथा दीवारों के कोनों में उभर
आयी सीलन को देखते रहे। मुझे खुद अपने अन्दर मितली-सी उठती महसूस हो
रही थी। लग रहा था जैसे कोई हाथ मेरे अन्दर उतर गया हो और वहाँ धडक़ते
लोंदे को धीरे-धीरे अपने में भींचता जा रहा हो। मैंने काफी देर से
सिगरेट नहीं पिया था। पीने को मन नहीं था,
बल्कि अपनी साँस से टकराता चेरी के सिगार का धुआँ भी मुझे बरदाश्त
नहीं हो रहा था। उस गन्ध के अलावा एक और गन्ध जो मेरी उबकाई को बढ़ा
रही थी, वह थी लैरी की
अलकोहल-मिली साँसों की। सिर पीछे डाल लेने के बाद उसने अपनी बाँहों
और टाँगों को बेतरह फैल जाने दिया था और उसके फैलने का ढंग कुछ ऐसा
था कि उसका सिर मेरी तरफ को काफी झूल आया था। चेरी लगातार
लम्बे-लम्बे कशों का धुआँ बाहर उँडेलता हुआ इस तरह इधर-उधर आँखें
घुमा रहा था जैसे कि हम लोगों का वहाँ होना उसके ठीक से किसी चीज़ को
देख सकने में बाधा हो।
मैं सोच रहा था कि वहाँ से चलने का प्रस्ताव लैरी के
मुँह से निकले,
तो ज़्यादा अच्छा होगा। अपनी उबकाई पर काबू पाये मैं
उसकी प्रतीक्षा करता रहा। पर उसके चेहरे और आँखों के स्थिर होते भाव
से जब यह लगने लगा कि वह वहीं पड़ा-पड़ा सो न जाए,
तो मैंने अपनी तरफ से खामोशी को तोडऩे का निश्चय कर
लिया, “मैं अब चल रहा हूँ।”
मैंने कुर्सी से उठते हुए लैरी की बाँह को छूकर कहा,
“तुम्हारा इरादा अगर कुछ देर और यहीं बैठने का है,
तो...”
लैरी ने एक झटके के साथ अपने को सँभाल लिया। आसपास इस
तरह देखा जैसे कि जहाँ होने की आशा थी,
उसकी जगह अपने को किसी और जगह पर देख रहा हो। फिर
चेरी के चेहरे पर नज़र डालकर उसने जैसे पिछली स्थिति से इस स्थिति का
सम्बन्ध जोड़ा और ठक् से फर्श पर जूतों की आवाज़ करता उठ खड़ा हुआ,
“मैं भी चलूँगा।” उसने कहा,
“मैं तो कब का चला गया होता। अगर तुम्हें इस तरह
जमकर बैठे न देखता। मैं न तो अपनी वजह से आया था यहाँ,
और न ही...न ही...।”
आगे बात पूरी न कर सकने से उसने होंठ चबा लिया।
चेरी हम लोगों के उठने की प्रतीक्षा में था।
“अच्छा” उसने
अपनी कुर्सी छोड़ते हुए मुझसे कहा, “फिर किसी
दिन बैठेंगे तो बात करेंगे।” साथ आँखों से
उसने मुझे समझाने की चेष्टा की कि हम दोनों के बीच कोई गलतफहमी नहीं
है, मैं उस लिहाज़ से मन में किसी तरह की बात
लेकर न जाऊँ। लैरी ने भी उसका आँखों का वह भाव देखा और फिर एक बार
वितृष्णा से हँस दिया, “आओ चलें।”
उसने कहा और दरवाज़े की तरफ
बढ़ गया।
बाहर निकलने पर हवा इतनी तीखी लगेगी,
इसका अन्दाज़ा कमरे में बैठे हुए मुझे नहीं था।
पगडंडी पर आकर लैरी ने मेरे कन्धे का सहारा ले लिया। मुझे बुरा नहीं
लगा क्योंकि खुद मुझे भी उस समय उस तरह के सहारे की ज़रूरत महसूस हो
रही थी। एक-एक कदम चलते हुए लग रहा था जैसे इस बीच बरफ की फिसलन पहले
से काफी बढ़ गयी हो। यहाँ तक कि दो-एक जगह बरफ से बचकर चलने की कोशिश
में मैं पगडंडी से हटकर झाडिय़ों के अन्दर चला गया। एक जगह तो लैरी
मुझे वक्त से सँभाल न लेता,
तो मैं ढलान से सीधा नीचे को लुढक़ जाता।
“बहुत गन्दी शराब थी।”
कुछ दूर उतरने के बाद सामने आये बरफ के एक लोंदे को
पैर से हटाते हुए उसने कहा, “अच्छी शराब पीकर
मेरी तबीयत कभी खराब नहीं होती।”
“अच्छा है हम आज की शाम के बारे में
बात न करें।” मैंने
कहा। मुझे कोशिश करनी पड़ रही थी कि नीचे सडक़ पर पहुँचकर उससे अलग
होने तक अपनी तबीयत ज़्यादा खराब न होने दूँ।
“तुम ठीक कहते हो।”
वह बोला, “मुझे नहीं पता था
यह शाम इतनी गन्दी बीतेगी।”
“मैं तो यहाँ आने के लिए तैयार होकर
आया भी नहीं था। मेरा तो ख्याल था कि...”
“हम लोग अगली बार अकेले बैठेंगे।
जैसे हमेशा बैठते हैं पहली से पहले ही किसी दिन।”
“हाँ, पहली
के बाद तो छुट्टियाँ हो जाएँगी।”
“मैं कह रहा हूँ न उससे पहले ही किसी
दिन। इसीलिए तो कह रहा हूँ। लेकिन एक चीज़ का तुम्हें ध्यान रखना
चाहिए।” इस बार वह
ठोकर खा गया और मैंने उसे सँभाल लिया।
“किस चीज़ का?”
“इस आदमी की बातों में आकर कोई गलत
कदम न उठा लेना।”
मैंने उसे जवाब नहीं दिया। देखने की कोशिश की कि
पगडंडी के अभी कितने मोड़ बाकी हैं।
“तुम इसे नहीं जानते।”
वह बोला, “मैं जानता हूँ। आज
बल्कि पहले से ज़्यादा जान गया हूँ। तुमने देखा है न कि इसकी ‘वह’
भी आज नहीं आयी। वह भी इसे जानती है।”
“हूँऽऽ!”
मैंने कहा और अपनी छाती को हाथ से
दबा लिया। कुल दो-तीन मिनट और अपने पर काबू रखने की ज़रूरत थी।
“तुम समझते हो कि इसकी चिट उसे मिली
नहीं होगी? मैं यह बात मान ही नहीं सकता। चिट
ज़रूर मिली होगी, पर वह जान-बूझकर नहीं आयी।
जानती है कि इसके साथ मिलने-जुलने में नौकरी का खतरा है। वह अपनी
नौकरी खतरे में क्यों डाले?”
एक ही मोड़ और था जिसके बाद चौड़ी सडक़ थी।
“फिर कभी बैठेंगे,
तो बात करेंगे।” मैंने कहा,
और इस तरह तेज़ चलने लगा जैसे
कि पगडंडी की ढलान ने ही इसके लिए मजबूर कर दिया हो। उसे भी ज़बरदस्ती
घिसटकर मेरे साथ तेज़ चलना पड़ा।
“एक मैं ही हूँ,”
वह कहता रहा, “जो इन चीज़ों
की परवाह नहीं करता। कल को देख लेना यह भी जाकर हेडमास्टर के तलवे
चाट आएगा। मगर मैं इन चीज़ों से बहत ऊपर हूँ। मैं अपनी म$र्जी
से ऐसी पचास नौकरियाँ छोड़ सकता हूँ। पर कोई मेरे साथ चालाकी बरतकर
मुझे किसी जाल में फँसा दे, ऐसा मैं नहीं
होने दे सकता। तुमको भी मैं इसीलिए होशियार किए दे रहा हूँ। यह मेरी
गलती थी जो मैं आज तुम्हें इसके यहाँ ले गया। मैं अपनी गलती साफ मान
रहा हूँ। पर इसके बाद अगर कुछ होता है, तो वह
मेरी गलती नहीं होगी। यह भी मैं तुमसे साफ कहे दे रहा हूँ। तुम अपनी
म$र्जी से छोडक़र जाना चाहो,
यह तुम्हारे ऊपर है। पर अगर तुम अपनी नौकरी बनाए
रखना चाहते हो, तो इस आदमी से अपने को बचाकर
रखना। यह तुम्हें कई तरह का लोभ दे सकता है—तुम्हारे
यहाँ यह चीज़, वह चीज़ भिजवाने का,
इसका, उसका। अपनी ‘उस’
के साथ तुम्हारी दोस्ती कराने का। अगर तुम इसकी
बातों में आ गये, तो देख लेना क्या होता है।
जो हाल इसका होगा, वही तुम्हारा भी होगा। फिर
मुझसे मत कहना कि...”
पाँव सडक़ पर पहुँच जाने से उसकी बात रुक गयी। उसने इस
तरह आसपास देख लिया जैसे कि जिस परदे की ओट में वह बात कर रहा था,
वह एकाएक सामने से हट गया हो। “बहुत
जल्दी पहुँच गये नीचे।” उसने कहा, “तो
ठीक है। फिर किसी दिन बैठेंगे, तो बात
करेंगे।”
मैंने किसी तरह उसका हाथ अपने हाथ में लिया और
आहिस्ता से हिला दिया। उसका हाथ पहले दो-एक क्षण तो ढीला रहा,
फिर मेरे हाथ पर कस गया। “याद
रखना, मैं तुम्हारा दोस्त हूँ,”
कहकर वह मुस्कराया। “वह आदमी
दोस्त नहीं है।” मैंने
भी मुस्कराकर इसकी स्वीकृति दी। फिर हम हाथ हिलाकर अपने-अपने
क्वार्टर की तरफ चल दिये।
मेरे लिए अपनी उबकाई रोकना असम्भव हो रहा था। फिर भी
जितना रास्ता रोशनी थी,
उतना रास्ता मैंने साँस रोके हुए पार कर लिया। पर उस
खम्भे के पास आते ही जिससे आगे घर तक अँधेरा ही अँधेरा था,
मैं खड्ड की तरफ झुक गया और
अपनी छाती के कसाव को मैंने ढीला हो जाने दिया।
शीर्ष पर वापस
[संचयन मुख्य सूची] |