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 रामचन्द्र शुक्ल ग्रंथावली -  

सृजन के विविध आयाम

पत्र-साहित्य


आचार्य शुक्ल के पत्र  श्रीकेदारनाथपाठक के नाम
 
(1)
रमईपट्टी-मिर्जापुर
ता. 13-10-1905
 
प्रियवर
    कृपाकार्ड मिला। मेरे ऊपर जो यहाँ आक्रमण हो रहे हैं उसका हाल तो आपने बाबू भगवानदास1 से जान ही लिया होगा। इस समय मेरे ऊपर केस लाने की तैयारियाँ हो रही हैं। बाबू काशीप्रसाद कहते हैं कि वह चिट्ठी जो 'बंगवासी' में देवीप्रसाद के नाम से छपी है उनकी लिखपढी नहीं है। इसका, वे कहते हैं कि उनके पास प्रमाण है। केस लाने में अभी दो-तीन दिन की देर है। इस बीच में मुझे एक दो काम करना है।
    प्रथम तो मुझे सिध्द करना है कि वह चिट्ठी काशीप्रसाद की ही लिखी है। यह बात सिध्द हो जाने पर सब बखेड़ा मिट जाएगा और काशीप्रसाद मुआफी माँगेंगे परन्तु यदि सिध्द न हो सका तो वे कहते हैं कि मुझे मुआफी माँगना होगा।
    बाबू काशीप्रसाद यह भी कहते हैं कि वे इस बात को प्रमाणित कर देंगे कि वह 'मोहिनी'2 वाली चिट्ठी मैंने लिखी है, पर मैं नहीं जानता कैसे। आगे जो कुछ होगा बराबर लिखता रहूँगा। इधर पत्र न देने का कारण यह था कि मैं चाहता था कि यह सब झगड़ा निपट जाए तब मैं आपके पास लिखूँ। वहाँ का हाल लिखिए।
 
आपका
रामचन्द्र शुक्ल
 
1.  रमईपट्टी, मिर्जापुर निवासी, शुक्ल जी के बचपन के साथी।
2. कलकत्ता से निकलने वाली पत्रिका।

(2)
मिर्जापुर
25-11-05
प्रिय पाठकजी
    कृपा कार्ड पाया। आपकी आशा के लिये धन्यवाद। प्रियवर, आजकल मेरे ऊपर ईश्वर की अथवा शनैश्चर की बुरी दृष्टि है। एक के उपरान्त दूसरी, दूसरी के उपरान्त तीसरी विपत्ति में आ फँसता हूँ। सुनिए, मैं काशी आने की पूरी तैयारी कर चुका था परन्तु बीच में मेरे घर ही में एक विलक्षण षडचक्र रचा गया। हरिश्चन्द्र का गौना छ: या सात दिन में आने वाला है। मेरे पिताजी इधार कई दिनों से दौरे पर हैं। इसी बीच में मेरी विमाताजी को भी भयंकर मूर्ति धारण करने को सूझी। 400) का जेवर गायब करके कह दिया कि मेरे पास ही से घर में से चोरी हो गया। वे जेवर प्राय: वही थे जो हरिश्चन्द्र के विवाह में मिले थे। आप जानते होंगे कि ऐसी कार्रवाइयाँ दो बार वह और भी कर चुकी हैं। मेरे पिताजी को खबर दी जा चुकी है, आज वह आने वाले हैं। जब तक वे न आ जायें मेरा यहाँ से टलना उचित नहीं। बाबू श्यामसुन्दरदास को भी मैंने टेलीग्राम दे दिया है।
   आपने लिखा है कि ''मारे लज्जा के माथा ऊँचा नहीं होता।'' प्रियवर, थोड़े दिन माथा नीचा ही किए रहिए, यदि ईश्वर की इच्छा होगी तो वह ऊँचा हो ही जायगा। (मेरी कायरता का क्या परिणाम आपको उठाना पड़ा स्पष्ट लिखिए, मुझे बड़ा दु:ख है) आपने लिखा है कि बाबू श्यामसुन्दरदास को बुरा होना पड़ा। यह बात मेरी समझ में नहीं आती। किससे बुरा होना पड़ा? क्या सारे संसार से? क्या संसार ही मेरे विरुध्द है। महावीरप्रसाद द्विवेदी से वे बुरे हुए तो कोई नई बात नहीं हुई। रहे कोटाधीश1 वे द्विवेदी के उपासक ही ठहरे। उनसे बुरा होने में बाबू श्यामसुन्दरदास ऐसे धीर मनुष्य को दु:ख मानना न चाहिए। हाँ, उनके अनुरोध पालन में मैंने विलम्ब किया इसका अवश्य उन्हें दु:ख होगा। इस विषय में मैं और आपसे क्या कहूँ, मैं काशी आने के लिए तैयार बैठा हूँ। केवल पिताजी की प्रतीक्षा कर रहा हूँ। आज वे आने वाले हैं। आप कहते हैं कि तुमने अपने आगे आने वालों के मार्ग में कंटक बिछा दिया। प्रियवर, मुझे स्वप्न में भी यह विश्वास नहीं हो सकता कि आप ऐसे सुहृद् और स्नेही मित्र मेरे निकट आने में उन कंटकों की परवाह करेंगे। वे उन कंटकों का मर्दन करेंगे, उन्हें पददलित करेंगे। आपको मेरे ऊपर रुष्ट न होना चाहिए, दया करनी चाहिए। मेरी दशा की ओर ध्यान देना चाहिए। चारों ओर बवंडर चल रहा है, हृदय डाँवाडोल है।
आपका
किकर्तव्यविमूढ़ रामचन्द्र शुक्ल
 
1. श्री काशीप्रसाद जायसवाल।


(3)
रमईपट्टी, मिर्जापुर
22 अगस्त, 06
प्रिय पाठकजी
    प्रणाम
    कृपाकार्ड मिला। चित्त प्रसन्न हुआ। मैं इधर कई आपत्तियों से बराबर घिरा रहा। मेरे घर में कालरा हो गया था। मैं स्वयं बराबर बीमार रहा। अच्छे होने की कम आशा थी। एक लड़का भी दो महीने का होकर मर गया। सारांश यह कि जो जो उपद्रव चाहिए सब इसी डेढ़ महीने के बीच हो गए। खैर अब से भी ईश्वर अनुग्रह करे। आप पत्र का उत्तर न पाने से अवश्य रुष्ट हुए होंगे। पर अब आपको दया करनी चाहिए। मेरे ऊपर वैसी ही कृपा बनाए रहिए, यही प्रार्थना है। आपका यहाँ से चला जाना मुझे बहुत अखर रहा है।
    कोटाधीश विलायत में बैरिस्टरी भी पढ़ेंगे और व्यापार भी सँभालेंगे। बेंकटेश्वर समाचार में 'हिन्दी लेखक का विलायत गमन' देखा। यह गमन समय में आप लिखवाते गए हैं।
    'पिंकाट' की जीवनी यदि 'बंगवासी' में मिल जाए तो बहुत अच्छी बात है। विलायत से चिट्ठी का जवाब जो आपके पास आया है, कृपा करके उसकी नकल मेरे पास भेज दीजिए। आपके यहाँ न रहने से मेरा कुछ भी हाथ पैर नहीं चलता है। किन्तु मुझे दृढ़ आशा है कि आप मुझे वहाँ से भी उकसाते रहेंगे।
    यदि आप जीवनी वहाँ से भेज दें तो मैं हाथ लगा दूँ। देखिएगा, कृपा बनाए रहिएगा। पत्र बराबर देते रहिए। अब मैं भी स्वस्थ हो गया हूँ, मुझसे भी त्रुटि न होगी। आप अपने आने के विषय में अवश्य लिखिए। आपको ऐसी प्रतिज्ञा करनी चाहिए। न मिर्जापुर में इच्छा हो तो काशी ही में आकर रहिए। इस प्रकार अपने प्रति और मित्र वर्ग का परित्याग कर देना ठीक नहीं। आशा है आप उचित उत्तर देंगे।
आपका वही
रामचन्द्र शुक्ल
 
(4)
बस्ती
25-5-08
प्रियवर
    प्रणाम
    मुझे यहाँ आए आज पाँच दिन हुए। एक कार्ड मैं आपकी सेवा में यहाँ से भेज चुका हूँ। उससे सब समाचार विदित हुए होंगे। आपका स्वास्थ्य अब कैसा है? मेरी तबीयत तो यहाँ आने से ठीक हो गई है। बाबू राधाकृष्ण की जीवनी मैं यहीं से समाप्त करके बहुत शीघ्र भेजूँगा। सब लिख गई है केवल पत्र आदि स्थान-स्थान पर सन्निविष्ट करना है। आपको मैं थोड़ा कष्ट देता हूँ, नीचे लिखी पुस्तकें मेरे पास यहाँ पर नहीं है। मैं मिर्जापुर छोड़ आया-
    (1) श्री गंगाप्रसाद गुप्त लिखित बाबू राधाकृष्णदास का जीवन चरित्र।
    (2) सभा के गृह प्रवेशोत्सव के समय की कविता और विवरण।
    कृपा करके ये दोनों चीजें शीघ्र भेज दीजिएगा। रिपोर्ट आदि भी जो मैंने माँगा था यदि भेज दीजिए तो अच्छा है। विशेषकर वे जिनमें उनका कुछ उल्लेख हो।
    बाबू श्यामसुन्दरदास के विषय में भी लिखिएगा। कोश विभाग का कार्य किस प्रकार चल रहा है? बाबू श्यामसुन्दरदास बाहर गए? और जो नए समाचार हों लिखिए, पत्र बराबर भेजते रहिएगा।
    गाँव-अगौना
    डाक-कलवारी                         आपका
    जिला-बस्ती                    रामचन्द्र शुक्ल
 
शीघ्रता के विचार से मैं एक टिकट रख देता हूँ। पता मेरा हिन्दी में ही लिखिएगा। पत् इस पते से भेजिएगा-
    रामचन्द्र शुक्ल
गाँव-अगौना पो. आ.-कलवारी जिला-बस्ती


(5)
रमईपट्टी, मिर्जापुर
2-8-08
प्रियवर
    हरिश्चन्द्र1 कल बनारस से आए और कहा कि पाठकजी कहते हैं कि अब आते क्यों नहीं, देर हो रही है। इसका क्या अभिप्राय है मेरी समझ में नहीं आया; क्योंकि मुझे अबतक बाबू श्यामसुन्दरदास का कोई पत्र नहीं मिला और न आप ही ने कुछ लिखा। साफ-साफ लिखिए कि क्या बात है। यदि बाबू श्यामसुन्दरदास ने कोई पत्र बुलाने के लिये भेजा हो और वह मुझे न मिला हो तो कृपा करके एक पत्र या टेलीग्राम तुरन्त भेजिए। हरिश्चचन्द्र की बात मेरी समझ में न आई।
    मैं आते समय आपके घर पर गया था, बाबू वृजचन्द्र2 जी के यहाँ भी गया था, पर आपका पता न लगा। बाबू श्यामसुन्दरदास के यहाँ मुझे देर हो गई थी
1.  आ. शुक्ल के अनुज।
2. भारतेन्दु हरिश्चन्द्र के भतीजे।
इसी से लाइब्रेरी में नहीं गया। आते समय मैं आपसे नहीं मिला, इसका मुझे भी खेद है। पर इसमें मेरा दोष न जानकर क्षमा कीजिएगा।
आपका
रामचन्द्र शुक्ल
 
 
(6)
मिर्जापुर, शनिवार
प्रियमित्र
    पत्रा भेजने में देर हुई, क्षमा कीजिएगा। मैं आपके घर पर गया था वहाँ सब कुशल हैं।
    मेम्बर होने के लिए पत्र मैं आप ही के पास भेज देता हूँ। आप उस पर दो आदमियों के हस्ताक्षर बनवा कर सभा में दे दीजियेगा। 3) वार्षिक चन्दा मैं दूँगा। वर्तमान वर्ष का आधा चन्दा 1ड्ड) मैं सेक्रेटरी के नाम भेजता हूँ।
    मेरे लेख पर क्या विचार हुआ यह भी लिखिएगा। आप मिर्जापुर कब तक आवेंगे? मेरे ऊपर कृपा बनाए रहिएगा।
 
भवदीय
रामचन्द्र शुक्ल
 
 
(7)
प्रिय पाठकजी
    आप काशी जाते समय मुझसे नहीं मिले। कहिए, सभा के उत्सव का क्या रंग-ढंग है। यदि मैं आना चाहूँ तो क्या आप मेरे लिए एक कार्ड का प्रबन्ध कर सकते हैं? कृपा करके इसका उत्तर आप शीघ्र निश्चित रूप से दीजिए। मैं तो समझता था कि आप इसके विषय में मुझे अवश्य लिखेंगे पर आपने मौनावलम्बन ही उचित क्यों विचारा?
 
भवदीय
रामचन्द्र शुक्ल
 
 
अंतिम पत्र में तिथि और स्थान आदि का उल्लेख नहीं है।


आ. शुक्ल के पत्र श्री रायकृष्णदास के नाम
(1)
बनारस सिटी
20.3.11
प्रियवर रायसाहब
    आपका 12 ता. का लिखा हुआ कार्ड आज मिला। इसके पहले एक और पत्र आया था पर आपका पता ठीक न जानने के कारण उत्तर न दे सका था।
    पत्र निकालिए, मैं मदद देने के लिये हर तरह से तैयार हूँ। कब से निकालिएगा? क्या नाम होगा? इन सब बातों का तो आपने निश्चय कर लिया होगा।
    पाठकजी मुझसे कल मिले थे। आजकल बा. रामप्रसन्न घोष की बीमारी के कारण व्यग्र रहते हैं और इधर-उधार कम दिखाई पड़ते हैं। मिलने पर आपकी लिखी सब बातें उनसे कह दूँगा।
    सभा के कार्यकर्ताओं की अहंमन्यता दिन-दिन बढ़ती जाती है पर अभी फिर मेरे पास तक नहीं पहुँची है, नहीं तो उपचार का आरम्भ हो जाता। पं. रामनारायण मिश्र ने उस दल से अपने को अलग कर लिया है। पर गौरीशंकर प्रसाद अभी नहीं सम्भल रहे हैं।
आपका
रामचन्द्र शुक्ल


(2)
शिवाला घाट
बनारस सिटी
6-6-11
प्रियवर
    रायसाहब
    आशीर्वाद।
    आपका पत्र पाठकजी ने दिया था। मुझे 'सरोज' से पूरी सहानुभूति है। उसके लिए मैं सब कुछ करने के लिये तैयार हूँ आप निश्चय रखिये। लेख मैं आपको अवश्य दूँगा। किन्तु इस समय आप देख रहे हैं कि हम लोग किस झंझट में फँसे हुए हैं। अब जब इस झगड़े में पड़ गए हैं तब बिना इसे किसी परिणाम तक पहुँचाए किनारा खींचना अपने को उपहासास्पद बनाना है। इस समय आपका यहाँ न होना हम लोगों को बहुत खटक रहा है। कई बातें ऐसी उपस्थित हो जाती हैं जिनमें आपकी सहायता की आवश्यकता होती है। सभा के वार्षिक अधिवेशन तक यदि आप और धैर्य रखते तो अच्छा ही था। नहीं तो यदि आपकी ऐसी ही प्रबल इच्छा है तो खैर, मैं कुछ लिखूँगा। मुझे आप किसी प्रकार से इस विषय में उदासीन न समझिए।
    बाबू राधाकृष्ण दास जी की कवितायें मिर्जापुर में रक्खी हैं। मैं रविवार तक मिर्जापुर जाने वाला हूँ। वहाँ से आपके पास छाँट कर कुछ कविताएँ भेज दूँगा।
    आपने पाठकजी के पास जो कार्ड भेजे हैं उन्हें भी देखा। आप असन्तुष्ट जान पड़ते हैं। आशा है कि ऊपर लिखी बातों पर विचार करने से आपको सन्तोष हो जायगा।
    प्रतिलिपि फार्म भी आपके पास दो-एक दिन में भेजा जायगा।
आपका,
वही
रामचन्द्र शुक्ल
 
  [  नोट-'सरोज' की विज्ञप्ति आगे दी गई है। ]
 
    पाठकजी का छोटा लड़का सागर बहुत बीमार था। इससे वे बहुत व्यग्र हैं और इधर-उधर दौड़ रहे हैं।
 
(3)
शिवाला घाट
बनारस सिटी
26-6-11
प्रिय रायसाहब,
    आशीर्वाद!
    लेखों के लिए मैंने लोगों से प्रार्थना की है और लेख मिलने की आशा भी है पर इस पहली संख्या के लिए और लेख बाहर से नहीं आ सकते। पर कोई चिन्ता नहीं, हम मैटर पूरा कर लेंगे। बाबू जगमोहन वर्मा से एक लेख मिल जाएगा।
    हाँ, एक बात बतलाइए। सरोज का हिसाब-किताब कहाँ रहेगा? ग्राहकों को किस पते पर पत्र और रुपया आदि भेजना चाहिए? क्या अभ्युदय प्रेस वाले इस झंझट को अपने सिर पर लेंगे और सरोज के मैनेजर बनेंगे? हितवार्ता, भारतमित्र ओर बिहार बन्धु को मैंने नोट भेज दिए हैं जो शीघ्र प्रकाशित होंगे।
    आप राय देवीप्रसाद 'पूर्ण' को कविता के लिये लिखिए। आपने जो मैटर भेजा है वह अभी मुझे नहीं मिला। शायद आपने सभा के पते से भेजा है तो कल ऑफिस खुलने पर मिलेगा। पत्र 'शिवाला घाट' ही के पते से भेजा कीजिए।
आपका
रामचन्द्र शुक्ल
 
    हाँ, कृष्णकान्तजी से आपसे भेंट अवश्य हुई होगी। उस दिन जब हम लोग गए थे तब वे घर पर नहीं थे, पर हम लोग सब बातें भट्टजी से कह आए थे। उनसे उन्हें मालूम हो गई होंगी।
 
(4)
शिवाला घाट
बनारस सिटी
3-8-11
प्रियवर
    राय साहब,
    आज हम लोग आपकी प्रतीक्षा में थे। अब वार्षिक अधिवेशन बहुत निकट है। दो ही तीन दिन रह गए हैं। आप कृपा करके अब आ जाइए। बाहर से जो प्राक्सी आई हैं वे अधिकांश आप ही के नाम हैं। यदि कहीं आप उस दिन न रहे तो सब किया, कराया मिट्टी हो जाएगा। इतना धयान रखिएगा। हम लोग अब घबड़ा रहे हैं। कल तक और देखते हैं। यदि आप न आए तो  तार देगे
आपका
रामचन्द्र शुक्ल
 
(5)
नागरी प्रचारिणी सभा
बनारस सिटी-191
प्रियवर रायसाहब,
    आज इस समय पं. गोविन्दनारायण मिश्र सभा में आ रहे हैं। पराड़कर जी तथा और सब लोग भी यहाँ आए हुए हैं। आपको भी नोटिस तो अवश्य मिली
 
क्व श्री कृष्णकान्त मालवीय-संपादक, अभ्युदय, इलाहाबाद।    सभा का वार्षिक अधिवेशन।
होगी, क्योंकि बाबू व्रजचन्द्र नोटिस पाकर आए हैं। इस अवसर पर आपको भी थोड़ी देर के लिए जाना चाहिए। यदि आप न आ सके तो मैं मीटिंग समाप्त होने पर आपके पास आऊँगा।
 
आपका
रामचन्द्र शुक्ल
 
(6)
प्रियवर रायसाहब,
    अनेक आशीर्वाद।
    आपका कृपापत्र मुझे कल मिला क्योंकि मैं भी इधर प्लेग के कारण मिरजापुर चला गया था। पाठकजी आज आए थे। वे इधर एक महीने से अपने किसी भाई का विवाह ठीक करने में लगे हैं। दो-तीन बार पटने जा चुके हैं। आज फिर जा रहे हैं। उन्होंने कहा है कि पटने से लौटकर मैं प्रयाग जाऊँगा। व्यग्रता के कारण वे इधर आपको कोई पत्र भी न दे सके इस बात का उन्हें बड़ा खेद है और इसके लिए वे आपसे क्षमा माँगते हैं। 5 या 6 दिन में पटने से लौटने को कहा है।
    मुझे यह जानकर बड़ी प्रसन्नता है कि आप मासिक पत्र निकालने पर दृढ़ हैं। ईश्वर आपकी यह अभिलाषा शीघ्र पूर्ण करें। मुझसे जो कुछ हो सकेगा मैं उसके लिए करने को तैयार हूँ।
    यहाँ 15 तारीख को बाबू श्यामसुन्दरदास आए थे और 6 दिन रहे। पर सभा भवन में पैर नहीं रखा। इस पर बिहार-बन्धू ने एक नोट लिखा है जिसमें कहा है कि सभा के कुछ कार्यकर्ताओं की कुटिलता ही के कारण ऐसा हुआ है। बाहर से भी ग्रन्थमाला की सहायता बन्द होने और भट्टजी के अलग होने के विषय में सभा से प्रश्न हुए हैं। लेखमाला के सम्बन्ध में भी प्रश्न हो रहे हैं। बाजार फिर गर्म है। इन अनाड़ी और निरंकुश कार्यकर्ताओं की खबर लेने का अच्छा मौका है। आगामी चुनाव में इन सबको निकाल बाहर करने का विचार है। आशा है कि आप भी इस कार्य में सहायता देंगे। और सब बातें मिलने पर करूँगा।
आपका
रामचन्द्र शुक्ल
'सरस्वती' पत्रिका का प्रकाशन जनवरी 1900 ई. में नागरी प्रचारिणी सभा काशी के तत्तवावधान में इंडियन प्रेस इलाहाबाद से प्रारंभ हुआ था। प्रारंभ में इस पत्रिका का संपादन एक संपादन समिति करती थी। इस समिति का कार्यालय बनारस में था और किशोरीलाल गोस्वामी, जगन्नाथ दास बी.ए., राधाकृष्णदास, कार्तिक प्रसाद खत्री और श्यामसुन्दरदास इसके सदस्य थे। दूसरे वर्ष से 'सरस्वती' के संपादन का उत्तारदायित्तव अकेले श्यामसुन्दरदास पर आ गया। 1903 ई. में पं‑महावीरप्रसाद द्विवेदी 'सरस्वती' के संपादक बनाए गए। इसी बीच द्विवेदीजी ने 'सभा की खोज रिपोर्ट' की तीखी आलोचना की। इस आलोचना से खिन्न होकर सभा के सदस्यों ने 'सरस्वती' से समर्थन वापस लेने की धमकी तक दे डाली। इंडियन प्रेस के मालिक चिंतामणि घोष ने इसका फैसला द्विवेदीजी पर छोड़ दिया। अप्रैल 1907 में द्विवेदीजी का एक और लेख छपा-'सभा की सभ्यता'। अपने समय की, हिन्दी की दो बड़ी हस्तियाँ अब आमने-सामने थीं। 'सभा की सभ्यता' लेख में द्विवेदीजी ने सभा की गिरती हुई प्रतिष्ठा के लिए प्रबंधकारिणी कमेटी के सदस्यों को जिम्मेदार माना था। बाबू श्यामसुन्दरदास ने इस लेख का जवाब 'शीलनिधिजी की शालीनता' शीर्षक लेख से दिया। आ. द्विवेदी और बाबू श्यामसुन्दरदास के इस झगड़े के परिणामस्वरूप सभा के कार्यकर्ताओं और सदस्यों में भी मतभेद पैदा हो गया। वे दो गुटों में बँट गए। इससे सभा की प्रतिष्ठा लगातार गिरती जा रही थी। आचार्य शुक्ल के इन पत्रो में सभा की गतिविधियों और प्रबंधकारिणी कमेटी के पुनर्गठन और सभासदों के चुनाव की चर्चा है।
 
 
 
आ. शुक्ल का पत्र रामबहोरी शुक्ल के नाम
 
 
जिंदगी है या कोई तूफान है,
हम तो इस जीने के हाथों मर चले
प्रिय रामबहोरी जी,
    साहित्य-परिषद के स्वागताधयक्ष का भाषण मैं लिख रहा हूँ, जो कुछ हो जाए। मुझे इस बीच पटने भी जाना पड़ा था। वहाँ के लिए भी कुछ लिखना पड़ा था। सोमवार को लौटकर आया हूँ। तब से जो कुछ अवकाश मिल रहा है लिखने में लगा रहा हूँ। कल तक भाषण तैयार हो जाएगा। किसी को दोपहर तक भेज दीजिएगा।
    मालवीयजी की ओर से कुछ लिखने के लिए मुझे कोई आदेश नहीं मिला। ऐसा जान पड़ता है कि उनका भाषण केवल मौखिक होगा।
भवदीय
रामचन्द्र शुक्ल
 
आ. शुक्ल का पत्र माधवप्रसाद के नाम
 
 
    श्रीयुक्त मन्त्री
नागरीप्रचारिणी सभा
काशी
प्रियवर,
    संक्षिप्त शब्दसागर की छपाई के सम्बन्ध में आपका पत्र नं. 906/37 मिला। उत्तर में निवेदन है कि हेड कम्पोजिटर जिस दिन चाहे संध्या के समय आ सकता है। अच्छा होगा कि बाबू श्यामसुन्दरदासजी के मकान पर वह आ जाए। वहीं उनके सामने सब बातें स्थिर हो जायंगी। इंडियन प्रेस का वह पत्र जिसमें छपाई के ढंग का प्रस्ताव है साथ रहना चाहिए।
    कम्पोजिटर शनिवार के पहले आ जाए तो अच्छा है।
भवदीय
रामचन्द्र शुक्ल
 
 
 
 
         [  हिन्दी शब्द सागर के संक्षिप्त संस्करण में व्यवहृत चिद्दों आदि को लेकर इंडियन प्रेस के मैनेजर ने कुछ प्रस्ताव किए थे। इन प्रस्तावों को बाबू श्यामसुन्दरदास ने स्वीकार कर लिया था। इन प्रस्तावों के अनुसार प्रेस कापी को ठीक करने और उसमें आवश्यक संशोधान करने हेतु आ. शुक्ल को माघव प्रसाद ने प्रधाानमन्त्राी, सभा की हैसियत से पत्रा लिखा था। आचार्य शुक्ल का यह पत्रा उक्त पत्रा का जवाब है-सम्पा. ]

 
आचार्य शुक्ल का पत्र श्री वियोगी हरि के नाम
 
 
    10.05.1929
प्रियवर,
    नमस्कार।
    आशा है आप सर्वथा प्रसन्न होंगे। हिन्दी साहित्य का इतिहास, जो हाल में मैंने 'शब्दसागर' की भूमिका के रूप में लिखा है, सेवा में भेजता हूँ। आप कृपया इसका अन्वेषण कर जाइए। इसमें विभाग आदि मैंने नए ढंग से किया है। मिश्रबन्धु इस पर बहुत कुढ़े हैं और अनेक रूपों में मुझ पर आक्रमण का उपक्रम कर रहे हैं। आप इस पुस्तक के सम्बन्ध में अपना कुछ मत अवश्य प्रकट कीजिए।
भवदीय,
रामचन्द्र शुक्ल
  
 
 
         [  श्री वियोगी हरि की पुस्तक 'विनयपत्रिाका की हरितोषिणी टीका' की भूमिका आचार्य शुक्ल ने 'परिचय' शीर्षक से लिखी थी। वे वियोगी हरि की विद्वता से प्रभावित थे। इस पत्रा से यह संकेत मिलता है कि 'शब्दसागर' की भूमिका के रूप में लिखे गए 'हिन्दी साहित्य का विकास' पर उनका मत जानने के लिए शुक्लजी उत्सुक थे-सम्पा. ]

  
 
आ. शुक्ल के पत्र पंडित अयोध्यायनाथ शर्मा के नाम
 
(1)
    दुर्गाकुंड
4.3.1932
    बनारस सिटी
प्रिय अयोध्यानाथ जी,
    अनेक आशीर्वाद।
    मैं समझता हूँ आगरा यूनिवर्सिटी के हिन्दी बोर्ड की मीटिंग अभी न हुई होगी। पंडित कृष्णानन्दजी पन्त कई महीने हुए मेरे यहाँ आए थे। उस समय मेरे यहाँ यह चर्चा हो रही थी कि बाबू श्यामसुन्दरदास का विचार है कि मेरा लिखा 'गोस्वामी तुलसीदास' नागरीप्रचारिणी सभा द्वारा न छापा जाय। पन्तजी यह बात यहाँ से सुन कर गए थे।
बाबू साहब ने हिन्दू विश्वविद्यालय की बोर्ड की मीटिंग में इस बात का दबा प्रयत्न किया था कि मेरी वह पुस्तक हटाई जाय। इस पर बड़ा विरोध हुआ और पुस्तक नहीं हटाई गई। आप इस बात का ध्यान रखिएगा कि वह पुस्तक 'गोस्वामी-तुलसीदास' आगरा यूनिवर्सिटी से न हटने पाए। जब दोनों यूनिवर्सिटी में वह पुस्तक ज्यों की
त्यों रहेगी तब बाबू साहब को नागरीप्रचारिणी सभा में यह प्रस्ताव करने के लिए कोई आधार न रह जाएगा कि पुस्तक न छापी जाय।
    बाबू साहब ने जो तुलसीदास की जीवनी लिखी या संकलित कराई है, वह आपने देखी होगी। उसमें सिवा इसके कि तुलसीदासजी यहाँ गए, वहाँ गए, मुर्दे जिलाए कुछ भी मैटर ऐसा है जो इस Standard (स्टैंडर्ड) का हो कि बी. ए. आदि के कोर्स में रखा जा सके?
भवदीय,
रामचन्द्र शुक्ल


(2)
    दुर्गाकुंड
    बनारस सिटी
    10.3.1934
प्रिय शर्माजी,
    अनेक आशीर्वाद।
    कुछ दिन हुए बाबू श्यामसुन्दरदास जी ने यह खुशहाली सुनाई कि अब तो मि. हरिहर नाथ टंडन भी बोर्ड ऑफ स्टडीज (Board of studies) के मेम्बर हो गए। न जाने क्यों यह खबर मुझे धमकी सी जान पड़ी। मुझे अब भी यही भावना होती है कि उन्हें आगरा यूनिवर्सिटी (Agra University) की उक्त कमेटी में बाबू श्यामसुन्दरदास को प्रसन्न करने के अनेक अवसर मिला करेंगे। बाबू साहब किन-किन बातों से प्रसन्न हुआ करते हैं, यह तो आप अच्छी तरह जानते होंगे। आपको मैं इसलिए लिख रहा हूँ कि आप सब बातों पर पूरी दृष्टि रखें। उक्त कमेटी में आपके रहने से मैं एक प्रकार से निश्चित हूँ।
           Board of Studies की बैठक हो गई या अभी होने वाली है? यदि हो गई हो तो कृपया लिखिए कि मेरे ऊपर कोई विशेष कृपा तो नहीं हुई। मुझे पूरा भरोसा है कि आप तथा कमेटी के अन्य सदस्य मेरे साथ कोई अन्याय न होने देंगे बस,
    अब इस बात की आवश्यकता प्रतीत होती है कि आप समय समय पर सब बातों की सूचना मुझे देते रहें।
    आपका
    रामचन्द्र शुक्ल


  
आ. शुक्ल का पत्र पंडित किशोरीप्रसाद वाजपेयी के नाम
 

    दुर्गाकुंड
    बनारस सिटी
    17.2.36
प्रिय वाजपेयी जी,
    नमस्कार।
    आपका एक पत्र इधर आया था। मैं इधर महीनों से ज्वर और श्वास का रोग लिए पड़ा हूँ। उत्तर भी इसी से ठीक समय पर न दे सका। क्षमा कीजिएगा।
    यदि मैं स्वस्थ होता तो आपकी पुस्तक के लिए 'परिचय' के रूप में अवश्य कुछ लिखता। पर इस समय तो मुझसे कोई काम नहीं हो सकता। एक पत्र लिखना भी मेरे लिए कठिन हो रहा है। आशा है मेरी दशा का विचार करके आप क्षमा करेंगे।
    दोहों की हस्तलिखित प्रति यदि आवश्यक हो तो शीघ्र भेज दूँ, नहीं तो स्वस्थ हो जाने पर भेज दूँगा।
    भवदीय,
    रामचन्द्र शुक्ल
श्रीयुत पंडित किशोरीप्रसादजी वाजपेयी शास्त्री
    ऋषिकुल
    हरिद्वार

 
आ. शुक्ल का पत्र श्री सुरेन्द्रनाथ त्रिपाठी के नाम 
 
    दुर्गाकुंड
    बनारस सिटी
    28.12.40
बुलबुल के हमारे आशिर्वाद पहुँचे। आगे सब इहाँ अच्छा है। तुहरे सब क कुशल मंगल दिन रात मनावल करीले। चोकरंत और मल्लू के चाची क का हालि ह? बुलबुल तू बड़े दिन के छुट्टिया में अइलऽ नाहीं। सरयूपारिन के जौन सभा होखै के रहल ओहि खातिर रहि गइलऽ का? सभा में गाँव जवार क अउर देश देश क लोग जुटल रहल होइ। तुहरे बाबुओ पगड़ी ओगड़ी बाँधि के गइल रहल होइहैं। माटी क पहुना गइलन कि बाड़ें, लिखहऽ।
    तुम्हारा नाना
    रामचन्द्र शुक्ल
  
 
 
   आचार्य रामचन्द्र शुक्ल कृत्रिम वातावरण को पारिवारिकता से दूर मानते थे। वे घर और परिवार के सदस्यों से मिर्जापुरी बोली (भोजपुरी मिश्रित अवधी) में ही बातचीत करते थे। अपने दौहित्रा श्रीसुरेन्द्रनाथ त्रिपाठी को वे बुलबुल के नाम से पुकारते थे। शुक्लजी द्वारा रखे हुए ऐसे ही कुछ नामों की बानगी इस पत्र में मौजूद है। चोकरंत वे सुरेन्द्र के भाई धीरेन्द्र को कहते थे। सुरेन्द्र की बहन कृष्णा को वे मल्लू की चाची कहा करते थे। -सम्पादक
 
विज्ञप्ति   
 
 सरोज!         सरोज!         सरोज!
   (हिन्दी का सचित्र मासिक पत्र)

 
'सरोज' नामक हिन्दी का सचित्र मासिक पत्र शीघ्र ही प्रकाशित होगा। यह खूब मोटे और चिकने Art Paper पर छपेगा। सरोज के लिए एक सुचतुर चित्रकार रक्खा गया है। उसके बनाए तथा उत्तमोत्तम प्राचीन चित्रौ के रंगीन और सादे ब्लाक बराबर सरोज मे छपेंगे। इसका विषय केवल हिन्दी साहित्य सम्बन्धी होगा। सरोज के सम्पादन का भार हिन्दी के सिध्दहस्त लेखक पंडित रामचन्द्र शुक्ल (सम्पादक-नागरी प्रचारिणी हिन्दी पत्रिका) को दिया गया है। सरोज में सभी उन हिन्दी लेखकों के लेख रहा करेंगे। नीचे लिखे नामों से मालूम हो जायगा आपके सरोज में कैसे लेखकों के लेख रहेंगे।
    उक्त नामावली से आप समझ सकते हैं कि 'सरोज' कैसा पत्र होगा। इन सज्जनों के सिवाय हिन्दी [ के ] और सुलेखकों के भी लेख रहेंगे तथा इसमें पचासों ऐसे प्रसिध्द विद्या सम्बन्धी उपाधिधारी पंडितों के लेख रहेंगे जिन्होंने आज तक कभी हिन्दी की कलम ही नहीं छुआ   [  छुई ]  लिखने की कोई आवश्यकता नहीं। जिन सुलेखकों के लेख 'सरस्वती'  [ सरोज  ]   में रहेंगे उनमें से कुछ महानुभावों का नाम हम नीचे देते हैं। बस इसी से समझ लीजिए कि सरोज कैसा मासिक पत्र होगा।
    सरोज शीघ्र ही प्रकाशित होगा। इसका वार्षिक मूल्य 4 रुपया होगा, पर जो सज्जन दिवाली से पहिले हमें सरोज के ग्राहकों में अपना नाम लिखा देंगे उन्हें 3 रुपया देना पड़ेगा।
 
    केदारनाथ पाठक
    सरोज कार्यालय
काशी
 
    इसमें केवल हिन्दी साहित्य सम्बन्धी, वर्तमान राजनीति, धर्म एवं धर्म वि. छोड़कर, और सभी सद्विषयों पर लेख छपा करेंगे। इसमें हिन्दी के सभी उत्तम लेखकों के लेख रहेंगे। साथ ही उसमें अनेक ऐसे विद्वानों और.....प्रतिष्ठो के लेख प्रकाशित होंगे जिनके द्वारा हिन्दी का विशेष उपकार हो सकता है।
   
 [ लेखकों की निम्न सूची दूसरे पृष्ठ पर दी गई है। ]
    1.  पंडित अमृतलाल चक्रवर्ती बी. ए. (भारतमित्र-संपादक)
    2.  बाबू काशीप्रसाद जायसवाल बी. ए. (आक्सफोर्ड) बारिस्टर-एट-ला।
    3.  पंडित किशोरीलाल गोस्वामी।
    4.  अध्यापक गोकुलदास बी. ए., एम. एस. सी., एल. एल. बी.
    5.  पंडित जगन्नाथप्रसाद शुक्ल (सुधानिधि-संपादक)
    6.  बाबू जयशंकर प्रसाद
    7.  पंडित बाबूराव पराड़कर
    8.  पंडित बालकृष्ण भट्ट
    9.  बाबू भगवानदास (उपसंपादक-अभ्युदय)
   10.  लाला भगवानदीन (सम्पादक-लक्ष्मी)
   11.  पंडित महावीरप्रसाद द्विवेदी
   12.  पंडित रामानन्द चटर्जी एम. ए. (संपादक 'प्रवासी' तथा 'माडर्न रिव्यू')
   13.  पंडित बदरीनारायण चौधारी (संपादक-आनन्द कादंबिनी)
   14.  पंडित बिहारीलाल चौबे (उपसंपादक-हरिश्चन्द्रचन्द्रिका)
   15.  श्रीमती बंगमहिला
   16.  बाबू व्रजचन्द्र
   17.  बाबू सीताराम बी. ए.
   18.  पंडित सत्यदेव-अमरीका
 
सरोज!            सरोज!            सरोज!
 
(   नागरीप्रचारिणी सभा में आने के बाद आचार्य रामचन्द्र शुक्ल और रायकृष्णदास की घनिष्टता क्रमश: बढ़ती गई। रायकृष्णदास ने 1911 ई. में 'सरोज' नामक सचित्र हिन्दी मासिक पत्र निकालने की योजना बनाई थी। पंडित केदारनाथ पाठक से सलाह-मशविरा करके उन्होंने पंडित रामचन्द्र शुक्ल को इसका सम्पादक बनाया। 'सरोज' का प्रवेशांक छपकर भी प्रेस ऐक्ट के कारण प्रकाशित न हो सका। 'सरोज' की विज्ञप्ति का रफ ड्राफ्ट भारत कला भवन काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी में सुरक्षित है। इस ड्राफ्ट से न केवल आचार्य शुक्ल के संपादक नियुक्त किए जाने का पता चलता है, बल्कि उन लेखकों की सूची भी मिल जाती है, जिनसे लेख आमंत्रित किए जाने की योजना थी-संपादक,)

 

पैम्फलेट
हिन्दी प्रेमियों से अनुरोध
 
हमारी परम्परागत भाषा को हमारे व्यवहारों से अलग करने का प्रयत्न बहुत दिनों से चल रहा है, पर अपनी स्वाभाविक शक्ति से यह अपना स्थान प्राप्त करती चली आ रही है। इधर जबसे हिन्दी को राष्ट्रभाषा बनाने की चर्चा छिड़ी है, तबसे इसके विरोधी बड़े प्रचंड वेग से इसकी गति रोकने के अनेक उपाय रचने में लग गए हैं। इस अवसर पर अपनी भाषा की रक्षा का भरपूर उद्योग हमने न किया तो सब दिन के लिए पछताना पड़ेगा। पर हममें से अधिकतर लोगों को यह भी पता नहीं है कि हिन्दी को उखाड़ फेंकने के लिए कितने चक्र किन-किन रूपों में कहाँ-कहाँ चल रहे हैं। यही देखकर यह 'हिन्दी' पत्रिका निकाली गई है, यह इस बात पर बराबर दृष्टि रखेगी कि अनिष्ट की आशंका कहाँ-कहाँ से है और समय-समय पर अपनी सूचनाओं द्वारा हिन्दी प्रेमियों से स्थिति पर विचार करने और आवश्यक उद्योग करने की प्रेरणा करती रहेगी।
    हमें पूरा विश्वास है कि समस्त देशभक्त और मातृभाषा प्रेमी सज्जन इस पत्रिका की सहायता हर प्रकार से-धन से, लेख से, आवश्यक बातों की सूचना से, अवसर के अनुकूल परामर्श से-करेंगे और यह अपने उद्देश्य में सफलता प्राप्त करेगी।
 
रामचन्द्र शुक्ल
सभापति
-काशी नागरीप्रचारिणी सभा
(नागरीप्रचारिणी सभा, काशी से 'हिन्दी' नाम से मासिक पत्र निकालने की योजना थी। आचार्य रामचन्द्र शुक्ल उस समय सभा के सभापति थे। उन्होंने इस पत्रा के माध्यम से 'हिन्दी' पत्रिका के सहायतार्थ हिन्दी प्रेमियों से अनुरोध किया था। -सम्पादक)

 

रामचन्द्र शुक्ल ग्रंथावली - 8

  भाग - 1 //  भाग -2 // भाग -3 // भाग - 4 //  भाग - 5 //  भाग -6 //  भाग - 7 // भाग - 8 //  भाग - 9 //  भाग - 10 // भाग -11 //  भाग - 12 //


 

 

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